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Incest मानस और छाया का पंचरत्न योग

Black horse

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(मैं छाया)

मैं मानस भैया के साथ कमरे में आ चुकी थी. हम दोनों कुछ ही देर में एक दूसरे की बाहों में थे। अभी कुछ समय पहले ही मैंने और मानस भैया ने एक अद्भुत संभोग किया था जो निश्चय ही नया था । मानव भैया की उत्तेजना का मैंने यह रूप पिछले चार-पांच वर्षों में पहली बार था।

इससे पहले वो मुझे आलिंगन में लेते मेरे स्तनों को सहलाते, मेरी राजकुमारी के साथ खेलते परंतु हमेशा उनके हाथों और उनके स्पर्श में एक कोमलता रहती थी। वह कोमलता उनके प्यार की प्रतीक थी। वह बड़ी ही आत्मीयता से मेरे अंगों को छूते पर आज उन्हें इस रूप में देखकर मैं खुद आश्चर्यचकित थी।
जब वह मेरे स्तनों को मसल रहे थे मुझे थोड़ा दर्द भी हो रहा था यह अलग बात थी कि उनकी यह क्रिया मेरी उत्तेजना को बढ़ा रही थी।
उनका मेरे नितंबों को छूने का अंदाज और मुझसे संभोग करने का अंदाज विशेषकर तब जब मैं डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी निश्चय ही नया था। उसमें प्रेम की जगह उन्माद ज्यादा था। मैने मानस भैया को छोड़ने की सोची। मैं उन के आगोश में थी मैंने अपना चेहरा उनके चेहरे से थोड़ा दूर किया और कहा

"एक बात पूछूं?" आज आप संभोग करते समय अलग प्रतीत हो रहे थे। आज आपका संभोग करने का अंदाज अलग था।"

"नहीं छाया, ऐसी कोई बात नहीं"

"क्या सच में? मुझे तो आपके संभोग का अंदाज बिल्कुल अलग लग रहा था?"

"क्यों? तुम्हें क्यों लगा?"

"यह तो आपको ही बताना पड़ेगा" वह मुस्कुराने लगे उनके पास इस बात का जवाब नहीं था. शर्म तो उन्हें भी आ रही थी. उन्होंने हिम्मत जुटा कर कहा

"छाया, आज तुम्हें इस रूप में देख कर मेरी उत्तेजना बढ़ गई थी"

"किस रूप में देखकर?"वह फिर चुप हो गए।

जब तक मैं उनसे बातें कर रही थी मेरी हथेलियां अपने राजकुमार को सहला रही थीं। वह तना हुआ बातें सुन रहा था और उछल उछल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। उसे हमेशा से ही रानी से संघर्ष करने में मजा आता था। जाने उसे कौन सी दिव्य शक्ति प्राप्त थी वह कभी नहीं थकता ठीक उसी प्रकार जैसे छोटे बच्चे दिनभर खेलने के बाद भी उसी तरह ऊर्जा से भरे रहते हैं। मैंने फिर कहा

"बताइये ना..."

उन्होंने कहा

"छाया इन चार-पांच महीनों में तुम एक विवाहिता स्त्री की तरह दिखाई पड़ने लगी हो। तुम्हारे स्तनों और नितंबों में एक अद्भुत आकर्षण आ गया है तुम कोमल कली से पूर्ण विकसित फूल की तरह परिवर्तित हो गयी हो" संभोग के लिए तुम्हारी अवस्था इस समय आदर्श है। तुम्हारे जैसे युवती से संभोग करना एक सुखद और कामुक अनुभव है और वह भी पूरे उद्वेग और पूर्ण कामुक अंदाज में"

"पर वह तो आप पहले भी करते थे"

"हां छाया मैं तो तुम्हें शुरू से ही प्यार करता रहा और तुम्हारे कोमल अंगों से खेलता रहा पर आज मैं बहक गया था"

"तो क्या आज आप मुझे प्यार नहीं कर रहे थे?

