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Incest माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना

Esac

Maa ka diwana
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Update 29


मैं पंडितजी के सामने बैठकर उनका कहना मान रहा हूँ। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी है। वह नानाजी से दूल्हा और दुल्हन का नाम और उनके माता-पिता का नाम पूछ रहे हैं। नानाजी ने मेरा नाम हीतेश बताया और माता-पिता का नाम दीपिका और अरुण बताया। मुझे थोड़ी देर के लिए समझ नहीं आया, पर जल्दी ही याद आया कि माँ का नाम उनकी जन्म कुंडली में दीपिका ही लिखा हुआ है।.

सब कुछ साफ हो गया फिर दुल्हन का नाम मंजु और माता-पिता के नाम के लिए नानाजी ने खुद का और नानी का ही नाम बताया। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी।.




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कुछ महिलाएँ वहीं चारों ओर बैठ गईं। मेरे अंदर एक शर्म और उत्तेजना का मिश्रण महसूस हो रहा है, क्योंकि मुहूर्त का समय आने ही वाला है। तभी पंडितजी ने पूजा के बीच में कहा कि दुल्हन को बुलाइए।

मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। वह पल अब बहुत करीब है, जब मेरी माँ, मेरी मंजु, मेरी पत्नी बनने जा रही है।
मनुष्य का मन और दिमाग उसकी ज़िन्दगी के हर दिन, हर पल, हर क्षण को याद नहीं रख पाता। उसके जीवन में कुछ दिन, कुछ पल, कुछ घटनाएँ ही होती हैं, जो जीवनभर के लिए स्मृतियों में बस जाती हैं। ये स्मृतियाँ कभी-कभी पीड़ा और कष्ट देती हैं, तो कभी-कभी अपार खुशी और आनंद का एहसास कराती हैं। हमारे सभी जीवन इसी नियम से चलते हैं।

आज मेरे जीवन का वह दिन है, जिसे मैं शायद अंतिम सांस तक हर मोमेंट को याद करना चाहूंगा, मेरा मन, ज़िन्दगी में कभी भी, कहीं भी, इन पलों को याद कर, अभी महसूस की गई खुशी के एहसासों को फिर से जीवंत कर, उनके मिठास का एहसास कराता रहेगा।

मैं अपनी जगह पर बैठा था, और वहां मौजूद सभी लोग दुल्हन के आगमन के लिए उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। मेरे मन में एक तूफान सा चल रहा था। यह वही घड़ी थी जिसकी याद में इतने दिन गुजारे थे। यह वह पल था जो मेरे और माँ की जिंदगी को एक नई दिशा में ले जाकर एक नए रिश्ते में जोड़ देगा। हमारे बीच के माँ-बेटे के बंधन के साथ पति-पत्नी का प्यार भरा रिश्ता जुड़ जाएगा। मैं व्याकुल मन लेकर माँ को दुल्हन के रूप में देखने के लिए पागल हो रहा था।

मेरे इस चिंता के बीच, वहां मौजूद सभी लोगों की आनंदमय ध्वनि और मंगलमय आवाजों के साथ मैंने अपने बाईं ओर दरवाजे की ओर देखा। माँ ने अपनी दुल्हन की भेष में हॉल में प्रवेश किया।



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दो आदमियों ने उनके ऊपर एक पर्दे जैसा कुछ उठाकर रखा था। वह अपना सिर झुकाकर, धीरे-धीरे कदमों से पूजा की ओर आने लगीं। नानाजी उनके बगल में अपने दोनों हाथों से माँ को पकड़कर ला रहे थे। यह मालूम पड़ रहा था कि माँ ने एक सुंदर लाल, मरून रंग का सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा पहना हुआ था।


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जिसे मैं बचपन से प्यार करता हूँ, जिसने मुझे प्यार देकर बड़ा किया, वह औरत, मेरी मंजू, मेरी मां, आज मेरी धर्मपत्नी बन रही है। हाँ, यह बात सही है कि आज तक मैंने अपने मन की गहराई में, उन्हें सोचकर, उनके शरीर के एक-एक अंग की कल्पना करके, एक आदमी का एक औरत के लिए जो प्यार होता है, वह प्यार उनसे किया है। और आज इस मुहूर्त के बाद बस वह मेरी हो जाएगी, केवल मेरी। जिसके साथ मैं अपना खुद का परिवार बनाकर, पूरी जिंदगी जीने की ख्वाहिश रखता हूँ।

नानीजी ने मुझे देखा, हमारी नज़रें मिलीं। वह बस होंठों पर एक मुस्कान लेकर मुझे देख रही थीं, फिर माँ की तरफ देखकर उनके कान में धीरे-धीरे कुछ बोलीं। मुझे माँ का एक्सप्रेशन तो दिखाई नहीं दिया, पर नानी अपनी मुस्कान को और चौड़ी करके हँसने लगीं। माँ शायद शर्म और खुशी की मिली-जुली अनुभूति से और सिर झुकाकर नानी के हाथ के बंधन के अंदर पिघलने लगीं। चारों तरफ से सब लेडीज की खुशी और मंगलमय आवाजें मेरे कानों में रस घोलने लगीं। सामने मेरी माँ को अपनी दुल्हन के रूप में आते हुए देखकर मैं बस एक नई अनुभूति में डूबने लगा।




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इस पल ने मेरे मन को आश्चर्य और आनंद से भर दिया, एक ऐसा एहसास जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। माँ का लाल और सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा उनकी सुंदरता को और भी बढ़ा रहा था। उनके हर कदम के साथ मेरा दिल धड़क रहा था, और मैं सोच रहा था कि अब से थोड़ी ही देर में, वह मेरी धर्मपत्नी बन जाएँगी। इस नए रिश्ते के बंधन में बंधने की खुशी और गर्व मेरे दिल में उमड़ रहा था। यह वह क्षण था जिसे मैं जीवन भर अपने दिल के करीब रखूंगा, एक ऐसी याद जो हमेशा मेरे साथ रहेगी।

माँ मेरे नजदीक आते ही पण्डितजी ने मुझे निर्देश दिया कि आगे के कार्यक्रम के लिए क्या करना है। उनके कहे मुताबिक, मैं पूरी तरह माँ की तरफ घूम गया। अब माँ मेरे नजदीक खड़ी हैं, दुल्हन के भेष मे। मैं उनकी तरफ देखते ही, पण्डितजी के एक आदमी ने मुझे एक फूलों का हार थमा दिया और पण्डितजी ने वरमाला एक्सचेंज करने का निर्देश दिया। सभी औरतें जोर-जोर से हर्षध्वनि करने लगीं। नानी अपने चेहरे पर खुशी की हंसी लेकर माँ को एकदम नजदीक पकड़े हुए थीं।



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माँ के सिर के ऊपर चुनरी घूंघट बनकर रखा हुआ था। बालों को अच्छी तरह डिज़ाइन करके पीछे बांधा हुआ था। सिर पर सोने की बिंदिया मांग के ऊपर चमक रही थी। चेहरे पर नई दुल्हन का मेकअप था। माँ की त्वचा हमेशा से मक्खन जैसी मुलायम और गोरी रही है, पर आज वह इस साज में एकदम किसी अप्सरा जैसी लग रही थीं।


