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Incest भाँजा लगाए तेल, मौसी करे खेल

Premkumar65

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प्रिया मौसी ने भी अपनी गांड के छल्ले से उसे कस के पकडा और गाय के थन जैसा दुहने लगी. पर मैंने अभी भी धक्के लगाना शुरू नहीं किया क्यों की इस बार मैं खूब देर तक उसकी गांड मारना चाहता था. अब मौसी ही इतनी गरम हो गई कि मुझे डाँट कर बोली. "विजय, बहुत हो गया खेल, मार अब मेरी गांड. चोद डाल उसे"

मौसी की आज्ञा मान कर मैंने उसकी गांड मारना शुरू कर दी. धीरे धीरे मैं अपनी स्पीड बढ़ाता गया और जल्दी ही उचक उचक कर पूरे जोर से उसके चूतड़ों में अपना लंड पेलने लगा. मौसी भी अपनी उत्तेजना में चिल्ला चिल्ला कर मुझे बढ़ावा देने लगी. "मार जोर से मौसी की गांड, विजय बेटे, हचक हचक के मार. मेरे मम्मे कुचल डाल, उन्हें दबा दबा कर पिलपिला कर दे मेरे बच्चे. फ़ाड दे मेरे चूतड़ों का छेद, खोल दे उसे पूरा"

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मैंने अपना पूरा जोर लगाया और इस बुरी तरह से उसकी गांड मारी कि मौसी का पूरा शरीर मेरे धक्कों से हिलने लगा. पलंग भी चरमराने लगा. आखिर मैं एक चीख के साथ झडा और लस्त होकर मौसी की पीठ पर ही ढेर हो गया.

मौसी अभी भी पूरी गरम थी. वह गांड उचकाती हुई मेरे झड़े लंड से भी मराने की कोशिश करती रही. जब उसने देखा कि मैं शांत हो गया हूँ और लंड जरा सा हो गया है तो उसने तपाक से मेरा लंड खींच कर अपने गुदा से निकाला और उठ बैठी. मुझे पलंग पर पटक कर उसने मेरे सिर के नीचे एक तकिया रखा और फ़िर मेरे चेहरे पर बैठ गई. अपनी चूत उसने मेरे मुंह पर जमा दी और फ़िर उछल उछल कर मेरे होंठों पर हस्तमैथुन करने लगी.


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सारे दिन हम इसी तरह से काम क्रीडा करते रहे. मेरा इनाम देने के बाद मौसी ने उसे मुझसे पूरा वसूला और दिन भर अपनी चूत चुसवाई. कभी खड़े होकर, कभी लेट कर कभी पीछे से कुतिया जैसी पोज़ीशन में. रात को आखिर उसने मुझे फ़िर से एक बार चोदने दिया और फ़िर हम थक कर सो गए.

अगले कुछ दिन तो मेरे लिये स्वर्ग से थे. मौसी ने पहले तो मुझे दिन दिन भर बिना झड़े लंड खड़ा रखना सिखाया. इसके बाद वह मुझसे खूब सेवा करवाती. जब वह खाना बनाती तो मैं उसके पीछे खड़ा होकर उसके मम्मे दबाता. कभी कभी मैं पीछे बैठकर उसकी साड़ी उठाकर उसकी गांड चूसा करता था. मूड हो तो मौसी मुझे अपने आगे बिठा कर साड़ी उठाकर मेरे सिर पर डाल देती और फ़िर मुझसे चूत चुसवाते हुए आराम से चपातियाँ बनाती.

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मौसी अब अक्सर मुझे पलंग पर लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ कर मुझे चोदती. मेरे पेट पर बैठे बैठे वह उछल उछल कर मुझे चोदती और मैं उसकी चूचियाँ दबाता. उछलते उछलते मौसी का मंगलसूत्र उसके स्तनों के साथ डोलता तो मुझे बहुत अच्छा लगता. इस आसन में मैं उसके पैर चूमने का अपना शौक भी पूरा करने लगा. मुझे चोदते चोदते मौसी अपने पैर उठाकर मेरे चेहरे पर रख देती और मैं उसके तलवे, एड़ियाँ और उँगलियाँ चाटा और चूसा करता.

और दिन में कम से कम एक बार वह मुझे गांड मारने देती अगर मैं उसकी ठीक से सेवा करता. इस एक इनाम के लिये ही मैं मानों उसका गुलाम हो गया था.

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मौसी का पसीना भी मुझे बहुत मादक लगता था. यह ऐसे शुरू हुआ कि एक दिन बिजली नहीं थी और मैं मौसी को चोद रहा था. मौसी को बडा पसीना आ रहा था और उसे चूमते समय मैं बार बार उसके गालों और माथे को चाट लेता था. अचानक मुझे उसकी काँखों का ख्याल आया और मैं बोला. "मौसी, अपनी बाँहें सिर के ऊपर कर लो न." उसने गांड उछालते उछालते पूछा. "क्यों बेटे?"

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मैं बोला. "आप की काँख के बालों को चूमने का मन कर रहा है. पसीने से भीगे होंगे" मौसी को मेरी इस हरामीपन की बात पर मजा आ गया और उसने तुरंत बाँहें ऊपर कर ली. उन घने काले बालों को देखकर मेरे मुंह में पानी भर आया और उनमें मुंह डाल कर मैं उन्हें चाटने और फ़िर मुंह मे बाल ले कर चूसने लगा. खारा खारा पसीना मुझे इतना भाया कि मेरा लंड तन्नाकर और खड़ा हो गया. मेरे चोदने की गति भी बढ. गई और मैंने उसे इतनी जोर से चोदा कि जैसे शायद मौसाजी भी नहीं चोदते होंगे.

