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Incest भाँजा लगाए तेल, मौसी करे खेल

vakharia

Supreme
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बहुत ही कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
मौसी और रंजन का लेस्बिअन खेल बहुत ही रोमांचक और मदमस्त हैं
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
❤️❤️
 

vakharia

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झडने के बाद देखा तो मौसी सो गई थी और खर्राटे ले रही थी. पर मैंने और मजा लेने की सोची और तीसरी बार हचक हचक कर रुक रुक कर घंटे भर मौसी की गांड चोदी तब जाकर मेरी वासना शांत हुई. गांड मारते हुए मैंने मौसी की चूचियाँ भी मन भर कर जैसा मेरा मन चाहा दबाई और मसली. मौसी सोती ही रही. आखिर आधी रात को मैं अपना पूरा वीर्य उसके गुदा में निकालकर फ़िर ही सोया.

--- आगे ---

मौसी के साथ गर्मी की छुट्टी में मैंने अकेले में मस्त चुदाई शुरू कर दी थी. मौसाजी तब दौरे पर थे. मैंने मौसी से पूछा कि उसके और रंजन के बारे में क्या मौसाजी को मालूम है?

उसने हाँ कहा और पूरी बात बता दी. "अरे तेरे मौसाजी भी कम नहीं हैं. दूसरे शहर में उनकी भी एक दो दोस्त है जिनके संग वह गुलछर्रे उड़ाते है. पर मैंने तेरे सिवा किसी और पुरुष से नहीं चुदवाया. हाँ रंजन जैसी गर्ल फ़्रेन्ड जरूर बना ली. असल में हम दोनों बाइ-सेक्सुअल हैं. इसीलिये हमने शादी की और एक दूसरे पर कोई बंधन नहीं रखा है. वैसे उन्हें यह भी मालूम है कि मैं तेरे साथ क्या कर रही हूँ. मैंने उन्हें पहले ही बता दिया था. वे भी बोले कि हाँ घर का ही प्यारा लड़का है, मैं जो चाहे कर लूँ"

सुनकर मुझे बडा मजा आया. पर जब मौसाजी वापस आए तो मैं जरा उदास हो गया. मुझे लगा कि अब मौसी के गदराये शरीर का भोग करना मेरे नसीब में नहीं है. पर हुआ बिल्कुल उल्टा. तीन शरीरों की जुगलबंदी शुरू हो गई.

हुआ यह कि जब मौसाजी वापस आये तो उन्हों ने जरा भी जाहिर नहीं किया कि उन्ह्मे मेरे और मौसी के संबंध के बारे में मालूम है. मैं भी चुप रहा. उस रात मैं एक दूसरे कमरे में सोया. बड़ी रात तक सोने की कोशिश कर रहा था. रात को मौसी से संभोग की आदत हो जाने से मुझे अकेले नींद नहीं आ रही थी और इसलिये एक चुदाई की किताब पढ़ रहा था. मौसाजी और मौसी अपने कमरे में थे. वहाँ से हंसने खेलने की आवाजें आ रही थीं.

अंत में लंड बुरी तरह खड़ा हो गया. मैं बस बत्ती बुझा कर मुठ्ठ मार कर सोने ही वाला था कि मौसी ने मुझे आवाज दी. "विजय, अकेला क्या कर रहा है बेटा? यहाँ आ जा."

मुझे समझ में नहीं आया कि आज की रात तो मौसी अपने पति की बाँहों मैं है तो मुझे क्यों कबाब में हड्डी बनने को बुला रही है. मैंने दरवाजा खटखटाया. मौसी चिल्लाई. "आ जा बेटे, दरवाजा खुला है".

मैं अंदर आया तो देखता ही रह गया. आँखें फ़टी रह गईं और लंड और खड़ा हो गया. अजय अंकल आराम कुर्सी में बैठे थे और मौसी उनकी गोद में बैठी थी. दोनों मादरजात नंगे थे. मौसी की टांगें पसरी हुई थीं और मौसाजी का मोटा लंड मौसी के गुदा में जड तक धंसा हुआ था. मौसाजी का एक हाथ अपनी पत्नी की चूत में दो उँगलियाँ अंदर बाहर कर रहा था और दूसरे हाथ से वे मौसी के मम्मे दबा रहे थे. आपस में चूमा चाटी भी चल रही थी.

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मौसी मेरी ओर देख कर बोली. "तुझे क्या लगा बेटे, तेरे को अकेले तडपते हुए छोड देंगे हम?" अंकल भी मुझे आँख मार कर बोले. "विजय, तेरी मौसी की चूत को तेरे मुंह की बहुत याद आ रही है. देख कितना रस बहा रही है तेरे लिये. तेरी मौसी भी अड़ी है, बोली चूत का रस पिलाऊँगी तो सिर्फ़ अपने प्यारे भांजे को!"

मौसी ने अपनी जांघें और फ़ैला दीं और बाँहें पसार कर मुझे पास बुलाया. "विजय, नंगा हो जा और जल्दी से मौसी की जांघों में समा जा बेटे, चूस ले अपनी मौसी की बुर. तुझे रस पिलाये बिना यह चूत ठंडी नहीं होगी."

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मैंने काँपते हाथों से कपड़े उतारे और दौड कर मौसी के सामने उसकी जांघों के बीच बैठ कर मौसी की टपकती बुर में मुंह डाल दिया. मौसी की गांड का छेद मेरे मुंह से बस दो तीन इंच दूर था और मौसी का तनकर खुला गुदाद्वार और उसमें फंसा मोटा ताजा लंड देखकर मैं और उत्तेजित हो रहा था. चूत का स्वाद लेते हुए मेरी जीभ कभी कभी गांड और लंड तक पहुँच जाती थी.

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मौसाजी नीचे से ही मौसी की गांड मार रहे थे और लंड गुदा में से एक दो इंच अंदर बाहर हो रहा था. मौसाजी ने अब दोनों हाथों से मौसी की चूचियाँ मसलना शुरू कर दी थीं और मैं अपनी जीभ उसके क्लिट पर रगड रहा था. मौसी ने मेरे सिर को कस कर अपनी बुर पर दबाया और हुमक कर झड गई. बाहर उबल उबल कर निकलते उस चिपचिपे पानी को मैंने चाट चाट कर साफ़ किया और फ़िर मौसी की झांटों से ढके भगोष्ठों का प्रेम से चुंबन लेने लगा.

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बुर चटवाकर मौसी ने मुझे ऊपर खींच कर अपने सामने खड़ा कर लिया. मेरा खड़ा लंड बिलकुल मौसी के चेहरे के सामने मचल रहा था. उसे पकड कर मौसी ने चूमा और फ़िर मौसाजी को दिखाया. "देखो, कितना प्यारा रसीला लंड है मेरे भांजे का. अभी पूरा जवान भी नहीं है लड़का, एकदम कमसिन है. पर मुझ पिछले दो हफ्तों में बहुत सुख दिया है इसने"

मौसाजी बोले "अरे, फ़िर इसे शुक्रिया तो जरूर कहना चाहिये"

मैं लंड में होते मीठे आनंद का मजा लेते हुए सांस लेने को पलंग पर बैठ गया. मौसाजी गरमा गये थे. मौसी को बोले. "चल प्रिया रानी, पलंग पर लेट जा, तेरी गांड मारूँगा अब."

मौसी को कमर से पकड़ कर वैसे ही लंड गांड में घुसाये हुए उन्हों ने उठाया और लाकर पलंग पर पटक दिया. मौसी ने सरककर प्यार से अपना सिर मेरी गोद में रख दिया और मेरे लंड का चुंबन लेने लगी. उधर मौसाजी अब तक मौसी पर चढ़कर उसकी गांड मारने में जुट गये थे. ऐसी जोरदार गांड चोदने की क्रिया मैंने पहली बार देखी थी. मौसाजी का कडा मोटा लंड मौसी की कोमल गांड के छेद को चौडा करता हुआ सटासट अंदर बाहर हो रहा था.

