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Incest मुझे प्यार करो,,,

Blackserpant

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अपने बेटे में आए बदलाव से सुगंध बेहद खुश थी राहुल की संगत में कुछ तो असर हुआ था जिसके चलते उसके बेटे ने उसकी खूबसूरती की तारीफ किया था यह इशारा था कि अब वह पूरी तरह से बड़ा हो चुका है औरतों के प्रति आकर्षण उसके में भी स्वाभाविक रूप से आ चुका है वह भी समझ चुका है की औरतों का कौन सा अंग बेहद आकर्षक होता है,,, क्योंकि सुगंध अपने बेटे की नजर को अच्छी तरह से पहचानती थी काम करते वक्त वह काम में जरूर मन लगाती थी लेकिन उसकी नजर हमेशा अंकित के ऊपर ही रहती थी और उसकी तिरछी नजरों के बाण को अपने बदन पर चलता हुआ वह देखकर अंदर ही अंदर बहुत खुश होती थी,,,।

एक दिन बाहर मार्केट जाने के लिए तैयार हो रही थी और अपने साथ अंकित को भी ले जा रही थी वह अपने कमरे में तैयार हो रही थी,,, और अंकित तैयार होकर कमरे से बाहर कुर्सी पर बैठकर इंतजार कर रहा था,,, और अपनी मां के बारे में ही सोच रहा था,,, अब वह अपने मन में यही सोचता था कि काश उसकी मां राहुल की मां की तरह होती तो कितना मजा आ जाता घर में ही खुला वातावरण देखने को मिलता ,,, क्योंकि राहुल की मां को देखकर मन ही मन वह भी यही चाहता था कि उसकी मां भी राहुल की मां की तरह ही घर में रहे मां बेटे के बीच में किसी प्रकार का पर्दा ना हो सब कुछ देखने को मिले जैसा कि वह खुद अचानक उसके घर पर पहुंच कर देख चुका था उसकी मां का कामुक रूप बड़ी-बड़ी चूचियां उस पर गीली साड़ी,,,उफ्फ,,,, उस दृश्य को याद करके अभी भी अंकित का लंड खड़ा हो जाता था। और इस समय भी उसका यही हाल था,,, राहुल की मां के बारे में सोचकर ही उसका लंड ठुनकी मारता हुआ अपनी औकात में आ चुका था,,,।




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बाहर बैठा हुआ अंकित बार-बार अपनी घड़ी की तरफ देख रहा था क्योंकि मार्केट जाने का समय कुछ ज्यादा ही होता जा रहा था,,, वह बाहर से ही आवाज लगाता हुआ बोला,,,।

मम्मी तैयार हुई कि नहीं देर हो रही है,,,

अरे हां तैयार हो गई हूं बस थोड़ा सा रह गया है यह ब्लाउज की डोरी बंद नहीं हो रही है,,,।
(उसकी मां का इतना कहना था कि अंकित की कल्पनाओं का घोड़ा पल भर में ही गति पकड़ लिया वह अपनी मां के बारे में कल्पना करने लगा अपनी मां के डोरी वाले ब्लाउज के बारे में कल्पना करने लगा वह अपने मन में सोच रहा था कि उसकी मां डोरी वाले ब्लाउज में कितनी खूबसूरत लगती होगी हालांकि वह पहले भी अपनी मां को डोरी वाले ब्लाउज में देख चुका था लेकिन इतना ध्यान नहीं दिया था लेकिन जब से उसका आकर्षण अपनी मां की तरफ बढ़ा था तब सेवा अपनी मां की हर एक हरकत और उसके रूप को देखकर उसके बारे में गंदी-गंदी कल्पना किया करता था और इस समय भी उसके मन में यही हो रहा था अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी मां की बड़ी-बड़ी चूचियां कैसे छोटे से ब्लाउज में समा जाती होगी,,, वह अपने मन में यह सोच रहा था कि पता नहीं उसकी मां कौन से रंग का ब्रा पहनी होगी,,, और अपने ब्लाउज की डोरी को कैसे बांधती होगी,,,,उफ्फ,,, कितना गजब का नजारा होगा अपने मन में इस तरह की कल्पना करके अंकित अपनी मां को इस रूप में देखना चाहता था अपनी मां को कपड़े पहनते हुए देखना चाहता था ब्लाउज पहना हुए देखना चाहता था उसे अंतर्वस्त्र पहनते हुए देखना चाहता था लेकिन वह जानता था ऐसी हालत में अपनी मां को देख पाना नामुमकिन सा है,, क्योंकि जब भी कपड़े पहनना होता था तो उसकी मां अपने कमरे में चली जाती थी और दरवाजा बंद कर लेती थी हां यह बात और ठीक ही वह अपनी मां को अस्त-व्यस्त हालत में धीरे-धीरे कई बार देख चुका था, ।



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घर के पीछे रात को पेशाब करते हुए उसकी नंगी गांड के दर्शन करके वह अपने आप को धन्य समझने लगा था और उस समय का पल उसके लिए बेहद उत्तेजनात्मक था,,, और वह बाथरूम में भी अपनी मां को पूरी तरह से नंगी होकर नहाते हुए देख चुका था उसके हर एक अंग को देख चुका था और उसे दृश्य को देखकर वह इस समय अपने लंड को हिला कर अपनी घर में शांत करने की लालच को रोक नहीं पाया था और हस्तमैथुन करके अपनी जवानी की गर्मी को शांत करने की कोशिश किया था और फिर उसके बाद सुबह-सुबह जब वह अपनी मां के कमरे में उसे जगाने के लिए गया था तब का दृश्य देखकर तो उसके लंड की नसे फटने को हो गई थी क्योंकि कमर के नीचे उसकी मां पूरी तरह से नंगी थी और उसकी कचोरी जैसी फुली हुई बुर को देखकर अंकित अपनी लालच को रोक नहीं पाया था और हल्के से अपनी मां की बुर को छूने का सुख प्राप्त कर लिया था,,,। अंकित यही सब अपनी मां के बारे में सोच ही रहा था कि तभी फिर से कमरे के अंदर से आवाज आई,,,।



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अरे अंकित देखा तो ब्लाउज की डोरी बंद नहीं हो रही है जरा आकर बंद कर देना तो,,,।
(इतना सुनते ही अंकित की आंखों की चमक एकदम से बढ़ गई उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था और यह फैसला भी सोच समझ कर सुगंधा ने ली थी ऐसा नहीं था कि वह अपने हाथ से ब्लाउज की डोरी बंद नहीं कर पा रही थी बल्कि वह अपने बेटे के हाथ से अपनी डोरी को बंद करवाना चाहती थी और उसे उत्तेजित कर देना चाहती थी वह आदम कद आईने के सामने खड़ी थी,,,। और ऐसे हालात में,,, आईने में उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां ब्लाउज में कैद नजर आ रही थी वह अच्छी तरह से जानती थी कैसे हालात में डोरी बातें जैसे मैं उसकी नजर आई नहीं पर जरूर पड़ेगी और वह उसे समय अपने बेटे के चेहरे पर बदलने वाले भाव को देखना चाहती थी उसके दोनों टांगों के बीच की स्थिति को महसूस करना चाहती थी देखना चाहती थी,,,,। अंकित अभी इसी कसमकस था कि उसकी मा सच में उसे अंदर बुलाई है या ऐसे ही उसके कान बज रहे हैं,,, और फिर कुछ देर तक अंकित की तरफ से कोई भी हरकत ना होता हुआ देख कर उसकी मां फिर से बोली,,,,।)



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अंकित बेटा जरा अंदर आना तो मेरे ब्लाउज की डोरी बंद नहीं हो रही है जरा बंद कर दे तो,,,,।


(इतना सुनते ही उसकी मां प्रसन्नता से भर गया उसकी मन भंवरा बनकर उड़ने लगा कि उसके कान नहीं बज रहे थे बल्कि सच में उसकी मां यही बोल रही थी जैसा कि वह सुन रहा था वह तुरंत अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और अपनी मां के कमरे के पास जाने लगा दरवाजा अंदर से बंद जरूर था लेकिन सिटकिनी नहीं लगाई हुई थी,,, और हल्के से दरवाजे पर हाथ रखते ही दरवाजा एकदम से खुल गया,,, आंखों के सामने जो दृश्य नजर आया उसे देखकर अंकित के पेट के अंदर हलचल बढने लगी,,,, दरवाजा खुलते ही पीछे ब्लाउज की डोरी को दोनों हाथों से पकड़े हुए उसकी मां दरवाजे की तरफ देखने लगी ऐसी हालत में अंकित की नजर एकदम साफ तौर पर देख पा रहे थे कि उसकी मां आसमानी रंग का ब्रा पहनी हुई थी क्योंकि पीछे के साइड से ही दिख रही थी आगे से तो ब्लाउज का कपड़ा होने की वजह से सिर्फ चुचियों का उभार ही दिख रहा था,,,। अपनी मां की तरफ कामुक नजर से देखते हुए अंकित औपचारिकता निभाते हुए बोला,,,)
क्या हुआ मम्मी,,,?



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अरे देख नहीं रहा है ब्लाउज की डोरी बंद नहीं हो रही है,,,,।

अरे कैसे बंद नहीं हो रही मम्मी,,,,

बहुत दिनों बाद यह ब्लाउज पहन रही हुं,,,,

रोज ही तो पहनती हो,,,(अपनी मां की तरफ आगे बढ़ते हुए अंकित बोला)

अरे पागल हो गया है क्या कहां रोज पहनती हूं,,,।

क्या मम्मी तुम भी बिना ब्लाउज के रहती हो क्या रोज,,,,(अपनी मां के एकदम करीब पहुंचते हुए बोला,,,,, अपनी मां के साथ बात करते हुए ब्लाउज जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए उसके बदन की उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी और सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,,)




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अरे बुद्धू डोरी वाला बहुत दिन बाद पहन रही हूं तो हाउस तुम्हें रोज पहनती हूं लेकिन कभी उसकी डिजाइन तूने देखने की कोशिश किया है तुझे क्या मालूम मैं क्या पहनती हूं क्या नहीं पहनती हूं,,, पहले जो ब्लाउज पहनती थी उसका बटन आगे से,,,(ऐसा कहते हुए सुगंधा तुरंत अपने बेटे की तरफ घूम गई और अपनी छाती दिखाते हुए बोली) बंद होता है लेकिन इस ब्लाउज में बटन भी आगे से बंद होता है और पीछे से डोरी को भी बांधी जाती है समझ में आया तुझे कुछ,,,(ऐसा कहते हुए जिस तरह से सुगंध अपने बेटे की तरफ घूम कर अपनी छाती दिख रही थी हालांकि वह अपने ब्लाउज का बटन दिखाना चाहती थी लेकिन उसका उद्देश्य अपनी चूचियों को दिखाना ही था और वाकई में सूरज की नजर बटन पर तो बाद में लेकिन उसकी भरी हुई छाती पर पहले गई थी जिसे इतने करीब से देख कर पेंट में हलचल सी मचने लगी थी,,,। अंकित क्या कहता है कुछ समझ में नहीं आया उसकी सांसे ऊपर नीचे होने लगी और यह बदलाव सुगंधा की नजर में आ चुका था वह अंदर के अंदर खुश हो रही थी,,,,, कुछ देर तक वह इस स्थिति में खड़ी रही पीछे से ब्लाउज खुला हुआ था उसकी ब्रा की पिछली पट्टी साफ दिखाई दे रही थी,,, यह किसी भी जवान लड़के की तरह मदहोश कर देने वाला दृश्य था इस तरह के दृश्य देख कर कोई भी मर्द उत्तेजित होकर जुगाड़ ना होने की स्थिति में हस्तमैथुन करके अपने घर में शांत करने की कोशिश जरूर करता और इसमें अंकित की भी हालत खराब हो रही थी वह कुछ सेकेंड तक अपनी मां की भारी भरकम चूचियों की तरफ देखते हुए औपचारिकता वश बोला,,,।)




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तो यह बात है मुझे क्या करना है,,,,,।

तुझे ज्यादा कुछ करना नहीं है बस इस ब्लाउज की डोरी को बांधना है,,, इतना तो तुझे आता ही है ना,,,,

ठीक है मम्मी,,,,।
( अंकित की मां इतना सुनते ही वापस आईने की तरफ घूम गई और अपनी चिकनी पीठ को अपने बेटे की तरफ कर दी,,, अंकित तो यह दृश्य देख कर मदहोश हुआ जा रहा था,,, अपनी मां के ब्लाउज की डोरी को बांधने के नाम से उसके बदन में उत्तेजना भारी कंपन हो रही थी,,,, वह नजर उठा कर आईने की तरफ देखा उसकी मां सीधे-सीधे आईने में नहीं देख रही थी क्योंकि वह जानती थी कि उसका बेटा आईने की तरफ देखेगी और उस नजर मिलते ही वह अपनी नजर को घुमा लगा और ऐसा हुआ नहीं चाहती थी वह चाहती थी कि उसका बेटा खुली नजरों से ब्लाउज में कैद उसकी चूचियों को देखें चूचियों के बीच से गुजरती हुई पतली दरार को देखें और ऐसा ही हुआ,,, सूरज नजर उठा कर आईने में देखने लगा जिसमें उसकी मां का खूबसूरत चेहरा और उसकी मां की मदद कर देने वाली ऊभरी हुई उन्नत छाती नजर आ रही थी जिस पर साड़ी का पल्लू नहीं था और साड़ी कमर तक भरी हुई थी और साड़ी का पल्लू नीचे जमीन पर लहरा रहा था एक तरह से यह दृश्य कामोतेजना से भर देने वाला था,,,। अगर इस समय स्त्री से पर किसी और की नजर पड़ जाती तो औपचारिक रूप से इस दृश्य के चलते मां बेटे के बीच गलत संबंध के रिश्ते का ठप्पा लग जाता और वैसे भी इस तरह के दिल से अक्षर प्रेमी प्रेमिका और पति पत्नी के बीच ही देखने को मिलता है और अगर इस समय यहदृश्य तृप्ति देख लेती तो शायद उसकी मां और उसका भाई दोनों उसके नजर से गिर जाते लेकिन इस समय दोनों निश्चिंत्य थे क्योंकि तृप्ति कोचिंग के लिए गई हुई थी,,,,,।

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जवान हो चुके अंकित के लिए यह काम बेहद कठिन नजर आ रहा था क्योंकि आज तक कुछ नहीं कभी औरत के ब्लाउज की डोरी नहीं बांधी थी यह पहला मौका था जब उसकी मां खुद ही अपने बेटे से ब्लाउज की डोरी को बंधवाने जा रही थी,,, अंकित ठीक अपनी मां के पीछे खड़ा हुआ था उसके पेट में अच्छा खासा तंबू बना हुआ था जो की एक कदम आगे बढ़ने से ही उसका तंबू उसकी मां की भारी भरकम नितंबों पर स्पर्श करने लगता उस पर रगड़ खाने लगता,,, और शायद इसी रगड़ को सुगंधा महसूस करना चाहती थी क्योंकि वह भी तिरछी नजर से अंकित के पेट में उभरे हुए तंबू को देख चुकी थी और इतना तो समझ ही गई थी कि उसके बेटे का लंड क्यों खड़ा है और इसी के चलते उसे अपनी जवानी पर अपने कसे हुए बदन पर गर्व महसूस हो रहा था,,,, कुछ पल के लिए कमरे के अंदर खामोशी छा चुकी थी मां बेटे दोनों खामोश थे आईने में अंकित की नजर अपनी मां की भारी भरकम छातियों पर टिकी हुई थी जिसके बीच से गुजरती हुई गहरी लकीर किसी नहर से काम नहीं लग रही थी और इसी नहर में अंकित डुबकी लगाना चाहता था,,,, अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि ब्लाउज के अंदर उसकी मां कितना बेश कीमती खजाना छुपा कर रखी है,,, जिसे देखने के लिए उसका मान कितना ललाईत हो रहा है और अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसकी मां राहुल की मां की तरह होती तो कितना अच्छा होता,,, तो उसे भी इस समय अपनी मां की नंगी चूचियों को देखने का सुख प्राप्त हो जाता गली साड़ी में बड़ी-बड़ी चूची और उसके कड़े निप्पल,,,उफ्फ ,,,, यही सब सोच कर अंकित मन ही मन खुश हो रहा था कि तभी उसकी मां बोली,,,।

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अरे अब देख क्या रहा है बंद भी करेगा कि खड़ा ही रहेगा मार्केट भी जाना है,,,।

मैंने कभी बंद नहीं किया ना इसलिए समझ में नहीं आ रहा है,,,।

अरे तो सीख लेना चाहिए था, , आखिरकार यह सब आगे चलकर काम आएगा,,,,।
(अपनी मां की बातें सुनकर अंकित अपनी मां के खाने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था और मन ही मन प्रसन्न भी हो रहा था वह धीरे से अपना हाथ आगे बढ़े और अपनी मां के ब्लाउज की डोरी को अपने दोनों हाथों से थाम लिया,,,, ब्लाउज की डोरी पकड़ने में उसकी हालत खराब हो रही थी माथे से पसीना को पकने लगा था जबकि कमरे में पंखा चल रहा था और गर्मी का एहसास सुगंधा को बिल्कुल भी नहीं हो रहा था और वही वह पसीने से तरबतर होता जा रहा था,,,, यह सब सुगंधा आईने में अच्छी तरह से देख पा रही थी,,,। देखते ही देखते अंकित ब्लाउज की डोरी को बांधने लगा,,, उसकी उंगलियां कांप रही थी,, अपने बेटे की हालत देखकर सुगंधा को भी शक हो रहा था कि कहीं उसका बेटा सच में उसकी डोरी बांध पाएगा या नहीं,,,,।

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डोरी को बांधते समय अंकित की उंगलियां अपनी मां की चिकनी पीठ से स्पर्श हो जा रही थी और इतने सही अंकित के तन बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी वह मदहोश हुआ जा रहा था,,, उसे अपनी मां की नंगी पीठ का स्पर्श भी बेहद आनंददायक लग रहा था,,,, वह अपनी मन में सोच रहा था कि उसकी मां की चिकनी पीठ कितनी कोमल है अगर ब्लाउज उतार दिया जाए तो बस केवल ब्रा की पतली सी पट्टी ही नजर आती है कोई भी शख्स पैसे में उसकी मां की नंगी चिकनी पीठ की कल्पना कर सकता है कि बिगर ब्रा और ब्लाउज की कैसी दिखती होगी,,,,।

