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Incest मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना) (Completed)

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हीतेश अंदर नहाने चले गए है, खाना तो में तैयार कर चुकी थि, और कोई काम था नहीं और खिड़की में आकर खड़ी हो गई . बाहर निचे लोग इधर से उधर जा रहे थे, किसे क्या पता था की आज एक माँ और उनके बेटे की सुहागरात है.
ये ख्याल आते ही मुझे कुछ होने लगा. कितना अजीब लगा था उस वक़्त जब माँ ने मुझे हीतेश से शादी करने को कहा था. कितना मुश्किल था मेरे लिए हा कहना. पर इतना में जानती थी की हीतेश मुझे बहुत प्यार करता है. मैंने उसकी आँखों में अपने लिए वो भाव कई बार देखे थे, पर उसने कभी ऐसी कोई हरकत नहीं की जिससे मुझे लगे की ये प्यार नहीं वासना है. शायद ये ही सबसे बड़ा कारन था की में शादी के लिए तैयार हो गई
दिल से हीतेश को अपना पति मान लिया है पर फिर भी कहीं दिल के किसी कोने में एक डर सा समाया हुआ है कितनी बड़ी हु में उम्र में उससे, आज नहीं तो कल ये फरक दिखने लगेगा, तब क्या होगा. क्या में उनका पूरा साथ दे पाउँगी. आज की ख़ुशी के साथ साथ आने वाला कल मुझे डरा रहा था.
ये डर कितना बेबूनियाद है में अच्छी तरहा जानती हु, क्यूँकि हमारा रिश्ता प्रेम के धागो से जुड़ा है, पर न जाने कयूं मेरे मन में एक उथल पुथल फिर भी मची रेहती है.
कीतने शरारती हो गए है, कैसी कैसी हरकतें करने लग गए है.
ओह वो चुम्बन अब भी मेरी साँसों में घुला हुआ है. अगर मम्मी का फ़ोन नहीं आता तो न जाने हम कितनी देर तक……. छि... छि….. ये क्या सोचने लग गई में.

अब मुझे खुद को पूरा बदलना है एक माँ की जगह एक पत्नी का रूप लेना है पर क्या वो माँ मर जायेगी क्या में सच में उस माँ का गाला घोट पाउंगी और सिर्फ एक पत्नी बन के रह पाउंगी कुछ समझ नहीं आ रहा ... शायद वक़्त के हवाले सब करना पड़ेगा ... वक़्त ने हमारी शादी कारवाई है और इस समस्या का हल भी वक़्त ही निकालेगा.
कतना तड़प रहे हैं मुझे छूने के लिए और में --- क्या में भी ... उफ़ ... शायद हाँ--- आज कितने बरसों के बाद ... कोई मुझे एक औरत समझ के प्यार करेगा --- कोई कहाँ ... मेरा अपना ही बेटा ... जो अब मेरा पति बन चुक्का है.मम्मी भी कैसे कैसे इशारे कर रही थी ... की अब में जल्दी माँ बन जाऊ ... शायद इस्लिये क्यूँकि मेरे पास वक़्त कम है ... उम्र जैसे जैसे बढ़ती है ... माँ बन्ने में कठिनाइयँ आने लगती है. ... क्या सब कुछ ठीक होगा ... है ... ये क्या सोच्ने लग गई में.
अभि तो हमें ... उफ़ ... कैसे कर पाउंगी ... जब वो मुझे ... न ... कितनी शर्म आ रही है ... दिल कितना जोरों से धड़क रहा है.
क्यों एक नयी सी उमंग दिल में पैदा हो रही है ... आज में फिर से सुहागन बन गई हु ... फिर से सुहागण- शायद ही कोई ऐसी औरत होगी ... जो अपने ही बेटे की सुहागन बनती होगी ... लेकिन इन बातों को सोचने से अब क्या ... अब तो में सुहागन बन चुकी हु ... ये प्यारे प्यारे रंग जो मेरी जिंदगी से चले गए थे- हीतेश उन्हें फिर मेरी जिंदगी में ले आये. हीतेश मेरा बेटा ... मेरा पति- मेरा सब कुच.
क्या में साथ दे पाउंगी सुहाग रात में ... कितने सपने सजाये होंगे हीतेश ने ... कितने अरमान होंगे हीतेश के- क्या में उन्हें पूरा कर पाउंगी ... क्या में ... क्या वो मुझे समझ पाएँगे ... मेरे दिल की हालत ... एक अड़चन कहीं न कहीं अब भी दिमाग में रहती है .
छोड़ो ... देखते हैं क्या होगा ... मुझे विश्वास है वो मेरे दिल की बात जरूर समझ जायेंगे ... मुझे वक़्त देंगे अपने इस नये रूप में पूरी तरहा ढ़लने के लिये. दिल तो मेरा भी बहुत करने लगा है उनके बाँहों में समाने का ... पर एक डर भी लगता है.

कल में मम्मी पापा की शरण में थि, आज मुझे मेरा घर मिल गया ... मेरा घर ... मेरे हीतेश का घर ... हमारा घर . अब यही मेरा नया संसार है ... जो अनुभुति मुझे इस वक़्त हो रही है वो शायद में कभी शब्दों में बयान नहीं कर पाउँगी.
एक सुखद अहसास हो रहा है अपने इस नए घर में आने का ... मम्मी पापा से दूर होने का दुःख भी है पर ... आज मुझे ये भी मेहसुस हो रहा है अब में फिर से पूरी हो जाउँगी ... वो सुख जो हीतेश के पापा दिया करते थे ... वो सुख जिसे में भूल गई थी ... वो सुख जो हर नारि की तमन्ना होती है ... जो हर नारी को उनके पुरे होने का अहसास करता है ... वो सुख अब मुझे मेरा हीतेश देगा कितना खूबसूरत है हितेश बिल्कुल अपने पापा तरह जैसे वह फिर आ गये हो हितेश के रूप में ... में फिर से सपनो में उड़ने लगूँगी ... फिर से मेरी कामनाओ को पंख मिल जायेंगे ... फिर से मेरी जिंदगी में सपनो की बहार आ जायेगी ... फिर से मुझे कोई थाम लेगा ... मुझे एक नई दिशा देगा ... अपना पूरा प्यार देगा ... मेरा हीतेश फिर से मुझे पूरा कर देगा.
पता नही क्यों मेरे लब पे ये गीत आ गया ... “अब तो है तुमसे हर ख़ुशी अपनी” ---- में खो गई ... अब मुझे सड़क पे चल्ने वाले लोग नहीं दिख रहे थे ... ये गीत मुझे मेरे हीतेश के पास ले जा रहा था ... मेरा खुद पे बस ख़तम हो रहा था ... में उनका इंतजार कर रही थी कितना देर लगाते है नहाने में.
 

