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नाना-नानी ट्रेन में चढ़ने से पहले मुझे और माँ को बार-बार गले से लगा रहे थे। मैं और माँ, एक साथ झुककर पति-पत्नी के रूप में उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेने लगे। नानाजी ने मुझे एक बार अलग से गले लगाया और कुछ देर तक थामे रखा, जैसे वह मौन शब्दों में कह रहे हों, "मैंने अपने घर की लक्ष्मी तुम्हें सौंपी है, बेटा। अब इसे तुम्हीं संभालना।"
फिर उन्होंने माँ को गले लगाकर मायूसी और मुस्कान के साथ विदाई दी। उनकी आँखों में एक पिता की चिंता और प्यार था, जो अपने दिल के टुकड़े को जीवन की नई राह पर भेज रहा हो।
नानी ने माँ को फिर से गले से लगाया और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से थामकर उसकी आँखों में देखा। उनकी अपनी आँखें भीगी हुई थीं, लेकिन एक मुस्कान के साथ उन्होंने माँ को आशीर्वाद देते हुए कहा, "सदा सुहागन रहो, बेटी।" नाना-नानी के चेहरे पर साफ़ दिख रहा था कि वे अपनी प्यारी बेटी को विदा कर रहे हैं।
मैं और माँ, एक साथ खड़े, बस उन्हें समझाने और उनके ख्याल रखने के लिए कहने लगे। आज तक माँ उनके साथ थी, उनके जीवन का हिस्सा, लेकिन अब वे दोनों वास्तव में अकेले रह जाएंगे। यह विचार मेरे मन को भी भारी कर रहा था।
लेकीन, क्या किया जाए? शायद जीवन का यही अर्थ है।
मैं और माँ एक साथ प्लेटफार्म पर खड़े थे। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी।
नाना-नानी ने खिड़की से हमें देखकर हाथ हिलाया और एक स्नेहिल मुस्कान के साथ अपना प्यार जताया। जैसे-जैसे ट्रेन ने गति पकड़ी, माँ की आँखें भर आईं। ट्रेन अब प्लेटफार्म को छोड़ दूर जाने लगी थी, और तभी मैंने महसूस किया कि माँ ने अपने दोनों हाथ उठाकर मेरे बाजू को थाम लिया है।
मैंने उनकी ओर देखा—वह अब भी जाते हुए ट्रेन को देख रही थी, उनकी आँखें आँसुओं से भरी थीं, पर वह अपना ध्यान मुझसे हटाकर उसी दिशा में लगाए हुए थी। माँ के हाथ धीरे-धीरे मेरे बाजू को कसकर पकड़ने लगे। मेरे मन में विचारों का सैलाब उमड़ पड़ा—अब तक वह अपने मम्मी-पापा के साये में, उनके प्यार और सेफटी में जीवन बिता रही थी। उन्होंने माँ की देखभाल, उनका पालन-पोषण बड़े प्यार से किया था। लेकिन अब, इस पल से, माँ मेरी संगिनी है, मेरी पत्नी है, और उनकी देखभाल, उनकी रक्षा का दायित्व अब मुझ पर है।
उसके इस सहज, अनजाने सी पकड़ से जैसे उन्होंने मेरे भीतर इस नए रिश्ते की जिम्मेदारी का एहसास जगा दिया हो। मानो वह मेरे बाजू को थामकर, बिना एक शब्द कहे, मुझे यह याद करा रही हो कि अब से मैं ही उनका पति हूँ—उनका साथी, उसका रक्षक।
शादी के समय जब मैंने कसमें खाईं, तब यह वादा किया था कि मैं जीवनभर माँ का ख्याल रखूँगा—उनकी हर इच्छा को पूरा करूँगा, उनकी हर चाहत को अपने प्यार, देखभाल और ईमानदारी से पूरा करूँगा। मैं उन्हे हर मुश्किल और परेशानी से बचाकर, अपनी मजबूत बाँहों का सहारा दूँगा, ताकि वह मेरी बाहों में सुकून भरी नींद ले सके। और आज, इस पल से, मेरे उस कर्तव्य का पालन शुरू हो गया है।
मै उन्हे देख रहा था, और मेरे मन में एक नई अनुभूति जाग उठी—एक ऐसा प्यार, जो एक पति अपनी पत्नी के लिए महसूस करता है। माँ के लिए यह एहसास, यह स्नेह पहली बार मेरे भीतर जाग रहा था। इस प्लेटफार्म पर, नाना-नानी को विदा देकर, हम दोनों अपने इस नए रिश्ते की दहलीज़ पर खड़े थे, और मैं महसूस कर रहा था कि मैं एक नई जिम्मेदारी के साथ, माँ के जीवन में एक नए प्यार की शुरुआत कर रहा हूँ।
मुझे इस तरह का प्यार और भावनाएं पहले कभी महसूस नहीं हुई थीं। तभी माँ ने अपना सिर उठाकर मेरी ओर देखा।
उनकी नम आँखों में अपनों से दूर जाने का ग़म था, साथ ही एक अद्भुत ख़ुशी भी झलक रही थी। वह अपने मम्मी-पापा से दूर रहकर भी अपने दिल से जुड़े किसी खास के साथ, अपने बेटे के साथ—जो अब उनके पति हैं—जीवन बिताने जा रही थीं। उनके मन में जो मिश्रित खुशी और उत्साह था, वह उनकी आँखों में साफ रूप से दिख रहा था।
हम दोनों उस भीड़ भरे प्लेटफार्म पर कुछ पल के लिए एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर अचानक, माँ में एक शर्म का अनुभव हुआ, और उन्होंने अपनी आँखें झुका लीं।
शर्माते हुए, उन्होंने अपने हाथ को मेरे बाजु से हटा लिया और अपनी तरफ खींच लिया। लेकिन उनके होंठों पर एक मुस्कान थी, जो यह समझा रही थी कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, वह मेरे साथ, मेरे पास, और मेरे दिल में रहकर अपने सारे ग़मों को भुलाकर मुस्कुराकर जीवन जी सकती हैं।
मैंने अपने जीवन के एक नए अध्याय में प्रवेश किया, और माँ को अपने साथ लेकर एक नए रास्ते पर चलना शुरू किया, जहाँ केवल मैं और मेरी माँ—यानी मेरी पत्नी—ही थे।
