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Incest मुझे प्यार करो,,,

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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अंकित के तन बदन में आग लगी हुई थी,,, किचन के अंदर जो कुछ भी हुआ उसके बारे में सोचकर उसकी हालत खराब हुई जा रही थी आज पूरी तरह से एकदम नजदीक से एक खूबसूरत औरत की नंगी गांड को महसूस किया था और वह भी अपने चेहरे को उस पर रगड़ कर उसकी गांड की फांकों की गहरी दरार के अंदर अपनी नाक को डालकर उसकी मादक खुशबू को महसूस किया था,,, यह अनुभव अंकित के लिए बिल्कुल नया था मादकता से भरा हुआ जिसके अंदर वह पूरी तरह से नूपुर की जवानी में सरोबोर हो चुका था,,,। वह कभी सोचा नहीं था कि राहुल के घर आने पर उसे इस तरह का अनुभव होगा जो कि उसके जीवन का यादगार पल बनकर रह जाएगा,,,।


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अंकित इस तरह से पहली बार किसी औरत को अपनी भुजाओं के बल पर उठाया था,,, पहले तो उसे यकीन नहीं था कि वह नूपुर को उठाकर चाय का डब्बा उतरवा लेगा ,,, लेकिन एक औरत के सामने वह किसी भी तरह से असफल नहीं होना चाहता था खास करके नूपुर के सामने इसलिए वह इनकार भी नहीं कर पाया था लेकिन नूपुर की जवानी का जोश उसके तन बदन में मर्दाना ताकत भर दी थी जिसके चलते हैं उसने नूपुर को बड़े आराम से उठाकर एक अद्भुत आनंद प्राप्त किया था,,,,। और इसके साथ ही उसे नीचे उतारते समय एक और अनुभव उसे पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में डुबो दिया था उसके पेट में बना हुआ तंबू उसकी गांड की दरार के बीच होता होगा उसकी बुर पर दस्तक देने लगा था जिसका एहसास अंकित के साथ-साथ‌ नुपुर को भी बड़ी अच्छी तरह से हुआ था जिसके चलते वह पानी पानी हो गई थी,,,,।



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अपने बेटे की गैर हाजिरी में वह अंकित के साथ ऐसा चक्कर चलना चाहती थी ताकि उसका जुगाड़ बन सके जब राहुल बाहर पढ़ने के लिए चला जाए और इसीलिए वह अंकित के साथ खुलने चाहती थी और धीरे-धीरे वह अपने इरादे में कामयाब भी हो रही थी चाय बना कर दो कप ट्रे में लेकर वह किचन से बाहर निकलने वाली थी की डोर बेल बजने लगी थी और डोर बेल के बजाने की आवाज सुनते ही उसका दिमाग एकदम से खराब हो गया था,,,। क्योंकि वहां नहीं चाहती थी कि इस समय कोई भी घर में आए और जबकि उसे पूरा विश्वास था कि समय घर पर कोई आएगा भी नहीं क्योंकि राहुल कुछ देर पहले ही घर से निकला था और वह तीन-चार घंटे बाद ही आने वाला था और उसके पति तो ऑफिस का काम खत्म करके शाम को ही लौटते थे लेकिन आज ऐसा लग रहा था कि उसकी किस्मत ही खराब है,,,।


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हाथ में चाय का ट्रे लेकर वह अंकित के सामने टेबल पर ट्रे रखते हुए बोली,,,‌

इस समय पता नहीं कौन आ गया,,,,, तुम चाय पियो में आती हुं,,,,(इतना कहकर वह दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ गई ऐसा नहीं था की डोर बेल बजाने की वजह से नूपुर का ही दिमाग खराब हुआ था अंकित भी अंदर ही अंदर बहुत गुस्सा हो रहा था ,, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई कबाब में हड्डी बने क्योंकि इस समय उसे बहुत मजा आ रहा था आनंद आ रहा था नूपुर की जवानी के साथ खेलकर उसका मन बहक रहा था,,। और उसके मन में उसकी भावनाएं पूरी तरह से जोर पकड़ रही थी क्योंकि उसे ऐसा लग रहा था किसी तरह की हरकत नूपुर उसके साथ कर रही है कहीं ऐसा ना हो जाए कि आज नूपुर की चुदाई करने को उसे मिल जाए लेकिन इस बात को सोचकर उसके मन में इस बात का डर भी था कि आज तक उसने चुदाई तो किया नहीं है है इतना जरुर जानता है की बुर में लंड डाला जाता है लेकिन कैसा अनुभव होता है कैसा लगता है यह उसे नहीं मालूम था क्योंकि वह इस अनुभव से नहीं गुजरा था लेकिन फिर भी तैयार था अगर किसी भी तरह से राहुल की मां उससे चुदवाने के लिए तैयार होती है तो वह उसे जरूर चोदेगा,,,,,, चाय का कप टेबल पर रखा हुआ था लेकिन चाय से ज्यादा मजा राहुल की मां दे रही थी इसलिए वह राहुल की मां की तरफ देख रहा था जो की गांड मटकाते हुए दरवाजे की तरफ जा रही थी,,, और वह भी यही देखना चाहता था कि इस समय कौन आया है कहीं राहुल तो नहीं आ गया अगर वह आ गया होगा तो क्या सोचेगा,,,,।


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अंकित अपने मन में यही सब सो रहा था कि तभी दरवाजा खुला और सामने अपने पति को देखकर मन ही मां नूपुर उसे गाली देते हुए सहज होने का नाटक करते हुए बोली,,,,।

अरे आप इतनी जल्दी आ गए,,,।

हां वह क्या है ना कि आज थोड़ा सर दर्द हो रहा था इसलिए आधे दिन की छुट्टी लेकर आ गया,,,,(हाथ में लिया हुआ देख नूपुर को थमाते हुए नूपुर का पति बोला,,,० और धीरे से कमरे में प्रवेश किया नूपुर दरवाजा बंद कर दी ,,, नूपुर के पति की नजर जैसे ही अंकित पर पड़ी वह एकदम से थोड़ा सा चौंकते हुए बोला,,,)

तुम,,,,, तुम्हें शायद मैं नहीं जानता कौन हो तुम,,,,?.

(नूपुर के पति की बात सुनकर अंकित कुछ बोलता है इससे पहले ही नूपुर बोली,,,)

मेरे साथ ही पढ़ती हैं उनका लड़का है अंकित और यह अपने राहुल का बहुत अच्छा दोस्त है राहुल से मिलने आया था लेकिन राहुल घर पर नहीं है,,,।



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ओहहह,,, तो तुम राहुल के दोस्त हो,,,,।

नमस्ते,,,(अपनी जगह से खड़े होते हुए) जी अंकल,,,

बैठ जाओ बैठ जाओ,,,,,,(नूपुर के पति की बात सुनकर अंकित फिर से अपनी जगह पर बैठ गया लेकिन मन ही मन राहुल के पापा को बहुत गाली दे रहा था क्योंकि इस समय वह ख्वाब में हड्डी बन चुके थे,,, टेबल पर रखी चाय का कप देखकर राहुल के पापा भी पास ही पड़ी कुर्सी को खींचकर टेबल के पास बैठ गए और बिना कुछ बोल ही चाय का कप लेकर चुस्की लेने लगी और साथ ही अंकित को बोले,,,,)

चाय पियो बेटा ठंडी हो जाएगी,,,,।

जी अंकल,,,,,(अंकित तुरंत हाथ बढ़ाकर चाय का कप हाथ में ले लिया और अपने मन में ही बोला आप चाय पीने से क्या फायदा चाय के साथ-साथ अरमान भी ठंडा पड़ गया,,,, और फिर चुस्की लेने लगा,,,, नूपुर पास में ही खड़ी होकर गुस्से से अपने पति की तरफ देख रही थी आज उसके पूरे अरमान पर उसके पति ने ठंडा पानी जो डाल दिया था पूरी तरह से अंकित का साथ पाकर वह गर्म हो चुकी थी और उसे पूरा यकीन था कि कुछ ही देर में वह जरूर अंकित के लंड को अपनी बुर में ले लेगी क्योंकि इसके लिए वह पूरी तरह से तैयार भी हो चुकी थी,,,।



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अंकित चाय पी चुका था आपको जानता था कि उसका वहां रहना आप उचित नहीं था और कोई मायने भी नहीं रखता था क्योंकि उसके पति के लिए हाजरी में कुछ भी होने वाला नहीं था इसलिए वह धीरे से अपनी जगह से उठ गया और नूपुर की तरफ देखते हुए बोला,,,।

अच्छा आंटी मैं चलता हूं मुझे देर हो रही है,,,,।

ठीक है बेटा,,,,,

नमस्तेअंकल,,,

खुश रहो,,,,।

(राहुल के पापा के मुंह से यह सुनकर अंकित अपने मन में बोला खुश रहने दोगे तब ना इतना अच्छा मौका मिला था बेवजह चले आए,,, और इतना कहने के साथ ही वह दरवाजे की तरफ जाने लगा तो नौकरी उसके पीछे-पीछे जाने लगी,,, दोनों दरवाजे पर पहुंच गए अंकित दरवाजा खोलकर घर से बाहर निकाल कर एक बार फिर से नूपुर की तरफ देखा तो नुपुर उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोली,,, )



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चले आया करो अंकित,,,, इसे अपना ही घर समझना,,,,(ऐसा कहते हुए नूपुर जानबूझकर दरवाजे के दोनों तरफ दोनों हाथ रखकर अपनी छाती को बाहर की तरफ निकली हुई थी या यूं कह लो की एक तरह से वह अंकित को अपनी चूचियों की गोलाइ दिखा रही थी और अंकित उसकी छाती की तरफ देख भी रहा था,,,,)

जी आंटी जरूर आऊंगा,,,,।

वैसे चाय बनाने में जिस तरह से तुमने मेरी मदद किए हो अगर खाना बनाने में मेरी मदद करते तो मजा आ जाता,.

कोई बात नहीं आंटी अगर मौका मिलेगा तो खाना बनाने में भी मदद करूंगा,,,,।

और हां यह पूछना तो भूल ही गई सुगंधा स्कूल क्यों नहीं आ रही,,,।



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अरे हां आंटी में भी बताना भूल गया मम्मी की तबीयत खराब है इसलिए दो-तीन दिन तक और नहीं आ पाएंगी,,,।

अरे ऐसा क्या हो गया जो दो-तीन दिन तक नहीं आ पाएंगी,,,(नूपुर एकदम हैरान होते हुए बोली,,,)

वह क्या है ना मम्मी को थोड़ा मलेरिया का असर हो गया था इसलिए डॉक्टर दो-तीन दिन आराम करने के लिए बोला है वैसे तो अभी आराम है लेकिन दो-तीन दिन और आराम कर लेंगी तो अच्छा रहेगा,,,।

वैसे कोई दिक्कत वाली बात तो नहीं है ना,,,।

नहीं नहीं आंटी ऐसी कोई भी बात नहीं है सब एकदम नॉर्मल बस दो-तीन दिन औपचारिकता बस आराम करना है,,,।



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चलो कोई बात नहीं,,,, और तुम भूलना नहीं आते रहना,,,,,।

जी आंटी आते रहूंगा,,,,(और इतना कहने के साथ ही अंकित थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए अपने पेट में बने तंबू को हाथ से पकड़ कर उसे नीचे दबने की जानबूझकर कोशिश करने लगा वह नूपुर का ध्यान अपनी पेंट के ऊपर लाना चाहता था और ऐसा ही हुआ ,,, अंकित की हरकत को देखकर नूपुर का ध्यान अपने आप ही उसके पेंट में बने तंबू पर गया जो की अभी-अभी बना था पर उसे देखकर मुस्कुरा दी और अंकित भी मुस्कुराकर अपने घर की तरफ चलने लगा,,,,।

उसके पेंट में बना तंबू देखकर नुपुर का मुस्कुराना अंकित को पूरी तरह से मदहोश कर गया था और अंकित जिस तरह से मुस्कुराया था उसे देखकर नूपुर समझ गई थी कि उसकी युक्ति कम कर गई है आपको समझ गई थी कि उसकी जवानी का कायल हो चुका है अंकित,,, अब उसके पास आए बिना वह भी नहीं रह पाएगा,,,




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इधर-उधर टहलता हुआ अंकित शाम को अपने घर पर पहुंचा घर पर पहुंचने पर देखा कि उसकी बहन तृप्ति की मां के साथ ही है इसलिए निराश हो गया और अपने कमरे में चला गया,,, ऐसा तीन-चार दिन तक चला वह मौका खोजता रहा लेकिन अपनी मां से अकेले में मिल नहीं पाया और ऐसा सुगंधा भी चाहती थी लेकिन तृप्ति के होते हुए ऐसा हो नहीं पाया,,, मां बेटे दोनों निराश थे ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि दोनों के मन की बात है दोनों जानते थे लेकिन दोनों के बीच इस तरह की हरकत हो चुकी थी जिस तरह से अंकित ने बीमार होने पर उसकी मदद किया था उसे देखते हुए दोनों के बीच आकर्षण बन गया था दोनों एक दूसरे के आकर्षण में पूरी तरह से मजबूर हो चुके थे,,,, और घर के पीछे जिस तरह से उसकी मां बैठकर पेशाब कर रही थी और पीछे मुड़कर अंकित कोई देख रही थी यह सब दोनों मां बेटे के बीच शारीरिक आकर्षण को और भी ज्यादा गहरा बना दिया था,,,,।




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सुगंधा बिल्कुल ठीक हो चुकी थी और वह स्कूल जाने के लिए तैयार थी और वह रसोईघर में खाना बना रही थी तृतीय तैयार होकर कॉलेज जा चुकी थी,,,, अंकित भी तैयार था लेकिन उसने अभी नाश्ता नहीं किया था इसलिए रसोई घर में आया और दरवाजे पर खड़े होकर अपनी मां को देखने लगा,,, रोटी बेलती हुई उसकी मां बेहद खूबसूरत और कामुक लग रही थी क्योंकि जिस तरह से वह हाथ चल रही थी उसके नितंबों में थिरकन हो रही थी और उसकी बड़ी-बड़ी गांड थरथरा रही थी जिसे देखकर उसका लंड अंगड़ाई ले रहा था,,,,, अंकित को इस तरह से अपनी तरफ देखता हुआ पाकर सुगंधा मुस्कुराते हुए बोली,,,,।

क्या हुआ ऐसे क्यों देख रहा है ऐसा लग रहा है कि जैसे बरसों से देखा ही नहीं है,,,,।

सच में मम्मी ऐसा ही लग रहा है तुमसे बात किए तीन दिन हो गए हैं पर ऐसा लग रहा है जैसे 3 साल गुजर गए हो,,,।

Sugandha or ankit kuch is tarah se

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मुझे भी ऐसा हीं लग रहा है,,,,,, तुझसे बात किए बिना अच्छा नहीं लगता,,,,।

(दोनों की तड़प एक जैसी ही थी,,,, दोनों एक दूसरे से बात किए बिना परेशान थी और अभी मौका मिलते ही दोनों आपस में बात करना शुरू कर दिए थे और आपस में बात करते हुए दोनों के बदन में अजीब के हलचल हो रही थी दोनों का मन और तन दोनों उत्तेजित हुआ जा रहा था,,,। अंकित धीरे से रसोई घर में प्रवेश किया वह अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को देख रहा था उसके पिछवाड़े को देख रहा था और उसका मन कर रहा था कि पीछे से जाकर अपनी मां को बाहों में भर ले और उसे जी भर कर प्यार करें और अपने तंबू को उसकी गांड पर जोर-जोर से रगड़े लेकिन इतनी हिम्मत अभी उसमें नहीं थी बस सोचकर ही अपने मन को बहला रहा था,,,,)

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जल्दी से नाश्ता कर ले मुझे भी स्कूल जाने के लिए तैयार होना है समय भी हो रहा है,,,।

ठीक है जल्दी से दो,,,,(इतना कहने के साथ ही वह रसोई घर में ही नीचे जमीन पर पलाथी मार कर बैठ गया यह देखकर सुगंधा बोली,,)

अरे रे,,, यह कहां बैठ गया तू बाहर जाकर कुर्सी पर बैठ में लेकर आती हूं,,,,।

नहीं नहीं मैं यहीं बैठकर खाऊंगा तुम्हारे पास तुम्हें देखते हुए,,,,।
(अंकित की यह बात सुनकर सुगंधा मन ही मन प्रसन्न होने लगे और उसके चेहरे पर शर्म के भाव नजर आने लगे,,, और वह धीरे से बोली,,,)

अरे वाह तू तो फिल्मी डायलॉग मारने लगा है,,,, ऐसा लग रहा है कि जैसे कोई हीरो अपनी हीरोइन से बातें ही कर रहा हो,,,,।


इसमें क्या हो गया मम्मी तुम किसी हीरोइन से कम हो क्या कितनी खूबसूरत लगती हो,,,,,।

(अंकित की बात सुनकर सुगंधा के गाल शर्म से लाल होने लगे वह खाना बनाते हुए शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी और मदहोश में जा रही थी अपने बेटे की बात सुनकर अंदर ही अंदर खुश होते हुए बोली)

चल रहने दे बातें बनाने को मस्का लगा रहा है खाली,,,।

नहीं मम्मी में मस्का नहीं लगा रहा हूं मैं सही कह रहा हूं,,,, तुम बहुत खूबसूरतहो,,,।

यह तू कह रहा है ना ऐसा तो मुझे कभी नहीं लगा,,,।


Sugandha or ankit

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खूबसूरती का पता खुद को थोड़ी चलता है दूसरों को ही पता चलता है कि सामने वाला कितना खूबसूरत है,,,,।
(अंकित की बातें सुगंधा को मदहोश कर रही थी अंकित के मुंह से निकला है एक-एक शब्द ऐसा लग रहा था की सुगंध के कानों में रस घोल रहा हो जिसे सुनने में सुगंध को भी बहुत मजा आ रहा था लेकिन वह जानती थी कि स्कूल जाने के लिए उसके पास समय बहुत कम है उसे जल्दी तैयार भी होना है इसलिए वह जल्दी से नाश्ता प्लेट में निकाल कर और चाय का कप अपने हाथ में लेकर अंकित के सामने जमीन पर रखती हुई बोली,,,)

अच्छा फिल्मी हीरो डायलॉग मारना बंद करो और जल्दी से नाश्ता कर लो,,, बहुत देर हो रही है,,,।

(अंकित का मन अपनी जगह से हटने का बिल्कुल भी नहीं कर रहा था वह अपने मन में सोच रहा था कि काश दिनभर इसी तरह से बैठकर अपनी मां के पिछवाड़े को देखता तो कितना मजा आता ,,, लेकिन वह भी जानता था कि वाकई में समय काम था इसलिए अभी नाश्ता करने लगा और साथ ही अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को हिलते हुए देखने लगा कसी हुई साड़ी में उसकी गांड और भी ज्यादा खूबसूरत और बड़ी-बड़ी लग रही थी,,,,,।


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सुगंधा अपने मन में सोच रही थी कि उसका बेटा कुछ बोले उसकी खूबसूरती की तारीफ करें लेकिन वह नष्ट करने लगा था इसलिए सुगंधा भी खामोशी लेकिन तभी उसे कुछ याद आया हो इस तरह से चहकते हुए बोली,,,)


अरे हां मुझे याद आया उसे दिन तो तू बहुत बड़ा बन रहा था और बोल रहा था कि मैं तुम्हारे लिए यह खरीद दूंगा वह खरीद दूंगा,,,,।

(अपनी मां की बात सुनते ही अंकित को एकदम से याद आ गया कि वाकई में वहा अपनी मां के लिए चड्डी खरीदना चाहता था और इसके लिए उसकी मां उसे इजाजत भी दे दी थी लेकिन फिर भी जिस तरह से उसकी मां बोल रही थी वह जानबूझकर अनजान बनते हुए बोला,,,)

क्या खरीदना कुछ खुलकर बताओ ऐसे कहां पता चलेगा कि क्या खरीदने के लिए बोला था,,,,।

चल रहने दे तुझे सब मालूम है सिर्फ बातें बना रहा है,,,।

नहीं मम्मी सच में मुझे नहीं मालूम क्या खरीदने के लिए बोला था,,,।

अरे वही चड्डी खरीदने के लिए बोला था ना,,,

अरे हां मुझे याद आया,,,, तो क्या तुम अभी भी बिना चड्डी के खड़ी हो अंदर कुछ नहीं पहनी हो,,,,।

मेरे पास है कहां जो पहनू एक थी तो तू भी उसे न जाने कैसे फाड़ दिया एकदम गोल गोल उंगली से फाडा की पता नहीं क्या डालकर फाड़ा है,,,।
(इतना सुनते ही अंकित का लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा हो गया क्योंकि जिस तरह से उसकी मां बोल रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे शक हो गया हो कि उसकी चड्डी का छेद बड़ा कैसे हो गया,,,, फिर भी अपनी मां की बात सुनकर वह बोला,,,)

Sugandha or ankit

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क्या मम्मी तुम भी मुझे अच्छी नहीं लगी तो उंगली से मैंने उस छेंद को फैला दिया उसमें कुछ डाला थोड़ी ना हूं तुम्हें क्या लगता है कि उसमें मैंने कुछ और डाला हूं,,,,,।

चड्डी की हालत देखकर लगता नहीं की तेरी उंगली से वह छेद बड़ा हुआ है,,,, उसमें कुछ और डाला गया है तभी उसकी चौड़ाई एकदम से बढ़ गई,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर अंकित एकदम हैरान हो गया,,, ईस बात का डर था कि कहीं उसकी मां को पता तो नहीं चल गया कि उसकी चड्डी का छेद बड़ा कैसे हो गया है,,।)

क्या मम्मी तुम्हें तो लगता है कि जैसे मैं उंगली नहीं अपना वो,,,,(इतना क्या करवा एकदम से रुक गया लेकिन सुगंध अपने बेटे के कहने का मतलब का अच्छी तरह से समझ गई थी और अंकित अपनी बात का रुख बदलते हुए बोला,,,) अच्छा छोड़ो क्या तुम सच में अभी भी कुछ भी नहीं पहनी हो मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि तुम्हारे पास एक ही चड्डी है,,,।


Nupur or ankit

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हारे में सच कह रही हूं अंदर कुछ नहीं पहनी हूं,,, अब क्या तुझे अपनी साड़ी उठाकर दिखाओ,,,।

दिखा दो इसमें क्या हुआ,,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि उसका बेटा सीधे-सीधे उसे अपनी साड़ी उठाने को कह रहा था ताकि वह यह देख सके कि वह चड्डी पहनी है कि नहीं और सुगंधा यह भी जानती थी की साड़ी कमर तक उठा देने पर उसका बेटा सिर्फ यही नहीं देखेगा कि वह चड्डी पहनी है कि नहीं बल्कि उसकी बुर के दर्शन करके धन्य हो जाएगा,,,, और इस बात का डर नहीं बल्कि सुगंधा के मन में उत्सुकता थी क्योंकि उसकी बात सुनकर वह अभी अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी नंगी जवान को उजागर करने के लिए तड़प रही थी लेकिन फिर भी इस समय न जाने क्यों उसे शर्म महसूस हो रही थी,,,। फिर भी वह जानबूझकर थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,)

किसी बातें कर रहा है तू अपने तुझे साड़ी उठाकर दिखा दुं,,।

तो इसमें क्या हो गया मम्मी दिखा दो ना,,,,।

इसका मतलब है कि तुझे मेरी बातों पर विश्वास नहीं है तुझे लगता है कि मैं अंदर चड्डी पहनी हूं,,,।

इसलिए तो देखने को बोल रहा हूं देख लूंगा तो मुझे भी यकिन हो जाएगा कि वाकई में तुम्हारे पास चड्डी नहीं है,,,।

Nupur ki chudai

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(जिस तरह से अंकित जिद कर रहा था उसकी जीद देखकर सुगंधा की बुर पानी छोड़ रही थी वह मदहोश हो रही थी उसे अच्छा लग रहा था अंकित का इस तरह से जिद करना,,,, और मौके की नजाकत और समय का अभाव देखकर ज्यादा न होकर करना सुगंधा को भी ठीक नहीं लग रहा था इसलिए वह बोली,,,)

चल फिर तेरी शंका को दूर कर देते हैं नहीं तो तू हमेशा मुझे झूठी समझना रहेगा कि मेरे पास पेंटिं है और मैं जानबूझकर तुझे ना कह रही हूं,,,।

(और इतना कहने के साथ ही सुगंधा अंकित की तरह पीठ करके खड़ी हो गई और धीरे-धीरे अपनी साड़ी को उठाने लगी है देखकर अंकित का दिल जोरों से धड़कने लगा और उसे इस बात की खुशी होने लगी थी उसकी मां इतनी जल्दी उसकी बात मान गई और देखते-देखते उसकी मां धीरे-धीरे अपनी साड़ी को घुटनों तक उठा दी थी और उसके बाद एक झटके से साड़ी को अपनी कमर तक उठाकर अपनी नंगी गांड को दिखाते हुए वह बोली,,,)

Sugandha kapde pahanti huyi

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ले देख ले अच्छे से मैं क्या चड्डी पहनी हूं,,,।

(अंकित क्या कहता अपनी मां की जवानी देख कर तो उसकी बोलती बंद हो गई थी वह तो आंख फाड़े अपनी मां की नंगी गांड को देख रहा था,,, उसकी सांसे बड़ी तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी ,,, और सुगंधा भी जानबूझकर अपनी साड़ी कमर तक उठाया अपने बेटे को अपनी नंगी गांड दिख रही थी वह जानती थी की औरतों का कौन सा अंग देखकर मर्द ज्यादा उत्तेजित और विवस हो जाते हैं उसे पाने के लिए,,,, सुगंधा जानबूझकर अंकित की तरफ अपनी पीठ करके खड़ी थी ताकि वह उसे अपनी गांड दिखा सके वह चाहती तो इसी समय अपने बेटे को अपनी बुरे भी दिखा सकती थी लेकिन वह जानती थी कि अपनी जवानी के बेस कीमती खजाने को मर्द के सामने कब उजागर करना है वह अपने बेटे को थोड़ा और तड़पाना चाहती थी और कुछ सेकेंड तक खड़े रहने के बाद अपने बेटे का जवाब सुने बिना ही सुगंधा अपनी साड़ी को वापस नीचे कर दी और अंकित की तरफ देखकर कर बोली,,,,।


Chuchiyo par peticoat ki dori kasti huyi sugandha

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देख लिया ना तुझे तसल्ली हुई कि मैं अंदर कुछ पहनी हूं कि नहीं पहनी हूं,,,,।

(अंकित क्या बोलता उसकी तो वह खुद बोलती बंद कर दी थी अपनी जवानी दिखाकर फिर भी अपने आप को सहज करता हुआ वह धीरे से बोला,,,)

वाकई में मम्मी तुम तो अंदर कुछ नहीं पहनी हो इसका मतलब सच में तुम्हारे पास चड्डी नहीं है,,,।

तो क्या और तुझे लग रहा था कि मैं झूठ बोल रही हूं,,,,। अब बोल खरीदेगाकि नहीं,,,,।

खरीद तो लाऊंगा ,,, लेकिन मेरे पास तुम्हारा नाप नहीं है,,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा मुस्कुराने लगी)

..bathroom me chudwati huyi nupur

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Gazab ki update he rohnny4545 Bhai,

Maa bete ke beech ab sharam ka parda gir gaya he........

