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माँ मुझे बता रही थी कि यह जगह कितनी बदल चुकी है? आखरी बार वो 1993 में यहाँ से गयी थी..और आज इतने सालो बाद फिर अपने ससुराल आना उन्हें अच्छा तो नही लग रहा था लेकिन बेटे के दिल ने उनके दिल को भी पिघला दिया था...उनके अंदर अब इस जगह के लिए नफ़रत और गुस्सा नही बल्कि आज जैसे वो अलग ही अंजुम थी...जल्द ही हम मोरतुज़ा काका के घर पहुचे....समान लेते हुए माँ ने बताया कि यही मोरतुज़ा काका का घर है मैं इससे पहले आया नही था मैं तो बस इस शहर में आते ही अपना कदम रखते हुए यही सोच में था कि जिन लोगो के साथ मेरे संबंध थे कहीं उन्हें मालूम ना चल जाए? मैं अपने ही सोच में डूबा सा था
जब मोरतुज़ा काका ने दरवाजा खोला तो हमे देखके सर्प्राइज़ हुए...मुझे गले लगे और हमे अंदर आने को कहा....बुआ भी हमे देखके खुश थी काफ़ी उमर ढल चुकी थी उनकी...घर अच्छा ख़ासा था मोरतुज़ा काका के कारोबार से ही मैं अनुमान लगा सकता था कि वो कितने अमीर हो गये है? एक बेटी थी जो कोलकाता ब्याह दी गयी और आज दो जुड़वा बच्चों की माँ है तबस्सुम दी के बारे में सोचते ही बदन जैसे सिहर उठा....सच में उनकी चुदाई करने में मेरा पसीना निकल गया था उफ्फ तरबूज़ जैसी उनकी चुचियाँ...इतने में ध्यान टूटा
तो बुआ पानी दे रही थी...मैं खुद पे काबू करता हुआ पानी पीने लगा....मोरतुज़ा काका से फिर बातचीत का दौर शुरू हुआ घर बार की बात हुई फिर काम काज की...मैं ध्यान से उनकी बातें सुनने लगा उन्होने कहा आज यही ठहर जाओ किराए के घर में कल शिफ्ट हो जाना...पर माँ बोली नही नही खामोखा पर बुआ भी ज़िद्द करने लगी...लेकिन सामान बहुत सारा लाए थे इसलिए घर भी देखना था और शिफ्ट भी होना था....माँ और मैं सामान लिए मोरतुज़ा काका के साथ नये किराए के घर की ओर निकल गये....जहाँ मोरतुज़ा काका ने मुझे घर दिलवाया था वो टाउन से बाई ओर यानी उल्टा साइड पड़ता था इसलिए वो जगह मेरे जानने वालों के घरो से काफ़ी दूर था...और अगर कभी बारिश होती थी तो बीच का जो ब्रिड्ज था जो टाउन और हमारे एरिया को जोड़ता था वो नदी के पानी से भर जाता था
हालाँकि माँ को आपत्ति हुई पर मैने कहा कि क्या फरक पड़ता है? हमे प्राइवसी ही तो चाहिए मैने माँ के कान में फुसफुसते हुए कहा तो माँ मुस्कुराइ उन्हें भी किसी रिश्तेदार या किसी भी जानने वाले लोगो से मतलब नही रखना था...हालाँकि ताहिरा मौसी से मिलने की इच्छा जाहिर की पर वो उनके घर नही जाना चाहती थी ताहिरा मौसी और उनके घर का ज़िक्र सुन कर ही मैं फिरसे उन्ही पॅलो में चला गया जो दर्द और वाक़या जिन्हें समेत कर मैने इस एरिया को अलविदा कहा था
ब्रिड्ज क्रॉस करते ही बड़ा सा कब्रिस्तान शुरू हो गया और उसके बाद हरियाली छाने लगी ठीक उसके बाद कुछ घर शुरू हुए..थ्री वीलर एकदम सामने एक घर के आगे रुका....तो मोरतुज़ा काका मेरा बॅग उठाने लगे मैने मना किया....माँ हमारे पीछे थी....जैसे ही हम दरवाजे के पास आए...मोरतुज़ा काका ने चाबी से दरवाजा खोला
घर काफ़ी बड़ा था सारी सुविधाए थी....लिविंग रूम में बड़ी सी खिड़की थी वो एक सेपरेट फ्लोर था हमारा लेकिन नीचे का घर था..उपर तीन मंज़िला इमारत थी...जिसमें मकान मालिक को अब तक कोई किरायेदार नही मिला था...इसलिए हम बहुत खुश थे ओर वैसे भी इस एक पूरे ग्राउंड फ्लोर में हम माँ-बेटे को ही तो सिर्फ़ रहना था...माँ को घर बहुत पसंद आया क्यूंकी चारो तरफ चिड़ियो की आवाज़ और काफ़ी शांति थी पैड पौधे थे सुना था कि अभी लोग यहाँ धीरे धीरे बसने शुरू हुए है....
