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Incest माँ का चेकअप और चुदाई (नए अंदाज में ) complete Story

bhonpu

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Can u send me privately full story i want to read this great mothe son story
भईया मैं करूंगी पूरी कहानी पोस्ट पर उसमें वक्त लगेगा, उस टाइम की काफी कहानियां हैं मेरे पास जो अब जल्दी ही मैं पोस्ट करना शुरू करने लगूंगी
 
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rahulrajgupta

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"नए अंदाज में" तो टाइटल रख लिया अपने पर व्यूज के बाद अगला अपडेट नहीं दोगे तो दुख जरूर होगा मुझे और होगा भी यही, मैं निश्चिंत हूं कहानी का अंत वही रहेगा जो मैने अधूरा छोड़ था 😁😁
tension na lo pura aage tak kahani complete karunga :)
 

pussylover1

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to ab puri kar do bhai ,kaho to aage na likhu ,par complete kar do maza aayega

,ya kaho to main kar du ,vaise internet pe bahut kam achhi satk kahaniya milti hai to maine socha isko ant tak jaroor pahunchana chahiye
isiliye jaldi jaldi bhej raha hu ttaki jaha tak likhi hai vo bhej du uske baad apni kahani aage badhayu
Bhai tum km se kam pura krna
 

pussylover1

Milf lover.
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भईया मैं करूंगी पूरी कहानी पोस्ट पर उसमें वक्त लगेगा, उस टाइम की काफी कहानियां हैं मेरे पास जो अब जल्दी ही मैं पोस्ट करना शुरू करने लगूंगी
Ummid hai lekin intezar nahi hota n itna garam maa bete ki kahani padhkar
 

rahulrajgupta

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मेरी! मेरी योनि में"
ममता ने सच स्वीकारते हुए कहा, किसी माँ के नज़रिए से यह कितनी निर्लज्ज अवस्था थी जो उसे अपने ही सगे जवान बेटे के समक्ष बेशर्मी से अपने प्रमुख गुप्ताँग का नाम लेना पड़ रहा था. उसने ऋषभ के साथ अपना राज़ तो सांझा किया ही किया मगर अपनी कामोउत्तेजना को भी तीव्रता से बढ़ाने की भूल कर बैठी. योनि शब्द का इतना स्पष्ट उच्चारण करने के उपरांत पहले से अत्यधिक रिसती उसकी पीड़ित चूत में मानो बुलबुले उठने लगे और जिसकी अंदरूनी गहराई में आकस्मात ही वह गाढ़ा रस उमड़ता सा महसूस करने लगी थी.

"हे हे हे हे माँ ! तुम बे-वजह कितना शर्मा रही थी" ऋषभ हस्ते हुवे बोला परंतु हक़ीक़त में उसकी वो हँसी सिवाए खोखलेपन के कुछ और ना थी. वह कितना ही अनुभवी यौन चिकित्सक क्यों ना था, पूर्व में कितनी ही गंभीर स्थितियों का उसने चुटकियों में निदान क्यों ना किया था मगर वर्तमान की परिस्थिति उसके लिए ज़रा सी भी अनुकूल नही रह गयी थी. अपनी सग़ी माँ के बेहद सुंदर मुख से यह अश्लील बात सुनना कि वह अपनी चूत में दर्द महसूस करती है, उसके पुत्र के लिए कितनी अधिक उत्तेजनवर्धक साबित हो सकती है, या तो ऋषभ का शुरूवाती बागी मन जानता था या चुस्त फ्रेंची की क़ैद में अचानक से फूलता जा रहा उसका विशाल लंड. वह चाहता तो अपने कथन में शरम की जगह घबराहट लफ्ज़ का भी इस्तेमाल कर सकता था क्यों कि ममता उसे लज्जा से कहीं ज़्यादा घबराई हुई सी प्रतीत हो रही थी.

"तो माँ ! तुम्हें सबसे ज़्यादा तकलीफ़ तुम्हारी योनि में है" उसने अपनी माँ के शब्दो को दोहराया जैसे वापस उस वर्जित बात का पुष्टिकरण चाहता हो. यक़ीनन इसी आशा के तेहेत कि शायद उसके ऐसा कहने से पुनः उसकी माँ चूत नामक कामुक शब्द का उच्चारण कर दे. मनुष्य के कलयुगी मस्तिष्क की यह ख़ासियत होती है कि वह सकारात्मक विचार से कहीं ज़्यादा नकारात्मक विचारो पर आकर्षित होता है और ऋषभ जैसा अनुभवी चिकित्सक भी कलयुग की उस मार से अपना बचाव नही कर पाया था.

