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Incest मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना) (Completed)

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नानी का फ़ोन था.मेरा ज़िन्दगी का पहला किस था और माँ के साथ हमारा पहला किस था.
हमे उस किस के जादू और उसकी सुखानुभूति से बाहर आने में थोड़ा वक़्त लग रहा था.
हमको मोबाइल की घंटी सुनाई तो दे रहा था पर फिर भी ऐसा लग रहा था की जैसे हम दोनों बहुत दूर कोई
और दुनिया में पहुच गए और दूसरी कोई दुनिया से कुछ आवाज़ हमारे पास तक पहुच रहा है.
हम दोनों ही बहुत बुरी तरह जुड़े हुए थे,
दोनों ही आँख मूंदे हुये थे.
दोनों ही एक तेज सांस के साथ साथ थोड़ा थोड़ा काँप रहे थे अंदर से.
दोनों ही एक दूसरे से कभी जुदा न होने की कसम से एक दूसरे को कसके पकडे हुए थे.
हमारी जबान और होठ के द्वारा हम हमारा प्यार जता भी रहे थे और एक दूसरे के प्यार को मेहसुस भी कर रहे थे.
मुझे माँ के उस गुलाबी नरम होठो से एक नशा होने जा रहा था.
हमे पहले शारीरिक स्पर्श से जो उत्तेजना हो रही थी,
उससे ज़ादा हमारे दिल में एक दूसरे के लिए जो प्यार है वह मेहसुस करना और उस प्यार को हमारे इस नये रिश्ते में स्थापन करने का प्रयास सुरु होगया था.
माँ कम्प्लीटली सरेंडर कर चुकी थी उनके बेटे के पास,
उनके पति के पास.
मैन माँ के होठो से मेरे होठो को जैसे अलग किया,
माँ आँख खोल के मेरे तरफ देखि.
उनके आँखों में एक प्यार की और प्यास का साया नज़र आया.
उनके चेहरे पे एक अनिन्द्य सुन्दर ख़ुशी का अभा छायी हुई है.
वह अभी भी मेरे दोनों कन्धों को अपने हाथो से पकड़ी हुई है.
मैं उनकी आंखों में देखते हुये,
मेरे एक हाथ से उनके पीठ को पकड़के बैलेंस रखते हुए में दूसरे हाथ से मेरे पॉकेट से मोबाइल निकाला.
तब माँ को समझ आया की में क्यों हमारे पहले प्यार की निशानी,
पहले चुम्बन को बीच में रोक दिया था.
वह कुछ सोच के खुद बखुद शर्मा गयी और एक बार मेरी तरफ देख के एक लाज की हसि हस्के नज़र झुका लि.
और अचानक झट से मुझसे अलग होकर उल्टी तरफ मुड के जाने लगी.
मैं मोबाइल स्क्रीन को देखके फिर से माँ को मेरे से दूर जाते हुए देखते देखते स्माइल करते हुए फ़ोन पे बोला" हेलो नानीजी... बोलिये”
मेरी बात सुनके उधर नानी हस् पडी और यहाँ माँ जाते जाते अचानक केवल अपने सर को पीछे की तरफ घुमाके मुझे देखि.
उनके उस आँखों में जो एक अद्भुत प्यार की झलक थी और उनके होठो को दबाके जो एक प्यारी मुस्कराहट देकर गयी,
वह में इस ज़िन्दगी में क्या, अगले सात जनम तक नहीं भूल पाऊंगा.
मेरे अंदर मेरी छाती में एक तरंग सा खेल गया और मेरी छाती जैसे हल्कि सी होने लगी. उनकी वह नज़र मेरे दिल में एक तीर मार के गयी.
मैं उनके जादू से निकल ने से पहले नानी उधर से हसके बोली
“अभी भी में तुम्हारी नानी बनके रहुं क्या?
इस बात से झट से में होश में आया और सिचुएशन को सँभालते हुए कहा
"नही नहि....अक्टुअली...."
बोलके में रुक गया. मैं क्या बोलने जारहा था और क्या बोलूँ यह सोचकर में थोड़ा टाइम कुछ नहीं बोल पा रहा था.
माँ मेरे से दूर जाकर खिड़की के पर्दे को हटा रही थी पर उनका ध्यान पूरा मेरे ऊपर है और में यह समझ पा रहा था.
और नानी के साथ मेरा इस तरह परिस्थिति में पड़ने से उनको मज़ा आने लगा.
मैं बस बात को घुमा के बोला
"हा....मम्मी बोलिये"
मुझे थोड़ा शर्म आ रहा था. माँ को देखा तो वह वैसे ही मुस्कराहट को अपने होठो पे दबा के खिड़की खोल ने की कोशिश कर रही है.
नानी उधर से बोली
"तुम लोग पहुच गए कया"
मै हसके बोला
" जी हाँ.....अभी अभी घर में एंट्री लिये"
मा के साथ किस करते हुए मेरे अंदर जो तूफ़ान चल रहा था, वह धीरे धीरे ठण्डा हो रहा था.
मेरा पेनिस जो एकदम सख्त होकर मेरे जीन्स के अंदर से माँ के पेट् को टच कर रहा था,
अब वह भी धीरे धीरे शांत होने लगा.
नानी उधर नाना को बता रही है की हम पहुच गये फिर नानी बोली
"जर्नी में कोई परेशानी तो नहीं हुआ न बेटा...सामान-वामान लेकर"
मैने उनको बताया की
"नहि.... ट्रेन भी टाइम पे थी, और आने में भी कोई तकलीफ नहीं हुई"
मैन गर्दन घुमाके माँ को देखा. माँ पूरे घर को घुर घुर के देख रही थी.
किचन, ड्राइंगरुम, डाइनिंग रूम और बेडरुम. उनके संसार को समझ रही थी.
मैं नानी को पुछा
"पापा क्या कर रहे है"?
नानी बोली "और पुछो मत बेटा"
नानी के गले में ऐसा एक आवाज़ था जो सुनकर मैंने तुरंत बोला "क्यूं ..क्या हुआ”?बोलकर में थोड़ा टर्न होकर माँ की तरफ देखा.
माँ बैडरूम के अंदर चली गई थी.
उनको दिखाइ नहीं दिया.
नानी उधर से बोली "सुबह घर पहुच के तुम लोगों से फ़ोन पे बात चित किया,तब तो ठीक थे, लेकिन ब्रेकफास्ट करने के बाद अचानक वह उलटी कर दीये” मैन नानी को पुछा"
अरे..डॉक्टर. को दिखाई की नहीं”? मेरे गले में एक ऐसा कंसर्नड था की में जब फिर से बैडरूम की तरफ देखा तो माँ हमारे बैडरूम के डोर के पास खड़ी होकर मुझे देख रही थि,
शायद हमारी बात को समझ ने की कोशिश कर रही थी.
मैं माँ की तरफ नज़र रखकर नानी को सुनता रहा “नहीं बेटा” डॉक्टर को तो दिखाया नहि,
थोड़ा रेस्ट करने के बाद अच्चा फील किया तो, डॉक्टर को नही बुलाया”. “पिछले तीन-चार दिन से तो तुम देख रहे हो,
कितना हेक्टिक जारहा था, इस्स लिए आज दिन भर रेस्ट किया,
तो अब काफी अच्चा फील कर रहे है”.
मेरे चेहरे पे नाना नानी , जो अब मेरे साँस और ससुर है,
उनके बारे में सोचके जो चिंता का अभास आया था,
माँ दूर से वो पढ़लि और नानी के साथ मेरी बातचीत को एक तरफ़ा सुनकर कुछ अंदाज़ किया.
इस लिए वह मुझे देखते हुये आँखों में एक सवाल लेकर शांत कदमो में मेरी तरफ आरही थी.
तब तक नानी बोलते रहि
“और मेरी बात कभी सुनते है क्या तुम्हारे नाना, कितनी बार मना किया की डॉक्टर सिगरेट पीनेसे मना किया है, लेकिन क्या..छुप छुप के पी लेते है”
नानी नाना के बारे में कम्प्लेन कर रही थी.
बात तो सही कह रही थी.
हम सब नाना की तबियत की चिंता करते है उनके बीमारी के बाद से.
नानी वह बातें करते करते इतना भावूक हो गयी थी की वह नाना को नाना ही सम्बोद्धित किया मेरे पास.
मुझे समझ में आरहा है की जिस तरह माँ और में पति पत्नी के इस नये रिश्ता में एक दूसरे को परिपूर्ण तरीके से अपनाने के लिए जैसे एक संघर्ष चल रहा है हमारे मन मैं, वैसे नाना नानी को भी इतना दिन के पुराने एक रिश्ते को बदल के दूसरी रिश्ते में आने में भी टाइम लग रहा है. इस लिए नाना को मेरा नाना ही बोल दिया.
मैं चुप होकर सब सुन रहा था.
तभी नानी बोली "माँ कहाँ है”? मैने माँ को देखते हुए कहा "ईधर ही है”.
 

