Sanju@
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बहुत ही गरमागरम मदमस्त कामोत्तेजक और मादक अपडेट है भाई मजा आ गयाअजय काफी थका हुआ था लेकिन वो जानता था कि उसे कुछ भी करके आज शाम तक हर हाल में खजुराहो पहुंचना था इसलिए लगातार गाड़ी चला रहा था जबकि शहनाज़ अब पीछे बैठ गई थी और सौंदर्या के साथ बाते कर रही थी और बीच बीच में अजय से भी बात हो रही थी क्योंकि शहनाज़ जानती थी कि सभी लोग पूरी रात सोए नहीं थे इसलिए कहीं नींद ना आए जाए।
सौंदर्या:" भाई और कितनी देर लग जाएगी ? थक गई मैं तो बैठे बैठे गाड़ी में ही ?
अजय:" बस दीदी थोड़ी देर और लगेगी करीब आधा घंटा बस उसके बाद हम पहुंच जाएंगे।
सौंदर्या:" अच्छा फिर तो ठीक है भाई, भूख भी लगी हैं बहुत तेज मुझे।
शहनाज़: अरे भूख तो मुझे भी लगी हैं बहुत जोर से, पेट में चूचे कूद रहे है ।
इतना कहकर शहनाज़ ने शीशे में अजय की तरफ देखा तो अजय मुस्कुरा दिया और थोड़ी देर बाद बाद ही करीब 2बजे वो खजुराहो अा गए थे। अजय ने शहर के बाहर ही एक होटल में तीन कमरे बुक किए और तीनो नहा धोकर खाना खाने के बाद सो गए।
हालाकि शहनाज़ चाहती थी कि सौंदर्या के सोने के बाद वो थोड़ा समय अजय के साथ बिताए लेकिन नींद के आगे उसकी एक नहीं चली और सो गई।
रात में करीब 10 बजे सभी लोग उठ गए और नहा धोकर खजुराहो में जाने के लिए तैयार हो गए।अजय अंदर अाया तो देखा कि सौंदर्या फिर से शहनाज़ की साडी बांधने में उसकी मदद कर रही थी और ये सब देखकर वो मुस्कुरा दिया। अजय नीचे अा गया और गाड़ी को बाहर निकाला। शहनाज़ गाड़ी में आगे ही बैठ गई जबकि सौंदर्या पीछे बैठ गई। शहनाज़ के बदन से उठती हुई मादक परफ्यूम की खुशबू अजय को साफ महसूस हो रही थी और दिमाग को अजीब सी शांति मिल रही थी। वो बार बार मौका मिलते ही शहनाज़ को चोरी चोरी देख रहा था जबकि पीछे बैठी सौंदर्या खिड़की से बाहर प्राकृतिक सौंदर्य को देखने में व्यस्त थी और उसका भाई अपने पास बैठी खूबसूरत शहनाज़ को देख रहा था। शहनाज़ भी बीच बीच में अजय को देख रही थी और जैसे ही दोनो की आंखे टकरा जाती तो शर्म के कारण कभी अजय तो कभी शहनाज़ की आंखे झुक रही थी। शहनाज़ अपने नारी स्वभाव के कारण और अजय उससे उम्र में छोटा होने के कारण शर्मा रहा था शायद।
थोड़ी देर बाद ही वो खजुराहो पहुंच गए और टिकट लेने के बाद जैसे ही अंदर घुसे गेट के पास ही बनी हुई एक बिल्कुल नंगी पत्थर की औरत की मूर्ति पर नजर पड़ी तो सौंदर्या और शहनाज़ दोनो की आंखे खुली की खुली रह गई।
एक नंगी औरत कुर्सी पर बैठी हुई, दोनो गोल गोल चूचियां बिल्कुल खुली हुई पूरी नंगी और उसने एक टांग को घुटने से मोड़कर अपने पैर के तलवे को अपनी जांघो के बीच किया हुआ था जिससे उसकी जांघो के बीच कुछ नजर नहीं आ रहा था।
ये सब देखकर सौंदर्या ने हैरानी से शहनाज़ की तरफ देखा तो शहनाज़ की हालत भी वैसी ही थी। वो खुद ये सब पहली बार देख रही थी। अजय जानता था कि इस वक़्त दोनो के मन में काफी सारे सवाल चल रहे होंगे लेकिन यहां लोगो के बीच बात करना ठीक नहीं होगा इसलिए आगे की तरफ बढ़ गया।
दीवारों पर एक से बढ़कर एक सुंदर मूर्तियां बनी हुई थी। अलग अलग मुद्रा में सेक्स को दर्शाती हुई, सौंदर्या तो इनसे पूरी तरह से अनजान ही थी वहीं अनुभवी शहनाज़ यकीन नहीं कर पा रही थी कि सेक्स की इतनी सारी कलाएं होती है। अमेरिका जैसे आधुनिक और सेक्स फ्री देश में रहने के बाद भी उसने तो इनमें से आधी भी नहीं अपनाई थी।