"ह .. हां" ममता अपने झुक चुके अत्यंत शर्मिंदगी से लबरेज़ चेहरे को दो बार ऊपर-नीचे हिलाते हुवे हौले से बुदबुदाई.
"मगर तू हसा क्यों ?" उसने पुछा. हलाकी इस सवाल का उस ठहरे हुवे वक़्त और बेहद बिगड़ी परिस्थिति से कोई विशेष संबंध नही था परंतु हँसने वाले युवक से उसका बहुत गहरा संबंध था और वह जानने को उत्सुक थी कि ऋषभ ने उसकी व्यथा पर व्यंग कसा है या उसके डूबते मनोबल को उबारने हेतु उसे सहारा देने का प्रयत्न किया था.

"तुम्हारी नादानी पर माँ ! इंसान के हालात हमेशा एक से हों, कभी संभव नही. सुख-दुख तो लगा ही रहता है, बस हमे बुरे समय के बीतने का इंतज़ार करना चाहिए. खेर छोड़ो! अब तो तुम चिंता मुक्त हो ना ?" ऋषभ ने अपनी माँ का मन टटोला ताकि आगे के वार्तालाप के लिए सुगम व सरल पाठ का निर्माण हो सके.
"ह्म्‍म्म" ममता ने भी सहमति जाताई, उसके पुत्र के साहित्यिक कथन का परिणाम रहा जो उसे दोबारा से अपना सर ऊपर उठाने का बल प्राप्त हुआ था.
"कब से हो रहा है यह दर्द तुम्हारी योनि में ?" जब ऋषभ ने देखा कि ममता का चेहरा स्वयं उसके चेहरे के सम्तुल्य आ गया है, इस स्वर्णिम मौके का फायदा उठाते हुवे उसने अपनी माँ की कजरारी आँखों में झाँकते हुए पुछा. ऐसा नही था कि उसे ममता किसी आम औरत की भाँति नज़र आ रही थी, उसने कभी अपनी माँ को उत्तेजना पूर्ण शब्द के साथ जोड़ कर नही देखा था. वह उसके लिए उतनी ही पवित्र, उतनी ही निष्कलंक थी जितनी कि कोई दैवीय मूरत. बस एक कसक थी या अजीब सा कौतूहल जो ऋषभ को मजबूर कर रहा था कि वह उसके विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करे भले वो जानकारी मर्यादित श्रेणी में हो या पूर्ण अमर्यादित.

"यही कोई महीने भर से" ममता ने बताया. वह चाहती तो आज या कल का बहाना बना कर उस अनैतिक वार्तलाब की अवधि घटा सकती थी परंतु सबसे बड़ा भेद तो वह खोल ही चुकी थी, अब उसके नज़रिए से कोई विशेष अंतर ना पड़ना था.
"क्या! महीने भर से" ऋषभ चौंका.
"उससे भी पहले से" ममता ने दोबारा विस्फोट किया.
"तो .. तो तुमने मुझे कुछ बताया क्यों नही माँ ?" ऋषभ ने व्याकुल स्वर में पुछा, उसके मस्तिष्क में अचानक से चिंता का वास हो गया था. शरीर के किसी भी अंग में इतने लंबे समय तक दर्द बने रहना बहुत ही गंभीर परिणामो का सूचक माना जाता है और उसकी माँ के मुताबिक दर्द उसके शरीर के सबसे संवेदनशील अंग उसकी चूत में था और जो वाकाई संदेह से परिपूर्ण विषय था.

"कैसे बताती ? जब किसी अन्य डॉक्टर को नही बता पाई तो फिर तू तो मेरा बेटा है" बोलते हुए ममता की आँखें मूंद जाती हैं.
ऋषभ: "तो क्या सिर्फ़ घुट'ते रहने से तुम्हारा दर्द समाप्त हो जाता ?"
ममता: "बेशरम बनने से तो कहीं अच्छी थी यह घुटन"
ऋषभ: "तुम किस युग में जी रही हो मा! क्या तुम्हे ज़रा सा भी अंदाज़ा है ?"
ममता: "युग बदल जाने से क्या इंसान को अपनी हद भूल जानी चाहिए ?"
"हद में रह कर ही तो तुम्हारी इतनी गंभीर हालत हुई है, काश माँ ! काश की तुमने थोड़ी देर के लिए ही सही, मुझे अपना बेटा समझने से इनकार कर दिया होता तो आज मैं कुच्छ हद तक मातृ ऋण से मुक्त हो गया होता" ऋषभ के द्विअर्थी शाब्दिक कथन के उपरांत तो जैसे पूरे केबिन में सन्नाटा सा छा जाता है.
 

bhonpu

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