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माँ मेरे नज़्दीक आगयी थी.
उनके मांग में सिन्दूर और गले में मंगल सूत्र और मेहँदी के साथ
इस घर पे उनको एक नये रूप में घूमते फिरते देख के मेरे मन में एक
अद्भुत ख़ुशी की तरंग खेले जा रही है.
अब उनके चेहरे पे एक सवाल के साथ साथ जो उदबेग और कंसर्न नज़र आया,
उसी रूप में , एक आदर्ष बेटी के रूप म, एक प्यारी ममतामयी माँ के रूप म,
में बचपन से उनको देखते आ रहा हु.

आज मेरी पत्नी बनने के बाद भी उनके चेहरे पे वह अनुभुति का मिश्रण देख पा रहा हु.
इस में मेरा दिल उनके ऊपर और पिघलने लगा,
और नानी उधर से बोली
"माँ को फ़ोन दो ना ज़रा"
मैने हाथ बढाकर माँ को फ़ोन दिया.
वह बस उसी तरह एक चिंता के साथ चेहरा बनाके फ़ोन लि और बोली
"क्या हुआ मम्मी”?
बोलकर माँ नानी से बात करने लगी.
बात करते करते माँ खिड़की की तरफ जाने लगी.
बाहर अभी तक अँधेरा आया नहि.
गर्मी के सीजन में शाम को जो ऑरेंज कलर की लाइट छा जाती है चारों तरफ, वह लाइट खिड़की के पास खड़ी माँ के चहेरे पे गिऱ रही थी.
मैं दूर खड़ा रहके माँ के चेहरे पे बात करते करते धीरे धीरे एक राहत की अनुभुति आना वॉच कर रहा हु.
माँ की चेहरे पे वह रंगीन रौशनी के अभा से, एक अलौकिक सौंदर्य निखार ने लगा.
मैं दूर से माँ को नानी से बात करते हुए देख देखके मन ही मन में उनके लिए बहुत सारा प्यार और चाहत का एक तान, एक आकर्षण अनुभव कर रहा हु. उनकी साड़ी उनके शरीर में टाइट पहन ने के कारन उनके शरीर के सारे कर्व्स मेरी नज़र में आने लगे.
और में वहि खड़े खड़े उनके धीरे धीरे चिंता मुक्त होकर नानी से हास्के बात करने का वह परिबर्तन देख रहा हु.
और मेरे अंदर वह तूफ़ान फिर से सुरु हो रहा है.
माँ प्रोफाइल में खिड़की के पास खड़ी होकर बात करने के कारन उनके स्तन, पेट, पतली कमर और सूडोल हिप्स सब कुछ एक अपना रंग बनकर मेरे मन में एक अद्भुत सिरसिरानी का जनम दे रहे है.
मेरा पेनिस फिर से सख्त हो रहा है.
मै डोर के पास पड़े हमारे तीन सूटकेस को अंदर ले जाने के लिए वहां गया.
बड़ा वाला सूटकेस को खिचके में बेड रूम में लेकर गया.
फिर आकर दूसरी वाली को लेकर जा रहा था.
जाते जाते माँ को देखा.
वह अब फ़ोन में खुश होक बात कर रही है.
मैं बेड रूम में जाकर सूटकेस रखा.
जब में तीसरे और छोटे वाला सूटकेस को उठाया खीच के ले जाने के लिये,
तब माँ को बोलते हुये सुना
"ठीक है.........हां...देती हु”
बोलके मेरी तरफ घुमि और मुझे देख के एक स्माइल देकर मेरी तरफ आने लगी.
मैं कुछ न बोलकर उनको देख के स्माइल दिया और उनके बढ़ाये हुये हाथ से मोबाइल लेकर नानी को बोला
"जी मम्मी बोलिये"
ओर उधर से पापा की आवाज़ सुनाई दिया.
"नहीं बेटा..में बोल रहा हु"
मेरी बेवकूफ़ी से माँ मेरे तरफ देख के हस पडी.
मैं नानाजी से बात करना सुरु किया तो माँ मेरे हाथ से वह सूटकेस लेकर खुद ही बैडरूम की तरफ चलि गयी.
मैं बात करते करते घूमके उनको देखा.
और वह बैडरूम में दाखिल होने से पहले एकबार मेरी तरफ घुमी तो मेरे से नज़र मिल गई.
वह बस उस नज़र से मन में एक नशा लगने वाली एक स्माइल देकर अंदर चलि गयी.
हमारे बीच एक जो मोमेंट क्रिएट हो रहा था एक दूसरे को किस करते टाइम,
वह अब इस फ़ोन कोल के वजह से रुक गया
और जो मेंमरी और पैशन हममे चढ़ गया था वह अब मन में तो है, पर बाहर आने के लिए सही परिस्थिति पा नहीं रहा है.
शायद माँ ने उसी को याद दिलाकर एक शरारत मिली वह हसि मुझे देकर गयी.
मैं केवल फ़ोन कोल का अंत होने का इंतज़ार कर रहा था.
नानजी से थोडी बात होने के बाद में फ़ोन कट करके बैडरूम के तरफ चल पडा.
जैसे ही में डोर के पास पंहुचा तो देखा की माँ सूटकेस खोलकर सारे कपडे निकाल रही है और सब बेड के ऊपर सजाके रख रही है.
मुझे वहां जाते मेहसुस करके वह वैसे ही मिठी मिठी हसि होठो पे लाकर मुझे देखि.
वह झुक के मेरेवाले सूटकेस से कपड़े निकाल रही थी और फिर सीधा होकर बेड के ऊपर सब रख रही थी.
जैसे मुझे देखि तो बोली "इतने कपडे लेजाने की क्या जरुरत थी”?
मै क्या जवाब दुं, बस ऐसे ही मुस्कुराते रहा.
माँ फिर झुकि हुई पोजीशन पे रहकर कपडा निकालते निकालते बोली
"इन तीन सूटकेस के कपडो से तो यह अलमारी भर जाएगी"
मैन बोला "ठीक है..जरूरत पड़ेगी तो और एक खरीद लेंगे"
मै यहाँ से खड़े होक देख रहा हु की
माँ का मंगलसूत्र गले से नीचे की तरफ लटक रही है
और उनके ब्लाउज की फ्रंट कट से उनकी गोरी गोरी मुलायम डीप क्लीवेज नज़र रही है.
मेरे अंदर खुन दौडने लगा. मुझे मालूम है आज सही तरह से हमारी सुहागरात है.
हम पति पत्नी का इस प्यार का, इस रिश्ते को सम्पूर्ण करने के लिए आज रात पति पत्नी को एक होना है. मैं माँ को देखते देखते इसी सोच में था तभी माँ कुछ महसुस करके अपना सर ऊपर उठाके मुझे देख के बस आँखों की भाषा से पूछ्ने लगी
"क्य हुआ...क्या देख रहे है वहां खड़े खडे"
मुझे माँ को उस पोजीशन में उस अदाओ में देख के लगा की मेरे दिल में एक तीर चल गया.
मैं इसके जवाब में बस केवल हस दिया.
वह होंठो और आंखों में एक अद्भुत ख़ुशी लेकर मुझसे नज़र हटाकर काम करने लगी.
मुझे उनके स्तन का उपरी भाग और उनकी इस तरह अदायें देख के मन कर रहा है की
दौडके जाकर उनको अपनि बाँहों में भर लूँ और प्यार से उनके सारे बदन को चूम के बस केवल प्यार ही भर दुं. पर!!!
 

