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Incest भाँजा लगाए तेल, मौसी करे खेल

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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प्रिया मौसी ने भी अपनी गांड के छल्ले से उसे कस के पकडा और गाय के थन जैसा दुहने लगी. पर मैंने अभी भी धक्के लगाना शुरू नहीं किया क्यों की इस बार मैं खूब देर तक उसकी गांड मारना चाहता था. अब मौसी ही इतनी गरम हो गई कि मुझे डाँट कर बोली. "विजय, बहुत हो गया खेल, मार अब मेरी गांड. चोद डाल उसे"

मौसी की आज्ञा मान कर मैंने उसकी गांड मारना शुरू कर दी. धीरे धीरे मैं अपनी स्पीड बढ़ाता गया और जल्दी ही उचक उचक कर पूरे जोर से उसके चूतड़ों में अपना लंड पेलने लगा. मौसी भी अपनी उत्तेजना में चिल्ला चिल्ला कर मुझे बढ़ावा देने लगी. "मार जोर से मौसी की गांड, विजय बेटे, हचक हचक के मार. मेरे मम्मे कुचल डाल, उन्हें दबा दबा कर पिलपिला कर दे मेरे बच्चे. फ़ाड दे मेरे चूतड़ों का छेद, खोल दे उसे पूरा"

af
मैंने अपना पूरा जोर लगाया और इस बुरी तरह से उसकी गांड मारी कि मौसी का पूरा शरीर मेरे धक्कों से हिलने लगा. पलंग भी चरमराने लगा. आखिर मैं एक चीख के साथ झडा और लस्त होकर मौसी की पीठ पर ही ढेर हो गया.

मौसी अभी भी पूरी गरम थी. वह गांड उचकाती हुई मेरे झड़े लंड से भी मराने की कोशिश करती रही. जब उसने देखा कि मैं शांत हो गया हूँ और लंड जरा सा हो गया है तो उसने तपाक से मेरा लंड खींच कर अपने गुदा से निकाला और उठ बैठी. मुझे पलंग पर पटक कर उसने मेरे सिर के नीचे एक तकिया रखा और फ़िर मेरे चेहरे पर बैठ गई. अपनी चूत उसने मेरे मुंह पर जमा दी और फ़िर उछल उछल कर मेरे होंठों पर हस्तमैथुन करने लगी.


fr
सारे दिन हम इसी तरह से काम क्रीडा करते रहे. मेरा इनाम देने के बाद मौसी ने उसे मुझसे पूरा वसूला और दिन भर अपनी चूत चुसवाई. कभी खड़े होकर, कभी लेट कर कभी पीछे से कुतिया जैसी पोज़ीशन में. रात को आखिर उसने मुझे फ़िर से एक बार चोदने दिया और फ़िर हम थक कर सो गए.

अगले कुछ दिन तो मेरे लिये स्वर्ग से थे. मौसी ने पहले तो मुझे दिन दिन भर बिना झड़े लंड खड़ा रखना सिखाया. इसके बाद वह मुझसे खूब सेवा करवाती. जब वह खाना बनाती तो मैं उसके पीछे खड़ा होकर उसके मम्मे दबाता. कभी कभी मैं पीछे बैठकर उसकी साड़ी उठाकर उसकी गांड चूसा करता था. मूड हो तो मौसी मुझे अपने आगे बिठा कर साड़ी उठाकर मेरे सिर पर डाल देती और फ़िर मुझसे चूत चुसवाते हुए आराम से चपातियाँ बनाती.

kitch
मौसी अब अक्सर मुझे पलंग पर लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ कर मुझे चोदती. मेरे पेट पर बैठे बैठे वह उछल उछल कर मुझे चोदती और मैं उसकी चूचियाँ दबाता. उछलते उछलते मौसी का मंगलसूत्र उसके स्तनों के साथ डोलता तो मुझे बहुत अच्छा लगता. इस आसन में मैं उसके पैर चूमने का अपना शौक भी पूरा करने लगा. मुझे चोदते चोदते मौसी अपने पैर उठाकर मेरे चेहरे पर रख देती और मैं उसके तलवे, एड़ियाँ और उँगलियाँ चाटा और चूसा करता.

