मौसी ने जल्द ही मुझे एक्स्पर्ट जैसा सिखा दिया. मैंने मुंह से उसकी चूत पर ऐसा कर्म किया कि वह पाँच मिनट में स्खलित हो गई और मेरे मुंह को अपनी बुर के पानी से भर दिया. बुर का रस थोडा कसैला और खारा था पर बिल्कुल पिघले घी जैसा चिपचिपा. मैंने उसे पूरा मन लगाकर चाट लिया. तब तक मौसी मेरे चेहरे को अपनी चूत पर दबा कर हौले हौले धक्के मारती रही.
तृप्त होकर मौसी ने मुझे उठाया और पलंग पर ले गई. "बडा फ़ास्ट लर्नर है रे तू, चूत का अच्छा गुलाम बनेगा तेरे मौसाजी की तरह. अब चल बेटे, आराम से लेट कर मज़ा लेंगे". पलम पर लेट कर मेरे फ़नफ़नाये लंड को सहलाती हुई वह बोली. "झड़ेगा तो नहीं रे जल्दी?"
मैंने उसे आश्वस्त किया और मौसी मुझे पलंग पर लिटा कर मेरे मुंह पर चढ़ बैठी. अपनी दोनों टांगें मेरे सिर के इर्द गिर्द जमाते हुए वह बोली. "अब घंटे भर तेरा मुंह चोदूँगी और तुझे बुर का रस पिलाऊँगी. मैंने वादा किया था तुझे परीक्षा में तीसरा आने पर इनाम देने का, सो अब ले, मन भर कर अपनी मौसी के अमृत का पान कर."
अपनी चूत मेरे होंठों के इंच भर ऊपर जमाते हुई वह बोली."अब देख, तुझे इतना चूत रस पिलाऊँगी कि तेरा पेट भर जायेगा. तू बस चाटता और चूसता रह" मैं पास से उसकी रसीली चूत का नजारा देख रहा था और उसे सूंघ रहा था. इतने में वह चूत को मेरे मुंह पर दबाकर मेरे चेहरे पर बैठ गई और मेरा चेहरा अपनी घनी झांटों में छुपा लिया. मैंने मुंह मारना शुरू कर दिया और उसे ऐसा चूसा कि मौसी के मुंह से सुख की सिसकारियाँ निकलने लगी. "तू तो बुर चूसने में अपने मौसा की तरह एकदम उस्ताद हो गया एक ही घंटे में." कसमसा कर स्खलित होते हुए वह बोली.
कुछ देर मेरे मुंह पर बैठने के बाद मौसी बोली "विजय बेटे, अपनी जीभ कड़ी कर और मेरी चूत में डाल दे, तेरी जीभ को लंड जैसा चोदूँगी." मेरी कड़ी निकली हुई जीभ को मौसी ने अपने भगोष्ठों में लिया और फ़िर उछल उछल कर ऊपर नीचे होते हुई चोदने लगी. उसकी मुलायम गीली चूत की म्यान मेरी जीभ को बड़े लाड से पकडने की कोशिश कर रही थी. मेरी जीभ कुछ देर बाद दुखने लगी थी पर मैं उसे निकाले रहा जब तक मौसी फ़िर एक बार नहीं झड गई. मेरे चूत रस पीने तक वह मेरे मुंह पर बैठी रही और फ़िर उठ कर मेरे पास लेट गई और बड़े लाड से मुझे बाँहों में भर कर प्यार करने लगी. "मजा आया बेटे? कैसा लगा मेरी बुर का पानी?" उसने पूछा.
मैं क्या कहता, सिर्फ़ यही कह पाया कि मौसी, अगर अमृत का स्वाद कोई पूछे तो मैं तो यही कहूँगा कि मेरी मौसी की चूत के रस से अच्छा तो नहीं होगा. मेरी इस बड़े बूढ़ों जैसी बात को सुनकर वह हंस पड़ी.
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जल्द ही मेरी माँ की वह चुदैल छोटी बहन फ़िर गरम हो गई और शायद मुझे चूत चुसाने का सोच रही थी पर मेरा वासना से भरा चेहरा देख कर वह मेरी दशा समझ गई. "विजय, तू इतना तडप रहा है झडने के लिये, मैं तो भूल ही गयी थी. चल अब सिक्स्टी-नाइन करते हैं, तू मेरी चूत चूस और मैं तेर लंड चूसती हूँ."
