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Incest मां और मेरी शुरुआत की वो ठंडी रात

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कहानी की शुरुआत हुई ठंडी की उस रात से जब मैं पापा को करीब 10 बजे रेलवे स्टेशन छोड़ कर आया उनकी दूसरे शहर किसी मीटिंग की लिए। उन्हें स्टेशन छोड़ कर मैं घर पहुंचा और गेट को खोल कर गाड़ी अंदर खड़ी कर गेट अंदर से लॉक कर चाबी उंगली में घूमता हुआ गाने गुनगुनाता हुआ अंदर आया।
अंदर मां सोफे पर बैठ टीवी देख रही थी और मेरे आते ही मां ने पूछा - छोड़ आया पापा को स्टेशन?

मैं - हां मां।
मां - ट्रेन आ गई थी उनकी?
मैं - हां, तभी तो मुझे लेट हो गया थोड़ा आने में।
मां - अच्छा, जा मेरे कमरे के बाथरूम का गीजर ऑन कर आ, मैं नहा के फिर खाना लगाती हूं फिर खा कर सोते हैं हम भी।
मैं - मां रात में कौन नहाता है वो भी इतनी ठंड में।
मां - आज सुबह नहाई नहीं थी मैं तो नींद सही से आएगी नहीं मुझे, इसलिए सोचा नहा कर ही सोती हूं।
मैं - ठीक है , जैसी आपकी मर्ज़ी।
मां - हां।

मैं मां के कमरे के बाथरूम का गीजर ऑन करके बाल्टी लगाकर बाहर आया और मां को बता कर अपने कमरे की और चला गया। कमरे में जाकर जीन्स जैकेट उतार कर लोवर और टी शर्ट डाल मैं फोन चलाने लगा के मां की आवाज आई - चिक्कू बेटा, इधर आ एक बार।

मैं फोन वहीं बैड पर रख मां के कमरे की और गया और कमरे में देखा तो मां नहीं थी पर उनका सूट पड़ा था जो उन्होंने थोड़ी देर पहले डाल रखा था और साथ में एक स्वेटर भी बैड पर ही पड़ा था तो मैं बोला - मां कहां हो?
मां - इधर बाथरूम में।

मैं बाथरूम में गया तो मां बाथरूम में एक लोवर डाल कर खड़ी थी और ऊपर की और उन्होंने एक बड़ा सा टावल लपेट रखा था । पूरा ऊपर का बदन वो टावल कवर कर रहा था। मैं मां को ऐसे देख कर बोला - क्या हुआ मां?
मां - ये देख न जरा, नहाने के लिए आई ही थी के गेट बंद ही नहीं हो रहा ये अंदर से ।

मैनें गेट के नॉब को घुमाया तो वो अटक सा रहा था । फिर बाहर से घुमाया तो फिर भी जाम था। फिर 2-3 बार फिर घुमाया तो एकदम से वो लॉक लग गया। ये वो मॉडर्न लॉक था जो गेट के दोनों एंड में लगा होता है और दोनों साइड से लॉक अनलॉक हो जाता है। तो बाहर से जब वो बंद हुआ तो मैं मां से बोला - मां अब अंदर से कर कर देखना।

मां ने बाथरूम के अंदर से ट्राई किया पर फिर से वही हाल। फिर में भी बाथरूम के अंदर साइड में आ गया और लॉक 2-3 बार फिर से घुमाया और वो लॉक हो गया। तो मैं मां से बोला - लो हो गया, अभी तो चला लो काम, फिर कल मिस्त्री को दिखा कर ठीक करवाता हूं इसको।

मां - हां करवा दियो।

फिर मैं लॉक खोल कर जैसे ही बाहर जाने लगा के लॉक साला खुला ही ना। बड़ी मशक्कत की मैनें भी और मां ने भी पर लॉक था के खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था। अब सिचुएशन ये थी के हम दोनों बाथरूम में थे और बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद था और ना ही हमारे पास फोन था के किसी को कॉल करके बुला लें हम। और इस सबमें एक बात ये थी के मां सिर्फ टावल और लोवर में थी।




अब कैसे ये लॉक खुलेगा, कब खुलेगा इसके लिए थोड़ा सा इंतजार करना, Next Part जल्द ही दूंगा।
nice plot
 
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🌺 Part - 3 🌺



मां और मैं, हम दोनों करीब 1 मिनट तक यूंही चुप चाप खड़े रहे फिर मां बोली - हम्मम, ठीक ठीक, सॉरी बेटा वो मैं भी बस .....ये सब इतनी जल्दी में हो गया के बस वो..

मैं - हां मां , बस।
मां - हम्मम, चल छोड़ ये , देख अब खिड़की खुली है, लगा तो आंटी को आवाज जरा।
मैं - हां, लगाता हूं।

मैनें आंटी को आवाज लगाई, फिर पीछे पीछे मम्मी ने भी आवाज लगाई, पर कोई रिस्पॉन्स नहीं आया।

मैं - कहीं सो तो नहीं गए वो।
मैं - हो सकता है।
मां - टाइम क्या हुआ होगा अभी?

मैनें अपनी घड़ी देखी तो 11 : 17 हो रहे थे। मैनें मां को टाइम बताया तो मां बोली - अरे अब तक तो वो भी सो गए होंगे। ठंडी में तो सब ही जल्दी सो जाते हैं, वो तो तेरे पापा ने जाना था इसलिए हमें लेट हो गया सोने में , नहीं तो अब तक तो हम भी सो गए होते।

मैं - हां मां, फिर अब?
मां - अब क्या, ना फोन है, ना घर पर तेरे पापा हैं, और अब तो लगता है जब तक आंटी नहीं जगती तब तक यहीं ना रहना पड़े हमें।
मैं - हां शायद।
मां - ऊपर से ये इतनी ठंड लग रही है, मेरे तो कपड़े भी बाहर बैड पर ही पड़े थे।

मैं - हां मां, ठंड तो अब रात के साथ साथ और भी बढ़ती जाएगी।
मां - यही तो डर है मुझे, कहीं सुबह तक हमारी कुल्फी ना जम जाए, एक ये पतला सा लोअर ही डाल रखा है मैनें और उपर तो कुछ डाला भी नहीं।

मैं हंसने लगा और बोला - हां वो तो दिखा।
मां - चुप बदमाश, हम यहां फसे हैं और तु हस रहा है।मुझे तो लगता है ये मेरी जिंदगी की आखरी रात है।

मैं हंसी रोक कर - अरे क्या मां, आप भी ना, आखरी रात होगी, ऐसा क्यूं बोल रहे हो, मैं हूं ना आपके साथ, करते हैं कुछ ना कुछ।
मां - हां तु साथ है इस बात का तो मुझे ज्यादा डर है, मैं अकेली होती तो भी चल जाता। पर मेरा बेटा मेरे साथ ठंड में परेशान होगा पूरी रात इसका मुझे ज्यादा दुख है।

मैं मां के होंठों पर उंगली रख के बोला - क्या मां आप कैसी कैसी बाते करने लग गई हो एकदम ही।
मां - कैसी कैसी क्या सही तो बोल रहीं हूं, अगर तुझे इतनी ठंड में कुछ हो गया तो।

मैं - अरे मेरी प्यारी मां, कुछ नहीं होगा मुझे, आप हैं ना मेरे साथ।
मां - हम्मम, काश मैं अपने कपड़े तो कम से कम अंदर ही टांग लेती। थोड़ी ठंडी से तो बचती।

मैंने मां के ये सुनते ही अपनी सफेद टी शर्ट उतार कर मां को दी और बोला - लो मां ये डाल लो , कुछ तो फरक पड़ेगा ही इस से।
मां - पागल है तु, क्या कर रहा है, वापस पहन इसे।
मैं - अरे मां, आपका ख्याल रखना तो मेरा फर्ज है, अब चुपचाप डालो इसे , आपको मेरी कसम।
मां ने कसम का सुनके मेरे हाथ से वो टी- शर्ट पकड़ ली और बोली - ये आजाएगी मुझे?

मैं - हां ट्राई तो करो एक बार।
मां दूसरी तरफ घूमी और टॉवल उतार कर टी शर्ट डालने लगी। जैसे ही उन्होंने टॉवल उतारा उनकी पूरी नंगी पीठ मेरे सामने थी। हालांकि मैं उनके मोटे चूचों को तो एक पल के लिए पहले भी देख चुका था, पर ये उनकी गोरी पीठ के बीच से आती वो लकीर मुझे अपना दीवाना सा बना रही थी।

मां टी शर्ट डाल कर दूसरी तरफ मुंह कर कर ही बोली - ये टाइट है मुझे आगे से।

मैं - कोई नहीं मां, ठंड से तो बचाएगी ही।
मां - हा मुझे तो बचा लेगी, पर मेरे बच्चे को कौन बचाएगा।
मैं - आपको बचाया मुझे बचाया एक ही बात है मां।
मां ने टीशर्ट डाल कर फिर से ऊपर टॉवल ले लिया और मेरी ओर घूम कर बोली - इतनी समझदारी वाली बाते कब से करने लगा तू?
मैं - मैं समझदार ही हूं मां।

मां - हा हा, मेरे समझदार बेटे, अब तु ऐसे बनयान में रहेगा?
मैं - हां, फिर क्या हुआ, मुझे नहीं लगती ठंड इतनी जल्दी।
मैं - हु हु, मुझे तो ये डाल कर भी ठंड लगने लगी है और तु कह रहा है ठंड नहीं लगती।
मैं - हां मां।

मां - अब सुबह के 6-7 बजे तक ऐसे ही बाथरूम में रहना पड़ेगा लगता है, इतनी ठंडी में।
मैं - हां।

मां ने फिर साइड से वाइपर उठाया और नीचे फ्लोर को साफ करते हुए बोली - ये टाइल्स पर तो सोना भी मुश्किल है, इतनी ठंडी हैं ये।

मैं - हां , आप बैठ जाओ मां, अगर थक गई हो तो।
मां - नीचे कहां बैठूंगी बेटा अब?
मैं - अरे ये स्टूल है न छोटा सा नहाने वाला, इसपर ही बैठ जाओ।
मां - और तु?
मैं - मैं खड़ा हूं, कोई नहीं आप बैठो।

मां - नहीं नहीं, तु पागल है तूने पहले टी शर्ट भी मुझे उतार कर दे दी और अब बैठूं भी मैं, इतनी भी गंदी मां नहीं हूं मैं।
मैं - अरे क्या मां, कौन कहता है आप गंदी मां हो, आप तो दुनिया की सबसे अच्छी मां हो, चलो बैठ जाओ, थक जाओगे ऐसे तो पूरी रात।
मां - तु भी बैठ फिर।

मैं - चलो आप बैठो पहले, फिर मैं बैठता हूं।
मां स्टूल पर बैठ गई और मैं जैसे ही टाइल पर बैठा के एक सी की आवाज निकली मेरे मुंह से वो ठंडी की वजह से।

रजाई ओढ कर सोने वाली सर्दी में अगर आप कंबल ओढ कर सो जाओ तो भी ठंड से गांड फट जाती है वो भी कमरे में और यहां तो मां और मैं बाथरूम में वो भी बिना एक चद्दर के , सोचो हालत क्या हुई होगी हम दोनों की ठंड में।

अब मैं भी ठिठुरने सा लगा तो मां ने बोला - देखा कहा था ना ठंड लग जाएगी। इधर बैठ मेरी गोद में।
मैं - क्या गोद में?
मां - हां बैठ चुप चाप, पागल।

मैं मां की गोद में बैठा तो हल्का सा एक गर्माहट का एहसास सा हुआ मुझे। मां ने मेरे बैठते ही अपना टॉवल उतार कर मेरे शरीर पर लपेट दिया और बोली - ये डाल कर रख, ठंड कम लगेगी।




🎉Part - 4 ...
आज रात में


Part - 3 कैसा लगा जरूर कमेंट्स करके बताना...