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जब लंड बाहर निकलता तो उस की साइज़ देखकर मैं हैरान रह जाता कि आखिर कैसे मौसी इतने बड़े लंड को अंदर लेती है. मौसी धीरे धीरे कराह रही थी और मुझे लगा कि उसे दर्द हो रहा होगा पर उसके चेहरे पर तो बड़े तृप्त भाव थे. अब मैं समझ गया कि पहली बार जब मैंने मौसी की गांड मारी थी तो कैसे मेरा लंड आराम से मौसी की गांड में चला गया था. मौसाजी का हलब्बी लंड लेने के बाद मेरा कमसिन लंड तो उसके लिये बच्चों का खेल था.

मौसी ने अब तक मेरे लंड को चूम चूम कर फ़िर खड़ा कर दिया था. गांड मरवाते हुए पूरा लंड मुंह में लेकर वह आराम से चूस रही थी. मौसाजी अब झडने के करीब आ गये थे और तैश में आकर गंदी गंदी बातें कहते हुए पूरे जोर से मौसी की गांड मार रहे थे. "तेरी गांड मारूँ मेरी चुदैल रानी, तेरे मस्त मोटे चूतड़ों को चोदूँ. साली चुदैल, रंडी, क्या गांड है तेरी मेरी जान!"

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मौसाजी पूरे जोर से हचक हचक कर मौसी की गांड मारने लगे. मैं भी उचक उचक कर नीचे से ही मौसी के मुंह को चोदने की कोशिश करने लगा. उधर मौसाजी ने चार पाँच करारे धक्के लगाये और झड गये. उनकी गरम गरम सांसें जोर जोर से चल रही थीं.

आखिर तृप्त होकर मौसाजी धीरे से मुस्कराते हुए मौसी पर लेट गये और सुस्ताने लगे. मैं अब बहुत उत्तेजित था और किसी भी तरह संभोग करना चाहता था. बहुत देर से मौसी की चूत चूसने की भी मुझे तीव्र इच्छा हो रही थी. मौसी को मैंने कहा कि पलट कर सीधी हो जाए जिससे मैं उसकी चूत चूस सकूँ. मौसी मुस्कराकर बोली. "विजय, मेरी बुर का पानी बहुत पिया है, आज मेरी गांड चूस कर देख ले”

यह कल्पना ही इतनी मादक थी कि मैं तुरंत मौसी के चूतड़ों पर लपक पड़ा और गांड पर मुंह लगाकर चूसने लगा. मौसी की गांड का स्वाद का क्या कहना. मैं चूस चूस कर चटकारे लगाने लगा. मौसाजी ने अपनी पत्नी के चूतड फ़ैला कर रखे जिससे मैं आसानी से माल चूस सकूँ. वे बोले. "बडा प्यारा और चिकना लड़का है. उसका लंड कैसा तन्ना कर खड़ा है देख"

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अंत में मैंने जीभ अंदर डाल कर पूरी गांड के छेद को चाट लिया. मौसी हंस कर उठ बैठी. "बहुत हो गया बेटे, अब कुछ नहीं बचा मेरी गांड के अंदर" अपनी टांगें फ़ैला कर वह लेट गयी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया."चल अब चोद मुझे जल्दी से."

मैं हचक हचक कर प्रिया मौसी को चोदने लगा. मौसाजी ने सिरहाने बैठकर अपना लंड मौसी के मुंह पर दे दिया और वह उसे अपने गालों और आँखों पर प्यार से रगडने लगी. लंड मेरे ठीक सामने था और इतने पास से मैंने पहली बार उसे ठीक से देखा. करीब सात इंच लम्बा बड़े गाजर जैसा मोटा गोरा लंड और उस पर लाल लाल टमाटर जैसा सुपाडा!!

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मौसाजी अब जोश में थे और मौसी की चूत चूसने को अधीर थे. अब वह मौसी की बुर को चूसने लगे. मौसी ने भी उनका सिर अपनी जांघों में कैद कर लिया और खिलखिलाती हुई चुत चुसवाने लगी.

जब तक उन्हों ने मौसी की चूत खाली की, मौसी एक बार और झड चुकी थी. तैश में आये मौसाजी अब मौसी पर चढ़ कर उसे चोदने लगे. उनकी इस रति क्रीडा को देखकर मैं धीरे धीरे फ़िर मस्ती में आ गया. मेरा लंड खड़ा देखकर अंकल बोले." यह लड़का तो बडा काम का है प्रिया, देख कैसा खड़ा है इसका दो बार झड कर भी. विजय, तू मौसी की गांड मार ले, दोनों एक साथ इस चुदैल को सेन्डविच बना कर आगे पीछे से चोदते हैं."

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मौसी के चूत में अपना लंड वैसा ही घुसाये रखकर पलट कर वे नीचे हो गये और मौसी को ऊपर कर दिया. मौसी के मोटे गोरे चूतड मेरे सामने थे. अंकल ने मेरी आसानी के लिये अपनी पत्नी के चूतड पकड़ कर फ़ैलाये और मैंने एक की वार में घच्च से पूरा लंड मौसी की गांड में उतार दिया. अब मैं ऊपर से मौसी की गांड मारने लगा और मौसाजी उसे नीचे से ही धक्के दे दे कर चोदने लगे. मौसी को तो इस दोहरी चुदाई में ऐसा मजा आया कि वह सिसकारियाँ भरने लगी. चूत और गांड के बीच की बारीक दीवार में से हम दोनों को एक दूसरे के लंडों का दबाव ऐसा महसूस हो रहा था जैसे बीच में कुछ न हो.

"विजय बेटे, मौसी की गांड मस्त हो कर मारो, पर झडना मत जब तक मैं न कहूँ, दोनों एक साथ झड़ेंगे" अंकल बोले. अब हम दोनों अपनी पूरी ताकत से मौसी के दोनों छेद चोदने लगे. बार बार पलट कर कभी मौसाजी नीचे होते कभी मैं. इससे बारी बारी से हम दोनों को ऊपर चढ़ कर कस कर ठुकाई करने का मौका मिलता. बीस मिनिट हमने इसी तरह मौसी को भोगा और वह तीन बार झड़ी. अब तो वह मस्ती में किसी नई नवेली दुल्हन जैसे चिल्ला रही थी." ऊऽई माँऽ, मर गईऽऽ, हाऽय रेऽ, मार डाऽलाऽ रे दोनों ने मिलकर, अरे हरामियो, दया करो, क्या फ़ाड दोगे मेरे दोनों छेद!"

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आखिर जब मैं ऊपर था तब मौसाजी ने इशारा किया और मैंने उछल उछल कर मौसी की गांड बेतहाशा चोद डाली और झड गया. पलट कर अब मैं नीचे हो गया और मौसाजी ऊपर से चोदने लगे. मौसी ने अब अपनी एक उंगली मौसाजी के गुदा में घुसेड़ दी और इसके साथ ही मौसाजी इतनी जोर से झड़े कि चिल्ला उठे.

कुछ देर पड़े पड़े हम तीनों इस सुख का आनंद लेते रहे. फ़िर रस चूसने का एक और कार्यक्रम हुआ. मैंने मौसी की चूत चूसी और उसमें से मौसी के बुर के पानी और अंकल के वीर्य का मिश्रण पिया. मौसाजी ने अपनी पत्नी की गांड चूस कर उसमें से मेरे वीर्य का पान किया. अब हम तीनों थक गये थे और बिलकुल तृप्त भी हो गये थे. तीनों लिपट कर सो गये. ऐसी गहरी नींद लगी कि पता ही नहीं चला कि कब सबेरा हुआ.

मेरी नींद बहुत देर से खुली. मौसी और मौसाजी के हंसने और बोलने की आवाज बाथरूम से आ रही थी. मुझे लगा कि शायद नहा रहे होंगे पर कुछ देर बाद दोनों बिलकुल नंगे बाहर आये तो बिना नहाये. मुझे अचरज लगा कि वे अंदर क्या कर रहे थे. कल भी मौसाजी वापस आने के बाद मौसी को लेकर बाथरूम में चले गये थे. दोनों काफ़ी देर एक साथ बाथरूम में थे. वे वहाँ क्या करते हैं, इस रहस्य का पता मुझे काफ़ी देर बाद चला.

