Update- 19
सबने मिलकर गेहूं का काम तो निपटा दिया, और दोपहर का खाना खाकर निकलने लगे शादी का न्यौता देने।
अल्का- अम्मा कल आ जाओगे न सब लोग।
कंचन- हाँ.... तू सत्येंद्र के साथ मिलकर ये गेहूं शाम को उठाकर बरामदे में रख देना।
अल्का- हां अम्मा ठीक है रख दूंगी।
फिर सब चले गए, सत्तू सबको 5 किलोमीटर दूर बसअड्डे पर जाकर बस में बैठा कर आया, जैसे ही सत्तू घर पहुंचा अल्का बाहर ही थी सत्तू को देखते ही जीभ चिढ़ाते हुए घर में भागी, सत्तू उसके पीछे पीछे भागा, अल्का जल्दी से पीछे वाले कमरे में घुस गई और किवाड़ बंद करने ही वाली थी कि सत्तू ने किवाड़ बंद होने से रोक लिया और अल्का को कस के अपनी बाहों में भर लिया।
अल्का- आआआह ह ह ह ह....अभी कोई आ सकता है, कोई आ गया वापिस तो।
सत्तू- बस में बैठा कर आया हूँ सबको, ऐसे कैसे आ जाएंगे...और तू भागी क्यों....अब ताड़पाओगी अपने भैया को।
अल्का- बहन के पीछे भागोगे तो और मजा आएगा...इसलिए भागी मैं।
सत्तू ने अल्का की मोटी मोटी गांड को उसकी आँखों में देखते हुए बड़ी कामुकता से सहलाया तो अल्का लजा कर सत्तू से लिपट गयी।
अल्का (धीरे से)- बेशर्म....आहहह....ऊऊईईई....सब्र नाम की चीज़ नही है मेरे भैया को....बहन हूँ कुछ तो शर्म करो।
सत्तू के हाँथ धीरे धीरे अल्का की कमर, गांड और पीठ को सहलाने लगे तो अल्का की आंखों में नशा चढ़ने लगा, हल्का सिसकते हुए - बेशर्म भैया।
सत्तू ने नीचे देखा तो अल्का की चूचीयाँ उसके सीने से दबी हुई थी, गोरे गोर उभारों की बीच की घाटी को देखकर, उसके लंड ने हल्के से ठुमकी मारी, जिसको अल्का ने बखूबी महसूस किया।
सत्तू (धीरे से)- भौजी...मेरी छोटकी भौजी।
अल्का थोड़ा शिकायत भरी नजरों से सत्तू की आंखों में देखकर- फिर भटकइयाँ के फल नही फोड़ने दूंगी।
सत्तू- फल फोड़ने के लिए वो गहराई सिर्फ भाई को मिलेगी।
अल्का प्यार से सत्तू की आंखों में देखते हुए- हम्म्म्म......सिर्फ मेरे भैया को।
सत्तू- मजा आ जायेगा न बहना।
अल्का- धत्त
सत्तू- दीदी बोलूं?
अल्का- बोल न
सत्तू (अल्का की गांड को हथेली से थामकर मीजते हुए) - दीदी
अल्का- अह..हाय!
सत्तू- दीदी....मुझे वो चाहिए।
अल्का का चेहरा शर्म से लाल होता जा रहा था
अल्का- क्या?.....क्या चाहिए भैया?
सत्तू- वही..
अलका सिसकते हुए- वही क्या मेरे भैया?
सत्तू- वही जो दोनों जांघों के बीच में है।
(दोनों की सांसें अब धौकनी की तरह चलने लगी)
अल्का भारी आवाज में- क्या है जांघों के बीच में....मैं समझी नही।
सत्तू- वही...जहाँ से मेरी दीदी पेशाब करती है।
(अल्का सुध बुध खोकर और कस के लिपट गयी)
अल्का- ईईईईईशशशशशश.....
सत्तू अल्का के गालों को चूमते हुए कान के पास होंठ लेजाकर- दीदी.....तेरी बूर चाहिए मुझे?
अल्का ने मचलते हुए सिसकारी ली और सत्तू की पीठ पर हल्की सी चिकोटी काटते हुए- बहुत बेशर्म हो तुम।
सत्तू- दीदी
अलका- ह्म्म्म
सत्तू- तेरी बूर सूंघने का मन कर रहा है.....सुंघाओगी?
अल्का का पूरा बदन शर्म से गनगना जा रहा था।
अल्का- गंदे
सत्तू- बोल न....सूंघने दोगी...अपनी बूर
अल्का- आआआह....उसमें पेशाब लगा होता है?
सत्तू- वही गंध तो चाहिए मुझे अपनी बहन की
अल्का- गंदे....और....बेशर्म भैया।
सत्तू- बोल न.....सूंघने दोगी
अल्का ने बड़ी मादकता से कहा- दूंगी....देखने के लिए.....छूने के लिए.....सूंघने के लिए....और
सत्तू- और क्या?
अल्का- और वो करने के लिए।
सत्तू- वो क्या
अल्का - वही....
सत्तू- वही क्या?
अल्का- चो...द....
(अल्का का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है)
सत्तू- बोल न दीदी...मेरी प्यारी बहना.... क्या करने के लिए दोगी।
अल्का बहुत धीरे से- चोदने के लिए
सत्तू- हाय... मेरी दीदी
सत्तू के अलका को कस के दबोच लिया।
अल्का जोर से सिसक पड़ी
सत्तू अल्का को चूमने लगा, अल्का मस्ती में सिसकने लगी और अपने गाल, गर्दन घुमा घुमा कर सत्तू को चुम्बन के लिए परोसने लगी, एकाएक सत्तू ने अपने होंठ अल्का के होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें पूरी तरह नशे में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे, कितने रसीले होंठ थे अल्का के, दोनों को होश नही, काफी देर तक होंठों को चूमने के बाद जैसे ही सत्तू ने अल्का के मुंह मे जीभ डालना चाहा, अल्का ने उसे रोकते हुए कहा- भैया।