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Incest "मांगलिक बहन " (Completed)

Tiger 786

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अजय ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। धीरे धीरे अपनी रफ्तार से चलती हुई गाड़ी गांव से बाहर निकल गई और सड़क पर आते ही एक तेज रफ्तार के साथ दौड़ पड़ी। गाड़ी में पूरी शांति थी, ऐसा लग रहा था मानो अजय और सौंदर्या दोनो गूंगे हो। दोनों एक दूसरे से बात करना चाह रहे थे लेकिन हिम्मत नही हो रही थी। आखिकार हिम्मत करके अजय ने चुप्पी तोड़ी और बोला:"

" दीदी आप किस टाइम तक फ्री हो जाएगी शाम को ?

सौंदर्या ने एक नजर अपने भाई पर डाली और भावहीन चेहरे के साथ बोली:"

" करीब 5 बज जाएंगे। आप उससे पहले ही अा जाना भाई।

अजय;" आप फिक्र मत कीजिए। मैं आपको बाहर ही मिल जाऊंगा जब आप आओगी।

सौंदर्या ने राहत की सांस ली और कार में एक बार फिर से खामोशी ने अपना डेरा डाल दिया। सौंदर्या ने अजय की तरफ देखा जो भावहीन चेहरे के साथ गाड़ी चला रहा था तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसे अपने भाई को थप्पड़ नहीं मारना चाहिए था। आखिर गलती उसकी भी तो हैं। थप्पड़ के बजाय उसे अपने भाई को प्यार से समझाना चाहिए था।

सौंदर्या का कॉलेज अा गया और उसने एक प्यार भरी नजर के साथ अपने भाई को देखा और अंदर चली गई। अजय उसे अंदर जाते हुए देखता रहा और थोड़ी देर बाद ही सौंदर्या आगे मुड़कर आंखो से ओझल हो गई।

अजय ने गाड़ी को शहर की तरफ घुमा दिया और उस जगह पहुंच गया जहां उसने शेरा और उसके गुण्डो को मारा था। उसने आस पास नजर दौड़ाई लेकिन उसे कुछ खास नजर नहीं आया।

पिंकी की लाश यहां से थोड़ी ही दूर मिली थी इसलिए अजय ने सोचा कि घटना स्थल पर एक बार जरूर जाया जाए। अजय ने अपनी कार आगे बढ़ाई और थोड़ी देर बाद वो उस जगह अा गया जहां से पिंकी की लाश मिली थी। चारो और लोगो की भीड़ सड़क से अा जा रही थी और अजय ने काफी देर तक इधर उधर देखा लेकिन उसे कुछ खास नहीं मिला तो उसने अपनी गाड़ी को वापिस लिया और घूमने ही वाला था कि उसे एक बाइक पर बैठे हुए व्यक्ति पर शक हुआ लेकिन अजय ने तुरंत अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा दिया मानो उसने देखा ही नहीं और गाड़ी को हल्की रफ्तार से आगे बढ़ा दिया। शीशे से उसने धीरे से देखा तो उसके दिमाग़ में हलचल मच गई क्योंकि बाइक भी उसकी तरफ अा रही थी। अजय ने जान बूझकर गाड़ी को सड़क पर बाई तरफ घुमा दिया तो थोड़ी दूर जाने पर बाइक भी उसी दिशा में घूम गई। अब अजय के दिमाग में शक की कोई बात ही नहीं रह गई थी और वो समझ गया था कि बाइक उसका पीछा कर रही है। लेकिन क्यों कर रही हैं और ये बाइक पर कौन आदमी हैं और उसके पीछे यहीं से क्यों लगा जहां पिंकी की हत्या हुई हैं।

कोई तो है जो मुझे ये नहीं जानने देना चाहता हूं कि पिंकी की मौत क्यों और किसने की जबकि मैं तो कोई पुलिस ऑफिसर भी नहीं हु। अजय ने अपने दिमाग पर जोर दिया तो उसे एक बात समझ अा गई कि उसकी दीदी पिंकी को बचाने के लिए ही तो गुण्डो से भिड़ गई थी तो कहीं अब पिंकी के बाद दीदी ही तो उनके निशाने पर नहीं है।

अजय के दिमाग में खतरे की घंटी बज उठी और उसने तुरंत गाड़ी को सौंदर्या के कॉलेज की तरफ दौड़ा दिया। गाड़ी हवा से बातें कर रही थी और थोड़ी देर बाद ही वो कॉलेज के सामने था।

कॉलेज के बाहर पहले से पुलिस की गाडियां देखकर उसके दिमाग को झटका सा लगा और वो तेजी से नीचे उतरा तो देखा कि कॉलेज के प्राचार्य बुरी तरह से डरे हुए थे और पुलिस उनसे पूछताछ कर रही थी।

ऑफिसर:" आपके स्कूल से दिन में ही एक महिला टीचर का किडनैप हो गया कैसे ? आपके पास तो अपने गार्ड है।

प्राचार्य: मेरे गार्ड बेहोश और जख्मी हालात में मिले हैं। ये तो आपको सोचना चाहिए कि शहर में पुलिस के होते हुए गुण्डो की हिम्मत इतनी कैसे बढ़ गई ?

अजय का दिल किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा और वो तेजी से आगे आया और एक महिला अध्यापक से पूछा :"

" क्या हुआ हैं यहां ? किसका किडनैप हो गया है ?

मैडम के चेहरे पर खौफ के मारे हवाइयां उड़ी हुई थी और वो डरते हुए बोली:"

" हमारे कॉलेज की एक टीचर सौंदर्या का।

अजय अपनी बहन का नाम सुनते ही परेशान हो गया क्योंकि वो जानता था कि उसकी बहन बहुत बड़े खतरे ने पड़ चुकी है। अजय ने तुरंत पीछे नजर दौड़ाई क्योंकि वो जानता था कि जो बाइक वाला उसका पीछा कर रहा हैं जरूर उसके है गैंग ने उसकी बहन का किडनैप किया है। लेकिन अजय को बाइक वाला दूर दूर तक कहीं नहीं दिखाई दिया।

अजय परेशान हो उठा और तेजी से गाड़ी से बाहर निकला और इधर उधर बाइक वाले को देखने लगा लेकिन उसे वो कहीं नजर नहीं आया। अजय को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ?

अजय तेजी से आते हुए अपनी गाड़ी में बैठा और गाड़ी सीधे रोड की तरफ दौड़ा दी और बाइक की तलाश में जुट गया।

एक बहुत ही वीरान सा खंडर था ये शहर से बाहर की तरफ। मुख्य सड़क से हटकर एक कच्छी मिट्टी की सड़क बस यहां आने के लिए एक मात्र रास्ता थी। बरसात की वजह से सड़क पर जगह जगह पानी भरा हुआ था और कीचड़ बहुत ज्यादा हो गई थी।

इसी सड़क पर एक स्कॉर्पियो मुड़ी और धीरे धीरे खंडर की तरफ बढ़ने लगी। स्कॉर्पियो के पीछे तीन गाडियां और थी जो गुण्डो से पूरी तरह से भरी हुई थी। शेरा ने गाड़ी को खंडर के ठीक सामने रोक दिया और उसके साथ ही सारे गुंडे गाड़ी से बाहर निकल गए।

शेरा ने गाड़ी की डिक्की खोली तो उसमे सौंदर्या बेहोश पड़ी हुई थी। शेरा की आंखों चमक उठी और उसने सौंदर्या के अचेत जिस्म को कंधे पर उठाया और अंदर की तरफ चल पड़ा। एक एक करके सभी गाड़ियों से गुंडे उतर गए थे गाड़ियों को घास और लकड़ियों से ढक दिया गया। अब दूर दूर से गाड़ी नजर नहीं अा रही थी बल्कि घास का एक ढेर नजर आ रहा था।

शेरा सौंदर्या को लिए हुए एक अंदर घुस गया और शेरा को देखते ही सामने बैठे हुए मनोज की आंखे चमक उठी।

मनोज अपनी कुर्सी से उठ गया और एक विजयी मुस्कान के साथ बोला:" शाबाश मेरे शेर, तुम सचमुच शेर हो। मानना पड़ेगा तुम्हारी हिम्मत को क्योंकि आज तुमने जो किया हैं उसके लिए सचमुच शेर का ही दिल चाहिए।


शेरा ने सौंदर्या को एक चारपाई पर पलट दिया और स्माइल करते हुए बोला:" डरता नहीं हूं इसलिए ही तो मेरा नाम शेरा हैं। लीजिए जिसकी आपको तलाश थी आपके सामने पड़ी है।

मनोज ने एक नजर सौंदर्या की तरफ देखा और शेरा के कंधे पर हाथ रखकर उसे शबासी दी और बोला:"

" शेरा मुझे अपने बाद पर सिर्फ तुम पर ही तो सबसे ज्यादा भरोसा है। सच में तुम एक सच्चे वफादार हो।

शेरा अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गया और उसके बाद मनोज ने सभी को बाहर जाने का इशारा किया तो एक के बाद एक सभी लोग बाहर चले गए। शेरा भी बाहर चला गया जबकि मनोज ने उसे जाने के लिए नहीं बोला था।

मनोज ने सौंदर्या में मुंह में ठूंसा हुआ कपड़ा बाहर निकल लिया और एक बॉटल से थोड़ा सा पानी लेकर सौंदर्या में मुंह पर छिड़क दिया तो सौंदर्या ने एक झटके के साथ अपनी आंख खोल दी और अपने आप को एक बिल्कुल अंजना जगह पर पाया।उसकी नजर अपने सामने बैठे हुए मनोज पर पड़ी तो उसकी समझ में आ गया कि ये सब उसी का किया धरा है।

सौंदर्या:" मनोज ये क्या बदतमीजी हैं ? मुझे इस तरह क्यों उठा कर लाया गया ?

इतना कहकर सौंदर्या उठ खड़ी हुई और गुस्से से उसकी तरफ देखने लगी। मनोज ने उसकी तरफ एक स्माइल दी और बोला:_

" मेरी प्यारी सौंदर्या तुमने और तुम्हारे भाई ने मेरी इज्जत मिट्टी में मिला दी, मेरे गुण्डो पर पहली बार किसी ने हाथ उठाया और उन्हें बुरी तरह से मारा अजय ने सिर्फ तुम्हारी वजह से।

सौंदर्या के चेहरे पर गुस्से के भाव बढ़ गए और बोली:" अच्छा तो तुम गांव में शरीफ होने का नाटक करते हो और ये शहर में फैले हुए सारे अपराध की असली वजह तुम हो।

मनोज:" सही समझी तुम सेक्सी सौंदर्या, मेरे आदमी ही सब कुछ करते हैं और पिंकी की मौत भी मेरी वजह से ही हुई हैं क्योंकि उसने मेरी बहन के खिलाफ जाने की कोशिश करी थी।

सौंदर्या की आंखे लाल सुर्ख हो गई और वो गुस्से से अपने शब्दो को चबाते हुए बोली:"

" बस मनोज, अब तुम्हारे पापो का घड़ा भर गया हैं और मैं सारी दुनिया को तुम्हारी करतूत बताउंगी।

मनोज ने उसकी तरफ देखा और जोर जोर से हंसने लगा मानो वो कोई जोक सुना रही हो।

सौंदर्या:" हंस लो अपनी आखिरी हंसी तुम क्योंकि फिर इसके बाद कोई तुम्हे जेल में रोना पड़ेगा।

मनोज:' मर गए मुझे जेल भेजने वाले, जरा पहले यहां से निकल कर तो दिखाओ तुम।

सौंदर्या तेजी से आगे की तरफ बढ़ी और मनोज ने सामने लगे स्विच को दबा दिया तो कमरे का एक मात्र दरवाजा तेजी से बंद हो गया और सौंदर्या के माथे पर परेशानी और डर को रेखाएं उमड़ अाई।

सौंदर्या:" देखो मनोज तुम मुझे जाने दो नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा तुम्हारा।

मनोज थोड़ा सा आगे आया और उसकी आंखो में देखते हुए बोला:" मेरे अंजाम की छोड़, अपनी फिक्र करो। दुनिया की कोई ताकत मेरी मर्जी के बिना ये दरवाजा नहीं खोल सकती। मान लो तुम बाहर चली भी गई तो मेरे आदमी भूखे कुत्तों की तरह तुम्हे नोच डालेंगे। ये देखो।

इतना कहकर उसने टीवी ऑन किया तो बाहर खड़े और बेहद डरावनी सूरत के गुंडे नजर आए जिन्हे देखते ही सौंदर्या का पसीना टपक पड़ा।

मनोज:" मान लो तुम गुण्डो से भी बच गई तो यहां से बाहर कैसे निकल पाओगी ? ये एक घणा जंगल हैं और तुम्हे कोई दूर रास्ता नजर नहीं आएगा। बाहर तुम्हे जंगली जानवर खा जाएंगे।


सौंदर्या समझ गई थी कि वो बेहद बुरी तरह से फंस गई है और उसका बचना मुश्किल है लेकिन उसे अपने भाई पर पूरा भरोसा था कि वो उसे जरूर बचा लेगा।
सौंदर्या सोच में डूब गई।

मनोज" किस सोच में डूब गई मेरी जान ? देखो तुम्हे अब सारी ज़िन्दगी यहीं रहना होगा मेरी रखैल बन कर, कहां तो तुम एक लंड के लिए तरस रही थी यहां अब तुम्हे हर रोज लंड मिलेंगे, एक नहीं काफी सारे। मेरे सारे आदमी तुम्हारी साथ बारी बारी से मस्ती करेंगे।

सौंदर्या मनोज की बात पूरी होते ही बेहोश हो गई और मनोज ने उसके उसे उठा कर बेड पर पटक कर और कमरे को बाहर से बंद करने के बाद बाहर अा गया और अपने गुण्डो से बात करने लगा।


अजय को समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी बहन को कहां तलाश करे। दोपहर हो गई थी लेकिन उसे अभी तक कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

अजय ने गाड़ी को सड़क के किनारे रोक दिया और सोच में डूब गया कि आखिर उसकी दीदी का किडनैप क्यों और किसने किया तो उसके आगे सिर्फ एक ही वजह उभरी। वहीं पिंकी वाली और वो समझ गया कि ये दोनो काम जरूर एक ही आदमी के है।


अजय ने अपने दिमाग को उधर इधर दौड़ाया तो उसे एक उम्मीद की किरण नजर आईं। उसे सामने सड़क पर सीसीटीवी कैमर लगा नजर अाया जिसमे वो उस बाइक का नंबर पता कर सकता था जो उसका पीछा कर रही थी।

अजय ने सावधानी से उसकी डिटेल निकाली तो बाइक सवार उसे जाना पहचाना सा लगा मानो अजय उसे बहुत अच्छे से जानता हो। अजय ने बाइक का नंबर नोट किया और बार बार वो उस आदमी की फोटो देखने लगा जो बाइक पर बैठा हुआ था।

अजय ने उस आदमी की पेंट की जेब पर ध्यान दिया तो उसकी जेब से कुछ बाहर की तरफ निकला हुआ था। अजय ने वीडियो को स्टार्ट किया तो थोड़ा आगे जाकर मोड़ पर उसकी जेब से कुछ गिरा और अजय ने बिना देर किए कार को उस दिशा में दौड़ा दिया और जल्दी ही वो उस जगह पहुंच गया और उसे सड़क पर अपना अज्जु भाई का मास्क दिखाई दिया।

अजय को आंखे चमक उठी और उसने वो मास्क उठा लिया और वो समझ गया कि ये सब इस मास्क की वजह से हुआ है क्योंकि गुण्डो को पता चल गया होगा कि मैंने ही उनके लोगो को मारा था इसलिए उन्होंने मेरी बहन को उठा लिया। अजय एक बात तो साफ समझ गया था कि उसकी दीदी बहुत बड़े खतरे में पड़ गई है।

अजय ने बहुत ध्यान से फिर से वीडियो को देखा और उस आदमी के बारे में सोचने लगा कि ये कौन हो सकता हैं। अजय अपनी सोच में डूबा हुआ था कि उसका फोन बज उठा ।

उसकी मम्मी का फोन था। अजय अपनी मम्मी को अभी कुछ भी बताकर उन्हें परेशान नहीं करना चाहता था।

कमला: अरे बेटा, अजय शाम को थोड़ा जल्दी अा जाना, रामू आज काम पर नहीं आया है इसलिए घास तुम्हे ही लाना होगा। आज फिर से शहर गया है वो किसी काम से।

अजय:" ठीक है मम्मी। आप फिक्र मत कीजिए। मैं जल्दी अा जाऊंगा।

इतना कहकर उसने फोन काट दिया। अचानक अजय के दिमाग में एक विस्फोट सा हुआ और उसने फिर से वीडियो देखी तो उसकी आंख हैरत से खुलती चली गई और उसे सारी कहानी समझ में आ गई।


शाम हो गई थी और अजय ने गांव से थोड़ी दूर ही अपनी कार को एक पेड़ की साइड में छुपा है और खुद एक पेड़ के पीछे छुपकर किसी का इंतजार करने लगा। थोड़ी ही देर हुई थी कि एक बाइक उसे सामने से आती हुई नजर आईं और जैसे ही बाइक उसके पास आई उसने जंप लगा दी और बाइक सवार सड़क पर गिर पड़ा और अजय ने उसे बिना कोई मौका दिए हुए उस पर हमला कर दिया।

रामू तड़प उठा। हान ये रामू ही तो था। उसके घर का नौकर। अजय ने उसे पकड़ लिया और उसकी गर्दन की एक नस दबाई तो तो वो बेहोश होता चला गया।
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सौंदर्या ने आंखे खोली तो उसे कमरे में कोई नहीं दिखा। वो बैठ गई और अपने मोबाइल की तरफ देखा तो उसमें नेटवर्क ही नहीं थे।

उसे समझ में नहीं अा रहा था कि वो क्या करे, कमरे में कोई खिड़की तक नहीं थी। वो उदास होकर बैठ गई और बचने के बारे में उपाय सोचने लगी।

तभी एक झटके के साथ दरवाजा खुल गया और मनोज के साथ शेरा भी अंदर दाखिल हुआ। उनके मुंह से दारू की तेज बदबू अा रही थी और नशे के कारण दोनो की आंखे लाल सुर्ख हो गई थी। दोनो सौंदर्या को घूर रहे थे जिससे सौंदर्या बुरी तरह से डर गई थी।

मनोज:" शेरा यार पहले मैं इसे आज कली से फूल बनाता हूं और बाद में तुम इसका मजा लेना।


शेरा: ठीक है , जैसे आपको ठीक लगे, लेकिन मैं आराम से नहीं बैठ कर नहीं देख सकता, कुछ ना कुछ तो मैं भी इसके साथ करता रहूंगा।

शेरा ने सौंदर्या की चूचियों को घूरते हुए कहा तो सौंदर्या के चेहरे पर डर उमड़ आया और उसकी आंखो से आंसू टपक पड़े।

मनोज:" क्या यार ये तो पहले ही डर गई है। ऐसे कैसे काम चलेगा सौंदर्या मेरी जान। अब तो तुम्हे आखिरी सांस तक यहीं रहकर चुदना होगा।

इतना कहकर मनोज हंस पड़ा तो शेरा भी हंसने लगा। दोनो को जानवर की तरह हंसते देख कर सौंदर्या की रुलाई छूट गई और वो जोर जोर से रोते हुए बोली:

" मनोज मुझे छोड़ दो, मेरे साथ ये सब मत करो, मेरी ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी। मैं तो पहले से ही मांगलिक हूं।

मनोज:" अरे मेरी जान, बर्बाद नहीं तेरी ज़िन्दगी आबाद कर रहा हूं। लंड मिल जाएगा तुझे आज जिसके लिए तू तड़प रही है।

सौंदर्या:" नहीं, मुझे नहीं चाहिए कुछ भी, भगवान के लिए मुझे छोड़ दो। तरस खाओ मुझ पर तुम भाई।

मनोज ने उसकी एक नहीं सुनी और टीवी को शुरू कर दिया और एक एडल्ट फिल्म शुरू कर दी और बोला:*

" मेरे सामने तुम्हे शर्म आएगी और तुम देख नहीं पाओगे, नहीं देखोगी तो गर्म कैसे होगी तुम, मैं थोड़ी देर बाद अंदर आऊंगा जब तक तुम्हारी चूत भीग गई होगी मेरी जान।

इतना कहकर मनोज बाहर चला गया और उसके पीछे पीछे ही शेरा भी अा गया जबकि सौंदर्या पीछे टीवी बंद करने के लिए बोलती रह गई। सौंदर्या डर गई थी और उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। आखिरकार उसका ध्यान अपने आप ही टीवी पर चला गया जिसमें एक लड़का अपनी भाभी पर लाइन मार रहा था और भाभी भी उसे खुलकर भाव दे रही थी ।


वहीं अजय ने रामू से सब कुछ मालूम किया तो पता चला कि कल रामू को कपडे धोते समय अज्जू भाई का मास्क मिल गया था जिससे उसे पता चल गया कि अजय ही अज्जु भाई है। इतना सब कुछ जान लेने के बाद उसकी गाड़ी तेजी से दौड़ती हुई खंडर की तरफ चल पड़ी। कच्चे रास्ते पर आते ही उसने गाड़ी को बंद कर दिया और उसे सामने खंडर नजर आया तो रामू को गाड़ी से बाहर निकाला और उसकी कमर के ठीक पीछे एक बंदूक लगाई और सड़क पर चल पड़ा। रामू किसी यंत्र चालित मशीन की तरह उसके इशारे पर चलता रहा क्योंकि वो जानता था कि अगर उसने कुछ भी होशियारी दिखाई तो अजय गोली चला देगा।

अजय को आगे मुड़कर सिर्फ पेड़ो का एक झुंड ही नजर आया और वो समझ गया कि ये ही मनोज और उसके गुण्डो का अड्डा हो सकता है। अजय ने धीरे धीरे सावधानी पूर्वक अपने कदम आगे बढ़ाए और वो जल्दी ही उसे एक सूखा हुआ पेड़ नजर आया जिसके पीछे अंदर खंडर में जाने का रास्ता था।

मनोज ने साइड में लगा बटन दबा दिया और आगे एक दरवाजा नजर आया और देखते ही देखते दरवाजे के हॉल से दो काली आंखे नजर अाई और उन्होंने मनोज को पहचान कर दरवाजा खोल दिया क्योंकि मनोज के बराबर में खड़ा हुआ अजय उन्हें नजर नहीं आया था।

दरवाजे के खुलते ही मनोज एक झटके के साथ अंदर गिरा और अजय तेजी से अपने घुटनों के बल झुका और गार्ड के कुछ समझने से पहले ही अजय की उंगली हिली और अगले ही पल गार्ड की लाश फर्श पर पड़ी नजर आईं।

अजय अंदर घुस गया और उसने बिना देर किए मनोज को गर्दन से पकड़ा और उंगली से उसकी नस दबाई तो मनोज बेहोश होता चला गया। अजय ने गार्ड के कपडे पहने और मनोज को को एक कोने में फेंक दिया और अन्दर बढ़ गया।

अजय को आश्चर्य हो रहा था क्योंकि अंदर सिर्फ टूटी फूटी दीवारें ही थी और उसे अभी तक कोई नजर नहीं आया था। उसके गांव के पास के जंगल में ऐसा खुफिया अड्डा भी हो सकता है उसने सपने में भी नहीं सोचा था। अजय को तभी कुछ आवाजे सुनाई दी तो वो दीवार के पीछे छुप गया और सामने से उसे एक गार्ड आता दिखाई दिया जो शायद सुरक्षा का जायजा लेने आया था।

अजय ने उस पर चीते की फुर्ती से वार किया और देखते ही देखते उसकी लाश पड़ी हुई नजर आईं। अजय उसी दिशा में बढ़ गया जिधर से वो गार्ड अाया था। अजय ने देखा कि गार्ड के गले में चाबियो का एक छल्ला लटका हुआ था जिसमें कुछ चाबिया थी अजय ने वो लिया और आगे बढ़ गया। अजय थोड़ा आगे पहुंचा तो एक दरवाजा नजर आया जिस पर ताला लगा हुआ था। अजय ने ताली लगाई और देखते ही देखते दरवाजा खुल गया और उसे नीचे की तरफ सीढ़ियां जाती हुई नजर आईं और और अजय बिना एक पल की भी देरी किए हुए नीचे उतरता चला गया। अजय की आंखे हैरानी से खुली रह गई। अंदर एक बहुत ही खूबसूरत महल जैसा बना हुआ था और उसे उपर खुला आसमान नजर आया। अजय को अपनी आंखो पर यकीन करना मुश्किल हो रहा था जो वो देख रहा है क्या हकीकत है।

अजय ने सपने में भी नहीं सोचा था कि बेजान सी पड़ी हुई खंडहर इमारत के अन्दर इतना शानदार अड्डा भी हो सकता है।

अजय सावधानीपूर्वक आगे बढ़ गया और धीरे धीरे इमारत के पीछे की तरफ अा गया और पाइप के सहारे उपर चढ़ गया और देखा कि एक गुंडा छत पर बैठा हुआ दारू पी रहा था तो अजय ने उस पहरा दे रहे गुंडे पर घात लगाकर हमला किया और उसकी गर्दन तोड़ दी। बेचारा गुंडा इससे पहले की कुछ समझ आता उसकी ज़िन्दगी खत्म हो गई। अजय ने उसकी लाश को एक तरफ किया और सीढ़ियों से होता हुआ नीचे की तरफ चल पड़ा।

वहीं मनोज और शेरा दोनो दारू के पैग लगा रहे थे और उनके पास की करीब चार से पांच गुंडे और बैठे हुए थे जो शायद इस इन्तजार में थे कि कब ये दोनो सौंदर्या पर को लूटे और उसके बाद हमारा नंबर आए।

मनोज;" क्या बोलते हो शेरा ? अब तक तो बेचारी वीडियो देख देख कर गर्मा गई होगी।

शेरा के होंठो पर मुस्कान थिरक उठी और बोला:" बिल्कुल साहब, काफी देर हो गई और वो तो होगी भी कुंवारी ही क्योंकि संस्कारी जो ठहरी। लेकिन अभी गर्म हो गई होगी, थोड़ी देर शुरू में आना कानी करेगी लेकिन इसके बाद खुद ही मस्ती करेगी।

इतना कहकर वो हंस पड़ा तो सारे लोग जोर जोर से हंसने लगे और मनोज उठकर अंदर की तरफ चल पड़ा।

