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Incest भाँजा लगाए तेल, मौसी करे खेल

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दूसरे ही दिन मैं नासिक के लिये रवाना हो गया. मौसी एक छोटे खूबसूरत बंगले में रहती थी. जब मैं मौसी के घर पहुंचा तो अजय अंकल बाहर जाने की तैयारी कर रहे थे. अजय अंकल, मेरे मौसाजी असल में मौसी से चार पाँच साल छोटे थे. दोनों का प्रेम विवाह हुआ था. मौसी को कोई संतान नहीं हुई थी पर फ़िर भी वे दोनों खुश नजर आते थे.

अजय मौसाजी एक बड़े आकर्षक मजबूत पर छरहरे गठीले बदन के नौजवान थे और काफ़ी हेंडसम थे. उन्हों ने मेरा बड़े प्यार से स्वागत किया और बोले कि मैं एकदम ठीक समय पर आया हूँ क्यों की उन्हें कुछ दिनों के लिये बाहर दौरे पर जाना था. "तेरी मौसी का दिल लगा रहेगा." उन्हों ने कहा.

मैंने नहा धोकर आराम किया. मौसाजी शाम को निकल गये और मैं और मौसी ही घर में बचे.

दरवाजा लगाकर मौसी ने अपनी बाँहें पसार कर मुझे पास बुलाया. "विजय, इधर आ, एक चुंबन दे जल्दी से बेटे, कब से तरस रही हूँ तेरे लिये." मैं दौड कर मौसी से लिपट गया और उसने मेरा खूब देर तक गहरा उत्तेजना पूर्ण चुंबन लिया. मैं तो अब उसपर चढ़ जाना चाहता था पर मौसी ने कहा कि अभी जल्दी करना ठीक नहीं, लोग घर आते जाते रहते हैं. और अब तो सारी रात और आगे के दिन पड़े थे मजा लूटने के लिये.


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आज मौसी एक पारदर्शक काले शिफॉन की साड़ी और बारीक पतला ब्लाउज़ पहने थी, जैसे अपने पति को रिझा रही हो. ब्लाउज़ में से सफ़ेद ब्रेसियर के पट्टे साफ़ दिख रहे थे. खाना खाते खाते ही मेरा बुरा हाल हो गया. मौसी मेरी इस हालत पर हंसने लगी और मुझे प्यार से चिढ़ाने लगी. खाना समाप्त होने पर मुझे जाकर उसके बेडरूम में इंतज़ार करने को कहा. "तू चल और तैयार रह अपनी मौसी के स्वागत के लिये. तब तक मैं साफ़ सफ़ाई करके और दरवाजे लगाकर आते हूँ". मैं मौसी के बड़े डबल बेड पर जाकर बैठ गया. मेरा लंड अब तक तन्ना कर पूरा खड़ा हो गया था.

आधे घंटे बाद मौसी आई. उसने दरवाजा बंद किया और पेन्ट में से मेरे खड़े लंड के उभार को देखकर मुस्कराते हुए बोली. "अरे मूरख, अभी तक नंगा नहीं हुआ? क्या अब बच्चों जैसे तेरे कपड़े मैं उतारूँ?" पास आकर उसने मेरे कपड़े खींच कर उतार दिये और मुझे नंगा कर दिया. मेरे साढ़े पाँच इंच के गोरे कमसिन शिश्न को उसने हाथ में लेकर दबाया और बोली.

"बडा प्यारा है रे, गन्ने जैसा रसीला दिखता है, चूस कर देखती हूँ कि रस कैसा है."

मेरे कुछ कहने के पहले ही मौसी मेरे सामने घुटने टेक कर बैठ गई और मेरे लंड को चूमने और चाटने लगी. उसकी गुलाबी जीभ का मेरे सुपाड़े पर स्पर्श होते ही मेरे मुंह से एक सिसकारी निकल गई.

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"प्रिया मौसी, अब बंद करो नहीं तो आपके मुंह में ही झड जाऊंगा."

मुस्करा कर वह बोली कि यही तो वह चाहती थी. फ़िर और समय न बरबाद करके मेरे पूरे शिश्न को मुंह में ले कर वह गन्ने जैसा चूसने लगी. मौसी के मुंह और जीभ का स्पर्श इतना सुहाना था कि मैं ’ओह मेरी प्यारी प्रिया मौसी’ चिल्लाकर झड गया. मौसी ने बड़े मजे ले ले कर मेरा वीर्य निगला और चूस चूस कर आखरी बूंद तक उसमें से निकाल ली.

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मुझे बडा बुरा लग रहा था कि मुझे तो मजा आ गया पर बिचारी मौसी की मैंने कोई सेवा नहीं की. मेरा उतरा चेहरा देखकर मौसी ने प्यार से मेरे बाल बिखराकर कहा कि जानबूझकर उसने मेरा लंड चूस लिया था. एक तो वह मेरी जवान गाढ़ी मलाई की भूखी थी, दूसरे यह कि उसे मालूम था कि अब एक बार झड जाने पर मैं अब काफ़ी देर लंड खड़ा रखूँगा जिससे उसे मेरे साथ तरह तरह की काम क्रीडा करने का मौका मिलेगा.

मैंने मौसी को लिपटकर वादा किया कि अब मैं तब तक नहीं झड़ूँगा जब तक वह इजाजत न दे. खुश होकर प्रिया मौसी ने मुझे सोफ़े में धकेल कर बिठा दिया और बोली.

"अब चुप-चाप बैठ और देख, तुझे स्ट्रिपटीज़ दिखाती हूँ! देखी है कभी?" मैंने कहा कि एक मित्र के यहाँ वीडीओ पर देखी थी.

