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Adultery भटकइयाँ के फल

aamirhydkhan

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welcome back ...
 
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अगले अपडेट का बड़ी बेसब्री से इंतजार है । जल्दी से देने की कोशिश करना
 

chusu

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sahi...................
 
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TheBigBlackBull

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भाई आप किस ग्रह के रहने वाले हो? जरा हमें भी उसका पता दे दीजिये।
क्या कहानी लिखते हो आप? एसा प्लॉट कहाँ से लाते हो आप? कमाल है भाई! बेमिसाल है।
मुझ से अगर आज के दिन पूछा जाये (अभी मैं ने 13 अपडेट तक पड़ा है) की हिन्दी में सबसे बेहतरीन और कामोत्तेजना वाली स्टोरी कौनसी है? जो की न:1 है? तो मैं बे झिझक आप की इस स्टोरी का नाम सजेस्ट करूंगा।
वैसे तो मैं ज्यादतर इनसेस्ट कहानियां ही फॉलो करता हूँ। कभी कभी इस एडलट्रि सेक्शन में भी झांक के चला जाता हूँ। बस एसे ही मैं ने इस स्टोरी को रीड करना शुरु किया था। और शुरु के दो अपडेट में ही मैं यह बात स्वीकार करने पर मजबुर हो गया:"you are the one of the best writer among of all of them."

मेरे यह शब्द यूं ही तारीफों के पुल बान्धने जेसा नहीं है। मैं ने अच्छे अच्छे रायटरों की कहानियां पडी हैं। मैं समझ सकता हूँ इस तरह की कामोत्तेजना वाली स्टोरी एक एसा इन्सान ही लिख सकता है जिसे साहित्य की समझ बूझ हो। आप न सिर्फ साहित्य के अनुरागी हैं बल्कि आप शब्दों के चयन के बारे में अच्छी तरह वाकिफ हैं।
मुझे खास तौर पर कहानी का टाइटल बड़ा पसंद आया। "भटकइयाँ के फल" इसे जानने के लिए मैं ने बाद में गूगल पे सर्च भी किया। और क्या निकलता है? वही हमारे गावँ गावँ के सडक किनारे नहर के पास उगने वाले जाना पहचाना फल।
कहानी पे आते हैं। आप ने जिस तरह भाभी देवर के सम्पर्क में भाई बहन वाला रोमांस दिखाया और भाई बहन में भाभी देवर वाली चाहत दिखाई, यह भाई अदभुत ही है। असल में इरोटिक कहानियों में जितना मजा इन चाहतभरी कनवरसेशन में होता है उतना मजा सेक्स सिंस पडने से नहीं आता। बस यही कहना चाहूँगा की इस साईट पर आप की इस कहानी का सबसे बड़ा अनुरागी मैं हूँ। प्रार्थना करता हूँ आप खुश रहें। स्वस्थ रहें। धन्यबाद।
Bahut kubh, Bhai Kya batkaye ke phal ko English me Kya Nam Hoga Jara batayenge Kya ?
 
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S_Kumar

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सत्तू अल्का को चूमने लगा, अल्का मस्ती में सिसकने लगी और अपने गाल, गर्दन घुमा घुमा कर सत्तू को चुम्बन के लिए परोसने लगी, एकाएक सत्तू ने अपने होंठ अल्का के होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें पूरी तरह नशे में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे, कितने रसीले होंठ थे अल्का के, दोनों को होश नही, काफी देर तक होंठों को चूमने के बाद जैसे ही सत्तू ने अल्का के मुंह मे जीभ डालना चाहा, अल्का ने उसे रोकते हुए कहा- भैया।


अब आगे-----

Update- 20

सत्तू- ह्म्म्म

अल्का- काश बहुत पहले ही तुम मेरे भैया बन गए होते, कहाँ थे अब तक, यहीं एक ही घर में इतने दिनों से साथ रह रहे हो, ये सब पहले क्यों नही किया....पता है कितनी प्यासी है तुम्हारी बहना।

