मुझे हंसने और खिलखिलाने की आवाजें आई और साथ ही पटापट खूब चुंबन लिये जाने के स्वर भी सुनाई दिये. कुछ ही देर में एक जवान युवती से लिपटी मौसी कमरे में आई. वह युवती इतने जोर जोर से मौसी को चूम रही थी कि मौसी चलते चलते लडखड़ा जाती थी. "अरे बस बस, कितना चूमेगी, जरा सांस तो लेने दे" मौसी ने भी रंजन को चूमते हुए कहा पर वह तो मौसी के होंठों पर अपने होंठ दबाये बेतहाशा उसके चुंबन लेती रही.
प्रिया मौसी ने किसी तरह से दरवाजा लगाया और फ़िर तो रंजन मौसी पर किसी वासना की प्यासी औरत जैसी झपट पड़ी और मौसी के कपड़े नोचने लगी. रंजन को मैंने अब मन भर कर देखा. वह एक लम्बी छरहरे बदन की गोरी सुंदर लड़की थी और जीन्स और एक टीशर्ट पहने हुए थी. अपने रेशमी बॉब-कट बाल उसने कंधे पर खुले छोड रखे थे. टाइट टीशर्ट में से उसके कसे जवान उरोजों का उभार साफ़ दिख रहा था. उसने मौसी की एक न सुनी और उसकी साड़ी और ब्लाउज़ उतारने में लग गयी. प्रिया मौसी ने खिलखिलाते हुए कहा. "अरे जरा ठीक से कपड़े तो उतारने दे बेटी और तू भी उतार ले."
रंजन को बिलकुल धीर नहीं था. "मम्मी, पहले अपनी चूत चुसाओ, फिर बाकी बातें होंगी" ऐसा कहते हुए उसने मौसी को पलंग पर धकेला और फ़िर मौसी की साड़ी ऊपर करके खींच कर उसकी चड्डी उतार दी. "क्या दीदी, पेन्टी क्यों पहनी, मेरा एक मिनट और गया" कहकर उसने मौसी की टांगों के बीच अपना सिर घुसेड़ दिया. जल्दी ही चूसने और चाटने की आवाजें आने लगी. मौसी सिस्कारी भरते हुए बोली "अरी पगली, मेरी प्यारी बेटी, तेरी मनपसंद काली ब्रा और पेन्टी पहनी है, सोचा था कि धीरे धीरे कपड़े उतारकर तुझे मस्त करूंगी पर तू तो लगता है कब की भूखी है."
रंजन का सिर अब मौसी की मोटी मोटी गोरी जांघों के बीच जल्दी जल्दी ऊपर नीचे हो रहा और मौसी उसे हाथों में पकड कर रंजन के रेशमी बाल सहलाती हुई अपनी टांगें फ़टकार रही थी. दस मिनट यह कार्यक्रम चला और फ़िर मौसी तडप कर झड गई. रंजन ने अपना मुंह जमा कर चूत चूसना शुरू कर दिया और पाँच मिनट बाद तृप्त होकर अपने होंठ पोम्छते हुए उठ बैठी. वह अब किसी बिल्ली की तरह मुस्करा रही थी जिसे कि मनपसंद चीज़ खाने को मिल गई हो.
वह वासना की मारी युवती अब उठ कर अपने कपड़े उतारने लगी. उसने जब जीन और टीशर्ट उतार फ़ेका तो मेरा लंड मस्ती से उछल पड़ा. रंजन ने एक गुलाबी रंग की लेस वाली बड़ी प्यारी ब्रा और पेन्टी पहनी हुई थी जो उसके गोरे चिकने बदन पर खूब खिल रही थी. रंजन ने अब मौसी की साड़ी और ब्लाउज़ निकाले और फ़िर ब्रा के हुक खोल कर खींच कर वह काली ब्रा भी अलग कर दी. तब तक मौसी ने भी रंजन की ब्रेसियर और पेन्टी उतार दी थी.
दोनों औरतें अब एकदम नग्न थीं. मौसी के मस्त माँसल बदन के जवाब में रंजन का छरहरा यौवन था. मौसी की घनी काली झांटें थीं और उसके ठीक विपरीत रंजन की चिकनी बुर पर एक भी बाल नहीं था. पूरी शेव की हुई चूत थी. पहले तो खिलखिलाते हुए वे एक दूसरे से लिपट गई और चूमा चाटी करने लगी. फ़िर पलंग पर चढ़ कर उन्हों ने आगे की कामक्रीडा शुरू की.
रंजन ने मौसी को पलंग पर लिटाया और खुद उसकी छाती के दोनों ओर घुटने टेक कर झुक कर तैयार हुई. फ़िर सीधा अपनी चूत को मौसी के मुंह पर जमा कर वह बैठ गई और उछल उछल कर मौसी का मुंह चोदते हुए अपनी चूत चुसवाने लगी. "माँ, मेरी मम्मी, अपनी बेटी की चूत चूस लो, दिन भर से चू रही है. हाऽयऽ दीदी जीभ घुसेड़ो ना जैसे हमेशा करती हो." कहते हुए रंजन मदहोश होकर मौसी के सिर को अपनी मजबूत जांघों में जकड़ कर उसके होंठों पर हस्तमैथुन करने लगी. मौसी ने भी शायद उसे बड़ी खूबी से चूसा होगा क्यों की पाँच ही मिनट में रंजन एक हल्की चीख के साथ स्खलित हो गई और लस्त होकर मौसी के शरीर पर ही पीछे लुढ़क गई.
