- 496
- 4,130
- 139
Shandaar update bhai....bahut dino baad update diya hai toh ek aur banta hai yaaar aur regular rehna plzUpdate- 18
अगली सुबह सब उठकर अपने अपने काम में लग गए, अल्का और किरन रसोई साफ करके नाश्ता बनाने में लगी थी, सौम्या और सत्तू की माँ पशुओं का चारा बालने में लगी हुई थी, इंद्रजीत ने सुबह ही ट्यूबेल चलाकर गेहूं की सिंचाई कर डाली, क्योंकि आज उसे अपनी ससुराल जाना था न्यौता देने, इसलिए सिंचाई का काम सुबह ही निपटा दिया, फावड़ा कंधे पर रखकर वो जैसे ही घर वापिस आया तो देखा सत्तू पेड़ के नीचे अभी तक सो ही रहा है, वो फावड़ा रखने चारा मशीन के पास गया तो अपनी पत्नी कंचन शिकायत भरे लहजे से बोला- सत्तू अभी तक सो रहा है?
सौम्या- बाबू जी मैं उनको उठा देती हूं तब तक आप नहा लीजिए अल्का और किरन नाश्ता तैयार कर चुकी होंगी।
इंद्रजीत कुएं पर चला जाता है, सौम्या चारा बाल चुकी थी कंचन हरी घास में भूसा मिलाने लगी, तभी सौम्या ने एक बड़ी सी घास उठायी और सत्तू की तरफ चल दी।
सत्तू के कान में धीरे से बोली- पापा जी..उठिए न
सत्तू अब भी सोता रहा, सौम्या ने एक बार अपनी सास की तरफ देखा और फिर दुबारा धीरे से बोला- पापा जी, उठो न.....
सौम्या ने सत्तू के कान में हरी घास से जैसे ही गुदगुदी की, सत्तू की झट से आंख खुल गयी- अरे भाभी माँ।
सौम्या ने फिर धीरे से बोला- अब उठो न पापा जी कब से उठा रही हूं....सब उठ गए बस आप ही सो रहे हो।
सौम्या के उठाने के तरीके और उसकी आँखों में हल्की सी कामुकता देखकर सत्तू का लंड ही खड़ा हो गया, सुबह सुबह एक तो लंड वैसे ही फुंकारता रहता है ऊपर से सौम्या की ये अदा, सत्तू कायल ही हो गया, वो हल्के से मुस्कुरा बोला- ओह्ह मेरी बेटी...आज तो दिन बन गया...इतनी अच्छी सुबह होगी आज सोचा नही था।
सौम्या मुस्कुराती हुई बोली- अच्छा जी...तो चलो अब जल्दी उठो, नाश्ता तैयार है जल्दी से नहा धो लो....पता है बाबू जी गुस्सा करने ही वाले थे, मैंने उनको बोला आप जाओ नहाओ मैं उठा देती हूं।
सत्तू- हां तो मुझे नाज़ है न अपनी बिटिया पर, उसके रहते कोई मुझे कैसे डांट सकता है, बेटी हो तो ऐसी।
सौम्या ने मुस्कुराते हुए एक बार फिर "पापा जी" बोला और घर के अंदर चली गयी, सत्तू झट से उठा और सुबह के नित्यकर्मों को करके नहा धोकर बरामदे में आ गया जहां सब लोग बैठे थे।
अल्का और किरन सबके लिए चाय नाश्ता लेकर आई और टेबल पर रखकर बगल में बैठ गयी।
इंद्रजीत ने कंचन से कहा- आज तो न्योता लेकर तुम्हारे ससुराल चलना है?
कंचन- हाँ चलना तो है, जल्दी तैयार हो जाओ सब दोपहर को चलेंगे।
अलका- सब.....सब चलेंगे?