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मेरे मन की यह इच्छा पूरी करने के लिए जो सहजता और साहस की जरुरत है, वह अभी भी आने में थोडी झिझक है.
हम पति पत्नी बन गए है पर हमारे इतने दिन का माँ बेटे का रिश्ता था और वह अभी भी हमारे मन के एक दम डीप में है.
इस लिए न माँ , न में, कोई भी अभी भी सही तरह से एक दूसरे से फ्री नहीं हो पाए
एक दूसरे के पास मन की चाहत पूरी करने के लिए आगे नहीं बढ़ पारहे है.
मन चाह रहा है दोनों का.
बस एक सूक्ष्म लाइन इस वास्तव और उस चाहत को अलग करके रखी है.
हमे मालूम है, वक़्त ही सब कुछ ठीक करेंगा.
और हम दोनों उस वक़्त के बेसब्री से इंतज़ार में है.
मेरा गला सुख रहा था. अन्दर का छट पटाहट और बाहर उसको दबाकर रखना और फिर ऐसी परिस्थिति में आकर प्यास लग रही थी.
मैं वहां से किचन की तरफ गया.
अहमदाबाद जाने से पहले अक्वागार्ड का एक वाटर पूरिफिएर लगाया था. उसको स्टार्ट करके में सब खाली बोटल्स में पानी भर्ने लगा.
मैं सोच रहा था की क्या अद्भुत हमारा नसीब.
मैं २० साल में शादीशुधा बन गया.
हमारी शादी में न कोई गेस्ट, न कोई गिफ्ट, न कुछ गाना बजाना, कुछ भी नही हो पाया.
पर हम एक दूसरे को सच्चे दिल से प्यार करके इस रिश्ते में जुड़ गये दुनिया में सब से अलग यह शादी और अलग यह पहली शाम, पहली रात
मैं पाणी पिकर एक बोतल लेकर बैडरूम के तरफ चला. मैं जैसे ही रूम के डोर की तरफ पहुंचा, दूर से डोर के दोनों परदे की गैप से देखा की माँ खुली हुई अलमारी के दोनो दरवाजे पकड़ के चुप चाप खड़ी है. उनके बॉडी टेक्चर और प्रोफाइल फेस पे वह एक्सप्रेशन से मालूम पड़ रहा है की वह बहुत सरप्राइसड हुई है और साथ में एक ख़ुशी उनको छा रही है.
मैं वहां रुक गया और माँ को ऐसे देख के मेरे दिल में एक अनुभुति आया.
माँ ज़िन्दगी में पति के साथ संसार करने की असली ख़ुशी, सुख, कभी ठीक से पाई नहि. ज़िन्दगी में छोटी छोटी चीज़ें जो हमे ख़ुशी देती है, वह कभी पाई नहि.
आज ज़िन्दगी के इस मोड़ पे आकर अचानक सब कुछ नये तरह से पाकर खुद के अंदर ही सरप्रीसड हो रही है.
एक पुराने जीवन को अब एक नये जीवन के रूप में डालकर उसको फिर से जीने का जो मौका नसीब ने दिया है,
उसमे वह सच मच खुद को भाग्याशाली समझ रही है.
इस लिए अब छोटी छोटी चीज़ों से भी उनके अंदर का इमोशन उभार के बाहर आरहा है.
मैं खड़े खड़े मन में बोलते रहा की में ज़िन्दगी भर माँ को ऐसे ही ख़ुशी और आनंद देना चाहता हु.
ज़िन्दगी के ऐसे ही रंग में उनको रंगाकर रखना चाहता हु. मैं आगे बढ़ के रूम की तरफ गया. माँ विस्मय के साथ अलमारी के अंदर देख रही थी और जैसे ही मेरी प्रेजेंट घर के अंदर महसुस कि वह धीरे धीरे मुड़कर मुझे देखि.
मैं जानता हु की अलमारी के अंदर में उनके लिए बहुत सारी सारीज, ज्वेल्लरी वगेरा सारी चीज़ों को जो खरीदके रखा है,
माँ कभी कल्पना नहीं कि होगी की में ऐसा करूँगा उनके लिये.
शादी से पहले यहाँ घर में जो कुछ किया था सब फ़ोन पे बताया था.
पर में यह सब उनसे छुपके किया था.
और आज माँ वह सब देख के उनके प्रति मेरा जो प्यार है, उसमे वह धीरे धीरे बह जाने लगी.
और में आज उनको इस तरह खुश देख के मेरे अंदर और प्यार आने लगा.
माँ मुझे बिना पलक झपका के कुछ पल ऐसे देखि और फिर एक मिठी मुस्कान देकर मुझे उनके दिल की सारी अनुभुति को मेरे अंदर संचरित कर दि.
मै पाणी की बोतल को वहि टेबल पे रख के धीर कदमो से माँ की तरफ बढ्ने लगा.
माँ अलमारी के दोनों दरवाजे को दोनों हाथ से पकड़के मेरी तरफ सर घुमा के मुझे देखते हुए खड़ी है.
मैं उनके उस प्यार भरी मुस्कान का जवाब एक चौड़ी स्माइल से देते हुए उनके पास पहुंचा. उनको यह सरप्राइज देना चाहता था और वह सच हो गया.
मैं उनके पास पहुँचके उनके एकदम नज़्दीक खड़ा हो गया.
माँ अपने विस्मय को अपने खुद की मन की ख़ुशी से और शर्म से धक के एक अद्भुत प्यार भरी स्माइल देकर और दिल में तीर लगानेवाली एक नज़र देकर उनका चेहरा थोड़ा झुका ली.
मैं उनके पास एकदम नज़्दीक खड़ा हु.
हम कोई कुछ नहीं बोल रहे है. केवल इस पल को मेहसुस कर रहे है.
कुछ पल बाद मैंने उनके कान के पास मुह ले जाकर फुसफुसाकर पुछा
"तुम्हेँ पसंद नहीं आई"
वह धीरे धीरे मेरी तरफ नज़र घुमाकर आँखों में आंख डालकर होंटों पे ख़ुशी की मुस्कराहट रख के उनका सर एक अद्भुत प्यारे तरीके से हिलाकर धीरे से बोली
"बहुत"
फिर नज़र को थोड़ा दूसरी तरफ करके एक हल्की उदास आवाज़ से बॉली
"मैंने सपने में भी नहीं सोचा की.....मुझे ज़िन्दगी में कभी ऐसा प्यार मिलेंगा"
माँ यह बोलकर उनके अंदर के इमोशन को कण्ट्रोल करते हुए रुक गयी.
फिर खुद ही हस के वहि चुप होकर खड़ी रहि.
मैं मेहसुस किया की माँ इस तरह प्यार को ज़िन्दगी में फिर से पा कर, मेहसुस करके अंदर से पिघल रही है.
मैं देख रहा हु की माँ के लेफ्ट हैंड की इंडेक्स फिंगर अलमारी के डोर के ऊपर रब कर रही है.
 

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मैं समझ गया माँ के अंदर एक अनजानी अनुभुति उनके शरीर में दौड रही है.
मैंने उनके पास रहकर मेरे सर को धीरे से थोड़ा आगे ले जाकर उनके सर को टच करवाया. माँ मेरे टच से अचानक काँप उठि. वह कम्पन उनके शरीर में इतनी प्रोमिनेंटली था की में अपनी ऑखों से वह देख पाया. मेरे अंदर वह चाहत , वह उत्तेजना फिर से आगया. मैं अपने सांस की गर्मी खुद मेहसुस कर रहा हु. अपने शरीर में जो खलबली मची है वह महसुस कर रहा हु.
मेरे पेनिस के शख्त होने का ताज़ा इशारा में मेहसुस कर रहा हु. मैं धीरे धीरे उनके बालों में मेरा नाक टच करवाया और उनके बालों की खुशबु स्वास भरके लेने लगा. मैंने दोनों हाथ धीरे धीरे उठाके उनकी कमर को पकड़ा और मेरा लेफ्ट हैंड उनके पेट् की मुलायम स्किन के ऊपर टच हो गयी. माँ की सांस तेज हो रही है.
मैं मेरे पैर को थोड़ा आगे ले जाकर उनके शरीर के साइड से मेरा शरीर टच करवा दिया.
मैं उनके बालों में दो तीन बार नाक रगड के धीरे धीरे उनके लेफ्ट शोल्डर के ऊपर मेरे मुह को लेकर आया.
और जैसे ही मेरे होठो का उनकी गर्दन की मुलायम स्किन पे टच हुआ, वह एक गुदगुदी सी फील करने लगी.
और में मेरी नाक और होठ को उनके गोरी गोरी सुडौल गर्दन में एकबार रब करते ही वह झट से अपने शोल्डर को खीच लिया और जोर से हस् पडी. मैं उनकी कमर में दोनों हाथ का बंध लगाकर दोनों हाथ को लॉक करके कसके पकड़ा हुआ है. इस लिए वह मेरे से दूर जा तो नहीं पाई पर हस्ते हस्ते गुदगुदी फील करते करते बोली