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मेरे कानो में वो आवाज़ आणि बंद हो गई, और में ख़यालों से वापस निकल आया . माँ अभी भी खिड़की से बाहर देख रही थी.मुझ से अब रुका नहीं गया अब ये दो कदम का फ़ासला मुझे पूरा करना था, में अपने माँ के करीब होता चला गया ... करीब ... और करीब इतना की में उनके साथ पीछे से सट गया.जी ही में अपने माँ के जिस्म के साथ सटा था मुझे लगा की माँ के मुंह से एक सिसकि निकल पड़ी उनके जिस्म में कम्पन आ गया ... शायद उसने अपनी आँखें भी बंद कर ली होंगीं ... जो अनुभुति हमें उस वक़्त हो रही थी वो सिर्फ हम दोनों ही जान सकते हैं ... दोनों के दिल की धड़कन बढ़ गई ... यूँ लग रहा था जैसे हमारे दिल आपस में बाते कर रहे हो.
मेरा पेनिस इतना हार्ड हो गया की दर्द करने लगा ... माँ को जरूर मेरे पेनिस का अहसास हो रहा होगा मैंने धीरे से अपने हाथ माँ के कांधों पे रख दिए ... मुझे साफ़ मेहसुस हो रहा था माँ के जिस्म में उठती हुई कम्पन में धीरे धीरे अपने हाथ निचे उनके बाँहों पे सरकाता चला गया. माँ की दोनों मुठियाँ बंद थि, मेरी उँगलियों ने जैसे ही उन मुठियों को छूआ दोनों मुठियाँ खुल गई और मैंने उनकी उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फसा डालि.
हम दोनों की उँगलियाँ आपस में कसती चलि गई और दोनों के हाथ फिर से मुठियों में बंध गये ... ये बंधन था हमारे प्रेम का ... हमने एकदूसरे को पूरा करने की शुरुवात की.मेरे नाक में माँ की सुगंध आने लगी में अपना मुंह माँ के बालों में फेरेने लगा मुझे लगा जैसे माँ अभी थोड़ा पीछे हुई है और मुझ से सट गई है. माँ के बालों को सुंघता हुआ में माँ की गर्दन पे आ गया ... माँ की साँसे तेज होने लगी ... और मेरी साँसे भी तेज होती जा रही थी.
मैने माँ की गर्दन को चूम लिया और मेरे मुंह से अपने आप निकल पड़ा
‘आई लव यु’
शायद बहुत ही हलके से माँ मुंह में बुदबुदाई “आई लव यू टू”
जिसे मेरे तड़पते हुए कानो ने पकड़ लिया ... मुझे आज अधिकार मिल गया था अपनी माँ को छूने का ... उसे प्यार करने का ... उसे फिर से पूरा करने का
 

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मंजू” !’
‘’हम्म’
‘तुम बहुत खूबसूरत हो’ अब में माँ को अपने पत्नी के रूप में देखने लगा था हमेशा जो जुबान आप बोलती थी आज उनके मुंह से कितनी आसानी से तुम निकल गया. मैं समझ सकता था इस वक़्त माँ के दिल में क्या क्या आँधियाँ चल रही होंगीं ... आज में अपने पिता की जगह ले चुक्का था ... आज में माँ का पति था ... पर जिस विश्वास के साथ माँ ने मुझे अपनाया था उस विश्वास को मुझे कायम रखना था.
मै तड़प रहा था पर फिर मुझे खुद पे कण्ट्रोल रखना था ... यही वक़्त का तक़ाज़ा था ... इसी संयम से हमारा प्यार परवान चढ़ने वाला था.माँ कोई जवाब नहीं देती में फिर बोलपडताहु
‘आज में बहुत खुश हु”
“मुझे बहुत खुबसुरत, ‘बहुत सेक्सी बीवी मिली है’
माँ शर्मा कर गर्दन झुका लेती है और में माँ की गर्दन पे अपनी जुबान फेरने लगता हु.
‘जूठ कहते हैं आप ‘
‘ये तो में जानता हु सच क्या है”
“इधर आओ’ और में माँ को ऐसी ही साथ में लिपटाये हुए शीसे के सामने ले जाता हुं.
‘देखो सामने’
माँ सामने देखती है तो उसे अपना अक्स नजर आता है और उनके पीछे में उनके साथ चिपका खड़ा हु. शर्म से आँखें बंद कर लेती है. और में शीसे में माँ के सुन्दर रूप को निहारने लगता हुं.
‘देखो ना’
‘क्या?’
बहुत ही धीमे स्वर में जवाब देती है.
‘आंखे खोल के सामने देखो’
माँ गर्दन हिला के ना कर देती है.
‘मेरी कसम’
माँ फट से अपनी आँखें खोल देती है.
‘आप बहुत तंग करने लग गए हैं”
‘कसम क्यों दी?’
‘और क्या करता” ‘ऐसे तुम मान ही कहाँ रही थी, देखो सामने, अपने होठो को देखो’
माँ शरमाती हुई सामने देखति है लज्जा के मारे उनके गाल लाल सुर्ख़ हो जाते हैं होंठ थरथराने लगते है.
‘बिलकुल गुलाब की पंखुडियों की तरहा कोमल , सुन्दर और रस के भरे है.’
माँ की सांस तेज हो जाती है
‘अपनी आँखें देखो बिलकुल झील सी गहरी, जिसमे प्यार का सागर लहरा रहा है’
‘बस’
ओर माँ पलट के अपना सर मेरे सीने पे रख देती है.
‘क्या हुआ?’
‘बस कीजिये ना’ शर्माती हुई मेरे सीने से लगी माँ धीरे से बोलती है.
‘क्यों में तो अपने देवी की पूजा कर रहा हु, उसकी सुंदरता को पढ़ने की कोशिश कर रहा हु’
‘प्लीज बस कीजिये ना बहुत शर्म आ रही है’
मै माँ को अपनी बाहो में लप्पेट लेता हु मेरा सपना आज पूरा हो गया जो सपना में कब से देखता आ रहा था आज वो सच्चाई में बदल गया.
मेरी माँ आज मेरी पत्नी बनकर मेरी बाँहों में थी.
थोड़ि देर बाद माँ मुझ से अलग होने की कोशिश करती है,
लेकिन में उसे बाँहों की क़ैद से आजाद नहीं करता.
‘छोडिये न’
‘हमम हु’
‘प्लीज छोडिये न’
‘दूर होना चाहती हो?’
माँ ना में सर हिलाती है.
‘फिर?’
‘खाना नहीं खाएँगे क्या? ... छोडिये में खाना लगाती हु’
‘आज तो कुछ औरे खाने का मन है’
‘क्या?’
‘बताऊँ’
फिर ना में गर्दन हिलाती है.
‘प्लीज छोडिये ना ... बहुत भूख लगी है’
मेरे हाथ अपने आप माँ को बंधन से आज़ाद कर देते है.
मै खुद भूखा रह सकता था, क्यूँकि मुझे तो भूख ही माँ की लगी हुई थी, पर अपनी माँ को कैसे भूखी रहने देता. पर में अच्छी तरह जानता ना एक माँ अपने बेटे को भूखा रहने देती है और न ही एक पत्नी ... और माँ तो दोनों थी- फिर कैसे वो मुझे भूखा रहने देती.
‘आप बैठिये, में फ़टाफ़ट खाना लगाती हु’

‘रहने दो- में बाहर से लाता हु, तुम बहुत थक गई होगी, और आज क्यों किचन में खुद को झुलसाना चाहती हो’
‘नहीं इसमें मुझे सुख मिलता है,जो कल करना है वो आज क्यों नहीं’
अब मेरे मुंह से निकल ही नहीं पाया की आज हमारी सुहागरात है इस्लिये नहि
माँ किचन में चलि जाती है और में पीछे पीछे जा के उसे देखने लगता हु.
माँ के हाथ बिजली की गति से चल रहे थे. सब कुछ तो उसने तैयार कर रखा था बस सिर्फ गरम करना था.
मुझे याद आता है की मुझे तो सुहाग सेज तैयार करनी थी.
मैं फटाफट जा के वो छुपे हुए गुलाब की पंखुडियों का पाकेट निकालता हु और पुरे बिस्तर को गुलाब की पंखुडियों से सजा देता हु.
जब तक में इस काम से फ्री हुआ, माँ की आवाज़ आ गई

‘आइये खाना लगा दिया है’

मैने कमरे को पर्दा कर दिया और बाहर आ गया .माँ प्लेट में खाना दाल रही थी.
‘रुको’ मेरे मुंह से निकल जाता है.
माँ मुझे सवालिया नजऱों से देखति है.
इस से पहले में कुछ कहता वो शर्मा के चेहरा झुका लेती है और एक प्लेट रख देती है एक ही प्लेट में खाना डालती है. एक दूसरे के दिल की बात हम समझ जाते है.
 

