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Incest मां का आशिक

Baklolbazz

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_____मां का आशिक__________

Hay,
Mera title kaisa hai...
क्या मैं ये कहानी लिखू।।.?????
क्योंकि ये कहानी मैंने कहीं ओर पढ़ी थी मुझे बहुत अच्छी लगी, मैं इस कहानी को अपने अनुभव और विचार से एक नये अन्दाज़ में आपके बीच साझा कर रहा हूं।

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शहनाज़ (शादाब की अम्मी )


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रेशमा (शादाब की बुआ)

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शादाब (कहानी का हीरो)


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kamdev99008

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_____मां का आशिक__________

Hay,
Mera title kaisa hai...
क्या मैं ये कहानी लिखू।।.?????
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Bhai yahaan koi title padhne nahin aata 😂
Sabko kahani padhni hoti hai

Jaldi update do
 

Baklolbazz

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माँ का आशिक

आज सुबह से शहनाज़ बहुत खुश थी, क्योंकि इकलौता बेटा शादाब दस साल के बाद घर वापिस लौट रहा था।
इन सालों के दौरान दोनो के बीच बहुत कम बात हुई क्योंकि बेटा हॉस्टल में रहता था।

दरअसल शहनाज़ के पति की मौत गांव में डॉक्टर ना होने की वजह से हो गई थी, इसलिए वे बुरी तरह से टूट गई थी और उसने उसी दिन फैसला किया था कि वो अपने बेटे को हर हाल में एक डॉक्टर बनाएगी, ताकि फिर गांव में किसी की मौत डॉक्टर ना होने की कमी के चलते ना हो सके।

उसने अपने बेटे से कसम ली थी कि जब तक वो एमबीबीएस का एग्जाम पास नहीं करेगा वो उसकी शक्ल तक नहीं देखेगी। कल ही सीपीएमटी का रिजल्ट आया था जिसमें उसके बेटे ने टॉप किया था और बस अब कुछ साल में अंदर ही उसका डाक्टर बन जाना तय था।

शहनाज जानती थी कि उसने अपने मासूम से बेटे पर बहुत ज़ुल्म किए हैं लेकिन वो गांव की भलाई के चलते मजबुर थी और ये उसके बाप की भी इच्छा थी कि उसका बेटा एक डॉक्टर बने।

शहनाज की शादी रहमान से मात्रा 17 साल की उम्र में हो गई है और अगले ही साल उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया था। लेकिन उनकी ये खुशी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई और एक एक्सिडेंट में उसके पति की मौत हो गई थी, गांव से शहर तक ले जाते उसने दम तोड़ दिया था। काश उस वक्त गांव में अस्पताल होता तो आज उसका मियां ज़िन्दा होता।

शहनाज़ के शौहर एक शाही राजघरानों से थे। राज पाट तो चले गए लेकिन उनकी शानो शौकत अभी तक जिंदा थी। घर में पीछे छुट गई थे उसके सास ससुर जी की अब पूरी तरह से कमजोर होकर बेड का सहारा ले चुके थे।


बस उनकी सेवा में लगी रहती थी, घर वालो और रिश्तेदारों ने दूसरी शादी का बहुत दबाव दिया लेकिन उसने अपने बेटे के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया और शादी ना करने का फैसला किया था। बेचारी नाज बचपन से लेकर अब तक दुख ही झेलती आई थी, छोटी सी उम्र में ही मा का इंतकाल हो गया था, बाप ने दूसरी शादी कर ली और सौतेली मा ने नाज को बहुत परेशान किया जिस कारण वो सिर्फ 12 तक ही पढ़ सकी थी।


एक दिन रहमान के बाप की नजर उस पर पड़ी तो उन्हें लगा कि उन्हें अपने बेटे के लिए जिस परी की तलाश थी वो उन्हें मिल गई हैं बस फिर उसकी शादी हो गई।



पूरे घर को सजाया गया था और एक बहुत ही बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया था क्योंकि आज शादाब ने एमबीबीएस का एग्जाम पास कर लिया था इसलिए पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई थी।

शहनाज़ सुबह जल्दी उठी और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई। उसने अपना बुर्का बाहर ही उतार दिया था और अब सिर्फ सूट सलवार पहने हुए थी।