कंचन- अरे नही बहु, सब मतलब.....मैं तेरे बाबू जी और सौम्या..... हम तीनों जाते हैं कल आ जाएंगे, बुलाया तो मेरी माता जी ने किरन को भी है....पर ये जाए तब न....कह रही थी कि काफी दिन हो गए किरन को देखे।
किरन- लो...अब शादी में तो नाना नानी सब आएंगे ही.....तब मिल लूँगी....मिलना जुलना तो अब होने ही वाला है शादी में.....अभी आप लोग ही जाओ...घर पर भी तो कोई होना चाहिए।
सत्तू किरन के इस जवाब पर हल्का सा सिर नीचे करके मुस्कुराने लगा, वो जानता था किरन जाना नही चाहती, वो उसके साथ वक्त बिताना चाहती है, पर वो ये भी जानता था कि अलका उसे भेजकर रहेगी।
अल्का- क्या मेरी ननद रानी...मेरी नानी ने बुलाया होता तो मैं तो कूदकर उनके गोद में बैठ जाती.......नाना-नानी प्यार से बुलाये तो ऐसे मना नही करते...मेरा बच्चा.....घर पर मैं और मेरे देवर जी हैं तो सही।
(अल्का बातों बातों के बहाव में ये बोल तो गयी "मेरा बच्चा" पर जैसे ही अपने ससुर पर नज़र पड़ी वो झेंप गयी, और सब हंस पड़े)
किरन- हाँ मेरी नानी....जाओ फिर तुम ही चली जाओ, मैं रह लुंगी यहां।
अल्का हंस पड़ी, फिर बोली- बाबू जी वो खट्टी- मीठी वाली नमकीन लाऊं आपके लिए...आपको पसंद है न।
इंद्रजीत- नही बहु रहने दे....हो तो गया नाश्ता... कर लिया बस
सौम्या- किरन चल न....कल ही तो वापिस आ जाएंगे।
किरन- अच्छा बाबा ठीक है...चलूंगी मैं भी...अब खुश हो न सब।
सब फिर हंस पड़े, अल्का और सत्तू की नज़र जब भी मिलती, एक सिरहन सी अलका के जिस्म में दौड़ जाती, जैसे जैसे ये सुनिश्चित होता जा रहा था कि आज रात वो दोनों घर पर अकेले रहेंगे, दोनों के बदन में एक मस्तानी सी लहर रह रहकर उठ रही थी, वहीं किरन थोड़ा सा उदास थी, वो अपने भाई के साथ अकेले में मस्ती करना चाहती थी पर क्या करे, ये सोचकर उसने हाँ कर दी कि अल्का के होते हुए वो सब हो पाना संभव भी नही, उदास तो सौम्या भी थी पर वो बहुत धैर्यवान और सहनशील थी। सत्तू जब भी अपनी बहन किरन की ओर देखता तो उसे सब्र रखने का इशारा आंखों ही आंखों में कर देता, यह बात किरन के मन को रोमांचित कर रही थी की उसके भाई को उसका कितना ख्याल है।
अल्का- अम्मा दोपहर में खाने में क्या बनाऊं?
कंचन के बोलने से पहले ही इंद्रजीत बोल पड़ा- बहु तुम अपने लिए और सत्येंद्र के लिए कुछ भी बना लेना, हम लोग तो अभी कुछ देर बाद ही निकल रहे हैं।
कंचन- अरे बाबा तुम्हें भूख नही है तो तुम मत खाना हम सब तो खाना खा के जाएंगे, बहू तू बना ले सबका खाना, इनके हिस्से का मत बनाना बस।
अल्का हंसने लगी- अच्छा अम्मा ठीक है, मैं बना लेती हूं सबका खाना।
अलका ने हल्की सी मुस्कान के साथ सत्तू को देखा और इठलाते हुए चली गयी रसोई की तरह।
कंचन ने चाय पीकर कप प्लेट में रखते हुए बोला- सत्तू बेटा.... अपनी सौम्या भाभी के साथ मिलकर वो गेहूं जो धोकर, बरामदे में रखा हुआ है न उसको बाहर खाट पर फैलवा दे ताकि धूप लगने पर सुख जाये, वो अकेली नही कर पायेगी।
सत्तू- हां अम्मा मैं फैलवा देता हूँ गेहूं।
कंचन- किरन... जा तू भी...तीनो मिलकर कर लो ये काम।
किरन- हाँ अम्मा जाती हूँ....चल भौजी।
इंतजार रहेगाNext update kal
Awesome updateUpdate- 18
अगली सुबह सब उठकर अपने अपने काम में लग गए, अल्का और किरन रसोई साफ करके नाश्ता बनाने में लगी थी, सौम्या और सत्तू की माँ पशुओं का चारा बालने में लगी हुई थी, इंद्रजीत ने सुबह ही ट्यूबेल चलाकर गेहूं की सिंचाई कर डाली, क्योंकि आज उसे अपनी ससुराल जाना था न्यौता देने, इसलिए सिंचाई का काम सुबह ही निपटा दिया, फावड़ा कंधे पर रखकर वो जैसे ही घर वापिस आया तो देखा सत्तू पेड़ के नीचे अभी तक सो ही रहा है, वो फावड़ा रखने चारा मशीन के पास गया तो अपनी पत्नी कंचन शिकायत भरे लहजे से बोला- सत्तू अभी तक सो रहा है?