सत्तू- ओह मेरी दीदी....क्या करूँ तुमने भी तो कभी इशारा नही किया, कभी जिक्र नही किया, कभी अपने मन का दर्द बयां ही नही किया कि ऐसा कुछ था तुम्हारे मन में, नही तो हम कब से प्यार कर रहे होते...खैर जाने दे ये बात जब जिस चीज़ का समय आता है वो हो ही जाती है, अब तो तू बन गयी न मेरी बहन....मेरी दीदी।

अल्का- हां, बन गयी मेरे भैया, मुझे अपनी ही ससुराल में मेरा भाई मिलेगा और वो मुझे ऐसा प्यार देगा जैसा कोई भाई अपनी बहन को नही देता ऐसा मैंने कभी सोचा नही था।

सत्तू- तो मैंने भी कहाँ सोचा था कि मेरी छोटी भौजी ही मेरी बहन है।

(ऐसे कहते हुए सत्तू ने अल्का की गांड की दरार को दोनों हाथों से साड़ी के ऊपर से ही फैलाकर हाँथ को अंदर डालकर सहलाया तो अलका "ऊई अम्मा" कहते हुए मचल सी गयी)

अल्का- एक बात पूछूं?

सत्तू- बोल न

अल्का- मेरे भाई ने सच में वो कभी नही देखी है।

सत्तू- क्या वो? अब खुलकर बोल न दीदी, कैसा शर्माना, देख अब तो कोई है भी नही, तेरे मुँह से सुनकर बहुत उत्तेजना होती है।

(सत्तू अल्का की गांड को हथेली में भरकर हौले हौले मीज ही रहा था, गाड़ ही इतनी मस्त थी कि उसी से फुरसत नही मिल रही थी तो दूसरे अंगों पर कहाँ से ध्यान जाता, जब खाने के लिए ढेरों मिठाईयां एक साथ मिल जाएं तब समझ नही आता कि किसको पहले खाऊं और किसको बाद में, यहीं हाल सत्तू का था)

अल्का- शर्म आती है, उसका नाम बोलने से।

सत्तू- बोल न मेरी जान, उसका नाम मेरी आँखों में देखकर बोल न।

अल्का सत्तू की आंखों में देखकर लज़्ज़ा से भर गई, बड़े हौले से बोली- सच में भैया तुमने "बूर" नही देखी है कभी, सच्ची की "बूर", हम लड़कियों की "बूर"

(जब अल्का "बूर" शब्द बोल रही थी तो उसके लाल रसीले होंठ जब बोलते हुए "उ" के उच्चारण पर गोल हुए तभी सत्तू ने अल्का के होंठों को अपने होंठों में भरकर चूम लिया, दोनों फिर से लिपट गए, साँसें रह रहकर तेज चलने लगी, अल्का की चूचीयाँ, धीरे धीरे सख्त होती जा रही थी)

सत्तू- सच में दीदी, आज तक मैंने सच्ची की बूर नही देखी, किताबों में तो देखी है, फिल्मों में देखी है पर अपने घर की बूर, जिसका नशा ही अलग होता है वो नही देखी।

अल्का- घर की बूर का नशा अलग होता है।

सत्तू- बिल्कुल अलग, दुनियाँ में सबसे अलग।

अल्का ने मस्ती में हल्की सी अपनी जीभ निकाली तो सत्तू ने भी अपनी जीभ निकाली और दोनों एक दूसरे से हल्का हल्का जीभ लड़ाने लगे, की तभी अल्का ने झट से मुंह खोल दिया और सत्तू ने अपनी जीभ अल्का के मुँह में डाल दी, आँखें बंद हो गयी दोनों की, बदन थरथरा गया अल्का का, क्योंकि सत्तू का दायां हाँथ पीछे से हौले हौले सहलाते हुए अल्का की बूर तक पहुंच गया था, जैसे ही सत्तू ने अल्का की बूर को पीछे की तरफ से साड़ी के ऊपर से दबोचा, "आह भैया" की हल्की सी सिसकारी भरते हुए अल्का खुद को सत्तू की बाहों से छुड़ा कर पलंग की तरफ भागी, कुछ ही दूर पर बिछे पलंग पर अल्का पेट के बल अपना चेहरा हथेली में छुपकर लेट गयी, उसके उभरे हुए नितंब मानो अब खुल कर आमंत्रण दे रहे थे, उसकी सांसें जोश के मारे तेजी से चल रही थी, सत्तू का लंड अब तक तनकर लोहा हो चुका था, वो अल्का की ओर बढ़ा और साड़ी के ऊपर से ही जानबूझकर अपना खड़ा लंड अल्का की उभरी हुई गांड की दरार में खुलकर पेलते हुए "ओह दीदी" बोलकर उसपर चढ़ गया,

"ऊऊई मां" भैया, धीरे....