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वह बस एक 18 साल की जवान लड़की लगने लगीं, जिनका रूप शादी के स्पर्श से और भी निखरने लगा है। आँखें झुकी हुई हैं, पर उनमें काजल और हल्का सा मेकअप किया हुआ है। नाक में सोने की नथ ने उनके चेहरे को एकदम अलग बना दिया है। शादी की ख़ुशी का अनुभव, शर्म, और एक अनजानी उत्तेजना के कारण उनकी नाक का अगला भाग सांस के साथ-साथ थोड़ा-थोड़ा काँप रहा है। मेरे अंदर का वह अज्ञात अनुभव बढ़कर चरम सीमा पर पहुँच गया जब मैंने उनके दो पतले गुलाबी होठों को देखा। उनके होठ स्वाभाविक रूप से गुलाबी हैं, और लिपस्टिक के कारण वे और भी लोभनीय बन गए हैं।

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इतने करीब से देखकर मुझे लगा कि वे रस में भरे हुए संतरे के दो मीठे फांक हैं। उन होठों पर एक ख़ुशी की मुस्कान सजी हुई है। मुझे बस अपने अंदर यह इच्छा हुई कि मैं उन होठों को अपने होठों से मिलाकर उनके अंदर भरे हुए रस का स्वाद चख लूँ। मैं अंदर ही अंदर काँपने लगा।

मैं माँ को बचपन से जानता हूँ, बचपन से उन्हें हर रूप में देखते आ रहा हूँ। शायद इसलिए शादी के तनाव से अधिक उन्हें पाने की चाहत मेरे अंदर उमड़ने लगी।

उनके साथ मिलन का इंतजार वर्षों से चल रहा था। आज मेरा मन बस उन्हें पूरी तरह से अपनी बाँहों में समेटने को बेताब था। मैंने कुछ पल उन्हें ऐसे देखा कि खुद सबके सामने शर्मा गया। मेरी नज़र हटते ही नानी की नज़र से मिली। नानी ख़ुशी और ममता भरी निगाहों से मुझे देख रही थीं। वह चाहती थीं कि आज उनकी बेटी को अपने हाथों से मेरे हाथ में सौंपकर हमें एक नए रिश्ते में जोड़ दें, और हम सबकी ज़िंदगी ख़ुशी और शांति से बीते।

माँ मेरे सामने सर को थोड़ा झुका कर, नज़र नीचे करके खड़ी हैं। उनके हाथ में भी मेरे जैसे एक फूलों की वरमाला है। उनके मेहँदी लगे हुए हाथ उनकी दुल्हन के रूप को खूबसूरती से बढ़ा रहे हैं। उनकी गर्दन में सोने का डिज़ाइन किया हुआ चौड़ा नेकलेस और कान में सुंदर सोने के झूमके हैं। हाथों में सोने के विभिन्न डिज़ाइन के कंगन हैं। वह आज मन से अपने बेटे को पति का अधिकार देने के लिए दुल्हन के भेष में मेरे सामने शर्माती हुई खड़ी हैं। चारों ओर ख़ुशी और आनंद का माहौल व्याप्त है।

मेरे पास नानाजी और माँ के पास नानीजी खड़ी होकर हमें अपने बच्चों की तरह पूरी तरह से सहयोग दे रहें हैं। हवन की पवित्र आग के सामने, हम माँ-बेटे पंडितजी के मंत्रों के उच्चारण के बीच एक-दूसरे को पहली बार सबके सामने नज़र उठाकर अपनी चारों आँखें एक करने लगे। मैं माँ को देख रहा था। वह अपनी नज़र धीरे-धीरे उठाकर फिर झुका रही थीं। मुझे मालूम था कि वह एक कुंवारी लड़की की तरह महसूस कर रही थीं। उनकी पलकें बार-बार ऊपर उठ रही थीं और फिर नीचे जाकर मेरी नज़र से मिलाने में शर्मा रही थीं, अपने माँ-पापा के सामने। पंडितजी के मंत्र चल रहे थे। पवित्र आग की आभा ने उनके गालों को और लाल कर दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र उठाकर मेरे साथ नज़र मिलाई। सभी लोग ताली बजाकर और ख़ुशी की आवाज़ से इस मुहूर्त को खास बना रहे थे।

माँ की नज़र में मेरे प्रति उनका प्यार, देखभाल, और खुद को मेरे पास सौंपने की चाहत सब कुछ झलक रहा था। उनके चेहरे पर आज जो भावनाओं का साया छाया हुआ था, वह केवल एक पत्नी के भावनाओं का होता है अपने पति के लिए। हम एक-दूसरे को देखकर अपनी आँखों की भाषा और ख़ामोशी की भाषा से कसम खा रहे थे, उस पवित्र अग्नि के सामने, कुछ ही पलों में। वह पल हमारे जीवन का सबसे अहम पल था।

पंडितजी ने वरमाला बदलने का निर्देश दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र झुका ली। मैंने अपनी माला धीरे-धीरे ऊपर उठाई, मेरा हाथ थोड़ा काँप रहा था। मैंने अपनी माला उनके सर के ऊपर, उनकी घूँघट के ऊपर से डालकर उनके गले में पहनाई।


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फिर मैंने अपना हाथ नीचे कर लिया। माँ ने भी अपने हाथ को ऊपर करके मेरे गले में माला डालने के लिए उठाया। चूंकि मैं माँ से ऊँचाई में था, उन्होंने अपने हाथ को बहुत ऊपर करके डालना पड़ा, इसलिए मैंने माँ को मदद करने के लिए अपना सिर थोड़ा झुका कर उनके हाथ के पास ले आया।

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फिर माँ ने धीरे-धीरे मेरे गले में माला डाल दी, अपनी नज़र झुका कर।

मुझे अब बस वही एहसास होने लगा, जो इस दुनिया की किसी भी भाषा से व्यक्त नहीं किया जा सकता। केवल वही समझ सकता है, जिसने इसे महसूस किया हो। मेरा मन माँ के प्रति प्यार से भर गया।
 

coollog

Love mom
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मैं पंडितजी के सामने बैठकर उनका कहना मान रहा हूँ। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी है। वह नानाजी से दूल्हा और दुल्हन का नाम और उनके माता-पिता का नाम पूछ रहे हैं। नानाजी ने मेरा नाम हीतेश बताया और माता-पिता का नाम दीपिका और अरुण बताया। मुझे थोड़ी देर के लिए समझ नहीं आया, पर जल्दी ही याद आया कि माँ का नाम उनकी जन्म कुंडली में दीपिका ही लिखा हुआ है।.

सब कुछ साफ हो गया फिर दुल्हन का नाम मंजु और माता-पिता के नाम के लिए नानाजी ने खुद का और नानी का ही नाम बताया। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी।.




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कुछ महिलाएँ वहीं चारों ओर बैठ गईं। मेरे अंदर एक शर्म और उत्तेजना का मिश्रण महसूस हो रहा है, क्योंकि मुहूर्त का समय आने ही वाला है। तभी पंडितजी ने पूजा के बीच में कहा कि दुल्हन को बुलाइए।

मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। वह पल अब बहुत करीब है, जब मेरी माँ, मेरी मंजु, मेरी पत्नी बनने जा रही है।
मनुष्य का मन और दिमाग उसकी ज़िन्दगी के हर दिन, हर पल, हर क्षण को याद नहीं रख पाता। उसके जीवन में कुछ दिन, कुछ पल, कुछ घटनाएँ ही होती हैं, जो जीवनभर के लिए स्मृतियों में बस जाती हैं। ये स्मृतियाँ कभी-कभी पीड़ा और कष्ट देती हैं, तो कभी-कभी अपार खुशी और आनंद का एहसास कराती हैं। हमारे सभी जीवन इसी नियम से चलते हैं।

