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Incest मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना) (Completed)

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जैसे ही मैंने कहा, में फ़ोन के उसपार से माँ का एक तेज साँस की आवाज़ सुना. मुझे ऐसे इमोशन के साथ कहते हुए सुनके माँ शायद काप उठि होगी. इस लिए कुछ टाइम वह चुप हो गयी. हम दोनों ही फ़ोन पकड़ के बैठे है. जैसे की वह मेरे प्यार को महसुस कर रही है. थोडे टाइम बाद वह खुद को कण्ट्रोल करके धीरे धीरे अपने दिल का दरवाजा भी खोलने लगी. और यह मुझे पता चला तब, जब वह अपनी कपकपाती आवाज़ से फुसफुसाते बोली
" आय लव यु टू"
मा पहली बार अपने मुह से मेरे लिए प्यार जताई. और वह सुनके में ख़ुशी से पागल हो गया. मेरा खुन तेजी से दौड़ने लगा. और एक अजीब अनुभुति मेरे दिल में भरने लगी. मैं इमोशनल होकर आँख बंद करके थोड़ा पीछे हिलके अपने सर को दिवार पे टेक लगाया. जैसे की में हवा में बादल के साथ भागे जा रहा हु, ऐसे फील हुआ. मैं प्यार भरी आवाज़ से धीरे धीरे, आलमोस्ट फुफ्फुसाके बोलने लगा
"मैं हमेशा से मेरे मन में विश करके आया की मुझे एक खूबसूरत बीवी मिले.... और आज दुनिया की सबसे खुबसुरत, सबसे प्यारी लड़की..... मेरी बीवी बनने जा रही है. इससे ज़ादा मुझे कुछ नहीं चहिये"
ओर में चुप हो गया. थोड़ी देर बाद माँ रुक रुक के कहि
"ईससे पहले.... और एक बार.......सोच लेना चाहिये"
" क्या?.....कीस बारे में?"
" पापा मम्मी हमारे बीच......जो रिश्ता चाहते है"
" क्यों?"
इस बार वह थोड़ा टाइम चुप रहि. फिर से कहि
" हर जवान लड़का एक नवजवान लड़की पसंद करता है"
अब मुझे समझ आया माँकी दुविधा. वह सोच रही है नाना नानी की बातों में आके में राजि हुआ इस रिश्ते के लिये. लेकिन में उनको कैसे समझाऊ की मेरे अंदर में कब से उनको प्यार करते आ रहा हु, उनको चाहते आरहा हुँ. तोह मैंने आवाज़ में प्यार भर के कहा
" मुझे ना कभी कोई नवजवान लड़की दिखि, जिसको में चाहू, न कोई है, जो तुम जैसी प्यारी और खुबसुरत मेरे दिल में बस एक ही लड़की है...और रहेगी.........वह है..तुम"
वह कुछ सोचके बोली
" लेकिन मेरे में भी ...मुझमे भी .बहुत सारी खामिया है"
" मतलब... क्या?"
फिर चुप है. मैं सुनने के लिए बेताब हु की वह क्या बोलना चाहती है. कुछ मोमेंट्स बाद वह धीरे धीरे बोली
" मैं ३६ की हुँ. बस कुछ दिन मे.....में बूढी हो जाउंगी....."
मैं तुरंत जवाब दिया
" तोह में उनको भी उतना ही प्यार दूँगा, उतनी ही ख़ुशीदूँगा, जो अब देना चाहता हुँ. और उतना ही चाहूंगा, जैसे अब चाहता हुँ"
शायद मेरी बात उनको अच्छा लगा. लेकिन फिर वह बिलकुल खोई हुई आवाज़ से संकोच करते करते बोली
"और अब.......अगर....अगर....में दोबारा माँ नहीं बन पाई तो!!"
मैं जैसे ही इस बात का मतलब समझा, अचानक मेरा ग्रोइन एरिया में एक अद्भुत सनसनी अनुभव करने लगा. जिसके फल स्वरुप मेरा पेनिस के अंदर खुन दौड़ने लगा. पर यह परिस्थिति उसके लिए नहीं है. इसलिए में खुद को कण्ट्रोल किया.
ओर अब यह भी मेहसुस किया की वह किस किस बातों को लेके अपने अंदर जूझ रही है. वह नहीं चाहती है अपने प्यारे बेटे की लाइफ कुछ पल के गलत डिशिजन से ख़तम हो जाए. इस रिश्ते को अपनाके, बाद में कोई भी कारन लेके पछतावा नहो. इस में वह भी दुखी होगी और में भी. लेकिन में इस बात को क्लियर करना चाहा. पर कैसे? मैं बस ऐसेही बोलना सुरु किया.
" मैं बचपन से जिनके साथ खुशियां बाट ते आ रहा हु, उनके साथ ही मेरा हर ग़म शेयर करता हुँ. मेरा हर सुख, दुख, हसि, रोना, आनंद, शान्ति सब कुछ उनके साथ ही जुड़ा हुआ है. न कभी किसी लड़की को आँख उठाके देखा, न किसीको चाहा. और न कभी किसीको चाहूंगा. मेरे दिल में, हरपल, जो मेरा दोस्त, मेरी प्रेरणा स्त्रोत है, उनको अपना जीवन साथी बनाके ज़िन्दगी गुजार ने में जो ख़ुशी है, उससे ज़ादा कुछ नहीं चाहिये. उसमे ही मुझे सब कुछ पाना हो जाएगा"
एक मोमेंट रुक के फिर से बोला
" अगर हमारा नसीब में कुछ लिखा है, तोह उसको हँसते मुह से स्वागत करेंगे, अगर कुछ लिखा नहीं है तोह उसको भी हँसते मुह से स्वीकार करेंगे, कभी ग़म नहीं आएगा."
मैं चुप हो गया. मुझे खुद को मालूम नहीं था में इतनि सारी बात बोल पाऊंगा. पर यह बोलके दिल में सुकून मिल रहा है. मैं कभी किसीको प्यार का इज़्हार नहीं किया. आज मेरी होनेवाली बीवी को बोल दिया. मैं उस तरफ़ की भावनाएं जानने के लिए गौर से सुनने लगा की वह क्या कहती है. लेकिन सब चुप है. अचानक मुझे सिसकी लेने की आवाज़ मिली. मैं समझ नहीं पाया. फिर से वह आवाज़ आयी. अब में परेशान सा होने लगा. कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैं उतावला हो गया. पर थोडे टाइम में जैसे ही सब कुछ क्लियर हुआ, मेरा छाती में पाणी का तरंग खेल गया. मेरा दिल पिघल ना शुरू हो गया. माँ उस तरफ रो रही है. मुझे मालूम है, मेरी बातों से उनको यह आँसू बहाना पड़ रहा है. मैं उनको कुछ कहना चाहा. पर मेरा गला भी बुजा हुआ है. कुछ नहीं आ रहा है. केवल एक इचछा मन में दौड़ने लगी
 

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मन कर रहा है इस वक़्त में उनके पास रहकर, उनको बाँहों में लेके, अपना शरीर के साथ मिलाके, उनकी जिस प्यार भरी सुन्दर नाज़ुक आँखों से आंसू आ रहा है, उसको चुमते रहु, और उन आंसू को में पी जाऊ इस शपथ के साथ की में कभी उन आँखों से एक बून्द भी आंसू अने नहीं दूँगा. मैं धीरे से बोलना चाहा और मेरी ग़लती के लिए माफ़ी माँगना चाहा . सो की वह इस भावना प्रक्षेपण से बाहर आजाए. पर में यहाँ एक बाधा फेस करने लगा. हमेशा उनको माँ कहके पुकारता था अब इन परिस्थिति में क्या और कैसे बुलाना है, यह सोच के भी कुछ फैसला नहीं कर पा रहा हुँ. पति अगर पत्नी को नाम से बुलाये तो स्वभाबिक है. पर यहाँ पत्नी उमर में भी बडी और रेस्पेक्ट से भी. इस लिए उनको नाम से बुलाना थोड़ा उनकंफर्टबले लगा. जब उस तरफ थोड़ा शांत हुआ, में कुछ न पुकार के धीरे से उनको बोल
" मुझे माफ़ कर दो"
वह समझ गयी की में समझ गया उस तरफ क्या हो रहा है. सो वह खुद को सम्भाला. और आवाज़ में थोडी हसि मिलाके प्यार से कहि
" क्यों?"