सत्तू ने अल्का को अपने लंड का अहसास कराते हुए साड़ी के ऊपर से ही कई बार सूखे धक्के मारे, अपने भाई का लंड महसूस कर अल्का की बूर पनियाने लगी, सत्तू ने अल्का के गालों पर आ चुके बालों की लटों को एक तरफ सरकाया और गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी, अल्का की सांसें तेज चलने लगी, सत्तू ने साड़ी के ऊपर से ही हौले हौले अल्का की गांड मारते हुए वासना में बेसुभ होकर कहा, - दीदी बूर चोदने दे न अब, बर्दाश्त नही हो रहा अब।

अल्का ने बड़ी मुश्किल से धीरे से कहा- पहले फल ले आओ मेरे भैया, तुम्हारी बहन तो बस तुम्हारी ही है अब, मुझसे भी अब रहा नही जा रहा, जाओ न फल लेकर आओ, जल्दी आना।

और शर्म से उसने फिर अपना चेहरा हथेली में छुपा लिया, सत्तू ने एक चुम्बन कस के अल्का के गालों पर लिया, और उठ गया उसके ऊपर से, लंड को ठीक किया और जल्दी से बाहर निकल गया, काफी देर तक अल्का पलंग पर लेटी रही, उसे अभी भी महसूस हो रहा था कि सत्तू का मोटा लंड उसकी गांड की दरार में रगड़ रहा है।
 

pprsprs0

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सत्तू अल्का को चूमने लगा, अल्का मस्ती में सिसकने लगी और अपने गाल, गर्दन घुमा घुमा कर सत्तू को चुम्बन के लिए परोसने लगी, एकाएक सत्तू ने अपने होंठ अल्का के होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें पूरी तरह नशे में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे, कितने रसीले होंठ थे अल्का के, दोनों को होश नही, काफी देर तक होंठों को चूमने के बाद जैसे ही सत्तू ने अल्का के मुंह मे जीभ डालना चाहा, अल्का ने उसे रोकते हुए कहा- भैया।


अब आगे-----

Update- 20

सत्तू- ह्म्म्म

अल्का- काश बहुत पहले ही तुम मेरे भैया बन गए होते, कहाँ थे अब तक, यहीं एक ही घर में इतने दिनों से साथ रह रहे हो, ये सब पहले क्यों नही किया....पता है कितनी प्यासी है तुम्हारी बहना।

सत्तू- ओह मेरी दीदी....क्या करूँ तुमने भी तो कभी इशारा नही किया, कभी जिक्र नही किया, कभी अपने मन का दर्द बयां ही नही किया कि ऐसा कुछ था तुम्हारे मन में, नही तो हम कब से प्यार कर रहे होते...खैर जाने दे ये बात जब जिस चीज़ का समय आता है वो हो ही जाती है, अब तो तू बन गयी न मेरी बहन....मेरी दीदी।

अल्का- हां, बन गयी मेरे भैया, मुझे अपनी ही ससुराल में मेरा भाई मिलेगा और वो मुझे ऐसा प्यार देगा जैसा कोई भाई अपनी बहन को नही देता ऐसा मैंने कभी सोचा नही था।

सत्तू- तो मैंने भी कहाँ सोचा था कि मेरी छोटी भौजी ही मेरी बहन है।

(ऐसे कहते हुए सत्तू ने अल्का की गांड की दरार को दोनों हाथों से साड़ी के ऊपर से ही फैलाकर हाँथ को अंदर डालकर सहलाया तो अलका "ऊई अम्मा" कहते हुए मचल सी गयी)

अल्का- एक बात पूछूं?