मुझे अपने सामने उल्टी तरफ़ से लिटा कर मौसी ने अपनी एक टांग उठायी और मेरे चेहरे को अपनी बुर में खींच लिया. फ़िर अपनी टांग नीचे करके मेरे सिर को जांघों में जकडती हुई बोली. "मेरी निचली जांघ का तकिया बना कर लेट जा. मेरी झांटों के बीच तेरा सिर दबता है उसकी तकलीफ़ तो नहीं होती तुझे? असल में मुझे बहुत अच्छा लगता है तेरे सिर को ऐसा पकड़कर"
मैंने सिर्फ़ सिर हिलाया क्यों की मेरे होंठ तो मौसी की चूत के होंठों ने, उन मोटे भगोष्ठों ने पकड रखे थे. उसकी रेशमी सुगंधित झांटों में मुंह छुपाकर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी सुंदरी की झूलफ़ों में मैं मुंह छुपाये हूँ. मौसी ने अब धक्के दे देकर मेरे मुंह पर अपनी चूत रगडते हुए हस्तमैथुन करना शुरू कर दिया.
फ़िर मौसी ने मेरी कमर पकड़कर मुझे पास खींचा और मेरे लंड को चूमने लगी. कुछ देर तक तो वह मेरे शिश्न से बड़े प्यार से खेलती रही, कभी उसे चूमती, जोर से हिलाती, कभी हल्के से सुपाडा चाट लेती. मस्ती में आकर मैं उसकी चूत के भगोष्ठ पूरे मुंह में भर लिये और किसी फ़ल जैसा चूसने लगा. मौसी हुमककर मेरे मुंह में स्खलित हो गई. मुझे चूत रस पिलाने के बाद उसने मेरा लंड पूरा लॉलीपॉप जैसा मुंह में ले लिया और चूसने लगी. मैं तो मानों कामदेव के स्वर्ग में पहुँच गया. मौसी के गरम तपते मुंह ने और मेरे पेट पर महसूस होती हुई उसकी गरम साँसों ने ऐसा जादू किया कि मैं तिलमिला कर झड गया. मौसी चटखारे ले ले कर मेरा वीर्यपान करने लगी.
मेरी वासना शांत होते ही मैंने चूत चूसना बंद कर दिया था. मौसी ने मेरा झडा हुआ जरा सा लंड मुंह से निकाला और मुझे डांटते हुई बोली. "बुर चूसना क्यों बंद कर दिया बेटे? अपना काम हो गया तो चुप हो गये? तू चूसता रह राजा, मेरी बुर अब भी खेलने के मूड में है, उसमें अभी बहुत रस है अपने लाल के लिये." मैं सॉरी कहकर फ़िर चूत चूसने लगा और मौसी मजे ले लेकर मेरे लंड को चूस कर फ़िर खड़ा करने के काम में लग गयी. आधे घंटे में मैं फ़िर तैयार था और तब तक मौसी तीन चार बार मेरे मुंह में झडकर मुझे चिपचिपा शहद पिला चुकी थी.
हम पड़े पड़े आराम करने लगे. वह मेरे लंड से खेलती रही और मैं पास से उसकी खूबसूरत चूत का मुआयना करने लगा. उंगलियों से मैंने मौसी की चूत फ़ैलायी और खुले छेद में से अंदर देखा. ऐसा लग रहा था कि काश मैं छोटा चार पाँच इंच का गुड्डा बन जाऊँ और उस मुलायम गुफ़ा में घुस ही जाऊँ. पास से उसका क्लिटोरिस भी बिलकुल अनार के दाने जैसा कडा और लाल लाल लग रहा था और उसे मैं बार बार जीभ से चाट रहा था. मौसी की झांटों का तो मैं दीवाना हो चुका था. "मौसी, तुम्हारी रेशमी झांटें कितनी घनी हैं. इनमें से खुशबू भी बहुत अच्छी आती है, जैसे डाबर आमला वाली सुंदरी के बाल हों."