मोरतुज़ा काका फिर मुझे बोले कि थोड़ा रेस्ट कर लो अगले दिन फिर चलना पर मैने कहा शाम को ही आपके उस आदमी से मिल लून जो दिल्ली का माल यहाँ भिजवाएगा ताकि अपनी नौकरी मैं जल्दी संभालू...मेरा हौसला देखके मोरतुज़ा काका को अच्छा लगा माँ ने उन्हें कसम दी कि किसी को भी ससुराल के लोगो में ना बताए कि हम यहाँ है मोरतुज़ा काका ने निश्चिंत होने को माँ को कहा...मैं देख रहा था मोरतुज़ा काका माँ को बड़े गौर से देख रहे थे वो फिर माँ से मज़ाक सा करने लगे...लेकिन मेरी वहाँ मज़ूद्गी का अहसास उनको था शायद इसलिए वो बहुत जल्दी वहाँ से चले गये....शाम को मैं उनके साथ उनके आदमी से मिलने गया जिसने मुझे मामलो के बारे में जानकारी दी...फिर मैं डिस्ट्रिब्यूशन के साथ साथ जो माल लेना होता है उसके सॅंपल्स लेने का तरीका कौन सा माल लेना ठीक है? और उन्हें कौन कौन सी जगह में प्रवाइड करना है किसकी प्राइसस कितनी है उसमें कितना टॅक्स लगता है? बहुत सारा कारोबार को संभालने के लिए मैने रात दिन एक किए उन्हें मोरतुज़ा काका से जाना और संभालना शुरू किया
धीरे धीरे मैं मोरतुज़ा काका का काम संभालने लगा...और जैसे पहले करता था ठीक उससे दुगनी मेहनत करने लगा....मुनाफ़ा ज़्यादा कमाने लगा...हमारा घर जमने लगा..और इसके साथ ही माँ भी मेरे साथ हसी खुशी रहने लगी थी अब उसे कोई भी चीज़ की कोई तक़लीफ़ ना थी....हालाँकि प्राइवसी के चक्कर में और मोरतुज़ा काका के दिलाए किराए का घर जहाँ लिया था वो जगह थोड़ा सुनसान थी...इसलिए काम पे रहने के बाद मुझे हमेशा माँ की फिकर रहती थी....माँ ने पास की पड़ोसी औरतो से जो उमर में काफ़ी उम्रदराज थी उनसे दोस्ती कर ली इसलिए पूरे घर का काम निपटा देने के बाद वो उन लोगो से ही बैठके आँगन में बात करती रहती थी....मैने उन्हें सख़्त हिदायत दी थी कि अंधेरा होते ही घर से ना निकले मोबाइल चार्ज में रखे पहले पास की खिड़की जो लॉन में खुलती थी उससे झांन्कके देख ले कि कौन दरवाजे पे खड़ा है उसके बाद ही दरवाजा खोले रात को मैं घर जाने से पहले एक बार मिस कॉल मार देता था इसलिए माँ दरवाजा खोल देती थी
हालाँकि कभी कभी काम से लेट होने पे देर रात हो जाती तो मुझे रिक्क्षा भी बड़ी मुस्किल से मिलता था घर जाने के लिए...इसलिए मैने 2 महीने बाद ही इंस्टल्लमेंट पे बाइक खरीद ली थी इससे मुझे आसानी होने लगी और मेरा वक़्त बचने लगा...घर में शिफ्ट होने के तीसरे दिन ही ट्रक में लादा हुआ हमारा दिल्ली का सामान आ गया खटाखट करम्चरियो को पैसे दिए और जो पीसी और कुछ एक आध समान था उसे हमने रखना शुरू किया...मोरतुज़ा काका ने हमारे शिफ्ट होने के बाद ही हमे एक सेकेंड हॅंड बेड दिला दिया था....बाद में कहा कि पैसा हो जाए तो खरीद लेना माँ को भी इससे आपत्ति नही हुई....हम उसमें शीतलपाटी (एक तरह की बिंगाली चटाई जिसे बिस्तर के नीचे रखा जाता है) रज़ाई के उपर बिछाए उस पर चादर फैलाक़े सोते थे....रात को कुत्ते बड़े एकदुसरे से लड़ाई करते थे एकदम चुप्पी भरा सन्नाटा छा जाता था..