सौम्या- बाबू जी मैं उनको उठा देती हूं तब तक आप नहा लीजिए अल्का और किरन नाश्ता तैयार कर चुकी होंगी।
इंद्रजीत कुएं पर चला जाता है, सौम्या चारा बाल चुकी थी कंचन हरी घास में भूसा मिलाने लगी, तभी सौम्या ने एक बड़ी सी घास उठायी और सत्तू की तरफ चल दी।
सत्तू के कान में धीरे से बोली- पापा जी..उठिए न
सत्तू अब भी सोता रहा, सौम्या ने एक बार अपनी सास की तरफ देखा और फिर दुबारा धीरे से बोला- पापा जी, उठो न.....
सौम्या ने सत्तू के कान में हरी घास से जैसे ही गुदगुदी की, सत्तू की झट से आंख खुल गयी- अरे भाभी माँ।
सौम्या ने फिर धीरे से बोला- अब उठो न पापा जी कब से उठा रही हूं....सब उठ गए बस आप ही सो रहे हो।
सौम्या के उठाने के तरीके और उसकी आँखों में हल्की सी कामुकता देखकर सत्तू का लंड ही खड़ा हो गया, सुबह सुबह एक तो लंड वैसे ही फुंकारता रहता है ऊपर से सौम्या की ये अदा, सत्तू कायल ही हो गया, वो हल्के से मुस्कुरा बोला- ओह्ह मेरी बेटी...आज तो दिन बन गया...इतनी अच्छी सुबह होगी आज सोचा नही था।
सौम्या मुस्कुराती हुई बोली- अच्छा जी...तो चलो अब जल्दी उठो, नाश्ता तैयार है जल्दी से नहा धो लो....पता है बाबू जी गुस्सा करने ही वाले थे, मैंने उनको बोला आप जाओ नहाओ मैं उठा देती हूं।
सत्तू- हां तो मुझे नाज़ है न अपनी बिटिया पर, उसके रहते कोई मुझे कैसे डांट सकता है, बेटी हो तो ऐसी।
सौम्या ने मुस्कुराते हुए एक बार फिर "पापा जी" बोला और घर के अंदर चली गयी, सत्तू झट से उठा और सुबह के नित्यकर्मों को करके नहा धोकर बरामदे में आ गया जहां सब लोग बैठे थे।
अल्का और किरन सबके लिए चाय नाश्ता लेकर आई और टेबल पर रखकर बगल में बैठ गयी।
इंद्रजीत ने कंचन से कहा- आज तो न्योता लेकर तुम्हारे ससुराल चलना है?
कंचन- हाँ चलना तो है, जल्दी तैयार हो जाओ सब दोपहर को चलेंगे।
अलका- सब.....सब चलेंगे?
