नानी का फ़ोन था.मेरा ज़िन्दगी का पहला किस था और माँ के साथ हमारा पहला किस था.
हमे उस किस के जादू और उसकी सुखानुभूति से बाहर आने में थोड़ा वक़्त लग रहा था.
हमको मोबाइल की घंटी सुनाई तो दे रहा था पर फिर भी ऐसा लग रहा था की जैसे हम दोनों बहुत दूर कोई
और दुनिया में पहुच गए और दूसरी कोई दुनिया से कुछ आवाज़ हमारे पास तक पहुच रहा है.
हम दोनों ही बहुत बुरी तरह जुड़े हुए थे,
दोनों ही आँख मूंदे हुये थे.
दोनों ही एक तेज सांस के साथ साथ थोड़ा थोड़ा काँप रहे थे अंदर से.
दोनों ही एक दूसरे से कभी जुदा न होने की कसम से एक दूसरे को कसके पकडे हुए थे.
हमारी जबान और होठ के द्वारा हम हमारा प्यार जता भी रहे थे और एक दूसरे के प्यार को मेहसुस भी कर रहे थे.
मुझे माँ के उस गुलाबी नरम होठो से एक नशा होने जा रहा था.
हमे पहले शारीरिक स्पर्श से जो उत्तेजना हो रही थी,
उससे ज़ादा हमारे दिल में एक दूसरे के लिए जो प्यार है वह मेहसुस करना और उस प्यार को हमारे इस नये रिश्ते में स्थापन करने का प्रयास सुरु होगया था.
माँ कम्प्लीटली सरेंडर कर चुकी थी उनके बेटे के पास,
उनके पति के पास.
मैन माँ के होठो से मेरे होठो को जैसे अलग किया,
माँ आँख खोल के मेरे तरफ देखि.
उनके आँखों में एक प्यार की और प्यास का साया नज़र आया.
उनके चेहरे पे एक अनिन्द्य सुन्दर ख़ुशी का अभा छायी हुई है.
वह अभी भी मेरे दोनों कन्धों को अपने हाथो से पकड़ी हुई है.
मैं उनकी आंखों में देखते हुये,
मेरे एक हाथ से उनके पीठ को पकड़के बैलेंस रखते हुए में दूसरे हाथ से मेरे पॉकेट से मोबाइल निकाला.
तब माँ को समझ आया की में क्यों हमारे पहले प्यार की निशानी,
पहले चुम्बन को बीच में रोक दिया था.
वह कुछ सोच के खुद बखुद शर्मा गयी और एक बार मेरी तरफ देख के एक लाज की हसि हस्के नज़र झुका लि.
और अचानक झट से मुझसे अलग होकर उल्टी तरफ मुड के जाने लगी.
मैं मोबाइल स्क्रीन को देखके फिर से माँ को मेरे से दूर जाते हुए देखते देखते स्माइल करते हुए फ़ोन पे बोला" हेलो नानीजी... बोलिये”
मेरी बात सुनके उधर नानी हस् पडी और यहाँ माँ जाते जाते अचानक केवल अपने सर को पीछे की तरफ घुमाके मुझे देखि.
उनके उस आँखों में जो एक अद्भुत प्यार की झलक थी और उनके होठो को दबाके जो एक प्यारी मुस्कराहट देकर गयी,
वह में इस ज़िन्दगी में क्या, अगले सात जनम तक नहीं भूल पाऊंगा.
मेरे अंदर मेरी छाती में एक तरंग सा खेल गया और मेरी छाती जैसे हल्कि सी होने लगी. उनकी वह नज़र मेरे दिल में एक तीर मार के गयी.
मैं उनके जादू से निकल ने से पहले नानी उधर से हसके बोली
“अभी भी में तुम्हारी नानी बनके रहुं क्या?
इस बात से झट से में होश में आया और सिचुएशन को सँभालते हुए कहा
"नही नहि....अक्टुअली...."
बोलके में रुक गया. मैं क्या बोलने जारहा था और क्या बोलूँ यह सोचकर में थोड़ा टाइम कुछ नहीं बोल पा रहा था.
माँ मेरे से दूर जाकर खिड़की के पर्दे को हटा रही थी पर उनका ध्यान पूरा मेरे ऊपर है और में यह समझ पा रहा था.
और नानी के साथ मेरा इस तरह परिस्थिति में पड़ने से उनको मज़ा आने लगा.