मौसी को उस दिन जो कामसुख मिला उसके कारण वह हमेशा मुझसे काँखें चटवाने की ताक में रहने लगी. "विजय राजा, मेरे प्यारे मुन्ना, कितनी जोर से चोदा मुझे आज तूने, बिलकुल तेरे मौसाजी की तरह. मेरी कमर लचका कर रख दी. अब तुझसे जोर जोर से चुदवाना या गांड मराना हो तो पहले अपनी काँख का पसीना चटवाऊँगी तुझे."

मौसी के यहाँ मैं दो महीने तक रहा और बहुत कुकर्म किये.

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मौसी के साथ मेरा काम संबंध कैसे शुरू हुआ, यह आप पढ़ ही चुके हैं. कुछ दिन बाद की बात है. मौसाजी अभी वापस नहीं आये थे और मैं मौसी के साथ अकेला ही रह रहा था. हमारी चुदाई दिन रात जोरों से चल रही थी.

एक दिन जब हम खाना खा रहे थे तो फ़ोन की घंटी बजी. फ़ोन उठाते ही मौसी के चेहरे पर एक आनंद की लहर दौड गई. उसने फ़ोन पर ही चुम्मे की आवाज की और बड़े प्यार से पूछा. "अममम, रंजन डार्लिन्ग, तू कहाँ थी? एक हफ़्ते के लिये गयी थी और आज एक महिना हो गया!"

कुछ देर रंजन की बात सुनने के बाद वह गुस्से से बोली. "क्या? तू कल फिर जा रही है? फिर मुझसे, अपनी प्यारी दीदी से नहीं मिलेगी क्या?" रंजन की सफ़ाई कुछ देर सुनने के बाद बीच में ही बात काट कर वह और गरम होकर चिल्लाई. "आज दोपहर भर मेरे साथ नहीं रही तो तेरी मेरी दोस्ती खतम. बात भी मत करना फ़िर मुझसे"

मौसी ने गुस्से से फ़ोन पटक दिया. कुछ देर बाद शांत होकर वह मुस्कराने लगी. मैंने पूछा तो बोली. "मेरी गर्ल फ़्रेन्ड रंजन का फ़ोन था. कहती है बहुत बिज़ी है और कल फ़िर यू एस जा रही है. बिना मिले ही भागने वाली थी पर मैंने धमकाया तो कैसे भी करके आज दोपहर आयेगी जरूर."

मेरे आग्रह पर मौसी ने पूरी कहानी सुनाई. औरतों के आपस के कामसंबंध के बारे में यह बडा रसीला उदाहरण था. रंजन एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी. मौसी से उसकी मुलाकात एक पार्टी में हुई थी. तब मौसी घर में अकेली ही थी क्यों की मौसाजी दौरे पर गये थे. मौसी और रंजन के बीच पहली मुलाकात में ही एक घनी दोस्ती हो गयी. मौसी ने यह भी भांप लिया कि रंजन बार बार उसे ऐसे देख रही थे जैसे उस पर मर मिटी हो. उसकी आँखों मे झलकती वासना भी मौसी ने पहचान ली थी.

मौसी ने रंजन को दूसरे दिन रात के डिनर पर बुला लिया और रंजन ने यह निमंत्रण बड़ी खुशी से स्वीकार कर लिया. डिनर खतम होते होते दोनों एक दूसरे से ऐसी बंधीं कि सीधा बेडरूम में चली गई. रात भर रंजन वहाँ रही और उस रात उनमें जो कामक्रीडा शुरू हुई, आज तक उसका क्रम टूटा नहीं था.

मौसी को पता चला कि रंजन एक लेस्बियन थी. पुरुषों से उसे नफ़रत थी और इसीलिये छब्बीस साल की होने के बावजूद उसने शादी नहीं की थी और न करने का इरादा था. उसे दूसरी औरतें बहुत आकर्षित करती थीं, खास कर उम्र में बड़ी, भरे पूरे बदन की अम्मा या आंटी टाइप की औरतें. चालीस साल होने को आई हुए मौसी और उसका माँसल शरीर तो मानों उसे ऐसे लगे कि भगवान ने उसकी इच्छा सुन ली हो. उनका कामसंबंध पिछले साल से जो शुरू हुआ वह आज तक कायम था और बढता ही जा रहा था. रंजन मौसी को कभी दीदी कहती तो कभी मम्मी, खास कर संभोग के समय.

मौसी ने हंसते हुए यह भी बताया कि काफ़ी बार मौसी की बाँहों में रंजन यह कल्पना करती कि वह अपनी माँ के आगोश में है और उससे कामक्रीडा कर रही है. रंजन को अक्सर बाहर जाना पडता पर जब भी वह शहर में होती और मौसाजी दौरे पर होते, तब वह मौसी के यहाँ रहने को चली आती और दोनों एक दूसरे के शरीर का भरपूर आनंद उठाते. आज रंजन आने वाली नहीं थी पर मौसी के धमकाने से घबराकर आने का वायदा जरूर निभायेगी ऐसा मौसी का विश्वास था.

स्त्री - स्त्री संभोग की यह कहानी सुनते सुनते मेरा लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया. मौसी ने देखा तो हंसने लगी. बोली. "बेटे, आज तेरी नहीं चलेगी, रंजन तो बिलकुल बरदाश्त नहीं करेगी कि कोई पुरुष हमारे बीच में आये, भले ही वह तेरे जैसा प्यारा कमसिन किशोर ही क्यों न हो. अगर उसे पता चला कि तू यहाँ है तो वह शायद रुकने को भी तैयार नहीं होगी."

मुझे बडा बुरा लगा. एक तो उस सुंदर युवती के साथ संभोग का मेरा सपना टूट गया, दूसरे यह कि मेरे कारण मौसी की अपनी प्यारी प्रेमिका के साथ चुदाई भी खट्टे में न पड जाये.