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cooooool
 
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🌺 Part - 4 🌺




मां ने मेरे शरीर पर अपना टॉवल उतार कर डाल दिया था और मैं उनकी गोद में बैठा था इसलिए मेरा चेहरा सामने की तरफ था और मैं उन्हें नहीं देख पा रहा था।

मां ने अगले ही पल मेरे गर्दन से होते हुए अपने दोनों हाथों को आगे बढ़ाया और जैसे अपने सिने में छुपा रही हो ऐसा करते ठंडी की सिसकी सी भरते हुए बोली - फू,...ये ठंड भी ना, बढ़ती ही जा रही है चीकू बेटे।

मैं - हां मां, देखो टाइम भी अभी लगभग 12 ही बजे हैं और अभी से ऐसा रहा तो मुझे लगता है कल सुबह तक तो हमारी हालत खराब हो जाएगी।

मां - मुझे भी यही लगता है चीकू बेटा।
मां ने अगले ही पल अपने हाथों को मेरे दोनों हाथों में डाल हथेलिया को घिसना शुरू कर दिया। ऐसा करने से हम दोनों को गर्माहट का एहसास मिल रहा था। हम दोनों अब थोड़ा थोड़ा कंपकपाने से लगे थे ठंड ही वजह से।

कांपते कांपते मां बोली - चीकू बेटा मेरी तो टांगें भी सुनन सी पड़ने लगी है।
मैं - ठंड ही इतनी बढ़ती जा रही है मां।
मां - हां ठंड भी और तेरा वजन भी थोड़ा ज्यादा है शायद इसलिए भी।
मैं ये सुनते ही उठ गया और घूम कर बोला - क्या मां, आप भी ना ,मेरी वजह से परेशान हो रही हो, आपने पहले क्यूं नहीं बोला, मैं नीचे बैठ जाता।

मां - नहीं ना, इतनी ठंडी में तुझे जमीन पर बैठा कर बीमार थोड़ी न करना है।
मैं घुटनों के बल बैठा और मां के दोनों टांगों को एक एक हाथ से उठा अपने घुटनों पर रख उनके पैरों की तलियों को अपने हाथों से घिसने लगा के मां को थोड़ी राहत मिले और पैर ठंड में सुन्न ना पड़े।
मां - अरे रहने दे बेटा।

मैं - रुको ना मां, आप बताओ थोड़ा आराम मिला?
मां - हां बहुत मिला बेटा, चल छोड़ अब इसे आजा मेरी गोदी में बैठ जा,आ।

मैं - नहीं मां, आपके ऊपर इतना वजन नहीं देना चाहता मैं। आप उठो एक बार।
मां - क्यूं?
मैं - अरे उठो तो सही।

मां स्टूल से उठी और मैं स्टूल पर बैठ गया और बोला - लो आप मेरी गोद में बैठो, आपको वजन भी नहीं लगेगा ऐसा।
मां - अरे नहीं बेटा? क्यूं तु इतना परेशान हो रहा है।

मैनें मां की बात को सुन उन्हें अपनी और खींचा और सीधा अपनी गोद में बिठा लिया । बहन चोद इतना गरम एहसास उस वक्त मिला ना के जैसे भूखे को भर पेट खाना मिल गया हो। मां की गांड इतनी गर्म थी के कुछ भी पलों में उन्होंने मेरे शरीर में भी अपनी गर्मी ट्रांसफर करनी शुरू कर दी।

मैनें भी मां की तरह ही उन्हें अपने सिने में भर लिया और उनकी हथेलियों पर अपनी हथेलिया रख कर उनके कान के पास पूछा - कैसा लग रहा है मां?

मां भी धीरे से बोली - अब अच्छा लग रहा है बेटा।
मैं - ठंड कम लग रही है ना।
मां - हम्मम।
मैं - आपके पैर भी करूं?
मां - हम्मम।

अब ठंड हम दोनों के दिमाग पर सवार होने लगी थी और हम दोनों बस किसी न किसी तरह से ये रात को जीते जी खत्म करना चाहते थे।
मैं थोड़ा सा आगे को झुका और अपने हाथों को उनकी हथेलियों से निकाल कर पैरों तक जैसे ही ले जाने लगा के मां ने फट से मेरे हाथ पकड़ लिए और बोली - नहीं ये हाथों से मत निकल, मुझे ठंडी लगती है ज्यादा।
मैं - हम्मम।

फिर मैं हल्का सा पीछे हुआ और अपनी हथेलियां उनकी हथेलियों में डाल फिर से गर्म करने लगा और दूसरी तरफ मेरा चेहरा वक्त की नजाकत को समझते हुए खुद ब खुद उनके चेहरे के पास गया और मेरे मुंह से निकला - मां, हल्का सा ऊपर उठो ना एक बार।

मां भी हल्का सा ऊपर को उठी और इतने में मैनें अपनी टांगें सीधी कर दी और मां फिर से मेरी टांगों के ऊपर बैठ कर हाथों को घिसने लगी।
मैं अपने दोनों पैरों को मां के दोनों पैरों के ऊपर ले जा कर उन्हें भी घिसने लगा। करीब 5 मिनट तक हम चुप चाप यूंही एक दूसरे को घिसते रहे और नीचे लोवर में मेरा लोढ़ा ये सब में धीरे धीरे सख्त होता जा रहा था।

लोढ़ा मेरा ही था और वो सख्त होता जा रहा था, इस बात की तरफ मेरा ध्यान तब गया जब मां ने धीरे से मेरे कान के पास कहा - अब गरम गर्म लग रहा है।

मैं ये ये सुन कर जैसे होश में आया और लोडे को खड़ा महसूस कर अपनी थूक को अंदर निगल कर मां से बोला - क्या मां?

मां - तेरा हाथ और पैर।
मैं - अच्छा, अच्छा।

मैं और मां अब हाथों को हाथों से और पैरों को पैरों से जोड़ एक दूसरे को जिस्मानी गर्मी देते हुए वक्त गुजार रहे थे और ज्यादा एक दूसरे से कुछ भी नहीं बोल रहे थे।








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कमेंट्स करके जरुर बताना के इस अपडेट ने चूत की रानियों की चूत में थोड़ी उंगलियां घूमवाई या नहीं और लंड के राजाओं ने उसे सहलाया या नहीं?
mast writting
 
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🌺 Part - 5 🌺



हम दोनों एक दूसरे के हाथों और पैरों को गर्म करने के बहाने ही सही बस सहलाते जा रहे थे और थोड़ी देर बाद मां ने मेरे कान में कहा - अब ठंडी कम लग रही है मुझे!

मैं - हां मां, मुझे भी।
मां - बस ऐसे ही करते करते रात निकल जाए तो जिंदगी बच जाएगी हम दोनों की ।

मैं - हां मां सही कहा।
मां - अरे इसको भी अभी आना था क्या?
मैं - किसको मां?
मां - पेशाब को।
मैं - अच्छा।

मां - ये ठंडी के मौसम का बस एक यही नुकसान है एकदम से प्रेशर बन जाता है टॉयलेट का।
मैं - हां मां ये तो है, पर हम बाथरूम में ही तो है तो करलो आराम से , परेशानी क्या है इसमें।

मां ये सुनते ही धीरे से मेरे ऊपर से उठने लगी । उन्होंने अपने हाथ मेरी हथेलियों से निकाल कर दोनों साइड ऐसे टिकाए जैसे कोई लण्ड पर राइड करने की पोजिशन में आ रही हो। हाथों को नीचे टिकाते ही एकदम से बोली - उह इतना ठंडा फर्श, तेरे हाथों ने ही बचा रखा था मुझे तो ।

मैं - हां।
मां फिर साइड में खड़ी होकर मुझसे बोली - तेरे सामने पेशाब कैसे करूं मैं चीकू बेटा?
मैं - मैं बाहर तो जा नहीं सकता मां, अब चलो मै दीवार की तरफ देख लेता हूं , आप कर लो।
मां - हां घूम जा बेटा तु।

मैं दीवार की साइड मुड़ा और दीवार पर शीशा देख कर मन ही मन मुस्कुराया। मैं शीशे में टेढ़ी आंखे कर देखने लगा। मां ने सबसे पहले अपने दोनों हाथों को लोवर के दोनों साइड रखा फिर पीछे मूढ कर चेक किया के कहीं मैं देख तो नहीं ना रहा , फिर धीरे से मुस्कुरा कर दूसरी तरफ मुंह कर लोवर को नीचे की और सरकाने लगी।

उफ्फ क्या नजारा था । इतने मस्त एकदम गोरे गोरे मां के चूतड़ वो भी पूरे नंगे आज पहली बार मैं देख रहा था। भले ही शीशे में पर लाजवाब लग रहे थे वो। मां ने नहाने की तयारी की वजह से लोवर के नीचे कोई पैंटी तक नहीं पहनी थी।

मेरी तो रूह जैसे कांप सी गई वो मस्त गांड देखकर। मन तो किया के अभी घूम जाऊं और अपना मुंह उस प्यारी गांड में देकर पागलों की तरह सूंघने लग जाऊं। पर खुद की ठरक पर काबू पाकर मैं मुस्कुराता हुआ शीशे में वो नजारा देख रहा था और नीचे लोवर में अपने लंड को हल्का सा रगड़ सा रहा था।

