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Incest "मांगलिक बहन " (Completed)

Sanju@

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अगले दिन सुबह सौंदर्या उठी और कॉलेज के लिए तैयार हो गई। उसने अपनी मम्मी और भाई के साथ नाश्ता किया।आज रक्षा बधन था इसलिए सौंदर्या ने अपने भाई को राखी बांधी और अजय ने उसे गिफ्ट के तौर पर कुछ पैसे और एक खूबसूरत ड्रेस दी।
इस बीच उसके मन में रात हुई घटना घूम रही थी और उसे शर्म अा रही थी। खाना खाकर वो कॉलेज की तरफ जाने लगी तो अजय भी उसके साथ चल पड़ा।

कमला:" अरे दोनो जल्दी अा जाना, आज आचार्य भी अा रहे है। कहीं लेट हो जाओ और वो चले जाए।

अजय:" मम्मी हम करीब दो बजे तक वापिस अा जाएंगे।

इतना कहकर अजय अपनी दीदी के साथ आगे बढ़ गया। दोनो में आज ज्यादा बात नहीं हुई और जैसे ही कॉलेज तो सौंदर्या अंदर चली गई और अजय का मोबाइल बज उठा। उसने देखा कि उसके दोस्त शादाब का फोन था तो उसने खुशी खुशी उठाया और बोला:"

" अरे भाई कहां हो खान साहब ? आज मेरी याद कैसे अा गई ?

शादाब:" घर आया हूं भाई कल ही, फूफा जी की तबियत खराब थी इसलिए अा गया। तुम कहां हो भाई मेरे ?

अजय ने गाड़ी शादाब के घर की तरफ दौड़ा दी और बोला:"

" बस तेरे घर ही अा रहा हूं। बाकी बाते मिलकर होगी।

इतना कहकर उसने फोन काट दिया और अपनी मम्मी को बताया कि अजय घर अा रहा है तो सभी लोग बहुत खुश हुए। अजय को सभी लोग जानते थे और उन्हें पता था कि वो बहुत अच्छा लड़का हैं और अपनी जान पर खेलकर शादाब और शहनाज़ की जान बचा चुका था। सभी लोग उसके स्वागत की तैयारी में जुट गए।

करीब एक घंटे बाद वो उसके घर अा गया तो शादाब ने देखते ही उसे अपने गले लगा लिया। दोनो दोस्त एक दूसरे से लिपट गए। रेशमा और शहनाज़ ये देखकर बहुत खुश हुई। दोनो दोस्त कम और सगे भाई ज्यादा लग रहे थे।

उसके बाद अजय ने शहनाज़ और रेशमा के पैर छुए तो उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और अजय ने अपने साथ लाया मिठाई का डिब्बा रेशमा को दिया और बोला

" बुआ आज रक्षा बंधन हैं, हम अपनी बुआ और बहन के घर खाली हाथ नहीं जाते।

अजय की बात सुनकर रेशमा बहुत खुश हुई और उसने अंदर कमरे में चली गई। अजय वसीम के पास बैठ गया और उनके हाल चाल पूछने लगा।

थोड़ी देर बाद ही रेशमा और शहनाज़ दोनो कमरे में अा गई। रेशमा के हाथ में एक राखी और पूजा का सामान था। अजय ये सब देखकर पूरी तरह से हैरान हो गया क्योंकि उसे उम्मीद नहीं थी कि एक मुस्लिम परिवार उसका इस तरह से भी सम्मान कर सकता है ।

अजय को बेड पर बिठाकर रेशमा ने उसकी आरती उतारी और फिर उसके माथे पर तिलक लगा कर उसके हाथ में राखी बांध दी। अजय की आंखो से आंखो निकला पड़े इतना प्यार और सम्मान देखकर। वो गदगद हो गया और बार बार प्यार भरी नजरो से रेशमा को देख रहा था और कभी शादाब की तरफ देखता।

फिर उसे याद आया कि उसने रस्म के तौर अपनी बुआ रेशमा को कुछ दिया तो हैं नहीं तो उसने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और रेशमा की तरफ बढ़ा दिए और बोला:"

" बुआ मेरी तरफ से एक छोटी सी भेंट। मुझे पता होता कि यहां मेरा ऐसा सम्मान और स्वागत होगा तो और कुछ सोच कर आता।

रेशमा ने खुशी खुशी अपना हाथ आगे बढाया और अजय से रस्म के तौर पैसे ले लिए और उसका माथा चूम कर बोली:"बेटा एक रस्म के तौर पर रख रही हूं बस। नहीं तो इनकी कोई जरूरत नहीं थी। तुम वैसे पहले ही इतने सारे एहसान कर चुके हो हम पर।

अजय ने बुरा सा मुंह बनाया और रेशमा को बनावटी गुस्से से देखा तो सभी लोग एक साथ जोर जोर से हंस पड़े। शादाब और शहनाज आज बहुत खुश थे क्योंकि अजय जैसा दोस्त उसे मिला ये उसकी किस्मत थी।

उसके बाद सभी लोग खाना खाने बैठ गए और अजय को पहला निवाला रेशमा ने खुद अपने हाथ से खिलाया। उसके बाद सभी ने खाना खाया और शादाब और शहनाज़ अजय के साथ उपर चले गए जबकि रेशमा अपने शौहर को खाना खिलाने के लिए नीचे ही रुक गई।

शादाब:" और बता भाई गांव में आए कितने दिन हो गए ? घर में सब कैसे हैं ?

अजय:" घर में सब ठीक है भाई। 15 दिन के आस पास हो गए। यार एक बात बताना हो मैं भूल ही गया।

शादाब:" वो क्या मेरे भाई ?

अजय:" यार गांव के ही गुण्डो ने मिलकर गैंग बनाया हुआ था और मेरी दीदी सौंदर्या उनसे भिड़ गई और फिर उनका किडनैप हो गया और मुझे दीदी को बचाने के लिए सबको मारना पड़ा।

शादाब की आंखो में गुस्सा अा गया और अपने बोला:"

" अच्छा किया सालो को मार दिया। ऐसे लोगो को जीने का कोई हक नहीं हैं जो लड़की पर गलत नजर डालते हैं। वैसे अभी कैसी हैं मेरी बहन सौंदर्या ?

अजय:" बिल्कुल ठीक है भाई। अपने कॉलेज पढ़ाने गई हुई है।

शहनाज़:" ओह अच्छा वो पढ़ाती हैं ये तो बहुत अच्छी बात हैं। बातो से तो लग रहा है कि वो तुमसे बड़ी होगी।

अजय:" जी अम्मी, बड़ी ही नहीं बल्कि मुझसे 13 साल बड़ी है। आपसे बस दो या तीन साल ही छोटी होंगी।

शहनाज़:" अच्छा जी ये तो बहुत अच्छी बात हैं। फिर तो उनके बच्चे भी काफी बड़े होंगे।

अजय के चेहरे पर उदासी अा गई और बोला:" नहीं अम्मी, उनकी अभी शादी ही नहीं हुई है क्योंकि वो मांगलिक हैं। ।

शहनाज़ और शादाब दोनो एक साथ चौक उठे और शहनाज़ बोली:' बेटे ये मांगलिक क्या होता है वैसे ?

अजय:" जब बच्चा जन्म लेता हैं तो कभी कभी उस समय मंगल ग्रह उन पर भारी हो जाता है और वो बच्चे मांगलिक होते हैं। मांगलिक के लिए मांगलिक ही अच्छा जीवन साथी होता हैं या फिर कुंडली से दोष निकालने के लिए कुछ कठिन उपाय करने पड़ते हैं।

शहनाज़:" हाय मेरे खुदा, ये तो बहुत दिक्कत वाली बात है। मतलब अगर मांगलिक लड़का नहीं मिला तो क्या उसकी शादी नहीं होगी?

अजय:" मिल जाता है, बस लड़का अच्छा नहीं मिल रहा है। वैसे एक दोनो मांगलिक हो तो किसी का मंगल दूसरे पर भारी पड़ सकता है। कुंडली के दोष को दूर करना ही बेहतर उपाय होता हैं। आज एक बहुत पहुंचे हुए आचार्य तुलसी दास जी अा रहे हैं और कोई ना कोई उपाय निकल ही जाएगा।

शादाब शहनाज़ से बोला:" एक काम करते हैं हम दोनों भी अजय के घर चलते हैं। आज रक्षा बंधन भी है। दीदी मुझे राखी भी बांध देगी और भी इसकी मम्मी और दीदी दोनो से मिल लेना।

शहनाज़ को ये आइडिया पसंद आया और जल्दी से तैयार हो गई। थोड़ी देर बाद ही शहनाज़ और शादाब अजय के साथ गाड़ी में उसकी गाड़ी में थे और गाड़ी सौंदर्या के कॉलेज की तरफ चली जा रही थी।

शादाब और शहनाज़ दोनो कार में बैठे हुए सौंदर्या का इंतजार कर रहे थे जबकि अजय मार्केट से कुछ सामान लेने गया था।

तभी एक खूबसूरत सी लड़की गाड़ी के पास अाई और उसने खिड़की पर नॉक किया तो उसे देखते ही शादाब और शहनाज़ दोनो समझ गए कि यही सौंदर्या है। शहनाज उसे गौर से देखा तो उसे लगा कि जैसे उसे वो सालो से जानती हैं।

शादाब ने दरवाजा खोला और बाहर अा गया तो सौंदर्या उसे देखकर हैरान हो गई। शादाब बिल्कुल गोरा था और देखने में किसी राजकुमार की तरह खूबसूरत था।

शादाब ने सौंदर्या को देखते हुए अपने दोनों हाथ उनके आगे जोड़ दिए और बोला:"

" नमस्ते दीदी, क्या आप सौंदर्या दीदी हैं ?

सौंदर्या हैरान हो गई कि ये लड़का मुझे कैसे जानता हैं तो उसने पूछा : हान नमस्ते। मैं ही सौंदर्या हूं लेकिन तुम कौन हो ? मुझे कैसे जानते हो ?

शादाब: दीदी मैं शादाब हूं अजय का दोस्त बिल्कुल भाई जैसा।

शादाब नाम सुनते ही सौंदर्या के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:" अच्छा तो तुम शादाब हो। मैंने अजय से तुम्हारे बारे में सुना है कि तुम बहुत अच्छे हो।

तभी अजय अा गया और उसने सभी को आपस में मिलाया तो सौंदर्या शहनाज़ से मिलकर बहुत खुश हुई। अजय और शादाब आगे बैठ गए और पीछे सौंदर्या और शहनाज़ बैठ गई और बाते करने लगी।

शहनाज़:" आप तो बिल्कुल अपने नाम की तरह हो सौंदर्या। बिल्कुल फूल सी सुंदर।

सौंदर्या अपनी तारीफ सुनकर खुश हुई और बोली:"

" आंटी जी मैं कहां इतनी सुन्दर हूं। ये तो आपके देखने का नजरिया हैं बस।

शहनाज़ अमेरिका में रही थी जहां 60 साल की औरत भी खुद को जवान समझती थी। सौंदर्या के मुंह से अपने लिए आंटी सुनकर उसे बुरा लगा और बोली:" वैसे तो मेरी उम्र तुमसे दो या तीन साल ही ज्यादा हैं सौंदर्या। तुम्हारे मुंह से आंटी अच्छा नहीं लगता।

सौंदर्या के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:" माफ कीजिए मोहतरमा जी आप। आंटी ना कहूं तो फिर आपको क्या कहूं आप ही बता दीजिए।

शहनाज़ एक पल के लिए सोच में पड़ गई और फिर बोली:" वैसे तो हम दोनों हम उम्र ही है। आप चाहो तो नाम से भी बुला सकती हो मुझे।

सौंदर्या:" ना जी ना, नाम से नहीं बुला सकती। अच्छा एक काम करती हूं आपको शहनाज़ दीदी बोल दिया करूंगी।

इतना कहकर सौंदर्या ने दोस्ती के लिए अपना हाथ आगे किया और
शहनाज़ को ये ठीक लगा और उसने अपना हाथ सौंदर्या की तरफ बढ़ा दिया और बोली:"

" ठीक है। फिर आज से हम दोनों पक्की दोस्त। लेकिन एक बात ध्यान रखना अकेले में सिर्फ शहनाज़ कहकर बुलाना मुझे।

सौंदर्या ने उसका हाथ पकड़ लिया और दोनो एक साथ स्माइल कर पड़ी। आगे शादाब और अजय अपनी बातो में लगे हुए थे कि तभी अजय का मोबाइल बज उठा तो उसने देखा कि उसकी मम्मी का फोन था।

अजय:" हान जी मम्मी, बस अा रहे हैं, 10 मिनट में अा जायेगे।

कमला:" अच्छा हैं बेटा। तुम सीधे यहीं आचार्य जी के पास ही अा जाना। मैं यहीं हूं।

अजय:" ठीक है मम्मी। आप वहीं रुकिए मैं अा रहा हूं थोड़ी ही देर में आपके पास।

अजय ने फोन काट दिया और थोड़ी देर बाद ही उनकी गाड़ी एक बड़े से घेर के सामने खड़ी हुई थी और यहीं आज के लिए आचार्य तुलसी दास जी ने अपना डेरा लगाया हुआ था।

भीड़ बहुत ज्यादा थी और चारो तरफ लोग ही लोग नजर अा रहे थे। चारो और से आचार्य जी की जय जयकार के नारे गूंज रहे थे और साथ ही साथ हल्की आवाज में एक भक्ति संगीत भी बज रहा था। सभी लोग गाड़ी से उतरे और अंदर अा गया तो देखा कि सामने एक बहुत ही बड़ी और सुंदर स्टेज लगी हुई थी जिसके चारो ओर भक्तो की भारी भीड़ थी। बीच में स्टेज पर एक सिंहासन नुमा बहुत ही शानदार कुर्सी रखी हुई थी जिस पर आचार्य तुलसी दास जी विराजमान थे। एक सिद्ध महापुरुष, उनके चेहरे से उनका ओजस साफ छलक रहा था। एक सपाट चेहरा और आंखो में भोलापन ये इस महापुरुष की पहचान थी।

थोड़ी देर के बाद कमला का नंबर आया तो वो भी अपने परिवार को लेकर स्टेज पर अा गई और गुरू जी के सादर चरणों में झुक कर प्रणाम किया। अजय और सौंदर्या ने भी उनके पैर छुए।

कमला:" महाराज ये मेरी बेटी हैं सौंदर्या। अब आपसे क्या छुपाना...