"हट पगली, मैंने तो तुम्हें हमेशा खुद से ज्यादा प्यार किया है" वह मेरे होंठो को चूमते हुए मेरे स्तनों को प्यार से सहलाने लगे।

"मुझे बहकाईये मत आज आपका अंदाज अलग था"

"प्यार ही था हां, पर उसमे उत्तेजना ज्यादा थी" उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश की।

"पर इस अनोखे प्यार..... नाम तो होगा" मैं हँसने लगी।

"हां है..."

"तो बताइए ना..? मैने मासूम बनते हुए पूछा।

"बताऊंगा पर पहले तुम एक बात बताओ"

"क्या?"

"राजकुमारी का असली नाम क्या है?"

मैं शर्म से पानी पानी हो गयी। मैने उनके सामने आज तक अपनी राजकुमारी को समाज मे प्रचलित नाम से नहीं पुकारा था।

"बताओ ना?" उन्होंने उसी मासूमियत से पूछा।

मैं फस चुकी थी। मैने बात टालने के लिए कहा "योनि"

वो मुस्कुराने लगे। और कहा

"तो मैं भी उस समय श्वान सम्भोग ( श्वान -कुत्ता-डॉगी) कर रहा था"

मैं खिलखिला कर हंसः पड़ी। वो हमेशा से मुझसे ज्यादा हाजिर जबाब थे। मैं उत्तेजना से भर चुकी थी। मैने आखिरी दाव खेला..

"आप राजकुमार का बताइये तो मैं भी बता दूंगी" उन्होंने मुझे अपने पास खींच लिया और मुझे चूमते हुए मेरे कान के पास आकर धीरे से कहा

"लं...ड" मैं सिहर गयी। राजकुमार को उसके नाम से पुकारने पर वह भी उछल पड़ा। मानस भैया मुझे बेतहाशा चूमने लगे। उनकी उंगलियां रानी के होंठों पर आ चुकीं थी। उन्होंने उसपर दबाव बनाते हुए पूछा

"और ये क्या है?"

मैं स्वयं उत्तेजित थी। मैन उन्हें कानो पर चूम लिया और कहा

"आपकी बू...." मैंने "र" को आंग्लभाषा की तरह ध्वनिविहीन कर दिया।

वह मुझे चूमते हुए मेरी दोनों जाँघों के बीच आ चुके थे। राजकुमार रानी के मुख पर खड़ा था रानी की लार टपक रही थी। मानस भैया और मैं दोनों मुस्कुरा रहे थे उन्होंने मुझे होठों पर चुंबन दिया और मेरी आंखों में देखते हुए बोले..

"अब मैं अपनी प्यारी छाया की बू....र को अपने लं.....ड से चो…**...ने जा रहा हूँ"

मेरी आँखें उनके चेहरे के भाव नहीं देख पायीं पर उनके कहे शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे। मैं शब्दो के मायाजाल में खोयी हुई थी उधर राजकुमार रानी के मुख् में प्रवेश कर गया और उसके साथ खेलने लगा था। वह भी अब जैसे बड़ा हो गया था उसे अब शायद मार्गदर्शन की जरूरत नहीं थी.

रानी के साथ उसके बर्ताव में थोड़ा बदलाव आ गया था परंतु मेरी रानी को यह बदलाव भी उतना ही प्यारा था।

मेरी सांसे तेज चल रही थी। मैं स्वतः डॉगी स्टाइल में आने को लालायित हो रही थी।

मानस भैया ने मेरे मन की बात पढ़ ली। उन्होंने मेरे नितंबों को सहारा देकर मुझे पलटा दिया। वे एक बार फिर मुझे चो..** रहे थे।

मैं मानस भैया से और खुल रही थी और मन ही मन खुश हो रही थी।



"मैं मानस"
अगली सुबह सीमा चाय पीने के बाद मेरे कमरे में आयी. मैने अपनी पत्नी को जन्मदिन की एक बार और बधाई दी. उसकी रानी भी अपने राजकुमार से बधाई लेने की पात्र थी. सीमा के वस्र उत्तर रहे थे...उनका मिलन स्वतः प्रारम्भ हो रहा था.

आज दोपहर में माया आंटी और शर्मा जी आने वाले थे.