शहनाज़ ने एक मूर्ती में देखा कि एक ताकतवर मर्द ने एक हल्की मोटी औरत को अपनी गोद में उठा रखा था और औरत ने अपनी दोनो बांहे उसकी गर्दन में लपेट रखी थी और उससे पूरी तरह से चिपकी हुई थी। मर्द सीधा अपनी टांगो खोल जमीन पर खड़ा हुआ था और उसके दोनो हाथ औरत की गांड़ पर टिके हुए थे। दोनो की जांघें पूरी तरह से आपस में चिपकी हुई थी मानो लंड बिलकुल अपनी पूरी गहराई तक अंदर घुसा हुआ हो। औरत के चेहरे पर फैले हुए असीम सुख को महसूस करके शहनाज को पता नहीं क्यों उससे जलन महसूस हुई।
एक नंगी औरत कुर्सी पर बैठी हुई, दोनो गोल गोल चूचियां बिल्कुल खुली हुई पूरी नंगी और उसने एक टांग को घुटने से मोड़कर अपने पैर के तलवे को अपनी जांघो के बीच किया हुआ था जिससे उसकी जांघो के बीच कुछ नजर नहीं आ रहा था।
ये सब देखकर सौंदर्या ने हैरानी से शहनाज़ की तरफ देखा तो शहनाज़ की हालत भी वैसी ही थी। वो खुद ये सब पहली बार देख रही थी। अजय जानता था कि इस वक़्त दोनो के मन में काफी सारे सवाल चल रहे होंगे लेकिन यहां लोगो के बीच बात करना ठीक नहीं होगा इसलिए आगे की तरफ बढ़ गया।
दीवारों पर एक से बढ़कर एक सुंदर मूर्तियां बनी हुई थी। अलग अलग मुद्रा में सेक्स को दर्शाती हुई, सौंदर्या तो इनसे पूरी तरह से अनजान ही थी वहीं अनुभवी शहनाज़ यकीन नहीं कर पा रही थी कि सेक्स की इतनी सारी कलाएं होती है। अमेरिका जैसे आधुनिक और सेक्स फ्री देश में रहने के बाद भी उसने तो इनमें से आधी भी नहीं अपनाई थी।
शहनाज़ ने एक मूर्ती में देखा कि एक ताकतवर मर्द ने एक हल्की मोटी औरत को अपनी गोद में उठा रखा था और औरत ने अपनी दोनो बांहे उसकी गर्दन में लपेट रखी थी और उससे पूरी तरह से चिपकी हुई थी। मर्द सीधा अपनी टांगो खोल जमीन पर खड़ा हुआ था और उसके दोनो हाथ औरत की गांड़ पर टिके हुए थे। दोनो की जांघें पूरी तरह से आपस में चिपकी हुई थी मानो लंड बिलकुल अपनी पूरी गहराई तक अंदर घुसा हुआ हो। औरत के चेहरे पर फैले हुए असीम सुख को महसूस करके शहनाज को पता नहीं क्यों उससे जलन महसूस हुई।
शहनाज़ की आंखे लाल हो गई थी और वो सोच रही थी कि वो लड़का कितना ताकतवर रहा होगा जिसने औरत को अपनी गोद में उठा रखा था। सौंदर्या पागलों की तरह आंखे फाड़ फाड़कर सेक्स में डूबी हुई मूर्तियां देख रही थी और काम कला की अनोखी दुनिया से रूबरू हो रही थी। सौंदर्या अंदर ही अंदर तड़प रही थी कि उसने ज़िन्दगी का सबसे बड़ा आनंद अभी तक महसूस नहीं किया।
अजय:" आप लोग देखो, मैं एक बार यहां पंडित जी से मिलकर आता हूं।
इतना कहकर वो एक दिशा में मुड गया और चला गया। अजय जानता था कि उसके होते हुए दोनो शर्माएगी और ठीक से मूर्ति नहीं देख पाएगी। अब शहनाज़ और सौंदर्या बची थी और दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और दोनो एक साथ स्माइल करने लगी और सौंदर्या शर्म गई तो शहनाज़ बोली:"
" शरमाओ मत सौंदर्या। ध्यान से देख ले ये सब बड़े काम की चीज है। आगे चलकर तेरे काम आयेगी शादी के बाद।
सौंदर्या पहले तो शर्मा गई लेकिन फिर बोली:" अच्छा जी, लेकिन ये मूर्तियां देखने से मेरी कुंडली का दोष कैसे दूर होगा ?
शहनाज़:" अब मुझे क्या पता, ये तो अजय से ही पता कर लेना तुम कि भाई ये चुदाई की मूर्ति देखकर मेरा दोष कैसे दूर होगा !!