नाना-नानी शाम की ट्रेन लेकर चले गए, और वह लोग सुबह होने से पहले ही घर पहुँच जाएंगे। लेकिन हम दोनो को M.P. पहुँचते-पहुँचते कल शाम हो जाएगा। हम बांद्रा से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर पहुँचे, हमारे साथ तीन सूटकेस थे। एक कुली को सामान देकर, मैं और माँ मुंबई की उस भीड़ में चलने लगे, एक-दूसरे के साथ, एकदम पास रहकर।
माँ ने मेरा हाथ नहीं पकड़ा; वह बस एक नई दुल्हन की तरह, अपने पति के साथ धीरे-धीरे कदमों से चल रही थी। उनकी आँखों में एक नयी उम्मीद और उत्साह था, जैसे वह इस नए सफर का आनंद ले रही हो। उस भीड़भाड़ में भी, मैं केवल उन्हें ही देख रहा था।
वो मेरे साथ, कदमों से कदम मिलाकर चलने लगी। उन्हे अब पूरी ज़िंदगी बस ऐसे ही मेरा साथ देना है, और मैं यह चाहता भी हूँ, मन से, दिल से। उस भीड़ में चलते वक्त, कभी-कभी माँ का बाजु मेरे बाजु से और उनका कंधा मेरे कंधे से टकरा रहा था। हर बार मुझे एक नरम और कोमल छुअन का एहसास हो रहा था।
माँ का बदन कितना कोमल और नरम है; हमारी शादी से पहले उनकी एक झलक मुझे मिली थी, लेकिन अब उस कोमल और नरम शरीर के स्पर्श से मेरे अंदर एक कंपकपी सी दौड़ने लगी। माँ के एकदम पास रहने से मुझे उनके बदन की खुशबू भी मिल रही थी, जो मेरे दिल में एक नया उत्साह भर रही थी।
उनके बालों की वह मीठी महक मुझे भीतर तक महका रही थी। इतनी भीड़ में भी मेरा मन बस उन्हें अपनी बाँहों में भर लेने का कर रहा था, लेकिन न जाने क्यों, शादी के बाद मेरे अंदर भी एक अजीब सी झिझक आ गई है। मैं बहुत कुछ सोचकर आया था, कई योजनाएँ मन में थीं, पर आज माँ को एक अजनबी जगह पर, हमारे परिचित समाज से दूर, अकेली पाकर भी, इस भीड़-भाड़ वाले प्लेटफार्म के बीच में, उन्हें छूने की हिम्मत नहीं कर पा रहा हूँ।
माँ भी शायद मेरे जैसे ही भावनाओं और विचारों के भंवर से गुजर रही हैं। वह न तो मेरी ओर नजरें उठाकर देख रही हैं, न ही सहज होकर मुझसे बात कर रही हैं, न ही मुझे छूने का प्रयास कर रही हैं। हम दोनों, एक-दूसरे के इतने करीब होते हुए भी, चाहकर भी, पहले कदम उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
हमारी ट्रेन आने में अभी वक्त है। हम प्लेटफार्म के एक कोने में रखी बेंच पर बैठे हैं, और हमारा सामान हमारे सामने रखा हुआ है।
माँ कभी कभी मुझे अपनी नज़रे उठा कर मुस्कुरा कर देख रही थी। माहौल में एक अजीब सा मौन है, जिसमें केवल हमारी खामोश धड़कनों की गूँज सुनाई दे रही है। दोनों ही अपनी जगह पर स्थिर, एक-दूसरे की नज़दीकी को महसूस कर रहे हैं, लेकिन बोल नहीं पा रहे, जैसे शब्द कहीं खो गए हों।
नाना-नानी ट्रेन में चढ़ने से पहले मुझे और माँ को बार-बार गले से लगा रहे थे। मैं और माँ, एक साथ झुककर पति-पत्नी के रूप में उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेने लगे। नानाजी ने मुझे एक बार अलग से गले लगाया और कुछ देर तक थामे रखा, जैसे वह मौन शब्दों में कह रहे हों, "मैंने अपने घर की लक्ष्मी तुम्हें सौंपी है, बेटा। अब इसे तुम्हीं संभालना।"
फिर उन्होंने माँ को गले लगाकर मायूसी और मुस्कान के साथ विदाई दी। उनकी आँखों में एक पिता की चिंता और प्यार था, जो अपने दिल के टुकड़े को जीवन की नई राह पर भेज रहा हो।
नानी ने माँ को फिर से गले से लगाया और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से थामकर उसकी आँखों में देखा। उनकी अपनी आँखें भीगी हुई थीं, लेकिन एक मुस्कान के साथ उन्होंने माँ को आशीर्वाद देते हुए कहा, "सदा सुहागन रहो, बेटी।" नाना-नानी के चेहरे पर साफ़ दिख रहा था कि वे अपनी प्यारी बेटी को विदा कर रहे हैं।
मैं और माँ, एक साथ खड़े, बस उन्हें समझाने और उनके ख्याल रखने के लिए कहने लगे। आज तक माँ उनके साथ थी, उनके जीवन का हिस्सा, लेकिन अब वे दोनों वास्तव में अकेले रह जाएंगे। यह विचार मेरे मन को भी भारी कर रहा था।
लेकीन, क्या किया जाए? शायद जीवन का यही अर्थ है।
मैं और माँ एक साथ प्लेटफार्म पर खड़े थे। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी।
नाना-नानी ने खिड़की से हमें देखकर हाथ हिलाया और एक स्नेहिल मुस्कान के साथ अपना प्यार जताया। जैसे-जैसे ट्रेन ने गति पकड़ी, माँ की आँखें भर आईं। ट्रेन अब प्लेटफार्म को छोड़ दूर जाने लगी थी, और तभी मैंने महसूस किया कि माँ ने अपने दोनों हाथ उठाकर मेरे बाजू को थाम लिया है।
मैंने उनकी ओर देखा—वह अब भी जाते हुए ट्रेन को देख रही थी, उनकी आँखें आँसुओं से भरी थीं, पर वह अपना ध्यान मुझसे हटाकर उसी दिशा में लगाए हुए थी। माँ के हाथ धीरे-धीरे मेरे बाजू को कसकर पकड़ने लगे। मेरे मन में विचारों का सैलाब उमड़ पड़ा—अब तक वह अपने मम्मी-पापा के साये में, उनके प्यार और सेफटी में जीवन बिता रही थी। उन्होंने माँ की देखभाल, उनका पालन-पोषण बड़े प्यार से किया था। लेकिन अब, इस पल से, माँ मेरी संगिनी है, मेरी पत्नी है, और उनकी देखभाल, उनकी रक्षा का दायित्व अब मुझ पर है।
उसके इस सहज, अनजाने सी पकड़ से जैसे उन्होंने मेरे भीतर इस नए रिश्ते की जिम्मेदारी का एहसास जगा दिया हो। मानो वह मेरे बाजू को थामकर, बिना एक शब्द कहे, मुझे यह याद करा रही हो कि अब से मैं ही उनका पति हूँ—उनका साथी, उसका रक्षक।