माँ को शुरू शुरू में नींद नही आती थी लेकिन धीरे धीरे उन्हें आदत पड़ने लगी पर जब भी मूतने की इच्छा होती थी तो मुझे जगाके साथ ले जाती थी हालाँकि हमारा घर चारों तरफ से बंद था....लेकिन उन्हे डर लगता था..मैं कभी कभी नींद में ज़्यादा होता पर माँ के मूतने की बात सुन मेरे अंदर की कामवासना जैसे जाग उठती थी मैं उनके साथ गुसलखाने के पास बने खाली जगह पे खड़ा रह जाता...वो अंदर टाय्लेट में घुस कर मूतने लग जाती...तो उनकी पेशाब की मोटी धार जब चूत से निकलती तो मेरे कानो में उसकी सिटी जैसी आवाज़ आती....लंड पाजामा में ही अकड़ जाता
मैं पहले की तरह खुले बदन और पाजामे के अंदर कुछ ना पहने माँ के साथ चिपक के सोता था...घर का माहौल मेरा बहुत ही रंगीन किसम का था...साला मकान मालिक भी बहुत महीनो महीनो बाद इकहट्टे पैसे लेने आता था कोलकाता से मोरतुज़ा काका का दिलाया घर अच्छा ही था...इससे पहले मैं जिस घर में था उससे भी ये घर शानदार था...मुझे चंपा की याद आई और बाकियो की भी
जब मोरतुज़ा काका ने दरवाजा खोला तो हमे देखके सर्प्राइज़ हुए...मुझे गले लगे और हमे अंदर आने को कहा....बुआ भी हमे देखके खुश थी काफ़ी उमर ढल चुकी थी उनकी...घर अच्छा ख़ासा था मोरतुज़ा काका के कारोबार से ही मैं अनुमान लगा सकता था कि वो कितने अमीर हो गये है? एक बेटी थी जो कोलकाता ब्याह दी गयी और आज दो जुड़वा बच्चों की माँ है तबस्सुम दी के बारे में सोचते ही बदन जैसे सिहर उठा....सच में उनकी चुदाई करने में मेरा पसीना निकल गया था उफ्फ तरबूज़ जैसी उनकी चुचियाँ...इतने में ध्यान टूटा
तो बुआ पानी दे रही थी...मैं खुद पे काबू करता हुआ पानी पीने लगा....मोरतुज़ा काका से फिर बातचीत का दौर शुरू हुआ घर बार की बात हुई फिर काम काज की...मैं ध्यान से उनकी बातें सुनने लगा उन्होने कहा आज यही ठहर जाओ किराए के घर में कल शिफ्ट हो जाना...पर माँ बोली नही नही खामोखा पर बुआ भी ज़िद्द करने लगी...लेकिन सामान बहुत सारा लाए थे इसलिए घर भी देखना था और शिफ्ट भी होना था....माँ और मैं सामान लिए मोरतुज़ा काका के साथ नये किराए के घर की ओर निकल गये....जहाँ मोरतुज़ा काका ने मुझे घर दिलवाया था वो टाउन से बाई ओर यानी उल्टा साइड पड़ता था इसलिए वो जगह मेरे जानने वालों के घरो से काफ़ी दूर था...और अगर कभी बारिश होती थी तो बीच का जो ब्रिड्ज था जो टाउन और हमारे एरिया को जोड़ता था वो नदी के पानी से भर जाता था