सौंदर्या कांप सी उठी:" उससे कैसे पूछ सकती हूं मैं वो तो मेरा सगा भाई है।
शहनाज़:" लेकिन तुम्हारे पास और कोई रास्ता भी तो नहीं है, और फिर भूल गई क्या पंडित जी ने कहा कि अजय ही तुम्हे मुक्ति दिला सकता है !!
सौंदर्या:" हान ये बात तो हैं, लेकिन फिर भी कैसे बोलूगी, इतना आसान नहीं होगा, आप पूछ लेना उससे प्लीज़।
शहनाज़:" अच्छा ठीक हैं देखती हूं क्या करना है। ।।
इतना कहकर शहनाज़ अगले कमरे में घुस गई और वहां मूर्तियां देखकर उसके बदन में सिरहन सी दौड़ गई। एक औरत झुकी हुई खड़ी थी और पीछे से उसकी गांड़ में एक लंड घुसा हुआ था। शहनाज़ की आंखे फैलती चली गई मानो उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि गांड़ भी मारने की चीज होती हैं। शहनाज़ अभी अभी पूरी तरह से संयत भी नहीं हुई थी कि उसने देखा कि एक मूर्ति में उसने देखा कि एक औरत एक मर्द के ऊपर लेटी हुई थी और उसका लन्ड उसकी चूत में घुसा हुआ था जबकि एक और दूसरा मर्द उस औरत के उपर चढ़ा हुआ और उसकी गान्ड में अपना लंड घुसा रखा था।
ये देखकर शहनाज़ की चूत से आह निकल पड़ी और उसकी गांड़ में चिंगारी सी दौड़ गई। उफ्फ कितने गंदे लोग होते थे पहले जो ऐसी मूर्तियां बनाते थे। वहीं दूसरी तरफ सौंदर्या अब कमरे में अकेली थी तो बिना किसी शर्म के मूर्तियां देख रही थी कि किस प्रकार लोग चुदाई के खुमार में डूबे हुए थे। किसी मूर्ति में झुक कर चुदती हुई औरत, तो कहीं लंड की सवारी करती हुई औरत, सौंदर्या ने आगे देखा कि एक मर्द औरत की टांगो के बीच में अपनी जीभ घुसा कर चाट रहा था। सौंदर्या के मुंह आह निकल पड़ी और सौंदर्या की आंखे बंद हो गई। उसे वो पल याद अा गया जब उस दिन रात में उसके भाई ने मदहोशी में उसकी पेंटी के ऊपर चूम लिया था। सौंदर्या का रोम रोम मस्ती से भर उठा और वो फिर से मूर्तियां देखने लगी। अजय कमरे में अा गया और सौंदर्या तो पूरी तरह से मूर्तियों में डूबी हुई थी और उसे पता ही नहीं चला। अजय आगे बढ़ा और उसने धीरे से एक हाथ सौंदर्या के कंधे पर रखा तो सौंदर्या कांप उठी और अजय को देखते ही वो शर्म से पानी पानी हो गई।
अजय:" क्या हुआ दीदी आप ठीक तो हो ना, मेरे छूने से ही डर गई आप।
सौंदर्या का मुंह शर्म से लाल हो गया था और कुछ नहीं बोली। अजय की आवाज सुनकर शहनाज़ भी बाहर अा गई। शहनाज़ की भी आंखे चौड़ी हो गई थी और आंखो में लालिमा दौड़ रही थी।
अजय;" अच्छा चलो अब हम पीछे की तरफ चलते हैं और वहीं पर आगे की पूजा विधि बताई जाएगी।
मदहोश सी शहनाज़ और सौंदर्या दोनो उसके पीछे पीछे चल पड़ी। जल्दी ही सभी अंतिम कक्ष में अा गए और यहां एक से बढ़कर एक मूर्ति बनी हुई थी। बिल्कुल पूरी तरह से साफ, संगमरमर की तरह चमकती हुई जिनमें महिला और पुरुष के कामांग पूरी तरह से साफ दिख रहे थे। अजय वहीं कमरे में एक चादर डाल कर बैठ गया और दोनो को बैठने का इशारा किया। बदहवाश सी दोनो उसके सामने बैठ गई, सौंदर्या की तो नजरे जमीन में गड़ी जा रही थी जबकि शहनाज़ उसके मुकाबले थोड़ा सहज महसूस कर रही थी और बीच बीच में वो अजय की तरफ देख रही थी और बोली:"
" अजय ये कैसा अजीब मंदिर है, यहां तो देखो ना कैसी कैसी मूर्तियां लगी हुई है।
अजय ने शहनाज़ की तरफ देखा और बोला:" ये काम कला के ऊपर बना हुआ मंदिर है और उससे जुड़ी हुई सभी मुद्राएं यहां फोटो में दिखाई गई है।
शहनाज़ ने अजय की आंखो में देखते हुए कहा:" लेकिन जो काम बंद कमरे के अंदर करना होता है उसकी यहां खुले आम फोटो लगा कर लोगो को दिखाना क्या गलत नहीं है ?