यही हाल सुगंधा का भी था,, जब जब उसे अपनी पीठ पर अपने बेटे की उंगली का स्पर्श होता तब तब उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगती थी,,, देखते ही देखते एक गिठान मार कर अंकित दूसरी गिठान मार रहा था,,, उत्तेजना से अंकित की हालत बहुत खराब होती जा रही थी और यही हाल सुगंधा का भी था,,, सुगंधा किसी तरह से अपने बेटे के पेंट में बने हुए तंबू का स्पर्श अपनी नितंबों पर करना चाहती थी लेकिन कामयाब नहीं हो पा रही थी वह हल्के-हल्के अपने नितंबों में हरकत भी दे रही थी कि पीछे की तरफ जाकर बस स्पर्श हो जाए लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था,,,, ऐसे में ब्लाउज की डोरी बांधते हुए अंकित की नजर अपनी मां की गांड पर गई तो उसके होश उड़ गए गांड का उभार बहुत ही गजब का था,, नजर नीचे करने पर उसे साफ दिखाई दे रहा था कि उसकी मां की बड़ी-बड़ी गांड और उसके लंड के बीच केवल दो तीन अंगुल का ही फासला रह गया था हल्का सा कमरक्ष आगे कर देता था उसका लंड उसकी मां के नितंबों से रगड़ खा जाता। लेकिन ऐसा करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी उसे इस बात का डर था कि अगर उसकी मां की गांड पर उसका लंड स्पर्श करेगा तो उसकी चुभन से वह कैसा महसूस करेगी,,, नाराज हो जाएगी यही सब सो कर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी जबकि उसकी मां तो चाहती थी कि किसी भी तरह से उसके बेटे का लंड उसकी गांड से रगड़ खा जाए बस इतने से ही सुगंधा प्रसन्न हो जाती और अंकित मत हो जाता लेकिन फिर भी आगे बढ़ने से डर रहा था,,,।

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देखते ही देखते अंकित अपनी मां के ब्लाउज की डोरी की गिठान को मार दिया था,,,, और बोला,,,।

लो हो गया,,,,।

बाप रे तूने तो बहुत कस के डोरी बांध दिया है,,,, आगे से देख,,,(एकदम से अंकित की तरफ घूम कर एक बार फिर से अपनी छाती की गोलाई दिखाते हुए) कितना बाहर निकल गया,,, एकदम उभरा हुआ दिख रहा है,,,,।
(अपनी मां की हरकत और उसकी छातिया को देखकर अंकित की आंखें फटी की फटी रह गई क्योंकि वह एकदम से छाती को तानकर अपनी दोनों गोलाईयों को दिखा रही थी,,, अंकित की हालत एकदम खराब होती जा रही थी वह आंख फाड़े अपनी मां की छातियो को ही देख रहा था और सुगंधा को भी अपने बेटे को अपनी चूची दिखाने में मजा आ रही थी भले ही ब्लाउज के ऊपर से लेकिन आनंद बेहद प्राप्त हो रहा था,,,। अपनी मां की हरकत से पूरी तरह से मदहोश हो चुका अंकित अपनी मां की चूचियों की तरफ देखते हुए ही बोला,,,)

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सच में यह तो एकदम बड़ी-बड़ी नजर आने लगी लाओ में गिठान खोल देता हूं,,,।

नहीं नहीं रहने दे अच्छी लग रही है,,, क्यों सच कह रही हो,,,।
(अब अंकित क्या बोलता वह तो एकदम से हक्का-बक्का रह गया,,, सीधे शब्दों में उसकी मां खुद अपनी ही मुंह से अपनी चूचियों की तारीफ कर रही थी और कोई झूठ तारीफ नहीं कह रही थी वाकई में उसकी चूची इस समय कुछ ज्यादा ही बड़ी और बेहद आकर्षक लग रही थी,,, इसलिए गहरी सांस लेते हुए अंकित भी बोला,,,)

सच में मम्मी बहुत अच्छी लग रही है,,,।

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हां तभी तो,,, चलिए सब जाने दे बस पीछे से जरा ब्रा की पट्टी को ब्लाउज की डोरी के नीचे कर देना तो वरना दिखेगी तो खराब लगेगी,,,,(इतना कहने के साथ ही एक बार फिर से सुगंधा आईने की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और अब जिस तरह की बातचीत हुई थी उसके चलते और ब्रा की पट्टी को ठीक करने के नाम से ही अंकित पूरी तरह से अपने बदन में चुदवासा पन महसूस कर रहा था,,,,,, अपनी मां की बात सुनकर एक बार फिर से अंकित की उंगलियां उसकी नंगी चिकनी पीठ को स्पर्श करने लगी और एक औरत के बदन पर उसकी ब्रा की पट्टी को छुने का सुख अंकित प्राप्त करने लगा,,, और अपनी उंगलियों को अपनी मां की ब्रा की पट्टी के नीचे सरका कर वह पट्टी को एकदम ठीक करने हेतु,,, अपनी तरफ खींच जो कि एकदम कसी हुई थी और खींचने की वजह से सुगंधा का बैलेंस एकदम से गड़बड़ क्या और वह एकदम पीछे की तरफ गिरने लगी,,, और उसे संभालने के लिए अंकित तुरंत अपनी बाहों को खोल दिया और पीछे से अपनी मां को अपनी बाहों में ले लिया लेकिन सुगंधा का शरीर थोड़ा गदराया हुआ था जिसके चलते अंकित भी ठीक तरह से अपनी मां को संभाल नहीं पा रहा था और दो-तीन कदम पीछे की तरफ आ गया उसकी मां भी साथ में उसके बाहों में पीछे से उसके ऊपर गिरती हुई और खुद ही बचने की कोशिश करते हुए दोनों बिस्तर के करीब आ गए,,,, लेकिन आखिर में अंकित अपने आप को अपनी मां के भार को संभाल नहीं पाया और बिस्तर पर गिर गया गनीमत थी कि बिस्तर तीन कदम पीछे ही था,,,, इसलिए दोनों बिस्तर पर गिरे वरना नीचे जमीन पर गिर जाते तो दोनों को चोट लग जाती ,,,,,।

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इसके बावजूद भी बेहद अद्भुत और मादकता से भरा हुआ नजारा बन चुका था,,, अंकित नीचे था और उसकी मां उसके ऊपर थी,,, पीछे से अपनी मां को बाहों में भरा हुआ था और ऐसे हालात में इसकी भारी भरकम गांड उसके मोटे तगड़े लंड के ऊपर टिकी हुई थी जो की पूरी औकात में आकर खूंटा बना हुआ था,,, पर सीधे-सीधे साड़ी सहित गांड की दोनों फांकों के बीच रास्ता बनाता हुआ,,, उसकी बुर के मुहाने दस्तक दे रहा था,,,,,, जिसका एहसास सुगंधा को एकदम बराबर हो रहा था,,, अपने बेटे के मोटे तगड़े लंड को साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर पर महसूस करते ही वह पूरी तरह से मचल उठी,,,, एकदम से मदहोश हो गई,,, पहले तो बिल्कुल अपरा तफरी का माहौल था क्योंकि गिरते गिरते बची थी लेकिन जैसे ही उसे एहसास हुआ कि वह बिस्तर पर गिरी है और बच गई है तो राहत की सांस थी लेकिन तभी उसकी यह राहत मदहोशी में बदल गई जब उसे अपनी गांड के बीचों बीच कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ,, और उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच चुकी सुगंधा के लिए,,, अनुमान लगाना कोई बड़ी बात नहीं देखी उसकी गांड के बीचों बीच जो चीज चुभ रही है वह क्या है,,, और जब उसे यहां एहसास हुआ कि वह चीज कुछ और नहीं बल्कि उसके बेटे का मोटा तगड़ा लंड है तो यह एहसास ही उसकी बुर को मदन रस से भिगोने लगी वह चारों खाने चित हो चुकी थी,,,।

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और यही हाल अंकित का भी था जब उसे भी इस बात का एहसास हुआ कि उसका लंड उसकी मां की गांड के बीचों बीच जाकर कहीं फस गया है तो वह भी एकदम से मदहोश हो गया और वैसे भी वह पीछे से अपनी मां को बाहों में झगड़ा हुआ था और उसे बचाने के चक्कर में अनजाने में उसकी दोनों हथेलियां उसके दोनों खरबुजो पर चली गई थी जिसे वह संभालने के चक्कर में दबा दिया था,,,, और शायद यह एहसास सुगंध को नहीं हो पाया था क्योंकि वह अपनी दोनों टांगों के बीच के एहसास में पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,,।

कुछ देर तक दोनों इसी अवस्था में बिस्तर पर पड़े रहे दोनों की सांस ऊपर नीचे हो रही थी दोनों मदहोश हो चुके थे उत्तेजना दोनों के सर पर सवार हो चुकी थी लेकिन जैसे तैसे करके सुगंध अपने आप को संभाली और यह बोलते हुए उठने लगे की,,,, अच्छा हुआ बिस्तर पर गिरे वरना चोट लग जाती,,,।

और फिर दोनों मार्केट की तरफ निकल गए,,,।।
Kafi kamuk
 

sunoanuj

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Bahut hi behatareen update….
 

Blackserpant

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अपनी मां से हुई बातचीत की वजह से अंकित अपने तंबदन में अजीब सी हलचल का अनुभव कर रहा था आज साफ-साफ उसकी मां के मुंह से लंड शब्द पूरा निकलते निकलते रह गया था,,, अपनी मां के मुंह से केवल लं,,,, शब्द सुनकर ही अंकित चारों खाने चित हो चुका था क्योंकि आज तक उसने अपनी मां के मुंह से एक भी शब्द अश्लीलता के नहीं सुना था यह पहली बार था कि अपनी मां के मुंह से अश्लील शब्द सुन रहा था जो कि वह पूरा बोल नहीं पाई थी अपने शब्दों को अपने होठों में ही दबा ले गई थी ,, लेकिन अंकित अपनी मां के मुंह से निकलने वाले शब्दों को अच्छी तरह से समझ गया था वह जानता था कि उसकी मां क्या कहना चाह रही थी इसीलिए तो उसका खुद का लंड एकदम से खड़ा हो गया था,,,। अभी भी उसकी सांसे उत्तेजना का एहसास दिला रही थी,,,।



रास्ते में फुटपाथ पर चलते हो गई वह अपनी मां के बारे में ही सोच रहा था,,, वह जानता था कि उसकी मां एक शिक्षिका थी,, और एक शिक्षिका के व्यवहार को लेकर वह अच्छा खासा परिचित था वह जानता था कि एक शिक्षिका का व्यवहार कैसा होता है क्योंकि वह बचपन से ही अपनी मां को देखता आ रहा था,, और आज तक उसने अपनी मां के मुंह से ऐसा कोई भी शब्द नहीं सुना था जो मोहल्ले की आम औरतें आपस में बात करते हुए करती है,, कहीं औरतों के मुंह से तो उसने गाली गलौज तक सुना था और वह भी मां बहन की और वह अपने मन में यही सोचता था कि अच्छा ।हुआ उसकी मां इस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं करती किसी से गाली गलौज नहीं करती,,, और दिल सेवा अपनी मां की इज्जत भी करता था लेकिन धीरे-धीरे अंकित का खुद का रवैया बदलता जा रहा था ,,, अपनी मां को लेकर उसकी सोच बदलती जा रही थी,,, अंकित अपने मन में सोच रहा था कि अच्छा ही हुआ कि उसने केले वाला जिक्र छेड़ दिया था उसे अकेले की वजह से पता तो चला कि उसकी मां को क्या पसंद है जो कि उसके मुंह से निकली गया था कि उसे मोटा तगड़ा लंड पसंद है भले ही इशारे में उसकी मां के लिए बोल रही थी लेकिन केले का बोलते समय भी उसके मुंह से उसके मन की बात निकल ही गई थी,, और अपनी मां के मन में क्या चल रहा है एहसास अंकित को होते ही उसके तन बदन में आग लग गई थी बात ही बात में उसे पता चल गया था कि उसकी मां को मोटा और तगड़ा लंड पसंद है,, जोकि दुनिया की हर औरतों को पसंद है और इसीलिए उसकी मां भी दूसरी औरतों से अपवाद बिल्कुल भी नहीं थी भले ही चरित्र दूसरों से अलग था लेकिन औरत की जरूरत दूसरी औरतों से बिल्कुल भी अलग नहीं थी,,,।



अंकित पूरी तरह से उत्तेजना का अनुभव कर रहा था वह अपने मन में ही चलते हुए कल्पना कर रहा था कि उसकी मां मोटे तगड़े लंड से चुदवाना चाहती है,,, वैसे भी उसकी गांड इतनी बड़ी-बड़ी है कि छोटा और पतला लंड उसकी जवानी की आपको बुझा ही नहीं सकता उसे मोटा तगड़ा लंड चाहिए एकदम मेरी तरह,,, यह सब सोचते हुए अंकित अपने आप से ही बात करते हो बोल रहा था कि स्कूल से छूटने के बाद वह मोटे और तगड़े केले खरीद कर घर ले जाएगा,,,।

जहां एक तरफ बेटे के मन में इस तरह के खयालात चल रहे थे वहीं दूसरी तरफ मां का भी बुरा हाल था रसोई का काम पूरा कर चुकी थी लेकिन फिर भी वह रसोई घर में ही थी किचन फ्लोर पर अपनी गांड टीकाकर वह कुछ देर पहले की बात चीत के बारे में ही सोच रही थी,,, वह अपने मन में सोच रही थी कि नूपुर के बेटे से मिलकर उसका बेटा भी उसकी तरह होता जा रहा है और यह उसके लिए अच्छा ही दिशा निर्देश करते हैं आज पहली बार उसका बेटा दो अर्थ में बातें जो किया था,,, और इस बात को सुगंधा अच्छी तरह से समझ गई थी क्योंकि आज से पहले उसने कभी भी घर में कुछ भी खरीद कर लाने की बात नहीं की थी ,,, और इसीलिए तो उसके खुद के तन बदन में आग लगी हुई थी क्योंकि आज अनजाने में ही केले की जगह उसके मुंह से लंड निकल गया था,,,।




वैसे भी औपचारिक रूप से किले को देखकर अक्सर औरतें एक मोटे तगड़े लंड की कल्पना करने ही लगती हैं,,, क्योंकि केले का आकार एकदम लंड के आकार से मिलता जुलता रहता है,,, इसीलिए अनजाने में केले की जगह आज उसके मुंह से लंड शब्द निकलते निकलते रह गया था,,, सुगंधा इस बात से हैरान थी कि उसका बेटा उसके कहे शब्दों को जरूर समझ गया होगा उसका बेटा समझ गया होगा कि उसकी मां क्या चाहती है,,, और इसी बात से जहां एक तरफ हुआ परेशान नजर आई थी वहीं दूसरी तरफ अनजाने में अपने मुंह से लंड शब्द निकल जाने की वजह से वह अपने बदन में मदहोशी का एहसास कर रही थी और अपने आप से बात करते हुए बोल रही थी कि अच्छा युवा की उसके मुंह से आज वह निकल गया जो वह चाहती है खास उसका बेटा उसके कहने का मतलब कुछ समझ जाता तो उसकी भी रातें रंगीन हो जाती,,, अपने मन में इस तरह की बातें सोचते हुए उसके तन बदन में आग लग रही थी उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी उसे भी स्कूल जाना था ,,, वरना बाथरूम में जाकर वह अपनी जवानी की प्यास अपनी उंगली से बुझाने की भरपूर कोशिश करती,,,,।

अपने मन को काबू में करके वह स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगी,,, और थोड़ी देर में वह भी स्कूल जाने के लिए निकल गई,,,,।

दूसरी तरफ,, त्रप्ती संदीप से मिलने के लिए व्याकुल नजर आ रही थी कॉलेज में पहुंच जाने के बावजूद भी उसे संदीप कहीं नजर नहीं आ रहा था,,, क्लास में बैठकर वह संदीप के बारे में ही सोच रही थी ,,वह जल्दी से जल्दी संदीप से मुलाकात करना चाहती थी और प्रेम पत्र के बारे में बातें करना चाहती थी,,, प्रेम पत्र को लेकर उसके मन में कोई शिकायत नहीं थी वह खुशी-खुशी संदीप से मिलकर इस बारे में बात करना चाहती थी इसीलिए उसका मन किसी काम में लग नहीं रहा था और जल्द से जल्द छुट्टी होने का इंतजार कर रही थी क्योंकि वह जानती थी कि संदीप अगर इस समय नहीं मिला है तो छुट्टी में जरूर मिलेगा क्योंकि वह भी इसी कॉलेज में पढ़ता था,,,, धीरे-धीरे समय अपनी रफ्तार से गुजर रहा था इस बीच तृप्ति कई बार संदीप के द्वारा लिखे गए प्रेम पत्र को चोरी-चोरी पढ़कर उसे बैग में रख ले रही थी,,, उससे रहा नहीं जा रहा था,,, आखिरकार अपने समय पर छुट्टी की घंटी बाज ही गई,,,।

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एक तरफ छुट्टी की घंटी बज गई दूसरी तरफ तृप्ति के दिल की धड़कन बढ़ने लगी,,, संदीप से मिलने से पहले वह कभी सोची भी नहीं थी कि वह प्यार व्यार के चक्कर में पड़ जाएगी वह अपने आप से ही दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि वह दूसरी लड़कियों की तरह अपने कदम डगमगाने नहीं देगी प्यार व्यार के चक्कर में कभी नहीं पड़ेगी,,, लेकिन यह जो उम्र होती है यह बहुत ज्वलनशील होती है इस उम्र की जलन में जो जल गया तो समझो वह झुलस गया और जो इसकी तपन से बच गया तो वह आगे निकल गया वह अपना करियर बना ले गया क्योंकि यही उम्र होती है डगमगाने की,,, और जो बच गया सो बच गया वरना सब बर्बाद और यही इस समय तृप्ति के साथ हो रहा था,,,। वह अपने आप को संभालने में नाकामयाब साबित हो रही थी,,,,, वह कुछ समझ नहीं पा रही थी वह भूल गई थी कि इस उम्र का प्यार बिस्तर पर जाकर खत्म हो जाता है और संदीप उसे अपने बिस्तर पर ले जाना चाहता था,,, उसके रुप यौवन से खेलना चाहता था,,,, क्योंकि सुगंधा की तरह ही उसकी बेटी भी बला की खूबसूरत थी,,,।