महाराज ने कमला को मौन रहने का इशारा किया और थोडी देर तक कुछ सोचते रहे आंखे बंद कर के पूरी तरह से ध्यानमग्न।

महाराज:" तुम्हारी बेटी सौंदर्या मांगलिक हैं बेटी जिस वजह से इसकी शादी नहीं हो रही है। एक और राज की बात तुम्हारी बेटी का कल किडनैप हो गया था और तुम्हारे इस बाहुबली बेटे ने बदमाशों का काम तमाम करके इस कन्या को बर्बाद होने के बचा लिया है।

महाराज की बात खत्म होते ही कमला सीधे उनके पैरो में गिर गई और अजय और सौंदर्या का मुंह खुला का खुला रह गया। साथ ही खड़े शादाब और शाहनाज भी आश्च्यचकित थे।

कमला:" आप सच में बहुत ही ज्ञानी और सिद्ध पुरुष हैं। आपको तो सब कुछ पहले से ही मालूम हैं और आप ही मुझ पर अपनी कृपया कीजिए और मेरी बेटी की शादी के लिए कोई उपाय बताए।

महाराज:" हर एक समस्या का उपाय हैं पुत्री। तुम्हारी पुत्री के सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। जिस तरह कल अजय ने इसकी इज्जत बचाई उसी तरह इसकी कन्या की सभी समस्याओं का समाधान तुम्हारे बेटे के हाथो ही होगा। ये समझ लो कि अजय का जन्म ही अपनी बहन की रक्षा और उसके कष्ट निवारण के लिए हुआ हैं।

थोड़ी देर के लिए महाराज रुके और फिर बोले:" मैं तुम्हारे बेटे को इस कन्या की दोष मुक्ति के उपाय बता दूंगा और मुझे पूरा यकीन है कि ये जरूर अपने लक्ष्य में सफल रहेगा। अजय तुम शाम को मेरे पास अा जाना और मेरे तुम्हे सब पता समझ दूंगा। अभी आप लोग आराम से घर जाइए।

इतना कहकर बाबा की चुप हो गए और उसके बाद सभी उनके पैर छूकर वापिस घर की तरफ चल पड़े। कमला शादाब और शहनाज़ से मिलकर बहुत खुश हुई। शहनाज़ तो अपने मिलनसार स्वभाव के लिए ही बनी हुई थी और शादाब इतना सुन्दर और स्मार्ट था उसकी तरफ बिना आकर्षित हुए कोई रह ही नहीं सकता था।

सभी लोग घर पहुंच गए और थोड़ी ही देर में उनका नाश्ता हो गया। उसके बाद अजय ने अपनी को आरती का थाल और राखी लाने के लिए कहा।

शादाब के अंदर एक अलग ही उत्साह था। आज तक किसी ने भी उसे राखी नहीं बांधी थी और ये सोच सोच कर कि आज उसकी कलाई भी राखी से सज जाएगी उसके अंदर बहुत ही सुखद महसूस हो रहा था। काले रंग के कुर्ते में वो बेहद ही खूबसूरत लग रहा था।

शादाब एक कुर्सी पर बैठ गया और सौंदर्या उसके हाथ में राखी बांधने लगी। शादाब का हाथ कांप था था क्योंकि उसके लिए ये बिल्कुल नया एहसास था। उसके चेहरे पर खुशी और आंखे गीली हो गई थी। सौंदर्या राखी बांधते हुए बोली:"

" क्या हुआ शादाब भाई जान ? आप का हाथ कांप क्यों रहा हैं ? आप ठीक तो हैं ना।

शादाब की आंखे भर आई और उसने दूसरे हाथ से अपने आंखो को साफ किया। हर कोई शादाब को ही देख रहा था जिसके आंखे बार बार भीग रही थी।

शादाब:" दीदी आज पहली बार किसी ने मेरी कलाई पर राखी बांधी है। अपने दोस्तो की बहनों को राखी बांधते हुए देखता था लेकिन कभी कह नहीं पाया कि मुझे भी राखी बांध दो। आज बस आप राखी बांध रही थी तो मेरी आंखे खुशी से भर अाई।

इतना कहकर शादाब की आंखे फिर से भर अाई तो उससे पहले ही सौंदर्या ने उसके आंसू साफ कर दिए और बोली:"

" बस भैया बस करो। मर्द रोते हुए अच्छे नहीं लगते। अब मैं हूं ना हर साल आपकी कलाई पर राखी बांध दिया करूंगी। और हान मुझे आप देना अच्छे अच्छे कीमती गिफ्ट।

सौंदर्या की बात सभी लोग हंस दिए और सौंदर्या ने शादाब के हाथ में राखी बांधकर उसके माथे पर चंदन का तिलक लगा दिया।


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राखी की रस्म पूरी होने के बाद सौंदर्या खड़ी हुई और उसने थाली से एक लड्डू लिया और अपने भाई के मुंह की तरफ किया। शादाब ने जैसे ही अपना मुंह खोला तो सौंदर्या ने तेजी से पूरा लड्डू उसके मुंह में घुसा दिया।



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एक बार फिर से कमला अजय के साथ साथ शहनाज़ भी जोर से हंस पड़ी। शादाब के मुंह में लड्डू होने के कारण उसका मुंह ठीक दे नहीं चल रहा था इसलिए सौंदर्या उसे देखकर स्माइल कर रही थी। शादाब इशारे से कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था जिसे देखकर सबको पूरी हंसी अा रही थी। भावुक माहौल को एक ही पल में खुशनुमा माहौल में बदल किया था सौंदर्या ने।

जैसे ही शादाब ने लड्डू खाया तो सौंदर्या उसके सामने खड़ी हो गई और बोली:"

" चलो मेरे भैया राजा जल्दी से अब मेरा गिफ्ट निकालो।

शादाब ने अपना बैग खोला और एक बहुत ही खूबसूरत साडी उसकी तरफ बढ़ा दी जिसे देखकर सौंदर्या बहुत खुश हुई। शादाब ने अपनी बहन का हाथ पकड़ा और बोला:"

" आज सबके सामने तेरा ये भाई कसम खाता है कि तेरी खुशी के लिए सारी दुनिया से टकरा जाऊंगा। तेरी आंखो में आंसू लाने वाले की आंखे निकाल लेगा तेरा भाई शादाब। अगर जान भी देनी पड़ी तो पीछे नहीं हटूंगा।

शादाब की बात सुनकर सौंदर्या अपने भाई शादाब के गले लग गई। शादाब ने भी अपनी बहन को अपने गले लगा लिया। बिल्कुल भाई बहन का निर्मल प्रेम, कोई उत्तेजना नहीं, कामुक एहसास नहीं, सिर्फ प्यार काम रहित प्यार।

बाकी सारे लोग बिल्कुल शांत लेकिन खुश खड़े हुए ये सब देख रहे थे। थोड़ी देर के बाद सौंदर्या अलग हुई तो शादाब बोला:"

" दीदी आपने तो मेरा मुंह मीठा करा दिया। अब मैं आपको अपने हाथ से लड्डू खिलाता हूं।

इतना कहकर शादाब ने एक लड्डू उठाया और सौंदर्या के मुंह की तरफ बढ़ा दिया तो सौंदर्या ने स्माइल करते हुए अपना मुंह खोल दिया।

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सौंदर्या ने आराम से लड्डू खाया और उसके बाद सभी लोगो ने अपना मुंह मीठा किया।

कमला:" अच्छा बेटी अब राखी तो बांध दी अपने भाई के लिए कुछ खाने के लिए भी बना लो। देख चार बजने वाले हैं।

सौंदर्या किचेन में जाने लगी तो उसके पीछे पीछे ही शहनाज़ भी चल पड़ी तो सौंदर्या बोली:"

'" अरे आप कहां किचेन में अा रही है, आप तो मेहमान हैं, आराम से बाहर हाल में बैठिए।

शहनाज़:" बस करो सौंदर्या, मैं कोई मेहमान नहीं हू। जब हम दोनों सहेली बन गई हैं तो फिर मेहमान वाली बात कहां से अा गई हमारे बीच ?

सौंदर्या ने मुस्कुरा कर शहनाज़ को देखा और बोली:" वो तो ठीक हैं लेकिन आप पहली बार हमारे घर अाई हैं तो अच्छा नहीं लगता।

शहनाज़ ने सौंदर्या की आंखो में देखा और बोली:" अच्छा जी कुछ ज्यादा ही बोलती है आप, ये सिर्फ आपका ही नहीं मेरा भी घर हैं समझी तुम।

सौंदर्या ने अपनी गलती मान ली और दोनो उसके बाद खाना बनाने में जुट गई। करीब एक घंटे में सभी कुछ बन गया।

सभी लोग हॉल में बैठे हुए थे और बाते कर रहे थे। तभी कमला बोली :" अजय बेटा देखो शाम पूरी तरह से घिर आई है। तुम एक बार जाकर आचार्य जी से मिल लो। अच्छा एक काम और करो, अपने साथ सौंदर्या को भी ले जाओ कहीं उसकी जरूरत ना पड़ जाए।

अपनी मम्मी की बात सुनकर अजय अपनी बहन को लेकर आश्रम की तरफ निकल गया।

कमला:" अच्छा तुम दोनो आराम कर लो, मैं घेर से होकर आती हूं। भैंसो का थोड़ा काम हैं।

कमला घेर में अपनी भैंस और गाय का दूध निकालने के लिए चली गई।

शहनाज़:" वैसे शादाब एक बात तो हैं कि अजय और उसकी फैमिली बहुत अच्छी हैं।

शादाब ने अपनी अम्मी का हाथ पकड़ लिया और सहलाते हुए बोला:" हान अम्मी, बहुत अच्छे लोग है, मुझे आज बहुत खुशी जब सौंदर्या दीदी ने मुझे राखी बांधी।

शहनाज़ की आंखो के आगे सौंदर्या का चेहरा घूम गया तो वो बोली:" मुझे भी तुझे खुश देखकर अच्छा लगा। वैसे बेचारी सौंदर्या, 34 साल की होने के बाद भी अभी तक उसकी शादी नहीं हुई। मुझे तो उस पर तरस आता हैं।

शादाब:" हान देखो ना अम्मी, अब आप 37 साल की ही तो हैं और दूसरी बन दुल्हन बन गई वहां बेचारी सौंदर्या पहली ही शादी के लिए तड़प रही है।

शहनाज़ ने एक हल्की सी चपत उसके गाल पर लगाई और बोली:" तेरी जुबान बहुत ज्यादा चलती है।

शादाब:" जुबान से ज्यादा तो मेरा लन्ड चलता है मेरी जान।

शहनाज़:" चुप कर बेशर्म, वो चलता नहीं बल्कि दौड़ता है।

इतना कहकर शहनाज़ शर्मा गई तो शादाब ने अपनी अम्मी के होंठ चूम लिए तो शहनाज़ उसे प्यार से डांटते हुए बोली:" बस कर बेशर्म लड़के, अभी हम यहां तेरे दोस्त के घर हैं अपने घर नहीं।

शादाब ने उसकी चूचियों को सूट के उपर से ही पकड़ किया और सहलाते हुए बोला:"

" उफ्फ मेरी जान शहनाज़, कल रात भी तुम सो गई थी। कुछ तो रहम करो मेरे मूसल पर बेचारा देखो कितना तड़प रहा है तुम्हारी औखली में घुसने के लिए।

इतना कहकर उसने अपनी पैंट को अंदर वियर सहित नीचे सरका दिया तो उसका दमदार लंड शहनाज़ की आंखो के आगे लहरा उठा। शहनाज़ की आंखे लंड देखकर लाल सुर्ख हो गई और और शादाब ने उसके कंधो पर दबाव डालते हुए उसे नीचे झुका दिया।

वहीं दूसरी तरफ अजय अपनी बहन के साथ तुलसी दास जी के आश्रम में पहुंच गया। अभी भक्तो की भीड़ खत्म हो गई थी और महाराज आराम से अपने कमरे में जमीन पर बैठे हुए थे पूरी तरह से ध्यानमग्न।

अजय और सौंदर्या ने उनके पैर छुए तो उन्होंने अपनी आंखे खोल दी और बोले:"

" आओ पुत्र मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था। अच्छा हुआ तुम खुद ही अा गए।

अजय ने दोनो हाथ जोड़ दिए और श्रद्धा पूर्वक उनकी तरफ देखते हुए विनती भरे स्वर में बोला:" गुरु जी हमे कोई उपाय बताए आप ताकि मेरी बहन की ज़िन्दगी से उसकी कुंडली से इस दोष का निवारण हो सके।

महाराज:" अवश्य पुत्र। एक काम करो तुम दोनो अपना हाथ मुझे दो।

दोनो ने अपना एक एक हाथ महाराज के हाथो में दे दिया। महाराज उनका हाथ अपने हाथों में लिए पूरी तरह से ध्यानमग्न होकर कुछ सोचते रहे और फिर उन्होंने अपनी आंखे खोल दी और उनके चेहरे पर कुछ अजीब सी बेचैनी के भाव थे जिन्हें देखकर अजय के मन में शंका हुई और बोला:"

" क्या हुआ महाराज? आपके चेहरे पर बनी हुई चिंता की लकीरें मेरे मन में डर पैदा कर रही है।

महाराज ने अजय और सौंदर्या दोनो को एक बार फिर ध्यान से देखा और बोले:"

" उपाय तो अवश्य हैं पुत्र। लेकिन करना बहुत मुश्किल होगा तुम दोनो के लिए।

अजय को एक उम्मीद की किरण दिखाई दी और बहुत ही विनम्र शब्दो में बोला:"

" महाराज आप बताए जल्दी से, अपनी बहन के लिए मैं कठिन से कठिन इम्तिहान दूंगा।

महाराज:" ठीक है पुत्र। सौंदर्या बेटी तुम मकर राशि में पैदा हुई हो इसलिए तुम्हारा मंगल अधिक भारी हैं जबकि तुम्हारा भाई कर्क राशि में पैदा होने के कारण तुम्हारे लिए संकट मोचक बन सकता है।
एक बात ध्यान रखना तुम्हारे लिए एक मात्र उम्मीद सिर्फ तुम्हारा भाई ही हैं। सिर्फ ईओ ही तुम्हारी कुंडली से दोष निकाल सकता है।

सौंदर्या ने राहत की सांस ली कि आखिर कोई तो उपाय हैं उसके लिए क्योंकि वो अब कुछ भी करके किसी भी हालत में इस मुश्किल से छुटकारा पाना चाहती थी किसी भी कीमत पर।

महाराज:" बेटी तुझे तुम्हे के लिए हरिद्वार जाना होगा। लेकिन उससे पहले तुम्हे कियाबा में स्थित लिंगेश्वर मंदिर जाना होगा और वहां पुष्प अर्पित करने होंगे। उसके बाद तुम खजुराहो की गुफाएं में जाना होगा और वहां तुम्हे कुछ विशेष पूजा करनी होगी, तुम्हे मंगलवार के दिन लाल सुर्ख पकड़े पहनकर मंगल कर जल देना होगा। ये क्रिया तुम्हे सात दिन तक लगातार करनी होगी। इसके अलावा तुम्हारे भारी मंगल को काबू में करने के लिए तुम्हे मैं एक मंगला यंत्र भी दूंगा। बेटी अब तुम बाहर जाओ। बाकी की विधि में तुम्हारे भाई को समझा दूंगा। मै तुम्हे एक बार फिर से समझा रहा हूं कि तुम्हारे लिए आशा की एक मात्र किरण तुम्हारा भाई ही है। मै इसे सब उपाय और उनके करने की विधि बता दूंगा।

महाराज ने अपनी बात खत्म होते हुए ही सौंदर्या को बाहर जाने का इशारा किया और वो महाराज के पैर छूकर बाहर निकल गई।

महाराज ने अब अजय को विधि बतानी शुरु करी तो अजय हैरानी से उनके मुंह देखता रह गया। उसे समझ नहीं अा रहा है कि ये महाराज को क्या हो गया है। जैसे ही उन्होंने अपनी बात पूरी करी तो अजय बोल उठा:"

" लेकिन महाराज ये उपाय तो बेहद कठिन हैं, भला एक भाई बहन वो भी सगे किस तरह इस तरह की विधि और पूजा कर सकते है। क्षमा चाहता हूं क्या कोई दूसरा उपाय होगा ?