Jaldi hi inka milan hoga........

Keep rocking Bro
 

Sanju@

Well-Known Member
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अंकित सही समय पर आकर अपनी मां को दवा खाने ले गया था और वहां से दवा दिला कर वापस घर पर ले आया था शाम के वक्त ब्लड और पेशाब का रिपोर्ट लेने जब दवा खाने गया तो वहां पता चला कि ज्यादा कुछ नहीं बस हल्का सा मलेरिया का असर था,,, रिपोर्ट के बारे में सुनकर अंकित को थोड़ी राहत हुई,,, और वह यह खबर जब घर पर पहुंच कर अपनी मां को दिया तो वह हैरान हो गई,,, अपने रिपोर्ट के बारे में सुनकर नहीं बल्कि ब्लड और पेशाब के सैंपल के बारे में सोचकर,,,।



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तृप्ति जब रिपोर्ट के बारे में सुनी तो उसे भी राहत हुई और वहां अपनी मां से बोली की तीन दिनों तक वह बिल्कुल भी काम ना करें मैं दोनों टाइम पर खाना बना लूंगी और घर का काम कर लूंगी और चाय बनाने के लिए वह रसोई घर में चली गई,,, कमरे में केवल अंकित और उसकी मां थी,,,, अंकित इस बारे में बिल्कुल भी नहीं जानता था कि उसकी मां को ब्लड और पेशाब के सैंपल के बारे में कुछ भी पता नहीं है,, इसलिए वह आराम से अपनी मां के पास बैठ गया उसकी मां भी धीरे से उठकर दीवार का टेका लेकर बिस्तर पर बैठी रह गई,,, और पिछले चार-पांच घंटे के बारे में सोचने लगी जो कि उसके जेहन में बिल्कुल भी उसे पल की तस्वीर नहीं छपी हुई थी जिसके बारे में वह सोचने की कोशिश कर रही थी,,, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह पूरी कोशिश कर रही थी उन सब के बारे में सोने के लिए लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था यह सब कैसे हुआ कब हुआ उसे कुछ मालूम नहीं था और अंकित था कि अपनी मां को सहज होता हुआ देखकर बहुत खुश नजर आ रहा था,,,।


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वैसे भी आज बाथरूम में जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में सोचकर उत्तेजना की चिंगारी रह रहकर उसके तन बदन में जवानी के शोले को भड़का दे रही थी क्योंकि बाथरूम वाला नजारा ही कुछ गजब का था,, क्योंकि वह बार-बार अपने मन में यही सोच रहा था कि जिस तरह का मौका उसे दवा खाने के बाथरूम में मिला अगर वही मौका घर के बाथरूम में मिल जाए तो वह अपनी मां की बुर का भोसड़ा बना देगा,,,, अपनी मां की खूबसूरत चेहरे की तरफ देखते हुए अंकित बोला,,,।

अब कैसा लग रहा है मम्मी,,,?

अभी तो ठीक लग रहा है लेकिन बदन में थोड़ा-थोड़ा दर्द है,,,(अंकित के सवाल पर अंकित की तरफ देखते हुए सुगंधा बोली,,,)

मैं दवा लेकर आया हूं चाय पीने के बाद दवा पी लेना दर्द भी ठीक हो जाएगा,,,,।



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वह सब तो ठीक है लेकिन ब्लड और पेशाब की सैंपल का क्या माजरा है,,।

अरे मम्मी तुम्हारी तबीयत ही कुछ ज्यादा खराब थी इसलिए डॉक्टर को ब्लू और पेशाब का सैंपल लेना पड़ा रिपोर्ट के लिए और यह तो अच्छा हुआ कि रिपोर्ट में ज्यादा कुछ निकला नहीं बस हल्का सा मलेरिया कस रही है जो की दवा खाने के बाद दो-तीन दिन में ही सब सही हो जाएगा,,,,।

अरे वह सब तो ठीक है लेकिन जो कुछ भी हुआ मुझे उसके बारे में कुछ भी याद नहीं है,,,।

मम्मी तुम्हारी तबीयत इतनी खराब थी कि मैं ही तुम्हें सहारा देकर घर के बाहर ले गया औटो किया और वहां से दवा खाने ले गया,,,,।


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तु मुझे दवा खाने ले गया,,, तो तृप्ति कहां थी,,,,?(एकदम आश्चर्य जताते हुए सुगंधा बोली,,)

तृप्ति कहां थी वह तो ट्यूशन गई हुई थी मै हीं तुम्हें दवा खाने ले गया था,,,,।

मतलब तेरे साथ तृप्ति नहीं थी,,,(फिर से हैरान होते हुए बोली)

क्या मम्मी बता तो रहा हूं कि मैं ही तुम्हें दवा खाने ले गया था तृप्ति को घर पर थी ही नहीं तुम बीमार हो इस बारे में तो तृप्ति को घर पर आने पर पता चला,,, क्या तुम्हें सच में कुछ भी याद नहीं है,,,।

नहीं मुझे तो बिल्कुल भी याद नहीं है मुझे इतनी जोर का बुखार था कि होश ही नहीं था,,,।

तभी तो तुम्हारी हालत देखकर डॉक्टर ने रिपोर्ट निकालने के लिए बोला था,,,,।


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(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा के होश उड़ने लगे क्योंकि उसे कुछ भी याद नहीं था,,,, उसके बेटे का घर से सवाल के लिए उसे लेकर जाना सहारा देकर दवा खाने पहुंचाना और वहां से घर लेकर आना यह सब तो ठीक था लेकिन पेशाब और ब्लड की रिपोर्ट के बारे में उसे कुछ भी याद नहीं था और यही सबसे ज्यादा परेशान कर देने वाली बात थी ब्लड की बात तक भी ठीक थी लेकिन पेशाब,,, पेशाब का सैंपल डॉक्टर ने कैसे लिया यही सोचकर परेशानी जा रही थी क्योंकि उसे तो कुछ पता ही नहीं था,,,, अपने बेटे की बात सुनकर,, सुगंधा हैरान होते हुए बोली,,)

सब तो ठीक है लेकिन ब्लड और पेशाब का सैंपल कैसे लिया इस बारे में भी मुझे कुछ भी याद नहीं है,,,।

(अपनी मां की बात सुनकर वह कुछ क्षण तक अपनी मां के खूबसूरत लेकिन आश्चर्य भरे चेहरे की तरह देखने लगा और फिर वह भी हैरान होते हुए बोला)


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क्या तुम्हें नहीं मालूम है ब्लड और पेशाब का सैंपल कैसे लिया गया,,,,


मैं तभी तो हैरान हूं मुझे कुछ भी पता नहीं है,,,, तु मुझे शुरू से बता,, क्या हुआ,,,,?

(अंकित हैरान था क्योंकि घर से लेकर के दवा खाने में जो कुछ भी हुआ था उसकी मां को बिल्कुल भी याद नहीं था अब उसे यह नहीं समझ में आ रहा था कि बाकी मैं उसकी मां को याद नहीं था कि वह जानबूझकर कुछ भी याद न होने का बहाना कर रही है लेकिन फिर वह अपने मन में सोचा कि आखिर उसकी मां ऐसा करेगी क्यों,,,, उसकी तबीयत वाकई में कुछ ज्यादा ही खराब थी बुखार से उसका बदन तप रहा था,,,,,,, यह सब सोते हुए अंकित अपने मन में सोचा हो सकता है वाकई मम्मी सच कह रही है,,,, और थोड़े ही देर में उसके दिमाग में चमक होने लगी उसे शरारत सुझने लगी,,, वह अपने मन में ढेर सारी बातें सोचने लगा और ऐसी बातें सोचने लगा जो उसे अपनी मंजिल तक ले जा सकते थे मां बेटे के बीच की दूरी को खत्म कर सकते थे वह समझ गया था कि वह ऐसी कहानी बनाएगा कि उसकी मां पानी पानी हो,,,, जाएगी,,,,,, अपने बेटे को इस तरह से सोच में डूबा हुआ देखकर सुगंधा बोली,।)


अंकित अपनी मां के बारे में सोचकर


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अब तू क्या सोचने लगा क्या तुझे भी कुछ भी याद नहीं है,,,,।

नहीं नहीं मुझे तो सब कुछ याद है लेकिन मैं इस बात से हैरान हूं कि वाकई में तुम्हें कुछ भी याद नहीं है दवा खाने में क्या हुआ कैसे वहां पहुंची डॉक्टर ने क्या कहा सैंपल के बारे में क्या कुछ भी याद नहीं है,,,,।(अंकित अपने मन में उठ रहे शक को दूर कर लेना चाहता था इसलिए पूछ रहा था,,)


अरे बुद्धू मुझे कुछ भी याद होता तो मैं तुझसे भला क्यों पूछती,,,,।


Ankit ki kalpna apne ma k sath

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बात तो सही है मम्मी लेकिन फिर भी,,,, कोई बात नहीं बुखार ही इतना ज्यादा था कि इंसान होश में ही ना हो,,,, चलो कोई बात नहीं मैं शुरू से बताता हूं,,,,।

(अंकित का इतना कहना था कि तृप्ति चाय बनाकर तीन कप ट्रे में रखकर और कुछ बिस्किट लेकर अपनी मां के कमरे में दाखिल होते हुए बोली)

लो तैयार हो गई चाय,,,

(अंकित अच्छी तरह से जानता था कि उसकी बड़ी बहन की मौजूदगी में दवा खाने में जो कुछ भी हुआ था वह बताना उचित नहीं था,,,, और शायद इस बात को सुगंधा भी अच्छी तरह से समझते थे इसलिए तृप्ति की मौजूदगी में उसने उस बात की जिक्र ही नहीं छेड़ी,,,)
अंकित का अपनी मां को लेकर बाथरूम की कल्पना

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लो मम्मी,,, एक कप उठा लो,,,,,(अंकित की तरफ ट्रे बढाते हुए,,) ले तु भी ले ले,,,,(अंकीत भी हाथ बढ़ाकर चाय का कप ले लिया,,, और ट्रे में से बिस्कुट लेकर खाने लगा और चाय पीने लगा,,,,, तृप्ति भी एक छोटा सा टेबल अपनी मां के बिस्तर के पास लाकर उसे पर बैठ गई और चाय पीने लगी और चाय पीते हुए बोली,,,,।

मम्मी तुम्हारी तबीयत खराब थी तो सुबह बोलना चाहिए था ना मैं कॉलेज नहीं जाती,,,, खामखा तुम्हे परेशान होना पड़ा,,,,,(चाय की चुस्की लेते हुए तृप्ति बोली,,,)

अरे मुझे अगर पता होता कि मेरी तबीयत इतनी ज्यादा खराब होने वाली है तो क्या मैं दवा नहीं ले लेती,,,, मुझे तो लगा आराम कर लूंगी तो ठीक हो जाएगा क्योंकि बदन में सिर्फ दर्द ही लग रहा था यह तो बाद में एकदम तेज बुखार हो गया और मुझे कुछ पता ही नहीं चला,,,,( सुगंधा भी चाय की चुस्की लेते हुए बोली,,,)

बाथरूम की कल्पना मे अपनी मां की चुदाई करता हुआ अंकित

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बात तो सही कह रही है मम्मी अगर हम दोनों को भी इस बात का पता चला की मम्मी की तबीयत खराब लग रही है तो क्या हम दोनों पढ़ने के लिए जाते नहीं ना,,,, यह तो एकाएक तबीयत खराब हो जाती है,,, मैं भी जब पढ़कर घर पर लौटा तो मुझे नहीं मालूम था कि मम्मी घर पर होगी लेकिन जब देखा,,, दरवाजा बाहर से खुला हुआ है ताला नहीं लगा हुआ है तो मुझे लगा कि शायद दीदी तुम होगी,,,, जब अंदर जाकर देखा तो तुम नहीं थी तो मम्मी के कमरे में गया और मम्मी बेसुध होकर सो रही थी,,,, सो क्या रही थी दर्द से कहर रही थी,,,, मैं दो बार आवाज भी लगाया मम्मी मम्मी की मम्मी तो कुछ बोल नहीं रही थी,,,, और जब मैं मम्मी के माथे पर हाथ रख तो मम्मी का माथा एकदम तप रहा था,,, और फिर मैं दवा खाने ले गया,,,,।


Ankit apni ma k sath kalpna karta hua

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(तृप्ति के साथ-साथ,,, सुगंधा भी बड़े ध्यान से अंकित की बात को सुन रही थी लेकिन अंकित ने ब्लड और पेशाब के सैंपल के बारे में कुछ भी नहीं बताया और तृप्ति के सामने न जाने क्यों सुगंध भी खामोश रही और इस बारे में जिक्र नहीं की क्योंकि उसे अंदर ही अंदर ऐसा लग रहा था कि जरूर कुछ हुआ होगा इसलिए वह इस समय बिल्कुल भी जिक्र नहीं की और अंकित की बात सुनकर तृप्ति बोली,,,।)



अच्छा हुआ अंकित तू घर पर मौजूद था वरना मम्मी की तबीयत और ज्यादा खराब हो जाती सही समय पर तूने मम्मी को दवा खाने लेकर दवा दिलाया यही उनके सेहत के लिए अच्छी बात है,,,,।


Ankitapni ma k sath

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(कुछ देर तक तीनों में इसी तरह से बातें होती रही,,, सुगंधा की तबीयत अब दुरूस्त थी,,, वह अंकित से जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में सुनना चाहती थी लेकिन तृप्ति की मौजूदगी में ऐसा संभव बिल्कुल भी नहीं था इस बात को सुगंधा भी समझने लगी थी,,, क्योंकि सहज होता तो इसी समय अपनी बड़ी बहन की मौजूदगी में वह सब कुछ बता देता लेकिन अंकित खामोश रहा क्योंकि वह बात नहीं जा रहा था उसी समय तृप्ति चाय लेकर आ गई थी और अगर दवा खाने में जो कुछ भी हुआ था वह सामान्य होता तो प्रीति के सामने भी बताने में अंकित को कोई हर्ज नहीं होता,,,, सुगंधा को थोड़ा आराम लगने लगा था,,, इसलिए वह अपने बिस्तर से उठने की कोशिश करते हुए बोली,,,)

खाना बनाने का समय हो रहा है मैं खाना बना देती हूं,,,(सुगंधा का इतना कहना था कि तृप्ति तुरंत अपना हाथ उसके कंधों पर रखकर उसे दबाते हुए बैठने का इशारा करते हुए बोली,,,)

बिल्कुल भी नहीं अब दो-तीन दिन तक तुम आराम करो मैं बना दूंगी बस मुझे बता दो बनाना क्या है,,,,।

अरे रहने दे मैं बना लुंगी,,,(फिर से उठने की कोशिश करते हुए सुगंधा बोली तो फिर से तृप्ति उसे रोक दी और बोली)
Kalpna me Ankit or sugandha

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क्या मम्मी तुम भी दो-तीन दिन आराम करो मैं बना दूंगी ना बस बता दो क्या बनाना है,,,।

हां मम्मी बता दो ना दीदी बना देगी वैसे भी तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है तो दो-तीन दिन तक आराम ही करो,,,,।

अच्छा सुन दाल चावल ही बना दे,,,,।

ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहने के साथ ही खाली कप और ट्रे लेकर कमरे से बाहर निकल गई और उसके जाते ही सुगंधा बोली,,,)

अब बता क्या हुआ था दवा खाने,,,, में,,,,

(तृप्ति के जाते ही जिस तरह से सुगंधा उत्सुकता दिख रही थी दवा खाने के बारे में जानने के लिए उसे देखते हुए अंकित समझ गया था कि उसकी मम्मी भी कुछ और सुनना चाहती है वरना वह तृप्ति के सामने ही जानने की कोशिश करती की दवा खाने में क्या हुआ था,,,, इसलिए तो अपनी मां की उत्सुकता और उसका बेकाबू पन देखकर अंकित के तन बदन में हलचल होने लगी थी उसके लंड में हरकत होने लगी थी और वह धीरे से बोला,,,)

पता नहीं तुम क्या सोचोगी,,,, मेरी बात का यकीन करोगी कि नहीं मुझे समझ में नहीं आ रहा है,,,।
Apni ma ki gaand se khelta Ankit

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अरे समझना क्या है,,,, तू जो बोलेगा सच ही बोलेगा जो कुछ भी दवा खाने में हुआ है वही बताएगा ना,,,,

हां वह बात तो ठीक है,,,लेकीन,,,(अंकित का इतना कहना था कि तभी तृप्ति कमरे में दाखिल होते हुए बोली और उसके हाथ में पानी का गिलास था,,,)

अरे मम्मी तुमने तो दवा पी ही नहीं लो जल्दी से पी लो,,,।

हां दवा खाना तो मैं भूल ही गई,,,,।

ओहहह बात ही बात में मैं भी दवा देना भूल गया,,,(और इतना कहकर अंकित मेडिकल से लाई हुई दवा निकाल कर देने लगा सुगंधा चाहती थी कि जल्द से जल्द तृप्ति कमरे से बाहर चली जाए और अंकित दवा खाने के बारे में सब कुछ बताएं,,,, और थोड़ी देर में तृप्ति वापस चली गई उसके जाते ही सुगंध फिर से उत्सुकता दिखाते हुए बोली,,,)

अब बता क्या हुआ था,,,,?

मम्मी लेकिन तुम बुरा मत मानना और मेरे बारे में तो बिल्कुल भी गलत मत सोचना,,,,।


अरे मैं कुछ गलत नहीं समझुंगी तु बता तो सही,, ।

ठीक है मैं सब बताता हूं,,,,(उसका इतना कहना था कि फिर से तृप्ति दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई और बाली)

चल अंकित तू मेरी किचन में मदद कर,,,,,, बहुत दिन बाद खाना बना रही हूं इसलिए थोड़ी दिक्कत आ रही है,,,।

अरे मैं क्या करूंगा किचन में आकर,,,,।

किचन में तेरे लायक बहुत कम है चल जल्दी चल,,,,।

(अंकित समझ गया था कि अब उसे जाना पड़ेगा और उसकी मां भी मौके की नजाकत को समझ रही थी इसलिए कुछ बोल नहीं पाई और अंकित वहां से उठकर किचन में चला गया,,,,,,

खाना बनाकर तैयार हो गया था तीनों साथ में मिलकर खाना भी खाएं लेकिन आज तृप्ति सुगंधा और अंकित को अकेले नहीं छोड़ रही थी,,, इसलिए अंकित को मौका ही नहीं मिला सब कुछ बताने का।)
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है सुगंधा को कुछ भी याद नहीं है वह ज्यादा परेशान तो पेशाब के सैंपल की बात से है वह जानना चाहती हैं कि वहा क्या हुआ लेकिन तृप्ति की वजह में नही जान पाती है देखते हैं अंकित अपनी मां को क्या बताता है
 

Sanju@

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जिस मौके की तलाश में सुगंध थी इस मौके की तलाश में अंकित भी था,,,,। अंकित समझ गया था कि बुखार के बद हवासी में उसकी मां को कुछ भी नहीं मालूम है की दवा खाने में क्या हुआ था और वही वह जानना चाहती थी और इसीलिए अंकित का मन प्रसन्न हुआ जा रहा था क्योंकि वह अब दवा खाने वाली बात में नमक मिर्च लगाकर बताने वाला था लेकिन मौका नहीं मिल रहा था क्योंकि तृप्ति हमेशा साथ में रहती थी,,, सुगंधा की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी सुगंधा को ऐसा था कि रात में तृप्ति जब अपने कमरे में सोने के लिए चली जाएगी तब वहां अंकित को अपने कमरे में बुलाकर दवा खाने वाली घटना के बारे में पूछेगी,,, लेकिन ऐसा नहीं हुआ,,,, क्योंकि तृप्ति भी अंकित के साथ अपनी मां के कमरे में थी जब तक वह सो नहीं गई तब तक वह भी वहां से नहीं हटी,,।


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दूसरे दिन सुबह तृप्ति की नींद जल्दी खुल गई क्योंकि वह जानती थी कि उसकी मां की तबीयत खराब है और उसे ही घर का सारा काम करना पड़ेगा,,, काम क्या करना पड़ेगा अपनी मां की तबीयत खराब होने की वजह से वह खुद ही अपनी मां को बिल्कुल भी काम करने देना नहीं चाहती थी,,, उसकी मां बिस्तर में ही थी और वह घर का सारा काम कर चुकी थी उसने अपने भाई अंकित को भी नहीं जागाई,,, उसे भी स्कूल जाना था लेकिन वह चाहती थी कि उसका भाई उसकी गैर मौजूदगी में घर पर उसकी मां का ख्याल रखे,,, अपने भाई को जगाने के ख्याल से उसे उसे दिन वाली घटना याद आ गई जब वह अपनी मां के कहने पर अपने भाई को जगाने के लिए उसके कमरे में गई थी और जिस अस्तव्यस्त हालत में उसे अपना भाई दिखाई दिया था,,, उसे बारे में सोच कर उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी एक पल के लिए तो उसे ऐसा लगा कि वह फिर से अपने भाई को जगाने के लिए उसके कमरे में जाए लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि अपने भाई के लंड को देखकर उसके मन में कुछ-कुछ होने लगा था,,,।



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उसे घटना को याद करके उसे संदीप याद आ गया और कॉलेज की मैडम के घर में जो कुछ भी हुआ था पल भर में उसकी आंखों के सामने किसी फिल्म की तरह घूमने लगा और एक बार फिर से वह हैरान हो गई थी संदीप के लंड को देखकर और सुबह-सुबह अपने भाई के लंड को देखकर दोनों के लंड की तुलना करना जमीन आसमान को एक करने जैसा था एकदम नामुमकिन जहां एक तरफ संदीप का लंड छोटा सा था वही उसके भाई का लंड एकदम बम पिलाट की तरह मोटा तगड़ा था,,,। और इसीलिए वह अपने भाई कमरे में नहीं जाना चाहते थे क्योंकि वह जानती थी अगर वह अपने भाई के कमरे में कहीं और एक बार फिर से उसके भाई के लंड के दर्शन उसे हुए तो वह अपना काबू खो बैठेगी,,,।



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वह तब तक दोनों को सोने दी जब तक कि वह खाना बनाकर तैयार नहीं हो गई,,,, सब कुछ तैयार हो चुका था वह कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गई थी और अपनी मां को जगाने के लिए उसके कमरे की तरफ जा ही रही थी कि अंकित अपने कमरे में से बाहर निकल गया वह बहुत हड़बड़ाहट में था क्योंकि उसे भी देर हो चुकी थी उसे हडबडाता हुआ देखकर तृप्ति बोली,,,।

अरे अरे इतना हड़बड़ा क्यों रहा है,,,?

मुझे देर हो गई है दीदी तुमने मुझे उठाया क्यों नहीं,,,

मैंने तो मम्मी को भी नहीं उठाई हूं और तुझे भी जान बुझ कर नहीं उठाई हूं,,,( तृप्ति अपनी कमर पर हाथ रखते हुए,,, और उसके ऐसा करने पर कमर और नितंबों का जो जोड़ होता है,,, वह एकदम से उभरकर दिखाई देने लगा और उसे पर नजर पडते ही अंकित अपने मन में ही बोला पूरी जवान हो गई है दीदी,,,,)



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जानबूझकर मे कुछ समझा नहीं,,,।

अरे बुद्धू मम्मी की तबीयत खराब है कोई तो होना चाहिए घर पर उनका ख्याल रखने के लिए,,,।
(तृप्ति का इतना कहना था कि उसे सब कुछ एकदम से याद आने लगा कि उसे तो दवा खाने वाली बात उसकी मां को बताना है और यही मौका भी सही रहेगा जब उसकी दीदी घर पर नहीं रहेगी वह बड़े आराम से नमक मिर्च लगाकर वह बात बता सकेगा,,,, इसलिए तृप्ति की बात सुनकर वह बोला)

बात तो तुम ठीक कह रही हो दीदी,,, चलो कोई बात नहीं मैं घर पर रुक जाता हूं लेकिन खाना,,,।



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उसकी चिंता तो मत कर मैं खाना और नाश्ता दोनों तैयार कर चुकी हूं मैं अब कॉलेज जा रही हूं तू ही मम्मी को जगा देना,,,।

ठीक है दीदी तुम जाओ मैं मम्मी को जगा दूंगा,,,,।

(इतना सुनते ही तृप्ति अपनी कॉलेज का बेग अपने हाथ में ले ली और घर से निकलते निकलते बोली,,)

मम्मी को सही समय पर दवाई खिला देना,,,।

ठीक है दीदी तुम जाओ,,,,,।

(तृप्ति कॉलेज के लिए निकल गई अंकित मन ही मन बहुत खुश हो रहा था वह जल्दी से जाकर दरवाजा बंद कर दिया था अब घर में केवल अंकित और उसकी मां ही थी जो खुद जानने के लिए बेताब थी की दवा खाने में क्या हुआ था अंकित भी इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां भी यह जानना चाहती है कि आखिरकार डॉक्टर को उसके पेशाब का सैंपल कैसे मिला,,,, और यह सब अपने मन में सोच कर अंकित बहुत प्रसन्न भी हो रहा था और तेजी भी हो रहा था क्योंकि वहां जानता था कि आप उसे अपनी मां को क्या बताना है आज उसके पास पूरा मौका था अपनी मां के सामने खुलने का,,, वह अपनी मां से इस तरह की बातें करना चाहता था जिस तरह की बातें एक प्रेमी प्रेमिका और पति पत्नी के बीच होती है,,,, इसलिए वह अपनी मां को बिना जगाए पहले खुद नहाने के लिए बाथरुम में चला कर और बाथरूम में जाते ही अपने सारे कपड़े उतार दिया,,,,।



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आज उसके बदन में अजीब सी खुमारी छाई हुई थी,,, आज उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि घर में केवल वह और उसकी मां ही है एक अजीब सा है उसके तन बदन को रंगत से भर दे रहा था ऐसा एहसास के बाद उसने किसी से संबंध बनाने के लिए मचल उठता है और उसे इस बात का एहसास होता है कि कमरे में केवल वह और उसके साथी है लेकिन यहां मामला कुछ और था वह अपनी मां से सिर्फ बात करने की उद्देश्य से उत्तेजित और जानता था कि उसकी इतनी जल्दी उसके साथ हम बिस्तर होने वाली नहीं है,,,, क्या कभी ऐसा ना भी हो लेकिन फिर भी न जाने के मन में एक तरह की उम्मीद जगी रहती थी,,,।

इसी के चलते बाथरूम के अंदर उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में खड़ा था,,,, अंकित इस बात को बिल्कुल भी नहीं जानता था कि उसके नंगे लंड का दर्शन उसकी मां के साथ साथ उसकी बहन भी कर चुकी है,,, अगर यह बात वह जानता तो शायद उसकी कल्पनाएं और भी ज्यादा रंगीन हो जाती,,,, फिर भी नहाने से पहले अपनी मां के बारे में सोचकर अपने लंड को हिलाना शुरू कर दिया और थोड़ी ही देर में गरम फवारा झाड़ के वह गहरी गहरी सांस लेने लगा,,,।
सुगंधा की प्यास