मैं बस बात को घुमा के बोला
"हा....मम्मी बोलिये"
मुझे थोड़ा शर्म आ रहा था. माँ को देखा तो वह वैसे ही मुस्कराहट को अपने होठो पे दबा के खिड़की खोल ने की कोशिश कर रही है.
नानी उधर से बोली
"तुम लोग पहुच गए कया"
मै हसके बोला
" जी हाँ.....अभी अभी घर में एंट्री लिये"
मा के साथ किस करते हुए मेरे अंदर जो तूफ़ान चल रहा था, वह धीरे धीरे ठण्डा हो रहा था.
मेरा पेनिस जो एकदम सख्त होकर मेरे जीन्स के अंदर से माँ के पेट् को टच कर रहा था,
अब वह भी धीरे धीरे शांत होने लगा.
नानी उधर नाना को बता रही है की हम पहुच गये फिर नानी बोली
"जर्नी में कोई परेशानी तो नहीं हुआ न बेटा...सामान-वामान लेकर"
मैने उनको बताया की
"नहि.... ट्रेन भी टाइम पे थी, और आने में भी कोई तकलीफ नहीं हुई"
मैन गर्दन घुमाके माँ को देखा. माँ पूरे घर को घुर घुर के देख रही थी.
किचन, ड्राइंगरुम, डाइनिंग रूम और बेडरुम. उनके संसार को समझ रही थी.
मैं नानी को पुछा
"पापा क्या कर रहे है"?
नानी बोली "और पुछो मत बेटा"
नानी के गले में ऐसा एक आवाज़ था जो सुनकर मैंने तुरंत बोला "क्यूं ..क्या हुआ”?बोलकर में थोड़ा टर्न होकर माँ की तरफ देखा.
माँ बैडरूम के अंदर चली गई थी.
उनको दिखाइ नहीं दिया.
नानी उधर से बोली "सुबह घर पहुच के तुम लोगों से फ़ोन पे बात चित किया,तब तो ठीक थे, लेकिन ब्रेकफास्ट करने के बाद अचानक वह उलटी कर दीये” मैन नानी को पुछा"
अरे..डॉक्टर. को दिखाई की नहीं”? मेरे गले में एक ऐसा कंसर्नड था की में जब फिर से बैडरूम की तरफ देखा तो माँ हमारे बैडरूम के डोर के पास खड़ी होकर मुझे देख रही थि,
शायद हमारी बात को समझ ने की कोशिश कर रही थी.
मैं माँ की तरफ नज़र रखकर नानी को सुनता रहा “नहीं बेटा” डॉक्टर को तो दिखाया नहि,
थोड़ा रेस्ट करने के बाद अच्चा फील किया तो, डॉक्टर को नही बुलाया”. “पिछले तीन-चार दिन से तो तुम देख रहे हो,
कितना हेक्टिक जारहा था, इस्स लिए आज दिन भर रेस्ट किया,
तो अब काफी अच्चा फील कर रहे है”.
मेरे चेहरे पे नाना नानी , जो अब मेरे साँस और ससुर है,
उनके बारे में सोचके जो चिंता का अभास आया था,
माँ दूर से वो पढ़लि और नानी के साथ मेरी बातचीत को एक तरफ़ा सुनकर कुछ अंदाज़ किया.
इस लिए वह मुझे देखते हुये आँखों में एक सवाल लेकर शांत कदमो में मेरी तरफ आरही थी.
तब तक नानी बोलते रहि
“और मेरी बात कभी सुनते है क्या तुम्हारे नाना, कितनी बार मना किया की डॉक्टर सिगरेट पीनेसे मना किया है, लेकिन क्या..छुप छुप के पी लेते है”
नानी नाना के बारे में कम्प्लेन कर रही थी.
बात तो सही कह रही थी.
हम सब नाना की तबियत की चिंता करते है उनके बीमारी के बाद से.
नानी वह बातें करते करते इतना भावूक हो गयी थी की वह नाना को नाना ही सम्बोद्धित किया मेरे पास.
मुझे समझ में आरहा है की जिस तरह माँ और में पति पत्नी के इस नये रिश्ता में एक दूसरे को परिपूर्ण तरीके से अपनाने के लिए जैसे एक संघर्ष चल रहा है हमारे मन मैं, वैसे नाना नानी को भी इतना दिन के पुराने एक रिश्ते को बदल के दूसरी रिश्ते में आने में भी टाइम लग रहा है. इस लिए नाना को मेरा नाना ही बोल दिया.
मैं चुप होकर सब सुन रहा था.