आज मेरे जीवन का वह दिन है, जिसे मैं शायद अंतिम सांस तक हर मोमेंट को याद करना चाहूंगा, मेरा मन, ज़िन्दगी में कभी भी, कहीं भी, इन पलों को याद कर, अभी महसूस की गई खुशी के एहसासों को फिर से जीवंत कर, उनके मिठास का एहसास कराता रहेगा।

मैं अपनी जगह पर बैठा था, और वहां मौजूद सभी लोग दुल्हन के आगमन के लिए उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। मेरे मन में एक तूफान सा चल रहा था। यह वही घड़ी थी जिसकी याद में इतने दिन गुजारे थे। यह वह पल था जो मेरे और माँ की जिंदगी को एक नई दिशा में ले जाकर एक नए रिश्ते में जोड़ देगा। हमारे बीच के माँ-बेटे के बंधन के साथ पति-पत्नी का प्यार भरा रिश्ता जुड़ जाएगा। मैं व्याकुल मन लेकर माँ को दुल्हन के रूप में देखने के लिए पागल हो रहा था।

मेरे इस चिंता के बीच, वहां मौजूद सभी लोगों की आनंदमय ध्वनि और मंगलमय आवाजों के साथ मैंने अपने बाईं ओर दरवाजे की ओर देखा। माँ ने अपनी दुल्हन की भेष में हॉल में प्रवेश किया।



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दो आदमियों ने उनके ऊपर एक पर्दे जैसा कुछ उठाकर रखा था। वह अपना सिर झुकाकर, धीरे-धीरे कदमों से पूजा की ओर आने लगीं। नानाजी उनके बगल में अपने दोनों हाथों से माँ को पकड़कर ला रहे थे। यह मालूम पड़ रहा था कि माँ ने एक सुंदर लाल, मरून रंग का सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा पहना हुआ था।


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जिसे मैं बचपन से प्यार करता हूँ, जिसने मुझे प्यार देकर बड़ा किया, वह औरत, मेरी मंजू, मेरी मां, आज मेरी धर्मपत्नी बन रही है। हाँ, यह बात सही है कि आज तक मैंने अपने मन की गहराई में, उन्हें सोचकर, उनके शरीर के एक-एक अंग की कल्पना करके, एक आदमी का एक औरत के लिए जो प्यार होता है, वह प्यार उनसे किया है। और आज इस मुहूर्त के बाद बस वह मेरी हो जाएगी, केवल मेरी। जिसके साथ मैं अपना खुद का परिवार बनाकर, पूरी जिंदगी जीने की ख्वाहिश रखता हूँ।

नानीजी ने मुझे देखा, हमारी नज़रें मिलीं। वह बस होंठों पर एक मुस्कान लेकर मुझे देख रही थीं, फिर माँ की तरफ देखकर उनके कान में धीरे-धीरे कुछ बोलीं। मुझे माँ का एक्सप्रेशन तो दिखाई नहीं दिया, पर नानी अपनी मुस्कान को और चौड़ी करके हँसने लगीं। माँ शायद शर्म और खुशी की मिली-जुली अनुभूति से और सिर झुकाकर नानी के हाथ के बंधन के अंदर पिघलने लगीं। चारों तरफ से सब लेडीज की खुशी और मंगलमय आवाजें मेरे कानों में रस घोलने लगीं। सामने मेरी माँ को अपनी दुल्हन के रूप में आते हुए देखकर मैं बस एक नई अनुभूति में डूबने लगा।




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इस पल ने मेरे मन को आश्चर्य और आनंद से भर दिया, एक ऐसा एहसास जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। माँ का लाल और सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा उनकी सुंदरता को और भी बढ़ा रहा था। उनके हर कदम के साथ मेरा दिल धड़क रहा था, और मैं सोच रहा था कि अब से थोड़ी ही देर में, वह मेरी धर्मपत्नी बन जाएँगी। इस नए रिश्ते के बंधन में बंधने की खुशी और गर्व मेरे दिल में उमड़ रहा था। यह वह क्षण था जिसे मैं जीवन भर अपने दिल के करीब रखूंगा, एक ऐसी याद जो हमेशा मेरे साथ रहेगी।

माँ मेरे नजदीक आते ही पण्डितजी ने मुझे निर्देश दिया कि आगे के कार्यक्रम के लिए क्या करना है। उनके कहे मुताबिक, मैं पूरी तरह माँ की तरफ घूम गया। अब माँ मेरे नजदीक खड़ी हैं, दुल्हन के भेष मे। मैं उनकी तरफ देखते ही, पण्डितजी के एक आदमी ने मुझे एक फूलों का हार थमा दिया और पण्डितजी ने वरमाला एक्सचेंज करने का निर्देश दिया। सभी औरतें जोर-जोर से हर्षध्वनि करने लगीं। नानी अपने चेहरे पर खुशी की हंसी लेकर माँ को एकदम नजदीक पकड़े हुए थीं।



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वह बस एक 18 साल की जवान लड़की लगने लगीं, जिनका रूप शादी के स्पर्श से और भी निखरने लगा है। आँखें झुकी हुई हैं, पर उनमें काजल और हल्का सा मेकअप किया हुआ है। नाक में सोने की नथ ने उनके चेहरे को एकदम अलग बना दिया है। शादी की ख़ुशी का अनुभव, शर्म, और एक अनजानी उत्तेजना के कारण उनकी नाक का अगला भाग सांस के साथ-साथ थोड़ा-थोड़ा काँप रहा है। मेरे अंदर का वह अज्ञात अनुभव बढ़कर चरम सीमा पर पहुँच गया जब मैंने उनके दो पतले गुलाबी होठों को देखा। उनके होठ स्वाभाविक रूप से गुलाबी हैं, और लिपस्टिक के कारण वे और भी लोभनीय बन गए हैं।

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इतने करीब से देखकर मुझे लगा कि वे रस में भरे हुए संतरे के दो मीठे फांक हैं। उन होठों पर एक ख़ुशी की मुस्कान सजी हुई है। मुझे बस अपने अंदर यह इच्छा हुई कि मैं उन होठों को अपने होठों से मिलाकर उनके अंदर भरे हुए रस का स्वाद चख लूँ। मैं अंदर ही अंदर काँपने लगा।

मैं माँ को बचपन से जानता हूँ, बचपन से उन्हें हर रूप में देखते आ रहा हूँ। शायद इसलिए शादी के तनाव से अधिक उन्हें पाने की चाहत मेरे अंदर उमड़ने लगी।

उनके साथ मिलन का इंतजार वर्षों से चल रहा था। आज मेरा मन बस उन्हें पूरी तरह से अपनी बाँहों में समेटने को बेताब था। मैंने कुछ पल उन्हें ऐसे देखा कि खुद सबके सामने शर्मा गया। मेरी नज़र हटते ही नानी की नज़र से मिली। नानी ख़ुशी और ममता भरी निगाहों से मुझे देख रही थीं। वह चाहती थीं कि आज उनकी बेटी को अपने हाथों से मेरे हाथ में सौंपकर हमें एक नए रिश्ते में जोड़ दें, और हम सबकी ज़िंदगी ख़ुशी और शांति से बीते।


माँ मेरे सामने सर को थोड़ा झुका कर, नज़र नीचे करके खड़ी हैं। उनके हाथ में भी मेरे जैसे एक फूलों की वरमाला है। उनके मेहँदी लगे हुए हाथ उनकी दुल्हन के रूप को खूबसूरती से बढ़ा रहे हैं। उनकी गर्दन में सोने का डिज़ाइन किया हुआ चौड़ा नेकलेस और कान में सुंदर सोने के झूमके हैं। हाथों में सोने के विभिन्न डिज़ाइन के कंगन हैं। वह आज मन से अपने बेटे को पति का अधिकार देने के लिए दुल्हन के भेष में मेरे सामने शर्माती हुई खड़ी हैं। चारों ओर ख़ुशी और आनंद का माहौल व्याप्त है।

