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Adultery भटकइयाँ के फल

Sanju@

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सौम्या धीरे से सिसकते हुए बोली- करते वक्त बताऊंगी पापा जी..... जब हम दोनों करेंगे तब बताऊंगी......जब आप अपनी बेटी की दोनों जाँघों के बीच की उस चीज़ को प्यार से खा रहे होगे न तब मैं उसका नाम बताऊंगी अपने पापा को।

सत्तू फिर से सनसना गया, खुद सौम्या भी ऐसा बोलते हुए बहुत उत्तेजित होती जा रही थी, सत्तू बार बार तेजी से अपने लंड से सौम्या की पनियायी बूर पर साड़ी के ऊपर से ही धक्का मार रहा था जिससे सौम्या मदहोश हो जा रही थी, उससे खड़ा नही रहा जा रहा था मन तो कर रहा था कि बिस्तर पर लेट जाऊं, पर वो अभी चाह कर भी बहुत आगे नही बढ़ना चाहती थी।

तभी न जाने कैसे सौम्या की नज़र खिड़की से बाहर गयी और उसने अम्मा को घर की तरह आते देखा - अम्मा इधर ही आ रही हैं अब।


सत्तू ने अपनी भाभी के गालों पर प्यार से चूमते हुए उन्हें छोड़ दिया और भारी सांसों से जल्दी से सौम्या के कमरे से निकल गया, सौम्या ने भी जल्दी से खुद को संभाला और वहीं बेड पर लेट गयी, सत्तू अपने कमरे में आकर दुबारा बेड पर लेट गया।

अब आगे.......



Update- 14

सत्तू आंखें मूंदे कुछ देर लेटा रहा, लेटे लेटे उसकी आंख लग गयी, उसकी अम्मा अंजली घर में आ चुकी थी, सौम्या भी तब तक संभल चुकी थी।

अंजली- सौम्या।

सौम्या- हाँ अम्मा

अंजली- ये सत्येन्द्र कब आया, खाना खाया इसने?

सौम्या- हाँ अम्मा खा लिया है, मैंने खिला दिया था, गए थे किसी दोस्त के यहां, अभी तो आये हैं कुछ देर पहले।

अंजली- अच्छा आ चल खाना निकाल और तू भी खा ले, ये अल्का और किरन नही आई अभी तक खेत से।

सौम्या- नही अम्मा, अभी तक तो नही आई।

अंजली- ठीक है उनको भी आने दे, साथ में ही खाएंगे फिर।


अंजली अपनी बहू सौम्या के कमरे में बेड पर बैठ गयी तो सौम्या ने उन्हें लिटाकर उनके पैर दबाने शुरू कर दिए।

अंजली- अरे सौम्या रहने दे पैर मत दबा, थकी थोड़ी हूँ मैं।

सौम्या- थकी क्यों नही हो, सुबह से लगी हुई हो और कहती हो थकी नही हूँ, लेटे रहो मुझे पैर दबाने दो।

सौम्या नही मानी और अंजली के पैर दबाने लगी, तभी बाहर से अल्का और किरन की हंसी ठिठोली की आवाज़ें आने लगी।

अंजली- लो आ गयी तूफान, नाम लिया हाज़िर।

सौम्या भी हंसने लगी, अल्का और किरन ने हरे चारे के बड़े बड़े एक एक बोझ अपने सर पर लाद रखे थे, अल्का अपने सर से चारा मशीन के सामने हरे चारे के बोझ को धम्म से गिराते हुए बोली- लो हो गयी दो दिन की फुरसत।

किरन ने भी अपने सिर से चारे के बोझ नीचे पटकते हुए बोला- कितना भारी है भौजी ये, मेरी तो गर्दन में दर्द हो गया।

अल्का- बोल तो रही थी कि ये छोटा वाला बोझ ले ले ये हल्का है तब तो बड़ी पहलवानी दिखा रही थी, नही भौजी यही दो, मैं लेके चली जाऊंगी, अब आ गयी न मोच, चल नाजुक कली अभी तेरे भैया से मालिश करवा देती हूं।

किरन- जीवन में सारे काम भैया से ही करवाएं हैं तुमने लगता है, तभी जब देखो भैया ही याद आते हैं।

अल्का- एक बार मसलवा के तो देख मेरी नाजुक कली, खुद पता लग जायेगा भैया का मजा क्या होता है, सारा दर्द न गायब हो गया तो कहना।

किरन ने अल्का के गुदाज जांड पर एक जोर से चिकोटी काटी तो वो घर की तरफ देखते हुए उछल पड़ी।

अल्का- अरे पगली क्या कर रही है, अम्मा देख लेंगी तो क्या सोचेंगी, मैं तो मजाक कर रही थी, तू तो शुरू ही हो गयी....सबर रख मेरी ननद रानी मिलेगा... तुझे भी मिलेगा खाने को....तड़प मत।

और इतना कहकर अल्का जोर से हंसकर घर की ओर भागी किरन उसके पीछे हो ली- बताती हूँ रुक अभी।

जैसे ही दोनों गेट तक पहुंची सौम्या बाहर आ गयी- अरे आ गयी दोनों, कब से इंतजार कर रही हैं अम्मा और तुम लोगों का, भूख लगी हैं उन्हें......चल जल्दी हाँथ मुँह धो कर आ और सबका खाना लगा।

अल्का- हाँ दीदी लगाती हूँ...... अरे ये हैं न ननदिया ये बहुत प्यासी है, जब देखो तब मुझे ही परेशान करती रहती है, अब बताओ मेरे पास क्या है जो मैं इन्हें दे पाऊंगी.....क्यों दीदी।

सौम्या ने एक नज़र अपने कमरे में लेटी अपनी सासू माँ पे डाली और अल्का की तरफ देखकर उसे झूठा गुस्सा दिखाते हुए की "बहुत बदमाशी हो रही है तेरी" और हल्का सा हंस दी।

किरन जैसे ही अल्का पर लपकी, सौम्या- अरे बाबा बस.....अब खाना खा ले पहले तब बदला ले लेना।

फिर अल्का और किरन ने मस्ती करते हुए खाना निकाला और सभी औरतों ने खाना खाया, सत्तू सोता रहा, अल्का, सौम्या और किरन तीनो का ध्यान अपने अपने मन में सत्तू के ऊपर ही लगा हुआ था।

अल्का ने खाना खाते हुए अपनी सासू मां से पूछा- अम्मा.....मेरे देवर जी ने खाना खाया या ऐसे ही सो रहे हैं?

सौम्या- खा लिया है उसने तू चिंता न कर खाना खा।

अल्का- क्यों न चिंता करूँ एक ही तो देवर है मेरा।

(किरन मन में सोचने लगी कि मेरा भी तो एक ही देवर है और वो है मेरा ही सगा भाई, और ये सोचकर हल्का से मुस्कुरा कर खाना खाने लगी)

ऐसे ही बातों बातों में दोपहर बीत गया, अलका, सौम्या, किरन खाना खाकर थोड़ा आराम करने के लिए सौम्या के कमरे में ही लेट गयी, सत्तू की माँ भी काफी देर उन लोगों के साथ शादी की बातें करती रही फिर उठकर बाग की तरह चली गयी।