अजय ने देखा कि सौंदर्या अभी भी नजरे नीची किए हुए हैं तो उसने शहनाज़ को इशारा किया तो शहनाज़ ने अपना एक हाथ सौंदर्या के हाथ के उपर रख दिया और हल्का सा दबाते हुए बोली:"
" सौंदर्या तुम सब कुछ ध्यान से सुनना क्योंकि ये सब तुम्हारे लिए आने वाली में सबसे ज्यादा सही साबित होगा।
सौंदर्या ने अपनी गर्दन हान में हिला दी और अजय ने बोलना शुरू किया:" जिस तरह से आदमी खाना खाता है, सोता है, नहाता हैं और अपने रोज के दूसरे काम करता है ठीक उसी तरह से इंसान के लिए सेक्स भी जरूरी है और पहले लोग बिल्कुल इसे आम दिनचर्या के रूप में लेते थे। दूसरी बात सेक्स के बिना दुनिया का अस्तित्व ही संभव नहीं हैं इसलिए इन तस्वीरों में ये सब दिखाया गया है कि आप सेक्स को मजे लेकर कर भी कर सकते हो और ये भी दूसरी बातो की तरह ही बिल्कुल आम बात है।
शहनाज़ और सौंदर्या उसकी बात सुनकर दोनो चुप रही और फिर शहनाज़ धीरे से बोली:"
" अच्छा एक बात तो बताओ सौंदर्या ये पूछना चाहती हैं कि...
इससे पहले की वो कुछ बोलती सौंदर्या ने उसका हाथ पकड़ कर दबा दिया और शहनाज़ चुप गई। अजय समझ गया कि उसकी बहन शर्मा रही हैं इसलिए वो थोड़ा सा आगे को सरका और बिल्कुल शहनाज़ और सौंदर्या के करीब अा गया और बोला:"
"डरने या शरमाने की कोई जरूरत नहीं हैं मेरी दीदी, ये पूजा और इसकी विधियां तो हमे हर हाल में करनी ही होगी। आप बोलिए आप क्या जानना चाहती है ?
सौंदर्या के चेहरे पर पसीना छलक उठा और शहनाज़ ने अपना रुमाल लिया और उसकी तरफ खिसक गई जिससे उसके एक पैर का पंजा अजय के पैर से टकरा गया और शहनाज़ का जिस्म कांप उठा। शहनाज़ ने सौंदर्या का पसीना साफ किया और बोली:"
" अजय सौंदर्या ये जानना चाहती है कि इन मूर्तियों से उसके कुंडली का दोष किस तरह दूर होगा !!
शहनाज़ ने अपनी बात खत्म करी और सौंदर्या की सांसे तेज गति से चलने लगी। वो कुछ पाने की स्थिति में नहीं थी। अजय अपनी बहन की मनोदशा समझ गया था इसलिए थोड़ा सा और आगे को झुका जिससे उसके पैर का दबाव शहनाज़ के पैर पर पड़ा और दोनो के पैरो की उंगलिया आपस में टकरा गई। शहनाज़ ने एक बार अजय की आंखो में देखा और अपनी नजरे नीचे झुका ली मानो उसे मूक सहमति दे दी हो। अजय अपने घुटनों को मोड़ते हुए थोड़ा सा और आगे को सरक बिल्कुल अब सौंदर्या के सामने बैठा था। उसके मुडे हुए पैर के मजबूत पंजे अब पूरी ताकत से शहनाज़ के पैर से टकरा रहे थे और शहनाज़ उसके पंजे की ताकत महसूस करके बहक सी गई और उसने अपने पैर की उंगलियों को जोर से अजय के पैर की उंगलियां से भिड़ा दिया मानो अजय को दर्शा रही हो कि मेरी उंगलियां भी कमजोर नहीं है।
अजय शहनाज़ की तरफ से सहयोग पाकर अब बेफिक्र होकर अपने पैर की उंगलियों को शहनाज़ के पैर से लड़ाने लगा और बोला:"
" एक सुंदर कन्या हेमावती पर चन्द्र देवता मोहित हो गए और उसके साथ सेक्स किया वो बिल्कुल सौंदर्या की तरह जवान और खूबसूरत थी। हेमवती नाराज हो गई लेकिन उसे वरदान मिला और उसकी कोख से पुत्र प्राप्त हुआ जिसने इस मंदिर का निर्माण कराया। चन्द्र देवता को काफी शांत समझा जाता हैं और उनके ही प्रभाव के कारण सौंदर्या का स्वभाव मांगलिक होने के बाद भी बिल्कुल शांत हैं।दोष निकल जाने के बाद सौंदर्या का शांत स्वभाव इसकी सेक्स ज़िन्दगी में बाधा उत्पन्न ना करे बस इसलिए ही इसे यहां लाया गया है ताकि उसके उपर से चन्द्र देवता का प्रभाव हट जाए।