अनुपम कलाकृति (छाया का उपहार)
(मैं मानस)

सुबह अपने ड्राइंग रूम में दो अद्भुत पेंटिंग देखकर मैं पेंटिंग बनाने वाले की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाया अद्भुत पेंटिंग थीं सफेद रंग के कैनवास पर लाल और पीले रंग की प्रयोग से एक अद्भुत कलाकृति बनी हुई थी उस पेंटिंग के बीच में भी एक अजीब सी सुंदर आकृति दिखाई पड़ रही थी.

ऐसा प्रतीत होता था जैसे उस खूबसूरत कृति को सजाने के लिए अलग-अलग रंगों का प्रयोग किया गया था. दोनों ही पेंटिंग एक से बढ़कर एक थीं. मैंने छाया से पूछा कौन है यह कलाकार छाया के बोलने से पहले सीमा बोल पड़ी. दोनों ही पेंटिंग्स में आपका ही योगदान है. मैं समझ नहीं पाया मैंने उससे फिर पूछा

“पहेलियां मत बुझाओ सीमा. मुझे बताओ यह पेंटिंग किसने बनाई हैं “ सीमा और छाया दोनों हंस पड़े. मैं मासूम बच्चे की तरह उन दोनों को देख रहा था और वह दोनों मुस्कुरा रहीं थी. छाया मेरा हाथ पकड़ कर एक पेंटिंग के पास ले गई और बोली यह आपकी और सीमा भाभी की पेंटिंग है. इस चादर के टुकड़े को याद कीजिए और बीच में बनी आकृति को पहचानिये . यह सीमा दीदी के कौमार्य भेदन की निशानी है. पेंटिंग के केंद्र में आपको सीमा दीदी की राजकुमारी का रक्त मिलेगा. मेरी खुशी की सीमा न रही मुझे समझते देर न लगी कि अगली पेंटिंग मेरी और छाया की सुहागरात की निशानी थी. मैने अपनी दोनो अप्सराओं को गले लगा लिया मैं इस अद्भुत कलाकृति से बहुत प्रभावित था.

छाया ने सीमा के जन्मदिन पर अनोखा उपहार दिया था. मैने छाया को अपनी गोद मे उठा लिया। जब तक कि मेरे होठों से चूमने के लिए उसके गालों तक पहुंचते मेरी नजर सोमिल पर चली गई वह दरवाजा खोलकर हाल में प्रवेश कर रहा था मैंने छाया को तुरंत ही अपनी गोद से उतार दिया। सोमिल ने हमें इस हाल में देखकर वापस दरवाजा बंद कर दिया और रूम में जाने लगा। सीमा ने उसकी मनोदशा भाप ली थी। वह जाकर उसे बुला लाई और पेंटिंग दिखाने लगी वह पेंटिंग की दिल खोलकर प्रशंसा कर रहा था। पेंटिंग के राज को राज रखना उचित था। हम तीनों भी पेंटिंग बनाने वाले की तारीफ कर रहे थे।

माया जी का खुशहाल परिवार

(मैं माया)

घर की कॉल बेल बजते ही मुझे अंदर से मानस की आवाज सुनाई पड़ी

"लगता है माया आंटी आ गई" कुछ ही देर में दरवाजा खुला. मैं छाया को देखकर आश्चर्यचकित थी. मुझे लगा वह आज ही यहां आई थी वह बहुत सुंदर लग रही थी. घर के अंदर प्रवेश करते ही मुझे मेरा खूबसूरत उपहार मिल चुका था छाया के चेहरे की खुशी बता रही थी कि का विवाहित जीवन सुखमय था.

अंदर पहुंचकर सोमिल ने मेरे पैर छुए। मानस मैं भी मेरे पैर छूने की कोशिश की पर मैंने मानस को बीच में ही रोक लिया।

मैंने सीमा को गले से लगा लिया आज उसका जन्मदिन था. शर्मा जी भी हाल में खड़े थे सभी बच्चों ने उनका भी अभिवादन किया. मैं और शर्मा जी अपने कमरे में चले गए.

आज शाम को हमें सीमा की जन्मदिन की पार्टी में शरीक होना था जो एक पांच सितारा होटल में रखी गई थी मैं और शर्मा जी दोनों ही सफर की थकान से चूर थे.