शाम को इंद्रजीत (सत्तू के पिता) भी आ गए, दोपहर को आराम करके शाम तक सब उठ चुके थे, सत्येन्द्र को अपने कर्म की चिंता सताए जा रही थी, वो सोच में डूबा था कि इसकी शुरुआत कैसे और किससे करे, उसकी सगी बहन भी अब तो उसकी भाभी बन चुकी थी, कर्म के हिसाब से वो भी अब इस दायरे में आने लगी थी। एक दो दिन ऐसे ही बीते और अब सत्तू भी घर के कुछ बाहर के कामों को संभालने लगा, पर शादी के दिन नजदीक आ रहे थे, अल्का तो उससे मिलने के लिए पागल हुई ही जा रही थी उधर सौम्या भी सत्तू से मिलन की आस लिए रोज रात को अपने बच्चों के साथ मन को समझकर सो जाती थी, हालांकि दिन में जब भी मौका मिलता सत्तू सौम्या को दबोचकर चूमने और सहलाने से नही चूकता, सौम्या अत्यधिक उत्तेजित होकर रह जाती थी, पर ज्यादा वक्त न मिल पाने की वजह से दोनों ही तड़प कर रह जाते, वही हाल सत्तू का अल्का के साथ भी था, उधर किरन भी मन में भाई से व्यभिचार की कामना लिए सही वक्त का इंतज़ार कर रही थी।

एक दिन दोपहर को इंद्रजीत ने अकेले में सत्तू से पूछ ही लिया- बेटा वो तुम्हारा कर्म तुम्हें मिल गया है न।

सत्तू एक बार को सकपका गया फिर बोला- हाँ पिताजी मिल गया है, सुखराम काका ने दे दिया था।

इंद्रजीत- ठीक है बेटा उसे समय रहते पूरा जरूर कर लेना।

(अब इंद्रजीत को क्या पता कि उसमे क्या लिखा हुआ है)

सत्तू ने हाँ में सर हिलाया और उठकर चला गया। इंद्रजीत समझ गया कि कर्म कुछ कठिन ही जान पड़ता है, पर वो पूछ सकता नही था, ये नियम के खिलाफ था।

सत्तू खेतों की तरफ चला गया और एक जगह बैठ कर ठीक से सोचने लगा, इसकी शुरुआत वो करे किससे? फिर उठा और घर की तरफ चल दिया, अभी घर में और मेहमान आना शुरू नही हुए थे, यह काम उसे समय रहते कर लेना था नही तो घर मेहमानों से भर जाएगा तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी।

आज रात को सब आंगन में ही बैठकर खाना खा रहे थे, किरन, सौम्या और सत्तू की माँ एक तरफ बैठे थे अल्का सबको खाना परोस रही थी, सत्तू अपने बाबू के बगल में बैठा था, जैसे ही अल्का ने सत्तू की थाली में एक रोटी रखनी चाही सत्तू ने जानबूझकर दो रोटी खुद ही उठाते हुए बोला एक नही दो (दो शब्द को उसने जोर देकर बोला, अल्का सत्तू का इशारा समझ गयी और हल्का सा मुस्कुराहट उसके होंठों पर आ गयी, क्योंकि बगल में ही ससुर जी भी बैठे थे इसलिए वह थोड़ी सतर्क थी)

अल्का- क्या बात है देवर जी आज लगता है सुबह से भूखे हो, रोज मुझे जबरदस्ती खिलाना पड़ता था और आज खुद ही।

सत्तू- हां छोटकी भौजी आज तो भूख बर्दाश्त नही हो रही, कुछ ज्यादा ही लगी है।

अल्का- अच्छा जी तो ये लो एक रोटी और खा लो मेरी तरफ से, आज सारी भूख मिटा दूंगी तुम्हारी।

(अल्का ने जबरदस्ती एक रोटी और ढेर सारा चावल और दाल और डाल दिया सत्तू की थाली में, सब हंसने लगे)

सत्तू- अरे भौजी इतना भी नही खा पाऊंगा मैं, कितना सारा डाल दिया तुमने मेरी थाली में।

किरन- कोई बात नही भैया, छोड़ देना यही खाएगी, अपना जुगाड़ देख रही है भौजी।

अल्का- हां देवर जी, मैं खा लूंगी, जो खाना हो खा लो नही तो छोड़ देना, जुगाड़ भी देखना पड़ता है कभी कभी।

सत्तू- छोड़ना क्या? लो अभी खाओ जो ढेर सारा डाल दिया है तुमने खाना।

अल्का- मेरे देवर जी तुम खा लो मैं फिर खा लूंगी।

अल्का तब तक सबकी थाली में जो कुछ कम था परोस चुकी थी।

सबने खाना खाया, इंद्रजीत बाहर आकर अपनी खाट पर लेट गया, किरन और सत्तू की माँ थोड़ी दूर पर अपनी अपनी खाट पर लेटकर बातें कर रही थी, इंद्रजीत दिनभर की भाग दौड़ के कारण काफी थका हुआ था इसलिए बिस्तर पर पड़ते ही कुछ देर में सो गया, सौम्या रोज की तरह अपने कमरे में बच्चों के साथ लेटी थी, अल्का भी आपने कमरे में लेटने जा रही थी कि तभी वह सौम्या के कमरे में गयी और बोली- दीदी आज मौसम थोड़ा बारिश वाला हो रहा है, मच्छर भी लग रहे है, मच्छरदानी लगा के सोना नही तो बच्चों को रात भर परेशान करेंगे ये मच्छर।

सौम्या- हां अल्का अभी लगा लूंगी, तू भी लगा के सोना, और वो लोग देखो ऐसे ही सो रहे है सब, मुझसे तो बिल्कुल नही सोया जाता अगर एक भी मच्छर बदन पर बैठ जाये, ये लोग न जाने कैसे सो जाते हैं।

अल्का- सही कहा दीदी यही हाल मेरा है, एक भी मच्छर ने काट लिया न तो नींद तो फिर आने की नही मुझे, सच में दीदी देखो कैसे आराम से लेटे हैं सब।

अल्का और सौम्या कुछ देर बातें करती रही फिर अल्का अपने कमरे में आ गयी, सौम्या ने उसको बाहर का दरवाजा बंद करने के लिए कहा तो अल्का दरवाजे तक तो गयी पर बाहर का दरवाजा बंद नही किया बस हल्का सा सटा कर अपने कमरे में आ गयी, बिस्तर पर लेटकर वो बस रात के 2 बजने का इंतजार करने लगी, उधर सौम्या भी सत्तू के बारे में सोचते सोचते न जाने कब सो गई।

बाहर किरन और उसकी माँ कुछ देर बातें करती रही।

किरन- अम्मा

अंजली- हां..

किरन- तीन साड़ी तो मैं अपने ससुराल ही भूल आयी, बक्से में रखी है, सोचा जाते वक्त सूटकेस में रख लूंगी पर देखो जल्दबाजी में वहीं भूल आयी, उसमें से दो तो मैंने दोनों भौजी के लिए खरीदी थी।

अंजली- तो जा के ले आना, इसमें इतना दुखी क्यों हो रही है।

किरन- हां अम्मा मैं भी सोच रही थी किसी दिन भैया के साथ जाकर ले आऊंगी वो साड़ियाँ।

अंजली- हाँ चली जाना उसके साथ और इस बार सब ले आना जो भी भूली हो....ठीक है बाद में फिर वक्त नही मिलेगा।

किरन- हां अम्मा ठीक है एक दो दिन में जाऊंगी।

किरन का मन खुशी से झूम उठा, उसका ससुराल बहुत एकांत था, वहां कोई दखल अंदाजी करने वाला नही था, सगे भाई को देवर के रूप में पाकर उससे मिलने वाले सुख की कल्पना मात्र से ही उसका बदन सनसना गया।
Super update
Lagta Kiran aur sattu ka milan jaldi hone Wala h
 
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Update- 15

किरन ने तकिया अपने सिर से हटा कर दोनों जाँघों के बीच में रखा और मस्ती में करवट बदलने लगी, कभी इस तरफ करवट लेकर लेटती कभी उस तरफ करवट लेकर लेटती, कभी मन ही मन मुस्कुराती कभी जोश में तकिए को दोनों जाँघों से भींचती, एक बार पलटकर उसने अपनी अम्मा को देखा तो हल्का झेंप सी गयी, रात के अंधेरे में ज्यादा तो नही दिख रहा था पर इतना तो आभास हो ही गया था कि उसकी अम्मा भी अभी जग ही रही थी और उसे ही देख रही थी।

अंजली- क्या हुआ नींद नही आ रही क्या तुझे?