हालाँकि माँ को आपत्ति हुई पर मैने कहा कि क्या फरक पड़ता है? हमे प्राइवसी ही तो चाहिए मैने माँ के कान में फुसफुसते हुए कहा तो माँ मुस्कुराइ उन्हें भी किसी रिश्तेदार या किसी भी जानने वाले लोगो से मतलब नही रखना था...हालाँकि ताहिरा मौसी से मिलने की इच्छा जाहिर की पर वो उनके घर नही जाना चाहती थी ताहिरा मौसी और उनके घर का ज़िक्र सुन कर ही मैं फिरसे उन्ही पॅलो में चला गया जो दर्द और वाक़या जिन्हें समेत कर मैने इस एरिया को अलविदा कहा था
ब्रिड्ज क्रॉस करते ही बड़ा सा कब्रिस्तान शुरू हो गया और उसके बाद हरियाली छाने लगी ठीक उसके बाद कुछ घर शुरू हुए..थ्री वीलर एकदम सामने एक घर के आगे रुका....तो मोरतुज़ा काका मेरा बॅग उठाने लगे मैने मना किया....माँ हमारे पीछे थी....जैसे ही हम दरवाजे के पास आए...मोरतुज़ा काका ने चाबी से दरवाजा खोला
घर काफ़ी बड़ा था सारी सुविधाए थी....लिविंग रूम में बड़ी सी खिड़की थी वो एक सेपरेट फ्लोर था हमारा लेकिन नीचे का घर था..उपर तीन मंज़िला इमारत थी...जिसमें मकान मालिक को अब तक कोई किरायेदार नही मिला था...इसलिए हम बहुत खुश थे ओर वैसे भी इस एक पूरे ग्राउंड फ्लोर में हम माँ-बेटे को ही तो सिर्फ़ रहना था...माँ को घर बहुत पसंद आया क्यूंकी चारो तरफ चिड़ियो की आवाज़ और काफ़ी शांति थी पैड पौधे थे सुना था कि अभी लोग यहाँ धीरे धीरे बसने शुरू हुए है....
मोरतुज़ा काका फिर मुझे बोले कि थोड़ा रेस्ट कर लो अगले दिन फिर चलना पर मैने कहा शाम को ही आपके उस आदमी से मिल लून जो दिल्ली का माल यहाँ भिजवाएगा ताकि अपनी नौकरी मैं जल्दी संभालू...मेरा हौसला देखके मोरतुज़ा काका को अच्छा लगा माँ ने उन्हें कसम दी कि किसी को भी ससुराल के लोगो में ना बताए कि हम यहाँ है मोरतुज़ा काका ने निश्चिंत होने को माँ को कहा...मैं देख रहा था मोरतुज़ा काका माँ को बड़े गौर से देख रहे थे वो फिर माँ से मज़ाक सा करने लगे...लेकिन मेरी वहाँ मज़ूद्गी का अहसास उनको था शायद इसलिए वो बहुत जल्दी वहाँ से चले गये....शाम को मैं उनके साथ उनके आदमी से मिलने गया जिसने मुझे मामलो के बारे में जानकारी दी...फिर मैं डिस्ट्रिब्यूशन के साथ साथ जो माल लेना होता है उसके सॅंपल्स लेने का तरीका कौन सा माल लेना ठीक है? और उन्हें कौन कौन सी जगह में प्रवाइड करना है किसकी प्राइसस कितनी है उसमें कितना टॅक्स लगता है? बहुत सारा कारोबार को संभालने के लिए मैने रात दिन एक किए उन्हें मोरतुज़ा काका से जाना और संभालना शुरू किया
