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अंजुम को खुश देख आदम को अच्छा लगा वरना कल परसो से उसने सिर्फ़ उसे दुखी पाया था....उसने उठके माँ की तरफ देखा...माँ उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुराइ...माँ ने उसकी गर्दन पे दोनो हाथ रखे और उसे प्यार से देखा तो आदम ने उसके होंठो पे होंठ रखके एक ज़ोर का चुम्मा ले लिया..अंजुम उसकी इस हरकत पे हंस पड़ी...दोनो फिर एकदुसरे से अटखेलिया करने लगे...जैसे दोनो के बीच कितना प्यार हो
अगले दिन आदम ने हेमा की छोटी बेटी उमा को कॉल लगाया उसे कल रात से हेमा आंटी की फिकर थी एक उमा ही थी जो उससे काफ़ी फ्रॅंक थी आदम को लगता था कि दिल ही दिल में उमा उसे अलग निगाहो से देखती हो क्यूंकी आदम के साथ उसकी हर पिक एडिटिंग की हुई होती थी चाहे वो रक्षा बंधन की खीची हुई फोटो हो या फिर ऐसी ..."हां उमा हेलो?"......"ह..हाँ भैया"........उमा ने आवाज़ पहचानते हुए एकदम से कॉल उठा लिया था
आदम : अभी कैसी है तू? रैना कैसी है?
उमा : सब ठीक है यहाँ कल दिन से रैना दी और माँ ने कुछ खाया नही था लेकिन बहेन ने माँ से माँफी माँगी अभी सब ठीक है...दोनो माँ-बेटी बात करने लगी है
आदम : उफ्फ चलो शूकर है आइ आम सॉरी उमा कल मेरी वजह से तुम लोगो को इतना गहरा ठेस पहुचा मैं कैसे माँफी मांगू मैं तो तुम दोनो से नज़रें भी ना मिला सकता
उमा : भैया मैं समझती हूँ मैं जानती थी कि माँ के नाजायेज़ संबंध है पर भैया आप भी उनके साथ कैसे? खैर हम कर भी क्या सकते है हालत के आगे मज़बूर तो हम भी है
आदम : सरदार जी आए उनको कुछ मालूम तो नही चला ना?
उमा : नही भैया वो क्यूँ आते? वो तो मर रहे होंगे अपनी बीवी को लेके उन्हें हमारे घर से क्या? कल कोई और कलेश नही हुआ था माँ से दीदी का वो थोड़ी गुस्सा ज़रूर थी पर अब उसने मुझे कहा कि उसे बेहद बुरा लगा वो आपसे माँफी भी माँगना चाहती थी
आदम : हालत के आगे वो भी क्या कर सकती है उमा खैर जाने दो जो हो गया सो गया बस मैं ये चाहता हूँ कि तू तो कम से कम मांफ कर दे मुझे
उमा : मैने आपको कब बुरा भला कहाँ था भैया? मैं तो आपको अपने भाई से भी बढ़ के मानती हूँ
आदम : खैर मैं अब जा रहा हूँ ना अगले महीने इसलिए सोचा कि मन खट्टा करके ऐसे तुम लोगो से विदा ना लूँ
उमा : क्यूँ कहाँ जा रहे हो आप?
आदम : माँ के साथ शहर छोड़ रहा हूँ...कल ऐसे मोमेंट पे हम मिले कि कोई बात ही नही हो सकी
आदम उमा को सबकुछ ब्यान कर देता है...उमा को बताता है कि वो हेमा आंटी का राज़दार था..वो उमा से मिलने की ज़िद्द करता है..पर उमा बहन के डर से उससे मिलना नही चाह रही थी...पर वो ये बात अपनी माँ को बताती है कि भाई मिलना चाहता है...तो हेमा कोई आपत्ति नही जताती...उमा आदम को बस स्टॉप पे मिलने का कहते हुए फोन काट देती है...वक़्त के अनुसार आदम वहाँ शाम 5 बजे पहुचता है...