मेरा लोड़ा तो यूं पूरा खड़ा था पर मैनें उसे इसे लोवर की इलास्टिक के नीचे फसा रखा था के सामने से तंबू ना बने। मां लोवर नीचे सरकते ही बैठ गई और एक सिटी के साथ उन्होंने अपना मूतने का कार्यक्रम शुरू कर दिया। उफ्फ वो सिटी ही ऐसी जान लेवा थी के सोए होए सभी लोडे जगा दे।

करीब 30 सेकंड्स तक ये आवाज सी चली और फिर मां किसी मुर्गी की तरह हल्का सा ऊपर उठी और लोवर के अंदर के हिस्से को अपनी चूत और गांड के निचले हिस्से पर रगड़ने लगी।

शायद वो मूत की लगी छींटो को कोई और कपड़ा ना होने की वजह से अपनी लोवर से ही साफ कर रही थी। साफ कर वो पूरी खड़ी हुई और लोवर ऊपर चढ़ा कर मेरी तरफ घूम कर बोली - हो गया मेरा चिक्कू बेटा, करले इधर अपना चेहरा।

मैं जैसे ही घुमा के मां को फ्रंट से खड़ा देखा वो भी बिना टॉवल के, मतलब मेरी उस सफेद टी शर्ट में जिसमें उनके वो चुचे पूरी तरह से कसे पड़े थे। टी शर्ट के ऊपर से साफ साफ उनके ब्राउन निपल्स चमक से रहे थे।

मां तो ऐसे लग रही थी जैसे काम वासना की कोई मूर्ति हो जो हर मर्द का माल निकलवाने में पूरी तरह से सक्षम है। मस्त चूचों और मोटी गांड , उफ्फ क्या ही तारीफ के पुल बांधू अब उनके।

ये सब के बाद मां बोली - ले हाथ तो धुलवा जरा मेरे चीकू बेटा।
मैनें वो गर्म पानी की बाल्टी जो की अब ठंडी हो गई थी उसमें से एक मग पानी भर मां के हाथ धुलवाए। हाथ धोते ही मां बोली - उह , ये तो ठंडा हुआ पड़ा है इतना।

मैं - कितनी देर तो हो गई मां, ठंडा तो हो गा ही अब तक।
मां - हां, वो भी है, अच्छा तुझे भी पेशाब लगी है क्या?
मैं - नहीं मां
मां - ठीक है फिर अब बैठे?
मैं - हां बैठते है।

मां - चल बैठ जैसे पहले बैठा था, वैसे ही सही लग रहा था ज्यादा ठंडी भी नहीं लग रही थी।

मैं मां के ये कहने पर पहले की तरह उस स्टूल पर बैठ गया और टांगें सीधी कर ली। मां भी धीरे से अपनी एक टांग मेरे ऊपर से उठाकर नीचे रख कर बिल्कुल मेरी गोद में आकर बैठ गई और पैरों में पैर फसाकर बोली - ले अपने हाथ रख मेरे हाथों में थोड़ी गर्माहट मिलेगी।

मैं जैसे ही हाथ ऊपर करके उनके हाथों में देने लगा के हाथ मां के गोडों के ऊपर वाले पट्टों के हिस्से से टकराया तो मैं बोला - मां आपकी टांगें कितनी गर्म है।

मां - हां।
मैं - ऐसा क्यूं?
मां - पता नहीं, शायद यहां मास ज्यादा होता है, इसलिए गर्म लगा होगा।
मैं - हां मां ऐसा ही होगा।
मां - रुक मैं तेरे पट्टों पर हाथ रख कर देखती हु।
मैं - हां देखो।

मां ने अपने हाथ नीचे सरकाए और मेरे पट्टों के साइड वाले हिस्से पर हाथ लगाकर बोली - हां तेरा भी ये ज्यादा मास वाला हिस्सा गर्म है।
मैं - मां मै यहीं हाथ रख लूं क्या थोड़ी देर?
मां - अरे हां, ये भी कोई पूछने की बात है, गर्माहट मिल रही है तो रख ले थोड़ी देर।

फिर मैनें अपने दोनों हाथ मां के दोनों साइड से उनके सॉफ्ट से पट्टों पर रखे और हल्का हल्का घिसने सा लगा गर्मी लेने के लिए। इधर मां भी अपने हाथ मेरे दोनों पट्टों पर रख हल्के हल्के से घिसने लगी और गर्माहट लेनें लगी।





🤞
कैसा लगा अपडेट?
😉
Part - 6 & Part - 7

🌺आज रात में🌺
amazing ............
 
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🌺 Part - 6 🌺





थोड़ी देर ऐसे ही घिसने के बाद हम दोनों को गर्मी सी मिलने लगी और अब हम शांति से एक दूसरे के शरीर को घिस घिस कर गर्मी ले रहे थे और ठंड से बच रहे थे।

अब हम दोनों ही शायद गर्म हो रहे थे के इतने में मां बोल पड़ी - चिक्कू बेटा ये तेरे लोवर के ऊपर से ना अच्छे से घिसा नहीं जा रहा।

मैं - हां मां, मैं भी ये बात आपको बोलने ही वाला था, आपने तो मेरे दिल की बात पढ़ ली।
मां - अब मां हूं अपने बेटे की तो दिल की बात तो पढ़ ही लूंगी ना।
मैं - सही कहा मां।

फिर मैं ये सोचने लगा के शायद मां अब लोवर को नीचे सरकाने के लिए कहेगी पर मां ने वो नहीं किया बल्कि उन्होंने मेरे लोवर के दोनों साइड में से अंदर की ओर अपने हाथ सरकाए और मेरे पट्टों तक हाथ पहुंचा कर घिसते घिसते बोली - अब सही है।

मैं चुप चाप मां के गर्म हाथों को अपने पट्टों पर महसूस कर ही था था के मां ने दोनों हाथ बाहर निकाल लिए, इस से पहले के मैं मां से कुछ पूछता के क्या हुआ, उन्होंने अपने दोनों हाथों से बिना कुछ कहे मेरे दोनों हाथों को पकड़ा और अपने लोवर के दोनों। साइड से अंदर सरकाकर पट्टों तक पहुंचकर हल्का सा 2- 3 बार घिसा और फिर अपने हाथ बाहर निकाल मेरे लोवर में डाल सेम चीज को दोहराने लगी।

अब मां मेरी टांगों पर लोअर के अंदर से हाथ रगड़ रही थी और इधर मैं उनकी टांगों पर अपने हाथ रगड़ रहा था और चुपचाप बस हम इस ठंडी रात को दिमाग पर हिट करवाकर बिना कुछ कहे एक दूसरे से संतुष्ट हो रहे थे।

थोड़ी देर ऐसे ही सहलाने के बाद मैं मन में सोचना लगा के मां ने एक कदम खुद से उठाया और हम दोनों आनंद लेने लगे, क्यों ना अब थोड़ा और आगे बढ़ा जाए और कुछ और मजे लिए जाए। 2 मिनट तक मैं यूंही सोचता रहा और मां की टांगों को रगड़ता रहा और एक दम दिमाग के एक आइडिया हिट किया तो मैं मां से बोला - मां?

मां - हां मेरे बच्चे?
मैं - मां मेरे हाथों में अभी भी ठंडी लग रही है बहुत।
मां - ओह अच्छा, तो थोड़ा और अंदर डाल कर रगड़ बेटा, फिर नहीं लगेगी।

मैं - मां अगर और आगे डालूंगा हाथ तो हाथ आपके घुटनों पर लगेंगे पर वहां तो इतना मास है ही नहीं के मुझे गर्माहट मिले।
मां - तो फिर अब?
मैं - मां, एक जगह है उस से शायद मेरे हाथों को थोड़ी और गर्माहट मिले।
मां - वो कौनसी बेटा?

मैनें अपने दोनों हाथ उनके दोनों पट्टों से हल्का ऊपर की और और उनकी गांड के साइड में होल्ड कर बोला - यहां पर मां, यहां आपके शरीर का सबसे ज्यादा मास है।

मां भी मूड में आकर एकदम ही बोली - तो रख ले हाथ यहां, बस तु खुदको गर्म रख मेरे बच्चे, हमे बस जिंदा रहकर किसी न किसी तरह ये रात गुजारनी है।

मैंने भी ये सुनते ही हाथ साइड से नीचे सरका लिए और उनकी गांड के नीचे अपनी उंगलियां फेरने लगा। अब मां और मेरी गोद के बीच मेरे हाथ घूम रहे थे, या ये कहो को एक तरह से मां मेरे हाथों पर बैठी थी और अपनी मोटी मस्त उस गांड से मेरे हाथों को सेक रही थी।

मैं धीरे धीरे हाथ आगे पीछे कर उनके दोनों चूतड़ों पर रगड़ रहा था और साथ में अपने होंठ चबा रहा था मस्ती में आकर। कुछ मिनटों तक तो ये चलता रहा फिर मेरे मां के मन में क्या ही आया के वो एकदम पीछे को सरकी जिस से मेरा खड़ा लोड़ा जो अब तक मेरे लोवर की इलास्टिक में कैद था वो सीधा मां की कमर पर लग झटके से खाने लगा।

मैं भी इस से और जोश में आकर एक हाथ की उंगली को उनकी गांड की दरार में ले गया और आगे पीछे जैसे ही किया के मां के मुंह से एक सी की लंबी सी आवाज निकली और हम दोनों एक दूसरे से कुछ नहीं बोले बस अब बारी शुरू हुई थी उंगली के खेल दिखाने की।

मैनें उंगली को गांड की दरार में कई बार आगे पीछे किया तो वो जैसे गीली ठंड में ही गीली सी हो गई हो ऐसा मुझे एहसास हुआ तो मैनें एक हाथ सरकाते हुए बाहर निकाला और उस मां से नजर बचा कर उस ऊंगली को अपने मुंह में डाल चाटने सा लगा के जैसे ही मैनें उंगली अपने मुंह से बाहर निकाली एक पुच्च की आवाज सी आई जिसपर मां पीछे हल्का सा मुड़ी तो मेरा होंठो पर जैसे पाउट बना होता है उस पोजिशन को देख आगे को चेहरा कर हल्का सा हसी।

शायद वो भी समझ गई थी के मैनें अपनी उंगली को उनकी गांड से निकाल कर अपने मुंह में डाला है जिसकी वजह से मेरे होंठ इस पोजीशन में उन्होंने देखे। उनको मुस्कुराता देख मैं भी मन ही मन मुस्कुराया पर हमने एक दूजे से एक लफ्ज़ तक नहीं कहा।

मैनें उंगली फिर से मुंह में डाली और निकाल कर सीधा नीचे घुसाते हुए मां की गांड की दरार में ले गया और आगे करते करते शायद उनके छेद के द्वार पर जाके मेरी उंगली रुकी।

आंखे बंद करकर मैनें उंगली को पीछे की और किया और सीधा फिर उस गद्देदार छेद में घुसाया ही था के मां के मुंह आह की आवाज आई और मैं उंगली को छेद में ही रोक आंखे खोल बैठा तो मां ने मेरे पट्टों को जोर जोर से रगड़ना शुरू कर दिया था। शायद वो इशारा कर रही थी के इस उंगली को बाहर निकाल ले।

मैनें जैसे ही उंगली छेद से बाहर निकाली के मां की रगड़ की स्पीड कम हो गई और वो जैसे शांत सी होकर बड़े प्यार से मेरी टांगों को सहलाए जा रही थी और अपनी कमर पर मेरे लंड को रगड़ रही थी।

कुछ देर तक हमारा ये सिलिसला यूंही चलता रहा बस फर्क इतना था के अब मैं उनकी गांड के छेद में उंगली नहीं दे रहा था पर दरार में जरूर फेर रहा था।





🌺
कैसा लगा ये अपडेट दोस्तों?​
waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaooooooooooooooooooo
 
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🌺 Part - 7 🌺




हमारी इसी चुप रहने की कशमकश का मां ने आखिरकार अंत करना चाहा और बोली - चीकू बेटा?