धीरे धीरे मैं मोरतुज़ा काका का काम संभालने लगा...और जैसे पहले करता था ठीक उससे दुगनी मेहनत करने लगा....मुनाफ़ा ज़्यादा कमाने लगा...हमारा घर जमने लगा..और इसके साथ ही माँ भी मेरे साथ हसी खुशी रहने लगी थी अब उसे कोई भी चीज़ की कोई तक़लीफ़ ना थी....हालाँकि प्राइवसी के चक्कर में और मोरतुज़ा काका के दिलाए किराए का घर जहाँ लिया था वो जगह थोड़ा सुनसान थी...इसलिए काम पे रहने के बाद मुझे हमेशा माँ की फिकर रहती थी....माँ ने पास की पड़ोसी औरतो से जो उमर में काफ़ी उम्रदराज थी उनसे दोस्ती कर ली इसलिए पूरे घर का काम निपटा देने के बाद वो उन लोगो से ही बैठके आँगन में बात करती रहती थी....मैने उन्हें सख़्त हिदायत दी थी कि अंधेरा होते ही घर से ना निकले मोबाइल चार्ज में रखे पहले पास की खिड़की जो लॉन में खुलती थी उससे झांन्कके देख ले कि कौन दरवाजे पे खड़ा है उसके बाद ही दरवाजा खोले रात को मैं घर जाने से पहले एक बार मिस कॉल मार देता था इसलिए माँ दरवाजा खोल देती थी
हालाँकि कभी कभी काम से लेट होने पे देर रात हो जाती तो मुझे रिक्क्षा भी बड़ी मुस्किल से मिलता था घर जाने के लिए...इसलिए मैने 2 महीने बाद ही इंस्टल्लमेंट पे बाइक खरीद ली थी इससे मुझे आसानी होने लगी और मेरा वक़्त बचने लगा...घर में शिफ्ट होने के तीसरे दिन ही ट्रक में लादा हुआ हमारा दिल्ली का सामान आ गया खटाखट करम्चरियो को पैसे दिए और जो पीसी और कुछ एक आध समान था उसे हमने रखना शुरू किया...मोरतुज़ा काका ने हमारे शिफ्ट होने के बाद ही हमे एक सेकेंड हॅंड बेड दिला दिया था....बाद में कहा कि पैसा हो जाए तो खरीद लेना माँ को भी इससे आपत्ति नही हुई....हम उसमें शीतलपाटी (एक तरह की बिंगाली चटाई जिसे बिस्तर के नीचे रखा जाता है) रज़ाई के उपर बिछाए उस पर चादर फैलाक़े सोते थे....रात को कुत्ते बड़े एकदुसरे से लड़ाई करते थे एकदम चुप्पी भरा सन्नाटा छा जाता था..
माँ को शुरू शुरू में नींद नही आती थी लेकिन धीरे धीरे उन्हें आदत पड़ने लगी पर जब भी मूतने की इच्छा होती थी तो मुझे जगाके साथ ले जाती थी हालाँकि हमारा घर चारों तरफ से बंद था....लेकिन उन्हे डर लगता था..मैं कभी कभी नींद में ज़्यादा होता पर माँ के मूतने की बात सुन मेरे अंदर की कामवासना जैसे जाग उठती थी मैं उनके साथ गुसलखाने के पास बने खाली जगह पे खड़ा रह जाता...वो अंदर टाय्लेट में घुस कर मूतने लग जाती...तो उनकी पेशाब की मोटी धार जब चूत से निकलती तो मेरे कानो में उसकी सिटी जैसी आवाज़ आती....लंड पाजामा में ही अकड़ जाता
मैं पहले की तरह खुले बदन और पाजामे के अंदर कुछ ना पहने माँ के साथ चिपक के सोता था...घर का माहौल मेरा बहुत ही रंगीन किसम का था...साला मकान मालिक भी बहुत महीनो महीनो बाद इकहट्टे पैसे लेने आता था कोलकाता से मोरतुज़ा काका का दिलाया घर अच्छा ही था...इससे पहले मैं जिस घर में था उससे भी ये घर शानदार था...मुझे चंपा की याद आई और बाकियो की भी