मौसी कपड़े निकालने लगी और मैं मंत्रमुग्ध होकर उसके मादक शरीर को देखता रह गया. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी सगी मौसी, मेरी माँ की छोटी बहन, मेरे साथ संभोग करने जा रही है. साड़ी और पेटीकोट निकालने में ही मौसी ने पाँच मिनिट लगा दिये. साड़ी को फ़ोल्ड किया और अल्मारी में रखा. उसके पतले ब्लाउज में से उसके भरे पूरे उन्नत उरोजों की झलक मुझे पागल कर रही थी. फ़िर उसने ब्लाउज़ भी निकाल दिया.

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अब मौसी के गोरे गदराये हुए शरीर पर सिर्फ़ ब्रा और पेन्टी बचे थे. उस अर्धनग्न अवस्था में वह इतनी मादक लग रही थी कि मुझे ऐसा लगने लगा कि अभी उस पर चढ़ जाऊँ और चोद डालूँ. मुझे रिझाते हुए प्रिया मौसी ने रंडीयों जैसी भाषा में पूछा. "क्यों मेरे लाडले, पहले ऊपर का माल दिखाऊँ या नीचे का?" प्रिया मौसी के माँसल स्तन उसकी ब्रा एक कपों में से मचल कर बाहर आने को कर रहे थे और पेन्टी में से मौसी की फ़ूली फ़ूली बुर का उभार और बीच की पट्टी के दोनों ओर से झांट के कुछ काले बाल निकले हुए दिख रहे थे. उन दोनों मस्त चीजों में से क्या पसंद करूँ यही मुझे समझ में नहीं आ रहा था इसलिये मैं भूखी ललचाई नज़रों से मौसी के माल को तकता हुआ चुप रहा.

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मौसी कुछ देर मेरी इस दशा को मजे ले लेकर कनखियोम से देखती रही और फ़िर मुझ पर तरस खा कर बोली. "चल पूरी नंगी हो जाती हूँ तेरे लिये." और ऐसा कहते हुए अपने उसने ब्रा के हूक खोले और हाथ ऊपर कर के ब्रेसियर निकाल दी. फ़िर पेन्टी उतार कर मादरजात नंगी मेरे सामने बड़े गर्व से खड़ी हो गयी.

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प्रिया मौसी मेकअप या किसी भी तरह के सौन्दर्य प्रसाधन में बिल्कुल विश्वास नहीं करती थी. इसलिये उसकी काँखों में घने काले बाल थे जो ब्रा निकालते समय उठी बाहों के कारण साफ़ मुझे दिखे. मौसी हमेशा स्लीवलेस ब्लाउज़ पहनती थी और बचपन से मैं उसके यह काँख के बाल देखता आया था. छोटी उमर में मुझे वे बड़े अजीब लगते थे पर आज इस मस्त माहौल में तो मेरा मन हुआ कि सीधे उसकी काँखों में मुंह डाल दूँ और चूस लूँ.

नग्न होकर मौसी मुस्कराती हुई जान बूझकर कमर लचकाती हुई एक कैबरे डांसर की मादक चाल से मेरी ओर बढ़ी. उसके मांसल भरे पूरे जरा से लटके उरोज रबर की बड़ी गेंदों जैसे उछल रही थे. निप्पल गहरे भूरे रंग के थे, बड़े मूंगफली के दानों जैसे और उनके चारों ओर तीन चार इंच का भूरा गोल अरोल था. मौसी की फ़ूली गुदाज बुर घनी काली झांटों से आच्छादित थी; ऐसा लगता था कि मौसी ने कभी झांटें नहीं काटी होंगी. कूल्हे काफ़ी चौड़े थे और जांघें तो केले के पेड के तनों जैसी मोटी मोटी थीं. मेरा लंड अब मौसी के इस मस्त जोबन से तन्नाकर फ़िर से जोर से खड़ा हो गया था और मौसी उसे देखकर बड़े प्यार से मुस्कराने लगी. उसे भी बडा गर्व लगा होगा कि एक छोटा कमसिन छोकरा उसकी अधेड उम्र के बावजूद उसपर इतना फ़िदा था और वह भी उसकी सगी बड़ी बहन का बेटा!

मेरे पास बैठकर मुझे पास खींचकर मौसी ने मेरी इच्छा पूछी कि मैं पहले उसके साथ क्या करना चाहता हूँ. अब मैं कई मायनों में अभी भी बच्चा था और बच्चों का स्वाभाविक आकर्षण तो माँ के स्तनों की ओर होता है. इसलिये मैं इन बड़े बड़े उरोजों को ताकता हुआ बोला. "मौसी, तेरे मम्मे चूसने दे ना, दबाने का मन भी हो रहा है."

मौसी ने मुझे गोद में खींच लिया और एक चूचुक मेरे मुंह में घुसेड़ दिया. मैं उस मूंगफली से लंबे निप्पल को चूसने लगा. चूसते चूसते मैंने मौसी की चूची दोनों हाथों में पकड ली और दबाने लगा. मौसी थोड़ी कराही और उसका निप्पल खजूर सा कडा हो गया. अब मैं दूध पीते बच्चे जैसा मौसी का मम्मा दबा दबा कर बुरी तरह से चूस रहा था. मेरा लंड पूरा खड़ा होकर मौसी के पेट के मुलायम माँस में गडा हुआ था. उसे मैं मस्ती में आगे पीछे होता हुआ मौसी के पेट पर ही रगडने लगा.

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कमरे में एक बड़ी मादक सुगंध भर गयी थी. जब मैंने मौसी को कहा कि उसके बदन से इतनी मस्त खुशबू कैसे आ रही है,तो उसने बताया कि वह असल में उसके चूत से निकल रहे पानी की गंध थी क्यों की मौसी की बुर अब पूरी गरम हो चुकी थी. मौसी मुझे चूमते हुए बोली. "देख मेरी चूत कितनी गीली हो कर चू रही है. तेरे मौसाजी होते तो अब तक इसपर मुंह लगाकर चूस रहे होते. वे तो दीवाने हैं मेरी बुर के रस के. तू भी इसे चखेगा बेटे?".