मैं चुप था उनके मन की भवनाओ को समझने की कोशिश किया. फिर अपनई ग़लती को सुधरने का प्रॉमिस करते हुए कहा
" मैं और कभी नहीं रुलाउंगा"
मा इस बार थोडी हास पडी. और एक परम तृप्ति के साथ कहा
" बुद्धु....ऐसे आंसू बार बार बहाने के लिए कोई भी लड़की खुद को सौभाग्यशाली महसुस करती है. मैं आज इतने दिन बाद खुद को एक सौभाग्यषाली मेहसुस कर रही हुं...क्यों की....."
मैं फिसफिसाके कहा
"क्य?"
वह फिस्फीसके कपकपाती हुई मीठी स्वर में बोली
" मुझे ...मुझे आप जैसा पति मिल रहा है"
येह सुनके मेरा दिल तेज धड़क ने लगा. अब तोह यह लग रहा है कि, उनसे ज़ादा में भाग्यवान हुँ. वह हमारे होनेवाले नये रिश्ते को अभी से इस तरह अपना लिया और उनकी दिल का दरवाजा मेरे लिए पूरा खोल दिया. उनकी आखरि बात मेरे मन में एक घंटी जैसा बार बार बजने लगा. मैं खुश होकर एक चीज़ जो मेरे कान में खटक गया, वही कह दिया उन्होंने सब ठीक कहा है पर एक मिस्टेक करदि. वह मुझे ग़लती से 'आप' कह दी. जब उनको बताया , तोह उंनका कहना है की वह ग़लती से नही, जान बूझ के जो कहना सही है, वहि बोली है. इस बारे में उनके साथ बात चित होने लगा और उनकी बात मुझे समझ आया. आखिर में मुझे एक साफ़ तस्वीर नज़र आया. वह अंदर से और बाहर से पूरी तरह भारतीय नारी है. नाना नानी भी उनका परवरिश वैसे ही किया है. उनके पास, पति उमर में बड़ा हो या छोटा, पति पति होता है, रिश्ते में बड़ा होता है. सो वह अपना पति को आप कहके ही बुलाना पसंद करेगि. ऐसे हम धीरे धीरे अपने दिल का दरवाजा एक दूसारी के लिए खोल दीए. एक दूसरे को जानने लगए. उस रात बहुत सारी बातों बातों में हमे वक़्त का पता ही नहीं चला. और हम सुबह ४ बजे तक बात करते रहे. जब में सोने गया, तब मुझ में बस वह छायी हुई थी. अब में उनको मेरी बीवी के रूप में हर तरीकेसे पाने की चाहत में डुबा हुआ हुँ. और हा...में उनको आज बार बार बोलने के लिए सोचा, फिर भी यह नहीं बोल पाया की में कब से, और कैसे उनको चाहते आ रहा हुँ. पता नहीं आखिर यह बात उनको कभी बता पाऊंगा या नही.
 

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ज़िन्दगी खुसबसुरत है यह मैंने सुना था और अब मेहसुस भी कर रहा हुँ. हो सकता है मेरी ज़िन्दगी बचपन से बाकि औरों जैसी नही थी. और न औरों जैसी अब होने जा रही है. पिताजी की मौत के बाद , माँ ने खुद एकसाथ माँ-बाप का किरदार निभाई. एक सिंगल पैरेंट के लिए एक कठिन चैलेंज था मुझे सही तरीकेसे पाल पोस के बड़ा करनेका. और वह यह चीज़ बखूबी से निवाया. हा..में यह भी मानता हु इस में मेरे नाना जी और नानी जी का बहुत सारा कॉन्ट्रीब्यूशन है. पर माँ हमेशा अपनी दोनों हाथों से मुझे संभाल के रखा. और इस लिए उनके साथ मेरा लगाव भी शायद औरों से ज्यादा.बहुत ज्यादा है. और अब तोह्....
आज कल में खुद को एक स्वाधीन , परिपूर्ण आदमी जैसा मेहसुस कर रहा हुँ. अपनी लाइफ खुद कैसे बनायेंगे, उसके लिए लगा हुँ. और अब हर कदम में में जो डिसिशन ले रहा हु या जो भी कुछ करने जा रहा हु, वह सब मेरी होनेवाली बीवी के सपोर्ट और इज़ाज़त से हो रहा है. जब हमारी लाइफ हम दोनों को ही एकसाथ बीतानी है, एक साथ हर कदम मिलके चलना है, तब हम अभी से एक साथ हमारा घर , हमारा फॅमिली और हमारा फ्यूचर की सारी सोच एक ही साथ सोच रहे है. माँ की हर ख्वाइश, हर इच्छा पूरी करना चाहता हुँ. वह जो चाहेँगी, जैसे करना पसंद करेंगी, सब कुछ में वैसे ही करना चहुंगा. उनके सुख में ही में सुख ढूंढ लुंगा, उनकी ख़ुशी में ही में ख़ुशी पाऊंगा. वह मुझे अब पत्नी की तरह प्यार भी करती है, वैसे कभी कभी डाँटती भी है. मुझे उनकी वह चीज़ें बहुत पसंद है. हमेशा उनका प्यार , ममता, स्नेह के साथ डाँट भी मिला है. और आज नए रिश्ते में जुड़ने के बाद भी उनके हर बेहवे में वह सब का हल्का टच मेहसुस करता हुँ. पर फरक यह है की आज कल वह मुझे रेस्पेक्ट भी करती है और में यह मेहसुस भी कर पता हुँ. उनका इस तरीके से मेरे साथ पेश होना मुझे और प्यारा लगता है. शायद इस लिए मुझे और प्यार आता है उनके उपर.
आज लंच ऑवर के थोडे बाद उनका फ़ोन आया. मैं ऑफिस टॉयलेट में तब सुसु कर रहा था जैसे ही मोबाइल स्क्रीन पे उनके नाम के साथ साथ उनका स्माइल किया हुआ फोटो नज़र आया, मेरे अंदर एक अनुभुति झलक देके ग़ायब हो गया. और उसमे मेरा हाथ में पकड़ा हुआ पेनिस थोड़ा काप उठा. आज कल उनके साथ बात करते वक़्त या उनके बारे में सोचते वक़्त यह मेहसुस कर रहा हु की मेरा पेनिस हमेशा पहले के नार्मल साइज से थोड़ा फुला हुआ रहता है. पहले के जैसा नार्मल साइज में आज कल रहता ही नहीं है. और यह प्रॉब्लम शायद हमारी सुहागरात के बाद ही ठीक होगा.
मैने दूसरी हाथ से फ़ोन कांन पे टिकाके बोला
" हाँ माँ...बोलो"
जीसे ही बोला, तुरंत मुझे मेहसुस हुआ और में हास पडा. और माँ भी उधर से फ़ोन पे ही हास पड़ी और वह मुझे सुनाइ दिया. मैं परिस्थिति सँभालने के लिए बोलते रहा
" एक्चुअली वह क्या है की....पहले की आदत छूटने में टाइम तोह्...."
मेरा बात पूरी होने से पहले माँ बात काट दिया और हस्ते हस्ते बोलते रहि
" बस बस....और सफाई की जरुरत नही. मैंने आप को कह दिया था की मेरे मम्मी पापा ने मुझे एक अच्छा नाम देके रखा है. और क्या.बाबू को शायद मेरा वह नाम पसंद ही नही."
बोलके फेक गुस्सा दिखाके माँ रुक गयी. मैं उनको कैसे समझाऊ की मुझे उनको नाम लेके पुकारने में उनकंफर्टबले लगता है. और नाना नानी के सामने तोह कभी वैसे बुला भी नहीं पौंउंगा. मैं कोशिश करके भी उनको संमझा नहीं पाया. शायद मुझे उनके लिए एक नाम ढूँढ़ना ही पडेगा. मैं टॉयलेट से बाहर आके ऑफिस के उप्पर फ्लोर में पीछे की बालकनी में आगया. यहाँ कोई आता जाता नहीं है. मैं सिचुएशन सहज करके बोला
" मैंने कब बोला की पसंद नही. तुम्हारे नाख़ून से लेके बाल तक सब कुछ दुनियाके सब चीज़ों से ज़ादा प्यारी है."
इस में माँ थोडी खुश हुई और प्यार में पिघलते पिघलते बोली
" ठीक है ठीक है...और झूट बोलने की जरुरत नही. अब आप यह बताइये कहाँ है आप अभी?"