कंचन- अरे नही बहु, सब मतलब.....मैं तेरे बाबू जी और सौम्या..... हम तीनों जाते हैं कल आ जाएंगे, बुलाया तो मेरी माता जी ने किरन को भी है....पर ये जाए तब न....कह रही थी कि काफी दिन हो गए किरन को देखे।
किरन- लो...अब शादी में तो नाना नानी सब आएंगे ही.....तब मिल लूँगी....मिलना जुलना तो अब होने ही वाला है शादी में.....अभी आप लोग ही जाओ...घर पर भी तो कोई होना चाहिए।
सत्तू किरन के इस जवाब पर हल्का सा सिर नीचे करके मुस्कुराने लगा, वो जानता था किरन जाना नही चाहती, वो उसके साथ वक्त बिताना चाहती है, पर वो ये भी जानता था कि अलका उसे भेजकर रहेगी।
अल्का- क्या मेरी ननद रानी...मेरी नानी ने बुलाया होता तो मैं तो कूदकर उनके गोद में बैठ जाती.......नाना-नानी प्यार से बुलाये तो ऐसे मना नही करते...मेरा बच्चा.....घर पर मैं और मेरे देवर जी हैं तो सही।
(अल्का बातों बातों के बहाव में ये बोल तो गयी "मेरा बच्चा" पर जैसे ही अपने ससुर पर नज़र पड़ी वो झेंप गयी, और सब हंस पड़े)
किरन- हाँ मेरी नानी....जाओ फिर तुम ही चली जाओ, मैं रह लुंगी यहां।
अल्का हंस पड़ी, फिर बोली- बाबू जी वो खट्टी- मीठी वाली नमकीन लाऊं आपके लिए...आपको पसंद है न।
इंद्रजीत- नही बहु रहने दे....हो तो गया नाश्ता... कर लिया बस
सौम्या- किरन चल न....कल ही तो वापिस आ जाएंगे।
किरन- अच्छा बाबा ठीक है...चलूंगी मैं भी...अब खुश हो न सब।
सब फिर हंस पड़े, अल्का और सत्तू की नज़र जब भी मिलती, एक सिरहन सी अलका के जिस्म में दौड़ जाती, जैसे जैसे ये सुनिश्चित होता जा रहा था कि आज रात वो दोनों घर पर अकेले रहेंगे, दोनों के बदन में एक मस्तानी सी लहर रह रहकर उठ रही थी, वहीं किरन थोड़ा सा उदास थी, वो अपने भाई के साथ अकेले में मस्ती करना चाहती थी पर क्या करे, ये सोचकर उसने हाँ कर दी कि अल्का के होते हुए वो सब हो पाना संभव भी नही, उदास तो सौम्या भी थी पर वो बहुत धैर्यवान और सहनशील थी। सत्तू जब भी अपनी बहन किरन की ओर देखता तो उसे सब्र रखने का इशारा आंखों ही आंखों में कर देता, यह बात किरन के मन को रोमांचित कर रही थी की उसके भाई को उसका कितना ख्याल है।
अल्का- अम्मा दोपहर में खाने में क्या बनाऊं?
कंचन के बोलने से पहले ही इंद्रजीत बोल पड़ा- बहु तुम अपने लिए और सत्येंद्र के लिए कुछ भी बना लेना, हम लोग तो अभी कुछ देर बाद ही निकल रहे हैं।
कंचन- अरे बाबा तुम्हें भूख नही है तो तुम मत खाना हम सब तो खाना खा के जाएंगे, बहू तू बना ले सबका खाना, इनके हिस्से का मत बनाना बस।
अल्का हंसने लगी- अच्छा अम्मा ठीक है, मैं बना लेती हूं सबका खाना।
अलका ने हल्की सी मुस्कान के साथ सत्तू को देखा और इठलाते हुए चली गयी रसोई की तरह।
कंचन ने चाय पीकर कप प्लेट में रखते हुए बोला- सत्तू बेटा.... अपनी सौम्या भाभी के साथ मिलकर वो गेहूं जो धोकर, बरामदे में रखा हुआ है न उसको बाहर खाट पर फैलवा दे ताकि धूप लगने पर सुख जाये, वो अकेली नही कर पायेगी।
सत्तू- हां अम्मा मैं फैलवा देता हूँ गेहूं।
कंचन- किरन... जा तू भी...तीनो मिलकर कर लो ये काम।
किरन- हाँ अम्मा जाती हूँ....चल भौजी।