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मेरे मन में फिर से एक शरारत आ जाती है, में धीरे से चलते हुए टेबल तक पहुँचा और जैसे ही माँ के करीब हुआ मुझे लगा जैसे वो सिहर सी गई हो एक कम्पन हुआ उनके जिस्म में और मेरे चेहरे पे मुस्कान आ गई
माँ शर्माकर निचे टेबल की तरफ देखति हुई खड़ी थि, खाना एक प्लेट में दाल चुकी थी.
सिर्फ दो ही कुर्सियाँ थी और एक छोटा टेबल, ज्यादा खरीद दारी तो मैंने की नहीं थि, क्यूँकि जगह ही इतनी थी.
मैने एक कुरसी साइड पे कर दी और एक पे बैठ गया, माँ तिरछी नजऱों से मुझे देख रही थी, उफ़ क्या शर्म आ रही थी माँ को, वो मेरी शरारत कुर्सी के हटते ही भांप गई थि, आखिर माँ थी वह मेरि, मेरे अंदर कब क्या ख्याल आते हैं उस से छुपा नहीं पाता. लज्जा से उनका गुलाबी चेहरा और भी लाल होता जा रहा था, साँसे और भी तेज हो गई थी.
मैने धीरे से माँ का हाथ पकड़ लीया, उसने मेरी तरफ देखा, उसकी नजऱों में मुझ से शरारत न करने की प्राथना थि, पर में कहाँ मानने वाला था आज तो मेरा दिन था मेर्री भी साँसे तेज हो चलि थी मैंने माँ को अपनी तरफ खिंचा और अपनी गोद में बैठने का इशारा किया माँ ने शर्मा कर ना में गर्दन हिलायी ... में उनका हाथ पकडे बस उसे ही देखे जा रहा था- उनके रूप और उसकी मादकता में खोता जा रहा था ... मेरी आँखों में भी एक प्राथना आ गई जिसे माँ ने भाँप लिया और सकुचति हुई धीरे से चलके मेरी गोद में बैठ गई
हम दोनों का ये स्पर्श हमें कहीं और ले चला ... भूल ही गये की खाना खाने बैठे है.
उनके जिस्म की खुशबु से में और भी मदहोश हो गया और मेरा पेनिस फुदकता हुआ जरूर उसे चुबने लगा होगा जो उसकी और भी तेज होती हुई साँसे मुझे इशारा कर रही थी.
यूं लग रहा था जैसे वक़्त की सुई यहीं पे रुक गई हो. और मेरे होंठ उनके ब्लाउज के उप्पर उसकी नंगी पीठ से चिपक गये
अअअअहहहह माँ सिसक पाडी.
शायद बड़ी मुश्किल से उनके मुंह से एक शब्द निकल पाया.
‘खाना’
मेरा ध्यान भंग हुआ. और मेरी नजर खाने की प्लेट पे चलि गई
‘ आज तक तुम मुझे खिलाती रही,आज में तुम्हें खिलाऊंगा’
माँ ने मुस्कुरा के मुझे देखा और धीरे से बोली
‘दोनों एक दूसरे को खिलायेंगे’
मुझे लगा की माँ की झिझक धीरे धीरे दूर हो रही है और मेरे चेहरे पे मुस्कान आ गई
‘मैं चेयर पे बैठती हूँ ऐसे आपको तकलीफ होगी’
वह मुस्कुरा कर सर झुकाए हुये बोली.
‘नही कल में तुम्हारी गोद में बैठा करता था आज से तुम मेरी गोद में बैठोगी हम रोज ऐसे ही खाना खाया करेंगे’
‘धत्त!
“आप बहुत बेशर्म होते जा रहे है’
‘इसमें बेशरमी कहाँ से आ गई अपनी बीवी को अपने गोद में बिठा रहा हु, किसी और को थोड़े ही बिठा रहा हूँ’
‘उफ़ बहुत बोलने लगे हैं आप’
माँ ने एक निवाला मेरे मुंह में ड़ाला तो मैंने उनके ऊँगली भी काट ली.
”उइ”
मेरी हसि छूट गई और वो झूठा गुस्सा दिखाते हुए मुंह बनाने लगी.
फिर मैंने माँ को एक निवाला खिलाया तो उसने भी वही हरकत कर डाली.
”उफ”
ओर वो खिलखिला के हस् पड़ी उसकी हसी मे में खोता चला गया, और इसी तरह हम दोनों ने खाना ख़तम किया .
 