किरन- मच्छर लग रहे हैं न, नींद तो बहुत कस के लगी है पर ये मच्छर सोने दे तब तो।

अंजली- तो जा के मच्छरदानी ले आ.....लगा ले, वहीं बरामदे में मेरी मच्छरदानी रखी है...जहाँ सत्येन्द्र सो रहा है.....जा ले आ।

किरन- ठीक कहती हो अम्मा ले आती हूँ नही तो सो नही पाऊंगी....और ये भाई भी न....ये नही की बाहर सो जाऊं खुले में...वहां बरामदे में लेटा हैं अकेला।

किरन खाट से उठकर जाने लगी तो उसकी अम्मा फिर बोली- लेटने दे जिसका जहां मन करे लेटे।

किरन- अम्मा तुम्हारे लिए भी ले आऊं मच्छरदानी।

अंजली- नही रहने दे मुझे नही लगाना, मुझे तो घुटन होती है उसमें, मेरी तो ऐसे ही आदत है सोने की।

किरन- हां तुम तो लगाती ही नही हो।

किरन उठकर बरामदे में गयी, और उसके आने की आहट जैसे ही सत्तू को हुई वो चुप करके सोने का नाटक करने लगा, वैसे वो छोड़ना तो अपनी बहन को भी नही चाहता था पर आज उसका पूरा मन अल्का पर था, पर फिर भी उसका मन मचल ही गया, जब किरन ने बरामदे में आकर धीरे से बोला- देवर जी......ओ मेरे देवर जी....सो गए क्या?

सत्तू हल्का सा कसमसाया और ऐसे अभिनय किया जैसे किरन की आवाज सुनकर ही जागा हो, बरामदे में अंधेरा थोड़ा ज्यादा था, सत्तू धीरे से बोला- भौजी......मेरी भौजी आयी है क्या चोरी चोरी मुझसे मिलने।

किरन- हां आयी है अपने देवर से मिलने पर धीरे बोलो देवर जी कोई सुन लेगा।

किरन धीरे से सत्तू की खाट पर बगल में बैठती हुई बोली।

सत्तू- सुनने दो, जब एक भौजी दुनियां की नज़र बचा कर रात को अकेले में अपने देवर की खाट पर आई है उससे मिलने... तो मन कहाँ मानेगा अब।

सत्तू ने किरन का हाँथ धीरे से अपने हाँथ में ले लिया, सत्तू खाट पर दाहिने ओर करवट लेकर लेटा था, जब किरन खाट पर बैठने लगी तो वो थोड़ा पीछे सरक गया और उसको बैठने की जगह दी, किरन सत्तू से ऐसे चिपक कर बैठी की उसकी गुदाज गांड लगभग सत्तू के लंड और जाँघों के आसपास बिल्कुल चिपक गयी, अपनी सगी बहन का इसतरह उसपर लदकर बैठना सत्तू का मन बहकाने के लिए काफी था, सत्तू का मन अब अल्का से थोड़ा हटकर किरन की ओर आने लगा।

किरन- अच्छा तो चिल्लाओ फिर, ताकि ये जालिम जमाना जान जाए और एक भौजी को उसके नए नवेले देवर से अलग कर दे, तरसते रहना फिर।

सत्तू ने किरन का हाँथ अपने हाँथ में ले लिया और हल्का सा दबाते हुए बोला- तरसाओगी तो तरसेंगे।

किरन- तरसाना होता तो ऐसे आती रात को।

(किरन ने फुसफुसाकर धीरे से बोला)

सत्तू- तो एक हो जाओ अपने देवर से, इतनी दूर क्यों हो मेरी भौजी।

किरन- अम्मा अभी जग रही हैं, नही तो हो जाती कब का।

सत्तू- क्या?

किरन- हाँ, सच

सत्तू- तो फिर मेरी भौजी, तुम तो उनके बगल में ही लेटी थी न।

किरन- हम्म

सत्तू- तो आयी कैसे?

किरन धीरे से हंसते हुए- मेरे देवर का प्यार खींच लाया।

सत्तू- फिर भी....अम्मा अगर जग रही होंगी तो तुम नही आ सकती, इतना तो जानता ही हूँ।

किरन- दो चीज़ें हैं एक तो अपने देवर के बिना अब रहा नही जाता इसलिए मिलने आ गयी और दूसरा...मच्छरदानी

सत्तू- मच्छरदानी

किरन- हां.... मच्छरदानी....बाहर मच्छर काट रहे हैं बहुत....अम्मा बोली जा बरामदे में रखी है ले आ.....बस मौका मिल गया

सत्तू- मच्छर काट रहे हैं मेरी भौजी को।

किरन- अब तुम नही काटोगे तो.....कोई और ही कटेगा न।

(किरन ने ये बात थोड़ा धीरे से कही)

सत्तू- मैं तो कल सुबह टयूबवेल वाले दालान में ही काटने को तैयार था मेरी भौजी, सबकुछ काट लेता तेरा पर तुम्ही ने रोक दिया कि अभी नही, मेरी ससुराल में चलके जो करना है कर लेना।

सत्तू ने किरन को अपने ऊपर खींचते हुए बोला, किरन का अब शर्म से बुरा हाल होने लगा, पर शर्माते हुए भी किरन अपने भाई के मर्दाना जिस्म से लिपटने से खुद को रोक न पाई और
धीरे से सत्तू के बगल में लेटने लगी, हल्का सा सिसकते हुए बोली- अम्मा को शक हो जाएगा देवर जी...अगर देर हो गयी जाने में तो...थोड़ा सब्र करो......पता है सब्र का फल मीठा होता है।

सत्तू ने खींचकर किरन को बाहों में भर ही लिया, मना करते करते किरन भी कस के सत्तू की बाहों में समा ही गयी, एक तरफ वो मना भी कर रही थी दूसरी तरफ सत्तू के ऊपर लेटती भी जा रही थी, दोनों की सांसें तेज होने लगी, किरन डर भी रही थी कि कहीं अम्मा को शक न हो जाये, पर सत्तू समझ नही रहा था, अब वो धीरे से किरन को नीचे करते हुए उसके ऊपर चढ़ने लगा, हल्का सा सिसकते हुए किरन सत्तू के नीचे आने लगी और कुछ ही पल में सत्तू अपनी सगी बहन के ऊपर चढ़ चुका था, किरन की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, उसने खुद ही अपने पैर उठाकर सत्तू की कमर में लपेट दिए, सत्तू धीरे धीरे अपने होंठ किरन के गाल पर रगड़ने लगा तो किरन धीरे से उसके बालों को सहलाने लगी, फिर बड़े प्यार से हल्की सी सिसकी लेते हुए बोली- अपनी भौजी के ऊपर कोई ऐसे चढ़ता है....गंदे.....भौजी मां समान होती है पता है न....ईईईईईशशशशशश......ऊऊऊईई.....माँ....... धीरे धीरे.....काट मत

सत्तू ने कस के किरन के गालों को होंठों में भरकर भरकर चूमना और काटना शुरू कर दिया

सत्तू- जो भी हो भौजी पर मजा तो इसी में आता है न......भौजी के ऊपर देवर न चढ़े तो ये रिश्ता पूरा कैसे होगा, और जिसकी भौजी इतनी मस्त हो वो भला कैसे रोक सकता है खुद को.....और क्या भौजी नही चाहती देवर को अपने ऊपर चढ़वाना।