मौसी ने मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देखा तो मुझे ढाढस बंधाती हुई बोली. "तू फ़िकर मत कर बेटे, तू दूसरे कमरे में रहना. दोनों कमरों के बीच एक आइना है. मेरे कमरे में से वह आइना लगता है पर दूसरे कमरे में से उसमें से सब साफ़ दिखता है. तू आराम से मजा लेना. हाँ, एक बात यह कि तेरे हाथ-पैर और मुंह मैं बांध दूँगी. अगर अनजाने में कोई आवाज की तो सब खटाई में पड जायेगा. और दूसरे यह कि उस मस्त छोकरी के रूप को देखने के बाद तू जरूर मुठ्ठ मारेगा और यह मैं नहीं होने दूँगी, तेरा लंड मैं अपने लिये बचा कर रखूंगी."

प्रिया मौसी ने फ़टाफ़ट टेबल और किचन साफ़ किया और मुझे दूसरे कमरे में ले गई. यहाँ उसने मुझे उस एक तरफ़े आइने के सामने (वन-वे-मिरर) एक कुर्सी में बिठाया और फ़िर मेरे हाथ पैर कस के कुर्सी से बांध दिये. फ़िर धोने के कपड़ों में से अपनी एक मैली ब्रेसियर और पेन्टी उठा लाई और मुझसे मुंह खोलने को कहा. मुंह में वह ब्रा और चड्डी ठूंसने के बाद उसने एक और ब्रेसियर से मेरे मुंह पर पट्टी बांध दी.

यह करते हुए मेरे थरथराते लंड को देखकर वह दुष्टा हंस रही थी क्यों की उसे मालूम था कि उसके शरीर की सुगंध और पसीने से सराबोर उन पहने हुए अंतर्वस्त्रों का मुझ पर क्या असर होगा. जान बूझकर मुझे उत्तेजित करने और मेरा लंड तन्नाने के लिये उसने ऐसा किया था. पूरी तरह बांधने के बाद मौसी ने मुझे प्यार से चूमा और दरवाजा लगाती हुई अपने कमरे में तैयार होने को चली गई. उसका सजना और संवरना मुझे साफ़ कांच में से दिख रहा था.

मौसी ने अपनी रंजन रानी के लिये बड़े मन से तैयारी की. नंगी होकर पहले एक कसी हुई काली ब्रेसियर और पेन्टी पहनी जो उसके गोरे गदराये बदन पर गजब ढा रही थी, फ़िर एक सादी सफ़ेद साड़ी और लम्बे बाहों का अम्मा स्टाइल का ब्लाउज़ पहना. मेकअप बिल्कुल नहीं किया पर माथे पर एक बड़ी बिम्दी लगाई. अपने घने बाल जूड़े में बांधे और उसमें गजरा पहना. आखिर में अपनी कलाई में बहुत सी चूड़ियाँ पहन ली; अब वह एक आकर्षक मध्यम आयु की असली भारतीय नारी लग रही थी. मैं समझ गया कि ऐसा उसने रंजन की माँ की चाह को पूरा करने के लिये किया है.

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तभी डोरबेल बजी ओर मेरी ओर देख कर मुस्करा कर मौसी ने मुझे आँख मारी कि तैयार रह तमाशा देखने के लिये और कमरे के बाहर चली गई, दरवाजा खोलने के लिये.

मुझे हंसने और खिलखिलाने की आवाजें आई और साथ ही पटापट खूब चुंबन लिये जाने के स्वर भी सुनाई दिये. कुछ ही देर में एक जवान युवती से लिपटी मौसी कमरे में आई. वह युवती इतने जोर जोर से मौसी को चूम रही थी कि मौसी चलते चलते लडखड़ा जाती थी. "अरे बस बस, कितना चूमेगी, जरा सांस तो लेने दे" मौसी ने भी रंजन को चूमते हुए कहा पर वह तो मौसी के होंठों पर अपने होंठ दबाये बेतहाशा उसके चुंबन लेती रही.

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Mausi is allrounder. Lesbian bhi karti hai.
 

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मुझे हंसने और खिलखिलाने की आवाजें आई और साथ ही पटापट खूब चुंबन लिये जाने के स्वर भी सुनाई दिये. कुछ ही देर में एक जवान युवती से लिपटी मौसी कमरे में आई. वह युवती इतने जोर जोर से मौसी को चूम रही थी कि मौसी चलते चलते लडखड़ा जाती थी. "अरे बस बस, कितना चूमेगी, जरा सांस तो लेने दे" मौसी ने भी रंजन को चूमते हुए कहा पर वह तो मौसी के होंठों पर अपने होंठ दबाये बेतहाशा उसके चुंबन लेती रही.

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प्रिया मौसी ने किसी तरह से दरवाजा लगाया और फ़िर तो रंजन मौसी पर किसी वासना की प्यासी औरत जैसी झपट पड़ी और मौसी के कपड़े नोचने लगी. रंजन को मैंने अब मन भर कर देखा. वह एक लम्बी छरहरे बदन की गोरी सुंदर लड़की थी और जीन्स और एक टीशर्ट पहने हुए थी. अपने रेशमी बॉब-कट बाल उसने कंधे पर खुले छोड रखे थे. टाइट टीशर्ट में से उसके कसे जवान उरोजों का उभार साफ़ दिख रहा था. उसने मौसी की एक न सुनी और उसकी साड़ी और ब्लाउज़ उतारने में लग गयी. प्रिया मौसी ने खिलखिलाते हुए कहा. "अरे जरा ठीक से कपड़े तो उतारने दे बेटी और तू भी उतार ले."