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खाना ख़तम हुआ माँ ने बर्तन संभल कर किचन में रखि, मैंने किचन में ही हाथ ढो लिए और माँ ने ऐसे देखा जैसे मैंने कोई गलत काम कर ड़ाला हो, बाथरूम की जगह किचन में जो हाथ धो डाले. अब किचन की मालकीन जो आ गई थी. मैंने कान पकडे और वो मुस्कुरा उठि और सर झटक के दूध गरम करने लगी.
अब ये दूध वो था जो में रोज रात को पिया करता था जब भी माँ के पास होता था या फिर ये दूध वो था जो सुहागरात की एक रसम होती है जब नयी नवेली दुल्हन हाथ में दूध का गिलास ले कर कमरे में प्रवेश करती है.
मै किचन में दिवार के सहारे खड़ा देख रहा था दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थि, मेरा पेनिस सख्त हो रहा था, अचानक मुझे याद आया में तो गजरे ले कर आया था. फ़टाफ़ट जा कर में वो गजरे वाला पाकेट लाया और किचन में माँ के करीब रख दिया.
माँ ने सवालिया नजऱों से मुझे देखा तो मैंने भी आँखों के इशारे से कहा की देख लो.
दुध गरम हो चुक्का था, माँ ने गैस बंद कर दिया, और फिर एक गिलास में दाल लिया .
गिलास वहीँ रख के माँ वो गजरे वाला पैकेट खोला और देखते ही शर्म से लाल हो गई चेहरा निचे झुका लिया होठो पे एक मंद मुस्कान आगई, अपना मुंह दूसरी तरफ कर मेरे सामने अपने बँधे हुए बाल कर दिए और हाथ में उस पाकेट को पकड़ पीछे मेरी तरफ कर दिया ये इशारा था की उनके बालों में वो गजरे में लगाऊ.
मैने उनके हाथों से वो पैकेट ले लिया और उनके करीब हो गया, दिल कर रहा था की बाँहों में जकड लु.
उनकी साँसे बहुत तेज हो चुकी थी शायद पिताजी ने भी कुछ ऐसा किया था.
शायद माँ को उनके पहली सुहागरात याद आगई थी उनके जिस्म में कम्पन बढ़ता जा रहा था और मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी.
कोई भी औरत अपनी सुहागरात नहीं भूल सकती सारी उम्र और माँ की जिंदगी में दूसरी बार सुहागरात आ गई थी में शायद अपने माँ के दिल की हालत समझ रहा था इस्लिये मेरे हाथ कांपने लगे और किसी तरह मैंने गजरे उनके बालों में लगा दिये पीछे से ही उनका रूप यूँ लग रहा था जैसे मेरे सामने कोई अप्सरा उतर के आ गई हो.
मै खुद को रोक नहीं पाया और अपने दोनों हाथ उनके कांधों पे रख दीये.
माँ को एक झटका सा लगा, पूरा बदन हिल गया और उनके मुंह से एक सुखद अह्ह्ह निकल गई जो बहुत हलकी थी पर फिर भी मेरे कानो ने उसे पकड़ लिया था.
माँ के कांधों पे जैसे ही मैंने अपने हाथ रखे मुझे पता चल गया की उनका दिल बहुत जोरों से धड़क रहा है मुझ से भी तेज.
अब सवाल ये था की कमरे में कौन जाए पहले या फिर दोनों एक साथ जायें सुना तो ये था की दुल्हन घुंगट काढ़े बिस्तर पे बैठि अपने दुल्हे का इंतज़ार करती है.
मुझे समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूँ क्या कहुँ और शायद यही दशा माँ की भी थी क्यूँकि दुल्हन को कमरे में ले जाने वाला परिवार का कोई भी शख्स यहाँ नहीं था.
यहाँ तो सिर्फ हम दोनों थे
हमारी आत्मायें जो मिलन के लिए तड़प रही थी हमारे जिस्म जो एक होने का इंतज़ार कर रहे थे हमारा प्रेम जो पूर्ण होने की राह देख रहा था.
अब शायद एक पति होने के नाते पहल मुझे ही करनी थी.
लेकिन शायद मेरी हिम्मत जवाब दे रही
थी में अंदर से कीतना भी तड़प रहा था
न जाने क्यों वो साहस नहीं जोड पा रहा था की माँ को सुहाग शेज तक ले चलूँ
मेरे होंठ सुख रहे थे यूँ लग रहा था जैसे मेरे पैर जमीन से जम गये हो
मेरे दिल की हालत माँ अच्छी तरहा जानती थी समझती थी
पर आज वो भी मजबूर थी
आज वो माँ नहीं एक पत्नी बन चुकी थी एक दुल्हन
जो लाज के मारे मरी जा रही थी.
उनके होठो से आज कैसे कुछ निकलता.
 

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माँ शायद मेरी दुविधा समझ गई
और अपनी सहमति देणे के लिए थोड़ा पीछे हो गई और बिलकुल मुझ से सट गई
मेरे हाथ सरकते हुए उसकी बाँहों को सहलाने लगे, में उन्हे अपनी तरफ घूमाना चाहता था, उनके सुन्दर चेहरे को देखने चाहता था, उनके रूप के रस को पीना चाहता था
माँ धीरे धीरे सिसक रही थि, उनका बदन कांप रहा था शायद या यक़ीनन वो भी मिलन के लिए तड़प रही थी और मेरा तो बुरा हाल होता जा रहा था
वक्त सरकता जा रहा था, और हम दोनों अपने दिलों की धड़कन बढ़ाते हुये वहीँ खड़े थे किचन में, गरम दूध भी ठण्डा हो चला था
आखीर माँ बोल ही पडी
‘आप चलिये न में आती हु’
लेकिन शायद में चाहता था की मेरी दुल्हन पहले कमरे में जाये और मेरा इंतज़ार करे.
‘तुम चलो में आता हूँ’
माँ ने गर्दन घुमा कर अपने नशीली आँखों से मुझे देखा ... जैसे कह रही हो ... प्लीज मान जाओ न.
‘दूध ठण्डा हो गया है ... में गरम कर के आती हु’
‘ऐसे ही रहने दो ... गरम करने की जरुरत नहीं’
‘प्लीज….’
आगे मैंने बोलने नहीं दिया और दूध का गिलास उठा लिया और अपने माँ के कंधो पे अपनई बाँह फैला कर उसे अपने साथ खिंच लिया.
ओर माँ भी कुछ बोल न पाइ और मेरे साथ खिंचति चलि गई
कमरे में पहुँच कर जब माँ ने बिस्तर को देखा जो गुलाब की पंखुडियों से मैंने सजाया था वो शर्म के मारे दोहरी हो गई और मुझ से छिटक के अलग हो गई
मैने दूध का गिलास बिस्तर की साइड में रख दिया.
वह पल आ चुक्का था जिसका मुझे सदियों से इंतज़ार था, में अपनी माँ की तरफ बढा, जैसे ही उनके पास पहुंचा मुझे लगा वो सूखे पत्ते की तरह कांप रही है शायद आने वाले पलों के बारे में सोच कर.
मैने धीरे से मंजू को अपनी तरफ घुमाया. उसने अपना चेहरा झुका लिया, आँखें बंद कर ली. उनके होंठ कांप रहे थे, जिस्म थरथरा रहा था
मैने माँ की थोड़ी पे अपनी ऊँगली को रखा और उनके चेहरे को ऊपर उठया.
माँ के लाल सुर्ख़ होंठ मुझे बुला रहे थे,
कह रहे थे, कब से तड़प रहे है,
अब बर्दाश्त नहीं होता, आओ और चूम लो.
‘आँखे खोलों ना’
माँ ने ना में सर हिलाया.
‘देखोना ना मेरी तरफ’
माँ ने अपने नशीली आँखें थोड़ी खोली जैसे बहुत जोर लगाना पड़ा हो.
मैं उन अधखुली आँखों में बस प्यार के समुन्दर में डुबता चला गया
और मेरे होंठ माँ के होठो से मिलने के लिए तडपने लगे.
धड़कते दिल से में झुक्ने लगा और अपने
होंठ माँ के होठो के करीब करता चला गया.
फर एक बिजली सी कौंधी और मेरे होंठ माँ के होठो से चिपक गये,
माँ की बाहे मेरे गले में हार की तरहा पड़
गई और हम दोनों चिपक गये
 