सत्तू- बोल न

अल्का- मेरे भाई ने सच में वो कभी नही देखी है।

सत्तू- क्या वो? अब खुलकर बोल न दीदी, कैसा शर्माना, देख अब तो कोई है भी नही, तेरे मुँह से सुनकर बहुत उत्तेजना होती है।

(सत्तू अल्का की गांड को हथेली में भरकर हौले हौले मीज ही रहा था, गाड़ ही इतनी मस्त थी कि उसी से फुरसत नही मिल रही थी तो दूसरे अंगों पर कहाँ से ध्यान जाता, जब खाने के लिए ढेरों मिठाईयां एक साथ मिल जाएं तब समझ नही आता कि किसको पहले खाऊं और किसको बाद में, यहीं हाल सत्तू का था)

अल्का- शर्म आती है, उसका नाम बोलने से।

सत्तू- बोल न मेरी जान, उसका नाम मेरी आँखों में देखकर बोल न।

अल्का सत्तू की आंखों में देखकर लज़्ज़ा से भर गई, बड़े हौले से बोली- सच में भैया तुमने "बूर" नही देखी है कभी, सच्ची की "बूर", हम लड़कियों की "बूर"

(जब अल्का "बूर" शब्द बोल रही थी तो उसके लाल रसीले होंठ जब बोलते हुए "उ" के उच्चारण पर गोल हुए तभी सत्तू ने अल्का के होंठों को अपने होंठों में भरकर चूम लिया, दोनों फिर से लिपट गए, साँसें रह रहकर तेज चलने लगी, अल्का की चूचीयाँ, धीरे धीरे सख्त होती जा रही थी)

सत्तू- सच में दीदी, आज तक मैंने सच्ची की बूर नही देखी, किताबों में तो देखी है, फिल्मों में देखी है पर अपने घर की बूर, जिसका नशा ही अलग होता है वो नही देखी।

अल्का- घर की बूर का नशा अलग होता है।

सत्तू- बिल्कुल अलग, दुनियाँ में सबसे अलग।

अल्का ने मस्ती में हल्की सी अपनी जीभ निकाली तो सत्तू ने भी अपनी जीभ निकाली और दोनों एक दूसरे से हल्का हल्का जीभ लड़ाने लगे, की तभी अल्का ने झट से मुंह खोल दिया और सत्तू ने अपनी जीभ अल्का के मुँह में डाल दी, आँखें बंद हो गयी दोनों की, बदन थरथरा गया अल्का का, क्योंकि सत्तू का दायां हाँथ पीछे से हौले हौले सहलाते हुए अल्का की बूर तक पहुंच गया था, जैसे ही सत्तू ने अल्का की बूर को पीछे की तरफ से साड़ी के ऊपर से दबोचा, "आह भैया" की हल्की सी सिसकारी भरते हुए अल्का खुद को सत्तू की बाहों से छुड़ा कर पलंग की तरफ भागी, कुछ ही दूर पर बिछे पलंग पर अल्का पेट के बल अपना चेहरा हथेली में छुपकर लेट गयी, उसके उभरे हुए नितंब मानो अब खुल कर आमंत्रण दे रहे थे, उसकी सांसें जोश के मारे तेजी से चल रही थी, सत्तू का लंड अब तक तनकर लोहा हो चुका था, वो अल्का की ओर बढ़ा और साड़ी के ऊपर से ही जानबूझकर अपना खड़ा लंड अल्का की उभरी हुई गांड की दरार में खुलकर पेलते हुए "ओह दीदी" बोलकर उसपर चढ़ गया,

"ऊऊई मां" भैया, धीरे....

