Ajju Landwalia
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"इसको अब दिन भर खड़ा रहना सिखा दो, खड़ा रहेगा तब तू दिन भर मैं कहूँगी वैसे मेरी सेवा करेगा." मैंने भी मौसी से हठ किया कि मुझे उसे साबुन लगाने दे. मौसी मान गयी और आराम से अपने हाथ ऊपर करके खड़ी हो गई. मैंने जब उसकी काँखों में साबुन लगाया तो उन घुम्घराले घने बालों का स्पर्श बडा अच्छा लगा. मौसी के स्तन मैंने साबुन लगाने के बहाने खूब दबाये. फ़िर जब उसकी बुर पर पहुंचा तो उन घनी झांटों में साबुन का ऐसा फ़ेन आया कि क्या कहना. मौसी की फ़ूली बुर की लकीर में भी मैंने उंगली डाल कर खूब रगडा.
फ़िर मैं फ़र्श पर बैठ कर मौसी की जांघों और पिंडलियों को साबुन लगाने लगा. उसके पीछे बैठ कर मैंने जब उसके नितंबों को साबुन लगाया तो मेरा बदन थरथरा उठा. गोरे भरे पूरे चूतड और उनमें की वह गहरी लकीर, ऐसा लगता था कि चाट लूँ और फ़िर अपना लंड उसमें डाल दूँ. पर किसी तरह मैंने सब्र किया कि कहीं वह बुरा न मान जाये. जब मैं मौसी के पैरों तक पहुंचा तो मेरा तन्नाया लंड और उछलने लगा क्यों की मौसी के पैर बड़े खूबसूरत थे. बिलकुल गोरे और चिकने, पैरों की उँगलियाँ भी नाजुक और लम्बी थीं; उनपर मोतिया रंग का नेल पॉलिश तो और कहर ढा रहा था.
बचपन से ही मुझे औरतों के पैर बड़े अच्छे लगते थे. माँ बताती थी कि मैं जब छोटा था तो खिलौने छोडकर उसकी चप्पलों से ही खेला करता था. इसलिये मौसी के कोमल चरण देख मुझसे न रहा गया और झुक कर मैंने उन्हें चूम लिया. फ़िर मैं बेतहाशा उन्हें चाटने और चूमने लगा. मौसी के पैर उठा कर उसके गुलाबी चिकने तलवे चाटने में तो वह मजा आया कि जो अवर्णनीय है. मौसी को भी बडा मजा आ रहा था. जब मैं उसका पैर का अंगूठा मुंह में लेकर चूसने लगा तो वह बोली. "मौसी की चरण पूजा कर रहा है, बहुत प्यारा लड़का है, मौसी खुश होकर और आशीर्वाद देगी तुझे."
शॉवर चालू करके प्रिया मौसी यह कहते हुए पैर फ़ैला कर दीवार से टिक कर खड़ी हो गई और मेरे कान पकड़ कर मेरा सिर अपनी धुली चमकती चूत पर दबा लिया. मैं मौसी की टांगों के बीच बैठकर उसकी बुर चूसने लगा. बुर में से टपक कर गिरता ठंडा शॉवर का पानी बुर के रस से मिलकर शरबत सा लग रहा था. झडने के बाद भी मौसी मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाये रही. "प्यार से आराम से चूसो बेटे, कोई जल्दी नहीं है, मेरी बुर लबालब भरी है, जितना रस पियोगे, उतना तेरा ज्यादा खड़ा होगा."
आखिर नहाना समाप्त कर हम बदन पोछते हुए बाहर आए. मौसी तो एक बार झड ली थी और बड़ी खुश थी पर मेरा हाल बुरा था. फ़नफ़नाते लंड के कारण चलना भी मुझे बडा अजीब लग रहा था. पर मौसी मुझे झडाने को अभी तैयार नही थी.