मैं - जी मां?
मां - मुझे तो नींद आने लगी है बेटा, ऐसे बैठे बैठे तो थक गई मैं।
मैं - आप ऐसे ही मेरे ऊपर सो जाओ मां।
मां - नहीं नहीं, ऐसे तुझे और परेशानी होगी बेटा।
मैं - फिर नीचे जमीन पर कैसे सोओगी मां?
मां - अम्मम, कोशिश करते हैं बेटा, शायद सोया ही जाए।
मैं - ठीक है मां।

मैनें मां को ये बोलकर अपने दोनों हाथ उनके पजामे से बाहर निकाले और मां ने भी अपने हाथ मेरे पजामे से बाहर निकाले और दोनों टांगों को साइड में रख खड़ी हो गई और मेरे लोवर की और देखने लगीं। लोवर की और देखकर वो हल्का सा मुस्कुराई और इतने में मैं भी खड़ा हो गया।

फिर मां जैसे ही फर्श पर नीचे लेटी के एकदम से उठ खड़ी होई और बोली - ये तो ठंडा लग रहा है बहुत।

मैं - टाइल्स हैं मां, ठंडा तो लगेगा ही।
मां - अब कैसे सोएं फिर?
मैं - शायद टेबल पर बैठ कर ही सोना पड़ेगा हमे मां।
मां - वैसे तो नींद ही नहीं आएगी।
मैं - तो फिर आप ही बताओ क्या करे ।
मां - नीचे कोई कपड़ा बिछा कर सोएं तो शायद उतना ठंडा ना लगे फर्श।

मैं - हां , पर कपड़ा कहां है अब हमारे पास?
मां - है तो पर.....
मैं - पर क्या मां?
मां - देख चीकू बेटा, जब तु छोटा था ना तो अक्सर मैं तुझे अपने साथ ही बाथरूम में नहला लिया करती थी, और अभी भी तु मेरे लिए मेरा छोटा बच्चा ही है।

मैं - मतलब?
मां - मतलब ये के क्यूं ना हम दोनों अपने कपड़े उतार कर नीचे बिछा ले और फिर लेट जाएं उन पर।
मैं थोड़ा हैरान सा होकर - मतलब न न नंगे?

मां - हां , पर अब मजबूरी है तो, वैसे भी तु मेरा बच्चा ही है और मैनें तू तुझे बचपन से कितनी दफा नंगा ही देखा है।
मैं - पर मैनें तो आपको नहीं देखा ना?
मां - चल चुप कर बड़ा आया नहीं देखा ना का बच्चा, तुझे याद भी है कुछ बचपन का या सब भूल गया?
मैं - क्या मां?

मां - बचपन में तु मेरे साथ अक्सर नंगा होकर ही नहाया करता था और जब कोई इंसान नहाता है तो कपड़े थोड़ी ना डालता है तो मैं भी तो नंगी होकर ही नहाती थी, और तूने मुझे हर दफा ऐसे ही देखा है तब से और अब तु बोल रहा है के मैनें तो नहीं देखा ना।

मैंने भी फिर मन में सोचा के क्यूं अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहा हूं मैं, जब मां सामने से नंगे होना का न्योता दे रही है तो चुप चाप हो जा ना, क्यूं ये शानदार मौका खोना चाहता है इतनी बातें करके । फिर मैनें फट से मां के बिना कुछ कहे पहले टॉवल उतारा फिर लोवर उतार सिर्फ कच्छे में खड़ा हो गया और मां के हाथ में लोवर थमा कर बोला - लो मेरी प्यारी मां, बिछाओ इसे और बताओ कैसे सोना है।

मां भी खुश सी होकर बोली - अब एकदम से राजी हो गया, कितना परेशान करता है तु मुझे। पागल कहीं का।

मां ने फिर नीचे बैठ कर मेरा लोवर नीचे बिछा दिया और खुद खड़ी होकर मेरे सामने ही अपना लोवर उतारने लगी बिना किसी झिझक के, पहले तो पेशाब करते वक्त भी मुझे दीवार की तरफ देखने को बोली थी पर अब खुद ही।

शायद ये सब मां नहीं मां की चूत की गर्मी उस से ये सब करवा रही थी । फिर जैसे ही मां का लोवर नीचे सरका मैं हैरान सा आंखे फाड़ कर मां की चूत देखने लगा। वो चूत दरअसल थी ही इतनी प्यारी, जैसे कोई पोर्नस्टार की हो।

हल्की हल्की ब्राउन कलर की थोड़ी सी बर्गर बन की तरह फूली हुई , जिसपर एक भी बाल नहीं था। उफ्फ क्या चूत थी मां की, कमाल की एकदम। इस उम्र में भी मां चूत के बाल पूरे साफ रखती थी ये मुझे उसी रात पता चला।

अब ये चूत पर एक भी बाल न होने की वजह को जानने की इच्छा को साइड में रख अभी मैं बस उस चूत की खुशबू कैसी होगी ये सोच पर फोकस कर रहा था के मां एकदम से घूम गई और मेरी तरफ अपनी को मस्त सी गांड कर झुक गई और लोअर को नीचे बिछाने लगी। उफ्फ क्या नजारा था , मां के झुकते ही उनकी गांड के नीचे से चूत की उन फांकों का थोड़ा सा ही सही पर जो व्यू था लाजवाब था।

फिर लोवर के नीचे बिछते ही मां नीचे लेट गई और मुझे बोली - आजा चीकू बेटा, अब थोड़ा ठीक लग रहा है।

मैं जैसे ही नीचे लेटने लगा के मां ने मेरी ओर अपनी गांड कर ली और बोली - मेरे बच्चे तुझे ठंड ज्यादा ना लगे इसलिए तु जैसे पहले हाथ रख कर बैठा था न वैसे ही अब लेट कर हाथ रख लेना।

मैं खुशी से पागल होकर - ठीक है मां।
मैं भी मां की गांड के पीछे वैसे ही पोजिशन में लेट गया और अपने दोनों हाथों को उनकी गांड पर टेक दिया। अब बस मेरा अंडरवियर ही था जो गांड और लंड के मिलन के बीच आ रहा था ।

मां बड़ी ही चालाकी से बातों का बहाना बना नंगी मेरे साथ लेट गई थी वो भी अपनी गांड को मेरे से चिपका कर। उफ्फ क्या सीन था ये तो......बस





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2 Part कल को.
🤞अभी तक स्टोरी अच्छी लगी ना सबको ?🤞
uffffffffffffffff kya seen hai
 
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🌺 Part - 8 🌺





ठंडे फर्श पर लोवर बिछा हम दोनों मां बेटे नंगे लेते थे। मेरा हाथ धीरे धीरे उनकी गांड को मसल रहा था और वो चुपचाप दूसरी तरफ मुंह कर लेती थी। शायद अपने ही बेटे के साथ बिल्कुल नंगी होकर लेटने से वो अंदर ही अंदर शर्म से पानी पानी हो रही थी पर बाहर से तो ऐसे दिखा रही थी के मैं जैसे कोई छोटा बच्चा हूं और वो मेरे साथ अपनी नंगी गांड टीका कर अगर लेटेगी भी तो भी उसे कोई फरक नहीं पड़ेगा।

मां को उस सॉफ्ट सी गांड को हल्के हल्के हाथों से मसल मसल कर मेरा तो लण्ड एकदम सख्त होकर अभी भी अंडरवियर की इलास्टिक में ही फसा हुआ था जिसे मैं चाहता तो बाहर निकाल सकता था पर मैं एकदम से ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहता था के धीरे धीरे बनती बात पर कहीं पानी ना बिखर जाए।

वैसे मजा तो मुझे इस सब में ही बहुत आ रहा था। मन तो ये कर रहा था के ये रात बस खत्म ही ना हो और हम मां बेटे यूंही नंगे लेटे रहें एक दूसरे से लग कर।

करीब 10 मिनट हो गए थे हमें यूंही चुप चाप लेटे हुए के मां बोल पड़ी - सुन चीकू बेटा?
मैं - हां मां?
मां - ये तेरा अंडरवियर का इलास्टिक मेरी कमर पर रगड़ सा रहा है और चुभ रहा है मुझे।
मैं - ओह अच्छा।

दरअसल मां के दोनों चूतड़ों पर टिके मेरे दोनों हाथों के बीच के गैप में मेरा अंडरवेयर मां को ना लगता पर लोड़ा खड़े होने की वजह से हाथों के बराबर होकर वो अंडरवेयर की इलास्टिक के उपर के हिस्से पर लगे दानेदार वार्डिंग वाले ब्रांडिंग स्टिकर के घिसने से शायद मां को एक अजीब सी चुभन सी महसूस हो रही थी जिसकी वजह से मां ने मुझे ऐसा कहा।

मां - हां वो चुभ सा रहा है बार बार मुझे जैसे ही तु अपने हाथ मसलता है मेरे पीछे।
मैं - तो फिर क्या हाथ रहने दूं मैं मां?
मां - नहीं नहीं, मेरा मतलब वो नहीं, मैं तो ये कह रही थी के तु अपना ये अंडरवेयर उतार क्यूं नहीं लेता।