चाय पीकर हम तीनों एक साथ नहाने गये.
 

Rajizexy

Lovely❤ Doc
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झडने के बाद देखा तो मौसी सो गई थी और खर्राटे ले रही थी. पर मैंने और मजा लेने की सोची और तीसरी बार हचक हचक कर रुक रुक कर घंटे भर मौसी की गांड चोदी तब जाकर मेरी वासना शांत हुई. गांड मारते हुए मैंने मौसी की चूचियाँ भी मन भर कर जैसा मेरा मन चाहा दबाई और मसली. मौसी सोती ही रही. आखिर आधी रात को मैं अपना पूरा वीर्य उसके गुदा में निकालकर फ़िर ही सोया.

--- आगे ---

मौसी के साथ गर्मी की छुट्टी में मैंने अकेले में मस्त चुदाई शुरू कर दी थी. मौसाजी तब दौरे पर थे. मैंने मौसी से पूछा कि उसके और रंजन के बारे में क्या मौसाजी को मालूम है?

उसने हाँ कहा और पूरी बात बता दी. "अरे तेरे मौसाजी भी कम नहीं हैं. दूसरे शहर में उनकी भी एक दो दोस्त है जिनके संग वह गुलछर्रे उड़ाते है. पर मैंने तेरे सिवा किसी और पुरुष से नहीं चुदवाया. हाँ रंजन जैसी गर्ल फ़्रेन्ड जरूर बना ली. असल में हम दोनों बाइ-सेक्सुअल हैं. इसीलिये हमने शादी की और एक दूसरे पर कोई बंधन नहीं रखा है. वैसे उन्हें यह भी मालूम है कि मैं तेरे साथ क्या कर रही हूँ. मैंने उन्हें पहले ही बता दिया था. वे भी बोले कि हाँ घर का ही प्यारा लड़का है, मैं जो चाहे कर लूँ"

सुनकर मुझे बडा मजा आया. पर जब मौसाजी वापस आए तो मैं जरा उदास हो गया. मुझे लगा कि अब मौसी के गदराये शरीर का भोग करना मेरे नसीब में नहीं है. पर हुआ बिल्कुल उल्टा. तीन शरीरों की जुगलबंदी शुरू हो गई.

हुआ यह कि जब मौसाजी वापस आये तो उन्हों ने जरा भी जाहिर नहीं किया कि उन्ह्मे मेरे और मौसी के संबंध के बारे में मालूम है. मैं भी चुप रहा. उस रात मैं एक दूसरे कमरे में सोया. बड़ी रात तक सोने की कोशिश कर रहा था. रात को मौसी से संभोग की आदत हो जाने से मुझे अकेले नींद नहीं आ रही थी और इसलिये एक चुदाई की किताब पढ़ रहा था. मौसाजी और मौसी अपने कमरे में थे. वहाँ से हंसने खेलने की आवाजें आ रही थीं.

अंत में लंड बुरी तरह खड़ा हो गया. मैं बस बत्ती बुझा कर मुठ्ठ मार कर सोने ही वाला था कि मौसी ने मुझे आवाज दी. "विजय, अकेला क्या कर रहा है बेटा? यहाँ आ जा."

मुझे समझ में नहीं आया कि आज की रात तो मौसी अपने पति की बाँहों मैं है तो मुझे क्यों कबाब में हड्डी बनने को बुला रही है. मैंने दरवाजा खटखटाया. मौसी चिल्लाई. "आ जा बेटे, दरवाजा खुला है".

मैं अंदर आया तो देखता ही रह गया. आँखें फ़टी रह गईं और लंड और खड़ा हो गया. अजय अंकल आराम कुर्सी में बैठे थे और मौसी उनकी गोद में बैठी थी. दोनों मादरजात नंगे थे. मौसी की टांगें पसरी हुई थीं और मौसाजी का मोटा लंड मौसी के गुदा में जड तक धंसा हुआ था. मौसाजी का एक हाथ अपनी पत्नी की चूत में दो उँगलियाँ अंदर बाहर कर रहा था और दूसरे हाथ से वे मौसी के मम्मे दबा रहे थे. आपस में चूमा चाटी भी चल रही थी.

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मौसी मेरी ओर देख कर बोली. "तुझे क्या लगा बेटे, तेरे को अकेले तडपते हुए छोड देंगे हम?" अंकल भी मुझे आँख मार कर बोले. "विजय, तेरी मौसी की चूत को तेरे मुंह की बहुत याद आ रही है. देख कितना रस बहा रही है तेरे लिये. तेरी मौसी भी अड़ी है, बोली चूत का रस पिलाऊँगी तो सिर्फ़ अपने प्यारे भांजे को!"

मौसी ने अपनी जांघें और फ़ैला दीं और बाँहें पसार कर मुझे पास बुलाया. "विजय, नंगा हो जा और जल्दी से मौसी की जांघों में समा जा बेटे, चूस ले अपनी मौसी की बुर. तुझे रस पिलाये बिना यह चूत ठंडी नहीं होगी."

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मैंने काँपते हाथों से कपड़े उतारे और दौड कर मौसी के सामने उसकी जांघों के बीच बैठ कर मौसी की टपकती बुर में मुंह डाल दिया. मौसी की गांड का छेद मेरे मुंह से बस दो तीन इंच दूर था और मौसी का तनकर खुला गुदाद्वार और उसमें फंसा मोटा ताजा लंड देखकर मैं और उत्तेजित हो रहा था. चूत का स्वाद लेते हुए मेरी जीभ कभी कभी गांड और लंड तक पहुँच जाती थी.

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मौसाजी नीचे से ही मौसी की गांड मार रहे थे और लंड गुदा में से एक दो इंच अंदर बाहर हो रहा था. मौसाजी ने अब दोनों हाथों से मौसी की चूचियाँ मसलना शुरू कर दी थीं और मैं अपनी जीभ उसके क्लिट पर रगड रहा था. मौसी ने मेरे सिर को कस कर अपनी बुर पर दबाया और हुमक कर झड गई. बाहर उबल उबल कर निकलते उस चिपचिपे पानी को मैंने चाट चाट कर साफ़ किया और फ़िर मौसी की झांटों से ढके भगोष्ठों का प्रेम से चुंबन लेने लगा.

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बुर चटवाकर मौसी ने मुझे ऊपर खींच कर अपने सामने खड़ा कर लिया. मेरा खड़ा लंड बिलकुल मौसी के चेहरे के सामने मचल रहा था. उसे पकड कर मौसी ने चूमा और फ़िर मौसाजी को दिखाया. "देखो, कितना प्यारा रसीला लंड है मेरे भांजे का. अभी पूरा जवान भी नहीं है लड़का, एकदम कमसिन है. पर मुझ पिछले दो हफ्तों में बहुत सुख दिया है इसने"

मौसाजी बोले "अरे, फ़िर इसे शुक्रिया तो जरूर कहना चाहिये"

मैं लंड में होते मीठे आनंद का मजा लेते हुए सांस लेने को पलंग पर बैठ गया. मौसाजी गरमा गये थे. मौसी को बोले. "चल प्रिया रानी, पलंग पर लेट जा, तेरी गांड मारूँगा अब."

मौसी को कमर से पकड़ कर वैसे ही लंड गांड में घुसाये हुए उन्हों ने उठाया और लाकर पलंग पर पटक दिया. मौसी ने सरककर प्यार से अपना सिर मेरी गोद में रख दिया और मेरे लंड का चुंबन लेने लगी. उधर मौसाजी अब तक मौसी पर चढ़कर उसकी गांड मारने में जुट गये थे. ऐसी जोरदार गांड चोदने की क्रिया मैंने पहली बार देखी थी. मौसाजी का कडा मोटा लंड मौसी की कोमल गांड के छेद को चौडा करता हुआ सटासट अंदर बाहर हो रहा था.