अंदर सौंदर्या वीडियो को देखकर अपनी आंखे बंद कर ली थी लेकिन टीवी से आती कामुक सिसकियां उसके ना चाहते हुए भी उसके जिस्म पर अपना असर छोड़ रही थी। सौंदर्या के चेहरे का रंग बदलता जा रहा था और आंखों में लाली अा गई थी। सौंदर्या अंदर ही अंदर बुरी तरह से कांप रही थी कि अब उसका क्या होगा? लेकिन उसे अभी भी अपने बचने की एक उम्मीद नजर आ रही थी और वो था उसका अपना भाई अजय।

रोशनी मनोज की बहन इस वक़्त वहीं इमारत में एक आलीशान कमरे के अंदर मात्र पेंटी ब्रा में सोई हुई थी और उसकी आंखे खुली तो उसने अपने सामने रखी हुई दारू की बोतल को उठाया और गटागट पीने लगी। उसने जोर से आवाज लगाई तो एक गुंडा तेजी से अंदर अाया और उसकी नजर रोशनी के बूब्स पर चली गई लेकिन फिर नजरे चुरा कर बोला:"

" अच्छा हुआ मैडम आप उठ गई, आपके लिए एक खुशखबरी हैं।

रोशनी उसे घूरते हुए बोली;" साले, मेरे आंखे फाड़ फाड़ कर क्या देख रहा है

वो कांप उठा और बोला:" मैडम कुछ नहीं, मुझे माफ़ कर दीजिए। वो सौंदर्या पकड़ी गई और अंदर कमरे में बंद हैं।

रोशनी के होंठो पर स्माइल अा गई और उसने उस गुंडे को इशारे से अपने पास आने का इशारा किया तो वो डरते डरते उसके पास पहुंच गया और नजरे झुका कर खड़ा हो गया। रोशनी ये सब देखकर स्माइल करते हुए बोली:"

" थोड़ी देर पहले तो मुझे घूर रहा था तू और अब क्या हिजड़े की तरह नजरे झुकाए खड़ा हुआ है।

गुंडा उसके कदमों पर गिर पड़ा और रोते हुए बोला:"

" मुझे माफ कर दीजिए। अनजाने में मेरा ध्यान चला गया, आगे से ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी।

रोशनी ने एक अदा के साथ अपने हाथ को पीछे ले जाते हुए अपने ब्रा को खोल दिया और उस ब्रा को उसने गुंडे के गले में फंसा कर उसे उपर उठाया और बोली:

" ले देख ले मेरी चूचियों को, तेरे लिए मेरी तरफ से आज का तोहफा, तूने दिल खुश कर दिया सौंदर्या के बारे में बताकर।

गुंडे ने शर्म से मारे अपने आंखे बंद कर ली तो रोशनी ने उसके हाथ पकड़ लिए अपने बूब्स पर रख दिए तो गुंडा डर और घबराहट के मारे बेहोश हो गया। रोशनी उसकी हालत पर जोर जोर से हंसने लगी और बाथरूम में नहाने के लिए घुस गई।

मनोज जैसे ही कमरे के अंदर घुसा तो डर के मारे सौंदर्या की आंखे खुल गई और उसने मनोज को अपने सामने देखा तो डर के मारे उसकी सांसे तेज हो गई। मनोज ने उसकी तरफ एक बार ध्यान से देखा और उसकी तेजी से चलती हुई सांसे, बड़ी बड़ी लाल हो चुकी आंखे देखकर समझ गया था कि सौंदर्या अब मस्ती में अा गई है।

मनोज: सौंदर्या आखिरकार आज तुम मेरे नीचे अा ही जाओगी। कितना तड़पा हुआ तुम्हारे किए।

सौंदर्या: नहीं मनोज, देखो ऐसा कुछ मत करना, मुझे जाने दो। नहीं तो तुम्हारा अंजाम बहुत बुरा होगा,अजय तुम्हे छोड़ेगा नहीं।

मनोज:" मेरा छोड़ और अपनी फिक्र कर मेरी जान, आज तुझे कली से फूल बना दूंगा। मसल दूंगा तेरी जवानी को। देख तेरी ये मदमस्त चूचियां कैसे तड़प तड़प कर उछल उछल पड़ रही है। हाय दिखा दे ना अपनी ये ज़ालिम चूचियां मुझे।

सौंदर्या अंदर से दर गई थी लेकिन हिम्मत करते हुए बोली:"

" कमीने तुझे शर्म नहीं आती। ऐसी बाते अपनी बहन से करता तो तुझे पता चलता।

तभी साइड से एक कमरे का गेट खुला और रोशनी एक काले रंग की छोटी ड्रेस पहने हुए हाथ में सिगरेट के कश लगाती हुई कमरे के अंदर दाखिल हुई और बोली:"

" करी थी मेरी जान सबसे पहले मुझसे मुझसे ही करी थी और मैंने अपनी अपनी चूचियों को दिखा दिया था क्योंकि अगर अपने सगे भाई को नहीं दिखाऊंगी तो और किसे दिखाऊंगी।

इतना कहकर उसने अपनी ड्रेस को उपर उठा दिया और उसकी दोनो चूचिया पूरी तरह से नंगी होकर लहरा उठी।

सौंदर्या की आंखे खुली की खुली रह गई। उफ्फ कमीनी ने कैसे अपने भाई के आगे अपनी चूचियों को नंगा कर दिया।


मनोज:" मिल गया तुझे जवाब, चल अब जल्दी से दिखा दे मुझे अपने है मस्ती भरे अमृत कलश।

सौंदर्या को काटो तो खून नहीं, उसकी समझ में नहीं अा रहा था कि वो क्या करे। तभी रोशनी थोड़ा आगे हुई और बोली:"

" ओह भाई मेरी चूचियां देख ले ना फिर से, इससे जरा भी कम नहीं है। और चूचियां छोड़ तुझे अपनी चूत ही दिखा देती हूं।

इतना कहकर वो एक कुर्सी पर बैठ गई और अपनी दोनो टांगो को खोलते हुए मनोज के सिर को अपनी टांगो के घुसा दिया।

मनोज के होठ अपने आप उसकी चूत पर जा लगे और रोशनी के मुंह से एक मस्ती भरी आह निकल पड़ी।



download-20210811-231513मनोज ने अपने जीभ को उसकी चूत के होंठो पर घुमाया तो रोशनी मस्ती से सिसक उठी

" भाई उफ्फ चूस ना मेरी चूत को ऐसे ही, फिर तुझे आज सौंदर्या की चूत भी मिलेगी।

सौंदर्या के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी और वो बिना पलके झपकाए रोशनी के मुंह को देख रही थी जिसकी दोनो आंखें इस समय मस्ती से बंद थी।

वहीं दूसरी तरफ अजय सीढ़ियों से नीचे उतरा और उसने बाहर बैठे दोनो गुण्डो को मौत के घाट उतार दिया। तभी अंदर से दारू लेने के एक गुंडा बाहर की तरफ निकला और वो भी मौत को प्यारा हो गया।

मनोज ने धीरे से अन्दर झांका तो उसे शेरा और उसके साथ दो आदमी दिखाई दिए। शेरा इस वक़्त नशे में चूर था और दोनो गुण्डो बैठ कर दारू पी रहे थे। अजय ने सावधानी से आगे बढ़ा और उसने अपनी जेब से एक तेज धार वाला चाकू निकाला और बिना समय गंवाए हमला किया तो एक गुंडे की गर्दन फर्श पर पड़ी हुई थी वहीं दूसरा फुर्ती से उठा लेकिन अजय ने उससे कहीं ज्यादा फुर्ती से उसकी गर्दन को काट दिया और उसकी दर्द भरी आह सुनकर शेरा की आंखे खुल गई और उसने अजय पर हमला किया लेकिन अजय तेजी से झुकते हुए उसके वार को बचा गया और उल्टा होते हुए शेरा को जमीन पर गिरा दिया और उसके मुंह पर हाथ रखते हुए उसके टट्टे पर जोरदार लात जड़ दी तो शेरा दर्द के मारे बेहोश हो गया और अजय ने अगले ही पल उसकी गर्दन तोड़ दी।

अजय ने अब जैसे ही दरवाजे को खोला तो उसे उसकी आंखे खुली की खुली रह गई। नशे में धुत मनोज अपनी सगी बहन की चूत चाट रहा था और सौंदर्या दोनो को बड़ी उत्सुकता के साथ देख रही थी। सौंदर्या की नजर जैसे ही अपने भाई पर पड़ी तो उसकी जान में जान अा गई और उसने एक जोरदार धक्का कुर्सी पर बैठी हुई रोशनी को दिया और रोशनी के साथ साथ उसकी टांगो के बीच में फंसा हुआ मनोज भी फर्श पर गिर पड़ा और दोनो के मुंह से दर्द भरी आह निकल पड़ी।

दोनो ने उपर की तरफ देखा तो सौंदर्या के साथ अजय खड़ा नजर आया। मनोज को अपनी आंखो पर जैसे यकीन ही नहीं हुआ और उसने जोर जोर से अपने गुण्डो को आवाज लगाई लेकिन कोई अंदर नहीं आने वाला था।

अजय:" तेरे सारे लोगों को मैनें जहन्नुम में भेज दिया और अब तुम्हारी बारी है ।

मनोज खड़ा हुआ और उसने अजय अपने हमला किया तो अजय ने उसके हाथ को पकड़ लिया और उठकर दीवार पर पटक दिया तो उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई और उसके मुंह से दर्द भरी चींखें निकल पड़ी।

रोशनी ने अपने भाई की ये हालत देखकर अजय पर छलांग लगा दी लेकिन फुर्तीला अजय सामने से हट गया और रोशनी का सिर सीधे दीवार से जा टकराया और फट गया तो रोशनी का जिस्म एक झटके के साथ अजय के उपर गिरा और अजय फिर से दर्द से कराह उठा क्योंकि रोशनी के गिरने से उसकी पसलियां टूट गई थी। अजय आगे बढ़ते हुए उसके पास बैठ गया और बोला:"

" हरामजादे मेरी बहन पर नजर उठाने से पहले तुझे सोचना चाहिए था कि सौंदर्या मेरी इकलौती बहन है और मेरी जान है कुत्ते वो।

अजय ने इतना कहकर उसकी गर्दन को पकड़ा और तोड़ दिया। बेचारा ठीक से चींखें भी नहीं सका।

सौंदर्या दौड़ती हुई अपने भाई के गले लग गई और जल्दी ही दोनो भाई बहन वहां से निकल पड़े। प्लान के मुताबिक सौंदर्या सीधे पुलिस स्टेशन गई और बताया कि दारू पीकर सभी लोग आपस में लड़ पड़े और मौका उठाकर वो भाग अाई।


पुलिस ने अड्डे पर हमला किया लेकिन वहां सिर्फ लाशे बरामद हुई और बहुत सारे हथियार।

सौंदर्या अपने भाई के साथ घर अा गई और उसकी मा ने उसे देखते ही गले से लगा लिया।
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रात में करीब आठ बजे सौंदर्या अपने भाई के साथ घर पहुंच गई और उन्हें देखते ही कमला की जान में जान अाई और रोती हुई भगाकर सौंदर्या से लिपट गई।

सौंदर्या ने भी अपनी मा को अपनी बांहों में भर लिया और उससे चिपक गई। घर में आस पड़ोस के लोगो की भीड़ इकट्ठा हो गई थी जो कमला को सांत्वना देने और उसका दुख दर्द बांटने आए थे। सभी लोग अजय से वहां क्या हुआ पूछ रहे थे और अजय उन्हें वहीं सब बता रहा था जो वो अपने प्लान के तहत पहले ही पुलिस को बता चुका था।

सीमा के पापा:" ओह बेटा ये तो बहुत अच्छा हूं कि अपनी समझदारी से अच्छा मौका देखकर सौंदर्या अपनी जान बचा कर भाग अाई और उस कमीने मनोज का पर्दाफाश कर दिया।

राम बाबू ( सरपंच)= मनोज ने अपने गंदे कामो से गांव का नाम बदनाम किया वहीं सौंदर्या ने ना सिर्फ अपनी जान बचाई बल्कि उसके काले कारनामों का पर्दाफाश करके गांव का नाम भी खराब होने से बचा लिया। सौंदर्या जैसे बेटी भगवान सबको दे। ये सिर्फ कमला बहन की ही नहीं बल्कि पूरे गांव की बेटी है।

सौंदर्या अपनी मा से लिपटी हुई चुपचाप अपने भाई की बाते सुन रही थी और तभी अजय बोल पड़ा:"

" सच में मेरी दीदी ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए उनकी सूचना पुलिस को दी और गांव का नाम रोशन किया है। नारी शक्ति के लिए एक नई मिशाल हैं मेरी दीदी सौंदर्या।

सारा गांव मिलकर सौंदर्या की जय जयकार कर रहा था और सौंदर्या अपनी मा से लिपटी हुई प्यार और इज्जत भरी नजरो से अपने भाई को देख रही थी कि वो कितना महान हैं। सब गुण्डो को उसने मारा और लोगो की नजरो में मुझे ऊंचा कर दिया। सच में मेरा भाई लाखो में एक हैं, हीरा हैं बिल्कुल हीरा।

थोड़ी देर के बाद जय जयकार करके गांव के सभी लोग अपने घर चले गए और सौंदर्या ने अपनी मम्मी को सारी सच्चाई बता दी तो उसने खुशी और गर्व से अपने बेटे की तरफ देखा और स्माइल करते हुए अपने बेटे की बलाएं लेते हुए अपने पास आने का इशारा किया



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कमला:" शाबाश बेटा। आज तूने मेरे दूध का हक अदा कर दिया। भगवान करे तेरी ताकत को कभी नजर ना लगे। बेटा हो तो मेरे बेटे जैसा। आज से तुम्हे पूरी आजादी हैं चाहे जिम करो या फाइट।

कमला ने आगे बढ़कर अपने बेटा का माथा चूम लिया। सौंदर्या मंद मंद खड़ी हुई स्माइल कर रही थी और कमला बार बार अपने बेटे के माथे को चूम रही थी।

कमला:" सच में तू ही अपनी बहन की इज्जत की मान मर्यादा और इज्जत का रखवाला है। अरे मैं तो भूल ही गई रुक तेरी नज़र उतार देती हूं।

इतना कहकर कमला अंदर चली और जल्दी ही हाथ में एक थाली लिए अाई और खुशी के मारे उसकी आंखो से आंसू टपक रहे थे। उसने अजय के सामने खड़ी होकर उसकी आरती( नजर) उतारनी शुरू कर दी।



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कमला अपनी आंखो में खुशी के आंसू और चेहरे पर मुस्कान लिए अपने बेटे की आरती उतार रही थी और अजय बहुत ही प्यार और इज्जत भरी नजरो से अपनी मा को खामोशी से देख रहा था जिसकी आंखो से आंसू निकलकर उसके गालों को भिगो रहे थे। कमला के ठीक पीछे खड़ी हुई सौंदर्या ये सब देख कर खुशी से फूली नहीं समा रही थी क्योंकि वो जानती थी कि उसके भाई को उसके किए का असली सम्मान और प्यार अब मिल रहा है। कानूनी प्रक्रिया के चलते वो चाह कर भी सबके सामने सच नहीं बोल सकती थी लेकिन घर में अपनी मा को बताकर उसने अपने दिल का बोझ हल्का कर लिया था।

अजय ने अपनी जेब से रुमाल निकाला और अपनी मा की आंखो से आंसू साफ करने लगा और बोला:"

" बस मम्मी हो गई मेरी आरती। सच कहूं मम्मी आपका ये ही प्यार तो अद्भुत हैं।

कमला ने थाली एक तरफ रखी और अजय से गले लग गई। उसके आंसू अब पूरी तरह से रुक गए थे। थोड़ी देर के बाद कमला ने थोड़ा सा खाना बनाया और सभी ने साथ ने मिलकर खाना खाया।

खाना खाने के बाद सभी लोग नीचे ही हॉल में बैठ गए और बात होने लगी।

कमला:" बेटा आज तूने सच में कमाल किया है। तेरे पापा जिंदा होते तो सच में आज वो बहुत खुश होते ।

अजय:" मम्मी कमाल वामाल कुछ नहीं किया। बस अपनी दीदी की रक्षा करी जो कि मेरा फ़र्ज़ है।

कमला:" लेकिन बेटा आजकल लोग अपना फ़र्ज़ भी कहां पूरा करते हैं। मैंने जरूर पिछले जन्म में कुछ पुण्य किए होंगे जो तुझ जैसा लायक बेटा मिला।

सौंदर्या:" हान मम्मी ये बात आपने बिल्कुल ठीक कही। ऐसे भाई आजकल किस्मत से ही मिलते हैं बस।

कमला:" अच्छा अजय अब हमे जल्दी से जल्दी सौंदर्या के हाथ पीले कर देने चाहिए। कल आचार्य तुलसी प्रसाद जी भी अा रहे हैं गांव में ही। क्यों ना हमे उनसे मिलकर इसकी कुंडली के निवारण का कोई उपाय देखना चाहिए।

सौंदर्या अपनी शादी की बात सुनकर शर्मा गई और अपने गुलाबी गाल लिए वहां से उठकर उपर चली गई। अजय और कमला दोनो ये देखकर हंस पड़े और अजय बोला:"

" हान मम्मी, मैंने उनके बारे में सुना है कि वो बहुत ही अच्छे और सिद्ध पुरुष हैं। इसलिए मुझे भी पूरी उम्मीद है कि वो जरूर कोई ना कोई उपाय बता देंगे।

कमला ने गर्दन हिला कर अपने बेटे की बातो को समर्थन दिया और बोली:"

" हान बेटा। अच्छा अब एक काम करो तुम भी जाओ और जाकर आराम कर लो। थक गए होंगे दोनो आज बहुत। ऊपर से मौसम भी खराब हैं।

अजय:" ठीक है मम्मी। आप सौंदर्या दीदी की शादी की चिंता मत कीजिए। मैं अपने आप अब सब संभाल लूंगा , मैं चलता हूं आप भी आराम कर लीजिए।

इतना कहकर अजय खड़ा हो गया और उपर की तरफ चल पड़ा। कमला भी बाहर हॉल में ही पड़े हुए बेड पर लेट गई और सोने का प्रयास करने लगी।

वहीं दूसरी तरफ शादाब और शहनाज़ दोनो इंडिया वापिस अा गए थे और दोनो सीधे हॉस्पिटल में पहुंच गए जहां उसके फूफा भर्ती थे। शहनाज़ को देखते ही रेशमा उससे लिपटकर भावुक हो गई और दोनो औरतें एक दूसरे के गले लग गई।

शादाब ने दोनो को समझाते हुए और अलग किया और बोला :"

" बुआ कहां है फूफा जी ? उनसे हमे मिलवाओ।

रेशमा शादाब और शहनाज़ को अपने साथ अंदर ले गई और एक कमरे में उन्हें वसीम लेटा हुआ दिखाई दिया। शादाब को देखते ही वो भावुक हो उठा और उठने की कोशिश करने लगा लेकिन उठ नहीं पाया और उसकी आंखो में आंसू अा गए।

शादाब बिना कुछ बोले ही समझ गया कि उसके फूफा को पेट से नीचे लकवा मार गया है।

वसीम के पास ही शादाब बैठ गया तो वसीम ने शादाब का हाथ थाम लिया और बोला:"

" शादाब बेटा, मेरा कमर से नीचे का हिस्सा खत्म हो गया है। डॉक्टर बोलते हैं कि मैं कभी ठीक नहीं हो सकता। तुम भी तो एक डॉक्टर बन रहे हो बेटा। तुम सच बताओ क्या मैं ठीक हो सकता हूं कभी या नहीं ?

शादाब जानता था कि ऐसी हालत में कोई जादू ही वसीम को ठीक कर सकता है लेकिन फिर भी तसल्ली देते हुए बोला:"

" मुश्किल तो बहुत हैं लेकिन आप खुदा पर भरोसा रखिए। आप जल्दी ही ठीक हो जाएंगे।

वसीम:" बेटा मुझे यहां से घर ले चलो, मैं अब और यहां रहना नहीं चाहता।

शादाब:" ठीक है। मैं डॉक्टर से बात कर लेता हूं और शाम तक हमे छुट्टी मिल सकती हैं।

इतना बोलकर शादाब उठकर बाहर अा गया और फिर डॉक्टर दे बात करने चला गया। दोपहर तक सब कागजी कार्यवाही पूरी हो गई और उसके बाद सभी लोग घर की तरफ लौट पड़े।

वसीम को नीचे बैठक में ही लिटा दिया जहां पहले कभी दादा दादी लेटा करते थे। रेशमा घर में नीचे ही रह रही थी और उसने कभी भी उपर शहनाज़ और शादाब के कमरे नहीं खोले थे।

रेशमा घर आकर खाना बनाने में जुट गई और शादाब और शहनाज़ दोनो उससे चाबी लेकर उपर चले गए। कमरे को खोला तो वो काफी गंदे हो गए थे। धूल मिट्टी लग गई और पूरे कमरे में बंद होने की वजह से एक अजीब सी बदबू फैली हुई थी।

दोनो के एक दूसरे की तरफ देखा और उनके होंठो पर एक साथ स्माइल अा गई और दोनो साफ सफाई में जुट गए। शादाब ने कमरे से एक एक करके सारा सामान बाहर निकाला। सारी कमरे में लगे हुए जालो को हटाया झाड़ू से शहनाज ने पूरे कमरे को साफ किया। उसके बाद शादाब ने कमरे की दीवारों को अच्छी धोया और फिर एक गुलाब की महक वाला लिक्विड निकालकर उसने शहनाज़ को दिया और शहनाज ने फिर सारे कमरे में उसका पोछा मार दिया तो पूरा कमरा खुशबू से भर उठा।

दोनो के उपर धूल जम गई और दोनो ही एक दूसरे ही हालत को देखकर हंस रहे थे।

शादाब:" अम्मी अपनी शक्ल देखो आइने में। बिल्कुल चुड़ैल जैसी लग रही हो आप। आपके ऊपर बहुत ज्यादा धूल जम गई है आज सफाई करके।

शहनाज़ ने उसकी तरफ घूरकर देखा और बोली:" अच्छा और खुद को देखो। आदि मानव जैसे लग रहे हो तुम।

आदि मानव की बात सुनकर शादाब के होंठो पर स्माइल अा गई और बोला:"

" लेकिन मेरी जान शहनाज़, मेरी अम्मी आदि मानव तो नंगे रहते थे बिल्कुल नंगे।

शहनाज़ अपने बेटे के मुंह से नंगे शब्द सुनकर शर्म से लाल हो गई और बोली:" शर्म नहीं आती तुम्हे। अपनी मा के सामने नंगा बोलते हो तुम।

शादाब थोड़ा सा उसके करीब हुआ और उसे अपनी बांहों में भर लिया और उसकी आंखे में देखते हुए बोला:"

" तुमसे नंगा बोलने में कैसी शर्म मेरी जान। नंगा तो तुम्हे आज सारी रात रहूंगा। यहीं इसी बेड पर इसी कमरे में सारी रात।

इतना कहकर उसने शहनाज की गांड़ को दोनो हाथों में भर कर मसल दिया तो शहनाज के मुंह से एक आह निकल पड़ी और वो किसी मछली की तरह फुर्ती दिखाती हुई उसकी बांहों से निकल गई और तेजी से बाथरूम में घुस गई और गेट से बोली:"

" सच में आदि मानव ही हो तुम। वो दिन में नंगे रहते थे और तुम रात में होते हो।

इतना कहकर शहनाज़ ने बाथरूम बंद कर दिया और अपनी उपर नीचे हो रही चूचियों को देख कर मुस्करा उठी और बेड शीट पर पर्दे धोने में जुट गई। कमरा अब तक अंदर से सूख गया था तो वहीं शादाब ने एक एक करके सारे सामान को अंदर वापिस लगा दिया। अब कमरे में किसी भी तरह की बदबू का कोई नामो निशान नहीं था बल्कि एक भीनी भीनी सी खुशबू पूरे कमरे में फैली हुई थी।

शहनाज ने सभी कपडे धोकर शादाब को दिए और उसने वो उपर छत पर सूखने के लिए डाल दिए। शहनाज़ नहा चुकी थी और बिल्कुल एक ताजे गुलाब की तरह खिली हुई लग रही थी। अपनी अम्मी को ललचाई नज़रों से देखते हुए शादाब भी नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया और जल्दी ही दोनो मा बेटा नहा धोकर नीचे अा गए।

खाना बन गया था इसलिए पूरे परिवार ने खाना खाया और उसके बाद थके और शादाब और शहनाज़ दोनो उपर कमरे में गए और बेड पर गिरते ही उन्हें नींद आ गई।

अजय उपर छत पर अा गया और उसने देखा कि उसकी बहन उसके कमरे में हैं और उसके सोने की चादर ठीक कर रही थी। अजय को ये देखकर काफी सुकून मिला कि दोनो भाई बहन के बीच गलतफहमी की वजह से बनी हुई नफरत की दीवार अब ढह गई थी।

सौंदर्या:" आओ भाई। देखो मैंने आपकी बेड शीट को बिल्कुल ठीक कर दिया है।

अजय स्माइल करते हुए बोला:" हान दीदी वही तो मैं भी देख रहा हूं कि आप अपने भाई का कितना ज्यादा ध्यान रख रही है।

सौंदर्या ने एक मीठी सी स्माइल अजय को दी और उसकी आंखो में देखते हुए बोली:"

" रखूंगी क्यों नहीं, मेरा भाई हैं भी लाखो में एक।

अजय अपनी दीदी की बात सुनकर खुश हो गया और वहीं बेड पर बैठ कर अपने जूते निकालने लगा। तभी सौंदर्या को याद आया कि उसने अपने भाई के लिए अलमारी से तकिया तो अभी निकाला नहीं हैं तो वो तकिया निकालने लगी। तकिया हाथ में लेकर वो आगे बढ़ी और अजय से तकरा गई और उसके हाथ से तकिया छूटकर नीचे गिर गया। सौंदर्या तकिया उठाने के लिए नीचे की तरफ झुकी और उसकी रेशमी साडी उसके कंधे से पूरी तरह से सरक गई। साडी सरकते ही उसकी हल्के पीले रंग के शॉर्ट ब्लाउस में कैद चूचियों का उभार साफ़ नजर आया और अजय की नजरे किसी चुंबक की तरह उन पर टिक गई। सौंदर्या पूरी तरह से इस बात से बेखबर नीचे झुकती जा रही थी और उसकी चुचियों का उभार और ज्यादा गहरा होता जा रहा था।



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अजय की आंखो में एक अजीब सी चमक थी और उसे अपनी बहन की चूचियों की गहराई बहुत आकर्षक लग रही थी। सौंदर्या ने तकिया उठाया और जैसे ही सीधी हुई तो उसकी नजरे अजय पर गई और अजय की ललचाई नज़रों का पीछा करते ही उसे अपने हालत का एहसास हुआ था तो वो शर्म से लाल हो गई और उसने तेजी से तकिए को बेड पर फेंक दिया और अपने कमरे में दौड़ती चली गई।

अजय अपनी बहन की इस हरकत पर हैरान हो उठा। जो हुआ वो सब हादसा था लेकिन उसकी इतनी शर्मा कर तकिया फेंक कर क्यों भाग गई। कहीं उसे ये सब गलत तो नहीं लगा या फिर दीदी मुझसे शर्मा गई है।

अपने विचारो में डूबा हुआ अजय सोच रहा था कि आखिर हुआ क्या हैं। वहीं सौंदर्या अपने भाई की ललचाई नजरो को समझते ही अंदर से कांप उठी थी। उसे समझ नहीं आया कि वो क्या करे इसलिए तेजी से अपने कमरे में भागती हुई चली अाई थी।

सौंदर्या अपने भाई के बारे में सोच रही थी और वो बेड पर लेट गई। शर्म और उत्तेजना के मारे उसकी सांसे अभी तक तेजी से चल रही थी। सोने की कोशिश करते हुए सौंदर्या ने अपने साडी को उतारकर एक तरफ रख दिया और तभी बेड के उपर लगे हुए बल्ब से एक कीड़ा नीचे गिरा और सीधे उसके ब्लाउस में घुस गया। सौंदर्या के मुंह से डर के मारे एक आह निकल पड़ी और वो तेजी से बाहर की तरफ भागी और अजय के कमरे में घुस गई और अपने दोनो हाथों से अपने ब्लाउस को इधर उधर करने लगी। कभी ब्लाउस के अंदर झांकती तो कभी उसे नीचे से उपर उठाने की कोशिश करती तो कभी उसने हाथ ब्लाउस के अंदर घुसा देती।


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सौंदर्या की हरकतों से उसकी चूचियां बाहर को छलक पड़ रही थी। अजय ये देखकर तेजी से उसकी और दौड़ा और बोला:"

" क्या हुआ दीदी ? आप क्यों परेशान हो और चिल्ला रही हो ?

