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Incest मां और मेरी शुरुआत की वो ठंडी रात

Rahul Chauhan

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🌺 Part - 11 🌺






मैं अपने ख्यालों में खो कर खड़ा खड़ा सोच ही रहा थे के कैसे मां की चुदाई करूं। उन्हे कैसे अपने लन्ड की सैर करवाऊं के मां बोली - खड़ा खड़ा क्या सोच रहा है अब?
मैं एकदम मां को देख कर - वो वो कुछ नहीं मां।
मां - नींद तो नहीं आई तुझे?
मैं - नहीं मां, आपको आई है क्या?
मां - नहीं ।

मैं - मां देखो ना आंटी को आवाज लगा कर, क्या पता उठ गई हों वो।
मां - इतनी ठंड में कहां सुबह सुबह 5 बजे उठ जाएंगी, 6 बजे उठ जाती हैं, वो भी गाय का दूध लाने जाना होता है इसलिए।

मैं - हां, फिर अभी तो 1 घंटा पड़ा है मां, क्या करे।
मां - इंतजार करते हैं और कर ही क्या सकते हैं। यहां तो नींद आने से रही।
मैं - हां, लगता है कल पूरा दिन हम दोनो सोते ही रहेंगे फिर।
मां - हां , यही होगा।

हम दोनो आमने सामने खड़े होकर थोड़ी देर तक यूंही बाते करते रहे और आपको पता ही होगा सर्दी के दिन छोटे होते हैं और राते कितनी लंबी होती हैं बस एक कारण ये भी था के हमारी रात जो थी वो खतम होने का नाम ही नहीं ले रही थी और मां थी के चूत से पानी निकलने के बाद नॉर्मल हो गई थी जैसे बस अपने बेटे के साथ मजबूरी के कारण फसी है।

इधर मां फिर से घूमी और बाल्टी में से कपड़े निकाल कर उन्हे निचोड़ने लगी और निचोड़ कर जैसे ही उन्हे बाथरूम में गेट के पीछे लगे कुंडे पर टांगने लगी के एक दम से फर्श गीले होने की वजह से उनका पैर फिसल गया और धम से करती हुई वो नीचे को गिरी।
मां के एकदम गिरने से मैनें उन्हे उठाया और उनका तो जैसे रोना सा निकल आया। एकदम फर्श पर गिरना वो भी इतनी ठंड में सही में दर्द देने वाला होता है। और ठंड में अगर हड्डी पर चोट लग भी जाए तो आसानी से ठीक भी नहीं होती।

मैंने मां को उठाया और बोला - ज्यादा लगी क्या?
मां रोते हुए अपनी गांड़ पर इशारा करते हुए बोली - हां, दर्द हो रहा है बहुत।
मैनें मां की गांड़ पर देखा तो लाल हो रखा था मां का एक चूतड, अब वो ठंड की वजह से लाल था या गिरने से उसमे एक दम ही लालगी आ गई थी पता नहीं। पर मैनें देखा तो लाल हुआ पड़ा था और मैनें बिना कुछ कहे वहां पर हल्का सा हाथ रखा और उसे घिसने लगा जैसे हम नॉर्मल जी किसी की चोट पर घिसते हैं के दर्द कम हो जाए ठीक वैसे ही।

मां को रोता दर्द में देख मेरा लन्ड तो खुद ब खुद ही बैठने लगा। मैनें मां की गांड़ पर जहां लगा था वहां थोड़ा और मसला फिर बोला - मां, ज्यादा दर्द है क्या?
मां - हां , अजीब सा ही है, और एक ये ऊपर से इतनी ठंड , कहां ही फस गए हम, बेटा कुछ कर अब और दर्द और ठंड बर्दास्त नहीं हो रही मुझसे।

मैं ऐसी सिट्यूटेशन में क्या ही कर सकता था , एक ही ऑप्शन था दरवाजा तोड़ने का जो की पॉसिबल नहीं था उस वक्त , या दूसरा ऑप्शन था आंटी का इंतजार करना, बस वही कर सकते थे हम। इसलिए मैनें पहले तो मां को एक साइड पर खड़ा किया फिर वाइपर उठा अच्छे से फर्श पर लगाया और जो कपड़े कुंडे में टांगते वक्त मां गिरी थी उन्हे टांग कर स्टूल उठा कर मैनें मां से कहा - मां इधर आओ आप, आप स्टूल पर बैठो, मैं थोड़ी मालिश कर देता हूं आपकी, थोड़ा आराम मिलेगा, फिर कल डॉक्टर को दिखा लेंगे कहीं हड्डी पर ना लग गया हो।