शादी के समय जब मैंने कसमें खाईं, तब यह वादा किया था कि मैं जीवनभर माँ का ख्याल रखूँगा—उनकी हर इच्छा को पूरा करूँगा, उनकी हर चाहत को अपने प्यार, देखभाल और ईमानदारी से पूरा करूँगा। मैं उन्हे हर मुश्किल और परेशानी से बचाकर, अपनी मजबूत बाँहों का सहारा दूँगा, ताकि वह मेरी बाहों में सुकून भरी नींद ले सके। और आज, इस पल से, मेरे उस कर्तव्य का पालन शुरू हो गया है।
मै उन्हे देख रहा था, और मेरे मन में एक नई अनुभूति जाग उठी—एक ऐसा प्यार, जो एक पति अपनी पत्नी के लिए महसूस करता है। माँ के लिए यह एहसास, यह स्नेह पहली बार मेरे भीतर जाग रहा था। इस प्लेटफार्म पर, नाना-नानी को विदा देकर, हम दोनों अपने इस नए रिश्ते की दहलीज़ पर खड़े थे, और मैं महसूस कर रहा था कि मैं एक नई जिम्मेदारी के साथ, माँ के जीवन में एक नए प्यार की शुरुआत कर रहा हूँ।
मुझे इस तरह का प्यार और भावनाएं पहले कभी महसूस नहीं हुई थीं। तभी माँ ने अपना सिर उठाकर मेरी ओर देखा।
उनकी नम आँखों में अपनों से दूर जाने का ग़म था, साथ ही एक अद्भुत ख़ुशी भी झलक रही थी। वह अपने मम्मी-पापा से दूर रहकर भी अपने दिल से जुड़े किसी खास के साथ, अपने बेटे के साथ—जो अब उनके पति हैं—जीवन बिताने जा रही थीं। उनके मन में जो मिश्रित खुशी और उत्साह था, वह उनकी आँखों में साफ रूप से दिख रहा था।
हम दोनों उस भीड़ भरे प्लेटफार्म पर कुछ पल के लिए एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर अचानक, माँ में एक शर्म का अनुभव हुआ, और उन्होंने अपनी आँखें झुका लीं।
शर्माते हुए, उन्होंने अपने हाथ को मेरे बाजु से हटा लिया और अपनी तरफ खींच लिया। लेकिन उनके होंठों पर एक मुस्कान थी, जो यह समझा रही थी कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, वह मेरे साथ, मेरे पास, और मेरे दिल में रहकर अपने सारे ग़मों को भुलाकर मुस्कुराकर जीवन जी सकती हैं।
मैंने अपने जीवन के एक नए अध्याय में प्रवेश किया, और माँ को अपने साथ लेकर एक नए रास्ते पर चलना शुरू किया, जहाँ केवल मैं और मेरी माँ—यानी मेरी पत्नी—ही थे।
नाना-नानी शाम की ट्रेन लेकर चले गए, और वह लोग सुबह होने से पहले ही घर पहुँच जाएंगे। लेकिन हम दोनो को M.P. पहुँचते-पहुँचते कल शाम हो जाएगा। हम बांद्रा से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर पहुँचे, हमारे साथ तीन सूटकेस थे। एक कुली को सामान देकर, मैं और माँ मुंबई की उस भीड़ में चलने लगे, एक-दूसरे के साथ, एकदम पास रहकर।
माँ ने मेरा हाथ नहीं पकड़ा; वह बस एक नई दुल्हन की तरह, अपने पति के साथ धीरे-धीरे कदमों से चल रही थी। उनकी आँखों में एक नयी उम्मीद और उत्साह था, जैसे वह इस नए सफर का आनंद ले रही हो। उस भीड़भाड़ में भी, मैं केवल उन्हें ही देख रहा था।
वो मेरे साथ, कदमों से कदम मिलाकर चलने लगी। उन्हे अब पूरी ज़िंदगी बस ऐसे ही मेरा साथ देना है, और मैं यह चाहता भी हूँ, मन से, दिल से। उस भीड़ में चलते वक्त, कभी-कभी माँ का बाजु मेरे बाजु से और उनका कंधा मेरे कंधे से टकरा रहा था। हर बार मुझे एक नरम और कोमल छुअन का एहसास हो रहा था।
माँ का बदन कितना कोमल और नरम है; हमारी शादी से पहले उनकी एक झलक मुझे मिली थी, लेकिन अब उस कोमल और नरम शरीर के स्पर्श से मेरे अंदर एक कंपकपी सी दौड़ने लगी। माँ के एकदम पास रहने से मुझे उनके बदन की खुशबू भी मिल रही थी, जो मेरे दिल में एक नया उत्साह भर रही थी।
उनके बालों की वह मीठी महक मुझे भीतर तक महका रही थी। इतनी भीड़ में भी मेरा मन बस उन्हें अपनी बाँहों में भर लेने का कर रहा था, लेकिन न जाने क्यों, शादी के बाद मेरे अंदर भी एक अजीब सी झिझक आ गई है। मैं बहुत कुछ सोचकर आया था, कई योजनाएँ मन में थीं, पर आज माँ को एक अजनबी जगह पर, हमारे परिचित समाज से दूर, अकेली पाकर भी, इस भीड़-भाड़ वाले प्लेटफार्म के बीच में, उन्हें छूने की हिम्मत नहीं कर पा रहा हूँ।
माँ भी शायद मेरे जैसे ही भावनाओं और विचारों के भंवर से गुजर रही हैं। वह न तो मेरी ओर नजरें उठाकर देख रही हैं, न ही सहज होकर मुझसे बात कर रही हैं, न ही मुझे छूने का प्रयास कर रही हैं। हम दोनों, एक-दूसरे के इतने करीब होते हुए भी, चाहकर भी, पहले कदम उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
हमारी ट्रेन आने में अभी वक्त है। हम प्लेटफार्म के एक कोने में रखी बेंच पर बैठे हैं, और हमारा सामान हमारे सामने रखा हुआ है।
माँ कभी कभी मुझे अपनी नज़रे उठा कर मुस्कुरा कर देख रही थी। माहौल में एक अजीब सा मौन है, जिसमें केवल हमारी खामोश धड़कनों की गूँज सुनाई दे रही है। दोनों ही अपनी जगह पर स्थिर, एक-दूसरे की नज़दीकी को महसूस कर रहे हैं, लेकिन बोल नहीं पा रहे, जैसे शब्द कहीं खो गए हों।