रंजन को बिलकुल धीर नहीं था. "मम्मी, पहले अपनी चूत चुसाओ, फिर बाकी बातें होंगी" ऐसा कहते हुए उसने मौसी को पलंग पर धकेला और फ़िर मौसी की साड़ी ऊपर करके खींच कर उसकी चड्डी उतार दी. "क्या दीदी, पेन्टी क्यों पहनी, मेरा एक मिनट और गया" कहकर उसने मौसी की टांगों के बीच अपना सिर घुसेड़ दिया. जल्दी ही चूसने और चाटने की आवाजें आने लगी. मौसी सिस्कारी भरते हुए बोली "अरी पगली, मेरी प्यारी बेटी, तेरी मनपसंद काली ब्रा और पेन्टी पहनी है, सोचा था कि धीरे धीरे कपड़े उतारकर तुझे मस्त करूंगी पर तू तो लगता है कब की भूखी है."

रंजन का सिर अब मौसी की मोटी मोटी गोरी जांघों के बीच जल्दी जल्दी ऊपर नीचे हो रहा और मौसी उसे हाथों में पकड कर रंजन के रेशमी बाल सहलाती हुई अपनी टांगें फ़टकार रही थी. दस मिनट यह कार्यक्रम चला और फ़िर मौसी तडप कर झड गई. रंजन ने अपना मुंह जमा कर चूत चूसना शुरू कर दिया और पाँच मिनट बाद तृप्त होकर अपने होंठ पोम्छते हुए उठ बैठी. वह अब किसी बिल्ली की तरह मुस्करा रही थी जिसे कि मनपसंद चीज़ खाने को मिल गई हो.

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वह वासना की मारी युवती अब उठ कर अपने कपड़े उतारने लगी. उसने जब जीन और टीशर्ट उतार फ़ेका तो मेरा लंड मस्ती से उछल पड़ा. रंजन ने एक गुलाबी रंग की लेस वाली बड़ी प्यारी ब्रा और पेन्टी पहनी हुई थी जो उसके गोरे चिकने बदन पर खूब खिल रही थी. रंजन ने अब मौसी की साड़ी और ब्लाउज़ निकाले और फ़िर ब्रा के हुक खोल कर खींच कर वह काली ब्रा भी अलग कर दी. तब तक मौसी ने भी रंजन की ब्रेसियर और पेन्टी उतार दी थी.

दोनों औरतें अब एकदम नग्न थीं. मौसी के मस्त माँसल बदन के जवाब में रंजन का छरहरा यौवन था. मौसी की घनी काली झांटें थीं और उसके ठीक विपरीत रंजन की चिकनी बुर पर एक भी बाल नहीं था. पूरी शेव की हुई चूत थी. पहले तो खिलखिलाते हुए वे एक दूसरे से लिपट गई और चूमा चाटी करने लगी. फ़िर पलंग पर चढ़ कर उन्हों ने आगे की कामक्रीडा शुरू की.

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रंजन ने मौसी को पलंग पर लिटाया और खुद उसकी छाती के दोनों ओर घुटने टेक कर झुक कर तैयार हुई. फ़िर सीधा अपनी चूत को मौसी के मुंह पर जमा कर वह बैठ गई और उछल उछल कर मौसी का मुंह चोदते हुए अपनी चूत चुसवाने लगी. "माँ, मेरी मम्मी, अपनी बेटी की चूत चूस लो, दिन भर से चू रही है. हाऽयऽ दीदी जीभ घुसेड़ो ना जैसे हमेशा करती हो." कहते हुए रंजन मदहोश होकर मौसी के सिर को अपनी मजबूत जांघों में जकड़ कर उसके होंठों पर हस्तमैथुन करने लगी. मौसी ने भी शायद उसे बड़ी खूबी से चूसा होगा क्यों की पाँच ही मिनट में रंजन एक हल्की चीख के साथ स्खलित हो गई और लस्त होकर मौसी के शरीर पर ही पीछे लुढ़क गई.

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पर मौसी ने उसे नहीं छोडा और उसकी टांगें पकड़ कर रंजन की बुर चाटती रही. झड़ी हुई रंजन को यह सहन नहीं हुआ और वह सिसक सिसक कर पैर फ़टकारती हुई छूटने की कोशिश करने लगी. पर मेरी कामुक अनुभवी मौसी के सामने उसकी क्या चलती. आखिर जब वह दूसरी बार झड़ी और हाथ पैर पटकने लगी तब मौसी ने उसे छोडा. रंजन पड़ी पड़ी हाँफती रही और प्रिया मौसी ने बड़े प्यार से उसकी जांघें और चूत पर बह आये रस को चाट कर उन्हें बिलकुल साफ़ कर दिया. फ़िर रंजन को बाँहों में भर कर प्यार करते हुए आराम से वह बिस्तर पर लेट गई.

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"लगता है, बहुत दिन से भूखी थी मेरी लाडली बेटी, तभी तो ऐसे मचल रही थी, और रस भी कितना निकला तेरी चूत से !" मौसी ने लाड से कहा. "हाँ दीदी, एक महिना हो गया तुम से मिले. उसके बाद सिर्फ़ रोज हस्तमैथुन से संतोष कर रही हूँ. तुम्हारी बुर का रस पीने के लिये मरी जा रही थी कब से"

मौसी ने हंसकर बड़े दुलार से रंजन को चूम लिया और रंजन ने भी बड़े प्यार से मौसी का चुम्मा लौटाया. मौसी पलंग के सिरहाने से टिक कर बैठ गई और रंजन को गोद में लेकर प्यार करने लगी. बिलकुल ऐसा नज़ारा था जैसे हमेशा माँ बेटी के बीच दिखता है, फ़र्क यही था कि यहाँ माँ बेटी दोनों नंगी और उत्तेजित थीं. मौसी ने बड़े प्यार से हौले हौले रंजन के गाल, नाक, आँखें और होंठ चूमे और उससे पूछा "रंजन बेटी, अपनी माँ को अपना मीठा प्यारा मुंह चूमने नहीं देगी? ठीक से, पूरे रस के साथ?"