शाम को पांच सितारा होटल में छाया और सीमा को खूबसूरत कपड़ों में देखकर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी बहू और बेटी दोनों अप्सराएं थी. उन दोनों ने मानस के जीवन में वो रंग भरे थे जो एक पुरुष को कल्पना में ही नसीब होते है.

सोमिल छाया को पाकर निश्चय ही धन्य हो गया होगा ऐसा मेरा अनुमान था. सोमिल और मानस अपनी-अपनी पत्नियों के साथ टेबल पर बैठे थे मैं और शर्मा जी भी उनका साथ दे रहे थे. हम सभी अत्यंत प्रसन्न थे हमें अपने जीवन के सारे सुख मिल चुके थे. शाम को होटल से आने के बाद छाया और सीमा अपने-अपने पतियों को लेकर कमरे में जा चुकी थीं. मैं भी शर्मा जी को लेकर अपने कमरे में आ गयी. आज हमारे घर में दिवाली थी तीनों ही पुरुष आज पूरी तरह संभोग के लिए आतुर थे.

हम तीनों स्त्रियों भी उनकी कामुकता को शांत करने और अपना सुख लेने के लिए तैयार थीं.

सुबह उठकर मैं मानस के कमरे से सीमा को बुलाने गई दरवाजा नाक करने के बाद अंदर से छाया की आवाज आई "सीमा दीदी आ रही हूं" मैं छाया की आवाज सुनकर दंग रह गई।

मानस के कमरे में छाया थी यह मैं सोच भी नहीं सकती थी. मैंने बिना कुछ बोले इंतजार किया छाया ने दरवाजा खोला वाह एक पतली सी पारदर्शी नाइटी पहनी हुई थी जो उसके शरीर को ढकने में पूरी तरह नाकाम थी.

उसके स्तन स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे नाइटी बड़ी मुश्किल से उसकी नितंबो तक पहुंच रही थी मेरी छाया अद्भुत कामुक लग रही थी पर वह मानस के कमरे से निकली थी. यह मेरे लिए आश्चर्य का विषय था।

मैं उससे यह भी नहीं पूछ पाई कि अंदर सीमा है या नहीं.उसे इस अवस्था में देखकर मैं मानस और उसके संबंधों को लेकर आश्चर्य में थी। कुछ ही देर में सीमा सोमिल के कमरे से निकलती हुई दिखाई पड़ी। मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी. मैंने उन दोनों को उसी स्थिति में छोड़ दिया और अपने कमरे में चली गई.

मेरी धड़कन तेज थीं। छाया और सीमा ने अपने-अपने पतियों को खुश करते हुए जीवन जीना सीख लिया था. अब वह दो नहीं चार थे.

छाया को मानस का साथ इस प्रकार आगे मिलता रहेगा यह सोचकर मैं बहुत खुश थी. अब मैने उन चारों का आपस में एक साथ रहना स्वीकार कर लिया था.

कुछ देर बाद मैं वापस हाल में आई और सामान्य होते हुए बातें करने लगे. सोमिल और मानस भी तब तक हॉल में आ चुके थे

छाया के चेहरे पर खुशी के भाव थे और मानस के भी। सीमा और साहिल भी खुश लग रहे थे. भगवान ने उन चारों को इतनी अच्छी समझ और एक दूसरे को प्यार करने की इतनी शक्ति दी थी यह एक वरदान था. मेरा परिवार खुशहाल था और मैं भी शर्मा जी के साथ जिंदगी का लुफ्त ले रही थी. मैंने ऊपर वाले से अपनी कृतज्ञता जाहिर की और किचन में खाना बनाने चल पड़ी.


