सुनील बोला, "अपनी टाँगें खोलो ना!" सानिया सिसकते हुए फुसफुसा कर धीरे से बोली, "ऊँम्म... कुछ हो गया तो..!" सुनील फिर उसकी गर्दन पे अपने होंठ रगड़ते हुए बोला, "मैं भला अपनी जान को कुछ होने दुँगा... प्लीज़ सानिया एक बार और कर लेना दो ना... तुम्हें मेरी कसम..!" सानिया सुनील की प्यार भरी चिकनी चुपड़ी बातें सुन कर एक दम से पिघल गयी। उसने लरजते हुए टाँगों में फंसी अपनी कैप्री को अपने पैरों मे गिरा दिया और फिर उसमें से एक पैर निकाल कर खड़े-खड़े अपनी टाँगें फैला दी। सुनील ने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर सानिया की गाँड से नीचे ले जाते हुए उसकी चूत की फ़ाँकों पर रख कर अपने लंड के सुपाड़ा को सानिया के चूत के छेद पर टिकाने की कोशिश करने लगा पर खड़े-खड़े उसे सानिया की चूत के छेद तक अपना लंड पहुँचाने में परेशानी हो रही थी।
"सानिया तुम्हारी फुद्दी के छेद पर लंड लगा क्या?" सुनील ने पूछा। "ऊँम्म्म मुझे नहीं मालूम..!" सानिया बोली। "बताओ ना..!" सुनील ने फिर पूछा तो सानिया ने कसमसाते हुए कहा, "नहीं..!" सानिया की चूत की फ़ाँकों में अपने लंड को रगाड़ कर छेद को तलाशते हुए सुनील ने फिर पूछा, "अब..?" सानिया ने फिर से ना में गर्दन हिला दी और सुनील ने फिर से अपने लंड को एडजस्ट किया और जैसे ही सुनील के लंड का दहकता हुआ सुपाड़ा सानिया की चूत के छेद से टकराया तो सानिया के पूरे जिस्म ने एक तेज झटका खाया। उसके होंठों पर शर्मीली मुस्कान फैल गयी और उसने अपने सिर को झुका लिया। सुनील ने पुछा, "अब?" सानिया ने हाँ में सिर हिलाते हुआ कहा, "हुँम्म्म्म!"