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जब लंड बाहर निकलता तो उस की साइज़ देखकर मैं हैरान रह जाता कि आखिर कैसे मौसी इतने बड़े लंड को अंदर लेती है. मौसी धीरे धीरे कराह रही थी और मुझे लगा कि उसे दर्द हो रहा होगा पर उसके चेहरे पर तो बड़े तृप्त भाव थे. अब मैं समझ गया कि पहली बार जब मैंने मौसी की गांड मारी थी तो कैसे मेरा लंड आराम से मौसी की गांड में चला गया था. मौसाजी का हलब्बी लंड लेने के बाद मेरा कमसिन लंड तो उसके लिये बच्चों का खेल था.

मौसी ने अब तक मेरे लंड को चूम चूम कर फ़िर खड़ा कर दिया था. गांड मरवाते हुए पूरा लंड मुंह में लेकर वह आराम से चूस रही थी. मौसाजी अब झडने के करीब आ गये थे और तैश में आकर गंदी गंदी बातें कहते हुए पूरे जोर से मौसी की गांड मार रहे थे. "तेरी गांड मारूँ मेरी चुदैल रानी, तेरे मस्त मोटे चूतड़ों को चोदूँ. साली चुदैल, रंडी, क्या गांड है तेरी मेरी जान!"

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मौसाजी पूरे जोर से हचक हचक कर मौसी की गांड मारने लगे. मैं भी उचक उचक कर नीचे से ही मौसी के मुंह को चोदने की कोशिश करने लगा. उधर मौसाजी ने चार पाँच करारे धक्के लगाये और झड गये. उनकी गरम गरम सांसें जोर जोर से चल रही थीं.

आखिर तृप्त होकर मौसाजी धीरे से मुस्कराते हुए मौसी पर लेट गये और सुस्ताने लगे. मैं अब बहुत उत्तेजित था और किसी भी तरह संभोग करना चाहता था. बहुत देर से मौसी की चूत चूसने की भी मुझे तीव्र इच्छा हो रही थी. मौसी को मैंने कहा कि पलट कर सीधी हो जाए जिससे मैं उसकी चूत चूस सकूँ. मौसी मुस्कराकर बोली. "विजय, मेरी बुर का पानी बहुत पिया है, आज मेरी गांड चूस कर देख ले”

यह कल्पना ही इतनी मादक थी कि मैं तुरंत मौसी के चूतड़ों पर लपक पड़ा और गांड पर मुंह लगाकर चूसने लगा. मौसी की गांड का स्वाद का क्या कहना. मैं चूस चूस कर चटकारे लगाने लगा. मौसाजी ने अपनी पत्नी के चूतड फ़ैला कर रखे जिससे मैं आसानी से माल चूस सकूँ. वे बोले. "बडा प्यारा और चिकना लड़का है. उसका लंड कैसा तन्ना कर खड़ा है देख"

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अंत में मैंने जीभ अंदर डाल कर पूरी गांड के छेद को चाट लिया. मौसी हंस कर उठ बैठी. "बहुत हो गया बेटे, अब कुछ नहीं बचा मेरी गांड के अंदर" अपनी टांगें फ़ैला कर वह लेट गयी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया."चल अब चोद मुझे जल्दी से."

मैं हचक हचक कर प्रिया मौसी को चोदने लगा. मौसाजी ने सिरहाने बैठकर अपना लंड मौसी के मुंह पर दे दिया और वह उसे अपने गालों और आँखों पर प्यार से रगडने लगी. लंड मेरे ठीक सामने था और इतने पास से मैंने पहली बार उसे ठीक से देखा. करीब सात इंच लम्बा बड़े गाजर जैसा मोटा गोरा लंड और उस पर लाल लाल टमाटर जैसा सुपाडा!!

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मौसाजी अब जोश में थे और मौसी की चूत चूसने को अधीर थे. अब वह मौसी की बुर को चूसने लगे. मौसी ने भी उनका सिर अपनी जांघों में कैद कर लिया और खिलखिलाती हुई चुत चुसवाने लगी.

जब तक उन्हों ने मौसी की चूत खाली की, मौसी एक बार और झड चुकी थी. तैश में आये मौसाजी अब मौसी पर चढ़ कर उसे चोदने लगे. उनकी इस रति क्रीडा को देखकर मैं धीरे धीरे फ़िर मस्ती में आ गया. मेरा लंड खड़ा देखकर अंकल बोले." यह लड़का तो बडा काम का है प्रिया, देख कैसा खड़ा है इसका दो बार झड कर भी. विजय, तू मौसी की गांड मार ले, दोनों एक साथ इस चुदैल को सेन्डविच बना कर आगे पीछे से चोदते हैं."

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मौसी के चूत में अपना लंड वैसा ही घुसाये रखकर पलट कर वे नीचे हो गये और मौसी को ऊपर कर दिया. मौसी के मोटे गोरे चूतड मेरे सामने थे. अंकल ने मेरी आसानी के लिये अपनी पत्नी के चूतड पकड़ कर फ़ैलाये और मैंने एक की वार में घच्च से पूरा लंड मौसी की गांड में उतार दिया. अब मैं ऊपर से मौसी की गांड मारने लगा और मौसाजी उसे नीचे से ही धक्के दे दे कर चोदने लगे. मौसी को तो इस दोहरी चुदाई में ऐसा मजा आया कि वह सिसकारियाँ भरने लगी. चूत और गांड के बीच की बारीक दीवार में से हम दोनों को एक दूसरे के लंडों का दबाव ऐसा महसूस हो रहा था जैसे बीच में कुछ न हो.

"विजय बेटे, मौसी की गांड मस्त हो कर मारो, पर झडना मत जब तक मैं न कहूँ, दोनों एक साथ झड़ेंगे" अंकल बोले. अब हम दोनों अपनी पूरी ताकत से मौसी के दोनों छेद चोदने लगे. बार बार पलट कर कभी मौसाजी नीचे होते कभी मैं. इससे बारी बारी से हम दोनों को ऊपर चढ़ कर कस कर ठुकाई करने का मौका मिलता. बीस मिनिट हमने इसी तरह मौसी को भोगा और वह तीन बार झड़ी. अब तो वह मस्ती में किसी नई नवेली दुल्हन जैसे चिल्ला रही थी." ऊऽई माँऽ, मर गईऽऽ, हाऽय रेऽ, मार डाऽलाऽ रे दोनों ने मिलकर, अरे हरामियो, दया करो, क्या फ़ाड दोगे मेरे दोनों छेद!"

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आखिर जब मैं ऊपर था तब मौसाजी ने इशारा किया और मैंने उछल उछल कर मौसी की गांड बेतहाशा चोद डाली और झड गया. पलट कर अब मैं नीचे हो गया और मौसाजी ऊपर से चोदने लगे. मौसी ने अब अपनी एक उंगली मौसाजी के गुदा में घुसेड़ दी और इसके साथ ही मौसाजी इतनी जोर से झड़े कि चिल्ला उठे.

कुछ देर पड़े पड़े हम तीनों इस सुख का आनंद लेते रहे. फ़िर रस चूसने का एक और कार्यक्रम हुआ. मैंने मौसी की चूत चूसी और उसमें से मौसी के बुर के पानी और अंकल के वीर्य का मिश्रण पिया. मौसाजी ने अपनी पत्नी की गांड चूस कर उसमें से मेरे वीर्य का पान किया. अब हम तीनों थक गये थे और बिलकुल तृप्त भी हो गये थे. तीनों लिपट कर सो गये. ऐसी गहरी नींद लगी कि पता ही नहीं चला कि कब सबेरा हुआ.

मेरी नींद बहुत देर से खुली. मौसी और मौसाजी के हंसने और बोलने की आवाज बाथरूम से आ रही थी. मुझे लगा कि शायद नहा रहे होंगे पर कुछ देर बाद दोनों बिलकुल नंगे बाहर आये तो बिना नहाये. मुझे अचरज लगा कि वे अंदर क्या कर रहे थे. कल भी मौसाजी वापस आने के बाद मौसी को लेकर बाथरूम में चले गये थे. दोनों काफ़ी देर एक साथ बाथरूम में थे. वे वहाँ क्या करते हैं, इस रहस्य का पता मुझे काफ़ी देर बाद चला.