मैं - पर मां.... बिल्कुल नंगा होकर फिर मैं........
मां - क्या ....मैं भी तो देख बिल्कुल नंगी हूं और तु तो ऐसे शर्मा रहा है जैसे मां नहीं कोई और अनजान औरत हो ।
मैं - हां ठीक है।

मैनें जैसे ही ये बोला के मां ने अपना एक हाथ पीछे कर मेरा अंडरवियर का इलास्टिक पकड़ लिया और बोली - चल हल्का सा ऊपर उठ।
मैंने हल्का सा टेढ़े लेटे ही खुदको जमीन से ऊपर की और उठाया के मां ने फट से मेरे घुटनों पर मेरा अंडरवियर सरका दिया। घुटनों तक सरका कर फिर बोली - चल उतार दे अब इसे।

मैनें जैसे ही हाथ टांगों तक ले जाने के किए हल्का सा नीचे की और झुका के मेरी चेस्ट मां की कमर पर पूरी टच सी हुई और उनकी गर्दन से एक महक सी मेरे रोम रोम में पड़ी।

वो बड़ी मादक महक थी मां की गर्दन से आ रही थी जो। मेरे हल्का सा झुकने से मेरे चूतड़ थोड़े पीछे को हो गए तो लोड़ा मां को लगा नहीं था अभी मेरा। पर जैसे ही अंडरवेयर उतार मैं आगे हो फिर से मां से गांड चिपकाने को हुआ के मेरा लोड़ा अब बिल्कुल सीधा था , उसपर कोई बंदिश नहीं थी किसी भी इलास्टिक की।

कोई भी बंदिश ना होने के कारण मेरे खड़े लंड का टोपा सीधा मां की गांड की दरार के उपर वाले हिस्से पर जा कर लगा। एकदम से ऐसा होने से मैं भी सिसक सा गया और उधर मां भी सिसक गई।
पर हम दोनों चुप रहे और मेरे हाथ फिर से मां की गांड को हल्के हल्के से मसलने लगे।

अब हम दोनों पूरी तरह से नंगे थे और मैं गांड पर हाथ रख सहलाता हुआ लण्ड के टोपे को उनकी गांड के उपर लगाए तेज सी सांसे ले रहा था के मां के कानों में मेरी उन सांसों की आवाज जैसे ही गई वो बोली - क्या हुआ चीकू बेटा, ठंडी ज्यादा लग रही है क्या, मेरे बच्चे को?
मैं - हां मां।

मां - मेरे बच्चे अच्छे से चिपक कर लेट ना, फिर नहीं लगेगी।
मां ने ऐसा बोलते ही खुदको थोड़ा पीछे की और किया और अपनी कमर और मेरी चेस्ट बिल्कुल चिपका ली और अपनी गांड को हल्का सा और पीछे की और सरका कर मेरे लंड को पूरी अपनी दरार से होता हुआ टांगों के बीच समा कर एक मादक आवाज में बोली - अब अब थोड़ी कम लग रही है ना मेरे बच्चे।

मैं भी मस्त सा होकर उनकी गर्दन को फिर से एक सांस सी भरकर आंखे बंद कर सिसकता हुआ बोला - हां मेरी प्यारी मां।
मां की गांड थी ही इतनी मोटी के उनके दोनों चूतड़ों की फांकों के बीच से होता हुआ मेरा सख्त लंड अपना टोपा नीचे को करके छुपकर जैसे बैठा था। अब टोपा जैसे ही गांड की दरार से होता हुआ गया के उसने अपना प्री कम छोड़ना शुरू कर दिया और मां की टांगों के बीच में कुछ बूंदे गिरा दी। इसपर मां ने मुझे कुछ नहीं कहा।

अब हम ऐसे ही लेटे रहे और फिर मैनें अपने दोनों हाथ उनकी गांड से हटा कर ऊपर की और निकाल लिए और थोड़ा आगे को खिसक कर लोड़ा अच्छे से उनकी टांगों में फसा अपनी साइड की झांटों को उनकी गांड पर रगड़ा और पूरी तरह से चिपक गया। मेरे चिपकते ही मां ने अपना एक हाथ पीछे की और किया और मेरे चूतड़ पर रख मुझे खुदसे और चिपकाने लगी।

हमें ठंडी का तो अब जैसे कोई नामों निशान ही नहीं लग रहा था और दोनों जिस्म की आग में अब तप से रहे थे। ऐसे ही लेटे लेते मैनें हल्का सा खुदको घिसना शुरू कर दिया जिस से मेरा लंड भी मां की टांगों के बीच घिसना शुरू हो गया और मां की एकदम से आह निकल गई।

आह निकलते ही मैं थोड़ा सा रुका और अपने दोनों पैरों को उनके पैरों में फसा जैसे बड़े प्यार से हल्के हल्के झटके देने लगा और वो भी आगे को हल्का हल्का सा झटका ले हिलने लगी। घिसने के बहाने से अब मैं धीरे धीरे मां को झटके देता जा रहा था और मां चुपचाप बस हल्की सी आहें भरती हुई लेटी रही।

झटके देते देते लोड़ा मां की चूत के निचले वाले भाग पर जाकर लगने लगा और प्रीकम और शायद चूत के रस ने इन झटको से एक आवाज निकालनी शुरू कर दी। ठंडी रात में बाहर एक दम शांति थी और अंदर हम दोनों एक दूसरे से कुछ नहीं बोल रहे थे तो गीले लण्ड के टोपे और भीगी चूत के भाग के मिलन से एक पच्च पच्च की आवाज सी हमारे कानों में पड़ रही थी।

चाहता तो मैं उसी वक्त मां की चूत में लंड सेट करके चुदाई का कार्यक्रम आरम्भ कर देता पर जो मजा इस सब में आ रहा था वो अलग ही था और मैं इसी में खुश होकर धीरे धीरे मजे ले रहा था और मां को भी धीरे धीरे मजे लेने में शायद आनंद आ रहा था। ना वो एकदम से चुदाई चाह रही थी और ना ही मैं एकदम से बस चुदाई तक पहुंचना चाहता था।

हम चुप रहकर ही फोरप्ले कर मजे लूट रहे थे इस से बड़ी बात और क्या ही हो सकती है।





🌺🤞 Kissing & Boobs Sucking 🤞🌺
✈️ In Next Part ✈️
mast hot jabardast
 
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🌺 Part - 9 🌺




अब बस हम दोनों के घिसने और पच्च पच्च की आवाज बाथरूम में हल्की सी गूंज ही रही थी के मैं इतना ज्यादा एक्साइटेड हो गया के मुझसे कंट्रोल नहीं हुआ और मेरा माल मां की टांगों के बीच ही छूट गया।

माल छूटते ही मैं जैसे अचानक से रुक गया और गहरी सांसे भरने लगा। करीब 1-2 मिनट तक सब बिल्कुल शांत हो गया और फिर मां ने लेटे लेटे ही अपना हाथ मेरे चूतड़ों से हटा मेरे बालों में रख सहलाने सी लगी।

वो ऐसे सहला रही थी मेरे बालों को के जैसे कह रही हो ' कोई बात नहीं बेटा, इतनी एक्साइटमेंट में छूट ही जाता है '। वो मेरे बालों को लगातार सहलाती रही और मेरे लंड से माल की आखरी बूंद तक उनकी टांगों के बीच या फिर कहूं उनकी चूत के नीचे छूटती चली गई और मेरे तेज सांसे भी अब थमती चली गई।

सांसे थमते थमते मेरा लंड भी अपना बड़ा आकार खो बैठा और छोटा सा होकर वो गरम गांड पर सो गया। करीब 10 मिनट हम यूंही पड़े रहे और ना मैनें नीचे हाथ डाल कर अपने माल को साफ करने की कोशिश की ना ही मां ने कुछ किया।

माल छूटने पर मेरे मन में एक पल के लिए ये विचार जरूर आया था के ये सब मैनें क्या कर दिया। अपनी ही मां के साथ नंगा होकर माल छोड़ दिया। पर जैसे जैसे सांसे थमी थी और मां के हाथ मुझे सहलाने लगे थे के मेरे मन से ये विचार भी निकल गए और मैं यूंही चुप चाप पड़ा रहा।

करीब 10 मिनट बाद मां बोली - चीकू बेटा?
मैं - जी मां?
मां - तुझे भूख तो नहीं लगी ना बेटे।
मैं - लगी तो है मां पर अब क्या ही कर सकते हैं।
मां - हां मुझे लगा ही था के तुझे भूख लगी होगी, तूने कल दोपहर से ही तो कुछ नहीं खाया था, मैं तो फिर भी तेरे पापा के लिए पैक करते वक्त 2 रोटी खा बैठी थी।

मैं - हां मां।
मां - यहां बंद ना होते तो तेरे लिए खाना और दूध गर्म हो ही जाता और अब तक तो हम खा कर सो भी चुके होते।
मैं - हां मां , सही कहा, खैर अब मजबूरी है क्या करें यहां कुछ खाने का है तो नहीं अब।मां - हां कुछ खाने का तो नहीं है, पर शायद....
मैं - पर शायद क्या मां?

मां - पर शायद पीने का जुगाड हो ही जाए।
मैं - क्या मां?
मां - गर्म दूध ना सही पर दूध तो शायद मिल ही सकता है तेरे लिए।
मैं - वो कहां से मां?
मां - जहां से तु बचपन में पिता था.