किरन ये सुनकर शर्मा गयी, एक तो सत्तू लगातार उसके गालों और गर्दन के पास चूमे और काटे जा रहा था, ऊपर ये ऐसी कामुक बातें उत्तेजना को चरम पर पहुचाने में कोई कसर नही छोड़ रही थी, किरन शर्म से चुप हो गयी।

सत्तू- बोल न भौजी

किरन धीरे से शर्मा कर बोली- चाहती है चढ़वाना अपने ऊपर।

सत्तू- हाय... मेरी भौजी।

सत्तू ने अपने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर किरन की फैली हुई गांड थाम ली और पूरी गुदाज गांड को अच्छे से हाँथ फेर फेर के दबा दबा के सहलाने लगा, किरन ने अपने दोनों पैर अपने भाई की कमर पर लपेट रखे थे जिससे उसकी गांड नीचे से अच्छे से उठ चुकी थी जिसका बड़े अच्छे से मुआयना किया जा सकता था। जैसे ही सत्तू ने अपनी बहन की गांड को दोनों हाँथ में भर भरकर अच्छे से दबा दबा कर सहलाना शुरू किया, किरन अपने सगे भाई के हाँथ अपनी गांड पर महसूस कर शर्म और उत्तेजना से सिरह उठी, दोनों बदहवास हो गए, आज पहली बार दोनों भाई बहन के बीच कुछ ऐसा हो रहा था जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नही की होगी, और रिश्ता था देवर भाभी का, पर मूल रूप से वो थे तो भाई बहन ही, इसलिए मूल रिश्ते का आनंद दोनों को अत्यंत उत्तेजित कर रहा था, और उसमे तड़का लगा रहा था देवर भाभी का रिश्ता।

किरन सिसकते हुए धीरे से बोली- बस....देवर जी.....आआआआह.......शर्म आ रही है......कितना सहलाओगे उसको......अभी बस करो नही तो तुम्हारी ये भौजी बहक जाएगी.......और अभी सबकुछ करने का सही वक्त नही है.....मेरे राजा....

सत्तू ने किरन की गांड को दोनों हांथों से सहलाते हुए उसके कान के पास मुँह ले जाकर बोला- कितने चौड़े और नरम नरम हैं ये मेरी भौजी, आज पहली बार इन्हें सहलाकर मानो मैं जन्नत में पहुंच गया।

किरन का शर्म से बुरा हाल था, एक तो सत्तू उसके ऊपर पूरी तरह चढ़ा हुआ था, ऊपर से लगातार चूमे जा रहा था और करीब 2 3 मिनट तक अच्छे से उसकी गांड दबा दबा कर सहलाते हुए जब ये बात उसने कही तो किरन शर्म से दोहरी हो गयी, अपने भाई के मुंह से इतनी कामुक बात सुनकर उसकी उत्तेजना अब बेकाबू होने लगी थी, उसकी बूर अब रिसना चालू हो गयी, जैसे ही उसका ध्यान अपनी बूर पर गया, सलवार के ऊपर से ही अपने सगे भाई के लोहे समान लंड के अहसाह मात्र से उसकी आआह निकल गयी, जैसे ही किरन ने हल्के से आआह भरी, सत्तू ने किरन की बूर पर अपने लंड को ठीक से भिड़ाकर और अच्छे से दबा दिया, किरन गनगना कर अपने भाई से और कस के लिपट गयी, उसकी बूर उत्तेजना में अब इतनी उभर गयी थी कि पैंटी और सलवार के अंदर होते हुए भी सत्तू को उसकी बूर की फांकें साफ महसूस हो रही थी और उन फाकों के बीच में सत्तू अपना मूसल जैसा लंड भिड़ाकर हौले हौले रगड़ रहा था, और दोनों हाँथों से उसकी पूरी गांड को लगातार सहला भी रहा था। उत्तेजना में मदहोश हो गए दोनों।

कुछ देर में किरन ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और धीरे से सत्तू के चेहरे को अपनी हथेली में लेकर बोली- देवर जी बस....

सत्तू- नही भौजी....थोड़ा और... रगड़ने दो न......ऊपर ऊपर

किरन- रगड़ लेना जी भरके.....पर मेरी बात सुन पगलू..... अम्मा को शक हो जायेगा.......समझा कर न.....ऐसे पागल बनना ठीक नही...

सत्तू- मुझे मेरे सब्र का फल खाना है

किरन- खा लेना मेरे देवर जी ये फल तो तुम्हारा ही है, पर यहां नही, और एकांत में.....जहां कोई दखल न दे सके, यहां तो सबको पता चल जाएगा न।

सत्तू- क्या पता चल जाएगा मेरी भौजी?

सत्तू ने अपना लंड किरन की बूर पर कपड़ों के ऊपर से ही धसाते हुए बोला तो किरण अपने नितम्बों को चिहुंकते हुए हल्का सा उचकाकर बोली- यही की एक देवर भाभी का वो वाला फल खाता है।

और कहकर शर्माते हुए सत्तू से लिपट गयी।

जैसे ही किरन ने ये लाइन बोली सत्तू ने अपने होंठ उसके दहकते होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें वासना में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठो को चूसने लगे, एक बार फिर हल्की सिसकी गूंज उठी।

आज पहली बार किरन अपने सगे भाई के नीचे लेटी थी, उसने कभी सोचा भी नही था कि एक दिन वो अपने सगे भाई के साथ ये सब करेगी, इतना भी मजा जीवन में आ सकता है इसका उसे पहले कभी अंदाजा भी नही था, उसका सगा भाई आज उसका देवर बन चुका था, और आज रात के अंधेरे में दोनों कैसे गुथे हुए थे।

अभी दोनों ने एक दूसरे को चूमना शुरू ही किया था कि बाहर से अंजली की आवाज आई- किरन..... मिली नही क्या मच्छरदानी, अंधेरे में मिल नही रही तो टॉर्च ले जा।

इतना सुनते ही दोनों हड़बड़ा के उठ गए, सत्तू खाट पर लेट गया और किरन अपने कपड़े सही करते हुए बगल ही बक्से पर रखी मच्छरदानी उठाते हुए बोली- हां अम्मा मिल गयी, आती हूँ, अपनी साँसों को काबू करने में उसे कुछ वक्त लग गया।

किरन- देखा मेरे देवर जी...बोला था न यहां ठीक नही।

सत्तू- रहा नही जाता भौजी....क्या करूँ, सब्र का फल खाना है मुझे।

किरन हल्का सा हंसते हुए- पर यहां ये लोग खाने नही देंगे समझे देवर जी.....इसलिए वहीं चलो जहां कहती हूँ।

सत्तू- ठीक है मेरी भौजी.....ले चलूंगा तुझे वहीं....जहां तुम चाहती हो।

किरन ने झट से सत्तू को होंठों को चूमा और जल्दी से बरामदे से बाहर आ गयी, अपनी खाट पर उसने मच्छरदानी लगाई और लेट गयी, साँसे उसकी अब भी तेज ही चल रही थी, उसने अपनी अम्मा को धीरे से आवाज लगाई, उसकी अम्मा ने बड़ी मुश्किल से 'उऊँ' बोला तो वो समझ गयी कि अम्मा अब नींद में हैं, वो भी सत्तू के साथ कि गयी रासलीला के आनंद में डूबी हुई धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गयी।
Fantastic update
Sattu ke to maje hone wale h
 