जब वो वहाँ जाता है तो साथ में रैना को भी खड़ा पाता है...रैना की मज़ूद्गी पाके वो शर्मिंदगी महसूस करने लगता है....रैना उससे कल जो हुआ उसके लिए माँफी मांगती है....आदम कहता है कि क्या वो अब भी उससे गुस्सा है? बस वो नही चाहता कि वो ऐसे रिश्तो को ऐसे हालात में छोड़के विदा ले..उमा पूछती है कि आख़िर क्या बात हो गयी जो वो अंजुम आंटी को लिए शहर छोड़ रहा है...आदम कहता है कि ये जगह बात करने के लिए ठीक नही....वो उन्हें अपने साथ एक रेस्टोरेंट ले आता है...पहले रैना ना नुकुर कर रही होती है कुछ ना ऑर्डर देने के लिए वो उदास होती है तो आदम ही तीन कॉफी का ऑर्डर देके बाद में बाकी ऑर्डर देगा बोलके वेटर को भगा देता है
फिर दोनो को तफ़सील से समझाने लगता है...."देखो रैना और उमा हेमा आंटी के सामने तुम्हें मैं इतना कुछ कह तो नही सकता था...पर तुमने हमे जिस हालत में देखा उसके बाद यक़ीनन किसी भी बेटी का अपने भाई या माँ से विश्वास उठना तय है...पर यही सच्चाई है कि मैं आंटी से पहली बार मिला हूँ"......इतना सुनते ही रैना और उमा दोनो जैसे लजा जाती है आदम हिचकिचाते हुए उनके हालत को समझे चुप हो जाता है
फिर वो उन्हें कहता है कि जो कुछ भी हुआ वो किस्मत का फेर है...समीर अब उनके घर नही आएगा...वो पार्टी वाली बात दोनो के आगे रखता है फिर दोनो को समझाता है कि उसकी माँ ये सब मजबूरी में कर रही है आज से नही करीब 7 सालो से पर वो हर किसी से संबंध नही बनाती थी लोग ही उसकी आबरू के दुश्मन बने फिर रहे थे उसने ये लाइन इसलिए चुना कि उसे अपना घर चलाना था तुम दोनो को पालना था वो ईमानदारी से कामवाली की भी नौकरी के बाद फॅक्टरी में लगी लेकिन वहाँ भी ग़रीबी और लोगो की हवस ने उसे एक बार फिर मज़बूर कर दिया कि वो संबंध बनाए...उनकी बातों का बुरा ना माने...उन्हें उल्टे समझने की कोशिश करे....उनके ही बदौलत आज सरदार उसकी बेटियों को देख रहा था....रैना दिल ही दिल में सरदार से नफ़रत करती थी उसने सॉफ कहा कि हम जानते है लेकिन हम चुपचाप थे हमे बस ये लगा कि हमारी माँ कितनी गंदी औरत है?
आदम : बस इसलिए तुम लोग उसे बुरा कह रहे हो हालत को समझो अगर उसने सरदार से झूठी शादी का ढोंग जो खुद सरदार ने किया सिर्फ़ इस संबंध को और तुम्हारे आगे इस रिश्ते को जायेज़ करार देने के लिए तो सिर्फ़ तुम्हारे लिए वरना उसे हेमा आंटी से कोई प्यार नही....देखा कल रिपोर्ट्स मे कैसे उसने हेमा आंटी को दर्द दिया
उमा : हम जानते है भैया पर अब हम क्या करें? हमे लगा कि आप भी उन आदमियों जैसे है जो हमारी माँ के पेशे का फ़ायदा उठा रहा है
आदम : ऐसा बिल्कुल नही सबकुछ रज़ामंदी से हुआ था...लेकिन वो मेरी पहली और आखरी भूल थी अब मैं वहाँ कभी नही आउन्गा
रैना : भैया ऐसा ना कहे हमे अपनी ग़लती का अहसास है हम मिसअंडरस्टेंडिंग में आ गये थे
आदम समझता था दोनो को झटका लगा था अपनी माँ की चुदाई देखते हुए....रैना ने ये तक बात रख दिया कि वो नही चाहती कि उसकी माँ ये पेशा और अपनाए उसने आदम को कहा कि अगर मज़बूरी ज़्यादा है तो वो भी ये पेशा जाय्न कर लेगी चाहे जो कुछ उसकी माँ ने पैसो की मज़बूरी में किया वो भी कर सकती है...उमा ने भी साथ में हामी भरी..तो आदम ने उन्हें डांटा