मै बोला
" ऑफिस में, बस अभी लंच करुन्गा"
मा तुरंत आवाज़ में विस्मय लेके बोली
" आप अभी भी ऑफिस में!!! और लंच भी नहीं किये!!!"
फिर गले में थोड़ा फेक गुस्सा लेक बोली
" कल भी तो शाम को जाके लंच किये!! और आज अभी भी.....आप मेरी बात कभी सुनेंगे नहीं क्या?.......अच्छा एक बात बताइये...में पहले जब पूछ्ती थी तो आप हमेशा बोलते थे की हाँ आप का खाना समयपर हो रहा है...."
मैं माँ का बात काट के बोला
" नहीं नही...में सच बोलता हुँ...पहले समयपर ही खाना खाता था पर....अभी....ऑफिस का काम और घर का काम ...दोनो संभल के टाइम मैनेजमेंट ठीक से नहीं हो पा रहा है. अभी खाता हु और फिर ऑफिस से निकल के रानी साहेबा की सारी पसन्दीदा चीज़ें खरीद के लाता हुँ. ओके सोना?"
मैं माँ को प्यार से अब बुलाया तोह शायद उनको आअच्छा भी लगा. वह प्यार में हस्ते हस्ते केवल बोली
" ह्म्मम्......ठीक है....जाइये...जाके पहले खाना खाइये"
मैं पिछले दो दिनसे घर सजानेका सामान खरीद नेमे जूटा हुआ हुँ. मुझे इस बारे में कोई एक्सपीरियंस था नही. जब माँ को बोला तब उन्होंने मेरी सारी प्रॉब्लम खुद अपने सर पे ले लिया और मुझे बस खरीद फरोख्त करने में छोड़ दिया. हमारा नया घर बसाने के लिए जो छोटी छोटी चीज़ों से लेके बड़ी चीज़ों की जरुरत पडती है सब वह मुझे बता देती है. और में उनकी पसंद दीदा चीज़ें खरीद ने में जूटा हुँ. आज ऑफिस में काम कम था सो कल रात को ही उनको बोल दिया था की आज लंच के बाद मार्किट जाके सब लेके आऊंगा.
फर्निचर दुकान में एक ड्रेसिंग टेबल का आर्डर करना है, लम्बी मिरर वाली, जिसमे स्लाइडिंग मिरर डोर हो. एक मरून कलर की स्टिल आलमारी का भी आर्डर करना है. फिर सारे घर के पर्दे खरीद ने है आज. वह भी ब्राउन और पिंक विथ फ्लोरल डिजाइन. माँ मुझे फोन करके संमझा दिया की परदे के कपड़े की क्वालिटी कैसी होनी चहिये. वह सब देख के खरीद ना है. एक चीज़ में हर पल महसुस कर रहा हु की माँ की सोच पहले से कुछ बदली सी लग रही है. पिताजी की डेथ के बाद उनके लाइफ में सब कुछ बेरंग हो गया था सब चीज़ें लाइट या वाइट रेंज के अंदर लिमिटिड था लेकिन आज कल सब कुछ ब्राइट कलर में पसंद कर रही है. अब ज़िन्दगी में रंग लाकर जीना चाहती है. इस लिए अंदर तथा बाहर भी रंग से सजा रही है. इस नयी ज़िन्दगी को वह पूरी तरह हर खुशीओ के साथ जीना चाहती है. मैं उनको वह सब कुछ देणे के लिए मन ही मन कसम खाने लगा.
 

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घर आने में ज़ादा लेट नहीं हुआ. सब काम ठीक से करके वापस आके डिनर भी कर लिया. माँ का एक मेसेज आया था जब मार्किट से वापस आ रहा था आनेके बाद उनसे बात भी कर लिया. आज बाकि दिनों से जल्दी उनसे बात ख़तम कर दि. हम दोनों को नीद की सख्त जरुरत है. पिछली ४ रातें हम बात ज़ादा किया है छुप छुप के और सोया कम. मुझे भी सुबह ऑफिस जाना पडता है और माँ को भी घर का काम वैगेरा संभल ने के लिए सुबह जल्दी उठना पडता है. पर आज हमारे दोनों की बॉडी थकी हुई थी और कल में अहमदाबाद जा रहा हुँ.

मा से आज देर रात तक बात नहीं होरही है, लेकिन में सो भी नहीं रहा हु इतनी जल्दी. अब में पीसी खोल के सामने बैठा हु. कल मैं उनसे बात करते वक़्त बहुत भावूक हो गया था और में उनके सामने एक चीज़ कन्फेशन भी किया. मैंने बता दिया की में कबसे उन्हें प्यार करते आ रहा हुँ. पिछला ६ साल से अपने मन में उन्हें एक दूसरी तरह प्यार करते आ रहा हु--यह बात साफ साफ बता दिया. मैंने यह भी बोला था की में कभी उस प्यार के बारे में किसी को जानने नहीं दिया, न देता कभी. पर आज हमारे नसीब में जब और कुछ लिखा हुआ है, तब में यह चीज़ उनको बताना जरुरी समझा क्यूंकि अब हमारे बीच कोई सीक्रेट नहीं रहना चहिये. माँ गौर से चुप होकर मेरी बात सुन रही थी और सरप्राइज भी हो गयी थी. मैंने बताया की हो सकता है मेरा वह सच्चा प्यार अन्जाने में हमारा नसीब में एहि परिणाम लिख दिया था लेकिन जब मैंने उन्हें कैसे प्यार करते आ रहा हु, यह चीज़ हसके हलके से बताने गया, तोह वह थोड़ा शर्मा गयी और फ़टाफ़ट टॉपिक चेंज कर दिया था मुझे मालूम है वह अभी भी कुछ चीज़ों में इतना भी सहज नहीं हो पाई मेरे पास की वह मेरे साथ सब कुछ खोलके चर्चा कर पाये. स्पेशली जहाँ सेक्स की बात जुड़ा है, उस जगह में वह अभी भी एक दिवार बनाके रखी है. पर में जानता हु वह इस बारे में कितनी प्यासी होंगी. पिछले अठरा साल उन्होंने अकेले गुजार दिये. ज़िन्दगी का अहम भाग उन्होंने वह सब के बिना काटी है. उनका भी तन चाहता होंगा एक परिपूर्ण तृप्ति. एक परिपूर्ण संतुष्टि. कुछ ही दिन में हमारी शादी होने जा रही है. और हम पति पत्नी बनके पूरा लाइफ गुजारने जा रहे है. मैं उन्हें वह सब कुछ देना चाहता हुँ. मैं अभी तक वर्जिन हुँ. और वह मुझसे १६ साल बड़ी है. मैं कभी इंटरनेट सेक्स में एडिक्टेड नहीं हुँ. पर में इस परिस्थिति में इंटरनेट से सेक्स एजुकेशन लेने का डिसिशन लिया. हस्बैंड वाइफ को क्या क्या करना चाहिए सुखी लाइफ बिताने के लिये. एक दूसरे को मेंटली, साथ साथ फिजिकली भी खुश रखना चहिये. सो में सेक्स गाइड पड़ना सुरु किया दो दिन से. स्पेशली में ज़ादा पड़ रहा हु " “How to satisfy Older Women in Bed” और आज, अभी में यही पढ़ रहा हुँ.

दरवाजा खोलके नानीजी मुझे स्माइल के साथ स्वागत किया. पर उन्होंने मेरे चेहरे की तरफ देख के, थोड़ा चिंतित होकर पुछा
" क्या हुआ बेटा!! तुम्हारी तबियत तो ठीक है?"
मैं पहले चोंक गया था थोडा. पर बाद में रीलाईज़ किया की शायद मेरे आँखों के नीचे जो हल्का सा काला धब्बा दिख रहा है, उसी के कारन नानीजी चिंतित हो गई होंगी. पिछले ५ रात ठीक से नीद पूरी नहीं हुई. माँ और में दो प्रेमी के तरह रात भर बातें करते रहे. और साथ ही साथ ऑफिस का काम के अलावा घर सजानेकी खरीदारी में बहुत बीज़ी हो गया था पर में यह सब उनको कैसे बताऊँ की उनकी बेटी से शादी करके घर बसाने के लिये, उनकी बेटी के साथ मिलके में क्या क्या कर रहा हुँ. मैं परिस्थिति सँभालने के लिए कहा
" हाँ नानीजी...में बिलकुल ठीक हुं"
नानीजी मेरे चेहरे को गौर से देखि और फिर नानाजी के तरफ नज़र घुमाई. तब नानाजी उनको बोले
" अरे भाई इतना दूर से ट्रवेल करके आरहा है. थक तो गया होंगा."
