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मां का "दूध छुड़वाने से चुस्वाने" तक का सफर : पार्ट 4
फिर अगले दिन की सुबह मेरी लेट आंख खुली। आंख खुलते ही वो रात का सीन मेरी आखों के सामने फिर आ गया और लोड़ा खड़ा हो गया। लोड़े को सैट करके मैं बाथरूम में घुसा, फ्रैश होकर रूम से निकल कर मां को आवाज लगाई
मैं: मां, कहां हो आप?
मां: यहां किचन में हूं बेटा।
मैं: गुड मार्निंग मां
मां : गुड मॉर्निंग बेटा।
मैं: मां पापा कहां है?
मां : वो तो अभी निकले काम के लिए, तु घड़ी देख पहले, आज लेट उठा है तु इतना।
मैनें वक्त देखा तो 10 बज चुके थे। फिर मैं बोला : ओ हां, आज थोड़ा लेट हो गया मां।
मां : हां, चल ब्रश करले फिर साथ मिलकर नाश्ता करते हैं, मैनें भी अभी नहीं किया।
मैं: ठीक है मां।
ऐसे बोलकर मैं ब्रश करने चला गया। ब्रश कर कर आया तो मां फ्रिज खोलकर नीचे घोड़ी की तरह बनकर झुकी हुई फ्रिज के निचले शैल्फ में से सामान उठा रही थी। मां को ऐसा झुका हुआ देखकर आज पहली बार था के मेरे मन में कुछ खुराफाती विचार आ रहा था। मन कर रहा था के मां की पजामी को नीचे उतारूं और उनकी गांड़ में अपना मुंह दे कर चाटने लग जाऊं।
हमारा फ्रिज किचन के अंदर घुसते ही साइड में रखा था और मां के इस तरह खड़े होने से अंदर जाने का थोड़ा सा ही रास्ता बचा हुआ था तो मैनें सोचा क्यूं ना इसी बात का फायदा उठाया जाए और आज मां की गांड़ का एहसास कर लिया जाए। मैनें भी मां के खड़े होने से पहले ही उनकी गांड़ के पीछे से गुजरने के बहाने से अपना शरीर उनसे थोड़ा सा रगड़ा। मां ने कुछ भी नहीं बोला और ना ही कोई प्रतिक्रिया की। फिर मैं किचन में घुस कर इधर उधर यूंही समान देखने लगा और बोला : मां, क्या बनाया है नाश्ते में आज?
मां उठी और बोली : आज तो पोहा बनाया है बेटा।
मैं: बहुत भूख लगी है मां, दे दो जल्दी से।
मां : हां देती हूं।
मैं और मां फिर बाहर सोफे पर बैठे और पोहा खाने लगे के मैनें मां से कहा : अच्छा मां ,एक बात तो बताओ
मां: क्या ?
मैं: क्या मैनें सच में बचपन में दबा दबा कर दूध पिया करता था जैसा मोसी बोली कल?
मां : ओर नहीं तो क्या.. वो तो मैं थी जो तुझे ओट लेती थी, कोई और होती मेरी जगह तो शायद तुझे दूध पिलाती ही नहीं कभी।
मैं: ऐसा क्यूं मां?
मां : तु था ही इतना हेल्दी बचपन में के किसी का भी दूध पीते वक्त हाय निकलवा देता।
मैं: अच्छा सच्ची मां?
मां : हां ओर क्या, तेरी मोसी ने तो तुझे एक ही बार पिलाया था और बेचारी की जान निकाल दी थी तूने?
मां ओर मैं हसने लगे और मां फिर बोली : पता है क्या, तु एक को हाथ से दबाता रहता था और दूसरे को कस के पकड़ कर चूसता रहता था।
मैं: हां मां। और मैं इतना हेल्दी कैसे हो गया था मां बचपन में?