नाना-नानी ट्रेन में चढ़ने से पहले मुझे और माँ को बार-बार गले से लगा रहे थे। मैं और माँ, एक साथ झुककर पति-पत्नी के रूप में उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेने लगे। नानाजी ने मुझे एक बार अलग से गले लगाया और कुछ देर तक थामे रखा, जैसे वह मौन शब्दों में कह रहे हों, "मैंने अपने घर की लक्ष्मी तुम्हें सौंपी है, बेटा। अब इसे तुम्हीं संभालना।"
फिर उन्होंने माँ को गले लगाकर मायूसी और मुस्कान के साथ विदाई दी। उनकी आँखों में एक पिता की चिंता और प्यार था, जो अपने दिल के टुकड़े को जीवन की नई राह पर भेज रहा हो।
नानी ने माँ को फिर से गले से लगाया और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से थामकर उसकी आँखों में देखा। उनकी अपनी आँखें भीगी हुई थीं, लेकिन एक मुस्कान के साथ उन्होंने माँ को आशीर्वाद देते हुए कहा, "सदा सुहागन रहो, बेटी।" नाना-नानी के चेहरे पर साफ़ दिख रहा था कि वे अपनी प्यारी बेटी को विदा कर रहे हैं।
मैं और माँ, एक साथ खड़े, बस उन्हें समझाने और उनके ख्याल रखने के लिए कहने लगे। आज तक माँ उनके साथ थी, उनके जीवन का हिस्सा, लेकिन अब वे दोनों वास्तव में अकेले रह जाएंगे। यह विचार मेरे मन को भी भारी कर रहा था।
लेकीन, क्या किया जाए? शायद जीवन का यही अर्थ है।
मैं और माँ एक साथ प्लेटफार्म पर खड़े थे। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी।
नाना-नानी ने खिड़की से हमें देखकर हाथ हिलाया और एक स्नेहिल मुस्कान के साथ अपना प्यार जताया। जैसे-जैसे ट्रेन ने गति पकड़ी, माँ की आँखें भर आईं। ट्रेन अब प्लेटफार्म को छोड़ दूर जाने लगी थी, और तभी मैंने महसूस किया कि माँ ने अपने दोनों हाथ उठाकर मेरे बाजू को थाम लिया है।
मैंने उनकी ओर देखा—वह अब भी जाते हुए ट्रेन को देख रही थी, उनकी आँखें आँसुओं से भरी थीं, पर वह अपना ध्यान मुझसे हटाकर उसी दिशा में लगाए हुए थी। माँ के हाथ धीरे-धीरे मेरे बाजू को कसकर पकड़ने लगे। मेरे मन में विचारों का सैलाब उमड़ पड़ा—अब तक वह अपने मम्मी-पापा के साये में, उनके प्यार और सेफटी में जीवन बिता रही थी। उन्होंने माँ की देखभाल, उनका पालन-पोषण बड़े प्यार से किया था। लेकिन अब, इस पल से, माँ मेरी संगिनी है, मेरी पत्नी है, और उनकी देखभाल, उनकी रक्षा का दायित्व अब मुझ पर है।
उसके इस सहज, अनजाने सी पकड़ से जैसे उन्होंने मेरे भीतर इस नए रिश्ते की जिम्मेदारी का एहसास जगा दिया हो। मानो वह मेरे बाजू को थामकर, बिना एक शब्द कहे, मुझे यह याद करा रही हो कि अब से मैं ही उनका पति हूँ—उनका साथी, उसका रक्षक।
शादी के समय जब मैंने कसमें खाईं, तब यह वादा किया था कि मैं जीवनभर माँ का ख्याल रखूँगा—उनकी हर इच्छा को पूरा करूँगा, उनकी हर चाहत को अपने प्यार, देखभाल और ईमानदारी से पूरा करूँगा। मैं उन्हे हर मुश्किल और परेशानी से बचाकर, अपनी मजबूत बाँहों का सहारा दूँगा, ताकि वह मेरी बाहों में सुकून भरी नींद ले सके। और आज, इस पल से, मेरे उस कर्तव्य का पालन शुरू हो गया है।
मै उन्हे देख रहा था, और मेरे मन में एक नई अनुभूति जाग उठी—एक ऐसा प्यार, जो एक पति अपनी पत्नी के लिए महसूस करता है। माँ के लिए यह एहसास, यह स्नेह पहली बार मेरे भीतर जाग रहा था। इस प्लेटफार्म पर, नाना-नानी को विदा देकर, हम दोनों अपने इस नए रिश्ते की दहलीज़ पर खड़े थे, और मैं महसूस कर रहा था कि मैं एक नई जिम्मेदारी के साथ, माँ के जीवन में एक नए प्यार की शुरुआत कर रहा हूँ।
मुझे इस तरह का प्यार और भावनाएं पहले कभी महसूस नहीं हुई थीं। तभी माँ ने अपना सिर उठाकर मेरी ओर देखा।
उनकी नम आँखों में अपनों से दूर जाने का ग़म था, साथ ही एक अद्भुत ख़ुशी भी झलक रही थी। वह अपने मम्मी-पापा से दूर रहकर भी अपने दिल से जुड़े किसी खास के साथ, अपने बेटे के साथ—जो अब उनके पति हैं—जीवन बिताने जा रही थीं। उनके मन में जो मिश्रित खुशी और उत्साह था, वह उनकी आँखों में साफ रूप से दिख रहा था।
हम दोनों उस भीड़ भरे प्लेटफार्म पर कुछ पल के लिए एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर अचानक, माँ में एक शर्म का अनुभव हुआ, और उन्होंने अपनी आँखें झुका लीं।
शर्माते हुए, उन्होंने अपने हाथ को मेरे बाजु से हटा लिया और अपनी तरफ खींच लिया। लेकिन उनके होंठों पर एक मुस्कान थी, जो यह समझा रही थी कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, वह मेरे साथ, मेरे पास, और मेरे दिल में रहकर अपने सारे ग़मों को भुलाकर मुस्कुराकर जीवन जी सकती हैं।
मैंने अपने जीवन के एक नए अध्याय में प्रवेश किया, और माँ को अपने साथ लेकर एक नए रास्ते पर चलना शुरू किया, जहाँ केवल मैं और मेरी माँ—यानी मेरी पत्नी—ही थे।
नाना-नानी शाम की ट्रेन लेकर चले गए, और वह लोग सुबह होने से पहले ही घर पहुँच जाएंगे। लेकिन हम दोनो को M.P. पहुँचते-पहुँचते कल शाम हो जाएगा। हम बांद्रा से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर पहुँचे, हमारे साथ तीन सूटकेस थे। एक कुली को सामान देकर, मैं और माँ मुंबई की उस भीड़ में चलने लगे, एक-दूसरे के साथ, एकदम पास रहकर।