मेरे पास नानाजी और माँ के पास नानीजी खड़ी होकर हमें अपने बच्चों की तरह पूरी तरह से सहयोग दे रहें हैं। हवन की पवित्र आग के सामने, हम माँ-बेटे पंडितजी के मंत्रों के उच्चारण के बीच एक-दूसरे को पहली बार सबके सामने नज़र उठाकर अपनी चारों आँखें एक करने लगे। मैं माँ को देख रहा था। वह अपनी नज़र धीरे-धीरे उठाकर फिर झुका रही थीं। मुझे मालूम था कि वह एक कुंवारी लड़की की तरह महसूस कर रही थीं। उनकी पलकें बार-बार ऊपर उठ रही थीं और फिर नीचे जाकर मेरी नज़र से मिलाने में शर्मा रही थीं, अपने माँ-पापा के सामने। पंडितजी के मंत्र चल रहे थे। पवित्र आग की आभा ने उनके गालों को और लाल कर दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र उठाकर मेरे साथ नज़र मिलाई। सभी लोग ताली बजाकर और ख़ुशी की आवाज़ से इस मुहूर्त को खास बना रहे थे।

माँ की नज़र में मेरे प्रति उनका प्यार, देखभाल, और खुद को मेरे पास सौंपने की चाहत सब कुछ झलक रहा था। उनके चेहरे पर आज जो भावनाओं का साया छाया हुआ था, वह केवल एक पत्नी के भावनाओं का होता है अपने पति के लिए। हम एक-दूसरे को देखकर अपनी आँखों की भाषा और ख़ामोशी की भाषा से कसम खा रहे थे, उस पवित्र अग्नि के सामने, कुछ ही पलों में। वह पल हमारे जीवन का सबसे अहम पल था।

पंडितजी ने वरमाला बदलने का निर्देश दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र झुका ली। मैंने अपनी माला धीरे-धीरे ऊपर उठाई, मेरा हाथ थोड़ा काँप रहा था। मैंने अपनी माला उनके सर के ऊपर, उनकी घूँघट के ऊपर से डालकर उनके गले में पहनाई।


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मुझे अब बस वही एहसास होने लगा, जो इस दुनिया की किसी भी भाषा से व्यक्त नहीं किया जा सकता। केवल वही समझ सकता है, जिसने इसे महसूस किया हो। मेरा मन माँ के प्रति प्यार से भर गया।
Nice update waiting for more updates bhai
 

dhparikh

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मैं पंडितजी के सामने बैठकर उनका कहना मान रहा हूँ। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी है। वह नानाजी से दूल्हा और दुल्हन का नाम और उनके माता-पिता का नाम पूछ रहे हैं। नानाजी ने मेरा नाम हीतेश बताया और माता-पिता का नाम दीपिका और अरुण बताया। मुझे थोड़ी देर के लिए समझ नहीं आया, पर जल्दी ही याद आया कि माँ का नाम उनकी जन्म कुंडली में दीपिका ही लिखा हुआ है।.

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मेरे इस चिंता के बीच, वहां मौजूद सभी लोगों की आनंदमय ध्वनि और मंगलमय आवाजों के साथ मैंने अपने बाईं ओर दरवाजे की ओर देखा। माँ ने अपनी दुल्हन की भेष में हॉल में प्रवेश किया।



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नानीजी ने मुझे देखा, हमारी नज़रें मिलीं। वह बस होंठों पर एक मुस्कान लेकर मुझे देख रही थीं, फिर माँ की तरफ देखकर उनके कान में धीरे-धीरे कुछ बोलीं। मुझे माँ का एक्सप्रेशन तो दिखाई नहीं दिया, पर नानी अपनी मुस्कान को और चौड़ी करके हँसने लगीं। माँ शायद शर्म और खुशी की मिली-जुली अनुभूति से और सिर झुकाकर नानी के हाथ के बंधन के अंदर पिघलने लगीं। चारों तरफ से सब लेडीज की खुशी और मंगलमय आवाजें मेरे कानों में रस घोलने लगीं। सामने मेरी माँ को अपनी दुल्हन के रूप में आते हुए देखकर मैं बस एक नई अनुभूति में डूबने लगा।




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माँ मेरे नजदीक आते ही पण्डितजी ने मुझे निर्देश दिया कि आगे के कार्यक्रम के लिए क्या करना है। उनके कहे मुताबिक, मैं पूरी तरह माँ की तरफ घूम गया। अब माँ मेरे नजदीक खड़ी हैं, दुल्हन के भेष मे। मैं उनकी तरफ देखते ही, पण्डितजी के एक आदमी ने मुझे एक फूलों का हार थमा दिया और पण्डितजी ने वरमाला एक्सचेंज करने का निर्देश दिया। सभी औरतें जोर-जोर से हर्षध्वनि करने लगीं। नानी अपने चेहरे पर खुशी की हंसी लेकर माँ को एकदम नजदीक पकड़े हुए थीं।



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माँ के सिर के ऊपर चुनरी घूंघट बनकर रखा हुआ था। बालों को अच्छी तरह डिज़ाइन करके पीछे बांधा हुआ था। सिर पर सोने की बिंदिया मांग के ऊपर चमक रही थी। चेहरे पर नई दुल्हन का मेकअप था। माँ की त्वचा हमेशा से मक्खन जैसी मुलायम और गोरी रही है, पर आज वह इस साज में एकदम किसी अप्सरा जैसी लग रही थीं।


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वह बस एक 18 साल की जवान लड़की लगने लगीं, जिनका रूप शादी के स्पर्श से और भी निखरने लगा है। आँखें झुकी हुई हैं, पर उनमें काजल और हल्का सा मेकअप किया हुआ है। नाक में सोने की नथ ने उनके चेहरे को एकदम अलग बना दिया है। शादी की ख़ुशी का अनुभव, शर्म, और एक अनजानी उत्तेजना के कारण उनकी नाक का अगला भाग सांस के साथ-साथ थोड़ा-थोड़ा काँप रहा है। मेरे अंदर का वह अज्ञात अनुभव बढ़कर चरम सीमा पर पहुँच गया जब मैंने उनके दो पतले गुलाबी होठों को देखा। उनके होठ स्वाभाविक रूप से गुलाबी हैं, और लिपस्टिक के कारण वे और भी लोभनीय बन गए हैं।

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इतने करीब से देखकर मुझे लगा कि वे रस में भरे हुए संतरे के दो मीठे फांक हैं। उन होठों पर एक ख़ुशी की मुस्कान सजी हुई है। मुझे बस अपने अंदर यह इच्छा हुई कि मैं उन होठों को अपने होठों से मिलाकर उनके अंदर भरे हुए रस का स्वाद चख लूँ। मैं अंदर ही अंदर काँपने लगा।

मैं माँ को बचपन से जानता हूँ, बचपन से उन्हें हर रूप में देखते आ रहा हूँ। शायद इसलिए शादी के तनाव से अधिक उन्हें पाने की चाहत मेरे अंदर उमड़ने लगी।