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मैं जानता हु माँ यही सोच रही होगी बरसों रेगिस्तान में रहने के बाद आज फूलों से वास्ता पड़ा है,
मुझे भी कुछ ऐसा लग रहा था जैसे बरसों से वीरान जंगल में चलते हुए आज अपने पड़ाव पे पहुंचा हु,
क्यूँकि आज मेरी माँ मेरी बाँहों में थि, मेरी पत्नी का रूप लेकर.
इस चुम्बन से शुरुवात होनि थी हमारे वैवाहिक जीवन कि,
कितने सपने सजा लिए होंगे माँ ने, और में तो अपनी माँ की खुशबु को अपने अंदर समेटता चला जा रहा था
हम दोनों के होंठ चिपके हुये थे, शायद माँ के अंदर अब भी एक युद्ध चल रहा था अपने बेटे को पति का रूप दे चुकी थी पर उस बेटे को अपना जिस्म सोंपना इतना आसान नहीं था
मै माँ के दिल की हालत समझ रहा था जो इस वक़्त बहुत जोर से धड़क रहा था
मंजिल मेरी बाँहों में थी और धीरे धीरे मुझे ही माँ की झिझझक दूर करनी थी.
मैने माँ के होठो पे अपनी जुबान फेरनी शुरू कर दी
और थोड़ी देर बाद मुझे लगा जैसे माँ के होंठ खुल रहे है,
वो मेरे प्रेम को स्वीकार कर रही है,
और में माँ के नीचले होंठो को अपने होठो में दबा लिया.
मुझे जैसे स्वर्ग के रास्ते की पहली सीढ़ी मिल गई
माँ के होंठो को चुसते हुए ऐसा लग रहा था जैसे गुलाब का रस चुस रहा हु.
मेरा जिस्म झनझना रहा था और मेरा पेनिस इतना सख्त हो चुका था की उसमे उठता दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा था
मेरे पेनिस की चुबन से माँ भी अछुती न रेह पाई होगी.
मैने माँ को अपनी बाँहों में और कस लिया और अपने होठो का दबाव और बड़ा दिया.
माँ की आँखें बंद थि, वो अपनी दुनिया में थि, शायद बरसों बाद हो रहे इस चुम्बन के अहसास को महसुस करने की कोशिश कर रही होगी.
आज बरसों बाद कोई माँ के होठो का चुम्बन ले रहा था, और वो कोई और नहीं उनका बेटा था
जो उनके पति का रूप ले चुका था
माँ का जिस्म अब जोर से काँपने लगा था
और वो मुझ से लिपटति चलि जा रही थी जैसे अभी हम दो जिस्म एक जान बन जाएंगे.
मैने जोर जोर से माँ के होठो को चुसना शुरू कर दिया और मुझे लग रहा था जैसे वो पिघलती जा रही है
उसकी बंद आँखों के कोर से मुझे दो ऑंसू मोती बन के निकलते दिखाइ पड़े
हमारी साँस भी उखडने लगी थी
मजबुरन मैंने माँ के होठो से अपने होंठ अलग कर दिये. वो तेज तेज हाँफने लगी.
‘मुझ से रहा न गया और में पूछ बेठा.
‘ये आंसू…?’
‘माँ ने अपनी नशीली आँखें खोली मुझे देखा और चेहरा झुका लिया
शर्म के मारे उनके मुंह से कोई बोल नहीं निकल रहा था
मै फिर पूछ बैठा
‘बोलो न’
“मुझ से कोई ग़लती हो गई क्या? ‘मैंने कोई दुःख दे दिया क्या?’
माँ ने तड़प के मेरे होठो पे अपना हाथ रख दिया.ओर बहुत धीमे स्वर में बोली
‘ये तो ख़ुशी के ऑंसू हैं’
ओर मैंने तड़प के फिर माँ को अपने बाँहों में भर लिया और हम दोनों के होंठ फिर जुड़ गए इस बार माँ भी चुम्बन में मेरा साथ दे रही थी मैं उनका नीचला होंठ चूसता तो मेरा उपरवाला.
मेरे हाथ माँ की पीठ को सहलाने लगे और माँ के हाथ मेरे सर को.
दिल कर रहा था वक़्त यहीं रुक जाए और हम अपनी नयी दुनिया के आरम्भिक शण में खोते चले जाए.
 

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यक़ीनन में पागल हो चुका था,
जितनी शिदत से में अपने माँ के होंठ चुस रहा था,
मुझे ये अहसास ही नहीं रहा की मेरी माँ को कोई तकलीफ भी हो रही होगी,
में तो जैसे रस के एक एक कण को चुसना चाहता था,
जैसे एक भूके के सामने सालों बाद रोटी रख दी गई हो
भावनाओं के जिस भँवर में में अब तक घूम रहा था और सोच रहा था की माँ के दिल की क्या हालत होगी
वो सब जैसे कहीं बहुत पीछे छूट गया था.
इस वक़्त तो सिर्फ उन होठो के रस में डुबा जा रहा था
ये भी अहसास नहीं हुआ की की माँ को कोई तकलीफ भी हो रही होगी
शायद बरसों से कोई भूखा रहे तो यही हाल होता होगा जैसा मेरा हो रहा था
मैन तो होश गावं चुका था फिर ये अहसास हुआ की जो हाथ मेरे सर को सहला रहे थे वो अब दूर हो चुके थे. माँ की साँस घुट रही थी फिर भी मेरा साथ दिए जा रही थी.
प्रेम की प्रगाढ़ता की कोई सीमा नहीं होति,
प्रेमी तकलीफ झेल कर भी प्रेमी को पूरा सुख देता है
और मेरी माँ दर्द झेल रही थी
में गुनह्गार बनता जा रहा था
जैसे ही मुझे इस बात का अहसास हुआ में एक दम से माँ से अलग हुआ और उस वक़्त माँ की दशा ठीक नहीं थी
वो बस हाँफती हुई अपनी साँसों को दुरुस्त करने की कोशिश कर रही थी
सांस तो मेरी भी फूल चुकी थी पर इतनी नहीं जितनी माँ की फूली हुई थी.
उफ़ पागलपन में ये क्या कर डाला मैने.
अपणे आप मेरे मुंह से निकल गया
‘सॉरी’
माँ ने एक नजर मेरी तरफ देखा और फिर नजरें झुकाली उसकी सांस अभी भी तेज चल रही थी जैसे १०० मीटर की रेस में प्रथम आ गई हो.
मैन भी हाँफता हुआ अपने माँ के चेहरे की छठा को देखता रहा