आखिरकार दोनों का मिलन हो ही गया ,, संदीप थोड़ा त्रप्ती से घबरा रहा था क्योंकि पहले बार का अनुभव अच्छी तरह से जानता था,,, तृप्ति के रवैये से अच्छी तरह से वाकीफ था,, इसलिए घबरा रहा था कि कहीं फिर से वह नाराज ना हो जाए,,, इसलिए उससे मुंह छुपा रहा था,,, लेकिन तृप्ति बहुत खुश थी,,, वह संदीप से बोली,,,।

बगीचे में चलो तुमसे कुछ बात करना है वहीं बैठकर बातें करेंगे,,,

बगीचे में,,,(थोड़ा डरते हुए बोला)

हां बगीचे में हरकत जो तुमने इस तरह की किए हो की ,,

मैंने क्याकिया,,,

अब अनजान बनने की कोशिश मत करो यहां सड़क पर मैं कुछ कहना नहीं चाहती,,,

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ठीक है चलो,,,(इतना कहकर संदीप आगे बढ़ गया तकरीबन 5 मिनट की दूरी पर ही बगीचा था जहां पर अक्सर लोग बैठकर बगीचे की ठंडक का एहसास करते हुए आपस में बातचीत करते थे और प्रेमी प्रेमिका प्रेमालाप करते थे,,, संदीप जानबूझकर बगीचे में सबसे पीछे वाली जगह पर गया जहां पर बड़े-बड़े पेड़ थे और यहां पर ज्यादा लोग आते भी नहीं थे,,, बड़ी-बड़ी घनी झाड़ियां होने की वजह से दूर से देखे जाने का डर भी नहीं था,,। दोनों टेबल पर अपना अपना बैग रख कर बैठ गए तृप्ति संदीप को ही देखे जा रही थी और संदीप डर के मारा अपनी नजर को नीचे झुका कर बैठा था वैसे तो लड़कियों से बातचीत करने में बिल्कुल भी घबराते नहीं था और ना ही तृप्ति से डरता था तृप्ति से इस बात से डरता था कि कहीं वह उसे नाराज होकर उससे दूरी न बना ले क्योंकि वह किसी भी कीमत पर तृप्ति का जिस्म पाना चाहता था,, उसे भोगना चाहता था,,,, कुछ देर की खामोशी के बाद बात की शुरुआत करते हुए तृप्ति बोली,,)

तुमने नोटबुक में क्या लिख कर दिए थे,,,।



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क्या लिख कर दिए थे,,, मुझे क्या मालूम क्या लिख कर दिए थे,,,( संदीप जानबूझकर अनजान बनता हुआ बोला,,,)

अब बनने की कोशिश बिल्कुल भी मत करो,,, मैं सब जानती हूं,,, और तुम्हें पता होना चाहिए कि अगर किसी के हाथ लग जाता तो क्या होता,,,।

(संदीप तृप्ति की बात सुनकर कुछ बोला नहीं बस खामोश रहा तृप्ति संदीप की तरफ ही देख रही थी और संदीप की हालत देखकर मन ही मन खुश हो रही थी क्योंकि उसे ऐसा लग रहा था कि संदीप घबरा रहा है जबकि वह घबरा नहीं रहा था बस नाटक कर रहा था,,, तृप्ति अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)

तुम मुंह से भी तो कह सकते थे,,,

मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी,,,

वैसे तो बहुत हिम्मत दिखाते रहते हो इतना कहने में हिम्मत नहीं हो रही है,,,

सच में मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं तुम्हारी बहुत इज्जत करता हूं और मैं कुछ ऐसा नहीं करना चाहता जिससे तुम्हें बुरा लग जाए और तुम मुझे छोड़ दो,,,


मुझे तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगता,,,, मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूं,,,,(इतना कहते हुए दोनों एक दूसरे की आंखों में देखने लगे तृप्ति मदहोश होने लगी क्योंकि संदीप धीरे-धीरे अपने होठों को उसके करीब ले जाने लगा उत्तेजना वश तृप्ति भी अपने होठों को हल्के से आगे की तरफ बढ़ा दी यह उसकी तरफ से संदीप के लिए आमंत्रण था और इस आमंत्रण को स्वीकार करते हुए,, संदीप अपने प्यासे होठों को त्रप्ती के लाल लाल दहकते हुए होंठों पर रख दिया,,, महीनों बाद तृप्ति फिर से मदहोश हो गई,,, संदीप इस खेल में माहिर था वह पल भर में ही तृप्ति के लाल लाल रस भरे होठों को अपने होठों के बीच रखकर उसका रसपान करने लगा संदीप का यह चुम्मन तृप्ति को पूरी तरह से मदहोश कर रहा था,,, तृप्तिकेतन बदन में आग लगने लगी,,,, और इस बार मौका देखकर संदीप ने फिर से अपनी हथेली को उसकी छाती पर रख दिया,,, उसके संतरे को अपनी हथेली में हल्के से लेकर दबा दिया और तृप्ति के मुंह से घुटी-घुटी सी आह निकल गई,,,।

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तृप्ति को इस चुंबन में बहुत मजा आ रहा था इस बार तृप्ति खुद पागलों की तरह संदीप के होठों को भी अपनी होठों के पीछे लेकर चूसना शुरू कर दी थी कोशिश बात का अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि संदीप उसकी चूची को दबा रहा था और चूची को दबाने में जो मजा उसे प्राप्त हो रहा था उससे भी ज्यादा मजा तृप्ति को महसूस हो रहा था वह मदहोश हुए जा रही थी,,,। लेकिन यह चुंबन और स्तन मर्दन का क्रियाकलाप कुछ देर और चल पाता इससे पहले की किसी के आने की आहट दोनों के कानों में सुनाई दी और दोनों तुरंत अलग हो गए,,, क्योंकि वहां पर कुछ आवारा लड़के आ रहे थे और अब वहां पर ज्यादा देर तक ठहरना उचित नहीं था इसलिए दोनों अपनी जगह से खड़े हो गए और जल्दी से वहां जाने लगे लेकिन जाते-जाते ही उनमें से एक लड़का बोला,,,।

चुदाई का प्रोग्राम था क्या,,, हमसे गलती हो गई थोड़ी देर बाद आना चाहिए था ताकि चुदाई का खेल अपनी आंखों से देख लेते,,,,।

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(उसे हमारे लड़के की बात को अनसुना करके दोनों वहां से निकल गए लेकिन भले बात को अनसुना कर गए थे लेकिन जो बात उस आवारा लड़के ने बोली थी चुदाई वाली,,, उसे बात का तृप्ति के मन पर बहुत गहरा असर पड़ रहा था उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी थी,,, उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वास्तव में वह बगीचे के कोने वाली जगह पर चुदवाने के लिए गई थी,,, दोनों बगीचे से बाहर निकाल कर कुछ देर साथ चलकर अपने-अपने रास्ते हो लिए,,,

वादे के मुताबिक अंकित स्कूल से छूटने के बाद वास्तव में मोटे तगड़े और बड़े-बड़े केले खरीद लिया था एकदम अपने लंड के साइज का क्योंकि वह समझ गया था कि उसकी मां को इस माप का ही जरूरत है,,। वह जानता था कि घर पर केला ले जाते ही उसकी मां की नजर जैसे ही कैला पर पड़ेगी उसकी मां की बुर पानी छोड़ने लगेगी,,, वह जल्दी-जल्दी घर पहुंच गया,,, शाम के 5:00 बजे रहते और इस समय घर पर उसकी मां के लिए रहती थी इसलिए अंकित मन ही मन खुश हो रहा था लेकिन जैसे ही घर पर पहुंचा तो घर पर तृप्ति भी मौजूद थी वह पढ़ाई कर रही थी,,, और घर पर तृप्ति को देखकर उसके अरमानों पर पानी फिर गया,,, तृप्ति की नजर जैसे ही अंकित के हाथों में केले के थैले पर गई तो मोटे-मोटे तगड़े केले को देखकर तृप्ति बोली,,,।

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यह क्या उठा लाया तू,,,

क्यों दीदी तुम्हें पसंद नहीं है क्या,,,?

तूने कभी देखा मुझे केला खाते हुए,,,,

हां सही बात है देखा तो नहीं हुं,,,

फिर तु यह सब क्यों लेकर आया,,,

अरे दीदी तुम्हें नहीं पसंद है तो क्या किसी को पसंद नहीं आएगा मम्मी को तो पसंद है ना,,,,

तो यहां लेकर क्यों खड़ा जा मम्मी को दे दे,,,,

( ओर इतना सुनकर अपने कमरे से सुगंधा बाहर निकल कर आ गई,,, अपने बेटे के हाथ में केला देखकर उसकी साइज देखकर उसकी मोटाई देखकर मन ही मन उत्तेजित होने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

तु कितना ख्याल रखता है मेरा,,, और एक यह है जो आज तक कुछ नहीं लेकर आई,,,(तृप्ति की तरफ इशारा करते हुए बोली तो अंकित बोल पड़ा)

मां का ख्याल हमेशा हम लड़कों को ही रखना पड़ता है लड़कियों से थोड़ी ना कुछ होता है,,,,।
(अंकित दो अर्थ वाली बात कर रहा था जो कि उसकी मां अच्छी तरह से समझ रही थी और अपने बेटे के कहने के मतलब को समझ कर वह अंदर ही अंदर सिहर उठी,,,,,, वह जानती थी किसका बेटा मां का ख्याल लड़के रखते हैं ऐसा क्यों किया है क्योंकि लड़कों के पास लंड होता है जिनकी प्यास हर एक मां को होती है जिससे वह अपनी जवानी की प्यास बुझा सकती है,,,, यह सब सुनकर तृप्ति बोली,,,)

चलो कोई बात नहीं मैं जैसी हूं वैसी ही ठीक हूं अब मम्मी जल्दी से चाय बना दो,,,

को देखो महारानी के नखरे चालू हो गए,,,,।
(इतना कहकर सुगंधा रसोई घर में चली गई और पीछे-पीछे अंकित भी अकेला लेकर अपनी मां के पीछे चला गया और वही किचन फ्लोर पर रख दिया दोनों में और कुछ बात हो पाती से पहले तृप्ति भी वहीं आ गई और बोली,,,)

अच्छा लाओ मैं ही बना देती हुं,,,
(और तृप्ति चाय बनाने लगी तृप्ति की मौजूदगी में दोनों मां बेटे किसी भी तरह से दो अर्थ वाले संवाद नहीं कर पा रहे थे जिससे दोनों के अरमानों पर पानी फिर गया था,,,,।

रात को अपने कमरे में सुगंधा अपने बेटे के द्वारा खरीद कर लाए गए मोटे तगड़े केले को लेकर गई,, और बिस्तर पर लेट गई और अपने मन में कल्पना करने लगी अपने बेटे के लंड को लेकर उसके हाथ में लिया हुआ अकेला उसे अपने बेटे का लंड लग रहा था क्योंकि वह केला वाकई में बेहद दमदार और मोटा और तगड़ा और काफी लंबा था ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके बेटे ने केला नहीं बल्कि अपना लंड ही उसे खाने के लिए दे दिया हो वह उस केले को अपने हाथ में लेकर अपने अंगूठे और उंगली का छल्ला बनाकर उसके अंदर केले को धीरे-धीरे इस तरह से प्रवेश करने लगी मानव की जैसे वह उसकी उंगलियों के द्वारा बनाया गया छल्ला नहीं बल्कि उसकी खुद की गुलाबी बुर हो और वह केला उसके बेटे का लंड हो जिसमें वह धीरे-धीरे प्रवेश कर रहा हो,,,, सुगंधा को मन में कल्पना करते हुए बहुत मजा आ रहा था,,,।
सुगंधा केले से मस्त होती हुई

अपने मन में कल्पना करते हैं वह धीरे-धीरे अपने वस्त्र उतारने लगी और देखते ही देखते वह बिस्तर पर पूरी तरह से नंगी हो गई उसके अरमान पूरी तरह से मचल उठे थे,,,, वह अपने दोनों टांगों को फैला कर उसके लिए को इसकी मोटाई को धीरे-धीरे अपनी गुलाबी पत्तियों पर रगड़ रही थी पर ऐसा महसूस कर रही थी कि जैसे यह क्रिया उसका बेटा उसकी दोनों टांगों के बीच जगह बनाकर अपने लंड को हाथ में पकड़ कर अपने गरम सुपाड़े को उसके गुलाबी पत्तियों पर रगड़ रहा हो,,, यह कल्पना बेहद मदहोश कर देने वाली थी वह पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में गोते लगाने लगी वह मदहोश होने लगी,,, उसकी कल्पनाओ के आज कुछ ज्यादा ही पर लग गए थे,,, वह केले को धीरे-धीरे अपनी बुर पर थपथपा रही थी,,, वह पागल हो जा रही थी और कल्पना कर रही थी कि जैसे उसका बेटा अपने लंड को हाथ में लेकर उसकी बुर पर उसकी चोट मार रहा हो ,,जिससे उसे दर्द तो हो रहा था लेकिन मजा भी बहुत आ रहा था।
केले से चुदाई का मजा लेती हुई

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सुगंधा से बिल्कुल भी रहा नहीं जा रहा था अपनी दोनों टांगों को खोल दी और फिर धीरे-धीरे उसकेले को जो कि उसके मदन रस से पूरी तरह से गिला हो चुका था धीरे-धीरे अपनी गुलाबी पत्तियों के बीच प्रवेश कराना शुरू कर दी,,, उसे बहुत मजा आ रहा था क्योंकि किला का साइज बहुत ज्यादा ही मोटा था और अपने मन में सोच रही थी कि काश ऐसा मोटा तगड़ा लंड मिल जाता तो उसकी तो जिंदगी बन जाती,,, और वह ऐसा सोचते हुए धीरे-धीरे केले को आधा से ज्यादा अपनी बुर में प्रवेश करा दी और उसे अंदर बाहर करने लगी और अपनी आंखों को बंद करके महसूस करने लगी की जैसे उसका बेटा उसकी दोनों टांगों के बीच जगह बनाकर उसकी बुर में अपना लंड डालकर उसे चोदना शुरू कर दिया है,,, उसे बहुत मजा आ रहा था वह मदहोशी में अपने सर को दाएं बाएं पाठक रही थी और अपने हाथ को जोरो से चला रही थी जैसे-जैसे अकेला अंदर बाहर हो रहा था वैसे-वैसे उसकी रगड़ का एहसास उसे पागल बना रहा था,,,।

केले सेचुदाई का मजा लेती हुई सुगंधा

उसकी आंखें पूरी तरह से बंधी थी वह कल्पनाओं की दुनिया में पूरी तरह से खो चुकी थी अपने बिस्तर पर संपूर्ण रूप से नग्न अवस्था में वह कामांध हो चुकी थी,,, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था बस अपनी कल्पनाओं में वह पूरी तरह से खो चुकी थी तेज चलते हैं हाथों के साथ-साथ उसकी कल्पनाओं का घोड़ा बड़ी तेजी से दौड़ रहा था वह अपने मन में यही सोच रही थी कि उसका बेटा उसे अपनी बाहों में लेकर जोर-जोर से अपनी कमर हिला कर धक्के पर धक्का लगा रहा है,,,, पल भर में उसकी सांसे बड़ी तेजी से चलने उखड़ने लगी वह पागलों की तरह अपने सर को इधर-उधर पटकने लगी पसीने से तरबतर उसका गोरा नंगा बदन पूरी तरह से ट्यूबलाइट की रोशनी में चमक रहा था वह चरम सुख के बेहद करीब पहुंच चुकी थी और देखते ही देखते उसके मुंह से हल्की सी चीज निकाली और उसकी कमर ऊपर उठ गई वह अपनी भारी भरकम गांड को पल भर के लिए ऊपर उठाकर झड़ना शुरू कर दी,,, और देखते ही देखते हैं उसकी बुर से गरम लावा पिचकारी का रूप धारण करके निकलना शुरू कर दिया,,,,।

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वासना का तूफान शांत हो चुका था,,, वह अपनी बुर में से केला बाहर निकाली जो की पूरी तरह से उसके मदन रस में डूब चुका था और वह धीरे से उसे टेबल पर रख दी उसकी सांसे अभी भी ऊपर नीचे हो रही थी और थोड़ी ही देर बाद वह नींद की आगोश में चली गई,,,।
Lava. Nikal raha hain
 

Blackserpant

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तृप्ति घर से निकल गई थी एक नए सफर के लिए,,, यह पहली बार था जब वह कहीं जाने के लिए अपनी मां से इजाजत मांगी थी और उसकी मां भी खुशी-खुशी उसे जाने की इजाजत दे दी थी क्योंकि वह कहीं और नहीं बल्कि अपने ही कॉलेज की मैडम की जन्मदिन पर जा रही थी पर वह भी शाम तक वापस लौट आना था इसीलिए उसकी मां ने उसे इजाजत दे दी थी,,,, तृप्ति बहुत खुश थी पीले और ब्राउन रंग के सूट सलवार में वह परी लग रही थी,,,, और इस कपड़े में देखकर संदीप भी लार टपकाने लगा था,,, तभी तो वह तृप्ति को माल कहकर संबोधन किया था जिसका तृप्ति ने भी हंस कर स्वागत की थी,,,,। संदीप अपना मोटरसाइकिल लाया था यह जानकार तृप्ति बहुत खुश थी,,, क्योंकि खुद का मोटरसाइकिल होने की वजह से आने जाने का समय बच जाता,,,,।

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तृप्ति मोटरसाइकिल के पीछे बैठ गई थी,,, यह उसका पहला मौका था जब वह कीसी लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर बैठी थी,,, वैसे तो आते जाते वह कई लड़कियों को इसी तरह से जवान लड़कों के पीछे बैठकर आते-जाते देखी थी और उन्हें देखकर वह भी अपने मन में यही सोचती थी कि उसका दिन कब आएगा जब वह अभी इसी तरह से मोटरसाइकिल पर बैठकर शहर घूमेगी,,, और ऐसा लग रहा था कि जैसे आज बहुत दिन आ गया था जब वह अपनी ख्वाहिश पूरी कर रही थी,,,,।






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तर्प्ति बहुत खुश थी,,, लेकिन तभी उसे सुबह वाला वाक्या याद आ गया,,, और पल भर में उसके चेहरे पर सुर्ख लालीमा छाने लगी,,, उस पल के बारे में सोचकर,,, तृप्ति की सांसें ऊपर नीचे होने लगी, क्योंकि वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि अपने भाई के कमरे में उसे इस तरह के दृश्य देखने को मिलेगा,,, वह कभी सोची नहीं थी कि उसका भाई सारे कपड़े उतार कर नंगा होकर सोता होगा,,, तृप्ति इतना भी बर्दाश्त कर लेती लेकिन अपने भाई को नंगा देखने पर और उसके नंगे पन की चरम सीमा को देखकर खुद उसके होश उड़ गए थे,,,, जिंदगी में पहली बार वो किसी मर्दाना लंड को अपनी आंखों से देख रही थी और वह भी किसी गैर मर्द के नहीं बल्कि अपने ही भाई के लंड को,,,।