महाराज:" पुत्र हमे भी ज्ञात है कि ये मुश्किल होगा लेकिन इसके अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है मेरे पास। मेरे पास क्या दुनियां में किसी के भी पास नहीं होगा।

अजय:" लेकिन महराज मेरी बहन मेरे बारे में क्या सोचेगी ? कहीं उसने मुझे गलत समझ लिया तो ?

महाराज:" हमसे कुछ भी छुपा नहीं हैं बच्चा, ना भूत ना भविष्य। तुम्हारी बहन तुम्हारी हर बात को मान लेगी इसका हमे पूरा विश्वास है बस उसे ये क्रिया विधि करके दिखाने के लिए कोई दूसरी अनुभवी औरत चाहिए जिसकी राशि सौंदर्या से मिलती हो।

अजय ने लिए दूसरी अनुभवी औरत की बात कहकर महराज ने एक और बड़ी मुश्किल समस्या पैदा कर दी।

अजय:" महाराज ये तो बहुत विकट परिस्थिति हो गई। मैं तो सिर्फ एक ही औरत को जानता हूं और वो हैं मेरी मम्मी। लेकिन उनकी और दीदी की राशि दोनों अलग अलग हैं।

महाराज:" पुत्र घबराओ मत, समय आने पर हर एक समस्या के लिए समाधान निकल आता है ठीक वैसे ही इसका समाधान भी निकल आएगा।

इतना कहकर महाराज खड़े हो गए और उन्होंने अपनी कमरे की अलमारी से दो छोटे छोटे बैग निकाले और अजय को देते हुए बोले:"

" ये सिद्ध किए हुए मगंल यंत्र है बेटा, इनका उपयोग सोच समझ कर अपने विवेक से करना। तुम्हारी आधी समस्या हल हो जाएगी इनसे।

इतना कहकर महाराज ने अजय को मंगल यंत्र दिए और बाहर की तरफ अा गए। बाहर सौंदर्या बैठी हुई थी।

महाराज:" पुत्री हमने सब कुछ तुम्हारे भाई को समझा दिया है, तुम्हे अगर अपनी कुंडली के दोष का निवारण करना हैं तो अपने भाई की हर एक बात माननी होगी। अगर तुमसे कहीं चूक हुई तो तुम्हारे लिए फिर दुनिया में दूसरा कोई उपाय नहीं होगा।

सौंदर्या:" जी महाराज जैसी आपकी आज्ञा। मैं अपनी तरफ से अपनी भाई को पूजा और हर विधि में भरपूर सहयोग दूंगी। आखिर समस्या मेरी हैं तो इसके लिए कष्ट भी मुझे भी उठाना होगा।

दोनो ने महाराज के पैर छुए और उसके बाद दोनो घर की तरफ निकल गए।

सौंदर्या:" भाई क्या क्या विधि बताई हैं महाराज ने ?

अजय:" दीदी मैं ऐसे नहीं बता सकता, महाराज ने मना किया हैं और अगर अभी बताया तो बाद में विधि काम नहीं करेगी। महाराज के अनुसार मुझे विधि करने के वक़्त ही आपको बतानी होगी।

इतना कहकर अजय चुप हो गया और उसके बाद दोनो भाई बहन घर की तरफ चल पड़े।

शहनाज़ अपने बेटे के सामने घुटनों के बल बैठ गई और उसने उसके लंड पर अपनी नजरे टिका दी तो उसकी चूचियां अपने आप अकड़ने लगीं और चूत ने भूचाल सा उठ गया।

शादाब ने अपनी अम्मी के मुंह को लंड पर झुका दिया तो शहनाज ने अपने हाथ से लंड को पकड़ लिया और अगले ही पल जीभ उसके सुपाड़े पर फिराई।



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शादाब अपने अम्मी के मुलायम लाल सुर्ख लिपस्टिक लगे होंठो को अपने लंड पर महसूस करते ही सिसक उठा और उसने अपनी उंगलियां अपनी अम्मी के बालो में घुसा दी तो शहनाज ने अपने मुंह को पुर खोल दिया और उसके लंड को आधे से ज्यादा मुंह में भर लिया तो शादाब के मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी। शाहनाज ने उसके लंड को को अपने होंठो के बीच में कस कर बाहर की तरफ जोर से चूस दिया।



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शादाब के मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी और उसकी आंखे मस्ती से बंद हो गई। शहनाज़ के होंठो की लिपस्टिक से लंड का सुपाड़ा लाल सुर्ख हो गया था और शहनाज़ ने जैसे ही उसके लंड को मुंह में भरा तो गेट खुलने की आवाज अाई और इसके साथ ही उसने तेजी से लंड को बाहर निकाला और शादाब अपनी पैंट ऐसे ली लिए हुए बाथरूम में घुस गया। कमला तेजी से अंदर अाई और वो थोड़ी घबराई हुई लग रही थी। शहनाज़ की खुद की हालत खराब थी और कमला से आंखे चुरा रही थी।

कमला:" शहनाज़ यार दिक्कत हो गई, मेरे भैंस ने दो महीने पहले ही बच्चा दे रही। आधे से ज्यादा बाहर अा गया है, नीचे गिर तो दिक्कत हो जाएगी। शादाब कहां हैं ?

शहनाज़:" ओह ये तो सच में दिक्कत की बात है। शादाब बाथरूम में गया है।

कमला:"अजय यहां हैं नहीं , मुझसे बच्चा नहीं संभाला जाएगा।

शादाब ने अंदर जल्दी से अपनी पैंट पहनी और बाहर की तरफ अा गया। उसे देखते ही कमला ने सारी बाते बताई और तीनो तेजी से घेर की तरफ दौड़ पड़े। शादाब ने जल्दी से एक बड़ी सी थाली ली और भैंस के पीछे खड़ा हो गया। दर्द के मारे भैंस इधर उधर घूम रही थी और शादाब उसके पीछे पीछे। थोड़ी देर बाद आखिरकार उसने बच्चे को जन्म दे दिया और शादाब ने अपनी सूझ बूझ से बच्चे को नीचे नहीं गिरने दिया। कमला बहुत खुश हुई और बोली:"

" बहुत ही बढ़िया बेटे। तुमने तो इस बच्चे को नई ज़िन्दगी दी है। तुम दोनो के कदम मेरे घर में बहुत शुभ पड़े हैं।

शादाब ने बच्चे को नीचे भैंस के पास कच्चे में लिया दिया और भैंस खुशी खुशी अपने बच्चे को अपनी जीभ से चाटने लगी।

शादाब:" क्यों शर्मिंदा कर रही हो आंटी, ये तो मेरा फ़र्ज़ था। आखिर अजय मेरे भाई जैसा ही तो हैं। वो नहीं हैं घर तो सारे काम मुझे ही देखने पड़ेंगे।

थोड़ी देर अजय और सौंदर्या भी अा गए और छोटे बच्चे को देखकर सौंदर्या खुशी से भर उठी।

सभी थोड़ी देर बाद घर अा गए और बैठ कर बाते होने लगी। सभी उत्सुक थे ये जानने के लिए कि वहां पर क्या हुआ और आचार्य जी ने सौंदर्या के लिए क्या उपाय बताया है।

कमला:" बेटा क्या कहा आचार्य जी ने ? क्या उपाय बताया हैं उन्होंने ?

अजय:" मम्मी उपाय उन्होंने बता दिया है और साथ ही साथ ये भी सलाह दी हैं कि अगर करने से पहले मैंने किसी को बता दिया तो उपाय करने का कोई फायदा नही होगा फिर।

अजय की बात सुनते सब लोग उसकी तरफ देखने लगे और एक खामोशी सी छा गई। अजय ko समझ नहीं आ रहा था कि वो सौंदर्या वाली राशि की एक अनुभवी औरत का कैसे इंतजाम करे इसलिए अपनी मम्मी से बोला:"

" मम्मी महाराज ने पूजा और उसकी कुछ विधियां बताई हैं जो सौंदर्या को करनी होगी हमे कुछ मंदिरों में जाना होगा और उसके बाद हरिद्वार में पूरी पूजा को अंजाम देना होगा। लेकिन एक दिक्कत अा रही है कि हमे सौंदर्या की राशि की ही कोई परिपक्व औरत हेल्प के लिए चाहिए जो सौंदर्या को पूजा और उसकी विधि के बारे में सब कुछ बता सके। ये दिक्कत हैं एक।

अजय की बात सुनकर कमला सोच में पड़ गई जबकि शादाब और शहनाज़ ये राशि बात समझ नहीं आ रही थी।

शहनाज़:" अजय बेटा ये राशि क्या होती हैं ? मुझे थोड़ा इसका बारे में बताए।

अजय:" देखिए हिन्दू धर्म के अनुसार कुछ राशियां होती है जो इंसान के नाम से पहले अक्षर पर आधारित होती है।

शहनाज़:" ओह इसका मतलब तो ये हुआ कि मेरी और सौंदर्या की एक ही राशि होनी चाहिए। मैं सही बोल रही हूं ना ?

अजय:" हान बिल्कुल आप सही बोल रही है, आप दोनो की एक ही राशि हैं और वो हैं कुंभ।

शहनाज़:" इसका मतलब तो ये हुआ कि मैं राशि वाले मुद्दे पर तुम्हारी मदद कर सकती हूं। मतलब मेरी राशि भी सौंदर्या से मेल खाती है और मैं परिपक्व भी तो हूं ही।

शहनाज़ की बात सुनकर थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छाया रहा। कमला शहनाज़ की इस बात से हैरान थी वहीं अजय जानता था कि पूजा की विधियां और उसमे आने वाली मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए शहनाज़ इस काम के लिए सही नहीं हैं क्योंकि वो उसके दोस्त की सगी मा हैं।

अजय:" लेकिन माफ कीजिए आंटी जी, पूजा की विधि इतनी आसान नहीं है जितनी आप समझ रही हैं। इसमें आगे चलकर बहुत सारी दिक्कतें अा सकती हैं।

शहनाज़:" मैं हर दिक्कत का सामना कर लूंगी। सौंदर्या को मैंने अपनी बेटी, अपनी बहन मान लिया है इसलिए मैं उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।

अजय:" लेकिन फिर भी आप समझने की कोशिश कीजिए। सारी पूजा और विधियां हिन्दू धर्म के रीति रिवाज के अनुसार होगी और आप एक मुस्लिम हैं। आपको दिक्कत हो सकती हैं।

शहनाज़ के चेहरा गुस्से से लाल हो गया और वो अजय को घूरते हुए बोली:"

" वाह अजय कमाल कर दिया तुमने, जब तुमने रेशमा को राखी बांधी, सौंदर्या ने शादाब को राखी बांधी, तुमने अपनी जान पर खेलकर हम सबकी जान बचाई और आज मैं तुम्हारे लिए मुस्लिम हो गई।

अजय शाहनाज के क़दमों में गिर पड़ा और उनके पैर पकड़ते हुए बोला:" मुझे माफ़ कर दीजिए अगर आपको मेरी बात बुरी लगीं हो तो। मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं था। मैं तो सिर्फ धर्म के रीति रिवाज के आधार पर बात कर रहा था।

शहनाज़ ने उसे उपर उठाया तो देखा कि अजय की आंखे भर आई थी तो शहनाज़ ने अपने दुपट्टे के पल्लू से उसका मुंह साफ किया और बोली:"

" तुम एक बहादुर बेटे हो। तुम्हारे आंखो में आंसू अच्छे नहीं लगते। देखो ये जात पात धर्म सब इंसान ने बनाए हैं और उस अल्लाह/भगवान् ने हमे सिर्फ इंसान बनाया है। इंसान का काम होता है एक दूसरे के काम आना और उनकी मदद करना। मैंने सौंदर्या को अपनी छोटी बहन मान किया है इसलिए उसकी हर समस्या अब मेरी समस्या हैं। फिर भी अगर तुम्हे लगता हैं कि मैं इसके लिए सही नहीं हूं तो तुम किसी और कि साथ ले जा सकते हो।

इतना कहकर शहनाज़ चुप हो गई और कोई कुछ नहीं बोला। सभी लोगो ने साथ में खाना खाया और उसके बाद कमला और अजय एक बार घेर की तरफ अपनी भैंस को देखने के लिए अा गए।

कमला:" कब जाना होगा तुम्हे सौंदर्या को पूजा के लिए लेकर ?

अजय:" मम्मी कल सुबह ही जाना होगा।

कमला:" फिर सौंदर्या की राशि की कौन परिपक्व औरत तेरे साथ जायेगी ? क्या सोचा हैं तुमने ?

अजय:" मम्मी अभी तो कुछ नहीं, आप ही कुछ मदद कीजिए।

कमला ने अपने दिमाग पर जोर दिया तो उसे दो नाम समझ में आए एक सपना और दूसरी सीमा।

कमला:" अच्छा सपना और सीमा के बारे में क्या खयाल हैं तुम्हारा ? उनकी राशि भी तो कुंभ ही हैं बेटा।

अजय:" हान ये बात तो हैं। लेकिन मम्मी सपना और परिपक्व नहीं है और सीमा परिपक्व तो हैं लेकिन उसकी टांग में दिक्कत होने के कारण उसका शरीर खंडित हैं इसलिए उसकी मदद नहीं ली जा सकती।

दोनो मा बेटे सोच में पड़ गए। बात तो अजय की बिल्कुल ठीक थी। थोड़ी देर सोचने के बाद कमला बोली:"

" फिर तेरे पास क्या उपाय हैं ? कोई नाम हैं क्या तेरी समझ में जो सौंदर्या की मदद कर सके।

अजय:" नहीं मम्मी अभी तो ऐसा कुछ नहीं है।

कमला:" जब अभी नहीं है तो फिर सुबह तक क्या तुम कोई जादू कर दोगे ? मेरे हिसाब से शहनाज़ का प्रस्ताव बुरा नहीं है बेटा। हमे भटकने की जरूरत नहीं है। घर बैठे ही इच्छित वर मिल रहा है और क्या चाहिए !!