आदम : भूल से भी ये बात ना कहना बहन मानता हूँ तुम्हें मानता हूँ ठरक और हवस की हसरतों ने मेरे ईमान को डगमगा दिया जो मैं आंटी के साथ ये कर बैठा पर प्ल्स तुम लोग इस लाइन को नही चुनना तुम पढ़ी लिखी हो उमा बी.कॉम कर चुकी है सी.ए के अंडर काम करती है क्या मैं नही चाहता कि तुम दोनो किसी लायक बनो अपने घर पे लगे उस दाग को मिटाओ जिन लोगो ने लांक्षन लगाए है उनके चेहरो पे कालिख पोतो और उन्हें दिखलाओ कि तुम भी कुछ हो तुम किसी रंडी की बेटी नही एक ईमान घर की लड़किया हो तुम दोनो कुँवारी हो कल को शादी होगी क्या मैं नही चाहता कि तुम्हारी गृहस्थी खुशियो से भारी हो कोई चीज़ की कमी नही हो तुम्हे ये पेशा जो तुम्हारी माँ ने इकतियार किया क्या है इसमें? सिर्फ़ मज़बूरी और दर्द हम में से कुछ ही मर्द हों जो औरतो की मज़बूरी और खासकरके ऐसे औरतो के दिल को समझ पाए पर मैने समझा है कि तुम्हारी माँ ने कितना दुखा झेला कितने दर्द से तुम लोगो की परवरिश की...सिर्फ़ अपना जिस्म बेचके क्या हसरत पूरी कर लोगे तुम जिंदगी की हसरत कभी मिटती नही ये और भी ज़्यादा सुलगती है
आदम की बातों से दोनो चुपचाप सी हो गयी.....उन्हें जैसे अहसास हुआ अपनी माँ और खुद के हालातों का....क्या कोई कह सकता था? कि वो यह वो इंसान बोल रहा है वो इंसान जिसकी निगाहो में रत्ती भर के लिए अपनी बहन के प्रति कोई बुरे ख्याल नही थे हालाँकि वो उसकी सग़ी बहनें नही थी...क्या कोई कह सकता है जो कल तक आयाशी करता फिरता था वो आज एकदम से इतना बदल गया था
आदम के हौसला देने से दोनो काफ़ी चुपचाप हुए जैसे उसकी बातों को मान रही थी....आदम के समझाने के बाद दोनो उसके गले लग्के रोने लगी...आदम ने दोनो को समझाया कि वो भले ही उनका गैर ही सही पर जब बहन माना है तो वो उनपे ऐसी गंदी नज़र नही रख सकता ना ही उन्हें किसी भी गंदे हालातों में देख सकता है...आदम ने उनसे कहा कि घर जाए माँ को मनाए समझाए और खुशी मन से रहे...उमा और रैना को नाज़ हुआ कि वो जैसा आदम को समझ रही थी वो वैसा था नही शायद जो कुछ उस दिन उन लोगो ने देखा वो सिर्फ़ हेमा और आदम के बीच एकदुसरे की हवस थी
आदम के मनाने के बाद वेटर को दोनो ने ऑर्डर्स दिए फिर खुशी मन से दोनो बहनें आदम से गले मिलके चली गयी.....उन्होने चाहा कि अंजुम हेमा से मिल ले....पर आदम ने बताया कि शायद ही वो माने....आदम को खुशी हुई कि उसका टूटते रिश्ते की डोर उसने वक़्त रहते संभाल ली वरना ज़िंदगी भर ये अफ़सोस रह जाता और दोनो उसे हीनभावना और घृणा भरी नज़रो से ही देखती....घर आके उसने माँ को काफ़ी समझाया था.....काफ़ी समझाने के बाद माँ और आदम दोनो हेमा आंटी के घर गये उनसे मिले.....दोनो सहेलियो ने आपस के गीले शिकवे दूर किए तो आदम भी अपनी बहनों से मिलके उनके साथ हँसी खुशी पल बिताने लगा
वो जैसे आखरी मुलाक़ात थी...उनसे विदा लेने के बाद सच में दोनो का मन भर आया था....समीर को फोन करके आदम ने जब सबकुछ बताया तो वाक़ई वो आदम से काफ़ी इंप्रेस हुआ कि किस तरह उसने उसने रिश्तो को टूटने और बिखरने से बचा लिया था...और उससे भी बढ़के वो चाहता तो अपनी बातों से उमा और रैना अपनी मुँह बोली बहनों को राज़ी करके उनके साथ कुछ भी कर लेता...पर समीर मुस्कुराया वो जानता था आदम का दिल सॉफ है वो रिश्तो की अहमियत को समझता था...हालाँकि समीर को ये नही मालूम था कि आदम अपनी माँ को सिर्फ़ माँ नही एक अलग नज़रिए से देखता है उससे अटूट प्यार करता है...क्यूंकी उसका प्यार सच्चा था और कही हद तक उसी के प्यार ने आदम को हवस भरी हसरतों से निकाल एक सच्चा प्रेमी बना दिया था
आगे ये कहानी क्या मोड़ लेने वाली थी इसका अंदाज़ा किसी को नही था
अगले दिन आदम ने हेमा की छोटी बेटी उमा को कॉल लगाया उसे कल रात से हेमा आंटी की फिकर थी एक उमा ही थी जो उससे काफ़ी फ्रॅंक थी आदम को लगता था कि दिल ही दिल में उमा उसे अलग निगाहो से देखती हो क्यूंकी आदम के साथ उसकी हर पिक एडिटिंग की हुई होती थी चाहे वो रक्षा बंधन की खीची हुई फोटो हो या फिर ऐसी ..."हां उमा हेलो?"......"ह..हाँ भैया"........उमा ने आवाज़ पहचानते हुए एकदम से कॉल उठा लिया था
आदम : अभी कैसी है तू? रैना कैसी है?