मां भी रोता सा मुंह बनाए ही आई और स्टूल पर बैठने के बाद बोली - हां बेटा कर दे थोड़ा मालिश, दर्द ही इतना हो रहा है।
मैनें स्टूल पर मां के बैठे बैठे ही जैसे ही उनकी गांड़ पर हाथ लगाया के मां एक दम तड़प कर बोली - आह, दर्द हो रहा है।
मैं - अभी तो मैनें दबाया भी नहीं मां।
मां - फिर भी हो रहा है चिक्कू बेटा।
मैं - आप थोड़ा सा टेढ़े हो जाओ मां, ऐसे तो मालिश भी होगी नहीं।
मां - कैसे टेढ़ी हो जाऊं?
मैं - ये स्टूल पर अपना एक कूल्हा टेक के दूसरा जिस पर लगा है उसे थोड़ा ऊपर की ओर कर लो।

मां ने ठीक ऐसा ही किया। उन्होंने लेफ्ट वाले कूल्हे को स्टूल पर टिक्का,लेफ्ट हाथ से जमीन पर सपोर्ट लेकर राइट वाले को हल्का सा हवा में कर मेरी ओर घुमा दिया और पैरों को ठीक सीधा कर एक दूसरे के ऊपर लपेट सा दिया।
मैनें सबसे पहले बाथरूम के कॉर्नर में रखे शैंपू की बॉटल को उठाया और उसे मां के जमीन पर रखे हाथ के नीचे रखते हुए बोला - मां हाथ उठाओ अपना, ये प्लास्टिक की बॉटल रख लो नीचे, ऐसे हाथों से ठंड नहीं लगेगी आपको।
मां - हम्म्म।

अभी मैं बिना किसी ठरक के अच्छे बेटे की तरह बस मां को ठंड से बचाए रखना चाहता था इसलिए ये सब कर रहा था। और मेरा लोड़ा भी इस वक्त बिल्कुल सो ही गया था और मेरी झांटों के बीच ठंड में कहीं खो गया था।
बॉटल रखने के बाद मैनें वो खाली पानी का डिब्बा लिया और उसे मां के दोनो जुड़े पैरों के नीचे रख दिया। अब मां पूरी तरह से जमीन की संपर्क में नहीं थी या ये कहो की वो किसी जा किसी चीज से हवा में थी और थोड़ी बहोत ही सही पर डायरेक्ट फर्श की ठंड से बच रही थी।
मां को प्रोपर सेट करके मैं मां के पीछे की ओर घुटनों के बल बैठ गया और अपने हाथों से उस लाल हुए एक चूतड को घिसने लगा जिस से मां को थोड़ा आराम मिले। मैं अभी मां के चूतड घिसते घिसते यूंही उनकी गर्दन पर सर रख इधर उधर की बाते कर रहा था ताकि उनका ध्यान दर्द की तरफ ना जाए।

इधर जैसे ही मैनें मां की गर्दन से सर उठा कर ये देखने की कोशिश की के कुछ लालगि कम हुई है या नहीं, मैं तो जैसे किसी सपने में खो गया। मैंने वो देखा जा मैनें किसी पोर्न वगैरा में कभी देखा था।
मां की चूत आगे से देखो तो जरूर अलग लगती थी पर जैसे ही मैनें उनकी चूत उनके पीछे से एक चूतड उटे होकर देखी मेरी तो आंखे फटी की फटी रह गई। उफ्फ क्या नजारा था पीछे से देखो तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई ब्राउन कलर का फुला हुआ बन हो, जिस पर हल्के हल्के तिल जैसे दाने दान थे।

मां की चूत देख झांटो में छुपा मेरा लोड़ा फिर से अपनी हरकत में आकर झटके लेने लगा था। मां की मोटी डबल रोटी जैसी चूत गांड़ के नीचे से देख कर मेरे मुंह से थूक टपकने लगी और मेरा हाथ जो उनकी गांड़ को सहला रहा था उसने एक दम से मां की गांड़ को अपनी उंगलियों में जकड़ लिया और उसे तेज से दबाने लगा के मां चीख पड़ी - आह, दर्द हो रही है, क्या कर रहा है चिक्कू बेटा।