सत्तू ने अल्का को अपने लंड का अहसास कराते हुए साड़ी के ऊपर से ही कई बार सूखे धक्के मारे, अपने भाई का लंड महसूस कर अल्का की बूर पनियाने लगी, सत्तू ने अल्का के गालों पर आ चुके बालों की लटों को एक तरफ सरकाया और गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी, अल्का की सांसें तेज चलने लगी, सत्तू ने साड़ी के ऊपर से ही हौले हौले अल्का की गांड मारते हुए वासना में बेसुभ होकर कहा, - दीदी बूर चोदने दे न अब, बर्दाश्त नही हो रहा अब।

अल्का ने बड़ी मुश्किल से धीरे से कहा- पहले फल ले आओ मेरे भैया, तुम्हारी बहन तो बस तुम्हारी ही है अब, मुझसे भी अब रहा नही जा रहा, जाओ न फल लेकर आओ, जल्दी आना।

और शर्म से उसने फिर अपना चेहरा हथेली में छुपा लिया, सत्तू ने एक चुम्बन कस के अल्का के गालों पर लिया, और उठ गया उसके ऊपर से, लंड को ठीक किया और जल्दी से बाहर निकल गया, काफी देर तक अल्का पलंग पर लेटी रही, उसे अभी भी महसूस हो रहा था कि सत्तू का मोटा लंड उसकी गांड की दरार में रगड़ रहा है।
Mast hai bhai
 

TheBigBlackBull

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सत्तू अल्का को चूमने लगा, अल्का मस्ती में सिसकने लगी और अपने गाल, गर्दन घुमा घुमा कर सत्तू को चुम्बन के लिए परोसने लगी, एकाएक सत्तू ने अपने होंठ अल्का के होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें पूरी तरह नशे में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे, कितने रसीले होंठ थे अल्का के, दोनों को होश नही, काफी देर तक होंठों को चूमने के बाद जैसे ही सत्तू ने अल्का के मुंह मे जीभ डालना चाहा, अल्का ने उसे रोकते हुए कहा- भैया।


अब आगे-----

Update- 20

सत्तू- ह्म्म्म

अल्का- काश बहुत पहले ही तुम मेरे भैया बन गए होते, कहाँ थे अब तक, यहीं एक ही घर में इतने दिनों से साथ रह रहे हो, ये सब पहले क्यों नही किया....पता है कितनी प्यासी है तुम्हारी बहना।

सत्तू- ओह मेरी दीदी....क्या करूँ तुमने भी तो कभी इशारा नही किया, कभी जिक्र नही किया, कभी अपने मन का दर्द बयां ही नही किया कि ऐसा कुछ था तुम्हारे मन में, नही तो हम कब से प्यार कर रहे होते...खैर जाने दे ये बात जब जिस चीज़ का समय आता है वो हो ही जाती है, अब तो तू बन गयी न मेरी बहन....मेरी दीदी।

अल्का- हां, बन गयी मेरे भैया, मुझे अपनी ही ससुराल में मेरा भाई मिलेगा और वो मुझे ऐसा प्यार देगा जैसा कोई भाई अपनी बहन को नही देता ऐसा मैंने कभी सोचा नही था।

सत्तू- तो मैंने भी कहाँ सोचा था कि मेरी छोटी भौजी ही मेरी बहन है।

(ऐसे कहते हुए सत्तू ने अल्का की गांड की दरार को दोनों हाथों से साड़ी के ऊपर से ही फैलाकर हाँथ को अंदर डालकर सहलाया तो अलका "ऊई अम्मा" कहते हुए मचल सी गयी)

अल्का- एक बात पूछूं?

सत्तू- बोल न

अल्का- मेरे भाई ने सच में वो कभी नही देखी है।

सत्तू- क्या वो? अब खुलकर बोल न दीदी, कैसा शर्माना, देख अब तो कोई है भी नही, तेरे मुँह से सुनकर बहुत उत्तेजना होती है।

(सत्तू अल्का की गांड को हथेली में भरकर हौले हौले मीज ही रहा था, गाड़ ही इतनी मस्त थी कि उसी से फुरसत नही मिल रही थी तो दूसरे अंगों पर कहाँ से ध्यान जाता, जब खाने के लिए ढेरों मिठाईयां एक साथ मिल जाएं तब समझ नही आता कि किसको पहले खाऊं और किसको बाद में, यहीं हाल सत्तू का था)