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शाहनवाज एक गोरे बदन की भरी हुई औरत थी, दूध में चुटकी भर सिंदूर मिला दो तो ऐसा गजब का रंग था, एक दम चांद सा खुबसुरत चेहरा, गहरे काले घने बाल मानो ऐसे लहराते थे कि सावन की घटाए भी पनाह मांगती थी।

उसके भरे हुए सुंदर गाल मानो कोई खूबसूरत सेब, गालों की लाली देखते ही बनती थी, उसकी बड़ी बड़ी प्यारी खूबसूरत बोलती हुई आंखे, छोटी सी प्यारी सी नाक जो उसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देती थी।


उसके होंठ बिल्कुल शबनम की बूंद की तरह से नाजुक, हल्का सा लाल रंग लिए हुए मानो कुदरत ने खुद ही उसके होंठो को सजाकर भेजा हो,एक दम पतले पतले होंठ मानो किसी गुलाब की आपस में जुड़ी हुई लाल सुर्ख फूल की दो पंखुड़ियां।

बस उसका ये कातिल चेहरा ही आज तक सभी ने देखा था क्योंकि वो अपने आपको पुरी तरह से ढक कर रखती थी, वो एक मर्यादा में रहने वाली औरत थी और उसने अपनी मर्यादा को कभी लांघने की कोशिश नहीं करी थी क्योंकि उसके संस्कार हमेशा आड़े आ जाते थे।

वो इतनी शर्मीली थी कि आज तक किसी के आगे पूरी तरह से नंगी नहीं हुई थी यहां तक की सुहागरात को भी उसने अपने पति को पूरे कपड़े निकालने से साफ इंकार कर दिया था क्योंकि उससे ये सब नहीं हो सकता था।

नहाते हुए भी हमेशा अपनी आंखे बंद करके ही नहाती थी क्योंकि उसमे इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वो अपने आपको खुद ही नंगा देख सके। आंखो की हया और खुदा का डर उसके उपर हमेशा हावी रहा।


उसने अपने कपड़े धीरे से एक एक करके बंद आंखो के साथ निकाले और जल्दी ही नहा धोकर तैयार हो गई।

ब्रा पेंटी पहन लेने के बाद उसने एक काले रंग का सूट सलवार पहना और फिर बुर्का पहनकर एयरपोर्ट जाने के लिए तैयार हो गई।




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ड्राइवर ने गाड़ी निकाली और जल्दी ही वो एयरपोर्ट पर खड़ी हुई थी। वो बाहर निकलते लोगो पर नजर गड़ाए हुए थी उसकी बेचैनी इस कदर बढ़ गई थी कि उसे आने वाले हर लड़के में अपना बेटा नजर आ रहा था। अपने लख्तें जिगर को वो कैसे पहचानेगी ये सोच सोच कर वो परेशान थी।

एयरपोर्ट पर जाने वाले एक मात्र रास्ते पर उसका ड्राइवर उसके बेटे के नाम की तख्ती लिए खड़ा हुआ था।
 
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Baklolbazz

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शहनाज़ खुले कपडे पहने के बाद भी उसके जिस्म का हर उभार साफ नजर आता था, कपड़ों के ऊपर से ही उसकी भरी हुई भारी भरकम गांड़, एक दम उभरी हुई, बिल्कुल बाहर की तरफ निकली हुई ऐसे लगती थी मानो जबरदस्ती अंदर कैद की गई हो।
उसकी गांड़ की मस्त गोलाई देख कर लोगो के लंड सलामी देने लगते थे और आज भी कुछ ऐसा ही हुआ।




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उससे थोड़ी दूर खड़े हुए दो मनचले बहक गए और उनमें से एक बोला:'

" ओए उधर देख, क्या माल है यार, उफ्फ ऐसी तगड़ी उभरी हुई गांड़ आज तक किसी की नहीं देखी, लंड खड़ा हो गया।

दूसरा:" हां भाई, क़यामत हैं क़यामत, काश इसकी नंगी गांड़ देख पाता,मसल मसल कर लाल कर देता मैं, साली ने लंड को तड़पा दिया।

