आज जिस तरह दोनो माँ बेटे के बिच खुला पन है
कुछ समय पहले नही था इसकी शुरुवात सतीश ने की थी
सतीश पिछले साल में खूब बदल गया था,
मगर लम्बाई में नहीं बल्कि सतीश का जिस्म खूब भर गया था.
उसकी छाती, कन्धे, जांघे अब वयस्क मर्द की तरह चौड़ी हो गयी थी
मगर वह अब भी अपने डैड जैसा लंबा, चौढा मर्द नहीं बन सका था
इसीलिए तब उसे जबरदस्त झटका लगा था
जब सतिशने देखा था के उनके इतने लम्बे-चौड़े शरीर के बावजूद उनका लंड कितना छोटा सा था.
एक बार डैड और उनके दोस्तोँ ने एक पार्टी रखी थी
जहा डैड उसे भी साथ लेकर गए थे.
डैड उस समय बाथरूम में खड़े पेशाब कर रहे थे
जब वह बाथरूम में गया था. वो पेशाब करने के बाद अपना लंड हिलाकर उसे झाढ़ रहे थे
और सतीश उनके अगले यूरीनल पर खड़ा हो गया
क्योंके बाकि सब पहले से बिजी थे.
जब सतिशने कनखियों से देखा तो वो पेशाब कर अपना लंड हिला रहे थे.
सतिशने बचपन के बाद आज पहली बार उनका लंड देखा था.
बचपन में सतिशने तब उनका लंड देखा था
जब उन्होनो उसे अपना लंड दिखाते हुए समझाया था
के कुदरति तौर पर मर्द पेशाब कैसे करते है.
उस समय उसे उनका लंड बहुत बढा लगा था.
डैड के लंड को देखने पर लगा वो झटका उसके गर्व के एहसास में बदलता जा रहा था
और फिर वो गर्व का एहसास अभिमान में बदलने लगा.
सतीश अपने लंड को बाहर निकालने वाला था
मगर फिर वह डैड को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था
इस्लिये वापस जिपर बंद करने लगा.
विशाल:-"शरमाओ मत्त"
डैड हंस पढ़े थे.
विशाल:- "मुझे पूरा यकीन हैं तुम्हे इस मामले में शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है"
वो सिंक की और मूडते हुये मेरी पीठ थपथपा कर बोले.
सतीश अब भी अपनी जिपर से उलझा हुआ था
जब वो हाथ सुखाने के बाद हँसते हुए बाहर चले गये.
अगर वह उसे भूल जाता तो शायद बात वहीँ ख़तम हो जाती
और सबकुच ठीक ठाक हो जाता. मगर वह चाहकार भी उसे भुला न पाया.
डैड की हँसी जैसे उसके दिमाग में घर कर गयी थी
और बार बार उसे उसके कानो में वो अपमानजनक हँसी गूँजती सुनायी देती.
डैड की वो अपमानजनक हँसी बार बार उसके दिल में किसी शूल की तरह चुभती थी.
'मुझे उस समय उन्हें अपना लंड दीखाना चाहिए था' वह सोचता.
'उसके लंड पर नज़र पढते ही उनका मुंह बंद हो जाता.
उन्हें मालूम चल जाता के असली मर्द का लंड कैसा होता है,
कम से कम उनके मुकाबले में.
अगर उनका लंड ऊँगली के समान था तो सतीश का कलायी के समान'
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