(मैं मानस)

छाया के साथ हुए नए संभोग ने मेरे मन में छाया के प्रति एक नयी किस्म की कामुकता को जन्म दिया था। छाया को मैंने किशोरावस्था से लेकर इस अद्भुत यौवन तक अपने हाथों से बड़ा किया था। उसके स्तनों, जांघों, नितंबों और पूरे शरीर की मैने इतनी मालिश की थी कि मुझे उसके हर अंग से प्यार हो गया था। पर इन पांच छह महीनों में साहिल के साथ रहकर वह और जवान और कामुक दिखाई देने लगी थी।

उसका चेहरा अभी भी मासूम और प्यारा था पर शरीर अत्यधिक कामुक हो चला था वह संभोग की देवी बन चुकी थी ऐसा लगता था यदि उसके साथ पूरी उत्तेजना और उद्वेग से संभोग न किया जाए तो यह उसके कामुक शरीर का अपमान होता. जब भी मैं उसे डॉगी स्टाइल में देखता मेरी छाया जाने कहां लुप्त हो जाती और मेरे सामने संभोग के लिए आतुर मदमस्त नवयौवना दिखाई पडती. ऐसा प्रतीत होता जैसे उसे जी भर कर चो….**.कर ही उसके मदमस्त यौवन से न्याय किया जा सकता था..

छाया यह बात जान गई थी. दोपहर में ससुराल जाने से पहले एक बार वो फिर मेरे कमरे में आयी। छाया ने स्वयं ही डॉगी स्टाइल में आते हुए मुझसे कहा..

"लीजिए अब आप की छाया गुम हो गयी" उसने मुस्कुराते हुए अपना चेहरा बिस्तर से सटा लिया . मैं उसकी बात समझ गया था. नाइटी ऊपर उठाते ही सुंदर नितंबों के बीच से लार टपकाती रानी झांक रही थी। में एक बार पुनः पूरे उद्वेग और उत्तेजना से उसे चो...ना शुरू कर चुका था. जब भी मुझे उसका चेहरा दिखाई देता मेरी कामुकता प्यार में तब्दील हो जाती और मैं छाया के होंठों और गालों को चूमता हुआ उसकी रानी को अपने असीम प्यार से स्खलित कराने लगता. छाया मेरे लिए अब दो रूपों में उपस्थित थी. मेरे लिए उसके दोनों ही रूप उतने ही प्यारे थे. आखिर छाया तो छाया थी मेरी सार्वकालिक प्रियतमा. इन दो तीन दिनों के प्रवास में मेरे और छाया के प्रेम में नया रूप आ चुका था। वासना जवान हो रही थी पर प्यार अपनी जगह कायम था। जाते समय बो फिर रो रही थी में भी अपने आंशू न रोक सका और रुंधे हुए गले से कहा

"सोमिल का ध्यान रखना औऱ खुश रहना"
उलझे संबंधों को निभाने का एक काबिलेतारीफ कोशिश
 
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उलझे संबंधों को निभाने का एक काबिलेतारीफ कोशिश
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हाजिर हूं जनाब
 

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शानदार अपडेटस
अब कुछ नया धमाका कर दो
 
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यदि हो सके तो एक सेशन माया सोमेल और मानस का बनाएं
तथा छाया सीमा को शर्मा जी के साथ शेयर करें
 
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भाग 5
हमारा घर हमारा स्वर्ग.
(मैं मानस)
सोमिल के भाई संजय की नौकरी पुणे में लग गई थी सोमिल के माता पिता उसके साथ वहीं शिफ्ट हो रहे थे क्योंकि वह वहां अकेले था। उनके बेंगलुरु वाले घर में सिर्फ सोमिल और छाया ही अकेले थे।
संयोगवश कुछ ही दिन बाद शर्मा जी की पोस्टिंग स्पेन में हो गई थी वह 6 महीने के लिए विदेश जा रहे थे मैंने और सीमा ने माया आंटी को प्रोत्साहित कर उन्हें भी शर्मा जी के साथ जाने के लिए मना लिया।
उनकी स्वयं भी इच्छा यही थी पर हमारा समर्थन पाकर वह खुश हो गई। उनके जाने के पश्चात हमारा घर पूरी तरह से खाली था। सीमा ने छाया और सोमिल से बात की दोनों ने सहर्ष हमारे घर में रहना स्वीकार कर लिया।
कुछ ही दिनों में सोमिल और छाया हमारे घर आ चुके थे. हमने उनके स्वागत की भव्य तैयारियां की थी.