सब्र का प्याला छलकता जा रहा था पर फिर भी सब्र करना था मैंने माँ को गोद में उठा लिया.
‘आउच डर के मारे माँ चीखी और मुझ से लिपट गई
फिर धीरे से माँ को बिस्तर पे लीटा दिया गुलाब की पंखुडियों के उप्पर और मन्त्रमुग्ध सा माँ को देखने लगा.
गुलाब से सजे बिस्तर पे माँ के रूप की छठा का और भी निखार आ गया था
मुझे तो बस यही लग रहा था जैसे कोई अप्सरा मेरे सामने बिस्तर पे लेटि हुई है.
मुझे इस तरहा देखते हुए पा कर माँ ने शर्मा कर अपनी हथेलियों से अपना चेहरा धक् लिया और एक दम मेरी तन्द्रा भंग हो गई
अपणे आप ही मेरे चेहरे पे मुस्कान आ गई और में माँ के करीब जा कर बैठ गया.
शायद माँ को कुछ याद आ गया.
उसने धीरे से अपने हाथ अपने चेहरे से हटाये और बोली
‘दूध तो ठंडा…..’
आगे मैंने बोलने ही नहीं दिया और दूध का गिलास उठा कर आधा पि गया और फिर गिलास माँ की तरफ बड़ा दिया
सकुचाते शरमाते माँ ने गिलास मेरे हाथ से लिया और नजरें झुका कर पि गई माँ ने गिलास साइड टेबल पे रख दिया और बैठि रहि.
मै माँ के करीब सरक गया. मेरे पास आते ही उसकी साँसे फिर तेज होने लगी में उनके दिल की हर धड़कन को सुन रहा था यूँ लग रहा था जैसे वो धधकन मुझ से कुछ कहना चाहती हो.
एक डर का अहसास जो माँ के दिल में इस वक़्त बसा हुआ था उनका अहसास दिला रही थी मुझे,
और मुझे उस डर को दूर करना था
करीब पहुँच कर में माँ के साथ ही बैठ गया हमारे जिस्म आपस में छुने लगे.
तेज चलति हुई सांस के साथ माँ के उभार भी ऊपर निचे हो रहे थे और मुझे यूँ लग रहा था जैसे मुझे ये सन्देश दे रहे हो आओ और छू कर देखो.
मै इतनी हिम्मत नहीं जोड पाया की अपनी माँ के उभारों को छू सखु
एक डर मेरे अंदर भी था पता नहीं क्या सोचेगी वो
जिस प्रेम ने हमें बांधा था वो कहीं वासना के प्रभाव में बिखर न जाये
और में माँ को भूल कर भी कोई दुःख नहीं दे सकता था
मैने बहुत धीरे से अपनी बाँहे माँ के कांधों पे रखी और उसे अपने से सटा लिया.
माँ की आँखें फिर से बंद हो गई
मैने माँ के चेहरे को उप्पर किया और फिर अपने होंठ माँ के होठो पे रख दीये.
माँ का जिस्म कांप उठा और उनके होंठ खुल गये
मैने फिर से माँ के होठो को चुसना शुरू कर दिया और अपने दूसरे हाथ को
माँ के पेट पे ले गया और धीरे धीरे सहलाने लगा.
जैसे ही मेरा हाथ माँ के पेट को छूआ वो सिहर गई और मुझ से चिपक गई
माँ के होठो को चुसते हुये में मेरे हाथ को धीरे धीरे ऊपर सरकाता जा रहा था और जैसे मेरा हाथ माँ के स्तन तक पहुंचा माँ का हाथ मेरे हाथ पे आ गया.
मुझे यूँ लगा जैसे वो मुझे रोकना चाहती थी.
मैंने अपने हाथ की हरकत रोक दि.
माँ का हाथ मेरे हाथ पे ही रहा.
माँ अब थोड़ा खुलने लगी और हमारी जुबाने आपस में मिलने लगी एक दूसरे से बात
करने लगी
और इसी मस्ती में मैंने अपना हाथ आगे बड़ा कर माँ के स्तन पे रख दिया.
हम दोनों को ही एक झटका लगा.
मेरे लिए उस पल की अनुभुति को बयां करना बहुत मुश्किल है मैंने अपने माँ के स्तन के उप्पर अपना हाथ रखा हुआ था
और शायद माँ ये सोच रही होगी की उनके बेटे का हाथ उनके स्तन को छू रहा है.
हम दोनों ही अलगहुए फिर हमारे होंठ आपस में मिल गये
हाय राम हीतेश ने तो मेरे उरोज़ पे हाथ रख दिया.
“उफ़ क्या करूँ?
“अजीब लग रहा है कुछ अच्छा कुछ बुरा सा पर अब तो हीतेश मेरा पति बन गया है पत्नी धर्म है तो रोक भी नहीं सकती.
आज सुहागरात है,
कैसे झेलूंगी पता नहीं क्या क्या करेगा, बहुत अजीब अनुभुति हो रही है,
कैसे मेरे होंठ चुस्ने में लगा है
पहले तो शर्म के मारे जान निकल रही थी.
अब अच्चा भी लग रहा है, ऐसा लग रहा है जैसे खुला आसमाँन मुझे उड़ने के लिए बुला रहा हो
मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही है और साथ ही साथ हीतेश की शरारतें
एक दिल करता है उडती जाउ और कभी रुकूँ नहीं दूसरा दिल थोड़ा डरता है क्या में उनका साथ निभा पाउंगी
अगर कहीं में ज्यादा उत्तेजित हो गई तो ? हर पल एक नयी तरंग मेरे जिस्म में उठ रही है एक नयी अनुभुति आ रही है
दिल उन तरगों में डुब जाने को कह रहा है आज सब कुछ भूल कर एक नई जिंदगी की तरफ कदम रखना है
मुझे मेरे पति को सब कुछ सोंप देना है उनकी बाँहों में सिमट के रहना है”

माँ शायद ऐसा ही कुछ सोच रही थि, उनके दिल की धड़कन मुझे बता रही थी.
मैंने माँ से अपने होंठ अलग किये
जैसे ही मेरे होंठ अलग हुए माँ की आँखें खुल गई उनमे मुझे एक सवाल दिखाइ दिया की मैंने होंठ अलग क्यों किये
फिर फट से उसने शर्मा के नजरें निचे झुका ली.
फिर मैंने धीरे धीरे माँ को बिस्तर पे लीटा दिया.
माँ की आँखों में देखा तो उसने शर्मा के अपना चेहरा अपने हथेलियों में छुपा लिया.
मैंने धीरे से उनके हाथों को हटाया और अपना चेहरा माँ की क्लेवेज पे रख दिया माँ तड़प सी उठि और उसने मेरे सर को अपने सीने पे दबलिया.
उफ़ क्या खुश्बु है मेरी माँ की मेरा दिल यही कर रहा था की सारी जिंदगी बस ऐसे अपने माँ की सुगंध में खोया रहू.
मेरे होंठ अपना कमाल दिखाने लगे और मैंने माँ की क्लीवेज को चुमना शुरू कर दिया.
माँ के होठो से हलकी हलकी सिसकियाँ फूटने लगी.
 

Incest

Supreme
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आह हीतेश के होंठ मेरे क्लीवेज को चूम रहे है.
उफ्फ्फ ये क्या सनसनी मेरे जिस्म में फैल रही है
आज बरसों बाद यूँ लग रहा है में एक बंद कली से फिर एक खिलता हुआ फूल बनने वाली हूँ
और इस फूल की खुश्बु खुद मेरा बेटा ही लेगा
जो अब मेरा पति बन चुक्का है.
जिस्म में रोमाँच भर्ता जा रहा है
एक अजीब सी उल्झन साथ साथ चल रही है
क्या जो हो रहा है ठीक हो रहा है
कहीं मैंने कोई ग़लती तो नहीं करदी
अपने बेटे को अपने पति के रूप में स्वीकार कर के
ये ख्याल बार बार उठता है पर हीतेश के होंठ मुझे पागल करते जारहे हैं
दिल कर रहा है हीतेश के साथ कस के लिपट जाऊ फिर डर लगता है पता नहीं क्या सोचेगा मेरे बारे में
ओह माँ हीतेश ने तो मेरे स्तन को दबाना शुरू कर दिया
है मुझे ये क्या होता जा रहा है ओह कैसे मसलने लगा है आराम से नहीं कर सकता आह दर्द हो रहा है
उफ़ कैसे बोलूँ आराम से करे ----- ओह इस दर्द में भी एक नया सकून मिलने लगा है कितना तडपती थी में एक मर्द के हाथों को अपने जिस्म पे महसुस करने के लिए
आज मेरा बेटा ही वो मर्द बन गया है