उमा : सब ठीक है यहाँ कल दिन से रैना दी और माँ ने कुछ खाया नही था लेकिन बहेन ने माँ से माँफी माँगी अभी सब ठीक है...दोनो माँ-बेटी बात करने लगी है
आदम : उफ्फ चलो शूकर है आइ आम सॉरी उमा कल मेरी वजह से तुम लोगो को इतना गहरा ठेस पहुचा मैं कैसे माँफी मांगू मैं तो तुम दोनो से नज़रें भी ना मिला सकता
उमा : भैया मैं समझती हूँ मैं जानती थी कि माँ के नाजायेज़ संबंध है पर भैया आप भी उनके साथ कैसे? खैर हम कर भी क्या सकते है हालत के आगे मज़बूर तो हम भी है
आदम : सरदार जी आए उनको कुछ मालूम तो नही चला ना?
उमा : नही भैया वो क्यूँ आते? वो तो मर रहे होंगे अपनी बीवी को लेके उन्हें हमारे घर से क्या? कल कोई और कलेश नही हुआ था माँ से दीदी का वो थोड़ी गुस्सा ज़रूर थी पर अब उसने मुझे कहा कि उसे बेहद बुरा लगा वो आपसे माँफी भी माँगना चाहती थी
आदम : हालत के आगे वो भी क्या कर सकती है उमा खैर जाने दो जो हो गया सो गया बस मैं ये चाहता हूँ कि तू तो कम से कम मांफ कर दे मुझे
उमा : मैने आपको कब बुरा भला कहाँ था भैया? मैं तो आपको अपने भाई से भी बढ़ के मानती हूँ
आदम : खैर मैं अब जा रहा हूँ ना अगले महीने इसलिए सोचा कि मन खट्टा करके ऐसे तुम लोगो से विदा ना लूँ
उमा : क्यूँ कहाँ जा रहे हो आप?
आदम : माँ के साथ शहर छोड़ रहा हूँ...कल ऐसे मोमेंट पे हम मिले कि कोई बात ही नही हो सकी
आदम उमा को सबकुछ ब्यान कर देता है...उमा को बताता है कि वो हेमा आंटी का राज़दार था..वो उमा से मिलने की ज़िद्द करता है..पर उमा बहन के डर से उससे मिलना नही चाह रही थी...पर वो ये बात अपनी माँ को बताती है कि भाई मिलना चाहता है...तो हेमा कोई आपत्ति नही जताती...उमा आदम को बस स्टॉप पे मिलने का कहते हुए फोन काट देती है...वक़्त के अनुसार आदम वहाँ शाम 5 बजे पहुचता है...