चाय पीकर हम तीनों एक साथ नहाने गये.
Kya baat hai, aise mausa mausi bhagwaan sab ko de.
U r amazing dear vakharia sir. , kya threesome likha hai ji aap ne .
Aapki jai ho pyare devar ji.
👌👌👌👌👌
💯💯💯💯
💦💦💦
 

Ek number

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झडने के बाद देखा तो मौसी सो गई थी और खर्राटे ले रही थी. पर मैंने और मजा लेने की सोची और तीसरी बार हचक हचक कर रुक रुक कर घंटे भर मौसी की गांड चोदी तब जाकर मेरी वासना शांत हुई. गांड मारते हुए मैंने मौसी की चूचियाँ भी मन भर कर जैसा मेरा मन चाहा दबाई और मसली. मौसी सोती ही रही. आखिर आधी रात को मैं अपना पूरा वीर्य उसके गुदा में निकालकर फ़िर ही सोया.

--- आगे ---

मौसी के साथ गर्मी की छुट्टी में मैंने अकेले में मस्त चुदाई शुरू कर दी थी. मौसाजी तब दौरे पर थे. मैंने मौसी से पूछा कि उसके और रंजन के बारे में क्या मौसाजी को मालूम है?

उसने हाँ कहा और पूरी बात बता दी. "अरे तेरे मौसाजी भी कम नहीं हैं. दूसरे शहर में उनकी भी एक दो दोस्त है जिनके संग वह गुलछर्रे उड़ाते है. पर मैंने तेरे सिवा किसी और पुरुष से नहीं चुदवाया. हाँ रंजन जैसी गर्ल फ़्रेन्ड जरूर बना ली. असल में हम दोनों बाइ-सेक्सुअल हैं. इसीलिये हमने शादी की और एक दूसरे पर कोई बंधन नहीं रखा है. वैसे उन्हें यह भी मालूम है कि मैं तेरे साथ क्या कर रही हूँ. मैंने उन्हें पहले ही बता दिया था. वे भी बोले कि हाँ घर का ही प्यारा लड़का है, मैं जो चाहे कर लूँ"

सुनकर मुझे बडा मजा आया. पर जब मौसाजी वापस आए तो मैं जरा उदास हो गया. मुझे लगा कि अब मौसी के गदराये शरीर का भोग करना मेरे नसीब में नहीं है. पर हुआ बिल्कुल उल्टा. तीन शरीरों की जुगलबंदी शुरू हो गई.

हुआ यह कि जब मौसाजी वापस आये तो उन्हों ने जरा भी जाहिर नहीं किया कि उन्ह्मे मेरे और मौसी के संबंध के बारे में मालूम है. मैं भी चुप रहा. उस रात मैं एक दूसरे कमरे में सोया. बड़ी रात तक सोने की कोशिश कर रहा था. रात को मौसी से संभोग की आदत हो जाने से मुझे अकेले नींद नहीं आ रही थी और इसलिये एक चुदाई की किताब पढ़ रहा था. मौसाजी और मौसी अपने कमरे में थे. वहाँ से हंसने खेलने की आवाजें आ रही थीं.

अंत में लंड बुरी तरह खड़ा हो गया. मैं बस बत्ती बुझा कर मुठ्ठ मार कर सोने ही वाला था कि मौसी ने मुझे आवाज दी. "विजय, अकेला क्या कर रहा है बेटा? यहाँ आ जा."

मुझे समझ में नहीं आया कि आज की रात तो मौसी अपने पति की बाँहों मैं है तो मुझे क्यों कबाब में हड्डी बनने को बुला रही है. मैंने दरवाजा खटखटाया. मौसी चिल्लाई. "आ जा बेटे, दरवाजा खुला है".

मैं अंदर आया तो देखता ही रह गया. आँखें फ़टी रह गईं और लंड और खड़ा हो गया. अजय अंकल आराम कुर्सी में बैठे थे और मौसी उनकी गोद में बैठी थी. दोनों मादरजात नंगे थे. मौसी की टांगें पसरी हुई थीं और मौसाजी का मोटा लंड मौसी के गुदा में जड तक धंसा हुआ था. मौसाजी का एक हाथ अपनी पत्नी की चूत में दो उँगलियाँ अंदर बाहर कर रहा था और दूसरे हाथ से वे मौसी के मम्मे दबा रहे थे. आपस में चूमा चाटी भी चल रही थी.

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मौसी मेरी ओर देख कर बोली. "तुझे क्या लगा बेटे, तेरे को अकेले तडपते हुए छोड देंगे हम?" अंकल भी मुझे आँख मार कर बोले. "विजय, तेरी मौसी की चूत को तेरे मुंह की बहुत याद आ रही है. देख कितना रस बहा रही है तेरे लिये. तेरी मौसी भी अड़ी है, बोली चूत का रस पिलाऊँगी तो सिर्फ़ अपने प्यारे भांजे को!"

मौसी ने अपनी जांघें और फ़ैला दीं और बाँहें पसार कर मुझे पास बुलाया. "विजय, नंगा हो जा और जल्दी से मौसी की जांघों में समा जा बेटे, चूस ले अपनी मौसी की बुर. तुझे रस पिलाये बिना यह चूत ठंडी नहीं होगी."

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मैंने काँपते हाथों से कपड़े उतारे और दौड कर मौसी के सामने उसकी जांघों के बीच बैठ कर मौसी की टपकती बुर में मुंह डाल दिया. मौसी की गांड का छेद मेरे मुंह से बस दो तीन इंच दूर था और मौसी का तनकर खुला गुदाद्वार और उसमें फंसा मोटा ताजा लंड देखकर मैं और उत्तेजित हो रहा था. चूत का स्वाद लेते हुए मेरी जीभ कभी कभी गांड और लंड तक पहुँच जाती थी.

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मौसाजी नीचे से ही मौसी की गांड मार रहे थे और लंड गुदा में से एक दो इंच अंदर बाहर हो रहा था. मौसाजी ने अब दोनों हाथों से मौसी की चूचियाँ मसलना शुरू कर दी थीं और मैं अपनी जीभ उसके क्लिट पर रगड रहा था. मौसी ने मेरे सिर को कस कर अपनी बुर पर दबाया और हुमक कर झड गई. बाहर उबल उबल कर निकलते उस चिपचिपे पानी को मैंने चाट चाट कर साफ़ किया और फ़िर मौसी की झांटों से ढके भगोष्ठों का प्रेम से चुंबन लेने लगा.

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बुर चटवाकर मौसी ने मुझे ऊपर खींच कर अपने सामने खड़ा कर लिया. मेरा खड़ा लंड बिलकुल मौसी के चेहरे के सामने मचल रहा था. उसे पकड कर मौसी ने चूमा और फ़िर मौसाजी को दिखाया. "देखो, कितना प्यारा रसीला लंड है मेरे भांजे का. अभी पूरा जवान भी नहीं है लड़का, एकदम कमसिन है. पर मुझ पिछले दो हफ्तों में बहुत सुख दिया है इसने"

मौसाजी बोले "अरे, फ़िर इसे शुक्रिया तो जरूर कहना चाहिये"

मैं लंड में होते मीठे आनंद का मजा लेते हुए सांस लेने को पलंग पर बैठ गया. मौसाजी गरमा गये थे. मौसी को बोले. "चल प्रिया रानी, पलंग पर लेट जा, तेरी गांड मारूँगा अब."

मौसी को कमर से पकड़ कर वैसे ही लंड गांड में घुसाये हुए उन्हों ने उठाया और लाकर पलंग पर पटक दिया. मौसी ने सरककर प्यार से अपना सिर मेरी गोद में रख दिया और मेरे लंड का चुंबन लेने लगी. उधर मौसाजी अब तक मौसी पर चढ़कर उसकी गांड मारने में जुट गये थे. ऐसी जोरदार गांड चोदने की क्रिया मैंने पहली बार देखी थी. मौसाजी का कडा मोटा लंड मौसी की कोमल गांड के छेद को चौडा करता हुआ सटासट अंदर बाहर हो रहा था.

