Nice update broUpdate 32नाना-नानी ट्रेन में चढ़ने से पहले मुझे और माँ को बार-बार गले से लगा रहे थे। मैं और माँ, एक साथ झुककर पति-पत्नी के रूप में उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेने लगे। नानाजी ने मुझे एक बार अलग से गले लगाया और कुछ देर तक थामे रखा, जैसे वह मौन शब्दों में कह रहे हों, "मैंने अपने घर की लक्ष्मी तुम्हें सौंपी है, बेटा। अब इसे तुम्हीं संभालना।"
फिर उन्होंने माँ को गले लगाकर मायूसी और मुस्कान के साथ विदाई दी। उनकी आँखों में एक पिता की चिंता और प्यार था, जो अपने दिल के टुकड़े को जीवन की नई राह पर भेज रहा हो।
नानी ने माँ को फिर से गले से लगाया और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से थामकर उसकी आँखों में देखा। उनकी अपनी आँखें भीगी हुई थीं, लेकिन एक मुस्कान के साथ उन्होंने माँ को आशीर्वाद देते हुए कहा, "सदा सुहागन रहो, बेटी।" नाना-नानी के चेहरे पर साफ़ दिख रहा था कि वे अपनी प्यारी बेटी को विदा कर रहे हैं।
मैं और माँ, एक साथ खड़े, बस उन्हें समझाने और उनके ख्याल रखने के लिए कहने लगे। आज तक माँ उनके साथ थी, उनके जीवन का हिस्सा, लेकिन अब वे दोनों वास्तव में अकेले रह जाएंगे। यह विचार मेरे मन को भी भारी कर रहा था।
लेकीन, क्या किया जाए? शायद जीवन का यही अर्थ है।
मैं और माँ एक साथ प्लेटफार्म पर खड़े थे। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी।
नाना-नानी ने खिड़की से हमें देखकर हाथ हिलाया और एक स्नेहिल मुस्कान के साथ अपना प्यार जताया। जैसे-जैसे ट्रेन ने गति पकड़ी, माँ की आँखें भर आईं। ट्रेन अब प्लेटफार्म को छोड़ दूर जाने लगी थी, और तभी मैंने महसूस किया कि माँ ने अपने दोनों हाथ उठाकर मेरे बाजू को थाम लिया है।
मैंने उनकी ओर देखा—वह अब भी जाते हुए ट्रेन को देख रही थी, उनकी आँखें आँसुओं से भरी थीं, पर वह अपना ध्यान मुझसे हटाकर उसी दिशा में लगाए हुए थी।
माँ के हाथ धीरे-धीरे मेरे बाजू को कसकर पकड़ने लगे। मेरे मन में विचारों का सैलाब उमड़ पड़ा—अब तक वह अपने मम्मी-पापा के साये में, उनके प्यार और सेफटी में जीवन बिता रही थी। उन्होंने माँ की देखभाल, उनका पालन-पोषण बड़े प्यार से किया था। लेकिन अब, इस पल से, माँ मेरी संगिनी है, मेरी पत्नी है, और उनकी देखभाल, उनकी रक्षा का दायित्व अब मुझ पर है।
उसके इस सहज, अनजाने सी पकड़ से जैसे उन्होंने मेरे भीतर इस नए रिश्ते की जिम्मेदारी का एहसास जगा दिया हो। मानो वह मेरे बाजू को थामकर, बिना एक शब्द कहे, मुझे यह याद करा रही हो कि अब से मैं ही उनका पति हूँ—उनका साथी, उसका रक्षक।
शादी के समय जब मैंने कसमें खाईं, तब यह वादा किया था कि मैं जीवनभर माँ का ख्याल रखूँगा—उनकी हर इच्छा को पूरा करूँगा, उनकी हर चाहत को अपने प्यार, देखभाल और ईमानदारी से पूरा करूँगा। मैं उन्हे हर मुश्किल और परेशानी से बचाकर, अपनी मजबूत बाँहों का सहारा दूँगा, ताकि वह मेरी बाहों में सुकून भरी नींद ले सके। और आज, इस पल से, मेरे उस कर्तव्य का पालन शुरू हो गया है।
मै उन्हे देख रहा था, और मेरे मन में एक नई अनुभूति जाग उठी—एक ऐसा प्यार, जो एक पति अपनी पत्नी के लिए महसूस करता है। माँ के लिए यह एहसास, यह स्नेह पहली बार मेरे भीतर जाग रहा था। इस प्लेटफार्म पर, नाना-नानी को विदा देकर, हम दोनों अपने इस नए रिश्ते की दहलीज़ पर खड़े थे, और मैं महसूस कर रहा था कि मैं एक नई जिम्मेदारी के साथ, माँ के जीवन में एक नए प्यार की शुरुआत कर रहा हूँ।
मुझे इस तरह का प्यार और भावनाएं पहले कभी महसूस नहीं हुई थीं। तभी माँ ने अपना सिर उठाकर मेरी ओर देखा।