रंजन ने सिसककर अपनी आँखें बंद कर ली और अपने रसीली गुलाबी होंठ खोल कर अपनी लाल लाल लॉलीपॉप जैसी जीभ बाहर निकाल दी. प्रिया मौसी के होंठ खुले और उसकी जीभ निकलकर रंजन की जीभ से अठखेलियाँ करने लगी. आखिर मौसी ने अपनी जीभ से ढकेलकर रंजन की जीभ वापस उसके मुंह में डाल दी और फ़िर अपनी जीभ भी उस युवती के मुंह में घुसेड़ दी. रंजन ने अपने होंठ बंद कर के मौसी की जीभ अपने मुंह में पकड ली और चॉकलेट जैसे चूसने लगी. यह चुंबन तो ऐसा था जैसे वे एक दूसरे को खाने की कोशिश कर रही हों. पूरे दस मिनट बिना मुंह हटाये वे एक दूसरे के मुखरस का पान करती रहीम. मैंने ऐसा चुंबन कभी नहीं देखा था और मेरा लंड ऐसा तन्नाया कि लगता था वासना से फ़ट जायेगा.

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मौसी का हाथ सरककर धीरे धीरे रंजन की जांघों के बीच पहुँच गया. अपनी दो उँगलियाँ मौसी ने रंजन की बुर में डाल दीं और अंदर बाहर करने लगी. दूसरे हाथ से वह रंजन की ठोस कड़ी चूची दबाने लगी. रंजन ने भी ऐसा ही किया और मौसी की चूत को अपनी उंगलियों से चोदने लगी. अगले बीस पच्चीस मिनट चुपचाप उन दोनों सुंदर मादक औरतों का यह प्रणय चलता रहा.

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आखिर तृप्त होकर दोनों शिथिल पड गई और अलग होकर सुस्ताने लगी. मौसी ने अपनी उँगलियाँ चाटीं और प्यार से रंजन को कहा. "तेरा स्वाद तो दिन-ब-दिन मस्त होता जा रहा है मेरी जान, चल मुझे ठीक से तेरी बुर चूसने दे" अपनी टांगें खोल कर मौसी एक करवट पर लेट गई और रंजन ने उलटी तरफ़ से उसकी जांघों में सिर छुपा लिया. दोनों का मनपसंद सिक्सटी-नाइन आसन शुरू हो गया.

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मौसी ने अपने हाथों में रंजन के गोल चिकने नितंब पकड़े और उसकी चूत को अपने मुंह पर सटाकर चूसने लगी. रंजन के काले बाल मौसी की गोरी जांघों पर फ़ैले हुए थे. उधर मौसी ने रंजन का सिर अपनी गुदाज जांघों में जकड रखा था और उसे अपनी चूत चुसवाते हुए उसके लाल होंठों पर मुठ्ठ मार रही थी. एक दूसरे के गुप्तांगों के रस का पान करते हुए वे अपनी साथिन के चूतड भी मसल और दबा रही थीं. लगता है कि यह दोनों का प्रिय आसन था क्यों की बिना रुके घंटे भर यह चूत चूसने की कामक्रीडा चलती रही.

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जब दोनों आखिर तृप्त होकर उठी तो शाम होने कोने को थी. रंजन के जाने का समय हो गया था. कुछ देर वह प्रिया मौसी से लिपट कर उसकी मोटी मोटी लटकती छातियों में मुंह छुपाकर उनसे बच्चे जैसी खेलती हुई बैठी रही. मौसी ने भी प्यार से अपना एक निप्पल उसके मुंह में दे दिया. रंजन छोटी बच्ची जैसे आँखें बंद करके मौसी की चूची चूस रही थी और मौसी प्यार से बार बार उसकी आँखों की पलकोम को चूम रही थी. बडा ही मादक और भावनात्मक द्रुश्य था क्यों की यह साफ़ था कि एक दूसरे के शरीर को वासना से भोगने के साथ साथ दोनों औरतें सच में एक दूसरे को बहुत प्यार करती थीं.

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आखिर मन मार कर रंजन उठी और कपड़े पहनने लगी. बाल सँवार कर और जीन्स तथा टीशर्ट ठीक ठाक कर जब वह निकलने लगी तो मौसी ने उसका चुम्मा लेते हुए पूछा."अब कब आयेगी रंजन बेटी? फ़िर इतनी देर तो नहीं करेगी मेरी रानी?" स्मित ने मौसी से वायदा किया "नहीं मम्मी, बस अगले महीने से मैं यहीं वापस आ रही हूँ, फिर एक महीने की छुट्टी ले लूँगी जब तेरे पति यहाँ नहीं होंगे. फ़िर बोलो तो तेरे पास आकर ही रहूँगी"

मौसी ने मजाक में पूछा "क्यों रानी, कहो तो अपनी नौकरानी कमला बाई को भी बुला लूँ रहने को?" और फ़िर हंसने लगी. रंजन ने कानों को हाथ लगाते हुए कहा. "माफ़ करो दीदी, तुम्हारी नौकरानी तुम्हें ही मुबारक, दुक्के पर तिक्का मत करो, मुझे तो बस तुम्हारी छातियों और जांघों में जगह दे दो, मुझे और कोई नहीं चाहिये." मुझे कमला बाई का जोक कुछ समझ में नहीं आया

रंजन चली गई और मौसी दरवाजा बंद कर के आ गई. वह अभी भी पूरी नंगी थी. मैं अब तक वासना से ऐसे तडप रहा था जैसे बिन पानी मछली. मुंह से गोम्गिया रहा था. कहने की कोशिश कर रहा था कि मौसी अब दया कर. मौसी ने जब मेरा हाल देखा तो बिना कुछ और कहे मेरे बंधन खोल दिये और मुंह खोल कर अपनी ब्रा और पेन्टी निकाल ली. उसे मैंने चूस चूस कर ऐसा साफ़ कर दिया था कि धुली सी लग रही थी.