इतना कहकर अजय ने सौंदर्या की तरफ देखा जिसकी गर्दन अभी भी झुकी हुई थी और अजय ने मौके का फायदा उठाते हुए अपने पैर के कठोर अंगूठे से शहनाज़ की कोमल, मुलायम उंगलियों को जोर से मसल दिया तो शहनाज़ के मुंह से आह निकलते निकलते बची। उसने घूर कर अजय की तरफ देखा और अपने पैर के नाखून को उसके पंजो में घुसा दिया।
अजय ने शहनाज़ की तरफ देखा और उसे स्माइल दी और फिर उसने अपना हाथ से सौंदर्या के गाल को सहलाया और बोला:"
" मेरी प्यारी बहन, ध्यान से देख लेना सब कुछ, कहीं बाद में तेरी ज़िन्दगी में कोई दिक्कत ना हो।
सौंदर्या उसके हाथो की छुवन से मस्त हो गई लेकिन कुछ बोली नहीं तो अजय फिर से बोला:"
" ध्यान से देखोगी ना तुम सब कुछ? मैं और शहनाज़ तेरे लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं तो तुम्हे भी इसका ध्यान रखना चाहिए।
अजय ने कहा तो इस बार सौंदर्या ने हान में अपनी गर्दन हिला दी। अजय खुश हो गया और शहनाज़ के पैर को रगड़ते हुए खड़ा हो गया और बोला:"
" बाहर पीछे मैदान में एक बहुत ही बड़ी सेक्स करते हुए मूर्ति बनी हुई जो रती की समझती जाती है। अब हम उसके चक्कर काटेंगे। पहले मैं और शहनाज़ और उसके बाद मैं और तुम । टोटल सात चक्कर होंगे। पहले चार चक्कर में तुम्हारी आंखे खुली रहेगी और तुम बिना इधर उधर देखे सीधे मूर्ति पर ध्यान दोगी जबकि बाद में तीन चक्कर में तुम्हारी आंखे बंद रहेगी और आंखे बंद करके मूर्ति का ही ध्यान करोगी।
सभी लोग बाहर अा गए और मैदान में एक बहुत बड़ी मूर्ति बनी हुई थी जिसमें एक तगड़े जवान मर्द ने एक हल्की मोटी चर्बी वाली औरत को गोद में उठाकर अपने लंड पर चढ़ा रखा था। ये एक क्रिकेट के मैदान जितना बड़ा मैदान था और बीच बीच एक मूर्ति लगभग आधे से ज्यादा मैदान को घेरे हुए थी। जैसे ही शहनाज़ ने बाहर आकर मूर्ति देखी तो सब समझ अा गया कि अजय ने शायद जान बूझकर ऐसी विधि बताई हैं क्योंकि एक चक्कर में कम से कम तीन मिनट तो लगने ही थे वो भी पूरी रफ्तार से चलने के बाद। शहनाज़ अंदर ही अंदर मुस्कुरा उठी क्योंकि वो भी तो यही सब चाह रही थी।
अजय ने एक मूर्ति के ठीक सामने सौंदर्या को खड़ा कर दिया और बोला:"
" आप यहीं खड़ी रहोगी और किसी भी दशा में हमारे सात चक्कर पूरे होने तक आपका ध्यान नहीं भटकना चाहिए नहीं तो आपकी आगे की ज़िन्दगी बेहद कष्टकारी हो सकती है।
सौंदर्या:" ठीक है भाई। आप बेफिक्र होकर परिक्रमा कीजिए। मैं पूरा ध्यान रखूंगी।
अजय ने शहनाज़ की तरफ देखा जिसकी आंखे लाल हो गई थी और आगे होने वाली घटनाओं को सोचकर उसके पूरे जिस्म में हलचल सी मची हुई थी कि जाने अजय उसके साथ क्या करेगा। कुछ करेगा भी या नही।
शहनाज़ ने अजय की तरफ देखा और अजय ने उसे चलने का इशारा किया और दोनो के चक्कर शुरू हो गए। दोनो साथ ही चल रहे थे और देखते ही देखते वो मूर्ति के पीछे की तरफ अा गए और सौंदर्या अब उन्हें दिख नहीं रही थी। शहनाज़ का दिल तेजी से धड़क रहा था कि अजय अब क्या करेगा लेकिन अजय खामोशी से चलता रहा और शहनाज़ भी उसके साथ चलती रही और थोड़ी ही देर बाद ही वो एक चक्कर पूरा करके सौंदर्या के पास से निकल गए।