जब वो वहाँ जाता है तो साथ में रैना को भी खड़ा पाता है...रैना की मज़ूद्गी पाके वो शर्मिंदगी महसूस करने लगता है....रैना उससे कल जो हुआ उसके लिए माँफी मांगती है....आदम कहता है कि क्या वो अब भी उससे गुस्सा है? बस वो नही चाहता कि वो ऐसे रिश्तो को ऐसे हालात में छोड़के विदा ले..उमा पूछती है कि आख़िर क्या बात हो गयी जो वो अंजुम आंटी को लिए शहर छोड़ रहा है...आदम कहता है कि ये जगह बात करने के लिए ठीक नही....वो उन्हें अपने साथ एक रेस्टोरेंट ले आता है...पहले रैना ना नुकुर कर रही होती है कुछ ना ऑर्डर देने के लिए वो उदास होती है तो आदम ही तीन कॉफी का ऑर्डर देके बाद में बाकी ऑर्डर देगा बोलके वेटर को भगा देता है
फिर दोनो को तफ़सील से समझाने लगता है...."देखो रैना और उमा हेमा आंटी के सामने तुम्हें मैं इतना कुछ कह तो नही सकता था...पर तुमने हमे जिस हालत में देखा उसके बाद यक़ीनन किसी भी बेटी का अपने भाई या माँ से विश्वास उठना तय है...पर यही सच्चाई है कि मैं आंटी से पहली बार मिला हूँ"......इतना सुनते ही रैना और उमा दोनो जैसे लजा जाती है आदम हिचकिचाते हुए उनके हालत को समझे चुप हो जाता है
फिर वो उन्हें कहता है कि जो कुछ भी हुआ वो किस्मत का फेर है...समीर अब उनके घर नही आएगा...वो पार्टी वाली बात दोनो के आगे रखता है फिर दोनो को समझाता है कि उसकी माँ ये सब मजबूरी में कर रही है आज से नही करीब 7 सालो से पर वो हर किसी से संबंध नही बनाती थी लोग ही उसकी आबरू के दुश्मन बने फिर रहे थे उसने ये लाइन इसलिए चुना कि उसे अपना घर चलाना था तुम दोनो को पालना था वो ईमानदारी से कामवाली की भी नौकरी के बाद फॅक्टरी में लगी लेकिन वहाँ भी ग़रीबी और लोगो की हवस ने उसे एक बार फिर मज़बूर कर दिया कि वो संबंध बनाए...उनकी बातों का बुरा ना माने...उन्हें उल्टे समझने की कोशिश करे....उनके ही बदौलत आज सरदार उसकी बेटियों को देख रहा था....रैना दिल ही दिल में सरदार से नफ़रत करती थी उसने सॉफ कहा कि हम जानते है लेकिन हम चुपचाप थे हमे बस ये लगा कि हमारी माँ कितनी गंदी औरत है?
आदम : बस इसलिए तुम लोग उसे बुरा कह रहे हो हालत को समझो अगर उसने सरदार से झूठी शादी का ढोंग जो खुद सरदार ने किया सिर्फ़ इस संबंध को और तुम्हारे आगे इस रिश्ते को जायेज़ करार देने के लिए तो सिर्फ़ तुम्हारे लिए वरना उसे हेमा आंटी से कोई प्यार नही....देखा कल रिपोर्ट्स मे कैसे उसने हेमा आंटी को दर्द दिया
उमा : हम जानते है भैया पर अब हम क्या करें? हमे लगा कि आप भी उन आदमियों जैसे है जो हमारी माँ के पेशे का फ़ायदा उठा रहा है
आदम : ऐसा बिल्कुल नही सबकुछ रज़ामंदी से हुआ था...लेकिन वो मेरी पहली और आखरी भूल थी अब मैं वहाँ कभी नही आउन्गा
रैना : भैया ऐसा ना कहे हमे अपनी ग़लती का अहसास है हम मिसअंडरस्टेंडिंग में आ गये थे
आदम समझता था दोनो को झटका लगा था अपनी माँ की चुदाई देखते हुए....रैना ने ये तक बात रख दिया कि वो नही चाहती कि उसकी माँ ये पेशा और अपनाए उसने आदम को कहा कि अगर मज़बूरी ज़्यादा है तो वो भी ये पेशा जाय्न कर लेगी चाहे जो कुछ उसकी माँ ने पैसो की मज़बूरी में किया वो भी कर सकती है...उमा ने भी साथ में हामी भरी..तो आदम ने उन्हें डांटा