मौसी ने अब मेरे ऊपर एक और बड़ी दया की. चुपचाप जाकर औंधे मुंह पलंग पर पट लेट गई और आँखें बंद कर ली. वह काफ़ी थकी हुई थी और उसकी चूत भी चुस चुस कर बिलकुल ठंडी हो गई थी. इसलिये आँखें बंद किये किये ही मौसी बोली. "विजय बेटे, तू ने बड़ी देर राह देखी है, आ, मेरी गांड मार ले मन भर के. जो चाहे कर ले मेरे चूतड़ों से, बस मेरी चूत को छोड दे, मैं सोती हूँ, पर तू मन भर के मेरे शरीर को भोग ले".

यह तो मानों मेरे लिये वरदान जैसा था और मैंने उसका पूरा फ़ायदा उठाया. मौसी पर चढ़ कर उसकी गांड मारने लगा. पहली बार तो मैं पाँच मिनट में ही झड गया. पर फ़िर भी मौसी पर चढ़ा रहा. दूसरी बार मजे ले लेकर आधा घंटे तक उसकी गांड मारी और तब झडा.

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झडने के बाद देखा तो मौसी सो गई थी और खर्राटे ले रही थी. पर मैंने और मजा लेने की सोची और तीसरी बार हचक हचक कर रुक रुक कर घंटे भर मौसी की गांड चोदी तब जाकर मेरी वासना शांत हुई. गांड मारते हुए मैंने मौसी की चूचियाँ भी मन भर कर जैसा मेरा मन चाहा दबाई और मसली. मौसी सोती ही रही. आखिर आधी रात को मैं अपना पूरा वीर्य उसके गुदा में निकालकर फ़िर ही सोया.

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"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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मुझे हंसने और खिलखिलाने की आवाजें आई और साथ ही पटापट खूब चुंबन लिये जाने के स्वर भी सुनाई दिये. कुछ ही देर में एक जवान युवती से लिपटी मौसी कमरे में आई. वह युवती इतने जोर जोर से मौसी को चूम रही थी कि मौसी चलते चलते लडखड़ा जाती थी. "अरे बस बस, कितना चूमेगी, जरा सांस तो लेने दे" मौसी ने भी रंजन को चूमते हुए कहा पर वह तो मौसी के होंठों पर अपने होंठ दबाये बेतहाशा उसके चुंबन लेती रही.

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प्रिया मौसी ने किसी तरह से दरवाजा लगाया और फ़िर तो रंजन मौसी पर किसी वासना की प्यासी औरत जैसी झपट पड़ी और मौसी के कपड़े नोचने लगी. रंजन को मैंने अब मन भर कर देखा. वह एक लम्बी छरहरे बदन की गोरी सुंदर लड़की थी और जीन्स और एक टीशर्ट पहने हुए थी. अपने रेशमी बॉब-कट बाल उसने कंधे पर खुले छोड रखे थे. टाइट टीशर्ट में से उसके कसे जवान उरोजों का उभार साफ़ दिख रहा था. उसने मौसी की एक न सुनी और उसकी साड़ी और ब्लाउज़ उतारने में लग गयी. प्रिया मौसी ने खिलखिलाते हुए कहा. "अरे जरा ठीक से कपड़े तो उतारने दे बेटी और तू भी उतार ले."

रंजन को बिलकुल धीर नहीं था. "मम्मी, पहले अपनी चूत चुसाओ, फिर बाकी बातें होंगी" ऐसा कहते हुए उसने मौसी को पलंग पर धकेला और फ़िर मौसी की साड़ी ऊपर करके खींच कर उसकी चड्डी उतार दी. "क्या दीदी, पेन्टी क्यों पहनी, मेरा एक मिनट और गया" कहकर उसने मौसी की टांगों के बीच अपना सिर घुसेड़ दिया. जल्दी ही चूसने और चाटने की आवाजें आने लगी. मौसी सिस्कारी भरते हुए बोली "अरी पगली, मेरी प्यारी बेटी, तेरी मनपसंद काली ब्रा और पेन्टी पहनी है, सोचा था कि धीरे धीरे कपड़े उतारकर तुझे मस्त करूंगी पर तू तो लगता है कब की भूखी है."

रंजन का सिर अब मौसी की मोटी मोटी गोरी जांघों के बीच जल्दी जल्दी ऊपर नीचे हो रहा और मौसी उसे हाथों में पकड कर रंजन के रेशमी बाल सहलाती हुई अपनी टांगें फ़टकार रही थी. दस मिनट यह कार्यक्रम चला और फ़िर मौसी तडप कर झड गई. रंजन ने अपना मुंह जमा कर चूत चूसना शुरू कर दिया और पाँच मिनट बाद तृप्त होकर अपने होंठ पोम्छते हुए उठ बैठी. वह अब किसी बिल्ली की तरह मुस्करा रही थी जिसे कि मनपसंद चीज़ खाने को मिल गई हो.

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वह वासना की मारी युवती अब उठ कर अपने कपड़े उतारने लगी. उसने जब जीन और टीशर्ट उतार फ़ेका तो मेरा लंड मस्ती से उछल पड़ा. रंजन ने एक गुलाबी रंग की लेस वाली बड़ी प्यारी ब्रा और पेन्टी पहनी हुई थी जो उसके गोरे चिकने बदन पर खूब खिल रही थी. रंजन ने अब मौसी की साड़ी और ब्लाउज़ निकाले और फ़िर ब्रा के हुक खोल कर खींच कर वह काली ब्रा भी अलग कर दी. तब तक मौसी ने भी रंजन की ब्रेसियर और पेन्टी उतार दी थी.