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Update- 16

किरन के जाने के बाद सत्तू खाट पर करवटें बदलते लेटा रहा, अल्का भौजी के पास जाने में अभी वक्त था, धीरे से उसने अभी भी खड़े हो रखे अपने लंड को मसला और जल्दी जल्दी वक्त बीतने का इंतजार करने लगा, जैसे ही उसे लगभग आधी रात का अहसास हुआ, वो धीरे से खाट से उठा, बरामदे से बाहर आकर अंधेरे में हल्का हल्का दिख रही अपनी माँ बाबू और किरन को बेसुध सोते हुए देखकर घर के अंदर दरवाजे को धीरे से खोलकर चला गया। पहले वो अल्का भौजी के कमरे में गया तो वो वहाँ थी नही, समझ गया कि भौजी मेरा इंतज़ार कर रही है, झट से दबे पांव ऊपर छत पर गया, अंधेरा तो था ही, पर आंखें अभ्यस्त हो चुकी थी, इधर उधर देखा अल्का उसे दिखी नही...धीरे से आवाज लगाई, पर कोई उत्तर नही, थोड़ा बेचैन होकर छत पर इधर उधर वो अलका को ढूंढने लगा।

तभी सीढ़ियों पर से अल्का उसे आती हुई दिखाई दी, अल्का जल्दी से भाग कर आई और सत्तू से लिपट गयी।

सत्तू अल्का को बाहों में कसते हुए- ओह भौजी...कहाँ थी तुम?

अल्का ने उत्तर देने की बजाए सत्तू से धीरे से बोला- अब भी भौजी...हम्म.....बहन हूँ न मैं।

सत्तू ने अल्का के गालों को चूमते हुए उसके बदन को कस के दबाते हुए अपने से और सटाते हुए बोला- ओह मेरी बहन

इतनी कस के अल्का को बाहों में भीचने से उसकी आआह निकल गयी और वो सिसकते हुए बोली- मेरे भैया....मेरा भाई

सत्तू- कहाँ थी अब तक?...मुझे लगा मुझे ही देर हो गयी, तेरे कमरे में गया तो तू वहां नही थी।

अल्का- वो मैं....

सत्तू- वो मैं क्या. ..हम्म

अल्का- शर्म आती है...कैसे बताऊं?

सत्तू- भाई से कैसी शर्म?

अल्का- भाई से ही तो शर्म आती है।

अल्का के ऐसा बोलने पर सत्तू ने उसकी उभरी चौड़ी गांड को हांथों में लेकर हल्का सा दबा दिया और बोला- तो मत बनाओ फिर भाई मुझे।

गांड को सहलाये जाने से अल्का हल्का सा सनसना गयी, फिर धीरे से बोली- न बाबा न, अपने भाई के बिना तो मैं जी नही सकती....पर शर्म तो आती है न भैया।

सत्तू ने अल्का का गाल चूम लिया और बोला- तो शर्माते शर्माते ही बता दे न मेरी बहना....इतनी देर कहाँ लग गयी?

अल्का धीरे से बोली- मैं....पेशाब करने गयी थी भैया।

अल्का की आवाज में शर्म साफ महसूस हो रही थी

सत्तू- पेशाब

अल्का- ह्म्म्म

सत्तू- सिटी जैसी सुर्रर्रर की आवाज आई थी

अल्का- धत्त.....बेशर्म भैया.....बहुत बेशर्म भैया हो तुम.....बहन से ऐसे पूछते हैं।

सत्तू- बता न बहना।

अल्का- हाँ आयी थी आवाज हल्की हल्की....बेशर्म

सत्तू- हाय.... पर हल्की हल्की क्यों?

अल्का- अब बस भी करो न भैया.....शर्म आ रही है मुझे

सत्तू- बता न मेरी बहना...... नही तो फिर मैं तेरे ऊपर चढ़ूंगा नही।

इतना सुनते ही अल्का और शर्मा गयी।

अल्का- मत चढ़ना मेरे ऊपर.....मुझे नही चढ़वाना।

सत्तू- सच में.......नही चढ़वाओगी मुझे अपने ऊपर।

अल्का ने शर्माते हुए एक मुक्का सत्तू की पीठ में मारा और धीरे से बोली- क्योंकि मैं धीरे धीरे पेशाब कर रही थी न, इसलिए हल्की हल्की आवाज आ रही थी....समझे बुद्धू

सत्तू- पेशाब

अलका- हम्म....पेशाब

सत्तू- पेशाब में मजा थोड़ा कम आया.... वो बोल न बहना.. जिसमे पूरा मजा आता है।

अल्का- सच में मेरे भैया न.. बहुत बेशर्म हैं।

ऐसा कहके अलका अपने होंठ सत्तू के कान के नजदीक ले गयी और बड़े ही मदहोशी से बोली- मैं धीरे धीरे मूत रही थी न भैया... इसलिए हल्की हल्की सीटी जैसी आवाज आ रही थी।

दोनों सिसकते हुए एक दूसरे को सहलाने लगे, सत्तू बोला- मेरी बहना मूतने गयी थी।

अल्का- हाँ भैया.....मैं गयी थी...मूतने

सत्तू- बहना....मुझे तेरे ऊपर चढ़ना है।

अल्का- तो चढ़ो न मेरे भैया किसने रोका है।

इतना कहकर अल्का सत्तू से अलग हुई और छत की बाउंडरी की छोटी दीवार पर सूख रहे गद्दे को उतारकर थोड़ा कोने मे ले जाकर बिछाया और उसपर झट से लेटते हुए बाहें फैलाकर सत्तू को अपने ऊपर चढ़ने के लिए आमंत्रित करते हुए बोली- आओ न भैया, अब चढ़ भी जाओ अपनी बहन पर.....रात को कोई नही आएगा यहां पर।

सत्तू तो बस टूट पड़ा अल्का के ऊपर, जैसे ही अल्का के ऊपर चढ़ा, अल्का ने उसे बाहों में कस लिया, सत्तू ने अपने दोनों हाँथ उसकी पीठ के नीचे लेजाते हुए कस के उसको बाहों में दबोच लिया, कितना गुदाज़ बदन था अल्का का, दोनों मखमली विशाल चूचीयाँ सत्तू के सीने से दब गई, अलका ने अपने पैर मोड़कर सत्तू की कमर पर लपेट दिए जिससे उसकी साड़ी ऊपर को उठ गई और जांघों तक उसके पैर निवस्त्र हो गए।

जैसे ही सत्तू को ये अहसास हुआ कि अल्का ने दोनों पैर को उसकी कमर से लपेट लिया है उसने एक हाँथ से उसके नंगे पैर को जांघों तक धीरे से सहलाया तो अल्का की मस्ती में आंखें बंद हो गयी।

सत्तू एक हाँथ से अल्का की अधखुली जांघ को सहला रहा था और दूसरे हाँथ को उसकी गर्दन के नीचे से लेजाकर उसे कस के अपने से लिपटाये उसके गालों से अपने गाल सहला रहा था।

तभी अल्का ने पूछा- भैया...एक बात पूछूं?

सत्तू- पूछ न मेरी बहना....मेरी रानी।

अल्का- तुम्हें भी वो कर्म मिला होगा न।

सत्तू- मेरी बहना मैं तुमसे आज यही बात बताने वाला था कि तुमने पहले ही पूछ लिया।

अल्का- पर मेरे भैया..जहां तक मैं जानती हूं कर्म के बारे में न तो घर का कोई सदस्य पूछ सकता है और न ही किसी को बताया जाता है।

सत्तू- बात तो सही है मेरी बहना... पर उस सदस्य को तो बताना ही होता है जो उस कर्म का हिस्सा हो।

अल्का- मतलब

सत्तू- मतलब मेरी बहन....मुझे मेरा कर्म मिल गया है और तुम उस कर्म का हिस्सा हो.....मतलब वो कर्म तुम्हारे बिना पूरा नही हो सकता।

अलका थोड़ा अचरज से- क्या?....मैं शामिल हूँ उस कर्म में?