मां : शायद तु तीन साल तक दूध पीता रहा मेरा बाकी बच्चो के मुकाबले इसी लिए ऐसा हो गया।
मैं: तो इसमें तो फिर आपका ही दोष है, आपके दूध की वजह से ही हुआ था मैं इस वक्त हेल्दी।
मां : लो कर लो बात, अब इसमें भी मेरा ही दोष है, दूध पीना छोड़ा तूने नहीं और दोष मुझे दे रहा है।
मैं: हां हां, आप जानो अब
मां: तु अपने आप को अब देखिओ जरा, कितना कमजोर हो गया है पहले से।
मैं: हां मां, अब मुझे दूध नहीं मिलता ना पीने के लिए शायद इसलिए।
मां : अच्छा जी, तुझे भी बाते बनानी आ गई है अब, सही है बेटा , सही है।
मैं और मां हसने लगे और मैं बोला : तो सच ही तो है मां ये बात, आप बताओ।
मां : क्यूं नहीं मिलता तुझे दूध, पीता तो है डेली तु।
मैं: मां पर वो तो दूसरा होता है ना।
मां : दूध तो दूध ही होता है बेटा, ये दूसरा पहला क्या होता है।
मैं: नहीं मां फर्क होता है सब में।
मां : हां, ठीक है चल होता होगा।, तु क्या चाहता है अब मैं तुझे अपना दूध पिलाऊ तेरी सेहत बनाने के लिए, लुच्चे कहीं के।
मां ऐसा बोलते ही हसने लगी और फिर बोली : पता नहीं एग्जाम की टेंशन तेरे सर से उतरने के बाद तेरे मन में क्या क्या आ रहा है।
मैं: तो इसमें क्या है मां, आप मेरी मां हो , मैं आपका बेटा हूं, मां तो अपने बेटे को दूध पिलाती ही है ना।
मां : हां तब बेटे को पिलाती है जब वो उसकी गोद में आता है, ना की तब जब मां बेटे की गोद में आने की उम्र की हो जाए।
मैं: तो मां , आप मेरी गोद में आना चाहते हो तो मेरी में आकर पिला देना।
अब माहोल ऐसा था के मेरे मन में मां के प्रति खुले विचार आ रहे थे और मैं बिना ज्यादा सोचे बेफिक्र होकर मां से बाते कर रहा था और मां भी आना कानी करते करते मजे में बाते कर रही थी।
मां : हां, ऐसा करती हूं, मैं तेरी गोद में आ जाती हूं, तु मुझे अपना दूध पिला दे।
ऐसा बोलते ही हम दोनो तेज तेज हसने लगे और ये सुनकर मेरी तो हंसी ही नहीं रुकी और मैं भी बातों के मजे लेते लेते बोला : ठीक है मां, आ जाओ, आज मैं आपको अपना दूध पिलाता हूं।
फिर अगले दिन की सुबह मेरी लेट आंख खुली। आंख खुलते ही वो रात का सीन मेरी आखों के सामने फिर आ गया और लोड़ा खड़ा हो गया। लोड़े को सैट करके मैं बाथरूम में घुसा, फ्रैश होकर रूम से निकल कर मां को आवाज लगाई
मैं: मां, कहां हो आप?
मां: यहां किचन में हूं बेटा।
मैं: गुड मार्निंग मां
मां : गुड मॉर्निंग बेटा।
मैं: मां पापा कहां है?
मां : वो तो अभी निकले काम के लिए, तु घड़ी देख पहले, आज लेट उठा है तु इतना।
मैनें वक्त देखा तो 10 बज चुके थे। फिर मैं बोला : ओ हां, आज थोड़ा लेट हो गया मां।
मां : हां, चल ब्रश करले फिर साथ मिलकर नाश्ता करते हैं, मैनें भी अभी नहीं किया।
मैं: ठीक है मां।
ऐसे बोलकर मैं ब्रश करने चला गया। ब्रश कर कर आया तो मां फ्रिज खोलकर नीचे घोड़ी की तरह बनकर झुकी हुई फ्रिज के निचले शैल्फ में से सामान उठा रही थी। मां को ऐसा झुका हुआ देखकर आज पहली बार था के मेरे मन में कुछ खुराफाती विचार आ रहा था। मन कर रहा था के मां की पजामी को नीचे उतारूं और उनकी गांड़ में अपना मुंह दे कर चाटने लग जाऊं।
हमारा फ्रिज किचन के अंदर घुसते ही साइड में रखा था और मां के इस तरह खड़े होने से अंदर जाने का थोड़ा सा ही रास्ता बचा हुआ था तो मैनें सोचा क्यूं ना इसी बात का फायदा उठाया जाए और आज मां की गांड़ का एहसास कर लिया जाए। मैनें भी मां के खड़े होने से पहले ही उनकी गांड़ के पीछे से गुजरने के बहाने से अपना शरीर उनसे थोड़ा सा रगड़ा। मां ने कुछ भी नहीं बोला और ना ही कोई प्रतिक्रिया की। फिर मैं किचन में घुस कर इधर उधर यूंही समान देखने लगा और बोला : मां, क्या बनाया है नाश्ते में आज?