मां ने सीधा सीधा मुझे अपने चूचों को चूसने का न्योता दे दिया था। मुझे नहीं मालूम था के मेरी मां इतनी नोटी निकलेगी और बहाने कर कर वो सब कर जाएगी जिसकी कोई सोच भी नहीं सकता था।
पहले गांड पर हाथ फेरना, फिर नंगे होकर साथ लेटना, और तो और गांड को घिसना, और अब चुचे चुदवाना। वाह मां वाह, आप तो किसी लॉटरी की तरह निकली हो मेरी जिंदगी में।

मैं - बचपन में मतलब आपके वहां से.....क्या मां वहीं से।
मां - हां वहीं से, इसमें बुराई ही क्या है भला, मेरा बच्चा ही तो है तु, बचपन में इतना पिलाया है तो अब मजबूरी में थोड़ा सा पीला दूंगी तो क्या ही हो जाएगा।

मैं - हां पर, क्या अब भी वहां से दूध आता होगा?
मां - उम्मम, शायद, वो तो चैक करके पता चलेगा अब।
मैं - हां।

मेरी हां पर मां मेरी ओर घूम गई और अपनी टी शर्ट उतारने लगी। टी शर्ट उतरते वक्त मैनें नीचे देखा तो उनकी चूत के पास मेरा इतना सारा माल लगा था और उनकी मोटी मोटी टांगों से कुछ चिपचिपी बूंदे अभी भी नीचे टपक रही थी। शायद मेरे माल में मां की चूत का रस भी निकल कर मिल गया था जो इतना सारा उनकी टांगों के बीच में फैल गया था।

मां ने टी शर्ट उतारी और इतने मोटे चूचों को देख मैं बोला - मां इनमें तो बहुत सारा दूध होगा शायद।
मां हंसी और होली - हो सकता है।
मैं - हो सकता नहीं होगा ही।
मां - हां अब बाते छोड़ और पी ले अच्छे बच्चे की तरह।

अब मां और मेरी टांगें आपस में जुड़ गई और मैं किसी बच्चे की तरह मां के एक चुचे को हाथ में पकड़ मुंह खोल रुक गया के मां हंसी और बोली - क्या हुआ?
मैं - इतने सॉफ्ट हैं ये मां।
मां - हां तो ऐसे ही होते हैं ये।
मैं - अच्छे हैं मां।

मां - अब पिएगा भी या बस यूंही पकड़ कर देखता रहेगा।
मैनें अपना मुंह मां के निपल के पास ले जाकर उसे हल्का सा होंठों पर लगाया ही था के मेरे सोए हुए लण्ङ ने झटके लेने शुरू कर दिए और मैनें जब उपर देखा तो मां आंखे बंद कर अपने होंठों को चबा रही थी।

शायद वो भी एक अरसे के बाद अपने चुचे किसी को चुसवा रही थी।

इधर मैं मुंह में मां के एक चुचे को भर चूसने लगा ही था के लण्ङ फिर से पूरी हरकत में आ गया और अब वो सीधा सीधा मां की चूत पर जाकर बैठ गया।

मां ने मेरे बालों को सहलाना शुरू कर दिया और मैं उनका एक चुचा चूसता चूसता बोला - मां इनमें तो दूध ही नहीं आ रहा।
मां सिसकती भरी आवाज में बोली - चूस तो सही बेटा अच्छे से, आएगा दूध भी।

मैनें चूसना जारी रखा और नीचे लण्ङ मां की चूत पर बैठा खुद को गिला महसूस करने लगा, एक तो मां की टांगें पहले से ही मेरे माल से चिपचिपी थी और अब शायद मां के चुचे चूसने से उनकी चूत और भी पानी छोड़ रही थी।

मैं अब बड़े प्यार से मां के दोनों चुचे एक एक कर चूस रहा था और गर्म हुए जा रहा था । उधर मां की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। चूचों में दे दूध आए या ना आए पर मैनें चूसना जारी रखा।

मां चली तो मेरी पेट की भूख मिटाने थी पर शायद वो अपनी और मेरी जिस्म की भूख मिटा रही थी। करीब 10 मिनट मैं चुपचाप मां के दोनों चूचों को चूसता रहा और फिर चूचों से जैसे ही मुंह हटाकर उपर हो मां का चेहरा देखा तो मां अपनी टी शर्ट को अपने मुंह में दबाए सिसक रही थी।

मैनें चुचे छोड़ मां से कहा - क्या हुआ मां?
मां ये सुनते ही एक दम टी शर्ट की अपने मुंह से निकाल साइड में फेंक कर बोली - क्या क्या कुछ कुछ ....कुछ नहीं।
मैं - मां एक बात कहूं.
मां - हां बोल ना बेटा।

मैं - मां आप मेरी भूख की इतनी चिंता कर रही हो, मुझे भी आपकी भूख की चिंता होने लगी है।
मां - हां पर मैनें शाम में खाया था बेटा।
मैं - हां पर उसको भी तो कितना टाइम हो गया ना।
मां - हां हो तो गया।
मैं - तो आप भी थोड़ा दूध पी लो ना।

मां हंसी और बोली - अरे मैं कैसे पियूंगी अपना ही दूध, मेरा मुंह थोड़ी ना जाएगा वहां तक, तेरा अगर दूध लगा होता तो जरूर फटा फट पी जाती मैं।

इस पर हम दोनों हल्का सा हंसे और मैं मां से बोला - आप अपना खुद नहीं पी सकती पर मैं तो आपको दूध निकाल कर पिला सकता हूं ना।
मां - वो कैसे भला?

मैं - मैं थोड़ा सा दूध चूसूंगा फिर आपके मुंह में डाल दूंगा।
मां हंसते हुए बोली - कैसे डालेगा, कोई चम्मच वगैरा थोड़ी है यहां पर।
मैं - अरे मां, मैं अपने होंठों आपके होंठों पर लगा कर दूध अंदर डाल दूंगा ना।

मां इसपर हल्की सी मुस्कुराई और मादक आवाज में बोली - अच्छा जी, मेरा बच्चा तो बहुत होशियार हो गया है।
मैं - आखिर बच्चा किसका हूं मां।
मां ने मेरा मुंह अपने चुचे पर लगाया और बोली - सिर्फ मेरा... चल चूस फिर दूध और पिला मुझे भी।

मैनें एक बार चुचा चूसा और अपने होंठों को फिर मां के होंठों पास ले जाकर आंखों से मां को इशारा किया के रख रहा हूं अब और अगले ही पल अपने होंठ मां के होंठों पर रख दिए।
उफ्फ क्या रसीले होठ थे मां के इस उम्र में भी। कमसीन औरतें वाक्य में जन्नत होती हैं सेक्स के लिए।

मैनें होंठ उनके होंठों पर लगा हल्का सा जीभ को उनके मुंह में उतार दिया। जानते हम दोनों थे के ना तो उन चूचों से अब दूध निकल रहा है और ना ही हमे भूख है पेट की जो हम ऐसा कर भुजाने चले है। हम तो बस रात का मजा लूट रहे थे एक दूसरे के जिस्म से।






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इन दो अपडेट्स ने लंड और चूत में से रस तो टपकाया ही होगा

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mast sexy maaaa
 
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मैं जैसे ही उनके चूचों से मुंह हटा ऊपर की ओर उनके होंठों पर जाने लगा था के मेरे लन्ड का टोपा मां की चूत के होंठों में फस गया था और लोड़ा नीचे की ओर बैंड हो गया था पर मैं बिना किसी झिजक के अपने होंठ मां के होंठों के पास ले जाकर उन्हें होंठ रखने का इशारा कर रहा था।
इधर मेरे होंठ मां के होंठों पर रख उन्हें रसपान कर रहे थे उधर नीचे लोड़ा मां की चूत रूपी होंठों पर बैठ उसे माल का रसपान करवा रहा था। क्या नजारा था वो भी।

अब धीरे धीरे मेरे होंठो मां के रसीले होंठों पर कसते जा रहे थे और जीभ उनकी जीभ पर फिरती जा रही थी जो हम दोनो को पागल कर रही थी। ये दूध पीने पिलाने का सही बहाना था जो हम दोनो के होंठों के मिलन का कारण बना था।

लेट कर मां के होंठ चूमता हुआ मैं अपनी आखें बंद कर गया और अपने एक हाथ को उनके चूचों पर ही रख होले होले से दबाने लगा। मां तो बस किसी सेक्स की रानी की तरह अपने हर कामुक अंग को छुआकर मजे ले रही थी। उनके चूचे , होंठ, चूत हर अब मेरे जिस्म की किसी न किसी चीज की पकड़ में था। बस एक उनकी प्यारी गांड़ ही थी जो आजाद थी उस पल मेरी पकड़ से।

हमारी ये सिलसिला करीब 5-6 मिनट तक यूंही चला और हम दोनों आखें बंद कर इस पल का मजा लेते रहे। मेरा एक हाथ अब भी आजाद था तो मैनें धीरे से उस हाथ से भी मां को जकड़ते हुए उसे उनकी बेहद कोमल गांड़ पर टिका फेरने लगा। मेरे गांड़ पर हाथ फेरते फेरते फिर से ये सिलसिला शुरू हुआ और हम दोनो एक लंबे समय तक यूंही चिपके रहे और एक दूजे से गरमाहट लेते रहे।

अब धीरे से उनकी गांड़ पर हाथ फेरते फेरते मैंने एक उंगली उनकी छेद के पास रख सीधा बिना किसी सोच के उतार दी और मां एक दम झटका सा ख़ाके कांपी और अपने होंठ मेरे होंठो पर दबा चूसने लगी के अगले ही पल उनकी चूत ने पानी छोड़ दिया जिसका अंदाजा मुझे मां के एक दम होंठ छोड़ तेज तेज सांसे भरने से हुआ और नीचे मेरा लन्ड जो उनके चूत के होंठों पर बैठा था वो भी भीगने लगा।
मां के एक दम कांपने से मैं जैसे था वैसे ही रुक गया और उनकी चूत को पूरा रस बाहर निकाल देने का इंतजार करने लगा और होले से उनके सर पर हाथ रख फेरने लगा ठीक वैसे ही जैसे मां ने मेरे माल छूटने पर फेरा था।

मां के सांसे धीरे धीरे नॉर्मल हुई पर उन्होंने अपनी आंखो को बंद ही रखा और मेरे हाथ फेरने से जैसे किसी बच्चे की तरह वो शांत सी हुई और अगले ही पल कुछ यूं हुआ के एक दम से मां उठ खड़ी हुई और मुझे भी उठा दिया।
हुआ ये के मां के इस तरह शांत के कुछ ही पल बाद मां की चूत से एक दम तेजी से गर्म मूत की धारा सी बही जिसने मेरे लन्ड पर कब्जा जा बना उसे पूरा भीगा दिया। अचानक से ही इतने प्रेशर से मूत निकलने से मां के मुंह से एक तेज सी आवाज सी आई - आह, उह.....बेटा....
मां को मानो जैसे बीच में ही पेशाब निकल गया। शायद वो काफी लंबे टाइम बाद इस सुख को प्राप्त कर रही थी जो उनकी चूत ने काबू ना किया और माल चोदने के कुछ ही पलों बाद मूत की तेज धारा ने सब कुछ नीचे भीगा के रख दिया।

मां के तेज मूत निकलने से आई आवाज के तुरंत बाद ही मां एक दम उठ खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ मुझे भी उठा लिया और बोली - सॉरी सॉरी बेटा, वो , वो बस एक दम अचानक से आ गया।
मैं मां को अपने सीने में लगा के बोला - अरे कोई बात नहीं मां, ठंडी है हो जाता है कभी कभी।