और दिन में कम से कम एक बार वह मुझे गांड मारने देती अगर मैं उसकी ठीक से सेवा करता. इस एक इनाम के लिये ही मैं मानों उसका गुलाम हो गया था.

af2

मौसी का पसीना भी मुझे बहुत मादक लगता था. यह ऐसे शुरू हुआ कि एक दिन बिजली नहीं थी और मैं मौसी को चोद रहा था. मौसी को बडा पसीना आ रहा था और उसे चूमते समय मैं बार बार उसके गालों और माथे को चाट लेता था. अचानक मुझे उसकी काँखों का ख्याल आया और मैं बोला. "मौसी, अपनी बाँहें सिर के ऊपर कर लो न." उसने गांड उछालते उछालते पूछा. "क्यों बेटे?"

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मैं बोला. "आप की काँख के बालों को चूमने का मन कर रहा है. पसीने से भीगे होंगे" मौसी को मेरी इस हरामीपन की बात पर मजा आ गया और उसने तुरंत बाँहें ऊपर कर ली. उन घने काले बालों को देखकर मेरे मुंह में पानी भर आया और उनमें मुंह डाल कर मैं उन्हें चाटने और फ़िर मुंह मे बाल ले कर चूसने लगा. खारा खारा पसीना मुझे इतना भाया कि मेरा लंड तन्नाकर और खड़ा हो गया. मेरे चोदने की गति भी बढ. गई और मैंने उसे इतनी जोर से चोदा कि जैसे शायद मौसाजी भी नहीं चोदते होंगे.

मौसी को उस दिन जो कामसुख मिला उसके कारण वह हमेशा मुझसे काँखें चटवाने की ताक में रहने लगी. "विजय राजा, मेरे प्यारे मुन्ना, कितनी जोर से चोदा मुझे आज तूने, बिलकुल तेरे मौसाजी की तरह. मेरी कमर लचका कर रख दी. अब तुझसे जोर जोर से चुदवाना या गांड मराना हो तो पहले अपनी काँख का पसीना चटवाऊँगी तुझे."

मौसी के यहाँ मैं दो महीने तक रहा और बहुत कुकर्म किये.

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मौसी के साथ मेरा काम संबंध कैसे शुरू हुआ, यह आप पढ़ ही चुके हैं. कुछ दिन बाद की बात है. मौसाजी अभी वापस नहीं आये थे और मैं मौसी के साथ अकेला ही रह रहा था. हमारी चुदाई दिन रात जोरों से चल रही थी.

एक दिन जब हम खाना खा रहे थे तो फ़ोन की घंटी बजी. फ़ोन उठाते ही मौसी के चेहरे पर एक आनंद की लहर दौड गई. उसने फ़ोन पर ही चुम्मे की आवाज की और बड़े प्यार से पूछा. "अममम, रंजन डार्लिन्ग, तू कहाँ थी? एक हफ़्ते के लिये गयी थी और आज एक महिना हो गया!"

कुछ देर रंजन की बात सुनने के बाद वह गुस्से से बोली. "क्या? तू कल फिर जा रही है? फिर मुझसे, अपनी प्यारी दीदी से नहीं मिलेगी क्या?" रंजन की सफ़ाई कुछ देर सुनने के बाद बीच में ही बात काट कर वह और गरम होकर चिल्लाई. "आज दोपहर भर मेरे साथ नहीं रही तो तेरी मेरी दोस्ती खतम. बात भी मत करना फ़िर मुझसे"

मौसी ने गुस्से से फ़ोन पटक दिया. कुछ देर बाद शांत होकर वह मुस्कराने लगी. मैंने पूछा तो बोली. "मेरी गर्ल फ़्रेन्ड रंजन का फ़ोन था. कहती है बहुत बिज़ी है और कल फ़िर यू एस जा रही है. बिना मिले ही भागने वाली थी पर मैंने धमकाया तो कैसे भी करके आज दोपहर आयेगी जरूर."