कीड़ा खुद अंदर छटपटा रहा था और तेजी से अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर दौड़ रहा था जिससे सौंदर्या को तेज गुदगुदी हो रही थी और वो कांपती हुई बोली:"

" आह भाई मेरे ब्लाउस के अंदर कीड़ा घुस गया है। उफ्फ निकल नहीं रहा। कुछ मदद करो।

सौंदर्या मचलते हुए सिसक उठी तो अजय उसके करीब हो गया और उसके ब्लाउस के अंदर झांकने लगा। सौंदर्या की हालत उत्तेजना से खराब हो गई और उसने शर्मा कर अपनी आंखो को बंद कर दिया। अजय ने अपने हाथ को आगे बढ़ाया और उसने कांपते हाथो से अपनी दीदी के ब्लाउस को थोड़ा सा आगे की तरफ खींच दिया ताकि अंदर अंदर झांक सके।


अजय ने अपनी बहन के ब्लाउस के अंदर झांका तो उसकी गोरी गोरी गोल गोल चूचियों की जानलेवा उभार को देखते ही उसके लंड ने अपने आप एक जोरदार अंगड़ाई ली। सौंदर्या अभी भी मचल रही थी क्योंकि उसे कीड़े की वजह से तेज़ गुदगुदी हो रही थी इसलिए वो उत्तेजना से भर उठी और तड़पते हुए बोली:"

" आह भाई कुछ करके बाहर निकालो इसे। उफ्फ मेरी जान ही ले लेगा ये आज। आह भाई जल्दी करो तुम।

अजय से अपनी बहन की तड़प बर्दाश्त नहीं हुई और उसने अपने हाथ से ब्लाउस को आगे की तरफ किया। खींचते ही एक झटके के साथ उसके दो बटन कटक की आवाज के साथ टूट गए और सौंदर्या के मुंह से डर और शर्म के मारे एक आह निकल पड़ी और वो शर्म के मारे अपने भाई के सीने में घुस गई।

अजय ने एक हाथ को उसके गोरे चिकने कंधे पर रख दिया और उसके कान में धीरे से बोला:"

" दीदी डरो मत। देखने दो मुझे ताकि कीड़ा निकाल सकू।

सौंदर्या का रोम रोम अपने भाई की बात सुनकर सिहर उठा। उसकी चूचियों में कड़कपन अा गया और ये सोचकर कि उसका भाई उसकी चूचियों को देखेगा वो उससे पूरी तरह से चिपक गई।

अजय उसकी हालत समझ गया और उसने धीरे से उसकी कमर सहलाते हुए उसके कान में कहा::"

" दीदी देर मत करो, कहीं कीड़ा जहरीला हुआ और काट लिया तो दिक्कत होगी।

सौंदर्या अपने भाई की बात सुनकर डर और फिर धीरे से उसके कान में फुसफुसाई:"

" आह मेरे प्यारे भाई, जल्दी निकालो फिर तो, सिर्फ कीड़ा ही देखना तुम।

इतना कहकर सौंदर्या ने अपनी छाती को थोड़ी सा पीछे किया और अपनी आंखे बंद करते हुए अपने सिर को अजय के कंधे पर टिका दिया। अजय ने पहली बार अपनी बहन की चुचियों को देखा। बस ब्लाउस नाम भर के लिए था और उसकी चूचियों के सिर्फ निप्पल को छुपा रहा था जबकि उसकी पूरी चूची बाहर निकली हुई थी। अजय पूरी तसल्ली से बिना किसी जल्दबाजी के अपनी बहन को देख रहा था जिसका असर उसके लंड पर पूरी तरह से हो गया था और लंड अपनी औकात में आकर लोहे की रॉड की तरह तन गया था। सौंदर्या ने एक पल के लिए अपनी आंखे खोली और अपने भाई को अपनी चूचियों को घूरते हुए देखकर शर्म से पानी पानी हो गई और उससे कसकर लिपट गई और जैसे ही उसे अपने भाई के खड़े हुए लंड का एहसास हुआ तो उसके मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी।

अजय ने देखा कि कीड़ा मर गया था और ये तो घर में उड़ने वाला मामूली सा कीड़ा था। अजय के खड़े हुए लंड और सौंदर्या की गोल गोल चूचियां अपना असर अजय पर दिखा रही थी और अजय ने कीड़े को हाथ में पकड़ लिया और उसे सौंदर्या के सीने पर घुमाना शुरू कर दिया। सौंदर्या पूरी तरह से मचल रही थी और आगे पीछे उत्तेजना की वजह से हो रही थी जिससे उसके भाई के खड़े हुए लंड का एहसास उसे अपनी जांघो के बीच में हो रहा था। अजय के हाथ सौंदर्या की चूचियों पर घूम रहे थे और रह रह कर सौंदर्या के मुंह से मस्ती भरी आह निकल रही थीं। अजय अपनी बहन की नरम नरम चूचियों के एहसास से पागल सा हो रहा था और उसने अपनी चाल चलते हुए कीड़े को उसके ब्लाउस में फिर से एक तरफ डाल दिया।सौंदर्या के मुंह से आह निकल पड़ी क्योंकि वो जानती थी कि अब उसका भाई कीड़े को पकड़ने के लिए उसके ब्लाउस के सभी बटन खोल देगा।

अजय ने अपने साथ को आगे बढ़ाया और उसकी दाई चूची की तरफ ब्लाउस के अंदर घुसाने लगा। सौंदर्या की चूत में चिंगारी सी निकलने लगी और उसकी सांसे तेज चल रही थी।

अजय के हाथ उसके ब्लाउस में घुसे और उसकी आधे से ज्यादा चूची उसके भाई की गिरफ्त में अा गई। सौंदर्या मस्ती में डूब गई और उसने खुद ही अपनी चूचियों को उपर की तरफ उभार दिया तो अजय ने हिम्मत करके उसकी पूरी चूची को अपने हाथ में भर लिया और इसके साथ ही सौंदर्या का धैर्य जवाब दे गया और वो अपने भाई से अमर बेल की तरह लिपट गई। अजय ने एक उंगली से कीड़े को पकड़ा और उसके निप्पल पर घुमाया तो सौंदर्या पूरी तरह से बहक गई और अपनी टांगो को पूरी से खोलते हुए अजय के लन्ड पर अपनी चूत को चिपका दिया। अजय अपनी बहन की एक हरकत से जोश में अा गया और उसने उसकी चूची को हाथ में भरते हुए हल्का सा मसल दिया तो सौंदर्या मस्ती से बिफर उठी और अजय के कंधे में अपने दांत गडा दिए।

अजय तड़प उठा और उसने पहली बार अपनी बहन की पूरी चूची को अपनी हथेली में कस लिया और थोड़ा जोर से दबाया तो सौंदर्या के मुंह से आह निकल पड़ी और उसकी जीभ अपने भाई के कंधे को चाटने लगी।

कीड़ा कभी का नीचे गिर गया था और अजय अब अपने हाथ से उसकी चूची को मसल रहा था। दोनो भाई बहन पूरी तरह से मस्ती में डूबे हुए थे और अजय ने अपने दूसरे हाथ से सौंदर्या के ब्लाउस के आखिरी बटन को भी खोल दिया तो उसकी चूचियां नंगी होकर उछल पड़ी। सौंदर्या को जैसे ही अपनी नंगी बिल्कुल नंगी चूचियों का एहसास हुआ तो उसे अपनी हालत का एहसास हुआ और वो अपनी आंखे खोली और एक तेज झटके के साथ अजय से अलग हुई और अपने कमरे में दौड़ती हुई चली गई।
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अगले दिन सुबह सौंदर्या उठी और कॉलेज के लिए तैयार हो गई। उसने अपनी मम्मी और भाई के साथ नाश्ता किया।आज रक्षा बधन था इसलिए सौंदर्या ने अपने भाई को राखी बांधी और अजय ने उसे गिफ्ट के तौर पर कुछ पैसे और एक खूबसूरत ड्रेस दी।
इस बीच उसके मन में रात हुई घटना घूम रही थी और उसे शर्म अा रही थी। खाना खाकर वो कॉलेज की तरफ जाने लगी तो अजय भी उसके साथ चल पड़ा।

कमला:" अरे दोनो जल्दी अा जाना, आज आचार्य भी अा रहे है। कहीं लेट हो जाओ और वो चले जाए।

अजय:" मम्मी हम करीब दो बजे तक वापिस अा जाएंगे।

इतना कहकर अजय अपनी दीदी के साथ आगे बढ़ गया। दोनो में आज ज्यादा बात नहीं हुई और जैसे ही कॉलेज तो सौंदर्या अंदर चली गई और अजय का मोबाइल बज उठा। उसने देखा कि उसके दोस्त शादाब का फोन था तो उसने खुशी खुशी उठाया और बोला:"

" अरे भाई कहां हो खान साहब ? आज मेरी याद कैसे अा गई ?

शादाब:" घर आया हूं भाई कल ही, फूफा जी की तबियत खराब थी इसलिए अा गया। तुम कहां हो भाई मेरे ?

अजय ने गाड़ी शादाब के घर की तरफ दौड़ा दी और बोला:"

" बस तेरे घर ही अा रहा हूं। बाकी बाते मिलकर होगी।

इतना कहकर उसने फोन काट दिया और अपनी मम्मी को बताया कि अजय घर अा रहा है तो सभी लोग बहुत खुश हुए। अजय को सभी लोग जानते थे और उन्हें पता था कि वो बहुत अच्छा लड़का हैं और अपनी जान पर खेलकर शादाब और शहनाज़ की जान बचा चुका था। सभी लोग उसके स्वागत की तैयारी में जुट गए।

करीब एक घंटे बाद वो उसके घर अा गया तो शादाब ने देखते ही उसे अपने गले लगा लिया। दोनो दोस्त एक दूसरे से लिपट गए। रेशमा और शहनाज़ ये देखकर बहुत खुश हुई। दोनो दोस्त कम और सगे भाई ज्यादा लग रहे थे।

उसके बाद अजय ने शहनाज़ और रेशमा के पैर छुए तो उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और अजय ने अपने साथ लाया मिठाई का डिब्बा रेशमा को दिया और बोला

" बुआ आज रक्षा बंधन हैं, हम अपनी बुआ और बहन के घर खाली हाथ नहीं जाते।

अजय की बात सुनकर रेशमा बहुत खुश हुई और उसने अंदर कमरे में चली गई। अजय वसीम के पास बैठ गया और उनके हाल चाल पूछने लगा।

थोड़ी देर बाद ही रेशमा और शहनाज़ दोनो कमरे में अा गई। रेशमा के हाथ में एक राखी और पूजा का सामान था। अजय ये सब देखकर पूरी तरह से हैरान हो गया क्योंकि उसे उम्मीद नहीं थी कि एक मुस्लिम परिवार उसका इस तरह से भी सम्मान कर सकता है ।

अजय को बेड पर बिठाकर रेशमा ने उसकी आरती उतारी और फिर उसके माथे पर तिलक लगा कर उसके हाथ में राखी बांध दी। अजय की आंखो से आंखो निकला पड़े इतना प्यार और सम्मान देखकर। वो गदगद हो गया और बार बार प्यार भरी नजरो से रेशमा को देख रहा था और कभी शादाब की तरफ देखता।

फिर उसे याद आया कि उसने रस्म के तौर अपनी बुआ रेशमा को कुछ दिया तो हैं नहीं तो उसने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और रेशमा की तरफ बढ़ा दिए और बोला:"

" बुआ मेरी तरफ से एक छोटी सी भेंट। मुझे पता होता कि यहां मेरा ऐसा सम्मान और स्वागत होगा तो और कुछ सोच कर आता।

रेशमा ने खुशी खुशी अपना हाथ आगे बढाया और अजय से रस्म के तौर पैसे ले लिए और उसका माथा चूम कर बोली:"बेटा एक रस्म के तौर पर रख रही हूं बस। नहीं तो इनकी कोई जरूरत नहीं थी। तुम वैसे पहले ही इतने सारे एहसान कर चुके हो हम पर।

अजय ने बुरा सा मुंह बनाया और रेशमा को बनावटी गुस्से से देखा तो सभी लोग एक साथ जोर जोर से हंस पड़े। शादाब और शहनाज आज बहुत खुश थे क्योंकि अजय जैसा दोस्त उसे मिला ये उसकी किस्मत थी।

उसके बाद सभी लोग खाना खाने बैठ गए और अजय को पहला निवाला रेशमा ने खुद अपने हाथ से खिलाया। उसके बाद सभी ने खाना खाया और शादाब और शहनाज़ अजय के साथ उपर चले गए जबकि रेशमा अपने शौहर को खाना खिलाने के लिए नीचे ही रुक गई।

शादाब:" और बता भाई गांव में आए कितने दिन हो गए ? घर में सब कैसे हैं ?

अजय:" घर में सब ठीक है भाई। 15 दिन के आस पास हो गए। यार एक बात बताना हो मैं भूल ही गया।

शादाब:" वो क्या मेरे भाई ?

अजय:" यार गांव के ही गुण्डो ने मिलकर गैंग बनाया हुआ था और मेरी दीदी सौंदर्या उनसे भिड़ गई और फिर उनका किडनैप हो गया और मुझे दीदी को बचाने के लिए सबको मारना पड़ा।

शादाब की आंखो में गुस्सा अा गया और अपने बोला:"

" अच्छा किया सालो को मार दिया। ऐसे लोगो को जीने का कोई हक नहीं हैं जो लड़की पर गलत नजर डालते हैं। वैसे अभी कैसी हैं मेरी बहन सौंदर्या ?

अजय:" बिल्कुल ठीक है भाई। अपने कॉलेज पढ़ाने गई हुई है।

शहनाज़:" ओह अच्छा वो पढ़ाती हैं ये तो बहुत अच्छी बात हैं। बातो से तो लग रहा है कि वो तुमसे बड़ी होगी।

अजय:" जी अम्मी, बड़ी ही नहीं बल्कि मुझसे 13 साल बड़ी है। आपसे बस दो या तीन साल ही छोटी होंगी।

शहनाज़:" अच्छा जी ये तो बहुत अच्छी बात हैं। फिर तो उनके बच्चे भी काफी बड़े होंगे।

अजय के चेहरे पर उदासी अा गई और बोला:" नहीं अम्मी, उनकी अभी शादी ही नहीं हुई है क्योंकि वो मांगलिक हैं। ।

शहनाज़ और शादाब दोनो एक साथ चौक उठे और शहनाज़ बोली:' बेटे ये मांगलिक क्या होता है वैसे ?

अजय:" जब बच्चा जन्म लेता हैं तो कभी कभी उस समय मंगल ग्रह उन पर भारी हो जाता है और वो बच्चे मांगलिक होते हैं। मांगलिक के लिए मांगलिक ही अच्छा जीवन साथी होता हैं या फिर कुंडली से दोष निकालने के लिए कुछ कठिन उपाय करने पड़ते हैं।

शहनाज़:" हाय मेरे खुदा, ये तो बहुत दिक्कत वाली बात है। मतलब अगर मांगलिक लड़का नहीं मिला तो क्या उसकी शादी नहीं होगी?

अजय:" मिल जाता है, बस लड़का अच्छा नहीं मिल रहा है। वैसे एक दोनो मांगलिक हो तो किसी का मंगल दूसरे पर भारी पड़ सकता है। कुंडली के दोष को दूर करना ही बेहतर उपाय होता हैं। आज एक बहुत पहुंचे हुए आचार्य तुलसी दास जी अा रहे हैं और कोई ना कोई उपाय निकल ही जाएगा।

शादाब शहनाज़ से बोला:" एक काम करते हैं हम दोनों भी अजय के घर चलते हैं। आज रक्षा बंधन भी है। दीदी मुझे राखी भी बांध देगी और भी इसकी मम्मी और दीदी दोनो से मिल लेना।

शहनाज़ को ये आइडिया पसंद आया और जल्दी से तैयार हो गई। थोड़ी देर बाद ही शहनाज़ और शादाब अजय के साथ गाड़ी में उसकी गाड़ी में थे और गाड़ी सौंदर्या के कॉलेज की तरफ चली जा रही थी।

शादाब और शहनाज़ दोनो कार में बैठे हुए सौंदर्या का इंतजार कर रहे थे जबकि अजय मार्केट से कुछ सामान लेने गया था।

तभी एक खूबसूरत सी लड़की गाड़ी के पास अाई और उसने खिड़की पर नॉक किया तो उसे देखते ही शादाब और शहनाज़ दोनो समझ गए कि यही सौंदर्या है। शहनाज उसे गौर से देखा तो उसे लगा कि जैसे उसे वो सालो से जानती हैं।

शादाब ने दरवाजा खोला और बाहर अा गया तो सौंदर्या उसे देखकर हैरान हो गई। शादाब बिल्कुल गोरा था और देखने में किसी राजकुमार की तरह खूबसूरत था।

शादाब ने सौंदर्या को देखते हुए अपने दोनों हाथ उनके आगे जोड़ दिए और बोला:"

" नमस्ते दीदी, क्या आप सौंदर्या दीदी हैं ?

सौंदर्या हैरान हो गई कि ये लड़का मुझे कैसे जानता हैं तो उसने पूछा : हान नमस्ते। मैं ही सौंदर्या हूं लेकिन तुम कौन हो ? मुझे कैसे जानते हो ?

शादाब: दीदी मैं शादाब हूं अजय का दोस्त बिल्कुल भाई जैसा।

शादाब नाम सुनते ही सौंदर्या के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:" अच्छा तो तुम शादाब हो। मैंने अजय से तुम्हारे बारे में सुना है कि तुम बहुत अच्छे हो।

तभी अजय अा गया और उसने सभी को आपस में मिलाया तो सौंदर्या शहनाज़ से मिलकर बहुत खुश हुई। अजय और शादाब आगे बैठ गए और पीछे सौंदर्या और शहनाज़ बैठ गई और बाते करने लगी।

शहनाज़:" आप तो बिल्कुल अपने नाम की तरह हो सौंदर्या। बिल्कुल फूल सी सुंदर।

सौंदर्या अपनी तारीफ सुनकर खुश हुई और बोली:"

" आंटी जी मैं कहां इतनी सुन्दर हूं। ये तो आपके देखने का नजरिया हैं बस।

शहनाज़ अमेरिका में रही थी जहां 60 साल की औरत भी खुद को जवान समझती थी। सौंदर्या के मुंह से अपने लिए आंटी सुनकर उसे बुरा लगा और बोली:" वैसे तो मेरी उम्र तुमसे दो या तीन साल ही ज्यादा हैं सौंदर्या। तुम्हारे मुंह से आंटी अच्छा नहीं लगता।

सौंदर्या के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:" माफ कीजिए मोहतरमा जी आप। आंटी ना कहूं तो फिर आपको क्या कहूं आप ही बता दीजिए।

शहनाज़ एक पल के लिए सोच में पड़ गई और फिर बोली:" वैसे तो हम दोनों हम उम्र ही है। आप चाहो तो नाम से भी बुला सकती हो मुझे।

सौंदर्या:" ना जी ना, नाम से नहीं बुला सकती। अच्छा एक काम करती हूं आपको शहनाज़ दीदी बोल दिया करूंगी।

इतना कहकर सौंदर्या ने दोस्ती के लिए अपना हाथ आगे किया और
शहनाज़ को ये ठीक लगा और उसने अपना हाथ सौंदर्या की तरफ बढ़ा दिया और बोली:"

" ठीक है। फिर आज से हम दोनों पक्की दोस्त। लेकिन एक बात ध्यान रखना अकेले में सिर्फ शहनाज़ कहकर बुलाना मुझे।

सौंदर्या ने उसका हाथ पकड़ लिया और दोनो एक साथ स्माइल कर पड़ी। आगे शादाब और अजय अपनी बातो में लगे हुए थे कि तभी अजय का मोबाइल बज उठा तो उसने देखा कि उसकी मम्मी का फोन था।

अजय:" हान जी मम्मी, बस अा रहे हैं, 10 मिनट में अा जायेगे।

कमला:" अच्छा हैं बेटा। तुम सीधे यहीं आचार्य जी के पास ही अा जाना। मैं यहीं हूं।

अजय:" ठीक है मम्मी। आप वहीं रुकिए मैं अा रहा हूं थोड़ी ही देर में आपके पास।

अजय ने फोन काट दिया और थोड़ी देर बाद ही उनकी गाड़ी एक बड़े से घेर के सामने खड़ी हुई थी और यहीं आज के लिए आचार्य तुलसी दास जी ने अपना डेरा लगाया हुआ था।

भीड़ बहुत ज्यादा थी और चारो तरफ लोग ही लोग नजर अा रहे थे। चारो और से आचार्य जी की जय जयकार के नारे गूंज रहे थे और साथ ही साथ हल्की आवाज में एक भक्ति संगीत भी बज रहा था। सभी लोग गाड़ी से उतरे और अंदर अा गया तो देखा कि सामने एक बहुत ही बड़ी और सुंदर स्टेज लगी हुई थी जिसके चारो ओर भक्तो की भारी भीड़ थी। बीच में स्टेज पर एक सिंहासन नुमा बहुत ही शानदार कुर्सी रखी हुई थी जिस पर आचार्य तुलसी दास जी विराजमान थे। एक सिद्ध महापुरुष, उनके चेहरे से उनका ओजस साफ छलक रहा था। एक सपाट चेहरा और आंखो में भोलापन ये इस महापुरुष की पहचान थी।

थोड़ी देर के बाद कमला का नंबर आया तो वो भी अपने परिवार को लेकर स्टेज पर अा गई और गुरू जी के सादर चरणों में झुक कर प्रणाम किया। अजय और सौंदर्या ने भी उनके पैर छुए।

कमला:" महाराज ये मेरी बेटी हैं सौंदर्या। अब आपसे क्या छुपाना...