दोनों औरतें अब एकदम नग्न थीं. मौसी के मस्त माँसल बदन के जवाब में रंजन का छरहरा यौवन था. मौसी की घनी काली झांटें थीं और उसके ठीक विपरीत रंजन की चिकनी बुर पर एक भी बाल नहीं था. पूरी शेव की हुई चूत थी. पहले तो खिलखिलाते हुए वे एक दूसरे से लिपट गई और चूमा चाटी करने लगी. फ़िर पलंग पर चढ़ कर उन्हों ने आगे की कामक्रीडा शुरू की.

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रंजन ने मौसी को पलंग पर लिटाया और खुद उसकी छाती के दोनों ओर घुटने टेक कर झुक कर तैयार हुई. फ़िर सीधा अपनी चूत को मौसी के मुंह पर जमा कर वह बैठ गई और उछल उछल कर मौसी का मुंह चोदते हुए अपनी चूत चुसवाने लगी. "माँ, मेरी मम्मी, अपनी बेटी की चूत चूस लो, दिन भर से चू रही है. हाऽयऽ दीदी जीभ घुसेड़ो ना जैसे हमेशा करती हो." कहते हुए रंजन मदहोश होकर मौसी के सिर को अपनी मजबूत जांघों में जकड़ कर उसके होंठों पर हस्तमैथुन करने लगी. मौसी ने भी शायद उसे बड़ी खूबी से चूसा होगा क्यों की पाँच ही मिनट में रंजन एक हल्की चीख के साथ स्खलित हो गई और लस्त होकर मौसी के शरीर पर ही पीछे लुढ़क गई.

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पर मौसी ने उसे नहीं छोडा और उसकी टांगें पकड़ कर रंजन की बुर चाटती रही. झड़ी हुई रंजन को यह सहन नहीं हुआ और वह सिसक सिसक कर पैर फ़टकारती हुई छूटने की कोशिश करने लगी. पर मेरी कामुक अनुभवी मौसी के सामने उसकी क्या चलती. आखिर जब वह दूसरी बार झड़ी और हाथ पैर पटकने लगी तब मौसी ने उसे छोडा. रंजन पड़ी पड़ी हाँफती रही और प्रिया मौसी ने बड़े प्यार से उसकी जांघें और चूत पर बह आये रस को चाट कर उन्हें बिलकुल साफ़ कर दिया. फ़िर रंजन को बाँहों में भर कर प्यार करते हुए आराम से वह बिस्तर पर लेट गई.

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"लगता है, बहुत दिन से भूखी थी मेरी लाडली बेटी, तभी तो ऐसे मचल रही थी, और रस भी कितना निकला तेरी चूत से !" मौसी ने लाड से कहा. "हाँ दीदी, एक महिना हो गया तुम से मिले. उसके बाद सिर्फ़ रोज हस्तमैथुन से संतोष कर रही हूँ. तुम्हारी बुर का रस पीने के लिये मरी जा रही थी कब से"

मौसी ने हंसकर बड़े दुलार से रंजन को चूम लिया और रंजन ने भी बड़े प्यार से मौसी का चुम्मा लौटाया. मौसी पलंग के सिरहाने से टिक कर बैठ गई और रंजन को गोद में लेकर प्यार करने लगी. बिलकुल ऐसा नज़ारा था जैसे हमेशा माँ बेटी के बीच दिखता है, फ़र्क यही था कि यहाँ माँ बेटी दोनों नंगी और उत्तेजित थीं. मौसी ने बड़े प्यार से हौले हौले रंजन के गाल, नाक, आँखें और होंठ चूमे और उससे पूछा "रंजन बेटी, अपनी माँ को अपना मीठा प्यारा मुंह चूमने नहीं देगी? ठीक से, पूरे रस के साथ?"

रंजन ने सिसककर अपनी आँखें बंद कर ली और अपने रसीली गुलाबी होंठ खोल कर अपनी लाल लाल लॉलीपॉप जैसी जीभ बाहर निकाल दी. प्रिया मौसी के होंठ खुले और उसकी जीभ निकलकर रंजन की जीभ से अठखेलियाँ करने लगी. आखिर मौसी ने अपनी जीभ से ढकेलकर रंजन की जीभ वापस उसके मुंह में डाल दी और फ़िर अपनी जीभ भी उस युवती के मुंह में घुसेड़ दी. रंजन ने अपने होंठ बंद कर के मौसी की जीभ अपने मुंह में पकड ली और चॉकलेट जैसे चूसने लगी. यह चुंबन तो ऐसा था जैसे वे एक दूसरे को खाने की कोशिश कर रही हों. पूरे दस मिनट बिना मुंह हटाये वे एक दूसरे के मुखरस का पान करती रहीम. मैंने ऐसा चुंबन कभी नहीं देखा था और मेरा लंड ऐसा तन्नाया कि लगता था वासना से फ़ट जायेगा.

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मौसी का हाथ सरककर धीरे धीरे रंजन की जांघों के बीच पहुँच गया. अपनी दो उँगलियाँ मौसी ने रंजन की बुर में डाल दीं और अंदर बाहर करने लगी. दूसरे हाथ से वह रंजन की ठोस कड़ी चूची दबाने लगी. रंजन ने भी ऐसा ही किया और मौसी की चूत को अपनी उंगलियों से चोदने लगी. अगले बीस पच्चीस मिनट चुपचाप उन दोनों सुंदर मादक औरतों का यह प्रणय चलता रहा.

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आखिर तृप्त होकर दोनों शिथिल पड गई और अलग होकर सुस्ताने लगी. मौसी ने अपनी उँगलियाँ चाटीं और प्यार से रंजन को कहा. "तेरा स्वाद तो दिन-ब-दिन मस्त होता जा रहा है मेरी जान, चल मुझे ठीक से तेरी बुर चूसने दे" अपनी टांगें खोल कर मौसी एक करवट पर लेट गई और रंजन ने उलटी तरफ़ से उसकी जांघों में सिर छुपा लिया. दोनों का मनपसंद सिक्सटी-नाइन आसन शुरू हो गया.