"आरे..क्या कर रहे है...छोड़िये....मुझे बहुत काम करना है अभी"

मै मेरे होठ और नाक से उनकी स्किन के ऊपर रब करना बंद करके बस उनको चुपचाप पकड़के खड़ा हु.
वह भी अब शांत हो गयी.
पर हमारे दोनों की सांस तेज बह रही है. मेरे जीन्स के अंदर का पेनिस जीन्स फाड़ के बाहर आना चाह रहा है.
फिर भी में उनकी इच्छा को सम्मान देते हुए उनके साथ और बदमाशी नहि किया.
हम ऐसे कुछ पल एक दूसरे से लिपट के खड़े रहने के बाद माँ धीरे से बोली

"छोडिये ना...मुहे अब काम करने दिजिये"

मै समझ गया माँ अभी यह सब करना नहीं चाह रही है. लेकिन वह चाहती है.
मैं अंदर ख़ुशी से भर गया.
मैं उनको मेरी बाँहों से मुक्त करके उनके पास में ही खड़ा हु.
माँ मेरे हाथ के बंधन से मुक्त होकर तुरंत वहां से जाने लगी और जाते जाते मेरे तरफ देख के बोली की
"चलिये फ़टाफ़ट जाइये...और मार्किट से सामान वगेरा लेकर आइये"
बोलकर माँ फिर से खुली हुई सूटकेस के पास पहुच गयी और कपडा वैगेरा समेट्ने लगी.
मैं समझ नहीं पाया माँ क्या लाने को कहि. मैंने माँ को पुछा
"क्या लेकर आऊँ?"
माँ मेरी तरफ देख के मेरे न समझने की हालत देख के खुद हस् पडी. और मुझे देखते हुए बोली
"रात को डिनर नहीं करना है"
मै बोला "तोह उनके लिए मार्किट से क्या लाना,मैं होटल से खाना मँगवाता हु"
माँ काम करते करते रुक गयी और मुझे देखते रहि. फिर नज़र हटके काम करना सुरु करती है और वैसे काम करते करते बोली ”ओह.. मैं बनाउ तो मेरे हाथ का खाना पसंद नहीं आयेगा"
माँ के गले में एक ऐसा टच था की में अंदर से काँप गया.
मैं उनको हर पल खुश देखना चाहता हु,
उनकी हर इच्छा को में आदेश मानकर पूरा करना चाहता हु,
में इस परिस्थिति को सहज करने के लिए हस पड़ा और तुरंत बोला
"दुनियाके सारे ५ स्टार होटल का खाना भी तुम्हारे हाथ का बना हुआ खाने के पास फिका है"
माँ झट से मुड़के मुझे देखि और हस् पडी.
फिर बोली
"तोह जाईये. सामान लेकर आइये और में तब तक यह सब समेट के रख देती हु”.
मै उनकी तरफ देख के स्माइल कर रहा हु
और वह मुझे देख के हासके फिर से काम पे ध्यान दी. मैं उनको इस तरह एक नये रूप में, नयी दुल्हन के रूप में,
मेरी बीवी की रूप में देख के मन ही मन एक ख़ुशी के सागर में बह गया
और फिर याद आया की अरे आज रात तो हमारी सुहाग रात है.
यहाँ कोई नहीं जो इस सुहागरात में नये दूल्हा दुल्हन के लिए सब कुछ सजाकर के देंगे.
यहाँ केवल हम दोनों है.
मैं तुरंत सोच लिया की हमारी सुहागरात को और सुन्दर और खूबसूरत तरीके से सजाकर मनाने के लिए मुझे बहुत कुछ लाना भी है.
मैं तुरंत माँ को एक झलक देखकर वहां से निकल गया मार्किट जाने के लिये.
 

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बाहर अँधेरा हो गया.
फिर भी आसमान मे मैं उजाला देख पा रहा हु.
स्ट्रीट लाइट जल रही है.
चारों तरफ बिजली की रौशनी छा गयी है. फिर भी नेचर की अद्भुत महिमा से आसमान अभी भी उजाले जैसा है.
गर्मी के टाइम ऐसे ही कुछ कुछ शाम होती है, जहाँ एक अद्भुत रोशनाई से चारों दिशाएं भर जाती है. और तब एक ऐसी अनुभुति मन के अंदर आती है जो कभी किसी भी परिस्थिति में मन को वैसा फील नहीं करवाती है.
कुछ खुशी, कुछ ग़म मिलकर वह अनुभुति हम को सब के बीच में रहकर भी हमे सब से अलग कर देती है..कुछ पलों के लिये.
मैं आसमान की तरफ से नज़र हटा के नीचे लाया तो एक साईकल रिक्शा मेरे सामने तब तक आ गया था.
मैं उसमे चढ़के बाजार की तरफ जाते जाते सोचा..क्या अद्भुत इस दुनिया का नियम.
हमारे पास कितनी सारी मटेरिअलिस्टिक चीज़ें होती है.
हम एक चीज़ देकर उसी के बराबर तोलमोल के दूसरी चीज़ पाते है.
पैसा सब के पास समान तरीके से नहीं है. इस लिए बहुत कुछ चीज़ें तोलमोल ने के चक्कर में ज़िन्दगी में अधुरी रह जाती है.
लेकिन हमारे पास एक कारख़ाना है,
जहाँ हम हमारी मर्ज़ी के माफ़िक जो चाहे जितना चाहे कुछ चीज़ उतना पा सकते है.
और उनके दम पर हमे बहुत कुछ मिल सकता है.
हा..हमारा मन. हमारा मन एक ऐसी चीज़ों का कारख़ाना है
जहाँ से हमे जितना चाहे ईमोशन, पैशन, लव, लॉयलटी, आनेस्टी मिल सकती है.
और उस चीज़ के बलबुते से हम बहुत कुछ मन पसंद, मन चाहे चीज़ पा सकते है, और नेचर उसको पाने में आपको सहयोग देता है.
मेरा माँ के प्रति प्यार ऐसा ही एक बलिष्ट नमुना.
मैं उनको शायद जाने-अनजाने में इतना प्यार कर बैठा था,
इतना चाहने लगा था की आज ज़िन्दगी के इस मोड़ पे हम एक साथ हो गये
माँ भी मन से शायद अनजाने में ऐसाही कुछ चाही होगी,
इस कारन वह आज अपने बेटे की ज़िन्दगी में हमेशा के लिए उसकी पत्नी बनके आगयी.
एक अदृश्य धागे से हमारा मन बंध गया था
और अब हम इस समज में एक नये रिश्ते में जुड़कर, एक नयी ज़िन्दगी जीने की शुरुआत कर दिया.
आज हमारे ज़िंदगीका वह स्पेशल दिन है, जो हर कपल, हर पति पत्नी के जीवन में एक बार आता है.
और इस अनोखे पल को में स्पेशल,
मेरी माँ के लिये, मेरी बीवी के लिए बहुत स्पेशल बनना चाहता हु.
जब हमारे बाल ग्रे हो जायेंगे, जब हम सारी चीज़ें बोलने से ज़ादा मेहसुस करेंगे, हमारे पोता पोती आजु-बाजु घूमते रहेंगे,
तब बालकनी में ऐसे ही एक शाम को हाथ में हाथ रखके बैठ्कर,
आसमान की तरफ देखते हुए इस पल को, इस दिन को याद करके कुछ ख़ुशी मेहसुस करेंगे.
माँ के साथ घरमे जो जो चीज़ें लेने के लिए डिस्कुस किया था,
वह सब सारा सामान में ले लिया.
और में माँ को न बताकर एक चीज़ लिया. बहुत सारे गुलाब के फूल और गुलाब की पंखुड़िया. बाकि सब सामान के साथ फूलों का भी एक बड़ा पैकेट बनाया और रिक्शा लेकर घर वापस आगया.
कालिंग बेल्ल बजाते ही माँ दरवाजा खोल दि. माँ को देख के मेरी छाती में छनछन करके एक सिहरण खेल गई.
यह माँ का और एक रूप जो आज पहली बार देखने को मिला.
माँ स्माइल करके मुझे देख रही थी. उनके बालों को एकट्ठा करके ऊपर की तरफ उठाके सरके ऊपर एक काजुअल जुड़ा बना हुआ है.
मांग में सिंदुर का लाल रंग जलजल कर रहा है. गले में मंगल सूत्र लटक के उसकी लॉकेट उनके मुलायम और डीप क्लीवेज के पास पड़ी हुई है. और उनके कंधो में एक टॉवल रखी हुई है.
मुझे एक झलक देख के पता चल गया की वह नहाने के लिए जा रही थी.
एक तो इतना गरमि, दूसरी यह है की कल से हम ट्रैन में थे. आज दिन भर नहाने का मौका नहीं मिला.
इस लिए अब वह नहाने के लिए तैयार हो रही थी.
लेकिन उनके इस रूप को एक झलक देख के मेरा मन ख़ुशी से पिघल रहा था और मेरा पेनिस सख्त होकर फुदक ने लगा.
वह बहुत ज़ादा सेक्सी लग रही थी.
उनके वह साज, वह अदायें और यह परिस्थितियां मुझे उनकी तरफ खींच रहा था और अंदर से बहुत आर्गी फील हो रहा था.
मैं बस स्माइल कर रहा था.
मेरे दोनों हाथों में इतना सारा सामान देखकर माँ हस पड़ी और बोली
"अरे ..सारा बाजार उठाकर लेकर आये क्या"!!

