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Season 1 || Episode 1
इस कहानी की शुरुवात होती है असल मे मेरी पारिवारिक इतिहास से पर मै इस कहानी को उस जगह से शुरू करना चाहता हु जहा से मुझे इस कहानी का पता चला । नमस्कार दोस्तों , मेरा नाम विकास (विकि ) और मै आज मेरे जिंदगी गई गंदगी आपके सामने बया करने जा रहा हु।
कोविड के बाद मेरे कम्पनी का काम घर से होता था। वैसे मैं बचपन जे होस्टल में ही रहा हु। बचपन मे मा बाप का तलाक होने के बाद मुझे होस्टल का रास्ता दिखा दिया गया। कुछ सालों बाद दोनों ने अलग से अपना संसार बना लिया नई शादी करके और मैं तो जैसे अनाथ ही हो गया। पर सबसे ज्यादा महसूस तब होने लगा जब मुझे होस्टल ने रूम खाली करने के लिए कहा। जाहिर सी बात थी कि नए स्टूडेंट्स के लिए रूम देना होस्टल का काम था।
उस समय मेरी उम्र २५ की थी और बार, होटल, स्ट्रीट फाइट और न जाने किस किस जगह पे काम कर मैं कम्प्यूटर साइंस की डिग्री तक पढ़ाई खत्म कर चुका था। कोविड खत्म होते होते एक विदेसी कम्पनी में जॉब का इंटरव्यू दिया था। बेरोजगारी कम थी कि होस्टल छोड़ने की नोटिस आगयी। नई मुसीबत आन पड़ी। पढ़ाई के लोन सर पर थे।हफ्ते भर का समय था मुझे होस्टल छोड़ने के लिए।
सारा सामान बंधवा कर मैंने गिने चुने होस्टल मेट्स से बिदाई की रस्म पूरी कर आया। कम खर्चे का घर हमारी शहर में ढूंढना मतलब बड़ी ही परेशानी वाली भागदौड़ थी। फिर भी पूरा आत्मविश्वास जुटा कर मैं घर ढूंढने लगा। पर कहते है कि भगवान के घर देर है पर अँधेर नही । हताश होकर मैं सातवे दिन अपने नसीब के भरोसे होस्टल से निकल पड़ा और रास्ते पर आते ही मुझे एक कॉल आया।
" विकि?"
एक चालीस पैतालीस साल की औरत का फोन था।
"जी बोल रहा हु, आप कौन?"
"मैं मिसेस कल्कि झुनझुनवाला, आप प्रमिलादेवी के ग्रैंड सन हो ना?"
प्रमिला देवी… इस मुसीबत को मैं कैसे भूल गया। बदनसीबी से ये मेरे दादी है। मेरे महान पिताजी की माताजी। इनके पराक्रम ऐसे है कि मेरे पिता जी इनके तीसरे पति के इकलौते बेटे। पहले दो पति का, उनका इनके पति होने का कोई कायदे का प्रूफ नही है, बात समझ रहे हो ना? नस्ल की बेहया और अय्याशी में मगरूर औरत है ये। मेरे मा बाप का डिवोर्स होने में इनके महत्वपूर्ण योगदान है। इनका पोता होने से अच्छा मैन अनाथ होकर जीना पसंद किया इससे ही आप समझ जाओ इनकी क्या वैल्यू है मेरी जिंदगी में। अब इन्होंने क्या नई मुसीबत खड़ी की है वो देखते है।
" माफ कीजिये, मैं ऐसी किसी औरत को नही जानता, अपने गलत जगह फोन लगाया है। WRONG NUMBER………"
इतना कहकर मैंने फोन रख दिया। पर कुछ समय बाद उसी नंबर से फिरसे कॉल आया। पर इसबार फोन पे कोई और था। इतनी भी सोचने की बात नही है, माननीय श्रीमती प्रमिलादेवी खुद अपने गटर भरे मुह से मेरे कानों में टपक पड़ी थी।
" विकि बेटा.."नशे में धुत आवाज ।
"क्यो परेशान कर रही है आप मुझे, आपके बेटे ने कब का आपसे रिस्ता तोड़ दिया है और आपके कृपा से मुझसे भी। और क्या छीनना चाहते हो…!?"