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अंकित नहा चुका था तैयार हो चुका था और रसोई घर में जाकर अपने लिए और अपनी मां के लिए चाय गरम कर रहा था उसकी बहन पहले से ही चाय बनाकर गई थी बस उसे गरम करने की देरी थी,,, थोड़ी देर में चाय गरम हो गई और वह ट्रे में दो कप चाय लेकर और बिस्किट लेकर अपनी मां के कमरे में पहुंच गया कमरे का दरवाजा पहले से खुला हुआ था क्योंकि रात को वह उसकी बहन कमरे से बाहर निकलते समय दरवाजे को खुला छोड़ रखी थी,,,।

अपनी मां के कमरे में अंकित पहुंचा तो देखा उसकी मां बिस्तर पर अस्त व्यस्त हालत में गहरी नींद में सो रही थी,,, साड़ी पूरी तरह से कमर के ऊपरी भाग से हट चुकी थी और उसका भारी भरकम और जवानी से भरा हुआ शरीर अपनी आभा बिखेर रहा था,,,, अंकित तो कुछ देर के लिए अपनी मां को देख नहीं रही क्या उसकी मदहोश कर देने वाली जवानी का रस अपनी आंखों से पिता ही रह गया,,,, उसकी मां पीठ के पास हो रही थी एकदम बेसुध होकर,,, नीचे से साड़ी घुटनों तक उठी हुई थी जिसकी वजह से उसकी मानसिक पिंडलियों एकदम साफ दिखाई दे रही थी उसकी गोरी चिकनी टांग देखकर और उसकी भरी हुई जवानी देखकर एक बार फिर से उसका लंड एकदम से खड़ा हो गया अभी कुछ देर पहले ही वह अपने हाथ से हिला कर अपनी जवानी की गर्मी को शांत करके आया था लेकिन अपनी मां की गर्म जवानी देखकर एक बार फिर से वह गर्म हो चुका था,,,,।
सुगंधा अपने बेटे से दमदार चुदाई चाहती थी

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जिस हालत में उसकी मां सो रही थी अंकित उसे जगाना नहीं चाहता था,,, ब्लाउज में कसा हुआ उसका पपाया जैसी चुचीया,,, सांसों की गति के साथ ऊपर नीचे हो रही थी जिसे देखकर अंकित की हालत खराब हो रही थी वह कुछ देर तक अपनी मां की जवानी को देखता ही रह गया घूरता ही रह गया,,, चिकना मांसल पेट और बीच में गहरी नाभि किसी गुलाबी बुर के क्षेंद से कम नहीं थी,,,, पल भर के लिए अंकित के मन में ख्याल आया कि क्यों ना अपनी उंगली अपनी मां की नाभि में डालकर देखा जाए की कितनी गहरी है और फिर उसे ख्याल आया कि क्यों ना जीभ से चाट कर अपनी मां की नाभि का स्वाद लिया जाए,,,,, और फिर उसके मन में ख्याल आया कि यह सब करने से अच्छा है कि क्यों ना एक बार अपने हाथ को अपनी मां की चूची पर रखकर उसकी गर्मी को महसूस किया जाए वैसे भी चूचियों की गहरी लकीर ब्लाउज से बाहर उभर कर सामने दिखाई दे रही थी गले में सोने की चेन उसकी खूबसूरती को चार चांद लग रही थी,,,,,,।

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एक तरफ अपनी मां की मदद उसका देने वाली जवानी की लालच और दूसरी तरफ चाय ठंडा होने की फिक्र उसके दिलों दिमाग पर दबाव सा डाल रहा था,,, आखिरकार चाय ठंडी होने की फिक्र में वह अपनी मां को जगाने लगा,,,।

मम्मी मम्मी कह कर दो बार पुकारा लेकिन उसकी मां दवा के नशे में गहरी नींद में सो रही थी इसलिए वह एक हाथ में प्लेट लेकर दूसरे हाथ से अपनी मां के कंधे को पकड़कर उसे हिलाते हुए जगाने लगा,,,, उसके ऐसा करने पर उसकी मां की आंख हल्के से खुली,,, वह होश में आती इससे पहले ही अंकित बोला,,,।



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लो मम्मी तुम्हारे लिए चाय लाया हूं,,,,।
(अंकित की बात सुनकर वहां अपनी दोनों आंखों को सिकुड़ कर खोलते हुए उसे बड़े गौर से अच्छी ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे पहचानने की कोशिश कर रही है,,, क्योंकि वह अभी भी नींद में थी लेकिन थोड़ी देर में उसे समझ में आने लगा और जल्दी से उठकर बैठ गई और इधर-उधर देखने लगी दीवार पर टंगी घड़ी में दिखी तो एक घंटा लेट हो चुका था वह एकदम से घबरा गई उसकी घबराहट हडबड़ाहट को अंकित अच्छी तरह से समझता था इसलिए,, जल्दी से अपने हाथ को उसके कंधे पर रख दिया और उसे समझाते हुए बोला,,,,)

आराम से मम्मी आराम से,,,,,।

अरे मुझे तो देर हो गई है,,,,।

तो क्या हो गया मैं ही तुम्हें जगाना नहीं चाहता था,,,।

लेकिन क्यों नहीं जगाना चाहता था,,,?(आश्चर्य से अंकीत की तरफ देखते हुए बोली,,,)




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मम्मी तुम्हारी तबीयत खराब है और दो-तीन दिन तक तुम घर पर लेकर आराम करो तुम्हें कोई काम करने की जरूरत नहीं है जब एकदम ठीक हो जाना तब स्कूल जाना और घर का काम करना,,,,।

(अंकित का इतना कहना था कि सुगंधा की नजर अपनी हालत पर गए तो एकदम से उसके होश उड़ गए उसकी साड़ी एकदम बिस्तर पर बिक्री हुई थी कमर के ऊपर वह सिर्फ ब्लाउज में की बाकी उसका पूरा गदराया बदन एकदम से दिखाई दे रहा था,,, एकदम से शर्म से पानी पानी हो गई और तुरंत अपनी साड़ी को व्यवस्थित करने लगी अपनी मां का इस तरह से हडबढ़ाना और शर्माना,,, और शर्माने के साथ-साथ अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करना अंकित और भी ज्यादा उत्तेजित कर गया था,,,,।)



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तुम मम्मी बिल्कुल भी चिंता मत करो खाना और नाश्ता दीदी तैयार करके कॉलेज चली गई है,,,।

क्या कह रहा है अंकीत,,,,!(एकदम आश्चर्य से अंकित की तरफ देखते हुए बोली)

हां मम्मी मै सच कह रहा हूं दीदी ने सब कुछ तैयार कर दिया घर की सफाई भी कर दि है,,, और सब कुछ करने के बाद कॉलेज के लिए चली गई,,,।

(अंकित की बात सुनते ही सुगंध मन ही मन बहुत खुश हो रही थी खुश इसलिए हो रही थी कि उसकी दोनों बच्चे उसका बहुत ख्याल रख रहे थे और यही तो चाहिए रहता है मां-बाप को अपने बच्चों से,,,,, सुगंधा अपने बेटे के हाथ में चाय के ट्रे को देख रही थी और अपना हाथ आगे बढ़कर चाय का कप उठा ली और बोली,,,)

वैसे तो तू जानता ही है कि बिना नहाए धोए में चाय नहीं पीती लेकिन आज मुंह बुखार की वजह से ठीक-था लग रहा है इसलिए पीना पड़ रहा है।(चाय के कप को होठो से लगाते हुए बोली,,,)

मैं जानता हूं मम्मी,,, तुम बिना नहाए चाय नहीं पीती लेकिन मैं जानता था कि बुखार की वजह से मन सही नहीं रहता,,, इसलिए मैं चाय गरम करके लेकर आया था,,,,।

तूने बहुत अच्छा किया,,, तू भी पी ले,,,।

हां मम्मी मैं पी रहा हूं,,,,(इतना कहने के साथ है यह अंकित भी चाय का कप हाथ में लेकर अपनी मां के पास ही बिस्तर पर बैठ गया और चाय पीने लगा,,,, और मर ही मन सोचने लगा कि उसकी मां दवा खाने में क्या हुआ था इस बात का जिक्र छेडे तो मजा आ जाए,,,, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा था उसकी मां कुछ बोल नहीं रही थी वह सिर्फ अपने मन में यही सोच रही थी कि जब उसका बेटा कमरे में आया था तब वह कितनी अस्त व्यस्त हालत में थी जरूर उसके बेटे की नजर उसके चिकनी कमर उसका चिकना पेट और उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों पर गई होगी,,, उसकी नजर उसकी गहरी नाभि पर भी गई होगी,,, और गहरी नाभि को देखकर पता नहीं क्या सोच रहा होगा,,,, यही सब सो कर सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी वह अपने बेटे से कुछ बोल नहीं पा रही थी,,,,। थोड़ी देर में सुगंधा और अंकित दोनों चाय पी चुके थे,,, अंकित को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे बात की शुरुआत की जाए,,,, कुछ देर खामोश रहने के बाद वह बोला,,,,।)

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मम्मी तुम दवा भी पी लो,,,, रुको मे देता हूं,,,(और इतना कहने के साथ ही अपनी मां के बिस्तर पर से उठकर खड़ा हो गया और सामने टेबल के ड्रोवर में से,, दवा निकालने लगा जो की रात को उसने ही रखा था,,,, टेबल पर ही मग भरकर पानी पड़ा था उसे धीरे से गिलास में डालकर दवा और पानी दोनों अपनी मां के पास लाया अपनी मां के हाथों में थमा दिया,,, सुगंधा अपने बेटे के हाथ में से दवा में पानी दोनों लेकर पीने लगी,,,, अंकित का मन मचल रहा था बात की शुरुआत करने के लिए लेकिन कैसे की जाए उसे समझ में नहीं आ रहा था कि तभी उसे ख्याल आया और वह बोला,,,)

अरे मम्मी कल की रिपोर्ट कहां पड़ी है दोबारा दवा खाने जाओगी तो रिपोर्ट दिखाना पड़ेगा,,,,।



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वही ड्रोवर में ही होगा,,,,(सुगंधा टेबल की तरफ देखते हुए बोली और तुरंत अंकित टेबल के पास गया और ड्रोवर में से रिपोर्ट निकाल कर अपने हाथ में ले लिया,,,, और फिर तुरंत अपनी मां के पास आ गया और दोनों रिपोर्ट को अपने हाथ में संभाल कर रखते हुए बोला,,,)

राहत की बात यह है की रिपोर्ट एकदम नॉर्मल है दो-तीन दिन में तो एकदम आराम हो जाएगा,,,,।
(जानबूझकर अंकित रिपोर्ट वाली बात कर रहा था ताकि उसकी मां को याद आ जाएगी उसे कौन सी बात करनी है और ऐसा ही हुआ रिपोर्ट की बात सुनते ही सुगंधा को भी एकदम से याद आ गया कि वह जानना चाहती थी की दवा खाने में क्या हुआ था,,, इसलिए दवा पीने के बाद वह तुरंत बोली,,,)

अरे हां मैं तो भुल ही गई थी,,, तूने बताया नहीं की दवा खाने में क्या हुआ था,,,,?

अरे हां मम्मी मैं तो भूल ही गया था,,, ठीक है तुम नहा धोकर तैयार हो जाओ तो तुम्हें भी तरोताजा लगने लगेगा,,,।

नहीं नहीं तु मुझे अभी बता दवा खाने में जो कुछ भी हुआ था वह मुझे बिल्कुल भी याद नहीं है,,,।
कल्पना में सुगंधा की दमदार चुदाई

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
 
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Sanju@

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अपनी बड़ी बहन के कॉलेज जाने के बाद अंकित नहा धोकर तैयार हो गया था और अपनी मां को चाय नाश्ता के साथ दवा भी दे दिया था तभी वह बार-बार अपनी मां को रिपोर्ट के बारे में याद दिला रहा था कि उसकी मां को सैंपल वाली बात याद आ जाए और ऐसा ही हुआ सुगंधा को सैंपल वाली बात याद आ गई थी,,,, और वह जिद करने लगी थी की दवा खाने में क्या-क्या हुआ था उसे बताएं क्योंकि उसे कुछ भी याद नहीं है,,, और ऐसा अंकित खुद चाहता था वह अपनी मां को क्लिनिक वाली बात नमक मिर्च लगाकर बताना चाहता था और वह भी तड़प रहा था अपनी मां को सब कुछ बताने के लिए उसके भी अरमान मचल रहे थे आज उसके पास बहुत ही बेहतरीन मौका था,,, एक औरत के साथ गुफ्तगु को करने का,,,,,, मां के साथ नहीं बल्कि एक औरत के साथ क्योंकि वह अपनी मां मैं मां नहीं बल्कि एक प्यासी औरत को देख रहा था,,,।



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मम्मी तुम नहा धोकर तैयार हो जाओ फिर मैं बाद में बताता हूं,,,।

नहीं नहीं बिल्कुल भी नहीं वैसे भी मुझे अभी नहाने का मन नहीं कर रहा है तो मुझे पता क्या-क्या हुआ था मैं जाने के लिए बेकरार हूं क्योंकि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तू मुझे कब दवा खाने लेकर गया कब सैंपल दिया कुछ भी मुझे याद नहीं है,,,, ऐसा मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ था,,,।

अरे मम्मी में भागा थोड़ी जा रहा हूं,,, मैं सब कुछ बता दूंगा लेकिन पहले ना धोकर फ्रेश तो हो जाओ,,,।

और मैं भी तुझे बता दी हूं की अभी मैं नहीं नहाउंगी तुझे मेरी कसम सब कुछ सच-सच बता,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर और उसकी दी हुई कम को सुनकर अंकित एकदम शांत हो गया कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छाई रही तो इस खामोशी को खुद सुगंध तोड़ते हुए बोली,,)



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क्या हुआ तु चुप क्यों हो गया बताता क्यों नहीं,,,!

अब क्या बताऊं मम्मी मैं तुमको नहीं बताना चाह रहा हूं और तुम मुझे कसम दे रही हो सब कुछ सुनाने के लिए मैं नहीं चाहता कि क्लीनिक में जो कुछ भी हुआ मैं तुम्हें बताऊं वह सब तुम्हारा बुखार करना चाहता तुम्हें कुछ भी याद नहीं है और सही है की याद नहीं है वरना तुम ना जाने क्या सोचोगी,,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा को बिल्कुल शक होने लगा कि जरूर क्लीनिक में कुछ ना कुछ हुआ है और इसीलिए अंकित बात नहीं रहा है इसलिए वह पूरी तरह से अंकित को विश्वास में लेते हुए बोली,,,)

देख अंकित अगर मेरे मन में कुछ होता तो मैं तुझे बताने के लिए बोलती ही नहीं लेकिन मैं जानना चाहती हूं कि वहां पर क्या हुआ है इसलिए तो मैं तुझसे पूछ रही हूं और बिल्कुल भी चिंता मत करना कुछ बोलने वाली नहीं हूं,,,।




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मम्मी तुम मुझे कसम देकर मजबूर कर रही हो,,,, मैं तुम्हें बताना नहीं चाहता हूं लेकिन अगर तुम मुझे मजबूर कर रही हो तो मैं भी तुम्हें बताने के लिए तैयार हूं लेकिन इससे पहले तुम्हें मेरी कसम खानी होगी,,,।
(ऐसा कहकर अंकित पूरी तरह से अपनी मां को अपनी कसम के दायरे में बांध लेना चाहता था ताकि वह जो कुछ भी बोले,,, उसे पर उसकी मां को विश्वास करने के सिवा और कोई रास्ता ना हो और उसकी बातों को सुनकर वह नाराज ना हो,,,,)

तेरी कसम,,,।

हां मम्मी मेरी कसम ताकि तुम मेरे बारे में कुछ उल्टा सीधा ना सोचो,,,,,।
Sugandha ki kalpna apne bete k sath

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अच्छा बाबा तेरी कसम खाती हूं मैं तुझे गलत नहीं समझुंगी,,,(कसम खाते हुए सुगंधा का अधिक जोरों से धड़क रहा था वह जल्द से जल्द अंकित के मुंह से सब कुछ सुनना चाहती थी और अंकित अपनी कसम दिल कर अपनी मां को पूरी तरह से अपनी विश्वास में लेकर अपनी बातों को नमक मिर्च लगाकर बताने के लिए अपने लिए अपने आपको तैयार कर चुका था,,, जैसे ही उसकी मां ने उसकी कसम खाई अंकित मन ही मन प्रसन्न होने लगा,,,, और अपनी बात की शुरुआत करते हुए बोला,,,,)

अब जब तुम मेरी कसम खा ही गई हो तो मैं तुम्हें सब कुछ बता देता हूं,,, , देखो दोपहर को जब मैं घर पर लौटा दो बाहर ताला नहीं लगा था तो मैं समझ गया घर पर कोई ना कोई तो आ ही गया है लेकिन यह नहीं मालूम था कि घर पर कौन है,,,,, मैं दरवाजे पर 10 तक दे नहीं बना था कि दरवाजे पर हाथ रखते ही दरवाजा अपने आप खुल गया और मैं धीरे से अंदर प्रवेश किया,,,,,।
(सुगंधा अपने बेटे की बात को बड़ी गौर से सुन रही थी)




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ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था कि दरवाजा खुला छोड़ा हो इसलिए मुझे थोड़ा अजीब लगा मैं घर में प्रवेश करके इधर-उधर देखने लगा लेकिन कोई नजर नहीं आया तो मैं दीदी के कमरे के पास गया कि दीदी का कमरा भी बंद था,,,,, और जब तुम्हारे कमरे के पास पहुंचा तो तुम्हारे कमरे का दरवाजा खुला हुआ था,,,, मुझे थोड़ा अजीब लगा मैं धीरे से तुम्हारे कमरे में प्रवेश किया तो तुम अपनी बिस्तर पर सो रही थी,,,, सो क्या रही थी मम्मी तुम दर्द से कंहर रही थी,,, मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया कि क्या हुआ जब मैं तुम्हारे करीब पहुंचा तो देखा तुम बिस्तर पर बसु धोकर सो रही थी तुम्हारी साड़ी का पल्लू बिस्तर के नीचे लटक रहा था,,,,(अंकित ने जैसे ही साड़ी का पल्लू बिस्तर के नीचे लटक रहा था यह बात किया सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी और वह अपने मन में सोचने लगी की साड़ी का पल्लू जब नीचे लटक रहा था तो इसका मतलब है कि उसकी छाती एकदम साफ दिखाई दे रही होगी उसकी चूचियां उसकी सांसों की गति के साथ ऊपर नीचे हो रही होगी और यह सब अंकित अपनी आंखों से देख लिया होगा,,,, यह ख्याल उसके मन में आता है उसकी दोनों टांगों के बीच हलचल होने लगी,,,,, अंकित की बात सुनकर सुगंधा बोली,,,)

तब तूनेक्या किया,,,,?



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करना क्या था मेरे तो होश उड़ गए तुम्हारी हालत खराब थी तुम्हें बहुत दर्द हो रहा था और तुम दर्द से कहर रही थी,,, मुझे कुछ समझ में नहीं आया तो अपना हाथ तुम्हारे माथे पर रखकर देखने लगा तुम्हारा माथा तुम्हारा बदन बुरी तरह से गर्म था तुम्हें बड़े जोरों का बुखार था,,, तुम्हारी आदत देखकर मैं समझ गया की हालत गंभीर है मैं तुम्हें उठाने लगा लेकिन तुम अपने होश में नहीं थी,,,, मैं तुमसे बोला भी कितने बड़ी जोरों की बुखार है तुम्हें दवा खाने ले जाना पड़ेगा लेकिन तुम क्या बोली तुम्हें मालूम है,,,।

नहीं मुझे तो कुछ भी नहीं मालूम,,,,।

तुम मुझे बोली कि जाकर मेडिकल से गोली ला दे आराम हो जाएगा,,,,।

फिर तूने क्या किया,,,,?



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करना क्या था मैं समझ गया था कि मेडिकल से दवा लाने से काम बनने वाला नहीं है इसलिए मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर उठाने लगा और बोला की दवा खाने चलना होगा,,,, लेकिन तुम तो उठने को तैयार ही नहीं थी तुम जाने को भी तैयार नहीं थी लेकिन मैं जानता था कि अगर इस तरह तुम्हें छोड़ दिया गया तो मामला ज्यादा बिगड़ जाता तुम्हारी तबीयत और ज्यादा खराब हो जाती और तुम्हें दवा खाने में एडमिट करना पड़ता,,,,।

बाप रे मेरी तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गई थी,,,(सुगंधा आश्चर्य जताते हुए बोली,,)

तो क्या मम्मी तुम्हारी तबीयत बहुत खराब थी तुम दवा खाने को जाने को तैयार नहीं घर में कोई था भी नहीं दीदी अगर होती तो शायद मुझे इतनी दिक्कत नहीं होती लेकिन वह भी नहीं थी और तुम्हें दवा खाने ले जाना बहुत जरूरी था मैं जबर्दस्ती तुम्हें उठाकर बिस्तर पर बिठाया,,,,एक तो तुम्हारे में बिल्कुल भी ताकत नहीं थी,,, बिस्तर पर बैठने के बावजूद तुम इधर-उधर लुढ़क जा रही थी तुम्हें संभालना मुश्किल हुआ जा रहा था,,,,, जैसे तैसे करके मैं तुम्हें सहारा देकर खड़ी किया,,,,,,।
(सुगंधा बड़ी गौर से अपने बेटे की बात सुन रही थी उसकी उत्सुकता और ज्यादा बढ़ती जा रही थी कि आगे क्या-क्या हुआ होगा,,, तभी अंकित ने ऐसी बात कह दी सुगंधा की तो बुर से पानीबहने लगा,,,,)



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तुम्हें मैं कमरे से जैसे तैसे करके बाहर लेकर आया मैं अपना हाथ तुम्हारी बाहों में डालकर तुम्हें पकड़े हुए था ताकि तुम गिर ना जाओ लेकिन सबसे ज्यादा परेशान कर रहा था तुम्हारे साड़ी का पल्लू जो बार-बार तुम्हारे कंधे से नीचे गिर जा रहा था और सब कुछ दीख जा रहा था,,,,।
(

(सब कुछ दिख जाने वाली बात सुनकर सुगंधा के तन बदन में एकदम से आग लग गई सब कुछ दिख जाने का मतलब अच्छी तरह से समझ रही थी लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोली।।)

सबकुछ दिख जा रहा था मतलब,,,,।

मतलब की मम्मी साड़ी का पल्लू नीचे गिर जाने से तुम्हारी छाती एकदम से दिखने लगती थी,,,,,, मुझे तो समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करु,,,,।

इसमें समझने वाली कौन सी बात थी साड़ी का पल्लू ठीक कर देता,,,।

ऐसा तो मैं बार-बार किया था लेकिन जब तक घर में थी तब तक तो ठीक था मैं सोच रहा था कि अगर बाहर तुम्हारे साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया तो गजब हो जाएगा,,,,।
Ankit apni ma ki boor chat ta hua

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कैसा गजब हो जाएगा मैं कुछ समझी नहीं,,,।

तेरी मम्मी तुम तो एकदम पूरी हो तुम नहीं जानती बाहर मर्दों की नजर कैसी रहती है एक खूबसूरत औरत की साड़ी का पल्लू अगर कंधे पर से नीचे गिर जाए तो आने जाने वाले सब की नजर औरतों की छाती पर ही गड़ी रह जाए देखकर पागल हो जाए,,,,।

(अंकित बड़ी हिम्मत करके इतना कुछ भूल गया था और अपनी मम्मी का चेहरा देख रहा था उसे साफ दिखाई दे रहा था कि उसकी कई बातों को सुनकर उसकी मम्मी का चेहरा शर्म के मारे सुर्ख लाल होने लगा है,,,, और सुगंधा भी अपने बेटे की बात सुनकर अंदर ही अंदर उत्तेजना से भर जा रही थी,,,, वह अपने बेटे के कहने का मतलब को अच्छी तरह से समझ रही थी वह यह भी जानती थी कि उसके खुद की बेटी की नजर उसकी छाती पर घूमती रहती है,,,,, अभी कुछ देर पहले ही उसने यह एहसास भी किया था जब वह सो रही थी और उसके साड़ी का पल्लू एकदम से अस्त्र-शस्त्र था और उसकी छाती एकदम से उजागर हुई नजर आ रही थी,,,,)



बाप रे क्या सच में मर्दों की नजर ऐसी होती है,,,।
(सुगंधा एकदम से अनजान बनते हुए बोली लेकिन अपनी मम्मी की बात से अंकित बिल्कुल भी सहमत नहीं था क्योंकि वह जानता था कि उसकी मम्मी भी बाहर मर्दों की नजर से अच्छी तरह से वाकिफ है लेकिन ऐसा जानबूझकर बोल रही है फिर भी वह अपनी मां की बात सुनकर बोला)

तो क्या मम्मी सबकी नजर ऐसी ही होती है,,,।

लेकिन तुझे कैसे मालूम,,,,?

अरे यह सब मालूम हो जाता है मेरे कुछ दोस्त हैं जब भी उनके साथ इधर-उधर घूमने जाओ तो वह लोग औरतो को ही देखते रहते हैं,,,।

क्या कहते हैं तेरे दोस्त,,,,?



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पूछो मत मम्मी बहुत खराब खराब बोलते हैं मुझे तो बताने में भी शर्म आ रही है,,,,,।

अरे बता भी दे मुझसे कैसा शर्माना,,,, वैसे भी मैं तेरी कसम खाई हूं तुझे कुछ बोलेगी नहीं,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर और उसकी उत्सुकता देखकर अंकित का लैंड खड़ा होने लगा था उसी तरह की बातें करने में बहुत मजा आ रहा था और वह भी अपनी मां से पहली बार अपनी मां से इस तरह की बातें कर रहा था इसलिए वह भी थोड़ा खुल जाना चाहता था इसी बहाने वह भी एक औरत से किस तरह से अश्लील बातें की जाती है वह एहसास महसूस करना चाहता था,, इसलिए बोला,,,)



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ठीक है तुम रहती हो तो बता देता हूं वैसे बताने लायक बात नहीं थी मेरे दोस्त हमेशा औरतों को देखकर वैसे तो कोई औरत आगे से आती रहती है तो उन लोगों की नजर औरतों की छाती पर ही जाती है और अगर पीछे से देखते हैं तो औरतों की गांड पर ही उनकी नजर जाती है,,,,,(अपने मुंह से औरतों की गांड शब्द का प्रयोग करके और अभी अपनी मां के सामने वह पूरी तरह से मदहोश होने लगा था,,, सुगंधा भी अपने बेटे के मुंह से औरत की गांड शब्द सुनकर मस्त हुए जा रही थी,,, कोई और समय होता तो शायद उसका बेटा इस तरह की बात नहीं करता लेकिन हालात और मौका दोनों बदल चुके थे सुगंध भी अपने बेटे को इस तरह से बात करने नहीं देती अगर कोई और समय होता तो लेकिन इस समय वह भी मजबूर थी अपनी बेटी के मुंह से इस तरह की बातें सुनकर वह भी मस्त हो जा रही थी इसलिए वह उसे रोकी नहीं,,, और अंकित अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)



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मैं तो यह सब सुनकर उन लोगों से दूर हो जाता हूं,,,।

औरतों की गांड और छाती देखकर ऐसा क्या कहते हैं तेरे दोस्त जो तू एकदम से उन लोगों से दूर हो जाता है,,,,।
(सुगंधा भी गांड और छाती का प्रयोग बड़े खुलकर अपने बेटे के सामने कर रही थी,,, जिसे सुनकर अंकित का लंड हलचल महसूस कर रहा था,,,)

अरे मम्मी वह लोग बहुत गंदा गंदा बोलते हैं,,, वह लोग इतने हारामी है कि कुछ भी बोल देते हैं बोलते हैं है इसकी चूचियां कितनी बड़ी-बड़ी है मेरे हाथ में आ जाए तो दबा दबा कर इसका दूध पी जाऊं,,,,।

हाय दैया ऐसा बोलते हैं,,,,(सुगंधा भी जानबूझकर हैरान होने का नाटक करते हुए बोली,,,)

तो क्या मम्मी और फिर किसी औरत की गांड देख लेते हैं बड़ी-बड़ी है तो बोलेंगे इसका आदमी कितना खुश नसीब होगा जो ऐसी औरत पाया है इतनी बड़ी-बड़ी गांड पाकर ना सोता होगा ना सोने देता होगा,,,,,,,।
(हाय दइया तेरे दोस्त इतने बेशर्म है,,,,)




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तो क्या मम्मी मेरी तो हाथ खराब हो जाती है उन लोगों की इस तरह की बातें सुनकर ऐसे मम्मी मुझे समझ में नहीं आया कि वह लोग कहते हैं कि ना खुद सोते हैं ना सोने देते इसका मतलब क्या हुआ,,,,!(अंकित जानबूझकर अनजान बनते हुए अपनी मां से पूछ रहा था वह जानना चाहता था इसके मतलब को अपनी मां के मुंह से और यह बात सुनकर सुगंधा के चेहरे पर एकदम से हवाइयां उड़ने लगी और उसका चेहरा शर्म के मरे टमाटर की तरह लाल हो गया वह अपने बेटे की बात सुनकर गोल-गोल जवाब देते हुए बोली,,,)

अरे,,, कोई खूबसूरत औरत को देखकर किसी की नींद उड़ जाती होगी इसी बारे में बोल रहे होंगे,,,,।

हां यह भी हो सकता है,,,,,



अच्छा यह बता फिर तु कैसे ले गया मुझे,,,,(एक पल के लिए सुगंधा का मन कह रहा था कि अपने बेटे से सब कुछ बता डाले औरत और मर्दों के बीच के संबंध को लेकर वह बता दे की मर्द कब सोता नहीं और नहीं औरत को सोने देता है वह चुदाई के बारे में खुलकर अपने बेटे से बात करें लेकिन ऐसा करने से उसे अजीब सा लग रहा था वैसे तो वह अपने बेटे से एकदम से खुल जाना चाहती थी लेकिन न जाने क्यों वह इस तरह की बातें करने से और वह भी खुलकर थोड़ा घबरा रही थी,,,, इसलिए बात को एकदम से घूमाते हुए बोली,,,)

फिर क्या मम्मी जैसे तैसे करके मैं तुम्हारी साड़ी के पल्लू को फिर से ठीक किया और तुम्हें सहारा देकर धीरे-धीरे घर से बाहर लेकर आया तभी ओटो को आवाज देकर बुलाया और उसमें,,, तुम्हें बिठाकर जैसे तैसे करके दवा खाने पहुंचा,,,,।


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(जिस तरह की बातें मां बेटे के बीच हो रही थी अंकित की हालात पूरी तरह से खराब हो गई थी उसका लंड अपनी औकात में आकर खड़ा था और पेट में तंबू बनाया हुआ था और वह उसे छुपाने की कोशिश करते हुए बार-बार अपने हाथ से अपने लंड को दबा दे रहा था और उसकी यह हरकत उसकी मां से बिल्कुल भी छुपी नहीं होती सुगंधा भी अपने बेटे की हरकत को देखकर अंदर ही अंदर गर्म हो रही थी,,,,। वैसे उसकी खुद की बुर पानी छोड़ रही थी,,, फिर भी गहरी सांस लेते हुए वह बोली,,,)

फिर क्या हुआ,,,? दवा खाने में तो भीड़ होगी,,,!

नहीं मम्मी किस्मत अच्छी थी दवा खाने में उसमें कोई भी नहीं था और डॉक्टर का कंपाउंडर खाना खाने घर गया था,,।


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फिर,,,,(सुगंधा की भी पेंटि गीली रही थी इसलिए वह भी,,, ना चाहते हुए भी अपने हाथ से अपनी पैंटी को सही करते हुए बोली और उसकी यह हरकत को अंकित भी बड़ी गौर से देख रहा था और उत्तेजित हुआ जा रहा था,,,,)

फिर क्या फिर से तुम्हें सहारा देकर में जैसे तैसे करके डॉक्टर के केबिन में पहुंच डॉक्टर अकेले ही आराम कर रहा था,,,,, और फिर मैं तुम्हें डॉक्टर के सामने वाली कुर्सी पर बैठा दिया,,,,।

फिर क्याहुआ,,,?

फिर डॉक्टर तुम्हारा चेकअप करने लगा,,,, वैसे मम्मी जब कभी भी मैं तुम्हारे साथ गया हूं तो डॉक्टर अपना आला तुम्हारी पीठ पर लगाकर चेक करता था ना,,,,।

हां और ऐसे ही डॉक्टर को चेक भी करना चाहिए औरतों के मामले में,,,,,।



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हां मम्मी मैं भी तो यही सोच रहा था लेकिन डॉक्टर की आंखों के सामने तुम्हारी शाडी का पल्लू एकदम से नीचे गिर गया और साला डॉक्टर तो तुम्हारी छाती को देखता ही रह गया,,,,।

(जिस तरह से अंकित बता रहा था उसकी बात सुनकर सुगंध एकदम से हैरान हो गई और वह एकदम से हैरान होते हुए बोली)

क्या कह रहा है अंकित तु,,,

मैं सच कह रहा हूं मम्मी साड़ी का पल्लू गिरते ही डॉक्टर तुम्हारी छाती की तरफ देखने लगा उसकी तो आंखें फटी जा रही थी मुझे लगा शायद तुम्हारी तबीयत का कुछ जांच पड़ताल कर रहा है लेकिन जल्दी मुझे पता चल गया कि वह क्या देख रहा था,,,

क्या देख रहा था वह,,,,।

मम्मी मुझे तो बताते शर्म आ रही है,,, कोई और समय होता तो मैं उसका मुंह तोड़ देता लेकिन तुम्हारी तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब थी इसलिए मैं कुछ बोल नहीं पाया,,,।
Sugandha apne bete k sath kalpna karti huyi

लेकिन क्या देख रहा था वो,,,(एकदम से उत्सुकता दिखाते हुए सुगंधा बोली)

मम्मी अब मैं क्या कहूं तुम्हारी साड़ी का पल्लू कंधे से नीचे गिरते ही एक बार फिर से तुम्हारी छाती एकदम से उजागर हो गई और वह जो ब्लाउज के बीच में से लकीर दिखती ना गहरी गहरी,,,,,(हाथ की उंगली से अपनी मां के छाती की तरफ इशारा करते हुए और उसके इशारे को देखकर सुगंधा एकदम शर्म से पानी पानी हो गई उसके कहने के मतलब को सुगंधा अच्छी तरह से समझ गई,,, वह समझ गई कि उसका बेटा चूचियों के बीच की उभरी हुई लकीर के बारे में बात कर रहा है,,,,,)

हां,,,,, मैं समझ गई आगे बात,,,,।

हां मम्मी वहीं आंख फाड़े देख रहा था,,,, एक तो तुम इतनी बीमार थी कि अस्त-व्यस्त हालत में हो जा रही थी तुम्हारी साड़ी का पल्लू नीचे गिर जा रहा था कभी तुम्हारा सर इधर-उधर हो जा रहा था वह तो गनी मत था मम्मी के तुम्हारे ब्लाउज का बटन खुला हुआ नहीं था,,,।


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तो क्या हो जाता,,,,?(एकदम से तिरछी नजर से अंकित की तरफ देखते हुए बोली)

अरे फिर तो डॉक्टर किसी न किसी बहाने छु देता,, और दबा भी देता,,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर तो सुगंधा के बदन में उत्तेजना की चिंगारी फूटने लगी वह अच्छी तरह से समझ रही थी कि उसका बेटा क्या कहना चाह रहा है लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोली,,,)

अरे किसको दबा देता छु देता,,,।

अरे मम्मी तुम्हारी चू,,,(हाथ का इशारा अपनी मां की छाती की तरफ और अधूरा शब्द बोलकर एकदम से खामोश हो गया और अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा की बुर पानी छोड़ने लगी,,,, उसकी सांसे एकदम से ऊपर नीचे होने लगी क्योंकि उसका बेटा चुची शब्द कहते-रहते रह गया था,,,, फिर भी अपने आप को सहज करते हुए वह बोली)

अरे अगर बटन खुला होता तो क्या तू बंद नहीं करता मुझे तो बिल्कुल भी होश नहीं था तुझे तो बंद कर देना चाहिए था ना,,,।

मुझे तो करना ही पड़ता मम्मी क्योंकि मैं नहीं चाहता कि किसी और की नजर तुम्हारे पर पड़े लेकिन उसे समय में खामोश रहे गया था तुम्हारी तबीयत का जो मामला था,,,,।



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इसके बाद तूनेक्या किया,,,?

डॉक्टर की नजर को पहचान कर मैं जल्दी से तुम्हारी साड़ी के पल्लू को ठीक कर दिया लेकिन बुखार नापने के बहाने उस हरामी डॉक्टर ने क्या किया पता है,,,।

क्या किया,,,?

हारामी ने मुझसे बोला कि अपनी मां की साड़ी के पल्लू को थोड़ा हटाओ,,,

फिर,,,,(सुगंधा धड़कते दिल के साथ बोली,,, उसके बदन में भी हलचल होने लगी थी वह जानती थी कि इस तरह की हरकत डॉक्टर करते नहीं है लेकिन उसका बेटा बता रहा था तो हो सकता है डॉक्टर ने इस तरह की हरकत किया हो,,,)

फिर क्या मैं भी हाथ आगे बढ़कर तुम्हारी शादी के पल्लू को तुम्हारी छाती से थोड़ा सा हटा दिया,,,, और डॉक्टर अपने आला को तुम्हारी उस पर,,(एक बार फिर से उंगली से इशारा करते हुए,,,, अंकित अपनी मां की चूची दिखाने लगा सुगंधा के सांस ऊपर नीचे हो रही थी उसकी हालत खराब हो रही थी वह भी अपने बेटे का साथ देते हुए अपनी उंगली से अपनी चूची की तरफ इशारा करते हुए इशारे में ही बात की तो अंकित अपनी मां का इशारा देखकर बोला,,,)

इससे थोड़ा ऊपर,,,,।(अंकित का भी दिल जोरो से धड़क रहा था वह अपनी मां से एक तरह से अश्लील बातें ही कर रहा था ऐसी बातें जो मर्द और औरत के बीच ही मुमकिन होती है एक मां और बेटे के बीच नहीं लेकिन एक मां और बेटे दोनों अपनी मर्यादा को पार कर रहे थे,,, सुगंधा भी अंकित की बात सुनकर थोड़ी बेशर्मी दिखाते हुए अपने हाथ से साड़ी के पल्लू को अपनी छाती से थोड़ा सा हटाते हुए अपनी उंगली को अपनी चूची की गोलाई के ऊपरी भाग पर जहां से गोलाई का शुरूआत होती है वहां पर रख दी,,, अपनी मां की इस अदा पर तो अंकित की हालात पूरी तरह से खराब हो गई वह एकदम से उत्तेजित हो गया उसकी लंड की नशे एकदम से उभर आई,,, और वह एकदम से उत्तेजित स्वर में बोला ,,,)
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बस बस मम्मी यहीं पर,,, यहीं पर वह डॉक्टर अपना आला,,, लगाकर तुम्हारा बुखार चेक करने लगा और एक बार नहीं बल्कि काफी बार उसने ऐसा किया,,,।

लगता है उसकी नियत खराब हो रही थी,,,,।

तो क्या मम्मी,,, क्योंकि मैं आज तक इस तरह से डॉक्टर को औरत का चेकअप करते नहीं देखा,,,,।

(अंकित की बातों को सुनकर दीवाल का सहारा लेकर वह ऊपर छत की तरफ देखने लगी और गहरी सांस लेने लगी उसका साड़ी का पल्लू अभी भी उसकी छाती से थोड़ा सा जाता हुआ था और वह जानबूझकर गहरी सांस ले रही थी ताकि सांसों के गति के साथ उसकी ऊपर नीचे हो रही छाती पर उसके बेटे की नजर जाए और ऐसा ही हुआ,,,, अंकित की नजर तुरंत अपनी मां की बड़ी-बड़ी छातियों पर चली गई,, और अपने बेटे की हरकत को,,, सुगंधा चोर नजरों से देख रही थी उसकी हरकत को देखकर मन ही मन उत्तेजित और प्रसन्न दोनों हो रही थी,,, कुछ देर की खामोशी के बाद वह फिर से अंकित की तरफ देखतेहुए बोली,,,।

इसके बाद क्या हुआ,,,,?



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(सुगंधा की बातें सुनकर अंकित समझ गया था कि उसकी मां सबसे ज्यादा उत्सुक सैंपल वाली बात जानने के लिए है,,, इसलिए वह भी बोला,,,)

फिर क्या मम्मी डॉक्टर ने दवाई दिया और बोला ब्लड और पेशाब का सैंपल देना पड़ेगा,,,,।

फिर मुझे तो कुछ मालूम ही नहीं था यह सब कैसे लिया गया,,,,,।

वही तो बता रहा हूं मम्मी,,,, मैं तुम्हें सहारा देकर वापस डॉक्टर के केबिन से बाहर लाया वही दवा खाने में ही बाथरूम है बाथरूम में ही सब कुछ मौजूद था,,,, मैं धीरे-धीरे तुम्हें बाथरूम के पास लाया और तुम्हें सब कुछ बता दिया अंदर ही परखनली भी थी,,,, लेकिन तुम्हारी हालत देखकर मुझे लग नहीं रहा था कि तुम बाथरुम में अकेले जा पाओगी,,,।

(अपने बेटे की बात सुनते ही सुगंध के दिल की धड़कन एकदम से बढ़ गई उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में अजीब सी हलचल होने लगी उसे साफ महसूस हो रहा था कि अपने बेटे की बात सुनकर वह उत्तेजित हुए जा रही थी और उत्तेजना के मारे उसकी बुर कचोरी की तरह फुल रही थी पंचक रही थी,,,, वह और भी ज्यादा उत्सुक हो गई थी आगे की बात जानने के लिए इसलिए बोली ,,,)

फिर तूने क्या किया,,,,?



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मैंने क्या किया मैं बाहर ही खड़ा रहा और तुम्हें अंदर जाने के लिए बोला जैसे तैसे तुम दरवाजा खोलकर अंदर जाने को भी लेकिन दरवाजे पर ही खड़ी रह गई तुम्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है मुझे भी घबराहट हो रही थी कि तुम भला कैसे पेशाब का सेंपल दे पाओगी तुम्हे तो खड़े रहने की भी ताकत नहीं थी,,,, कुछ देर तक मैं खड़ा रहा इधर-उधर देखता रहा लेकिन तुमसे कम भी आगे बढ़ने जा रहा था और तुमने खुद मेरी तरफ देखकर इशारा करते हुए मुझे भी अंदर आने के लिए बोली इतना सुनकर तो मेरी हालत खराब हो गई भला मैं कैसे एक औरत के साथ बाथरूम के अंदर जा सकता हूं अगर यह कोई देख लेता तो कितने शर्म की बात होती,,,,।

(अपने बेटे की बातों को सुनकर सुगंध का बदन उत्तेजना से कसमसा रहा था उसकी बुर लगातार पानी फेंक रही थी वह अपने बदन में अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और फिर कांपते हुए स्वर मेंबोली,,,)

फिर क्या हुआ,,,,?



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फिर क्या मम्मी मुझे ना चाहते हुए भी तुम्हारे साथ बाथरूम के अंदर जाना पड़ा तुम्हें सहारा देखकर मैं बाथरूम के अंदर लेकर और दरवाजा बंद कर दिया ताकि कोई देख ना ले और जल्दी से फर्क नाली को तुम्हारे हाथों में दे दिया और बोला कि तुम इसके अंदर पेशाब का सैंपल ले लेना,,,।

तू मेरे साथ बाथरुम मेंही था,,,,(एकदम से आश्चर्य जताते हुए सुगंधा बोली)

और क्या करता मम्मी मजबूरन मुझे भी अंदर रहना पड़ा तुम अपने हाथ से परखनली तो ले ली और धीरे-धीरे अपनी साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगी,,,।
(इतना सुनकर सुगंधा के बदन में उत्तेजना की चिंगारी फुट में रखें उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसे अजीब सा एहसास हो रहा था उसके बदन में मदहोशी जा रही थी उसे ऐसा लग रहा था कि इसी समय वह अपने बेटे के साथ कुछ कर बैठेगी,,, अपने बेटे की बात सुनकर सुगंध बोली,,,)

और तु मुझे ही देख रहा था,,,.

क्या करता मम्मी मजबूर था मुझे इस बात का डर था कि कहीं तुम बाथरुम में गिर ना जाओ तुम्हें चोट लगने का डर था इसलिए मुझे ना चाहते हुए भी तुम्हारी तरफ देखना पड़ा,,,

फिर मैंने क्या की,,?



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तुम तो बुखार के नशे में थी तुम्हें तो बिल्कुल भी होश नहीं था जैसे तैसे करके तुम अपनी साड़ी को कमर तक उठा ली थी,,,।
(अपने बेटे की बातों में सुगंध को नशा महसूस हो रहा था वह उसकी बातों में पूरी तरह से खो चुकी थी और अपनी आंखों के सामने कल्पना करने लगी थी कि कैसा-कैसा बाथरूम में हुआ होगा वह मदहोश हो जा रही थी उत्तेजना उसके धीरे दिमाग पर पूरी तरह से हावी होती जा रही थी,,,,, और अंकित अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)

तुम अपनी साड़ी कमर करके उठा लेती लेकिन तुम्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है तुम उसी तरह से ऐसा लग रहा था कि जैसे नशे में झूम रही हो मैं तुम्हें आवाज देते हुए बोला,,,,।

मम्मी पेशाब का सैंपल लेना है,,,,।

मेरी बात सुनकर ऐसा लगा कि जैसे फिर से तुम्हें होश आया हो और तुम मेरी तरफ देखने लगी और अपने एक हाथ से अपनी चड्डी को नीचे करने लगी लेकिन तुमसे हो नहीं रहा था तुमसे अपनी चड्डी ठीक से पकड़ी नहीं जा रही थी तुम अपनी चड्डी नहीं उतर पा रही थी,,,,(अंकित जानबूझकर अपनी मम्मी के सामने चड्डी वाली बात कर रहा था बार-बार अपनी मां के सामने इस तरह चड्डी का प्रयोग करके वह अपनी मां को उत्तेजित कर रहा था और उसकी मां बार-बार अपने बेटे के मुंह से अपनी चड्डी का जिक्र सुनकर मदहोश हुए जा रही थी पागल हुए जा रही थी,,, और वह धीरे से बोली,,,)

फिर मैंने क्या की,,,?



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फिर कुछ देर तक तुम कोशिश करती रही लेकिन तुमसे हुआ नहीं तो तुम मेरी तरफ देखते हो मैं तुम्हारी तरफ देखने लगा मुझे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर सैंपल मिलेगा तो कैसे मिलेगा,,,, और तुम मुझसे बोली,,,,।

तू ही उतार दे मुझसे नहीं हो रहा है,,,।(ऐसा कहते हुए अंकीत का लंड अपनी औकात में आ गया था,,,,,, क्योंकि वह अपनी मां के सामने उसकी ही चड्डी उतारने वाली बात कर रहा था और जिस तरह का सुरूर अंकित के ऊपर छाया हुआ था वही खुमारी उसकी मां के ऊपर भी छाने लगी थी,,, वह अपने मन में कल्पना करने लगी की बाथरूम में कैसा-कैसा हुआ होगा वह कहते हुए कैसा महसुस कर रही होगी वह पूरी तरह से पागल हुए जा रही थी,,, उसकी चड्डी पूरी तरह से गीली हो रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी चड्डी पर कोई पानी डाल दिया हो,,,, अपने बेटे की बात सुनकर वह अपने बेटे से नजर मिलाए बिना ही बोली,,,।)





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करना क्या था मम्मी तुम जैसा कहीं मुझे करना ही था क्योंकि मुझे डर कहीं डॉक्टर अगर बाहर आ गया और हम दोनों को बाथरूम में देखेगा तो वह क्या सोचेगा उसे तो खुला मौका मिल जाएगा,,,,, इसलिए तुम्हारी बात मानते हुए मैं अपना हाथ आगे बढ़ाकर,,,,, तुम्हारी चड्डी को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे नीचे की तरफ खींचने लगा,,,, सच कहूं मम्मी तो मुझे बहुत खराब लग रहा था लेकिन मैं क्या करूं मैं मजबूर हो गया था तुम्हारे पेशाब का सैंपल जो लेना था और देखते ही देखते मैं तुम्हारी चड्डी को तुम्हारी घुटनों का खींच दिया था तुम अपनी साड़ी को कमर तक उठाए खड़ी थी,,,।

फिर,,,,(गहरी सांस लेते हुए सुगंधा बोली, देखते ही देखते कमरे का वातावरण पूरी तरह से उत्तेजना से गर्म हो चुका था मां बेटे दोनों जवानी के नशे में चूर हो चुके थे बस एक कदम आगे बढ़ाने की देरी थी और दोनों एक दूसरे में समाने की पूरी कोशिश में जुट जाते,,, लेकिन फिर भी दोनों अपने आप पर बहुत ही काबू रखे हुए थे,,,,, अपनी मां की बात सुनकर अंकित बनी बनाई खिचड़ी पकाते हुए बोला,,,)

फिर क्या मैं कुछ देर तक फिर से इस तरह से खड़ा रहा,,,, तुम पेशाब करने के लिए बैठ नहीं पा रही थी,,,, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं तुम बार-बार बाथरूम की दीवार का सहारा लेकर खड़ी हो जा रही थी,,,, तुम्हारी हालत देखकर मैं समझ गया कि तुम बैठकर पेशाब नहीं कर पाओगी,,,।

(अंकित के एक-एक शब्द सुगंधा के कानों में नशा घोल रहा था,,, वह पूरी तरह से कामुकता के सागर में डूबती चली जा रही थी,,,,, अंकित जो कुछ भी कह रहा था सुगंधा अपने मन में उसकी कल्पना कर रही थी आज उसका पिता उसे बहुत खुलकर बातें कर रहा है,,, यही बदलाव तो वह अपने बेटे के अंदर चाहती थी,,,,,, यह बदलाव देखकर सुगंधा अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रही थी क्योंकि जैसा अंकित वह चाहती थी धीरे-धीरे उसका बेटा वही अंकित बनता जा रहा था अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा बोली,,,)


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फिर तूने क्या किया,,,,?(गहरी सांस लेते हुए अंकित से बिना नजर मिलाए हुए सुगंधा बोली,,,)

फिर क्या मुझे मजबूरन वही करना पड़ा जो मैंने जिंदगी में नहीं सोचा था,,,।

क्या,,,?

मैंने परखनली तुम्हारे हाथ से ले लिया,,, और फिर मैं अपने मन को एकदम कठोर करके उस परखनली को तुम्हारी,,,(उंगली से अपनी मां की दोनों टांगों के बीच इशारा करते हुए) उस पर लगा दिया और तुम्हें मुतने के लिए बोला,,, और तुरंत तुम पेशाब करने लगी,,,।

खड़े-खड़े,,,,(एक दम हैरान होते हुए सुगंधा बोली,,)

तो क्या तुम बैठ नहीं पा रही थी इसलिए खड़े-खड़े करना पडा,, तब जाकर पेशाब का सैंपल मिला,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा एकदम स्तब्ध हो गई थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपने बेटे से क्या बोले वह अपने बेटे से शर्म के मारे नजर तक नहीं मिल पा रही थी।।,)


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बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है अंकित ने नमक मिर्च लगाकर अपनी मां को जो डॉक्टर के यहां हुआ था वो बता दिया अंकित की बाते सुनकर सुगंधा उत्तेजित हो रही है
 

Sanju@

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सुगंधा के कमरे का वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था,,, अंकित ने अपने बनावटी शब्दों से कमरे का माहौल पूरी तरह से गर्म कर दिया था,,, अंकित को पता था कि यही मौका है अपनी मां के सामने खुलने का और अपनी मां के साथ अश्लील बातें करने का क्योंकि इसमें दोनों की रजा मंदी नजर आ रही थी,,, अगर सुगंध चाहती तो वहां दवा खाने में क्या हुआ कैसे हुआ कैसे सैंपल दिया गया इस बारे में पूछती ही नहीं,, लेकिन उसका भी मन था अपने बेटे के मुंह से कुछ अलग सुनने का और इसी मौके का फायदा उठाते हुए अंकित भी अपने मन की कल्पनाओं को शब्दों में रच कर अपनी मां के आगे सुना दिया था जिसमें कुछ सच्चाई भी थी और कुछ सच्चाई से बिल्कुल परे था,,,।

सुगंधा अपने बेटे के साथ

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जब सुगंधा को इस बात का पता चला कि बाथरूम के अंदर वह पेशाब करने के लिए बैठ नहीं पा रही थी,, और उसे खड़े-खड़े पेशाब करना पड़ा था और तो एक वह अपने हाथ में परखनली भी नहीं पकड़ पा रही थी जिसकी वजह से उसके बेटे को अपने हाथ से परखनली पकड़कर उसकी बुर के गुलाबी छेद पर लगाकर पेशाब का सैंपल देना पड़ा था यह सुनते ही वह एकदम स्तब्ध रह गई थी एकदम खामोश,, शुन्य मनस्क,,, उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें उसकी जहां से बड़ी तेजी से चल रही थी और सांसों की गति के साथ-साथ उसके दोनों दशहरी आम भी ऊपर नीचे हो रहे थे जो की ब्लाउज में कैद होने के बावजूद भी अपनी आभा को पूरी तरह से उजागर किए हुए थे,,, अंकित की नजर तो उसकी मां की छातियों पर ही चली जा रही थी,,, अपनी मां के सुर्ख लाल चेहरे को देखकर अंकित को समझ में आ रहा था कि उसकी बात का असर उसकी मां पर बहुत ही बुरा पड़ रहा है,,,,।

Kalpna me sugandha

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इस बात को वह अच्छी तरह से जानता था कि दवा खाने की आधी से ज्यादा कहानी उसने झूठ बोला था जिसमें सच्चाई भी थी लेकिन सच्चाई से ज्यादा झूठ था,,,, लेकिन इस झूठ में कितनी मादकता और कितना आनंद छुपा हुआ था इस बात को केवल वह खुद और उसकी मां समझ पा रही थी सुगंधा तो अपने मन में कल्पना कर करके पूरी तरह से गीली होती चली जा रही थी,,, बार-बार वह अपने मन में कल्पना करने लग रही थी कि वह बाथरूम के अंदर खड़ी होकर पेशाब कर रही है उसके गुलाबी छेद से पेशाब की धार टूट रही है और उसका बेटा हाथ में परखनली लेकर उसकी बुर के गुलाबी छेद पर लगाकर उसमें से पैसाब को इकट्ठा कर रहा है,,,,आहहहहह,,,, गजब का एहसास पूरी तरह से मदहोशी से सरोबोर हो चुकी थी सुगंधा,,,‌।

सुगंधा दीवार का सहारा लेकर बैठी हुई थी और छत की तरफ देख रही थी उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी उसके बदन में उत्तेजना का तूफान उठ रहा था जिसका असर उसे अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में बड़े अच्छे से महसूस हो रही थी ठीक उसके सामने बिस्तर पर अंकित बैठा हुआ था और अंकित मन ही मन बहुत खुश हो रहा था क्योंकि आज दवा खाने के बहाने उसने अपने मन की बहुत सारी बातें अपनी मां से कर दिया था वह अपनी मां के सामने लंड बुर और चूची जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहता था लेकिन अभी तक उसके मुंह से इस तरह के शब्द निकल नहीं पाए थे बस इशारे से ही वह अपनी मां को उन अंगों के बारे में बता रहा था,,,। और उसकी मां उसके इशारों को समझ जा रही थी,,। अंकित अपनी मां को ही देख रहा था उसके कहे गए एक-एक शब्द उसकी मां के बदन में उत्तेजना की चिंगारी को और ज्यादा भड़का रहे थे इस तरह की बात करते हुए अंकित खुद उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुका था,,,।




Sugandha ki kalpna

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कुछ देर कमरे में पूरी तरह से खामोशी छाई रही,,, अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि अच्छा हुआ कि उसकी दीदी उसे घर पर रुकने के लिए बोल कर गई और उसे पूरा मौका मिल गया अपनी मां से अपने मन की बात बताने की दवा खाने के बारे में बनी बनाई बात बताने का और उसकी मां भी बड़ी गौर से उसकी एक-एक बात को सुन रही थी उसके हर एक शब्द उसके तन बदन में उत्तेजना का तूफ़ान पैदा कर रहे थे,,, जिस तरह से सुगंध को अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में गीलापन महसूस हो रहा था उसे डर था कि कहीं आज ही इसी समय अपने ही बिस्तर पर अपने बेटे के साथ हम बिस्तर न हो जाए,,,,। लेकिन वह जानती थी कि वह बेहद सुखद घड़ी होगी जब उसका बेटा बरसों से सूखी जमीन पर सावन की बूंदों की बौछार करेगा,,,,,,।



Sugandha ki adhbhut kalpna

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अपनी मम्मी को खामोश देखकर अंकित धीरे से बोला,,,,।


क्या हुआ मम्मी चुप क्यों हो गई,,,,,?

(अंकित की आवाज सुनकर सुगंधा एकदम से अपनी आंखों को खोल दे ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने उसे नींद से जगाया और वह अपने बेटे की तरफ देखने लगी,,,, तो अंकित फिर से बोला,,,)

क्या हुआ मम्मी तुम नाराज तो नहीं हो क्या मेरी बात तुम्हें बुरी लगी,,,, मैं तो वही बता रहा हूं जो कल दवा खाने में हुआ है,,,,।

वही तो मैं सोच रही हूं रे,,, यह कैसा बुखार था कि मुझे बिल्कुल भी होश नहीं था मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है दवा खाने में जो कुछ भी हुआ उसके बारे में मुझे कुछ भी याद नहीं है तेरी कहीं एक एक बात मुझे अंदर ही अंदर चोट पहुंचा रही है,,।



KAlpna me Ankit apni ma ki peticoat utarta hua

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कैसी चोट मम्मी तुम्हें मन छोटा करने की कोई जरूरत नहीं है वैसे भी हम दोनों दवा खाने में थे और दवा खाने में डॉक्टर के कहे अनुसार सब कुछ करना पड़ता है,,,।

वो सब तो ठीक है,,, लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे कुछ याद क्यों नहीं है और मैं तो इस बात पर बेहद शर्मिंदा हूं कि बाथरूम में मैं बैठ नहीं पा रही थी,,,,।

(अपनी मां को बाथरूम वाली बात याद करते देखकर उसकी अधूरी बात को पूरा करते हुए जल्दी से अंकित बोला)

हां मम्मी बिल्कुल सच है तू पेशाब करने के लिए नीचे बैठ नहीं पा रही थी इसलिए तुम्हें खड़े-खड़े करनापड़ा था,,,,।

(फिर से अपने बेटे के मुंह से पेशाब शब्द सुनकर सुगंधा उसे आश्चार्य से देखने लगी,,, क्योंकि उसका बेटा है इस तरह के शब्दों का प्रयोग खास करके उसके सामने बिल्कुल भी नहीं करता था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अंकित इतना खुल कैसे गया शायद नूपुर के बेटे की संगत का कमाल है वरना वह जानती थी कि उसका बेटा किस तरह के शब्दों का प्रयोग उसके सामने बिल्कुल भी नहीं करेगा लेकिन इससे सुगंधा नाराज नहीं थी बल्कि अंदर ही अंदर खुश हो रही थी,,, अपने बेटे की बात सुनकर गहरी सांस लेते हुए सुगंधा बोली,,,,)
Kalpna me Ankit apni ma ki chuchi pita hua

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लेकिन अंकित तुझे बुरा नहीं लगा पैसाब का सैंपल लेते समय,,,।

नहीं मम्मी मुझे तो लेना ही था आखिर जांच जो करवाना था,,हां यह बात है कि,,, जब मैं परखनली को तुम्हारी बुर,,,,(इतना कहते हैं एकदम से अंकित घबरा गया और तुरंत अपने शब्दों को बदलते हुए बोला) मेरा मतलब है कि जब परखनली में पेशाब का सैंपल ले रहा था तो पेशाब के छींटें मेरे ऊपर आए थे और कोई दिक्कत नहीं,,,,।

(सुगंधा समझ नहीं पा रही थी कि उसके बेटे के मुंह से औरत का सबसे बेश कीमती अंग का नाम बुर अपने आप ही आ गया या जानबूझकर वह ईस शब्द का प्रयोग किया था,,,, अंकित जानता था कि उसके मुंह से निकले शब्द बुर को सुनकर उसकी मां हैरान हो जाएगी और इसीलिए वह खुद एकदम हैरान होने वाला हाव-भाव अपने चेहरे पर ला रहा था जिसे देखकर सुगंध को लगने लगा था कि उसके बेटे के मुंह से अनजाने में ही वह शब्द फूट पड़े थे लेकिन वह अपने मन में सोचने लगी कि उसका बेटा यह जानता है कि औरत की दोनों टांगों के बीच के पतली दरार को बुर कहा जाता है,,, अपने बेटे के इसी ज्ञान से सुगंधा अंदर ही अंदर खुश हो रही थी,,, पेशाब के छिंटे वाली बात सुनकर,,, सुगंधा अपने चेहरे का सहज करते हुए बोली,,,,)
Kalpna me Ankit apni ma ki chudai karta hua


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तुझे कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन मेरा तो बुरा हाल हो रहा है मुझे तो बहुत शर्म आ रही है और मैं शर्मिंदा हूं कि तुझे इस तरह की तकलीफ झेलनी पड़ी,,,।


इसमें तकलीफ वाली कौन सी बात है मम्मी यह तो मेरा फर्ज था,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंध अपने मन में ही बोली हां यह तेरा फर्ज था ना मां को बाथरूम में ले जाकर खड़ी-खड़ी पेशाब करवाना परखनली को उसकी बुर पर रखकर उसके पेशाब का सैंपल देना यही सब फर्ज में आता है,,,,,, अपने आप से ही बात करते हुए सुगंधा के तन बदन में आग लग रही थी,,,, वह खामोश हो चुकी बोलने लायक उसके पास कोई शब्द नहीं बाथरूम में जो कुछ भी हुआ था वह उसकी कल्पना और सोच के बिल्कुल परे था,,, बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके बेटे के द्वारा बताया गया दृश्य नजर आ जा रहा था जब वह बाथरूम में खड़ी खड़ी पेशाब कर रही थी और उसका बेटा परखनली को उसकी बुर के छेद से लगाया हुआ था,,,। यह दृश्य यह ख्याल किसी भी मा के लिए बेहद शर्मनाक है,,, क्योंकि कोई भी सीधी शादी ममता से भरी हुई मां यह नहीं चाहेगी कि उसका बेटा उसके साथ बाथरुम में आए ,, और किसी भी सूरत में एक मां अपने बेटे की आंखों के सामने ही अपनी साड़ी कमर तक उठा दे अपना पिछवाड़ा दिखा दे,,,, और तो और वह बिल्कुल भी नहीं चाहेगी कि उसका बेटा अपने हाथों से उसकी चड्डी उतारे उसे पेशाब करने के लिए बोले,,,, और ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचेगी कि उसका बेटा दवा खाने में दवा खाने के बाथरूम में परखनली को लेकर खुद अपने हाथों से अपनी मां की बुर पर लगाए पेशाब का सैंपल लेने के लिए,,, यह सब एक मां के लिए बेहद शर्मनाक और शर्मिंदगी से भर देने वाला क्रियाकलाप है,,,,।
Ankit jam k chudai karta hua

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लेकिन एक सीधी साधी साधारण ममता से भरी हुई मां की जगह एक ऐसी मां हो जिसके तन बदन में जवानी उफान मारती हो उसकी आंखों में वासना के डोरे नजर आते हो और वह खुद अपने बेटे के साथ हम बिस्तर होना चाहती हो तो ऐसी मां के लिए यह सारे क्रियाकलाप आनंददायक और मदहोश कर देने वाले हैं,,,, और यही क्रियाकलाप का जहां एक तरफ सुगंधा पर बुरा असर पड़ रहा था वही वह अंदर ही अंदर इन सारे क्रियाकलाप से बहुत खुश हो रही थी क्योंकि एक तरह से उसके मन का ही हो रहा था वह अपने बेटे को नूपुर के बेटे की तरह बनना चाहती थी ताकि बेचकर उसका बेटा उसके अंगों से खेल सके,,,, और वह जानती थी किसी तरह की हरकत से उसका बेटा नूपुर के बेटे की तरह खुल जाएगा और फिर दोनों मिलकर जवानी का मजा लूटेंगे,,,, अपने मन में आए इस तरह के ख्याल से सुगंधा अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रही थी लेकिन अपने चेहरे के भाव को एकदम औपचारिक रूप से गंभीर बनाए हुए थी,,,,, और वह धीरे से बोली,,,)
सुगंधा अपने बेटे के साथ

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और फिर बाथरूम से निकलने के बाद क्या हुआ,,,?

बाथरूम से निकलने के बाद में धीरे-धीरे फिर से तुम्हें डॉक्टर के केबिन में लेकर आया,,, डॉक्टर तुम्हें इंजेक्शन लगाना चाहता था ताकि तुम्हें जल्दी आराम हो जिसके लिए उसने मुझे सहारा देकर तुम्हें टेबल पर बिठाने के लिए बोला था और मैं धीरे-धीरे तुम्हें टेबल के पास लेकर गया और सहारा देकर टेबल पर बैठा दिया,,, डॉक्टर अपने इंजेक्शन में दवा भरकर,,, तुम्हारे पास पहुंच गया मैं भी वही था मुझे लग रहा था कि वह तुम्हारे हाथ में सुई लगाएगा,,, लेकिन जब उसने तुम्हें लेट जाने के लिए बोला तो मेरा हैरान रह गया,,,।

क्या ,,,उसने मुझे लेट जाने के लिए बोला,,(हैरान होते हुए सुगंधा बोली,,)
Kalpna me mast hoti huyi sugandha

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हां मम्मी वाले जाने के लिए बोला और मैं जब उसे बोला कि हाथ में लगा दो तो वह बोला कि सुई भारी है हाथ दर्द करेगा,,,,। सच कहूं तो मुझे तो डॉक्टर की नियत कुछ साफ नहीं लग रही थी,,,,,।
(अंकित की बात को सुगंधा भी अच्छी तरह से समझ रही थी,,,, इसलिए वह बोली,,,)

मुझे भी ऐसा ही लग रहा है फिर क्या किया उसने,,,?

फिर क्या सहारा देकर मैं तुम्हें लिटा दिया क्योंकि वैसे भी तुम्हें होश नहीं था तुम पेट के बल लेट रही थी,,,, कुछ इस तरह से तुम लेती थी डॉक्टर तो तुम्हें देखता ही रह गया था,,,।

मैं कुछ समझी नहीं मैं कैसे लेटी थी,,,,,!

मतलब की मम्मी तुम पेट के बल लेटी हुई थी लेकिन तुम्हारा जो पीछे वाला भाग है,,,,(अंकित खुद से हाथ के सारे से अपना पिछवाड़ा दिखाते हुए बोला उसकी मां समझ गई थी) एकदम उभर कर सामने दिखाई दे रहा था एकदम बड़ी-बड़ी डॉक्टर की तो आंखें फटी की फटी रह गई थी वह हाथ में सी लिए हुए कुछ देर तक तुम्हारी कमर के नीचे वाले भाग को ही देखता रह गया,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा अंदर ही अंदर खुश हो रही थी क्योंकि वह डॉक्टर की हालत को समझ सकती थी डॉक्टर उसकी बड़ी-बड़ी गांड को ही देख रहा होगा ,,,पागलों की तरह देख रहा होगा,,, क्योंकि इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाने का श्रेय उसके नितंबों पर भी जाता है,,,,,)

फिर,,,,,,।

फिर न जाने उसके मन में क्या आया वह एक हाथ में इंजेक्शन लिए दूसरे हाथ से तुम्हारी साड़ी को ऊपर वाले भाग को पकड़ कर उसे नीचे की तरफ सरकाने लगा मैं तो उसकी हरकत देखकर एकदम हैरान था,,, लगभग लगभग तुम्हारी साड़ी को इतना नीचे की तरफ अपने हाथ से खींचा था कि तुम्हारे पिछवाड़े की ऊपरी लकीर दिखाई देने लगी थी,,,।

हाय दइया क्या कह रहा है तू,,,,(शर्म के मारे अपने मुंह पर हाथ रखते हुए सुगंधा बोली,,,)

हां मम्मी में सच कह रहा हूं,,,, डॉक्टर की नियत सच में साफ नहीं थी वह कुछ देर तक हाथ में इंजेक्शन दिए तुम्हारे पिछवाड़े को ही देखता रह गया जो की ट्यूबलाइट की रोशनी में एकदम दूध की तरह चमक रही थी,,,,।

क्यों तू भी देख रहा था क्या,,,,?

नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है मैं तो तुम्हारे पैर के पास तुम्हारे पैर को पकड़ के खड़ा था मुझे डर था कि कहीं तुम पलटने लगोगी तो नीचे गिर जाओगी,,,, डॉक्टर कैसा लग रहा था कि तुम्हें सुई लगाने के मूड में बिल्कुल भी नहीं था वह तो सिर्फ तुम्हारे पिछवाड़े को ही देख रहा था और उसने अपनी हथेली को तुम्हारी गोरी गोरी पिछवाड़े पर रख भी दिया था कुछ देर के लिए मुझे बहुत गुस्सा आया था लेकिन मैं जानता था कि कुछ कहूंगा तो यह इलाज करने से इनकार कर देगा इसलिए मैं खामोश रहा,,,, और फिर वह धीरे से तुम्हारे पिछवाड़े में सुई लगाने लगा,,,।

अच्छा एक बात बता तुझे कैसे पता चला कि उसकी नियत खराब है,,,,।


जब वह तुम्हें सुई लगाने जा रहा था तो मेरी नजर अचानक ही उसके पेट के आगे वाले भाग पर पहुंच गई थी,,,, पर मैंने देखा तो उसके पेंट में तंबू बना हुआ था,,,,,।

(अब तो अपने बेटे के मुंह से यह सुनकर सुगंधा के तो होश उड़ गए सुगंधा का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया,,, क्योंकि सुगंध पेट में तंबू बनाने के मतलब को अच्छी तरह से समझती थी वह जानती थी कि उसकी जवानी देखकर डॉक्टर का लंड खड़ा हो गया,,, था जहां इस बात से वहां एकदम हैरान हो रही थी वहीं दूसरी बात से वहां अपनी जवानी पर गर्व कर रही थी कि अभी भी वह किसी का भी लंड खड़ा करने में सक्षम है,,,,,,, अब उससे कुछ भी बोल नहीं जा रहा था और ना ही कुछ पूछने लायक वह बच्ची थी दवा खाने का सफर बेहद रोमांचक और उत्तेजना से भरा हुआ था इस बारे में उसे समझ में आ गया था,,, यह सब के बारे में सोच कर उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो रहा था वह अपने मन में सोच रही थी कि जब उसकी जवानी को देखकर डॉक्टर का इतना बुरा हाल था तब उसके बेटे के बदन में भी तो कुछ-कुछ हुआ होगा उसकी भी तो हालत खराब हो गई होगी लेकिन ऐसा पूछने की उसमें ताकत नहीं दे कुछ देर की खामोशी के बाद वह सिर्फ इतना बोली,,,)

अब मैं नहाना चाहती हूं,,,,।

ठीक है मम्मी मैं बाथरूम में तुम्हारे लिए पानी रख देता हूं,,,,,(और इतना कहने के साथ ही अंकित अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और जैसे ही वह उठकर खड़ा हुआ उसके पेट में बना तंबू एकदम से सुगंधा की आंखों के सामने चमकने लगा हालांकि अंकित उसे पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया और तुरंत कमरे से बाहर निकल गया लेकिन सुगंधा को समझ में आ गया था जिस तरह से डॉक्टर की नियत उसकी जवानी देखकर खराब हो रही थी उसी तरह से उसके बेटे की भी नियत उसकी मदद कर देने वाली जवानी को देखकर खराब हो रही थी,,,,।)
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है सुगंधा अंकित की बातों से उत्तेजित हो रही है एक तरफ उसे शर्म आ रही है वही वह खुश भी है
 

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दवा खाने में जो कुछ भी हुआ था उसमें से अधिकतर बातों को अंकित ने झूठ बताया था,,,, जो कुछ भी हुआ था उसे नमक मिर्च लगाकर बताया था और सुगंधा अपने बेटे की बात पर पूरी तरह से विश्वास कर ली थी और विश्वास के साथ-साथ उसके बातों की जो मादकता थी उसके हर एक शब्द को अपने अंदर उतार कर वह पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,,,, सुगंधा इस बात से भी बहुत खुश थी उसका बेटा उसके सामने काफी हद तक खुल चुका था और यही तो वह चाहती थी,,,, सुगंधा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,, उसकी हालत पूरी तरह से खराब हो चुकी है इतनी अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव तो उसने अपनी सुहागरात वाली रात को भी महसूस की थी जितना कि आज अपने बेटे की बातों को सुनकर वह उत्तेजित हुए जा रही थी,,,,।



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उसे आज भी अपनी सुहागरात की पहली रात बहुत अच्छे से याद थी आखिरकार यह रात औरत के जीवन का सबसे अहम हिस्सा बन जाता है चाहे जितना भी भूलने की कोशिश अगर औरत करें तो भी इस रात को नहीं भूल सकती क्योंकि उसके जीवन की सुहागरात उसके कौमार्य भंग की पहली रात होती है,,, एक मर्द के साथ मिलन की पहली रात होती है इस रात को औरत बहुत कुछ सिखाती है और बहुत कुछ मर्दों को सिखाती भी है यही रात उसके समर्पण की रात होती है यही रात उसके विश्वास की रात होती है जिसमें मर्द ओर औरत दोनों जिंदगी भर के लिए विश्वास के धागे से बंध जाते हैं,,, या यू कह लो की वैवाहिक जीवन की शुरुआत ही सुहागरात के संभोग क्रिया से होती है संभोग सुख के अद्भुत एहसास से होती है,,,, और ऐसा ही कुछ सुगंधा के साथ भी हुआ था,,,,।



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सुगंध को अपने वैवाहिक जीवन की पहली रात बड़ी अच्छे से याद थी जिसे सुहागरात कहा जाता है जब उसकी शादी तय हो चुकी थी तब सुहागरात का जिक्र अक्सर उसकी सहेलियां उसके सामने छेड़ देती थी,,, जिसे सुनकर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,,, क्योंकि सुगंधा के सहेलियां में कुछ लोगों की शादी हो चुकी थी और उसकी सहेलियां शादी की रात के पहले अनुभव को उसे बताती थी जिनमें रोमांच भी भरा होता था,, और एक अजीब प्रकार का डर भी होता था,,, रोमांच तो उसे समझ में आता था लेकिन डर उसे इस बात से लगता था कि उसकी एक सहेली ने उसे बताई थी कि,,, देखना सुगंधा शादी की पहली रात को बचकर रहना और मेरी मां सरसों के तेल की शीशी अपने साथ रख लेना अगर तेरे पति का लंड मोटा हुआ तो पहली रात में ही तेरी बर फट जाएगी और उसमें से खून निकलने लगेगा तुझे दर्द भी बहुत होगा,,,।




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उसकी इस बात को सुनकर सुगंधा पूरी तरह से डर गई थी उसे डर का एहसास उसे और ज्यादा परेशान करता था,,,, और वह नादानी भरे सवाल अपनी सहेली से पूछती थी,,,।

मोटा लंड (इस शब्द को कहने के लिए सुगंध पहले चारों तरफ नजर घुमा कर देख लेती थी कहीं कोई सुन तो नहीं रहा है लेकिन यह शब्द को बोलते हुए भी उसकी ज़बान लडखड़ा जाती थी,,,) मुझे कुछ समझ में नहीं आया इससे फटने वाली कौन सी बात है,,,.

(सुगंधा किस बात को सुनकर उसकी सहेली उसके नादानियत पर हंसने लगती थी और कहती थी,,,)

अरे बेवकूफ इसीलिए तुझे रहती हूं कि लड़कों को अपना दोस्त बना दे सबको सीख जाएगी लेकिन तू है कि एकदम सती सावित्री बनी रहना चाहती है अपने पति को अपनी बुर गिफ्ट करना चाहती है एकदम अनचुदी ,,,(और उसकी इस बात को सुनकर सुगंध नाराज होते हुए कहती थी)

Sugandha ki haseen boor

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चलिए सब रहने दे मुझे तेरे जैसा नहीं बना है आखिरकार शादी के बाद तो यह सब होना ही है तो दूसरों के साथ यह सब करके बदनामी क्यों मोल ले,,, लेकिन तू बताई नहीं जो मैं पूछ रही हूं,,,।

अच्छा बाबा बताती हूं देख सुगंधा इतना तो मैं जानती हूं कि तू किसी लड़के के साथ दोस्ती नहीं रखी है तो अब तक शारीरिक संबंध भी नहीं बनाई होगी और इसीलिए तेरी बुर का छेद बहुत ही शंकरा होगा,,, मतलब की बहुत छोटा और तूने तो अभी तक लंड भी नहीं देखी होगी देखी है कि नहीं,,,।

(उसके सवाल पर सुगंधा कुछ बोल नहीं पाई बस ना में सिर हिला दी वैसे भी उसकी ईस तरह की बातों को सुनकर उसके बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी वह मदहोश हुए जा रही थी,,,,,, सुगंधा का जवाब सुनकर उसकी सहेली मुस्कुराते हुए बोली,,,)


Sugandha ki kamuk harkat

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मुझे मालूम था,,,,देख ,,, तु ऐसे नहीं समझेगी,,, रुक तुझे समझाती हूं,,,(और इतना कहने के साथ एक बात अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और सीधे रसोई घर में चली गई थोड़ी ही देर में वहां से एक मोटा तगड़ा बेगम लेकर के उसके सामने आई और उसे दिखाते हुए बोली,,,)

देख सुगंधा,,, ऐसा ही होता है मर्दों का दमदार लंड,,,(बैगन के आगे वाले मोटे हिस्से की तरफ उंगली रखकर बोली) अब तु यह बता ईतना मोटा बेगन तेरी बुर के छोटे से छेद में कैसे घुसेगा,,,,,,।

(सुगंधा को आज भी वह पल बड़े अच्छे से याद था,, उस बैगन के मोटे हिस्से को देखकर उसके तो होश उड़ गए थे,,, वह समझ गई थी की उसके बुरे के छोटे से छेद में इतना मोटा बैगन वाकई में नहीं घुस सकता,,,, अपनी सहेली की बात सुनकर वह बोली)



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तू सही कह रही है मुझे तो बहुत डर लग रहा है,,,।

देख कर डरेगी तो सुहागरात का मजा नहीं ले पाएगी इसलिए तुझे समझा रही हूं कि अपने साथ सरसों के तेल की शीशी रखना,,,।

सरसों के तेल की सीसी क्यों,,,?

अरे बुद्धू सरसों के तेल को तू अपने पति के लंड पर लगा लेना एकदम चिकना कर लेना और थोड़ा सा तेल अपनी बुर पर भी लगा लेना,,,

इससे क्या होगा,,,?(सुगंधा फिर से नादानीयत भरा सवाल पुछी,,,)






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तू सच मेंपागल है,,, अरे सरसों का तेल तेरी बर और लंड को एकदम चिकनाहट से भर देगा और उसके बाद तेरी बुर में जाने में आराम रहेगा,,,, तब तुझे मजा भी बहुत आएगा,,,,

(अपनी सहेली की बात सुनकर थोड़ी बहुत राहत उसे महसूस हुई थी लेकिन जल्द ही शादी की रात आ गई थी सुगंधा की शादी गांव में हुई थी उसके पति गांव में ही पढ़ाने का काम करते थे,,,,,,और शादी के बाद उनकी नौकरी शहर में लग गई एक अच्छे से स्कूल में जिसमें आज खुद सुगंधा भी पढाती है,,, शादी की पहली रात को ही इतनी खूबसूरत औरत पाकर सुगंधा का पति बहुत खुश था,,,,।

Sugandha or uska beta

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सुगंधा को आज भी याद है पहली रात को ही,, सुगंधा के पति ने ज्यादा कुछ किया नहीं था बस बातचीत ही किया था और फिर बातचीत के अंत में केवल साड़ी को कमर तक उठाकर,, और सुगंधा की चड्डी उतार कर उसकी दोनों टांगों के बीच जाकर सिर्फ थोड़ा सा थूक लगाकर सुगंधा के बुर में डालने की कोशिश करने लगा लेकिन सुगंधा की बुर का छेद छोटा होने की वजह से सुगंधा का पति एकदम असफल रहा और उसका वीर्यपात हो गया,,,, ।

अपने पति के असफल रहने से वह पूरी तरह से निराश हो गई थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें इस बात को किसी से का भी नहीं सकती थी ना ही अपने पति से बता सकती थी क्योंकि सुगंधा दूसरी औरतों की तरह नहीं थी उसे इस बात का डर था कि अगर वह इस बारे में अपने पति से बात करेगी तो उसका पति उसके बारे में गलत धारणा बांध लेगा उसे चरित्रहीन समझेगा इसीलिए वह इस बात को का भी नहीं सकती थी,,,, उसे अपनी सहेली की बात याद आ रही थी मोटा और लंबा लंड बुर फाड़ देगा लेकिन उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसके पति लंड कुछ ज्यादा लंबा और मोटा नहीं था बस काम भर का था,,,।



Sugandha or uska beta


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दूसरे दिन वह फिर से अपने पति का इंतजार कर रही थी उसे बहुत डर लग रहा था,,,, क्योंकि जिस तरह का उसने अपने मन में सुहागरात को लेकर सपना संजोए थी वह पूरी तरह से चकनाचूर हो गया था,,, सब कुछ बिखरा हुआ सबसे नजर आ रहा था उसका इंतजार की घड़ी खत्म हुई और कमरे का दरवाजा खुला अपने पति को देखकर वह घबराने लगी थी,,, सुगंधा के चेहरे को देखकर उसके पति ने समझ लिया था कि सुगंधा क्या सोच रही है और वह उसके दर को दूर करके हुए बोला,,,।



Sugandha ki kalpna

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मैं जानता हूं सुगंधा कल की मेरी हरकत की वजह से तुम डरी हुई हो,,, मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था,,,(ईतना सुनकर सुगंधा आश्चर्य से अपने पति की तरफ देखने लगी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसका पति क्या बोल रहा है वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,) कल मैं जानबूझकर तुमसे प्यार किए बिना तुम्हारे साथ शारीरिक संबंध बनाया था और असफल होने का नाटक किया था क्योंकि मैं देखना चाहता था कि अगर तुम दूसरी लड़कियों की तरह होगी तो इस बारे में जरूर मुझे शिकायत करो कि लेकिन तुमने मुझे एक शब्द भी नहीं कहा नहीं घर वालों को कुछ बताया और मैं समझ गया कि तुम बहुत ही सीधी शादी हो चरित्रवान हो ,,, तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो तुम्हें संतुष्ट करने की ताकत मुझ में है,,,,।

(अपने पति की बातें सुनकर सुगंधा पूरी तरह से भाव भीबोर हो गई थी कल रात को जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में सोच कर वह सोच रही थी कि उसका जीवन पुरा तहस-नहस हो गया है इस तरह का पति पाकर,,, लेकिन उसके पति ने सब कुछ साफ कर दिया था और उसके बाद रात भर जमकर सुगंधा की चुदाई किया था और पूरी तरह से संतुष्ट किया था लेकिन एक बात का हिसाब सुगंध का हो रहा था कि उसके पति का लंड उसकी सहेली ने जिस तरह से बताया था मोटा और लंबा उसे तरह का बिल्कुल भी नहीं था लेकिन फिर भी वह अपने पति के लंड से पूरी तरह से संतुष्ट थी,,,,,।


Sugandha ki kalpna

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अपने बिस्तर पर बैठी हुई सुगंध अपनी सुहागरात की रात के बारे में सोच ही रही थी कि तभी उसके कानों में उसके बेटे की आवाज सुनाई दी,,,।

क्या हुआ मम्मी नहाना नहीं है क्या तुम्हारे लिए बाथरुम में हल्का कुनकुना पानी रख दिया हूं क्योंकि अभी ठंडा पानी से नहाओगी तो तबीयत और खराब हो जाएगी ,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर वह एकदम से सपनों की दुनिया से वापस आ गई और अपने बेटे की तरफ देखने लगी,,,, गहरी सांस लेते हुए बोली,,,)

ठीक है तु चल मैं आती हूं,,,,।
(ईतना सुनते ही अंकित वहां से दूसरा काम करने के लिए चला गया था लेकिन उसकी जाते-जाते उसके पेट के आगे वाले भाग पर सुगंधा की नजर फिर से चली गई थी जिसमें अभी भी अच्छा खासा तंबू बना हुआ था उसे देखकर सुगंधा की बुर में हलचल होने लगी वह समझ गई थी कि उसका बेटा कितना ज्यादा उत्तेजित है,,,, थोड़ी देर बाद वह बिस्तर पर से उठी और बाथरूम की तरफ जाने लगी,,,,,,, और बाथरूम से पहले चलते समय उसके कदम थोड़े से डगमगा गए,,, अंकित बाथरूम में साबुन रख रहा था उसकी नजर अपनी मां पर पड़ी तो वह एकदम से उसे संभालने के लिए उठकर खड़ा हो गया लेकिन तब तक सुगंधा दीवाल पर हाथ लगाकर संभल चुकी थी,,,)


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संभाल कर मम्मी लगता है अभी भी तुम्हें चक्कर आ रहा है,,,,,।

(चक्कर की बात सुनते हैं सुगंधा के तन-बाद में अजीब सी हलचल होने लगी और वह जानबूझकर बोली,,,)

मुझे भी ऐसा ही लग रहा है,,,,।

तब रहने दो मम्मी मत नहाओ,,,,

नहीं नहीं नहाना पड़ेगा मुझे अच्छा नहीं लग रहा है,,,,।

ठीक है लेकिन बाथरूम का दरवाजा खुला रखना ताकि कोई गड़बड़ हो तो मैं देख सकूं,,,,।
(अंकित के मन में दोहरे विचार चल रहे थे एक तरफ से वह अपनी मां की चिंता भी कर रहा था और दूसरी तरफ वह बाथरूम का दरवाजा खुला रखने पर अपनी आंखों को सेंक भी सकता था,,,, अपने बेटे की बात पर सुगंधा को कोई एतराज नहीं था,,, क्योंकि उसके मन में भी बहुत कुछ चल रहा था वह अपने बेटे से खुलना चाहती थी,,,। इसलिए वह दीवार का सहारा लेकर बाथरूम के दरवाजे तक पहुंच कर बोली,, )



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ठीक है,,,,(बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और वह धीरे से बाथरूम के अंदर प्रवेश कर गई,,, अंकित इतने में जल्दी से एक कुर्सी लेकर आ गया और ठीक बाथरूम के सामने किताब लेकर बैठ जा वह ऐसा जताना चाहता था कि वह पढ़ रहा है लेकिन वह अपनी मां पर ही नजर रखना चाहता था उसे देखना चाहता था नहाते हुए उसके खूबसूरत भजन को देखना चाहता था और इस बात का एहसास सुगंधा को भी था इसलिए उसके बदन में भी हलचल मची हुई थी,,,,।

कुछ देर तक सुगंधा बाथरूम में उसी तरह से खड़ी रही,,, जहां एक तरफ अपने बेटे की आंखों के सामने वह नहाने के लिए उत्सुक थी,,, वहीं दूसरी तरफ ना जाने क्यों उसे अपने बेटे की आंखों के सामने अपने कपड़े उतारने में शर्म महसूस हो रही थी जबकि उसके बेहोशी की हालत में उसके बेटे ने क्लीनिक के बाथरूम में उसकी चड्डी तक अपने हाथों से उतारा था ,,,,, फिर अपने मन में यह सोचकर की यही तो वह चाहती थी फिर अब क्यों शर्मा रही है अगर शर्माएगी तो जिंदगी का सुख नहीं ले पाएगी,,, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है और यही सही मौका भी है,,,, मर्दों का दिमाग औरत की खूबसूरत बदन को देख कर ही खराब होता है फिर वह भले ही चाहे उसका भाई हो बेटा हो या चाहे जो भी हो उसे सिर्फ औरतों में सिर्फ औरत ही नजर आती है ना ही कोई रिश्ता नजर आता है,,,।


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सुगंधा ऐसा अपने मन में सोच कर धीरे से अपनी साड़ी का पल्लू अपने कंधे पर से नीचे गिरा दी,,, और उसके ऐसा करने से उसकी भारी भरकम छाती एकदम से उजागर हो गई,,,,,,, वह अंकित तरफ मुंह करके खड़ी थी,,,, अंकित उसे तिरछी नजर से देख रहा था अपनी मां को इस तरह से अपनी साड़ी का पल्लू कंधे से नीचे गिरा था वह देखकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी थी,,, अंकित किताब का पन्ना खोलकर भले ही किताब पढ़ने का नाटक कर रहा था जबकि हकीकत यात्रा की वह अपनी मां की खूबसूरत बदन के पन्ने को खुलता हुआ देखना चाहता था,,,, जिसकी शुरुआत उसकी मम्मी अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा कर कर चुकी थी,,,।

अंकित बहुत उत्साहित और उत्तेजित था,,,, बाथरूम के दरवाजे में बने छोटे से छेद से वह अपनी मां को पूरी तरह से नग्न अवस्था में नहाते हुए देख चुका था लेकिन फिर भी उसके बदन की प्यास अपनी मां को नंगी देखने की चाहत कम नहीं हुई थी यहां तक कि वह खुद अपनी मां की अंतर्वस्त्र को अपने हाथों से उतारा था लेकिन फिर भी उसके मन की ललक कम नहीं हुई थी,,,,।

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बाथरूम के अंदर का माहौल धीरे-धीरे कम हो रहा था एक मां अपने बेटे के सामने अपने कपड़े उतार रही थी नहाने के लिए,,,सुगंधा ऐसा बिल्कुल भी ना करती है अगर उसके अंदर की एक औरत न जागी होती,,, क्योंकि उसके मन के चरित्र पर औरत का चरित्र को ज्यादा ही हावी होता जा रहा था जिसके चलते वह अपने बेटे के सामने कपड़े उतारने के लिए अपने आप को तैयार कर चुकी थी धीरे-धीरे वह अपने कमर पर भरी हुई साड़ी को खोलने लगी थी वह अपने दोनों हाथों से अपनी साड़ी को खोल रही थी और अंकित को ऐसा लग रहा था कि मानो जैसे उसकी मां उसके लिए अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी होने जा रही है,,,। दोनों के बीच पूरी तरह से खामोशी छाई हुई थी आंखों ही आंखों में बहुत सी बातें हो रही थी अंकित बार-बार किताबों के पन्नों में अपनी आंखों को भरमाने की कोशिश करता था लेकिन उसका चित उसकी मां पर टिका हुआ था,,,, अपनी साड़ी को खोलकर सुगंधा अपनी साड़ी को बाथरूम में कोने में रख दी थी और वह बाथरूम में केवल ब्लाउज और पेटीकोट में थी ब्लाउज और पेटीकोट में उसका गदराया बदन और भी ज्यादा मादक लग रहा था,,,, जिसे देख कर अंकित का लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आ गया था,,,।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
 
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Sanju@

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सुगंधा बाथरूम के अंदर धीरे-धीरे करके अपनी साड़ी अपनी खूबसूरत वतन से अलग करके बाथरूम के कोने में रख दी थी,,,, और अंकित उसकी मां को बिल्कुल भी तकलीफ ना हो इसलिए उसकी देखरेख के लिए बाथरूम के सामने ही कुर्सी रखकर बैठकर किताब पढ़ रहा था किताब क्या पढ़ रहा था किताब पढ़ने का वह बहाना बता रहा था उसकी नजर तो अपनी मां की खूबसूरत बदन पर ही थी तिरछी नजर से वह अपनी मां की एक-एक क्रियाकलाप को देख रहा था,,,,, सुगंधा भी कुछ कम नहीं थी,,,,,, अपने बेटे से वह जो चाहती थी धीरे-धीरे उसकी ख्वाहिश पूरी होती जा रही थी उसके बेटे में आए इस बड़े बदलाव से वह अंदर-अंदर बहुत खुशी और इसीलिए वह अपनी बीमारी का बहाना बनाकर एक बहाने से अपनी खूबसूरत बदन की नुमाइश करना चाहती थी अपने बेटे के सामने,,,।

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सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी जवानी अभी भी बरकरार है,,, उसके बदन से अभी भी जवानी का रस टपकता है,,,, इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी होती है औरत का नंगा जिस्म एक नंगी औरत जिसे देखकर मर्द पूरी तरह से अपने होशो आवाज होकर औरत का गुलाम बन जाता है इसीलिए सुगंधा अपने आप से अपने बेटे को अपना नंगा बदन दिखाना चाहती थी ताकि उसका बेटा पूरी तरह से उसके जवानी के आगे घुटने टेक दे,,,,,, जबकि वह ऐसा पहले भी अपने बेटे के सामने कर चुकी थी,,, लेकिन यह क्रियाकलात ऐसी होती है कि जितनी बार करो उतनी बार काम ही लगती है और हर एक बार एक नया उमंग और जोश से भर देती है इसीलिए सुगंध बेकरार थी अपने बेटे को अपना नंगा बदन दिखाने के लिए,,,।



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वैसे तो दुनिया का हर एक मर्द जानता है कि औरत के बदन में उसके कौन-कौन से अंग होते हैं जिन्हें वह न जाने कितनी बार देखा है लेकिन हर बार उसे औरत का अंग देखने का मन करता है और हर बार देखकर मस्त हो जाता है,,, सुगंधा यह भी जानती थी कि उसका बेटा भले ही देखभाल के बहाने बाथरूम के बाहरी कुर्सी डालकर बैठा है लेकिन उसका असली मकसद तो दूसरे मर्दों की तरह ही है एक खूबसूरत औरत के खूबसूरत नंगे जिस्म को निहारना,,,,।

कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी थी बाथरूम के अंदर सुगंध अपनी साड़ी उतार कर बाथरूम के कोने में रखती थी और इस समय बाथरूम के अंदर वह केवल ब्लाउज और पेटीकोट में ही थी ब्लाउज और पेटीकोट में औरत का जिस्म पूरी तरह से मादकता से भर जाता है,,,, और इस समय सुगंधा भी स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा की तरह दिखाई दे रही थी,,,। कुछ देर तक सुगंधा इसी अवस्था में खड़ी रही,,, क्योंकि वह अपने मन में सोच रही थी कि अब क्या करें,,, और अंकित अपनी मां को इस तरह से बाथरूम में खड़ी देखकर कुछ बोलने वाला था कि उसकी मां तुरंत अपने दोनों हाथों को हरकत देते हुए अपने ब्लाउज के बटन पर अपनी उंगलियां रख दी,,,,, अपनी मां की हरकत को देखकर अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि वह समझ गया था कि उसकी मां उसके ब्लाउस को खोलने जा रही है,,, कुछ ही देर में ब्लाउज के अंदर छुपा उसकी मां का पका हुआ दशहरी आम देखने को मिलेगा लेकिन उसे भी देखने के लिए उसके ऊपर का छिलका मतलब की ब्रा उतारना पड़ेगा,,, और अंकित इस बात से दुविधा में था कि उसके सामने उसकी मां अपनी ब्रा उतरेगी कि नहीं उतारेगी,,,,।



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लेकिन इसी बीच उसकी मां अपने ब्लाउज का बटन खोलना शुरू कर दी,,, सुगंधा का मुंह अंकित की तरफ था,,, सुगंधा जानबूझकर अपने बेटे की तरफ मुंह करके खड़ी थी ताकि उसका बेटा अपनी आंखों से सब कुछ देख सके,,,, वैसे भी बाथरुम का दरवाजा खुला छोड़कर वह अपने बेटे को एक तरह से इशारा दे दी थी कि जो कुछ भी होगा उसकी आंखों के सामने ही होगा,,,, सुगंधा धीरे-धीरे अपने ब्लाउज का एक-एक करके बटन खोलती चली जा रही थी और अंकित के दिल पर बिजलियां गिरा रही थी,,,, अपनी मां की हरकत पर अंकित का लंड पूरी तरह से फटने की स्थिति में आ गया था,,, औरत को और वह भी खूबसूरत औरत को कपड़े उतारते हुए देखना भी बहुत बड़ी किस्मत की बात है ऐसा मौका तो बहुत से लोगों के पास आता ही है लेकिन ऐसा मौका कम ही आता है जब एक मां अपने बेटे की आंखों के सामने ही अपने कपड़े उतार कर निर्वस्त्र होती हो और इसलिए अंकित इस समय बेहद खुश नसीब था,,,, एक तो उसकी मां बला की खूबसूरत थी,,, और ऐसे में खूबसूरत औरत के नंगे जिस्म को अपनी आंखों से देखना वाकई में किस्मत की बात थी इसलिए अंकित अपने आप को खुशकिस्मत समझ रहा था,,,।



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देखते ही देखते सुगंध अपने ब्लाउज के सारे बटन को खोल देती और अपने ब्लाउज के दोनों पट को बंद कमरे के दरवाजे की तरह धीरे से खोलकर दोनों पट को अलग कर दी,,,, और जैसे दरवाजा के खुलते ही कमरे के अंदर का सब कुछ एकदम साफ नजर आने लगता है वैसे ही सुगंधा के ब्लाउज के दोनों पट खुलते ही उसके लाल रंग की ब्रा एकदम से साफ नजर आने लगी थी ब्रा में कसा हुआ उसका दशहरी आम बेहद आकर्षक लग रहा था,,,,,,, तिरछी नजर से अंकित सब कुछ देख रहा था उसे इस बात का एहसास भी हो रहा था कि उसकी मां अपनी चूचियों के साईज से कम नाप की ब्रा पहनी हुई थी जिसकी वजह से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां उसके छोटे से ब्रा में किस तरह से समा नहीं पा रहे थे लेकिन एक नया समा बांध दे रहे थे जिसे देख पाना आंखों को गर्माहट प्रदान कर रहा था,,,, धीरे से सुगंधा अपनी बाहों में से अपने ब्लाउज को धीरे-धीरे उतारकर उसे भी साड़ी के ऊपर फेक दी,,,,।




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अंकित का दिल जोरो से धड़क रहा था उसका पूरा ध्यान अपनी मां के ऊपर ही था भले ही वह किताबों के पन्ने पलट कर अपनी नजर को किताबों में उलझाया हुआ था लेकिन उसका पूरा ध्यान अपनी मां के ऊपर ही था और इस बात को सुगंधा भी अच्छी तरह से जानती थी,,,, अंकित के साथ-साथ सुगंधा भी अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी,,,, कुछ देर पहले उसके बदन में दर्द था ज्वर से उसका बदन तप रहा था लेकिन अब बदन का वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था हालांकि उसका बदन अभी भी तप रहा था लेकिन ज्वर से नहीं उत्तेजना से,,, सुगंधा को अपनी बुर गीली होती हुई महसूस हो रही थी,,, वह मदहोश हो रही थी मस्त हो रही थी,,, और इस समय इस बात के लिए मन ही मन तृप्ति को धन्यवाद दे रही थी कि अच्छा हुआ कि वह उसकी देखभाल के लिए अंकित को छोड़कर गई अगर ऐसा ना होता तो शायद इस तरह का दृश्य बिल्कुल भी भजा नहीं जा सकता था,,,।




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ब्लाउज को उतार देने के बाद सुगंधा अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ ले गई और अपने ब्रा का हुक खोलने की कोशिश करने लगी वैसे तो वह अपने ब्रा का हक बड़े आराम से खोल देती थी लेकिन इस समय केवल वह नाटक कर रही थी वह जानबूझकर अपने हाथ को अपने ब्रा के हक तक नहीं ले जा पा रही थी,,,,, और ऐसा करते हुए अंकित उसे देख रहा था और मन ही मन प्रसन्नता के साथ-साथ उत्तेजित हो जा रहा था कि कुछ ही देर में उसकी मां के दशहरी आम उसे देखने को मिल जाएंगे,,, और इस बात से तो और भी ज्यादा उत्साहित था कि उसकी मां बिना शर्माए बही जब उसके सामने अपने कपड़े उतारने के लिए तैयार हो चुकी थी और उतार भी रही थी बस इस बात की उत्सुकता उसके मन में अत्यधिक की उसकी मां नहाने से पहले अपने बदन से क्या-क्या उतारती है,,, और इसलिए अंकित अपने मन में प्रार्थना कर रहा था कि,,, कल की तरह उसकी मां के दिलों दिमाग पर बदहवासी छा जाए और उसे बिल्कुल भी होश ना हो और बेहोशी की हालत में वह खुद अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी हो जाए,,, ऐसा सोच कर वह अपनी मां से नजर बचाते हुए पेट के ऊपर से ही अपने लंड को जोर से मसल दिया,,,,,।


Ankit ki adbhut kalpna

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बार-बार सुगंधा ब्रा का हुक खोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन जानबूझकर खोल नहीं रही थी,,, और दोनों हाथों को पीठ की तरफ ले जाने की वजह से उसके आगे की छाती पूरी तरह से निकाल कर बाहर की तरफ आ गई थी जिसे उसके दोनों खरबूजे ऐसा लग रहा था कि ब्रा फाड़ कर बाहर आ जाएंगे,,,, अंकित का मन तो कर रहा था कि,,, आगे बढ़कर बाथरूम में कोई चाय और अपनी मां के दोनों खरबूजा को अपने हाथ में लेकर दबा दबा कर उनका रस पी जाए,,, लेकिन ऐसा करने की हिम्मत उसमें अभी नहीं थी,,,,, क्योंकि भले ही वह अपनी बातचीत के जरिए अपनी मां से थोड़ा बहुत खुल चुका था लेकिन इतना नहीं खुला था कि वह अपनी मां की खूबसूरत बदन से खेलना शुरू कर दे या अपनी मां से गंदी हरकत करना शुरू कर दे क्योंकि वह जानता था कि इस तरह की हरकत से उसकी मां के बारे में क्या सोचेगी क्या बर्ताव करेगी यह अभी उसे नहीं मालूम था लेकिन जरा भी उसे इस बात का भनक लग जाए कि उसकी मां की उसके साथ एक जाकर होना चाहती है तो इसी समय अंकित बाथरूम में घुसकर अपनी मां की जवानी पर पूरी तरह से काबू पा ले,,,,, लेकिन अंकित नहीं जानता था कि उसकी मां क्या चाहती है इतना तो उसे एहसास हो गया था कि उसकी मां भी जिस अवस्था से गुजर रही है प्यार की भूखी है लेकिन यह जानकर भी अंकित ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था जिससे आगे चलकर उसे ही तकलीफ हो वह इस खेल में धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहता था और इतना तो वह कामयाब हो ही गया था कि अपनी आंखों के सामने अपनी मां को वस्त्र उतारने के लिए मना लिया था,,,,।



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कुछ देर और कोशिश करने के बाद उसे कुछ याद आया हो इस तरह से वह तुरंत बाथरूम के दीवार की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और पीठ को अंकित की तरफ कर ली और ऐसे में वह अपनी उंगलियों को अपनी तरह के होकर तक पहुंचाने की कोशिश करने लगी,,, वह अच्छी तरह से जानती थी कि अंकित तो सही देख रहा होगा और उसकी नाकाम हो रही कोशिश को देखकर जरूर कुछ करने की सोचेगा और कुछ देर तक यह दृश्य इसी तरह से चलता रहा,,, अंकित देख रहा था कि उसकी मां ब्रा कहो खोलना चाह रही थी लेकिन उसका हाथ उसकी उंगली ब्रा के हक तक पहुंच नहीं रही थी और अंकित अपने मन में सोच रहा था कि पहले भी तो उसकी मां इस तरह से अपना ब्रा उतरती होगी लेकिन तब तो किसी प्रकार की तकलीफ नहीं आती है लेकिन आज ऐसा क्यों हो रहा है,,,, अंकित के मन में यही सब चल रहा था वह अपने मन में सोच रहा था कि कहीं उसकी मां जानबूझकर तो यह नाटक नहीं कर रही है लेकिन तभी वह सोचा कि शायद बीमारी की वजह से वह अपने हाथ को ज्यादा पीछे की तरफ नहीं उठा पा रही है इसलिए अपनी मां को कोशिश करता हुआ देखकर वह खुद कुर्सी पर बैठा बैठा बोला,,,,।

क्या हुआ मम्मी,,,,?


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अरे देखना,,,,(नजर घुमा कर अपने बेटे की तरफ देखते हुए) मेरा हाथ ब्रा की हुक तक नहीं पहुंच रहा है,,,,।


मैं मदद कर दूं क्या मम्मी,,,,।

हा रे अब तो तुझे ही मदद करनी होगी,,, बुखार की वजह से हाथ में दर्द हो रहा है और ऊपर की तरफ नहीं जा रहा है,,,,

(अपनी मां की बात सुनकर कुर्सी पर बैठे हुए ही अंकित तपाक से बोला)

तब तो अच्छा ही हुआ मम्मी की डॉक्टर ने तुम्हारे पिछवाड़े पर सुई लगाया अगर हाथ में लगाया होता तो शायद हिलाना भी मुश्किल हो जाता ,,,(अंकित अपनी मां की गांड के बारे में बात करने लगा था हालांकि गांड को बोलने का तरीका कुछ और था लेकिन इसका मतलब भी वही होता है,,, इसलिए तो अपने बेटे के मुंह से यह शब्द सुनकर सुगंधा के तन बदन में हलचल होने लगी और अपने आप ही उसकी नजर एकदम से झुक गई वह शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी,,, क्योंकि वह देख रही थी कि उसका बेटा अब उसके सामने बिल्कुल भी शर्म नहीं कर रहा था,,, फिर भी अपने बेटे की बात सुनकर गहरी सांस लेते हुए वह बोली,,,।)
Tripti or ankit ek din

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तू सही कह रहा है अंकित अगर हाथ में लगा देता तो शायद मेरा उठना बैठना भी मुश्किल हो जाता जब बीना सुई लगाए इतना दर्द कर रहा है तो सुई लगाने के बाद कितना दर्द करता ,,,,,, अब जरा मेरी ब्रा का हुक तो खोल दे,,,।

ठीक है मम्मी अभी खोल देता हूं,,,,,(अंकित के बदन में उत्साह के साथ-साथ उन्माद भी फैलने लगा इन शब्दों में कितना रस घुला हुआ था इस बात को केवल अंकित ही समझ सकता था एक औरत के द्वारा एक जवान लड़के को आजा देना कि जाकर उसके वस्त्र उतार दे भला एक मर्द के लिए दुनिया में इससे बड़ा तोहफा और क्या हो सकता है और वह भी एक खूबसूरत औरत के वस्त्र उतारने की बात हो तो बात ही कुछ और हो जाती है,,,,, अंकित अपने मन में सोच रहा था कि वक्त और हालत कितनी जल्दी बदल जाते हैं पता ही नहीं चलता,,, पहले मम्मी अपने इस अंतर्वस्त्र को हमेशा नजरों से छुपा कर रखती थी छत पर कपड़े सुखाने के लिए भी डालती थी तो उसे साड़ी के अंदर डालती थी ताकि उस पर मेरी नजर ना पड़ जाए,,,,,, भूल से भी अपने बदन का ऐसा हिस्सा कभी भी उजागर नहीं होने देना चाहती थी जिसे देखकर मन पर बुरा असर पड़े,,, लेकिन आज देखो हालात और वक्त कितना बदल चुका है कि आज वह खुद अपने ही बेटे को अपने कपड़े उतारने के लिए बोल रही थी,,,।

Sugandha apni chaddhi utarti huyi

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यह बदलाव शायद एक मां के अंदर औरतों के जागरूक होने पर आया था वरना जब तक मां का अस्तित्व था तब तक उसके अंदर की औरत कभी बाहर नहीं आई थी बरसों से एक तरह से एकाकी जीवन की रही थी लेकिन फिर भी अपने बदन की प्यास को वह अपने सीने में दफन कर चुकी थी लेकिन वह प्यास उबाल करने लगी थी एक मां के अंदर एक औरत का अस्तित्व छुपा हुआ था जो बाहर आने लगा था और जब एक औरत एक मां के अंदर से बाहर आती है तो फिर वह अच्छे बुरे का ख्याल अपने मन से निकाल देती है इसलिए तो वह अपने बेटे में भी एक मर्द को खोजने लगती है,,,, पर मर्दों का तो हमेशा सही रहा है खूबसूरत बदन पर आकर्षित हो जाना भले ही वह रिश्ते से कितनी करीबी क्यों ना हो उसे हर एक रिश्ते में केवल एक खूबसूरत औरत ही नजर आती है जैसा की अंकित की नजरे देख रही थी बाथरूम के अंदर उसकी मां थी लेकिन वह अपनी मां को नहीं बल्कि यह खूबसूरत औरत को देख रहा था,,,,।



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अपनी मां की बात सुनकर अपनी मां की तरफ से आज्ञा पाकर ज्यादा देर तक अंकित अपनी जगह पर बैठा नहीं रह सकता था क्योंकि वह भी उतावला हो रहा था अपनी मां की ब्रा को अपने हाथों से चुने के लिए उसका हक खोलकर उसके जोड़ों को अलग करने के लिए ताकि उसकी मां अपने हाथों से अपनी ब्रा उतार कर अपने दोनों दशहरी आम को उजागर कर दे अपनी चूची को नग्न कर दे,,,, इसलिए जल्दी से अंकित कुर्सी पर से उठा और कदम आगे बढ़ते हुए बाथरूम के दरवाजे पर पहुंच गया उसकी मां दीवाल की तरफ मुंह करके खड़ी थी और शर्म के मारे वह अपनी नजरों को दीवार की तरफ फेर ली थी क्योंकि एक औरत के उजागर हो जाने के बावजूद भी अभी भी उसके अंदर मां का अस्तित्व बाकी था अभी भी उसमें शर्म और हया बाकी थी भले ही अपने बेटे को पूरी तरह से छूट दे रही थी लेकिन शर्म का घूंघट अभी भी उसके बदन पर बना हुआ था,,,,।



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अंकित धीरे से अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाया और जैसे ही उसकी उंगलियां उसकी मां की नंगी चिकनी पीठ पर इस पर से हुई एकदम से सुगंधा के बदन में मदहोशी छा गई और हल्का सा उसका बदन उचक गया मानव की जैसे उसके बदन में उन मादकता की लहर उठी हो,,, और यही हाल अंकित का भी हो रहा था अपनी मां की नंगी चिकनी पीठ का स्पर्श बातें ही उसकी दोनों टांगों के बीच की स्थिति बदलने लगी हालांकि उसका लंड पूरी तरह से टनटनाया हुआ था,,, लेकिन पीठ का स्पर्श बातें ही उसके अंदर इतनी अत्यधिक उत्तेजना का संचार होने लगा कि उसे अपने लंड में दर्द महसूस होने लगा था वह पूरी तरह से पागल हुआ जा रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि उसके लंड में अद्भुत शक्ति का संचार हो रहा है और उसे इतना अत्यधिक विश्वास हो गया था कि अगर मौका मिले तो वह इसी समय अपनी मां की चुदाई कर दे,,,,, लेकिन फिर भी बड़ी मुश्किल से वह अपनी बेकाबू मां को काबू में रखे हुए था,,,,,।

दोनों पट्टीयों को एक दूसरे के सामने खींचना आराम से खुल जाएगी,,,,।



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ठीक है मम्मी,,,,(अपनी मम्मी का दिशा निर्देश पाकर वह अपनी मां की ब्रा का हुक को खोलने की कोशिश करने लगा,,, लेकिन ऐसा करने में उसके पसीने छूट जा रहे थे ऐसा नहीं था कि वह अपनी मां के ब्रा का हुक खोल नहीं पा रहा था,,,, वह चाहता तो वह अपने हाथों की ताकत दिखाते हुए अपनी मां की ब्रा को खोले बिना उसे फाड़ कर उसके बदन से अलग कर सकता था,,,, लेकिन एक अद्भुत एहसास उसके तन बदन में नई उत्तेजना का संचार कर रहा था एक औरत का ब्रा खोलने में शुरू-शुरू में एक मर्द को कितनी मस्सकत करनी पड़ती है ,,, वही हाल इस समय अंकित का हो रहा था भले ही वह एक बार क्लीनिक में क्लीनिक के बाथरूम में अपनी मां की चड्डी अपने हाथों से उतर चुका था लेकिन इस समय वह पूरी तरह से उत्तेजित अवस्था में थोड़ा बहुत घबरा रहा था उसके हाथों में कंपन हो रहा था,,,, क्योंकि क्लीनिक के बाथरूम में तो उसकी मां बुखार की वजह से बेहोशी की हालत में थी लेकिन इस समय बाथरूम के अंदर वह पूरी तरह से होशो हवास में थी पूरी तरह से जगाती हुई और ऐसे में अंकित को उसकी ब्रा कहो खोलने में थोड़ी घबराहट हो रही थी जबकि वह अपनी मां से पूरी तरह से आज्ञा पा चुका था,,,।



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कुछ देर तक अंकित को इधर-उधर करता देखकर सुगंधा बोली,,,।

क्या कर रहा है अंकित तुझसे ब्रा का हक नहीं खुल रहा है पता नहीं तुझे क्या होगा,,,?(सुगंधा एक तरह से यह बात कह कर अपने बेटे पर व्यंगय कस रही थी एक तरह से वह अपने बेटे की मर्दानगी को ललकार रही थी अंकित भी अपनी मां के कहने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था,,,, और वह अपने मन में बोला मम्मी,,, यह तो मैं बेटे की हैसियत से ब्रा की हुक खोलने की कोशिश कर रहा हूं,,, अगर पूरी तरह से मर्दानगी पर उतर गया तो ब्रा को खोलने की जरूरत नहीं पड़ेगी फाड़ के अलग कर दूंगा,,,। फिर भी वह धीरे से बोला,,)



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खोलने की कोशिश तो कर रहा हूं मम्मी लेकिन ब्रा की पट्टी एकदम कसी हुई है ऐसा लग रहा है कि तुम अपनी साइज से कम नाप की ब्रा पहनी हो,,, ।

अरे वह बेटा तेरी नजर तो बहुत तेज है,,,,(अपने बेटे की बात सुनकर खुश होते हुए सुगंधा बोली,,,, और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,) लेकिन तुझे कैसे मालूम पड़ा की साइज से कम नाप की में ब्रा पहनी हूं,,,,।

क्योंकि पट्टी एकदम कसी हुई है अगर ना आपकी पहनती तो मेरी उंगली ब्रा की पट्टी में आराम से चली जाती और मैं आराम से खोल पाता,,,(ब्रा की पट्टीयों में अपनी उंगली को उलझाए हुए वह बोला,,,)

कोई बात नहीं बेटा अभी भी खुल जाएगी ,,रोज तो मै खोलते ही हूं आज मेरा हाथ ऊपर की तरफ नहीं पहुंच रहा है इसलिए दिक्कत आ रही है,,,।



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ठीक है मम्मी थोड़ा रुक जाओ,,,(और इतना कहने के साथ ही वह थोड़ा सा दम दिखाया और पट्टी को एक दूसरे के सामने खींचा और हुक एकदम से खुल गया,,,)
,,,,
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Sanju@

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काफी मशक्कत करने के बाद आखिर कर अंकित ने अपनी मां की ब्रा का हुक खोल ही दिया ,,,,, अंकित को इतने सही समझ में आ गया था कि औरत को नंगी होते हुए देखना और खुद अपने हाथों से उसके कपड़े उतार कर नंगी करने में कितना फर्क है,,,। अंकित को इसमें थोड़ी बहुत शर्मिंदगी का एहसास हुआ था,,, जब उसकी मां ने यह कहा था कि क्या कर रहा है तुझसे हुक नहीं खुल रहा,,, अपनी मां के मुंह से यह सुनकर उसे अपनी मर्दानगी पर थोड़ा गुस्सा आने लगा था पर वह अपने मन में यही सोचता था कि जब वह खूबसूरत औरत का ब्रा नहीं खोल सकता तो उसके साथ संभोग कैसे करेगा,,, लेकिन अंकित अपनी मरदान की साबित करते हुए अपनी मां का ब्रा का हुक खोल दिया था अभी भी उसके हाथों में ब्रा का हुक था,,,,।




Sugandha ki maadak Ada ki jhalak bathroom me

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बाथरूम के अंदर बेहद अद्भुत दृश्य की रचना हो रही थी और रचनाकार थी सुगंध जो अपनी जवानी के जंगलों में अपने बेटे को पूरी तरह से फांस रही थी,,, और अंकित अपनी मां की जवानी के चलते उसकी मदहोशी भारी जाल में फसता चला जा रहा था,,, औरजब सुगंधा जैसी जवानी से लदी हुई जाल साज हो तो दुनिया का कौन सा मर्द होगा जो ऐसे जाल में फंसना नहीं चाहेगा,,, इसलिए तो उनमें से अंकित भी बाकात नहीं था,,,वह भी अपनी मां की जवानी के रस में डूबने के लिए तैयार था,,,।





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बाथरूम में सुगंधा सामने की दीवार की तरफ मुंह करके खड़ी थी उसकी पीठ अंकित की तरफ थी और उसकी ब्रा खुली हुई थी उसे खोलने वाला था खुद अंकित जिसके हाथों में अभी भी उसके ब्रा की पट्टी थी,,,, अंकित का दिल बड़ी जोरों से धड़क रहा था,,, क्योंकि वह जानता था कि हुक खुल जाने की वजह से उसकी मां की चुचियों का कैसा हुआ ब्रा का कप एकदम से ढीला हो गया होगा उसकी मां की चूची आजाद हो गई होगी लेकिन वह देख नहीं पा रहा था,,,, उसका मन मचल रहा था अपनी मां की नंगी चूचियों को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा था लेकिन आगे चलकर वह खुद से तो अपनी मां की चूची देख नहीं सकता था क्योंकि ऐसा करना उसे इस समय थोड़ा बहुत गलत लग रहा था,,,, क्योंकि इस समय उसकी मां बीमार थी भले ही उसे थोड़ा आराम होने लगा था बुखार उतर चुका था लेकिन फिर भी वह बीमारी ही थी और ऐसे हालात में फायदा उठाना अंकित को अच्छा नहीं लगना था,,,।





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अगर बीमारी की हालत में वह अपनी मां का फायदा उठाना चाहता तो दवा खाने के क्लीनिक में ही उसके अंगों को दबा देता मसल देता अपनी मां की बुर पर हथेली रख देता या उसमें उंगली डाल देता कुछ भी कर सकने की स्थिति में वह था क्योंकि उसकी मां को बिल्कुल भी होश नहीं था,,, यहां तक कि जब दवा लेकर घर पर आया तब भी दवा खाने के बाद उसकी मां एकदम बेहोशी की हालत में सो रही थी उसे समय भी वह चाहता तो कुछ भी कर सकता था यहां तक की अपने जीवन की पहली चुदाई का सुख भोग सकता था और वह भी अपनी मां की खूबसूरत बदन के साथ लेकिन वह ऐसा नहीं किया और इसीलिए इस समय भी वह अपनी मनमानी नहीं करना चाहता था,,,।





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फिर भी हालात पूरी तरह से नाजुक हो चुके थे अंकित के पेंट में तंबू बना हुआ था और ठीक उसके लंड के सामने उसकी मां की उभरी हुई गांड थी जो की पेटिकोट के परदे में कैद थी,,,, पेटीकोट में होने के बावजूद भी अंकित को अपनी मां की गांड का उभार और उसका कटाव एकदम साफ झलक रहा था मन तो उसका कर रहा था कि बस एक कदम आगे बढ़कर अपने लंड की रगड़ अपनी मां की गांड पर महसूस करा दे,,, लेकिन ऐसा करने से वह डर रहा था वह कोई भी काम बिगड़ता नहीं देना चाहता था वह नहीं चाहता था कि उसकी एक गलती से सब कुछ बिगड़ जाए उसे ऐसा लग रहा था कि उसकी मां नाराज हो जाएगी लेकिन वह तो खुद चाहती थी कि अंकित आगे बढ़े,,,, उसके साथ कोई हरकत करें उसके बदन से खेले,,, और वह ईसी इंतजार में थी,,,,,,और वह जानती थी कि,,,,,अगर वह थोड़ा सा भी पीछे अपनी गांड को ले गई तो तुरंत उसके बेटे का तंबू उसके नितंबों पर रगड़ खाने लगेगा और वह इस अनुभव के लिए तड़प रही थी और मन ही मन अंकित पर थोड़ा गुस्सा भी कर रही थी,,,।




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और गुस्सा इस बात से कर रही थी कि,,, अंकित पूरी तरह से जवान होने के बावजूद भी दूसरे लड़कों की तरह हरकत करने वाला नहीं था नहीं तो उसकी आंखों के सामने इतनी खूबसूरत औरत और जिसे खुद अपने हाथों से ब्रा का हुक खोलना हो भला ऐसा लड़का ऐसी खूबसूरत औरत के बदन के साथ छेड़छाड़ किए बिना कैसे रह सकता है,,, कुछ देर तक सुगंध भी उसी अवस्था में खड़ी रही वह चाहती थी कि अंकित की तरफ से कोई हरकत हो अंकित उसके बदन पर अपना हाथ रखे या कोई ऐसा हरकत करें जिससे वह एकदम से मस्त हो जाए लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ वह पागल की तरह अपने दोनों हाथों में उसकी ब्रा की पट्टी पकड़े खड़ा रहा,,,,,,,ऐसा नहीं था कि,, अंकित के मन में यह सब नहीं चल रहा था वह भी अपने लंड को अपनी मां की गांड पर रगड़ना चाहता था उसके नितंबों पर अपने तंबू को सहलाना चाहता था लेकिन ऐसा करने में उसे डर लग रहा था,,,, बार-बार अंकित की नजर अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड पर जा रही थी और वह ऊंचाई में थोड़ा अपनी मां से एक दो इंच बड़ा ही था इसलिए वहां ऊपर से ही अपनी मां की छातिया की तरफ देख रहा था लेकिन वह ठीक से दिखाई नहीं दे रही थी,,, अगर वह एक कदम आगे बढ़ा देता तो उसे सब कुछ साफ-साफ नजर आने लगता लेकिन ऐसा करने से उसका तंबू उसकी मां की नितंबों पर एकदम से रगड़ खा जाता और उसे इस बात का डर था कि कहीं उसकी मां बुरा ना मान जाए,,,,।




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जब कुछ देर तक दोनों की तरफ से किसी भी प्रकार की हरकत नहीं हुई तो सुगंधा ही गहरी सांस लेते हुए बोली,,,।

बस कर अब मैं उतार लूंगी,,,,।

ठीक है मम्मी,,,(इतना कहने के साथ ही बेमन से अंकित वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गया उसका तो मन कर रहा था कि अपनी मम्मी से कह दे कि तुम रहने दो मेरी तुम्हें नहला देता हूं,,,,,,।

अंकित अपनी जगह पर आकर बैठ गया था और सुगंधा मन ही मां अपने बेटे पर गुस्सा कर रही थी,,, वह धीरे से अपने खुली हुई ब्रा को अपनी बाहों में से बाहर निकाली और उसे दूसरों कपड़ों के साथ रखदी,,, अंकित तिरछी नजर से अपनी मां की तर्पी देख रहा था ब्रा के उतरते ही वह समझ गया था कि उसकी मां कमर के ऊपर पूरी तरह से नंगी हो चुकी है,,, और अपने मन में यही सोच कर मस्त हो रहा था कि क्या मस्त लगती होगी उसकी मां इस समय,,, बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां एकदम गोल गोल जिसे देखकर ही मुंह में पानी आ जाए,,,, अंकित की हालत खराब हो रही थी बाथरूम में खड़ी उसकी मां के बदन पर केवल पेटिकोट भर रह गई थी,,,,।


अंकीत की कल्पना,,रसोईघर में

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सुगंधा का दिल जोरो से धड़क रहा था उसका मन तो कर रहा था कि लगे हाथ अपनी पेटिकोट के उतार कर पूरी तरह से नंगी हो जाए लेकिन ऐसा करने में उसका बेशर्मी पन झलक सकता था क्योंकि इस समय वह पूरी तरह से होश में थी,,, बेहोशी की बात कुछ और थी,,, लेकिन आज ऐसी कोई बात नहीं थी आज वह पूरी तरह से होश में थी इसलिए ऐसा करना उचित नहीं था लेकिन फिर भी वह जिस तरह की अदाकारी दिख रही थी उसे पूरा विश्वास था कि उसके बेटे की हालत पल-पल खराब होती जा रही थी,,, सुगंधा इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि केवल उसकी देखभाल के बहाने उसका बेटा जानबूझकर बाथरूम के सामने बैठा हुआ है वह उसे कपड़े उतारते हुए देखना चाहता है उसे नंगी देखना चाहता है,,, ईसी बात का एहसास सुगंधा केतन बदन में उत्तेजना की फुहार उठा रहा था जो कि यह फुआ उसकी टांगों के बीच की पतली दरार के झरने में से बह रही थी,,,।


अंकित की कल्पना अपनी मां के साथ

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बाथरूम के इर्द-गिर्द का वातावरण पूरी तरह से मादकता से भरता चला जा रहा था अंकित की आंखों के सामने दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत धीरे-धीरे करके अपने बदन पर से कपड़े उतार रही थी,,, ब्लाउज ब्रा और पेटिकोट का नंबर था और यही देख देख कर अंकित पूरी तरह से मदहोश हुआ जा रहा था मस्त हुआ जा रहा था,,, लेकिन सबके बावजूद भी उसके मन में इस बात का मलाल था कि इतनी खूबसूरत औरत उसकी आंखों के सामने कपड़े उतार रही थी लेकिन वह कुछ कर नहीं पा रहा था,,,,। बस देखने के सिवा वह कुछ कर भी नहीं सकता था,,, अंकित के हालात इस कदर बिगड़ गए थे कि,,, उसे इस बात का डर लगने लगा था कि कहीं उत्तेजना की वजह से उसके लंड के नशे फट ना जाए,,,। इसलिए बार-बार पेट के ऊपर से अपने लंड को दबा दे रहा था,,,,।



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बाथरूम के अंदर सुगंधा अपने पेटिकोट की डोरी खोलने लगी और अपनी मां की हरकत को देखकर अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा उसके मन में उमंग जगने लगी,,, वह अपने मन में सोचने लगा आज तो उसकी मां बिल्कुल होश में है तो बना हुआ उसकी उपस्थिति में इस तरह से अपने कपड़े कैसे उतार सकती है क्या ऐसा तो नहीं कि उसकी मां ही कुछ चाहती हो उसके मन में भी कुछ चल रहा हो जिस तरह से उसके दोस्त ने बताया था कि,, इस तरह के जीवन जीने वाली औरतें चुदवासी होती है,,, इनमें भी समय-समय पर कामाग्नि भड़कने लगती है,,, इस तरह की औरतों को भी समय-समय पर लंड की जरूरत पड़ती है,,, अपने दोस्त की कही बात याद आते ही अंकित के लंड की अकड़ और ज्यादा बढ़ने लगी,,,,,, उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,,,,।




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अंकित अपनी मां के जीवन के बारे में अच्छी तरह से जानता था वह जानता था कि बरसों से उसकी मां इस तरह की एकाकी जीवन की रही थी,,,, और इतना भी जानता था कि उसकी मां का चरित्र दूसरी गंदी औरतों की तरह बिल्कुल भी नहीं था वरना अप तक तो उसकी मां शादीशुदा जीवन व्यतीत करने लगती दूसरी शादी करके अगर ऐसा नबी होता तो अब तक न जाने कितने मर्दों के साथ संबंध बना ली होती लेकिन ऐसा भी बिल्कुल नहीं था,,,, जहां तक अंकित का ज्ञान था कुछ गंदी किताबों को देखकर और कुछ अपने दोस्तों से बटोर कर वह इतना तो समझ गया था कि उसकी मां भी चुदवासी है,,, क्योंकि इस समय उसके बदन में बुखार नहीं था वह पूरी तरह से होशो आवाज में थी तो भला एक मां अपने होशो आवाज में होने के बावजूद अपने ही बेटे के सामने और वह भी जवान लड़के के सामने अपने वस्त्र उतार कर नंगी क्यों होगी,,,, अंकित अपने मन में सोच रहा था कि कहीं उसकी मां जानबूझकर उसे अपना नंगा बदन तो नहीं दिखा रही है,,, कहीं ऐसा तो नहीं कि वह खुद अपने बेटे को उत्तेजित कर रही है अपनी तरफ आकर्षित कर रही है संबंध बनाने के लिए,,,,




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ऐसा ख्याल उसके मन में आते ही वह पूरी तरह से रोमांचित हो उठा उसे लगने लगा कि उसकी मां उसके लिए ही यह सब सारा खेल रच रही है,,, उसे लगने लगा कि उसकी मां उसके साथ संबंध बनाना चाहती है और इसी बात की खुशी उसके चेहरे के साथ-साथ उसकी दोनों टांगों के बीच के हथियार में बड़े अच्छे से झलक रही थी जो कि इस समय पूरी तरह से लोहे के रोड की तरह एकदम कड़क हो चुका था अगर इस समय वहां मौका मिल जाने पर अपनी मां की बुर में अपना लंड डालता तो शायद पहली बार में ही वह अपनी मां की बुर का भोसड़ा बना देता इस कदर पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में डूबता चला जा रहा था,,,, लेकिन तभी उसके मन में ख्याल आया नहीं अगर ऐसा नहीं हुआ तो अगर उसकी मां सच में बीमारी की वजह से कहीं अकेले में चक्कर न आ जाए,,, इसलिए ना चाहते हुए भी उसके सामने अपने कपड़े उतार कर नहाने की तैयारी कर रही हो तो,,,, इतने वर्षों में तो उसने कभी अपनी मा में इस तरह के बदलाव नहीं देखे थे,,,।


सुगंधा और अंकित बाथरूम में

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और पहली बार ही तो मां इस तरह से बीमार हुई थी,,, बीमारी की वजह से ही वह मजबूर होकर इस तरह की हरकत कर रही है,,,, क्योंकि होशो हवास में भर ऐसी कौन सी मैन होगी जो अपनी बेटी के सामने अपने कपड़े उतार कर निर्वस्त्र होकर नंगी होकर बाथरूम में उसकी आंखों के सामने ही नहाएगी,,, नहीं नहीं मैं ही अपनी मां के बारे में कुछ गलत सोच रहा हूं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है अच्छा हुआ मैं किसी प्रकार की हरकत अपनी मां के साथ नहीं किया वरना लेने के देने पड़ जाते,,,,। अंकित अपने मन में यह सोच कर रहा की सांस ले रहा था क्योंकि वाकई में उसने अभी तक अपनी मां के साथ कोई गलत हरकत नहीं किया था जो कुछ भी किया था उसके होशो हवास में किया था और दवा खाने में तो मजबूर होकर किया था,,,।




सुगंघा और अंकित

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वह यह सब सोच ही रहा था कि इसी बीच उसकी मां अपने पेटिकोट की डोरी एकदम से खोल दी और डोरी के खुलते ही उसकी कमर पर कसी हुई ,,, पेटिकोट एकदम से ढीली पड़ गई,,, और एक पल के लिए तो अंकित को लगा कि उसकी मां की पेटिकोट सड़क कर नीचे उसके कदमों में गिर जाएगी क्योंकि ऊपर वाला पेटीकोट का हिस्सा ढीला होकर उसके नितंबों के उभार पर नीचे लुढ़ककर टिक गया था और वह भी उसके नितंबो की गोलाकार उभरी हुई गांड की वजह से ही उसका पेटिकोट रुका हुआ था वरना वाकई में पेटिकोट की डोरी खुलते ही पेटिकोट उसके कदमों में जाकर गिर जाती और वह निर्वस्त्र हो जाती,,, इसलिए तो एक पल के लिए अंकित का दिल धक से करके रह गया था,,,, अंकित को ऐसा ही लग रहा था कि आज उसकी मां अपना पेटिकोट की उतार देगी लेकिन उसे इस बात कर सकता कि उसकी मां पेटिकोट के अंदर कुछ पहनी होगी कि नहीं ,,, इस बात के बारे में सोच ही रहा था कि तभी उसे याद आया कि कल ही तो वह अपने हाथों से ही अपनी मां की पेंटिं दवा खाने के बाथरूम में उतारा था,,, और अब तक उसकी मां ने अपने कपड़े बदले नहीं थे इसका मतलब पेटिकोट के अंदर उसकी मां चड्डी पहनी हुई है,,,,।



सुगंधा और अंकित बाथरूम में

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अंकित का दिल जोरो से धड़क रहा था उसे उम्मीद थी कि उसकी मां पेटीकोट भी उतार देगी और जल्द ही उसकी मां की चड्डी देखने को मिलेगी जिसे वह कल दवा खाने के बाथरूम में अपने हाथों से उतारा था और पहनाया था,,, और वह अपनी मां की चड्डी देखने के लिए व्याकुल हुआ जा रहा था जिस तरह से उसकी मां अपने बदन से एक-एक करके सारे कपड़ों को बाथरूम के कोने में उतर कर फेंक दी थी उसे ऐसा ही लग रहा था कि वह अपनी पेटीकोट भी उतार देंगी,,, और उसके सोच के मुताबिक है उसकी मां पेटिकोट के घेरे को अपनी कमर के घेरे से अलग करने लगी,,, अंकित बार-बार किताब हमेशा अपनी नजर उठा कर अपनी मां की तरफ देख ले रहा था अब वह तिरछी नजर से नहीं बल्कि अपनी नजर उठा कर देख रहा था क्योंकि उसकी मां की पीठ उसके ठीक सामने थी और उसका मुंह दीवाल की तरफ था,,,, ऐसे में उसकी मां का अंकित की तरफ एकदम से देख पाना नामुमकिन था इसलिए वह इसका फायदा उठा रहा था,,,,।
सुगंधा और अंकित


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अंकित की नजर एकदम से अपनी मां के ऊपर खड़ी हुई थी लेकिन तभी उसके अरमानों पर पानी फिर गया जब उसकी मां पेटीकोट को दोनों हाथों से पकड़कर उसे नीचे ले जाने के बजाय ऊपर की तरफ ले जाने लगी और अपनी चुचियों तक लाकर उसे एकदम से रोक दी,,।,,, यह देखकर अंकित के दिल की धड़कन पढ़ने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां ऊपर से पेटिकोट निकलेगी कि नीचे से नीचे से तो वह अब नहीं निकाल सकते थे क्योंकि वह पेटिकोट अपने हाथ में लेकर ऊपर की तरफ ले गई थी और चूचियों के पास आते ही उसे रोक दी थी,,,,, अंकित को कुछ-कुछ शक हो रहा था कि उसकी मां पेटीकोट को नहीं निकालेगी,,, वरना पहले प्रयास में ही वह पेटीकोट को नीचे सी सही ऊपर से ही उतार देती और उसका यह सब बिल्कुल सही निकला जब उसकी मां पेटिकोट की डोरी को चूचियों की ऊपर लाकर बांधने लगी,,, यह देखकर अंकित के अरमान पर पानी फिर गया था लेकिन इसके बावजूद भी सुकांता जानबूझकर अपनी बेटी को चूचियों के थोड़ा ऊपर की तरफ उठाई थी ताकि उसका पिछवाड़ा उसकी मदमस्त कर देने वाली गांड उसके बेटे को दिखाई दे और ऐसा ही हुआ वह जिस तरह से पेटिकोट की डोरी को बंद रही थी उसके पीछे का पेटीकोट ऊपर की तरफ उठ गया था जिसे नितंबों के नीचे की गोलाई एकदम साफ नजर आ रही थी,,, उसके बीच की गहरी दरार भी एकदम साफ दिखाई दे रही थी यह देखकर अंकित का हांथ अपने आप उसके लंड पर आ गया और वह जोर से दबा दिया,,,, भले उसकी मां पेटीकोट को पूरी तरह से नहीं निकली थी लेकिन फिर भी अपने बेटे को पूरी तरह से मदहोश कर गई थी,,,,,।
Nahati huyi sugandha

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अंकित की मां पेटिकोट को बांधकर घूम गई लेकिन ना तो दीवाल की तरफ मुंह करके और ना तो अंकित की तरह वह सामने की तरफ मुंह कर ली,,,और बाथरूम में छोटा सा लकड़ी का पाटी रखा हुआ था उस पर बैठ गई,,, वह इस तरह से बैठी थी कि इतनी दोनों टांगें खोल दी थी,,,,, इस अवस्था को देखकर अंकित को इस बात का मलाल था कि उसकी मां अगर उसकी तरफ मुंह करके इस तरह से बैठती तो शायद उसके खूबसूरत बुर के या उसकी चड्डी के दर्शन हो जाते,,, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया था क्योंकि उसकी मां तिरछी बेठी हुई थी,,,। लेकिन फिर भी इस अवस्था में भी अंकित को उसकी मां की मोटी मोटी जांघें उसकी नंगी टांग एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,, इतना ही अंकित के लिए काफी था वह पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुका था क्योंकि औरतों की चिकनी मोटी मोटी जांघें उनकी नंगी टांगें भी मर्दों के लिए उत्तेजना का प्रमुख कारण होती हैं,,,।
Bathroom me sugandha

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अंकित ने पहले से ही बाथरूम में पानी से भरा हुआ टब रख दिया था जिसमें से सुगंधा मग भरकर पानी को अपने ऊपर डालने लगी,,, इस स्थिति में ठंडा पानी सुगंधा को बेहद सुकून दे रहा था लेकिन अंकित की हालत खराब कर दे रहा था ,,,,, अंकित अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां लगभग अर्धनग्न अवस्था में ही थी और ऐसे हालात में एक खूबसूरत औरत को नहाते हुए देखना कितना उत्तेजनात्मक होता है और वही अंकित को भी हो रहा था अपनी मां की मादकता भरी जवानी में वह पूरी तरह से अपने आप को डुबोते चला जा रहा था,,, धीरे-धीरे सुगंधा अपने ऊपर पानी डाल डाल कर अपने पूरे बदन को भिगो डाली और उसके बाद साबुन लगाना शुरु कर दी,,,।

Apni ma ko nahate huye dekhkar ankit


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अंकित किताब खोलकर बस किताब के पन्ने को देख रहा था उन्हें पढ़ने की तस्दी बिल्कुल भी नहीं ले रहा था,,, और वैसे भी जब आंखों के सामने जवानी से भरी हुई किताब खुली पड़ी हो तो भला,, दुनिया का कौन सा मर्द होगा जो स्कूल की किताब में ध्यान लगाएगा,,,, अंकित बार-बार अपनी लंड पर अपना हाथ रख कर उसे ज़ोर से दबा दे रहा था,,,, धीरे-धीरे सुगंधा आपने पूरा बदन पर साबुन लगाने लगी साबुन के झाग में उसका गोरा बदन और भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगा,,,, सुगंधा भी इस स्थिति में बेहद उत्तेजना महसूस कर रही थी क्योंकि वह अपनी बेटे की आंखों के सामने लगभग लगभग निर्वस्त्रावस्था में ही नहा रही थी क्योंकि उसके बदन का आधे से भी ज्यादा भाग उसके बेटे की आंखों के सामने उजागर था उसकी मोती-मोती जंग उसकी नंगी चिकनी टांग यहां तक की उसकी पेटीकोट भी एकदम कमर तक थी और जांघ की शुरुआत से ही उसकी पूरी टांग दिखाई दे रही थी,,,, यहां तक की उसकी चड्डी भी नजर आने लगी थी सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी कि उसका बेटा उसके अंगों के साथ-साथ उसकी चड्डी भी देख रहा होगा जिसे वह कल अपने हाथों से उसके बदन से उतारा था,,,,,, अनुभव से भारी होने के बावजूद भी सुगंधा चड्डी के मामले में निश्चित तौर पर नहीं कह सकती थी की औरतों की चड्डी देखकर मर्दों की उत्तेजना परम शिखर पर पहुंच जाती है,,,, क्योंकि विवाहित जीवन की शुरुआत से ही वह अपने पति के मुंह से सुनती आ रही थी चड्डी ना पहना करें क्योंकि रात को उतारते समय उसे दिक्कत होती है,,, इसलिए सुगंधा को भी ऐसा ही लगता था कि सारे मर्द चड्डी के मामले में एक जैसी सोच रखते होंगे,,,।।
AOni ma ko dekhkar mast hota hua ankit

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लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था एक उसका पति ही दूसरे मर्दों से अलग था जबकि सारे मर्द औरतों की चड्डी के मामले में जैसे ही होते हैं औरतों की चड्डी देखकर उनकी उत्तेजना परम शिखर पर पहुंच जाती है औरतों के बदन से चड्डी उतारने में मर्दों को इतना आनंद आता है कि वह बार-बार इस क्रिया को दोहराते रहते हैं,,, यहां तक की लंड की सुसुप्तावस्था मैं जैसे ही औरतों की चड्डी के उतारने का कार्य करते हैं वैसे ही उनका लंड एकदम से टनटना कर खड़ा हो जाता है,,,, और इसीलिए इस समय अंकित की भी उत्तेजना अद्भुत तरीके से बढ़ती चली जा रही थी क्योंकि उसकी नजर में भी हुई उसकी मां की चड्डी दिखाई देने लगी थी वह जिस तरह से बैठी थी कमर और जानू के बीच की जोड़ होती है उसमें एक पतली सी हल्की सी दरार मांसलता लिए पेट से दोनों टांगों के बीच की तरफ जा रही थी जिसे देखकर अंकित के मुंह में पानी आ रहा था लेकिन वह कुछ भी कर सकते की स्थिति में नहीं था बस बार-बार अपनी मां को देखकर अपने लंड को दबा दे रहा था,,,,,।

सुगंधा अपने बेटे के साथ बाथरुम में

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वह अभी यह सब सोच ही रहा था कि,,, तभी उसकी मां बोली,,,,।

बेटा जरा मुझे साबुन लगा देना तो पीछे मेरा हाथ नहीं पहुंच रहा है,,,,।(सुगंधा अपने बदन के साथ-साथ अपने चेहरे पर भी साबुन लगा लेती जिसकी वजह से झाग उसकी आंखों तक पहुंच रही थी और अपनी आंखों को बंद की हुई थी वह जानबूझकर ऐसा कर रही थी,,,,, अंकित को तो अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हुआ उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां वाकई में उसे साबुन लगाने के लिए बोली है या उसके कान बज रहे हैं इसलिए वह कुछ देर तक अपनी जगह पर ही बैठा रह गया और जब अंकित की तरफ से कोई हरकत नहीं हुई तो सुगंध फिर से बोली,,,,)



सुगंधा की मचलती जवानी

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अरे सुन रहा है कि नहीं,,,,, मेरा हाथ पीछे नहीं पहुंच रहा है जरा साबुन लगा देना तो,,,,,।
(इस बार उसे यकीन हो गया कि उसकी मां वाकई में से साबुन लगाने के लिए बोल रही है उसकी मां के मुंह से कह गए एक-एक शब्द उसके कानों में मिश्री खोल रहे थे वह तुरंत किताब को एक तरफ रखकर कुर्सी पर से उठकर खड़ा हो गया और तुरंत अपनी मां के पास पहुंच गया उसके हाथ में साबुन था जो कि वह अंकित की तरफ हाथ करके उसे दे रही थी हालांकि वह उसे देख नहीं रही थी क्योंकि उसकी आंखों में साबुन लगा रहा था इसलिए अपनी आंखों को बंद की हुई थी जो कि यह औपचारिकता नहीं थी वह जानबूझकर ऐसी कर रही थी वह देखना चाहती थी महसूस करना चाहती थी कि उसका बेटा उसके साथ क्या-क्या हरकत करता है अंकित तुरंत अपनी मां के हाथ में से साबुन ले लिया और साबुन लगाने से पहले बोला,,,,)

कहां लगाना है मम्मी पीठ में,,,,


सुगंधा मदहोश होती हुई

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हां पीछे मेरा हाथ नहीं पहुंच रहा है गरदन से लेकर के नीचे तक साबुन लगा दे,,,,(ऐसा कहते हुए सुगंधा लकड़ी के पाटी पर ही दीवार की तरफ मुंह करके घूम गई क्योंकि जिस तरह से वह बैठी थी उसके पीछे खड़े होकर साबुन लगाने में दिक्कत आ सकती थी क्योंकि चौड़ाई बाथरूम की कम थी,,,,,,,, और जैसे ही वह दीवार की तरफ मुंह करके घूमी अंकित की नजर सीधे उसकी मां के नितंबों पर गई जो की पाटी पर एकदम दबी हुई थी एकदम जवानी से लदी हुई अपने विस्तार से बाहर निकलने के लिए तड़प रही थी,,,,, पेटिकोट पानी में भीग कर ऊपर हो जाने की वजह से उसके नीचे का अंग एकदम साफ दिखाई दे रहा था हालांकि चड्डी पहनी होने की वजह से ज्यादा तो नहीं लेकिन फिर भी नितम्बो के ऊपरी लकीर एकदम साफ दिखाई दे रही थी,, अंकित के लिए तो इतना भी बहुत था,,,


सुगंधा का मचलता हुस्न

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अब ऐसा लग रहा था कि अपनी मां को नहलाने की जिम्मेदारी अंकित ने अपने हाथों में ले लिया था अपने हाथ में साबुन लेकर वह अपनी मां की गर्दन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया लेकिन पानी कम होने की वजह से चिकनाहट कम थी और वह मग जो कि उसके पास में ही पड़ा था और वहां पानी से भरा हुआ था उसे लेकर एक बार फिर से अपनी मां के गर्दन पर डालकर उसकी पीठ तक को भिगोने की कोशिश करने लगा और फिर साबुन लगाने लगा,,,,, यह उसका पहला अवसर था जब वह अपनी मां को अपने हाथों से नहला रहा था,,, इस बहाने उसे अपनी मां का खूबसूरत बदन स्पर्श करने का मौका मिल रहा था और वहां पर है तो भेजने का अनुभव कर रहा था उसके पेंट में अच्छा खासा तंबू बना हुआ था एकदम भाले की नौक की तरह,,,।



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धीरे-धीरे अंकित अद्भुत सुख भोग रहा था औरत की दोनों टांगों के बीच उसके कोमल अंक में अपना कड़क अंग डालकर उसके साथ संभोग करना ही औरतों के साथ सुख भोगने नहीं होता उसके साथ अनेक क्रिया करके भी उसके साथ सुख भोगने का सौभाग्य प्राप्त किया जा सकता है ऐसा अंकित अपने मन में सोच रहा था क्योंकि इस समय उसे चुदाई से भी अधिक अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी,,, अंकित अपनी मां की पीठ पर साबुन लगाते लगाते हैं नीचे की तरफ बढ़ रहा था और देखते ही देखते हो एकदम कमर तक उसके साबुन लगाना शुरू कर दिया और वह अपने मन में सोच रहा था क्या करें उसकी मां खड़ी होती तो कितना मजा आता है वैसी बहाने अपनी मां की चड्डी में हाथ डालकर उसे साबुन लगाता,,, लेकिन फिर भी उसे बहुत मजा आ रहा था,,,,, लेकिन साबुन लगाने के दौरान वहां अपनी मां की छतिया की तरफ देख रहा था जो कि उसकी आधी चूची पर पेटिकोट की डोरी बंधी हुई थी,,, और आधी एकदम साफ दिखाई दे रही थी जिसे देखकर अंकित को पपाया का फल याद आ गया जो कि इसी आकार में होता है,,,,, अपनी मां की चूची देखकर अंकित के मुंह में पानी आ रहा था और अपने मन में सोच रहा था कि काश चूचियों पर साबुन लगाने का मौका मिल जाता तो कितना मजा आता है,,,,,, यही सब सोचते हुए वह गर्दन पर साबुन लगाने लगा लेकिन तब तक साबुन का झाग सूख चुका था इसलिए वह फिर से अपनी मां के बदन पर पानी डालने की सोचने लगा,,, और पानी का टब ठीक उसकी मां के सामने रखा हुआ था,,,, और वह हाथ में मग लेकर आगे की तरफ झुककर तब में से पानी लेने लगा लेकिन उसकी हरकत की वजह से उसके पेट में बना तंबू सीधे-सीधे उसकी मां की गर्दन हो के ऊपर से उसकी मां की गाल पर रगड़ खाने लगा और यह रगड़ महसूस करते ही सुगंधा की तो हालत खराब हो गई सुगंधा की आंखें एकदम से खुल गई वह इतना तो समझ गई थी कि उसके गाल पर और गर्दन पर रगड़ खाने वाली चीज और कुछ नहीं उसके बेटे का लंड है,,,।



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यह एहसास सुगंधा को पूरी तरह से मदहोश कर गया,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें उसका बेटा आगे की तरफ झुक कर प्लास्टिक के टब में से पानी लेने की कोशिश कर रहा था,,,, और लगभग वह पानी के पास पहुंच भी गया था,,,, और अंकित को इसका अंदाजा बिल्कुल भी नहीं था कि पानी लेते समय उसके पेंट में बना तंबू उसकी मां की गर्दन के साथ-साथ उसकी गालों पर भी रगड़ खाएगा लेकिन जैसे ही उसे इस बात का एहसास हुआ पूरी तरह से मस्त हो गया,,,, उसे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वहां अपने लंड को अपनी मां के मुंह में डालने के लिए आगे बढ़ रहा है,,,,, सुगंधा की खुद की हालत खराब होती जा रही थी पल भर के लिए उसे लगा कि अपना हाथ अपने बेटे के लंड पर रखकर उसे ज़ोर से दबा दे और कह दे कि मुझे तुझसे प्यार चाहिए मुझे जी भर कर प्यार कर मुझे प्यार कर,,, मुझे प्यार करो बेटा,,,आहहहहहहहह,,,,, ऐसा सोचकर सुगंधा अंदर ही अंदर तड़प रही थी बरसों की प्यास का जुगाड़ उसके गालों पर रगड़ खा रहा था लेकिन वह उसे अपनी प्यास बुझाने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थी क्योंकि वहां उसका सगा बेटा था अगर इस वक्त ऐसे माहौल में अंकित की जगह कोई और होता है तो शायद सुगंधा अपना काबू खो बैठती,,, लेकिन अपने बेटे के साथ ऐसा करने में उसे डर लग रहा था घबराहट हो रही थी,,,,।



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ज्यादा देर तक अंकित इस अवस्था में नहीं रह सकता था इसलिए पानी लेकर वह फिर से अपनी स्थिति में आ गया और फिर अपनी मां के गर्दन पर पानी डालने लगा और उसे पर साबुन लगाने लगा साबुन के छाव की वजह से उसके हाथ से साबुन एकदम से फिसल गया और सीधे जाकर उसकी मां की चूचियों के बीच जहां पर उसकी मां ने पेटिकोट की डोरी बांधी थी उसी में जाकर फंस गया,,,, यह देखकर अंकित के दिल की धड़कन बढ़ने लगी और सुगंधा के भी बदन में मदहोशी छाने लगी,,, क्योंकि उसके मन में एहसास होने लगा कि उसकी चूचियों के बीच से साबुन उसका बेटा अपने हाथों से निकालेगा,,,, इसलिए वह तुरंत दोनों हाथों से अपनी आंखों को मारने लगी यह जताने के लिए की साबुन का झाग उसकी आंखों में लग रहा है,,,, अंकित को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें तभी उसकी मां अपनी आंखों को मलते हुए बोली,,,)



सुगंधा और अंकित बाथरूम में

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अरे अंकित क्या किया जल्दी से साबुन लगाकर पानी डाल मेरी आंखों में जलन हो रहा है,,,,।

लेकिन मम्मी साबुन तो तुम्हारे,,,,,,(इतना कहकर आगे बोलने की उसकी हिम्मत नहीं हुई तो सुगंधा ही एकदम से बोली,,,)

जल्दी से साबुन ले लै मुझे बहुत जलन हो रही है,,,,।

ठीक हैमम्मी,,,,(अपनी मां की तरफ से इजाजत मिलते ही अंकित अपना हाथ आगे बढ़कर अपनी मां की चूचियों के बीच लेकर गया जहां पर पेटिकोट की डोरी बंधी हुई थी और साबुन लेने के चक्कर में उसके हाथ से साबुन पर थोड़ा सा दबाव पड़ा तो साबुन और नीचे से रखें उसकी दोनों चूचियों के एकदम बीचों बीच आ गया,,,,,, यह एहसास करके सुगंधा के तन बदन में आग लगने लगी उसे बहुत मजा आ रहा था आनंद आ रहा था वह फिर भी सहज होते हुए बोली ,)

अरे क्या कर रहा है अंकित तुझसे साबुन नहीं पकड़ा जा रहा है,,,

मम्मी साबुन छटक गया,,,,

अब जल्दी से साबुन ले मुझे बहुत जलन हो रही है,,,,,।



सुगंधा और उसका बेटा,,,,


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(फिर से प्रयास करते हुए अंकित धीरे से अपने हाथ को अपनी मां की चूचियों की तरफ लेकर और अपनी उंगली से साबुन को दोनों चूचियों के बीच से निकलने की कोशिश करने लगा लेकिन फिर भी फिसलते हुए साबुन अंदर की तरफ जाने लगा,,,,,, वजह से जैसे चुचियों के बीच से अंदर की तरफ फिसल रहा था वैसे-वैसे सुगंधा के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी और अंकित भी मदहोश होता चला जा रहा था,,,,, और अंकित धीरे-धीरे अपनी उंगली के साथ-साथ अपना आदि कलाई को अपनी मां की चूचियों के बीच डाल दिया था लेकिन साबुन फिर भी उसके हाथ में नहीं आया तो साबुन एकदम से फिसल कर उसकी दोनों टांगों के बीच उसकी पेंटिं के ऊपर जा गिरा,,,,, यह देखकर धड़कते दिल के साथ अंकित बोला,,,)

मम्मी यह तो नीचे फिसल गया,,,,।
अंकित की कल्पना,,,, अपनी मां के साथ

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तू सच में बुद्धू है अंकित एक साबुन तो उसे संभाल नहीं जाता जल्दी से निकाल साबुन मुझे रहा नहीं जा रहा है आंखों में जलन हो रही है,,,,।

(इतना सुनते ही अंकित इस बार हिम्मत दिखा कर अपनी मां की पेटिकोट के अंदर उसकी चूचियों के बीच एकदम से हाथ डाल दिया और उसे साबुन को टटोलने लगा,,,, साबुन को टटोलने के चक्कर में अंकित का हाथ उसकी मां के पेट के नीचे की तरफ आने लगा और एकदम से पूरा हाथ पेटिकोट की डोरी के अंदर डालते हुए वह एकदम जमीन पर अपने हाथ को स्पर्श करने लगा तभी उसे एहसास हुआ कि उसकी मां की दोनों टांगों के बीच साबुन चिपका हुआ है अब उसके दिल की धड़कन एकदम से बढ़ने लगी और सुगंध की भी हालत खराब होने लगी क्योंकि सुगंध को मालूम था कि उसका गिरा हुआ साबुन उसकी पेंटिं पर चिपका हुआ है,,, अब वह देखना चाह रही थी किसका बेटा क्या करता है हालांकि देखते ही देखते उसके बेटे ने उसकी दोनों चूचियों के बीच से होते हुए अपने हाथ को उसकी पेंटि के इर्द-गिर्द पहुंचा दिया था,,, जिसकी वजह से सुगंधा अंदर ही अंदर एकदम खुश हो रही थी,,,,,।
सुगंध और अंकित

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अंकित समझ गया था कि साबुन उसकी मां की पेंटी के ऊपर ही है,,, अंकित करती जोरों से ढक रहा था और यही मौका था उसे अपनी मां की पेटी पर हाथ रखने का अपनी मां की बुर को अपनी हथेली में पहुंचने का और इसीलिए वह साबुन पकड़ने का बहाना करके एकदम से अपनी हथेली को अपनी मां की पेंटिंग पर रखकर साबुन पकड़ने के बहाने अपनी मां की बुर को दबोच दिया ऐसा करने में उसे अद्भुत उत्तेजना और मदहोशी का एहसास होने लगा और यही हरकत सुगंधा के तन बदन में मदहोशी का रस घोलने लगी,,,, जिस तरह से उसके बेटे ने साबुन पकड़ने के बहाने उसकी बुर को अपनी हथेली में दबोचा था सुगंधा एकदम से चौंक गई थी और एकदम से मदहोश हो गई थी,,, और यह एहसास एकदम पल भर के लिए था ऐसा करते ही अंकित ने तुरंत साबुन पड़कर उसे वापस से अपनी मां की पेटीकोट से ही बाहर निकाल दिया और जल्दी-जल्दी साबुन लगाने लगा था कि इस बारे में उसकी मां उससे कोई शिकायत ना कर पाए,,,,,।

सुगंधा की चुदाई

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शिकायत करने की बात तो दूर उसकी मां अपने मन में यही सोच रही थी कि कुछ देर तक और उसका बेटा अपनी हथेली में उसकी बुर को दबोच कर रखा है तो शायद उसका पानी निकल जाता उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो जाती,,,, बुर को दबोचने की शिकायत नहीं बल्कि वह तो अपने बेटे से इस बात की शिकायत करने वाली थी कि ज्यादा देर तक वह क्यों दबोच कर नहीं रखा,,,, अंकित जल्दी-जल्दी अपनी मां के बदन पर पानी डालने लगा था,,, आया था तो अंकित अपनी मां के बदन पर केवल साबुन लगाने के लिए लेकिन अब वह उसे नहला रहा था और सुगंध भी अपने बेटे के हाथों से नहाने में आनंद लूट रही थी उसे बहुत मजा आ रहा था उसकी पेटिकोट आगे से पूरी तरह से भेज चुकी थी जिसकी वजह से गिरी बेटी को उसकी चूचियों से चिपक गई थी और उसकी निप्पल कैडबरी चॉकलेट की तरह एकदम तनकर पेटीकोट से बाहर झांक रही थी,,,,।

सुगंधा नहा चुकी थी और अंकित बाथरूम से बाहर आकर खड़ा हो गया था सुगंध उठकर खड़ी हुई और अपनी पेटिकोट की डोरी को खोलकर पेटीकोट को दिल्ली करने लगी और एक हाथ आगे की तरफ डालकर अपनी चड्डी को बाहर निकलने लगी लेकिन जल्दी पानी में पूरी तरह से भी होने की वजह से उसकी कमर से नीचे की तरफ सरक नहीं पा रही थी,,, यह देखकर अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा उसे उम्मीद नजर आने लगी और वह अपनी मां से बोला,,,।

सुगंधा

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मैं निकाल दुं,,,,,।

(इतना सुनकर सुगंधा अपने बेटे की तरफ मुस्कुराते हुए देखने लगी और बोली,,,)


बिल्कुल नहीं,,,, आज मैं होश में हूं,,,,,(और इतना कहने के साथ ही सुगंध अपने बेटे की आंखों के सामने ही अपनी चड्डी को उतारने लगी और जैसे ही चड्डी उसके घुटनों के नीचे तक आई उसे पर नजर पड़ते अंकित के लंड की अकड़ बढ़ने लगी,,,, वह मस्त हो जा रहा था उसकी मां अपने पैरों के सहारे से घुटनों के नीचे से अपने चड्डी को अपने पैरों से बाहर कर रही थी यह नजारा बेहद देखने लायक था और अगले ही पल हुआ अपनी चड्डी को अपने बदन से दूर कर चुकी थी उसके बदन पर केवल उसका गिला पेटिकोट था जो उसके बदन से एकदम चिपका हुआ था और पेटिकोट की चुपके होने की वजह से उसकी चुचियों का आकार के साथ-साथ जांघों के ऊपरी हिस्से का त्रिकोण वाला जाकर एकदम साफ नजर आ रहा था,,, और उसकी बुर वाला हिस्सा कचोरी की तरह फुला हुआ नजर आ रहा था यह सब नजारा पूरी तरह से मादकता से भरा हुआ था इस नजारे को देखने पर से ही किसी भी मर्द का पानी छुट जाए लेकिन न जाने कैसे अंकित अपने आप पर काबू रखा हुआ था,,,,।



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अब बारी थी पेटिकोट उतारते की अंकित अपने मन में सोच रहा था कि उसकी आंखों के सामने उसकी मां अगर पेटीकोट भी उतार देती तो कितना मजा आता है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था हालांकि सुगंधा भी यही चाहती थी लेकिन वह अभी इतना नहीं खुली थी कि अपने बेटे के सामने सारी हदें पार कर देती,,, क्योंकि यह सब तो अंकित की जानकारी में हो रहा था अगर उसकी जानकारी में ना होता केवल सुगंध ही जानती तो शायद वह अपने बेटे के सामने नंगी होने में बिल्कुल भी देर ना करती क्योंकि ऐसा हुआ पहले भी कर चुकी थी लेकिन इस समय वह अपने बेटे की निगरानी में थी कुछ भी छुपा हुआ नहीं था उसका इस तरह से अपना पेटिकोट उतार कर नंगी हो जाना उसे भी दूसरी औरतों की श्रेणी में ला सकता था,,,,।

जरा टावल ला देना मैं भूल गई,,,,।

अभी लाया मम्मी,,,,(इतना कहने के साथ ही अंकित अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगा और सुगंध उसे जाते हुए देखने लगी हालांकि स्पीच वह अपने बेटे के पेट में बने तंबू को भी बड़े अच्छे से देख रही थी और मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह जानती थी कि उसका लैंड किस लिए खाना है एक मर्द का लैंड किस वजह से खड़ा होता है यह वह अच्छी तरह से जानती थी वह समझ रही थी कि इस समय उसका बेटा उसमें एक मन नहीं बल्कि एक औरत के दर्शन कर रहा है इसलिए उत्तेजित हुआ जा रहा हैं और यही तो वह चाहती थी,,,,।

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बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है सुगंधा अपने बेटे के सामने अर्ध नग्न अवस्था में नहा रही है उसे देखकर अंकित की हालत खराब हो रही है वह अंकित को अपनी ब्रा का हुक खोलने के लिए और अपनी पीठ पर साबुन लगवाने के लिए बुलाती है वह चाहती हैं कि आगे से पहल अंकित करे लेकिन अंकित डर के मारे आगे से पहल नहीं करता है एक तरफ सुगंधा खुश हैं तो दूसरी तरफ अंकित के द्वारा कुछ भी हरकत नही करने से दुखी भी है
 
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