शहनाज़ उनके बाते सुनकर हैरान हो गई, इतनी थोड़ी सी उम्र में ये लड़के बिगड़ गए हैं, क्या जमाना आ गया है, लेकिन लड़कों की बाते सुनकर वो अंदर ही अंदर मुस्कुरा उठी अपनी तारीफ सुनकर और उसके जिस्म में हलचल सी हुई।


पहला लड़का:" उसकी गांड़ का एक उभार तेरे दोनो हाथो में भी नहीं आएगा, तुझसे नहीं हो पाएगा, इसके लिए तो कोई सांड जैसा तगड़ा लड़का चाहिए।

तभी शादाब दूर से आता हुआ दिखाई दिया



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तो लड़को की नजर उस पर पड़ गई, छह फीट लंबा चौड़ा खूबसूरत जवान, एक दम अपनी मां की तरफ गोरा, चौड़ी छाती, आंखो पर काला चश्मा,।



उसे देखते ही पहले वाला मनचला बोल उठा:" वो देख यार, क्या खूबसूरत लड़का हैं, बिल्कुल सांड के जैसा मोटा तगड़ा, मेरे हिसाब से इस औरत के लिए ये सही है, हाथ देख उसके कितने बड़े और मजबूत लग रहे हैं। इसकी गांड़ तो वो ही ठीक से मसल सकता हैं।


मनचले की बात सुनकर शहनाज़ की नजर अपने आप उस शादाब की तरफ उठ गई। सच में खूबसूरत था वो, दूर से आता हुआ बिल्कुल कामदेव के जैसा लग रहा था, एक बार तो उसे देखकर सच में शहनाज़ का दिल धड़क उठा और नजरे गड़ाए उसे ध्यान से देखती रही।

जैसे जैसे वो पास आता जा रहा था शहनाज़ की आंखे मस्ती से चोड़ी होती जा रही थी और पूरे जिस्म में कंपकपी सी दौड़ रही थी।

जैसे ही वो उसके सामने आया तो दोनो की आंखे टकराई और दोनो एक साथ मुस्कुरा दिए तो शादाब आगे बढ़ा और बोला:"

" अम्मी मैं शादाब, आपका बेटा,

शहनाज़ तो जैसे ख्वाबों से बाहर आई और उसे पहचान लिया और एक दम से अपनी बांहे फैला दी तो बेटा अपनी मा की बांहों में समा गया।




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दोनो एक दुसरे की धड़कन सुनते रहे और बेटा पूरी तरह से अपनी मां को कसकर अपनी बांहों में भर लिया था और मां भी प्यार से अपने बेटे की कमर थपथपा रही थी।

थोड़ी देर बाद शहनाज़ ने उसे पुकारा:" बेटा बस छोड़ अब मुझे, घर चले, तेरे दादा दादी तेरा इंतजार कर रहे होंगे।

शादाब जैसे भावनाओ के आवेश से बाहर आया और अपनी मा की तरफ देखते हुए कहा:"

" हां अम्मी चलो, बाहर आकर दोनो गाड़ी में बैठ गए और गाड़ी घर की तरफ चल पड़ी।

शहनाज़ को अपना बेटा बहुत प्यारा लगा और वो बार बार उसे ही देखे जा रही थी। उसे रह रह कर उन मनचलों की बाते याद आ रही थी कि इसकी गांड़ को थामने के लिए तो इस लड़के जैसे मोटे और तगड़े हाथ चाहिए।

ये बात मन में आते ही ना चाहते हुए भी शहनाज़ की नजर अपने बेटे के हाथो पर पड़ी, सच में उसके बेटे के हाथ बहुत तगड़े और मोटे ताजे थे। शहनाज़ का पूरा वजूद कांप उठा और उसकी सांसे अपने आप तेज गति से चलने लगी और माथे पर हल्का सा पसीना उभर आया।

"उफ्फ मैं ये क्या सोचने लगी, शहनाज़ को एक तेज झटका सा लगा और वो अपनी कल्पना से बाहर आई और आगे की तरफ देखते हुए चुप चाप बैठ गई, ना चाहते हुए भी बीच बीच में रह रह कर उसकी नजर अपने बेटे के हाथो पर पड़ रही थी,