उनकी नम आँखों में अपनों से दूर जाने का ग़म था, साथ ही एक अद्भुत ख़ुशी भी झलक रही थी। वह अपने मम्मी-पापा से दूर रहकर भी अपने दिल से जुड़े किसी खास के साथ, अपने बेटे के साथ—जो अब उनके पति हैं—जीवन बिताने जा रही थीं। उनके मन में जो मिश्रित खुशी और उत्साह था, वह उनकी आँखों में साफ रूप से दिख रहा था।
हम दोनों उस भीड़ भरे प्लेटफार्म पर कुछ पल के लिए एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर अचानक, माँ में एक शर्म का अनुभव हुआ, और उन्होंने अपनी आँखें झुका लीं।
शर्माते हुए, उन्होंने अपने हाथ को मेरे बाजु से हटा लिया और अपनी तरफ खींच लिया। लेकिन उनके होंठों पर एक मुस्कान थी, जो यह समझा रही थी कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, वह मेरे साथ, मेरे पास, और मेरे दिल में रहकर अपने सारे ग़मों को भुलाकर मुस्कुराकर जीवन जी सकती हैं।
मैंने अपने जीवन के एक नए अध्याय में प्रवेश किया, और माँ को अपने साथ लेकर एक नए रास्ते पर चलना शुरू किया, जहाँ केवल मैं और मेरी माँ—यानी मेरी पत्नी—ही थे।
नाना-नानी शाम की ट्रेन लेकर चले गए, और वह लोग सुबह होने से पहले ही घर पहुँच जाएंगे। लेकिन हम दोनो को M.P. पहुँचते-पहुँचते कल शाम हो जाएगा। हम बांद्रा से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर पहुँचे, हमारे साथ तीन सूटकेस थे। एक कुली को सामान देकर, मैं और माँ मुंबई की उस भीड़ में चलने लगे, एक-दूसरे के साथ, एकदम पास रहकर।
माँ ने मेरा हाथ नहीं पकड़ा; वह बस एक नई दुल्हन की तरह, अपने पति के साथ धीरे-धीरे कदमों से चल रही थी। उनकी आँखों में एक नयी उम्मीद और उत्साह था, जैसे वह इस नए सफर का आनंद ले रही हो। उस भीड़भाड़ में भी, मैं केवल उन्हें ही देख रहा था।
वो मेरे साथ, कदमों से कदम मिलाकर चलने लगी। उन्हे अब पूरी ज़िंदगी बस ऐसे ही मेरा साथ देना है, और मैं यह चाहता भी हूँ, मन से, दिल से। उस भीड़ में चलते वक्त, कभी-कभी माँ का बाजु मेरे बाजु से और उनका कंधा मेरे कंधे से टकरा रहा था। हर बार मुझे एक नरम और कोमल छुअन का एहसास हो रहा था।
माँ का बदन कितना कोमल और नरम है; हमारी शादी से पहले उनकी एक झलक मुझे मिली थी, लेकिन अब उस कोमल और नरम शरीर के स्पर्श से मेरे अंदर एक कंपकपी सी दौड़ने लगी। माँ के एकदम पास रहने से मुझे उनके बदन की खुशबू भी मिल रही थी, जो मेरे दिल में एक नया उत्साह भर रही थी।
उनके बालों की वह मीठी महक मुझे भीतर तक महका रही थी। इतनी भीड़ में भी मेरा मन बस उन्हें अपनी बाँहों में भर लेने का कर रहा था, लेकिन न जाने क्यों, शादी के बाद मेरे अंदर भी एक अजीब सी झिझक आ गई है। मैं बहुत कुछ सोचकर आया था, कई योजनाएँ मन में थीं, पर आज माँ को एक अजनबी जगह पर, हमारे परिचित समाज से दूर, अकेली पाकर भी, इस भीड़-भाड़ वाले प्लेटफार्म के बीच में, उन्हें छूने की हिम्मत नहीं कर पा रहा हूँ।
माँ भी शायद मेरे जैसे ही भावनाओं और विचारों के भंवर से गुजर रही हैं। वह न तो मेरी ओर नजरें उठाकर देख रही हैं, न ही सहज होकर मुझसे बात कर रही हैं, न ही मुझे छूने का प्रयास कर रही हैं। हम दोनों, एक-दूसरे के इतने करीब होते हुए भी, चाहकर भी, पहले कदम उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
हमारी ट्रेन आने में अभी वक्त है। हम प्लेटफार्म के एक कोने में रखी बेंच पर बैठे हैं, और हमारा सामान हमारे सामने रखा हुआ है।
माँ कभी कभी मुझे अपनी नज़रे उठा कर मुस्कुरा कर देख रही थी। माहौल में एक अजीब सा मौन है, जिसमें केवल हमारी खामोश धड़कनों की गूँज सुनाई दे रही है। दोनों ही अपनी जगह पर स्थिर, एक-दूसरे की नज़दीकी को महसूस कर रहे हैं, लेकिन बोल नहीं पा रहे, जैसे शब्द कहीं खो गए हों।