मौसी आराम करने के बाद और मेरे उसकी चूत से खेलने के कारण फ़िर कामुक नटखट मूड में आ गयी थी. मुझसे बोली "मालूम है मैं जब अकेली होती हूँ तो क्या करती हूँ? यह मेरी बहुत पुरानी आदत है, तब से जब मैं दस साल की थी. और कभी कभी तो तेरे मौसाजी की फ़रमाइश पर भी यह नज़ारा उन्हें दिखाती हूँ." मैंने उत्सुकता से पूछा कि वह क्या करेगी. "अरे, हस्तमैथुन करूंगी, जिसे आत्मरति भी कहते हैं, या खड़ी बोली में कहो तो मुठ्ठ मारूँगी, या सडका लगाऊँगी. मुझे मालूम है कि तेरे जैसे हरामी लडके भी हमेशा यही करते हैं. बोल तू मेरे नाम से सडका मारता था या नहीं?" मैंने झेंप कर स्वीकार किया कि बात सच थी.
मेरे सामने फ़िर मौसी ने मुठ्ठ मार कर दिखाई. अपनी ऊपरी टांग उठा कर घुटना मोड कर पैर नीचे रखा और अपनी दो उँगलियाँ चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगी. मैं अभी भी मौसी की निचली जांघ को तकिया बनाये लेटा था इसलिये बिलकुल पास से मुझे उसके हस्तमैथुन का साफ़ द्रूश्य दिख रहा था. मौसी का अंगूठा बड़ी सफ़ाई से अपने ही मणि पर चल रहा था. बीच बीच में मैं मौसी की चूत को चूम लेता और हस्तमैथुन के कारण निकलते उस चिकने पानी को चाट लेता. मेरी तरफ़ शैतानी भरी नज़रों से देखते देखते मौसी ने मन भर कर आत्मरति की और आखिर एक सिसकारी लेकर झड गई.
लस्त होकर मौसी ने तृप्ति की सांस ली और अपनी दोनों उँगलियाँ चूत में से निकालकर मेरी नाक के पास ले आई. "सूंघ विजय, क्या मस्त मदभरी सुगंध है देख. मुझे भी अच्छी लगती है, फ़िर पुरुषों को तो यह मदहोश कर देगी" मैंने देखा कि उँगलियाँ ऐसी लग रही थीं जैसे किसी ने सफ़ेद चिपचिपे शहद की बोतल में डुबोई हों. मैंने तुरंत उन्हें मुंह में लेकर चाट लिया और फ़िर मौसी की चूत पर मुंह लगाकर सारा रस चाट चाट कर साफ़ कर दिया. मौसी ने भी बड़े प्यार से टांगें फ़ैला कर अपनी झड़ी चूत चटवाई.
मैं अब वासना से अधीर हो चुका था और आखिर साहस करके प्रिया मौसी से पूछ ही लिया. "मौसी, चोदने नहीं दोगी तुम मुझे? उस रात जैसा? " मौसी बोली "हा ऽ य, कितनी दुष्ट हूँ मैं! भूळ ही गई थी. अरे असल में चोदना तो मेरे और तेरे मौसाजी के लिये बिलकुल सादी बात हो कर रह गयी है. हमारा ध्यान इधर उधर की सोच कर और तरह की क्रिया करने में ज्यादा रहता है. आ जा मेरे लाल, चोद ले मुझे."
टांगें फ़ैला कर मौसी चूतड़ों के नीचे एक तकिया लेकर लेट गई और मैं झट से उसकी जांघों के बीच बैठ गया. मौसी ने मेरा लंड पकडा और अपनी चूत में घुसेड़ लिया. उस गरम तपती गीली बुर में वह बड़ी आसानी से जड तक समा गया. मैं मौसी के ऊपर लेट गया और उसे चोदने लगा.
मौसी ने मेरे गले में बाँहें डाल दीं और मुझे खींच कर चूमने लगी. मैंने भी अपने मुंह में उसके रसीले लाल होंठ पकड लिये और उन्हें चूसता हुआ हचक हचक कर पूरे जोर से मौसी को चोदने लगा. इस समय कोई हमें देखता तो बडा कामुक नज़ारा देखता कि एक किशोर लड़का अपनी माँ की उमर की एक भरे पूरे शरीर की अधेड औरत पर चढ़ कर उसे चोद रहा है.