मैं तो मौसी की चूत पास से देखने को आतुर था ही, झट से मुंडी हिलाकर मौसी के सामने फ़र्श पर बैठ गया. मौसी टिक कर आराम से बैठ गई और अपनी जांघें फ़ैला कर मुझे उनके बीच खींच लिया.

पहले मैंने मौसी की नरम नरम चिकनी जांघों को चूमा और फ़िर उसकी चूत पर नजर जमाई. औरत के गुप्तांग का यह मेरा पहला दर्शन था और मौसी की उस रसीली बुर को मैं गौर से ऐसे देखने लगा जैसे देवी का दर्शन कर रहा हूँ. बड़े बड़े गुलाबी मुलायम भगोष्ठ, उनके बीच गीला चूता हुआ लाल गुलबी छेद और जरा से मटर के दाने जैसा क्लिटोरिस. यह सब मैं इस लिये देख पाया क्यों की मौसी ने अपनी उंगलियों से अपनी झांटें बाजू में की हुई थीं. मैं उस माल पर टूट पड़ा और जैसा मुंह में आया वैसा चाटने और चूसने लगा. मौसी ने कुछ देर तो मुझे मनमानी करने दी पर फ़िर प्यार से चूत चाटने का ठीक तरीका सिखाया.

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"ऐसे नहीं बेटे, जीभ से चाट चाट कर चूसो. झांटें बाजू में करो और जीभ अंदर डालो. फ़िर जीभ का चम्मच बनाकर अंदर बाहर करते हुए रस निकालो. हाँ ऐसे ही मेरी जान, अब जरा मेरे दाने को जीभ से गुदगुदाओ, हा य य य, बहुत अच्छे मेरे ला ऽ ल! बस ऐसा ही करता रह, देख तुझे कितना रस पिलाती हूँ"

मौसी ने जल्द ही मुझे एक्स्पर्ट जैसा सिखा दिया. मैंने मुंह से उसकी चूत पर ऐसा कर्म किया कि वह पाँच मिनट में स्खलित हो गई और मेरे मुंह को अपनी बुर के पानी से भर दिया. बुर का रस थोडा कसैला और खारा था पर बिल्कुल पिघले घी जैसा चिपचिपा. मैंने उसे पूरा मन लगाकर चाट लिया. तब तक मौसी मेरे चेहरे को अपनी चूत पर दबा कर हौले हौले धक्के मारती रही.

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मौसी ने जल्द ही मुझे एक्स्पर्ट जैसा सिखा दिया. मैंने मुंह से उसकी चूत पर ऐसा कर्म किया कि वह पाँच मिनट में स्खलित हो गई और मेरे मुंह को अपनी बुर के पानी से भर दिया. बुर का रस थोडा कसैला और खारा था पर बिल्कुल पिघले घी जैसा चिपचिपा. मैंने उसे पूरा मन लगाकर चाट लिया. तब तक मौसी मेरे चेहरे को अपनी चूत पर दबा कर हौले हौले धक्के मारती रही.

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तृप्त होकर मौसी ने मुझे उठाया और पलंग पर ले गई. "बडा फ़ास्ट लर्नर है रे तू, चूत का अच्छा गुलाम बनेगा तेरे मौसाजी की तरह. अब चल बेटे, आराम से लेट कर मज़ा लेंगे". पलम पर लेट कर मेरे फ़नफ़नाये लंड को सहलाती हुई वह बोली. "झड़ेगा तो नहीं रे जल्दी?"

मैंने उसे आश्वस्त किया और मौसी मुझे पलंग पर लिटा कर मेरे मुंह पर चढ़ बैठी. अपनी दोनों टांगें मेरे सिर के इर्द गिर्द जमाते हुए वह बोली. "अब घंटे भर तेरा मुंह चोदूँगी और तुझे बुर का रस पिलाऊँगी. मैंने वादा किया था तुझे परीक्षा में तीसरा आने पर इनाम देने का, सो अब ले, मन भर कर अपनी मौसी के अमृत का पान कर."

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अपनी चूत मेरे होंठों के इंच भर ऊपर जमाते हुई वह बोली."अब देख, तुझे इतना चूत रस पिलाऊँगी कि तेरा पेट भर जायेगा. तू बस चाटता और चूसता रह" मैं पास से उसकी रसीली चूत का नजारा देख रहा था और उसे सूंघ रहा था. इतने में वह चूत को मेरे मुंह पर दबाकर मेरे चेहरे पर बैठ गई और मेरा चेहरा अपनी घनी झांटों में छुपा लिया. मैंने मुंह मारना शुरू कर दिया और उसे ऐसा चूसा कि मौसी के मुंह से सुख की सिसकारियाँ निकलने लगी. "तू तो बुर चूसने में अपने मौसा की तरह एकदम उस्ताद हो गया एक ही घंटे में." कसमसा कर स्खलित होते हुए वह बोली.

कुछ देर मेरे मुंह पर बैठने के बाद मौसी बोली "विजय बेटे, अपनी जीभ कड़ी कर और मेरी चूत में डाल दे, तेरी जीभ को लंड जैसा चोदूँगी." मेरी कड़ी निकली हुई जीभ को मौसी ने अपने भगोष्ठों में लिया और फ़िर उछल उछल कर ऊपर नीचे होते हुई चोदने लगी. उसकी मुलायम गीली चूत की म्यान मेरी जीभ को बड़े लाड से पकडने की कोशिश कर रही थी. मेरी जीभ कुछ देर बाद दुखने लगी थी पर मैं उसे निकाले रहा जब तक मौसी फ़िर एक बार नहीं झड गई. मेरे चूत रस पीने तक वह मेरे मुंह पर बैठी रही और फ़िर उठ कर मेरे पास लेट गई और बड़े लाड से मुझे बाँहों में भर कर प्यार करने लगी. "मजा आया बेटे? कैसा लगा मेरी बुर का पानी?" उसने पूछा.