अल्का- शर्म आती है, उसका नाम बोलने से।

सत्तू- बोल न मेरी जान, उसका नाम मेरी आँखों में देखकर बोल न।

अल्का सत्तू की आंखों में देखकर लज़्ज़ा से भर गई, बड़े हौले से बोली- सच में भैया तुमने "बूर" नही देखी है कभी, सच्ची की "बूर", हम लड़कियों की "बूर"

(जब अल्का "बूर" शब्द बोल रही थी तो उसके लाल रसीले होंठ जब बोलते हुए "उ" के उच्चारण पर गोल हुए तभी सत्तू ने अल्का के होंठों को अपने होंठों में भरकर चूम लिया, दोनों फिर से लिपट गए, साँसें रह रहकर तेज चलने लगी, अल्का की चूचीयाँ, धीरे धीरे सख्त होती जा रही थी)

सत्तू- सच में दीदी, आज तक मैंने सच्ची की बूर नही देखी, किताबों में तो देखी है, फिल्मों में देखी है पर अपने घर की बूर, जिसका नशा ही अलग होता है वो नही देखी।

अल्का- घर की बूर का नशा अलग होता है।

सत्तू- बिल्कुल अलग, दुनियाँ में सबसे अलग।

अल्का ने मस्ती में हल्की सी अपनी जीभ निकाली तो सत्तू ने भी अपनी जीभ निकाली और दोनों एक दूसरे से हल्का हल्का जीभ लड़ाने लगे, की तभी अल्का ने झट से मुंह खोल दिया और सत्तू ने अपनी जीभ अल्का के मुँह में डाल दी, आँखें बंद हो गयी दोनों की, बदन थरथरा गया अल्का का, क्योंकि सत्तू का दायां हाँथ पीछे से हौले हौले सहलाते हुए अल्का की बूर तक पहुंच गया था, जैसे ही सत्तू ने अल्का की बूर को पीछे की तरफ से साड़ी के ऊपर से दबोचा, "आह भैया" की हल्की सी सिसकारी भरते हुए अल्का खुद को सत्तू की बाहों से छुड़ा कर पलंग की तरफ भागी, कुछ ही दूर पर बिछे पलंग पर अल्का पेट के बल अपना चेहरा हथेली में छुपकर लेट गयी, उसके उभरे हुए नितंब मानो अब खुल कर आमंत्रण दे रहे थे, उसकी सांसें जोश के मारे तेजी से चल रही थी, सत्तू का लंड अब तक तनकर लोहा हो चुका था, वो अल्का की ओर बढ़ा और साड़ी के ऊपर से ही जानबूझकर अपना खड़ा लंड अल्का की उभरी हुई गांड की दरार में खुलकर पेलते हुए "ओह दीदी" बोलकर उसपर चढ़ गया,

"ऊऊई मां" भैया, धीरे....

सत्तू ने अल्का को अपने लंड का अहसास कराते हुए साड़ी के ऊपर से ही कई बार सूखे धक्के मारे, अपने भाई का लंड महसूस कर अल्का की बूर पनियाने लगी, सत्तू ने अल्का के गालों पर आ चुके बालों की लटों को एक तरफ सरकाया और गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी, अल्का की सांसें तेज चलने लगी, सत्तू ने साड़ी के ऊपर से ही हौले हौले अल्का की गांड मारते हुए वासना में बेसुभ होकर कहा, - दीदी बूर चोदने दे न अब, बर्दाश्त नही हो रहा अब।

अल्का ने बड़ी मुश्किल से धीरे से कहा- पहले फल ले आओ मेरे भैया, तुम्हारी बहन तो बस तुम्हारी ही है अब, मुझसे भी अब रहा नही जा रहा, जाओ न फल लेकर आओ, जल्दी आना।

और शर्म से उसने फिर अपना चेहरा हथेली में छुपा लिया, सत्तू ने एक चुम्बन कस के अल्का के गालों पर लिया, और उठ गया उसके ऊपर से, लंड को ठीक किया और जल्दी से बाहर निकल गया, काफी देर तक अल्का पलंग पर लेटी रही, उसे अभी भी महसूस हो रहा था कि सत्तू का मोटा लंड उसकी गांड की दरार में रगड़ रहा है।
Super update Bhai. Batkaye kaunsa phal hothi he ?
 
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