मैं - वो वो मां, कुछ नहीं , बस आपको वो थोड़ा आराम दे रहा था मालिश करके।
मां - पहले सही लग रहा था पर जैसे ही तूने वो एक दम से दबाया ना, दर्द ओर बढ़ गया है बेटा।
मैं - सॉरी मां, मैं तो बस आपकी चोट पर मसल रहा था।
मां - रहने दे तु, तेरे ठंडे ठंडे हाथ लग रहे हैं , मसल के भी कोई फायदा नहीं है।
मैं - फिर अब मां?

मां खड़ी हुई और बोली - तु ऐसा कर जैसे पहले बैठा था ना स्टूल पर वैसे बैठ, मैं फिर तेरे ऊपर बैठती हूं, तेरे ठंडे हाथों से नहीं मसलवाना मुझे, और दर्द होता है।
मैं ठीक है बोलकर मां के उठने के बाद स्टूल पर अपनी टांगे खोल बैठ गया और दूसरे ही पल मां भी अपनी एक टांग मेरे दूसरी तरफ रख आकर मेरी गोद में बैठ गई। इधर मां मेरी गोदी में खुद ही बैठ गई और नीचे मेरा लोड़ा चूत के एक नए व्यू को पाकर पूरी हरकत में था के मां जैसे ही बैठी थी लोड़ा सीधा मां के टांगो के बीच एक दम चूत के होंठों को चीरता हुआ पूरा उस पर फेला था , बस अंदर जाने की ही कसर बाकी थी।

मैं चुप चाप ऐसे ही रहा के मां बोली - चीकू बेटा, तेरे हाथ बहुत ठंडे थे इसलिए चोट पर घिसने से और दर्द हो रहा था, तेरी ये जांघ गर्म लग रही है मुझे इसलिए ऐसा कर ऐसे बैठे बैठे ही घिस तो मुझे थोड़ा आराम मिलेगा।
मैं मन ही मन मुस्कुराया और खुद से बोला वाह रे किस्मत, मैं मां को चोदने का आइडिया सोच रहा था और इधर मां खुद ही चोट का बहाना बनाके झटके लेने चली है।
इधर मैं हल्का हल्का घिसने लगा मां को के वो हर मेरी टांगों के घिसने के झटके से आगे पीछे होने लगी और लोड़ा चूत के होंठ की पूरी लंबाई पर ऊपर नीचे घिसने लगा।

मेरा लोड़ा चूत पर घिसते घिसते अपने टोपे पर से पूरी चमड़ी को नीचे कर गया और अब असली मजा सा आने लगा। मां की हल्के हल्के दानेदार से एहसास वाली चूत के ऊपर से ही भले पर मेरा लोड़ा झटके खा रहा था के ऐसे कुछ ही झटको बाद मां बोली - रुक चीकू बेटा।
मैं - क्या हुआ मां?

मां ने अपने हाथ साइड में किया और वही शैंपू की बॉटल उठाई जो थोड़ी देर पहले मैनें मां को अपने हाथ को सपोर्ट देने के लिए दी थी। मां ने शैंपू की बॉटल का ढक्कन खोला और अपनी हथेली में शैंपू डाल हल्का सा खड़ी हुई और शैंपू को अपनी चोट वाली जगह पर लगाती हुई बोली - ये शैंपू ना थोड़ा गरम होता है इसलिए इसे लगा लेती हू थोड़ी लालगी कम हो जाए शायद इसे लगा कर घिसने से।

मां ने शैंपू अपने हाथ से गांड़ पर रगड़ा और फिर एकदम हल्का सा बचा हुआ अपनी चूत पर हाथ उठने के बहाने से घिस दिया। मैं समझ गया के अब ठंड और लन्ड का नशा मां के दिमाग पर हावी हो गया है और अब तो चुदाई हो कर ही रहेगी।

मैं चुप रहा और सोचने लगा के क्या ही फुद्दू बहाना लगाया है मां ने इस बार। पर जो भी है अच्छा है ना मुझे तो चूत चोदने को मिल रही है। भले ये बहाना जैसा भी हो, पर चुदाई के लिए ठीक है।






🌺अगला धमाकेदार अपडेट होगा चुदाई का🌺
Bahut hi lajawab update
 
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