हमने नाश्ता किया और मौसी ब्लाउज़ और साड़ी पहन कर अपना काम करने लगी. मुझे उसने वहीं अपने सामने एक कुर्सी में ही नंगा बिठा लिया जिससे मेरे लंड को उछलता हुआ देख कर मजा ले सके. सहन न होने से मैंने अपने लंड को पकड़कर मुठियाने की कोशिश की तो एक करारा थप्पड मेरे गाल पर रसीद हुआ. "लंड को छूना भी मत, नहीं तो बहुत मार खायेगा." वह गुस्से से बोली. मेरे लंड पर अब मेरा कोई अधिकार नहीं था, सिर्फ़ उसका था और यह बात उस तमाचे के साथ उसने मुझे समझा दी थी. तमाचे से मेरा सिर झन्ना गया पर मजा भी बहुत आया. ऐसा लगा कि जैसे मैं अपनी मौसी का गुलाम हूँ और वह मेरी मालकिन!
सब्जी बना कर मौसी आखिर हाथ पोंछती हुई मेरे पास आई. अब तक तो मैं पागल सा होकर वासना से सिसक रहा था. लंड तो ऐसा सूज गया था जैसे फ़ट जाएगा. मौसी को आखिर मुझ पर दया आ गई. मेरे सामने एक नीचे मूढ़े पर बैठ कर उसने अपना मुंह खोल दिया और मुझे पास बुलाया. मैं समझ गया और खुशी खुशी दौडकर मौसी के पास खड़े होकर उसके मुंह में अपना लंड डाल दिया.
मौसी ने उसे पूरा निगल लिया और फ़िर बड़े लाड से धीरे धीरे चूसने लगी. अपनी जीभ से उसे रगडा और थोडा चबाया भी. उसे भी एक किशोर लंड को चूसने में बडा मजा आ रहा था. मैं पाँच मिनट में ही कसमसा कर झड गया और मौसी के सिर को पकड़ कर कस कर अपने पेट पर दबा लिया. पूरा वीर्य चूसकर मौसी ने लंड मुंह से निकाला और प्यार से पूछा "मजा आया बेटे? राहत मिली? अब तो मौसी की सेवा करेगा कुछ?"
मेरे खुशी खुशी हामी भरने पर मौसी ने टेबल के दराज में से एक किताब निकाली. किताब पर आपस में लिपटी हुई दो नंगी औरतों का चित्र देख कर ही मैं समझ गया कि कैसी किताब है. मैंने भी किशोरावस्था में आने के बाद ऐसी खूब किताबें पढ़ी थीं और मुठ्ठ मारते हुए उन्हें पढने का आनंद लिया था. मौसी सोफ़े में बैठते हुए बोली. "विजय, ऐसी काम-क्रीडा वाली किताबों को पढ़ते पढ़ते मैं हमेशा खुद को उंगली करती हूँ. पर आज तो तू है, मेरी चूत चूस दे बेटे, बडा मज़ा आयेगा तुझसे चूत चुसवाते हुए इसे पढने में."
मौसी ने अपनी साड़ी उठाकर अपनी नंगी बाल भरी चूत दिखाई और मुझे अपने काम में जुट जाने को कहा. मैं उसकी टांगों के बीच बैठ गया और मुंह लगाकर बुर चूसने लगा. मौसी ने मेरे सिर को कस कर अपनी चूत में दबाया और फ़िर पैरों को सिमटाकर मेरे सिर को अपनी जांघों में दबाकर बैठ गई. साड़ी मेरे शरीर के ऊपर से ढक कर उसने नीचे कर ली और मैं पूरा उस साड़ी में छुप गया. फ़िर आगे पीछे होकर मेरे मुंह पर मुठ्ठ मारती हुए उसने किताब पढना शुरू किया.
पढ़ते पढ़ते मस्ती से सिसककर बोली "विजय डार्लिंग, क्या मजा आ रहा है आज यह किताब पढने में, मालूम है इसमें क्या है? ननद भाभी की प्रेम कथा है, और अभी मैं जो पढ़ रही हूँ उसमें ननद अपनी भाभी की चूत चूस रही है, हाऽय मेरे राजा, तू तो मुझे दिख भी नहीं रहा है, ऐसा लगता है जैसे तू पूरा मेरी बुर में समा गया है."