मां उठी और बोली : आज तो पोहा बनाया है बेटा।
मैं: बहुत भूख लगी है मां, दे दो जल्दी से।
मां : हां देती हूं।
मैं और मां फिर बाहर सोफे पर बैठे और पोहा खाने लगे के मैनें मां से कहा : अच्छा मां ,एक बात तो बताओ
मां: क्या ?
मैं: क्या मैनें सच में बचपन में दबा दबा कर दूध पिया करता था जैसा मोसी बोली कल?
मां : ओर नहीं तो क्या.. वो तो मैं थी जो तुझे ओट लेती थी, कोई और होती मेरी जगह तो शायद तुझे दूध पिलाती ही नहीं कभी।
मैं: ऐसा क्यूं मां?
मां : तु था ही इतना हेल्दी बचपन में के किसी का भी दूध पीते वक्त हाय निकलवा देता।
मैं: अच्छा सच्ची मां?
मां : हां ओर क्या, तेरी मोसी ने तो तुझे एक ही बार पिलाया था और बेचारी की जान निकाल दी थी तूने?
मां ओर मैं हसने लगे और मां फिर बोली : पता है क्या, तु एक को हाथ से दबाता रहता था और दूसरे को कस के पकड़ कर चूसता रहता था।
मैं: हां मां। और मैं इतना हेल्दी कैसे हो गया था मां बचपन में?
मां : शायद तु तीन साल तक दूध पीता रहा मेरा बाकी बच्चो के मुकाबले इसी लिए ऐसा हो गया।
मैं: तो इसमें तो फिर आपका ही दोष है, आपके दूध की वजह से ही हुआ था मैं इस वक्त हेल्दी।
मां : लो कर लो बात, अब इसमें भी मेरा ही दोष है, दूध पीना छोड़ा तूने नहीं और दोष मुझे दे रहा है।
मैं: हां हां, आप जानो अब
मां: तु अपने आप को अब देखिओ जरा, कितना कमजोर हो गया है पहले से।
मैं: हां मां, अब मुझे दूध नहीं मिलता ना पीने के लिए शायद इसलिए।
मां : अच्छा जी, तुझे भी बाते बनानी आ गई है अब, सही है बेटा , सही है।
मैं और मां हसने लगे और मैं बोला : तो सच ही तो है मां ये बात, आप बताओ।
मां : क्यूं नहीं मिलता तुझे दूध, पीता तो है डेली तु।
मैं: मां पर वो तो दूसरा होता है ना।
मां : दूध तो दूध ही होता है बेटा, ये दूसरा पहला क्या होता है।
मैं: नहीं मां फर्क होता है सब में।
मां : हां, ठीक है चल होता होगा।, तु क्या चाहता है अब मैं तुझे अपना दूध पिलाऊ तेरी सेहत बनाने के लिए, लुच्चे कहीं के।
मां ऐसा बोलते ही हसने लगी और फिर बोली : पता नहीं एग्जाम की टेंशन तेरे सर से उतरने के बाद तेरे मन में क्या क्या आ रहा है।
मैं: तो इसमें क्या है मां, आप मेरी मां हो , मैं आपका बेटा हूं, मां तो अपने बेटे को दूध पिलाती ही है ना।
मां : हां तब बेटे को पिलाती है जब वो उसकी गोद में आता है, ना की तब जब मां बेटे की गोद में आने की उम्र की हो जाए।
मैं: तो मां , आप मेरी गोद में आना चाहते हो तो मेरी में आकर पिला देना।
अब माहोल ऐसा था के मेरे मन में मां के प्रति खुले विचार आ रहे थे और मैं बिना ज्यादा सोचे बेफिक्र होकर मां से बाते कर रहा था और मां भी आना कानी करते करते मजे में बाते कर रही थी।
मां : हां, ऐसा करती हूं, मैं तेरी गोद में आ जाती हूं, तु मुझे अपना दूध पिला दे।
ऐसा बोलते ही हम दोनो तेज तेज हसने लगे और ये सुनकर मेरी तो हंसी ही नहीं रुकी और मैं भी बातों के मजे लेते लेते बोला : ठीक है मां, आ जाओ, आज मैं आपको अपना दूध पिलाता हूं।