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मैं क्या कहता, सिर्फ़ यही कह पाया कि मौसी, अगर अमृत का स्वाद कोई पूछे तो मैं तो यही कहूँगा कि मेरी मौसी की चूत के रस से अच्छा तो नहीं होगा. मेरी इस बड़े बूढ़ों जैसी बात को सुनकर वह हंस पड़ी.
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जल्द ही मेरी माँ की वह चुदैल छोटी बहन फ़िर गरम हो गई और शायद मुझे चूत चुसाने का सोच रही थी पर मेरा वासना से भरा चेहरा देख कर वह मेरी दशा समझ गई. "विजय, तू इतना तडप रहा है झडने के लिये, मैं तो भूल ही गयी थी. चल अब सिक्स्टी-नाइन करते हैं, तू मेरी चूत चूस और मैं तेर लंड चूसती हूँ."

मुझे अपने सामने उल्टी तरफ़ से लिटा कर मौसी ने अपनी एक टांग उठायी और मेरे चेहरे को अपनी बुर में खींच लिया. फ़िर अपनी टांग नीचे करके मेरे सिर को जांघों में जकडती हुई बोली. "मेरी निचली जांघ का तकिया बना कर लेट जा. मेरी झांटों के बीच तेरा सिर दबता है उसकी तकलीफ़ तो नहीं होती तुझे? असल में मुझे बहुत अच्छा लगता है तेरे सिर को ऐसा पकड़कर"

मैंने सिर्फ़ सिर हिलाया क्यों की मेरे होंठ तो मौसी की चूत के होंठों ने, उन मोटे भगोष्ठों ने पकड रखे थे. उसकी रेशमी सुगंधित झांटों में मुंह छुपाकर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी सुंदरी की झूलफ़ों में मैं मुंह छुपाये हूँ. मौसी ने अब धक्के दे देकर मेरे मुंह पर अपनी चूत रगडते हुए हस्तमैथुन करना शुरू कर दिया.

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फ़िर मौसी ने मेरी कमर पकड़कर मुझे पास खींचा और मेरे लंड को चूमने लगी. कुछ देर तक तो वह मेरे शिश्न से बड़े प्यार से खेलती रही, कभी उसे चूमती, जोर से हिलाती, कभी हल्के से सुपाडा चाट लेती. मस्ती में आकर मैं उसकी चूत के भगोष्ठ पूरे मुंह में भर लिये और किसी फ़ल जैसा चूसने लगा. मौसी हुमककर मेरे मुंह में स्खलित हो गई. मुझे चूत रस पिलाने के बाद उसने मेरा लंड पूरा लॉलीपॉप जैसा मुंह में ले लिया और चूसने लगी. मैं तो मानों कामदेव के स्वर्ग में पहुँच गया. मौसी के गरम तपते मुंह ने और मेरे पेट पर महसूस होती हुई उसकी गरम साँसों ने ऐसा जादू किया कि मैं तिलमिला कर झड गया. मौसी चटखारे ले ले कर मेरा वीर्यपान करने लगी.

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मेरी वासना शांत होते ही मैंने चूत चूसना बंद कर दिया था. मौसी ने मेरा झडा हुआ जरा सा लंड मुंह से निकाला और मुझे डांटते हुई बोली. "बुर चूसना क्यों बंद कर दिया बेटे? अपना काम हो गया तो चुप हो गये? तू चूसता रह राजा, मेरी बुर अब भी खेलने के मूड में है, उसमें अभी बहुत रस है अपने लाल के लिये." मैं सॉरी कहकर फ़िर चूत चूसने लगा और मौसी मजे ले लेकर मेरे लंड को चूस कर फ़िर खड़ा करने के काम में लग गयी. आधे घंटे में मैं फ़िर तैयार था और तब तक मौसी तीन चार बार मेरे मुंह में झडकर मुझे चिपचिपा शहद पिला चुकी थी.

हम पड़े पड़े आराम करने लगे. वह मेरे लंड से खेलती रही और मैं पास से उसकी खूबसूरत चूत का मुआयना करने लगा. उंगलियों से मैंने मौसी की चूत फ़ैलायी और खुले छेद में से अंदर देखा. ऐसा लग रहा था कि काश मैं छोटा चार पाँच इंच का गुड्डा बन जाऊँ और उस मुलायम गुफ़ा में घुस ही जाऊँ. पास से उसका क्लिटोरिस भी बिलकुल अनार के दाने जैसा कडा और लाल लाल लग रहा था और उसे मैं बार बार जीभ से चाट रहा था. मौसी की झांटों का तो मैं दीवाना हो चुका था. "मौसी, तुम्हारी रेशमी झांटें कितनी घनी हैं. इनमें से खुशबू भी बहुत अच्छी आती है, जैसे डाबर आमला वाली सुंदरी के बाल हों."

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मौसी आराम करने के बाद और मेरे उसकी चूत से खेलने के कारण फ़िर कामुक नटखट मूड में आ गयी थी. मुझसे बोली "मालूम है मैं जब अकेली होती हूँ तो क्या करती हूँ? यह मेरी बहुत पुरानी आदत है, तब से जब मैं दस साल की थी. और कभी कभी तो तेरे मौसाजी की फ़रमाइश पर भी यह नज़ारा उन्हें दिखाती हूँ." मैंने उत्सुकता से पूछा कि वह क्या करेगी. "अरे, हस्तमैथुन करूंगी, जिसे आत्मरति भी कहते हैं, या खड़ी बोली में कहो तो मुठ्ठ मारूँगी, या सडका लगाऊँगी. मुझे मालूम है कि तेरे जैसे हरामी लडके भी हमेशा यही करते हैं. बोल तू मेरे नाम से सडका मारता था या नहीं?" मैंने झेंप कर स्वीकार किया कि बात सच थी.