पर मौसी ने उसे नहीं छोडा और उसकी टांगें पकड़ कर रंजन की बुर चाटती रही. झड़ी हुई रंजन को यह सहन नहीं हुआ और वह सिसक सिसक कर पैर फ़टकारती हुई छूटने की कोशिश करने लगी. पर मेरी कामुक अनुभवी मौसी के सामने उसकी क्या चलती. आखिर जब वह दूसरी बार झड़ी और हाथ पैर पटकने लगी तब मौसी ने उसे छोडा. रंजन पड़ी पड़ी हाँफती रही और प्रिया मौसी ने बड़े प्यार से उसकी जांघें और चूत पर बह आये रस को चाट कर उन्हें बिलकुल साफ़ कर दिया. फ़िर रंजन को बाँहों में भर कर प्यार करते हुए आराम से वह बिस्तर पर लेट गई.
"लगता है, बहुत दिन से भूखी थी मेरी लाडली बेटी, तभी तो ऐसे मचल रही थी, और रस भी कितना निकला तेरी चूत से !" मौसी ने लाड से कहा. "हाँ दीदी, एक महिना हो गया तुम से मिले. उसके बाद सिर्फ़ रोज हस्तमैथुन से संतोष कर रही हूँ. तुम्हारी बुर का रस पीने के लिये मरी जा रही थी कब से"
मौसी ने हंसकर बड़े दुलार से रंजन को चूम लिया और रंजन ने भी बड़े प्यार से मौसी का चुम्मा लौटाया. मौसी पलंग के सिरहाने से टिक कर बैठ गई और रंजन को गोद में लेकर प्यार करने लगी. बिलकुल ऐसा नज़ारा था जैसे हमेशा माँ बेटी के बीच दिखता है, फ़र्क यही था कि यहाँ माँ बेटी दोनों नंगी और उत्तेजित थीं. मौसी ने बड़े प्यार से हौले हौले रंजन के गाल, नाक, आँखें और होंठ चूमे और उससे पूछा "रंजन बेटी, अपनी माँ को अपना मीठा प्यारा मुंह चूमने नहीं देगी? ठीक से, पूरे रस के साथ?"
रंजन ने सिसककर अपनी आँखें बंद कर ली और अपने रसीली गुलाबी होंठ खोल कर अपनी लाल लाल लॉलीपॉप जैसी जीभ बाहर निकाल दी. प्रिया मौसी के होंठ खुले और उसकी जीभ निकलकर रंजन की जीभ से अठखेलियाँ करने लगी. आखिर मौसी ने अपनी जीभ से ढकेलकर रंजन की जीभ वापस उसके मुंह में डाल दी और फ़िर अपनी जीभ भी उस युवती के मुंह में घुसेड़ दी. रंजन ने अपने होंठ बंद कर के मौसी की जीभ अपने मुंह में पकड ली और चॉकलेट जैसे चूसने लगी. यह चुंबन तो ऐसा था जैसे वे एक दूसरे को खाने की कोशिश कर रही हों. पूरे दस मिनट बिना मुंह हटाये वे एक दूसरे के मुखरस का पान करती रहीम. मैंने ऐसा चुंबन कभी नहीं देखा था और मेरा लंड ऐसा तन्नाया कि लगता था वासना से फ़ट जायेगा.
मौसी का हाथ सरककर धीरे धीरे रंजन की जांघों के बीच पहुँच गया. अपनी दो उँगलियाँ मौसी ने रंजन की बुर में डाल दीं और अंदर बाहर करने लगी. दूसरे हाथ से वह रंजन की ठोस कड़ी चूची दबाने लगी. रंजन ने भी ऐसा ही किया और मौसी की चूत को अपनी उंगलियों से चोदने लगी. अगले बीस पच्चीस मिनट चुपचाप उन दोनों सुंदर मादक औरतों का यह प्रणय चलता रहा.
आखिर तृप्त होकर दोनों शिथिल पड गई और अलग होकर सुस्ताने लगी. मौसी ने अपनी उँगलियाँ चाटीं और प्यार से रंजन को कहा. "तेरा स्वाद तो दिन-ब-दिन मस्त होता जा रहा है मेरी जान, चल मुझे ठीक से तेरी बुर चूसने दे" अपनी टांगें खोल कर मौसी एक करवट पर लेट गई और रंजन ने उलटी तरफ़ से उसकी जांघों में सिर छुपा लिया. दोनों का मनपसंद सिक्सटी-नाइन आसन शुरू हो गया.