बोलकर मेरे हाथ से कुछ पैकेट्स और कैर्री बैग्स लेने की कोशिश कि.
मैं ने सावधाणी से फूलों का पैकेट न देकर बाकि कुछ समान उनको दे दिया.
और अंदर आगया. माँ सामान लेकर किचन की तरफ चल पडी. मैं डोर बंध करके उनके पीछे पीछे जाने लगा.
उनके हर स्टेप में मुझे हल्का हल्का झूम झूम आवाज़ सुनाई देणे लगा.
वह जो पायल पहनी हुई है, यह उसकी आवाज़ है.
उनको पीछे से ऐसे आवाज़ करते जाती हुई, दिल में आग लगने वाली एप्पल शेप हिप्स की एक रदम में,
ऐसे अकर्षित करनेवाली एक अंदाज़ में जाते हुए देखकर मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा.
माँ आज रात मेरी बाँहों में होगी.
मेरी बीवी बनकर मुझे पति के सारे अधिकार देगी.
उनके शरीर को हर जगह में छुने का,
हर कोने में किस करने का,
मेरी बाँहों में लेकर जी भर के प्यार करने का अधिकार देगी.
उनका तन पूरी तरह से उनके बेटे के पास,
उनके पति के पास समर्पण करेगि.
मैं इसके लिए बेताब हु और वह भी मन में इसके लिए इंतज़ार कर रही होगी जरुर.
माँ किचन में दाखिल होगयी.
और में किचन में घूसने से पहले फूलों का पैकेट वहि पड़ी हुई एक रैक के ऊपर रख दिया और किचन में घुस गया.
 

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मैं मार्किट में था और माँ इसी बीच में हमारे सारे कपडे तो समेट के रख दिया है, ऊपर से घर की साफ़ सफाई कर दि है. किचन बिलकुल साफ़ नज़र आया.
कुछ बर्तन को धोकर वहि रखी है.
जो एक्स्ट्रा पैकेट और कुछ यूज़लेस सामान पड़ा था उसको एक अलग पैकेट में भरके वहि स्लैब के नीचे रखी हुई है.
मैं अकेला क्या करता कुछ नहि
और आज माँ के हाथ की छांया से पूरा घर चमक रहा है.
यह घर भी जैसे मेरी तरह उनके मालकिन के आने से उनके स्पर्श से खुश हो रहा है.
माँ पैकेट से कुछ कुछ सामान निकाल के बाहर रख रही है.
तभी काम करते करते मेरी तरफ एकबार देख के बोली
" देखिये तो....फ्रीज क्यों नहीं ऑन हो रही है"
मै मेरे हाथ का सामान सब वहि रख दिया था.
और वहां खड़ा होकर माँ को और इस घरको देख रहा था.
जब माँ बोली में तुरंत घूम के फ्रिज की तरफ जाते हुए बोल
"क्यूं...क्या हो गया"!!
ओर में फ्रिज के पास जाकर डोर खोला तो देखा की फ्रिज बंद है.
माँ तब पीछे से बोली
"क्या मालुम्....स्टेबिलाइजर में तो करंट है"
मै सीधा होकर उठके जैसे ही देखा तो में खुद हस पडा.
माँ मेरी तरफ देखने के लिए पीछे की तरफ सर घुमाकर होठो पे एक हल्का स्माइल लेकर पुछी
"आरे.... हस क्यों रहे है"
मैने ने फ्रिज का प्लग लगाते लगाते बोल
"जाने के दिन सुबह यह स्टेबीलाइजर वाला इसको रीप्लेस करके नया देकर गया,
और उनके बाद से फ्रिज चला नहि,
तभी से फ्रिज का प्लग खुला हुआ था"
मैने प्लग लगाकर डोर खोलतेही अंदर लाइट ऑन दिखते ही. में हास्के माँ की तरफ देखा. माँ तभी वहां से जाने के लिए कदम बढायी और बोली
"ठीक है उसको चल्ने दीजिये. मैं आकर सामान भरती हु”
मुझे मालूम है माँ नहाने जायेगी, फिर भी में अचानक बेवकुफ जैसा सवाल पुछा
"कहा जा रही हो"
मा मेरे पास आगयी थी. मुझे क्रॉस करके जाते जाते मेरी तरफ मुड़के देखते हुए स्माइल किया और कंधे से टॉवल निकाल के लेफ्ट हाथ के ऊपर रखि. फिर आँखों में एक अद्भुत अदायें और होठ पे एक प्यारी हसि को दबाते हुए धीरे से बोली
"नहाने"
ओर फिर हस्ते हुए मेरी तरफ एक अद्भुत नज़र फ़ेक के किचन से बाहर निकल गयी. माँ मेरे बेवकूफ़ सवाल में ऐसा एक आवाज़ महसुस किया था जिसके जवाब में वह शायद ऐसी अदायें और आँखों की भाषा से यह कह के गयी की

"अब में कहाँ जाउंगी, अब तो में तुम्हारी ही हो चुकी हु, हमेशा तुम्हारे पास ही रहुंगी".

मेरा मन उनके इस इशारे से झूम उठा. और देखा की माँ बाहर जाकर बेडरूम की तरफ चलि गयी. इस घर पे बेड रूम के साथ लगा हुआ बाथरूम बहुत बड़ा है.
दूसरा जो हॉल के साथ अटैच्ड है वह बाथरूम कम टॉयलेट तो है पर वह इतना छोटा है की उसको केवल टॉयलेट कहना ही ठीक होगा.
मैं बाहर आकर रैक से वह फूलों का पैकेट उठाया और बैडरूम के तरफ चला.
बेडरूम में आकर देखा माँ सारे कपडे वगेरा अलमारी में सजाके रख दिया और रूम को भी सजाके सामान वगेरा प्रॉपर अपने अपने जगह पे रख दिया था.
और मेरे मन के अंदर हथोड़ा पीठना शुरू होगया जब देखा की माँ हमारे लिए नयी ख़रीदी हुई डबल बेड के ऊपर एक नयी बेडकवर बिछाकर रखी है.
ऊपर की तरफ दोनों तकिया भी नयी कवर के साथ है.
यह बिस्तर आज से मेरा और माँ का है.
नीचे की तरफ माँ एक साड़ी और मेरा पाजामा और टी शर्ट रखी हुई है बेड के उपर.
मुझे नहाके पहन ने के लिए वह कपडा माँ निकाल के रखदी और खुद अपने ब्लाउज और पेटिकोट लेकर बाथ रूम में चलि गयी लेकिन साड़ी यहाँ रखके गयी.
बाथरूम से पानी गिरने का और माँ की बँगलेस का आवाज़ आरहा है. तभी मेरा मोबाइल रिंग होने लगा.
मैं पॉकेट से निकालके देखा की मेरा ऑफिस का कलीग का फोन है मैं रिसीव करके "हल्लो" बोला और बाहर जाने के लिए चल पडा.
मैं फूलों का पैकेट वहि साइड में कंप्यूटर टेबल के नीचे छुपा के रख के बैडरूम से बाहर आगया.
मेरा कलीग मेरे से सीनियर है.
वह पुछ रहा था कल से में ज्वाइन कर रहा हु की नहि.
मैं तीन दिन की छुट्टी और शनिवार हाफ डे लिया था.
कल से मुझे ज्वाइन करना था.
इस लिए वह कन्फर्म कर रहा है क्यों की उस हिसाबसे कल का प्लान ऑफ़ एक्शन बनेगा.
मैं बोला की हाँ में आज एम.पी आगया और कल से ऑफिस आऊंगा.
फिर थोड़ा ऑफिस के काम की बातें और इधर उधर की बातें करने के बाद हम "बाय” बोलके फ़ोन कट किये.
मैं अचानक इस ख़ुशी का एक अद्भुत नशा
लगनेवाले माहौल से ऑफिस के काम की दुनिया में चला गया था.
 