सत्तू- हां

अल्का- ऐसा क्या कर्म है वो भैया?।....अब तो मैं पूछ सकती हूं न?

सत्तू- हाँ बिल्कुल

अल्का- तो बताओ न जल्दी...ऐसा क्या कर्म आया है तुम्हारे हिस्से में...जिसमे मैं भी शामिल हूँ।

सत्तू ने फिर इत्मीनान से अल्का को वो सारी बातें जो कागज में लिखी थी बताई, बस उसने ये बात छुपा ली कि उस कागज में ये लिखा है कि ये कर्म घर की सभी स्त्रियों के साथ करना है, उसने बस यही बोला कि उसे वह अल्का के साथ ही करना है, दरअसल उसने यह पहले ही सोच रखा था कि हर स्त्री को वो यही बोलेगा ताकि कागज में लिखे अनुसार घर की एक स्त्री को यह न पता लगे कि दूसरी स्त्री के साथ भी ये हुआ है। जब सत्तू ने अल्का को सारी बात बता दी तो अलका सुनकर सन्न रह गयी, पहले तो उसे विश्वास ही नही हुआ कि उसके अजिया ससुर जी ऐसा कर्म भी लिख सकते हैं।
Nice update 👌👌👌👌
 
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aamirhydkhan

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Update- 18

अगली सुबह सब उठकर अपने अपने काम में लग गए, अल्का और किरन रसोई साफ करके नाश्ता बनाने में लगी थी, सौम्या और सत्तू की माँ पशुओं का चारा बालने में लगी हुई थी, इंद्रजीत ने सुबह ही ट्यूबेल चलाकर गेहूं की सिंचाई कर डाली, क्योंकि आज उसे अपनी ससुराल जाना था न्यौता देने, इसलिए सिंचाई का काम सुबह ही निपटा दिया, फावड़ा कंधे पर रखकर वो जैसे ही घर वापिस आया तो देखा सत्तू पेड़ के नीचे अभी तक सो ही रहा है, वो फावड़ा रखने चारा मशीन के पास गया तो अपनी पत्नी कंचन शिकायत भरे लहजे से बोला- सत्तू अभी तक सो रहा है?

सौम्या- बाबू जी मैं उनको उठा देती हूं तब तक आप नहा लीजिए अल्का और किरन नाश्ता तैयार कर चुकी होंगी।

इंद्रजीत कुएं पर चला जाता है, सौम्या चारा बाल चुकी थी कंचन हरी घास में भूसा मिलाने लगी, तभी सौम्या ने एक बड़ी सी घास उठायी और सत्तू की तरफ चल दी।

सत्तू के कान में धीरे से बोली- पापा जी..उठिए न

सत्तू अब भी सोता रहा, सौम्या ने एक बार अपनी सास की तरफ देखा और फिर दुबारा धीरे से बोला- पापा जी, उठो न.....

सौम्या ने सत्तू के कान में हरी घास से जैसे ही गुदगुदी की, सत्तू की झट से आंख खुल गयी- अरे भाभी माँ।

सौम्या ने फिर धीरे से बोला- अब उठो न पापा जी कब से उठा रही हूं....सब उठ गए बस आप ही सो रहे हो।

सौम्या के उठाने के तरीके और उसकी आँखों में हल्की सी कामुकता देखकर सत्तू का लंड ही खड़ा हो गया, सुबह सुबह एक तो लंड वैसे ही फुंकारता रहता है ऊपर से सौम्या की ये अदा, सत्तू कायल ही हो गया, वो हल्के से मुस्कुरा बोला- ओह्ह मेरी बेटी...आज तो दिन बन गया...इतनी अच्छी सुबह होगी आज सोचा नही था।

सौम्या मुस्कुराती हुई बोली- अच्छा जी...तो चलो अब जल्दी उठो, नाश्ता तैयार है जल्दी से नहा धो लो....पता है बाबू जी गुस्सा करने ही वाले थे, मैंने उनको बोला आप जाओ नहाओ मैं उठा देती हूं।

सत्तू- हां तो मुझे नाज़ है न अपनी बिटिया पर, उसके रहते कोई मुझे कैसे डांट सकता है, बेटी हो तो ऐसी।

सौम्या ने मुस्कुराते हुए एक बार फिर "पापा जी" बोला और घर के अंदर चली गयी, सत्तू झट से उठा और सुबह के नित्यकर्मों को करके नहा धोकर बरामदे में आ गया जहां सब लोग बैठे थे।

अल्का और किरन सबके लिए चाय नाश्ता लेकर आई और टेबल पर रखकर बगल में बैठ गयी।

इंद्रजीत ने कंचन से कहा- आज तो न्योता लेकर तुम्हारे ससुराल चलना है?

कंचन- हाँ चलना तो है, जल्दी तैयार हो जाओ सब दोपहर को चलेंगे।

अलका- सब.....सब चलेंगे?

कंचन- अरे नही बहु, सब मतलब.....मैं तेरे बाबू जी और सौम्या..... हम तीनों जाते हैं कल आ जाएंगे, बुलाया तो मेरी माता जी ने किरन को भी है....पर ये जाए तब न....कह रही थी कि काफी दिन हो गए किरन को देखे।

किरन- लो...अब शादी में तो नाना नानी सब आएंगे ही.....तब मिल लूँगी....मिलना जुलना तो अब होने ही वाला है शादी में.....अभी आप लोग ही जाओ...घर पर भी तो कोई होना चाहिए।

सत्तू किरन के इस जवाब पर हल्का सा सिर नीचे करके मुस्कुराने लगा, वो जानता था किरन जाना नही चाहती, वो उसके साथ वक्त बिताना चाहती है, पर वो ये भी जानता था कि अलका उसे भेजकर रहेगी।

अल्का- क्या मेरी ननद रानी...मेरी नानी ने बुलाया होता तो मैं तो कूदकर उनके गोद में बैठ जाती.......नाना-नानी प्यार से बुलाये तो ऐसे मना नही करते...मेरा बच्चा.....घर पर मैं और मेरे देवर जी हैं तो सही।

(अल्का बातों बातों के बहाव में ये बोल तो गयी "मेरा बच्चा" पर जैसे ही अपने ससुर पर नज़र पड़ी वो झेंप गयी, और सब हंस पड़े)

किरन- हाँ मेरी नानी....जाओ फिर तुम ही चली जाओ, मैं रह लुंगी यहां।

अल्का हंस पड़ी, फिर बोली- बाबू जी वो खट्टी- मीठी वाली नमकीन लाऊं आपके लिए...आपको पसंद है न।

इंद्रजीत- नही बहु रहने दे....हो तो गया नाश्ता... कर लिया बस

सौम्या- किरन चल न....कल ही तो वापिस आ जाएंगे।

किरन- अच्छा बाबा ठीक है...चलूंगी मैं भी...अब खुश हो न सब।

सब फिर हंस पड़े, अल्का और सत्तू की नज़र जब भी मिलती, एक सिरहन सी अलका के जिस्म में दौड़ जाती, जैसे जैसे ये सुनिश्चित होता जा रहा था कि आज रात वो दोनों घर पर अकेले रहेंगे, दोनों के बदन में एक मस्तानी सी लहर रह रहकर उठ रही थी, वहीं किरन थोड़ा सा उदास थी, वो अपने भाई के साथ अकेले में मस्ती करना चाहती थी पर क्या करे, ये सोचकर उसने हाँ कर दी कि अल्का के होते हुए वो सब हो पाना संभव भी नही, उदास तो सौम्या भी थी पर वो बहुत धैर्यवान और सहनशील थी। सत्तू जब भी अपनी बहन किरन की ओर देखता तो उसे सब्र रखने का इशारा आंखों ही आंखों में कर देता, यह बात किरन के मन को रोमांचित कर रही थी की उसके भाई को उसका कितना ख्याल है।

अल्का- अम्मा दोपहर में खाने में क्या बनाऊं?