अजय को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि पूजा कि जो विधियां थी वो अपनी मा समान शहनाज़ से खुलकर कैसे बोल सकता था। लेकिन अंत में उसने अपनी मां के सामने हथियार डाल दिए और बोला:"

" ठीक है मम्मी, जैसे आप चाहें। अगर आप सबकी यहीं मर्जी हैं तो मुझे कोई दिक्कत नहीं।

दोनो ने भैंस को देखा और उसके बच्चे को दूध पिलाया और उसके बाद घर की तरफ अा गए।

कमला:* लेकिन बेटा तेरे जाने के बाद भैंस का काम कौन करेगा? रामू तो मर गया कुत्ता कहीं का। अभी भैंस ने नया नया बच्चा दिया है मुझे अकेले दिक्कत होगी। जंगल से घास भी लेकर आना होगा।

अजय:" मम्मी एक रास्ता है आप शादाब से बात कीजिए। अगर वो मान जाए तो अच्छा रहेगा। जब तक हम लोग पूजा करके आएंगे वो घर रह सकता है और भैंस का काम आराम से कर सकता है।


कमला को ये विचार पसंद अाया और घर सबने बैठकर इस मुद्दे पर बात करी तो अंत में फाइनल ये हुआ कि शहनाज़ सौंदर्या के साथ पूजा में जाएगी और शादाब घर पर रहकर कमला की मदद करेगा। शहनाज़ सोच रही थी कि पूजा में शादाब भी उनके साथ जाएगा लेकिन यहां तो कहानी ही पूरी बदल गई। शहनाज़ के लिए अपने बेटे से दूर रहना बहुत मुश्किल था लेकिन सौंदर्या को इस मुश्किल से बचाने के लिए उसने कुछ दिन की जुदाई को स्वीकार कर लिया।

कमला:" बेटा तुम जाने की तैयारी करो, कब जाना होगा तुम्हे ?

अजय:" मम्मी हम सुबह 3:40 मिनट पर घर से निकल जाएंगे क्योंकि ये ब्रह्म काल का समय होता है और बहुत शुभ माना जाता है।

उसका बाद सभी जाने के लिए तैयारी करने में जुट गए। मौका देखकर शादाब अपनी अम्मी के पास आया और उसके मुंह को चूम लिया और बोला:"

" आपके बिना कैसे जी पाऊंगा मैं मेरी जान।

शहनाज़ भी अपने बेटे से लिपट गई और बोली:" थोड़ा सा सब्र करो। जुदाई से भी प्यार बढ़ता है शादाब मर राजा। थोड़े दिन की बात है वैसे भी अजय के हम पर एहसान हैं तो चुकाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।

इतना कहकर शहनाज़ ने अपने बेटे के होंठो पर अपने लिप्स रख दिए और चूसने लगी। दोनो मा बेटे के दूसरे को चूमने लगे और लेकिन अगले ही पल उन्हें अलग ही जाना पड़ा क्योंकि कमला उधर की अा गई थी।

आखिरकार अजय के जाने का समय हो गया तो उसने अपने गाड़ी बाहर निकाली और अपने मम्मी में पैर छूकर शादाब के गले लग गया।

एक एक करके शहनाज़ और सौंदर्या दोनो गाड़ी में बैठ गई और अजय ने गाड़ी को आगे बढ़ा और बाहर फैले अंधेरे में उसकी गाड़ी गुम होती चली गई और ऐसे सफर पर चल पड़ी जिसकी मंजिल क्या रंग दिखाएगी किसी को मालूम नहीं था।
बहुत ही सुंदर लाजवाब और रमणिय अद्वितीय मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अप्रतिम सर्वोत्कृष्ट अपडेट :adore:
आचार्यजी ने सौंदर्या की समस्या के निवारण करने हेतू क्या उपाय बताया हैं ये अभी रहस्य ही हैं जो सिर्फ अजय ही जानता हैं
अजय के साथ शहनाज और सौंदर्या का अहम सहभाग रहने वाला है
उपाय की वहां पहूचने के बाद से ही सुबह सुबह से ही शुरु होने की संभावना लगती हैं
पुनः अतिसुंदर अपडेट
अगले रोमांचकारी और धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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गाड़ी अपनी रफ़्तार से अंधेरे को चीरती हुई आगे बढ़ रही थी और पीछे शहनाज़ और सौंदर्या दोनों आपस में बैठी हुई बाते कर रही थी। अजय का पूरा ध्यान इस समय गाड़ी चलाने पर था क्योंकि कुछ भी करके उसे सुबह दिन निकलने से पहले झालू नदी तक पहुंचना था लेकिन बीच बीच में उसके कानों में उनकी आवाजे भी पड़ रही थी।

सौंदर्या:" आपको किन शब्दो में थैंक्स बोलु मैं समझ नहीं आता। आप मेरे लिए धर्म की दीवार गिराकर अाई हैं।

शहनाज़:" उसकी जरूरत नहीं है, धर्म इंसान की खुशियों से बढ़कर नहीं होता। बस ये समझ लो कि इंसान ही दूसरे इंसान के काम आता है। एक बात और अब आगे से धर्म की बात मत करना तुम समझी। तुम मेरे किए मेरी छोटी बहन जैसी हो बस यही मेरा धर्म हैं।

सौंदर्या ने स्नेहपुर्वक शहनाज़ की तरफ देखा और उसे जवाब में स्माइल दी और बोली:"

" जैसी आपकी आज्ञा मेरी बड़ी बहन शहनाज़ जी।

शहनाज़ ने अपना एक हाथ प्यार से उसके कंधे पर रख दिया और बोली:" वैसे तुम्हे इस मांगलिक होने की वजह से काफी दुख होता होगा ना सौंदर्या।

सौंदर्या ने एक आह भरी और उसके चेहरे पर दर्द के भाव साफ नजर आए और बोली:"

" सच कहूं तो मुझे बहुत बुरा लगता है। मेरे मांगलिक होने में मेरी कुछ भी गलती नहीं, लेकिन काफी अच्छे घरों से रिश्ते आए और सबने पसंद भी किया लेकिन जैसे ही मांगलिक की बात सामने आई तो सभी ऐसे भाग गए जैसे किसी भूत को देखकर डर गए हो वो सभी।

शहनाज़:" अरे कोई बात नहीं सौंदर्या। वो सब छोटी सोच के लोग थे और तुम्हारे लायक नहीं थे। तुम्हारे लिए तो कोई राजकुमार आएगा। बस कुछ दिन की ही तो बात हैं फिर सब ठीक हो जाएगा।

सौंदर्या ने अब तक अपने मांगलिक होने के कारण उसके साथ हुए भेदभाव को याद किया तो उसकी आंखे भर आई और वो भरे हुए गले से बोली:"

"देखो देखो मेरे अंदर क्या कमी हैं, पढ़ी लिखी हूं, सुंदर हूं लेकिन फिर भी लोग मेरी भावनाओं से खेले हैं। दीदी कभी कभी तो मन करता हैं कि जहर खाकर मर ही जाऊं मै।

इतना कहकर सौंदर्या की आंखो से आंसू निकल पड़े तो शहनाज़ ने उसे अपने गले से लगा लिया और उसकी कमर थपकते हुए बोली:"

" बस सौंदर्या बस, ऐसे रोते नहीं है। तुम्हारे बुरे दिन अब खत्म समझो। मैं अा गई हूं ना तेरी ज़िन्दगी में अब।

गाड़ी चला रहा अजय भी अपनी बहन की बाते सुनकर दिल ही दिल में रो पड़ा। उसने गाड़ी की स्पीड और बढ़ा दी क्योंकि वो चाहता था कि अब उसकी दीदी अब जल्दी से जल्दी ठीक हो जाए।

सौंदर्या अभी तक शहनाज़ की छाती से चिपकी हुई सुबक रही थी और शहनाज़ किसी छोटे बच्चे की तरह उसे दिलासा दे रही थी।

सौंदर्या:" दीदी मैं ठीक तो हो जाऊंगी ना ? मुझे मुक्ति मिल जायेगी ना इस मुसीबत से ?

शहनाज़:" हान तुम बिल्कुल ठीक हों जाओगी। हम सब मिलकर सारी विधियां और उपाय बिल्कुल अच्छे से करेंगे ताकि तुम्हे इस मांगलिक योग से छुटकारा मिल जाए मेरी बहन।

सौंदर्या की सिसकियां बंद हो गई और शहनाज़ से चिपकी हुई ही बोली:"

" पता नहीं कैसी विधियां होगी, क्या उपाय होंगे , क्या करना होगा हमे ? कहीं ज्यादा मुश्किल हुई तो फिर दिक्कत होगी ?

शहनाज़ ने उसका चेहरा उपर उठाया और अपने रुमाल से उसके आंसू साफ करते हुए बोली:"

" कोई दिक्कत नहीं होगी। कैसी भी विधि हो चाहे कुछ भी उपाय हो मैं हर हालत में पूरा करूंगी ताकि तुम्हे इस मुसीबत से मुक्ति मिल जाएं। अब तुम्हे बहन बोला हैं तो बड़ी बहन का फ़र्ज़ तो निभाना ही होगा मुझे। और अजय भी तो हैं और मुझे उस पर पूरा भरोसा है कि वो कैसी भी कठिन विधि हो आसानी से करने में हमारी मदद करेगा।

सौंदर्या इस बार फिर से उसके गले लग गई और इस बार उसने शहनाज को कसकर पकड़ लिया। शहनाज़ भी खुश थी कि सौंदर्या उसे समझ रही थी और उस पर यकीन कर रही थीं।

अजय को ये सुनकर बेहद सुकून महसूस हुआ कि सौंदर्या के साथ साथ शहनाज भी उस पर पूरा भरोसा करती हैं। गाड़ी टॉप गियर में चल रही थी और अंधेरे को चीरती हुए आगे बढ़ती ही जा रही थी मानो जल्दी दे जल्दी अपनी आसमान को छूना चाहती हो।

अजय की मेहनत रंग लाई और सुबह करीब पांच बजे के लगभग वो नदी के तट पर पहुंच गया तो उसने राहत की सांस ली क्योंकि उसने अपने मकसद में कामयाब का पहला चरण हासिल कर लिया था। गाड़ी को उसने किनारे पर रोका और उसके बाद गाड़ी से उतर गया। पीछे पीछे शहनाज़ और सौंदर्या भी उतर गई तो बाहर सुबह के मौसम की ठंडी हवाओं ने उनका स्वागत किया तो दोनो के बदन में एक पल के लिए कंपकपी सी दौड़ गई। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और उसके बाद दोनो की नजर एक साथ नदी में बह रहे पानी पर पड़ी तो दोनो के चेहरे पर एक मुस्कान अाई और दोनो अजय के पीछे चल पड़ी।

अजय:" आचार्य जी के कहे अनुसार हमे यहीं से अपनी पूजा का पहला चरण शुरू करना हैं। आज मंगलवार है और आज के दिन सुबह सूरज निकलने से पहले नदी के बीच में जाकर हनुमान जी को याद करके आसमान की तरफ अपनी देने से मंगल ग्रह का प्रभाव काफी हद तक कम होता हैं।

शहनाज़ और सौंदर्या दोनो पहले से ही सोच रही थी कि कहीं इस पानी में डुबकी ना लगानी पड़ जाए और वहीं उनके साथ हुआ।

शहनाज़:" ठीक है हम दोनों इसके लिए तैयार हैं। पानी थोड़ा ठंडा होगा लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

अजय: ठीक है इस पूजा में काफी सारी बाधाएं और मुश्किल काम आएंगे लेकिन हमें ऐसे ही करना होगा। अब आचार्य जी के कहे अनुसार सबसे पहले आप नदी में जाए और डुबकी लगाकर सौंदर्या को दिखा दीजिए।

जैसे ही अजय ने अपनी बात खत्म करी तो ठंडे पानी के एहसास से ही सौंदर्या के जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए और उसने शहनाज़ का हाथ कसकर पकड़ लिया तो शहनाज़ ने उसकी तरफ देखा और अपना हाथ छुड़ाते हुए आगे बढ़ गई। शहनाज ने देखा कि नीचे नदी की बाउंड्री हुई थी और कुछ लोहे की जंजीर एक पाइप के सहारे बंधी हुई थी जिसे पकड़कर लोग नहाते थे। नीचे नदी में उतरने के लिए एक छोटा सा मिट्टी का रास्ता था और आसमान में रोशनी बहुत कम थीं। शहनाज़ सावधानी से कदम रखते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी और लगभग नदी के करीब पहुंच गई थीं। जैसे ही वो नदी के करीब पहुंची तो उसका पैर पत्थर में लगकर फिसल गया और शहनाज़ के मुंह से एक दर्द भरी चींखं निकली और वो तेजी से फिसलती हुई सीधे नदी की धारा के बीच में पूरी और अपने वजन के साथ नीचे डूबती चली गई।

उपर खड़ी सौंदर्या के मुंह से डर और दहशत के मारे चींख निकली और अजय ने समझदारी से काम लेते हुए कपड़ों सहित नदी में छलांग लगा दी। शहनाज़ जितनी तेजी से नीचे गई थी पानी के दबाव के कारण उससे कहीं ज्यादा तेजी से उपर की तरफ अाई और उसने अपनी जान बचाने के लिए पानी में हाथ पैर मारने शरू किए और उम्मीद से अजय और सौंदर्या की तरफ देखा लेकिन अजय उसे दिखाई नहीं दिया। शहनाज के चेहरे पर मौत का खौफ साफ नजर आया तभी उसे पानी में हलचल होती दिखी और अजय तेजी से पानी को धार को चीरता हुआ उसकी ही तरफ बढ़ रहा था तो उसे उम्मीद की एक किरण नजर आईं और देखते ही देखते अजय उसके पास पहुंच गया और अपने एक हाथ को कमर में फंसा कर कंधे से उसे पकड़ लिया और तैरता हुआ किनारे की तरफ आने लगा। शहनाज़ डर के मारे उससे लिपट सी गई थी और देखते ही देखते अजय नदी के किनारे पर पहुंच गया और दोनो बाहर निकल गए। अजय की समझदारी की वजह से शहनाज़ के मुंह के अंदर पानी नहीं घुसा था और पूरी तरह से ठीक थी। पानी से बाहर निकलते ही शहनाज़ अजय से कसकर लिपट गई क्योंकि उसने अभी अभी साक्षात मौत के दर्शन किए थे और अजय की वजह से उसे आज दूसरी बार नई ज़िन्दगी मिली थी। सौंदर्या भी नीचे नदी के पास बनी बाउंड्री पर अा गई और वो भी उन दोनो से लिपट गई। शहनाज ठंडे पानी की वजह से अभी तक कांप रही थी।