मेरे आग्रह पर मौसी ने पूरी कहानी सुनाई. औरतों के आपस के कामसंबंध के बारे में यह बडा रसीला उदाहरण था. रंजन एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी. मौसी से उसकी मुलाकात एक पार्टी में हुई थी. तब मौसी घर में अकेली ही थी क्यों की मौसाजी दौरे पर गये थे. मौसी और रंजन के बीच पहली मुलाकात में ही एक घनी दोस्ती हो गयी. मौसी ने यह भी भांप लिया कि रंजन बार बार उसे ऐसे देख रही थे जैसे उस पर मर मिटी हो. उसकी आँखों मे झलकती वासना भी मौसी ने पहचान ली थी.

मौसी ने रंजन को दूसरे दिन रात के डिनर पर बुला लिया और रंजन ने यह निमंत्रण बड़ी खुशी से स्वीकार कर लिया. डिनर खतम होते होते दोनों एक दूसरे से ऐसी बंधीं कि सीधा बेडरूम में चली गई. रात भर रंजन वहाँ रही और उस रात उनमें जो कामक्रीडा शुरू हुई, आज तक उसका क्रम टूटा नहीं था.

मौसी को पता चला कि रंजन एक लेस्बियन थी. पुरुषों से उसे नफ़रत थी और इसीलिये छब्बीस साल की होने के बावजूद उसने शादी नहीं की थी और न करने का इरादा था. उसे दूसरी औरतें बहुत आकर्षित करती थीं, खास कर उम्र में बड़ी, भरे पूरे बदन की अम्मा या आंटी टाइप की औरतें. चालीस साल होने को आई हुए मौसी और उसका माँसल शरीर तो मानों उसे ऐसे लगे कि भगवान ने उसकी इच्छा सुन ली हो. उनका कामसंबंध पिछले साल से जो शुरू हुआ वह आज तक कायम था और बढता ही जा रहा था. रंजन मौसी को कभी दीदी कहती तो कभी मम्मी, खास कर संभोग के समय.

मौसी ने हंसते हुए यह भी बताया कि काफ़ी बार मौसी की बाँहों में रंजन यह कल्पना करती कि वह अपनी माँ के आगोश में है और उससे कामक्रीडा कर रही है. रंजन को अक्सर बाहर जाना पडता पर जब भी वह शहर में होती और मौसाजी दौरे पर होते, तब वह मौसी के यहाँ रहने को चली आती और दोनों एक दूसरे के शरीर का भरपूर आनंद उठाते. आज रंजन आने वाली नहीं थी पर मौसी के धमकाने से घबराकर आने का वायदा जरूर निभायेगी ऐसा मौसी का विश्वास था.

स्त्री - स्त्री संभोग की यह कहानी सुनते सुनते मेरा लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया. मौसी ने देखा तो हंसने लगी. बोली. "बेटे, आज तेरी नहीं चलेगी, रंजन तो बिलकुल बरदाश्त नहीं करेगी कि कोई पुरुष हमारे बीच में आये, भले ही वह तेरे जैसा प्यारा कमसिन किशोर ही क्यों न हो. अगर उसे पता चला कि तू यहाँ है तो वह शायद रुकने को भी तैयार नहीं होगी."

मुझे बडा बुरा लगा. एक तो उस सुंदर युवती के साथ संभोग का मेरा सपना टूट गया, दूसरे यह कि मेरे कारण मौसी की अपनी प्यारी प्रेमिका के साथ चुदाई भी खट्टे में न पड जाये.