लंड की शक्ल सूरत और उसका भूगोल देखकर उसके होश उड़ गए थे,,, वह कभी सपने भी नहीं सोची थी कि मर्दों का लंड इतना बम पिलाट होता है,,, इतना मोटा लंबा और तगड़ा जिसमें बिल्कुल भी लचक नहीं थी और छत की तरफ मुंह उठाए खड़ा था,,, जवान लड़की के लिए यह दृश्य पूरी तरह से कामोत्तेजना से भरा हुआ होता है,,, लड़की के ही क्यों हर उस औरत के लिए जिनकी टांगों के बीच जवानी बरकरार रहती है,,, ऐसी हर एक औरत के लिए यह दृश्य,,, मादकता का काम करती है,,,, और वही मादकता तृप्ति के दिलों दिमाग पर छाया हुआ था,,,, वह मोटरसाइकिल पर बैठकर संदीप के साथ कॉलेज की मैडम के वहां जा रही थी लेकिन उसका दिमाग पूरी तरह से अपने भाई के लंड पर टिका हुआ था,,, कॉलेज में पढ़ने वाली पढ़ी लिखी लड़की होने के साथ-साथ तृप्ति, पूरी तरह से जवान हो चुकी थी,, मर्द औरत के बीच के रिश्ते को अच्छी तरह से समझती थी और वह यह भी जानती थी कि उत्तेजित होने पर ही मर्द का लंड खड़ा होता है,,, और यही जानकारी उसे अचंभित कर रही थी अपने भाई के पक्ष में,,, क्योंकि सुबह-सुबह उसका भाई तो पूरी तरह से गहरी नींद में सो रहा था उत्तेजित करने वाली एक भी वस्तु या स्त्री उसके भाई के समीप बिल्कुल भी नहीं थे तो उसका भाई किसी भी उत्तेजित हो रहा था और उसकी उत्तेजना का मापदंड तृप्ति उसके लंड के खड़े होने पर लगा रही थी और इसीलिए तो वह हैरान थी,,,।



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लेकिन वह इस बात से बिल्कुल अनजान थी कि सहज और प्राकृतिक रूप से सुबह-सुबह हर मर्द का लंड खड़ा ही रहता है,,, ज्यादातर पेशाब की तीव्रता की स्थिति मे,,, लेकिन ईस ज्ञान से तृप्ति पूरी तरह से अंजान थी,,,, अपने भाई का ख्यालों से पूरी तरह से उत्तेजित किए जा रहा था जिसका असर उसे अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में महसूस हो रहा था,,, उसे अपनी पेंटिं गीली होती हुई महसूस हो रही थी,,, क्योंकि उसकी बुर से कम रस टपक रहा था,,,, तृप्ति कुछ बोल नहीं रही थी,,, वह खामोश थी,, और उसे खामोश देखकर संदीप बोला,,,।

क्या हुआ तर्प्ति कुछ बोल क्यों नहीं रही हो,,,।

नहीं कुछ नहीं,,,बस ऐसै ही,,,,।



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(तृप्ति अपनी और संदीप के बीच हाथ रख कर बैठी हुई थी और ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अपनी और संदीप के बीच हाथ की दीवार खड़ी करके रखी हो ताकि दोनों का बदन आपस में स्पर्श न हो और संदीप बार-बार कोशिश भी कर रहा था ब्रेक लगा कर की झटका खाकर त्रप्ती का बदन उसकी पीठ से स्पर्श हो जाए,,, लेकिन तृप्ति के कारण ऐसा हो नहीं पा रहा था इसलिए संदीप बोला,,,)

कंधे पर हाथ रख कर बैठ जाओ,,,, तब आराम से बैठ पाओगी,,,,।
(संदीप जानबूझकर तृप्ति को अपने कंधे पर हाथ रखने के लिए बोल रहा था क्योंकि वह जानता था कि जब वह उसके कंधे पर हाथ रखेगी तो उसका हाथ ऊपर की तरफ हो जाएगा और ऐसे हालात में,,, जब भी ब्रेक लगाने पर उसका बदन उसकी पीठ से स्पर्श होगा तो उसकी चूचियां भी उसकी पीठ से रगड़ खा जाएंगी,,,, और ऐसा ही हुआ,,, संदीप के कहने पर तृप्ति अपना हाथ उसके कंधे पर रख दी थी,,, और जब जब संदीप ब्रेक लग रहा था तब तब उसके एक तरफ का संतरा उसकी पीठ से दब जा रहा था और उसकी नरमाहट संदीप को अपनी पीठ पर बहुत अच्छे से महसूस हो रही थी जिसके कारण वह अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव कर रहा था,,, उसे बहुत मजा आ रहा था और इस बात का एहसास तृप्ति को भी हो रहा था तृप्ति को भी पता चल रहा था कि जब-जब संदीप ब्रेक लग रहा था तब तक वह एकदम से संदीप से सट जा रही थी,,, और उसकी चूची भी उसकी पीठ से दब जा रही थी,,,।

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इन सबके बावजूद भी तृप्ति को बिल्कुल भी संदीप से ऐतराज नहीं हो रहा था बल्कि ना जाने क्यों उसके बदन में मदहोशी का आलम उबाल मार रहा था उसे संदीप के हरकत बहुत अच्छी लग रही थी जब जब ब्रेक लगाने पर उसकी चूची संदीप की पीठ से रगड़ खाती थी तब तब उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगती थी,,,,,,एक तो अपने भाई के लंड का ख्याल और ऊपर से संदीप की हरकत की वजह से उसकी चुचियों का उसकी पीठ से रगड़ खाना कुल मिलाकर उसकी पेंटिं को पूरी तरह से गीली करने पर उतारू हो गए थे,,,,,,।




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पहली बार इस तरह का एकांत दोनों को मिला था लेकिन फिर भी दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर रहे थे क्योंकि दोनों अपने-अपने तरीके से एक दूसरे से मजा ले रहे थे,,,, तर्प्ति की चूची की रगड़ से संदीप का लंड खड़ा हो गया था,,, और इस एहसास से तृप्ति की बुर पानी छोड़ रही थी,,, और इसी आनंद की पराकाष्ठा में दोनों एक दूसरे से बात करना भूल गए थे नतीजन मैडम का घर आ गया था,,,, वैसे तो दोनों यही सोच रहे थे कि यह सफर कभी खत्म ना हो लेकिन एक दूसरे में दोनों इस तरह से डूब गए थे कि सफर की दूरी का पता ही नहीं चला,,,।




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यही है मैडम का घर,,,,(संदीप एकदम बड़े से दरवाजे के आगे मोटरसाइकिल रोक दिया था जिससे तृप्ति अंदाजा लगाते हुए बोल रही थी और वाकई में जिस दरवाजे के आगे दोनों रुके थे वही घर मैडम का था,,,,,)

हां यही है,,,,।

लेकिन देख कर लग तो नहीं रहा है कि मैडम का जन्मदिन है,,,,

,,, हां,,, ऐसा भी हो सकता है कि हम दोनों सबसे पहले पहुंच गए हो,,,,चलो चलकर देखते हैं,,,,



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(संदीप मोटरसाइकिल खड़ी करके गेट खोल के अंदर जाने लगा और पीछे-पीछे तृप्ति भी जाने लगी,,,, दरवाजे के आगे पहुंचकर संदीप डोर बेल बजा दिया,,, थोड़ी ही देर में दरवाजा खुला और दरवाजे पर मैडम खड़ी थी दोनों को देखकर मुस्कुराने लगी,,, मैडम को देखकर संदीपबोला,,,)

हैप्पी बर्थडे मैडम,,,, साथ में त्रप्ती भी मैडम को जन्मदिन की बधाई दी,,,।
(मैडम एकदम से खुश होते हुए बोली)

अच्छा हुआ संदीप तुम पहले आ गए,,,

पहले आ गए मतलब,,,,।

‌ मेरा मतलब है कि अभी बाकी बच्चों का आना बाकी है और अच्छा हुआ तुम आ गए,,, क्योंकि जल्दी आ गए हो तो काम में हाथ भी बंटा लोगे,,,।



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यह तो हमारा सौभाग्य है मेडम,,(संदीप बोलता है इससे पहले ही तृप्ति बोल पड़ी,,, और तृप्ति,, की तरफ देखते हुए मैडम बोली,,,)

तुम्हारा नाम,,,,,,(कुछ सोचते हुए मैडम बोली)

मैडम इसका नाम तृप्ति है और यह भी अपनी ही कॉलेज में पढ़ती है,,,(संदीप मैडम से तृप्ति को मिलाते हुए बोला,,,,)

ओहहहह,,,,, तुम दोनों बाहर क्यों खड़े हो आओ जल्दी अंदर आओ,,,, और जल्दी से मेरे काम में हाथ बंटाओ,,,।



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(इतना कहकर मैडम इन दोनों को घर में ले आई और उन दोनों को एक कमरे में लेकर गई जहां पर वह खुद सब्जी काटने बैठी हुई थी,,,, और वह संदीप और तृप्ति से बोली,,,)

बाकी का सब काम तो हो गया है लेकिन सब्जियां काटना रह गया है बस यही काम हो जाए तो छुटकारा हो जाए वैसे भी मेरे बच्चे केक लेने गए हैं,,, वैसे मैं ज्यादा लोग को बुलाई नहीं हूं लेकिन बहुत खास खास को बुलाई हुं ,,,,,(इतना कहकर मैडम वहीं पर बैठ गई और फिर से सब्जी काटने लगी मैडम को सब्जी काटता हुआ देखकर तृप्ति बोली,,,)

अरे अरे मैडम यह आप क्या कर रही है मेरे होते हुए आपको यह सब करने की जरूरत नहीं है,,,,।
(इतना सुनते ही मैडम तृप्ति की तरफ देखने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)



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तुम कर लोगी ना,,,,

जी मैडम मैं कर लूंगी मेरा तो रोज का काम है,,,,।

हां,,, हां,,,, मैडम हम दोनों यह काम कर लेंगे मैं भी सब्जी काटने में अपनी मां की मदद करता ही रहता हूं,,,,।

ओहहहह ,,, तुम दोनों कितने अच्छे हो,,,,,।

हम कर लेंगे मैडम आप चिंता ना करें आप दूसरा काम संभालो,,,,(इतना कहते हुए तृप्ति वहीं बैठ गई सब्जी काटने के लिए और तृप्ति की बात सुनकर मैडम बोली,,,)



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तुम दोनों कितने अच्छे हो अच्छा हुआ तुम दोनों पहले आ गए वैसे तो अब कुछ काम बचा नहीं है बस मुझे नहाना है और अगर तुम दोनों यह काम कर लोगे तो हमें जल्दी से जाकर नहा लूंगी और फिर खाना तो जल्दी बनजाएगा,,,।

कोई बात नहीं मैडम आप जल्दी से जाकर नहा लीजिए तब तक हम दोनों सब्जी काट लेते हैं,,,,।

ठीक है,,,,(और इतना कहने के साथ ही मैडम नहाने के लिए चली गई,,,, मैडम के जाते ही तृप्ति बोली)

लो यहां तो अभी खाना ही नहीं बना है,,,, लगता है सारा काम हम लोगों को ही करना होगा,,,।

अरे वह बात छोड़ो लेकिन यह तो देखो मैडम हम दोनों को कमरे में अकेला छोड़ कर चली गई नहाने,,,,



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तोक्या हुआ,,,?(सब्जी काटते हुए तृप्ति बोली,,,)

तो क्या हुआ,,,, समझ नहीं रही हो एक जवान लड़का और एक जवान लड़की कमरे में इस तरह से अकेले रहेंगे तो क्या होगा,,,,।

क्या होगा,,,,?(तृप्ति संदीप के खाने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए संदीप की तरफ देखे बिना ही वह शर्म के मारे नजर नीचे झुकाए हुए सब्जी काटते हुए बोली)




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यह पूछो क्या नहीं होगा,,,,,(और इतना कहने के साथ ही बैठे-बैठे ही संदीप अपने प्यास होठों को तृप्ति के देखते हुए होठों की तरफ आगे बढ़ने लगा संदीप की हरकत से तृप्ति के बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी,, एक तो सुबह का नजारा और फिर बाइक पर चुचियों का रगड़ खाना यह सब पहले से ही तृप्ति के तन बदन में आग लगाया हुआ था,, और अभी यह कमरे में एकांत कुल मिलाकर तृप्ति को मदहोश कर रहा था और देखते ही देखते संदीप भी अपने होठों को एकदम उसके होठों के करीब ले गया इतना करीब कि दोनों की सांस एक दूसरे के गालों पर अपनी गर्माहट का एहसास दिलाने लगी,,,, संदीप की हरकत की वजह से तृप्ति के बदन में मदहोशी का नशा छाने लगा उसकी सांस उखड़ने लगी और उसकी आंखें अपने आप बंद हो गई यही मौका देखकर संदीप अपने प्यासे होठों को,,, तृप्ति के दहकते हुए होठों पर रख दिया,,, और मानो,,, तृप्ति भी इसी मौके का इंतजार कर रही हो वह तुरंत अपने होठों को खोल दी और गरमा गरम चुंबन में पूरा सहकार देने लगी दोनों पूरी तरह से पागल हो गए दोनों के हाथों से सब्जी काटने वाला चाकू छोड़कर नीचे गिर गया और दोनों एक दूसरे की बाहों में समाने लगी देखते ही देखते संदीप अपना हाथ आगे बढ़ाकर कुर्ती के ऊपर से ही,,, उसकी चूचियों को दबाना शुरू कर दिया।


संदीप की हरकत से तृप्ति के बदन में उत्तेजना और गर्माहट दोनों पूरी तरह से अपना असर दिखाने लगी,,, उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी वह पागल हुए जा रही थी देखते ही देखते संदीप उसके दोनों संतरों को पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया,,,, जिस उत्तेजना के साथ संदीप उसकी चूचियों को दबा रहा था उसे तृप्ति,, को दर्द का एहसास तो हो ही रहा था लेकिन आनंद भी बेहद मिल रहा था,,, दोनों का चुंबन इतना गहरा था कि दोनों के लार और थुक एक दूसरे के मुंह में आदान-प्रदान हो रहे थे,,, दोनों पूरी तरह से पागल हो जाएंगे उन्हें इस बात की भी परवाह नहीं थी कि दरवाजा खुला हुआ है वह तो गनीमत था कि मैडम नहाने के लिए बाथरुम में चली गई थी,,,।



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दोनों की हालत खराब हो गई थी इस तरह के एकांत में तृप्ति पूरी तरह से उत्तेजित हो गई थी उसकी बुर से मदन रस लगातार बह रहा था,,,, उसकी बाहों को पड़कर संदीप उसे खड़ी कर दिया और कुछ पल के लिए उसके होठों से अपने होठों को दूर करके उसके खूबसूरत चेहरे को देखने लगा पल भर में ही तृप्ति का गोरा चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया था,,, तृप्ति की सांस ऊपर नीचे हो रही थी साथ में उसकी चूचियां भी लहरा रही थी,,,।

संदीप,,, हमें यह नहीं ,,,, करना चाहिए,,,,(एकदम मदहोश होते हुए गहरी सांस लेते हुए वह बोली तो संदीप बोला)


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ऐसा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा तृप्ति,,,,

लेकिन समझने की कोशिश करो मैडम भी इधर ही है,,,।
( खेला खाया संदीप,, तृप्ति की बातों से ही समझ गया कि उसका भी मन है,,,, इसलिए वह धीरे से दरवाजे को बंद करतेहुए बोला,,,)

मैडम की चिंता मत करो वह बाथरूम में है,,,,।

तो,,(गहरी सांस लेते हुए तृप्ति बोली)

तो,,, क्या,,, इस मौके का फायदा उठाना चाहिए,,,,(और इतना कहने के साथ ही फिर से अपने होठों को उसकी तरफ आगे बढ़ाने लगा और देखते ही देखते फिर से दोनों एक दूसरे के होठों को चूसना और चबाना शुरू कर दिए,,,, तृप्ति पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है बस वह संदीप की हरकतों का मजा ले रही थी और संदीप अपनी हरकत को धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहा था,,,, उसकी चूचियों पर से उसके दोनों हाथ नीचे की तरफ फिसलते उसकी कमर पर आ गए थे और कमर पर आते ही वह धीरे से अपने हाथों को उसकी गोल-गोल नितंबों पर रख दिया था नितंबों पर संदीप के हाथों का स्पर्श इसे पूरी तरह से मदहोश कर रहा था वह पागल हुए जा रही थी और पागलों की तरह संदीप के होठों को चूस रही थी संदीप भी अपनी हरकत को अनजान देते हुए उसके नितंबों को दोनों हथेलियां में कसकर दबा दबा कर मजा ले रहा था,,,,,।



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संदीप समझ गया था कि तृप्ति चुदवाने के लिए तैयार हो गई है,,,, इसलिए उसकी गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर उसे एकदम से अपने लंड पर सता लिया और ऐसा करने पर उसका लंड जो कि पेंट में तनकर खड़ा हो गया था वह सीधे-सीधे उसकी दोनों टांगों के बीच जाकर उसकी बुर पर दस्तक देने लगा,,, तृप्ति को संदीप के लंड का एहसास अपनी बुर पर बहुत अच्छी तरह से हुआ था इसलिए उसके मुंह से हल्की सी शिकारी फूट पड़ी थी,,, और उसकी सिसकारी की आवाज सुनकर संदीप एकदम से चुदवासा हो गया और उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर उसे उठाते हुए पास में ही पड़े टेबल पर बैठा दिया,,,,।