माँ ने मेरा हाथ नहीं पकड़ा; वह बस एक नई दुल्हन की तरह, अपने पति के साथ धीरे-धीरे कदमों से चल रही थी। उनकी आँखों में एक नयी उम्मीद और उत्साह था, जैसे वह इस नए सफर का आनंद ले रही हो। उस भीड़भाड़ में भी, मैं केवल उन्हें ही देख रहा था।
वो मेरे साथ, कदमों से कदम मिलाकर चलने लगी। उन्हे अब पूरी ज़िंदगी बस ऐसे ही मेरा साथ देना है, और मैं यह चाहता भी हूँ, मन से, दिल से। उस भीड़ में चलते वक्त, कभी-कभी माँ का बाजु मेरे बाजु से और उनका कंधा मेरे कंधे से टकरा रहा था। हर बार मुझे एक नरम और कोमल छुअन का एहसास हो रहा था।
माँ का बदन कितना कोमल और नरम है; हमारी शादी से पहले उनकी एक झलक मुझे मिली थी, लेकिन अब उस कोमल और नरम शरीर के स्पर्श से मेरे अंदर एक कंपकपी सी दौड़ने लगी। माँ के एकदम पास रहने से मुझे उनके बदन की खुशबू भी मिल रही थी, जो मेरे दिल में एक नया उत्साह भर रही थी।
उनके बालों की वह मीठी महक मुझे भीतर तक महका रही थी। इतनी भीड़ में भी मेरा मन बस उन्हें अपनी बाँहों में भर लेने का कर रहा था, लेकिन न जाने क्यों, शादी के बाद मेरे अंदर भी एक अजीब सी झिझक आ गई है। मैं बहुत कुछ सोचकर आया था, कई योजनाएँ मन में थीं, पर आज माँ को एक अजनबी जगह पर, हमारे परिचित समाज से दूर, अकेली पाकर भी, इस भीड़-भाड़ वाले प्लेटफार्म के बीच में, उन्हें छूने की हिम्मत नहीं कर पा रहा हूँ।
माँ भी शायद मेरे जैसे ही भावनाओं और विचारों के भंवर से गुजर रही हैं। वह न तो मेरी ओर नजरें उठाकर देख रही हैं, न ही सहज होकर मुझसे बात कर रही हैं, न ही मुझे छूने का प्रयास कर रही हैं। हम दोनों, एक-दूसरे के इतने करीब होते हुए भी, चाहकर भी, पहले कदम उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
हमारी ट्रेन आने में अभी वक्त है। हम प्लेटफार्म के एक कोने में रखी बेंच पर बैठे हैं, और हमारा सामान हमारे सामने रखा हुआ है।
माँ कभी कभी मुझे अपनी नज़रे उठा कर मुस्कुरा कर देख रही थी। माहौल में एक अजीब सा मौन है, जिसमें केवल हमारी खामोश धड़कनों की गूँज सुनाई दे रही है। दोनों ही अपनी जगह पर स्थिर, एक-दूसरे की नज़दीकी को महसूस कर रहे हैं, लेकिन बोल नहीं पा रहे, जैसे शब्द कहीं खो गए हों।
पहले से डिसाइड किए हुए प्लान के अनुसार, नाना-नानी अहमदाबाद चले जाएंगे, जबकि मैं माँ को लेकर एमपी चला जाऊंगा। मैंने इसी के मुताबिक टिकट भी बुक की थी। माँ और मेरी शादी के बाद हम सबने लंच किया और फिर अपने-अपने कॉटेज में पहुँच गए। हमें शादी के जोड़े आदि खोलकर तैयार होना था। माँ नानीजी के कमरे में चली गईं, जहाँ उनका सारा सामान रखा हुआ था, जबकि मैं नानाजी के कमरे में गया।
मैंने अपनी शेरवानी उतारकर बाथरूम में जाकर मुँह, हाथ और पैर धोने लगा। सिर पर लगी हुई घी, चंदन और गुलाल की तिलक को साबुन से साफ करते हुए खुद को तरोताजा करने लगा।
फिर मैंने अपने सूटकेस से एक जीन्स और पोलो टी-शर्ट निकालकर पहन ली।
हालांकि मैंने सोचा कि सूटकेस में रखा नया कुरता और पाजामा पहन लूं, लेकिन मुझे लगा कि ऐसा करने पर मैं एकदम नए दूल्हे की तरह दिखूँगा, जो मुझे थोड़ा शर्मिंदगी का एहसास कराने लगा। इसलिए मैंने जीन्स पहनकर क्यूज़ल रहने की कोशिश की।
माँ और मेरी शादी हो चुकी है, फिर भी दोनों के अंदर नाना-नानी के सामने एक शर्म का भाव अभी भी बना हुआ था। मैंने अपने बाकी कपड़े और सामान पैक करना शुरू किया। तभी नानाजी कमरे में आए और उन्होंने भी अपने कपड़े बदलने के लिए बाथरूम में जाने का फैसला किया। हम दोनों जल्दी में तैयार हो गए, जबकि दूसरे कॉटेज में वे दोनों अभी भी नॉर्मल कपड़ों में आने में समय ले रहे थे।
नानीजी तो बस अपनी साड़ी बदल लेंगी, लेकिन माँ को दुल्हन के लेहेंगा-चोली को बदलने में समय लगेगा। वे अपने चेहरे से मेकअप साफ़ करेंगी और फिर मांग में भरा सिन्दूर ठीक से लगाएंगी, जिससे काफी समय लगेगा। इस सब में करीब दो घंटे बीत गए।
जब हम अपने-अपने कॉटेज से सामान लेकर निकले, तब मैंने माँ को इस ड्रेस और इस रूप में पहली बार देखा।
उनके हाथों की मेहंदी और कंगन देखकर सब समझ जाएंगे कि उनकी नई शादी हुई है। उन्हें इस रूप में देखकर मेरे अंदर उनके प्रति एक गहरी चाहत उठी, और मैं बहुत होर्नी महसूस करने लगा।
मेरे शरीर में एक अद्भुत अनुभूति हो रही है। मैं माँ की तरफ जब भी देख रहा हूं, तभी उनके शरीर के हर कोने को मेरे प्यार भरे गरम होठो का स्पर्श देकर उनको प्यार करने के लिए मेरा मन पागल हो रहा था, वह मेरी माँ है। मैं अपनी माँ से, जो अब मेरी पत्नी है, गहरे प्यार से बंधा हुआ महसूस कर रहा हूँ। उनके साथ हर पल जीने की, हर सांस उनके संग बिताने की इच्छा मेरे अंदर उमड़ रही है। मैं चाहूँगा कि उनके जीवन का सारा ग़म, सारे कष्ट, और जो भी अभाव उन्होंने झेले हैं, उन्हें भुला दूँ।