कंचन के बोलने से पहले ही इंद्रजीत बोल पड़ा- बहु तुम अपने लिए और सत्येंद्र के लिए कुछ भी बना लेना, हम लोग तो अभी कुछ देर बाद ही निकल रहे हैं।

कंचन- अरे बाबा तुम्हें भूख नही है तो तुम मत खाना हम सब तो खाना खा के जाएंगे, बहू तू बना ले सबका खाना, इनके हिस्से का मत बनाना बस।

अल्का हंसने लगी- अच्छा अम्मा ठीक है, मैं बना लेती हूं सबका खाना।

अलका ने हल्की सी मुस्कान के साथ सत्तू को देखा और इठलाते हुए चली गयी रसोई की तरह।

कंचन ने चाय पीकर कप प्लेट में रखते हुए बोला- सत्तू बेटा.... अपनी सौम्या भाभी के साथ मिलकर वो गेहूं जो धोकर, बरामदे में रखा हुआ है न उसको बाहर खाट पर फैलवा दे ताकि धूप लगने पर सुख जाये, वो अकेली नही कर पायेगी।

सत्तू- हां अम्मा मैं फैलवा देता हूँ गेहूं।

कंचन- किरन... जा तू भी...तीनो मिलकर कर लो ये काम।

किरन- हाँ अम्मा जाती हूँ....चल भौजी।
बहुत ही शानदार और कामुक अपडेट हैं
सत्तू और अलका आज तो एक दूसरे से प्यार करने वाले हैं आज तो कांड होना तय है
 
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Update- 19

सबने मिलकर गेहूं का काम तो निपटा दिया, और दोपहर का खाना खाकर निकलने लगे शादी का न्यौता देने।

अल्का- अम्मा कल आ जाओगे न सब लोग।

कंचन- हाँ.... तू सत्येंद्र के साथ मिलकर ये गेहूं शाम को उठाकर बरामदे में रख देना।

अल्का- हां अम्मा ठीक है रख दूंगी।

फिर सब चले गए, सत्तू सबको 5 किलोमीटर दूर बसअड्डे पर जाकर बस में बैठा कर आया, जैसे ही सत्तू घर पहुंचा अल्का बाहर ही थी सत्तू को देखते ही जीभ चिढ़ाते हुए घर में भागी, सत्तू उसके पीछे पीछे भागा, अल्का जल्दी से पीछे वाले कमरे में घुस गई और किवाड़ बंद करने ही वाली थी कि सत्तू ने किवाड़ बंद होने से रोक लिया और अल्का को कस के अपनी बाहों में भर लिया।

अल्का- आआआह ह ह ह ह....अभी कोई आ सकता है, कोई आ गया वापिस तो।

सत्तू- बस में बैठा कर आया हूँ सबको, ऐसे कैसे आ जाएंगे...और तू भागी क्यों....अब ताड़पाओगी अपने भैया को।

अल्का- बहन के पीछे भागोगे तो और मजा आएगा...इसलिए भागी मैं।

सत्तू ने अल्का की मोटी मोटी गांड को उसकी आँखों में देखते हुए बड़ी कामुकता से सहलाया तो अल्का लजा कर सत्तू से लिपट गयी।

अल्का (धीरे से)- बेशर्म....आहहह....ऊऊईईई....सब्र नाम की चीज़ नही है मेरे भैया को....बहन हूँ कुछ तो शर्म करो।

सत्तू के हाँथ धीरे धीरे अल्का की कमर, गांड और पीठ को सहलाने लगे तो अल्का की आंखों में नशा चढ़ने लगा, हल्का सिसकते हुए - बेशर्म भैया।

सत्तू ने नीचे देखा तो अल्का की चूचीयाँ उसके सीने से दबी हुई थी, गोरे गोर उभारों की बीच की घाटी को देखकर, उसके लंड ने हल्के से ठुमकी मारी, जिसको अल्का ने बखूबी महसूस किया।

सत्तू (धीरे से)- भौजी...मेरी छोटकी भौजी।

अल्का थोड़ा शिकायत भरी नजरों से सत्तू की आंखों में देखकर- फिर भटकइयाँ के फल नही फोड़ने दूंगी।

सत्तू- फल फोड़ने के लिए वो गहराई सिर्फ भाई को मिलेगी।

अल्का प्यार से सत्तू की आंखों में देखते हुए- हम्म्म्म......सिर्फ मेरे भैया को।

सत्तू- मजा आ जायेगा न बहना।

अल्का- धत्त

सत्तू- दीदी बोलूं?

अल्का- बोल न

सत्तू (अल्का की गांड को हथेली से थामकर मीजते हुए) - दीदी

अल्का- अह..हाय!

सत्तू- दीदी....मुझे वो चाहिए।

अल्का का चेहरा शर्म से लाल होता जा रहा था

अल्का- क्या?.....क्या चाहिए भैया?

सत्तू- वही..

अलका सिसकते हुए- वही क्या मेरे भैया?

सत्तू- वही जो दोनों जांघों के बीच में है।

(दोनों की सांसें अब धौकनी की तरह चलने लगी)

अल्का भारी आवाज में- क्या है जांघों के बीच में....मैं समझी नही।

सत्तू- वही...जहाँ से मेरी दीदी पेशाब करती है।

(अल्का सुध बुध खोकर और कस के लिपट गयी)

अल्का- ईईईईईशशशशशश.....

सत्तू अल्का के गालों को चूमते हुए कान के पास होंठ लेजाकर- दीदी.....तेरी बूर चाहिए मुझे?

अल्का ने मचलते हुए सिसकारी ली और सत्तू की पीठ पर हल्की सी चिकोटी काटते हुए- बहुत बेशर्म हो तुम।

सत्तू- दीदी

अलका- ह्म्म्म

सत्तू- तेरी बूर सूंघने का मन कर रहा है.....सुंघाओगी?

अल्का का पूरा बदन शर्म से गनगना जा रहा था।

अल्का- गंदे

सत्तू- बोल न....सूंघने दोगी...अपनी बूर

अल्का- आआआह....उसमें पेशाब लगा होता है?

सत्तू- वही गंध तो चाहिए मुझे अपनी बहन की

अल्का- गंदे....और....बेशर्म भैया।

सत्तू- बोल न.....सूंघने दोगी

अल्का ने बड़ी मादकता से कहा- दूंगी....देखने के लिए.....छूने के लिए.....सूंघने के लिए....और

सत्तू- और क्या?

अल्का- और वो करने के लिए।

सत्तू- वो क्या

अल्का - वही....

सत्तू- वही क्या?

अल्का- चो...द....