उनके साथ मिलन का इंतजार वर्षों से चल रहा था। आज मेरा मन बस उन्हें पूरी तरह से अपनी बाँहों में समेटने को बेताब था। मैंने कुछ पल उन्हें ऐसे देखा कि खुद सबके सामने शर्मा गया। मेरी नज़र हटते ही नानी की नज़र से मिली। नानी ख़ुशी और ममता भरी निगाहों से मुझे देख रही थीं। वह चाहती थीं कि आज उनकी बेटी को अपने हाथों से मेरे हाथ में सौंपकर हमें एक नए रिश्ते में जोड़ दें, और हम सबकी ज़िंदगी ख़ुशी और शांति से बीते।


माँ मेरे सामने सर को थोड़ा झुका कर, नज़र नीचे करके खड़ी हैं। उनके हाथ में भी मेरे जैसे एक फूलों की वरमाला है। उनके मेहँदी लगे हुए हाथ उनकी दुल्हन के रूप को खूबसूरती से बढ़ा रहे हैं। उनकी गर्दन में सोने का डिज़ाइन किया हुआ चौड़ा नेकलेस और कान में सुंदर सोने के झूमके हैं। हाथों में सोने के विभिन्न डिज़ाइन के कंगन हैं। वह आज मन से अपने बेटे को पति का अधिकार देने के लिए दुल्हन के भेष में मेरे सामने शर्माती हुई खड़ी हैं। चारों ओर ख़ुशी और आनंद का माहौल व्याप्त है।

मेरे पास नानाजी और माँ के पास नानीजी खड़ी होकर हमें अपने बच्चों की तरह पूरी तरह से सहयोग दे रहें हैं। हवन की पवित्र आग के सामने, हम माँ-बेटे पंडितजी के मंत्रों के उच्चारण के बीच एक-दूसरे को पहली बार सबके सामने नज़र उठाकर अपनी चारों आँखें एक करने लगे। मैं माँ को देख रहा था। वह अपनी नज़र धीरे-धीरे उठाकर फिर झुका रही थीं। मुझे मालूम था कि वह एक कुंवारी लड़की की तरह महसूस कर रही थीं। उनकी पलकें बार-बार ऊपर उठ रही थीं और फिर नीचे जाकर मेरी नज़र से मिलाने में शर्मा रही थीं, अपने माँ-पापा के सामने। पंडितजी के मंत्र चल रहे थे। पवित्र आग की आभा ने उनके गालों को और लाल कर दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र उठाकर मेरे साथ नज़र मिलाई। सभी लोग ताली बजाकर और ख़ुशी की आवाज़ से इस मुहूर्त को खास बना रहे थे।

माँ की नज़र में मेरे प्रति उनका प्यार, देखभाल, और खुद को मेरे पास सौंपने की चाहत सब कुछ झलक रहा था। उनके चेहरे पर आज जो भावनाओं का साया छाया हुआ था, वह केवल एक पत्नी के भावनाओं का होता है अपने पति के लिए। हम एक-दूसरे को देखकर अपनी आँखों की भाषा और ख़ामोशी की भाषा से कसम खा रहे थे, उस पवित्र अग्नि के सामने, कुछ ही पलों में। वह पल हमारे जीवन का सबसे अहम पल था।

पंडितजी ने वरमाला बदलने का निर्देश दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र झुका ली। मैंने अपनी माला धीरे-धीरे ऊपर उठाई, मेरा हाथ थोड़ा काँप रहा था। मैंने अपनी माला उनके सर के ऊपर, उनकी घूँघट के ऊपर से डालकर उनके गले में पहनाई।


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फिर मैंने अपना हाथ नीचे कर लिया। माँ ने भी अपने हाथ को ऊपर करके मेरे गले में माला डालने के लिए उठाया। चूंकि मैं माँ से ऊँचाई में था, उन्होंने अपने हाथ को बहुत ऊपर करके डालना पड़ा, इसलिए मैंने माँ को मदद करने के लिए अपना सिर थोड़ा झुका कर उनके हाथ के पास ले आया।

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फिर माँ ने धीरे-धीरे मेरे गले में माला डाल दी, अपनी नज़र झुका कर।

मुझे अब बस वही एहसास होने लगा, जो इस दुनिया की किसी भी भाषा से व्यक्त नहीं किया जा सकता। केवल वही समझ सकता है, जिसने इसे महसूस किया हो। मेरा मन माँ के प्रति प्यार से भर गया।
Nice update....
 

parkas

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Update 29


मैं पंडितजी के सामने बैठकर उनका कहना मान रहा हूँ। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी है। वह नानाजी से दूल्हा और दुल्हन का नाम और उनके माता-पिता का नाम पूछ रहे हैं। नानाजी ने मेरा नाम हीतेश बताया और माता-पिता का नाम दीपिका और अरुण बताया। मुझे थोड़ी देर के लिए समझ नहीं आया, पर जल्दी ही याद आया कि माँ का नाम उनकी जन्म कुंडली में दीपिका ही लिखा हुआ है।.

सब कुछ साफ हो गया फिर दुल्हन का नाम मंजु और माता-पिता के नाम के लिए नानाजी ने खुद का और नानी का ही नाम बताया। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी।.




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कुछ महिलाएँ वहीं चारों ओर बैठ गईं। मेरे अंदर एक शर्म और उत्तेजना का मिश्रण महसूस हो रहा है, क्योंकि मुहूर्त का समय आने ही वाला है। तभी पंडितजी ने पूजा के बीच में कहा कि दुल्हन को बुलाइए।

मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। वह पल अब बहुत करीब है, जब मेरी माँ, मेरी मंजु, मेरी पत्नी बनने जा रही है।
मनुष्य का मन और दिमाग उसकी ज़िन्दगी के हर दिन, हर पल, हर क्षण को याद नहीं रख पाता। उसके जीवन में कुछ दिन, कुछ पल, कुछ घटनाएँ ही होती हैं, जो जीवनभर के लिए स्मृतियों में बस जाती हैं। ये स्मृतियाँ कभी-कभी पीड़ा और कष्ट देती हैं, तो कभी-कभी अपार खुशी और आनंद का एहसास कराती हैं। हमारे सभी जीवन इसी नियम से चलते हैं।

आज मेरे जीवन का वह दिन है, जिसे मैं शायद अंतिम सांस तक हर मोमेंट को याद करना चाहूंगा, मेरा मन, ज़िन्दगी में कभी भी, कहीं भी, इन पलों को याद कर, अभी महसूस की गई खुशी के एहसासों को फिर से जीवंत कर, उनके मिठास का एहसास कराता रहेगा।

मैं अपनी जगह पर बैठा था, और वहां मौजूद सभी लोग दुल्हन के आगमन के लिए उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। मेरे मन में एक तूफान सा चल रहा था। यह वही घड़ी थी जिसकी याद में इतने दिन गुजारे थे। यह वह पल था जो मेरे और माँ की जिंदगी को एक नई दिशा में ले जाकर एक नए रिश्ते में जोड़ देगा। हमारे बीच के माँ-बेटे के बंधन के साथ पति-पत्नी का प्यार भरा रिश्ता जुड़ जाएगा। मैं व्याकुल मन लेकर माँ को दुल्हन के रूप में देखने के लिए पागल हो रहा था।

मेरे इस चिंता के बीच, वहां मौजूद सभी लोगों की आनंदमय ध्वनि और मंगलमय आवाजों के साथ मैंने अपने बाईं ओर दरवाजे की ओर देखा। माँ ने अपनी दुल्हन की भेष में हॉल में प्रवेश किया।



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दो आदमियों ने उनके ऊपर एक पर्दे जैसा कुछ उठाकर रखा था। वह अपना सिर झुकाकर, धीरे-धीरे कदमों से पूजा की ओर आने लगीं। नानाजी उनके बगल में अपने दोनों हाथों से माँ को पकड़कर ला रहे थे। यह मालूम पड़ रहा था कि माँ ने एक सुंदर लाल, मरून रंग का सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा पहना हुआ था।