शहनाज़:" अजय बेटा समझ नहीं कैसे तुम्हे शुक्रिया कहूं। आज तुम बा होते तो मेरा बचना मुश्किल होता।

अजय:" आप हमारे साथ हमारी मदद के लिए अाई हैं और आपकी किसी भी परिस्थिति में रक्षा करना मेरा फ़र्ज़ है।

थोड़ी देर के बाद धीरे धीरे अंधेरा कम होता जा रहा था और शहनाज़ बोली:"

" अरे धीरे धीरे प्रकाश फैल रहा है मुझे जल्दी से डुबकी लगानी होगी।

अजय नदी में उतर गया और उसने पानी के बीच में जाकर लोहे कि जंजीर को पकड़ लिया और बोला:"

" आप अब बेफिक्र होकर नदी में आइए। मैं आपकी रक्षा के लिए यहीं खड़ा हुआ हूं।

शहनाज धीरे धीरे आगे बढ़ी और देखते ही देखते नदी में उतर गई। उसने एक बार अजय की तरफ देखा और नीचे पानी में डुबकी लगाई। थोड़ी देर के बाद शहनाज़ फिर से पानी में ऊपर अाई और फिर से एक डुबकी लगाई। सौंदर्या ध्यानपूर्वक खड़ी हुई सब देख रही थी और उसने बाद शहनाज़ ने एक और डुबकी लगाकर अपने दोनो हाथो में जल लिया और ऊपर की तरफ देखते हुए आसमान में अर्पित कर दिया। उसके बाद शहनाज़ नदी के किनारे पर आकर खड़ी हो गई। उसके बाद सौंदर्या ने पानी में डुबकी लगाई और जल अर्पित किया। नदी पर जल अर्पित करने की रस्म पूरी हो गई थी और अब धीरे धीरे हल्का हल्का प्रकाश फैल रहा था तभी सौंदर्या ने शहनाज़ को कुछ इशारा किया और वही नदी पर खड़ी झाड़ियों के पीछे अपना पेट साफ करने के लिए चली गई। शहनाज़ ने इस वक़्त एक बुर्का पहना हुआ था और भीग जाने के कारण उसने उसने उतार देना हो बेहतर समझा और उसने अपना अपना भीगा हुआ बुर्का उतार दिया। शहनाज़ के बुर्का उतारते ही वो मात्र एक जामुनी रंग के सूट सलवार में अा गई जो की पहले से काफी टाईट था और अब पानी में भीगने के कारण उसके जिस्म से पूरी तरह से चिपक गया था।


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शहनाज़ के हर एक अंग का कटाव पूरी तरह से निखर कर साफ दिख रहा था। वो अपने गीले बालों से पानी को झाड़ झाड़ कर सुखा रही थी और अजय की तरफ अभी उसकी पीठ थी। उसकी पतली लम्बी सी खूबसूरत गर्दन उसके कंधो का आकार, पीछे से दिखता चिकनी कमर का खूबसूरत हिस्सा जिस पर थोड़े से पहले हुए काले बाल, हल्की सी मोटी लेकिन कामुक कमर और उसकी सूट के उपर से झलकता हुआ उसके पिछवाड़े का उभार पूरी तरह से कहर ढा रहा था। अजय ने आज पहली बार शहनाज़ को बिना बुर्के के देखा था और उसके दिल और दिमाग में उसकी खूबसूरती बस गई थी। अजय समझ रहा था कि पिछवाड़े का उभार तो सौंदर्या के भी जबरदस्त था लेकिन उसमें शहनाज़ के मुकाबले कठोरता अधिक थी जबकि शहनाज़ का पिछ्वाड़ा पूरी तरह से गोल होकर लचकदार हो गया था और सौंदर्या की तुलना में कहीं ज्यादा कामुक प्रतीत हो रहा था। पिछले कुछ महीनों से लगातार सेक्स करने और अमेरिका में जिम में जाकर शहनाज़ जीती जागती क़यामत बन गई थी जिससे अजय आज पहली बार रूबरू हो रहा था।

तभी पीछे से उसे सौंदर्या के आने की आने की आहट हुई तो उसने दूसरी तरफ ध्यान दिया और नदी की तरफ देखने लगा। शहनाज़ भी पलट गई और उसने सौंदर्या को दूर से आते हुए देखा और उसे स्माइल दी।

शहनाज़ के पलटते ही खूबसूरत सा चेहरा अजय के मुंह की तरफ हो गया। शहनाज़ की नजरे सौंदर्या पर टिकी हुई थी जबकि अजय पूरी तरह से शहनाज़ और सिर्फ शहनाज़ की तरफ आकर्षित था। जहां एक ओर उसके गोल से खूबसूरत चेहरे पर बालो से टपकती हुई पानी की बूंदों उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही थी वहीं दूसरी तरफ भीगा हुआ सूट उसके सीने से पूरी तरह से चिपक गया था और उसके सीने का उभार साफ़ नजर आ रहा था। बालो से गिरती पानी की बूंदे उसकी छातियों की गहरी घाटी में गुम होती जा रही थी और अजय कभी उसके चेहरे को देखता तो कभी नजरे बचाकर उसके सीने के खूबसूरत उभारो को। तभी सौंदर्या उनके पास अा गई और उसके बाद सभी लोग गाड़ी में बैठकर आगे की तरफ चल पड़े। हल्की हल्की धूप खिली रही थी और सभी को भूख भी महसूस हो रही थी इसलिए अजय गाड़ी चलाते हुए खाने की खोज कर रहा था।

जल्दी ही उन्हे एक होटल नजर आया और अजय ने अपनी गाड़ी बाहर पार्क करी और उसके बाद तीनो ने एक कमरा लिया और अंदर चले गए।

अंदर जाने के बाद सभी लोग नहा धोकर फ्रेश हुए और अजय ने खाने का ऑर्डर कर दिया। आज मंगलवार होने के कारण सौंदर्या का व्रत था इसलिए वो बेड पर लेट गई और रात की थकी होने के कारण उसे नींद अा गई।

शहनाज़ और अजय ने खाना खाया और इसी बीच अजय उसे बार बार देख रहा था। शहनाज़ ने नहाकर फिर से बुर्का पहन लिया था और बेहद खूबसूरत लग रही थी। खाना खाने के बाद अजय बोला:"

" आंटी एक काम करते हैं सौंदर्या दीदी तो सो गई है और हमे शाम को फिर से लिंगेश्वर के लिए निकलना होगा और वहां पर पूजा की विधि पूरी तरह से बदल जाएगी जिसके लिए हमे कुछ वस्त्र और साड़ियां बाजार से लेने होंगे। जब तक दीदी सोती हैं तब तक हम अपना ये काम निपटा लेते हैं।

खाना खाने के बाद शहनाज़ के जिस्म में नई ऊर्जा का संचार हुआ था और उसका चेहरा पहले से ज्यादा चमक रहा था। अजय की बात उसे ठीक लगी और बोली:"

" ठीक है हम दोनों इतना सभी सामना खरीद लेते हैं ताकि पूजा में कोई दिक्कत ना आए।

उसके बाद दोनो उपर कमरे में गए और उन्होंने सौंदर्या के लिए सन्देश छोड़ दिया कि हम लोग बाजार जा रहे हैं तीन फिक्र मत करना।

जैसे ही वो चलने लगे तो अजय बोला:"

" आंटी एक बात पूछूं आपसे अगर बुरा ना लगे तो ?

शहनाज़ ने उसकी तरफ देखा और बोली:"

" हान बोलो अजय क्या बात है ? भला तुम्हारी बात का मुझे बुरा क्यों लगेगा ?

अजय: क्या आप शादाब के साथ अमेरिका में भी बुर्का पहनती थी ?

शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

"जी नहीं, मैं नहीं पहनती थी।

अजय:" क्यों ऐसा क्यों ?

शहनाज़:" क्योंकि वहां कोई मुझे जानता नहीं था। फिर बुर्का क्यों पहनती मैं ?

अजय:" ओह अच्छा। लेकिन यहां भी तो आपको कोई नहीं जानता और आप सच में बुर्के के बिना ज्यादा सुंदर लगती हैं।

अजय की बात सुनकर शहनाज़ ने गौर से उसके चहेरे को देखा और अजय ने शर्म से अपनी आंखे झुका ली तो शहनाज उसके भोलेपन पर स्माइल करते हुए बोली:"

" अच्छा जी मतलब मै तुम्हे अब अच्छी लगने लगी ?

शहनाज़ इसके दोस्त की अम्मी थी और शहनाज़ की बात सुनकर अजय डर गया और उसका जिस्म कांप उठा।

अजय हकलाते हुए बोला:" जी आंटी.. वो वो मेरा ऐसा मतलब नहीं था। बस आपको कोई नहीं जानता तो बर्क को मत पहनिए अगर आप चाहे तो। वैसे भी अब से आपको दूसरे कपडे ही पहनने होगे जो पूजा के लिए आचार्य जी ने बताए है।

शहनाज़:" अच्छा फिर तो ठीक है, मैं एक काम करती हूं, बुर्का उतार ही देती हूं।

इतना कहकर शहनाज ने अपना बुर्का उतार दिया और अब उसके जिस्म पर नीले रंग का सुंदर सूट और टाइट सलवार थी जिसमे वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। सूट गले पर थोड़ा सा ढीला था जिससे उसके सीने की गहराइयों की हल्की सी झलक मिल रही थी।



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बुर्का उतारकर वो पलटी और अजय की तरफ देखते हुए बोली:"

" अब ठीक है ना, देख पहले से ज्यादा सुंदर लग रही हू ना मैं।

अजय के सामने बला की खूबसूरत शहनाज़ खड़ी थी और अजय उसे देखते हुए बोला:"

" हान आंटी आप सच में बेहद खूबसूरत लग रही है इस ड्रेस में बिना बुर्के के।

शहनाज़ : अच्छा चल अब जल्दी से बाजार चलते हैं।

इतना कहकर शहनाज़ बाहर की तरफ चल पड़ी और अजय उसके साथ ही चल पड़ा। दोनो थोड़ी देर बाद कार में बैठे हुए थे और कार सड़क पर दौड़ रही थी।

शहनाज़:" अच्छा अजय आज सुबह में डर ही गई थी जब नदी में गिरी। तुम बिना अपनी परवाह किए मुझे बचाया उसके लिए दिल से धन्यवाद।

अजय:" सच कहूं तो मैं भी डर गया था एक पल के लिए। आपको बचाने के लिए मेरी जान भी चली जाती तो मुझे बुरा नहीं लगता कसम से।

शहनाज ने उसके मुंह पर अपनी एक अंगुली रख दी और बोली:"

" चुप, ऐसी मनहूस बाते जुबान से नहीं निकालते। आज के बाद ऐसी बात करी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

अजय खामोश हो और शहनाज़ की उंगली अभी तक उसके होंठो पर रखी हुई थी। शहनाज़ ने अपनी उंगली हटाई और अजय ने अपनी गलती मान ली और बोला:"

" ठीक है आज के बाद मैं ऐसी कोई बात नही करूंगा जिससे आपको ठेस पहुंचे।

शहनाज़ ने उसके गाल पकड़ कर खींच दिए और बोली:"

" तुम भी ना बिल्कुल शादाब पर गए हो। वो भी ऐसी ही हरकते करता है कभी कभी।

अजय:" ओह आंटी, दर्द होता है मुझे छोड़ दीजिए। मैं उसका दोस्त हूं भाई जैसा। इसलिए शायद दोनो की आदतें मिलती है।

शहनाज़ ने उसका गाल छोड़ दिया और बोली:" दोस्त नहीं अब तुम उसके भाई हो बस। आगे से ध्यान रखना।

अजय ने अपनी गर्दन हान में हिलाई और गाड़ी को आगे बढ़ा दिया। थोड़ी देर बाद ही वो बाजार में पहुंच गए और अजय गाड़ी से बाहर निकला और शहनाज़ के लिए दरवाजा खोल दिया। जैसे ही शहनाज़ आगे को झुक कर उतरी तो उसकी चूचियों का उभार थोड़ा सा उभर अाया और अजय की नजरे उन पर टिक गई। शहनाज़ जैसे ही बाहर निकल कर खड़ी हुई तो अजय ने नजरे बचाते हुए दरवाजा बंद किया और दोनो बाहर में पहुंच गए और सामान खरीदना आरंभ कर दिया।

अजय ने अपनी जेब से लिस्ट निकाली और दुकान वाले को दी तो दुकान वाले ने सभी सामान निकालना शुरू कर दिया।

अजय:" कितना समय लग जाएगा ?

दुकानवाला:" कोई दो घंटे लग जाएंगे। कुछ सामान मेरे पास हैं और बाकी गोदाम से लाना होगा।

अजय:" ठीक है आप सामान निकाल कर रखिए। हम लोग आते हैं।

इतना कहकर अजय आगे बढ़ा तो शहनाज़ भी उसके पीछे चल पड़ी और बोली:"

" अब तुम कहां जा रहे हो ?

अजय:" यहां दुकान पर भी क्या करना ? पास में ही एक चिड़ियाघर है। वहीं चलते हैं अगर आपको पसंद हो तो।

शहनाज़ का चेहरा खिल उठा और बोली:"

" मुझे जानवर बहुत पसंद है। चलते हैं बहुत मजा आएगा।

शहनाज़ और अजय दोनो चिड़ियाघर की तरफ चल पड़े और टिकट लेकर अंदर घुस गए। अंदर काफी चहल पहल थी और काफी लोग घूमने आए हुए थे। बीच बीच में कहीं, और बीच बीच में जानवर। बहुत सारे हिरण, जंगली भालू, टाइगर और दूसरे सभी जानवर।

शहनाज़:" अजय मुझे हाथी सफेद भालू देखने हैं। यहां हैं क्या ?