‘ओह क्या मनमोहिनी सुगंध आ रही है मेरी माँ से
अब नहीं रहा जा रहा मेरे हाथ खुद ही माँ के स्तन पे चले गए
और जाने मुझे क्या हो गया में माँ के स्तन दबाने लग गया,
न जाने कौन सा जुनून चढ़ गया मुझ पर में बहुत जोर जोर से माँ के स्तन दबाने लग गया और माँ के मुंह से सिसकिया निकलने लगि, मेरे कान उन सिस्कियों में बस दर्द को न पहचान पाए
में तो बस अपने माँ का दीवाना था
जो मेरी कल्पना में बसर करती थी आज वो मेरी हमबिस्तर थी
में अपने पेनिस में उठते हुए दर्द के आगे बेबस होता जा रहा था
अब मेरे हाथ मेरे क़ाबू से बाहर होने लगे और मैंने माँ के ब्लाउज के बटन खोलने शुर कर दिये’
‘यह ये तो बटन खोलने लग गए है
आज में अपने बेटे के सामने बेपर्दा होने वाली हु
ये मुझे क्या होता जा रहा है हीतेश मुझे उन प्रेम की वादियों में खिंच रहा है जिसका रास्ता भूले हुए मुझे बरसों हो गए थे---- आज फिर वो वादियां बांहें पसारे अपना रास्ता खोल रही हैं
ओह मा क्या करूँ मेरा जिस्म मेरा साथ छोड़ता जा रहा है अब मुझसे खुद पे क़ाबू नहीं रखा जायेगा
है राम क्या करूँ’’
‘ओह ये मैंने क्या कर दिया
मेरी नजर जैसे ही ऊपर उठि मैंने अपने माँ की आँखों से बह्ते हुए ऑंसू देख लिए
मेरा सारा जोश सारा पागलपन बरफ की सिल्ली में दब के रह गया
अपने उत्तेजना में मैंने अपने माँ की आँखों में ऑंसू ला दिए और में निकम्मा जो माँ की झोली दुनिया की खुशियों से भरना चाहता था आज पहली ही रात को उसे रुला दिया मेरे हाथ जो माँ के ब्लाउज के बटन खोल रहे थे वो वहीँ जाम के रह गये’
‘सॉरी’
मेरे मुंह से अपने आप निकल गया और में अपनी माँ के ऑंसू चाटने लग गया.
‘आप सॉरी क्यों बोले?’
‘आपकी आँखों में ऑंसू जो ले आय
“मुझे माफ़ कर दो’
‘बुद्धू हैं आप’
‘मतलब !’
माँ के होठो पे वो मुस्कान थी जो मैंने आज तक नहीं देखि थी
“फिर ये ऑंसू क्यों निकले ये में समझ नहीं पाया”.
‘छोडो आप नहीं समझ पाओगे’
‘नहीं अब तो में समझ के रहूँगा ये बुद्धू का लेबल फिर नहीं चाहिए बोलो ना’
‘धत!’
कह कर माँ ने खुद मेरे चेहरे को अपने क्लीवेज पे दबा लिया,
इस से पहले की में फिर उन वादियों में खो जाता मैंने अपना सर उठा के देखा तो माँ की आँखें बंद थी.
‘बताओ न’
माँ ने धीरे से आँखें खोली और में उस सागर में खोटा चला गया में भूल गया मेरा सवाल क्या था
‘आप बहुत जोर से …..’
आगे माँ बोल न पाइ और में खुद को शर्मिंदा मेहसुस करने लगा पहली बार किसी नारि के जिस्म को छूआ था वो भी अपनी माँ के जिस्म को और उत्तेजना में ये भूल गया की में उन्हें दर्द दे रहा हु.
‘ओह सॉरी ... सॉरी” वाकई में गधा हु मैं’ अपने आप मेरे मुंह से निकल गया और में माँ के चेहरे को चुमते हुए सॉरी सॉरी का आलाप रटने लगा.

‘देखो कितने बेवकुफ है”
‘ये भी नहीं पता की ये दर्द दर्द नहीं था, ये तो मेरी मुक्ति का रास्ता था, इस दर्द को ही तो मेहसुस करने के लिए कितना तडपि हु में
अब में खुद कैसे बताऊँ के ये दर्द वो दर्द नहीं जिसे दर्द कहा जाता है,
ये तो वो दर्द है जिसका हर नारि इंतज़ार करती है---बहुत सीधा है मेरा बेटा उफ़ बेटा नहीं ... मेरा पति है मेरी सांस क्यों उछल रही है एक पल तो थम जा मुझे इस अनोखी अनुभुति को समेट्ने तो दे.’

‘सॉरी माँ सॉरी’
में बस यही बोलता जा रहा था और कुछ सुझ नहीं रहा था बस माँ के चेहरे को पगलों की तरहा चूमता चला जा रहा था
ये क्या माँ ने खुद मेरे अलग हुये हाथों को खुद अपने स्तन पे लेकर के रख दिया और में फिर उस वादी में खो गया हाँ अब मेरे हाथों में वो बेरहमी नहीं थी मेरे हाथ उन वक्षों का पूराअहसास करने लगे थे
ये वो स्तन हैं जिन्होंने मुझे जिंदगी दी थी मुझे मेरा पहला आहार दिया था माँ का दूध आज फिर दिल कर रहा है उस दूध को पिने के लिए क्या मुझे आज फिर वो अमृत मिलेगा जिसे पि कर मैंने अपने शरीर को रूप देना शुरू किया था’


‘मंजू’
‘हम्म’
‘क्या मैं?’
‘क्या?’
‘फिर से --- ‘
‘क्या?’
वा समझ रही थी उनके चेहरे की हसि बता रही थी और मेरी वाट लगी हुई थी धडकते दिल से बोल ही दिया.
‘हसो मत ... मुझे दूध पीना है’
ओर माँ का चेहरा देखने लायक हो गया था ... जैसे सारी दुनिया की औरतों की शर्म उनके चेहरे पे सिमट के रह गई हो’
‘बे शर्म होते जा रहे हो’
ये अलफ़ाज़ बहुत ही अटक अटक के निकले थे जैसे माँ को बहुत जोर लगाना पड़ा हो इन शब्दों को कहने के लिये.
‘बेशर्म नहीं प्रेमी बनता जा रहा हूँ’

मुझे खुद ही नहीं पता चला की मेरे मुंह से क्या निकल गया.
इस वक़्त कोई एक दिया माँ के चेहरे के सामने रख देता तो उसकी गर्मी से वो खुद जल पडता और में तो झुलुस रहा था जल रहा था उस यात्रा पे जाने के लिए जिसके लिए मेरा तडपता हुआ पेनिस जोर लगा रहा था
‘आप बहुत….’
इसके आगे वो बोल नहीं पाइ और मेरे हाथ फिर उनके बटन्स के साथ उलझ गए उसकी आँखें फिर बंद हो गई . और मेरे होंठ फिर से उन प्यारे लबोँ का रसपान करने लग गये
 