मेरा गुस्सा चरण पे था। मिस कल्कि झुनझुनवाला ने बीच मे आते हुए मुझे समझाने की कोशिस की,
" देखो बेटा, तुम्हारा गुस्सा जायस है और मैं आप लोगो के पारिवारिक मामले में टांग नही अड़ाऊंगी। मैंने तुम्हें इसी लिए कॉल किया था कि ,तुम्हारे दादी के करोड़ो रूपये के कर्ज बाकी है। उसे देने के लिए उन्होंने आपका नाम बताया। मुझे मालूम है कि यह इतनी आसान बात नही, पर तुम्हारे दादी के और मेरे पति के 'पुरानी' जान पहचान के चलते कुछ सोचा है मैंने, बस तुम आज शाम को मुझे मेरे पते पर मिलने आ जाना।
अभी मेरा माथा ठनका, मैं गुस्से में ही बोला," मुझे उनसे कोई लेनदेन नही है,.....।"
मिस कल्कि," हम आपको पूछ नही रहे है, बता रहे है। अगर सीधे से नही आओगे तो मेरे लोग लेने आ जाएंगे।मैं फोन रख रही हु।"
मुसीबते आती है तो पूरी बारात लेके आती है। मुझे बिना झंझट का ये मैटर खत्म करना था इसलिए दिनभर रूम के लिए भटक कर मैं झुनझुनवाला के पास चला गया। शहर के व्हाइट कॉलर सबसे महंगे एरिया में एक बंगले का पता था वो। मैं आने वाला हु यह सेक्युरिटी को पहले से ही पता था। उन्होंने बिना नोकझोक मुझे अंदर भेज दिया।
मैं जिस समय गया था उस समय वहां घर मे कोई नही दिख रहा था। मैं बडेसे दरवाजे के सामने जाकर घंटी बजाई।दरवाजा एक मोटीसी मध्यम आयु की एक महिला ने खोला। उसने करीब करीब साड़ी पहन रखी थी। करीब करीब इसलिए कह रहा हु क्योकि उसने साड़ी क्यो पहनी थी इसमे ही मुझे कुछ लॉजिक नही दिख रहा था। वैसे भी वो बहोत ज्यादा ब्लाउज परकर के दिख रही थी। 40 44 40 की बला मेरे मुंह से कुछ निकलने से पहले ही मुझे खींच कर हॉल के कॉर्नर में सीढियो के नीचे के एक रूम में लेकर गयी और दरवाजा बंद कर दिया।
" तुम्हे अकल नही क्या? तेरे मेनेजर को बताया था कि अड्रेस के पीछे के बाजू से भेजने को, तू सामने से क्यो आया?" वो।
मुझे उसकी बातें समझ नही आ रही थी।उनका चेहरा जाना पहचाना लग रहा था पर ध्यान में नही आ रहा था। गिन चुन के कुछ शब्द जमा कर बोलने ही वाला था उतने में उन्होंने अपने कपड़े उतारना शुरू किया। एक 50 साल की औरत मेरे सामने नंगी खड़ी थी। कॉलेज में रंडिया बहोत चोदी थी पर ऐसा कोई सिन कभी नही जिंदगी में आया था।
उसने देखते ही देखते मेरे ऊपर सांप की तरह रेंगना चालू कर दिया। मेरे पेन को आधा नीचे कर हिलाना चालू कर दिया और देखते ही देखते चूसने भी लग गई । उसे किस बात की जल्दी थी , असलियत मे ये रंडीबाज है कौन? इसका मुझे कुछ मालूम पता नहीं हो रहा था । मै बर्फ की तरह स्तब्ध था।
अचानक से कुछ गाडियोकि आवाज आई और वो कपड़े जमा कर भाग गई। मैं तो जैसे पगलाने के कगार पे था। मैंने फिरसे एकबार पता चेक करने के इरादे दे सवर के बाहर आया तो दरवाजे पे बारात खड़ी थी।
"विकि बेटा"
आवाज थोड़ी बहोत पहचान की लग रही थी। कुछ कुछ झुनझुनवाला की जैसी। मैं कुछ बोलता उसके पहले वो मेरे गले आके मिली।
"तुम कब आये?" वो।
मैं ये सब सपने की तरह देख रहा था। पर वो जैसे बरसो से जानती हो ऐसे पेश आ रही थी।
"आगये हो तो , तुम्हारी पहचान करवा दु तुम्हारी 'फैमिली से' " वो।
आखरी वाले शब्द जहर जैसे चुभ गए। फिर भी, चलो मिलते है मेरी सो कोल्ड फेमिली से। इनके इरादे देख लगता है आज इस अनाथ को गोद लेने का प्रोग्राम रखा हो । सभी बड़े डायनिंग पे जमा हो गए। माफिया वाला फील आ रहा था।
मेरे सामने कुछ 10 15 लोग खड़े थे। बड़ा महल ,बड़ी फेमीली। उस मे एक चेहरा धुंधला धुंधला पहचान का लग रहा था। पर कुछ सोच पाउ उससे पहले इंट्रो चालू हुआ।
ये है,
यशवंत: बड़े मामा , 48 साल, घर का बिजनेस।
शाश्वती: बड़ी मामी, 45 साल , हाउसवाइफ।
रितु: बड़ी बहन , 30 साल, बड़े मामा मामी की बेटी, संसार छोड़ आई हुई।
नीलम: बड़ी मौसी 45 साल, हाउसवाइफ।
निलेश: बड़े मौसा 42 साल, घरेलू रियल इस्टेट बिजनेस।