फिर मेरे तरफ देखके बोले
" आज रात कसके नीद ले लो, सुबाह एकदम फ्रेश्..है की नहीं?"
मैं थोड़ा हसके उनकी बातों को सहमति देणे लगा. मैं यह महसुस कर रहा हु कि, हालाँकि में उनलोगों का दमाद बनने जा रहा हुँ,पर में उनलोगों का पोता भी तो हुँ. सो आज तक नानीजी मुझे जिस नज़र से देखते आरहे है, जैसे मेरे बारे में चिंतित होती है आज भी वैसे ही प्यार, स्नेह और ममता के साथ मुझे देखा और अपनी चिंता बताई. यह भी सही है की माँ और में जैसे एक ट्रांसफॉर्मेशन के अंदर से गुजर रहे है, उन लोगों को भी तो टाइम लगेगा अपने पोते को पूरी तरह दामाद की नज़र से देखने के लिये. मैं सोचते सोचते दरवाजा खटखटाया था की क्या में माँ को सामने देख पाउँगा की नही. लेकिन नही. वह नज़्दीक कहीं दिखाइ नहीं दी.
 

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मैं ड्राइंग रूम में फैन के नीचे बैठा हुँ. नानाजी मेरे बगल में एक ही सोफे में बैठे है. नानी जी उनके साइड वाले सोफे मे. पूरे हप्ते में नानाजी से मेरी इतनी ज़ादा बात नहीं हो पाइ. एक बार फ़ोन पे बताये थे मुंबई वाली रिसोर्ट के बारे में सारी इनफार्मेशन उनको मिल चुकी है. अब वही बात छेड़ा है उन्होंने. उनके किसी जानने वाले से कुछ रिसोर्ट के बारे में इनफार्मेशन और कांटेक्ट नम्बर मिला है. उन्होंने इनिशियल पूछताछ कर लिया ऑलरेडी. केवल जाके एक बार सामने से देखके बुकिंग करके आना है. इन सब बातों के बीच अचानक माँ चाय लेके . मैं जहाँ बैठा हु , वहां से नानी को देखूँगा तो उनके पीछे किचन की तरफ का डोर है. मुझे मेरे पोजीशन से उस डोर के बाहर का पैसेज तक दिखाइ देता है और उस पैसेज के लेफ्ट में किचन का डोर है. मुझे यहाँ बैठके आवाज़ से पता चला था की वह किचन में थी. सो नानाजी से बात करते करते अन्जाने में मेरी नज़र बार बार उस पैसेज के तरफ जा रहा थी क्यूंकि मुझे अब मेरी बीवी का चेहरा देखने के लिए मन बहुत चंचल हो रहा था सो जब वह चाय लेके चलके आरही थी, में बात करते करते इधर उधर देखने की एक्टिंग कर रहा था और उनकी एक झलक सर से लेके पाओं तक देख लिया. वह चाय की ट्रे के ऊपर नज़र झुकाके चलते आरही थी. चेहरा बिलकुल नार्मल था विथाउट अन्य एक्सप्रेशण. समझ गया की वह सब के सामने सहज रहने का कोशिश कर रही है. पर फिर भी उनको चलते हुए आते देखके मेरी छाती में एक अजीब सिरसिरानी अनुभुति होती है और मेरे जीन्स के नीचे पेनिस के अंदर खुन भरके फुल्ने लगता है. वह नज़्दीक आयी तो में भी नाना नानी के सामने उनको डायरेक्टली ज़ादा देख नहीं पा रहा था पर बीच बीच में नज़र डाल रहा था उनके उपर. वह नानाजी को चाय दिया और मेरे सामने वाला सेंटर टेबल पे मेरा कप रख दिया. अभी तक मेरी तरफ नज़र नहीं उठाया. नानीजी तभी बोल पडी तो माँ नज़र उठाके उनको देखि. नानीजी बोली
" अरे मंजू...हितेश के लिए नास्ता बनादे"
फिर नानी मुझे देख के बोली
" बेटा क्या खाओगे....पराठे बनाऊ क्या अभी?"
मैने कह्
" हा. कुछ भी चलेगा"
नानी जब मेरे से बात कर रही थि, माँ तभी भी नानी को ही देख रही थी. फिर नानी माँ को देखके बोली
" मेथी है न...तोः मेथी का पराठा बनादे"
मा सर हिलाके हाँ बोलके चल पड़ी और किचन की तरफ डोर से बाहर निकल गयी. और वह जाके किचन में दाखिल हो गयी. माँ ऐसे आयी और गयी जैसे की में वहां हु ही नही. मेरी उपस्थिति को पूरा इग्नोर करके चलि गयी. मुझे बहुत गुस्सा आया. फ़ोन पे बात करके हम कितना एक दूसरे के नज़्दीक आने लगे , और अभी एकदम दूर कर रही है !! मुझे उनका दिया हुआ चाय भी पीने में गुस्सा आ रहा था पर क्या करूँ!! अब यहाँ से उठके जा नहीं सकता तुरंत. नाना नानी के सामने फिर एक दूसरी परिस्थितियां क्रिएट हो जायगी. फिर सोचा की ठीक है, अब दूर रह रही है, लेकिन कब तक दूर रहके भागेगी मेरे से. मैं भी जिद्दी हु, उनको जलद ही जलद मेरी बाँहों में होना चहिये. यह सोचके गुस्सा थोड़ा ठण्डा होने लगा और में चाय का कप उठाके नानीजी को देखते देखते सिप मारने लगा. नानी जी यह कह रही है की शादी के दो दिन पहले हमे रिसोर्ट पहुच जाना चाहिए और फिर शादी के बाद नेक्स्ट डे हम सब वहां से निकल जाएंगे. और नानाजी कहते है की इतना दिन वहां रहके क्या करना है. शादी का एक दिन पहले जाना है. नेक्स्ट डे शादी का मुहूर्त सुबह में है. सो शादी जल्दी जल्दी ख़तम हो जायेगा और उसी दिन दोपहर में हम निकल जाएंगे. जब यह लेके उनलोगों के अंदर बहस चल रहा था तब में केवल साइलेंट दर्शक बनके उनदोनों को देख रहा था मैं नानी को देख रहा था तभी माँ किचन से बाहर आके उस पैसेज में आई. आके नाना नानी की नज़र छिपाके दिवार पे टेक लगाके खड़ी होकर मुझे देखने लगी. मैं उनकी तरफ नज़र न देके भी यह सब मेरे साइड विज़न से देख पारहा हुँ. मेरे अंदर तभी भी थोड़ा गुस्सा भटक रहा था इस लिए मन में उनको देखने की प्रबल इच्छा था फिर भी में बहुत टाइम से खुद को कण्ट्रोल करके नहीं देख रहा था वह वही खड़ी खड़ी मुझे देख रही थी और उनके साड़ी का आँचल खुद की हाथ की उँगलियाँ में लेके गोल गोल घुमा रही थी. मैं खुद से जूझ रहा था की में उनकी तरफ देखूँगा नही. पर कुछ टाइम बाद जैसे ही में एकबार सर मोड़ ने गया, तोह आँख से आँख मिल गई. मेरे से नज़र मिलते ही एक शर्म की मुस्कराहट उनके होठ पे खील गया. और नज़र झुका लिया. लेकिन गयी नही. वहाँ खड़ी रहि. फिर मुझे देखा. मेरा गुस्सा फिर बढ़ गया. अभी थोडे देर पहले ऐसे इग्नोर करके गयी, और अभी चुप छुपके मुझे देखके मुस्कुरा भी रही है. मैं भी इग्नोर किया और मुह मोड़के नज़र नानी की तरफ टिकाया. पर मेरे ऑफ विज़न में मुझे पता चल रहा है की वह तभी भी वहां खड़ी होक मुझे देख रही है. अब मेरे खुद के ऊपर गुस्सा आया. मैं क्यों देखा अभी उनको. मेरी इस हरकत से उनको पता चल गया की में ग़ुस्से में हु और वह जान बुझके मुझे चिड़ानेके लिए अभी भी वहां खड़ी है. बचपन से सबसे अच्छी तरीके वह मुझे जानती है. मेरा हर नज़र का, हर बातों का, हर चुप्पी का मतलब मेरे से ज़ादा उनको पता है. मैं अब उनसे पकड़ा गया. अगर नहीं देखता तो ठीक था लेकिन क्या करे, इस नज़र का क्या गलति, जालिम मन ही नहीं मानता उनको बिना देखे.