मां मेरे गले लग कर ही - हां पर ऐसे बीच में नहीं होता ना कभी।
मैं - आपने कोनसा कपड़े पहने हैं मां जो बीच में हो गया हो।
फिर 3-4 मिनट तक मां यूंही मेरे गले लगी रही चुपचाप और अपने मन में कुछ न कुछ सोचती रही। और थोड़ी देर बाद बोली
मां - हां, देख मेरी गलती से तेरी टांगों पर भी सारा पेशाब गिर गया मेरा।
मैं - कोई बात नहीं, मैं धो लेता हूं।
मां - नहीं नहीं बेटा, मेरी वजह से हुआ है ये सब , मैं धो देती हूं।
मां ने फिर साइड राखी बाल्टी में से ठंडा पानी उठाया और मेरे पेट पर जैसे ही डाला के ठंड के मारे मैं सिसकी भर बैठा और मां बोली - ज्यादा ठंडा लग रहा है क्या?
मैं - हां मां।

मेरे ये बोलते ही मां ने अपने हाथ से मेरे पेट पर लगे पानी को पोछा।
मां ने फिर दूसरा डब्बा भरा और हल्का सा झुक कर पेट के ठीक नीचे मेरे खड़े लन्ड पर पानी डाला के मैं फिर से ठंड से सिसका तो मां ने ठीक वही किया जिसका मैनें अंदाजा लगाया था, मां ने अपने हाथ से मेरे लन्ड पर लगे पानी को झाड़ा , उन्होंने लन्ड पर हाथ तो लगाया पर ऐसे नहीं जैसे अच्छे से पकड़ा हो, उन्होंने तो बस साफ करने के नाम मात्र ही हाथ लगाया और फिर नीचे झुक और पानी का डब्बा भर टांगों पर डालने लगी।

फिर वो नीचे बैठ गया और एक हाथ से डब्बे से पानी मेरी टांगो पर डालती तो दूसरे हाथ से टांग को घिस कर साफ करने लगी ठीक वैसे ही जैसे कोई मां अपने छोटे बच्चे को नेहलाते वक्त करती है। टांगे अच्छे से मां साफ कर ही रही थी के मैं अपने टट्टों की तरफ मां को इशारा करते हुए बोला - मां यहां पर चिप चिप सा लग रहा है।
मां ने मुंह ऊपर उठाया और देखा तो मेरे टट्टो पर लगे बाल मां के रस से चिप चिपे हो रखे थे। उन्होंने उसपर पानी डाला और हल्का हल्का सा कर उसे घिसने लगी के मेरी सी की आवाज सी निकली।

मां का शायद अभी कुछ पल पहले ही माल छुट गया था इसलिए वो एकदम शांत सी थी और लन्ड पर हाथ लगाने का मोका मिलने पर भी उन्होंने उसे अच्छे से छुआ नहीं था। शायद वो अभी अपने मन में ये सोच रही थी के चूत से पानी छुड़वा बैठी हूं वो भी अपने ही बेटे से, शायद उन्हें इस बात की गिल्ट फिल हो रही थी। अब मैं उनके मन को तो नहीं पढ़ सकता था बस अंदाजा ही लगा रहा था के शायद ऐसा कुछ हुआ होगा।

मां ने मेरे टट्टे साफ किए और फिर खड़ी होकर बाल्टी में देखा तो सिर्फ थोड़ा सा ही पानी बचा था जिस से उन्हे अभी अपनी पूरी टांगे और चूत को धोना था।
मेरे शरीर को धो कर अब वो मेरे सामने खड़ी हो बाल्टी से एक डब्बा पानी का भर बोली - अब यही आखरी डब्बा बचा है पानी का।
मैं - ये टूंटी तो लगी है मां, इसमें तो है ही टैंकी की इतना सारा पानी।
मां - ये टांकी का पानी आधी रात में इतनी ठंड में पता है कितना ठंडा हो गया होगा।
मैं - हां, वो तो हो गया होगा।

मां - तो फिर, इतने ठंडे पानी को थोड़ी डालूंगी शरीर पर अब।
फिर मैनें बाल्टी में देखा तो पूरी खाली थी बस कुछ ही डब्बा पानी होगा उसमे। मां ने फिर जो डब्बा पकड़ा था पानी का उसे मुझे पकड़ा कर बोली - इसे पकड़िओ, मैं बाल्टी वाला थोड़ा सा भी इसमें डाल देती हूं।
मैनें डब्बा पकड़ा और मां ने बाल्टी उठा कर उसमे से जो भी थोड़ा सा पानी था डिब्बे में डाला और बाल्टी साइड में रख बोली - दे डब्बा, मैं धो लेती हूं।
मां ने डब्बा लिया और शुरुआत की अपने सॉफ्ट सॉफ्ट थोड़े से बाहर की ओर निकलने पेट से। मां ने हल्का सा पानी पेट पर डाला और मसल कर बोली - ये भी इतना ठंडा हुआ पड़ा है।

फिर उन्होंने पेट से नीचे अपनी साफ सुथरी बिना बालों वाली प्यारी सी चूत पर पानी डाला और उसे जैसे ही रगड़ा के अपने होंठ चबा लिए। शायद ऐसा करने से वो फिर से गर्म सी होने लगी। फिर अगले ही पल खुद को शांत सा कर उन्होंने थोड़ा सा टांगो पर पानी डाला और अपने हाथ पीछे गांड़ की ओर ले जाकर उसपर पानी डाल घिसने लगी।
अब पानी खतम हो गया था और मां की टांगे भी लगभग चूत और गांड़ से रिसते पानी से साफ हो ही गई थी।
फिर मां ने मेरी ओर घूम बाल्टी को टैंकी वाली टूंटी के नीचे लगाया और उसे भर कर जैसे ही आगे को झुकी नीचे रखे सर्फ के डब्बे को उठाने को मेरे खड़े लन्ड पर अपनी गांड़ रगड़ दी और कुछ नहीं बोली। ये तो बस गलती से ही हुआ था हमारे बीच बाकी का सब तो हम दोनो की मर्जी से ही हुआ था मानों।

फिर उन्होंने नीचे से हम दोनो के लोअर टी शर्ट और टॉवल उठाए जो मूत से भीग गए थे और हमारे शरीर धोने से उन पर पानी डाल कर वो अब पूरे गीले थे। मां ने उन्हें उठाकर बाल्टी में डाला और थोडा सा सर्फ ऊपर से डाला उन्हे अच्छे से घोल कर बोली - ये ही दो तीन कपड़े थे डालने को अब ये भी भीग गए हैं, अब क्या ही हम डालें और किसपर ही हम सोएं।
मैनें घड़ी देखी तो 4 : 53 हो रखे थे तो मैनें मां को टाइम बताया तो मैं ने कहा - चलो इतना वक्त बीत गया, थोड़ा और सही, 6 बजे के आसपास आंटी उठ जाती है, फिर हम उन्हे बुला लेंगे।
मैं - हां मां।

फिर मैं मन में सोचने लगा के अब सिर्फ एक ही घंटा है और बाद में कभी जिंदगी में ऐसा मोका मिले या ना मिले पता नहीं। और अगर मां यहां से बाहर जाने के बाद बिलकुल नॉर्मल हो गई और फिर ये सब का जिक्र भी ना हुआ तो किस्मत से इतना प्यार पीस चला जाएगा।
कम से कम एक बार तो इस आखरी के एक घंटे में मां की चूत में लन्ड डाल ही दूं किसी न किसी तरह क्योंकि कहते हैं के अगर औरत एक बार अगर आपका लन्ड अंदर ले ले तो चांसेज बढ़ जाते हैं के वो दुबारा से आपको चुदाई का मोका दे, तो अभी इस बनते मौके को हाथ से ना गवा और एक बार तो चुदाई का मजा ले ही ले। बाद में तो फिर खुद ब खुद ही मौके मिल जाएंगे।
मैं फिर ये सोचने लगा के क्या ही तरीका अपनाया जाए के एक बार मां इस लन्ड की सवारी कर ले।





🌺अपडेट देने में थोड़ा लेट जरूर हो गया, पर अब कोशिश रहेगी के रेगुलर अपडेट आएं। और शुक्रिया उनका स्टोरी में बने रहे जो लोग।
अब आप भी गेस कर लो के उस आखरी के एक घंटे में हमारी चुदाई हुई या नहीं और अगर हुई तो क्या ही तरीका अपनाया होगा मैनें या कहूं
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🌺 Part - 11 🌺






मैं अपने ख्यालों में खो कर खड़ा खड़ा सोच ही रहा थे के कैसे मां की चुदाई करूं। उन्हे कैसे अपने लन्ड की सैर करवाऊं के मां बोली - खड़ा खड़ा क्या सोच रहा है अब?
मैं एकदम मां को देख कर - वो वो कुछ नहीं मां।
मां - नींद तो नहीं आई तुझे?
मैं - नहीं मां, आपको आई है क्या?
मां - नहीं ।

मैं - मां देखो ना आंटी को आवाज लगा कर, क्या पता उठ गई हों वो।
मां - इतनी ठंड में कहां सुबह सुबह 5 बजे उठ जाएंगी, 6 बजे उठ जाती हैं, वो भी गाय का दूध लाने जाना होता है इसलिए।

मैं - हां, फिर अभी तो 1 घंटा पड़ा है मां, क्या करे।
मां - इंतजार करते हैं और कर ही क्या सकते हैं। यहां तो नींद आने से रही।
मैं - हां, लगता है कल पूरा दिन हम दोनो सोते ही रहेंगे फिर।
मां - हां , यही होगा।

हम दोनो आमने सामने खड़े होकर थोड़ी देर तक यूंही बाते करते रहे और आपको पता ही होगा सर्दी के दिन छोटे होते हैं और राते कितनी लंबी होती हैं बस एक कारण ये भी था के हमारी रात जो थी वो खतम होने का नाम ही नहीं ले रही थी और मां थी के चूत से पानी निकलने के बाद नॉर्मल हो गई थी जैसे बस अपने बेटे के साथ मजबूरी के कारण फसी है।

इधर मां फिर से घूमी और बाल्टी में से कपड़े निकाल कर उन्हे निचोड़ने लगी और निचोड़ कर जैसे ही उन्हे बाथरूम में गेट के पीछे लगे कुंडे पर टांगने लगी के एक दम से फर्श गीले होने की वजह से उनका पैर फिसल गया और धम से करती हुई वो नीचे को गिरी।
मां के एकदम गिरने से मैनें उन्हे उठाया और उनका तो जैसे रोना सा निकल आया। एकदम फर्श पर गिरना वो भी इतनी ठंड में सही में दर्द देने वाला होता है। और ठंड में अगर हड्डी पर चोट लग भी जाए तो आसानी से ठीक भी नहीं होती।