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संदीप से अब रख पाना बहुत मुश्किल था क्योंकि जवानी का पर पूरी तरह से पार कर गया था इससे अच्छा मौका संदीप को मिलने वाला नहीं था इस तरह का एकांत उसे फिर दोबारा मिलने वाला नहीं था ऐसा एहसास उसके मन में होते ही वह तुरंत तृप्ति के सलवार की डोरी को खोलने लगा,,,, संदीप को इस तरह से सलवार की डोरी खोलता हुआ देखकर वह अपना हाथ बढ़ाकर उसे रोकने की कोशिश करने लगी लेकिन वह उसका हाथ हटा दिया और दोबारा तृप्ति में उसे हटाने की रोकने की कोशिश भी नहीं की क्योंकि अंदर से वह भी यही चाहती थी जो संदीप चाहता था देखते-देखते वह है तृप्ति की सलवार की डोरी खोलकर उसकी सलवार को ढीली कर दिया था और पेटी सहित उसे पड़कर उसके घुटनों तक खींच दिया था,,,,।



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संदीप की हरकत से तृप्ति पानी पानी हो रही थी उसकी बुर लगातार पानी छोड़ रही थी,,, दोनों के बीच किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थी लेकिन पूरे कमरे में दोनों की गरमा गरम सांसो की आवाज ही गुंज रही थी,,,, संदीप की हर हरकत तृप्ति को बहुत ही अच्छी लग रही थी तृप्ति पूरी तरह से मदहोशी के आलम में हो गई थी,,, वह जवानी के नशे में डूब चुकी थी संदीप उसकी दोनों टांगों को उसके घुटनों से मोड कर उसकी गोल गोल गांड को देख रहा था और गांड की बीच उसकी गुलाबी बुर को देख रहा था,,, और उसकी बुर को देखकर उसके मुंह में पानी आ रहा था,,,, क्योंकि उत्तेजना के मारे उसकी बुर फुलकर कचोरी हो गई थी,,, संदीप की अनुभवी आंखें में तृप्ति की बुर को देखकर पहचान लिया था कि आज ही उसने क्रीम लगाकर उसे साफ की थी,,,, तृप्ति संदीप के हर हरकत को देख रही थी,,,,।

संदीप का मन तो कर रहा था कि तृप्ति की बुर को जीभ लगाकर चाटे,,, लेकिन वह जानता था कि इतना समय उसके पास बिल्कुल भी नहीं है वह तृप्ति की बुर में अपनी विजय पताका लहराना चाहता था,, इसलिए वह इस समय ज्यादा कुछ ना करते हुए अपनी हथेली को उसकी बुर पर रखकर उसे ज़ोर से मसलते हुए अपनी पेंट का बटन खोलने लगा,,,,।

संदीप के द्वारा हथेली से बुर को रगड़ने की वजह से उत्तेजना के चलते तृप्ति की आंखें एकदम से बंद हो गई थी,,,, और वह गहरी गहरी सांस लेने लगी थी लेकिन फिर वह अपनी आंखों को खोलकर संदीप की तरफ देखने लगी थी उसकी हरकतों को देखने लगी थी वह अपनी पेंट खोल रहा था और देखते-देखते वह अपनी पेट को घुटनों तक नीचे खींच दिया था लेकिन जैसे ही तृप्ति की नजर संदीप के लंड पर गई तो उसके होश उड़ गए,,,, वह अपने मन में ही सोचने लगी कि सुबह जो देखी थी उससे तो इसका आधा भी नहीं है,,,, तृप्ति,,, को कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,, जब तक वह अपने भाई का नहीं देखी थी तब तक उसके मन में लड के आकार को लेकर वास्तव में संदीप के लंड के आकार का ही वास्तविक लंड नजर आता था,,, लेकिन सुबह अपने भाई के बम पिलाट लंड के दर्शन करने के बाद संदीप का लंड उसे बहुत छोटा लग रहा था,,,,।
Sandip or tripti
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लेकिन फिर भी उसकी उत्तेजना परम सीमा पर थी वह पूरी तरह से चुदवाने के लिए तैयार हो चुकी थी,,, और संदीप उसे चोदने के लिए तैयार हो गया था,,,, लेकिन जैसे ही संदीप ने थूक को लगा कर अपने लंड को गीला किया वैसे ही डोर बेल बजने लगी,,, उसके तो होश उड़ गए उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,,, समय की सीमा रेखा को देखकर ही वह तृप्ति की बुर को चाटने का सुख छोड़कर एक बार उसने अपना लंड डालना चाहता है अपनी ख्वाहिश पूरी करना चाहता था और इसके लिए वह पूरी तरह से तैयार भी हो चुका था दरवाजे की घंटी बजाने के बावजूद भी वह एक हाथ में लंड पड़कर दूसरे हाथ से तृप्ति की दोनों टांगो को ऊपर उठाते हुए उसकी बुर में डालने जा रहा था कि लगातार डोर बेल बजाने की वजह से बाथरूम में से ही उसके मैडम ने आवाज लगाते हुए बोली,,,)

संदीप जल्दी से दरवाजा खोल दे बच्चे आ गए होंगे,,,,।

रहने दो संदीप,,,(लगातार डोर बैल और मैडम की आवाज सुनकर तृप्ति एकदम से घबरा गई और तुरंत टेबल पर से नीचे उतर कर अपनी सलवार की डोरी बांधने लगी,, संदीप भी समझ गया था कि अब उसके बस में कुछ भी नहीं है इसलिए वह भी अपने आप को व्यवस्थित करके दरवाजा खोलने के लिए चला गया,,, और तृप्ति वापस से सब्जी काटने लगी,,, देखते ही देखते घर में मेहमानों की संख्या बढ़ने लगी और फिर कब शाम हो गई पता ही नहीं चला,,,,।

रास्ते भर संदीप और तृप्ति एक दूसरे से बात नहीं कर रहे थे तृप्ति तो शर्म के मारे संदीप से बात नहीं कर पा रही थी और संदीप हाथ में आया । मौका चला गया था इसलिए कुछ बोल नहीं रहा था
Kya bat haj
 
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दवाई का असर जल्द ही सुगंधा पर हुआ और वह धीरे-धीरे नींद की आगोस में चली गई,,,, कुछ देर तक अंकित अपनी मां के पास ही बैठा रहा बार-बार वह अपनी मां के सर पर हाथ रखकर उसके बुखार को देख रहा था जो की धीरे-धीरे उसका सर ठंडा हो रहा था इसका मतलब था कि उसका बुखार उतर रहा है और बुखार उतरने से अंकित को भी राहत मिल रही थी,,,,।
सुगंधा की तड़पती जवानी

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सुगंधा का तो बुखार उसका बुखार में तपता हुआ शरीर दवा खाकर धीरे-धीरे,, ठंडा होने लगा था लेकिन ,,, अपनी मां की मदहोश कर देने वाली गर्म जवानी देखकर,, अंकित के दिल और दिमाग पर अपनी मां की जवानी का बुखार चढ़ चुका था,,,, अपनी मां को गहरी नींद में सोता हुआ देखकर धीरे से अंकित बिस्तर पर से उठा और कमरे के बाहर आकर बैठ गया और अपनी मां के बारे में सोचने लगा जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में सोचने लगा उसे पल के बारे में सोचने लगा जो उसके जीवन में अभी-अभी आकर गुजर गया था,,,। लेकिन अंकित इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि जो पल अभी-अभी उसके जीवन में गुजरा था वह पल नहीं था बल्कि आंधी और तूफान था जो उसकी जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव करने के लिए आया था,,,,।

अपनी मां के साथ तो बहुत बार दवा खाने आया गया था लेकिन यह पहली बार था जब वह अपनी मां को दवा खाने लेकर गया था उसे दवा दिलाने के लिए और दवा खाने में जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में सोच कर खुद अंकित की हालत खराब हुए जा रही थी,,,, पहले वाला अंकित होता तो शायद डॉक्टर की हरकत परवाह डॉक्टर को भला बुरा सुना देता या उसे पर हाथ भी उठा देता क्योंकि तब उसमें औरत को लेकर कोई समझदारी नहीं थी वह अपनी मां को एक मां के ही नजरिए से देखा था औरत के नजरिए से नहीं लेकिन अब हालात पूरी तरह से बदल चुके थे,,, क्योंकि अब वह अपनी मां को मां के नजरिए से नहीं बल्कि है जवानी से भरी हुई औरत के नजरिया से देखा था और इसीलिए शायद डॉक्टर की मनसा को अच्छी तरह से समझता था,,,,।
सुगंधा

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डॉक्टर के चेहरे को देखकर वह समझ गया था कि उसकी मां की गर्म जवानी उसके लावे को पिघलाने के लिए काफी थी,,, दवा खाने के अंदर गुजरा हुआ एक तरफ से किसी फिल्म के दृश्य की तरफ उसकी आंखों के सामने घूम रहा था जब अपनी मां को डॉक्टर के केबिन में ले गया उसे डॉक्टर के सामने कुर्सी पर बैठाया तो डॉक्टर उसकी मां को देखा ही रह गया था खास करके उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों की तरफ से तो उसकी निगाह हट ही नहीं रही थी,,, बुखार के चलते उसकी मां को बिल्कुल भी होश नहीं था और उसके साड़ी का पल्लू उसके कंधे से नीचे सड़क गया था जिसके कारण उसकी मां का भारी भरकम चूची वाला हिस्सा डॉक्टर दिखाई दे रहा था और यह देखकर डॉक्टर के मुंह के साथ-साथ उसके लंड में भी पानी आ रहा था इस बात का एहसास अंकित को बहुत अच्छे से था,,,,।

आला लगकर बुखार चेक करने के बहाने संजू को साड़ी का पल्लू हटाने के लिए बोलना और आला को चूचियों पर रखकर धीरे-धीरे दबाना उंगलियों से उसकी चूची का स्पर्श करना या सब हरकत अंकित को बहुत अच्छे से समझ में आ रहा था लेकिन अंकित कुछ बोल नहीं पा रहा था एक तरह से अंकित अपनी मां की जवानी के आगे डॉक्टर को पिघलते हुए देखने में मजा आ रहा था,,,,, उसके बाद डॉक्टर का सुई लगाना जहां अधिकतर डाक्टर औरत को उसकी मां पर सुई लगाते हैं वही वह डॉक्टर जानबूझकर उसकी मां के नितंबों पर सी लग रहा था एक बहाने से वह उसके गोरी गोरी नितंबों के उधर को देखना चाहता था,,, जिसमें वह सफल भी हो गया था यह सब सो कर अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी में जब डॉक्टर इस तरह की हरकत कर रहा था अगर वह नहीं होता उसकी मां डॉक्टर की क्लीनिक में अकेले ही होती तो डॉक्टर ना जाने कौन-कौन सी मनमानी उसकी मां के साथ करता,,,,।
सुगंधा

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यह सब याद करते हुए अंकित की हालत खराब हो रही थी यहां तक की उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था और वह अपनी मां के कमरे के बाहर से उठकर हुआ अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर दिया और अपने कमरे में जाते हुए धीरे-धीरे अपने सारे कपड़े उतार कर नंगा हो गया आखिरकार उसे पर भी अपनी मां की जवानी का नशा चढ़ा था और नशे के आधीन होकर अंकित मजबूर हो गया था अपने कपड़े को उतार कर निर्वस्त्र होने में देखते-देखते वह एकदम नंगा होकर अपनी बिस्तर पर लेट गया था पीठ के बाल लाकर वह अपनी मां के बारे में सोच रहा था और इसी बीच उसे बाथरूम वाला वाक्या याद आ गया,,, और इस दिल से को याद करके तो उसके लंड की नसें फटने जैसी हो गई वह पूरी तरह से अपने बदन में उत्तेजना का संचार होता हुआ महसूस कर रहा था वह मदहोश हो चुका था अपनी मां की गदराई जवानी को देखकर,,,।

अंकित इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां बुखार के नशे में थी बेशुध थी उसे बिल्कुल भी होश नहीं था,,,, अंकित को बहुत मौका मिला था अपनी मां की मदद कर देने वाली जवानी के अंगों को छूने को उसे स्पर्श करने को उसे अपने हाथों में लेकर दबाने को लेकिन हालात को देखते हुए अंकित ऐसा नहीं कर पाया था क्योंकि मौका और जगह दोनों अंकित की चाह से विपरीत थे,,,, बाथरूम वाला वाक्या याद करके अंकित अपने खड़े लंड को अपनी मुट्ठी में दबोच लिया और उसे धीरे-धीरे हिलाना शुरू कर दिया,,,। वह गहरी गहरी सांस ले रहा था और अपनी मां के बारे में सोच रहा था,,,।

वैसे तो उसके जीवन में अपनी मां को निर्वस्त्र देखने का सुनहरा मौका मिल चुका था और वह अपनी मां को पेशाब करता हुआ और बाथरूम में निर्वस्त्र होकर नहाते हुए पूरी तरह से वह देख चुका था लेकिन फिर भी हर एक बार उसकी मां का पेशाब करना निर्वस्त्र होना अंकित के नसों में उत्तेजना का संचार और बड़ी तेजी से बढ़ा देता था,,,। अंकित के लिए यह सब किसी कल्पना और खूबसूरत अपने जैसा ही था जिसमें से वह अपने आप को बाहर निकलना नहीं चाहता था क्योंकि वह जानता था कि यह सपना यह कल्पना उसके जीवन का अमूल्य पल है,,,। वह अपने मन में सोच रहा था कि काश ऐसा उसके जीवन में बार-बार हो तो जिंदगी का मजा ही बदल जाए,,,।
अंकित अपने कमरे में

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लंड की नसें पूरी तरह से फुल कर उभर गई थी अंकित अपने लंड को मुट्ठी में दबोच कर अपनी मर्दाना अंग के मर्दाना ताकत को महसूस कर रहा था और अपने मन में यही सोच रहा था कि अगर किसी भी तरह से अपने लंड को अगर वह अपनी मां की बुर में डालने में कामयाब हो गया तो उसकी मां पूरी तरह से मस्त हो जाएगी,,, लंड की नसों की रगड़ उसकी बुर की अंदरूनी दीवारों को पानी पानी कर देगी,,, ऐसा अपने मन में सोचते हुए,,, फिर से अंकित दवा खाने के बारे में सोचने लगा वह नहीं जानता था की दवा खाने ले जाने पर डॉक्टर पेशाब की जांच करने को रहेगा,,,, और ऐसा कह भी दिया था तो कोई दिक्कत की बात नहीं थी लेकिन जब,,, बाथरूम के पास पहुंचकर सुगंधा खुद अपने बेटे को अंदर आने के लिए बोली तो अंकित के बदन में कंपन होने लगा उसका रोम रोम पुलकित होने लगा वैसे भी वह बहुत बार अपनी मां के साथ बाथरुम में कल्पना कर चुका था लेकिन पहली बार हकीकत में उसे अपनी मां के साथ बाथरुम में जाने का मौका मिल रहा था इधर-उधर देखकर अंकित हिम्मत दिखाते हुए अपनी मां के साथ बाथरुम में प्रवेश कर गया था क्योंकि उसकी मां को चक्कर भी आ रहा था जहां एक तरफ उसे अपनी मां की फिक्र भी थी वहीं दूसरी तरफ बाथरूम में अपनी मां के साथ वक्त गुजारने की चाह भी बड़े जोरों की थी,,,।
दवा खाने केबाथरूम में सुगंधा

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और मौके की नजाकत को देखते हुए वह भी अपनी मां के पीछे-पीछे बाथरुम में प्रवेश कर गया और अपनी मां को परखनली भी थमा दिया,,,, अंकित स्थल को याद करके पूरी तरह से उत्तेजना में डूबने लगा था वह धीरे-धीरे इस पल को याद करके अपने लंड को हिलाना शुरू कर दिया था,,, उसे याद आया कि उसकी मां से उसकी चड्डी उतारी नहीं जा रही थी पटना जाने कैसे बुखार के नशे में वह अपनी चड्डी उतारने के लिए खुद अपने बेटे को ही बोल दी थी यह भी सोच रहा था कि अगर उसकी मां को बुखार ना चढ़ा होता है तो शायद ऐसा सुनहरा मौका उसके जीवन में न जाने कभी आता भी या नहीं और उसे मौके का फायदा उठाते हुए अंकित अपनी मां की चड्डी को दोनों हाथों से नीचे उतारा था बहुत कम लोगों को ऐसा मौका मिलता है जब उन्हें खुद अपनी मां की चड्डी उतारने का सुनहरा मौका प्राप्त होता है और उन भाग्यशाली में से अंकित था,,,।

अगर कोई और मौके पर इस तरह का सौभाग्य अंकित को प्राप्त होता तो शायद वह अपनी मां की चड्डी उतारने के साथ-साथ उसके गुलाबी छेद में अपना लंड भी डाल दिया होता लेकिन वह जानता था कि उसकी मां बीमार है उसे चक्कर आ रहे थे इसलिए वह ज्यादा कुछ सोच नहीं पाया लेकिन जो कुछ भी उसने अपनी आंखों से देखा था उसे याद करके वह जोर-जोर से अपने लंड को हिला रहा था और कुछ पल के लिए अपनी आंखों को बंद करके कल्पना करने लगा था दवा खाने में जो कुछ भी हुआ था उसे विपरीत वह अपने मन में सोचने लगा कि परखनली को अपने हाथों में लेकर मुस्कुराते हुए उसकी मां बाथरूम के दरवाजे पर खड़ी और बाथरूम का दरवाजा खोलकर अंदर प्रवेश करते ही पीछे की तरफ देखकर अपने बेटे को भी अंदर आने का इशारा करती है,,,,।

इस तरह की कल्पना अंकित को किसी दूसरी दुनिया में ही लिए जा रही थी अंकित पूरी तरह से मस्त हो चुका था और वह जोर-जोर से अपने लंड को हिलाना शुरू कर दिया था,,,। आंखों को बंद करके उसकी कल्पना एकदम साफ नजर आ रही थी वह अपनी मां के इशारे पर तुरंत बाथरूम में प्रवेश कर गया और अपनी मां के हाथ से परखनली को ले लिया उसकी मां भी मुस्कुराते हुए अपने बेटे को परखनली दे दी और खड़े-खड़े अपनी दोनों टांगों को खोलते हुए अपनी साड़ी को कमर तक उठने लगी यह नजारा बेहद ही उत्तेजना से भरा हुआ था और इस नजारे की कल्पना करके अंकित स्वर्ग का सुख भोग रहा था देखते ही देखते सुगंध अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर अपनी दोनों टांगों को खोलकर अपनी गुलाबी छेद में से पेशाब करने लगी और इशारे से ही अपने बेटे को परखनली को बर के छेद पर लगाने के लिए बोली और अपनी मां का आदेश पाकर तुरंत अंकित उसे परखनली को अपनी मां की गुलाबी छेद पर लगा दिया जिसमें पल भर में ही उसकी बुर से निकला हुआ नमकीन की धार से भर गया,,,,।
Apni ma k bare me kalpna karta hua ankit