 

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थोडे टाइम बाद माँ किचन में चलि गयी और यहाँ तब तक यह बात फाइनल हो रही है की रिसोर्ट में जायेंगे दो दिन पहले पर शादी के दिन दोपहर को निकल जाएंगे. इस में नाना नानी दोनों का बात आधा आधा रहा. और नानाजी मेरे तरफ मुड के बोले
" तोह ऐसे ही बुकिंग ले लेते है?"
मैं जैसे ही हाँ बोलने जा रहा था तभी बीप बीप करके एसएमएस आया. मैं "हा" बोलके मोबाइल चेक करने गया और नानीजी नानाजी को पूछि की मुंबई जायेंगे तो एक साथ पर वहां से कौन कहाँ लौटेगा? मैं इन्बॉक्स में देखा माँ का एसएमएस था उन्होंने लिखा था
"मम्मी सही कह रही है. आप को देख के लगता है आप बिमार पड़ गए"
कीचन से बीच बीच में हल्का आवाज़ आरही है पराठा बनाने का. मेरे अंदर का गुस्सा धीरे धीरे पिघलने लगा और मुझे माँ को तंग करने का मन किया. मैंने रिप्लाई किया
" तोह ठीक है. मैं नानी को बता देता हु की क्यों और कैसे यह सब हुआ"
मैने सेंड बटन दबाके सुनने की कोशिश कर रहा था की माँ को एसएमएस रिसीव हुआ की नही. कोई मेसेज टोन सुनाइ नहीं दिया. शायद अभी तक गया नही. पर तुरंत मेरा मोबाइल बीप बीप करने लगा. माँ का एसएमएस उन्होंने लिखा था
" अरे नहीं नही....ऐसा मत कीजिये. आप इतने ग़ुस्से में क्यों हो?"
मैं समझ गया माँ फ़ोन साइलेंट मोड़े पे रखी है. नाना नानी को पता न चाले. मैं भी मेरे मोबाइल को साइलेंट मोड़े पे दाल दिया. मैं नाना नानी का बात सुनने की एक्टिंग करके क्यजुअली जैसे कुछ करते है मोबाइल में, वैसे ही मोबाइल में एसएमएस टाइप करते करते माँ से मेसेज के जरिये बात करने लगा. मैं लिखा
" तुम जो मेरे से इतना दूर भाग रही हो"
उनका रिप्लाई तुरंत आया
" दूर कहाँ !! मैं तो इधर ही हुँ. इतनी पास."
मैं थोड़ा सोच के टाइप किया
" नही.... मेरी बीवी को मेरे और पास चहिये."
कुछ टाइम रिप्लाई नहीं आया. पर मालूम है यह मेसेज उन्होंने पड़ लिया. मेरी उँगलियाँ मोबाइल की प्याड के उप्पर नाच रही है इस टेंशन में की वह क्या रिप्लाई देती है. पर कुछ भी रेस्पोंस नहीं आया. किचन से अभी भी आवाज़ आरहा है. अचानक मोब वाइब्रेट हुआ. देखा की उन्होंने रिप्लाई दिया.
" टाइम आने दीजिये, आप को आप की बीवी जितनी पास चाहिए मिल जाएगी"
मा ने इस तरह बात पहली बार छेड़ी है. आज तक हमेशा इस डोमेन को प्यार से अवाइड करती थी. पर आज उन्होंने उनके दिल का दरवाजा पूरा खोलके कह दिया की वह अब खुद को पूरी तरह से मेरी बीवी मानने लगी है.
येह मेसेज पड़ते ऐसा लगा की मेरे शरीर का पूरा खुन आके मेरे पेनिस में जमा हो रहा है. वह फ़टाक से एक दम खड़ा हो गया. मैं अपना एक पैर दूसरे पैर के ऊपर रखके नाना नानी के सामने मेरा ग्रोइन एरिया को दबा के कण्ट्रोल करने लगा. उनलोगों को देखते देखते बोलने का मन कर रहा था की आज ही शादी का मुहूर्त निकाल लीजिये और आज रात में ही हमारी सुहागरात हो जाए. अचानक मेरी यह भावनाएं टुटी नानाजी के सवाल से. वह मेरी तरफ देख के पुछ रहे है
" तुम क्या बोलते हो बेटा?"
मैं एक दम ब्लेंक जैसा बन गया. समझ नहीं पाया की वह क्या पुछ रहे है. क्यूँ की पिछले कुछ पलों से में उनलोगों की बात चित नहीं सुन रहा था मुझे मालूम नहीं अब किस बारे में बात हो रहा थी जो नानाजी ऐसा सवाल पुछै. मैं फिर भी सिचुएशन सम्भालनेके लिए बोला
" मैं क्या बोलूँ नानाजी. आप लोग जो अच्छा समझेंगे"
नाना को यह पता नहीं चला की में हवा में तीर छोड. वह सीरियसली बोले
" नहीं नही..ऐसी बात नही. अगर तुम को ज़ादा छुट्टी मिले तो तुम दोनों मुंबई से वापस यहाँ आसकते हो. और नहीं तो में और तुम्हारी नानी यहाँ आएंगे और तुम लोग एमपी निकल सकते हो. तुम तो वहां रहने का सब बंदोबस्त कर ही रहे होंगे. और हम भी कुछ दिन बाद एक बार वहां जाके देख के भी आएंगे."
तब में संमझा की शादी के बाद मुंबई रिसोर्ट से कौन कहाँ जायेंगे यह लेके पूछा होंगा उन्होंने. मैं बोला
" हमारे साथ आप लोग भी तो चल सकते है एमपी में?"
तब नानाजी रिप्लाई देणे में थोड़ा हिचकिचा रहे थे तो नानीजी उनसे बात पकड़ के बोली
" क्या है की बेटा.. अब से तुम दोनों को ही ज़िन्दगी में एकसाथ चलना है. सो तुम दोनों जाके अपना नया घर बसाना सुरु करो."
फिर नाना को देखके हस्ते हस्ते मेरे तरफ मूड के बोली
" और हम तो आएंगे ही. हमारे बेटी का जो घर है -- नहीं आयेंगे क्या? तुम्हारे नाना बोल रहे थे की कुछ दिन बाद आराम से टाइम लेके एक बडे घर में शिफ़्ट होजाओ. बीच बीच में हम भी जाके कुछ दिन रहके आएंगे उधर"
इस बात पे मेरे अंदर एक हल्का सा कम्पन अनुभव किया. मैं अब समझ गया की यह लोग मुझे और माँ को एमपी भेज के क्यों खुद अहमदाबाद वापस आना चाहते है. शादी के बाद मुझे और माँ को एकांत में छोडना चाहते है. नए मैरिड कपल के बीच कबाब में हड्डी नहीं बनने चाहते है. माँ के साथ मेरी शादीशुदा लाइफ सही तरह से बन जाए, इस लिए हमे अकेले छोड़ रहे है. उनको मालूम है अब उस घर पे बेड रूम एक है. अगर वह लोग वहां जायेंगे तो रात को सोने में भी प्रॉब्लम होगा. और यह भी जानते है की में एक जवान लड़का और माँ भी १८ साल से पति के प्यार के बिना गुजारे. शादी के बाद हम दोनों का एक दूसरे के लिए चाहत तो ज़ादा रेहगा ही. यह सब कारन के लिए वह लोग और कुछ बहाना बनाके हम दोनों को अकेले छोडना चाहते है. मुझे अंदर ही अंदर उनलोगों के सामने थोडी शर्म आरही थी इस मामले में और ज़ादा कुछ चर्चा नहीं हुआ. तय हुआ की शादी के दिन दोपहर को नाना नानी अहमदाबाद आजायेंगे और माँ मेरे साथ एमपी चलेंगे. और में फ्रेश होने के लिए अपने रूम में चला गया. पर मेरा मन अब एकदम रुकना नहीं चाहता है. मैं न जाने क्यों आज माँ को अपनी बाँहों में पाने के लिए बहुत उतावला हो रहा हुँ. मैं अपने रूम में जाते जाते सोचने लगा अब कैसे मेरे पास, एकदम पास, मेरे छाती के साथ एकदम मिलाके मेरी बीवी को पाके , मेरे मन को शांत करु.