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मैं जब फिर से बैडरूम में आया तो तभी भी माँ बाथरूम में ही थी.
मैं मेरा मोबाइल और पर्स निकाल के कंप्यूटर टेबल की ड्रावर में रख दिया.
तभी पीछे से बाथरूम का डोर अनलॉक करके खोलने की आवाज़ आई. मैं पीछे मुडा तो देखा की माँ बाथरूम डोर को थोड़ा खोलकर मेरे ही तरफ देख रही है.
हमारा नज़र मिलतेही हम दोनों स्माइल किया.
माँ का मेहँदी किया हुआ राईट हैंड डोर को पकड़ी हुई है.
डोर थोड़ा सा ओपन के कारन उतनी छोटी गैप से उनका चेहरा पूरा नहीं दिख रहा है.
पर उनके भीगी जुल्फे उनके राईट साइड के गाल के ऊपर से लटक रही है.
उनके राईट शोल्डर का थोड़ा हिस्सा दिख रहा है उस गैप से.
गोरी गोरी मुलायम स्किन के ऊपर दो चार पानी की बून्द मोती जैसा चमक रहा है.
और आर्म के नीचे से टॉवल लपेटि हुई है और वह उनके स्तन के ऊपर पकड़ी हुई है, समझ में आरहा है.
माँ ब्लाउज वगेरा लेकर तो गयी थि,
शायद वह अभी तक पेहनी नहीं है.
मैं स्माइल करते हुए वहां खड़े खड़े उनको देख रहा था तो माँ को शर्म आ गयी.
माँ आँखों में प्यार और शर्म की एक अद्भुत मिश्रण लेकर स्माइल के साथ बोली
"जाइये यहाँ से..मुझे बाहर आना है"
मा के साथ धीरे धीरे थोड़ा सहज होना सुरु हो गया था.
इस लिए मेरे दिमाग में एक बदमाशी आइडिया आगया.
मैं होठ पे एक बदमाशी हसि लेकर उनको देखते देखते टेबल पे टेक लगाया.
माँ मेरा ईरादा समझ गयी. वह बस गले में थोड़ा अनुरोध का सुर लेकर प्यारी बीवी के जैसे फिर से बोली
"जाइये ना आप"
मुझे माँ को इस तरह सताने में मज़ा आरहा था.
मैं यहाँ खड़े रहूँगा तोह वह बाहर नहीं आयेगी.
और वह अब बाहर आना चाहती है.
माँ तोह अब मेरी बीवी है.
मैं उनको टॉवल में क्यों नहीं देख सकता.
ऐसा एक हल्का विचार मेरे दिमाग में घूम रहा था.
मैं उसमे बंध होकर माँ को देखते रह गया.
उनको उस तरह भीगे बालों में, शरीर में टॉवल लपेटे हुई भेष में थोड़ा दिदार करके और बाकि कल्पना में सोचके मेरे अंदर खुन दौड रहा था.
हम पति पत्नी बन्ने के बाद अभी तक एक दूसरे के पास पूरी तरह ओपन नहीं हो पाये.
पर हम दोनों ही कोशिश कर रहे है की हमारे बीच कोई ब्याबधान न रहे.
हम दो शरीर और एक आत्मा होजाए.
और हमे यह भी मालूम है की इनिशियल झिझकपन के बाद टाइम के साथ साथ सब ठीक हो जाएगा.
मेरा हिलने का कोई ईरादा न देख के माँ प्यार से धीरे धीरे एक अद्भुत अदाओ के साथ बोली
"आप यहाँ ऐसे खड़े रहेंगे तो में आ नहीं पाउँगी"
मै भी हास्के धीरे धीरे बोला
" क्यूं...तुम तो टॉवल पहनी हुई हो, आजाओ बाहर"
मेरी बात सुनकर उनका चेहरा शर्म से लाल हो गया.
वह अपनी नज़र झुका ली और डोर के ऊपर राईट हैंड को हल्का हल्का रब करती हुई फुसफुसाकर बोली
"नहि....मुझे शर्म आरही है"
मै समझ गया माँ मेरी बीवी बन गयी.
पर मेरे सामने पत्नी के जैसा पूरी तरह खुलकर आने में उनको समय लग रहा है.
वह चाहती है हम पति पत्नी की तरह बन जाये और उनके लिए उनके अंदर वह कोशिश भी दीखती है.
लेकिन अचानक माँ से बीवी बनना उनके लिए भी एक कठिन चैलेंज है.
और इसमें मुझे उनका साथ देना चहिये.
उनकी भावनाएं मेरे मन को छु के गयी.
मैं वहां से बाहर की तरफ जाने लगा. तब माँ पीछे से बोली
"बाहर जाकर पर्दा लगा डिजियेगा"
मैने मुड़के उनको एक स्माइल दिया.
वह मेरी नज़र में नज़र मिलाकर जैसे यह कह रही है की

"सॉरी जाणु, में तुम्हारे साथ ज़िन्दगी का हर पल एक साथ जीना चाहती हु, तुमको प्यार करके, तुम्हारा प्यार पाकर मेरी ज़िन्दगी को ख़ुशी के सागर में बहा देना चाहती हु,
लेकिन हमारे इस नयी रिश्ते में खुद को तुम्हारी पत्नी बनकर हमारे बीच की सारी बाधा को पार करने में थोड़ा वक़्त लग रहा है, प्लीज फॉरगिव मि"

उनके दिल की बाते महसुस करके मेरे मन में उनके ऊपर और प्यार आने लगा. और में एक स्माइल के साथ उनकी वह बाते समझके वहां से बाहर आगया.
बाहर आकर में दरवाजे का पर्दा ठीक से खिचके बंद कर दिया.
मुझे समझ में आरहा है की माँ अंदर बाथरूम से बाहर अगयी.
उनके पायल की और बँगलेस की रुन-झुँन आवाज़ से में वहि खड़े खड़े सब समझ पा रहा था.
अगर में चाहु तो पर्दा क्रॉस करके रूम के अंदर दाखिल हो सकता हु.
लेकिन में उनके बिस्वास को तोडना नहीं चाहता.
वह चाहती तो खुद आकर दरवाजा लॉक कर सकती थी.
पर वह केवल मुझे पर्दा लगा ने के लिए बोलकर मेरे ऊपर के बिस्वास से उनके मन में एक भरोसा आया.
और उसमे वह खुद को मेरे पास सुरक्षित,
मेहफ़ूज़ महसुस कर रही है.
मैं वह नहीं तोड़ सकता. हर रिश्ते में बिस्वास और भरोसे के पिलर होते है.
उसी की बुनियाद के ऊपर विश्व संसार के सारे रिश्ते टिके हुए है.
 