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जब लंड बाहर निकलता तो उस की साइज़ देखकर मैं हैरान रह जाता कि आखिर कैसे मौसी इतने बड़े लंड को अंदर लेती है. मौसी धीरे धीरे कराह रही थी और मुझे लगा कि उसे दर्द हो रहा होगा पर उसके चेहरे पर तो बड़े तृप्त भाव थे. अब मैं समझ गया कि पहली बार जब मैंने मौसी की गांड मारी थी तो कैसे मेरा लंड आराम से मौसी की गांड में चला गया था. मौसाजी का हलब्बी लंड लेने के बाद मेरा कमसिन लंड तो उसके लिये बच्चों का खेल था.

मौसी ने अब तक मेरे लंड को चूम चूम कर फ़िर खड़ा कर दिया था. गांड मरवाते हुए पूरा लंड मुंह में लेकर वह आराम से चूस रही थी. मौसाजी अब झडने के करीब आ गये थे और तैश में आकर गंदी गंदी बातें कहते हुए पूरे जोर से मौसी की गांड मार रहे थे. "तेरी गांड मारूँ मेरी चुदैल रानी, तेरे मस्त मोटे चूतड़ों को चोदूँ. साली चुदैल, रंडी, क्या गांड है तेरी मेरी जान!"

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मौसाजी पूरे जोर से हचक हचक कर मौसी की गांड मारने लगे. मैं भी उचक उचक कर नीचे से ही मौसी के मुंह को चोदने की कोशिश करने लगा. उधर मौसाजी ने चार पाँच करारे धक्के लगाये और झड गये. उनकी गरम गरम सांसें जोर जोर से चल रही थीं.

आखिर तृप्त होकर मौसाजी धीरे से मुस्कराते हुए मौसी पर लेट गये और सुस्ताने लगे. मैं अब बहुत उत्तेजित था और किसी भी तरह संभोग करना चाहता था. बहुत देर से मौसी की चूत चूसने की भी मुझे तीव्र इच्छा हो रही थी. मौसी को मैंने कहा कि पलट कर सीधी हो जाए जिससे मैं उसकी चूत चूस सकूँ. मौसी मुस्कराकर बोली. "विजय, मेरी बुर का पानी बहुत पिया है, आज मेरी गांड चूस कर देख ले”

यह कल्पना ही इतनी मादक थी कि मैं तुरंत मौसी के चूतड़ों पर लपक पड़ा और गांड पर मुंह लगाकर चूसने लगा. मौसी की गांड का स्वाद का क्या कहना. मैं चूस चूस कर चटकारे लगाने लगा. मौसाजी ने अपनी पत्नी के चूतड फ़ैला कर रखे जिससे मैं आसानी से माल चूस सकूँ. वे बोले. "बडा प्यारा और चिकना लड़का है. उसका लंड कैसा तन्ना कर खड़ा है देख"

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अंत में मैंने जीभ अंदर डाल कर पूरी गांड के छेद को चाट लिया. मौसी हंस कर उठ बैठी. "बहुत हो गया बेटे, अब कुछ नहीं बचा मेरी गांड के अंदर" अपनी टांगें फ़ैला कर वह लेट गयी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया."चल अब चोद मुझे जल्दी से."

मैं हचक हचक कर प्रिया मौसी को चोदने लगा. मौसाजी ने सिरहाने बैठकर अपना लंड मौसी के मुंह पर दे दिया और वह उसे अपने गालों और आँखों पर प्यार से रगडने लगी. लंड मेरे ठीक सामने था और इतने पास से मैंने पहली बार उसे ठीक से देखा. करीब सात इंच लम्बा बड़े गाजर जैसा मोटा गोरा लंड और उस पर लाल लाल टमाटर जैसा सुपाडा!!

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मौसाजी अब जोश में थे और मौसी की चूत चूसने को अधीर थे. अब वह मौसी की बुर को चूसने लगे. मौसी ने भी उनका सिर अपनी जांघों में कैद कर लिया और खिलखिलाती हुई चुत चुसवाने लगी.

जब तक उन्हों ने मौसी की चूत खाली की, मौसी एक बार और झड चुकी थी. तैश में आये मौसाजी अब मौसी पर चढ़ कर उसे चोदने लगे. उनकी इस रति क्रीडा को देखकर मैं धीरे धीरे फ़िर मस्ती में आ गया. मेरा लंड खड़ा देखकर अंकल बोले." यह लड़का तो बडा काम का है प्रिया, देख कैसा खड़ा है इसका दो बार झड कर भी. विजय, तू मौसी की गांड मार ले, दोनों एक साथ इस चुदैल को सेन्डविच बना कर आगे पीछे से चोदते हैं."

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मौसी के चूत में अपना लंड वैसा ही घुसाये रखकर पलट कर वे नीचे हो गये और मौसी को ऊपर कर दिया. मौसी के मोटे गोरे चूतड मेरे सामने थे. अंकल ने मेरी आसानी के लिये अपनी पत्नी के चूतड पकड़ कर फ़ैलाये और मैंने एक की वार में घच्च से पूरा लंड मौसी की गांड में उतार दिया. अब मैं ऊपर से मौसी की गांड मारने लगा और मौसाजी उसे नीचे से ही धक्के दे दे कर चोदने लगे. मौसी को तो इस दोहरी चुदाई में ऐसा मजा आया कि वह सिसकारियाँ भरने लगी. चूत और गांड के बीच की बारीक दीवार में से हम दोनों को एक दूसरे के लंडों का दबाव ऐसा महसूस हो रहा था जैसे बीच में कुछ न हो.

"विजय बेटे, मौसी की गांड मस्त हो कर मारो, पर झडना मत जब तक मैं न कहूँ, दोनों एक साथ झड़ेंगे" अंकल बोले. अब हम दोनों अपनी पूरी ताकत से मौसी के दोनों छेद चोदने लगे. बार बार पलट कर कभी मौसाजी नीचे होते कभी मैं. इससे बारी बारी से हम दोनों को ऊपर चढ़ कर कस कर ठुकाई करने का मौका मिलता. बीस मिनिट हमने इसी तरह मौसी को भोगा और वह तीन बार झड़ी. अब तो वह मस्ती में किसी नई नवेली दुल्हन जैसे चिल्ला रही थी." ऊऽई माँऽ, मर गईऽऽ, हाऽय रेऽ, मार डाऽलाऽ रे दोनों ने मिलकर, अरे हरामियो, दया करो, क्या फ़ाड दोगे मेरे दोनों छेद!"

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आखिर जब मैं ऊपर था तब मौसाजी ने इशारा किया और मैंने उछल उछल कर मौसी की गांड बेतहाशा चोद डाली और झड गया. पलट कर अब मैं नीचे हो गया और मौसाजी ऊपर से चोदने लगे. मौसी ने अब अपनी एक उंगली मौसाजी के गुदा में घुसेड़ दी और इसके साथ ही मौसाजी इतनी जोर से झड़े कि चिल्ला उठे.

कुछ देर पड़े पड़े हम तीनों इस सुख का आनंद लेते रहे. फ़िर रस चूसने का एक और कार्यक्रम हुआ. मैंने मौसी की चूत चूसी और उसमें से मौसी के बुर के पानी और अंकल के वीर्य का मिश्रण पिया. मौसाजी ने अपनी पत्नी की गांड चूस कर उसमें से मेरे वीर्य का पान किया. अब हम तीनों थक गये थे और बिलकुल तृप्त भी हो गये थे. तीनों लिपट कर सो गये. ऐसी गहरी नींद लगी कि पता ही नहीं चला कि कब सबेरा हुआ.

मेरी नींद बहुत देर से खुली. मौसी और मौसाजी के हंसने और बोलने की आवाज बाथरूम से आ रही थी. मुझे लगा कि शायद नहा रहे होंगे पर कुछ देर बाद दोनों बिलकुल नंगे बाहर आये तो बिना नहाये. मुझे अचरज लगा कि वे अंदर क्या कर रहे थे. कल भी मौसाजी वापस आने के बाद मौसी को लेकर बाथरूम में चले गये थे. दोनों काफ़ी देर एक साथ बाथरूम में थे. वे वहाँ क्या करते हैं, इस रहस्य का पता मुझे काफ़ी देर बाद चला.