 

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आज संडे का दिन था पर आज सबसे ज़ादा बिजी दिन था सुबह घर से निकले थे और आधा दिन पूरा बाहर गुजार के जब घर लौटा, तब लंच टाइम ओवर हो चुका था इसलिए आज का खाना भी लेट हुआ. माँ और नानी पहले खा लिया था मैं और नानाजी खाने बैठे तो नानी पास में बैठके देखभाल करने लगी लेकिन माँ ही खाना परोस रही थी. कल रात डिनर टेबल पे भी ऐसा हुआ था माँ अब सब के सामने सहज होकर सब कुछ कर रही है. लेकिन सब के सामने मुझे एक भी बार नज़र उठाके डायरेक्टली देख नहीं रही है. एक्चुअली इस बार घर पर में और माँ दोनों ही एक अजीब सिचुएशन में पड़ गये. हम फ़ोन पे तो बहुत सारी बातें करते है. हमारे आनेवाले फ्यूचर को लेके दोनों एकसाथ सोच ने भी लग गये. हम एक दूसरे के पास सहज होगये थे. पर लॉन्ग डिस्टेंस में जितना कम्फर्टेबले थे, आमने सामने वैसा हो नहीं रहा था स्पेशली नाना नानी की प्रेजेंट मे. हम छुप छुप के दोनों प्रेमिओं की तरह मिलजुल गए थे फ़ोन पे. पर उनलोगों के सामने वैसा होने में एक शर्म आया. लास्ट टाइम से अचानक ऐसा बदल उनलोगों का नज़र में जरूर आयेगा. सो माँ और में दोनों ही शायद अलग अलग ऐसा ही सोचा. इस लिए वह मेरे सामने तो आरही है पर मेरे से नज़र घुमाके रखी है. या तो वह मेरे सामने नाना नानी से बात कर रही है, नहीं तो नज़र हटाके कुछ काम कर रही है. पर जब नाना नानी दूसरी तरफ बिजी है तब वह मुझे छुप के देखति है. फिर नज़र मिलने के कुछ टाइम बाद शर्मा के झुका लेती है. उनके नरम गुलाबी पतले होठो पे मुस्कान मुझे पागल कर देती है. उनको मेरे सामने ऐसा चलते फिरते, बातें करत, हस्ते हुए देखके मेरे छाती में हरपल एक हल्का सिरसिरानी अनुभुति होता है. मेरा पेनिस मेरे अंडरवियर के अंदर सख्त होकर रह रहा है. मैं यह चीज़ बहुत ध्यान से छुपा रहा हुँ. मैं ऐसे तो थका था और साथ में आज नानाजी के साथ अहमेदाबाद जाके शादी की शेरवानी पसंद करके मेज़रमेंट वगेरा देके आया. फिर जेवेलरी दुकान में मेरी ऊँगली का नाप दिया अंगूठी बनाने के लिये. फिर हमने दो बड़े ट्रेवल बैग ख़रीदे. फिर और कुछ इधर उधर का घर का सामान ख़रीदते ख़रीदते लेट हो गया था हम टैक्सी से सब सामान लेके घर आगया. इतने सब के वजह से जब खाना खाके में थोड़ा आराम करने के लिए लेट गया तो तब पता नहीं कब नीद आगई. और शाम को नानी जी मुझे जगाया तो में फ़टाफ़ट उठके रेडी होकर निकल पडा. निकलते वक़्त माँ ड्राइंग रूम में डोर पे खड़ी थी. मैं नाना नानी से बीदा लेके एक बार कुछ पलों के लिए माँ की तरफ देखा. उनकी आँखों में हरबार माँ का प्यार और ममता देख के जाता था, इस बार वह नहीं था इस बार ऐसा लगा की पति जब पत्नी को छोड़के दूर जात है, तब पत्नी के नम आँखों में जो प्यार और दर्द रहता है, जिसके जरिये वह अपनी दिल की सारी बातें बिना कहके बता देती है, वह नज़र से मुझे देख रही थी. और मेरा मन भारी हो गया.
 

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ट्रैन में सो सो के माँ के बारे में सोच रहा था अगर हमारी तक़दीर हमें आज ज़िन्दगी के इस मोड़ पे नहीं लाती, तोह बहुत कुछ मालूम नहीं पडता. माँ को बचपन से माँ के रूप में ही देखते रहा हु. वह हमेशा एक अच्छी माँ थी और साथ ही साथ एक अच्छी बेटी. फादर के डेथ के टाइम वह केवल १८ साल की थी. तभी इस दुनिया में खाली एक बेटे को सहारा करके जीने की कसम खाई दोबारा और किसीको उनके दिल में बिठाने के बारे में कभी सोचा नही. एक आदर्श माँ बनके, एक आदर्ष बेटी बनके रह गयी अपनी खुद की सारी खुशीओ को विसर्जन देकर. मुझे बड़ा करने में और खुद की मम्मी पापा के साथ रहके उनके देखभाल करने के अंदर ही वह अपना ख़ुशी ढूँढ़ती थी. नानी कितना बार कह चुकी है की घर का खाना बनाने के लिए एक बाई रख लेते है. पर माँ हमेशा कहती है की जब वह है ही तो बाहर के लोगों से खाना पकाने की क्या जरूरत और वह भी चाहती थी घर के काम काज में जुटे रहे तो अपना टाइम भी बित जायेगा और शरीर भी एक्टिव और फिट रहेगा. वह दिन भर कुछ न कुछ करती है लेकिन देखके लगता नही. उनका पूरा शरीर, हाथ, पैर इतना सुन्दर है, लगता है जैसे की वह उनके पापाकी लाडली बेटी है और आराम से ज़िन्दगी बिताती है, यानि की फिल्में देख के, नावेल पढ़कर, दोस्तोँ के साथ घूम फिरके, ब्यूटी पारलर और स्पा में टाइम बिताके, खुद को प्रोपरली मेन्टेन करके रखी है. उनके स्किन अभी भी टीनएज गर्ल जैसी है, देख के पता नहीं चलता वह ३६ की है. उनके हाथों की, पैरों की उँगलियाँ और नेल्स कितना सही तरीके से खुद ही मेन्टेन किया है. देखके लगता नहीं इन्ही हाथों से दिन भर कितना काम करती है. उनका पूरा शरीर कितना नरम और मुलायम है, यह कल रात मुझे पता चल गया. शायद नेचर ने उनको यह गिफ्ट दे रखा है. शायद उनके नसीब में यह शादी लिखी हुई थि, इस लिए वह आज भी एक नौजवान कुंवारी लड़की जैसी दीखती है. पहले से ही उनके सब चीज़ें मुझे अच्छी लगता थी पसंद थी पर जब से शादी की बात चल रही है, तब से उनके वह सब चीज़ें मुझे और खुबसुरत, प्यारी और सेक्सी लगती है. पहले नानी साथ में मिलके घर का काम काज करती थी, पर नानी की उमर बढ़ रही है. अब माँ अकेले ही पूरा घर का सब कुछ सँभालते आरही है. आज भी दोनों टाइम माँ प्यार से सब के लिए खाना बनाती है. और उनके हाथ का खाना मुझे दुनिया का सबसे स्वादिस्ट लगता है. और नसीब के फेरे में मुझे अब पूरी ज़िन्दगी उनके हाथ का खाना खाने का सौभाग्य हो रहा है.
इतना सैक्रिफाइस किया. शायद इस लिए आज उनको फिर से एक नई ज़िन्दगी मिलने जा रही है. केवल तीन ही साल उनको अपने पति का प्यार मिला. कितनी ख्वाहिशे, कितने सारे सपने सब दिल में दफ़न कर करके रख दिये थे लेकिन में चाहता हु उनकी सारी ख्वाइशे, सारे अधुरे सपने पूरे करनेका समय आया है. अभी वह एक माँ नही, एक पत्नी बन चुकी है. अपने बेटे को जो अब उनका पति बनने जा रहा है, उसको अपना तन मन सब कुछ सोंप ना चाहती है. वह भी पति के प्यार को प्यासी है. ज़िन्दगी का हर पल पति के प्यार से गुज़ार ना चाहती है. अपनी हर खुशी, हर ग़म पति से शेयर करना चाहती है. मैंने मन में कसम खा लिया. एक पत्नी को अपनी पति से जो जो मिलना चाहिये, में सब कुछ उन्हें देना चाहता हु. वह हमेशा से एक घरेलु औरत है. अपने घर संसार की देखभाल करना, पति सेवा करना, बच्चों का ख़याल रखना--इन सब में ख़ुशी से जीना चाहती है. मैं भी हमेशा जिस बीवी का ख्वाब देखता था, वह ऐसे ही एक घरेलु खूबसूरत लड़की का था मैं भी खुद को अब उनको बीवी के रूप में पाके दुनिया का सबसे खुश नसीब इंसान समझता हु.