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आज उनके मन में मेरे ऊपर जो बिस्वास और भरोसा की बिल्डिंग बनना सुरु हुआ,
में खुद अपने हाथों से उसमे एक एक ब्रिक जोड़के उसको और स्ट्रांग और ऊँचा बनाना चाहता हु.
हमारे रिश्ते को और मजबुत और मेहफ़ूज़ बनाना चाहता हु.
वह उनकी तरफ से गाँठ बांध लिया.
अब मेरा बारी है उसकी सही तरह से हिफाजत करके आगे बढाने की.
मेरा बहुत मन कर रहा है माँ को, मेरी बीवी को उसी भीगी अबस्था में देखने के लिये.
फिर भी में मन को शांत करने की कोशिश करके बाहर हॉल में अटैच्ड बाथरूम में चला.
बाज़ार से आते टाइम मुझे बहुत एक नंबर वाली प्रेशर आरही थी. अब फिर से वह प्रेशर आई तो में टॉयलेट में जाकर सुसु करने लगा.
मेरा पेनिस को एक हाथ से पकड़ के रखा था मुझे मेरा पेनिस बहुत गरम मेहसुस हुआ.
कुछ दिन से मेरा पेनिस हमेशा थोड़ा थोड़ा फुला हुआ रह रहा था.
और आज तो शाम से एक दम सख्त होकर रह रहा था. मुझे उसकी तरफ देखके माँ के भीगे चेहरे पे गाल के ऊपर भीगे ज़ुल्फ़ों और गोरे शोल्डर पे थोडे पानी की बुन्दे , साथ में टॉवल लपेटके स्तन के ऊपर पकड़के रखने वाली तस्वीर नज़र के सामने आ गई. और मेरा पेनिस अचानक मेरे हाथ के अंदर ही तेजी से फुलने लगा.
मैं बस और थोडे वक़्त के इंतज़ार के लिए मन को समझाकर बाहर आया.
टॉयलेट से बाहर कदम रखतेहि बैडरूम से मेरे मोबाइल की रिंगिंग आवाज़ सुनाई दि.
मैं परदे के पास जाकर माँ को पुछा
"मेरा मोबाइल रिंग हो रहा है"
मै सीधे तरीके से अंदर जाने के लिए न बोलकर ऐसे पुछा.
माँने अंदर से जवाब दिया
"आके उठा लीजिये"
मै अंदर जाते ही माँ को देखा. वह ड्रेसिंग टेबल की मिरर के सामने खड़ी होकर उनके बाल कँघी कर रही थी.
उनके बाल बहुत लम्बे भी है घने भी.
बाल को सामने की तरफ ले जाकर वह प्यार से कँघी कर रही है.
मिरर के थ्रू मेरे से नज़र मिलते वह मुझे स्माइल देकर नज़र झुकाके कँघी करते रहि.
वह एक लाल रंग की ब्लाउज और मेरून-येलो-गोल्डन रंग का एक साड़ी पहनी हुई है.
माँ को डीप कलर के कपडे में देख के और उनके नहाये हुये फ्रेश चेहरे को देख के मुझे एक नयी कोई लड़की जैसी लग रही थी.
लग नहीं रहा था की वह मेरी माँ है,
जिसको बचपन से मेरे पास देखते आरहा था. उनके गले में मंगल सूत्र और उनके मन की ख़ुशी के रंग से उंनका बदन पूरी तरह अलग लग रहा है.
मैं स्माइल करके जाकर मोबाइल लिया.
मेरा मकान मालिक है.
मैं सरप्रीईसड हो गया. बूढ़े ने आज तक कभी फ़ोन नहीं किया.
हमेशा में ही फ़ोन करता था. रेंट भी ऑनलाइन ट्रांसफर करके में बता देता था. और आज किसलिये फ़ोन कर रहा है.
इस चिंता के साथ में फ़ोन रिसीव किया
"हल्लो" उधार से आवाज़ आया
"बेटा तुम आगये" मैने बोल "हान जी”. आज ही आया" उनहोने कहा
"बहु भी आयी है न साथ में?
"मुझे अब समझ में आया.
उनको पता था में शादी करके बीवी को लेके आरहा हु.
मैंने बोल "हान जी वह भी आयी है" "अछछ..च्चा...बढिया है”.
“मेरी शुभ कामनायें है तुम लोगों के लिए बेटा,कुछ चीज़ का जरुरत है तो बता देना”. और पटेल साहब कैसे है”?
येह अंकल तो नानाजी का फैन बन गया एकदूम.
मैंने कहा."थैंक यू अंकल और नानाजी ठीक है."
"अच्छा अच्छा...वह आये तो मुझे मिलने के लिए जरूर कहना. चलो बेटा रखता हु, खुश रहो"
"जी अंकल"
बोलकर मेंने फ़ोन कट कर दिया.
माँ बालों को कँघी करते करते मुझे देख रही थी फ़ोन पे बात करते हुए. फ़ोन कट ने के बाद उन्होंने आँखों के इशारे से पूछि कौन था.
मैने मोबाइल रखते रखते बोल
" लैंड लॉर्ड"
माँ आँखों में एक सवाल को लेकर पुछी
"उनको मालूम है"
मैने कहा "हा..घर का कुछ काम करवाने के टाइम बोल दिया था की मेरी बीवी आरही है"
फिर माँ होठो की स्माइल दबाते हुये नज़र घुमा लि और मिरर में खुद को देखते रहि.
मैं माँ को एक सरप्राइज देणे के लिए धीरे से अलमारी के पास गया और लाकर खोल के मेरा उनके लिए ख़रीदा हुआ नेकलेस निकल के अलमारी बंद किया.
यहाँ से माँ ऐसे पोजीशन पे खड़ी है की ना वह डायरेक्टली मुझे देख पा रही है , न मिरर के थ्रू.
मैंने नेकलेस के केस को पीछे छुपाकर उनकी तरफ मुडा.
माँ तब झुक के ड्रेसिंग टेबल से कुछ उठा रही थी.
मैं धीरे धीरे उनके पास जाने लगा.
माँ मिरर में देखति हुई मांग में सिन्दूर लगा रही थी.
 