मौसी ने मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देखा तो मुझे ढाढस बंधाती हुई बोली. "तू फ़िकर मत कर बेटे, तू दूसरे कमरे में रहना. दोनों कमरों के बीच एक आइना है. मेरे कमरे में से वह आइना लगता है पर दूसरे कमरे में से उसमें से सब साफ़ दिखता है. तू आराम से मजा लेना. हाँ, एक बात यह कि तेरे हाथ-पैर और मुंह मैं बांध दूँगी. अगर अनजाने में कोई आवाज की तो सब खटाई में पड जायेगा. और दूसरे यह कि उस मस्त छोकरी के रूप को देखने के बाद तू जरूर मुठ्ठ मारेगा और यह मैं नहीं होने दूँगी, तेरा लंड मैं अपने लिये बचा कर रखूंगी."

प्रिया मौसी ने फ़टाफ़ट टेबल और किचन साफ़ किया और मुझे दूसरे कमरे में ले गई. यहाँ उसने मुझे उस एक तरफ़े आइने के सामने (वन-वे-मिरर) एक कुर्सी में बिठाया और फ़िर मेरे हाथ पैर कस के कुर्सी से बांध दिये. फ़िर धोने के कपड़ों में से अपनी एक मैली ब्रेसियर और पेन्टी उठा लाई और मुझसे मुंह खोलने को कहा. मुंह में वह ब्रा और चड्डी ठूंसने के बाद उसने एक और ब्रेसियर से मेरे मुंह पर पट्टी बांध दी.

यह करते हुए मेरे थरथराते लंड को देखकर वह दुष्टा हंस रही थी क्यों की उसे मालूम था कि उसके शरीर की सुगंध और पसीने से सराबोर उन पहने हुए अंतर्वस्त्रों का मुझ पर क्या असर होगा. जान बूझकर मुझे उत्तेजित करने और मेरा लंड तन्नाने के लिये उसने ऐसा किया था. पूरी तरह बांधने के बाद मौसी ने मुझे प्यार से चूमा और दरवाजा लगाती हुई अपने कमरे में तैयार होने को चली गई. उसका सजना और संवरना मुझे साफ़ कांच में से दिख रहा था.

मौसी ने अपनी रंजन रानी के लिये बड़े मन से तैयारी की. नंगी होकर पहले एक कसी हुई काली ब्रेसियर और पेन्टी पहनी जो उसके गोरे गदराये बदन पर गजब ढा रही थी, फ़िर एक सादी सफ़ेद साड़ी और लम्बे बाहों का अम्मा स्टाइल का ब्लाउज़ पहना. मेकअप बिल्कुल नहीं किया पर माथे पर एक बड़ी बिम्दी लगाई. अपने घने बाल जूड़े में बांधे और उसमें गजरा पहना. आखिर में अपनी कलाई में बहुत सी चूड़ियाँ पहन ली; अब वह एक आकर्षक मध्यम आयु की असली भारतीय नारी लग रही थी. मैं समझ गया कि ऐसा उसने रंजन की माँ की चाह को पूरा करने के लिये किया है.

milf
तभी डोरबेल बजी ओर मेरी ओर देख कर मुस्करा कर मौसी ने मुझे आँख मारी कि तैयार रह तमाशा देखने के लिये और कमरे के बाहर चली गई, दरवाजा खोलने के लिये.

मुझे हंसने और खिलखिलाने की आवाजें आई और साथ ही पटापट खूब चुंबन लिये जाने के स्वर भी सुनाई दिये. कुछ ही देर में एक जवान युवती से लिपटी मौसी कमरे में आई. वह युवती इतने जोर जोर से मौसी को चूम रही थी कि मौसी चलते चलते लडखड़ा जाती थी. "अरे बस बस, कितना चूमेगी, जरा सांस तो लेने दे" मौसी ने भी रंजन को चूमते हुए कहा पर वह तो मौसी के होंठों पर अपने होंठ दबाये बेतहाशा उसके चुंबन लेती रही.

lki

Wah vakharia Bhai,

Kyam mast update post ki he..............

Uttejna aur kamukta se bharpur...............