महाराज ने कमला को मौन रहने का इशारा किया और थोडी देर तक कुछ सोचते रहे आंखे बंद कर के पूरी तरह से ध्यानमग्न।

महाराज:" तुम्हारी बेटी सौंदर्या मांगलिक हैं बेटी जिस वजह से इसकी शादी नहीं हो रही है। एक और राज की बात तुम्हारी बेटी का कल किडनैप हो गया था और तुम्हारे इस बाहुबली बेटे ने बदमाशों का काम तमाम करके इस कन्या को बर्बाद होने के बचा लिया है।

महाराज की बात खत्म होते ही कमला सीधे उनके पैरो में गिर गई और अजय और सौंदर्या का मुंह खुला का खुला रह गया। साथ ही खड़े शादाब और शाहनाज भी आश्च्यचकित थे।

कमला:" आप सच में बहुत ही ज्ञानी और सिद्ध पुरुष हैं। आपको तो सब कुछ पहले से ही मालूम हैं और आप ही मुझ पर अपनी कृपया कीजिए और मेरी बेटी की शादी के लिए कोई उपाय बताए।

महाराज:" हर एक समस्या का उपाय हैं पुत्री। तुम्हारी पुत्री के सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। जिस तरह कल अजय ने इसकी इज्जत बचाई उसी तरह इसकी कन्या की सभी समस्याओं का समाधान तुम्हारे बेटे के हाथो ही होगा। ये समझ लो कि अजय का जन्म ही अपनी बहन की रक्षा और उसके कष्ट निवारण के लिए हुआ हैं।

थोड़ी देर के लिए महाराज रुके और फिर बोले:" मैं तुम्हारे बेटे को इस कन्या की दोष मुक्ति के उपाय बता दूंगा और मुझे पूरा यकीन है कि ये जरूर अपने लक्ष्य में सफल रहेगा। अजय तुम शाम को मेरे पास अा जाना और मेरे तुम्हे सब पता समझ दूंगा। अभी आप लोग आराम से घर जाइए।

इतना कहकर बाबा की चुप हो गए और उसके बाद सभी उनके पैर छूकर वापिस घर की तरफ चल पड़े। कमला शादाब और शहनाज़ से मिलकर बहुत खुश हुई। शहनाज़ तो अपने मिलनसार स्वभाव के लिए ही बनी हुई थी और शादाब इतना सुन्दर और स्मार्ट था उसकी तरफ बिना आकर्षित हुए कोई रह ही नहीं सकता था।

सभी लोग घर पहुंच गए और थोड़ी ही देर में उनका नाश्ता हो गया। उसके बाद अजय ने अपनी को आरती का थाल और राखी लाने के लिए कहा।

शादाब के अंदर एक अलग ही उत्साह था। आज तक किसी ने भी उसे राखी नहीं बांधी थी और ये सोच सोच कर कि आज उसकी कलाई भी राखी से सज जाएगी उसके अंदर बहुत ही सुखद महसूस हो रहा था। काले रंग के कुर्ते में वो बेहद ही खूबसूरत लग रहा था।

शादाब एक कुर्सी पर बैठ गया और सौंदर्या उसके हाथ में राखी बांधने लगी। शादाब का हाथ कांप था था क्योंकि उसके लिए ये बिल्कुल नया एहसास था। उसके चेहरे पर खुशी और आंखे गीली हो गई थी। सौंदर्या राखी बांधते हुए बोली:"

" क्या हुआ शादाब भाई जान ? आप का हाथ कांप क्यों रहा हैं ? आप ठीक तो हैं ना।

शादाब की आंखे भर आई और उसने दूसरे हाथ से अपने आंखो को साफ किया। हर कोई शादाब को ही देख रहा था जिसके आंखे बार बार भीग रही थी।

शादाब:" दीदी आज पहली बार किसी ने मेरी कलाई पर राखी बांधी है। अपने दोस्तो की बहनों को राखी बांधते हुए देखता था लेकिन कभी कह नहीं पाया कि मुझे भी राखी बांध दो। आज बस आप राखी बांध रही थी तो मेरी आंखे खुशी से भर अाई।

इतना कहकर शादाब की आंखे फिर से भर अाई तो उससे पहले ही सौंदर्या ने उसके आंसू साफ कर दिए और बोली:"

" बस भैया बस करो। मर्द रोते हुए अच्छे नहीं लगते। अब मैं हूं ना हर साल आपकी कलाई पर राखी बांध दिया करूंगी। और हान मुझे आप देना अच्छे अच्छे कीमती गिफ्ट।

सौंदर्या की बात सभी लोग हंस दिए और सौंदर्या ने शादाब के हाथ में राखी बांधकर उसके माथे पर चंदन का तिलक लगा दिया।


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राखी की रस्म पूरी होने के बाद सौंदर्या खड़ी हुई और उसने थाली से एक लड्डू लिया और अपने भाई के मुंह की तरफ किया। शादाब ने जैसे ही अपना मुंह खोला तो सौंदर्या ने तेजी से पूरा लड्डू उसके मुंह में घुसा दिया।



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एक बार फिर से कमला अजय के साथ साथ शहनाज़ भी जोर से हंस पड़ी। शादाब के मुंह में लड्डू होने के कारण उसका मुंह ठीक दे नहीं चल रहा था इसलिए सौंदर्या उसे देखकर स्माइल कर रही थी। शादाब इशारे से कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था जिसे देखकर सबको पूरी हंसी अा रही थी। भावुक माहौल को एक ही पल में खुशनुमा माहौल में बदल किया था सौंदर्या ने।

जैसे ही शादाब ने लड्डू खाया तो सौंदर्या उसके सामने खड़ी हो गई और बोली:"

" चलो मेरे भैया राजा जल्दी से अब मेरा गिफ्ट निकालो।

शादाब ने अपना बैग खोला और एक बहुत ही खूबसूरत साडी उसकी तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर सौंदर्या बहुत खुश हुई। शादाब ने अपनी बहन का हाथ पकड़ा और बोला:"

" आज सबके सामने तेरा ये भाई कसम खाता है कि तेरी खुशी के लिए सारी दुनिया से टकरा जाऊंगा। तेरी आंखो में आंसू लाने वाले की आंखे निकाल लेगा तेरा भाई शादाब। अगर जान भी देनी पड़ी तो पीछे नहीं हटूंगा।

शादाब की बात सुनकर सौंदर्या अपने भाई शादाब के गले लग गई। शादाब ने भी अपनी बहन को अपने गले लगा लिया। बिल्कुल भाई बहन का निर्मल प्रेम, कोई उत्तेजना नहीं, कामुक एहसास नहीं, सिर्फ प्यार काम रहित प्यार।

बाकी सारे लोग बिल्कुल शांत लेकिन खुश खड़े हुए ये सब देख रहे थे। थोड़ी देर के बाद सौंदर्या अलग हुई तो शादाब बोला:"

" दीदी आपने तो मेरा मुंह मीठा करा दिया। अब मैं आपको अपने हाथ से लड्डू खिलाता हूं।

इतना कहकर शादाब ने एक लड्डू उठाया और सौंदर्या के मुंह की तरफ बढ़ा दिया तो सौंदर्या ने स्माइल करते हुए अपना मुंह खोल दिया।

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सौंदर्या ने आराम से लड्डू खाया और उसके बाद सभी लोगो ने अपना मुंह मीठा किया।

कमला:" अच्छा बेटी अब राखी तो बांध दी अपने भाई के लिए कुछ खाने के लिए भी बना लो। देख चार बजने वाले हैं।

सौंदर्या किचेन में जाने लगी तो उसके पीछे पीछे ही शहनाज़ भी चल पड़ी तो सौंदर्या बोली:"

'" अरे आप कहां किचेन में अा रही है, आप तो मेहमान हैं, आराम से बाहर हाल में बैठिए।

शहनाज़:" बस करो सौंदर्या, मैं कोई मेहमान नहीं हू। जब हम दोनों सहेली बन गई हैं तो फिर मेहमान वाली बात कहां से अा गई हमारे बीच ?

सौंदर्या ने मुस्कुरा कर शहनाज़ को देखा और बोली:" वो तो ठीक हैं लेकिन आप पहली बार हमारे घर अाई हैं तो अच्छा नहीं लगता।

शहनाज़ ने सौंदर्या की आंखो में देखा और बोली:" अच्छा जी कुछ ज्यादा ही बोलती है आप, ये सिर्फ आपका ही नहीं मेरा भी घर हैं समझी तुम।

सौंदर्या ने अपनी गलती मान ली और दोनो उसके बाद खाना बनाने में जुट गई। करीब एक घंटे में सभी कुछ बन गया।

सभी लोग हॉल में बैठे हुए थे और बाते कर रहे थे। तभी कमला बोली :" अजय बेटा देखो शाम पूरी तरह से घिर आई है। तुम एक बार जाकर आचार्य जी से मिल लो। अच्छा एक काम और करो, अपने साथ सौंदर्या को भी ले जाओ कहीं उसकी जरूरत ना पड़ जाए।

अपनी मम्मी की बात सुनकर अजय अपनी बहन को लेकर आश्रम की तरफ निकल गया।

कमला:" अच्छा तुम दोनो आराम कर लो, मैं घेर से होकर आती हूं। भैंसो का थोड़ा काम हैं।

कमला घेर में अपनी भैंस और गाय का दूध निकालने के लिए चली गई।

शहनाज़:" वैसे शादाब एक बात तो हैं कि अजय और उसकी फैमिली बहुत अच्छी हैं।

शादाब ने अपनी अम्मी का हाथ पकड़ लिया और सहलाते हुए बोला:" हान अम्मी, बहुत अच्छे लोग है, मुझे आज बहुत खुशी जब सौंदर्या दीदी ने मुझे राखी बांधी।

शहनाज़ की आंखो के आगे सौंदर्या का चेहरा घूम गया तो वो बोली:" मुझे भी तुझे खुश देखकर अच्छा लगा। वैसे बेचारी सौंदर्या, 34 साल की होने के बाद भी अभी तक उसकी शादी नहीं हुई। मुझे तो उस पर तरस आता हैं।

शादाब:" हान देखो ना अम्मी, अब आप 37 साल की ही तो हैं और दूसरी बन दुल्हन बन गई वहां बेचारी सौंदर्या पहली ही शादी के लिए तड़प रही है।

शहनाज़ ने एक हल्की सी चपत उसके गाल पर लगाई और बोली:" तेरी जुबान बहुत ज्यादा चलती है।

शादाब:" जुबान से ज्यादा तो मेरा लन्ड चलता है मेरी जान।

शहनाज़:" चुप कर बेशर्म, वो चलता नहीं बल्कि दौड़ता है।

इतना कहकर शहनाज़ शर्मा गई तो शादाब ने अपनी अम्मी के होंठ चूम लिए तो शहनाज़ उसे प्यार से डांटते हुए बोली:" बस कर बेशर्म लड़के, अभी हम यहां तेरे दोस्त के घर हैं अपने घर नहीं।

शादाब ने उसकी चूचियों को सूट के उपर से ही पकड़ किया और सहलाते हुए बोला:"

" उफ्फ मेरी जान शहनाज़, कल रात भी तुम सो गई थी। कुछ तो रहम करो मेरे मूसल पर बेचारा देखो कितना तड़प रहा है तुम्हारी औखली में घुसने के लिए।

इतना कहकर उसने अपनी पैंट को अंदर वियर सहित नीचे सरका दिया तो उसका दमदार लंड शहनाज़ की आंखो के आगे लहरा उठा। शहनाज़ की आंखे लंड देखकर लाल सुर्ख हो गई और और शादाब ने उसके कंधो पर दबाव डालते हुए उसे नीचे झुका दिया।

वहीं दूसरी तरफ अजय अपनी बहन के साथ तुलसी दास जी के आश्रम में पहुंच गया। अभी भक्तो की भीड़ खत्म हो गई थी और महाराज आराम से अपने कमरे में जमीन पर बैठे हुए थे पूरी तरह से ध्यानमग्न।

अजय और सौंदर्या ने उनके पैर छुए तो उन्होंने अपनी आंखे खोल दी और बोले:"

" आओ पुत्र मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था। अच्छा हुआ तुम खुद ही अा गए।

अजय ने दोनो हाथ जोड़ दिए और श्रद्धा पूर्वक उनकी तरफ देखते हुए विनती भरे स्वर में बोला:" गुरु जी हमे कोई उपाय बताए आप ताकि मेरी बहन की ज़िन्दगी से उसकी कुंडली से इस दोष का निवारण हो सके।

महाराज:" अवश्य पुत्र। एक काम करो तुम दोनो अपना हाथ मुझे दो।

दोनो ने अपना एक एक हाथ महाराज के हाथो में दे दिया। महाराज उनका हाथ अपने हाथों में लिए पूरी तरह से ध्यानमग्न होकर कुछ सोचते रहे और फिर उन्होंने अपनी आंखे खोल दी और उनके चेहरे पर कुछ अजीब सी बेचैनी के भाव थे जिन्हें देखकर अजय के मन में शंका हुई और बोला:"

" क्या हुआ महाराज? आपके चेहरे पर बनी हुई चिंता की लकीरें मेरे मन में डर पैदा कर रही है।

महाराज ने अजय और सौंदर्या दोनो को एक बार फिर ध्यान से देखा और बोले:"

" उपाय तो अवश्य हैं पुत्र। लेकिन करना बहुत मुश्किल होगा तुम दोनो के लिए।

अजय को एक उम्मीद की किरण दिखाई दी और बहुत ही विनम्र शब्दो में बोला:"

" महाराज आप बताए जल्दी से, अपनी बहन के लिए मैं कठिन से कठिन इम्तिहान दूंगा।

महाराज:" ठीक है पुत्र। सौंदर्या बेटी तुम मकर राशि में पैदा हुई हो इसलिए तुम्हारा मंगल अधिक भारी हैं जबकि तुम्हारा भाई कर्क राशि में पैदा होने के कारण तुम्हारे लिए संकट मोचक बन सकता है।
एक बात ध्यान रखना तुम्हारे लिए एक मात्र उम्मीद सिर्फ तुम्हारा भाई ही हैं। सिर्फ ईओ ही तुम्हारी कुंडली से दोष निकाल सकता है।

सौंदर्या ने राहत की सांस ली कि आखिर कोई तो उपाय हैं उसके लिए क्योंकि वो अब कुछ भी करके किसी भी हालत में इस मुश्किल से छुटकारा पाना चाहती थी किसी भी कीमत पर।

महाराज:" बेटी तुझे तुम्हे के लिए हरिद्वार जाना होगा। लेकिन उससे पहले तुम्हे कियाबा में स्थित लिंगेश्वर मंदिर जाना होगा और वहां पुष्प अर्पित करने होंगे। उसके बाद तुम खजुराहो की गुफाएं में जाना होगा और वहां तुम्हे कुछ विशेष पूजा करनी होगी, तुम्हे मंगलवार के दिन लाल सुर्ख पकड़े पहनकर मंगल कर जल देना होगा। ये क्रिया तुम्हे सात दिन तक लगातार करनी होगी। इसके अलावा तुम्हारे भारी मंगल को काबू में करने के लिए तुम्हे मैं एक मंगला यंत्र भी दूंगा। बेटी अब तुम बाहर जाओ। बाकी की विधि में तुम्हारे भाई को समझा दूंगा। मै तुम्हे एक बार फिर से समझा रहा हूं कि तुम्हारे लिए आशा की एक मात्र किरण तुम्हारा भाई ही है। मै इसे सब उपाय और उनके करने की विधि बता दूंगा।

महाराज ने अपनी बात खत्म होते हुए ही सौंदर्या को बाहर जाने का इशारा किया और वो महाराज के पैर छूकर बाहर निकल गई।

महाराज ने अब अजय को विधि बतानी शुरु करी तो अजय हैरानी से उनके मुंह देखता रह गया। उसे समझ नहीं अा रहा है कि ये महाराज को क्या हो गया है। जैसे ही उन्होंने अपनी बात पूरी करी तो अजय बोल उठा:"

" लेकिन महाराज ये उपाय तो बेहद कठिन हैं, भला एक भाई बहन वो भी सगे किस तरह इस तरह की विधि और पूजा कर सकते है। क्षमा चाहता हूं क्या कोई दूसरा उपाय होगा ?

महाराज:" पुत्र हमे भी ज्ञात है कि ये मुश्किल होगा लेकिन इसके अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है मेरे पास। मेरे पास क्या दुनियां में किसी के भी पास नहीं होगा।

अजय:" लेकिन महराज मेरी बहन मेरे बारे में क्या सोचेगी ? कहीं उसने मुझे गलत समझ लिया तो ?

महाराज:" हमसे कुछ भी छुपा नहीं हैं बच्चा, ना भूत ना भविष्य। तुम्हारी बहन तुम्हारी हर बात को मान लेगी इसका हमे पूरा विश्वास है बस उसे ये क्रिया विधि करके दिखाने के लिए कोई दूसरी अनुभवी औरत चाहिए जिसकी राशि सौंदर्या से मिलती हो।

अजय ने लिए दूसरी अनुभवी औरत की बात कहकर महराज ने एक और बड़ी मुश्किल समस्या पैदा कर दी।

अजय:" महाराज ये तो बहुत विकट परिस्थिति हो गई। मैं तो सिर्फ एक ही औरत को जानता हूं और वो हैं मेरी मम्मी। लेकिन उनकी और दीदी की राशि दोनों अलग अलग हैं।

महाराज:" पुत्र घबराओ मत, समय आने पर हर एक समस्या के लिए समाधान निकल आता है ठीक वैसे ही इसका समाधान भी निकल आएगा।

इतना कहकर महाराज खड़े हो गए और उन्होंने अपनी कमरे की अलमारी से दो छोटे छोटे बैग निकाले और अजय को देते हुए बोले:"

" ये सिद्ध किए हुए मगंल यंत्र है बेटा, इनका उपयोग सोच समझ कर अपने विवेक से करना। तुम्हारी आधी समस्या हल हो जाएगी इनसे।

इतना कहकर महाराज ने अजय को मंगल यंत्र दिए और बाहर की तरफ अा गए। बाहर सौंदर्या बैठी हुई थी।

महाराज:" पुत्री हमने सब कुछ तुम्हारे भाई को समझा दिया है, तुम्हे अगर अपनी कुंडली के दोष का निवारण करना हैं तो अपने भाई की हर एक बात माननी होगी। अगर तुमसे कहीं चूक हुई तो तुम्हारे लिए फिर दुनिया में दूसरा कोई उपाय नहीं होगा।

सौंदर्या:" जी महाराज जैसी आपकी आज्ञा। मैं अपनी तरफ से अपनी भाई को पूजा और हर विधि में भरपूर सहयोग दूंगी। आखिर समस्या मेरी हैं तो इसके लिए कष्ट भी मुझे भी उठाना होगा।

दोनो ने महाराज के पैर छुए और उसके बाद दोनो घर की तरफ निकल गए।

सौंदर्या:" भाई क्या क्या विधि बताई हैं महाराज ने ?

अजय:" दीदी मैं ऐसे नहीं बता सकता, महाराज ने मना किया हैं और अगर अभी बताया तो बाद में विधि काम नहीं करेगी। महाराज के अनुसार मुझे विधि करने के वक़्त ही आपको बतानी होगी।

इतना कहकर अजय चुप हो गया और उसके बाद दोनो भाई बहन घर की तरफ चल पड़े।

शहनाज़ अपने बेटे के सामने घुटनों के बल बैठ गई और उसने उसके लंड पर अपनी नजरे टिका दी तो उसकी चूचियां अपने आप अकड़ने लगीं और चूत ने भूचाल सा उठ गया।

शादाब ने अपनी अम्मी के मुंह को लंड पर झुका दिया तो शहनाज ने अपने हाथ से लंड को पकड़ लिया और अगले ही पल जीभ उसके सुपाड़े पर फिराई।



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शादाब अपने अम्मी के मुलायम लाल सुर्ख लिपस्टिक लगे होंठो को अपने लंड पर महसूस करते ही सिसक उठा और उसने अपनी उंगलियां अपनी अम्मी के बालो में घुसा दी तो शहनाज ने अपने मुंह को पुर खोल दिया और उसके लंड को आधे से ज्यादा मुंह में भर लिया तो शादाब के मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी। शाहनाज ने उसके लंड को को अपने होंठो के बीच में कस कर बाहर की तरफ जोर से चूस दिया।



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शादाब के मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी और उसकी आंखे मस्ती से बंद हो गई। शहनाज़ के होंठो की लिपस्टिक से लंड का सुपाड़ा लाल सुर्ख हो गया था और शहनाज़ ने जैसे ही उसके लंड को मुंह में भरा तो गेट खुलने की आवाज अाई और इसके साथ ही उसने तेजी से लंड को बाहर निकाला और शादाब अपनी पैंट ऐसे ली लिए हुए बाथरूम में घुस गया। कमला तेजी से अंदर अाई और वो थोड़ी घबराई हुई लग रही थी। शहनाज़ की खुद की हालत खराब थी और कमला से आंखे चुरा रही थी।

कमला:" शहनाज़ यार दिक्कत हो गई, मेरे भैंस ने दो महीने पहले ही बच्चा दे रही। आधे से ज्यादा बाहर अा गया है, नीचे गिर तो दिक्कत हो जाएगी। शादाब कहां हैं ?

शहनाज़:" ओह ये तो सच में दिक्कत की बात है। शादाब बाथरूम में गया है।

कमला:"अजय यहां हैं नहीं , मुझसे बच्चा नहीं संभाला जाएगा।

शादाब ने अंदर जल्दी से अपनी पैंट पहनी और बाहर की तरफ अा गया। उसे देखते ही कमला ने सारी बाते बताई और तीनो तेजी से घेर की तरफ दौड़ पड़े। शादाब ने जल्दी से एक बड़ी सी थाली ली और भैंस के पीछे खड़ा हो गया। दर्द के मारे भैंस इधर उधर घूम रही थी और शादाब उसके पीछे पीछे। थोड़ी देर बाद आखिरकार उसने बच्चे को जन्म दे दिया और शादाब ने अपनी सूझ बूझ से बच्चे को नीचे नहीं गिरने दिया। कमला बहुत खुश हुई और बोली:"

" बहुत ही बढ़िया बेटे। तुमने तो इस बच्चे को नई ज़िन्दगी दी है। तुम दोनो के कदम मेरे घर में बहुत शुभ पड़े हैं।

शादाब ने बच्चे को नीचे भैंस के पास कच्चे में लिया दिया और भैंस खुशी खुशी अपने बच्चे को अपनी जीभ से चाटने लगी।

शादाब:" क्यों शर्मिंदा कर रही हो आंटी, ये तो मेरा फ़र्ज़ था। आखिर अजय मेरे भाई जैसा ही तो हैं। वो नहीं हैं घर तो सारे काम मुझे ही देखने पड़ेंगे।

थोड़ी देर अजय और सौंदर्या भी अा गए और छोटे बच्चे को देखकर सौंदर्या खुशी से भर उठी।

सभी थोड़ी देर बाद घर अा गए और बैठ कर बाते होने लगी। सभी उत्सुक थे ये जानने के लिए कि वहां पर क्या हुआ और आचार्य जी ने सौंदर्या के लिए क्या उपाय बताया है।

कमला:" बेटा क्या कहा आचार्य जी ने ? क्या उपाय बताया हैं उन्होंने ?

अजय:" मम्मी उपाय उन्होंने बता दिया है और साथ ही साथ ये भी सलाह दी हैं कि अगर करने से पहले मैंने किसी को बता दिया तो उपाय करने का कोई फायदा नही होगा फिर।

अजय की बात सुनते सब लोग उसकी तरफ देखने लगे और एक खामोशी सी छा गई। अजय ko समझ नहीं आ रहा था कि वो सौंदर्या वाली राशि की एक अनुभवी औरत का कैसे इंतजाम करे इसलिए अपनी मम्मी से बोला:"

" मम्मी महाराज ने पूजा और उसकी कुछ विधियां बताई हैं जो सौंदर्या को करनी होगी हमे कुछ मंदिरों में जाना होगा और उसके बाद हरिद्वार में पूरी पूजा को अंजाम देना होगा। लेकिन एक दिक्कत अा रही है कि हमे सौंदर्या की राशि की ही कोई परिपक्व औरत हेल्प के लिए चाहिए जो सौंदर्या को पूजा और उसकी विधि के बारे में सब कुछ बता सके। ये दिक्कत हैं एक।

अजय की बात सुनकर कमला सोच में पड़ गई जबकि शादाब और शहनाज़ ये राशि बात समझ नहीं आ रही थी।

शहनाज़:" अजय बेटा ये राशि क्या होती हैं ? मुझे थोड़ा इसका बारे में बताए।

अजय:" देखिए हिन्दू धर्म के अनुसार कुछ राशियां होती है जो इंसान के नाम से पहले अक्षर पर आधारित होती है।

शहनाज़:" ओह इसका मतलब तो ये हुआ कि मेरी और सौंदर्या की एक ही राशि होनी चाहिए। मैं सही बोल रही हूं ना ?

अजय:" हान बिल्कुल आप सही बोल रही है, आप दोनो की एक ही राशि हैं और वो हैं कुंभ।

शहनाज़:" इसका मतलब तो ये हुआ कि मैं राशि वाले मुद्दे पर तुम्हारी मदद कर सकती हूं। मतलब मेरी राशि भी सौंदर्या से मेल खाती है और मैं परिपक्व भी तो हूं ही।

शहनाज़ की बात सुनकर थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छाया रहा। कमला शहनाज़ की इस बात से हैरान थी वहीं अजय जानता था कि पूजा की विधियां और उसमे आने वाली मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए शहनाज़ इस काम के लिए सही नहीं हैं क्योंकि वो उसके दोस्त की सगी मा हैं।

अजय:" लेकिन माफ कीजिए आंटी जी, पूजा की विधि इतनी आसान नहीं है जितनी आप समझ रही हैं। इसमें आगे चलकर बहुत सारी दिक्कतें अा सकती हैं।

शहनाज़:" मैं हर दिक्कत का सामना कर लूंगी। सौंदर्या को मैंने अपनी बेटी, अपनी बहन मान लिया है इसलिए मैं उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।

अजय:" लेकिन फिर भी आप समझने की कोशिश कीजिए। सारी पूजा और विधियां हिन्दू धर्म के रीति रिवाज के अनुसार होगी और आप एक मुस्लिम हैं। आपको दिक्कत हो सकती हैं।

शहनाज़ के चेहरा गुस्से से लाल हो गया और वो अजय को घूरते हुए बोली:"

" वाह अजय कमाल कर दिया तुमने, जब तुमने रेशमा को राखी बांधी, सौंदर्या ने शादाब को राखी बांधी, तुमने अपनी जान पर खेलकर हम सबकी जान बचाई और आज मैं तुम्हारे लिए मुस्लिम हो गई।

अजय शाहनाज के क़दमों में गिर पड़ा और उनके पैर पकड़ते हुए बोला:" मुझे माफ़ कर दीजिए अगर आपको मेरी बात बुरी लगीं हो तो। मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं था। मैं तो सिर्फ धर्म के रीति रिवाज के आधार पर बात कर रहा था।

शहनाज़ ने उसे उपर उठाया तो देखा कि अजय की आंखे भर आई थी तो शहनाज़ ने अपने दुपट्टे के पल्लू से उसका मुंह साफ किया और बोली:"

" तुम एक बहादुर बेटे हो। तुम्हारे आंखो में आंसू अच्छे नहीं लगते। देखो ये जात पात धर्म सब इंसान ने बनाए हैं और उस अल्लाह/भगवान् ने हमे सिर्फ इंसान बनाया है। इंसान का काम होता है एक दूसरे के काम आना और उनकी मदद करना। मैंने सौंदर्या को अपनी छोटी बहन मान किया है इसलिए उसकी हर समस्या अब मेरी समस्या हैं। फिर भी अगर तुम्हे लगता हैं कि मैं इसके लिए सही नहीं हूं तो तुम किसी और कि साथ ले जा सकते हो।

इतना कहकर शहनाज़ चुप हो गई और कोई कुछ नहीं बोला। सभी लोगो ने साथ में खाना खाया और उसके बाद कमला और अजय एक बार घेर की तरफ अपनी भैंस को देखने के लिए अा गए।

कमला:" कब जाना होगा तुम्हे सौंदर्या को पूजा के लिए लेकर ?

अजय:" मम्मी कल सुबह ही जाना होगा।

कमला:" फिर सौंदर्या की राशि की कौन परिपक्व औरत तेरे साथ जायेगी ? क्या सोचा हैं तुमने ?