दूसरे चक्कर में भी दोनो ऐसे ही चलते रहे और दोनो की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कौन पहल करे। जैसे ही तीसरा चक्कर शुरू हुआ तो शहनाज़ अजय से थोड़ा आगे निकल गई और अपनी गांड़ को पीछे की तरफ उभार कर पूरी तरह से मटका मटका कर चलने लगी। अजय उसकी गांड़ को मटकते हुए देखकर उसकी गांड़ को ललचाई हुई नजरो से देखते हुए उसके पीछे चलने लगा। जैसे ही वो सौंदर्या की नजरो से ओझल होकर मूर्ति के पीछे आए तो शहनाज़ ने एक कामुक स्माइल अजय को दी और अजय ने भी आगे बढ़कर शहनाज़ के साथ में चलने लगा। शहनाज़ अपनी गांड़ को पूरी अदा के साथ मटका रही थी और अजय अपने होश खोता जा रहा था। शहनाज़ जान बूझकर चलते हुए अजय से टकरा रही थी और अजय तो जैसे ऐसे ही मौके की तलाश में था। वो चलते हुए शहनाज़ के ठीक पीछे अा गया और उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया तो शहनाज़ के क़दमों की गति बिल्कुल धीमी हो गई और उसने फिर से अजय को पीछे गरदन घुमा कर देखा और स्माइल दी तो अजय ने अपने हाथ की पकड़ उसके कंधे पर बढ़ा दी तो शहनाज़ का जिस्म मस्ती से भर उठा। लेकिन अब मूर्ति के सामने दोनो चलते हुए अा गए थे और सामने खड़ी हुई सौंदर्या नजर आ रही थी जिसका पुरा ध्यान मूर्ति पर था। जैसे ही दोनो सौंदर्या के पास से चौथे चक्कर के लिए गुज़रे तो शहनाज़ बोली:" उफ्फ कितना लंबा चक्कर हैं, थक गई मैं तो, अब धीरे धीरे लगाने पड़ेंगे।
शहनाज़ की बात सौंदर्या के कानों में पड़ी और अजय के लिए तो जैसे ये खुला आमंत्रण था और शहनाज़ अब पूरी अदा के साथ अपने कूल्हों को मटका रही थी। इस बार जैसे ही चलते हुए दोनो मूर्ति के पीछे आए शहनाज़ ने जान बूझकर अपनी स्पीड को बिल्कुल धीमी कर दिया तो अजय ने शहनाज़ के कंधो को फिर से थाम लिया। शहनाज़ के मुंह से आह निकल पड़ी जिसे अजय ने साफ सुना।
अजय उसके कंधे सहलाते हुए धीरे से उसके कान में बोला:"
" ज्यादा थक गई हो क्या शहनाज़ तुम ?
शहनाज़ अजय के हाथ अपने कंधे पर महसूस करते ही रुक गई और बोली:"
" हान अजय बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन थक तो गई है मैं।
अजय ने अपनी उंगलियों को उसके कंधो में गडा दिया और बोला:" तुम कहो तो तुम्हे अपनी गोद में उठा लू
शहनाज़ तो कबसे खुद ही उसकी गोद में आने के लिए मचल रही थी लेकिन इतनी आसानी से नहीं क्योंकि वो अजय को पूरी तरह से अपना दीवाना बनाना चाह रही थी। शहनाज़ पलट कर अजय की आंखो में देखते हुए स्माइल दी और बोली:"
" शहनाज़ को गोद में उठा लेना इतना आसान नहीं है अजय, इतनी आसानी से हाथ आने वाली चीज नहीं हूं मैं।
इतना कहकर उसने अजय को ठेंगा दिखाया और एक झटके के साथ आगे निकल गई। अजय उसके पीछे तेजी से बढ़ा लेकिन जब तक उसके पास पहुंचा तो शहनाज़ मूर्ति को पार करते हुए सौंदर्या के सामने अा गई तो और उसने अजय को जीभ निकाल कर चिढ़ा दिया। अजय सौंदर्या के पास पहुंच गया और बोला:"
" दीदी हमारे चार चक्कर पूरे हो गए हैं। अब अगले तीन चक्कर पूरे होने तक आप अपनी आंखे बंद करके इस मूर्ति और चन्द्र देवता का ध्यान करोगी। शहनाज़ थक गई है इसलिए अब चक्कर में थोड़ा ज्यादा समय लग सकता हैं इसलिए आप फिक्र मत करना और किसी भी दशा में आपकी आंखे नही खुलनी चाहिए।