अजय:" हान बिल्कुल होने चाहिए।

अजय ने बोर्ड पर लिस्ट देखी और एक दिशा में चल पड़ा जहां सफेद भालू थे। आगे जाकर उसने देखा कि एक बड़ा सा जंगल बनाया गया था जिसके बीच में सफेद भालू थे और लोग चारो तरफ से उन्हें देख सकते हैं। भालू अभी शायद किसी पेड़ की पीछे थे और दिख नहीं रहे थे। अजय और शहनाज़ दूसरी तरफ से घूम गए ताकि उधर से दिख सके। आगे कुछ बड़े बड़े पेड़ थे जो नीचे झुक कर जमीन से मिल गए थे। अजय और शहनाज़ उधर ही पहुंच गए और उन्हें भालू थोड़े से नजर आने लगे तो शहनाज़ खुश हो गई। ठीक से देखने के लिए वो पेड़ के पास पहुंच गई और अंदर देखने लगी।

इधर सौंदर्या उठ गई थी और उसने अजय को फोन किया तो अजय अपनी बहन से बात करने लगा। शहनाज़ को अपने पीछे से कुछ हल्की हलकी आवाजे अा रही थी तो उसने उधर पेड़ के पीछे देखा तो उसे पत्तों के बीच कुछ हलचल महसूस हुई। रोमांच के चलते वो थोड़ा सा पीछे हुई और उसके कानों में अब हल्की लेकिन पहले से तेज सिसकियां गूंज रही थी।

शहनाज़ ने अंदर नजर डाली तो उसे पेड़ के नीचे एक लगभग उसकी ही उम्र की औरत नजर अाई जिसके साथ एक युवा नौजवान लड़का था और उसकी चूचियां चूस रहा था।

ये सब देख कर शहनाज़ के जिस्म में हलचल सी मच गई और वो अजय को देखते हुए सावधानी पूर्वक पेड़ के अंदर झांक रही थी। औरत लड़के के सिर को अपनी चूची पर दबा रही थी और शहनाज को चूची चूसने की आवाज अब ठीक से अा रही थी। शहनाज़ को अपने बेटे की कमी महसूस हुई कि काश अगर शादाब भी उसके साथ होता तो आज वो भी इसी पेड़ के नीचे चुद गई होती। शहनाज़ की आंखे वासना के कारण लाल हो रही थी और उसकी सीने के उभार अकड़ कर ठोस हो गए।

तभी उस लड़के ने अपना पायजामा नीचे किया और उसका लंड बाहर निकल अाया तो शहनाज को अपनी चूत में चीटियां चलती हुई महसूस हुई। लंड ज्यादा बड़ा नहीं था और उस औरत ने लंड को अपने हाथ में किया और उसे आगे पीछे करने लगी। देखते ही देखते शहनाज को लंड के आगे कुछ बेहद चमकीला और गुलाबी सा नजर आया। उफ्फ मेरे खुदा ये क्या हैं ? इसका लंड आगे से सुपाड़े से कैसा गुलाबी गुलाबी और चिकना हैं। ये कैसे हो गया कहीं इसे चोट तो नहीं लग गई।

लेकिन उसके के मुंह से तो मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थी इसका मतलब चोट नहीं लगी तो फिर ये इतना गुलाबी और अच्छा क्यों लग रहा है। देखते ही देखते उस औरत ने लंड के सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया और पता नहीं क्यों शहनाज़ को उस औरत से जलन सी महसूस हुई और अपने आप ही आज पहली शहनाज़ के मुंह में पानी अा गया।

तभी अजय ने फोन काट दिया और जैसे ही शहनाज़ की तरफ देखा तो पूरी तरह से बदहवाश सी शहनाज़ उसकी तरफ चल पड़ी। दूर सी आती शहनाज की चल थोड़ी लड़खड़ाई हुई थी और उसके सीने के उभार एक दूसरे को हराने के लिए उछल रहे थे। अजय ये देखकर हैरान हो गया और उसके पास अा गई। उसके चेहरे पर पसीना आया हुआ था और आंखे लाल हो गई थी।

अजय:" क्या हुआ आंटी आप ठीक तो हैं ?

शहनाज को कुछ समझ नहीं आया और बोली:"

" ये कैसा हो सकता है ? वो इतना गुलाबी और मनमोहक मैंने आजतक नहीं देखा।

अजय को कुछ समझ नहीं आया और बोला:"

" क्या हुआ ? क्या देखा आपने आंटी?

शहनाज जैसे होश में अाई और उसे अपने गलती का एहसास हुआ और वो एक लम्बी सांस लेते हुए बोली:"

" वो अजय वो सफ़ेद भालू। मुझे अच्छा लगा लेकिन उसका रंग थोड़ा गुलाबी सा था।

अजय:" गुलाबी तो नहीं था। मुझे तो बिल्कुल सफेद ही दिख रहे हैं। वो देखो ना आप।

शहनाज़ ने उसका हाथ पकड़ लिया और लगभग खींचते हुए बाहर की तरफ लाई और बोली:"

" मैंने देख लिया है बस। और नहीं देखना सौंदर्या रूम पर अकेली होगी। चलो तुम जल्दी से बस।

अजय को कुछ समझ नहीं आया और उसके साथ चल दिया। गाड़ी में बैठने के बाद अजय ने शहनाज़ को पीने के लिए पानी की बोतल दी और मदहोश सी हुई शहनाज़ उसे गटागट पीती चली गई। उसकी चूचियों में अभी तक कंपन हो रहा था और अजय उसकी चूचियों को ना चाहते भी देखने पर मजबूर था।

शहनाज़ ने अपनी आंखे बंद करी तो फिर से वहीं लंड का गुलाबी चिकना सुपाड़ा उसकी आंखो के आगे घूम गया और अपने आप ही उसकी जीभ निकली और उसके होंठो पर घूमने लगी। शहनाज़ की आंखे बंद होने के कारण की नज़रे पूरी तरह से उस पर ही टिकी हुई थी। कभी वो उसके लाल सुर्ख होंठो को देखता तो कभी रसीली पतली सी गुलाबी जीभ को देखता जो शहनाज़ के होंठो की सारी लिपस्टिक खा चूस चूस कर खा गई थी। शहनाज़ की चूचियां के बीच की लकीर अब काफी गहरी हो गई थी और अजय उसके अंदर पूरी अंदर तक अपनी नजरे घुसा रहा था।

अचानक से शहनाज़ अपनी जांघो को एक दूसरे से मसलने लगी और उसका सारा जिस्म कांप उठा तो अजय ने जैसे ही अपना हाथ उसके कंधे पर रखा तो शहनाज़ के मुंह से एक आह निकल पड़ी और जैसे ही उसकी अजय पर पड़ी उसका सारा जोश ठंडा होता चला गया।

अजय गाड़ी से उतरा और उसने दुकानवाले को पैसे दिए और फिर से गाड़ी में बैठ कर होटल की तरफ चल पड़ा। शहनाज़ अब काफी हद तक खुद पर काबू कर चुकी थी और अपने किए पर मन ही मन शर्मिंदा हो रही थी।

दोनो में कोई खास बात नहीं हुई और जल्दी ही होटल पहुंच गए। शाम का समय हो गया था। सौंदर्या ने आसमान की तरफ जल अर्पित करते हुए अपने व्रत को खोल दिया और फिर सबने साथ में खाना खाया।

उसके बाद अजय बोला;"

" पूजा का सभी सामान अा गया है और अब हमे लिंगेश्वर मंदिर जाना होगा।

शहनाज़:" वहां क्यों जाना पड़ेगा ? क्या होता है वहां ?

अजय:" लिंगेश्वर मंदिर यानी काम देवता का मंदिर। एक मांगलिक लड़की की ज़िन्दगी में शादी के बाद उसके और पति के बीच में प्यार बना रहे इसलिए वहां जाना होगा।

शहनाज़:" अच्छा ठीक है समझ गई मैं। कब चलना होगा ?

अजय:" बस आप दोनो तैयार हो जाइए। और हान इसके लिए आप दोनो को ही लाल रंग की साड़ी पहननी होगी। मै होटल वाले का हिसाब करता हूं तब तक आप दोनो साडी पहन लीजिए।

इतना कहकर अजय बाहर निकल गया और जाने से पहले एक एक पैकेट दोनों के हाथ में दे गया। शहनाज़ जब कभी किसी को साडी पहने हुए देखती थी वो उसे बेहद अच्छा लगता था। उसकी खुद इच्छा होती थी कि को भी साडी पहने लेकिन पारिवारिक माहौल के चलते वो पहन नहीं पाई। आज जब उसे पता चला कि उसे साडी पहनने के लिए मिल रही हैं तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। शहनाज़ अंदर ही अंदर खुशी से झूम रही थी क्योंकि आज उसका एक बहुत बड़ा ख्वाब पुरा होने जा रहा था। शहनाज़ हाथ में साडी लिए खड़ी थी और उसे बार बार पलट पलट कर देख रही थी लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं अा रहा था कि इसको कैसे पहनना हैं। इसलिए वो सौंदर्या से बोली:"

" साडी तो बहुत सुंदर लग रही हैं लेकिन सौंदर्या मैंने तो आज तक कभी साडी नहीं पहनी और मुझे पहननी नहीं आती।

सौंदर्या:" आप चिंता मत कीजिए। मैं आपको पहना दूंगी।

शहनाज़:" अरे आप बहुत ज्यादा खूबसूरत लगेगी, साडी में आपका ये रूप और भी ज्यादा निखर जाएगा।

इतना कहकर सौंदर्या ने शहनाज़ के हाथ में पकड़े पैकेट को लिया और खोलने लगीं। जल्दी ही उसके हाथ में एक बहुत ही शानदार साडी थी।

सौंदर्या:" अब आप एक काम कीजिए। आप ये कपडे उतार दीजिए ताकि आप साडी पहन सके।

शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

" कपडे क्या तुम्हारे सामने ही उतारू अपने ? मुझसे नहीं होगा। मैं नहीं हो सकती नंगी।


सौंदर्या:" अरे बाबा मेरी प्यारी बहन नंगी होने की जरूरत नहीं है आप बस अपना सूट सलवार उतार दीजिए। ब्रा पेंटी पहने रखिए आप।

शहनाज़ को समझ नहीं आया कि क्या करे लेकिन फिर उसने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए क्योंकि वो ज्यादा देर नहीं करना चाहती थी ताकि पूजा में कोई देरी ना हो। शहनाज़ के जिस्म पर अब सिर्फ लाल रंग की ब्रा पेंटी थी और उसे हल्की शर्म अा रही थी। शहनाज़ की गोल गोल मोटी चूचियां का उभार खुलकर नजर अा रहा था और खूबसूरत चिकना हल्का सा भरा हुआ पेट जिसमे गहरी नाभि बेहद कामुक लग रही थी। शहनाज़ की गोरी गोरी चिकनी जांघें और उसकी छोटी सी पेंटी में उसके पिछवाड़े का कामुक उभार अपनी जानलेवा छटा बिखेर रहा था।



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शहनाज़ के इस कामुक अवतार और उसके गोरे गोरे भरे हुए जिस्म के कटाव देखकर सौंदर्या को उससे जलन सी महसूस हुई और बोली:"

" ओह माय गॉड। आप तो इस उम्र भी कमाल की है शहनाज़ दीदी। अगर मैं लड़का होती तो आपसे शादी कर लेती अभी।

शहनाज़ अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गई और फिर बोली:"

" अच्छा जी। तुम भी सुंदर हो सौंदर्या अपने नाम की तरह। अच्छा चलो जल्दी से मुझे साडी पहननी सिखाओ। मुझे शर्म अा रही हैं ऐसे।

सौंदर्या अपनी आंखो से शहनाज़ के जिस्म का लुत्फ उठाते हुए आगे बढ़ी और उसने साडी को शहनाज़ के हाथ से ले लिया। सबसे पहले उसने शहनाज़ के हाथ से ब्लाउस लिया और शहनाज़ को बताया कि इसे ठीक ब्रा की तरह पहना जाता हैं। सौंदर्या ने ब्लाउस को शहनाज़ की छाती पर टिका दिया और उसे ठीक करने लगी। ये एक बहुत ही आकर्षक साडी से मिलता हुआ छोटा सा लाल रंग का ब्लाउस था जिसमें सौंदर्या का पूरा पेट नंगा नजर अा रहा था। उपर ब्लाउस में उसके दोनो गोरे गोरे कंधे साफ नजर आ रहे थे। सौंदर्या ने ब्लाउस को थोड़ा सा ऊपर किया ताकि वो ठीक से बंध जाएं। ऐसा करने से उसकी उंगलियां शहनाज़ की चूचियों के उभार से छू गई और उसे अजीब सी गुदगुदी का एहसास हुआ।

शहनाज़:" उफ्फ तुम भी ना, क्या करती हो सौंदर्या। ध्यान से बांधो। इधर उधर मत छुओ अजीब सा महसूस होता है।

सौंदर्या:" ध्यान से ही बांध रही हूं दीदी। लेकिन क्या करू आपका जिस्म हैं ही इतना चिकना कि मेरी उंगलियां खुद ब खुद ही फिसल रही हैं।

इतना कहकर उसने उसने फिर से इस बार जान बूझकर अपने हाथ का हल्का सा दबाव उसके उभार पर दिया तो शहनाज़ के जिस्म में एक अजीब सी लज्जत का एहसास हुआ और वो सौंदर्या के गाल खींचते हुए बोली:"

" सुधर जाओ तुम सौंदर्या की बच्ची नहीं तो मुझसे बुरा को नहीं होगा।

सौंदर्या उसके गाल खींचे जाने से मीठे मीठे दर्द को सहते हुए बोली:"

" जो जी अब तारीफ करना भी बुरा हो गया। वैसे क्या बुरा करोगी आप मेरे साथ ?

इतना कहकर सौंदर्या उसकी पीठ के पीछे गई और उसके ब्लाउस के पिन को उसकी पीठ पर लगाने लगी। शहनाज़ की गोरी चिकनी मस्त पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे अजीब सा आनंद अा रहा था। शहनाज़ को इससे बेचैनी सी महसूस हो रही थी और बोली:"

" कुछ भी कर दूंगी तेरे साथ में समझी। मुझे परेशान मत करो जल्दी से इसके पिन लगा दो तुम।

सौंदर्या ने अपने अंगूठे का दबाव उसकी कमर पर दिया और उसकी पिन लगा दी तो शहनाज़ ने राहत की सांस ली। सौंदर्या ने अब साडी का एक पल्लू पकड़ लिया और साडी को शहनाज़ को दिखाते हुए गोल गोल घुमाया और फिर वो आगे बढ़ी और उसने साडी के गोल हुए हिस्से को शहनाज़ के पिछवाड़े पर टिका दिया और उसे खोलने लगी। साडी के पल्लू को उसने अंदर की तरफ मोड़ कर साडी को शहनाज़ के गोल गोल घुमाते हुए उसके पिछवाड़े को लपेट दिया और साडी गोल गोल होकर उसकी जांघो से लिपट गई। साडी का दूसरा हिस्सा अभी नीचे ही पड़ा हुआ था। सौंदर्या के हाथो अपने बदन पर लगने से शहनाज़ की सांसे हल्की सी तेज हो गई थी।

सौंदर्या ने साडी के दूसरे पल्लू को हाथ में लेते हुए ऊपर उठाया और उसके ब्लाउस के नीचे घुसा दिया और बोली:"

क्या बात करती हो दीदी आप। किसी लड़के ने तो आज तक मेरे साथ कुछ नहीं किया। आपके पास तो कुछ हैं भी नहीं करने के लिए।

सौंदर्या की बात सुनकर शहनाज़ हंस पड़ी और सौंदर्या भी हंसने लगी। अजय बाहर खड़ा हुआ उनका इंतजार कर रहा था और दोनो के हंसने की आवाजे सुनकर वो अंदर आया तो उसकी नजर शहनाज़ पर पड़ी।

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" क्या हुआ सौंदर्या दीदी क्या मिल गया जो आप दोनो इतना खुश हो....