तभी नानी बोली "माँ कहाँ है”? मैने माँ को देखते हुए कहा "ईधर ही है”.
हमे उस किस के जादू और उसकी सुखानुभूति से बाहर आने में थोड़ा वक़्त लग रहा था.
हमको मोबाइल की घंटी सुनाई तो दे रहा था पर फिर भी ऐसा लग रहा था की जैसे हम दोनों बहुत दूर कोई
और दुनिया में पहुच गए और दूसरी कोई दुनिया से कुछ आवाज़ हमारे पास तक पहुच रहा है.
हम दोनों ही बहुत बुरी तरह जुड़े हुए थे,
दोनों ही आँख मूंदे हुये थे.
दोनों ही एक तेज सांस के साथ साथ थोड़ा थोड़ा काँप रहे थे अंदर से.
दोनों ही एक दूसरे से कभी जुदा न होने की कसम से एक दूसरे को कसके पकडे हुए थे.
हमारी जबान और होठ के द्वारा हम हमारा प्यार जता भी रहे थे और एक दूसरे के प्यार को मेहसुस भी कर रहे थे.
मुझे माँ के उस गुलाबी नरम होठो से एक नशा होने जा रहा था.
हमे पहले शारीरिक स्पर्श से जो उत्तेजना हो रही थी,
उससे ज़ादा हमारे दिल में एक दूसरे के लिए जो प्यार है वह मेहसुस करना और उस प्यार को हमारे इस नये रिश्ते में स्थापन करने का प्रयास सुरु होगया था.
माँ कम्प्लीटली सरेंडर कर चुकी थी उनके बेटे के पास,
उनके पति के पास.
मैन माँ के होठो से मेरे होठो को जैसे अलग किया,
माँ आँख खोल के मेरे तरफ देखि.
उनके आँखों में एक प्यार की और प्यास का साया नज़र आया.
उनके चेहरे पे एक अनिन्द्य सुन्दर ख़ुशी का अभा छायी हुई है.
वह अभी भी मेरे दोनों कन्धों को अपने हाथो से पकड़ी हुई है.
मैं उनकी आंखों में देखते हुये,
मेरे एक हाथ से उनके पीठ को पकड़के बैलेंस रखते हुए में दूसरे हाथ से मेरे पॉकेट से मोबाइल निकाला.
तब माँ को समझ आया की में क्यों हमारे पहले प्यार की निशानी,
पहले चुम्बन को बीच में रोक दिया था.
वह कुछ सोच के खुद बखुद शर्मा गयी और एक बार मेरी तरफ देख के एक लाज की हसि हस्के नज़र झुका लि.
और अचानक झट से मुझसे अलग होकर उल्टी तरफ मुड के जाने लगी.
मैं मोबाइल स्क्रीन को देखके फिर से माँ को मेरे से दूर जाते हुए देखते देखते स्माइल करते हुए फ़ोन पे बोला" हेलो नानीजी... बोलिये”
मेरी बात सुनके उधर नानी हस् पडी और यहाँ माँ जाते जाते अचानक केवल अपने सर को पीछे की तरफ घुमाके मुझे देखि.
उनके उस आँखों में जो एक अद्भुत प्यार की झलक थी और उनके होठो को दबाके जो एक प्यारी मुस्कराहट देकर गयी,
वह में इस ज़िन्दगी में क्या, अगले सात जनम तक नहीं भूल पाऊंगा.
मेरे अंदर मेरी छाती में एक तरंग सा खेल गया और मेरी छाती जैसे हल्कि सी होने लगी. उनकी वह नज़र मेरे दिल में एक तीर मार के गयी.
मैं उनके जादू से निकल ने से पहले नानी उधर से हसके बोली
“अभी भी में तुम्हारी नानी बनके रहुं क्या?
इस बात से झट से में होश में आया और सिचुएशन को सँभालते हुए कहा
"नही नहि....अक्टुअली...."
बोलके में रुक गया. मैं क्या बोलने जारहा था और क्या बोलूँ यह सोचकर में थोड़ा टाइम कुछ नहीं बोल पा रहा था.
माँ मेरे से दूर जाकर खिड़की के पर्दे को हटा रही थी पर उनका ध्यान पूरा मेरे ऊपर है और में यह समझ पा रहा था.
और नानी के साथ मेरा इस तरह परिस्थिति में पड़ने से उनको मज़ा आने लगा.
मैं बस बात को घुमा के बोला
"हा....मम्मी बोलिये"
मुझे थोड़ा शर्म आ रहा था. माँ को देखा तो वह वैसे ही मुस्कराहट को अपने होठो पे दबा के खिड़की खोल ने की कोशिश कर रही है.