छाया के आने के बाद से हमारे घर के दोनों फ्लैट जो आपस मे जुड़े हुए थे युगल दंपतियों से सजे हुए थे. हमारे बीच का दरवाजा खुला था और यही हमारे रिश्ते में था. हमारे शयनकक्ष एक दूसरे के लिए खुले थे सीमा और छाया फिर से स्वतंत्र हो गयीं थी.
हमारे जीवन का दूसरा हनीमून शुरु हो चुका था और इसका आनंद अलग ही था. हम साथ में खाना बनाते खाते और अपने अपने कमरों में चले जाते कौन किसके साथ जा रहा था इसमें हमारी ओर से कोई नियम नहीं था. हमने छाया को इस व्यवस्था का प्रभारी बना रखा था. छाया जिधर जाती सीमा तुरंत ही दूसरी तरफ मुड़ जाती.
कभी-कभी छाया सीमा को लेकर दूसरे कमरे में चली जाती वो दोनों आपस मे हीं मस्त हो जातीं और हम दोनों भजन करते हुए सो जाते.
पर अगले ही दिन हमें दोनों अप्सराओं के दर्शन एक साथ होते. यह हमारे लिए पिछली रात में मिले एकांत का उपहार होता. जीवन में मिली इन खुशियों के लिए हम भगवान के प्रति कृतज्ञ थे.
इन दोनों अप्सराओं ने हर परिस्थिति में हमारा साथ दिया था. दोनों हीं कामकला में पारंगत हो गयीं थीं घर में उपलब्ध जिम में दोनों जी भर कर एक्सरसाइज करतीं और अपने शरीर को स्वस्थ रखतीं थीं.

सीमा अभी भी शारीरिक बनावट में छाया से आगे थी उसके शरीर में गजब का कसाव था. छाया ने भी एक्सरसाइज कर अपने शरीर में कुछ कसाव लाया था पर वह अत्यंत कोमल थी. फूल हमेशा फूल ही रहता है. इतने वर्षों में उसमें सिर्फ एक परिवर्तन आया था वह कली से फूल बन चुकी थी और पिछले कुछ महीनों से संभोग का नया आनंद लेते लेते हुए उसके चेहरे पर एक अलग सा निखार आ गया था. अब वह कामुक युवती बन चुकी थी. पर मेरे लिए वह अभी भी मासूम ही थी.

अकेली छाया और हम दो
एक बार सीमा अपने ऑफिस के काम से दिल्ली गई हुई थी. उस रात हम तीनों ही घर पर थे. छाया ने हम दोनों के लिए खाना बनाया और हम तीनों ने साथ में खाना खाया. खाना खाने के पश्चात मैं अपने रूम की तरफ चला गया. छाया मुझे जाते हुए देख रही थी. मैं स्थिति की गंभीरता को समझता था. आज छाया के लिए गंभीर घड़ी थी उसकी सहेली उसे अकेला छोड़ कर चली गई थी. और आज उसके लिए अजीबोगरीब स्थिति हो गई थी. वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि कैसे मेरा और सोमिल का ख्याल रख पाएगी. पर छाया तो छाया थी चतुर, निपुण, और विषम स्थितियों में खुशियां ढूंढ लाना उसका स्वभाव था. वह आज की स्थिति में भी कुछ नया करने वाली थी.

[मैं छाया]
मुझे सोमिल और मानस दोनों की आंखों में वासना दिखाई दी थी. कल छुट्टी होने की वजह से वह दोनों संभोग के लिए प्रतीक्षारत थे. मैं यह बात समझ गई थी पर दोनों में से किसी ने मुझसे कुछ नहीं कहा था. उन्होंने यह मुझ पर छोड़ दिया था.
आज तक सोमिल और मानस ने एक साथ कभी सेक्स नहीं किया था. मैंने और सीमा ने कई बार इन दोनों के साथ यह सुख लिया था. आज मेरे पास मौका था इन दोनों को एक साथ लाने का. पर मैं बिना सीमा दीदी के यह नहीं करना चाह रही थी.