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अब तक मैंने ब्लाउज के बटन खोल डाले थे और मेरे हाथ माँ के स्तन को ब्रा के उप्पर सहलाने लगे, माँ का जिस्म काँपने लगा और मुझे मेहसुस हुआ की माँ ने मेरे होंठ जोर से चुसने शुरू कर दिये है.
मैं धीरे धीरे माँ के स्तन को दबाने लगा . उस अहसास को शब्दों का रूप दे पाना बिलकुल नामुमकिन सा है.
आहहहहहहह माआआआ ये मुझे क्या होता जा रहा है
अब में खुद को रोक नहीं पाउंगी
शायद हीतेश भी यही चाहता होगा की में खुल के साथ दु
उनके अंदर भी कुछ शर्म बचि होगी इस नए रिश्ते को पूरी तरहा अपनाने के लिए अब मुझे भी आगे बड़ना होगा वो सारे परदे ख़तम करने होंगे जो एक माँ बेटे के रिश्ते के कारन पति और पत्नी को खुलने नहीं दे रहे
शायद ये मेरा आखरी फ़र्ज़ रह गया है एक माँ होने के नाते
मुझे हीतेश को ये अहसास दिलाना होगा की अब में
उसकी पत्नी बन चुकी हु
माँ बेटे का रिश्ता कहीं दूर बस यादों में दफन हो के रह गया है.
ओह माँ ने कस के मुझे खुद से लिपट लिया है
शर्म की दीवार अब ख़तम होने लगी है मुझे मेरी पत्नी का साथ मिलने लगा है. कितना खुश हु में इस वक़्त और कितना खुश मेरा पेनिस होते जा रहा है
इतना कड़क तो वो कभी नहीं हुआ था
जब में माँ के बारे में सोचते हुए हस्तमैथुन किया करता था
दिल तो नहीं कर रहा अपने माँ के होठो को छोड़ ने का पर मुझे अब वो दूध बुला रहे थे जिन्हें में बचपन में चूसा करता था
आज फिर उन निप्पल्स को मुंह में लेने का वक़्त आ गया है.
जीसे ही मैंने माँ के ब्रा के अंदर कैसे हुए स्तन को देखा मेरी साँसे अटक के रह गई मेरा गाला सूखने लगा
मेरी तड़प बढ़ गई उत्तेजना की ऐसी लहर उठि जिसे में पहचान नहीं पाया
एक अन्जान अनुभुति जो शब्दों में कैसे बताई जाती है मझे नहीं मालुम
वो दूध जीने होठो से लगा कर मैंने जीना शुरू किया था आज वो आधे ज्यादा मेरी आँखों के सामने खुले पड़े थे
मुझे अपने और खिंच रहे थे लेकिन एक बेटे की को नहीं एक प्रेमी को एक पति को.
माँ की साँसे और भी तेज हो गई उनके स्तन उपर निचे हो रहे थे जैसे कह रहे हो अब देर क्यों अब देर क्यों शायद में उनकी भाषा समझने लग गया और मेरे होंठ उनपे झुकते चले गये
जैसे ही मेरे होठो ने उन्हें छुआ मेरी जुबान खुद को रोक न पाई और बाहर निकल कर उस अदखुले हिस्से को चाटने लगी.
‘अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह जजजजजजजायआंआंणणणऊऊऊ’
माँ के होठो से एक सिसकि निकलि और उनके हाथों ने मुझे कस के अपने उरोजों पे दबा डाला.
‘मंजू आई लव यु ... आई लव यु ... आई लव यू’ में बोलता चला गया और पगलों की तरहा उनके स्तन चाटने लगा
‘अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह जाणू प्यार करो मुझे बहुत प्यार करो समेट लो मुझे बरसा दो अपना प्यार मुझ पर पूरी कर दो मुझे’
माँ के मुंह से ये सुन मेरा जोश और बढ गया मेरे हाथ माँ की पीठ के निचे सरक गए और में ब्रा खोलने की कोशिश करने लगे.
पर मुझ अनाड़ी के हाथ तो काँपते ही रह गए माँ मेरी दशा समझ गई और खुद उनके हाथ पीछे चले गये अपने ब्रा के हुक खोलने के लिये,
उनका जिस्म कमान की तरहा उठ गया ब्रा के हुक खुल गए और वो फिर निचे बिस्तर पे सीढ़ी हो गई काँपते हाथों से मैंने ब्रा के स्ट्रैप्स को सरकाना शुरू कर दिया.
ब्रा के कप्स से माँ के दूधिया बेदाग स्तन आज़ाद हो गए और ब्रा उरोजों के निचे आ गई
डार्क गुलाबी रंग के निप्पल और कसे हुये बेल शेप स्तन जिन्हे ब्रा की शायद बिलकुल भी जरुरत नहीं थी.
मेरी आँखों के सामने वो नजारा था जो में सिर्फ कल्पना में देखा करता था शर्म के मारे माँ ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और मेरी आँखें तो जैसे स्वर्ग के द्वार का दर्शन कर रही थी.
अब और रुकना नामुमकिन था आँखें अपना दृश्य खोना नहीं चाहती थी मेरे हाथ अपनी आरज़ू लिए तड़प रहे थे और मेरे होंठ मेरे होंठ अपने पयास को बुझाने के लिए तड़प रहे थे मेरी जुबान उस रस को चखने के लिए तड़प रही थी और में झुलस रहा था जल रहा था कांप रहा था अपने वजन को अपने कोहनियों पे रख मैंने उन अमृत कलशों को थाम लिया
माँ के जिस्म को तेज झटका लगा और एक आह निकल पड़ी उनके लबोँ से.
मेरे दोनों हाथ में वो स्तन थे
जो किसी बेटे के हाथों में नहीं आ सकते थे अपनी माँ के स्तन ... लेकिन अब रिश्ता बदल चका था ये स्तन मेरी माँ के नहीं ये तो मेरी पत्नी के हैं ... जो मुझ से कह रहे हैं बहुत तड़पे हैं ये एक पुरुष के हाथों में मसले जाने के लिये,
एक पुरुष के होठो से चुसने के लिए
मैन दोनों स्तन को मसलने लगा और एक निप्पल पे अपने होठ टीका दिये.
“उफ़्फ़”
माँ सिसकि और मेरे सर को अपने स्तन पे दबा डाला मेरे होंठ खुल गए और मैंने निप्पल को चुसना शुरू कर दिया.
जैसे जैसे में चूसता जा रहा थ,
वैसे वैसे माँ का बदन थिरकने लगा
जैसे एक नागिन उनके जिस्म में घुस गई हो और माँ के होठो से लगातार सिसकियाँ फूटने लगी.
आअह
मा
उम मम्
ओह ओह
आह आई
ये निप्पल तब मेरे होठो में थे जब में दुनिया को जानता नहीं था आज फिर ये निप्पल मेरे होठो के दरमियाँ हैं
क्या लज़्ज़त है इन निप्पल्स में दूध तो नहीं निकल रहा पर
मेरा खुद का थुक इन निप्पल्स के साथ मिल कर जो वापस मेरे मुंह में जार अहा है वो मुझे उस दूध की याद दिला रहा है जो कभी मैंने इन निप्पल्स से पिया था
ओह माँ में बता नहीं सकता आज में कितना खुश हु
मुझे मेरी जिंदगी का पहला आहार इन निप्पल्स से मिला था
और आज ये निप्पल मेरे जिस्म में उन तरंगो को उठा रहे हैं जो मैंने पहले कभी महसुस नहीं करी थी.
ये वो लज़्ज़त है जो हर आदमी महसुस करता है जब वो अपने बीवी के निप्पल्स को चूसता है
पर मुझ पे तो दूगना प्रभाव पड़ रहा था फिर से अपनी माँ के निप्पल को चुस रहा था सालों बाद
अपने बीवी के निप्पल को चुस रहा था लग रहा था जैसे मेरे अंदर एक भूख जग गई है उस दूध के लिए जो कभी इन निप्पल्स से पिया था
दिल कर रहा था आज फिर चाहे थोड़ा सा ही सही फिर से वो दूध निकल आये और में उस दूध की टेस्ट को पहचान सकू.
“मर गई जानू ,चुस लो, और चुसो, पी जाओ, मेरा सारा दूध, आह”
 
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