अजय:" मम्मी अभी तो कुछ नहीं, आप ही कुछ मदद कीजिए।

कमला ने अपने दिमाग पर जोर दिया तो उसे दो नाम समझ में आए एक सपना और दूसरी सीमा।

कमला:" अच्छा सपना और सीमा के बारे में क्या खयाल हैं तुम्हारा ? उनकी राशि भी तो कुंभ ही हैं बेटा।

अजय:" हान ये बात तो हैं। लेकिन मम्मी सपना और परिपक्व नहीं है और सीमा परिपक्व तो हैं लेकिन उसकी टांग में दिक्कत होने के कारण उसका शरीर खंडित हैं इसलिए उसकी मदद नहीं ली जा सकती।

दोनो मा बेटे सोच में पड़ गए। बात तो अजय की बिल्कुल ठीक थी। थोड़ी देर सोचने के बाद कमला बोली:"

" फिर तेरे पास क्या उपाय हैं ? कोई नाम हैं क्या तेरी समझ में जो सौंदर्या की मदद कर सके।

अजय:" नहीं मम्मी अभी तो ऐसा कुछ नहीं है।

कमला:" जब अभी नहीं है तो फिर सुबह तक क्या तुम कोई जादू कर दोगे ? मेरे हिसाब से शहनाज़ का प्रस्ताव बुरा नहीं है बेटा। हमे भटकने की जरूरत नहीं है। घर बैठे ही इच्छित वर मिल रहा है और क्या चाहिए !!

अजय को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि पूजा कि जो विधियां थी वो अपनी मा समान शहनाज़ से खुलकर कैसे बोल सकता था। लेकिन अंत में उसने अपनी मां के सामने हथियार डाल दिए और बोला:"

" ठीक है मम्मी, जैसे आप चाहें। अगर आप सबकी यहीं मर्जी हैं तो मुझे कोई दिक्कत नहीं।

दोनो ने भैंस को देखा और उसके बच्चे को दूध पिलाया और उसके बाद घर की तरफ अा गए।

कमला:* लेकिन बेटा तेरे जाने के बाद भैंस का काम कौन करेगा? रामू तो मर गया कुत्ता कहीं का। अभी भैंस ने नया नया बच्चा दिया है मुझे अकेले दिक्कत होगी। जंगल से घास भी लेकर आना होगा।

अजय:" मम्मी एक रास्ता है आप शादाब से बात कीजिए। अगर वो मान जाए तो अच्छा रहेगा। जब तक हम लोग पूजा करके आएंगे वो घर रह सकता है और भैंस का काम आराम से कर सकता है।


कमला को ये विचार पसंद अाया और घर सबने बैठकर इस मुद्दे पर बात करी तो अंत में फाइनल ये हुआ कि शहनाज़ सौंदर्या के साथ पूजा में जाएगी और शादाब घर पर रहकर कमला की मदद करेगा। शहनाज़ सोच रही थी कि पूजा में शादाब भी उनके साथ जाएगा लेकिन यहां तो कहानी ही पूरी बदल गई। शहनाज़ के लिए अपने बेटे से दूर रहना बहुत मुश्किल था लेकिन सौंदर्या को इस मुश्किल से बचाने के लिए उसने कुछ दिन की जुदाई को स्वीकार कर लिया।

कमला:" बेटा तुम जाने की तैयारी करो, कब जाना होगा तुम्हे ?

अजय:" मम्मी हम सुबह 3:40 मिनट पर घर से निकल जाएंगे क्योंकि ये ब्रह्म काल का समय होता है और बहुत शुभ माना जाता है।

उसका बाद सभी जाने के लिए तैयारी करने में जुट गए। मौका देखकर शादाब अपनी अम्मी के पास आया और उसके मुंह को चूम लिया और बोला:"

" आपके बिना कैसे जी पाऊंगा मैं मेरी जान।

शहनाज़ भी अपने बेटे से लिपट गई और बोली:" थोड़ा सा सब्र करो। जुदाई से भी प्यार बढ़ता है शादाब मर राजा। थोड़े दिन की बात है वैसे भी अजय के हम पर एहसान हैं तो चुकाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।

इतना कहकर शहनाज़ ने अपने बेटे के होंठो पर अपने लिप्स रख दिए और चूसने लगी। दोनो मा बेटे के दूसरे को चूमने लगे और लेकिन अगले ही पल उन्हें अलग ही जाना पड़ा क्योंकि कमला उधर की अा गई थी।

आखिरकार अजय के जाने का समय हो गया तो उसने अपने गाड़ी बाहर निकाली और अपने मम्मी में पैर छूकर शादाब के गले लग गया।

एक एक करके शहनाज़ और सौंदर्या दोनो गाड़ी में बैठ गई और अजय ने गाड़ी को आगे बढ़ा और बाहर फैले अंधेरे में उसकी गाड़ी गुम होती चली गई और ऐसे सफर पर चल पड़ी जिसकी मंजिल क्या रंग दिखाएगी किसी को मालूम नहीं था।
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गाड़ी अपनी रफ़्तार से अंधेरे को चीरती हुई आगे बढ़ रही थी और पीछे शहनाज़ और सौंदर्या दोनों आपस में बैठी हुई बाते कर रही थी। अजय का पूरा ध्यान इस समय गाड़ी चलाने पर था क्योंकि कुछ भी करके उसे सुबह दिन निकलने से पहले झालू नदी तक पहुंचना था लेकिन बीच बीच में उसके कानों में उनकी आवाजे भी पड़ रही थी।

सौंदर्या:" आपको किन शब्दो में थैंक्स बोलु मैं समझ नहीं आता। आप मेरे लिए धर्म की दीवार गिराकर अाई हैं।

शहनाज़:" उसकी जरूरत नहीं है, धर्म इंसान की खुशियों से बढ़कर नहीं होता। बस ये समझ लो कि इंसान ही दूसरे इंसान के काम आता है। एक बात और अब आगे से धर्म की बात मत करना तुम समझी। तुम मेरे किए मेरी छोटी बहन जैसी हो बस यही मेरा धर्म हैं।

सौंदर्या ने स्नेहपुर्वक शहनाज़ की तरफ देखा और उसे जवाब में स्माइल दी और बोली:"

" जैसी आपकी आज्ञा मेरी बड़ी बहन शहनाज़ जी।

शहनाज़ ने अपना एक हाथ प्यार से उसके कंधे पर रख दिया और बोली:" वैसे तुम्हे इस मांगलिक होने की वजह से काफी दुख होता होगा ना सौंदर्या।

सौंदर्या ने एक आह भरी और उसके चेहरे पर दर्द के भाव साफ नजर आए और बोली:"

" सच कहूं तो मुझे बहुत बुरा लगता है। मेरे मांगलिक होने में मेरी कुछ भी गलती नहीं, लेकिन काफी अच्छे घरों से रिश्ते आए और सबने पसंद भी किया लेकिन जैसे ही मांगलिक की बात सामने आई तो सभी ऐसे भाग गए जैसे किसी भूत को देखकर डर गए हो वो सभी।

शहनाज़:" अरे कोई बात नहीं सौंदर्या। वो सब छोटी सोच के लोग थे और तुम्हारे लायक नहीं थे। तुम्हारे लिए तो कोई राजकुमार आएगा। बस कुछ दिन की ही तो बात हैं फिर सब ठीक हो जाएगा।

सौंदर्या ने अब तक अपने मांगलिक होने के कारण उसके साथ हुए भेदभाव को याद किया तो उसकी आंखे भर आई और वो भरे हुए गले से बोली:"

"देखो देखो मेरे अंदर क्या कमी हैं, पढ़ी लिखी हूं, सुंदर हूं लेकिन फिर भी लोग मेरी भावनाओं से खेले हैं। दीदी कभी कभी तो मन करता हैं कि जहर खाकर मर ही जाऊं मै।

इतना कहकर सौंदर्या की आंखो से आंसू निकल पड़े तो शहनाज़ ने उसे अपने गले से लगा लिया और उसकी कमर थपकते हुए बोली:"

" बस सौंदर्या बस, ऐसे रोते नहीं है। तुम्हारे बुरे दिन अब खत्म समझो। मैं अा गई हूं ना तेरी ज़िन्दगी में अब।

गाड़ी चला रहा अजय भी अपनी बहन की बाते सुनकर दिल ही दिल में रो पड़ा। उसने गाड़ी की स्पीड और बढ़ा दी क्योंकि वो चाहता था कि अब उसकी दीदी अब जल्दी से जल्दी ठीक हो जाए।

सौंदर्या अभी तक शहनाज़ की छाती से चिपकी हुई सुबक रही थी और शहनाज़ किसी छोटे बच्चे की तरह उसे दिलासा दे रही थी।

सौंदर्या:" दीदी मैं ठीक तो हो जाऊंगी ना ? मुझे मुक्ति मिल जायेगी ना इस मुसीबत से ?

शहनाज़:" हान तुम बिल्कुल ठीक हों जाओगी। हम सब मिलकर सारी विधियां और उपाय बिल्कुल अच्छे से करेंगे ताकि तुम्हे इस मांगलिक योग से छुटकारा मिल जाए मेरी बहन।

सौंदर्या की सिसकियां बंद हो गई और शहनाज़ से चिपकी हुई ही बोली:"

" पता नहीं कैसी विधियां होगी, क्या उपाय होंगे , क्या करना होगा हमे ? कहीं ज्यादा मुश्किल हुई तो फिर दिक्कत होगी ?

शहनाज़ ने उसका चेहरा उपर उठाया और अपने रुमाल से उसके आंसू साफ करते हुए बोली:"

" कोई दिक्कत नहीं होगी। कैसी भी विधि हो चाहे कुछ भी उपाय हो मैं हर हालत में पूरा करूंगी ताकि तुम्हे इस मुसीबत से मुक्ति मिल जाएं। अब तुम्हे बहन बोला हैं तो बड़ी बहन का फ़र्ज़ तो निभाना ही होगा मुझे। और अजय भी तो हैं और मुझे उस पर पूरा भरोसा है कि वो कैसी भी कठिन विधि हो आसानी से करने में हमारी मदद करेगा।

सौंदर्या इस बार फिर से उसके गले लग गई और इस बार उसने शहनाज को कसकर पकड़ लिया। शहनाज़ भी खुश थी कि सौंदर्या उसे समझ रही थी और उस पर यकीन कर रही थीं।

अजय को ये सुनकर बेहद सुकून महसूस हुआ कि सौंदर्या के साथ साथ शहनाज भी उस पर पूरा भरोसा करती हैं। गाड़ी टॉप गियर में चल रही थी और अंधेरे को चीरती हुए आगे बढ़ती ही जा रही थी मानो जल्दी दे जल्दी अपनी आसमान को छूना चाहती हो।

अजय की मेहनत रंग लाई और सुबह करीब पांच बजे के लगभग वो नदी के तट पर पहुंच गया तो उसने राहत की सांस ली क्योंकि उसने अपने मकसद में कामयाब का पहला चरण हासिल कर लिया था। गाड़ी को उसने किनारे पर रोका और उसके बाद गाड़ी से उतर गया। पीछे पीछे शहनाज़ और सौंदर्या भी उतर गई तो बाहर सुबह के मौसम की ठंडी हवाओं ने उनका स्वागत किया तो दोनो के बदन में एक पल के लिए कंपकपी सी दौड़ गई। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और उसके बाद दोनो की नजर एक साथ नदी में बह रहे पानी पर पड़ी तो दोनो के चेहरे पर एक मुस्कान अाई और दोनो अजय के पीछे चल पड़ी।

अजय:" आचार्य जी के कहे अनुसार हमे यहीं से अपनी पूजा का पहला चरण शुरू करना हैं। आज मंगलवार है और आज के दिन सुबह सूरज निकलने से पहले नदी के बीच में जाकर हनुमान जी को याद करके आसमान की तरफ अपनी देने से मंगल ग्रह का प्रभाव काफी हद तक कम होता हैं।

शहनाज़ और सौंदर्या दोनो पहले से ही सोच रही थी कि कहीं इस पानी में डुबकी ना लगानी पड़ जाए और वहीं उनके साथ हुआ।

शहनाज़:" ठीक है हम दोनों इसके लिए तैयार हैं। पानी थोड़ा ठंडा होगा लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

अजय: ठीक है इस पूजा में काफी सारी बाधाएं और मुश्किल काम आएंगे लेकिन हमें ऐसे ही करना होगा। अब आचार्य जी के कहे अनुसार सबसे पहले आप नदी में जाए और डुबकी लगाकर सौंदर्या को दिखा दीजिए।

जैसे ही अजय ने अपनी बात खत्म करी तो ठंडे पानी के एहसास से ही सौंदर्या के जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए और उसने शहनाज़ का हाथ कसकर पकड़ लिया तो शहनाज़ ने उसकी तरफ देखा और अपना हाथ छुड़ाते हुए आगे बढ़ गई। शहनाज ने देखा कि नीचे नदी की बाउंड्री हुई थी और कुछ लोहे की जंजीर एक पाइप के सहारे बंधी हुई थी जिसे पकड़कर लोग नहाते थे। नीचे नदी में उतरने के लिए एक छोटा सा मिट्टी का रास्ता था और आसमान में रोशनी बहुत कम थीं। शहनाज़ सावधानी से कदम रखते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी और लगभग नदी के करीब पहुंच गई थीं। जैसे ही वो नदी के करीब पहुंची तो उसका पैर पत्थर में लगकर फिसल गया और शहनाज़ के मुंह से एक दर्द भरी चींखं निकली और वो तेजी से फिसलती हुई सीधे नदी की धारा के बीच में पूरी और अपने वजन के साथ नीचे डूबती चली गई।

उपर खड़ी सौंदर्या के मुंह से डर और दहशत के मारे चींख निकली और अजय ने समझदारी से काम लेते हुए कपड़ों सहित नदी में छलांग लगा दी। शहनाज़ जितनी तेजी से नीचे गई थी पानी के दबाव के कारण उससे कहीं ज्यादा तेजी से उपर की तरफ अाई और उसने अपनी जान बचाने के लिए पानी में हाथ पैर मारने शरू किए और उम्मीद से अजय और सौंदर्या की तरफ देखा लेकिन अजय उसे दिखाई नहीं दिया। शहनाज के चेहरे पर मौत का खौफ साफ नजर आया तभी उसे पानी में हलचल होती दिखी और अजय तेजी से पानी को धार को चीरता हुआ उसकी ही तरफ बढ़ रहा था तो उसे उम्मीद की एक किरण नजर आईं और देखते ही देखते अजय उसके पास पहुंच गया और अपने एक हाथ को कमर में फंसा कर कंधे से उसे पकड़ लिया और तैरता हुआ किनारे की तरफ आने लगा। शहनाज़ डर के मारे उससे लिपट सी गई थी और देखते ही देखते अजय नदी के किनारे पर पहुंच गया और दोनो बाहर निकल गए। अजय की समझदारी की वजह से शहनाज़ के मुंह के अंदर पानी नहीं घुसा था और पूरी तरह से ठीक थी। पानी से बाहर निकलते ही शहनाज़ अजय से कसकर लिपट गई क्योंकि उसने अभी अभी साक्षात मौत के दर्शन किए थे और अजय की वजह से उसे आज दूसरी बार नई ज़िन्दगी मिली थी। सौंदर्या भी नीचे नदी के पास बनी बाउंड्री पर अा गई और वो भी उन दोनो से लिपट गई। शहनाज ठंडे पानी की वजह से अभी तक कांप रही थी।

शहनाज़:" अजय बेटा समझ नहीं कैसे तुम्हे शुक्रिया कहूं। आज तुम बा होते तो मेरा बचना मुश्किल होता।

अजय:" आप हमारे साथ हमारी मदद के लिए अाई हैं और आपकी किसी भी परिस्थिति में रक्षा करना मेरा फ़र्ज़ है।

थोड़ी देर के बाद धीरे धीरे अंधेरा कम होता जा रहा था और शहनाज़ बोली:"

" अरे धीरे धीरे प्रकाश फैल रहा है मुझे जल्दी से डुबकी लगानी होगी।

अजय नदी में उतर गया और उसने पानी के बीच में जाकर लोहे कि जंजीर को पकड़ लिया और बोला:"

" आप अब बेफिक्र होकर नदी में आइए। मैं आपकी रक्षा के लिए यहीं खड़ा हुआ हूं।

शहनाज धीरे धीरे आगे बढ़ी और देखते ही देखते नदी में उतर गई। उसने एक बार अजय की तरफ देखा और नीचे पानी में डुबकी लगाई। थोड़ी देर के बाद शहनाज़ फिर से पानी में ऊपर अाई और फिर से एक डुबकी लगाई। सौंदर्या ध्यानपूर्वक खड़ी हुई सब देख रही थी और उसने बाद शहनाज़ ने एक और डुबकी लगाकर अपने दोनो हाथो में जल लिया और ऊपर की तरफ देखते हुए आसमान में अर्पित कर दिया। उसके बाद शहनाज़ नदी के किनारे पर आकर खड़ी हो गई। उसके बाद सौंदर्या ने पानी में डुबकी लगाई और जल अर्पित किया। नदी पर जल अर्पित करने की रस्म पूरी हो गई थी और अब धीरे धीरे हल्का हल्का प्रकाश फैल रहा था तभी सौंदर्या ने शहनाज़ को कुछ इशारा किया और वही नदी पर खड़ी झाड़ियों के पीछे अपना पेट साफ करने के लिए चली गई। शहनाज़ ने इस वक़्त एक बुर्का पहना हुआ था और भीग जाने के कारण उसने उसने उतार देना हो बेहतर समझा और उसने अपना अपना भीगा हुआ बुर्का उतार दिया। शहनाज़ के बुर्का उतारते ही वो मात्र एक जामुनी रंग के सूट सलवार में अा गई जो की पहले से काफी टाईट था और अब पानी में भीगने के कारण उसके जिस्म से पूरी तरह से चिपक गया था।


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शहनाज़ के हर एक अंग का कटाव पूरी तरह से निखर कर साफ दिख रहा था। वो अपने गीले बालों से पानी को झाड़ झाड़ कर सुखा रही थी और अजय की तरफ अभी उसकी पीठ थी। उसकी पतली लम्बी सी खूबसूरत गर्दन उसके कंधो का आकार, पीछे से दिखता चिकनी कमर का खूबसूरत हिस्सा जिस पर थोड़े से पहले हुए काले बाल, हल्की सी मोटी लेकिन कामुक कमर और उसकी सूट के उपर से झलकता हुआ उसके पिछवाड़े का उभार पूरी तरह से कहर ढा रहा था। अजय ने आज पहली बार शहनाज़ को बिना बुर्के के देखा था और उसके दिल और दिमाग में उसकी खूबसूरती बस गई थी। अजय समझ रहा था कि पिछवाड़े का उभार तो सौंदर्या के भी जबरदस्त था लेकिन उसमें शहनाज़ के मुकाबले कठोरता अधिक थी जबकि शहनाज़ का पिछ्वाड़ा पूरी तरह से गोल होकर लचकदार हो गया था और सौंदर्या की तुलना में कहीं ज्यादा कामुक प्रतीत हो रहा था। पिछले कुछ महीनों से लगातार सेक्स करने और अमेरिका में जिम में जाकर शहनाज़ जीती जागती क़यामत बन गई थी जिससे अजय आज पहली बार रूबरू हो रहा था।

तभी पीछे से उसे सौंदर्या के आने की आने की आहट हुई तो उसने दूसरी तरफ ध्यान दिया और नदी की तरफ देखने लगा। शहनाज़ भी पलट गई और उसने सौंदर्या को दूर से आते हुए देखा और उसे स्माइल दी।

शहनाज़ के पलटते ही खूबसूरत सा चेहरा अजय के मुंह की तरफ हो गया। शहनाज़ की नजरे सौंदर्या पर टिकी हुई थी जबकि अजय पूरी तरह से शहनाज़ और सिर्फ शहनाज़ की तरफ आकर्षित था। जहां एक ओर उसके गोल से खूबसूरत चेहरे पर बालो से टपकती हुई पानी की बूंदों उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही थी वहीं दूसरी तरफ भीगा हुआ सूट उसके सीने से पूरी तरह से चिपक गया था और उसके सीने का उभार साफ़ नजर आ रहा था। बालो से गिरती पानी की बूंदे उसकी छातियों की गहरी घाटी में गुम होती जा रही थी और अजय कभी उसके चेहरे को देखता तो कभी नजरे बचाकर उसके सीने के खूबसूरत उभारो को। तभी सौंदर्या उनके पास अा गई और उसके बाद सभी लोग गाड़ी में बैठकर आगे की तरफ चल पड़े। हल्की हल्की धूप खिली रही थी और सभी को भूख भी महसूस हो रही थी इसलिए अजय गाड़ी चलाते हुए खाने की खोज कर रहा था।

जल्दी ही उन्हे एक होटल नजर आया और अजय ने अपनी गाड़ी बाहर पार्क करी और उसके बाद तीनो ने एक कमरा लिया और अंदर चले गए।

अंदर जाने के बाद सभी लोग नहा धोकर फ्रेश हुए और अजय ने खाने का ऑर्डर कर दिया। आज मंगलवार होने के कारण सौंदर्या का व्रत था इसलिए वो बेड पर लेट गई और रात की थकी होने के कारण उसे नींद अा गई।

शहनाज़ और अजय ने खाना खाया और इसी बीच अजय उसे बार बार देख रहा था। शहनाज़ ने नहाकर फिर से बुर्का पहन लिया था और बेहद खूबसूरत लग रही थी। खाना खाने के बाद अजय बोला:"

" आंटी एक काम करते हैं सौंदर्या दीदी तो सो गई है और हमे शाम को फिर से लिंगेश्वर के लिए निकलना होगा और वहां पर पूजा की विधि पूरी तरह से बदल जाएगी जिसके लिए हमे कुछ वस्त्र और साड़ियां बाजार से लेने होंगे। जब तक दीदी सोती हैं तब तक हम अपना ये काम निपटा लेते हैं।

खाना खाने के बाद शहनाज़ के जिस्म में नई ऊर्जा का संचार हुआ था और उसका चेहरा पहले से ज्यादा चमक रहा था। अजय की बात उसे ठीक लगी और बोली:"

" ठीक है हम दोनों इतना सभी सामना खरीद लेते हैं ताकि पूजा में कोई दिक्कत ना आए।

उसके बाद दोनो उपर कमरे में गए और उन्होंने सौंदर्या के लिए सन्देश छोड़ दिया कि हम लोग बाजार जा रहे हैं तीन फिक्र मत करना।

जैसे ही वो चलने लगे तो अजय बोला:"

" आंटी एक बात पूछूं आपसे अगर बुरा ना लगे तो ?

शहनाज़ ने उसकी तरफ देखा और बोली:"

" हान बोलो अजय क्या बात है ? भला तुम्हारी बात का मुझे बुरा क्यों लगेगा ?

अजय: क्या आप शादाब के साथ अमेरिका में भी बुर्का पहनती थी ?

शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

"जी नहीं, मैं नहीं पहनती थी।

अजय:" क्यों ऐसा क्यों ?

शहनाज़:" क्योंकि वहां कोई मुझे जानता नहीं था। फिर बुर्का क्यों पहनती मैं ?

अजय:" ओह अच्छा। लेकिन यहां भी तो आपको कोई नहीं जानता और आप सच में बुर्के के बिना ज्यादा सुंदर लगती हैं।

अजय की बात सुनकर शहनाज़ ने गौर से उसके चहेरे को देखा और अजय ने शर्म से अपनी आंखे झुका ली तो शहनाज उसके भोलेपन पर स्माइल करते हुए बोली:"

" अच्छा जी मतलब मै तुम्हे अब अच्छी लगने लगी ?

शहनाज़ इसके दोस्त की अम्मी थी और शहनाज़ की बात सुनकर अजय डर गया और उसका जिस्म कांप उठा।

अजय हकलाते हुए बोला:" जी आंटी.. वो वो मेरा ऐसा मतलब नहीं था। बस आपको कोई नहीं जानता तो बर्क को मत पहनिए अगर आप चाहे तो। वैसे भी अब से आपको दूसरे कपडे ही पहनने होगे जो पूजा के लिए आचार्य जी ने बताए है।

शहनाज़:" अच्छा फिर तो ठीक है, मैं एक काम करती हूं, बुर्का उतार ही देती हूं।

इतना कहकर शहनाज ने अपना बुर्का उतार दिया और अब उसके जिस्म पर नीले रंग का सुंदर सूट और टाइट सलवार थी जिसमे वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। सूट गले पर थोड़ा सा ढीला था जिससे उसके सीने की गहराइयों की हल्की सी झलक मिल रही थी।



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बुर्का उतारकर वो पलटी और अजय की तरफ देखते हुए बोली:"

" अब ठीक है ना, देख पहले से ज्यादा सुंदर लग रही हू ना मैं।

अजय के सामने बला की खूबसूरत शहनाज़ खड़ी थी और अजय उसे देखते हुए बोला:"

" हान आंटी आप सच में बेहद खूबसूरत लग रही है इस ड्रेस में बिना बुर्के के।

शहनाज़ : अच्छा चल अब जल्दी से बाजार चलते हैं।

इतना कहकर शहनाज़ बाहर की तरफ चल पड़ी और अजय उसके साथ ही चल पड़ा। दोनो थोड़ी देर बाद कार में बैठे हुए थे और कार सड़क पर दौड़ रही थी।

शहनाज़:" अच्छा अजय आज सुबह में डर ही गई थी जब नदी में गिरी। तुम बिना अपनी परवाह किए मुझे बचाया उसके लिए दिल से धन्यवाद।

अजय:" सच कहूं तो मैं भी डर गया था एक पल के लिए। आपको बचाने के लिए मेरी जान भी चली जाती तो मुझे बुरा नहीं लगता कसम से।

शहनाज ने उसके मुंह पर अपनी एक अंगुली रख दी और बोली:"

" चुप, ऐसी मनहूस बाते जुबान से नहीं निकालते। आज के बाद ऐसी बात करी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

अजय खामोश हो और शहनाज़ की उंगली अभी तक उसके होंठो पर रखी हुई थी। शहनाज़ ने अपनी उंगली हटाई और अजय ने अपनी गलती मान ली और बोला:"

" ठीक है आज के बाद मैं ऐसी कोई बात नही करूंगा जिससे आपको ठेस पहुंचे।

शहनाज़ ने उसके गाल पकड़ कर खींच दिए और बोली:"

" तुम भी ना बिल्कुल शादाब पर गए हो। वो भी ऐसी ही हरकते करता है कभी कभी।

अजय:" ओह आंटी, दर्द होता है मुझे छोड़ दीजिए। मैं उसका दोस्त हूं भाई जैसा। इसलिए शायद दोनो की आदतें मिलती है।

शहनाज़ ने उसका गाल छोड़ दिया और बोली:" दोस्त नहीं अब तुम उसके भाई हो बस। आगे से ध्यान रखना।

अजय ने अपनी गर्दन हान में हिलाई और गाड़ी को आगे बढ़ा दिया। थोड़ी देर बाद ही वो बाजार में पहुंच गए और अजय गाड़ी से बाहर निकला और शहनाज़ के लिए दरवाजा खोल दिया। जैसे ही शहनाज़ आगे को झुक कर उतरी तो उसकी चूचियों का उभार थोड़ा सा उभर अाया और अजय की नजरे उन पर टिक गई। शहनाज़ जैसे ही बाहर निकल कर खड़ी हुई तो अजय ने नजरे बचाते हुए दरवाजा बंद किया और दोनो बाहर में पहुंच गए और सामान खरीदना आरंभ कर दिया।

अजय ने अपनी जेब से लिस्ट निकाली और दुकान वाले को दी तो दुकान वाले ने सभी सामान निकालना शुरू कर दिया।

अजय:" कितना समय लग जाएगा ?