मेरे सामने फ़िर मौसी ने मुठ्ठ मार कर दिखाई. अपनी ऊपरी टांग उठा कर घुटना मोड कर पैर नीचे रखा और अपनी दो उँगलियाँ चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगी. मैं अभी भी मौसी की निचली जांघ को तकिया बनाये लेटा था इसलिये बिलकुल पास से मुझे उसके हस्तमैथुन का साफ़ द्रूश्य दिख रहा था. मौसी का अंगूठा बड़ी सफ़ाई से अपने ही मणि पर चल रहा था. बीच बीच में मैं मौसी की चूत को चूम लेता और हस्तमैथुन के कारण निकलते उस चिकने पानी को चाट लेता. मेरी तरफ़ शैतानी भरी नज़रों से देखते देखते मौसी ने मन भर कर आत्मरति की और आखिर एक सिसकारी लेकर झड गई.

लस्त होकर मौसी ने तृप्ति की सांस ली और अपनी दोनों उँगलियाँ चूत में से निकालकर मेरी नाक के पास ले आई. "सूंघ विजय, क्या मस्त मदभरी सुगंध है देख. मुझे भी अच्छी लगती है, फ़िर पुरुषों को तो यह मदहोश कर देगी" मैंने देखा कि उँगलियाँ ऐसी लग रही थीं जैसे किसी ने सफ़ेद चिपचिपे शहद की बोतल में डुबोई हों. मैंने तुरंत उन्हें मुंह में लेकर चाट लिया और फ़िर मौसी की चूत पर मुंह लगाकर सारा रस चाट चाट कर साफ़ कर दिया. मौसी ने भी बड़े प्यार से टांगें फ़ैला कर अपनी झड़ी चूत चटवाई.

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मैं अब वासना से अधीर हो चुका था और आखिर साहस करके प्रिया मौसी से पूछ ही लिया. "मौसी, चोदने नहीं दोगी तुम मुझे? उस रात जैसा? " मौसी बोली "हा ऽ य, कितनी दुष्ट हूँ मैं! भूळ ही गई थी. अरे असल में चोदना तो मेरे और तेरे मौसाजी के लिये बिलकुल सादी बात हो कर रह गयी है. हमारा ध्यान इधर उधर की सोच कर और तरह की क्रिया करने में ज्यादा रहता है. आ जा मेरे लाल, चोद ले मुझे."

टांगें फ़ैला कर मौसी चूतड़ों के नीचे एक तकिया लेकर लेट गई और मैं झट से उसकी जांघों के बीच बैठ गया. मौसी ने मेरा लंड पकडा और अपनी चूत में घुसेड़ लिया. उस गरम तपती गीली बुर में वह बड़ी आसानी से जड तक समा गया. मैं मौसी के ऊपर लेट गया और उसे चोदने लगा.

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मौसी ने मेरे गले में बाँहें डाल दीं और मुझे खींच कर चूमने लगी. मैंने भी अपने मुंह में उसके रसीले लाल होंठ पकड लिये और उन्हें चूसता हुआ हचक हचक कर पूरे जोर से मौसी को चोदने लगा. इस समय कोई हमें देखता तो बडा कामुक नज़ारा देखता कि एक किशोर लड़का अपनी माँ की उमर की एक भरे पूरे शरीर की अधेड औरत पर चढ़ कर उसे चोद रहा है.

कुछ मिनटों बाद मौसी ने मेरा सिर अपनी छातियों पर दबा लिया और एक निप्पल मेरे मुंह में दे दिया. फ़िर मेरा सिर कस कर अपनी चूची पर दबा कर आधे से ज्यादा मम्मा मेरे मुंह में घुसेडकर गांड उचका उचका कर चुदाने लगी. साथ ही मुझे उत्तेजित करने को वह गंदी भाषा में मुझे उत्साहित करने लगी. "चोद साले अपनी मौसी को जोर जोर से, और जोरे से धक्क लगा. घुसेड़ अपना लंड मेरी बुर में, हचक कर चोद हरामी, फ़ाड दे मेरी चूत"

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मैने भरसक पूरी मेहनत से मौसी को चोदा जब तक वह चिल्ला कर झड नहीं गई. "झड गयी रे राजा, खलास कर दिया तूने मुझे! मर गई रे, हा ऽ य" कहकर वह लस्त पड गई. फ़िर मैं भी जोर से स्खलित हुआ और लस्त होकर मौसी के गुदाज शरीर पर पड़ा पड़ा उस स्वर्गिक सुख का मजा लेता रहा.

मौसी मुझे चूम कर बोली. "मेरे मुंह से ऐसी गंदी भाषा और गालियां सुनकर तुझे बुरा तो नहीं लगता बेटे?" मैंने कहा "नहीं मौसी, बल्कि लौडा और खड़ा हो जता है." वह बोली. "मुझे भी मस्ती चढ़ती है. हम रोज बोल चाल में इतनी सभ्य भाषा बोलते हैं इसीलिये ऐसी भषा से कामवासना बढ़ती है. तेरे मौसाजी भी खूब बकते हैं जब तैश में होते हैं."

मैं इतना थक गया था मौसी से गप्पें लगाते लगाते ही कब मेरी आँख लग गई, मुझे पता भी नहीं चला.

जब मैं सुबह उठा तो मौसी किचन में काम कर रही थी. मुझे जगा देखकर मेरे लिये ग्लास भर दूध लेकर आई. उसने एक पतला गाउन पहना था और उसके बारीक कपड़े में से उसके उभरे स्तन और खड़े चूचुक साफ़ दिख रहे थे. मेरा चुंबन लेकर वह पास ही बैठ गई. मैं दूध पीने लगा तब तक वह मेरे लंड को हाथ से बड़े प्यार से सहलाती रही.