मैंने मां को उठाया और बोला - ज्यादा लगी क्या?
मां रोते हुए अपनी गांड़ पर इशारा करते हुए बोली - हां, दर्द हो रहा है बहुत।
मैनें मां की गांड़ पर देखा तो लाल हो रखा था मां का एक चूतड, अब वो ठंड की वजह से लाल था या गिरने से उसमे एक दम ही लालगी आ गई थी पता नहीं। पर मैनें देखा तो लाल हुआ पड़ा था और मैनें बिना कुछ कहे वहां पर हल्का सा हाथ रखा और उसे घिसने लगा जैसे हम नॉर्मल जी किसी की चोट पर घिसते हैं के दर्द कम हो जाए ठीक वैसे ही।

मां को रोता दर्द में देख मेरा लन्ड तो खुद ब खुद ही बैठने लगा। मैनें मां की गांड़ पर जहां लगा था वहां थोड़ा और मसला फिर बोला - मां, ज्यादा दर्द है क्या?
मां - हां , अजीब सा ही है, और एक ये ऊपर से इतनी ठंड , कहां ही फस गए हम, बेटा कुछ कर अब और दर्द और ठंड बर्दास्त नहीं हो रही मुझसे।

मैं ऐसी सिट्यूटेशन में क्या ही कर सकता था , एक ही ऑप्शन था दरवाजा तोड़ने का जो की पॉसिबल नहीं था उस वक्त , या दूसरा ऑप्शन था आंटी का इंतजार करना, बस वही कर सकते थे हम। इसलिए मैनें पहले तो मां को एक साइड पर खड़ा किया फिर वाइपर उठा अच्छे से फर्श पर लगाया और जो कपड़े कुंडे में टांगते वक्त मां गिरी थी उन्हे टांग कर स्टूल उठा कर मैनें मां से कहा - मां इधर आओ आप, आप स्टूल पर बैठो, मैं थोड़ी मालिश कर देता हूं आपकी, थोड़ा आराम मिलेगा, फिर कल डॉक्टर को दिखा लेंगे कहीं हड्डी पर ना लग गया हो।

मां भी रोता सा मुंह बनाए ही आई और स्टूल पर बैठने के बाद बोली - हां बेटा कर दे थोड़ा मालिश, दर्द ही इतना हो रहा है।
मैनें स्टूल पर मां के बैठे बैठे ही जैसे ही उनकी गांड़ पर हाथ लगाया के मां एक दम तड़प कर बोली - आह, दर्द हो रहा है।
मैं - अभी तो मैनें दबाया भी नहीं मां।
मां - फिर भी हो रहा है चिक्कू बेटा।
मैं - आप थोड़ा सा टेढ़े हो जाओ मां, ऐसे तो मालिश भी होगी नहीं।
मां - कैसे टेढ़ी हो जाऊं?
मैं - ये स्टूल पर अपना एक कूल्हा टेक के दूसरा जिस पर लगा है उसे थोड़ा ऊपर की ओर कर लो।

मां ने ठीक ऐसा ही किया। उन्होंने लेफ्ट वाले कूल्हे को स्टूल पर टिक्का,लेफ्ट हाथ से जमीन पर सपोर्ट लेकर राइट वाले को हल्का सा हवा में कर मेरी ओर घुमा दिया और पैरों को ठीक सीधा कर एक दूसरे के ऊपर लपेट सा दिया।
मैनें सबसे पहले बाथरूम के कॉर्नर में रखे शैंपू की बॉटल को उठाया और उसे मां के जमीन पर रखे हाथ के नीचे रखते हुए बोला - मां हाथ उठाओ अपना, ये प्लास्टिक की बॉटल रख लो नीचे, ऐसे हाथों से ठंड नहीं लगेगी आपको।
मां - हम्म्म।

अभी मैं बिना किसी ठरक के अच्छे बेटे की तरह बस मां को ठंड से बचाए रखना चाहता था इसलिए ये सब कर रहा था। और मेरा लोड़ा भी इस वक्त बिल्कुल सो ही गया था और मेरी झांटों के बीच ठंड में कहीं खो गया था।
बॉटल रखने के बाद मैनें वो खाली पानी का डिब्बा लिया और उसे मां के दोनो जुड़े पैरों के नीचे रख दिया। अब मां पूरी तरह से जमीन की संपर्क में नहीं थी या ये कहो की वो किसी जा किसी चीज से हवा में थी और थोड़ी बहोत ही सही पर डायरेक्ट फर्श की ठंड से बच रही थी।
मां को प्रोपर सेट करके मैं मां के पीछे की ओर घुटनों के बल बैठ गया और अपने हाथों से उस लाल हुए एक चूतड को घिसने लगा जिस से मां को थोड़ा आराम मिले। मैं अभी मां के चूतड घिसते घिसते यूंही उनकी गर्दन पर सर रख इधर उधर की बाते कर रहा था ताकि उनका ध्यान दर्द की तरफ ना जाए।

इधर जैसे ही मैनें मां की गर्दन से सर उठा कर ये देखने की कोशिश की के कुछ लालगि कम हुई है या नहीं, मैं तो जैसे किसी सपने में खो गया। मैंने वो देखा जा मैनें किसी पोर्न वगैरा में कभी देखा था।
मां की चूत आगे से देखो तो जरूर अलग लगती थी पर जैसे ही मैनें उनकी चूत उनके पीछे से एक चूतड उटे होकर देखी मेरी तो आंखे फटी की फटी रह गई। उफ्फ क्या नजारा था पीछे से देखो तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई ब्राउन कलर का फुला हुआ बन हो, जिस पर हल्के हल्के तिल जैसे दाने दान थे।

मां की चूत देख झांटो में छुपा मेरा लोड़ा फिर से अपनी हरकत में आकर झटके लेने लगा था। मां की मोटी डबल रोटी जैसी चूत गांड़ के नीचे से देख कर मेरे मुंह से थूक टपकने लगी और मेरा हाथ जो उनकी गांड़ को सहला रहा था उसने एक दम से मां की गांड़ को अपनी उंगलियों में जकड़ लिया और उसे तेज से दबाने लगा के मां चीख पड़ी - आह, दर्द हो रही है, क्या कर रहा है चिक्कू बेटा।

मैं - वो वो मां, कुछ नहीं , बस आपको वो थोड़ा आराम दे रहा था मालिश करके।
मां - पहले सही लग रहा था पर जैसे ही तूने वो एक दम से दबाया ना, दर्द ओर बढ़ गया है बेटा।
मैं - सॉरी मां, मैं तो बस आपकी चोट पर मसल रहा था।
मां - रहने दे तु, तेरे ठंडे ठंडे हाथ लग रहे हैं , मसल के भी कोई फायदा नहीं है।
मैं - फिर अब मां?

मां खड़ी हुई और बोली - तु ऐसा कर जैसे पहले बैठा था ना स्टूल पर वैसे बैठ, मैं फिर तेरे ऊपर बैठती हूं, तेरे ठंडे हाथों से नहीं मसलवाना मुझे, और दर्द होता है।
मैं ठीक है बोलकर मां के उठने के बाद स्टूल पर अपनी टांगे खोल बैठ गया और दूसरे ही पल मां भी अपनी एक टांग मेरे दूसरी तरफ रख आकर मेरी गोद में बैठ गई। इधर मां मेरी गोदी में खुद ही बैठ गई और नीचे मेरा लोड़ा चूत के एक नए व्यू को पाकर पूरी हरकत में था के मां जैसे ही बैठी थी लोड़ा सीधा मां के टांगो के बीच एक दम चूत के होंठों को चीरता हुआ पूरा उस पर फेला था , बस अंदर जाने की ही कसर बाकी थी।

मैं चुप चाप ऐसे ही रहा के मां बोली - चीकू बेटा, तेरे हाथ बहुत ठंडे थे इसलिए चोट पर घिसने से और दर्द हो रहा था, तेरी ये जांघ गर्म लग रही है मुझे इसलिए ऐसा कर ऐसे बैठे बैठे ही घिस तो मुझे थोड़ा आराम मिलेगा।
मैं मन ही मन मुस्कुराया और खुद से बोला वाह रे किस्मत, मैं मां को चोदने का आइडिया सोच रहा था और इधर मां खुद ही चोट का बहाना बनाके झटके लेने चली है।
इधर मैं हल्का हल्का घिसने लगा मां को के वो हर मेरी टांगों के घिसने के झटके से आगे पीछे होने लगी और लोड़ा चूत के होंठ की पूरी लंबाई पर ऊपर नीचे घिसने लगा।

मेरा लोड़ा चूत पर घिसते घिसते अपने टोपे पर से पूरी चमड़ी को नीचे कर गया और अब असली मजा सा आने लगा। मां की हल्के हल्के दानेदार से एहसास वाली चूत के ऊपर से ही भले पर मेरा लोड़ा झटके खा रहा था के ऐसे कुछ ही झटको बाद मां बोली - रुक चीकू बेटा।
मैं - क्या हुआ मां?

मां ने अपने हाथ साइड में किया और वही शैंपू की बॉटल उठाई जो थोड़ी देर पहले मैनें मां को अपने हाथ को सपोर्ट देने के लिए दी थी। मां ने शैंपू की बॉटल का ढक्कन खोला और अपनी हथेली में शैंपू डाल हल्का सा खड़ी हुई और शैंपू को अपनी चोट वाली जगह पर लगाती हुई बोली - ये शैंपू ना थोड़ा गरम होता है इसलिए इसे लगा लेती हू थोड़ी लालगी कम हो जाए शायद इसे लगा कर घिसने से।

मां ने शैंपू अपने हाथ से गांड़ पर रगड़ा और फिर एकदम हल्का सा बचा हुआ अपनी चूत पर हाथ उठने के बहाने से घिस दिया। मैं समझ गया के अब ठंड और लन्ड का नशा मां के दिमाग पर हावी हो गया है और अब तो चुदाई हो कर ही रहेगी।

मैं चुप रहा और सोचने लगा के क्या ही फुद्दू बहाना लगाया है मां ने इस बार। पर जो भी है अच्छा है ना मुझे तो चूत चोदने को मिल रही है। भले ये बहाना जैसा भी हो, पर चुदाई के लिए ठीक है।






🌺अगला धमाकेदार अपडेट होगा चुदाई का🌺
mast story h bosss
 
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