मैं उन्हें अपनी बाहों में भरकर, जीवनभर ख़ुशी और आनंद के साथ संभालकर रखना चाहता हूँ। यह संकल्प, यह भावनाएँ मेरे दिल के हर कोने में गहराई से बसी हुई हैं, और मैं इस नए रिश्ते में उन्हें हर सुख प्रदान करना चाहता हूँ।
माँ ने कॉटेज से बाहर निकलने के बाद से मुझे एक बार भी नहीं देखा। मैं बार-बार कोशिश कर रहा था, पर हमारी नज़रें कभी नहीं मिलीं। वह और नानी, एक-दूसरे को थामे, पूरे रास्ते टैक्सी में बैठी रहीं। आज सभी थोड़े गुमसुम थे, अपने-अपने विचारों में खोए हुए।
नाना-नानी को अपनी बेटी को, जो अब तक उनके साथ रही, जाने देना पड़ रहा था। इसी ग़म में सबकी बातें कम थीं, लेकिन कभी-कभी कुछ मज़ेदार लम्हों पर हंसी भी गूंज रही थी। फिर भी, माहौल पहले दिन की खुशियों जैसा नहीं रहा।
शाम ढलने को है और हम चारों बांद्रा टर्मिनस के प्लेटफार्म पर एक बेंच पर शांत बैठे हैं। नानाजी बेंच के एक किनारे पर बैठे हैं, उनके साथ नानीजी, फिर माँ और आखिर में मैं, बेंच के दूसरे सिरे पर। नानीजी ने माँ को अपने पास सटाकर पकड़ा हुआ है, मानो उन्हें थामे रखना चाहती हों। आसपास की दुनिया अपनी रफ्तार में भाग रही है, जबकि हम चारों अपनी-अपनी गहरी भावनाओं के साथ इस चुप्पी में डूबे हैं।
मुंबई की व्यस्तता के बीच, हर कोई अपनी-अपनी जद्दोजहद में लगा है, हमारे अंदर की हलचल इस भीड़ में भी अलग-थलग महसूस हो रही है।
हमारे मनों में इस समय भावनाओं का अजीब संगम चल रहा है, एक बूढ़ी माँ अपनी एकलौती बेटी को अपने ही नाती के हाथों में सौंप चुकी है। आज उसने अपनी इकलौती बेटी के लिए अपने ही नाती को दामाद के नए रिश्ते में स्वीकारा है, और मन ही मन वह इस नए रिश्ते की सफलता के लिए ऊपर वाले से प्रार्थना कर रही है। उसकी दुआओं में केवल उनके खुशहाल जीवन की उम्मीद है।
वहीं एक बूढ़े पिता, जिन्होंने अपने परिवार के सभी सदस्यों की भलाई के लिए आज यह अनूठा कदम उठाया है, अपने ही नाती को अब दामाद के रूप में स्वीकार कर चुके हैं। उनकी आँखों में एक अजीब संतोष है, जैसे वह इस नए रिश्ते को पूरी ईमानदारी और दिल से निभाने का इरादा कर चुके हैं।
और माँ... माँ, जिसने अब तक अपने जीवन का सारा प्यार और ममता देकर उस बेटे को पाल-पोसकर बड़ा किया, अपने आँचल की छांव देकर उसे आदमी बनाया, आज खुद को उसकी पत्नी बन चुकी है। एक अनकहा रिश्ता बनाकर उसने उसे अपने तन-मन पर अधिकार दे दिया है।
एक बेटा, जिसने अपने बचपन से ही नाना-नानी के स्नेह और ममता के साये में जीवन बिताया, उनके प्यार और देखभाल में पला-बढ़ा, आज अपने दिल की गहराइयों से उन्हीं नाना-नानी को अपने सांस और ससुर मान चुका है। और उस औरत, जिसकी ममता ने उसे बचपन से संवारा, जिसे उसने अपने जीवन में सबसे अधिक प्यार किया, जिसकी तस्वीर हर पल उसकी सोच में बसी रही, आज वही औरत शास्त्रों के अनुसार उसकी धर्मपत्नी, उसकी जीवनसंगिनी, उसकी प्यारी बीवी बन गई है। इस शादी के साथ उसने सभी रिश्तों को एक नए रूप में गढ़ दिया है।
इतने नए और उलझे हुए रिश्ते बन गए हैं, फिर भी बाहरी दुनिया को इसकी कोई भनक नहीं। समाज, जो इन गहरे भावनात्मक बदलावों से अंजान है, बस अपने सम्मान और आदर की नज़र से हम चारों को देख रहा है।
हम सबके मन में आने वाले कल की उलझनों का साया मंडरा रहा है। अब हमें इस नये रिश्ते को अपनी सच्चाई बनाकर, पुराने रिश्तों और पहचान को भुलाकर आगे बढ़ना है। शायद हमारे लिए यही सही होगा कि हम अपनी पुरानी पहचान, अपनी जगह और पुराने रिश्तों से दूरी बना लें, इसमें सबकी भलाई है। वक्त जैसे-जैसे गुजरता जा रहा है, नानी की आँखें और ज़्यादा गीली होती जा रही हैं। माँ, जो नानी के स्पर्श में है, उनके साथ उदास होती जा रही है, जैसे उनका मन भी भारी हो गया हो।
कुछ ही पलों में अहमदाबाद जाने वाली ट्रेन आने वाली है। नाना-नानी अपनी एकलौती बेटी को पहली बार घर से दूर भेज रहे हैं, अपने पति के साथ, एक नयी ज़िन्दगी की शुरुआत करने के लिए। उनका दिल जैसे बोझिल हो रहा है, और मैं उस दर्द को गहराई से महसूस कर पा रहा हूँ। नाना-नानी का यह विश्वास भी है कि उनकी बेटी को अब दुनिया का सारा प्यार, सारी खुशियाँ मिलेंगी। लेकिन अपनी बेटी को विदा करने का यह दर्द उनके मन में कहीं गहरा है, और वह दर्द मैं भी अपनी दिल के किसी कोने में महसूस कर रहा हूँ।
माँ नानी के पास चिपककर बैठी हैं, उनके हाथ में नानी का एक हाथ थामे हुए। माँ और नानी के बीच का प्यार साफ रूप से दिख रहा है। माँ के मन में नाना-नानी से दूर जाने का दर्द तो है, पर उससे कहीं अधिक ख़ुशी का अहसास भी है। वह अपने बेटे के साथ, जो अब उनका पति है, एक नई ज़िन्दगी की ओर बढ़ रही हैं। उन्हें यह विश्वास है कि दुनिया में चाहे कुछ भी हो जाए, उनका पति कभी भी उनका हाथ नहीं छोड़ेगा, और न ही उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट भोगने देगा। यह विश्वास उनकी आँखों में एक नई चमक और सुकून भर रहा है, जो इस पल को और भी खास बना रहा है।