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दूध खतम करके जब मैंने पहनने को कपड़े मांगे तो हंस कर प्रिया मौसी बोली. "छुपा दिये मैने, मेरे लाडले, अब तो जब तक तू यहाँ है, कपड़े नहीं पहनेगा और घर में नंगा ही घूमेगा, अपना तन्नाया प्यारा लंड लेकर. जब भी चाहूँगी, मैं तुझे चोद लूँगी. कोई आये तो अंदर छुप जाना. कपड़े पहनना ही हो तो मैं बता दूँगी. पर अब नहाने को चल"

बाथरूम में जाकर मौसी ने झट से गाउन उतार दिया. दिन के तेज प्रकाश में तो उसका मादक भरापूरा शरीर और भी लंड खड़ा करने वाला लग रहा था. शॉवर चालू करके मौसी मुझे साबुन लगाने लगी. अगले कुछ मिनट वह मेरे के शरीर को मन भर सहलाती और दबाती रही. उसने मेरे लंड को इतना साबुन लगाकर रगडा कि आखिर मुझे लगा कि मैं झड जाऊंगा. लंड बुरी तरह से सूज कर उछल रहा था. पर फ़िर मौसी ने हंस कर अपना हाथ हटा लिया.

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"इसको अब दिन भर खड़ा रहना सिखा दो, खड़ा रहेगा तब तू दिन भर मैं कहूँगी वैसे मेरी सेवा करेगा." मैंने भी मौसी से हठ किया कि मुझे उसे साबुन लगाने दे. मौसी मान गयी और आराम से अपने हाथ ऊपर करके खड़ी हो गई. मैंने जब उसकी काँखों में साबुन लगाया तो उन घुम्घराले घने बालों का स्पर्श बडा अच्छा लगा. मौसी के स्तन मैंने साबुन लगाने के बहाने खूब दबाये. फ़िर जब उसकी बुर पर पहुंचा तो उन घनी झांटों में साबुन का ऐसा फ़ेन आया कि क्या कहना. मौसी की फ़ूली बुर की लकीर में भी मैंने उंगली डाल कर खूब रगडा.

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"इसको अब दिन भर खड़ा रहना सिखा दो, खड़ा रहेगा तब तू दिन भर मैं कहूँगी वैसे मेरी सेवा करेगा." मैंने भी मौसी से हठ किया कि मुझे उसे साबुन लगाने दे. मौसी मान गयी और आराम से अपने हाथ ऊपर करके खड़ी हो गई. मैंने जब उसकी काँखों में साबुन लगाया तो उन घुम्घराले घने बालों का स्पर्श बडा अच्छा लगा. मौसी के स्तन मैंने साबुन लगाने के बहाने खूब दबाये. फ़िर जब उसकी बुर पर पहुंचा तो उन घनी झांटों में साबुन का ऐसा फ़ेन आया कि क्या कहना. मौसी की फ़ूली बुर की लकीर में भी मैंने उंगली डाल कर खूब रगडा.

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फ़िर मैं फ़र्श पर बैठ कर मौसी की जांघों और पिंडलियों को साबुन लगाने लगा. उसके पीछे बैठ कर मैंने जब उसके नितंबों को साबुन लगाया तो मेरा बदन थरथरा उठा. गोरे भरे पूरे चूतड और उनमें की वह गहरी लकीर, ऐसा लगता था कि चाट लूँ और फ़िर अपना लंड उसमें डाल दूँ. पर किसी तरह मैंने सब्र किया कि कहीं वह बुरा न मान जाये. जब मैं मौसी के पैरों तक पहुंचा तो मेरा तन्नाया लंड और उछलने लगा क्यों की मौसी के पैर बड़े खूबसूरत थे. बिलकुल गोरे और चिकने, पैरों की उँगलियाँ भी नाजुक और लम्बी थीं; उनपर मोतिया रंग का नेल पॉलिश तो और कहर ढा रहा था.

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बचपन से ही मुझे औरतों के पैर बड़े अच्छे लगते थे. माँ बताती थी कि मैं जब छोटा था तो खिलौने छोडकर उसकी चप्पलों से ही खेला करता था. इसलिये मौसी के कोमल चरण देख मुझसे न रहा गया और झुक कर मैंने उन्हें चूम लिया. फ़िर मैं बेतहाशा उन्हें चाटने और चूमने लगा. मौसी के पैर उठा कर उसके गुलाबी चिकने तलवे चाटने में तो वह मजा आया कि जो अवर्णनीय है. मौसी को भी बडा मजा आ रहा था. जब मैं उसका पैर का अंगूठा मुंह में लेकर चूसने लगा तो वह बोली. "मौसी की चरण पूजा कर रहा है, बहुत प्यारा लड़का है, मौसी खुश होकर और आशीर्वाद देगी तुझे."

शॉवर चालू करके प्रिया मौसी यह कहते हुए पैर फ़ैला कर दीवार से टिक कर खड़ी हो गई और मेरे कान पकड़ कर मेरा सिर अपनी धुली चमकती चूत पर दबा लिया. मैं मौसी की टांगों के बीच बैठकर उसकी बुर चूसने लगा. बुर में से टपक कर गिरता ठंडा शॉवर का पानी बुर के रस से मिलकर शरबत सा लग रहा था. झडने के बाद भी मौसी मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाये रही. "प्यार से आराम से चूसो बेटे, कोई जल्दी नहीं है, मेरी बुर लबालब भरी है, जितना रस पियोगे, उतना तेरा ज्यादा खड़ा होगा."

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आखिर नहाना समाप्त कर हम बदन पोछते हुए बाहर आए. मौसी तो एक बार झड ली थी और बड़ी खुश थी पर मेरा हाल बुरा था. फ़नफ़नाते लंड के कारण चलना भी मुझे बडा अजीब लग रहा था. पर मौसी मुझे झडाने को अभी तैयार नही थी.