मौसी ने अपने हाथों में रंजन के गोल चिकने नितंब पकड़े और उसकी चूत को अपने मुंह पर सटाकर चूसने लगी. रंजन के काले बाल मौसी की गोरी जांघों पर फ़ैले हुए थे. उधर मौसी ने रंजन का सिर अपनी गुदाज जांघों में जकड रखा था और उसे अपनी चूत चुसवाते हुए उसके लाल होंठों पर मुठ्ठ मार रही थी. एक दूसरे के गुप्तांगों के रस का पान करते हुए वे अपनी साथिन के चूतड भी मसल और दबा रही थीं. लगता है कि यह दोनों का प्रिय आसन था क्यों की बिना रुके घंटे भर यह चूत चूसने की कामक्रीडा चलती रही.
जब दोनों आखिर तृप्त होकर उठी तो शाम होने कोने को थी. रंजन के जाने का समय हो गया था. कुछ देर वह प्रिया मौसी से लिपट कर उसकी मोटी मोटी लटकती छातियों में मुंह छुपाकर उनसे बच्चे जैसी खेलती हुई बैठी रही. मौसी ने भी प्यार से अपना एक निप्पल उसके मुंह में दे दिया. रंजन छोटी बच्ची जैसे आँखें बंद करके मौसी की चूची चूस रही थी और मौसी प्यार से बार बार उसकी आँखों की पलकोम को चूम रही थी. बडा ही मादक और भावनात्मक द्रुश्य था क्यों की यह साफ़ था कि एक दूसरे के शरीर को वासना से भोगने के साथ साथ दोनों औरतें सच में एक दूसरे को बहुत प्यार करती थीं.
आखिर मन मार कर रंजन उठी और कपड़े पहनने लगी. बाल सँवार कर और जीन्स तथा टीशर्ट ठीक ठाक कर जब वह निकलने लगी तो मौसी ने उसका चुम्मा लेते हुए पूछा."अब कब आयेगी रंजन बेटी? फ़िर इतनी देर तो नहीं करेगी मेरी रानी?" स्मित ने मौसी से वायदा किया "नहीं मम्मी, बस अगले महीने से मैं यहीं वापस आ रही हूँ, फिर एक महीने की छुट्टी ले लूँगी जब तेरे पति यहाँ नहीं होंगे. फ़िर बोलो तो तेरे पास आकर ही रहूँगी"
मौसी ने मजाक में पूछा "क्यों रानी, कहो तो अपनी नौकरानी कमला बाई को भी बुला लूँ रहने को?" और फ़िर हंसने लगी. रंजन ने कानों को हाथ लगाते हुए कहा. "माफ़ करो दीदी, तुम्हारी नौकरानी तुम्हें ही मुबारक, दुक्के पर तिक्का मत करो, मुझे तो बस तुम्हारी छातियों और जांघों में जगह दे दो, मुझे और कोई नहीं चाहिये." मुझे कमला बाई का जोक कुछ समझ में नहीं आया
रंजन चली गई और मौसी दरवाजा बंद कर के आ गई. वह अभी भी पूरी नंगी थी. मैं अब तक वासना से ऐसे तडप रहा था जैसे बिन पानी मछली. मुंह से गोम्गिया रहा था. कहने की कोशिश कर रहा था कि मौसी अब दया कर. मौसी ने जब मेरा हाल देखा तो बिना कुछ और कहे मेरे बंधन खोल दिये और मुंह खोल कर अपनी ब्रा और पेन्टी निकाल ली. उसे मैंने चूस चूस कर ऐसा साफ़ कर दिया था कि धुली सी लग रही थी.
मौसी ने अब मेरे ऊपर एक और बड़ी दया की. चुपचाप जाकर औंधे मुंह पलंग पर पट लेट गई और आँखें बंद कर ली. वह काफ़ी थकी हुई थी और उसकी चूत भी चुस चुस कर बिलकुल ठंडी हो गई थी. इसलिये आँखें बंद किये किये ही मौसी बोली. "विजय बेटे, तू ने बड़ी देर राह देखी है, आ, मेरी गांड मार ले मन भर के. जो चाहे कर ले मेरे चूतड़ों से, बस मेरी चूत को छोड दे, मैं सोती हूँ, पर तू मन भर के मेरे शरीर को भोग ले".
यह तो मानों मेरे लिये वरदान जैसा था और मैंने उसका पूरा फ़ायदा उठाया. मौसी पर चढ़ कर उसकी गांड मारने लगा. पहली बार तो मैं पाँच मिनट में ही झड गया. पर फ़िर भी मौसी पर चढ़ा रहा. दूसरी बार मजे ले लेकर आधा घंटे तक उसकी गांड मारी और तब झडा.
झडने के बाद देखा तो मौसी सो गई थी और खर्राटे ले रही थी. पर मैंने और मजा लेने की सोची और तीसरी बार हचक हचक कर रुक रुक कर घंटे भर मौसी की गांड चोदी तब जाकर मेरी वासना शांत हुई. गांड मारते हुए मैंने मौसी की चूचियाँ भी मन भर कर जैसा मेरा मन चाहा दबाई और मसली. मौसी सोती ही रही. आखिर आधी रात को मैं अपना पूरा वीर्य उसके गुदा में निकालकर फ़िर ही सोया.
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