वह अपने पति के प्यार को अब धीरे-धीरे महसूस कर पा रही हैं। उनकी आँखों में गीलापन है, फिर भी होठों पर ख़ुशी की एक आभा झिलमिला रही है। माँ को देखकर नाना-नानी भी चैन की सांस ले पा रहे हैं। माँ के गले में मंगलसूत्र, मांग में सिन्दूर, माथे पर एक लाल बिन्दी, और हाथ-पैर में मेहँदी की रौनक है। दोनों हाथों में कंगन और कुछ साधारण गहनों के साथ, वह एक नयी दुल्हन के रूप में निखर उठी हैं। वह एक जवान कुंवारी लड़की जैसी आभा लिए खड़ी हैं। उनकी स्लिम बॉडी में आज एक अलग सा आकर्षण नजर आ रहा है, जो उन्हें और भी सेक्सी बना रहा है।
वह एक गुलाबी और सुन्हेर रंगों की खूबसूरत डिजाइन और मीनाकारी की हुई साड़ी पहने हुए हैं, जिसके साथ एक मैचिंग ब्लाउज़ है। उनकी गोरी रंगत और मख़मली बॉडी पर यह कपड़ा बेहद खूबसूरत लग रहा है। इस सब में उनकी उम्र जैसे 18 साल की लग रही है। मैं वहाँ से उठकर थोड़ा आगे जाकर साइड में खड़े हो गया, रिलेक्स करने के लिए। नानी माँ से कुछ बातें कर रही हैं, जबकि नाना जी भी नानी और माँ को कुछ कह रहे हैं। अब उनके चेहरे पर दुःख और मायूसी के भाव धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। मेरी नजरें सबसे ज़्यादा केवल माँ को ही देख रही है।
आज इस रूप में माँ को देखकर मुझे यह एहसास हुआ कि वास्तविकता कभी-कभी कल्पना को भी हरा देती है। पिछले दो हफ्तों से मैंने यह सोचा था कि मेरी पत्नी के रूप में माँ कितनी खूबसूरत लगेंगी, और मैंने एक तस्वीर अपने मन में बनाई थी कि नई दुल्हन बनने के बाद वह और भी सुंदर हो जाएंगी। लेकिन आज, जब वह मेरे सामने बैठी हैं, तब मैंने महसूस किया कि इस अनुपम सुंदरता का वास्तविक रूप किसी भी कल्पना से परे है। इस पल में उनका दीदार करके मेरे मन में एक अद्भुत खुशी और संतोष का भाव भर गया है। सचमुच, उन्हें बीवी के रूप में पाकर मैं एक संतुष्ट आदमी के रूप में महसूस कर रहा हूँ। उनकी यह सुंदरता, यह खूबसूरती, मैं ज़िंदगी भर अपने बांहों में रखूंगा।
मैं माँ को मेरे दिल और शरीर में महसुस कर पा रहा था। मेरी इसी तरह की फीलिंग्स के कारण मेरा लन्ड भी बार बार सख्त हो रहा था।
अब केवल सुहागरात का इंतज़ार है। फिर भी मैं अभी भी माँ को ही देख रहा हूं, हर बार उनकी खुबसुरती और सुंदरता देख कर मैं खुद को भाग्यवान समझ रहा था। ऐसी एक प्यारी लड़की मेरी बीवी बनेगी मैने सोचा भी नहीं था, पर आज वैसे ही एक लड़की जो मेरी माँ है, आज मेरी पत्नी बन गयी है। जो अब मेरे नाम का सिन्दूर लगा कर मेरे सामने, उनके मम्मी पापा के साथ बैठि हुई है।
नाना-नानी ट्रेन में चढ़ने से पहले मुझे और माँ को बार-बार गले से लगा रहे थे। मैं और माँ, एक साथ झुककर पति-पत्नी के रूप में उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेने लगे। नानाजी ने मुझे एक बार अलग से गले लगाया और कुछ देर तक थामे रखा, जैसे वह मौन शब्दों में कह रहे हों, "मैंने अपने घर की लक्ष्मी तुम्हें सौंपी है, बेटा। अब इसे तुम्हीं संभालना।"
फिर उन्होंने माँ को गले लगाकर मायूसी और मुस्कान के साथ विदाई दी। उनकी आँखों में एक पिता की चिंता और प्यार था, जो अपने दिल के टुकड़े को जीवन की नई राह पर भेज रहा हो।
नानी ने माँ को फिर से गले से लगाया और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से थामकर उसकी आँखों में देखा। उनकी अपनी आँखें भीगी हुई थीं, लेकिन एक मुस्कान के साथ उन्होंने माँ को आशीर्वाद देते हुए कहा, "सदा सुहागन रहो, बेटी।" नाना-नानी के चेहरे पर साफ़ दिख रहा था कि वे अपनी प्यारी बेटी को विदा कर रहे हैं।
मैं और माँ, एक साथ खड़े, बस उन्हें समझाने और उनके ख्याल रखने के लिए कहने लगे। आज तक माँ उनके साथ थी, उनके जीवन का हिस्सा, लेकिन अब वे दोनों वास्तव में अकेले रह जाएंगे। यह विचार मेरे मन को भी भारी कर रहा था।
लेकीन, क्या किया जाए? शायद जीवन का यही अर्थ है।
मैं और माँ एक साथ प्लेटफार्म पर खड़े थे। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी।
नाना-नानी ने खिड़की से हमें देखकर हाथ हिलाया और एक स्नेहिल मुस्कान के साथ अपना प्यार जताया। जैसे-जैसे ट्रेन ने गति पकड़ी, माँ की आँखें भर आईं। ट्रेन अब प्लेटफार्म को छोड़ दूर जाने लगी थी, और तभी मैंने महसूस किया कि माँ ने अपने दोनों हाथ उठाकर मेरे बाजू को थाम लिया है।
मैंने उनकी ओर देखा—वह अब भी जाते हुए ट्रेन को देख रही थी, उनकी आँखें आँसुओं से भरी थीं, पर वह अपना ध्यान मुझसे हटाकर उसी दिशा में लगाए हुए थी। माँ के हाथ धीरे-धीरे मेरे बाजू को कसकर पकड़ने लगे। मेरे मन में विचारों का सैलाब उमड़ पड़ा—अब तक वह अपने मम्मी-पापा के साये में, उनके प्यार और सेफटी में जीवन बिता रही थी। उन्होंने माँ की देखभाल, उनका पालन-पोषण बड़े प्यार से किया था। लेकिन अब, इस पल से, माँ मेरी संगिनी है, मेरी पत्नी है, और उनकी देखभाल, उनकी रक्षा का दायित्व अब मुझ पर है।