आज ट्रैन में डिनर के लिए टिफ़िन में वहि मेथी पराठा बनाके दिया माँ ने. कल शाम मेथी का पराठा और दही खाया था फिर टीवी देखते देखते माँ को एसएमएस किया था की " मेरी सारी थकान तुम्हारे हाथ का बना हुआ मेथी पराठा खाके दूर हो गई."
तब तोह वह किचन में डिनर बना रही थी. मोबाइल चेक नहीं पर पायी. लेकिन बाद में भी उसका कोई रिप्लाई दिया नहीं था पर अब टिफ़िन खोलके पता चला वह उस बात को पढ़ा और मन में रख दिया था
काल शाम को नानाजी से यहि बात हुआ की आज जाके शेरवानी और अंगूठी का मेज़रमेंट देना है. नज़दीकी कोई भी दुकान में नही. सब नानाजी को जानते है. सब का शक़ होगा क्यों और किस लिए यह ले रहा हु. इस लिए अहमदाबाद सिटी में जाके लेना पडा फिर डिनर के बाद नानाजी और कुछ बाते किये नही. क्यूँ की वह जानते थे में थका हुआ था फिर सुबह उठके निकल ना है उनके साथ. इस लिए जल्दी वह भी सोने चले गए और मुझे भी सोने के लिए बोल दीये. सब जल्दी डिनर करके अपने अपने रूम में चले गये.
 

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मैने रूम में आके दरवाजा लॉक नहीं किया , ऐसे ही बंध कर दिया. माँ मेरा बिस्तर बराबर फटाफट करके गई. मैं डिनर से पहले जब टीवी देख रहा थ, शायद तब आकर यह सब कर गयी होगी. पिछले कुछ दिन से जैसा चल रहा था, आज थोड़ा अलग लग रहा है. कुछ दिन से रात को डिनर के बाद में माँ से फ़ोन पे बात करते आरहा हु. सो आज मुझे वह चीज़ मिसिंग लगा सोने से पहले. पर माँ को अब कॉल नहीं कर पाऊंगा. दोनों रूम में बात होगी तो नाना नानी को जरूर पता चलेगा सो में स्टडी टेबल पे बैठा और मोबाइल पे एसएमएस टाइप किया
" क्या कर रही हो?" फिर माँ को सेंड कर दिया. तुरंत रिप्लाई आया. शायद माँ भी मेरे जैसी शर्म फील कर रही है. उन्होंने लिखा
" सोने की तैयारी"
मै अब क्या लिखुं सोचते सोचते टाइप किया
" लेकिन में नहीं सो पाउंगा"
इस बार थोड़ा टाइम लिया उन्होंने. समझ नहीं पाई में ऐसे क्यों लिखा. इस लिए उन्होंने पुछा
" क्यूं....क्या हुआ"
मैने होठो पे थोड़ा मुस्कराहट लाकर लिखा
" क्यूँ की सोने के टाइम मेरी जो आदत थी, वह आज कल नहीं हो पा रही है, इस लिए तो आज कल नीद नहीं अति ठीक से"
उनहोने लिखा
" वह क्या..!!!."
मैन लिखा
" सोने से पहले गरम दूध पीने की और तुम्हारे हाथ से मेरे सर के बालों में स्पर्श पाने की आदत पड़ गई"
मै वेट करते रहा की वह क्या रिप्लाई देगी मुझे ज़ादा इंतज़ार नहीं करना पडा उन्होंने लिखके भेजा
" तो अब....!!! "
मैने कुछ सोचा और टाइप किया
" अब क्य...मुझे नीद नहीं आएगी. मैं जागा रहूंगा और मेरी तबियत ख़राब हो जाएगी. तुम्हे क्या?. तुम आराम से सो जाओ "
मेरे में बदमाशी चढ़ गई. मैं सेंड कर दिया. पर वह कैसे रियेक्ट करेगी पता नहीं था पर जब उनका रिप्लाई आया तब पता चला वह मेरी बदमाशी पकड़ लिया. उन्होंने लिखा
"उफ्फ्फफ्.... ठीक है. मैं दूध लेके आती हु"
यह पड़के मेरे अंदर खुन दौडने लगा. मैं सोचा नहीं था की माँ इतनी आसानी से मेरे मन की इच्छा जान जाएगी. जिस तरीके से आज आने के बाद से वह मुझे दूर रख रही है, उसी को सोचके में कल्पना नहीं किया था की वह अभी मुझसे मिलने आएगी. मैं आने के बाद से चाह रहा था की माँ के साथ एकानत में एक मुलाकात हो. और पूरी शाम माँ मुझे जो गुस्सा दिला रही थि, तभी से उनको मेरे बाँहों में पाने के लिए मन चंचल हो रहा था मैं स्टडी टेबल से उठके एकबार बेड पे जाके बैठा. फिर एक बेवकूफी सा लगा. तोह फिर में चेयर में जाके बैठा. चेयर था विथाउट हैंडल. सो में टेबल की तरफ न बैठके यानि की अंदर की तरफ पैर न घुसाके, साइड वाइस में बैठा हु, सो लेफ्ट साइड में टेबल और राईट साइड में चेयर का बैक रेस्ट है. मैं सोच में डुबा था अभी तक हमारी शादी हुई नही. शास्त्र सम्मति से अभी तक हम पति पत्नी नहीं बने. पर यह भी सही है की अब हम माँ बेटे भी नहीं रहै. हम एक दूसरे को मन से पति पत्नी मान ना शुरू कर दिया. मन एक दूसरे को पति पत्नी के हिसाब से ग्रहण कर लिया. मैं एक हप्ते से मस्टरबैट किया नही. मेरे बॉल्स के अंदर सारा बीर्य जमा होकर हमेशा भरा रहता है. कभी कभी निकल जाना चाहता है. मैं हमारी सुहाग रात में एक दूसरे को परिपूर्ण तृप्ति देणे के लिए इंतज़ार कर रहा था लेकिन अब शरीर के अंदर एक ऐसा कम्पन हो रहा है, की अगर आज मेरा बॉल्स खाली होकर सब माँ के शरीर के अंदर चला जाये तोह कोई खेद नहीं होगा. मेरे इसी सोचके अंदर अचानक माँ डोर खोलके अंदर आयी. हाथ में दूध का गिलास है. साड़ी पहनी हुई है लेकिन साड़ी का आँचल पीछे से घुमा के लाकर सामने कमर में घुसाया हुआ है. इस में उनके एक साइड का फ्लैट गोरी मुलायम पेट् और ज़ादा नज़र आरही है. आँचल घुसाने ने के कारन साड़ी टाइट होकर छाती के ऊपर से गयी और उसमे उनके गोल गोल मध्यम साइज की बॉब्स और सामने की तरफ उठके दिखाइ दे रहा है. उन्होंने बाल को एक क्यजुअल जुड़ा बना के रखी है, जो ढीला होकर पीछे गर्दन के ऊपर पडी है. उनको देखतेही मेरा लिंग एकदम सख्त होकर अंडर वियर के अंदर फूलने लगता है. जैसे की अभी वह कपडा फाड् के बाहर आना चाहता है और सही जगह पे घूसने के लिए तैयार है. पर में खुद को कण्ट्रोल किया. बैठे बैठे पैर क्रॉस था, तोह उसको दबाके रख दिया. माँ अंदर आकर रुख गई. मेरे से नज़र मिलाके शर्मा गई. और नज़र झुकाके मुस्कुरा दि. फिर वह वहि खड़े खड़े पीछे हाथ ले जाकर धीरे से डोर बंध करती है. और स्टडी टेबल के तरफ चलके आने लगती है. मैं उन्ही को देख रहा हु. यह महसुस करके वह नज़र उठाके मुझे देख नहीं रही है. मेरे नजदीक आकर टेबल के पास खड़ी हो गई. और फिर गिलास टेबल पर रख दिया. एक हफ्ते से हम जितना सारा इंटिमेट और सीक्रेट बात कही थि, वह मेरे दिमाग में झलक दे दे के जा रहा है. मैं कुछ न बोलके केवल देखे जारहा हु. वह चुप होकर वहां खड़ी रहि. लेफ्ट हैंड की उँगलियाँ से टेबल का किनारा स्पर्श की. वह धीरे से होंठो पे मुस्कराहट क़ाएम रखते हुए बोली