Ranjana ke sath mausi ke sath ab lesbian sex bhi dekhne ko milega................magar vijay ko bandhkar mausi ne use bas ek muk darshak hi bana diya.........

Agli dhamakedar update ki pratiksha rahegi Bhai
 

Ek number

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प्रिया मौसी ने भी अपनी गांड के छल्ले से उसे कस के पकडा और गाय के थन जैसा दुहने लगी. पर मैंने अभी भी धक्के लगाना शुरू नहीं किया क्यों की इस बार मैं खूब देर तक उसकी गांड मारना चाहता था. अब मौसी ही इतनी गरम हो गई कि मुझे डाँट कर बोली. "विजय, बहुत हो गया खेल, मार अब मेरी गांड. चोद डाल उसे"

मौसी की आज्ञा मान कर मैंने उसकी गांड मारना शुरू कर दी. धीरे धीरे मैं अपनी स्पीड बढ़ाता गया और जल्दी ही उचक उचक कर पूरे जोर से उसके चूतड़ों में अपना लंड पेलने लगा. मौसी भी अपनी उत्तेजना में चिल्ला चिल्ला कर मुझे बढ़ावा देने लगी. "मार जोर से मौसी की गांड, विजय बेटे, हचक हचक के मार. मेरे मम्मे कुचल डाल, उन्हें दबा दबा कर पिलपिला कर दे मेरे बच्चे. फ़ाड दे मेरे चूतड़ों का छेद, खोल दे उसे पूरा"

af
मैंने अपना पूरा जोर लगाया और इस बुरी तरह से उसकी गांड मारी कि मौसी का पूरा शरीर मेरे धक्कों से हिलने लगा. पलंग भी चरमराने लगा. आखिर मैं एक चीख के साथ झडा और लस्त होकर मौसी की पीठ पर ही ढेर हो गया.

मौसी अभी भी पूरी गरम थी. वह गांड उचकाती हुई मेरे झड़े लंड से भी मराने की कोशिश करती रही. जब उसने देखा कि मैं शांत हो गया हूँ और लंड जरा सा हो गया है तो उसने तपाक से मेरा लंड खींच कर अपने गुदा से निकाला और उठ बैठी. मुझे पलंग पर पटक कर उसने मेरे सिर के नीचे एक तकिया रखा और फ़िर मेरे चेहरे पर बैठ गई. अपनी चूत उसने मेरे मुंह पर जमा दी और फ़िर उछल उछल कर मेरे होंठों पर हस्तमैथुन करने लगी.


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सारे दिन हम इसी तरह से काम क्रीडा करते रहे. मेरा इनाम देने के बाद मौसी ने उसे मुझसे पूरा वसूला और दिन भर अपनी चूत चुसवाई. कभी खड़े होकर, कभी लेट कर कभी पीछे से कुतिया जैसी पोज़ीशन में. रात को आखिर उसने मुझे फ़िर से एक बार चोदने दिया और फ़िर हम थक कर सो गए.

अगले कुछ दिन तो मेरे लिये स्वर्ग से थे. मौसी ने पहले तो मुझे दिन दिन भर बिना झड़े लंड खड़ा रखना सिखाया. इसके बाद वह मुझसे खूब सेवा करवाती. जब वह खाना बनाती तो मैं उसके पीछे खड़ा होकर उसके मम्मे दबाता. कभी कभी मैं पीछे बैठकर उसकी साड़ी उठाकर उसकी गांड चूसा करता था. मूड हो तो मौसी मुझे अपने आगे बिठा कर साड़ी उठाकर मेरे सिर पर डाल देती और फ़िर मुझसे चूत चुसवाते हुए आराम से चपातियाँ बनाती.