उसके इस सहज, अनजाने सी पकड़ से जैसे उन्होंने मेरे भीतर इस नए रिश्ते की जिम्मेदारी का एहसास जगा दिया हो। मानो वह मेरे बाजू को थामकर, बिना एक शब्द कहे, मुझे यह याद करा रही हो कि अब से मैं ही उनका पति हूँ—उनका साथी, उसका रक्षक।
शादी के समय जब मैंने कसमें खाईं, तब यह वादा किया था कि मैं जीवनभर माँ का ख्याल रखूँगा—उनकी हर इच्छा को पूरा करूँगा, उनकी हर चाहत को अपने प्यार, देखभाल और ईमानदारी से पूरा करूँगा। मैं उन्हे हर मुश्किल और परेशानी से बचाकर, अपनी मजबूत बाँहों का सहारा दूँगा, ताकि वह मेरी बाहों में सुकून भरी नींद ले सके। और आज, इस पल से, मेरे उस कर्तव्य का पालन शुरू हो गया है।
मै उन्हे देख रहा था, और मेरे मन में एक नई अनुभूति जाग उठी—एक ऐसा प्यार, जो एक पति अपनी पत्नी के लिए महसूस करता है। माँ के लिए यह एहसास, यह स्नेह पहली बार मेरे भीतर जाग रहा था। इस प्लेटफार्म पर, नाना-नानी को विदा देकर, हम दोनों अपने इस नए रिश्ते की दहलीज़ पर खड़े थे, और मैं महसूस कर रहा था कि मैं एक नई जिम्मेदारी के साथ, माँ के जीवन में एक नए प्यार की शुरुआत कर रहा हूँ।
मुझे इस तरह का प्यार और भावनाएं पहले कभी महसूस नहीं हुई थीं। तभी माँ ने अपना सिर उठाकर मेरी ओर देखा।
उनकी नम आँखों में अपनों से दूर जाने का ग़म था, साथ ही एक अद्भुत ख़ुशी भी झलक रही थी। वह अपने मम्मी-पापा से दूर रहकर भी अपने दिल से जुड़े किसी खास के साथ, अपने बेटे के साथ—जो अब उनके पति हैं—जीवन बिताने जा रही थीं। उनके मन में जो मिश्रित खुशी और उत्साह था, वह उनकी आँखों में साफ रूप से दिख रहा था।
हम दोनों उस भीड़ भरे प्लेटफार्म पर कुछ पल के लिए एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर अचानक, माँ में एक शर्म का अनुभव हुआ, और उन्होंने अपनी आँखें झुका लीं।
शर्माते हुए, उन्होंने अपने हाथ को मेरे बाजु से हटा लिया और अपनी तरफ खींच लिया। लेकिन उनके होंठों पर एक मुस्कान थी, जो यह समझा रही थी कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, वह मेरे साथ, मेरे पास, और मेरे दिल में रहकर अपने सारे ग़मों को भुलाकर मुस्कुराकर जीवन जी सकती हैं।
मैंने अपने जीवन के एक नए अध्याय में प्रवेश किया, और माँ को अपने साथ लेकर एक नए रास्ते पर चलना शुरू किया, जहाँ केवल मैं और मेरी माँ—यानी मेरी पत्नी—ही थे।
नाना-नानी शाम की ट्रेन लेकर चले गए, और वह लोग सुबह होने से पहले ही घर पहुँच जाएंगे। लेकिन हम दोनो को M.P. पहुँचते-पहुँचते कल शाम हो जाएगा। हम बांद्रा से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर पहुँचे, हमारे साथ तीन सूटकेस थे। एक कुली को सामान देकर, मैं और माँ मुंबई की उस भीड़ में चलने लगे, एक-दूसरे के साथ, एकदम पास रहकर।
माँ ने मेरा हाथ नहीं पकड़ा; वह बस एक नई दुल्हन की तरह, अपने पति के साथ धीरे-धीरे कदमों से चल रही थी। उनकी आँखों में एक नयी उम्मीद और उत्साह था, जैसे वह इस नए सफर का आनंद ले रही हो। उस भीड़भाड़ में भी, मैं केवल उन्हें ही देख रहा था।
वो मेरे साथ, कदमों से कदम मिलाकर चलने लगी। उन्हे अब पूरी ज़िंदगी बस ऐसे ही मेरा साथ देना है, और मैं यह चाहता भी हूँ, मन से, दिल से। उस भीड़ में चलते वक्त, कभी-कभी माँ का बाजु मेरे बाजु से और उनका कंधा मेरे कंधे से टकरा रहा था। हर बार मुझे एक नरम और कोमल छुअन का एहसास हो रहा था।
माँ का बदन कितना कोमल और नरम है; हमारी शादी से पहले उनकी एक झलक मुझे मिली थी, लेकिन अब उस कोमल और नरम शरीर के स्पर्श से मेरे अंदर एक कंपकपी सी दौड़ने लगी। माँ के एकदम पास रहने से मुझे उनके बदन की खुशबू भी मिल रही थी, जो मेरे दिल में एक नया उत्साह भर रही थी।
उनके बालों की वह मीठी महक मुझे भीतर तक महका रही थी। इतनी भीड़ में भी मेरा मन बस उन्हें अपनी बाँहों में भर लेने का कर रहा था, लेकिन न जाने क्यों, शादी के बाद मेरे अंदर भी एक अजीब सी झिझक आ गई है। मैं बहुत कुछ सोचकर आया था, कई योजनाएँ मन में थीं, पर आज माँ को एक अजनबी जगह पर, हमारे परिचित समाज से दूर, अकेली पाकर भी, इस भीड़-भाड़ वाले प्लेटफार्म के बीच में, उन्हें छूने की हिम्मत नहीं कर पा रहा हूँ।
माँ भी शायद मेरे जैसे ही भावनाओं और विचारों के भंवर से गुजर रही हैं। वह न तो मेरी ओर नजरें उठाकर देख रही हैं, न ही सहज होकर मुझसे बात कर रही हैं, न ही मुझे छूने का प्रयास कर रही हैं। हम दोनों, एक-दूसरे के इतने करीब होते हुए भी, चाहकर भी, पहले कदम उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
हमारी ट्रेन आने में अभी वक्त है। हम प्लेटफार्म के एक कोने में रखी बेंच पर बैठे हैं, और हमारा सामान हमारे सामने रखा हुआ है।
माँ कभी कभी मुझे अपनी नज़रे उठा कर मुस्कुरा कर देख रही थी। माहौल में एक अजीब सा मौन है, जिसमें केवल हमारी खामोश धड़कनों की गूँज सुनाई दे रही है। दोनों ही अपनी जगह पर स्थिर, एक-दूसरे की नज़दीकी को महसूस कर रहे हैं, लेकिन बोल नहीं पा रहे, जैसे शब्द कहीं खो गए हों।