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जिसे मैं बचपन से प्यार करता हूँ, जिसने मुझे प्यार देकर बड़ा किया, वह औरत, मेरी मंजू, मेरी मां, आज मेरी धर्मपत्नी बन रही है। हाँ, यह बात सही है कि आज तक मैंने अपने मन की गहराई में, उन्हें सोचकर, उनके शरीर के एक-एक अंग की कल्पना करके, एक आदमी का एक औरत के लिए जो प्यार होता है, वह प्यार उनसे किया है। और आज इस मुहूर्त के बाद बस वह मेरी हो जाएगी, केवल मेरी। जिसके साथ मैं अपना खुद का परिवार बनाकर, पूरी जिंदगी जीने की ख्वाहिश रखता हूँ।

नानीजी ने मुझे देखा, हमारी नज़रें मिलीं। वह बस होंठों पर एक मुस्कान लेकर मुझे देख रही थीं, फिर माँ की तरफ देखकर उनके कान में धीरे-धीरे कुछ बोलीं। मुझे माँ का एक्सप्रेशन तो दिखाई नहीं दिया, पर नानी अपनी मुस्कान को और चौड़ी करके हँसने लगीं। माँ शायद शर्म और खुशी की मिली-जुली अनुभूति से और सिर झुकाकर नानी के हाथ के बंधन के अंदर पिघलने लगीं। चारों तरफ से सब लेडीज की खुशी और मंगलमय आवाजें मेरे कानों में रस घोलने लगीं। सामने मेरी माँ को अपनी दुल्हन के रूप में आते हुए देखकर मैं बस एक नई अनुभूति में डूबने लगा।




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इस पल ने मेरे मन को आश्चर्य और आनंद से भर दिया, एक ऐसा एहसास जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। माँ का लाल और सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा उनकी सुंदरता को और भी बढ़ा रहा था। उनके हर कदम के साथ मेरा दिल धड़क रहा था, और मैं सोच रहा था कि अब से थोड़ी ही देर में, वह मेरी धर्मपत्नी बन जाएँगी। इस नए रिश्ते के बंधन में बंधने की खुशी और गर्व मेरे दिल में उमड़ रहा था। यह वह क्षण था जिसे मैं जीवन भर अपने दिल के करीब रखूंगा, एक ऐसी याद जो हमेशा मेरे साथ रहेगी।

माँ मेरे नजदीक आते ही पण्डितजी ने मुझे निर्देश दिया कि आगे के कार्यक्रम के लिए क्या करना है। उनके कहे मुताबिक, मैं पूरी तरह माँ की तरफ घूम गया। अब माँ मेरे नजदीक खड़ी हैं, दुल्हन के भेष मे। मैं उनकी तरफ देखते ही, पण्डितजी के एक आदमी ने मुझे एक फूलों का हार थमा दिया और पण्डितजी ने वरमाला एक्सचेंज करने का निर्देश दिया। सभी औरतें जोर-जोर से हर्षध्वनि करने लगीं। नानी अपने चेहरे पर खुशी की हंसी लेकर माँ को एकदम नजदीक पकड़े हुए थीं।



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माँ के सिर के ऊपर चुनरी घूंघट बनकर रखा हुआ था। बालों को अच्छी तरह डिज़ाइन करके पीछे बांधा हुआ था। सिर पर सोने की बिंदिया मांग के ऊपर चमक रही थी। चेहरे पर नई दुल्हन का मेकअप था। माँ की त्वचा हमेशा से मक्खन जैसी मुलायम और गोरी रही है, पर आज वह इस साज में एकदम किसी अप्सरा जैसी लग रही थीं।


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वह बस एक 18 साल की जवान लड़की लगने लगीं, जिनका रूप शादी के स्पर्श से और भी निखरने लगा है। आँखें झुकी हुई हैं, पर उनमें काजल और हल्का सा मेकअप किया हुआ है। नाक में सोने की नथ ने उनके चेहरे को एकदम अलग बना दिया है। शादी की ख़ुशी का अनुभव, शर्म, और एक अनजानी उत्तेजना के कारण उनकी नाक का अगला भाग सांस के साथ-साथ थोड़ा-थोड़ा काँप रहा है। मेरे अंदर का वह अज्ञात अनुभव बढ़कर चरम सीमा पर पहुँच गया जब मैंने उनके दो पतले गुलाबी होठों को देखा। उनके होठ स्वाभाविक रूप से गुलाबी हैं, और लिपस्टिक के कारण वे और भी लोभनीय बन गए हैं।

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इतने करीब से देखकर मुझे लगा कि वे रस में भरे हुए संतरे के दो मीठे फांक हैं। उन होठों पर एक ख़ुशी की मुस्कान सजी हुई है। मुझे बस अपने अंदर यह इच्छा हुई कि मैं उन होठों को अपने होठों से मिलाकर उनके अंदर भरे हुए रस का स्वाद चख लूँ। मैं अंदर ही अंदर काँपने लगा।

मैं माँ को बचपन से जानता हूँ, बचपन से उन्हें हर रूप में देखते आ रहा हूँ। शायद इसलिए शादी के तनाव से अधिक उन्हें पाने की चाहत मेरे अंदर उमड़ने लगी।

उनके साथ मिलन का इंतजार वर्षों से चल रहा था। आज मेरा मन बस उन्हें पूरी तरह से अपनी बाँहों में समेटने को बेताब था। मैंने कुछ पल उन्हें ऐसे देखा कि खुद सबके सामने शर्मा गया। मेरी नज़र हटते ही नानी की नज़र से मिली। नानी ख़ुशी और ममता भरी निगाहों से मुझे देख रही थीं। वह चाहती थीं कि आज उनकी बेटी को अपने हाथों से मेरे हाथ में सौंपकर हमें एक नए रिश्ते में जोड़ दें, और हम सबकी ज़िंदगी ख़ुशी और शांति से बीते।


माँ मेरे सामने सर को थोड़ा झुका कर, नज़र नीचे करके खड़ी हैं। उनके हाथ में भी मेरे जैसे एक फूलों की वरमाला है। उनके मेहँदी लगे हुए हाथ उनकी दुल्हन के रूप को खूबसूरती से बढ़ा रहे हैं। उनकी गर्दन में सोने का डिज़ाइन किया हुआ चौड़ा नेकलेस और कान में सुंदर सोने के झूमके हैं। हाथों में सोने के विभिन्न डिज़ाइन के कंगन हैं। वह आज मन से अपने बेटे को पति का अधिकार देने के लिए दुल्हन के भेष में मेरे सामने शर्माती हुई खड़ी हैं। चारों ओर ख़ुशी और आनंद का माहौल व्याप्त है।

मेरे पास नानाजी और माँ के पास नानीजी खड़ी होकर हमें अपने बच्चों की तरह पूरी तरह से सहयोग दे रहें हैं। हवन की पवित्र आग के सामने, हम माँ-बेटे पंडितजी के मंत्रों के उच्चारण के बीच एक-दूसरे को पहली बार सबके सामने नज़र उठाकर अपनी चारों आँखें एक करने लगे। मैं माँ को देख रहा था। वह अपनी नज़र धीरे-धीरे उठाकर फिर झुका रही थीं। मुझे मालूम था कि वह एक कुंवारी लड़की की तरह महसूस कर रही थीं। उनकी पलकें बार-बार ऊपर उठ रही थीं और फिर नीचे जाकर मेरी नज़र से मिलाने में शर्मा रही थीं, अपने माँ-पापा के सामने। पंडितजी के मंत्र चल रहे थे। पवित्र आग की आभा ने उनके गालों को और लाल कर दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र उठाकर मेरे साथ नज़र मिलाई। सभी लोग ताली बजाकर और ख़ुशी की आवाज़ से इस मुहूर्त को खास बना रहे थे।