(अल्का का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है)

सत्तू- बोल न दीदी...मेरी प्यारी बहना.... क्या करने के लिए दोगी।

अल्का बहुत धीरे से- चोदने के लिए

सत्तू- हाय... मेरी दीदी

सत्तू के अलका को कस के दबोच लिया।

अल्का जोर से सिसक पड़ी

सत्तू अल्का को चूमने लगा, अल्का मस्ती में सिसकने लगी और अपने गाल, गर्दन घुमा घुमा कर सत्तू को चुम्बन के लिए परोसने लगी, एकाएक सत्तू ने अपने होंठ अल्का के होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें पूरी तरह नशे में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे, कितने रसीले होंठ थे अल्का के, दोनों को होश नही, काफी देर तक होंठों को चूमने के बाद जैसे ही सत्तू ने अल्का के मुंह मे जीभ डालना चाहा, अल्का ने उसे रोकते हुए कहा- भैया।
Fantastic update
Aaj to bhaya aur bahin ki damdar chudai hone wali h wo bhi bhatkya ke phal ke sath
 
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सत्तू अल्का को चूमने लगा, अल्का मस्ती में सिसकने लगी और अपने गाल, गर्दन घुमा घुमा कर सत्तू को चुम्बन के लिए परोसने लगी, एकाएक सत्तू ने अपने होंठ अल्का के होंठों पर रख दिये, दोनों की आंखें पूरी तरह नशे में बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे, कितने रसीले होंठ थे अल्का के, दोनों को होश नही, काफी देर तक होंठों को चूमने के बाद जैसे ही सत्तू ने अल्का के मुंह मे जीभ डालना चाहा, अल्का ने उसे रोकते हुए कहा- भैया।


अब आगे-----

Update- 20

सत्तू- ह्म्म्म

अल्का- काश बहुत पहले ही तुम मेरे भैया बन गए होते, कहाँ थे अब तक, यहीं एक ही घर में इतने दिनों से साथ रह रहे हो, ये सब पहले क्यों नही किया....पता है कितनी प्यासी है तुम्हारी बहना।

सत्तू- ओह मेरी दीदी....क्या करूँ तुमने भी तो कभी इशारा नही किया, कभी जिक्र नही किया, कभी अपने मन का दर्द बयां ही नही किया कि ऐसा कुछ था तुम्हारे मन में, नही तो हम कब से प्यार कर रहे होते...खैर जाने दे ये बात जब जिस चीज़ का समय आता है वो हो ही जाती है, अब तो तू बन गयी न मेरी बहन....मेरी दीदी।

अल्का- हां, बन गयी मेरे भैया, मुझे अपनी ही ससुराल में मेरा भाई मिलेगा और वो मुझे ऐसा प्यार देगा जैसा कोई भाई अपनी बहन को नही देता ऐसा मैंने कभी सोचा नही था।

सत्तू- तो मैंने भी कहाँ सोचा था कि मेरी छोटी भौजी ही मेरी बहन है।

(ऐसे कहते हुए सत्तू ने अल्का की गांड की दरार को दोनों हाथों से साड़ी के ऊपर से ही फैलाकर हाँथ को अंदर डालकर सहलाया तो अलका "ऊई अम्मा" कहते हुए मचल सी गयी)

अल्का- एक बात पूछूं?

सत्तू- बोल न

अल्का- मेरे भाई ने सच में वो कभी नही देखी है।

सत्तू- क्या वो? अब खुलकर बोल न दीदी, कैसा शर्माना, देख अब तो कोई है भी नही, तेरे मुँह से सुनकर बहुत उत्तेजना होती है।

(सत्तू अल्का की गांड को हथेली में भरकर हौले हौले मीज ही रहा था, गाड़ ही इतनी मस्त थी कि उसी से फुरसत नही मिल रही थी तो दूसरे अंगों पर कहाँ से ध्यान जाता, जब खाने के लिए ढेरों मिठाईयां एक साथ मिल जाएं तब समझ नही आता कि किसको पहले खाऊं और किसको बाद में, यहीं हाल सत्तू का था)

अल्का- शर्म आती है, उसका नाम बोलने से।

सत्तू- बोल न मेरी जान, उसका नाम मेरी आँखों में देखकर बोल न।

अल्का सत्तू की आंखों में देखकर लज़्ज़ा से भर गई, बड़े हौले से बोली- सच में भैया तुमने "बूर" नही देखी है कभी, सच्ची की "बूर", हम लड़कियों की "बूर"

(जब अल्का "बूर" शब्द बोल रही थी तो उसके लाल रसीले होंठ जब बोलते हुए "उ" के उच्चारण पर गोल हुए तभी सत्तू ने अल्का के होंठों को अपने होंठों में भरकर चूम लिया, दोनों फिर से लिपट गए, साँसें रह रहकर तेज चलने लगी, अल्का की चूचीयाँ, धीरे धीरे सख्त होती जा रही थी)

सत्तू- सच में दीदी, आज तक मैंने सच्ची की बूर नही देखी, किताबों में तो देखी है, फिल्मों में देखी है पर अपने घर की बूर, जिसका नशा ही अलग होता है वो नही देखी।

अल्का- घर की बूर का नशा अलग होता है।

सत्तू- बिल्कुल अलग, दुनियाँ में सबसे अलग।

अल्का ने मस्ती में हल्की सी अपनी जीभ निकाली तो सत्तू ने भी अपनी जीभ निकाली और दोनों एक दूसरे से हल्का हल्का जीभ लड़ाने लगे, की तभी अल्का ने झट से मुंह खोल दिया और सत्तू ने अपनी जीभ अल्का के मुँह में डाल दी, आँखें बंद हो गयी दोनों की, बदन थरथरा गया अल्का का, क्योंकि सत्तू का दायां हाँथ पीछे से हौले हौले सहलाते हुए अल्का की बूर तक पहुंच गया था, जैसे ही सत्तू ने अल्का की बूर को पीछे की तरफ से साड़ी के ऊपर से दबोचा, "आह भैया" की हल्की सी सिसकारी भरते हुए अल्का खुद को सत्तू की बाहों से छुड़ा कर पलंग की तरफ भागी, कुछ ही दूर पर बिछे पलंग पर अल्का पेट के बल अपना चेहरा हथेली में छुपकर लेट गयी, उसके उभरे हुए नितंब मानो अब खुल कर आमंत्रण दे रहे थे, उसकी सांसें जोश के मारे तेजी से चल रही थी, सत्तू का लंड अब तक तनकर लोहा हो चुका था, वो अल्का की ओर बढ़ा और साड़ी के ऊपर से ही जानबूझकर अपना खड़ा लंड अल्का की उभरी हुई गांड की दरार में खुलकर पेलते हुए "ओह दीदी" बोलकर उसपर चढ़ गया,

"ऊऊई मां" भैया, धीरे....

सत्तू ने अल्का को अपने लंड का अहसास कराते हुए साड़ी के ऊपर से ही कई बार सूखे धक्के मारे, अपने भाई का लंड महसूस कर अल्का की बूर पनियाने लगी, सत्तू ने अल्का के गालों पर आ चुके बालों की लटों को एक तरफ सरकाया और गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी, अल्का की सांसें तेज चलने लगी, सत्तू ने साड़ी के ऊपर से ही हौले हौले अल्का की गांड मारते हुए वासना में बेसुभ होकर कहा, - दीदी बूर चोदने दे न अब, बर्दाश्त नही हो रहा अब।

अल्का ने बड़ी मुश्किल से धीरे से कहा- पहले फल ले आओ मेरे भैया, तुम्हारी बहन तो बस तुम्हारी ही है अब, मुझसे भी अब रहा नही जा रहा, जाओ न फल लेकर आओ, जल्दी आना।

और शर्म से उसने फिर अपना चेहरा हथेली में छुपा लिया, सत्तू ने एक चुम्बन कस के अल्का के गालों पर लिया, और उठ गया उसके ऊपर से, लंड को ठीक किया और जल्दी से बाहर निकल गया, काफी देर तक अल्का पलंग पर लेटी रही, उसे अभी भी महसूस हो रहा था कि सत्तू का मोटा लंड उसकी गांड की दरार में रगड़ रहा है।
Nice update 👌👌👌👌👌
Sattu aur alka ki damdar chudai karwa do ab to
 
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