अजय के आगे के शब्द शहनाज़ पर नजर पड़ते ही उसके मुंह में रह गए। रंग की साड़ी और छोटे से ब्लाउस में वो शहनाज़ को देखते ही ठगा सा खड़ा रह गया।शहनाज़ का गोल गोल सुंदर चेहरा, चेहरे के चारो और फैले हुए खुले काले बाल, गले में एक लाल रंग की ज्वेलरी का खूबसूरत सेट, शहनाज़ के गोरे गोरे चिकने कंधे और ब्लाउस छोटा होने के कारण उसका दूध सा गोरा सफेद पेट संगमरमर की तरह चमक रहा था। पेट में उसकी गहरी नाभि बहुत ही सुन्दर लग रही थी। हल्की सी चर्बी शहनाज़ के पेट को और भी सुंदर बना रही थी।
अजय पूरी तरह से शहनाज़ का दीवाना हुए उसे देख रहा था और शहनाज़ को कहीं ना कहीं अब शर्म महसूस हो रही थी।

सौंदर्या:" क्या हुआ भैया ? देखो सच में मेरी शहनाज़ दीदी कितनी सुंदर लग रही है साडी में ?

अपनी तारीफ सुनकर शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई थी और अजय अपने आपको संभालते हुए बोला:""

" सचमुच दीदी, शहनाज़ आंटी ने तो कमाल कर दिया। बिल्कुल स्वर्ग से अाई हुई अप्सरा सी लग रही है।

शहनाज़ अपनी तारीफ सुनकर पूरी खुश थी। उसे आज महसूस हो रहा था कि सच में वो साडी में बहुत ज्यादा सुंदर लगती है। सौंदर्या को अजय का शहनाज़ का आंटी कहना अच्छा नहीं लगा और बोली:"

" भाई देखो शहनाज़ दीदी की मेरी जितनी ही तो उम्र हैं। फिर तो मुझे दीदी कहते हो और इन्हे आंटी जबकि ये किसी भी तरह से आंटी नजर नहीं आती हैं।

अजय ने फिर से मौके का फायदा उठाते हुए एक बार शहनाज़ को ऊपर से नीचे तक हसरत भरी निगाहों से देखा और बोला:"

" बिल्कुल सही कहा आपने दीदी, ये तो बिल्कुल भी आंटी नहीं हो सकती। आप भी बताओ मैं इन्हे क्या कहकर बुलाऊ फिर ?

सौंदर्या:" मुझे दीदी बोलते हो तो उन्हें दीदी ही कह कर बुलाओ तुम, क्यों शहनाज़ दीदी आपको ऐतराज़ तो नहीं हैं ?

शहनाज़ को आज उसकी ज़िन्दगी की बहुत बड़ी सौगात मिली थी अजय और सौंदर्या की वजह से इसलिए सौंदर्या की तरफ देखते हुए बोली:"

" मुझे कोई ऐतराज़ नहीं भला क्यों होगा ? हान सच कहूं तो आंटी सुनकर अजीब सा लगता था मुझे। लेकिन शर्म के मारे बोल नहीं पाई ।

अजय:" ठीक हैं फिर, आज से मैं आपको ठीक ही कहूंगा फिर। अब आप दोनो खुश हो ना।

शहनाज़ और सौंदर्या दोनो ने अजय को स्माइल दी और अजय बोला:"

" अच्छा दीदी आप भी जल्दी से साडी पहन लो। नहीं तो हम लेट हो जाएंगे।

सौंदर्या:" बस दो मिनट रुको मैं अभी अाई।

इतना कहकर सौंदर्या अंदर दूसरे कमरे में चली गई और अब कमरे में शहनाज़ और सौंदर्या दोनो अकेले रह गए थे।

शहनाज़:" अच्छा एक बात सच बताओ अजय क्या मैं सच में बहुत खूबसूरत लग रही हूं साडी पहनकर ?

अजय:" चाहे तो कोई भी कसम ले लो मुझसे, आप सुंदर नहीं बल्कि क़यामत लग रही है मेरी शहनाज़ दीदी।

अजय से मुंह से कयामत शब्द सुनकर सौंदर्या शर्म से लाल हो गई और अजय बोला:"

" आप एक काम कीजिए, ये सामने शीशा लगा हैं खुद ही देख लीजिए आप।

इतना कहकर अजय ने उसकी बांह पकड़ी और उसे शीशे के सामने खड़ा कर दिया। शहनाज़ ने अपने आपको शीशे में देखा और खुद लर ही मोहित हो गई। वो घूम घूम कर खुद को देख रही थी और अजय नजरे बचाकर उसके पेट, उसकी गहरी नाभि को देख रहा था।

शहनाज़ ने मेक अप किट से एक लिपस्टिक उठाई और शीशे में देखते हुए अपने लिप्स को रंगीन बनाने लगी। तभी अचानक से शीशा नीचे गिर कर टूट गया। शहनाज़ अब लिपस्टिक कैसे लगाएं उसे समझ नहीं आ रहा था तो उसने अजय को बोला:"

" अजय देखो ना ये शीशे को अभी टूटना था, अब मैं लिपिस्टिक कैसे लगाऊ ?

अजय को एक विचार समझ में आया और बोला:"

" दीदी अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं लगा दू क्या आपके इन प्यारे और खूबसूरत लिप्स पर लिपस्टिक ?

शहनाज़ ने खुशी खुशी अपनी सहमति दे दी और अजय उसके बिल्कुल करीब अा गया तो शहनाज़ के जिस्म से उठती हुई मादक परफ्यूम की खुशबू उसको मदहोश करने लगी। शहनाज़ ने लिपिस्टिक उसकी तरफ बढ़ा दी और अजय ने कांपते हाथो से लिपिस्टिक को थाम लिया। शहनाज़ ने अपने पतले पतले नाजुक रसीले होंठ आगे कर दिए और अजय ने लिपिस्टिक को रोल करते हुए पीछे किया और उसने शहनाज़ के होंठो पर लिपिस्टिक लगानी शुरू कर दी।

शहनाज़ को ये सब बहुत ही रोमांचक लग रहा था क्योंकि कभी उसके बेटे शादाब ने भी उसके होंठो लिपिस्टिक नहीं लगाई थी। शहनाज़ रोमांच के कारण कांप रही थी जिससे उसका चेहरा इधर उधर हिल रहा था तो अजय बोला:"

" ऐसे मत हिलिए आप नहीं तो लिपिस्टिक खराब हो जाएगी। फिर बाद में मुझे मत बोलना।

शहनाज़ :" क्या करू बताओ तुम मुझे गुदगुदी सी हो रही है।

अजय:" फिर तो एक ही तरीका है। मुझे आपके होंठो को इधर उधर हिलने से रोकना होगा।

इतना कहकर अजय ने अपना एक हाथ आगे बढाया और शहनाज़ की ठोड़ी को पकड़ लिया तो शहनाज़ की आंखे शर्म से बंद हो गई और उसके होंठ अपने आप हल्के से खुल गए मानो बोल रहे हो कि आओ जल्दी से हमे लाल कर दो।

अजय ने अपना चेहरा शहनाज़ के मुंह पर झुका दिया और उसके होंठो पर लिपिस्टिक लगाने लगा। दोनो के चेहरे एक बार के बेहद करीब होने के कारण अजय की गर्म भभकती सांस शहनाज़ के चेहरे पर पड़ रही थी जिससे शहनाज़ को बेचैनी से महसूस हो रही थी और उसका पूरा जिस्म कांप रहा था। शहनाज़ के कांपने के कारण उसके लिप्स हिले और लिपिस्टिक खराब हो गई तो अजय बोला:"

" मैं आपको पहले ही बोल रहा रहा था कि हिलिए मत, अब देखो लिपिस्टिक बाहर लग गई, खराब हो गई ना।

शहनाज़:" उफ्फ क्या करू, तुम्हारे छूते ही गुदगुदी इतनी ज्यादा हो रही है। खराब कर दी तो अब ठीक भी तुम ही करो समझे तुम।

अजय ने अपने हाथ से शहनाज़ के चेहरे को ताकत से थाम लिया और अपने उंगली से जैसे ही उसके होंठो को छुआ तो शहनाज़ के जिस्म में उत्तेजना की लहर सी दौड़ गई। अजय ने अपनी उंगली को शहनाज़ के होंठो पर फिराया और लिपिस्टिक हटाने लगा लेकिन हटी नहीं तो बोला:

" छूट नहीं रही मेरी शहनाज़ दीदी। बताओ ना क्या करु ?

शहनाज़;" बुद्धू हो तुम। ऐसे थोड़े ही ना हट जायेगी। रुको मैं मदद करती हूं।

इतना कहकर शहनाज़ ने अपनी साडी का पल्लू लिया और उसे अपने मुंह में डाल कर गीला करने लगी। अजय शहनाज़ की ये कामुक हरकत देखकर पागल सा हो गया और लंड ने एक जोरदार अंगड़ाई ली। शहनाज़ ने साडी के पल्लू को पूरी तरह से गीला किया और अजय की तरफ देखते हुए उसका हाथ में थमाते हुए बोली:"

" लो इससे साफ करो, अब आराम से हो जायेगा बिल्कुल।

अजय ने जैसे ही साडी के पल्लू को छुआ तो उसकी उंगलियां शहनाज़ के मुख रस से भीग गई और अजय से बर्दास्त नहीं हुआ और उसने शहनाज़ के चेहरे को फिर से अपने हाथ में कस लिया और जैसे ही उसने साडी के भीगे हुए पल्लू को उसके होंठो पर फिराया तो दोनो के मुंह से एक आह निकल पड़ी। अजय सिर्फ पल्लू से साफ ही नहीं कर रहा था बल्कि अपनी उंगलियों को शहनाज़ के नाजुक, मुलायम रसीले होंठों पर हल्के हल्के रगड़ भी रहा था। शहनाज़ की आंखे इस अद्भुत एहसास से बंद हो गई थी और लिपिस्टिक तो कब की हट गई थी लेकिन अजय मदहोशी में उसके होंठो को हल्का हल्का रगड़े जा रहा था। पता नही कैसा अमृत रस था ये जो शहनाज़ के होंठो से निकला था जिससे अजय की उंगलियां चिपकी हुई थीं। शहनाज़ से बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था इसलिए बोली:"

" अजय हो गए मेरे होंठं साफ ?

अजय पुरी तरह से मदहोश था इसलिए बोला

" हान शहनाज़ आपके नाजुक, नरम मुलायम और रसीले होंठ बिल्कुल साफ हो गए हैं मेरी प्यारी खूबसूरत अप्सरा शहनाज़।

अजय के मुंह से अपना नाम सुनकर शहनाज़ हैरान हो गई लेकिन बोला कुछ नहीं। अजय ने उसके चेहरे को थामे रखा और लिपिस्टिक लगाता रहा। शहनाज़ के होंठो पर लिपिस्टिक लग गई थी। अजय ने धीरे से अपनी उंगली को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा तो उसके आंनद की कोई सीमा नहीं थी। शहनाज के होंठो से निकले गाढ़े, मीठे रसीले रस को चूसकर अजय धन्य हो गया था।


सौंदर्या साडी पहनकर बाहर अा गई और उसने शहनाज़ और अजय को देखा जिनके चेहरे एक दूसरे पर झुके हुए थे। उसे समझ नहीं आया कि क्या करे। हाय भगवान ये तो दोनो किस कर रहे हैं। अजय आखिकार पिघल ही गया शहनाज़ के आगे।

सौंदर्या से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो दबे पांव उनके पास पहुंच गई तो उसने देखा कि शहनाज़ की दोनो आंखे बंद हैं और अजय उसके होंठो पर लिपिस्टिक लगा रहा है तो उसने सुकून की सांस ली। अजय ने शहनाज़ के होंठो को पूरी तरह से रसीले बना दिया और जैसे ही उसने शहनाज़ का चेहरा छोड़ा तो शहनाज़ ने अपनी आंखे खोल दी और उसे सामने खड़ी सौंदर्या नजर आईं तो शहनाज़ कांप उठी।

सौंदर्या:" क्या हुआ शहनाज़ दीदी ? आपको लिपिस्टिक भी है लगानी आती क्या ?

सौंदर्या की आवाज सुनकर अजय भी चौंक सा गया और घबराते हुए बोला:"

" दीदी वो शीशा टूट गया था तो इसलिए मुझे लगानी पड़ी।

शहनाज़:" हान सौंदर्या देखो ना वो पड़ा टूटा हुआ शीशा भी उधर !!

इतना कहकर शहनाज़ ने शीशे की तरफ इशारा किया तो सौंदर्या बोली:"

" बस बस दीदी, कोई बात नहीं। आपने दोनो ने अच्छा किया। हम हमे ही तो एक दूसरे के काम आना होगा। अच्छा अजय अब चले क्या कहीं लेट ना हो जाए ?