इतना कहकर अजय ने सौंदर्या को आंखे बंद करने का इशारा किया और सौंदर्या ने अपनी आंखे बंद कर ली। अजय ने शहनाज़ की तरफ देखा और इशारे से पूछा कि अब कैसे बचोगी तो शहनाज़ ने उसे स्माइल करते हुए फिर से ठेंगा दिखाया और चलने लगी। इस बार तो उसकी चाल बिल्कुल जानलेवा ही थी और वो किसी रबर की गुड़िया की तरह मटक रही थी। अजय बहुत ज्यादा तेजी से चलते हुए उसके पास पहुंच गया और जैसे ही अजय उसके पास आया तो शहनाज़ ने बहाना बनाते हुए भागने की कोशिश करी लेकिन अजय ने उसे पीछे से झपट कर अपनी बांहों में भर लिया। शहनाज़ का जिस्म अजीब से रोमांच से भर गया और उसने थोड़ा जोर लगाते हुए छूटने की कोशिश करी तो अजय ने उसे पूरी ताकत से कस लिया और बोला:"
" अब बताओ भागकर कहां जाओगी शहनाज़? बहुत ज्यादा नखरे कर रही थी तुम ।
अजय की बांहों की ताकत महसूस करके शहनाज का रोम रोम मस्ती से भर गया और उसने खुद को उसकी बांहों में पूरी तरह से ढीला छोड़ दिया तो अजय के होंठो पर स्माइल अा गई और और उसके कान के पास धीमे से सेक्सी आवाज में बोला:"
" इतनी जल्दी हार मान गई क्या तुम? थोड़ी देर पहले तो बड़ी उछल रही थी।
अजय ने अपने हाथो से शहनाज़ के पेट को पकड़ रखा था तो शहनाज़ ने अपने हाथ उसके हाथो के उपर रख दिए और सहलाते हुए बोली:"
" तुम ठहरे जंगली शेर। तुमसे कहां जीत पाऊंगी मैं। हार गई मैं बस अब खुश।
शहनाज़ की बात सुनकर अजय ने अपनी पकड़ को ढीला कर दिया और यहीं उससे गलती हो गई। शहनाज़ बिजली की गति से उसकी पकड़ से निकली और दौड़ पड़ी। अजय तेजी से उसके पीछे भागा और उसने शहनाज़ को पकड़ा तो उसकी साड़ी का पल्लू उसके हाथ में अा गया और शहनाज़ की साडी तेज झटके के साथ खुलती चली गई। शहनाज़ को काटो तो खून नहीं और एक झटके के साथ वो आगे को गिर पड़ी। शहनाज़ अब सिर्फ ब्लाउस और पेंटी में उसके सामने रह गई थी और दोनो हाथो से अपना चेहरा ढक लिया। शहनाज़ अब चाहकर भी नहीं भाग सकती थी। अजय उसके पास अा गया और उसे पकड़ कर उठाया और बोला:"
" देख लिया अपनी ज्यादा होशियारी का अंजाम, वैसे तुम बिना साडी के और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही हो।
शहनाज़ ने उसकी तरफ देख कर मुंह फुलाया मानो अपनी नाराजगी जाहिर कर रही हो। अजय उसके पास अा गया और उसके हाथ पकड़ कर अलग किए और ब्लाउस में बंद उसकी चूचियां देखते हुए बोला:"
" मुझे लगता हैं कि मैं चद्र देवता की कृपा सौंदर्या से ज्यादा तुम पर हो रही है शहनाज़। देखो कैसे तुम्हारा अंग अंग खिल कर चमक रहा है।
शहनाज़ ने अजय की नजरे अपनी छाती पर महसूस करी और उसे आंखे दिखाते हुए बोली:"
" बेशर्म कहीं के तुम, लाओ मेरी साडी दो, मुझे चक्कर लगाने हैं अभी बचे हुए।
शहनाज़ जैसे ही आगे को हुई तो उसके पैर में दर्द का एहसास हुआ और अजय ने बिना देरी किए हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया और बोला:"
" बस करो शहनाज़ पैर में मोच अा जाएगी।
शहनाज़ ने भी अपने आपको उसकी बाहों में ढीला छोड़ दिया और बोली:"
" अजय मेरी साड़ी तो उठा कर पहन लू मैं ? किसी ने मुझे इस हालत में तुम्हारी बांहों में देख लिया तो ?