खाना खाते समय मैंने प्रश्न किया
“मुझे अपने प्रोजेक्ट में मदद चाहिए मेरी मदद कौन करेगा?” यह खुला प्रश्न था. हम चारों एक ही प्रोफेशन से संबंधित थे तथा एक दूसरे के कार्य के बारे में भली-भांति अवगत थे. सोमिल तो मेरे बॉस ही थे. प्रोजेक्ट में उनसे ज्यादा मदद कौन कर पाता . वह दोनों चुप थे और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे. मैंने मुस्कुराते हुए फिर कहां
“बताइए ना”
मानस ने कहा
“अरे जिसने तुम्हें प्रोजेक्ट दिया है वही तुम्हारी मदद करेगा” दोनों हंसने लगे मैं भी मुस्कुरा रही थी.
“पर कुछ टिप्स तो आपको भी देनी पड़ेगी अपने हमेशा मेरी हेल्प की है”
वो दोनों अपने अपने कमरे में चले गए.
मैंने सुर्ख लाल रंग की सामने से खुलने वाली नाइटी पहनी हुई थी. कुछ ही देर में मैंने सोमिल के कमरे में उसे दूध का गिलास दिया और दूसरा गिलास लेकर मानस के कमरे में जाने लगी. सोमिल ने मुझसे कहा “ जल्दी आना “
मैंने उन्हे पलट कर देखा और मुस्कुरा दी
“थोड़ा इंतजार कर लीजिएगा पूरा प्रोजेक्ट आपको ही बनाना है. मैं तो सिर्फ टिप्स लेकर आतीं हूँ.” सोमिल मुस्कुरा दिए थे.
मैं बाहर आ गयी. मानस मेरा इंतजार कर रहे थे मेरे पहुंचते ही उन्होंने मुझे अपने आगोश में ले लिया मैंने उनसे कहा
“पहले दूध तो पी लीजिए ठंडा हो जाएगा” उन्होंने गिलास का दूध एक झटके में खत्म कर दिया और अधीर होकर मुझे बेतहाशा चूमने लगे. उन्हें शायद इस बात का अंदाजा था कि सोमिल मेरा इंतजार कर रहे थे. कुछ ही देर में मैं उनके साथ निर्वस्त्र होकर प्रेमालाप कर रही थी. सीमा की अनुपस्थिति में यह एक अलग आनंद दे रहा था ऐसा लग रहा था जैसे मैं सोमिल और सीमा दोनों से नजरे चुरा कर यह कार्य कर रही हूँ. जल्दी के लिए मैंने खुद को डौगी स्टाइल में कर दिया मानस ने मुझे कसकर चो....... और हम दोनों ने एक दूसरों को अपने प्रेम रस से भिगो दिया. मानस ने स्खलन के समय मुझे सीधा कर दिया और अपना सारा वीर्य मेरे स्तनों, गालों और चेहरे पर गिरा दिया मैंने अपनी नाइटी पहनते समय यथासंभव उसे पोछने की कोशिश की पर उनका रंग मेरी आत्मा और शरीर दोनों पर पड़ चुका था. वह पोछने योग्य नहीं था. मैं अपनी नाइटी पहन कर वापस सोमिल के पास आ गई. सोमिल ने मुझे देखते ही बाहों में भर लिया इससे पहले कि वह आगे बढ़ते मैंने उससे हाथ छुड़ाते हुए कहा
“बस मुझे 2 मिनट दीजिए मैं आती हूं” वह जबरदस्ती करने लगे.
मैं उन्हें यह बता नहीं सकती थी कि मैं मानस ने प्रेम रस में भीगी हुई हूँ . पर अंततः मुझे उन्हें बताना पड़ा कि मैंने अभी सीमा दीदी की भूमिका अदा कर दी है मुझे कुछ समय दीजिए मैं आपकी पत्नी बन कर आती हूं. इतना कहकर मैं बाथरूम में भाग गई. सोमिल मुस्कुरा रहे थे. कुछ ही देर में मैं वापस प्रस्तुत थी. मुझे अपने मन ही मन में एक अजीब ख्याल आ रहा था. जैसे मैं दो पुरुषों के साथ संभोग कर रही हूँ.
कभी कभी मेरे मन में वेश्यावृत्ति जैसी भावना आ रही थी पर मैं अपने आप को समझा रही थी. मानस मेरे सर्वकालिक प्रिय मित्र थे और सोमिल मेरे पति मुझे इसमें कोई अपराध बोध नहीं था. पर वेश्यावृत्ति की बात से मेरे मन में एक अलग किस्म की कामुकता जगी. सोमिल के साथ संभोग करते समय मेरे मन में वेश्या वाली बात दिमाग में घूम रही थी. मैंने अपने आप को उसकी जगह रखकर सोमिल के साथ भरपूर संभोग किया. वह मेरे इस उत्साह को देखकर दंग थे. कुछ ही देर पहले मैंने मानस के साथ संभोग किया था और बस 15 मिनट के बाद मैं दुबारा संभोग के लिए प्रस्तुत थी. मेरी रानी तुरंत स्खलित होने के लिए तैयार नहीं थी. मैं यह जानती थी पर मैंने सोमिल की खुशी के लिए अपनी राजकुमारी को सोमिल के राजकुमार पर जी भर कर रगड़ा. सोमिल इस उत्साह को देखकर दंग थे अंततः उन्हें स्खलित होना ही पड़ा. वह राजकुमारी के कंपन महसूस न कर पाए पर मेरे मन में संतुष्टि के भाव थे. मेरी राजकुमारी को जो तृप्ति कुछ समय पहले मानस से मिली थी वह उसमें ही खुश थी. मैं और सोमिल नग्न अवस्था में ऑफिस का प्रोजेक्ट बनाने लगे। प्रोजेक्ट बनते बनते मैं एक बार फिर स्खलित हो चुकी थी और सोमिल के वीर्य से भीग भी गयी थी.