खैर कुछ देर के बाद वो घर पहुंच गए।
 
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Baklolbazz

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शहनाज़ गाड़ी से उतरी और घर के अंदर की तरफ चल पड़ी, शादाब भी उसके साथ ही था, दोनो जैसे ही दरवाजे के अंदर दाखिल हुए तो शादाब के उपर छत पर से फूलो की बरसात होने लगी और लोगो ने माला पहना कर उसका स्वागत किया।

गांव की औरतें और जवान लड़कियां उसे देख कर आंहे भर रही थी, इस सम्मान के बाद शादाब अपनी मां के साथ घर में चला गया और दोनो मां बेटे दादा दादी के कमरे की तरफ बढ़ गए।

शादाब पीछे पीछे चल रहा था और शहनाज़ की गांड़ इतनी ज्यादा उछल रही थी कि ना चाहते हुए भी उसकी नजर अपनी मां की गांड़ पर जमी हुई थी, हर कर कदम पर शहनाज़ की गांड़ उपर नीचे हो रही थी और बुर्के में से साफ़ नजर आ रही थी।



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शादाब को अच्छा नहीं लगा रहा था अपनी सगी मा की गांड़ के इस तरह देखना इसलिए वो तेजी से चलता हुआ अपनी मां से आगे निकल गया।

शहनाज़ के होंठो पर मुस्कान आ गई और बोली: "" क्या बात हैं बेटा, बहुत जल्दी ही अपने दादा दादी से मिलने की तुझे जो इतनी तेजी से चल रहा है !!

शादाब ने मुड़कर अपनी मां की तरफ देखा तो उसकी नजर फिर से अपनी मां के खूबसूरत चेहरे पर पड़ी और वो मुस्कुरा दिया। शहनाज़ जैसे जैसे उसके पास आती जा रही थी शादाब की नजर एक पल के लिए ही सही लेकिन उसकी तनी चूचियों पर पड़ गई जो कि पूरी तरह से कपड़ों के ऊपर से ही उभरी हुई नजर आ रही थी।




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शादाब की आंखे फिर से खुली की खुली रह गई। उफ्फ वो तो इसलिए आगे निकला था कि अपनी मा की गांड़ देखने से बच जाए लेकिन चूचियों का नजारा तो गांड़ से भी ज्यादा मादक था। शादाब जैसे अपने होश ही खो बैठा और एकटक अपनी मा की तरफ देखता रहा। शहनाज़ चलती हुई उसके पास पहुंची और उसकी आंखो के आगे चुटकी बजाई तो शादाब जैसे नींद से जागा ।

शहनाज़:" क्या हुआ बेटा कहां खो गए थे? तबियत तो ठीक हैं तुम्हारी ?

शादाब हकलाते हुए:" हान अम्मी, ठीक हैं सब, बस आपको देख रहा था कि मेरी अम्मी कितनी खूबसूरत है, बहुत दिनों के बाद देखा आपको ।

शहनाज़:" हान बेटा मैं भी तरस गई थी तुझे देखने के लिए, चल पहले तेरे दादा दादी से मिल लेते है, वो बेचारे नहीं तेरी एक झलक के लिए बेचैन हैं, हम तो बाद में भी बात कर लेंगे आराम से उपर जाकर !!


दोनो मा बेटे एक साथ आगे बढ़ गए और दादा दादी के कमरे में पहुंचे तो दोनो के चेहरे आपके इकलौते पोते को देख कर खुशी से खिल उठे। शादाब ने उन्हें सलाम किया तो उसकी दादा दादी ने उसे अपनी बांहों में भर लिया। शादाब भी अपनी दादी मा से लिपट गया।

दादी पूरी तरह से भावुक हो गई थी इसलिए भर्राए गले के साथ बोली:"

" आंखे तरस गई थी तुझे देखने के लिए मेरे बच्चे, अब जाकर सुकून मिला हैं। कितना बड़ा हो गया है तू, अल्लाह तुझे सलामत रखे बेटा।

दादा:" बेटा अगर दादी से मन भर गया तो अपने दादा के भी गले लग जा एक बार ताकि मुझ बूढ़े को भी थोड़ा सुकून मिल सके।

शादाब पागलों की तरह अपने दादा से लिपट गया तो ये देख कर दादी और शहनाज़ दोनो की आंखे छलक उठी। थोड़ी देर के बाद शादाब अलग हुआ और उन्हें अपने हॉस्टल की बात बताने लगा। सभी ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे और शादाब बीच बीच में मजाक भी कर रहा था जिससे अब माहौल थोड़ा बदल चुका था। उसकी बाते सुनकर शहनाज़ बार बार मुस्कुरा रही थी जिससे उसका चेहरा और भी खूबसूरत लग रहा था।

शहनाज़ अपने ससुर से पर्दा नहीं करती थीं क्योंकि उसके ससुर ने उसे मना कर दिया था और उसे अपनी सगी बेटी की तरह प्यार करता था। शहनाज़ भी जानती थी कि सास ससुर का उसके सिवा इस दुनिया में कोई नहीं है इसलिए उसने भी अपने ससुर की बात मान ली थी और अपने ससुर से पर्दा खोल दिया था।

खैर दादा दादी खाना खा चुके थे। धीरे धीरे बाहर अंधेरा होने लगा और दादा दादी ने शादाब को बोला:

" बेटा उपर जाकर खाना खाकर तू भी आराम कर ले, थक गया होगा सारे दिन के सफर से। जा बेटा सुबह बात करेंगे क्योंकि तेरी अम्मी शहनाज़ भी सुबह से भूखी हैं तेरे लिए।

शादाब ने अपने दादा की बात सुनकर प्यार से अपनी अम्मी की देखा तो शहनाज़ ने उसे एक प्यारी सी स्माइल दी और दोनो मा बेटे एक साथ उपर की तरफ चल पड़े।

घर थोड़े दिन पहले ही फिर से बनाया गया था इसलिए आगे आगे शहनाज़ चल रही थी और सीढ़ियों पर चढने की वज़ह से उसकी गांड़ उछल उछल पड़ रही थी और शादाब फिर से अपनी मा की गांड़ को थिरकते हुए देखने से खुद को नहीं रोक पाया और उसके लंड में हलचल सी होने लगी।



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खैर जल्दी ही वो उपर पहुंच गए और शादाब नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया।

शहनाज़ अपने बेटे के लिए खाने की चीज टेबल पर सजाने लगीं। उसने सब कुछ अपने बेटे की पसंद का बनाया था ताकि उसके बेटे को खुशी महसूस हो। टेबल सजाते समय उसके मन में विचार उठ रहे थे कि उसका बेटा सच में बहुत खूबसूरत जवान बन गया है, एक दम किसी फिल्मी हीरो की तरह से सुन्दर, ऐसे ही शौहर की कल्पना वो किया करती थी जो कि इसके सपनों का राजकुमार था। कैसे सारे गांव की औरतें और लड़कियां उसके बेटे को आंखे फाड़ फाड़ कर देख रही थी ये सब याद आते ही उसने अपने बेटे की चिंता हुई और उसने अपने बेटे की नजर उतारने का फैसला किया।

थोड़ी देर बाद शादाब नहाकर बाहर आ गया और उसने एक सफेद रंग का ढीला कुर्ता पजामा पहन लिया ताकि कुछ सुकून मिल सके। बेटे के बाहर आते ही वो बोली :"

" शाद बेटे जरा पहले इधर आ तेरी नजर उतार दू, कहीं किसी की नजर ना लग गई हो मेरे बेटे को सब तुझे अपने गौर से देख रहे थे।

शादाब के होंठो पर मुस्कान आ गई और उसने अपनी मम्मी से कहा:"

" क्या मम्मी आप भी इन बातो को मनाती हैं? ऐसा कुछ नहीं होता हैं

शहनाज़:" तुम ज्यादा मत सोचो और इधर आओ मेरे पास, मेरे दिल को तसल्ली नहीं मिलेगी जब तक कि तेरी नज़र नहीं उतर देती मैं।

शादाब अपनी अम्मी की खुशी के लिए आगे बढ़ गया और उनके सामने खड़ा हो गया। शहनाज ने कुछ लाल मिर्च ली और उसे शादाब के सिर पर से उतार कर गैस पर जला दी तो वो धुं धूं करके जलने लगी। लेकिन किसी को मिर्च के जलने की वजह से खांसी या धसका नहीं हुआ तो शहनाज़ बोली:"

" देख बेटे कितनी ज्यादा नजर थी तुझे, मिर्च कैसे आराम से जल गई और हमे कुछ नहीं हुआ !!

शादाब को अपनी अम्मी पर बड़ा प्यार आया क्योंकि वो उसकी बहुत फिक्र कर रही थी इसलिए अपनी मा की हान में हान मिलाते हुए बोला:"

" हान अम्मी सच में, आपने बहुत अच्छा किया जो मेरी नजर उतार दी, आप कितनी अच्छी हो और मेरा कितना ख्याल रखती हो।
 
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kirantariq

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Baklolbazz

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शहनाज़ अपने बेटे की बात से खुश हो गई और आगे बढ़ कर उसका माथा चूम लिया और बोली :" बेटा अल्लाह तुझे हमेशा बुरी नजर से बचाए।मेरा बेटा वैसे भी कितना सुंदर है तो ऐसे में नजर तो लग ही सकती हैं !!.

ऐसा कहकर वो अपने बेटे को एकटक देखने लगी तो शादाब ने अपनी अम्मी को मजाक में बोला : अम्मी अगर आप मुझे ऐसे देखती रहेगी तो और का तो मुझे पता नहीं लेकिन आपकी नजर जरूर लग जाएगी !!

शहनाज़: बेटे एक मा की नजर अपने बेटे को कभी नहीं लगती हैं, मैं तो बस ये देख रही थी कि तुम सच में बहुत खूबसूरत दिखते हो!

शादाब अपनी मा की बात पर झेंप सा गया और बात को बदलते हुए बोला:"

" अम्मी मुझे बहुत तेज भूख लगी हैं,अगर आपकी इजाज़त हो तो खाना खाया जाए !!

शहनाज़ थोड़ा फिक्र करते हुए:" अरे तेरी नजर उतारने के चक्कर में मैं तो भूल ही गई थी कि मेरा लाडला बेटा भूखा हैं, आ जा चल जल्दी खाना खाते हैं।



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उसके बाद दोनो मा बेटे खाने की टेबल पर बैठ गए और शहनाज़ ने खाने का एक निवाला बनाया और शादाब के मुंह के करीब लाते हुए बोली: इतने साल के मेरा बेटा आया हैं अपने हाथ से खाना खिलाऊंगी तुझे।

शादाब अपनी मा का इतना प्यार देखकर खुश हो गया और बड़े प्यार के साथ अपना मुंह खोल कर निवाला खा लिया। एक के बाद एक निवाले बनाकर शहनाज़ अपने बेटे को खिलाने लगी।

शादाब को अपनी अम्मी का ख्याल आया और वो भी अपने हाथ से निवाला बनाकर अपनी मा के लाल सुर्ख होंठो के पास ले गया तो शहनाज़ ने अपना मुंह खोलते हुए निवाला खा लिया। दोनो मा बेटे बहुत प्यार के साथ एक दूसरे को खाना खिला रहे थे।



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शादाब खाना खाते हुए:" अम्मी ये सब इतना जायकेदार खाना आपने खुद बनाया हैं क्या ?

शहनाज खुश होते हुए:" बिल्कुल बेटा, अपने लाडले के लिए मैंने खुश तेरी पसंद का सभी कुछ बनाया हैं।

शादाब:" ओह अम्मी, मन करता है कि आपके हाथ चूम लू।

इतना कहकर शादाब ने अपनी अम्मी के हाथो को चूम लिया तो शहनाज खुश के मारे फूली नहीं समाई और अपने बेटे को खीर खिलाते हुए बोली :"

" बेटा खीर कैसी लगी तुझे ? बचपन में तो तुझे बहुत पसंद थीं, रोज खीर खाया करते थे तुम

शादाब:" अच्छी बनी हैं अम्मी, मुझे पहले से ही दूध और उससे बनी चीज़े बहुत पसंद हैं।

दोनो मा बेटे बात करते हुए खाना खा रहे थे कि तभी शहनाज़ को एक झटका सा लगा और शादाब ने तेजी से पानी का गिलास अपनी अम्मी की तरफ उठा कर बढ़ा दिया तो जल्दबाजी में वो पूरा ग्लास शहनाज़ की छाती पर गिर गया जिस कारण उसका बुर्का पूरी तरह से भीग गया। शादाब ने दूसरा ग्लास उठा कर जल्दी से अपनी अम्मी को पिलाया तो उसे कुछ सुकून मिला और वो थोड़ा नॉर्मल हुई।