अजय ने शहनाज़ के आंखो पर आए हुए उसके बालो को हटाया और बोला:" कोई नहीं देखेगा, बाहर से कोई आएगा नहीं और सौंदर्या की आंखे खुल नहीं पाएगी। साडी एक बार बाद में ही उठा लेना नहीं फिर से खुल गई तो चोट लग सकती हैं।
शहनाज़ ने सुकून की सांस ली लेकिन उसके सवाल ने अजय के दिमाग में एक बात साफ कर दी थी कि शहनाज़ को उसकी गोद में कोई दिक्कत नहीं है बस किसी को पता नहीं चलना चाहिए। अजय उसकी आंखो में देखते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा और शहनाज़ भी प्यार से उसे ही देख रही थी। जैसे ही उन्हें सौंदर्या नजर आईं तो शहनाज़ हल्की सी शर्मा गई और अजय उसे अपनी बांहों में लिए हुए जैसे ही सौंदर्या के पास से गुज़रा तो शहनाज़ उससे कसकर लिपट गई। शहनाज़ ने जान बूझकर अपनी कोहनी को अपनी चूचियों के नीचे दबाकर उपर की तरफ उभार दिया और उसकी आधे से ज्यादा चूचियां बाहर छलक उठी और अजय पागल सा हो गया और उसके लंड में तनाव आने लगा। देखते ही देखते उसका लंड अपनी पूरी औकात पर अा गया और पत्थर की तरह सख्त होता चला गया। शहनाज़ ने अजय की आंखो में देखते हुए अपने होंठो पर जीभ फिराई और उसे स्माइल दी तो अजय थोड़ा सा झुका और उसके होंठ शहनाज़ के होंठो के सामने अा गए। दोनो एक दूसरे को प्यासी नजरो से देख रहे थे और धीरे धीरे उनके होंठो के बीच की दूरी खत्म हो गई। आह एक बार फिर से शहनाज़ के रसीले होंठ अजय के प्यासे होंठो से मिल गए और शहनाज़ पूरी ताकत से उससे लिपटती चली गई। अजय उसे अपनी गोद में लिए हुए खड़ा था और दोनो आंखे बंद किए हुए एक दूसरे के होंठ चूम रहे थे। अजय शहनाज़ के जादुई मुख रस को चूस कर बहकता जा रहा था और उसने अपनी जीभ बाहर निकाली तो शहनाज़ ने अपना मुंह खोल दिया और अजय की जीभ उसके मुंह में घुसती चली गई। शहनाज़ का बचा कुचा धैर्य भी जवाब दे गया और वो मस्त होकर अजय की जीभ से अपनी जीभ लड़ाने लगी। एक लंबे किस के बाद दोनो के होठ अलग हुए और फिर से जुड़ गए। दोनो पूरी होश से एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे और अजय धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। जैसे ही किस करते हुए वो चक्कर काटकर सौंदर्या के पास पहुंच गए तो शहनाज़ ने अजय को नीचे उतारने का इशारा किया तो अजय ने उसे नीचे उतार दिया और शहनाज़ ने अजय को बांहे फैलाने का इशारा किया और उसकी गोद में चढ़ गई और अपनी दोनो बांहे उसके गले में डाल दी। अब शहनाज़ अजय की गोद में बिल्कुल ठीक वैसे ही थी जैसे सामने लगी हुई मूर्ति सेक्स करते हुए दिखाई गई थी। अजय ने दोनो हाथ उसकी गांड़ के नीचे लगाए और आगे बढ़ गया। अजय ने जैसे ही उसकी गांड़ को दबाया तो शहनाज़ ने फिर से अपने होठ उसके होंठो पर चिपका दिए और किस शुरू हो गई। अजय अब मजे से उसकी गांड़ अपने हाथ में भर कर मसल रहा था और शहनाज़ पल पल और ज्यादा बहकती जा रही थी।अजय का लन्ड नीचे से झटके पर झटके मार रहा था और शहनाज़ पागल सी हो गई थी। दोनो ऐसे ही किस करते हुए सात चक्कर पूरे करने वाले थे शहनाज़ ने अजय को रोक दिया और अजय ने उसे अपनी गोद से उतार दिया और उसे साडी पहना दी।
दोनो अंतिम चक्कर खत्म करके सौंदर्या के सामने पहुंच गए और अजय बोला:"
" बस दीदी हमारे चक्कर पूरे हो गए, आप अब अपनी आंखे खोल दीजिए।
सौंदर्या ने जैसे ही आंखे खोली तो उसकी आंखे के आगे अजय का लंड उसके पायजामा में खड़ा हुआ नजर आया और सौंदर्या शर्मा गई। मूर्ति को देखने और उसे ही सोचने के कारण उसके बदन में सिरहन सी दौड़ रही थी और वो उसकी चूचियां अकड़ती जा रही थी और चूत में रह रह कार बुलबुले से उठ रहे थे।
अजय:" दीदी अब आप चक्कर के लिए तैयार हो जाए। शहनाज़ आप चाहे तो अंदर जा सकती हैं या यहीं आराम कर सकती है। अब आपकी जरूरत नहीं होगी।
शहनाज़:" ठीक है फिर मैं पीछे घूम कर शादाब से बात कर लेती हूं। तब तक आप लोग चक्कर काट कीजिए।
इतना कहकर शाहनाज पीछे की तरफ घूमने निकल गई और शादाब का नंबर मिलाने लगीं लेकिन नंबर नहीं मिल पाया तो वो पीछे बैठ गई और सोचने लगी कि जो हो रहा है क्या वो सही हैं ?
अब सौंदर्या और अजय कामुक मुर्ती के चक्कर मारते वक्त क्या झोल झाल होता है जो रोमांचकारी और मनमोहक होने की संभावना लगती हैं देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा