सुगंधा बाथरूम के अंदर धीरे-धीरे करके अपनी साड़ी अपनी खूबसूरत वतन से अलग करके बाथरूम के कोने में रख दी थी,,,, और अंकित उसकी मां को बिल्कुल भी तकलीफ ना हो इसलिए उसकी देखरेख के लिए बाथरूम के सामने ही कुर्सी रखकर बैठकर किताब पढ़ रहा था किताब क्या पढ़ रहा था किताब पढ़ने का वह बहाना बता रहा था उसकी नजर तो अपनी मां की खूबसूरत बदन पर ही थी तिरछी नजर से वह अपनी मां की एक-एक क्रियाकलाप को देख रहा था,,,,, सुगंधा भी कुछ कम नहीं थी,,,,,, अपने बेटे से वह जो चाहती थी धीरे-धीरे उसकी ख्वाहिश पूरी होती जा रही थी उसके बेटे में आए इस बड़े बदलाव से वह अंदर-अंदर बहुत खुशी और इसीलिए वह अपनी बीमारी का बहाना बनाकर एक बहाने से अपनी खूबसूरत बदन की नुमाइश करना चाहती थी अपने बेटे के सामने,,,।
सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी जवानी अभी भी बरकरार है,,, उसके बदन से अभी भी जवानी का रस टपकता है,,,, इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी होती है औरत का नंगा जिस्म एक नंगी औरत जिसे देखकर मर्द पूरी तरह से अपने होशो आवाज होकर औरत का गुलाम बन जाता है इसीलिए सुगंधा अपने आप से अपने बेटे को अपना नंगा बदन दिखाना चाहती थी ताकि उसका बेटा पूरी तरह से उसके जवानी के आगे घुटने टेक दे,,,,,, जबकि वह ऐसा पहले भी अपने बेटे के सामने कर चुकी थी,,, लेकिन यह क्रियाकलात ऐसी होती है कि जितनी बार करो उतनी बार काम ही लगती है और हर एक बार एक नया उमंग और जोश से भर देती है इसीलिए सुगंध बेकरार थी अपने बेटे को अपना नंगा बदन दिखाने के लिए,,,।
वैसे तो दुनिया का हर एक मर्द जानता है कि औरत के बदन में उसके कौन-कौन से अंग होते हैं जिन्हें वह न जाने कितनी बार देखा है लेकिन हर बार उसे औरत का अंग देखने का मन करता है और हर बार देखकर मस्त हो जाता है,,, सुगंधा यह भी जानती थी कि उसका बेटा भले ही देखभाल के बहाने बाथरूम के बाहरी कुर्सी डालकर बैठा है लेकिन उसका असली मकसद तो दूसरे मर्दों की तरह ही है एक खूबसूरत औरत के खूबसूरत नंगे जिस्म को निहारना,,,,।
कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी थी बाथरूम के अंदर सुगंध अपनी साड़ी उतार कर बाथरूम के कोने में रखती थी और इस समय बाथरूम के अंदर वह केवल ब्लाउज और पेटीकोट में ही थी ब्लाउज और पेटीकोट में औरत का जिस्म पूरी तरह से मादकता से भर जाता है,,,, और इस समय सुगंधा भी स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा की तरह दिखाई दे रही थी,,,। कुछ देर तक सुगंधा इसी अवस्था में खड़ी रही,,, क्योंकि वह अपने मन में सोच रही थी कि अब क्या करें,,, और अंकित अपनी मां को इस तरह से बाथरूम में खड़ी देखकर कुछ बोलने वाला था कि उसकी मां तुरंत अपने दोनों हाथों को हरकत देते हुए अपने ब्लाउज के बटन पर अपनी उंगलियां रख दी,,,,, अपनी मां की हरकत को देखकर अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि वह समझ गया था कि उसकी मां उसके ब्लाउस को खोलने जा रही है,,, कुछ ही देर में ब्लाउज के अंदर छुपा उसकी मां का पका हुआ दशहरी आम देखने को मिलेगा लेकिन उसे भी देखने के लिए उसके ऊपर का छिलका मतलब की ब्रा उतारना पड़ेगा,,, और अंकित इस बात से दुविधा में था कि उसके सामने उसकी मां अपनी ब्रा उतरेगी कि नहीं उतारेगी,,,,।
लेकिन इसी बीच उसकी मां अपने ब्लाउज का बटन खोलना शुरू कर दी,,, सुगंधा का मुंह अंकित की तरफ था,,, सुगंधा जानबूझकर अपने बेटे की तरफ मुंह करके खड़ी थी ताकि उसका बेटा अपनी आंखों से सब कुछ देख सके,,,, वैसे भी बाथरुम का दरवाजा खुला छोड़कर वह अपने बेटे को एक तरह से इशारा दे दी थी कि जो कुछ भी होगा उसकी आंखों के सामने ही होगा,,,, सुगंधा धीरे-धीरे अपने ब्लाउज का एक-एक करके बटन खोलती चली जा रही थी और अंकित के दिल पर बिजलियां गिरा रही थी,,,, अपनी मां की हरकत पर अंकित का लंड पूरी तरह से फटने की स्थिति में आ गया था,,, औरत को और वह भी खूबसूरत औरत को कपड़े उतारते हुए देखना भी बहुत बड़ी किस्मत की बात है ऐसा मौका तो बहुत से लोगों के पास आता ही है लेकिन ऐसा मौका कम ही आता है जब एक मां अपने बेटे की आंखों के सामने ही अपने कपड़े उतार कर निर्वस्त्र होती हो और इसलिए अंकित इस समय बेहद खुश नसीब था,,,, एक तो उसकी मां बला की खूबसूरत थी,,, और ऐसे में खूबसूरत औरत के नंगे जिस्म को अपनी आंखों से देखना वाकई में किस्मत की बात थी इसलिए अंकित अपने आप को खुशकिस्मत समझ रहा था,,,।
देखते ही देखते सुगंध अपने ब्लाउज के सारे बटन को खोल देती और अपने ब्लाउज के दोनों पट को बंद कमरे के दरवाजे की तरह धीरे से खोलकर दोनों पट को अलग कर दी,,,, और जैसे दरवाजा के खुलते ही कमरे के अंदर का सब कुछ एकदम साफ नजर आने लगता है वैसे ही सुगंधा के ब्लाउज के दोनों पट खुलते ही उसके लाल रंग की ब्रा एकदम से साफ नजर आने लगी थी ब्रा में कसा हुआ उसका दशहरी आम बेहद आकर्षक लग रहा था,,,,,,, तिरछी नजर से अंकित सब कुछ देख रहा था उसे इस बात का एहसास भी हो रहा था कि उसकी मां अपनी चूचियों के साईज से कम नाप की ब्रा पहनी हुई थी जिसकी वजह से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां उसके छोटे से ब्रा में किस तरह से समा नहीं पा रहे थे लेकिन एक नया समा बांध दे रहे थे जिसे देख पाना आंखों को गर्माहट प्रदान कर रहा था,,,, धीरे से सुगंधा अपनी बाहों में से अपने ब्लाउज को धीरे-धीरे उतारकर उसे भी साड़ी के ऊपर फेक दी,,,,।
अंकित का दिल जोरो से धड़क रहा था उसका पूरा ध्यान अपनी मां के ऊपर ही था भले ही वह किताबों के पन्ने पलट कर अपनी नजर को किताबों में उलझाया हुआ था लेकिन उसका पूरा ध्यान अपनी मां के ऊपर ही था और इस बात को सुगंधा भी अच्छी तरह से जानती थी,,,, अंकित के साथ-साथ सुगंधा भी अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी,,,, कुछ देर पहले उसके बदन में दर्द था ज्वर से उसका बदन तप रहा था लेकिन अब बदन का वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था हालांकि उसका बदन अभी भी तप रहा था लेकिन ज्वर से नहीं उत्तेजना से,,, सुगंधा को अपनी बुर गीली होती हुई महसूस हो रही थी,,, वह मदहोश हो रही थी मस्त हो रही थी,,, और इस समय इस बात के लिए मन ही मन तृप्ति को धन्यवाद दे रही थी कि अच्छा हुआ कि वह उसकी देखभाल के लिए अंकित को छोड़कर गई अगर ऐसा ना होता तो शायद इस तरह का दृश्य बिल्कुल भी भजा नहीं जा सकता था,,,।
ब्लाउज को उतार देने के बाद सुगंधा अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ ले गई और अपने ब्रा का हुक खोलने की कोशिश करने लगी वैसे तो वह अपने ब्रा का हक बड़े आराम से खोल देती थी लेकिन इस समय केवल वह नाटक कर रही थी वह जानबूझकर अपने हाथ को अपने ब्रा के हक तक नहीं ले जा पा रही थी,,,,, और ऐसा करते हुए अंकित उसे देख रहा था और मन ही मन प्रसन्नता के साथ-साथ उत्तेजित हो जा रहा था कि कुछ ही देर में उसकी मां के दशहरी आम उसे देखने को मिल जाएंगे,,, और इस बात से तो और भी ज्यादा उत्साहित था कि उसकी मां बिना शर्माए बही जब उसके सामने अपने कपड़े उतारने के लिए तैयार हो चुकी थी और उतार भी रही थी बस इस बात की उत्सुकता उसके मन में अत्यधिक की उसकी मां नहाने से पहले अपने बदन से क्या-क्या उतारती है,,, और इसलिए अंकित अपने मन में प्रार्थना कर रहा था कि,,, कल की तरह उसकी मां के दिलों दिमाग पर बदहवासी छा जाए और उसे बिल्कुल भी होश ना हो और बेहोशी की हालत में वह खुद अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी हो जाए,,, ऐसा सोच कर वह अपनी मां से नजर बचाते हुए पेट के ऊपर से ही अपने लंड को जोर से मसल दिया,,,,,।
Ankit ki adbhut kalpna
बार-बार सुगंधा ब्रा का हुक खोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन जानबूझकर खोल नहीं रही थी,,, और दोनों हाथों को पीठ की तरफ ले जाने की वजह से उसके आगे की छाती पूरी तरह से निकाल कर बाहर की तरफ आ गई थी जिसे उसके दोनों खरबूजे ऐसा लग रहा था कि ब्रा फाड़ कर बाहर आ जाएंगे,,,, अंकित का मन तो कर रहा था कि,,, आगे बढ़कर बाथरूम में कोई चाय और अपनी मां के दोनों खरबूजा को अपने हाथ में लेकर दबा दबा कर उनका रस पी जाए,,, लेकिन ऐसा करने की हिम्मत उसमें अभी नहीं थी,,,,, क्योंकि भले ही वह अपनी बातचीत के जरिए अपनी मां से थोड़ा बहुत खुल चुका था लेकिन इतना नहीं खुला था कि वह अपनी मां की खूबसूरत बदन से खेलना शुरू कर दे या अपनी मां से गंदी हरकत करना शुरू कर दे क्योंकि वह जानता था कि इस तरह की हरकत से उसकी मां के बारे में क्या सोचेगी क्या बर्ताव करेगी यह अभी उसे नहीं मालूम था लेकिन जरा भी उसे इस बात का भनक लग जाए कि उसकी मां की उसके साथ एक जाकर होना चाहती है तो इसी समय अंकित बाथरूम में घुसकर अपनी मां की जवानी पर पूरी तरह से काबू पा ले,,,,, लेकिन अंकित नहीं जानता था कि उसकी मां क्या चाहती है इतना तो उसे एहसास हो गया था कि उसकी मां भी जिस अवस्था से गुजर रही है प्यार की भूखी है लेकिन यह जानकर भी अंकित ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था जिससे आगे चलकर उसे ही तकलीफ हो वह इस खेल में धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहता था और इतना तो वह कामयाब हो ही गया था कि अपनी आंखों के सामने अपनी मां को वस्त्र उतारने के लिए मना लिया था,,,,।
कुछ देर और कोशिश करने के बाद उसे कुछ याद आया हो इस तरह से वह तुरंत बाथरूम के दीवार की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और पीठ को अंकित की तरफ कर ली और ऐसे में वह अपनी उंगलियों को अपनी तरह के होकर तक पहुंचाने की कोशिश करने लगी,,, वह अच्छी तरह से जानती थी कि अंकित तो सही देख रहा होगा और उसकी नाकाम हो रही कोशिश को देखकर जरूर कुछ करने की सोचेगा और कुछ देर तक यह दृश्य इसी तरह से चलता रहा,,, अंकित देख रहा था कि उसकी मां ब्रा कहो खोलना चाह रही थी लेकिन उसका हाथ उसकी उंगली ब्रा के हक तक पहुंच नहीं रही थी और अंकित अपने मन में सोच रहा था कि पहले भी तो उसकी मां इस तरह से अपना ब्रा उतरती होगी लेकिन तब तो किसी प्रकार की तकलीफ नहीं आती है लेकिन आज ऐसा क्यों हो रहा है,,,, अंकित के मन में यही सब चल रहा था वह अपने मन में सोच रहा था कि कहीं उसकी मां जानबूझकर तो यह नाटक नहीं कर रही है लेकिन तभी वह सोचा कि शायद बीमारी की वजह से वह अपने हाथ को ज्यादा पीछे की तरफ नहीं उठा पा रही है इसलिए अपनी मां को कोशिश करता हुआ देखकर वह खुद कुर्सी पर बैठा बैठा बोला,,,,।
क्या हुआ मम्मी,,,,?
अरे देखना,,,,(नजर घुमा कर अपने बेटे की तरफ देखते हुए) मेरा हाथ ब्रा की हुक तक नहीं पहुंच रहा है,,,,।
मैं मदद कर दूं क्या मम्मी,,,,।
हा रे अब तो तुझे ही मदद करनी होगी,,, बुखार की वजह से हाथ में दर्द हो रहा है और ऊपर की तरफ नहीं जा रहा है,,,,
(अपनी मां की बात सुनकर कुर्सी पर बैठे हुए ही अंकित तपाक से बोला)
तब तो अच्छा ही हुआ मम्मी की डॉक्टर ने तुम्हारे पिछवाड़े पर सुई लगाया अगर हाथ में लगाया होता तो शायद हिलाना भी मुश्किल हो जाता ,,,(अंकित अपनी मां की गांड के बारे में बात करने लगा था हालांकि गांड को बोलने का तरीका कुछ और था लेकिन इसका मतलब भी वही होता है,,, इसलिए तो अपने बेटे के मुंह से यह शब्द सुनकर सुगंधा के तन बदन में हलचल होने लगी और अपने आप ही उसकी नजर एकदम से झुक गई वह शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी,,, क्योंकि वह देख रही थी कि उसका बेटा अब उसके सामने बिल्कुल भी शर्म नहीं कर रहा था,,, फिर भी अपने बेटे की बात सुनकर गहरी सांस लेते हुए वह बोली,,,।)
Tripti or ankit ek din
तू सही कह रहा है अंकित अगर हाथ में लगा देता तो शायद मेरा उठना बैठना भी मुश्किल हो जाता जब बीना सुई लगाए इतना दर्द कर रहा है तो सुई लगाने के बाद कितना दर्द करता ,,,,,, अब जरा मेरी ब्रा का हुक तो खोल दे,,,।
ठीक है मम्मी अभी खोल देता हूं,,,,,(अंकित के बदन में उत्साह के साथ-साथ उन्माद भी फैलने लगा इन शब्दों में कितना रस घुला हुआ था इस बात को केवल अंकित ही समझ सकता था एक औरत के द्वारा एक जवान लड़के को आजा देना कि जाकर उसके वस्त्र उतार दे भला एक मर्द के लिए दुनिया में इससे बड़ा तोहफा और क्या हो सकता है और वह भी एक खूबसूरत औरत के वस्त्र उतारने की बात हो तो बात ही कुछ और हो जाती है,,,,, अंकित अपने मन में सोच रहा था कि वक्त और हालत कितनी जल्दी बदल जाते हैं पता ही नहीं चलता,,, पहले मम्मी अपने इस अंतर्वस्त्र को हमेशा नजरों से छुपा कर रखती थी छत पर कपड़े सुखाने के लिए भी डालती थी तो उसे साड़ी के अंदर डालती थी ताकि उस पर मेरी नजर ना पड़ जाए,,,,,, भूल से भी अपने बदन का ऐसा हिस्सा कभी भी उजागर नहीं होने देना चाहती थी जिसे देखकर मन पर बुरा असर पड़े,,, लेकिन आज देखो हालात और वक्त कितना बदल चुका है कि आज वह खुद अपने ही बेटे को अपने कपड़े उतारने के लिए बोल रही थी,,,।
Sugandha apni chaddhi utarti huyi
यह बदलाव शायद एक मां के अंदर औरतों के जागरूक होने पर आया था वरना जब तक मां का अस्तित्व था तब तक उसके अंदर की औरत कभी बाहर नहीं आई थी बरसों से एक तरह से एकाकी जीवन की रही थी लेकिन फिर भी अपने बदन की प्यास को वह अपने सीने में दफन कर चुकी थी लेकिन वह प्यास उबाल करने लगी थी एक मां के अंदर एक औरत का अस्तित्व छुपा हुआ था जो बाहर आने लगा था और जब एक औरत एक मां के अंदर से बाहर आती है तो फिर वह अच्छे बुरे का ख्याल अपने मन से निकाल देती है इसलिए तो वह अपने बेटे में भी एक मर्द को खोजने लगती है,,,, पर मर्दों का तो हमेशा सही रहा है खूबसूरत बदन पर आकर्षित हो जाना भले ही वह रिश्ते से कितनी करीबी क्यों ना हो उसे हर एक रिश्ते में केवल एक खूबसूरत औरत ही नजर आती है जैसा की अंकित की नजरे देख रही थी बाथरूम के अंदर उसकी मां थी लेकिन वह अपनी मां को नहीं बल्कि यह खूबसूरत औरत को देख रहा था,,,,।
अपनी मां की बात सुनकर अपनी मां की तरफ से आज्ञा पाकर ज्यादा देर तक अंकित अपनी जगह पर बैठा नहीं रह सकता था क्योंकि वह भी उतावला हो रहा था अपनी मां की ब्रा को अपने हाथों से चुने के लिए उसका हक खोलकर उसके जोड़ों को अलग करने के लिए ताकि उसकी मां अपने हाथों से अपनी ब्रा उतार कर अपने दोनों दशहरी आम को उजागर कर दे अपनी चूची को नग्न कर दे,,,, इसलिए जल्दी से अंकित कुर्सी पर से उठा और कदम आगे बढ़ते हुए बाथरूम के दरवाजे पर पहुंच गया उसकी मां दीवाल की तरफ मुंह करके खड़ी थी और शर्म के मारे वह अपनी नजरों को दीवार की तरफ फेर ली थी क्योंकि एक औरत के उजागर हो जाने के बावजूद भी अभी भी उसके अंदर मां का अस्तित्व बाकी था अभी भी उसमें शर्म और हया बाकी थी भले ही अपने बेटे को पूरी तरह से छूट दे रही थी लेकिन शर्म का घूंघट अभी भी उसके बदन पर बना हुआ था,,,,।
अंकित धीरे से अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाया और जैसे ही उसकी उंगलियां उसकी मां की नंगी चिकनी पीठ पर इस पर से हुई एकदम से सुगंधा के बदन में मदहोशी छा गई और हल्का सा उसका बदन उचक गया मानव की जैसे उसके बदन में उन मादकता की लहर उठी हो,,, और यही हाल अंकित का भी हो रहा था अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ का स्पर्श बातें ही उसकी दोनों टांगों के बीच की स्थिति बदलने लगी हालांकि उसका लंड पूरी तरह से टनटनाया हुआ था,,, लेकिन पीठ का स्पर्श बातें ही उसके अंदर इतनी अत्यधिक उत्तेजना का संचार होने लगा कि उसे अपने लंड में दर्द महसूस होने लगा था वह पूरी तरह से पागल हुआ जा रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि उसके लंड में अद्भुत शक्ति का संचार हो रहा है और उसे इतना अत्यधिक विश्वास हो गया था कि अगर मौका मिले तो वह इसी समय अपनी मां की चुदाई कर दे,,,,, लेकिन फिर भी बड़ी मुश्किल से वह अपनी बेकाबू मां को काबू में रखे हुए था,,,,,।
दोनों पट्टीयों को एक दूसरे के सामने खींचना आराम से खुल जाएगी,,,,।
ठीक है मम्मी,,,,(अपनी मम्मी का दिशा निर्देश पाकर वह अपनी मां की ब्रा का हुक को खोलने की कोशिश करने लगा,,, लेकिन ऐसा करने में उसके पसीने छूट जा रहे थे ऐसा नहीं था कि वह अपनी मां के ब्रा का हुक खोल नहीं पा रहा था,,,, वह चाहता तो वह अपने हाथों की ताकत दिखाते हुए अपनी मां की ब्रा को खोले बिना उसे फाड़ कर उसके बदन से अलग कर सकता था,,,, लेकिन एक अद्भुत एहसास उसके तन बदन में नई उत्तेजना का संचार कर रहा था एक औरत का ब्रा खोलने में शुरू-शुरू में एक मर्द को कितनी मस्सकत करनी पड़ती है ,,, वही हाल इस समय अंकित का हो रहा था भले ही वह एक बार क्लीनिक में क्लीनिक के बाथरूम में अपनी मां की चड्डी अपने हाथों से उतर चुका था लेकिन इस समय वह पूरी तरह से उत्तेजित अवस्था में थोड़ा बहुत घबरा रहा था उसके हाथों में कंपन हो रहा था,,,, क्योंकि क्लीनिक के बाथरूम में तो उसकी मां बुखार की वजह से बेहोशी की हालत में थी लेकिन इस समय बाथरूम के अंदर वह पूरी तरह से होशो हवास में थी पूरी तरह से जगाती हुई और ऐसे में अंकित को उसकी ब्रा कहो खोलने में थोड़ी घबराहट हो रही थी जबकि वह अपनी मां से पूरी तरह से आज्ञा पा चुका था,,,।
कुछ देर तक अंकित को इधर-उधर करता देखकर सुगंधा बोली,,,।
क्या कर रहा है अंकित तुझसे ब्रा का हक नहीं खुल रहा है पता नहीं तुझे क्या होगा,,,?(सुगंधा एक तरह से यह बात कह कर अपने बेटे पर व्यंगय कस रही थी एक तरह से वह अपने बेटे की मर्दानगी को ललकार रही थी अंकित भी अपनी मां के कहने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था,,,, और वह अपने मन में बोला मम्मी,,, यह तो मैं बेटे की हैसियत से ब्रा की हुक खोलने की कोशिश कर रहा हूं,,, अगर पूरी तरह से मर्दानगी पर उतर गया तो ब्रा को खोलने की जरूरत नहीं पड़ेगी फाड़ के अलग कर दूंगा,,,। फिर भी वह धीरे से बोला,,)
खोलने की कोशिश तो कर रहा हूं मम्मी लेकिन ब्रा की पट्टी एकदम कसी हुई है ऐसा लग रहा है कि तुम अपनी साइज से कम नाप की ब्रा पहनी हो,,, ।
अरे वह बेटा तेरी नजर तो बहुत तेज है,,,,(अपने बेटे की बात सुनकर खुश होते हुए सुगंधा बोली,,,, और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,) लेकिन तुझे कैसे मालूम पड़ा की साइज से कम नाप की में ब्रा पहनी हूं,,,,।
क्योंकि पट्टी एकदम कसी हुई है अगर ना आपकी पहनती तो मेरी उंगली ब्रा की पट्टी में आराम से चली जाती और मैं आराम से खोल पाता,,,(ब्रा की पट्टीयों में अपनी उंगली को उलझाए हुए वह बोला,,,)
कोई बात नहीं बेटा अभी भी खुल जाएगी ,,रोज तो मै खोलते ही हूं आज मेरा हाथ ऊपर की तरफ नहीं पहुंच रहा है इसलिए दिक्कत आ रही है,,,।
ठीक है मम्मी थोड़ा रुक जाओ,,,(और इतना कहने के साथ ही वह थोड़ा सा दम दिखाया और पट्टी को एक दूसरे के सामने खींचा और हुक एकदम से खुल गया,,,)
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