माँ की नज़र में मेरे प्रति उनका प्यार, देखभाल, और खुद को मेरे पास सौंपने की चाहत सब कुछ झलक रहा था। उनके चेहरे पर आज जो भावनाओं का साया छाया हुआ था, वह केवल एक पत्नी के भावनाओं का होता है अपने पति के लिए। हम एक-दूसरे को देखकर अपनी आँखों की भाषा और ख़ामोशी की भाषा से कसम खा रहे थे, उस पवित्र अग्नि के सामने, कुछ ही पलों में। वह पल हमारे जीवन का सबसे अहम पल था।

पंडितजी ने वरमाला बदलने का निर्देश दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र झुका ली। मैंने अपनी माला धीरे-धीरे ऊपर उठाई, मेरा हाथ थोड़ा काँप रहा था। मैंने अपनी माला उनके सर के ऊपर, उनकी घूँघट के ऊपर से डालकर उनके गले में पहनाई।


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फिर मैंने अपना हाथ नीचे कर लिया। माँ ने भी अपने हाथ को ऊपर करके मेरे गले में माला डालने के लिए उठाया। चूंकि मैं माँ से ऊँचाई में था, उन्होंने अपने हाथ को बहुत ऊपर करके डालना पड़ा, इसलिए मैंने माँ को मदद करने के लिए अपना सिर थोड़ा झुका कर उनके हाथ के पास ले आया।

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फिर माँ ने धीरे-धीरे मेरे गले में माला डाल दी, अपनी नज़र झुका कर।

मुझे अब बस वही एहसास होने लगा, जो इस दुनिया की किसी भी भाषा से व्यक्त नहीं किया जा सकता। केवल वही समझ सकता है, जिसने इसे महसूस किया हो। मेरा मन माँ के प्रति प्यार से भर गया।
Bahut hi badhiya update diya hai Esac bhai....
Nice and beautiful update...
 
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Asim342

Cowboy
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Update 29


मैं पंडितजी के सामने बैठकर उनका कहना मान रहा हूँ। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी है। वह नानाजी से दूल्हा और दुल्हन का नाम और उनके माता-पिता का नाम पूछ रहे हैं। नानाजी ने मेरा नाम हीतेश बताया और माता-पिता का नाम दीपिका और अरुण बताया। मुझे थोड़ी देर के लिए समझ नहीं आया, पर जल्दी ही याद आया कि माँ का नाम उनकी जन्म कुंडली में दीपिका ही लिखा हुआ है।.

सब कुछ साफ हो गया फिर दुल्हन का नाम मंजु और माता-पिता के नाम के लिए नानाजी ने खुद का और नानी का ही नाम बताया। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी।.




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कुछ महिलाएँ वहीं चारों ओर बैठ गईं। मेरे अंदर एक शर्म और उत्तेजना का मिश्रण महसूस हो रहा है, क्योंकि मुहूर्त का समय आने ही वाला है। तभी पंडितजी ने पूजा के बीच में कहा कि दुल्हन को बुलाइए।

मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। वह पल अब बहुत करीब है, जब मेरी माँ, मेरी मंजु, मेरी पत्नी बनने जा रही है।
मनुष्य का मन और दिमाग उसकी ज़िन्दगी के हर दिन, हर पल, हर क्षण को याद नहीं रख पाता। उसके जीवन में कुछ दिन, कुछ पल, कुछ घटनाएँ ही होती हैं, जो जीवनभर के लिए स्मृतियों में बस जाती हैं। ये स्मृतियाँ कभी-कभी पीड़ा और कष्ट देती हैं, तो कभी-कभी अपार खुशी और आनंद का एहसास कराती हैं। हमारे सभी जीवन इसी नियम से चलते हैं।

आज मेरे जीवन का वह दिन है, जिसे मैं शायद अंतिम सांस तक हर मोमेंट को याद करना चाहूंगा, मेरा मन, ज़िन्दगी में कभी भी, कहीं भी, इन पलों को याद कर, अभी महसूस की गई खुशी के एहसासों को फिर से जीवंत कर, उनके मिठास का एहसास कराता रहेगा।

मैं अपनी जगह पर बैठा था, और वहां मौजूद सभी लोग दुल्हन के आगमन के लिए उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। मेरे मन में एक तूफान सा चल रहा था। यह वही घड़ी थी जिसकी याद में इतने दिन गुजारे थे। यह वह पल था जो मेरे और माँ की जिंदगी को एक नई दिशा में ले जाकर एक नए रिश्ते में जोड़ देगा। हमारे बीच के माँ-बेटे के बंधन के साथ पति-पत्नी का प्यार भरा रिश्ता जुड़ जाएगा। मैं व्याकुल मन लेकर माँ को दुल्हन के रूप में देखने के लिए पागल हो रहा था।

मेरे इस चिंता के बीच, वहां मौजूद सभी लोगों की आनंदमय ध्वनि और मंगलमय आवाजों के साथ मैंने अपने बाईं ओर दरवाजे की ओर देखा। माँ ने अपनी दुल्हन की भेष में हॉल में प्रवेश किया।



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दो आदमियों ने उनके ऊपर एक पर्दे जैसा कुछ उठाकर रखा था। वह अपना सिर झुकाकर, धीरे-धीरे कदमों से पूजा की ओर आने लगीं। नानाजी उनके बगल में अपने दोनों हाथों से माँ को पकड़कर ला रहे थे। यह मालूम पड़ रहा था कि माँ ने एक सुंदर लाल, मरून रंग का सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा पहना हुआ था।


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जिसे मैं बचपन से प्यार करता हूँ, जिसने मुझे प्यार देकर बड़ा किया, वह औरत, मेरी मंजू, मेरी मां, आज मेरी धर्मपत्नी बन रही है। हाँ, यह बात सही है कि आज तक मैंने अपने मन की गहराई में, उन्हें सोचकर, उनके शरीर के एक-एक अंग की कल्पना करके, एक आदमी का एक औरत के लिए जो प्यार होता है, वह प्यार उनसे किया है। और आज इस मुहूर्त के बाद बस वह मेरी हो जाएगी, केवल मेरी। जिसके साथ मैं अपना खुद का परिवार बनाकर, पूरी जिंदगी जीने की ख्वाहिश रखता हूँ।

नानीजी ने मुझे देखा, हमारी नज़रें मिलीं। वह बस होंठों पर एक मुस्कान लेकर मुझे देख रही थीं, फिर माँ की तरफ देखकर उनके कान में धीरे-धीरे कुछ बोलीं। मुझे माँ का एक्सप्रेशन तो दिखाई नहीं दिया, पर नानी अपनी मुस्कान को और चौड़ी करके हँसने लगीं। माँ शायद शर्म और खुशी की मिली-जुली अनुभूति से और सिर झुकाकर नानी के हाथ के बंधन के अंदर पिघलने लगीं। चारों तरफ से सब लेडीज की खुशी और मंगलमय आवाजें मेरे कानों में रस घोलने लगीं। सामने मेरी माँ को अपनी दुल्हन के रूप में आते हुए देखकर मैं बस एक नई अनुभूति में डूबने लगा।