चाय पीकर हम तीनों एक साथ नहाने गये.
Nice update
 

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Desi balak
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झडने के बाद देखा तो मौसी सो गई थी और खर्राटे ले रही थी. पर मैंने और मजा लेने की सोची और तीसरी बार हचक हचक कर रुक रुक कर घंटे भर मौसी की गांड चोदी तब जाकर मेरी वासना शांत हुई. गांड मारते हुए मैंने मौसी की चूचियाँ भी मन भर कर जैसा मेरा मन चाहा दबाई और मसली. मौसी सोती ही रही. आखिर आधी रात को मैं अपना पूरा वीर्य उसके गुदा में निकालकर फ़िर ही सोया.

--- आगे ---

मौसी के साथ गर्मी की छुट्टी में मैंने अकेले में मस्त चुदाई शुरू कर दी थी. मौसाजी तब दौरे पर थे. मैंने मौसी से पूछा कि उसके और रंजन के बारे में क्या मौसाजी को मालूम है?

उसने हाँ कहा और पूरी बात बता दी. "अरे तेरे मौसाजी भी कम नहीं हैं. दूसरे शहर में उनकी भी एक दो दोस्त है जिनके संग वह गुलछर्रे उड़ाते है. पर मैंने तेरे सिवा किसी और पुरुष से नहीं चुदवाया. हाँ रंजन जैसी गर्ल फ़्रेन्ड जरूर बना ली. असल में हम दोनों बाइ-सेक्सुअल हैं. इसीलिये हमने शादी की और एक दूसरे पर कोई बंधन नहीं रखा है. वैसे उन्हें यह भी मालूम है कि मैं तेरे साथ क्या कर रही हूँ. मैंने उन्हें पहले ही बता दिया था. वे भी बोले कि हाँ घर का ही प्यारा लड़का है, मैं जो चाहे कर लूँ"

सुनकर मुझे बडा मजा आया. पर जब मौसाजी वापस आए तो मैं जरा उदास हो गया. मुझे लगा कि अब मौसी के गदराये शरीर का भोग करना मेरे नसीब में नहीं है. पर हुआ बिल्कुल उल्टा. तीन शरीरों की जुगलबंदी शुरू हो गई.

हुआ यह कि जब मौसाजी वापस आये तो उन्हों ने जरा भी जाहिर नहीं किया कि उन्ह्मे मेरे और मौसी के संबंध के बारे में मालूम है. मैं भी चुप रहा. उस रात मैं एक दूसरे कमरे में सोया. बड़ी रात तक सोने की कोशिश कर रहा था. रात को मौसी से संभोग की आदत हो जाने से मुझे अकेले नींद नहीं आ रही थी और इसलिये एक चुदाई की किताब पढ़ रहा था. मौसाजी और मौसी अपने कमरे में थे. वहाँ से हंसने खेलने की आवाजें आ रही थीं.

अंत में लंड बुरी तरह खड़ा हो गया. मैं बस बत्ती बुझा कर मुठ्ठ मार कर सोने ही वाला था कि मौसी ने मुझे आवाज दी. "विजय, अकेला क्या कर रहा है बेटा? यहाँ आ जा."

मुझे समझ में नहीं आया कि आज की रात तो मौसी अपने पति की बाँहों मैं है तो मुझे क्यों कबाब में हड्डी बनने को बुला रही है. मैंने दरवाजा खटखटाया. मौसी चिल्लाई. "आ जा बेटे, दरवाजा खुला है".

मैं अंदर आया तो देखता ही रह गया. आँखें फ़टी रह गईं और लंड और खड़ा हो गया. अजय अंकल आराम कुर्सी में बैठे थे और मौसी उनकी गोद में बैठी थी. दोनों मादरजात नंगे थे. मौसी की टांगें पसरी हुई थीं और मौसाजी का मोटा लंड मौसी के गुदा में जड तक धंसा हुआ था. मौसाजी का एक हाथ अपनी पत्नी की चूत में दो उँगलियाँ अंदर बाहर कर रहा था और दूसरे हाथ से वे मौसी के मम्मे दबा रहे थे. आपस में चूमा चाटी भी चल रही थी.

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मौसी मेरी ओर देख कर बोली. "तुझे क्या लगा बेटे, तेरे को अकेले तडपते हुए छोड देंगे हम?" अंकल भी मुझे आँख मार कर बोले. "विजय, तेरी मौसी की चूत को तेरे मुंह की बहुत याद आ रही है. देख कितना रस बहा रही है तेरे लिये. तेरी मौसी भी अड़ी है, बोली चूत का रस पिलाऊँगी तो सिर्फ़ अपने प्यारे भांजे को!"

मौसी ने अपनी जांघें और फ़ैला दीं और बाँहें पसार कर मुझे पास बुलाया. "विजय, नंगा हो जा और जल्दी से मौसी की जांघों में समा जा बेटे, चूस ले अपनी मौसी की बुर. तुझे रस पिलाये बिना यह चूत ठंडी नहीं होगी."

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मैंने काँपते हाथों से कपड़े उतारे और दौड कर मौसी के सामने उसकी जांघों के बीच बैठ कर मौसी की टपकती बुर में मुंह डाल दिया. मौसी की गांड का छेद मेरे मुंह से बस दो तीन इंच दूर था और मौसी का तनकर खुला गुदाद्वार और उसमें फंसा मोटा ताजा लंड देखकर मैं और उत्तेजित हो रहा था. चूत का स्वाद लेते हुए मेरी जीभ कभी कभी गांड और लंड तक पहुँच जाती थी.

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मौसाजी नीचे से ही मौसी की गांड मार रहे थे और लंड गुदा में से एक दो इंच अंदर बाहर हो रहा था. मौसाजी ने अब दोनों हाथों से मौसी की चूचियाँ मसलना शुरू कर दी थीं और मैं अपनी जीभ उसके क्लिट पर रगड रहा था. मौसी ने मेरे सिर को कस कर अपनी बुर पर दबाया और हुमक कर झड गई. बाहर उबल उबल कर निकलते उस चिपचिपे पानी को मैंने चाट चाट कर साफ़ किया और फ़िर मौसी की झांटों से ढके भगोष्ठों का प्रेम से चुंबन लेने लगा.

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बुर चटवाकर मौसी ने मुझे ऊपर खींच कर अपने सामने खड़ा कर लिया. मेरा खड़ा लंड बिलकुल मौसी के चेहरे के सामने मचल रहा था. उसे पकड कर मौसी ने चूमा और फ़िर मौसाजी को दिखाया. "देखो, कितना प्यारा रसीला लंड है मेरे भांजे का. अभी पूरा जवान भी नहीं है लड़का, एकदम कमसिन है. पर मुझ पिछले दो हफ्तों में बहुत सुख दिया है इसने"

मौसाजी बोले "अरे, फ़िर इसे शुक्रिया तो जरूर कहना चाहिये"

मैं लंड में होते मीठे आनंद का मजा लेते हुए सांस लेने को पलंग पर बैठ गया. मौसाजी गरमा गये थे. मौसी को बोले. "चल प्रिया रानी, पलंग पर लेट जा, तेरी गांड मारूँगा अब."

मौसी को कमर से पकड़ कर वैसे ही लंड गांड में घुसाये हुए उन्हों ने उठाया और लाकर पलंग पर पटक दिया. मौसी ने सरककर प्यार से अपना सिर मेरी गोद में रख दिया और मेरे लंड का चुंबन लेने लगी. उधर मौसाजी अब तक मौसी पर चढ़कर उसकी गांड मारने में जुट गये थे. ऐसी जोरदार गांड चोदने की क्रिया मैंने पहली बार देखी थी. मौसाजी का कडा मोटा लंड मौसी की कोमल गांड के छेद को चौडा करता हुआ सटासट अंदर बाहर हो रहा था.

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जब लंड बाहर निकलता तो उस की साइज़ देखकर मैं हैरान रह जाता कि आखिर कैसे मौसी इतने बड़े लंड को अंदर लेती है. मौसी धीरे धीरे कराह रही थी और मुझे लगा कि उसे दर्द हो रहा होगा पर उसके चेहरे पर तो बड़े तृप्त भाव थे. अब मैं समझ गया कि पहली बार जब मैंने मौसी की गांड मारी थी तो कैसे मेरा लंड आराम से मौसी की गांड में चला गया था. मौसाजी का हलब्बी लंड लेने के बाद मेरा कमसिन लंड तो उसके लिये बच्चों का खेल था.