दुकानवाला:" कोई दो घंटे लग जाएंगे। कुछ सामान मेरे पास हैं और बाकी गोदाम से लाना होगा।

अजय:" ठीक है आप सामान निकाल कर रखिए। हम लोग आते हैं।

इतना कहकर अजय आगे बढ़ा तो शहनाज़ भी उसके पीछे चल पड़ी और बोली:"

" अब तुम कहां जा रहे हो ?

अजय:" यहां दुकान पर भी क्या करना ? पास में ही एक चिड़ियाघर है। वहीं चलते हैं अगर आपको पसंद हो तो।

शहनाज़ का चेहरा खिल उठा और बोली:"

" मुझे जानवर बहुत पसंद है। चलते हैं बहुत मजा आएगा।

शहनाज़ और अजय दोनो चिड़ियाघर की तरफ चल पड़े और टिकट लेकर अंदर घुस गए। अंदर काफी चहल पहल थी और काफी लोग घूमने आए हुए थे। बीच बीच में कहीं, और बीच बीच में जानवर। बहुत सारे हिरण, जंगली भालू, टाइगर और दूसरे सभी जानवर।

शहनाज़:" अजय मुझे हाथी सफेद भालू देखने हैं। यहां हैं क्या ?

अजय:" हान बिल्कुल होने चाहिए।

अजय ने बोर्ड पर लिस्ट देखी और एक दिशा में चल पड़ा जहां सफेद भालू थे। आगे जाकर उसने देखा कि एक बड़ा सा जंगल बनाया गया था जिसके बीच में सफेद भालू थे और लोग चारो तरफ से उन्हें देख सकते हैं। भालू अभी शायद किसी पेड़ की पीछे थे और दिख नहीं रहे थे। अजय और शहनाज़ दूसरी तरफ से घूम गए ताकि उधर से दिख सके। आगे कुछ बड़े बड़े पेड़ थे जो नीचे झुक कर जमीन से मिल गए थे। अजय और शहनाज़ उधर ही पहुंच गए और उन्हें भालू थोड़े से नजर आने लगे तो शहनाज़ खुश हो गई। ठीक से देखने के लिए वो पेड़ के पास पहुंच गई और अंदर देखने लगी।

इधर सौंदर्या उठ गई थी और उसने अजय को फोन किया तो अजय अपनी बहन से बात करने लगा। शहनाज़ को अपने पीछे से कुछ हल्की हलकी आवाजे अा रही थी तो उसने उधर पेड़ के पीछे देखा तो उसे पत्तों के बीच कुछ हलचल महसूस हुई। रोमांच के चलते वो थोड़ा सा पीछे हुई और उसके कानों में अब हल्की लेकिन पहले से तेज सिसकियां गूंज रही थी।

शहनाज़ ने अंदर नजर डाली तो उसे पेड़ के नीचे एक लगभग उसकी ही उम्र की औरत नजर अाई जिसके साथ एक युवा नौजवान लड़का था और उसकी चूचियां चूस रहा था।

ये सब देख कर शहनाज़ के जिस्म में हलचल सी मच गई और वो अजय को देखते हुए सावधानी पूर्वक पेड़ के अंदर झांक रही थी। औरत लड़के के सिर को अपनी चूची पर दबा रही थी और शहनाज को चूची चूसने की आवाज अब ठीक से अा रही थी। शहनाज़ को अपने बेटे की कमी महसूस हुई कि काश अगर शादाब भी उसके साथ होता तो आज वो भी इसी पेड़ के नीचे चुद गई होती। शहनाज़ की आंखे वासना के कारण लाल हो रही थी और उसकी सीने के उभार अकड़ कर ठोस हो गए।

तभी उस लड़के ने अपना पायजामा नीचे किया और उसका लंड बाहर निकल अाया तो शहनाज को अपनी चूत में चीटियां चलती हुई महसूस हुई। लंड ज्यादा बड़ा नहीं था और उस औरत ने लंड को अपने हाथ में किया और उसे आगे पीछे करने लगी। देखते ही देखते शहनाज को लंड के आगे कुछ बेहद चमकीला और गुलाबी सा नजर आया। उफ्फ मेरे खुदा ये क्या हैं ? इसका लंड आगे से सुपाड़े से कैसा गुलाबी गुलाबी और चिकना हैं। ये कैसे हो गया कहीं इसे चोट तो नहीं लग गई।

लेकिन उसके के मुंह से तो मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थी इसका मतलब चोट नहीं लगी तो फिर ये इतना गुलाबी और अच्छा क्यों लग रहा है। देखते ही देखते उस औरत ने लंड के सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया और पता नहीं क्यों शहनाज़ को उस औरत से जलन सी महसूस हुई और अपने आप ही आज पहली शहनाज़ के मुंह में पानी अा गया।

तभी अजय ने फोन काट दिया और जैसे ही शहनाज़ की तरफ देखा तो पूरी तरह से बदहवाश सी शहनाज़ उसकी तरफ चल पड़ी। दूर सी आती शहनाज की चल थोड़ी लड़खड़ाई हुई थी और उसके सीने के उभार एक दूसरे को हराने के लिए उछल रहे थे। अजय ये देखकर हैरान हो गया और उसके पास अा गई। उसके चेहरे पर पसीना आया हुआ था और आंखे लाल हो गई थी।

अजय:" क्या हुआ आंटी आप ठीक तो हैं ?

शहनाज को कुछ समझ नहीं आया और बोली:"

" ये कैसा हो सकता है ? वो इतना गुलाबी और मनमोहक मैंने आजतक नहीं देखा।

अजय को कुछ समझ नहीं आया और बोला:"

" क्या हुआ ? क्या देखा आपने आंटी?

शहनाज जैसे होश में अाई और उसे अपने गलती का एहसास हुआ और वो एक लम्बी सांस लेते हुए बोली:"

" वो अजय वो सफ़ेद भालू। मुझे अच्छा लगा लेकिन उसका रंग थोड़ा गुलाबी सा था।

अजय:" गुलाबी तो नहीं था। मुझे तो बिल्कुल सफेद ही दिख रहे हैं। वो देखो ना आप।

शहनाज़ ने उसका हाथ पकड़ लिया और लगभग खींचते हुए बाहर की तरफ लाई और बोली:"

" मैंने देख लिया है बस। और नहीं देखना सौंदर्या रूम पर अकेली होगी। चलो तुम जल्दी से बस।

अजय को कुछ समझ नहीं आया और उसके साथ चल दिया। गाड़ी में बैठने के बाद अजय ने शहनाज़ को पीने के लिए पानी की बोतल दी और मदहोश सी हुई शहनाज़ उसे गटागट पीती चली गई। उसकी चूचियों में अभी तक कंपन हो रहा था और अजय उसकी चूचियों को ना चाहते भी देखने पर मजबूर था।

शहनाज़ ने अपनी आंखे बंद करी तो फिर से वहीं लंड का गुलाबी चिकना सुपाड़ा उसकी आंखो के आगे घूम गया और अपने आप ही उसकी जीभ निकली और उसके होंठो पर घूमने लगी। शहनाज़ की आंखे बंद होने के कारण की नज़रे पूरी तरह से उस पर ही टिकी हुई थी। कभी वो उसके लाल सुर्ख होंठो को देखता तो कभी रसीली पतली सी गुलाबी जीभ को देखता जो शहनाज़ के होंठो की सारी लिपस्टिक खा चूस चूस कर खा गई थी। शहनाज़ की चूचियां के बीच की लकीर अब काफी गहरी हो गई थी और अजय उसके अंदर पूरी अंदर तक अपनी नजरे घुसा रहा था।

अचानक से शहनाज़ अपनी जांघो को एक दूसरे से मसलने लगी और उसका सारा जिस्म कांप उठा तो अजय ने जैसे ही अपना हाथ उसके कंधे पर रखा तो शहनाज़ के मुंह से एक आह निकल पड़ी और जैसे ही उसकी अजय पर पड़ी उसका सारा जोश ठंडा होता चला गया।

अजय गाड़ी से उतरा और उसने दुकानवाले को पैसे दिए और फिर से गाड़ी में बैठ कर होटल की तरफ चल पड़ा। शहनाज़ अब काफी हद तक खुद पर काबू कर चुकी थी और अपने किए पर मन ही मन शर्मिंदा हो रही थी।

दोनो में कोई खास बात नहीं हुई और जल्दी ही होटल पहुंच गए। शाम का समय हो गया था। सौंदर्या ने आसमान की तरफ जल अर्पित करते हुए अपने व्रत को खोल दिया और फिर सबने साथ में खाना खाया।

उसके बाद अजय बोला;"

" पूजा का सभी सामान अा गया है और अब हमे लिंगेश्वर मंदिर जाना होगा।

शहनाज़:" वहां क्यों जाना पड़ेगा ? क्या होता है वहां ?

अजय:" लिंगेश्वर मंदिर यानी काम देवता का मंदिर। एक मांगलिक लड़की की ज़िन्दगी में शादी के बाद उसके और पति के बीच में प्यार बना रहे इसलिए वहां जाना होगा।

शहनाज़:" अच्छा ठीक है समझ गई मैं। कब चलना होगा ?

अजय:" बस आप दोनो तैयार हो जाइए। और हान इसके लिए आप दोनो को ही लाल रंग की साड़ी पहननी होगी। मै होटल वाले का हिसाब करता हूं तब तक आप दोनो साडी पहन लीजिए।

इतना कहकर अजय बाहर निकल गया और जाने से पहले एक एक पैकेट दोनों के हाथ में दे गया। शहनाज़ जब कभी किसी को साडी पहने हुए देखती थी वो उसे बेहद अच्छा लगता था। उसकी खुद इच्छा होती थी कि को भी साडी पहने लेकिन पारिवारिक माहौल के चलते वो पहन नहीं पाई। आज जब उसे पता चला कि उसे साडी पहनने के लिए मिल रही हैं तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। शहनाज़ अंदर ही अंदर खुशी से झूम रही थी क्योंकि आज उसका एक बहुत बड़ा ख्वाब पुरा होने जा रहा था। शहनाज़ हाथ में साडी लिए खड़ी थी और उसे बार बार पलट पलट कर देख रही थी लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं अा रहा था कि इसको कैसे पहनना हैं। इसलिए वो सौंदर्या से बोली:"

" साडी तो बहुत सुंदर लग रही हैं लेकिन सौंदर्या मैंने तो आज तक कभी साडी नहीं पहनी और मुझे पहननी नहीं आती।

सौंदर्या:" आप चिंता मत कीजिए। मैं आपको पहना दूंगी।

शहनाज़:" अरे आप बहुत ज्यादा खूबसूरत लगेगी, साडी में आपका ये रूप और भी ज्यादा निखर जाएगा।

इतना कहकर सौंदर्या ने शहनाज़ के हाथ में पकड़े पैकेट को लिया और खोलने लगीं। जल्दी ही उसके हाथ में एक बहुत ही शानदार साडी थी।

सौंदर्या:" अब आप एक काम कीजिए। आप ये कपडे उतार दीजिए ताकि आप साडी पहन सके।

शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

" कपडे क्या तुम्हारे सामने ही उतारू अपने ? मुझसे नहीं होगा। मैं नहीं हो सकती नंगी।


सौंदर्या:" अरे बाबा मेरी प्यारी बहन नंगी होने की जरूरत नहीं है आप बस अपना सूट सलवार उतार दीजिए। ब्रा पेंटी पहने रखिए आप।

शहनाज़ को समझ नहीं आया कि क्या करे लेकिन फिर उसने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए क्योंकि वो ज्यादा देर नहीं करना चाहती थी ताकि पूजा में कोई देरी ना हो। शहनाज़ के जिस्म पर अब सिर्फ लाल रंग की ब्रा पेंटी थी और उसे हल्की शर्म अा रही थी। शहनाज़ की गोल गोल मोटी चूचियां का उभार खुलकर नजर अा रहा था और खूबसूरत चिकना हल्का सा भरा हुआ पेट जिसमे गहरी नाभि बेहद कामुक लग रही थी। शहनाज़ की गोरी गोरी चिकनी जांघें और उसकी छोटी सी पेंटी में उसके पिछवाड़े का कामुक उभार अपनी जानलेवा छटा बिखेर रहा था।



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शहनाज़ के इस कामुक अवतार और उसके गोरे गोरे भरे हुए जिस्म के कटाव देखकर सौंदर्या को उससे जलन सी महसूस हुई और बोली:"

" ओह माय गॉड। आप तो इस उम्र भी कमाल की है शहनाज़ दीदी। अगर मैं लड़का होती तो आपसे शादी कर लेती अभी।

शहनाज़ अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गई और फिर बोली:"

" अच्छा जी। तुम भी सुंदर हो सौंदर्या अपने नाम की तरह। अच्छा चलो जल्दी से मुझे साडी पहननी सिखाओ। मुझे शर्म अा रही हैं ऐसे।

सौंदर्या अपनी आंखो से शहनाज़ के जिस्म का लुत्फ उठाते हुए आगे बढ़ी और उसने साडी को शहनाज़ के हाथ से ले लिया। सबसे पहले उसने शहनाज़ के हाथ से ब्लाउस लिया और शहनाज़ को बताया कि इसे ठीक ब्रा की तरह पहना जाता हैं। सौंदर्या ने ब्लाउस को शहनाज़ की छाती पर टिका दिया और उसे ठीक करने लगी। ये एक बहुत ही आकर्षक साडी से मिलता हुआ छोटा सा लाल रंग का ब्लाउस था जिसमें सौंदर्या का पूरा पेट नंगा नजर अा रहा था। उपर ब्लाउस में उसके दोनो गोरे गोरे कंधे साफ नजर आ रहे थे। सौंदर्या ने ब्लाउस को थोड़ा सा ऊपर किया ताकि वो ठीक से बंध जाएं। ऐसा करने से उसकी उंगलियां शहनाज़ की चूचियों के उभार से छू गई और उसे अजीब सी गुदगुदी का एहसास हुआ।

शहनाज़:" उफ्फ तुम भी ना, क्या करती हो सौंदर्या। ध्यान से बांधो। इधर उधर मत छुओ अजीब सा महसूस होता है।

सौंदर्या:" ध्यान से ही बांध रही हूं दीदी। लेकिन क्या करू आपका जिस्म हैं ही इतना चिकना कि मेरी उंगलियां खुद ब खुद ही फिसल रही हैं।

इतना कहकर उसने उसने फिर से इस बार जान बूझकर अपने हाथ का हल्का सा दबाव उसके उभार पर दिया तो शहनाज़ के जिस्म में एक अजीब सी लज्जत का एहसास हुआ और वो सौंदर्या के गाल खींचते हुए बोली:"

" सुधर जाओ तुम सौंदर्या की बच्ची नहीं तो मुझसे बुरा को नहीं होगा।

सौंदर्या उसके गाल खींचे जाने से मीठे मीठे दर्द को सहते हुए बोली:"

" जो जी अब तारीफ करना भी बुरा हो गया। वैसे क्या बुरा करोगी आप मेरे साथ ?

इतना कहकर सौंदर्या उसकी पीठ के पीछे गई और उसके ब्लाउस के पिन को उसकी पीठ पर लगाने लगी। शहनाज़ की गोरी चिकनी मस्त पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे अजीब सा आनंद अा रहा था। शहनाज़ को इससे बेचैनी सी महसूस हो रही थी और बोली:"

" कुछ भी कर दूंगी तेरे साथ में समझी। मुझे परेशान मत करो जल्दी से इसके पिन लगा दो तुम।

सौंदर्या ने अपने अंगूठे का दबाव उसकी कमर पर दिया और उसकी पिन लगा दी तो शहनाज़ ने राहत की सांस ली। सौंदर्या ने अब साडी का एक पल्लू पकड़ लिया और साडी को शहनाज़ को दिखाते हुए गोल गोल घुमाया और फिर वो आगे बढ़ी और उसने साडी के गोल हुए हिस्से को शहनाज़ के पिछवाड़े पर टिका दिया और उसे खोलने लगी। साडी के पल्लू को उसने अंदर की तरफ मोड़ कर साडी को शहनाज़ के गोल गोल घुमाते हुए उसके पिछवाड़े को लपेट दिया और साडी गोल गोल होकर उसकी जांघो से लिपट गई। साडी का दूसरा हिस्सा अभी नीचे ही पड़ा हुआ था। सौंदर्या के हाथो अपने बदन पर लगने से शहनाज़ की सांसे हल्की सी तेज हो गई थी।

सौंदर्या ने साडी के दूसरे पल्लू को हाथ में लेते हुए ऊपर उठाया और उसके ब्लाउस के नीचे घुसा दिया और बोली:"

क्या बात करती हो दीदी आप। किसी लड़के ने तो आज तक मेरे साथ कुछ नहीं किया। आपके पास तो कुछ हैं भी नहीं करने के लिए।

सौंदर्या की बात सुनकर शहनाज़ हंस पड़ी और सौंदर्या भी हंसने लगी। अजय बाहर खड़ा हुआ उनका इंतजार कर रहा था और दोनो के हंसने की आवाजे सुनकर वो अंदर आया तो उसकी नजर शहनाज़ पर पड़ी।

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" क्या हुआ सौंदर्या दीदी क्या मिल गया जो आप दोनो इतना खुश हो....

अजय के आगे के शब्द शहनाज़ पर नजर पड़ते ही उसके मुंह में रह गए। रंग की साड़ी और छोटे से ब्लाउस में वो शहनाज़ को देखते ही ठगा सा खड़ा रह गया।शहनाज़ का गोल गोल सुंदर चेहरा, चेहरे के चारो और फैले हुए खुले काले बाल, गले में एक लाल रंग की ज्वेलरी का खूबसूरत सेट, शहनाज़ के गोरे गोरे चिकने कंधे और ब्लाउस छोटा होने के कारण उसका दूध सा गोरा सफेद पेट संगमरमर की तरह चमक रहा था। पेट में उसकी गहरी नाभि बहुत ही सुन्दर लग रही थी। हल्की सी चर्बी शहनाज़ के पेट को और भी सुंदर बना रही थी।
अजय पूरी तरह से शहनाज़ का दीवाना हुए उसे देख रहा था और शहनाज़ को कहीं ना कहीं अब शर्म महसूस हो रही थी।

सौंदर्या:" क्या हुआ भैया ? देखो सच में मेरी शहनाज़ दीदी कितनी सुंदर लग रही है साडी में ?

अपनी तारीफ सुनकर शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई थी और अजय अपने आपको संभालते हुए बोला:""

" सचमुच दीदी, शहनाज़ आंटी ने तो कमाल कर दिया। बिल्कुल स्वर्ग से अाई हुई अप्सरा सी लग रही है।

शहनाज़ अपनी तारीफ सुनकर पूरी खुश थी। उसे आज महसूस हो रहा था कि सच में वो साडी में बहुत ज्यादा सुंदर लगती है। सौंदर्या को अजय का शहनाज़ का आंटी कहना अच्छा नहीं लगा और बोली:"

" भाई देखो शहनाज़ दीदी की मेरी जितनी ही तो उम्र हैं। फिर तो मुझे दीदी कहते हो और इन्हे आंटी जबकि ये किसी भी तरह से आंटी नजर नहीं आती हैं।

अजय ने फिर से मौके का फायदा उठाते हुए एक बार शहनाज़ को ऊपर से नीचे तक हसरत भरी निगाहों से देखा और बोला:"

" बिल्कुल सही कहा आपने दीदी, ये तो बिल्कुल भी आंटी नहीं हो सकती। आप भी बताओ मैं इन्हे क्या कहकर बुलाऊ फिर ?

सौंदर्या:" मुझे दीदी बोलते हो तो उन्हें दीदी ही कह कर बुलाओ तुम, क्यों शहनाज़ दीदी आपको ऐतराज़ तो नहीं हैं ?

शहनाज़ को आज उसकी ज़िन्दगी की बहुत बड़ी सौगात मिली थी अजय और सौंदर्या की वजह से इसलिए सौंदर्या की तरफ देखते हुए बोली:"

" मुझे कोई ऐतराज़ नहीं भला क्यों होगा ? हान सच कहूं तो आंटी सुनकर अजीब सा लगता था मुझे। लेकिन शर्म के मारे बोल नहीं पाई ।

अजय:" ठीक हैं फिर, आज से मैं आपको ठीक ही कहूंगा फिर। अब आप दोनो खुश हो ना।

शहनाज़ और सौंदर्या दोनो ने अजय को स्माइल दी और अजय बोला:"

" अच्छा दीदी आप भी जल्दी से साडी पहन लो। नहीं तो हम लेट हो जाएंगे।

सौंदर्या:" बस दो मिनट रुको मैं अभी अाई।

इतना कहकर सौंदर्या अंदर दूसरे कमरे में चली गई और अब कमरे में शहनाज़ और सौंदर्या दोनो अकेले रह गए थे।

शहनाज़:" अच्छा एक बात सच बताओ अजय क्या मैं सच में बहुत खूबसूरत लग रही हूं साडी पहनकर ?

अजय:" चाहे तो कोई भी कसम ले लो मुझसे, आप सुंदर नहीं बल्कि क़यामत लग रही है मेरी शहनाज़ दीदी।

अजय से मुंह से कयामत शब्द सुनकर सौंदर्या शर्म से लाल हो गई और अजय बोला:"

" आप एक काम कीजिए, ये सामने शीशा लगा हैं खुद ही देख लीजिए आप।

इतना कहकर अजय ने उसकी बांह पकड़ी और उसे शीशे के सामने खड़ा कर दिया। शहनाज़ ने अपने आपको शीशे में देखा और खुद लर ही मोहित हो गई। वो घूम घूम कर खुद को देख रही थी और अजय नजरे बचाकर उसके पेट, उसकी गहरी नाभि को देख रहा था।

शहनाज़ ने मेक अप किट से एक लिपस्टिक उठाई और शीशे में देखते हुए अपने लिप्स को रंगीन बनाने लगी। तभी अचानक से शीशा नीचे गिर कर टूट गया। शहनाज़ अब लिपस्टिक कैसे लगाएं उसे समझ नहीं आ रहा था तो उसने अजय को बोला:"

" अजय देखो ना ये शीशे को अभी टूटना था, अब मैं लिपिस्टिक कैसे लगाऊ ?

अजय को एक विचार समझ में आया और बोला:"

" दीदी अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं लगा दू क्या आपके इन प्यारे और खूबसूरत लिप्स पर लिपस्टिक ?

शहनाज़ ने खुशी खुशी अपनी सहमति दे दी और अजय उसके बिल्कुल करीब अा गया तो शहनाज़ के जिस्म से उठती हुई मादक परफ्यूम की खुशबू उसको मदहोश करने लगी। शहनाज़ ने लिपिस्टिक उसकी तरफ बढ़ा दी और अजय ने कांपते हाथो से लिपिस्टिक को थाम लिया। शहनाज़ ने अपने पतले पतले नाजुक रसीले होंठ आगे कर दिए और अजय ने लिपिस्टिक को रोल करते हुए पीछे किया और उसने शहनाज़ के होंठो पर लिपिस्टिक लगानी शुरू कर दी।

शहनाज़ को ये सब बहुत ही रोमांचक लग रहा था क्योंकि कभी उसके बेटे शादाब ने भी उसके होंठो लिपिस्टिक नहीं लगाई थी। शहनाज़ रोमांच के कारण कांप रही थी जिससे उसका चेहरा इधर उधर हिल रहा था तो अजय बोला:"

" ऐसे मत हिलिए आप नहीं तो लिपिस्टिक खराब हो जाएगी। फिर बाद में मुझे मत बोलना।

शहनाज़ :" क्या करू बताओ तुम मुझे गुदगुदी सी हो रही है।

अजय:" फिर तो एक ही तरीका है। मुझे आपके होंठो को इधर उधर हिलने से रोकना होगा।

इतना कहकर अजय ने अपना एक हाथ आगे बढाया और शहनाज़ की ठोड़ी को पकड़ लिया तो शहनाज़ की आंखे शर्म से बंद हो गई और उसके होंठ अपने आप हल्के से खुल गए मानो बोल रहे हो कि आओ जल्दी से हमे लाल कर दो।

अजय ने अपना चेहरा शहनाज़ के मुंह पर झुका दिया और उसके होंठो पर लिपिस्टिक लगाने लगा। दोनो के चेहरे एक बार के बेहद करीब होने के कारण अजय की गर्म भभकती सांस शहनाज़ के चेहरे पर पड़ रही थी जिससे शहनाज़ को बेचैनी से महसूस हो रही थी और उसका पूरा जिस्म कांप रहा था। शहनाज़ के कांपने के कारण उसके लिप्स हिले और लिपिस्टिक खराब हो गई तो अजय बोला:"

" मैं आपको पहले ही बोल रहा रहा था कि हिलिए मत, अब देखो लिपिस्टिक बाहर लग गई, खराब हो गई ना।

शहनाज़:" उफ्फ क्या करू, तुम्हारे छूते ही गुदगुदी इतनी ज्यादा हो रही है। खराब कर दी तो अब ठीक भी तुम ही करो समझे तुम।

अजय ने अपने हाथ से शहनाज़ के चेहरे को ताकत से थाम लिया और अपने उंगली से जैसे ही उसके होंठो को छुआ तो शहनाज़ के जिस्म में उत्तेजना की लहर सी दौड़ गई। अजय ने अपनी उंगली को शहनाज़ के होंठो पर फिराया और लिपिस्टिक हटाने लगा लेकिन हटी नहीं तो बोला:

" छूट नहीं रही मेरी शहनाज़ दीदी। बताओ ना क्या करु ?