मौसी ने एक घंटे में पूरी किताब पढ़ डाली और तभी उठी. उस एक घंटे में मैंने चूस चूस कर उसे कम से कम चार बार झडाया होगा.
अब खाने का समय भी हो गया था इसलिये मौसी साड़ी संभालती हुई उठी. तृप्त स्वर में मुझे बोली. "विजय बेटे, आज मैं इतना झड़ी हूँ जितना कभी नहीं झड़ी. चल मांग क्या मांगता है तेरे इनाम में"
मैं मौसी को चोद कर उसकी चूत का स्वाद बदलना नहीं चाहता था. अभी दिन भर मैं चूत चूसना चाहता था, चोदना तो रात को सोने के पहले ही ठीक रहेगा ऐसा मैंने सोचा. पर मेरा ध्यान बड़ी देर से मौसी के गोरे गोरे नरम नरम भारी भरकम चूतड़ों पर था. किताबों में भी ’गांड मारने’ के बहुत किस्से मैं पढ़ चुका था इसलिये अब मेरी तीव्र इच्छा थी कि मौसी की गांड मारूँ. डरते डरते और शरमाते हुए मैंने मौसी से अपनी इच्छा जाहिर की.
मौसी हंसने लगी. "सब मर्द एक से होते हैं, तू भी झांट सा छोकरा और मेरी गांड मारेगा? चल ठीक है मेरे लाल, पर खाने के बाद दोपहर में मारना. और मारने के पहेले एक बार और मेरी चूत चूसना." मैं खुशी से उछल पड़ा और मौसी को चूम लिया. मौसी ने जबरदस्ती मुझे चड्डी पहना दी नहीं तो उसके ख्याल में मैं खाने के पहले ही झड जाता, इतना उत्तेजित मैं हो गया था.
मौसी जब तक किचन प्लेटफ़ॉर्म के सामने खड़ी होकर चपातियाँ बना रही थी, मैं उसके पीछे खड़ा होकर ब्लाउज़ पर से ही उसकी चूचियाँ मसलता रहा और अपना मुंह उसके घने खुले बालों में छुपाकर उसकी झुलफें चूमता रहा. चड्डी के नीचे से ही मैं उसके साड़ी के ऊपर से चूतड़ों के बीच की खाई में अपना लंड रगडता रहा और मौसी को भी इसमें बडा मजा आया. जल्दी से खाना खाकर मैं भाग कर बेडरूम में आ गया और मौसी का इंतज़ार करने लगा.
मौसी आधे घंटे बाद आई. मैंने मचल कर अपने बचपन के अंदाज में कहा. "मौसी, जाओ मैं तुझ से कट्टी, कितनी देर लगा दी!" अपनी साड़ी और ब्लाउज़ निकलती हुए उसने मुझे समझाया "बेटे, अपनी नौकरानी कमला बाई छुट्टी पर है इसलिये सब काम भी मुझे ही करने पडते हैं. चल. अब मैं आ गयी मेरे राजा बेटा के पास, अपनी गांड मराने को. पर पहले तू अपना काम कर, जल्दी से एक बार मेरी चूत चूस ले"
नग्न होकर टांगें फ़ैला कर वह बिस्तर पर लेट गई और मुझे पास बुलाया. मैं कूदकर उसकी टांगों के बीच लेट गया और उसकी बुर चाटने लगा. मेरी जीभ चलते ही मौसी ने मेरा सिर पकडा और चूतड उछाल उछाल कर चूत चुसवाने लगी. "बहुत अच्छी चूत चूसता है रे तू. मालूम है इस काम के बड़े पैसे मिलते हैं चिकने युवकों को. इन धनवान मोटी सेठानियों को तो बहुत चस्का रहता है इसका, उनके पति तो कभी उनकी चूसते नहीं. उन औरतों को तेरे जैसा चिकना छोकरा मिले तो हजारों रुपये देंगी तुझसे चूत चुसवाने के लिये"
मौसी का स्खलन होने के बाद जब वह शांत हुई तो वायदे के अनुसार पट होकर पलंग पर लेट गई. अपने मोटे नितंब हिला हिला कर उसने मुझे दावत दी. "ले विजय, जो करना है वह कर मेरे चूतड़ों के साथ. यह अब तेरे हैं बेटे"
मैं कुछ देर तक तो उन तरबूझों जैसे विशाल गोरे चिकने नितंबों को देखता रहा, फ़िर मैं उनपर टूट पड़ा. मन भर के मैंने उन्हें दबाया, मसला, चूमा, चाटा और आखिर में मौसी के गुदाद्वार पर मुंह लगाकर उस कोमल छेद को चूसने लगा, यहाँ तक कि मैंने उसमें अपनी जीभ भी डाल दी. गांड का स्वाद और गंध इतनी मादक थी कि मैं और काबू न कर पाया और मौसी पर चढ़ बैठा.