कुछ मिनटों बाद मौसी ने मेरा सिर अपनी छातियों पर दबा लिया और एक निप्पल मेरे मुंह में दे दिया. फ़िर मेरा सिर कस कर अपनी चूची पर दबा कर आधे से ज्यादा मम्मा मेरे मुंह में घुसेडकर गांड उचका उचका कर चुदाने लगी. साथ ही मुझे उत्तेजित करने को वह गंदी भाषा में मुझे उत्साहित करने लगी. "चोद साले अपनी मौसी को जोर जोर से, और जोरे से धक्क लगा. घुसेड़ अपना लंड मेरी बुर में, हचक कर चोद हरामी, फ़ाड दे मेरी चूत"
मैने भरसक पूरी मेहनत से मौसी को चोदा जब तक वह चिल्ला कर झड नहीं गई. "झड गयी रे राजा, खलास कर दिया तूने मुझे! मर गई रे, हा ऽ य" कहकर वह लस्त पड गई. फ़िर मैं भी जोर से स्खलित हुआ और लस्त होकर मौसी के गुदाज शरीर पर पड़ा पड़ा उस स्वर्गिक सुख का मजा लेता रहा.
मौसी मुझे चूम कर बोली. "मेरे मुंह से ऐसी गंदी भाषा और गालियां सुनकर तुझे बुरा तो नहीं लगता बेटे?" मैंने कहा "नहीं मौसी, बल्कि लौडा और खड़ा हो जता है." वह बोली. "मुझे भी मस्ती चढ़ती है. हम रोज बोल चाल में इतनी सभ्य भाषा बोलते हैं इसीलिये ऐसी भषा से कामवासना बढ़ती है. तेरे मौसाजी भी खूब बकते हैं जब तैश में होते हैं."
मैं इतना थक गया था मौसी से गप्पें लगाते लगाते ही कब मेरी आँख लग गई, मुझे पता भी नहीं चला.
जब मैं सुबह उठा तो मौसी किचन में काम कर रही थी. मुझे जगा देखकर मेरे लिये ग्लास भर दूध लेकर आई. उसने एक पतला गाउन पहना था और उसके बारीक कपड़े में से उसके उभरे स्तन और खड़े चूचुक साफ़ दिख रहे थे. मेरा चुंबन लेकर वह पास ही बैठ गई. मैं दूध पीने लगा तब तक वह मेरे लंड को हाथ से बड़े प्यार से सहलाती रही.
दूध खतम करके जब मैंने पहनने को कपड़े मांगे तो हंस कर प्रिया मौसी बोली. "छुपा दिये मैने, मेरे लाडले, अब तो जब तक तू यहाँ है, कपड़े नहीं पहनेगा और घर में नंगा ही घूमेगा, अपना तन्नाया प्यारा लंड लेकर. जब भी चाहूँगी, मैं तुझे चोद लूँगी. कोई आये तो अंदर छुप जाना. कपड़े पहनना ही हो तो मैं बता दूँगी. पर अब नहाने को चल"
बाथरूम में जाकर मौसी ने झट से गाउन उतार दिया. दिन के तेज प्रकाश में तो उसका मादक भरापूरा शरीर और भी लंड खड़ा करने वाला लग रहा था. शॉवर चालू करके मौसी मुझे साबुन लगाने लगी. अगले कुछ मिनट वह मेरे के शरीर को मन भर सहलाती और दबाती रही. उसने मेरे लंड को इतना साबुन लगाकर रगडा कि आखिर मुझे लगा कि मैं झड जाऊंगा. लंड बुरी तरह से सूज कर उछल रहा था. पर फ़िर मौसी ने हंस कर अपना हाथ हटा लिया.
"इसको अब दिन भर खड़ा रहना सिखा दो, खड़ा रहेगा तब तू दिन भर मैं कहूँगी वैसे मेरी सेवा करेगा." मैंने भी मौसी से हठ किया कि मुझे उसे साबुन लगाने दे. मौसी मान गयी और आराम से अपने हाथ ऊपर करके खड़ी हो गई. मैंने जब उसकी काँखों में साबुन लगाया तो उन घुम्घराले घने बालों का स्पर्श बडा अच्छा लगा. मौसी के स्तन मैंने साबुन लगाने के बहाने खूब दबाये. फ़िर जब उसकी बुर पर पहुंचा तो उन घनी झांटों में साबुन का ऐसा फ़ेन आया कि क्या कहना. मौसी की फ़ूली बुर की लकीर में भी मैंने उंगली डाल कर खूब रगडा.