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पेशाब से परखनली भर जाने से अंकित तुरंत परख नदी को हटा लिया और अपनी हथेली से अपनी मां की गुलाबी छेद को बंद करने की कोशिश करने लगा,,, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था क्योंकि उसकी बुर से पेशाब की धार इतनी तेजी से निकल रही थी कि उसकी बौछार इधर-उधर पूरे बाथरुम में फैल रही थी और देखते ही देखते अंकित अपने लंड को अपने पेंट में से बाहर निकाल लिया,,, अपने बेटे के खड़े लंड को देखकर,, सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,, और वह खुद अपने बेटे के लंड को पकड़ कर उसे अपनी गुलाबी छेद पर लगा दी,,, और उत्तेजना भरे स्वर में बोली,,,।


डाल दे मेरी बुर में बेटा,,,,।

(इतना सुनते ही अंकित से रहा नहीं गया और वह एक हाथ में परखनली को पकड़े हुए ही अपने लंड को अपनी मां की बुर में डालना शुरू कर दिया और देखते ही देखे उसका लंबा मोटा लंड उसकी मां के गुलाबी छेद में पूरी तरह से खो गया डूब गया और फिर एक हाथ में परखनली को पकड़े हुए दूसरे हाथ को अपनी मां के कमर में डालकर वह अपनी कमर को हिलाना शुरू कर दिया देखते ही देखते दोनों मां बेटे पूरी तरह से मदहोशी के आलम में बाथरूम के अंदर गहरी गहरी सांस लेते हुए शिसकारी की आवाज छोड़ने लगे,,,।
Sugandha ki kalpna me chudai

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इस तरह की कल्पना करते हुए अपने ही बिस्तर पर निर्वस्त्र अवस्था में मस्ती करते हुए अंकित अपने लंड को जोर-जोर से हिलाते हुए वीर्य का फवारा छोड़ने लगा,,,, जो कि उसके ही ऊपर गिरने लगा उसे बहुत मजा आ रहा था ईस तरह की कल्पना करने में,,,, और जैसे ही उसके दिमाग से वासना का तूफान शांत होगा वह धीरे-धीरे होश में आने लगा और अपनी स्थिति को देखकर अपनी ही चड्डी से अपने ऊपर गिरी वीर्य को साफ करने लगा और फिर देखते ही देखते वह भी नींद की आगोस में चले गया,,,।

तकरीबन ढाई घंटे बाद जब उसकी नींद खुद ही तो अपनी स्थिति का भान होते ही वह जल्दी-जल्दी कपड़े पहनने लगा क्योंकि उसे याद था कि उसे रिपोर्ट लेने जाना है और घर में जिस तरह की शांति छाई हुई थी उसे देखकर वह समझ गया था कि अभी तक उसकी बहन घर पर वापस आई नहीं थी और उसकी मां भी सो रही थी वह धीरे से अपने कमरे से बाहर निकाला और अपनी मां के कमरे तक जाकर वह धीरे से दरवाजा खोल कर देखा तो उसकी मां गहरी नींद में सो रही थी और वह फिर हाथ में धोकर रिपोर्ट लेने के लिए दवा खाने पहुंच गया,,,,।

दवा खाने पहुंचकर डॉक्टर उसे रिपोर्ट देते हुए बोला कि।
Apni ma ki chudai karta ankit

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कोई घबराने वाली बात नहीं है बस हल्का सा मलेरिया का असर था मुझे दवाई लिख देता हूं यह दवाई शुरू कर देना तीन दिन में सब ठीक हो जाएगा,,,।

धन्यवाद डॉक्टर,,,(डॉक्टर के हाथ से प्रिसक्रिप्शन लेते हुए अंकित बोला,,,अंकित डॉक्टर के चेहरे की तरफ देख रहा था और अपने मन में सोच रहा था कि इस समय डॉक्टर कितना मासूम लग रहा है उसका चेहरा एकदम मासूम है उसे देखकर कोई समझ ही नहीं पाएगा कि यह खूबसूरत औरत को देखकर डॉक्टर भी दूसरे मर्दों की तरह ही रंग,,, बदलता है,,, अंकित अपने मन में यह बात इसलिए सोच रहा था क्योंकि सुई लगाते समय उसने डॉक्टर के हालात को बड़ी-बड़ी की से निरीक्षण किया था वह साफ तौर पर देखा था कि जब डॉक्टर उसकी मां को सी लग रहा था उसकी साड़ी को थोड़ा नीचे की तरफ करके उसके नितंबों को उसकी गोरी गोरी गांड को देखकर डॉक्टर का भी लंड खड़ा हो रहा था और इस नजारे को अंकित देख लिया था,,,, लेकिन अंकित एक मर्द होने के नाते डॉक्टर की हालत को अच्छी तरह से समझ रहा था इसलिए कुछ बोला नहीं था,,,।

डॉक्टर के द्वारा लिखी गई दवा लेकर घर जाते-जाते शाम ढल चुकी थी अंधेरा होने लगा था घर पर जब पहुंचा तो तृप्ति भी घर पर आ चुकी थी तृप्ति अपनी मां के पास ही बैठी हुई थी और वह थोड़ा चिंतित नजर आ रही थी,,,, अपनी मां के पास पहुंचते ही अंकित अपनी मां से बोला,,,।

मम्मी ब्लू और पेशाब का रिपोर्ट आ चुका है,, और घबराने वाली कोई बात नहीं हल्का सा मलेरिया का असर है,,,,।

अच्छा हुआ अंकित कुछ ज्यादा गड़बड़ नहीं हुई नहीं तो मैं कब से परेशान हो गई थी मुझे तो मालूम ही नहीं था कि मम्मी की तबीयत खराब है घर पर आई तो पता चला,,,, दो-तीन दिन तक मम्मी तुम आराम करना मैं खाना बना देता हूं मैं पहले चाय बना देती हूं तुम चाय के साथ दवाई खा लेना,,,(इतना कहने के साथ ही तृप्ति अपनी मां के पास से उठकर खड़ी हो गई और किचन की तरफ जाने लगी,,,, लेकिन सुगंधा के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था अंकित के रिपोर्ट वाली बात सुनकर उसके होश उड़ गए थे,,, और वह भी ब्लड और पेशाब का इन सब के बारे में तो सुगंधा को कुछ पता ही नहीं था इसलिए वह हैरानी से अंकित की तरफ देख रही थी,,,।
Puri incest mahagatha hai yeh
 

Ajju Landwalia

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स्कूल जाने से पहले अंकित अपनी मां से मजा लेना चाहता था अपनी हरकतों से नहीं बल्कि अपनी बातों से बातें ही बात में दोनों के बीच चड्डी को लेकर बहस हो गई थी,,,, क्योंकि अंकित ने अपनी मां से वादा किया था कि वह उसके लिए चड्डी लेकर आएगा लेकिन अभी तक जल्दी लाया नहीं था और वैसे भी उसे समय नहीं मिला था चड्डी लाने का और ना ही ईस बारे में कुछ दिनों से कोई बात हुई थी क्योंकि तृप्ति के कॉलेज की छुट्टी थी और वही घर पर रहती थी अपनी मां के साथ इसलिए दोनों को बात करने का मौका भी नहीं मिला था,,, और इसीलिए सुगंधा को भी अपने बेटे से कहने का मौका मिल गया,,,।

Ankit or uski ma

लेकिन इस मौके का अंकित थोड़ा फायदा उठा लेना चाहता और इसीलिए दोनों के बीच चड्डी को लेकर बातचीत हो रही थी और बात ही बात में अंकित ने अपनी मां से पूछ लिया कि अगर तुम्हारे पास चड्डी नहीं है तो दिखाओ कि तुम पहनी हो कि नहीं यह तो अंकित के मन की शरारत थी क्योंकि वह अपनी मन में एक औरत देखा था खूबसूरत औरत प्यासी औरत और इसीलिए वह अपनी मां से बेटे की तरह नहीं बल्कि एक मर्द की तरह बातें करता था जिसमें उसे तो मजा आता ही था उसकी मां को भी बहुत मजा आता था अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा भी बिना पल गंवाए तुरंत अपनी साड़ी उठाकर अपनी नंगी गांड को अपने बेटे की आंखों के सामने कर दी ताकि वह जी भर कर उसकी नंगी जवानी को उसकी मदमस्त कर देने वाली गांड को देख सके,,, और अंकित भी अपनी मां की नंगी गांड को देखकर पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था,,,।



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इस बेहतरीन खूबसूरत नजारे को देखकर अंकित के पेंट में तंबू बन चुका था,,, और जिस तरह से सुगंध अपनी साड़ी उठाकर अपने बेटे को अपनी नंगी गांड दिखाई थी अंकित को यकीन हो गया था कि उसकी मां के पास पहनने के लिए चड्डी नहीं है,,, इसलिए सुगंधा भी अपने बेटे से बोली,,,।

अब तो तुझे यकीन हो गया ना मेरे पास चड्डी नहीं है,,,।

हां मम्मी सच में तुम्हारे पास तो चड्डी नहीं है,,, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि इतनी खूबसूरत औरत जो इतनी खूबसूरत साड़ी पहनती है इतनी खूबसूरत सज धज कर रहती है और उसके पास पहनने के लिए चड्डी नहीं है मैं क्या कोई भी यकीन नहीं कर पाएगा,,,।
(अंकित एक तरह से अपनी मां की तारीफ कर रहा था और अपने बेटे के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनकर सुगंधा गदगद हुए जा रही थी उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आ रहे थे,,, अपने बेटे से उसकी बातों से वह प्रभावित हुए जा रही थी वह फिर से खाना बनाने में लग गई थी क्योंकि अपने बेटे से नजर मिलाने में उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा उसके सामने आ जाता और वह नहीं चाहती थी कि उसके बेटे को ऐसा लगी कि उसकी बातें सुनकर उसे बहुत मजा आ रहा है इसलिए वह अपने बेटे की बात को नजर अंदाज करते हुए बोली,,,)


Ankit or uski ma ki masti

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चल रहने दे कोई कुछ नहीं कहता और नहीं कुछ सोचेगा मेरे बारे में क्योंकि मैं इतनी कोई खास नहीं हूं,,,,,।

क्या बात कर रही हो मम्मी कौन कहता है कि तुम खास नहीं हो एकदम फिल्म की हीरोइन लगती हो,,,।

चल रहने दे चिकनी चुपड़ी बातें करने को तुझे भी बहुत बातें आने लगी है,,,।

मैं तो सच कह रहा हूं और तुम हो कि इसे सिर्फ बातें ही समझ रही हो,,,,। वैसे मम्मी तुम अंदर कुछ नहीं पहनी हो तो तुम्हें अजीब सा नहीं लगता होगा,,, मेरा मतलब है कि अगर मैं एक दिन अंडरवियर ना पहनू तो मुझे अजीब सा लगता है क्या तुम्हें भी ऐसा लगता है,,,।

वैसे तो कुछ खास नहीं लेकिन कुछ न पहनने की वजह से हवा लगती रहती है,,,,।



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ओहहह यह तो जरूरी है मम्मी क्योंकि वहां तो कुछ ज्यादा ही गर्मीहोगी,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर एकदम से सुगंधा सन्न रह गई और आश्चर्य से अपने बेटे की तरफ देखने लगी क्योंकि बातों ही बातों में उसके बेटे ने हकीकत बयां कर दिया था और इस बात का एहसास अंकित को भी था लेकिन वहां इस बात पर बिल्कुल भी जोर देना नहीं चाहता था कि वह अनजाने में यह बात कह दिया है बल्कि वह ऐसा ही जताना चाहता था कि जो कुछ भी उसने बोला है वह एकदम सही बोला है,,, लेकिन अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी अपने बेटे की बात के मतलब को समझ कर उसके बदन में मदहोशी छाने लगी और वह फिर से अपने आप को खाना बनाने में व्यस्त करने का नाटक करते हुए अपने बेटे की तरफ मुंह किए बिना ही बोली,,,।)

तुझे कैसे मालूम कि दोनों टांगों के बीच गर्मी ज्यादा होती है,,,।

Ankit or uski ma

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(अपनी मां का यह सवाल सुनकर खुद अंकित की हालत खराब होने लगी वह अपने मन में सोचने लगा कि उसकी मैया कौन सा सवाल पूछ बैठी है और फिर तभी उसे ख्याल आया कि उसकी मां भी यही चाहती है कि वह जवाब दे वरना इस सवाल पर वह खुद आंख दिखाने लगती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था उसकी मां खुद इसका जवाब पूछ रही थी,,, और अंकित सवाल का जवाब भी देना चाहता था लेकिन सीधे-सीधे नहीं बल्कि घुमा फिरा कर क्योंकि उसे इस बात का डर भी था कि अगर एकदम से खुलकर बोल दिया तो शायद उसकी मां गुस्सा करने लगेगी इसलिए वह बोला,,,।)



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अरे मम्मी हम लड़कों को भी टांगों के बीच कुछ ज्यादा ही गर्मी लगती है तभी तो वहां पसीना निकलते रहता है इसलिए मैं बोला कि तुम्हारी टांगों के बीच भी ज्यादा ही गर्मी होगी क्यों ऐसा नहीं है क्या,,,?(अंकित अपने ही सवालों में चतुराई से अपनी मां को उलझा रहा था,,,, और इस समय जिस तरह के हालात है जिस तरह की बातचीत हो रही थी उसे देखते हुए सुगंधा भी अपने बेटे को जवाब देते हुए बोली,,,)



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क्यों नहीं बिल्कुल ऐसा ही है लेकिन तुम लड़कों से ज्यादा गर्मी हम औरतों को दोनों टांगों के बीच लगती है,,,, क्योंकि वहां की रचना ही कुछ ऐसी है,,,,,.

रचना,,,, कैसी रचना,,,,?(अंकित जानबूझकर इस तरह का सवाल पूछ रहा था वह देखना चाहता था कि उसकी मां इस सवाल का जवाब किस तरह से देती है,,,, अपनै बेटे का सवाल सुनकर एक पल के लिए सुगंध को लगा कि इस सवाल का जवाब एकदम सीधे-सीधे दे दे लेकिन फिर बहुत सोच समझ कर वह बोली,,,)


रचना बहुत ही ज्यादा रचनात्मक लेकिन अभी समय नहीं है तुझे समझने का जब तू समझदार हो जाएगा तो अपने आप औरतों के टांगों के बीच की रचना को समझ जाएगा,,,,,(इस तरह की बातें करके सुगंधा के तन बदन में आग लग रही थी और जानती थी कि योग्य शब्दों से वह सीधे-सीधे अपनी बुर के बारे में बात कर रही है अब वह अपने बेटे के सामने,,, रचना की जगह बुर तो नहीं कह सकती थी क्योंकि इस तरह के सभी का प्रयोग करने में उसे अभी अपने बेटे के सामने बहुत शर्म महसूस होती थी,,, लेकिन वह जानती थी कि उसके कहने के मतलब को उसका बेटा अच्छी तरह से समझ गया होगा इसलिए उसका बेटा अपनी मां का यह जवाब सुनकर कोई और सवाल पूछता है इससे पहले ही वह बात करो को एकदम से बदलते हुए बोली क्योंकि इस समय उसके पास समय का बहुत अभाव था उसे जल्दी से तैयार होकर स्कूल भी जाना था,,,)

Ankit apni ma k sath

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अच्छा यह सब छोड़ तू सही-सही बता मेरे लिए पेंटी खरीद कर लाएगा कि नहीं,,,।

क्यों नहीं लाऊंगा जरूर लाऊंगा लेकिन,,,,,,(इतना कहकर चुप हो गया,,)

लेकिन क्या,,,?(अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली)

मेरे पास तुम्हारा नाप नहीं है,,, और पहले में ऐसा कुछ खरीदा भी नहीं हुं,,,, बिना नापके में खरीदुंगा कैसे,,,?(अपनी मां की तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोला और उसकी मां अपने बेटे की बात सुनकर मंद मंद मुस्कुराने लगी और बोली,,,)




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तू सच में अभी बच्चा ही है भले ताड़ के पेड़ की तरह लंबा हो गया है,,, रुक में अभी नाप पट्टी लाती हूं,,,।
(इतना कह कर हुआ तुरंत किचेन में से निकली और अपने कमरे में चली गई सुगंधा के मन में भी कुछ और चल रहा था क्योंकि वह जानती थी कि औरतों की पेटी का नाम उनके घेराव के हिसाब से एक नंबर होता है जिससे बड़े आराम से खरीदा जा सकता है लेकिन फिर भी वह अपने बेटे की बातें सुनकर खुद शरारती होना चाहती थी इसलिए जल्दी से अपने कमरे में गई और अलमारी में से नाप पट्टी लेकर वापस किचन में आ गई,,,,.। अंकित वहीं खड़ा था और सुगंध उसके सामने हाथ बढ़ाकर नाप पट्टी उसे थमाते हुए बोली,,,)


अब तो नाप ले लेगा ना तु,,,।


Ankit or sugandha

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हां हां जरूर,,,,, इतना तो मुझे आता ही है भले ही औरतों का नाप नहीं लिया हूं लेकिन,,, इधर-उधर तो सीख ही लिया हूं,,,।

चल इतना तो तुझे आता ही है इस बात की खुशी है मुझे चल अब जल्दी से नाप ले ले बहुत देर हो रही है ,,,,(इतना कह कर वह वापस अपने बेटे की तरह पीठ करके खड़ी हो गई,,,, अपनी मां की तैयारी को देखकर अंकित बोला,,,)

ठीक है मम्मी,,,(और इतना कहने के साथ ही हुआ है अपने हाथ में लिए हुए नाप पट्टी को लेकर अपनी मां की तरफ आगे बढ़ा उसका दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था और उसके लंड की अंगड़ाई बढ़ती जा रही थी उसके पेंट में तंबू बना हुआ था,,, वह धीरे से अपनी मां के करीब पहुंच गया और फिर उसे पट्टी को अपनी मां की कमर पर ना रख कर उसे कमर के बीचों बीच उसके नितंबों की ऊपरी हिस्से पर रख दिया उसकी मां समझ गई थी नाप लेने का यह तरीका गलत है इसलिए वह बोली,,,,)

Ankit apni ma k sath

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अरे वाह रे मेरे शेर,,,, ऐसे नाप लिया जाता है,,,।

तब कैसे लिया जाता है तुम ही बताओ ना मम्मी,,,,

अच्छा रुक,,, मैं बताती हूं,,,(इतना कहकर वहां अपने बेटे का हाथ पकड़ कर और साथ में उसे पट्टी को पड़कर उसे अपनी कमर की एक तरफ रख दी और अंकित भी उसकी नरम नरम चिकनी कमर पर अपना हाथ रखकर उसे पट्टी को पकड़ लिया ऐसा करने में उसे अत्यधिक उत्तेजना का एहसास हो रहा था वह थोड़ा सा झुका हुआ था अपनी मां के नितंबों के बीचो बीच गहरी लकीर क्यों नितंबों से ऊपरी हिस्से पर थी वहीं पर अंकित का पूरा ध्यान लगा हुआ था क्योंकि वह लकीर कुछ ज्यादा ही गहराई लिए हुए था अगर उसे पर पानी गिर जाए तो पानी की बूंद उस पर बड़े आराम से टिक जाती और मोती का दाना बन जाती,,, सुगंधा दिशा निर्देश करते हुए आगे बोली,,,)


Apne bete ko khus karti huyi sugandha

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अब इस पट्टी को पूरी तरह से मेरी कमर पर गोल घुमा कर वापस जहां पर पट्टी की शुरुआत है वहीं पर लेजा और देख कितना इंच है,,,, समझ गया ना,,,।

हां मम्मी समझ गया,,,,(अंकित का दिल जोरो से धड़क रहा था उसकी मां की भी हालत खराब थी एक तरफ अंकित का लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था दूसरी तरफ उसकी मां की बुर लगातार पानी छोड़ रही थी,,, दोनों मां बेटे पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में गोते लगा रहे थे,,, दोनों की हालत पल-पल खराब होती जा रही थी,,, मां बेटे दोनों में से सिर्फ एक को हिम्मत दिखा कर आगे बढ़ाने की देरी थी उसके बाद दोनों संभोग रथ हो जाते लेकिन किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि आगे बढ़कर जवानी का मजा लिया जाए लेकिन जो कुछ भी हो रहा था इतना भी दोनों के लिए बेहद उन्माद और एक अलग ही नशा से भरा हुआ था,,,, अंकित अपनी मां के बताएं अनुसार एक हाथ उसकी कमर पर रखकर साथ में उसे पर पट्टी दबाए हुए पट्टी को अपनी मां की कमर से घूमता हुआ उसे वापस इस छोर पर ले आया और बोला,,,,।)




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लो मम्मी आ गया,,,,।

देर आए दुरुस्त आए अब जितना इंच आ रहा है उतना अपनी कॉपी पर या अपने दिमाग में बैठा ले,,,,।

एकदम बराबर मम्मी,,,।

याद तो रहेगा ना भूल तो नहीं जाएगा,,,।

बिल्कुल भी नहीं एकदम छप गया है,,,, अबहो गया,,,!