" अब दूध पी लीजिये और सो जाइये"
 

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कह के कुछ पल ऐसे खडी होने के बाद वह मुड़ी और जाने के लिए कदम रख. जैसे वह मुड़ी और आगे बढ्ने की कोशिश किया, में फट से मेरा लेफ्ट हैंड से उनका राईट हैंड पकड़ लिया. और वह रुक गई. लेकिन मुझे घूमके देखा नही. उनको टच करते ही मेरा शरीर काप उठा और वह भी हल्का सा काप गई. मैं एकदम धीरे से कहा
" मुझे नीद कैसे आयेगी....तुमने अपना हाथ मेरे बालों में जो फिराया नही"
वह कुछ जवाब भी दिया नहीं और जानेके लिए हाथ भी नहीं छुडवाया.. बस मेरी तरफ पीठ करके खड़ी रहि. उनके सांस के साथ साथ पीठ हल्का हल्का फूल रहा है. मैं चेयर छोड़के धीरे से उठा. उनका हाथ मेरे हाथ में रख के ही उनके सामने गया. वह मेरे से हाइट में छोटी है. उसके ऊपर नज़र झुकाने के साथ थोड़ा सर भी झुक गया उनका. मैं उनका चेहरा नहीं देख पा रहा हुन ठीक से हमारे बीच फासला बहुत ही कम है. जैसे की दोनों अगर जोर से सांस लेके छाती फुलाए तो दोनों का छाती टच हो जाएगा. ऐसी पोजीशन पे खड़े होकर मुझे उनका नाक दिख रहा है, नाक के सामने वाला भाग साँस के साथ साथ फूल रहा है और थोड़ा थोड़ा काँप भी रहा है. और उनके क्लीवेज का पैसेज क्लियर नज़र आरहा है. . मख्खन जैसे मुलायम दोनों बूब्स का ऊपर का भाग ब्लाउज के ऊपरवाले हिस्से से थोड़ा नज़र आरहा है. मुझे और रुका नहीं गया. मेरा हाथ उनका हाथ छोड़ दिया. फिर में दोनों हाथ से उनका पेट् टच करके, रगड के ले जाके कमर की तरफ पक़डा. उनके पूरे बदन में एक कम्पन महसुस कर रहा हुन और उनकी साँसें भी बदल रही है. मेरी छाती में एक तूफ़ान जैसा चल रहा है. मेरा एक हाथ उनके पेट् के ऊपर की साड़ी के ऊपर है. लेकिन दूसरे हाथ उनके नरम, मांसल पेट को छु के कमर के पास पकड़ा हुआ है. मेरी नज़र उनके ऊपर झुका हुआ है. मैं हम दोनों के बीच वाले गैप से देख पारहा हुन मेरा लिंग पाजामे के अंदर रहके भी फूल के ऊँचा हो गया. मेरे ग्रोइन एरिया में एक तम्बू जैसा हुआ है. मेरी भी साँसें धीरे धीरे तेज हो रही है. मैं मेरे हाथों को उनके कमर से रब करके पेट के तरफ लाया और फिर कमर पे ले गया. साथ ही साथ मेरा सर नीचे करके मेरा फोर हेड उनके फोर हेड के ऊपर जहाँ से सर के बाल सुरु होटे है, वहां टच करवाया. धीरे धीरे हमारे बीच का फसला कम होते जा रहा था हम में से कोई भी आगे नहीं जा रहा है , फिर भी हम दोनों का शरीर एक दूसरे की तरफ बढ्ने लगा. मैं पहले मेरी छाती पे उनके नरम बूब्स का स्पर्श महसुस कीया. फिर उनका नाक मेरी छाती पे टच किया. फिर उनके पूरा शरीर मेरे शरीर से मिल गया. उनकी नाक अब मेरी छाती पे जहाँ टी-शर्ट का बटन खुला हुआ था, उसी एरिया में चिपकाके रखदी. उनकी गरम सांसे मेरी स्किन पे टच हो रही है. वह उनके दोनों हाथो को मेरे आर्म्स के नीचे से पीछे ले जाकर ऊपर की तरफ मोड़ के मेरा कन्धा पकड़ लिया .. मैं उनके मुठ्ठी का ग्रिप मेरे कंधे पे महसुस कीया. मेरा चिन उनके सर के ऊपर रखा हुआ है. मैं उनके पेट् से रगड के दोनों हाथ पीछे पीठ के ऊपर लेके गया. और एक हाथ से उनके ब्लाउज और कमर में बढ़ा हुआ साड़ी के बीचवाले ओपन एरिया में मेरी उँगलियाँ रगड़ने लगा. और दूसरे हाथ से ब्लाउज के ऊपर कंधों के पास वाले एरिया को सहलाने लगा वह बस बीच बीच में अपनी मुठ्ठी की ग्रिप लूज़ कर रही है और फिर टाइट करके मेरे कंधो को पकड़ रखी है. हम दोनों की सांस अब बहुत तेज चल रहा है. ऐसे हम दोनों एक दूसारे को अपने शरीर के ऊपर मिलाके कुछ टाइम एक दूसरेको महसुस करने लगे. मैं लम्बाई में भी उनसे ज़ादा था और शरीर के गठन में भी. इस लिए ऐसा लग रहा है की मेरे लंबे चौडे शरीर के ऊपर उनका हलका फुलका नरम छोटा शरीर आराम से पड़ा हुआ है. मुझे मालूम है मेरा सख्त लिंग उनके पेट् पे लगा हुआ है. और वह जरूर उसको महसुस किया. फिर भी मेरा लिंग क्या चाहता है यह बताने के लिए में मेरे हाथों से उनकी पतली कमर पकड़के थोड़ा और अपनी तरफ खिचा. वह अब बिलकुल मेरे बदन में चिपक के लग गयी और उनका ग्रोइन एरिया मेरे साथ टच करके मुझे कसके पकड़ली. वह अपना नाक थोड़ा थोड़ा मेरे गले के पास स्किन पे रगड रही है. उनके बूब्स की गर्मी मेरा शर्ट क्रॉस करके मेरी छाती पे महसुस हो रहा है. मेरा तना हुआ लिंग उनके नरम पेट के ऊपर और जोरसे प्रेस होने लगा. मैं पागल सा हो गया. मुझसे और रुका नहीं गया. मैं उनके बालों के अंदर अपना नाक डूबो के उनके बालों की महक लेने लगा. और अपने दोनों हाथ उनके पूरा पीठ पे सहलाने लगा. वह भी धीरे धीरे उत्तेजित हो रही थी. उनके हाथ अब मेरा कन्धा छोड़के मेरा पीठ के ऊपर घूम घूम के मेरे शरीर को महसुस करनेलगी. मैं थोड़ा दूर हो गया और हमारे बीच थोडि जगह बनाके मेरी नाक बालों में से रगड के उनके लेफ्ट कानन को स्पर्श करके गरदन पे लेके आया. और मेरे होंठो से उनकी गर्दन को छुने लगा. इस पोजीशन पे वह अपना मुह मेरे लेफ्ट कंधो के ऊपर ले जाकर उनकी चिन को ऊपर की तरफ कर दिया. मैं अब मेरी नाक और होठो को रगड ते रगडते उनके गले में गया. मैं जैसे ही इतना नीचे तक झुका , मेरा लिंग का तम्बू अब उनके ग्रोइन एरिया में टच हो रहा है. मैं उनके गले को चूम ते छूते मेरी कमर को बंद करके आगे बढ़ाके, मेरा सख्त लिंग को उनके ग्रोइन में प्रेस कर दिया और दोनों हाथों से उनकी पतली कमर कस के पकड़ के मेरे लिंग के ऊपर खीच लीया. उनके मुह से सिसकारियां निकलने लगी.
 
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