अजय हड़बड़ाया और बोला:" हान दीदी चलिए आप वैसे भी शाम हो गई है।

इतना कहकर अजय बाहर आया तो पीछे पीछे शहनाज़ और सौंदर्या भी अा गए। अजय ने गाड़ी निकाली और सभी सामान गाड़ी में रखकर वो चल पड़े।

अजय गाड़ी चलाते हुए बार बार शीशे से शहनाज़ को तिरछी नजरों से देख रहा था और शहनाज़ उसे हर पहले से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। पीछे बैठी हुई शहनाज़ सौंदर्या से बाते कर रही थी और अजय उसकी हर एक अदा पर दीवाना हुआ जा रहा था। वो प्यासी नजरो से शहनाज़ के होंठो को देख रहा था मानो उन्हें चूसने के लिए मरा जा रहा हो। बाते करते हुए शहनाज के चेहरा इधर उधर हिलता और अजय उसकी हर एक अदा पर पागल हो रहा था, मचल रहा था, मर रहा था, मिट रहा था।



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अजय के दिल में बस एक ही बात थी कि शहनाज़ सिर्फ मेरी हैं। मुझे शहनाज़ चाहिए, हर हाल में चाहिए, किसी भी कीमत पर चाहिए। बस बेचारे को क्या मालूम था कि शहनाज़ तो हमेशा के लिए अपने बेटे की हो चुकी हैं।
एक नया सफर और इस सफर के दौरान बदलते रिश्ते । अजय का रिश्ता न सिर्फ सौंदर्या से ही बदलने की कगार पे है बल्कि शहनाज के साथ भी उसके रिश्ते काफी नजदीकी होने के राह पे है ।
नदी में डुबती हुई शहनाज को बचाकर उस पर दूसरी बार अहसान कर दिया । इसके पहले भी उसकी और शादाब की जान बचाकर अहसान कर चुका था । शहनाज तो एक तरह से उसकी कर्जदार हो गई । उसके अहसानों तले दब गई ।
शायद इस वजह से शहनाज उसके और भी करीब आ जाए ।

लबों पे लिपस्टिक लगाने के दौरान अजय की भावनाएं उछाल मारी । वो उत्तेजित हो उठा था । मदहोशी के आलम में शहनाज का नाम तक उच्चारण कर बैठा था और उसके होटों के रस का स्वाद भी चख लिया
और इस समय शहनाज के प्रति उसकी आसक्ति ही कही जायेगी ।

इधर शहनाज भी पहली बार शादाब से कुछ दिनों के लिए दुर हुई है । जू की घटनाओं से वो भी उत्तेजित हो गई थी । इसलिए लगता है उसे भी अजय के और समीप होने में कोई दिक्कत महसूस नहीं होगी ।

देखते हैं आगे की यात्रा में इनकी क़िस्मत क्या क्या गुल खिलाने वाली है ।
 

Sirajali

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एक नया सफर और इस सफर के दौरान बदलते रिश्ते । अजय का रिश्ता न सिर्फ सौंदर्या से ही बदलने की कगार पे है बल्कि शहनाज के साथ भी उसके रिश्ते काफी नजदीकी होने के राह पे है ।
नदी में डुबती हुई शहनाज को बचाकर उस पर दूसरी बार अहसान कर दिया । इसके पहले भी उसकी और शादाब की जान बचाकर अहसान कर चुका था । शहनाज तो एक तरह से उसकी कर्जदार हो गई । उसके अहसानों तले दब गई ।
शायद इस वजह से शहनाज उसके और भी करीब आ जाए ।

लबों पे लिपस्टिक लगाने के दौरान अजय की भावनाएं उछाल मारी । वो उत्तेजित हो उठा था । मदहोशी के आलम में शहनाज का नाम तक उच्चारण कर बैठा था और उसके होटों के रस का स्वाद भी चख लिया
और इस समय शहनाज के प्रति उसकी आसक्ति ही कही जायेगी ।

इधर शहनाज भी पहली बार शादाब से कुछ दिनों के लिए दुर हुई है । जू की घटनाओं से वो भी उत्तेजित हो गई थी । इसलिए लगता है उसे भी अजय के और समीप होने में कोई दिक्कत महसूस नहीं होगी ।

देखते हैं आगे की यात्रा में इनकी क़िस्मत क्या क्या गुल खिलाने वाली है ।
bhai... agar ajay ne ehsaan kiya hai to shahnaaj ne bhi ehsaan kiya hai saundrya ke manglik dosh ko mitane ke liye ek paripacwa aurat ki jaroorat thi jab aurat nahi mili to shahnaaj ne bhi unka sath nahi choda ........................ magar ajay aur shadab saale dono kamine nikle ek dusre ki maa ko bhi nahi cchoda ye kahani ki sabse badi kamjori hai
 

A.A.G.

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आप सभी का अपनी प्रतिक्रिया और विचार रखने के लिए दिल से धन्यवाद। मैने इस पूरी कहानी में हमेशा ध्यान रखा कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस ना पहुंचे। शाहनाज और अजय के बीच रोमांस मंदिर में नही बल्कि पूजा स्थल से दूर पीछे की तरफ बने हुए कमरे में दिखाया गया। किसी भी मंत्र का उच्चारण नही किया गया। शाहनाज और सौंदर्या के मुंह से स्वाहा की जगह आह्ह्ह भी निकल सकता था लेकिन मैंने सभी की धार्मिक भावनाओं की इज्जत करते हुए ऐसा कुछ नही लिखा। सेक्स भी एक तरफा नही दिखाया गया। शाहनाज और अजय तो अजय और कमला, सपना का भी दिखाया गया। कुछ लोगो के मन में ये भी विचार आया होगा कि जबरदस्ती चुदाई के बाद अब सौंदर्या अजय से नफरत करेगी और अब शादाब सौंदर्या को भी चोद सकता हैं और इसलिए हल्ला करना शुरू कर दिया। ऐसा कुछ भी कहानी का हिस्सा नहीं था। मांगलिक बहन सौंदर्या सिर अपने भाई की थी रहने वाली थी। नफरत की दीवार खड़ी हुई जरूर थी लेकिन अनुभवी शाहनाज अपनी समझदारी से इसे आराम से गिरा देती।

यहां लोग बिना पैसे के अपना कीमती समय निकालकर सिर्फ मनो रंजन के लिए लिखते हैं जिनका वास्तविकता से कोई भी लेना देना नही लेकिन फिर भी कुछ लोगो धर्म का झंडा अपने पिछवाड़े में घुसाने की बीमारी हैं और यही कारण रहा कि इस कहानी को बंद करना पड़ा। अब बस आगे एक या दो अपडेट आयेंगे और कहानी समाप्त हो जाएगी। साथ देने के लिए आप सभी का एक बार फिर से दिल से धन्यवाद।

आप सभी से विनम्र निवेदन है कोई भी मुझे अब कहानी को आगे लिखने के लिए दबाव ना करे क्योंकि अभी निवेदन करने वाले लोग उस समय अपने मुंह में दही जमा कर बैठ गए थे जब मुझे सिरफिरे लोगो की गालियों सा सामना करना पड़ा।
nice story bhai..!!
 

A.A.G.

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bhai... agar ajay ne ehsaan kiya hai to shahnaaj ne bhi ehsaan kiya hai saundrya ke manglik dosh ko mitane ke liye ek paripacwa aurat ki jaroorat thi jab aurat nahi mili to shahnaaj ne bhi unka sath nahi choda ........................ magar ajay aur shadab saale dono kamine nikle ek dusre ki maa ko bhi nahi cchoda ye kahani ki sabse badi kamjori hai
bhai yaha dosh ajay ka kuchh bhi nahi hai kyunki woh kisi bhi rishte me nahi tha jab ajay aur shehnaz ke bich sex huva lekin shehnaaz thi kyunki usne apne bete se shaadi kar li thi..toh iss situation me dosh sirf shehnaz aur shadab ko jata hai..kyunki sirf shehnaz ne hi dusre aadmi ke sath sex nahi kiya balki shadab ne bhi dusri aurto ke sath sex kiya..aur kamla bhi kisike sath rishte me nahi thi jab usne shadab ke sath sex kiya lekin shadab tha apni maa ke sath pati patni wale rishte me..!! toh agar dosh dena hai toh shehnaz aur shadab ko do..idhar ajay ki koi galti nahi hai..!!
 

Roy monik

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आप सभी का अपनी प्रतिक्रिया और विचार रखने के लिए दिल से धन्यवाद। मैने इस पूरी कहानी में हमेशा ध्यान रखा कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस ना पहुंचे। शाहनाज और अजय के बीच रोमांस मंदिर में नही बल्कि पूजा स्थल से दूर पीछे की तरफ बने हुए कमरे में दिखाया गया। किसी भी मंत्र का उच्चारण नही किया गया। शाहनाज और सौंदर्या के मुंह से स्वाहा की जगह आह्ह्ह भी निकल सकता था लेकिन मैंने सभी की धार्मिक भावनाओं की इज्जत करते हुए ऐसा कुछ नही लिखा। सेक्स भी एक तरफा नही दिखाया गया। शाहनाज और अजय तो अजय और कमला, सपना का भी दिखाया गया। कुछ लोगो के मन में ये भी विचार आया होगा कि जबरदस्ती चुदाई के बाद अब सौंदर्या अजय से नफरत करेगी और अब शादाब सौंदर्या को भी चोद सकता हैं और इसलिए हल्ला करना शुरू कर दिया। ऐसा कुछ भी कहानी का हिस्सा नहीं था। मांगलिक बहन सौंदर्या सिर अपने भाई की थी रहने वाली थी। नफरत की दीवार खड़ी हुई जरूर थी लेकिन अनुभवी शाहनाज अपनी समझदारी से इसे आराम से गिरा देती।

यहां लोग बिना पैसे के अपना कीमती समय निकालकर सिर्फ मनो रंजन के लिए लिखते हैं जिनका वास्तविकता से कोई भी लेना देना नही लेकिन फिर भी कुछ लोगो धर्म का झंडा अपने पिछवाड़े में घुसाने की बीमारी हैं और यही कारण रहा कि इस कहानी को बंद करना पड़ा। अब बस आगे एक या दो अपडेट आयेंगे और कहानी समाप्त हो जाएगी। साथ देने के लिए आप सभी का एक बार फिर से दिल से धन्यवाद।

आप सभी से विनम्र निवेदन है कोई भी मुझे अब कहानी को आगे लिखने के लिए दबाव ना करे क्योंकि अभी निवेदन करने वाले लोग उस समय अपने मुंह में दही जमा कर बैठ गए थे जब मुझे सिरफिरे लोगो की गालियों सा सामना करना पड़ा।
मैं तो कहता हु अजय की सादी सहनाज़ से और सादाब की सादी सौंदर्या से करा दो। और अजय की मां दोनो की रखैल बनके रहे। सभी का कल्याण हो जायेगा।
 

Sirajali

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bhai yaha dosh ajay ka kuchh bhi nahi hai kyunki woh kisi bhi rishte me nahi tha jab ajay aur shehnaz ke bich sex huva lekin shehnaaz thi kyunki usne apne bete se shaadi kar li thi..toh iss situation me dosh sirf shehnaz aur shadab ko jata hai..kyunki sirf shehnaz ne hi dusre aadmi ke sath sex nahi kiya balki shadab ne bhi dusri aurto ke sath sex kiya..aur kamla bhi kisike sath rishte me nahi thi jab usne shadab ke sath sex kiya lekin shadab tha apni maa ke sath pati patni wale rishte me..!! toh agar dosh dena hai toh shehnaz aur shadab ko do..idhar ajay ki koi galti nahi hai..!!
aag bhai.... main galti kisi ek ki nahi de sakta kyonki jab sex hota hai to usme mard aur aurat ki razamandi se hota phir chahe wo jawani ke Josh me behak kar hi kyun na ho ......... kehte hain ki mard ho ya aurat dono behak sakte hain ..........
 

Roy monik

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आप सभी का अपनी प्रतिक्रिया और विचार रखने के लिए दिल से धन्यवाद। मैने इस पूरी कहानी में हमेशा ध्यान रखा कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस ना पहुंचे। शाहनाज और अजय के बीच रोमांस मंदिर में नही बल्कि पूजा स्थल से दूर पीछे की तरफ बने हुए कमरे में दिखाया गया। किसी भी मंत्र का उच्चारण नही किया गया। शाहनाज और सौंदर्या के मुंह से स्वाहा की जगह आह्ह्ह भी निकल सकता था लेकिन मैंने सभी की धार्मिक भावनाओं की इज्जत करते हुए ऐसा कुछ नही लिखा। सेक्स भी एक तरफा नही दिखाया गया। शाहनाज और अजय तो अजय और कमला, सपना का भी दिखाया गया। कुछ लोगो के मन में ये भी विचार आया होगा कि जबरदस्ती चुदाई के बाद अब सौंदर्या अजय से नफरत करेगी और अब शादाब सौंदर्या को भी चोद सकता हैं और इसलिए हल्ला करना शुरू कर दिया। ऐसा कुछ भी कहानी का हिस्सा नहीं था। मांगलिक बहन सौंदर्या सिर अपने भाई की थी रहने वाली थी। नफरत की दीवार खड़ी हुई जरूर थी लेकिन अनुभवी शाहनाज अपनी समझदारी से इसे आराम से गिरा देती।

यहां लोग बिना पैसे के अपना कीमती समय निकालकर सिर्फ मनो रंजन के लिए लिखते हैं जिनका वास्तविकता से कोई भी लेना देना नही लेकिन फिर भी कुछ लोगो धर्म का झंडा अपने पिछवाड़े में घुसाने की बीमारी हैं और यही कारण रहा कि इस कहानी को बंद करना पड़ा। अब बस आगे एक या दो अपडेट आयेंगे और कहानी समाप्त हो जाएगी। साथ देने के लिए आप सभी का एक बार फिर से दिल से धन्यवाद।

आप सभी से विनम्र निवेदन है कोई भी मुझे अब कहानी को आगे लिखने के लिए दबाव ना करे क्योंकि अभी निवेदन करने वाले लोग उस समय अपने मुंह में दही जमा कर बैठ गए थे जब मुझे सिरफिरे लोगो की गालियों सा सामना करना पड़ा।
मित्र आप इस कहानी को लिखना बंद न करे कहानी को अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचाए। धन्यवाद ज्ञापन।
 

Sirajali

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bhai yaha dosh ajay ka kuchh bhi nahi hai kyunki woh kisi bhi rishte me nahi tha jab ajay aur shehnaz ke bich sex huva lekin shehnaaz thi kyunki usne apne bete se shaadi kar li thi..toh iss situation me dosh sirf shehnaz aur shadab ko jata hai..kyunki sirf shehnaz ne hi dusre aadmi ke sath sex nahi kiya balki shadab ne bhi dusri aurto ke sath sex kiya..aur kamla bhi kisike sath rishte me nahi thi jab usne shadab ke sath sex kiya lekin shadab tha apni maa ke sath pati patni wale rishte me..!! toh agar dosh dena hai toh shehnaz aur shadab ko do..idhar ajay ki koi galti nahi hai..!!
aag bhai..... jaise hi shadab ne sapna ke sath sex kiya aur ajay ne shahnaaj ke sath sex kiya wahin se kahani puri tarah se adultery lagne lagi ...... magar lekhak ne puri koshish ki kahani ko sahi karne ki isliye ... ajay ko bhi do chut dilwai aur shadab ko bhi do chut dilwai........ magar sex ke mamle saale dono jaanwar hain
 

Kattapa

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Waiting bhai
 
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