हमने नाश्ता किया और मौसी ब्लाउज़ और साड़ी पहन कर अपना काम करने लगी. मुझे उसने वहीं अपने सामने एक कुर्सी में ही नंगा बिठा लिया जिससे मेरे लंड को उछलता हुआ देख कर मजा ले सके. सहन न होने से मैंने अपने लंड को पकड़कर मुठियाने की कोशिश की तो एक करारा थप्पड मेरे गाल पर रसीद हुआ. "लंड को छूना भी मत, नहीं तो बहुत मार खायेगा." वह गुस्से से बोली. मेरे लंड पर अब मेरा कोई अधिकार नहीं था, सिर्फ़ उसका था और यह बात उस तमाचे के साथ उसने मुझे समझा दी थी. तमाचे से मेरा सिर झन्ना गया पर मजा भी बहुत आया. ऐसा लगा कि जैसे मैं अपनी मौसी का गुलाम हूँ और वह मेरी मालकिन!

सब्जी बना कर मौसी आखिर हाथ पोंछती हुई मेरे पास आई. अब तक तो मैं पागल सा होकर वासना से सिसक रहा था. लंड तो ऐसा सूज गया था जैसे फ़ट जाएगा. मौसी को आखिर मुझ पर दया आ गई. मेरे सामने एक नीचे मूढ़े पर बैठ कर उसने अपना मुंह खोल दिया और मुझे पास बुलाया. मैं समझ गया और खुशी खुशी दौडकर मौसी के पास खड़े होकर उसके मुंह में अपना लंड डाल दिया.

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मौसी ने उसे पूरा निगल लिया और फ़िर बड़े लाड से धीरे धीरे चूसने लगी. अपनी जीभ से उसे रगडा और थोडा चबाया भी. उसे भी एक किशोर लंड को चूसने में बडा मजा आ रहा था. मैं पाँच मिनट में ही कसमसा कर झड गया और मौसी के सिर को पकड़ कर कस कर अपने पेट पर दबा लिया. पूरा वीर्य चूसकर मौसी ने लंड मुंह से निकाला और प्यार से पूछा "मजा आया बेटे? राहत मिली? अब तो मौसी की सेवा करेगा कुछ?"

मेरे खुशी खुशी हामी भरने पर मौसी ने टेबल के दराज में से एक किताब निकाली. किताब पर आपस में लिपटी हुई दो नंगी औरतों का चित्र देख कर ही मैं समझ गया कि कैसी किताब है. मैंने भी किशोरावस्था में आने के बाद ऐसी खूब किताबें पढ़ी थीं और मुठ्ठ मारते हुए उन्हें पढने का आनंद लिया था. मौसी सोफ़े में बैठते हुए बोली. "विजय, ऐसी काम-क्रीडा वाली किताबों को पढ़ते पढ़ते मैं हमेशा खुद को उंगली करती हूँ. पर आज तो तू है, मेरी चूत चूस दे बेटे, बडा मज़ा आयेगा तुझसे चूत चुसवाते हुए इसे पढने में."

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मौसी ने अपनी साड़ी उठाकर अपनी नंगी बाल भरी चूत दिखाई और मुझे अपने काम में जुट जाने को कहा. मैं उसकी टांगों के बीच बैठ गया और मुंह लगाकर बुर चूसने लगा. मौसी ने मेरे सिर को कस कर अपनी चूत में दबाया और फ़िर पैरों को सिमटाकर मेरे सिर को अपनी जांघों में दबाकर बैठ गई. साड़ी मेरे शरीर के ऊपर से ढक कर उसने नीचे कर ली और मैं पूरा उस साड़ी में छुप गया. फ़िर आगे पीछे होकर मेरे मुंह पर मुठ्ठ मारती हुए उसने किताब पढना शुरू किया.

पढ़ते पढ़ते मस्ती से सिसककर बोली "विजय डार्लिंग, क्या मजा आ रहा है आज यह किताब पढने में, मालूम है इसमें क्या है? ननद भाभी की प्रेम कथा है, और अभी मैं जो पढ़ रही हूँ उसमें ननद अपनी भाभी की चूत चूस रही है, हाऽय मेरे राजा, तू तो मुझे दिख भी नहीं रहा है, ऐसा लगता है जैसे तू पूरा मेरी बुर में समा गया है."

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मौसी ने एक घंटे में पूरी किताब पढ़ डाली और तभी उठी. उस एक घंटे में मैंने चूस चूस कर उसे कम से कम चार बार झडाया होगा.

अब खाने का समय भी हो गया था इसलिये मौसी साड़ी संभालती हुई उठी. तृप्त स्वर में मुझे बोली. "विजय बेटे, आज मैं इतना झड़ी हूँ जितना कभी नहीं झड़ी. चल मांग क्या मांगता है तेरे इनाम में"

मैं मौसी को चोद कर उसकी चूत का स्वाद बदलना नहीं चाहता था. अभी दिन भर मैं चूत चूसना चाहता था, चोदना तो रात को सोने के पहले ही ठीक रहेगा ऐसा मैंने सोचा. पर मेरा ध्यान बड़ी देर से मौसी के गोरे गोरे नरम नरम भारी भरकम चूतड़ों पर था. किताबों में भी ’गांड मारने’ के बहुत किस्से मैं पढ़ चुका था इसलिये अब मेरी तीव्र इच्छा थी कि मौसी की गांड मारूँ. डरते डरते और शरमाते हुए मैंने मौसी से अपनी इच्छा जाहिर की.

मौसी हंसने लगी. "सब मर्द एक से होते हैं, तू भी झांट सा छोकरा और मेरी गांड मारेगा? चल ठीक है मेरे लाल, पर खाने के बाद दोपहर में मारना. और मारने के पहेले एक बार और मेरी चूत चूसना." मैं खुशी से उछल पड़ा और मौसी को चूम लिया. मौसी ने जबरदस्ती मुझे चड्डी पहना दी नहीं तो उसके ख्याल में मैं खाने के पहले ही झड जाता, इतना उत्तेजित मैं हो गया था.