अरे बुद्धू यह तो कमर का नाप था अभी घेराव बाकी है,,,।


तो अब,,,!

अब क्या,,,, जिस तरह से पट्टी मेरी कमर पर लगाया था इस तरह मेरी कमर में मेरी जांघों के बीच रखकर फिर से उसी तरह से नाप ले,,,,।

ठीक है,,, मम्मी,,,,


Apni ma ki saree kholta hua ankit

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(इतना कहकर वह अपने घुटनों के बल बैठ गया,,, और इस अवस्था में उसकी मां की बड़ी-बड़ी गाडरी गांव ठीक उसकी आंखों के सामने थी उसके चेहरे उसकी मां की गांड के बीच केवल चार अंगुल की दूरी थी और इतनी कम दूरी में अंकित को अपनी मां की गांड की गर्मी एकदम साफ महसूस हो रही थी सुगंधा भी गहरी सांस लेते हुए अपनी नजर को पीछे की तरफ करके अपने बेटे की तरफ देखने लगी कि अब वह क्या करता है,,,,।

अंकित का दिल जोरो से धड़क रहा था स्कूल जाने की चिंता आप उसके मन में बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि इस समय उसकी मां ने उसे बहुत बड़ी जिम्मेदारी दे दी थी जिसे निभाना उसका पहला फर्ज बनता था,,,, कसी हुई साड़ी में सुगंधा की गांड को ज्यादा ही उभरी हुई और बड़ी-बड़ी नजर आ रही थी जिसे देखकर अंकित के मन में अजीब हलचल हो रही थी अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड देखकर उसके मन में हो रहा था कि दोनों हाथों से अपनी मां की बड़ी गांड को थाम कर उसे जोर-जोर से दबा दे मसल दे,,, लेकिन ऐसा करने की उसमें हिम्मत नहीं थी,,,।




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देखते ही देखते अंकित अपनी मां की कमर के नीचे नाप पट्टी को लगा दिया तो उसकी मां जो उसे ही देख रही थी वह बोली,,,,।

थोड़ा और नीचे,,,,
(अपनी मां की बात सुनते ही अंकित अपनी मां की तरफ देखने लगा दोनों की नजरे आपस में टकराई दोनों के तन बदन में एक अजीब सी हलचल हुई लेकिन इस समय सुगंधा अपनी नजरों को बिल्कुल भी अपने बेटे से नहीं चुराई और अंकित भी अपनी मां की बात मानते हुए थोड़ा सा नीचे नाप पट्टी को लगा दिया तो उसकी मां फिर से बोली,,,)

Apne bete k liye chaddhi nikalti huyi

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दो अंगुल नीचे तब सही नाप मिलेगा,,,।

(अपनी मां की बात मानते हुए दो अंगुल और नीचे नाक पट्टी को लगा दिया और बोला,,,)
अब ठीक है ना मम्मी,,,।

हां बिल्कुल ठीक है अब जिस तरह से कमर का नाप लिया इस तरह से नीचे का भी नाप ले ले,,,,(अपने बेटे के सामने गांड शब्द बोलने में उसे शर्म आ रही थी और अपनी मां की बात सुनते ही उसके वचनों पर खरा उतरते हुए वह तुरंत पट्टी को दूसरे हाथ से घूमाकर दूसरी ओर ले जाने लगा लेकिन थोड़ी उसे दिक्कत आने लगी क्योंकि कमर का भाग थोड़ा काम था तो बड़े आराम से पट्टी घूम गई थी लेकिन गांड का घेराव कुछ ज्यादा ही था,,, इसलिए आराम से अंकित पट्टी को दूसरी तरफ नहीं ले जा पा रहा था,,, और यह देखकर सुगंध मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह जानती थी कि यह किस वजह से हो रहा है वह अपनी बेटी की तरफ मंद मंद देखकर मुस्कुरा रही थी लेकिन उसका बेटा अपनी मां की तरफ नहीं देख रहा था बल्कि अपनी मां की गांड की तरफ देख रहा था इस बात का एहसास अंकित को भी हो गया था कि उसकी मां की गांड कुछ ज्यादा ही बड़ी थी इसलिए पट्टी घूमाने में दिक्कत आ रही है,,,।


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इसलिए वह घुटनों के बाल ही थोड़ा सा आगे बढ़ा और पट्टी को घुमाने लगा वह पूरा हाथ दूसरी तरफ घुमा दिया था लेकिन ऐसा करने में,,, वह एकदम से अपनी मां की गांड से लिपट सा गया था और जब उसके चेहरे का एहसास सुगंधा को अपनी गांड पर हुआ तो वह एकदम से गड़बड़ हो गई और उसकी बुर से पानी की बौछार होने लगी,,,, अपनी मां की गांड का स्पर्श अपने चेहरे पर पाकर अंकित भी उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुका था उसकी सांसे बड़ी गहरी चल रही थी और उसकी सांसों की गर्मी सुगंधा को अपनी नितंबों पर एकदम साफ महसूस हो रही थी,,,।
इसलिए तो उसके बदन में और भी ज्यादा हलचल हो रही थी,,,।

फिर भी जैसे तैसे करके अंकित पट्टी को दूसरी तरफ पहुंच ही दिया और गहरी सांस लेते हुए बोला,,,।

बाप रे,,,, कितनी बड़ी गांड है तुम्हारी,,,(यह शब्द अंकित जानबूझकर बोला था और अपनी मां से नजरे मिलाई भी ना बोला था ताकि उसकी मां को लगे कि उसके मुंह से अनायास ही यह शब्द निकल गया,,,, वैसे भी अपने बेटे के मुंह से बड़ी-बड़ी गांड सबसे सुनकर उसका दिल गड़बड़ हो गया क्योंकि उसका बेटा सीधे उसकी गांड की तारीफ कर दिया था,,,, और सुगंधा भी अपने बेटे के इस शब्द पर इस तरह से जताने लगी कि मानो जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो,,,, नाप लेकर धीरे से अंकित खड़ा हुआ और बोला,,,)


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चलो नाप का काम तो हो गया अब जल्दी से मैं तुम्हारे लिए चड्डी लेकर आ जाऊंगा,,,।

तूने ठीक से नाप लिया तो है ना,,।

हां हां क्यों नहीं देखा,,,(नाप पट्टी में जहां तक माप हुआ था वहां पर अपनी उंगली रखकर अपनी मां को दिखाते हुए बोला)

अरे जरा सा भी 19। 20 हो गया था पहनने में अच्छा नहीं लगेगा,,,,।

(अपनी मां की बात सुनकर अंकित भी सच में पड़ गया लेकिन अपनी मां की बात सुनकर तुरंत इसके दिमाग में घंटी बजने लगी और वह तुरंत बोला,,)

मम्मी हो सकता है नाप में इधर-उधर हो जाए,,,।



अरे ऐसे कैसे नाप में इधर-उधर हो जाएगा तूने ठीक से तो लिया है ना,,,।

हां मम्मी मैं तो ठीक से ही लिया हूं लेकिन तुम्हारी साड़ी और पेटिकोट का कपड़ा भी तो है एक डेढ़ इंच का फर्क पड़ जाएगा तो गड़बड़ हो जाएगा,,,,।
(मन ही मन सुगंध अपने बेटे की बात सुनकर रोमांचित होने लगी क्योंकि उसे भी अपने बेटे के कहने का मतलब को अच्छी तरह से समझ आ गया था इसलिए वह अपने बेटे की बात सुनकर बोली,,,)



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तो अब,,,,(आश्चर्य से अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली,,, अंकित ठीक अपनी मां के पीछे और जिस तरह से बात करते हुए इधर-उधर हो रहा था उसके पेट में बना तंबू बड़े आराम से सुगंधा को अपने निकम्भों पर रगड़ हुआ महसूस हो रहा था और उसकी रगड़ सेवा पूरी तरह से मदहोश हुए जा रही थी और इस बात का एहसास अंकीत को भी था लेकिन वह जरा भी अपने कम को पीछे लेने की शुध नहीं ले रहा था,,, अंकित अपनी हरकत से अपनी मां की बुर को पानी पानी कर दिया था,,, सुगंधा भी मदहोश होते हैं पीछे की तरफ देखकर अपने बेटे की आंखों में आंखें डाल कर बोली थी और उसकी बातें सुनकर अंकित भी अपनी मां की आंख में आंख डालकर बोला,,,)

तो अबक्या,,,, धीरे से अपनी साड़ी कमर तक उठाओ ताकि आराम से सही नाप लिया जा सके,,,,।

(अपने बेटे की हिम्मत और उसकी बात को सुनकर सुगंधा का दिल जोरो से धड़कने लगा वह अपने बेटे की हिम्मत पर गदगद हुए जा रही थी,,,, और अपने बेटे की बात सुनकर वह किसी बहस पर उतरे बिना ही अपनी साड़ी को धीरे से ऊपर की तरफ उठने लगी और लगातार अपने बेटे की आंखों में आंखें डाल कर उसके जोश को बढ़ाते हुए धीरे-धीरे अपनी कमर तक साड़ी उठा ली और बोली,,,।)

चल अब ठीक से नाप ले ले,,,,।



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(अपनी मां की हरकत देखकर अंकित की हालत एकदम से खराब हो गई थी उसकी सांसे गहरी चल रही थी और उसकी हालत ऐसी हो गई थी मानो जैसे काटो तो खून नहीं वह एकदम जम सा गया था,,, इस समय उसकी मां अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी नंगी गांड को अपने बेटे की आंखों के सामने करती थी लेकिन फिर भी अंकित अपनी मां की नंगी गांड नहीं बल्कि अपनी मां के खूबसूरत चेहरे को ही देख रहा था उसकी आंखों में डूबता चला जा रहा था,,,० तभी उसकी मां दुबारा बोली,,,)

ले ले नाप साड़ी उठा दि हुं,,,,।

(इस बार अपनी मां की आवाज सुनकर जैसे वह होश में आया हो और एकदम से हडबडाते हुए बोला,,)

हां,,, मम्मी,,,,।
(और इतना कहने के साथ फिर से हुआ घुटनों के बल बैठ गया उसकी आंखों के सामने उसकी मां की नंगी गांड थी एकदम मदहोश कर देने वाली गोरी गोरी उसे पर बिल्कुल भी दाग धब्बे नहीं थे एकदम मक्खन मुलायम की तरह चिकनी,,अंकीत का मन तो कर रहा था कि,,, इसी समय अपनी मां की नंगी गांड की फांकों के बीच अपनी नाक डालकर रगड़ दे फिर भी अपने आप को संभालते हुए गहरी सांस लेते हुए वह नाप पट्टी को उसके जांघों के बीचो-बीच रखते हुए वापस पट्टी को दूसरी तरफ घूमाने लगा,,, सुगंधा अपने बेटे की तरफ नजर घुमा कर उसे देख रही थी और अंदर ही अंदर खुश हो रही थी,,,,, लेकिन अंकित अपनी मां की तरफ नहीं देख रहा था उसका पूरा ध्यान अपनी मां की नंगी गोरी गांड पर ही था,,,, अंकित पट्टी को दूसरी तरफ घूमाने लगा और पहले की तरह इस बार भी पट्टी को दूसरी तरफ ले जाते हुए अंकित अपनी मां की गांड से एकदम से फट गया इस बार उसकी गांड नंगी थी बेपर्दा थी बिना साड़ी के थी,,, और जैसे ही सुगंध को एहसास हुआ किसका बेटा उसकी गांड से एकदम लिपट सा गया है उसकी बुर उत्तेजना के मारे फूलने पिचकने लगी,,।

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अंकित की बाहों में तो मानो सारे जहां की खुशी आ गई हो तो पूरी तरह से मदहोश हो क्या और अपनी मां की गांड के बीचों बीच अपनी नाक रखकर गहरी सांस लिया मानो के जैसे अपनी मां की जवानी को उसके बदन से जवानी की खुशबू को निचोड़ कर वह इत्र की तरह अपने अंदर बसा लेना चाहता हो,,, अंकित कि इस हरकत को सुगंधा अपनी आंखों से देख रही थी और गदगद हुए जा रही थी,,,। अंकित की हरकत से उसके बदन में कसमाशाहट हो रही थी क्योंकि वह अपने चेहरे को पूरी तरह से उसकी नंगी गांड पर सटाया हुआ था सुगंधा भी उसी तरह से अपनी साड़ी को कमर तक उठाए खड़ी थी,,, और देखते ही देखते अपनी मां के नितंबों का आनंद लेते हुए अंकित अपनी मां का नाप ले ही लिया,,,,, और इस बार बिना कुछ बोले उठकर खड़ा हो गया लेकिन सुगंधा एक अजीब से एहसास में पूरी तरह से डूबी हुई थी अपने बेटे का खड़े होने का एहसास उसे हुआ ही नहीं,,,, ।


अंकित अपनी मां के चेहरे की तरफ देख रहा था उसकी आंखें बंद थी एक अजीब से ख्याल में डूबी हुई थी अभी भी वह कमर तक साड़ी उठाए हुए खड़ी थी उसकी नंगी गांड देखकर करो अपने पेट में बने हुए तंबू को देखकर अंकित से रहने दिया और भाई कदम आगे होगा और उसका तंबू सीधे जाकर उसकी मां की नंगी गांड से टकरा गया रगड़ खाने लगा एकदम से सुगंधा की आंखें खुली और गहरी सांस लेते हुए एकदम से मदहोश हो गई अपने बेटे के तंबू को अपनी गांड पर रगड़ हुआ महसूस करके वह एक बार फिर से झड़ गई उसकी बुर से मदन रस की बौछार होने लगी और गहरी सांस लेते हुए वह अपनी साड़ी को ऐसे छोड़ दी मानो जैसे खूबसूरत नाटक पर पर्दा गिर गया हो,,,, पर एकदम से मदहोशी भरे स्वर में बोली,,,।

ले लिया नाप,,,,।

हांमम्मी,,,,(और पट्टी में योग्य अंक पर अपना हाथ रखे हुए अपनी मां की तरफ दिखाते हुए बोला)

अब तो तुझे दिक्कत नहीं आएगी ना खरीदने में,,,।

बिल्कुलभी नहीं,,,,।
Apni ma ki chudai karta hua ankit

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चलो जल्दी से ज्यादा देर हो रही है तु 5 मिनट लेट हो चुका है,,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर दीवार में टंगी हुई घड़ी की तरफ देखकर वह भी बोला,,,)

सच में मैं तो लेट हो गया,,,,,।
(इतना कहकर वह भी अपना बैग उठाकर घर से बाहर निकल गया वैसे तो अपनी मां की मदहोश कर देने वाली जवान देखकर उसका जाने का मन नहीं कर रहा था लेकिन फिर भी जाना जरूरी था,,,, और जैसे ही अंकित घर से निकला सुगंधा अपनी साड़ी उठाकर अपनी बुर की हालत को देखने लगी जो की पूरी तरह से पानी मे डूब चुकी थी जल्दी से एक रुमाल से सुगंधा अपनी बुर साफ की और उसे धोकर सूखने के लिए टांग फिर जल्दी से अलमारी में से अपनी एक पेंटिं निकाली और उसे पहन कर स्कूल की तरफ चल दी,,,।


Wah rohnny4545 Bhai Wah,

Kya shandar update post ki he..........