पानी से गीला हो जाने के कारण शहनाज का बुर्का उसके जिस्म से पूरी तरह से चिपक गया था जिस कारण उसकी चूचियो का उभार साफ़ नजर आने लगा और उनकी बनावट पुरी तरह से उभर रही थी जिससे साफ़ पता चल रहा था कि उसकी चूचियां सच में बहुत तगड़ी और मस्त है।




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शादाब की नजरे एकदम से अपनी अम्मी के सीने पर पड़ी तो उसकी सांसे तेज गति से चलने लगी। शहनाज को जैसे ही अपने बेटे की नजरो का आभास हुआ तो उसने अपनी चुचियों की तरफ देखा तो उसे बहुत शर्म महसूस हुई और तेजी से उठकर अंदर कमरे में भाग गई।


उसकी सांसे तेज गति से चल रही थी और गला पूरी तरह से सूख गया था। उसका चेहरा शर्म के मारे लाल सुर्ख हो चुका था और चूचियां तेज सांसों के साथ उपर नीचे हो रही थी।





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उसने अपना बुर्का उतार दिया और उसके नीचे से गीला सूट भी उतार कर एक दूसरा सूट पहन लिया और उसके बाद फिर से बाहर की और चल पड़ी जहां उसका बेटा बैठा हुआ था। शहनाज़ के पैर बुरी तरह से कांप रहे थे और वो बहुत बड़ी उलझन में थी कि उसके इस तरह भागने से शादाब क्या सोच रहा होगा।

खैर कांपते हुए कदमों के साथ वो फिर से अपने बेटे के सामने टेबल पर बैठ गई और उसके कुछ भी बोलने से पहले खुद ही सफाई देने लगीं:

" बेटा वो पानी गिरने के कारण कपडे गीले हो गए थे जिस कारण मुझे ठंड लग रही थी इसलिए मैं एक दम से चली गई थी।

शादाब तो डर रहा था कि कहीं उसकी अम्मी उसे डांट ना दें, "क्योंकि वो अपनी मा की चूचियां घूरते हुए पकड़ा गया था, अपनी अम्मी की बात सुनकर शादाब ने सुकून की सांस ली और खीरे खाने लगा। दोनों मां बेटे जानते थे कि शहनाज़ के भागने की असली वजह क्या थी


लेकिन दोनों ही डरे हुए थे इसलिए किसी की हिम्मत आगे सवाल पूछने की नहीं हो रही थी। शादाब के मुकाबले शहनाज की हालत ज्यादा खराब थी क्योंकि वो बहुत ज्यादा शर्मीली जिस्म की औरत थी इसलिए जब से आई थी उसकी नजर एक बार भी शादाब से नहीं मिल पाई थी और वो चुपचाप मुंह नीचे किए हुए खीर खा रही थी और उसके हाथ कांप रहे थे। शादाब की नजर अपने आप ही ना चाहते हुए भी बार बार फिर से अपनी अम्मी के सीने पर पड़ रही थी लेकिन इस बार उसे पहले की तरह कुछ नजर नहीं आ रहा था।

शादाब:" अम्मी आप ठीक तो हो ? क्या हुआ आपके हाथ इतने क्यों कांप रहे है ?

अपने बेटे की बात सुनकर शर्म के मारे शहनाज़ का चेहरा शर्म से एक दम बिल्कुल लाल हो गया और उसे लगा जैसे उसकी सांसे रुक सी गई है। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी हिम्मत बटोरकर नीचे ही मुंह किए हुए कहा:" बेटा वो पानी गिरने से ठंड ठंड लग गई थी ना शायद इसलिए!

कमरे में एसी चल रही थी और तापमान बिल्कुल ठीक था इसलिए सर्दी लगने का तो कोई सवाल नही था, शादाब को भले ही सेक्स और जिस्म के बारे में कुछ नहीं पता था लेकिन इतना वो जरूर समझ गया था कि उसकी अम्मी ठंड की वजह से नहीं बल्कि किसी और वजह से कांप रही है।
 
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