मौसी जब तक किचन प्लेटफ़ॉर्म के सामने खड़ी होकर चपातियाँ बना रही थी, मैं उसके पीछे खड़ा होकर ब्लाउज़ पर से ही उसकी चूचियाँ मसलता रहा और अपना मुंह उसके घने खुले बालों में छुपाकर उसकी झुलफें चूमता रहा. चड्डी के नीचे से ही मैं उसके साड़ी के ऊपर से चूतड़ों के बीच की खाई में अपना लंड रगडता रहा और मौसी को भी इसमें बडा मजा आया. जल्दी से खाना खाकर मैं भाग कर बेडरूम में आ गया और मौसी का इंतज़ार करने लगा.

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मौसी आधे घंटे बाद आई. मैंने मचल कर अपने बचपन के अंदाज में कहा. "मौसी, जाओ मैं तुझ से कट्टी, कितनी देर लगा दी!" अपनी साड़ी और ब्लाउज़ निकलती हुए उसने मुझे समझाया "बेटे, अपनी नौकरानी कमला बाई छुट्टी पर है इसलिये सब काम भी मुझे ही करने पडते हैं. चल. अब मैं आ गयी मेरे राजा बेटा के पास, अपनी गांड मराने को. पर पहले तू अपना काम कर, जल्दी से एक बार मेरी चूत चूस ले"

नग्न होकर टांगें फ़ैला कर वह बिस्तर पर लेट गई और मुझे पास बुलाया. मैं कूदकर उसकी टांगों के बीच लेट गया और उसकी बुर चाटने लगा. मेरी जीभ चलते ही मौसी ने मेरा सिर पकडा और चूतड उछाल उछाल कर चूत चुसवाने लगी. "बहुत अच्छी चूत चूसता है रे तू. मालूम है इस काम के बड़े पैसे मिलते हैं चिकने युवकों को. इन धनवान मोटी सेठानियों को तो बहुत चस्का रहता है इसका, उनके पति तो कभी उनकी चूसते नहीं. उन औरतों को तेरे जैसा चिकना छोकरा मिले तो हजारों रुपये देंगी तुझसे चूत चुसवाने के लिये"

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मौसी का स्खलन होने के बाद जब वह शांत हुई तो वायदे के अनुसार पट होकर पलंग पर लेट गई. अपने मोटे नितंब हिला हिला कर उसने मुझे दावत दी. "ले विजय, जो करना है वह कर मेरे चूतड़ों के साथ. यह अब तेरे हैं बेटे"

मैं कुछ देर तक तो उन तरबूझों जैसे विशाल गोरे चिकने नितंबों को देखता रहा, फ़िर मैं उनपर टूट पड़ा. मन भर के मैंने उन्हें दबाया, मसला, चूमा, चाटा और आखिर में मौसी के गुदाद्वार पर मुंह लगाकर उस कोमल छेद को चूसने लगा, यहाँ तक कि मैंने उसमें अपनी जीभ भी डाल दी. गांड का स्वाद और गंध इतनी मादक थी कि मैं और काबू न कर पाया और मौसी पर चढ़ बैठा.

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अपने लंड के सुपाड़े को मैंने उस छेद पर रखा और जोर से पेला. मुझे लगा कि गांड के छेद में लंड जाने में कुछ कठिनाई होगी पर मेरा लंड बड़े प्यार से मौसी की गांड में समा गया. अंदर से मौसी की गांड इतनी मुलायम और चिकनी थी और इतनी तपी हुई थी कि जब तक मैं ठीक से मौसी के शरीर पर लेट कर उसकी गांड मारने की तैयारी करता, मैं करीब करीब झडने को आ गया. बस तीन चार धक्के ही लगा पाया और स्खलित हो गया. इतना सुखद अनुभव था कि मैं मौसी की पीठ पर पड़ा पड़ा सिसकने लगा, कुछ सुख से और कुछ इस निराशा से कि इतनी मेहनत के बाद जब गांड मारने का मौका मिला तो उस का पूरा मजा नहीं ले पाया.

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प्रिया मौसी मेरी परेशानी समझ गई और बड़े प्यार से उसने मुझे सांत्वना दी. अपने गुदा की पेशियों से मेरा झडा लंड कस कर पकड लिया और बोली. "बेटे, रो मत, मैं तुझे उतरने को थोड़े कह रही हूँ! अभी फ़िर से खड़ा हो जाएगा तेरा लंड, आखिर इतना जवान लड़का है, तब जी भर कर गांड मार लेना."

मेरा कुछ ढाढस बंधा क्यों की मैं डर रहा था कि मौसी अब फ़िर रात तक गांड नहीं मारने देगी और फ़िर से मुझसे चूत चुसवाने में लग जाएगी. मैंने प्यार से मौसी की पीठ चूमी और पड़ा पड़ा अपना लंड मुठिया कर फ़िर खड़ा करने की कोशिश करने लगा. मौसी ने प्यार से मुझे उलाहना दिया "लेटे लेटे मौसी के मम्मे तो दबा सकता है ना मेरा प्यार भाँजा? बड़ी गुदगुदी हो रही है छातियों में, जरा मसल दे बेटे"

शर्मा कर मैंने अपने हाथ मौसी के शरीर के इर्द गिर्द लपेटे और उसके मोटे मोटे स्तन हथेलियों में ले लिये. उन्हें दबाता हुआ मैं धीरे धीरे मौसी की गांड में लंड उचकाने लगा. मौसी के निप्पल धीरे धीरे कठोर होकर खड़े हो गये और मौसी भी मस्ती से चहकने लगी. मेरा लंड अब तेजी से खड़ा हो रहा था और अपने आप मौसी के गुदा की गहराई में घुस रहा था.

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प्रिया मौसी ने भी अपनी गांड के छल्ले से उसे कस के पकडा और गाय के थन जैसा दुहने लगी. पर मैंने अभी भी धक्के लगाना शुरू नहीं किया क्यों की इस बार मैं खूब देर तक उसकी गांड मारना चाहता था. अब मौसी ही इतनी गरम हो गई कि मुझे डाँट कर बोली. "विजय, बहुत हो गया खेल, मार अब मेरी गांड. चोद डाल उसे"

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