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मौसी अब अक्सर मुझे पलंग पर लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ कर मुझे चोदती. मेरे पेट पर बैठे बैठे वह उछल उछल कर मुझे चोदती और मैं उसकी चूचियाँ दबाता. उछलते उछलते मौसी का मंगलसूत्र उसके स्तनों के साथ डोलता तो मुझे बहुत अच्छा लगता. इस आसन में मैं उसके पैर चूमने का अपना शौक भी पूरा करने लगा. मुझे चोदते चोदते मौसी अपने पैर उठाकर मेरे चेहरे पर रख देती और मैं उसके तलवे, एड़ियाँ और उँगलियाँ चाटा और चूसा करता.

और दिन में कम से कम एक बार वह मुझे गांड मारने देती अगर मैं उसकी ठीक से सेवा करता. इस एक इनाम के लिये ही मैं मानों उसका गुलाम हो गया था.

af2

मौसी का पसीना भी मुझे बहुत मादक लगता था. यह ऐसे शुरू हुआ कि एक दिन बिजली नहीं थी और मैं मौसी को चोद रहा था. मौसी को बडा पसीना आ रहा था और उसे चूमते समय मैं बार बार उसके गालों और माथे को चाट लेता था. अचानक मुझे उसकी काँखों का ख्याल आया और मैं बोला. "मौसी, अपनी बाँहें सिर के ऊपर कर लो न." उसने गांड उछालते उछालते पूछा. "क्यों बेटे?"

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मैं बोला. "आप की काँख के बालों को चूमने का मन कर रहा है. पसीने से भीगे होंगे" मौसी को मेरी इस हरामीपन की बात पर मजा आ गया और उसने तुरंत बाँहें ऊपर कर ली. उन घने काले बालों को देखकर मेरे मुंह में पानी भर आया और उनमें मुंह डाल कर मैं उन्हें चाटने और फ़िर मुंह मे बाल ले कर चूसने लगा. खारा खारा पसीना मुझे इतना भाया कि मेरा लंड तन्नाकर और खड़ा हो गया. मेरे चोदने की गति भी बढ. गई और मैंने उसे इतनी जोर से चोदा कि जैसे शायद मौसाजी भी नहीं चोदते होंगे.

मौसी को उस दिन जो कामसुख मिला उसके कारण वह हमेशा मुझसे काँखें चटवाने की ताक में रहने लगी. "विजय राजा, मेरे प्यारे मुन्ना, कितनी जोर से चोदा मुझे आज तूने, बिलकुल तेरे मौसाजी की तरह. मेरी कमर लचका कर रख दी. अब तुझसे जोर जोर से चुदवाना या गांड मराना हो तो पहले अपनी काँख का पसीना चटवाऊँगी तुझे."

मौसी के यहाँ मैं दो महीने तक रहा और बहुत कुकर्म किये.

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मौसी के साथ मेरा काम संबंध कैसे शुरू हुआ, यह आप पढ़ ही चुके हैं. कुछ दिन बाद की बात है. मौसाजी अभी वापस नहीं आये थे और मैं मौसी के साथ अकेला ही रह रहा था. हमारी चुदाई दिन रात जोरों से चल रही थी.

एक दिन जब हम खाना खा रहे थे तो फ़ोन की घंटी बजी. फ़ोन उठाते ही मौसी के चेहरे पर एक आनंद की लहर दौड गई. उसने फ़ोन पर ही चुम्मे की आवाज की और बड़े प्यार से पूछा. "अममम, रंजन डार्लिन्ग, तू कहाँ थी? एक हफ़्ते के लिये गयी थी और आज एक महिना हो गया!"

कुछ देर रंजन की बात सुनने के बाद वह गुस्से से बोली. "क्या? तू कल फिर जा रही है? फिर मुझसे, अपनी प्यारी दीदी से नहीं मिलेगी क्या?" रंजन की सफ़ाई कुछ देर सुनने के बाद बीच में ही बात काट कर वह और गरम होकर चिल्लाई. "आज दोपहर भर मेरे साथ नहीं रही तो तेरी मेरी दोस्ती खतम. बात भी मत करना फ़िर मुझसे"

मौसी ने गुस्से से फ़ोन पटक दिया. कुछ देर बाद शांत होकर वह मुस्कराने लगी. मैंने पूछा तो बोली. "मेरी गर्ल फ़्रेन्ड रंजन का फ़ोन था. कहती है बहुत बिज़ी है और कल फ़िर यू एस जा रही है. बिना मिले ही भागने वाली थी पर मैंने धमकाया तो कैसे भी करके आज दोपहर आयेगी जरूर."