नानी उधर से बोली
"तुम लोग पहुच गए कया"
मै हसके बोला
" जी हाँ.....अभी अभी घर में एंट्री लिये"
मा के साथ किस करते हुए मेरे अंदर जो तूफ़ान चल रहा था, वह धीरे धीरे ठण्डा हो रहा था.
मेरा पेनिस जो एकदम सख्त होकर मेरे जीन्स के अंदर से माँ के पेट् को टच कर रहा था,
अब वह भी धीरे धीरे शांत होने लगा.
नानी उधर नाना को बता रही है की हम पहुच गये फिर नानी बोली
"जर्नी में कोई परेशानी तो नहीं हुआ न बेटा...सामान-वामान लेकर"
मैने उनको बताया की
"नहि.... ट्रेन भी टाइम पे थी, और आने में भी कोई तकलीफ नहीं हुई"
मैन गर्दन घुमाके माँ को देखा. माँ पूरे घर को घुर घुर के देख रही थी.
किचन, ड्राइंगरुम, डाइनिंग रूम और बेडरुम. उनके संसार को समझ रही थी.
मैं नानी को पुछा
"पापा क्या कर रहे है"?
नानी बोली "और पुछो मत बेटा"
नानी के गले में ऐसा एक आवाज़ था जो सुनकर मैंने तुरंत बोला "क्यूं ..क्या हुआ”?बोलकर में थोड़ा टर्न होकर माँ की तरफ देखा.
माँ बैडरूम के अंदर चली गई थी.
उनको दिखाइ नहीं दिया.
नानी उधर से बोली "सुबह घर पहुच के तुम लोगों से फ़ोन पे बात चित किया,तब तो ठीक थे, लेकिन ब्रेकफास्ट करने के बाद अचानक वह उलटी कर दीये” मैन नानी को पुछा"
अरे..डॉक्टर. को दिखाई की नहीं”? मेरे गले में एक ऐसा कंसर्नड था की में जब फिर से बैडरूम की तरफ देखा तो माँ हमारे बैडरूम के डोर के पास खड़ी होकर मुझे देख रही थि,
शायद हमारी बात को समझ ने की कोशिश कर रही थी.
मैं माँ की तरफ नज़र रखकर नानी को सुनता रहा “नहीं बेटा” डॉक्टर को तो दिखाया नहि,
थोड़ा रेस्ट करने के बाद अच्चा फील किया तो, डॉक्टर को नही बुलाया”. “पिछले तीन-चार दिन से तो तुम देख रहे हो,
कितना हेक्टिक जारहा था, इस्स लिए आज दिन भर रेस्ट किया,
तो अब काफी अच्चा फील कर रहे है”.
मेरे चेहरे पे नाना नानी , जो अब मेरे साँस और ससुर है,
उनके बारे में सोचके जो चिंता का अभास आया था,
माँ दूर से वो पढ़लि और नानी के साथ मेरी बातचीत को एक तरफ़ा सुनकर कुछ अंदाज़ किया.
इस लिए वह मुझे देखते हुये आँखों में एक सवाल लेकर शांत कदमो में मेरी तरफ आरही थी.
तब तक नानी बोलते रहि
“और मेरी बात कभी सुनते है क्या तुम्हारे नाना, कितनी बार मना किया की डॉक्टर सिगरेट पीनेसे मना किया है, लेकिन क्या..छुप छुप के पी लेते है”
नानी नाना के बारे में कम्प्लेन कर रही थी.
बात तो सही कह रही थी.
हम सब नाना की तबियत की चिंता करते है उनके बीमारी के बाद से.
नानी वह बातें करते करते इतना भावूक हो गयी थी की वह नाना को नाना ही सम्बोद्धित किया मेरे पास.
मुझे समझ में आरहा है की जिस तरह माँ और में पति पत्नी के इस नये रिश्ता में एक दूसरे को परिपूर्ण तरीके से अपनाने के लिए जैसे एक संघर्ष चल रहा है हमारे मन मैं, वैसे नाना नानी को भी इतना दिन के पुराने एक रिश्ते को बदल के दूसरी रिश्ते में आने में भी टाइम लग रहा है. इस लिए नाना को मेरा नाना ही बोल दिया.
मैं चुप होकर सब सुन रहा था.
तभी नानी बोली "माँ कहाँ है”? मैने माँ को देखते हुए कहा "ईधर ही है”.