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मौसी ने अपने हाथों में रंजन के गोल चिकने नितंब पकड़े और उसकी चूत को अपने मुंह पर सटाकर चूसने लगी. रंजन के काले बाल मौसी की गोरी जांघों पर फ़ैले हुए थे. उधर मौसी ने रंजन का सिर अपनी गुदाज जांघों में जकड रखा था और उसे अपनी चूत चुसवाते हुए उसके लाल होंठों पर मुठ्ठ मार रही थी. एक दूसरे के गुप्तांगों के रस का पान करते हुए वे अपनी साथिन के चूतड भी मसल और दबा रही थीं. लगता है कि यह दोनों का प्रिय आसन था क्यों की बिना रुके घंटे भर यह चूत चूसने की कामक्रीडा चलती रही.

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जब दोनों आखिर तृप्त होकर उठी तो शाम होने कोने को थी. रंजन के जाने का समय हो गया था. कुछ देर वह प्रिया मौसी से लिपट कर उसकी मोटी मोटी लटकती छातियों में मुंह छुपाकर उनसे बच्चे जैसी खेलती हुई बैठी रही. मौसी ने भी प्यार से अपना एक निप्पल उसके मुंह में दे दिया. रंजन छोटी बच्ची जैसे आँखें बंद करके मौसी की चूची चूस रही थी और मौसी प्यार से बार बार उसकी आँखों की पलकोम को चूम रही थी. बडा ही मादक और भावनात्मक द्रुश्य था क्यों की यह साफ़ था कि एक दूसरे के शरीर को वासना से भोगने के साथ साथ दोनों औरतें सच में एक दूसरे को बहुत प्यार करती थीं.

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आखिर मन मार कर रंजन उठी और कपड़े पहनने लगी. बाल सँवार कर और जीन्स तथा टीशर्ट ठीक ठाक कर जब वह निकलने लगी तो मौसी ने उसका चुम्मा लेते हुए पूछा."अब कब आयेगी रंजन बेटी? फ़िर इतनी देर तो नहीं करेगी मेरी रानी?" स्मित ने मौसी से वायदा किया "नहीं मम्मी, बस अगले महीने से मैं यहीं वापस आ रही हूँ, फिर एक महीने की छुट्टी ले लूँगी जब तेरे पति यहाँ नहीं होंगे. फ़िर बोलो तो तेरे पास आकर ही रहूँगी"

मौसी ने मजाक में पूछा "क्यों रानी, कहो तो अपनी नौकरानी कमला बाई को भी बुला लूँ रहने को?" और फ़िर हंसने लगी. रंजन ने कानों को हाथ लगाते हुए कहा. "माफ़ करो दीदी, तुम्हारी नौकरानी तुम्हें ही मुबारक, दुक्के पर तिक्का मत करो, मुझे तो बस तुम्हारी छातियों और जांघों में जगह दे दो, मुझे और कोई नहीं चाहिये." मुझे कमला बाई का जोक कुछ समझ में नहीं आया

रंजन चली गई और मौसी दरवाजा बंद कर के आ गई. वह अभी भी पूरी नंगी थी. मैं अब तक वासना से ऐसे तडप रहा था जैसे बिन पानी मछली. मुंह से गोम्गिया रहा था. कहने की कोशिश कर रहा था कि मौसी अब दया कर. मौसी ने जब मेरा हाल देखा तो बिना कुछ और कहे मेरे बंधन खोल दिये और मुंह खोल कर अपनी ब्रा और पेन्टी निकाल ली. उसे मैंने चूस चूस कर ऐसा साफ़ कर दिया था कि धुली सी लग रही थी.

मौसी ने अब मेरे ऊपर एक और बड़ी दया की. चुपचाप जाकर औंधे मुंह पलंग पर पट लेट गई और आँखें बंद कर ली. वह काफ़ी थकी हुई थी और उसकी चूत भी चुस चुस कर बिलकुल ठंडी हो गई थी. इसलिये आँखें बंद किये किये ही मौसी बोली. "विजय बेटे, तू ने बड़ी देर राह देखी है, आ, मेरी गांड मार ले मन भर के. जो चाहे कर ले मेरे चूतड़ों से, बस मेरी चूत को छोड दे, मैं सोती हूँ, पर तू मन भर के मेरे शरीर को भोग ले".

यह तो मानों मेरे लिये वरदान जैसा था और मैंने उसका पूरा फ़ायदा उठाया. मौसी पर चढ़ कर उसकी गांड मारने लगा. पहली बार तो मैं पाँच मिनट में ही झड गया. पर फ़िर भी मौसी पर चढ़ा रहा. दूसरी बार मजे ले लेकर आधा घंटे तक उसकी गांड मारी और तब झडा.

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झडने के बाद देखा तो मौसी सो गई थी और खर्राटे ले रही थी. पर मैंने और मजा लेने की सोची और तीसरी बार हचक हचक कर रुक रुक कर घंटे भर मौसी की गांड चोदी तब जाकर मेरी वासना शांत हुई. गांड मारते हुए मैंने मौसी की चूचियाँ भी मन भर कर जैसा मेरा मन चाहा दबाई और मसली. मौसी सोती ही रही. आखिर आधी रात को मैं अपना पूरा वीर्य उसके गुदा में निकालकर फ़िर ही सोया.

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Behad kamuk update
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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vakharia

Supreme
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Bahut hi shandar update he vakharia Bhai,

Ab to priya mausi ke tino chhed bhog liye launde ne.................

Aage chalkar bada hi maja aane wal he story me............

Keep posting Bhai
Shukriya bhai :heart:
 
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