मेरे आग्रह पर मौसी ने पूरी कहानी सुनाई. औरतों के आपस के कामसंबंध के बारे में यह बडा रसीला उदाहरण था. रंजन एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी. मौसी से उसकी मुलाकात एक पार्टी में हुई थी. तब मौसी घर में अकेली ही थी क्यों की मौसाजी दौरे पर गये थे. मौसी और रंजन के बीच पहली मुलाकात में ही एक घनी दोस्ती हो गयी. मौसी ने यह भी भांप लिया कि रंजन बार बार उसे ऐसे देख रही थे जैसे उस पर मर मिटी हो. उसकी आँखों मे झलकती वासना भी मौसी ने पहचान ली थी.

मौसी ने रंजन को दूसरे दिन रात के डिनर पर बुला लिया और रंजन ने यह निमंत्रण बड़ी खुशी से स्वीकार कर लिया. डिनर खतम होते होते दोनों एक दूसरे से ऐसी बंधीं कि सीधा बेडरूम में चली गई. रात भर रंजन वहाँ रही और उस रात उनमें जो कामक्रीडा शुरू हुई, आज तक उसका क्रम टूटा नहीं था.

मौसी को पता चला कि रंजन एक लेस्बियन थी. पुरुषों से उसे नफ़रत थी और इसीलिये छब्बीस साल की होने के बावजूद उसने शादी नहीं की थी और न करने का इरादा था. उसे दूसरी औरतें बहुत आकर्षित करती थीं, खास कर उम्र में बड़ी, भरे पूरे बदन की अम्मा या आंटी टाइप की औरतें. चालीस साल होने को आई हुए मौसी और उसका माँसल शरीर तो मानों उसे ऐसे लगे कि भगवान ने उसकी इच्छा सुन ली हो. उनका कामसंबंध पिछले साल से जो शुरू हुआ वह आज तक कायम था और बढता ही जा रहा था. रंजन मौसी को कभी दीदी कहती तो कभी मम्मी, खास कर संभोग के समय.

मौसी ने हंसते हुए यह भी बताया कि काफ़ी बार मौसी की बाँहों में रंजन यह कल्पना करती कि वह अपनी माँ के आगोश में है और उससे कामक्रीडा कर रही है. रंजन को अक्सर बाहर जाना पडता पर जब भी वह शहर में होती और मौसाजी दौरे पर होते, तब वह मौसी के यहाँ रहने को चली आती और दोनों एक दूसरे के शरीर का भरपूर आनंद उठाते. आज रंजन आने वाली नहीं थी पर मौसी के धमकाने से घबराकर आने का वायदा जरूर निभायेगी ऐसा मौसी का विश्वास था.

स्त्री - स्त्री संभोग की यह कहानी सुनते सुनते मेरा लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया. मौसी ने देखा तो हंसने लगी. बोली. "बेटे, आज तेरी नहीं चलेगी, रंजन तो बिलकुल बरदाश्त नहीं करेगी कि कोई पुरुष हमारे बीच में आये, भले ही वह तेरे जैसा प्यारा कमसिन किशोर ही क्यों न हो. अगर उसे पता चला कि तू यहाँ है तो वह शायद रुकने को भी तैयार नहीं होगी."

मुझे बडा बुरा लगा. एक तो उस सुंदर युवती के साथ संभोग का मेरा सपना टूट गया, दूसरे यह कि मेरे कारण मौसी की अपनी प्यारी प्रेमिका के साथ चुदाई भी खट्टे में न पड जाये.