शहनाज़;" बुद्धू हो तुम। ऐसे थोड़े ही ना हट जायेगी। रुको मैं मदद करती हूं।

इतना कहकर शहनाज़ ने अपनी साडी का पल्लू लिया और उसे अपने मुंह में डाल कर गीला करने लगी। अजय शहनाज़ की ये कामुक हरकत देखकर पागल सा हो गया और लंड ने एक जोरदार अंगड़ाई ली। शहनाज़ ने साडी के पल्लू को पूरी तरह से गीला किया और अजय की तरफ देखते हुए उसका हाथ में थमाते हुए बोली:"

" लो इससे साफ करो, अब आराम से हो जायेगा बिल्कुल।

अजय ने जैसे ही साडी के पल्लू को छुआ तो उसकी उंगलियां शहनाज़ के मुख रस से भीग गई और अजय से बर्दास्त नहीं हुआ और उसने शहनाज़ के चेहरे को फिर से अपने हाथ में कस लिया और जैसे ही उसने साडी के भीगे हुए पल्लू को उसके होंठो पर फिराया तो दोनो के मुंह से एक आह निकल पड़ी। अजय सिर्फ पल्लू से साफ ही नहीं कर रहा था बल्कि अपनी उंगलियों को शहनाज़ के नाजुक, मुलायम रसीले होंठों पर हल्के हल्के रगड़ भी रहा था। शहनाज़ की आंखे इस अद्भुत एहसास से बंद हो गई थी और लिपिस्टिक तो कब की हट गई थी लेकिन अजय मदहोशी में उसके होंठो को हल्का हल्का रगड़े जा रहा था। पता नही कैसा अमृत रस था ये जो शहनाज़ के होंठो से निकला था जिससे अजय की उंगलियां चिपकी हुई थीं। शहनाज़ से बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था इसलिए बोली:"

" अजय हो गए मेरे होंठं साफ ?

अजय पुरी तरह से मदहोश था इसलिए बोला

" हान शहनाज़ आपके नाजुक, नरम मुलायम और रसीले होंठ बिल्कुल साफ हो गए हैं मेरी प्यारी खूबसूरत अप्सरा शहनाज़।

अजय के मुंह से अपना नाम सुनकर शहनाज़ हैरान हो गई लेकिन बोला कुछ नहीं। अजय ने उसके चेहरे को थामे रखा और लिपिस्टिक लगाता रहा। शहनाज़ के होंठो पर लिपिस्टिक लग गई थी। अजय ने धीरे से अपनी उंगली को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा तो उसके आंनद की कोई सीमा नहीं थी। शहनाज के होंठो से निकले गाढ़े, मीठे रसीले रस को चूसकर अजय धन्य हो गया था।


सौंदर्या साडी पहनकर बाहर अा गई और उसने शहनाज़ और अजय को देखा जिनके चेहरे एक दूसरे पर झुके हुए थे। उसे समझ नहीं आया कि क्या करे। हाय भगवान ये तो दोनो किस कर रहे हैं। अजय आखिकार पिघल ही गया शहनाज़ के आगे।

सौंदर्या से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो दबे पांव उनके पास पहुंच गई तो उसने देखा कि शहनाज़ की दोनो आंखे बंद हैं और अजय उसके होंठो पर लिपिस्टिक लगा रहा है तो उसने सुकून की सांस ली। अजय ने शहनाज़ के होंठो को पूरी तरह से रसीले बना दिया और जैसे ही उसने शहनाज़ का चेहरा छोड़ा तो शहनाज़ ने अपनी आंखे खोल दी और उसे सामने खड़ी सौंदर्या नजर आईं तो शहनाज़ कांप उठी।

सौंदर्या:" क्या हुआ शहनाज़ दीदी ? आपको लिपिस्टिक भी है लगानी आती क्या ?

सौंदर्या की आवाज सुनकर अजय भी चौंक सा गया और घबराते हुए बोला:"

" दीदी वो शीशा टूट गया था तो इसलिए मुझे लगानी पड़ी।

शहनाज़:" हान सौंदर्या देखो ना वो पड़ा टूटा हुआ शीशा भी उधर !!

इतना कहकर शहनाज़ ने शीशे की तरफ इशारा किया तो सौंदर्या बोली:"

" बस बस दीदी, कोई बात नहीं। आपने दोनो ने अच्छा किया। हम हमे ही तो एक दूसरे के काम आना होगा। अच्छा अजय अब चले क्या कहीं लेट ना हो जाए ?

अजय हड़बड़ाया और बोला:" हान दीदी चलिए आप वैसे भी शाम हो गई है।

इतना कहकर अजय बाहर आया तो पीछे पीछे शहनाज़ और सौंदर्या भी अा गए। अजय ने गाड़ी निकाली और सभी सामान गाड़ी में रखकर वो चल पड़े।

अजय गाड़ी चलाते हुए बार बार शीशे से शहनाज़ को तिरछी नजरों से देख रहा था और शहनाज़ उसे हर पहले से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। पीछे बैठी हुई शहनाज़ सौंदर्या से बाते कर रही थी और अजय उसकी हर एक अदा पर दीवाना हुआ जा रहा था। वो प्यासी नजरो से शहनाज़ के होंठो को देख रहा था मानो उन्हें चूसने के लिए मरा जा रहा हो। बाते करते हुए शहनाज के चेहरा इधर उधर हिलता और अजय उसकी हर एक अदा पर पागल हो रहा था, मचल रहा था, मर रहा था, मिट रहा था।



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अजय के दिल में बस एक ही बात थी कि शहनाज़ सिर्फ मेरी हैं। मुझे शहनाज़ चाहिए, हर हाल में चाहिए, किसी भी कीमत पर चाहिए। बस बेचारे को क्या मालूम था कि शहनाज़ तो हमेशा के लिए अपने बेटे की हो चुकी हैं।
Superb
 

Tiger 786

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सूरज पूरी तरह से डूब चुका था और बाहर अंधेरा नजर आ रहा था। लेकिन गाड़ी में शहनाज़ के रूप सौंदर्य की धूप खिली हुई थी और अजय उस पर पूरी तरह से आकर्षित हो गया था।

पीछे सौंदर्या और शहनाज़ आपस में बाते कर रही थी।

सौंदर्या:" वैसे एक बात है दीदी आप साडी में इतनी ज्यादा खूबसूरत लगेगी इसका अंदाजा नहीं था मुझे।

शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

" अच्छा जी लेकिन सुंदर तो तुम भी हो सौंदर्या। मेरी प्यारी सहेली।

सौंदर्या:" हान जी लेकिन आपकी बात ही कुछ ओर हैं। सच कहूं तो ऐसा रूप सौंदर्य आज तक मैंने भी नहीं देखा। कौन कहेगा कि आपका एक जवान बेटा हैं। सच मानिए आपके लिए तो अभी लडको की लाइन लग जाएगी।

शहनाज़:" चुप कर पगली तुम, कुछ भी बोल देती हो। ऐसा कुछ भी नहीं हैं सौंदर्या।

अजय का दिल किया कि बोल दू एक लड़का तो मैं ही शहनाज़ हो तुम्हारे लिए पागल हो गया हूं लेकिन फिर संयम से काम लेते हुए बोला:"

" शहनाज़ दीदी सच में सौंदर्या दीदी सच ही तो कह रही है। आपके लिए तक लड़के दीवाने हो जाएंगे। वैसे अगर आप बुरा ना माने तो एक सलाह दू आपको ?

शहनाज़:" हान जी आप बोलो, क्या सलाह हैं?

अजय:" आपको एक बार फिर से शादी कर लेनी चाहिए।

अजय की बात सुनकर शहनाज़ के होंठो पर स्माइल फैल गई और मन ही मन सोचने लगी कि शादी तो मैं कर ही चुकी हूं अपनी जान अपने लाडले बेटे शादाब से। लेकिन अपने आपको संभालते हुए हंसते हुए बोली:"

" मतलब तुम कुछ भी बोल दोगे क्या ? मेरी उम्र देखो और मेरा एक जवान बेटा भी है।।

सौंदर्या:" उम्र तो आपकी कुछ भी नहीं है। ध्यान से खुद को देखो तो पता चला जाएगा कि अभी 28 साल से ज्यादा नहीं लगती है। अजय की बात बिल्कुल ठीक हैं आपको शादी कर लेनी चाहिए।

शहनाज: मुझे नहीं करनी शादी। अब तुम दोनों चुप बैठ जाओ और अजय तुम आराम से गाड़ी चलाओ। कहीं शादी के चक्कर में लेट ना हो जाए।

अजय और सौंदर्या चुप हो गए और गाड़ी की रफ्तार अब बहुत तेज हो गई थी। सौंदर्या खामोश बैठी हुई थी अपना मुंह फुलाए।

शहनाज़ समझ गई कि दोनो को बुरा लग गया है इसलिए बोली:"

" आप दोनो मेरी बात का बुरा मत मानिए। अगर दिल दुखा हो तो मुझे माफ़ कर दो तुम दोनों।

सौंदर्या:" अच्छा जी वैसे तो तुम मुझे अपनी सहेली बोलती हो और अभी बूढ़ी अम्मा की तरह हुए डांट दिया। ये अच्छी बात नहीं है।

शहनाज़:" अच्छा बाबा सॉरी, अब आगे से कभी नहीं कहूंगी। अब तो स्माइल करो तुम दोनो।

सौंदर्या:" एक शर्त पर ?

शहनाज़:" वो क्या अब बोलो भी ?

सौंदर्या:" आप मुझे अपनी सहेली समझती हो या बहन?

शहनाज़:" तुम तो मेरी बहन जैसी हो सौंदर्या। सगी से भी ज्यादा और अजय तुम मेरे लिए बिल्कुल मेरे बेटे जैसे हो।

सौंदर्या:" आपने हमें इसलिए डांट दिया क्योंकि आप हमे छोटा समझती है। आज से हम दोनों बराबर और एक दूसरे को नाम से बुलाएंगे नहीं तो आप फिर से डांट सकती हो आगे चलकर।

शहनाज़ ने सौंदर्या का हाथ पकड़ लिया और बोली:" बस इतनी सी बात ठीक से आज से तुम मुझे मेरे नाम से बुला लेना बस अब खुश हो तुम।

सौंदर्या शहनाज़ के गले लग गई और उसका गाल चूम कर बोली:"

" खुश एकदम खुश। थैंक्स शहनाज़ तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो।

अजय की नाराजगी भी दूर हो गई थी बल्कि वो तो शहनाज़ से नाराज़ ही नहीं हुआ था। रात के करीब 10 बज गए थे और आकाश में चांद निकल आया था जिसकी हल्की रोशनी बाहर फैली हुई थी। अजय ना चाहते हुए भी शहनाज़ को बार बार प्यार भरी नजरो से देख रहा था और शहनाज़ की नजर बीच में एक दो बार उससे टकराई तो शहनाज़ को अजय की नजरे बदली बदली सी महसूस हुई।

सौंदर्या सो गई थी और थोड़ी देर बाद भी उनकी गाड़ी लिंगेश्वर मंदिर के सामने पहुंच गई। अजय ने गाड़ी को पीछे पार्क कर दिया और देखा कि अभी 10:40 हुए थे जबकि मंदिर में उनके घुसने का शुभ मुहूर्त 11:10 था तो उसने शहनाज़ को इशारा किया कि अभी सौंदर्या को सोने ही दो। अजय ने गाड़ी की खिड़की खोली और बाहर निकल गया और पीछे से शहनाज़ की तरफ से खिड़की को खोल दिया। शहनाज़ सावधानी पूर्वक बाहर निकलने लगी लेकिन निकलते हुए उसकी साड़ी नीचे से खिड़की के लॉक में फंस गई और नीचे से खुलती चली गई। शहनाज़ अब नीचे से मात्र पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी। साडी का एक पल्लू हवा में झूल रहा था जबकि दूसरा उपर उसके ब्लाउस में कंधे पर फंसा हुआ था।

शहनाज़ के मुंह से डर और शर्म के मारे आह निकल गई और वो साडी को जल्दी से अपने बदन पर लपेटने लगी लेकिन जल्दबाजी में उसकी मुसीबत और बढ़ गई और साडी का उसके ब्लाउस में फंसा हुआ पल्लू भी बाहर निकल गया।शहनाज अब सिर्फ ब्रा पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी और अजय उसको ब्रा पेंटी में देखकर पूरी तरह से बौखला गया। शहनाज उससे छुपाने के लिए कभी लाल रंग की ब्रा में कैद अपनी चूचियां साडी से ढकती तो उसकी जांघें नंगी हो जाती। जांघें ढकती को उसकी छाती नंगी हो जाती।

अजय बिना कुछ बोले उसकी तरफ देखे जा रहा था और शहनाज़ नजरे झुकाए अपने आपको साडी से लपेटने का असफल प्रयास कर रही थी क्योंकि उससे साडी बांधनी तो आती नहीं थी।

पार्किंग पीछे की साइड थी और उस तरफ कोई था भी नहीं बस ये ही एक अच्छी बात थी शहनाज़ के लिए लेकिन अजय का सामना करने में उसे दिक्कत हो रही थी। वो चाह कर भी सौंदर्या को नहीं उठा सकती थी तो अब उसकी ये साडी बंधेगी कैसे ये सबसे बड़ा सवाल था। अजय उसके करीब अा गया और बोला:"

" लाइए मुझे दीजिए मैं आपकी साडी बांध देता हूं। आपसे नहीं बंध पाएगी। लाइए मुझे एक पल्लू दीजिए।

अजय को अपने इतने करीब पाकर शहनाज़ की सांसे रुक सी गई थी। शहनाज़ को काटो तो खून नहीं। उसने सपने में भी नही सोचा था कि उसे ये दिन भी देखना पड़ेगा। मरती क्या ना करती। उसके पास कोई और दूसरा उपाय भी नहीं था इसलिए उसने कांपते हाथों से साडी का पल्लू पकड़ा और नजरे नीची किए हुए ही अजय को पकड़ा दिया। शहनाज़ की स्थिति खराब हो गई थी, उसकी सांसे तेज गति से चलती हुई धाड धाड कर रही थी। साडी का पल्लू हाथ में आते ही अजय ने उसे अपनी तरफ खींचा तो उल्टी सीधी लिपटी हुई साडी शहनाज़ के बदन से उतरती हुई चली गई।



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शहनाज़ शर्म से दोहरी होती चली गई और उसने अपना चेहरा अपने दोनो हाथों में छुपा लिया। अजय ने पहली बार ध्यान से शहनाज़ के जिस्म को देखा और आंखे खुली की खुली रह गई। शहनाज़ के गोरे गोरे गोरे कंधे, लंबी सी पतली पतली गर्दन, ब्लाउस से बाहर निकलने को तड़प रही उसकी गोल गोल गुदाज चूचियां जो आधे से ज्यादा बाहर छलक रही थी। उसका दूध सा गोरा चिकना सपाट पेट, केले के तने के समान चिकनी मांसल जांघों को देखते ही अजय के लंड में तनाव आना शुरू हो गया। शहनाज़ से धीरे से अजय को देखा तो उसे अपने जिस्म को घूरते हुए देखकर उसने शहनाज़ को बहुत शर्म महसूस हो रही थी इसलिए कांपते हुए बोली'"

" अजय जल्दी करो ना तुम, मुझे बहुत अधिक शर्म अा रही है, कोई इधर अा गया तो मेरा क्या होगा।

अजय ने आगे बढ़कर साडी का एक पल्लू शहनाज़ की कमर पर रखा तो उसकी छुवन से शहनाज़ के जिस्म ने एक झटका खाया और अजय ने अपनी पूरी हथेली को उसकी गांड़ पर टिकाते हुए साडी को लपेटना शुरू कर दिया। अजय साडी को गोल गोल घुमाते हुए आगे की तरफ अाया। साडी शहनाज़ के जांघो और गांड़ पर लिपट गई थी। अजय धीरे से उसके करीब आया और बोला;"

" ऐसी साडी बांध देता हूं कि आगे से कभी नहीं निकलेगी।

इतना कहकर उसने एक हाथ से साडी का पल्लू लिया और दूसरे हाथ से शहनाज़ की पेंटी को पकड़ लिया। अजय के हाथ अपनी पेंटी पर लगते ही शहनाज़ मचल उठी और उसकी चूचियां उपर नीचे होने लगी। अजय ने जैसे ही अपनी उंगली को शहनाज़ की पेंटी में फंसाया तो के मुंह से धीमी सी आह निकल पड़ी और उसने अपने दांतो से अपने होंठो को हल्का सा चबा दिया। अजय उसकी इस अदा पर बेकाबू हो गया और उसने शहनाज़ की पेंटी को खींचा और उसके बीच में साडी का पल्लू घुसा दिया। शहनाज़ की आंखे अभी भी शर्म से बंद थी और अजय उसकी साड़ी का पल्लू अच्छे से फांसते हुए धीरे से उसके कान में बोला,:_

"लीजिए ऐसा फंस गया है कि अब नहीं निकल पाएगा। सौंदर्या दीदी आपको नाम से पुकार रही है। आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं भी आपको शहनाज़ कहकर पुकार सकता हूं !!

इतना कहकर उसने साडी को हाथ में लिया और उसकी कमर से लपेटते हुए उसके सीने पर ले अाया और उसकी चूचियों पर हल्का सा दबाव दिया तो शहनाज़ का जिस्म झटके पर झटके खाने लगा और वो मचलते हुए बोली:"

" आह अजय बुला लो तुम भी मुझे शहनाज़ कहकर।

अजय ने साडी को उसकी छाती से लाते हुए उसके कंधे पर ब्लाउस में साडी का दूसरा पल्लू फंसा दिया और उसके कंधे को हल्का सा सहलाते हुए कहा:"

" थैंक्स शहनाज़। आप सच में बहुत ज्यादा खूबसूरत हो। अल्लाह ने आपको पूरी तसल्ली से बनाया है।

इतना कहकर अजय उससे अलग हो गया और शहनाज़ ने सुकून की सांस ली। उसने अपनी आंखे खोल दी और अपने आपको फिर से साडी में पाकर खुश हो गई और बोली:"

" शुक्रिया अजय। तुमने हमेशा मेरी मदद करी हैं। आज तुम नहीं होते तो मेरा पता नहीं क्या हाल होता यहां।

अजय ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला:" आप बेफिक्र रहिए शहनाज़। मैं हमेशा आपके साथ हूं। आपकी मदद करने के लिए एक अच्छे दोस्त की तरह।

शहनाज़ ने अपने हाथ का दबाव अजय के हाथ में बढ़ा दिया और बोली:"

" ठीक है अजय, फिर आज से हम दोनों दोस्त। तुम अकेले में मुझे सिर्फ शहनाज़ कहकर बुलाओगे।

अजय ने शहनाज़ की आंखो में देखा और शहनाज़ ने उसे स्माइल दी।

शहनाज: अच्छा अजय एक बात बताओ मुझे सच सच तुम?

अजय :" बोलिए आप ?

शहनाज:" ऐसी क्या जरुरत थी जो सौंदर्या के नाम की राशि की दूसरी परिपक्व अौरत की आवश्यकता पड़ी ?

अजय थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। उसकी समझ में नहीं अा रहा था कि वो शहनाज़ को कैसे ये बात बताए।

शहनाज़:" बोलो चुप क्यो हो तुम ? कोई तो वजह रही होगी ?

अजय:" देखो मेरी बात ध्यान से सुनना और गलत मत समझ लेना कुछ भी। आचार्य जी के अनुसार जैसे ही पूजा विधियां शुरू होगी तो मंगल अपनी तरफ से पूजा रोकने का हर संभव प्रयास करेगा और इसमें सौंदर्या की जान भी जा सकती हैं लेकिन अगर दूसरी औरत होगी तो मंगल का प्रभाव आधा हो जाएगा जिससे उस औरत पर खतरा भी आधा हो जाएगा। लेकिन आप बेकिफ्र रहिए मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगा। मेरी बहन को इस दोष से मुक्ति दिलाने में मदद कीजिए।

इतना कहकर अजय ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए। शहनाज़ थोड़ी देर चुप रहीं और अभी उसे समझ आया कि इतना ध्यान से पैर रखने के बाद भी उसका पैर क्यों फिसल गया था। शहनाज़ की चुप्पी अजय के चेहरे की निराशा बढ़ा रही थी। उसे डर लग रहा था कि कहीं शहनाज़ बीच में ही छोड़ कर ना चली जाए। ।।

शहनाज़ ने थोड़ी देर सोचा और फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोली:" अजय वैसे तो ये बहुत मुश्किल भरा काम होगा और इसमें मेरी जान भी जा सकती हैं लेकिन फिर ये जान भी तो तुम्हारी ही दी हुई है। रेहाना और उसके गुंडों से तुमने ही तो मुझे बताया था नहीं तो मैं तो कब की खत्म हो गई होती। मैं वादा करती हूं अपनी आखिरी सांस तक सौंदर्या को मुक्ति दिलाने के लिए कुर्बान कर दूंगी।

अजय:" मैं भी वादा करता हूं कि आप पर आने वाली हर मुश्किल को पहले मेरा सामना करना होगा। मैं हर हाल में आपकी रक्षा करूंगा।

शहनाज़ और अजय दोनो ने राहत की सांस ली। शहनाज़ जानती थी कि अजय खुद मर जाएगा लेकिन उसे कुछ नहीं होने देगा। तभी वहां एक गाड़ी पार्क होने के लिए अाई और उसकी आवाज सुनकर सौंदर्या की आंख खुली तो वो गाड़ी से बाहर निकल गई और अजय, शाहनाज के पास पहुंच गई।

शहनाज उसे देखते ही खुश हुई और बोली:" आओ सौंदर्या हम दोनों तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे सौंदर्या।

अजय:" अच्छा हुआ आप खुद ही उठ गई नहीं तो दर्शन का टाइम हो रहा था इसलिए आपको उठाना पड़ता।

सौंदर्या:" मुझे थोड़ी देर के लिए आंख लगी जरूर थी लेकिन मेरी पूरी ज़िन्दगी दांव पर लगी हो तो कैसे सो सकती हूं मैं।

शहनाज़:" बस सौंदर्या एक हफ्ते की हो तो बात हैं फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। उदास मत हो तुम बिल्कुल भी अब।

अजय:" अच्छा चलिए अंदर चलते हैं। पूजा का वक़्त आने वाला है।

इतना कहकर अजय आगे बढ़ा और उसके साथ साथ दोनो आगे बढ़ गई। जैसे ही अंदर घुसने लगे तो गेट पर एक पुरोहित खड़े हुए थे और उन्होंने अजय को उसके माथे पर तिलक लगा दिया। अजय ने पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ तिलक लगवाया और अंदर घुस गया। उसके बाद सौंदर्या आगे बढ़ी और अपना माथा आगे कर दिया तो पुरोहित की ने उसके माथे पर भी तिलक लगा दिया।



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अब शहनाज़ की बारी थी और अजय के साथ साथ सौंदर्या के मन में भी डर था कि कहीं शहनाज़ तिलक लगाने से मना ना कर दे क्योंकि ये पूजा में एक अपशकुन समझा जाएगा और ये बात अजय उसे बताना भूल गया था। शहनाज़ के चेहरे पर कोई भाव नहीं था और वो आगे बढ़ी उसने पुरोहित जी को देखकर अपना दुपट्टा सिर पर रखा और दोनो हाथ जोड़ दिए। उसकी आंखे बंद थी और चेहरे पर जमाने भर की शालीनता बिखरी हुई थी।

पुरोहित जी ने अपना हाथ आगे बढाया और शहनाज़ के माथे पर तिलक लगा दिया

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अजय और सौंदर्या दोनो ने चैन की सांस ली और शहनाज़ भी अंदर घुस गई और उनके पास पहुंच गई।

सौंदर्या ने उसे गले लगा लिया और बोली:"

" दीदी मैं तो डर गई थी कहीं आप तिलक लगाने के लिए मना ना कर दे क्योंकि अगर आप मना करती तो ये बहुत बड़ा अपशकुन समझा जाता और अजय आपको बताना भूल गया था।

शहनाज़ ने सौंदर्या की आंखो में देखा और बोली:"

" भला मना क्यों करती मैं ? मेरे लिए ये सब चीज़े इतनी मायने नहीं रखती। बस तुम्हे मुक्ति मिल जाय ये बड़ी बात होगी।

उसके बाद सभी लोग पहुंच गए और दर्शन किए। यहां लोगो की काफी भीड़ थी और अजय को समझ नहीं आ रहा था कि महराज ने जो पूजा की जो विधियां बताई थी वो कैसे पूरी होंगी ?