छाया साउथ अफ्रीका में
(मैं मानस)
मुझे साउथ अफ्रीका जाना था वहां पर मेरा तीन दिन का सेमिनार था मैंने जब यह बात छाया को बताई वह बहुत खुश हुई उसने कहा
"मैं भी आपके साथ साउथ अफ्रीका जाना चाहती हूँ। मैंने वहां के बारे में बहुत सुना था"







छाया की झोली में तीसरा रत्न आने वाला था.

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william simson
 
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juhi gupta

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में क्या टिप्पणी करू लवली आनंद जी ,आपने तो इस कहानी को इतने सुन्दर तरीके से लिखा हे की शब्दों में बयां नहीं कर सकती ,आपने वाकई में मानस छाया और सीमा के आपसी सम्बन्धो का इस तरह ताना बाना बना हे की गलत होते हुए भी वो गलत नहीं लगते ,शायद हर लड़की की यही कल्पना होती होगी की उसे मानस जैसा साथी मिले जो प्यार करते समय प्यार भी करता हो और अगर वो सेक्स में तड़का चाहे तो वैसा भी सेक्स करे ,आपने मानस भैया नो नो नो मानस भैया तो सिर्फ छाया के लिए ,मानस को वाकई कामदेव बना दिया आपने।
छाया की खूबसूरती का शादी से पहले और शादी के बाद आपने जिस तरह वर्णन किया हे उससे वो वाकई रति का अवतार लगने लगी हे ,सीमा जिस तरह मानस ,छाया और सोमिल के साथ रिश्तो को निभा रही हे वो भी अपने आप में बिलकुल अलग हे .
सही बात तो ये हे के आपने इस कहानी को उस ऊँचे मुकाम पर पंहुचा दिया हे की कोई भी लेखक इस कहानी के आसपास तक दूर दूर तक नहीं पहुंच सकता। इस कहानी से पहले में कई लेखकों की कहानिया पसंद करती थीलेकिन इस कहानी के बाद में उनकी कहानी पसंद कर पाऊँगी इसमें संदेह हे मुझे।
लवली आनंद जी आप लीखिये, खूब लिखिए हम हमेशा आपके द्वारा लिखी जाने वाली रचना का बेसब्री से इन्तजार करेंगे ,हम अपना कमेंट करे या ना करे ,ना आप इन कमेंट्स के मोहताज हे लेकिन हम आपकी रचनाओं के हमेशा हमेशा मुंतजिर रहेंगे
 
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