नीतू: बड़ी बहन,
सरिता (सरु): छोटी मौसी, 35 साल, घरेलू बिजनेस।
विश्वास: छोटे मौसा,38 साल, घरेलू होटल बिजनेस।
(कोई संतान नही)
अभी आया हार्ट अटैक मोमेंट*
ये है तुम्हारी माँ , सुशीला देवी (उम्र 40, घरेलू ब्यूटी पार्लर बिजनेस)
और ये सौतेले पापा , चेतन, उम्र 35 साल।
"कोई संतान नही"
किसी बच्चे को तड़पाने का नतीजा भगवान इनको देना ही था। बारातियों का परिचय हो चुका था। अभी आगे,
और मैं तुम्हारी माँ की माँ तुम्हारी नानी " शर्मिलादेवी झुनझुनवाला।"
"अभी गोल गोल बाते न घुमाते हुए सीधे मुद्दे पे आते है। तुम्हे यहां बुलाने का मतलब सिर्फ फेमेली ही नही , उसके साथ कि जिम्मेदारी भी है।"
मैं मिश्किल ओठो में हस दिया। सबके चेहरे शोक में हो गए। दादी ने भी हल्की एटीट्यूड स्माइल देकर बात चालू रखी।
" जैसे कि तुम देख ही सकते हो कि इस परिवार का वारिस बने ऐसा कोई है नही। अब ये जगह तुम्हे भरनी है। थोड़ी बेशरम फेमिली लगी होगी तुम्हे ये पर हालात के मद्देनजर थोड़ा प्रेक्टिकल सोच लो। अगर तुम वारिसदार नही बने तो झुनझुनवाला एम्पायर होटल बिजनेस से बाहर हो जाएगा। दर असल तुम्हारे मामा के बाद घर मे कोई और नही है जो इस जगह के लिए कोलिफाइड है। तुम्हारे पिता, जन्मदाता पिता को भी इसके लिए मनाया गया पर तुम्हारी माँ के साथ हुए झगड़े में वो दूसरे गुट से मिल हमारे एम्पायर को तोड़ना चाहेंगे। हमसे पहले तो नही पर अब के बाद वो भी ये ऑफर तुम्हे जरूर देंगे। खानदानी दुश्मनी जो ठहरी।"
तभी वही औरत जो हवस में डूबी मुझे खाने के लिए टूट पड़ी थी वो अचानक से ऊपर से नीचे उतरते हुए आई।
नानी," इनकी पहचान करना रह गया। ये महोतरमा है आपकी दादी, आपके सगे पापा की माँ, मेरी बहन।"
बहन? दादी? जो औरत मेरा लन्ड मुह में लेके मेरा स्वागत की वो मेरी दादी थी।
है भगवान, है कहा रे तू
नानी" तुम करीब करीब आधी नस्ल से हमारे वंश नियमोके आधीन हो। शिक्षा से भी उच्च शिक्षित हो। स्वयसुरक्षा के भी गुण है तुममे। बस एकबार मान जावो तो फेमिली रजिस्ट्रेशन के बाद तुम सितारा होटल्स के मैनेजमेंट टेस्ट के लिए कोलिफाइड हो जावोगे।"
मैं गला खराष्ते हुए," नानी, आपको नानी इस लिए बोल रहा हु क्योकि किसी इरादे क्यो ना बुलाया हो आपने पर अच्छा लगा मुझे आपका अपनापन। मैं आपका वारिसदार बनने के लिए कुछ शर्तों से तैयार हूं पर पैसो के लिए या जायदाद के लिए मत समझना।
नानी," नही नही, तुम्हे पैसो की लालच नही ये जानती हूं। पूरा बैकग्राउंड चेक की हु। इसलिये तो तुम्हे चुना गया है। घर की बेटियों को ऐशो आराम से फुर्सत कहा।तुम शर्त बतावो…"
" पहली और जरूरी बात, इस घर से पेपर के अलावा कोई नाता नही है मेरा। खास कर इन (मा, सौतेले पापा की तरफ उंगली करते हुए और दादी की और उंगली करते हुए) लोगो से। कैसे भी हो, फेमिली से गद्दारी मुझे पसंद नही । और इसी कारण से ये वारिसदार का ऑफर मैं मान रहा हु क्योकि, सामने वाले ने मेरे पैदा होने के साथ ही बहोत सारी गद्दारीया कर रखी है, उसके प्रायश्चित की अब बारी है। गद्दी, पैसा, गाड़ी, घर और कुछ, ये सब तो मिलेगा ये आपका थाट देखकर मैं समझ गया। पर मैं इस घर मे नही रहूंगा। बचपन से अनाथ हु, इतने लोगो की आदत नही है। बस अभी के लिए इतनाही।"
"तुम्हारी सारी शर्त मंजूर !! तुम्हारी गाड़ी, क्रेडिट कार्ड और एक फार्म हाउस और एक VVIP होटल रूम तुम्हारे काम के लिए दी जाएगी। कल से तुम किससे क्या नाता रखते हो ये तुम्हारे उपर छोड़ देती हूं। पर तुमने मुझे नानी बोला है और ऑफर मंजूर किया है उस हिसाब से कल से तुम सितारा होटल्स ग्रुप के वर्किंग डायरेक्टर की गद्दी संभालोगे। इज दैट क्लियर?"
नानी से सबकी ओर गर्दन घुमाई और मेरे साथ सभी लोगो ने हामी भर दी।
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