वो उम्मीद में इधर उधर देख रहा था तभी उसे एक बोर्ड नजर अाया जिस पर लिखा था

" मांगलिक समाधान पूजा"

अजय उधर पहुंच गया और उसे एक रास्ता जाता दिखाई दिया। शहनाज़ और सौंदर्या भी उसके पीछे पीछे चल पड़ी। रास्ता नीचे की तरफ जा रहा था और सभी लोग उसी दिशा में बढ़ गए। अब वो मंदिर से तहखाने से पूरी तरह से मंदिर से बाहर निकल गए लेकिन उन्हें इसका बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। नीचे जाकर वो दाई तरफ मुड़ गए और उन्हें एक दरवाजा नजर आया।

अजय ने राहत की सांस ली क्योंकि इसी दरवाजे के बारे में उसे आचार्य जी ने बताया था। लेकिन यहां से आगे की पूजा आसान नहीं होने वाली थी और ये दरवाजा ढूंढने के चक्कर में अजय भूल गया कि पहले उसके साथ शहनाज़ अंदर जाएगी। वो सभी जैसे ही दरवाजे के अंदर घुसने लगे तो सौंदर्या को चक्कर अा गए और गेट पर ही गिरकर बेहोश हो गई।

अजय और शहनाज़ दोनो ये सब देख कर डर गए और दोनो ने उसे वहीं बाहर पड़े एक बेड पर लिटा दिया। अजय को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सौंदर्या के मुंह पर पानी के छींटे मारे और शहनाज उसकी मालिश कर रही थी। सौंदर्या होश में अा गई तो दोनो ने सुकून की सांस ली और सौंदर्या को कुछ भी याद नहीं था कि थोड़ी देर पहले क्या हुआ था अभी।

सौंदर्या: भैया चलो अन्दर चलते हैं ना पूजा करने के लिए। नहीं तो देर हो जाएगी।

अजय दूसरी बार ये गलती नहीं करना चाहता था क्योंकि इस बार सौंदर्या का बचना मुश्किल होता। अजय:*


" दीदी आप अंदर नहीं जाएगी, पहले अंदर मैं और शहनाज़ दीदी जायेंगे। मेरी भूल की वजह से एक गलती हो जिसकी खामियाजा अब भुगतना पड़ेगा। आप खिड़की या दरवाजे के पास भी नहीं जा पाएगी क्योंकि मंगल के प्रभाव के चलते वो खुद ही खुल जायेंगे और आप अंदर अपने आप घुस जाओगी। अगर ऐसा हुआ था आपको दिक्कत होगी। अंदर का अनुभव आपको शहनाज़ दीदी आकर बता देगी और आपको उसी के आधार पर मेरे साथ होना होगा बाद में।


सौंदर्या ने अपनी सहमति दे दी और वहीं बेड पर लेट गई। अजय ने कुछ मंत्र पढ़े और वो जानता था कि अब सौंदर्या सुरक्षित है क्योंकि मंत्रित प्रभाव के चलते कोई भी ताकत अब सौंदर्या को बेड से नहीं हिला सकती थी।

अजय और शहनाज दोनो अंदर की तरफ चल पड़े और जैसे ही शहनाज़ ने पैर रखे तो दरवाजा अपने आप खुलता चला गया। जैसे ही दोनो गए तो दरवाजा अपने आप बंद हो गया।

शहनाज़ की नजरे जैसे ही कमरे पर पड़ी तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गई। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो कुछ वो अपनी आंखो से देख रही हैं वो सच है। एक बहुत ही बड़ा पूजा स्थल बना हुआ था और जिसके बीच में एक लंड की प्रतिमा लगी हुई थी जो आगे सुपाड़े से पूरी तरह गुलाबी थी जिसे देखते ही शहनाज को फिर से वो चिड़िया घर वाला सीन याद अा गया। उसने देखा की प्रतिमा के दोनो तरफ लंड के आकार की कुछ और प्रतिमा लगी हुई थी और बीच में एक गहरा गड्ढा था शायद यही पूजा के लिए बनाया गया था। शहनाज़ ने पूरे कमरे ने नजर डाली तो उसे छत पर काफी सारी लंड की प्रतिमा नजर आई और सबसे खास बात सबके मोटे मोटे सुपाड़े बिल्कुल गुलाबी थे।


अजय भी ये सब देखकर आश्चर्य में पड़ा हुआ था। हालाकि उसे पहली ही आचार्य जी ने सब कुछ बता दिया था लेकिन फिर भी यहां उसकी उम्मीद से कुछ ज्यादा ही था। वहीं ये सब देख कर शहनाज़ शर्म के मारे अपनी नजरे नहीं उठा पा रही थी।

अजय सब समझ रहा था और इसलिए धीरे से चलते हुए उसके पास पहुंच गया। शहनाज़ की नजरे अभी भी झुकी थी।

अजय:" देखो शहनाज़ दीदी ये लिंगेश्वर मंदिर हैं तो यहां लिंग की प्रतिमा तो होनी ही थी। मांगलिक होने के कारण शादी ना होने से सेक्स नहीं होता जिससे इंसान की इच्छाएं बढ़ती जाती है। इसलिए यहां आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं ताकि उन्हें सेक्स करने की ताकत मिले और उनकी ज़िंदगी अच्छे से गुजर सके।

शहनाज़ सिर झुकाए चुप चाप खड़ी हुई थी। शहनाज़ को आज पहली बार पता चला कि लंड को लिंग भी बोलते हैं। अजय उसकी हालत समझते हुए बोला:"

" देखिए अगर आपको थोड़ा सा भी दिक्कत हो तो आप जा सकती हैं। मैं आप पर जोर नहीं दूंगा बिल्कुल भी।

शहनाज़ अजीब दुविधा में फंस गई थी। जहां एक ओर उसे ये सब मुश्किल करना लग रहा था वहीं दूसरी और उसके अंदर अजय को मना करने की भी हिम्मत नहीं थी। अजय के एहसान और सौंदर्या का मासूम चेहरा उसकी आंखो के आगे घूम रहा था। शहनाज़ चाहकर भी मना नहीं कर सकती थी। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी नजरे उपर की तरफ उठाई और अजय को पूजा के लिए सहमति दे दी।

अजय:" देखिए सबसे पहले तो हम दोनों पूजा करेंगे। इसके लिए हमें आसान पर बैठना पड़ेगा। पूजा करते समय हमारा पुरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पूजा पर ही होना चाहिए। पूजा करने के बाद आपको उपर छत पर लगे घंटे बजाने होंगे लेकिन इसमें आपका हाथ नहीं जाएगा तो मुझे आपकी मदद करनी पड़ेगी। रुको पहले मैं अपने कपड़े बदल लेता हूं।

शहनाज़:" लेकिन क्या तुम मुझे उठा पाओगे इतने उपर तक अजय ?


अजय:" आपकी उसकी फिक्र मत कीजिए। वो मेरा काम तो आप मुझ पर छोड़ दो।
शहनाज़ ने सहमति दी और अजय ने आगे बढ़कर बैग को खोला और उसमे से एक चादर निकल ली। आचार्य जी के अनुसार उसे ये चादर पूजा करते हुए अपने जिस्म पर लपेटनी थी। अजय ने साइड में खड़ा होकर अपने कपड़े निकाल लिए और अब सिर्फ निक्कर में था। अजय अपने जिस्म पर चादर लपेट ली और शहनाज़ के सामने अा गया।

अजय सामने जमीन पर बैठ गया और उसने कुंड में आग जला दी। शहनाज़ ने एक बार आसन की तरफ देखा और उसका बदन कांप उठा। धीरे धीरे आगे बढ़ती हुई वो उसके पास पहुंच गई। शहनाज़ आसान पर बैठने के लिए नीचे को झुकी और उस अपनी आंखे बन्द करते हुए उस पर बैठ गई। शहनाज़ की आंखे लाल सुर्ख हो रही थी और नीचे हो झुकी हुई थी।

अजय ने उसके हाथ में कुछ सामान दिया और उसके बाद कुछ पढ़ा तो शहनाज़ ने हाथ में रखा सामान आगे की तरफ पूरा झुकते हुए देखते हुए आग में डाल दिया। सामने शहनाज़ की नजर बीच में बने हुए लंड पर पड़ी और और उसका सुपाड़ा देखते ही शहनाज़ के बदन में उत्तेजना सी दौड़ गई। आगे झुकने से उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से निकल गया और सिर्फ ब्लाउस में अा गई। शहनाज़ को अजय की बात याद थी इसलिए चाहते हुए भी वो अपना पल्लू ठीक नहीं कर पाई।

शहनाज़ की नजरे फिर से झुक गई और इस बार उसकी उस लंड के सुपाड़े पर पड़ी जिस पर बैठी हुई थी। बेचारी शहनाज़। आंखे भी बंद नहीं कर सकती थी क्योंकि एक तो पूजा और दूसरा उसे शर्म तो अा रही थी लेकिन कहीं ना कहीं ये सब देखकर उसे अच्छा लग रहा था।

अजय:" अगर आप इस तरह से नजरे झुका कर रखेंगी या बंद करेगी तो पूजा में समस्या पैदा हो सकती हैं।

शहनाज़ ने अपनी आंखे को सामने की तरफ कर दिया और उसकी नजरे फिर से लंड पर टिक गई। अजय उसके ठीक सामने ही बैठा हुआ था और बीच बीच में शहनाज़ के सुंदर मुखड़े को देख रहा था। कभी उसके ब्लाउस से झांकती उसकी गोलियां तो कभी उसके चिकने कंधे और गोरे गोरे पेट को देख रहा था।

अजय ने फिर से शहनाज़ के हाथ में कुछ सामग्री और घी दिया और कुछ मंत्र पढ़े और शहनाज़ को आग ने डालने का इशारा किया। शहनाज़ जैसे ही आगे को झुकी तो उसकी चूचियां आधे से ज्यादा बाहर की तरफ छलक अाई और उसने सामग्री को आग के हवाले कर दिया। शहनाज़ की चूचियां का उछाल देखते ही अजय की आंखे चमक उठी और उसने शहनाज़ को थोड़ा और आगे होने का इशारा किया ताकि ठीक से उसे अगली बार सब दिखाई दे सके। शहनाज़ आगे को हुई और अब लंड प्रतिमा के सुपाड़े पर बैठी हुई थी और ये सोच सोच कर उसकी सांसे तेज हो गई थी। शहनाज़ की आंखे पूरी तरह से लाल सुर्ख हो गई थी और उसकी छातियां उपर नीचे हो रही थी। उसके पूरे बदन में उत्तेजना भरती जा रही थी और उसकी टांगे कांप रही थी।

अजय ने फिर से कुछ मंत्र पढ़े और शहनाज़ को फिर से सामान आग में डालने का इशारा किया। शहनाज़ थोड़ा सा आगे को हुई और उसने जैसे ही झुककर सामान आग में डाला तो उसकी चूचियों की गहराई फिर से पहले से ज्यादा बाहर झांक पड़ी। अजय ने अपनी प्यासी नजरे बाज की तरफ उन पर टिका दी। शहनाज़ जैसे ही पीछे को हुई तो उसकी चूत लंड प्रतिमा के सुपाड़े पर रगड़ गई और उसके मुंह से आह निकल पड़ी जो सामने बैठे हुए अजय को साफ सुनाई दी। अजय उसे बार बार सामग्री डालने के बहाने आगे बुलाता और उसकी चूचियां घूरता। जैसे ही वो पीछे होती तो उसकी चूत लंड पर रगड़ रही थी और शहनाज़ पूरी तरह से बेचैन हो गई जिससे उसकी चूत में गीलापन अा गया था और अब वो खुद ही पीछे होने के बहाने अपनी चूत पत्थर लिंग के सुपाड़े पर रगड़ रही थी।

पूजा का समय खत्म हो गया था और घंटा बजाने की बारी थी। अजय और शहनाज़ आग के पास बैठने से पसीना पसीना हो गए हो और अजय तो मानो पसीने में नहा सा लगा था।

दोनो आसान से खड़े हो गए और अजय ने चादर को उतार दिया और अपना पसीना साफ करने की। वहीं शहनाज ने अपनी साडी का पल्लू फिर से ठीक किया और अजय को देखने लगी। पहली बार उसने अजय को सिर्फ निक्कर में देखा। अजय के हट्टा कट्टा सांड जैसा लड़का था। उसकी चौड़ी चौड़ी छाती उसकी ताकत अपने आप बयान कर रही थी। उसकी ताकतवर हाथ उसकी ताकत दर्शा रहे थे। शहनाज़ का बदन पूरी तरह से गरम था और उसकी चूचियों में अकड़न सी पैदा हो गई थी और उसकी जांघो के बीच गीलापन बढ़ता जा रहा था। शहनाज़ अजय के बदन को देखकर मन ही मन उसकी तारीफ किए बिना ना रह सकी और चोरी चोरी उसे घूर रही थी। काश वो उसे छू सकती।

चादर पूरी तरह से भीग गई थी तो अजय ने उसे निचोड़ दिया और फिर से अपना पसीना साफ करने लगा लेकिन कमर पर उसका हाथ नहीं जा पा रहा था तो उसने शहनाज़ की तरफ देखा और कहा:"

" आपको अगर बुरा ना लगे तो मेरी कमर से पसीना साफ़ कर दीजिए।

शहनाज़ को भला क्या आपत्ति हो सकती थी उसने खुशी खुशी आगे बढ़ कर चादर को थाम लिया और अजय के पीछे खड़ी हो गई। शहनाज़ अजय के जिस्म को पीछे से देख रही थी और उसके अंदर बहुत सारे अरमान मचल रहे थे।उसने अपने कांपते हाथो से उसकी कमर को चादर से साफ करना शुरू कर दिया और वो सिर्फ साफ ही नहीं कर रही थी बल्कि अपने हाथ से छूकर उसकी मजबूती भी देख रही थी।


शहनाज़ के हाथो की नाजुक उंगलियां अपनी कमर कर महसूस करके अजय भी जोश से भर गया था और उसके लंड में तनाव आने लगा। शहनाज़ उसके दोनो कंधो को साफ करने लगी और थोड़ा सा और करीब से देखने के लिए आगे हो गई। अजय के चौड़े मजबूत कंधे की कठोरता शहनाज़ की जलती हुई आग में घी डाल रही थी।

शहनाज़ की सांसे इतनी तेज चल रही थी मानो उसका ब्लाउस फाड़कर उसकी चूचियां बाहर निकलना चाहती हो।अजय की कमर और कंधे साफ हो गए थे लेकिन इसके सिर से निकल रही पसीने की बूंदे फिर से उसकी गर्दन से होती हुई उसकी छाती को पूरी तरह से भिगो चुकी थी। शहनाज़ ने अजय के हाथ को उपर की तरफ किया तो उसने खुद ही अपने हाथ ऊपर उठा कर अपने सिर पर टिका दिए। ऐसा करने से शहनाज़ पूरी तरह से काबू से बाहर हो गई और थोड़ा आगे होते हुए उसकी बगल को साफ करना शुरू कर दिया। आगे होने से दोनो के बीच की दूरी बस नाम मात्र ही रह गई थी। शहनाज़ की तेजी से चलती हुई सांसे अजय को उसकी हालत बयान कर रही थी और अजय तो खुद बेचैन था क्योंकि उसका लन्ड पूरी तरह से अकड़कर अपनी असली औकात में अा गया और पत्थर की तरह सख्त हो गया था।

शहनाज़ ने अपनी नाजुक उंगलियो से उसकी बगल को साफ करना शुरू कर दिया और धीरे धीरे अजय की छाती की तरफ छूने लगी। शहनाज़ से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था और उसके हाथ लालच में आगे बढ़ गई और जैसे ही उसने अजय की ठोस छाती को छुआ तो दोनो के मुंह से आह निकल पड़ी। शहनाज़ अपने आप आगे को हुई और अजय पीछे को। उससे दोनो के बीच की सारी दुनियां समाप्त हो गई और अजय की कमर शहनाज़ के सीने से टकराई। जैसे ही उसकी चूचियों टकराई तो दोनो फिर से सिसक उठे और शहनाज ने मदहोशी के आलम में उसकी छाती को साफ करना शुरू कर दिया। शहनाज़ उसकी छाती पर अपनी पकड़ बनाने के लिए उससे चिपकी जा रही थी जिससे उसकी चूचियों के तने हुए निप्पल अजय की पीठ में घुसे जा रहे थे और अजय बहकता जा रहा था।
शहनाज़ ने अपनी उंगलियां उसकी छाती पर जमा दी और सहलाते हुए बोली:"

" अजय तुम्हे तो बहुत पसीना आया हुआ है। उफ्फ कितने भीग गए हो।

अजय:" आग के पास बैठने की वजह से पसीना निकल रहा है ज्यादा शहनाज़।

अजय इतना कहकर थोड़ा सा आगे को हुआ और पीछे को हुआ तो उसकी पीठ शहनाज़ की चूचियों से टकराई तो शहनाज़ की चूचियां उसकी कठोर पीठ से मसल सी गई तो शहनाज़ ने अपनी उंगलियां पूरी ताकत से उसकी छाती पर गडा दी और बोली:"

" उफ्फ अजय तुम कितने मजबूत हो। कितना कठोर है तुम्हारा बदन।

अपनी तारीफ सुनकर अजय पिघल गया और उसने फिर से अपनी पीठ को शहनाज़ की चूचियों की तरफ धकेला तो शहनाज़ ने भी पूरी ताकत से अपनी चूचियों को आगे किया और एक जोरदार आवाज के टक्कर हुई। दोनो एक साथ सिसक उठे। चादर शहनाज़ के हाथ से निकल गई और उनसे पहली बार अपनी अजय छाती को अपनी पूरी नंगी हथेली में भर लिया और थोड़े कठोर हाथ से साफ करने लगी। शहनाज की चूत पूरी तरह से भीग गई थी और पानी पानी हो गई थी।

शहनाज अपनी पूरी ताकत से अपनी नंगी हथेली से उसकी छाती को रगड़ रही थी और अपनी चूचियों को उसकी कमर में रगड़ रही थी। पागल से हो चुके अजय ने जैसे ही इस आगे को कदम रखा तो शहनाज़ ने अपनी दोनो टांगे आगे करते हुए उसके पैरो के पंजों पर टिका दी। इससे चूचियों के साथ साथ उसकी जांघें अजय की गांड़ पर कस गई। अब शहनाज़ अजय के पीछे खड़ी हुई उसके उपर झूल सी रही और अपनी गीली चूत को जोर जोर से उसकी गांड़ पर रगड़ रही थी। अजय ने अपने दोनो हाथों को पीछे करते हुए शहनाज़ की चिकनी नंगी कमर पर बांध दिया और शहनाज़ अपनी पूरी ताकत से अपनी उंगलियों से उसकी छाती को रगड़ते हुए अपनी चूत उसकी गांड़ पर रगड़ रही थी और शहनाज़ के मुंह से अब हल्की हल्की मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थी। उसकी चूत में तूफान सा अाया हुआ था और वो झड़ने के कगार पर थी और उसकी गति और बढ़ गई।

तभी अजय की नजर घड़ी पर पड़ी तो उसने समझ अाया कि घंटा बजाने का शुभ समय बीता जा रहा था तो वो बोला:"

" शहनाज़ बस हो गई। घंटा बजाने का मुहूर्त निकला जा रहा है अब।

शहनाज़ ना चाहते हुए भी रुकने को मजबूर थी और अजय से अलग हो गई। उसके चेहरे पर बिखरे हुए बाल, उसकी उछलती हुई चूचिया, तेज सांसे लाल आंखे उसकी सारी हालत बयान कर रही थी।

अजय;" वैसे आप पसीना बहुत अच्छा साफ करती हो। पूरा रगड़ रगड़ कर।

इतना कहकर अजय ने उसे स्माइल तो शहनाज़ शर्म से लाल होकर उसके करीब हुई और उसकी छाती में धीमे धीमे मुक्के बजाने लगी। अजय ने उसे अपनी बांहों में कस लिया तो जिस्म की आग में तप रही शहनाज़ उससे कसकर लिपट गई।

अजय:" अब मैं तुम्हे अपनी गोद में उठा लूंगा और तुम उपर लगे लिंग को हाथ से पकड़कर जोर जोर से हिलाना ताकि घंटा बज सके। जितनी जोर से तुम घंटा बजाओगे सौंदर्या की आने वाली ज़िन्दगी उतनी ही अच्छी होगी।

अजय ने अपने दोनो हाथ शहनाज़ की गांड़ पर रखे और उसे उपर की तरफ उठाने लगा। शहनाज की फुदकती हुई चूचियां उसके मुंह पर रगड़ती हुई उपर चली गई और अजय ने थोड़ी भारी वजनी शहनाज़ को फूल की तरह आसानी से उठा लिया तो शहनाज़ उसके बाजुओं की ताकत की कायल होती चली गई।

इस वक़्त शहनाज़ के पैर अजय की छाती के सामने थे और शहनाज़ ने एक नजर ऊपर लटक रहे लिंगो पर डाली और उनके गुलाबी गुलाबी सुपाड़े देखते ही शहनाज़ की आंखे चमक रही। शहनाज़ के अपने कांपते हाथों से एक लिंग को पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी। शहनाज़ की चूचियों में तनाव बढ़ा और वो फूलती चली गई जिससे कटक की आवाज के साथ उसकी ब्लाउस के बटन टूट गए और किसी सूखे हुए पत्ते की तरह नीचे गिरा और अजय की छाती पर अा टंगा। शहनाज़ के मुंह से आह निकल पड़ी और उसके जिस्म ने एक जोरदार झटका खाया और शहनाज़ आगे गिरने को हुई और अजय के हाथ से निकल गई। शहनाज़ इस वक़्त लंड को पकड़े हुए सिर्फ ब्रा पेंटी में झूल रही थी और अजय के हाथ में उसकी साड़ी अा गई थी। हवा में लटकी शहनाज़ डर के मारे चींखं उठी और अजय ने साडी को फेंकते हुए शहनाज़ को उसकी जांघो से थाम तो दोनो ने राहत की सांस ली। ब्रा पेंटी में होने के कारण शहनाज़ की उत्तेजना और बढ़ गई और उसकी चूत से रस टपकना शुरू हो गया जिससे उसकी पेंटी पूरी गीली हो गई थी।

अजय शहनाज़ को ब्रा पेंटी में देखकर पागल सा हो गया और ऊपर उठा उठा कर देखने लगा। शहनाज़ किसी अजंता की तराशी हुई मूर्ति की तरह कामुक लग रही थी। ब्रा में उसकी चूचियां का उभार पहले से ज्यादा छलक रहा था और उसकी चौड़ी मोटी बाहर की तरफ उभरी हुई गांड़ अजय की हालत और ज्यादा खराब कर रही थी।

शहनाज़ अजय से बेखबर हवा में झुकते हुए लंड को पकड़ पकड़ हिलाते हुए घंटे बजा रही थी। शहनाज़ ने देखा कि एक लंड थोड़ा उपर की तरफ था वो सबसे ज्यादा गुलाबी था तो शहनाज़ अजय से सिसकते हुई बोली,:"

" अजय एक ल.. ल ल..

अजय:" ऊपर की तरफ क्या शहनाज़? बोलो ना

शहनाज़ ने शर्म के मारे अपनी आंखे बंद कर ली और कांपते हुए बोली:" वो वो मैं कह रही थी कि एक लंड उपर की तरफ हैं। मुझे थोड़ा और ऊपर उठाओ ना।

लंड बोलते ही शहनाज़ की चूत के पूरी तरह से भीग कर चिकने हो गए लिप्स फड़फड़ा उठे।
शहनाज़ के मुंह से लंड सुनते ही अजय तड़प सा उठा। उसका मन किया कि शहनाज़ को यहीं फर्श पर पटक पटक कर चोद दे लेकिन मजबूर था। अजय ने शहनाज़ के घुटनो को मजबूती से पकड़ लिया और उपर की तरफ उठा लिया। जैसे ही शहनाज़ उपर हुई तो हिलता हुआ एक लंड उसके मुंह को रगड़ता हुआ चला गया। शहनाज़ के होंठो से आह निकल पड़ी और इसका सीधा असर उसकी चूत पर हुआ और चूत से निकला अमृत रस उसकी पेंटी ना थाम सकी और जांघो को भिगोने लगा।

शहनाज़ ने उपर के लंड को हाथ से पकड़ लिया और जोर जोर से हिलाने लगी। जैसे ही इस हवा में हिलता हुआ लंड उसकी आंखो से सामने से गुज़रा तो गुलाबी सुपाड़े को देखकर शहनाज़ के मुंह और चूत दोनो के होंठ खुल गए। शहनाज़ की चूत से टपक रहे अमृत रस की बूंद अजय के मुंह पर पड़ी तो उसकी आंखे जैसे ही ऊपर हुई तो उसकी नजर शहनाज़ की भीगी हुई पेंटी से टपकते हुए रस पर पड़ी तो अजय पूरी तरह से बौखला गया और उसने शहनाज़ के मुंह की तरफ देखा। ऊपर जैसे ही लंड धीमे से हिलता हुआ शहनाज़ के मुंह के आगे से निकला तो शहनाज़ ने सब शर्म लिहाज छोड़ कर पूरी बेशर्मी दिखाते हुए लंड के गुलाबी सुपाड़े को अपने होंठों से चूम लिया। ये सब देखकर अजय से अब बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपने जलते हुए होंठो को शहनाज़ की टांगो पर टिका दिया। शहनाज़ की चूत में पहले से ही आग लगी हुई और अजय के गर्म गर्म होंठ अपनी टांगों को महसूस करते ही वो जोर जोर से लंड को हिलाने लगी और घंटे की जोर जोर से आवाज गूंज रही थी। अजय ने अपनी जीभ निकाल कर शहनाज़ की टांग पर बहते हुए चूत के अनमोल अमृत रस को जैसे ही छुआ तो लालची शहनाज़ ने अपने मुंह से आगे हिलते हुए लंड के गुलाबी सुपाड़े को मुंह में भर लिया और उसने हाथो में पकड़े हुए लंड पर दबाव दिया। दबाव के चलते वो लंड टूट कर शहनाज़ के हाथ में आ गया और शहनाज़ अजय के हाथो से स्लिप होती चली गई।

शहनाज़ की दोनो टांगे अजय के खड़े हुए लंड पर टंग सी गई और उसके भारी भरकम वजन को सहने के बाद भी लंड थोड़ा सा भी नीचे नहीं झुका तो शहनाज़ अजय की मर्दानगी पर फिदा होती चली गई। शहनाज़ उसके लंड को पेंटी के ऊपर से अपनी चूत पर महसूस करते ही पागल हो गई और उसने मदहोशी में अजय की छाती को चूम लिया। शहनाज़ कुछ भी करके झड़ना चाहती थी इसलिए वो अपनी चूत को लंड पर रगड़ने लगी लेकिन अजय ने उसे थामते हुए नीचे उतार दिया। शहनाज़ प्यासी नजरों से अजय को देखती हुई जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी और कुछ भी करके झड़ना चाहती थी । बस अजय के पहल करने की देर थी शहनाज़ खुद ही उसके ऊपर चढ़ जाती।


अजय:" पूजा खत्म हो गई है और थोड़ा ही समय बचा हुआ है इसलिए आप बाहर जाइए और सौंदर्या को अंदर भेज दीजिए।

शहनाज़ बाहर जाना ही नहीं चाहती थी इसलिए बोली:" वो मुझे साडी बांधनी नहीं आती।

अजय उसकी बात सुनकर आगे बढ़ा और साडी को उठाकर उसकी गांड़ पर लपेटते हुए बांध दिया और शहनाज़ ने अपनी गांड़ खुद ही पीछे करके उसके हाथो में थमा दी। अजय ने साडी पहनाने के बहाने उसकी गांड़ को सहलाया तो शहनाज़ अपनी जांघें आपस में रगड़ रही थी। अजय ने साडी का दूसरा पल्लू उपर उठाया और जैसे ही शहनाज़ की चुचियों से सामने हुआ to उसने अपने दोनो हाथ अजय के हाथ के उपर रख दिए। इससे अजय के हाथो का दबाव उसे अपनी चूचियों पर महसूस हुआ और अजय के हाथो की छुअन महसूस करके शहनाज़ एक बार फिर से सिसक उठी और बाहर की तरफ निकल गई और अजय से लिपट गई।

अजय ने साडी का दूसरा पल्लू उसकी ब्रा की स्ट्रिप में लगाया और बोला:"

," शहनाज़ शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है, जल्दी से सौंदर्या को अंदर भेज दो जाकर।

शहनाज़ ना चाहते हुए भी अलग हुई और बाहर की तरफ जाने लगी तो पीछे से अजय की आवाज आई

" अपना ब्लाउस तो लेती जाओ शहनाज़ !!

शहनाज़ पलटी और उसने अजय के हाथ से कांपते हाथो से अपना ब्लाउस लिया और बाहर निकल गई।
Bohot hi erotic update
 
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