मौसी ने अब तक मेरे लंड को चूम चूम कर फ़िर खड़ा कर दिया था. गांड मरवाते हुए पूरा लंड मुंह में लेकर वह आराम से चूस रही थी. मौसाजी अब झडने के करीब आ गये थे और तैश में आकर गंदी गंदी बातें कहते हुए पूरे जोर से मौसी की गांड मार रहे थे. "तेरी गांड मारूँ मेरी चुदैल रानी, तेरे मस्त मोटे चूतड़ों को चोदूँ. साली चुदैल, रंडी, क्या गांड है तेरी मेरी जान!"

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मौसाजी पूरे जोर से हचक हचक कर मौसी की गांड मारने लगे. मैं भी उचक उचक कर नीचे से ही मौसी के मुंह को चोदने की कोशिश करने लगा. उधर मौसाजी ने चार पाँच करारे धक्के लगाये और झड गये. उनकी गरम गरम सांसें जोर जोर से चल रही थीं.

आखिर तृप्त होकर मौसाजी धीरे से मुस्कराते हुए मौसी पर लेट गये और सुस्ताने लगे. मैं अब बहुत उत्तेजित था और किसी भी तरह संभोग करना चाहता था. बहुत देर से मौसी की चूत चूसने की भी मुझे तीव्र इच्छा हो रही थी. मौसी को मैंने कहा कि पलट कर सीधी हो जाए जिससे मैं उसकी चूत चूस सकूँ. मौसी मुस्कराकर बोली. "विजय, मेरी बुर का पानी बहुत पिया है, आज मेरी गांड चूस कर देख ले”

यह कल्पना ही इतनी मादक थी कि मैं तुरंत मौसी के चूतड़ों पर लपक पड़ा और गांड पर मुंह लगाकर चूसने लगा. मौसी की गांड का स्वाद का क्या कहना. मैं चूस चूस कर चटकारे लगाने लगा. मौसाजी ने अपनी पत्नी के चूतड फ़ैला कर रखे जिससे मैं आसानी से माल चूस सकूँ. वे बोले. "बडा प्यारा और चिकना लड़का है. उसका लंड कैसा तन्ना कर खड़ा है देख"

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अंत में मैंने जीभ अंदर डाल कर पूरी गांड के छेद को चाट लिया. मौसी हंस कर उठ बैठी. "बहुत हो गया बेटे, अब कुछ नहीं बचा मेरी गांड के अंदर" अपनी टांगें फ़ैला कर वह लेट गयी और मुझे अपने ऊपर खींच लिया."चल अब चोद मुझे जल्दी से."

मैं हचक हचक कर प्रिया मौसी को चोदने लगा. मौसाजी ने सिरहाने बैठकर अपना लंड मौसी के मुंह पर दे दिया और वह उसे अपने गालों और आँखों पर प्यार से रगडने लगी. लंड मेरे ठीक सामने था और इतने पास से मैंने पहली बार उसे ठीक से देखा. करीब सात इंच लम्बा बड़े गाजर जैसा मोटा गोरा लंड और उस पर लाल लाल टमाटर जैसा सुपाडा!!

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मौसाजी अब जोश में थे और मौसी की चूत चूसने को अधीर थे. अब वह मौसी की बुर को चूसने लगे. मौसी ने भी उनका सिर अपनी जांघों में कैद कर लिया और खिलखिलाती हुई चुत चुसवाने लगी.

जब तक उन्हों ने मौसी की चूत खाली की, मौसी एक बार और झड चुकी थी. तैश में आये मौसाजी अब मौसी पर चढ़ कर उसे चोदने लगे. उनकी इस रति क्रीडा को देखकर मैं धीरे धीरे फ़िर मस्ती में आ गया. मेरा लंड खड़ा देखकर अंकल बोले." यह लड़का तो बडा काम का है प्रिया, देख कैसा खड़ा है इसका दो बार झड कर भी. विजय, तू मौसी की गांड मार ले, दोनों एक साथ इस चुदैल को सेन्डविच बना कर आगे पीछे से चोदते हैं."

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मौसी के चूत में अपना लंड वैसा ही घुसाये रखकर पलट कर वे नीचे हो गये और मौसी को ऊपर कर दिया. मौसी के मोटे गोरे चूतड मेरे सामने थे. अंकल ने मेरी आसानी के लिये अपनी पत्नी के चूतड पकड़ कर फ़ैलाये और मैंने एक की वार में घच्च से पूरा लंड मौसी की गांड में उतार दिया. अब मैं ऊपर से मौसी की गांड मारने लगा और मौसाजी उसे नीचे से ही धक्के दे दे कर चोदने लगे. मौसी को तो इस दोहरी चुदाई में ऐसा मजा आया कि वह सिसकारियाँ भरने लगी. चूत और गांड के बीच की बारीक दीवार में से हम दोनों को एक दूसरे के लंडों का दबाव ऐसा महसूस हो रहा था जैसे बीच में कुछ न हो.

"विजय बेटे, मौसी की गांड मस्त हो कर मारो, पर झडना मत जब तक मैं न कहूँ, दोनों एक साथ झड़ेंगे" अंकल बोले. अब हम दोनों अपनी पूरी ताकत से मौसी के दोनों छेद चोदने लगे. बार बार पलट कर कभी मौसाजी नीचे होते कभी मैं. इससे बारी बारी से हम दोनों को ऊपर चढ़ कर कस कर ठुकाई करने का मौका मिलता. बीस मिनिट हमने इसी तरह मौसी को भोगा और वह तीन बार झड़ी. अब तो वह मस्ती में किसी नई नवेली दुल्हन जैसे चिल्ला रही थी." ऊऽई माँऽ, मर गईऽऽ, हाऽय रेऽ, मार डाऽलाऽ रे दोनों ने मिलकर, अरे हरामियो, दया करो, क्या फ़ाड दोगे मेरे दोनों छेद!"

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आखिर जब मैं ऊपर था तब मौसाजी ने इशारा किया और मैंने उछल उछल कर मौसी की गांड बेतहाशा चोद डाली और झड गया. पलट कर अब मैं नीचे हो गया और मौसाजी ऊपर से चोदने लगे. मौसी ने अब अपनी एक उंगली मौसाजी के गुदा में घुसेड़ दी और इसके साथ ही मौसाजी इतनी जोर से झड़े कि चिल्ला उठे.

कुछ देर पड़े पड़े हम तीनों इस सुख का आनंद लेते रहे. फ़िर रस चूसने का एक और कार्यक्रम हुआ. मैंने मौसी की चूत चूसी और उसमें से मौसी के बुर के पानी और अंकल के वीर्य का मिश्रण पिया. मौसाजी ने अपनी पत्नी की गांड चूस कर उसमें से मेरे वीर्य का पान किया. अब हम तीनों थक गये थे और बिलकुल तृप्त भी हो गये थे. तीनों लिपट कर सो गये. ऐसी गहरी नींद लगी कि पता ही नहीं चला कि कब सबेरा हुआ.

मेरी नींद बहुत देर से खुली. मौसी और मौसाजी के हंसने और बोलने की आवाज बाथरूम से आ रही थी. मुझे लगा कि शायद नहा रहे होंगे पर कुछ देर बाद दोनों बिलकुल नंगे बाहर आये तो बिना नहाये. मुझे अचरज लगा कि वे अंदर क्या कर रहे थे. कल भी मौसाजी वापस आने के बाद मौसी को लेकर बाथरूम में चले गये थे. दोनों काफ़ी देर एक साथ बाथरूम में थे. वे वहाँ क्या करते हैं, इस रहस्य का पता मुझे काफ़ी देर बाद चला.


चाय पीकर हम तीनों एक साथ नहाने गये.
रस विभोर हो गया पूरा घर और पाठकों का मन धन्यवाद लेखक वाखारिया जी
 
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