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इस पल ने मेरे मन को आश्चर्य और आनंद से भर दिया, एक ऐसा एहसास जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। माँ का लाल और सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा उनकी सुंदरता को और भी बढ़ा रहा था। उनके हर कदम के साथ मेरा दिल धड़क रहा था, और मैं सोच रहा था कि अब से थोड़ी ही देर में, वह मेरी धर्मपत्नी बन जाएँगी। इस नए रिश्ते के बंधन में बंधने की खुशी और गर्व मेरे दिल में उमड़ रहा था। यह वह क्षण था जिसे मैं जीवन भर अपने दिल के करीब रखूंगा, एक ऐसी याद जो हमेशा मेरे साथ रहेगी।

माँ मेरे नजदीक आते ही पण्डितजी ने मुझे निर्देश दिया कि आगे के कार्यक्रम के लिए क्या करना है। उनके कहे मुताबिक, मैं पूरी तरह माँ की तरफ घूम गया। अब माँ मेरे नजदीक खड़ी हैं, दुल्हन के भेष मे। मैं उनकी तरफ देखते ही, पण्डितजी के एक आदमी ने मुझे एक फूलों का हार थमा दिया और पण्डितजी ने वरमाला एक्सचेंज करने का निर्देश दिया। सभी औरतें जोर-जोर से हर्षध्वनि करने लगीं। नानी अपने चेहरे पर खुशी की हंसी लेकर माँ को एकदम नजदीक पकड़े हुए थीं।



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वह बस एक 18 साल की जवान लड़की लगने लगीं, जिनका रूप शादी के स्पर्श से और भी निखरने लगा है। आँखें झुकी हुई हैं, पर उनमें काजल और हल्का सा मेकअप किया हुआ है। नाक में सोने की नथ ने उनके चेहरे को एकदम अलग बना दिया है। शादी की ख़ुशी का अनुभव, शर्म, और एक अनजानी उत्तेजना के कारण उनकी नाक का अगला भाग सांस के साथ-साथ थोड़ा-थोड़ा काँप रहा है। मेरे अंदर का वह अज्ञात अनुभव बढ़कर चरम सीमा पर पहुँच गया जब मैंने उनके दो पतले गुलाबी होठों को देखा। उनके होठ स्वाभाविक रूप से गुलाबी हैं, और लिपस्टिक के कारण वे और भी लोभनीय बन गए हैं।

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इतने करीब से देखकर मुझे लगा कि वे रस में भरे हुए संतरे के दो मीठे फांक हैं। उन होठों पर एक ख़ुशी की मुस्कान सजी हुई है। मुझे बस अपने अंदर यह इच्छा हुई कि मैं उन होठों को अपने होठों से मिलाकर उनके अंदर भरे हुए रस का स्वाद चख लूँ। मैं अंदर ही अंदर काँपने लगा।

मैं माँ को बचपन से जानता हूँ, बचपन से उन्हें हर रूप में देखते आ रहा हूँ। शायद इसलिए शादी के तनाव से अधिक उन्हें पाने की चाहत मेरे अंदर उमड़ने लगी।

उनके साथ मिलन का इंतजार वर्षों से चल रहा था। आज मेरा मन बस उन्हें पूरी तरह से अपनी बाँहों में समेटने को बेताब था। मैंने कुछ पल उन्हें ऐसे देखा कि खुद सबके सामने शर्मा गया। मेरी नज़र हटते ही नानी की नज़र से मिली। नानी ख़ुशी और ममता भरी निगाहों से मुझे देख रही थीं। वह चाहती थीं कि आज उनकी बेटी को अपने हाथों से मेरे हाथ में सौंपकर हमें एक नए रिश्ते में जोड़ दें, और हम सबकी ज़िंदगी ख़ुशी और शांति से बीते।


माँ मेरे सामने सर को थोड़ा झुका कर, नज़र नीचे करके खड़ी हैं। उनके हाथ में भी मेरे जैसे एक फूलों की वरमाला है। उनके मेहँदी लगे हुए हाथ उनकी दुल्हन के रूप को खूबसूरती से बढ़ा रहे हैं। उनकी गर्दन में सोने का डिज़ाइन किया हुआ चौड़ा नेकलेस और कान में सुंदर सोने के झूमके हैं। हाथों में सोने के विभिन्न डिज़ाइन के कंगन हैं। वह आज मन से अपने बेटे को पति का अधिकार देने के लिए दुल्हन के भेष में मेरे सामने शर्माती हुई खड़ी हैं। चारों ओर ख़ुशी और आनंद का माहौल व्याप्त है।

मेरे पास नानाजी और माँ के पास नानीजी खड़ी होकर हमें अपने बच्चों की तरह पूरी तरह से सहयोग दे रहें हैं। हवन की पवित्र आग के सामने, हम माँ-बेटे पंडितजी के मंत्रों के उच्चारण के बीच एक-दूसरे को पहली बार सबके सामने नज़र उठाकर अपनी चारों आँखें एक करने लगे। मैं माँ को देख रहा था। वह अपनी नज़र धीरे-धीरे उठाकर फिर झुका रही थीं। मुझे मालूम था कि वह एक कुंवारी लड़की की तरह महसूस कर रही थीं। उनकी पलकें बार-बार ऊपर उठ रही थीं और फिर नीचे जाकर मेरी नज़र से मिलाने में शर्मा रही थीं, अपने माँ-पापा के सामने। पंडितजी के मंत्र चल रहे थे। पवित्र आग की आभा ने उनके गालों को और लाल कर दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र उठाकर मेरे साथ नज़र मिलाई। सभी लोग ताली बजाकर और ख़ुशी की आवाज़ से इस मुहूर्त को खास बना रहे थे।

माँ की नज़र में मेरे प्रति उनका प्यार, देखभाल, और खुद को मेरे पास सौंपने की चाहत सब कुछ झलक रहा था। उनके चेहरे पर आज जो भावनाओं का साया छाया हुआ था, वह केवल एक पत्नी के भावनाओं का होता है अपने पति के लिए। हम एक-दूसरे को देखकर अपनी आँखों की भाषा और ख़ामोशी की भाषा से कसम खा रहे थे, उस पवित्र अग्नि के सामने, कुछ ही पलों में। वह पल हमारे जीवन का सबसे अहम पल था।

पंडितजी ने वरमाला बदलने का निर्देश दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र झुका ली। मैंने अपनी माला धीरे-धीरे ऊपर उठाई, मेरा हाथ थोड़ा काँप रहा था। मैंने अपनी माला उनके सर के ऊपर, उनकी घूँघट के ऊपर से डालकर उनके गले में पहनाई।


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फिर मैंने अपना हाथ नीचे कर लिया। माँ ने भी अपने हाथ को ऊपर करके मेरे गले में माला डालने के लिए उठाया। चूंकि मैं माँ से ऊँचाई में था, उन्होंने अपने हाथ को बहुत ऊपर करके डालना पड़ा, इसलिए मैंने माँ को मदद करने के लिए अपना सिर थोड़ा झुका कर उनके हाथ के पास ले आया।

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फिर माँ ने धीरे-धीरे मेरे गले में माला डाल दी, अपनी नज़र झुका कर।

मुझे अब बस वही एहसास होने लगा, जो इस दुनिया की किसी भी भाषा से व्यक्त नहीं किया जा सकता। केवल वही समझ सकता है, जिसने इसे महसूस किया हो। मेरा मन माँ के प्रति प्यार से भर गया।
Mubarak ho bc shadi ho gayi bhale hi time laga updates regularly aata to or acha lagta
 

Esac

Maa ka diwana
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