आदम : भूल से भी ये बात ना कहना बहन मानता हूँ तुम्हें मानता हूँ ठरक और हवस की हसरतों ने मेरे ईमान को डगमगा दिया जो मैं आंटी के साथ ये कर बैठा पर प्ल्स तुम लोग इस लाइन को नही चुनना तुम पढ़ी लिखी हो उमा बी.कॉम कर चुकी है सी.ए के अंडर काम करती है क्या मैं नही चाहता कि तुम दोनो किसी लायक बनो अपने घर पे लगे उस दाग को मिटाओ जिन लोगो ने लांक्षन लगाए है उनके चेहरो पे कालिख पोतो और उन्हें दिखलाओ कि तुम भी कुछ हो तुम किसी रंडी की बेटी नही एक ईमान घर की लड़किया हो तुम दोनो कुँवारी हो कल को शादी होगी क्या मैं नही चाहता कि तुम्हारी गृहस्थी खुशियो से भारी हो कोई चीज़ की कमी नही हो तुम्हे ये पेशा जो तुम्हारी माँ ने इकतियार किया क्या है इसमें? सिर्फ़ मज़बूरी और दर्द हम में से कुछ ही मर्द हों जो औरतो की मज़बूरी और खासकरके ऐसे औरतो के दिल को समझ पाए पर मैने समझा है कि तुम्हारी माँ ने कितना दुखा झेला कितने दर्द से तुम लोगो की परवरिश की...सिर्फ़ अपना जिस्म बेचके क्या हसरत पूरी कर लोगे तुम जिंदगी की हसरत कभी मिटती नही ये और भी ज़्यादा सुलगती है
आदम की बातों से दोनो चुपचाप सी हो गयी.....उन्हें जैसे अहसास हुआ अपनी माँ और खुद के हालातों का....क्या कोई कह सकता था? कि वो यह वो इंसान बोल रहा है वो इंसान जिसकी निगाहो में रत्ती भर के लिए अपनी बहन के प्रति कोई बुरे ख्याल नही थे हालाँकि वो उसकी सग़ी बहनें नही थी...क्या कोई कह सकता है जो कल तक आयाशी करता फिरता था वो आज एकदम से इतना बदल गया था
आदम के हौसला देने से दोनो काफ़ी चुपचाप हुए जैसे उसकी बातों को मान रही थी....आदम के समझाने के बाद दोनो उसके गले लग्के रोने लगी...आदम ने दोनो को समझाया कि वो भले ही उनका गैर ही सही पर जब बहन माना है तो वो उनपे ऐसी गंदी नज़र नही रख सकता ना ही उन्हें किसी भी गंदे हालातों में देख सकता है...आदम ने उनसे कहा कि घर जाए माँ को मनाए समझाए और खुशी मन से रहे...उमा और रैना को नाज़ हुआ कि वो जैसा आदम को समझ रही थी वो वैसा था नही शायद जो कुछ उस दिन उन लोगो ने देखा वो सिर्फ़ हेमा और आदम के बीच एकदुसरे की हवस थी
आदम के मनाने के बाद वेटर को दोनो ने ऑर्डर्स दिए फिर खुशी मन से दोनो बहनें आदम से गले मिलके चली गयी.....उन्होने चाहा कि अंजुम हेमा से मिल ले....पर आदम ने बताया कि शायद ही वो माने....आदम को खुशी हुई कि उसका टूटते रिश्ते की डोर उसने वक़्त रहते संभाल ली वरना ज़िंदगी भर ये अफ़सोस रह जाता और दोनो उसे हीनभावना और घृणा भरी नज़रो से ही देखती....घर आके उसने माँ को काफ़ी समझाया था.....काफ़ी समझाने के बाद माँ और आदम दोनो हेमा आंटी के घर गये उनसे मिले.....दोनो सहेलियो ने आपस के गीले शिकवे दूर किए तो आदम भी अपनी बहनों से मिलके उनके साथ हँसी खुशी पल बिताने लगा
वो जैसे आखरी मुलाक़ात थी...उनसे विदा लेने के बाद सच में दोनो का मन भर आया था....समीर को फोन करके आदम ने जब सबकुछ बताया तो वाक़ई वो आदम से काफ़ी इंप्रेस हुआ कि किस तरह उसने उसने रिश्तो को टूटने और बिखरने से बचा लिया था...और उससे भी बढ़के वो चाहता तो अपनी बातों से उमा और रैना अपनी मुँह बोली बहनों को राज़ी करके उनके साथ कुछ भी कर लेता...पर समीर मुस्कुराया वो जानता था आदम का दिल सॉफ है वो रिश्तो की अहमियत को समझता था...हालाँकि समीर को ये नही मालूम था कि आदम अपनी माँ को सिर्फ़ माँ नही एक अलग नज़रिए से देखता है उससे अटूट प्यार करता है...क्यूंकी उसका प्यार सच्चा था और कही हद तक उसी के प्यार ने आदम को हवस भरी हसरतों से निकाल एक सच्चा प्रेमी बना दिया था
आगे ये कहानी क्या मोड़ लेने वाली थी इसका अंदाज़ा किसी को नही था