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और तभी वह मिरर के थ्रू उनके कंधो के पीछे से मुझे उनकी तरफ आते हुए देखि.
वह मुझे मिरर में देखते हुए एक प्यारी स्माइल के साथ मांग में मेरा नाम का सिन्दूर लगायी.
सिन्दूर लगाते हुए उनके आँखों में एक अद्भुत प्यार और इमोशन नज़र आया.
वह उसमे मेरी मंगल कामनायें और हमारे मैरिड लाइफ की परिपूर्णता के लिए एक निःशब्द वार्ता जैसे की भगवन को बता दी.
मेरा मन इस में एकदम उनके लिए, उनके सारी ख़ुशी के लिए एक निःशब्द प्रतिज्ञा से भर गया.
मैं धीरे से उनके पीछे जाकर खड़ा हो गया.
माँ मिरर के थ्रू मुझे देख रही है और थोड़ा थोड़ा ब्लश कर रही है.
मैं भी प्यार से हासके उनको देख रहा था. हम एक्चुअली बहुत कम बातें कर रहे थे.
एक दूसरे को हम जानते है.
एक दूसरे को बचपन से देखते आरहे है.
सो हमारे बीच कोई नयी चीज़ नहीं है.
इस लिए शायद बात चित कम कर रहे है,
केवल हम हमारे इस नयी रिश्ते को मेहसुस कर रहे है,
इसको ठीक तरीके से पालन करने की तैयारी कर रहे है,
और हमारे बीच छुपे हुये एक दूसरे के लिए एक अद्भुत प्यार को डिस्कवर कर रहे है.
और उसकी ख़ुशी से बंद होकर हम एक दूसरे के नज़्दीक आरहे है.
मैं माँ को देखते देखते पीछे से हाथ निकल के वह केस को आगे ले गया और उनके सामने पकड़के रखा.
माँ मेरे हाथ की तरफ देखि और हाथ में एक केस देख के थोड़ा सरप्रीईसड हो गयी और आँखों में एक सवाल लेकर नज़र उठाकर मिरर के थ्रू मेरी तरफ देखि.
मैं उनके जवाब में बस केवल हास्के धीरे से बोला
"तुम्हारे लिये"
मा समझ गयी की कोई ज्वेलरी होगा.
तो उन्होंने मिठी सी एक स्माइल देकर हाथ बढाकर मेरे हाथ में पकड़ा हुआ वह बॉक्स खोलने गयी.
फिर माँने नज़र उठाकर एकबार प्यार से मेरी तरफ देख के एक हाथ से वह बॉक्स ओपन किया.
उनके अंदर एक डायमंड नेकलेस था.
बहुत भारी और चौड़ी टाइप नहि.
स्लिम पर स्टाईलिस्ट. गोल गोल बॉल जैसे डायमंड स्टूडेड बिड्स का हार टाइप का है उनके नीचे एक लव साइन पेंडंट है जो बहुत सारे डायमंड और अलग अलग जेम्स स्टूडेड था. और जैसे ही माँ उस बॉक्स को ओपन किया वह एकदम सा सरप्रीईसड हो गयी और उनके मुह उस एक्सप्रेशन को प्रकट करते हुए थोड़ा खुल गया.
मैं उनके सामने वह बॉक्स पकड़के उनके पीछे खड़ा हु.
मेरी सांस उनके गर्दन को छु के जा रहा है.
माँ अपने राईट हैंड को लूस मुठ्ठी करके अपने खुली हुई होठो के पास लेकर थंब नेल को होठ को स्पर्श करवाके और मुठ्ठी से चिन को बीच बीच में टच करवाके कुछ पल उस नेकलेस को देखते रहि.
उनके मन में बहुत कुछ चीज़ों का तूफ़ान चल रहा होगा जरुर.
मैं केवल उनको ही देखे जा रहा हु.
कुछ पल बाद माँ आँख उठाके मेरी तरफ एक अस्चर्य और अद्भुत प्यारी नज़र से देखते रहि.
मैं उस आँखों में उनके मन की सारी बात पड़ ली.
फिर भी मुझे ऐसे देख रही थी इस लिए हास्के पुछा
"क्या"
माँ कुछ न बोलकर केवल सर हिलाकर और आँखों में एक बार धीरे से पलक झपक के बोली की कुछ नहि.
लेकिन में जनता हु वह बहुत कुछा बताके गयी उन नज़रों से. मैं फिर बोला
"पसंद नहीं आया"
माँ मुझे देखते रहि. जैसे की वह बोल रहे है "पागल..मुझे केवल पसंद नहि, बहुत पसंद है",
लेकिन वह मुह से बोली की
"बाहुत"
मै हसकर धीरे से बोल
"पहनोना"
वह बस मुस्कुरा उठि और मेरे आँखों में एकबार देख के फिर नज़र झुका के फुसफुसाकर बोली
"आप पहना डिजिये"
मै मुह पे एक चौड़ी स्माइल लेकर वह बॉक्स से नेकलेस को निकल के माँ के गले में पीछे खड़े होकर पहना दिया.
माँ नज़र उठाकर मिरर में देखि पहले मेरे से नज़र मिला फिर नेकलेस को देखते देखते ब्लश कीया.
और अपने हाथ उठाके पेंडंट को सीधा करके उनकी गोरी और मुलायम छाती के ऊपर , क्लीवेज के लाइन पे प्यार से रखि.
मैं उनको देखते हुए उनके शोल्डर पे मेरा चिन टच करवाके धीरे से बोला
"बहुत सुन्दर दिख रही हो...और..."
बोलके में चुप हो गया. माँ मेरी तरफ देखते हुए हस पड़ी और आँखों में बहुत सारा प्यार लेकर धीरे से बोली
"और क्या”?
मै उनको देखते हुए कांन के पास फुसफुसाकर बोला
"और बहुत सेक्सी"
मा ब्लश कर के नज़र झुका ली और एक प्यारी अदा से बोली
" धत"
मै हॅसने लगा और मेरी गर्दन उनके कन्धा के ऊपर से थोड़ा आगे बढाके मेरा चेहरा उनके चेहरे के पास ले जाकर उनको किस करने गया तो माँ अचानक एक प्यार भरी अदाओ और मिठी सी आवाज़ से बॉली
"उऊंम्मम्.....पसीना है, जाइये जाकर नहाइये पहले"
मै माँ की यह बात सुनकर मन ही मन उछल पडा.
हाँ ..मेरा बदन पसीने से भरा हुआ है.
एक तो नहाया नहीं अभी तक.
फिर इस गर्मी में मार्किट जाकर आया.
उस के लिए पसिना तोह है, लेकिन माँ ने जिस तरह कहा इसमें में और खुश होगया.
मुझे उनके पास आने देणे में कोई हिचकिचाहट नहीं है.
इस लिए
'पेहले नहा लीजिये'
बोलके इशारा कर दिया की आजआज वह खुद को मेरे पास समर्पण करने के लिए एकदम तैयार है.
 

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मैं माँ को, मेरी मंजु को मेरी बीवी को बस देखता ही रहा.
‘जाइये न, नहा लीजिये’
मेरे होठो पे मुस्कान फैल गई ‘ जो हुकुम सरकार” बोल कर में बाथरूम की तरफ मुड गया.
‘रुकिए!’
माँ की कोमल मधुर आवाज़ ने मेरे कदम रोक दिये. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे कानों में मिश्री घोल दी गई हो.
ये मधुर आवाज, जो कभी मुझे लोरिया सुना के सुलाया करती थि, मुझे अच्छे बुरे का फरक समझाती थि, ये मधुर आवाज़ अब मेरी धरोहर हो गई है.
अब ये मधुर आवाज़ हर पल मेरे पास रहेगि, हर पल मेरे कानों में मिश्री घोलेगी.
कितना सकून मिलता है मुझे इस मधुर आवाज़ को सुन कर.
मैने मुड के देखा तो मेरी माँ मेरे लिए एक नया नाईट सूट निकाल रही थी.
वो धीरे धीरे चलति मेरे पास आई, उसकी पायल की रुनझुन मेरे जिस्म में संगीत की लहरें पैदा कर रही थी.
मेरा सारा धयान उस रुन झुन में चला गया ... वो रुन झुन जैसे कह रही थी ... ये संगीत आपका इंतज़ार कर रहा है ... जल्दी नहा कर आइये.
मा जैसे ही मेरे करीब आई, मेरे साँसों में उसंकी सुगंध फिर से बसने लगी और मेरा पेनिस इतना अकड गया की मेरे कपड़ों में उठा हुआ उभार जरूर माँ की आँखों ने देख लिया होगा.
मा ने मुझे वो नाईट सूट पकडाया, नाईट सूट पकड़ते हुए जब उनके कोमल उँगलियों ने मेरे हाथ को छूआ तो पूरा जिस्म झनझना गया ... शायद यही हालत माँ की भी थी.
हाथ में नाईट सूट पकडे में उनकी मोहिनी सूरत का रसपान करने लग गया, शर्म के मारे माँ ने नजरें झुका ली और फिर एक कोमल ध्वनी मेरे कानो में पडी
“जाइये न अब”
मै जैसे सपनो की दुनिया से वापस लोटा और मुस्कराता हुआ बाथरूम में घुस गया तब भी कनखियों से में माँ को ही देख रहा था.
उनके होठो पे एक मुस्कान थी जिसकी चंचलता मुझे अपने और खिंच रही थी.
खुद को सँभालते हुए में बाथ रूम में घूसा पर दरवाजा खुला ही रहने दिया.
मेरी ये शरारत माँ भाँप गई और खुद ही दरवाजा बंद कर दिया ... शायद उनके होठो ने कुछ कहा
‘बहुत बेशर्म बन गए हैं आप’
कब में मन में सोचने लगा बेशरमी तो अभी दिखानि है ... में फ़टाफ़ट नहाने लगा और आने वाले क्षणो के बारे में सोच कर पुलकित होने लगा ... जो अनुभुति मुझे हो रही थी , शायद या यक़ीनन माँ को भी हो रही होगी ... जिस तरहा मेरे दिल की धड़कन क़ाबू में नहीं हो रही थी ... वही हाल माँ का भी होगा.
वो पल अब दूर नहीं था जब माँ मेरी बाँहों में होगी ... मेरी बीवी का रूप ले कर ... मेरी माँ मेरी बाँहों में होगी और में मेरी माँ को हर जगह छू सकूँगा ... ये अहसास वो था जिससे में शब्दों में शायद ही बयान कर पाउँगा क्या सोच रही होगी वो ... शायद यही की आज हम एक ऐसे रास्ते पे निकल पडेंगे जो हमारे प्यार को और भी परवान चढ़ायेंगा.
 
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