मौसी ने मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देखा तो मुझे ढाढस बंधाती हुई बोली. "तू फ़िकर मत कर बेटे, तू दूसरे कमरे में रहना. दोनों कमरों के बीच एक आइना है. मेरे कमरे में से वह आइना लगता है पर दूसरे कमरे में से उसमें से सब साफ़ दिखता है. तू आराम से मजा लेना. हाँ, एक बात यह कि तेरे हाथ-पैर और मुंह मैं बांध दूँगी. अगर अनजाने में कोई आवाज की तो सब खटाई में पड जायेगा. और दूसरे यह कि उस मस्त छोकरी के रूप को देखने के बाद तू जरूर मुठ्ठ मारेगा और यह मैं नहीं होने दूँगी, तेरा लंड मैं अपने लिये बचा कर रखूंगी."

प्रिया मौसी ने फ़टाफ़ट टेबल और किचन साफ़ किया और मुझे दूसरे कमरे में ले गई. यहाँ उसने मुझे उस एक तरफ़े आइने के सामने (वन-वे-मिरर) एक कुर्सी में बिठाया और फ़िर मेरे हाथ पैर कस के कुर्सी से बांध दिये. फ़िर धोने के कपड़ों में से अपनी एक मैली ब्रेसियर और पेन्टी उठा लाई और मुझसे मुंह खोलने को कहा. मुंह में वह ब्रा और चड्डी ठूंसने के बाद उसने एक और ब्रेसियर से मेरे मुंह पर पट्टी बांध दी.

यह करते हुए मेरे थरथराते लंड को देखकर वह दुष्टा हंस रही थी क्यों की उसे मालूम था कि उसके शरीर की सुगंध और पसीने से सराबोर उन पहने हुए अंतर्वस्त्रों का मुझ पर क्या असर होगा. जान बूझकर मुझे उत्तेजित करने और मेरा लंड तन्नाने के लिये उसने ऐसा किया था. पूरी तरह बांधने के बाद मौसी ने मुझे प्यार से चूमा और दरवाजा लगाती हुई अपने कमरे में तैयार होने को चली गई. उसका सजना और संवरना मुझे साफ़ कांच में से दिख रहा था.

मौसी ने अपनी रंजन रानी के लिये बड़े मन से तैयारी की. नंगी होकर पहले एक कसी हुई काली ब्रेसियर और पेन्टी पहनी जो उसके गोरे गदराये बदन पर गजब ढा रही थी, फ़िर एक सादी सफ़ेद साड़ी और लम्बे बाहों का अम्मा स्टाइल का ब्लाउज़ पहना. मेकअप बिल्कुल नहीं किया पर माथे पर एक बड़ी बिम्दी लगाई. अपने घने बाल जूड़े में बांधे और उसमें गजरा पहना. आखिर में अपनी कलाई में बहुत सी चूड़ियाँ पहन ली; अब वह एक आकर्षक मध्यम आयु की असली भारतीय नारी लग रही थी. मैं समझ गया कि ऐसा उसने रंजन की माँ की चाह को पूरा करने के लिये किया है.

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तभी डोरबेल बजी ओर मेरी ओर देख कर मुस्करा कर मौसी ने मुझे आँख मारी कि तैयार रह तमाशा देखने के लिये और कमरे के बाहर चली गई, दरवाजा खोलने के लिये.

मुझे हंसने और खिलखिलाने की आवाजें आई और साथ ही पटापट खूब चुंबन लिये जाने के स्वर भी सुनाई दिये. कुछ ही देर में एक जवान युवती से लिपटी मौसी कमरे में आई. वह युवती इतने जोर जोर से मौसी को चूम रही थी कि मौसी चलते चलते लडखड़ा जाती थी. "अरे बस बस, कितना चूमेगी, जरा सांस तो लेने दे" मौसी ने भी रंजन को चूमते हुए कहा पर वह तो मौसी के होंठों पर अपने होंठ दबाये बेतहाशा उसके चुंबन लेती रही.

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