अपने लंड के सुपाड़े को मैंने उस छेद पर रखा और जोर से पेला. मुझे लगा कि गांड के छेद में लंड जाने में कुछ कठिनाई होगी पर मेरा लंड बड़े प्यार से मौसी की गांड में समा गया. अंदर से मौसी की गांड इतनी मुलायम और चिकनी थी और इतनी तपी हुई थी कि जब तक मैं ठीक से मौसी के शरीर पर लेट कर उसकी गांड मारने की तैयारी करता, मैं करीब करीब झडने को आ गया. बस तीन चार धक्के ही लगा पाया और स्खलित हो गया. इतना सुखद अनुभव था कि मैं मौसी की पीठ पर पड़ा पड़ा सिसकने लगा, कुछ सुख से और कुछ इस निराशा से कि इतनी मेहनत के बाद जब गांड मारने का मौका मिला तो उस का पूरा मजा नहीं ले पाया.
प्रिया मौसी मेरी परेशानी समझ गई और बड़े प्यार से उसने मुझे सांत्वना दी. अपने गुदा की पेशियों से मेरा झडा लंड कस कर पकड लिया और बोली. "बेटे, रो मत, मैं तुझे उतरने को थोड़े कह रही हूँ! अभी फ़िर से खड़ा हो जाएगा तेरा लंड, आखिर इतना जवान लड़का है, तब जी भर कर गांड मार लेना."
मेरा कुछ ढाढस बंधा क्यों की मैं डर रहा था कि मौसी अब फ़िर रात तक गांड नहीं मारने देगी और फ़िर से मुझसे चूत चुसवाने में लग जाएगी. मैंने प्यार से मौसी की पीठ चूमी और पड़ा पड़ा अपना लंड मुठिया कर फ़िर खड़ा करने की कोशिश करने लगा. मौसी ने प्यार से मुझे उलाहना दिया "लेटे लेटे मौसी के मम्मे तो दबा सकता है ना मेरा प्यार भाँजा? बड़ी गुदगुदी हो रही है छातियों में, जरा मसल दे बेटे"
शर्मा कर मैंने अपने हाथ मौसी के शरीर के इर्द गिर्द लपेटे और उसके मोटे मोटे स्तन हथेलियों में ले लिये. उन्हें दबाता हुआ मैं धीरे धीरे मौसी की गांड में लंड उचकाने लगा. मौसी के निप्पल धीरे धीरे कठोर होकर खड़े हो गये और मौसी भी मस्ती से चहकने लगी. मेरा लंड अब तेजी से खड़ा हो रहा था और अपने आप मौसी के गुदा की गहराई में घुस रहा था.
प्रिया मौसी ने भी अपनी गांड के छल्ले से उसे कस के पकडा और गाय के थन जैसा दुहने लगी. पर मैंने अभी भी धक्के लगाना शुरू नहीं किया क्यों की इस बार मैं खूब देर तक उसकी गांड मारना चाहता था. अब मौसी ही इतनी गरम हो गई कि मुझे डाँट कर बोली. "विजय, बहुत हो गया खेल, मार अब मेरी गांड. चोद डाल उसे"
Bahut hi shandar update he vakharia Bhai,
Ab to priya mausi ke tino chhed bhog liye launde ne.................
Aage chalkar bada hi maja aane wal he story me............
Keep posting Bhai