Kamukta aur uttejna se bhapur...............maja aa gaya Bhai

Keep rocking Bro
 

Blackserpant

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दवाई का असर जल्द ही सुगंधा पर हुआ और वह धीरे-धीरे नींद की आगोस में चली गई,,,, कुछ देर तक अंकित अपनी मां के पास ही बैठा रहा बार-बार वह अपनी मां के सर पर हाथ रखकर उसके बुखार को देख रहा था जो की धीरे-धीरे उसका सर ठंडा हो रहा था इसका मतलब था कि उसका बुखार उतर रहा है और बुखार उतरने से अंकित को भी राहत मिल रही थी,,,,।
सुगंधा की तड़पती जवानी

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सुगंधा का तो बुखार उसका बुखार में तपता हुआ शरीर दवा खाकर धीरे-धीरे,, ठंडा होने लगा था लेकिन ,,, अपनी मां की मदहोश कर देने वाली गर्म जवानी देखकर,, अंकित के दिल और दिमाग पर अपनी मां की जवानी का बुखार चढ़ चुका था,,,, अपनी मां को गहरी नींद में सोता हुआ देखकर धीरे से अंकित बिस्तर पर से उठा और कमरे के बाहर आकर बैठ गया और अपनी मां के बारे में सोचने लगा जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में सोचने लगा उसे पल के बारे में सोचने लगा जो उसके जीवन में अभी-अभी आकर गुजर गया था,,,। लेकिन अंकित इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि जो पल अभी-अभी उसके जीवन में गुजरा था वह पल नहीं था बल्कि आंधी और तूफान था जो उसकी जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव करने के लिए आया था,,,,।

अपनी मां के साथ तो बहुत बार दवा खाने आया गया था लेकिन यह पहली बार था जब वह अपनी मां को दवा खाने लेकर गया था उसे दवा दिलाने के लिए और दवा खाने में जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में सोच कर खुद अंकित की हालत खराब हुए जा रही थी,,,, पहले वाला अंकित होता तो शायद डॉक्टर की हरकत परवाह डॉक्टर को भला बुरा सुना देता या उसे पर हाथ भी उठा देता क्योंकि तब उसमें औरत को लेकर कोई समझदारी नहीं थी वह अपनी मां को एक मां के ही नजरिए से देखा था औरत के नजरिए से नहीं लेकिन अब हालात पूरी तरह से बदल चुके थे,,, क्योंकि अब वह अपनी मां को मां के नजरिए से नहीं बल्कि है जवानी से भरी हुई औरत के नजरिया से देखा था और इसीलिए शायद डॉक्टर की मनसा को अच्छी तरह से समझता था,,,,।
सुगंधा

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डॉक्टर के चेहरे को देखकर वह समझ गया था कि उसकी मां की गर्म जवानी उसके लावे को पिघलाने के लिए काफी थी,,, दवा खाने के अंदर गुजरा हुआ एक तरफ से किसी फिल्म के दृश्य की तरफ उसकी आंखों के सामने घूम रहा था जब अपनी मां को डॉक्टर के केबिन में ले गया उसे डॉक्टर के सामने कुर्सी पर बैठाया तो डॉक्टर उसकी मां को देखा ही रह गया था खास करके उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों की तरफ से तो उसकी निगाह हट ही नहीं रही थी,,, बुखार के चलते उसकी मां को बिल्कुल भी होश नहीं था और उसके साड़ी का पल्लू उसके कंधे से नीचे सड़क गया था जिसके कारण उसकी मां का भारी भरकम चूची वाला हिस्सा डॉक्टर दिखाई दे रहा था और यह देखकर डॉक्टर के मुंह के साथ-साथ उसके लंड में भी पानी आ रहा था इस बात का एहसास अंकित को बहुत अच्छे से था,,,,।

आला लगकर बुखार चेक करने के बहाने संजू को साड़ी का पल्लू हटाने के लिए बोलना और आला को चूचियों पर रखकर धीरे-धीरे दबाना उंगलियों से उसकी चूची का स्पर्श करना या सब हरकत अंकित को बहुत अच्छे से समझ में आ रहा था लेकिन अंकित कुछ बोल नहीं पा रहा था एक तरह से अंकित अपनी मां की जवानी के आगे डॉक्टर को पिघलते हुए देखने में मजा आ रहा था,,,,, उसके बाद डॉक्टर का सुई लगाना जहां अधिकतर डाक्टर औरत को उसकी मां पर सुई लगाते हैं वही वह डॉक्टर जानबूझकर उसकी मां के नितंबों पर सी लग रहा था एक बहाने से वह उसके गोरी गोरी नितंबों के उधर को देखना चाहता था,,, जिसमें वह सफल भी हो गया था यह सब सो कर अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी में जब डॉक्टर इस तरह की हरकत कर रहा था अगर वह नहीं होता उसकी मां डॉक्टर की क्लीनिक में अकेले ही होती तो डॉक्टर ना जाने कौन-कौन सी मनमानी उसकी मां के साथ करता,,,,।
सुगंधा

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यह सब याद करते हुए अंकित की हालत खराब हो रही थी यहां तक की उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था और वह अपनी मां के कमरे के बाहर से उठकर हुआ अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर दिया और अपने कमरे में जाते हुए धीरे-धीरे अपने सारे कपड़े उतार कर नंगा हो गया आखिरकार उसे पर भी अपनी मां की जवानी का नशा चढ़ा था और नशे के आधीन होकर अंकित मजबूर हो गया था अपने कपड़े को उतार कर निर्वस्त्र होने में देखते-देखते वह एकदम नंगा होकर अपनी बिस्तर पर लेट गया था पीठ के बाल लाकर वह अपनी मां के बारे में सोच रहा था और इसी बीच उसे बाथरूम वाला वाक्या याद आ गया,,, और इस दिल से को याद करके तो उसके लंड की नसें फटने जैसी हो गई वह पूरी तरह से अपने बदन में उत्तेजना का संचार होता हुआ महसूस कर रहा था वह मदहोश हो चुका था अपनी मां की गदराई जवानी को देखकर,,,।

अंकित इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां बुखार के नशे में थी बेशुध थी उसे बिल्कुल भी होश नहीं था,,,, अंकित को बहुत मौका मिला था अपनी मां की मदद कर देने वाली जवानी के अंगों को छूने को उसे स्पर्श करने को उसे अपने हाथों में लेकर दबाने को लेकिन हालात को देखते हुए अंकित ऐसा नहीं कर पाया था क्योंकि मौका और जगह दोनों अंकित की चाह से विपरीत थे,,,, बाथरूम वाला वाक्या याद करके अंकित अपने खड़े लंड को अपनी मुट्ठी में दबोच लिया और उसे धीरे-धीरे हिलाना शुरू कर दिया,,,। वह गहरी गहरी सांस ले रहा था और अपनी मां के बारे में सोच रहा था,,,।

वैसे तो उसके जीवन में अपनी मां को निर्वस्त्र देखने का सुनहरा मौका मिल चुका था और वह अपनी मां को पेशाब करता हुआ और बाथरूम में निर्वस्त्र होकर नहाते हुए पूरी तरह से वह देख चुका था लेकिन फिर भी हर एक बार उसकी मां का पेशाब करना निर्वस्त्र होना अंकित के नसों में उत्तेजना का संचार और बड़ी तेजी से बढ़ा देता था,,,। अंकित के लिए यह सब किसी कल्पना और खूबसूरत अपने जैसा ही था जिसमें से वह अपने आप को बाहर निकलना नहीं चाहता था क्योंकि वह जानता था कि यह सपना यह कल्पना उसके जीवन का अमूल्य पल है,,,। वह अपने मन में सोच रहा था कि काश ऐसा उसके जीवन में बार-बार हो तो जिंदगी का मजा ही बदल जाए,,,।
अंकित अपने कमरे में

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लंड की नसें पूरी तरह से फुल कर उभर गई थी अंकित अपने लंड को मुट्ठी में दबोच कर अपनी मर्दाना अंग के मर्दाना ताकत को महसूस कर रहा था और अपने मन में यही सोच रहा था कि अगर किसी भी तरह से अपने लंड को अगर वह अपनी मां की बुर में डालने में कामयाब हो गया तो उसकी मां पूरी तरह से मस्त हो जाएगी,,, लंड की नसों की रगड़ उसकी बुर की अंदरूनी दीवारों को पानी पानी कर देगी,,, ऐसा अपने मन में सोचते हुए,,, फिर से अंकित दवा खाने के बारे में सोचने लगा वह नहीं जानता था की दवा खाने ले जाने पर डॉक्टर पेशाब की जांच करने को रहेगा,,,, और ऐसा कह भी दिया था तो कोई दिक्कत की बात नहीं थी लेकिन जब,,, बाथरूम के पास पहुंचकर सुगंधा खुद अपने बेटे को अंदर आने के लिए बोली तो अंकित के बदन में कंपन होने लगा उसका रोम रोम पुलकित होने लगा वैसे भी वह बहुत बार अपनी मां के साथ बाथरुम में कल्पना कर चुका था लेकिन पहली बार हकीकत में उसे अपनी मां के साथ बाथरुम में जाने का मौका मिल रहा था इधर-उधर देखकर अंकित हिम्मत दिखाते हुए अपनी मां के साथ बाथरुम में प्रवेश कर गया था क्योंकि उसकी मां को चक्कर भी आ रहा था जहां एक तरफ उसे अपनी मां की फिक्र भी थी वहीं दूसरी तरफ बाथरूम में अपनी मां के साथ वक्त गुजारने की चाह भी बड़े जोरों की थी,,,।
दवा खाने केबाथरूम में सुगंधा

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और मौके की नजाकत को देखते हुए वह भी अपनी मां के पीछे-पीछे बाथरुम में प्रवेश कर गया और अपनी मां को परखनली भी थमा दिया,,,, अंकित स्थल को याद करके पूरी तरह से उत्तेजना में डूबने लगा था वह धीरे-धीरे इस पल को याद करके अपने लंड को हिलाना शुरू कर दिया था,,, उसे याद आया कि उसकी मां से उसकी चड्डी उतारी नहीं जा रही थी पटना जाने कैसे बुखार के नशे में वह अपनी चड्डी उतारने के लिए खुद अपने बेटे को ही बोल दी थी यह भी सोच रहा था कि अगर उसकी मां को बुखार ना चढ़ा होता है तो शायद ऐसा सुनहरा मौका उसके जीवन में न जाने कभी आता भी या नहीं और उसे मौके का फायदा उठाते हुए अंकित अपनी मां की चड्डी को दोनों हाथों से नीचे उतारा था बहुत कम लोगों को ऐसा मौका मिलता है जब उन्हें खुद अपनी मां की चड्डी उतारने का सुनहरा मौका प्राप्त होता है और उन भाग्यशाली में से अंकित था,,,।

अगर कोई और मौके पर इस तरह का सौभाग्य अंकित को प्राप्त होता तो शायद वह अपनी मां की चड्डी उतारने के साथ-साथ उसके गुलाबी छेद में अपना लंड भी डाल दिया होता लेकिन वह जानता था कि उसकी मां बीमार है उसे चक्कर आ रहे थे इसलिए वह ज्यादा कुछ सोच नहीं पाया लेकिन जो कुछ भी उसने अपनी आंखों से देखा था उसे याद करके वह जोर-जोर से अपने लंड को हिला रहा था और कुछ पल के लिए अपनी आंखों को बंद करके कल्पना करने लगा था दवा खाने में जो कुछ भी हुआ था उसे विपरीत वह अपने मन में सोचने लगा कि परखनली को अपने हाथों में लेकर मुस्कुराते हुए उसकी मां बाथरूम के दरवाजे पर खड़ी और बाथरूम का दरवाजा खोलकर अंदर प्रवेश करते ही पीछे की तरफ देखकर अपने बेटे को भी अंदर आने का इशारा करती है,,,,।

इस तरह की कल्पना अंकित को किसी दूसरी दुनिया में ही लिए जा रही थी अंकित पूरी तरह से मस्त हो चुका था और वह जोर-जोर से अपने लंड को हिलाना शुरू कर दिया था,,,। आंखों को बंद करके उसकी कल्पना एकदम साफ नजर आ रही थी वह अपनी मां के इशारे पर तुरंत बाथरूम में प्रवेश कर गया और अपनी मां के हाथ से परखनली को ले लिया उसकी मां भी मुस्कुराते हुए अपने बेटे को परखनली दे दी और खड़े-खड़े अपनी दोनों टांगों को खोलते हुए अपनी साड़ी को कमर तक उठने लगी यह नजारा बेहद ही उत्तेजना से भरा हुआ था और इस नजारे की कल्पना करके अंकित स्वर्ग का सुख भोग रहा था देखते ही देखते सुगंध अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर अपनी दोनों टांगों को खोलकर अपनी गुलाबी छेद में से पेशाब करने लगी और इशारे से ही अपने बेटे को परखनली को बर के छेद पर लगाने के लिए बोली और अपनी मां का आदेश पाकर तुरंत अंकित उसे परखनली को अपनी मां की गुलाबी छेद पर लगा दिया जिसमें पल भर में ही उसकी बुर से निकला हुआ नमकीन की धार से भर गया,,,,।
Apni ma k bare me kalpna karta hua ankit

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पेशाब से परखनली भर जाने से अंकित तुरंत परख नदी को हटा लिया और अपनी हथेली से अपनी मां की गुलाबी छेद को बंद करने की कोशिश करने लगा,,, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था क्योंकि उसकी बुर से पेशाब की धार इतनी तेजी से निकल रही थी कि उसकी बौछार इधर-उधर पूरे बाथरुम में फैल रही थी और देखते ही देखते अंकित अपने लंड को अपने पेंट में से बाहर निकाल लिया,,, अपने बेटे के खड़े लंड को देखकर,, सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,, और वह खुद अपने बेटे के लंड को पकड़ कर उसे अपनी गुलाबी छेद पर लगा दी,,, और उत्तेजना भरे स्वर में बोली,,,।


डाल दे मेरी बुर में बेटा,,,,।

(इतना सुनते ही अंकित से रहा नहीं गया और वह एक हाथ में परखनली को पकड़े हुए ही अपने लंड को अपनी मां की बुर में डालना शुरू कर दिया और देखते ही देखे उसका लंबा मोटा लंड उसकी मां के गुलाबी छेद में पूरी तरह से खो गया डूब गया और फिर एक हाथ में परखनली को पकड़े हुए दूसरे हाथ को अपनी मां के कमर में डालकर वह अपनी कमर को हिलाना शुरू कर दिया देखते ही देखते दोनों मां बेटे पूरी तरह से मदहोशी के आलम में बाथरूम के अंदर गहरी गहरी सांस लेते हुए शिसकारी की आवाज छोड़ने लगे,,,।
Sugandha ki kalpna me chudai

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इस तरह की कल्पना करते हुए अपने ही बिस्तर पर निर्वस्त्र अवस्था में मस्ती करते हुए अंकित अपने लंड को जोर-जोर से हिलाते हुए वीर्य का फवारा छोड़ने लगा,,,, जो कि उसके ही ऊपर गिरने लगा उसे बहुत मजा आ रहा था ईस तरह की कल्पना करने में,,,, और जैसे ही उसके दिमाग से वासना का तूफान शांत होगा वह धीरे-धीरे होश में आने लगा और अपनी स्थिति को देखकर अपनी ही चड्डी से अपने ऊपर गिरी वीर्य को साफ करने लगा और फिर देखते ही देखते वह भी नींद की आगोस में चले गया,,,।

तकरीबन ढाई घंटे बाद जब उसकी नींद खुद ही तो अपनी स्थिति का भान होते ही वह जल्दी-जल्दी कपड़े पहनने लगा क्योंकि उसे याद था कि उसे रिपोर्ट लेने जाना है और घर में जिस तरह की शांति छाई हुई थी उसे देखकर वह समझ गया था कि अभी तक उसकी बहन घर पर वापस आई नहीं थी और उसकी मां भी सो रही थी वह धीरे से अपने कमरे से बाहर निकाला और अपनी मां के कमरे तक जाकर वह धीरे से दरवाजा खोल कर देखा तो उसकी मां गहरी नींद में सो रही थी और वह फिर हाथ में धोकर रिपोर्ट लेने के लिए दवा खाने पहुंच गया,,,,।

दवा खाने पहुंचकर डॉक्टर उसे रिपोर्ट देते हुए बोला कि।
Apni ma ki chudai karta ankit

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कोई घबराने वाली बात नहीं है बस हल्का सा मलेरिया का असर था मुझे दवाई लिख देता हूं यह दवाई शुरू कर देना तीन दिन में सब ठीक हो जाएगा,,,।

धन्यवाद डॉक्टर,,,(डॉक्टर के हाथ से प्रिसक्रिप्शन लेते हुए अंकित बोला,,,अंकित डॉक्टर के चेहरे की तरफ देख रहा था और अपने मन में सोच रहा था कि इस समय डॉक्टर कितना मासूम लग रहा है उसका चेहरा एकदम मासूम है उसे देखकर कोई समझ ही नहीं पाएगा कि यह खूबसूरत औरत को देखकर डॉक्टर भी दूसरे मर्दों की तरह ही रंग,,, बदलता है,,, अंकित अपने मन में यह बात इसलिए सोच रहा था क्योंकि सुई लगाते समय उसने डॉक्टर के हालात को बड़ी-बड़ी की से निरीक्षण किया था वह साफ तौर पर देखा था कि जब डॉक्टर उसकी मां को सी लग रहा था उसकी साड़ी को थोड़ा नीचे की तरफ करके उसके नितंबों को उसकी गोरी गोरी गांड को देखकर डॉक्टर का भी लंड खड़ा हो रहा था और इस नजारे को अंकित देख लिया था,,,, लेकिन अंकित एक मर्द होने के नाते डॉक्टर की हालत को अच्छी तरह से समझ रहा था इसलिए कुछ बोला नहीं था,,,।

डॉक्टर के द्वारा लिखी गई दवा लेकर घर जाते-जाते शाम ढल चुकी थी अंधेरा होने लगा था घर पर जब पहुंचा तो तृप्ति भी घर पर आ चुकी थी तृप्ति अपनी मां के पास ही बैठी हुई थी और वह थोड़ा चिंतित नजर आ रही थी,,,, अपनी मां के पास पहुंचते ही अंकित अपनी मां से बोला,,,।

मम्मी ब्लू और पेशाब का रिपोर्ट आ चुका है,, और घबराने वाली कोई बात नहीं हल्का सा मलेरिया का असर है,,,,।

अच्छा हुआ अंकित कुछ ज्यादा गड़बड़ नहीं हुई नहीं तो मैं कब से परेशान हो गई थी मुझे तो मालूम ही नहीं था कि मम्मी की तबीयत खराब है घर पर आई तो पता चला,,,, दो-तीन दिन तक मम्मी तुम आराम करना मैं खाना बना देता हूं मैं पहले चाय बना देती हूं तुम चाय के साथ दवाई खा लेना,,,(इतना कहने के साथ ही तृप्ति अपनी मां के पास से उठकर खड़ी हो गई और किचन की तरफ जाने लगी,,,, लेकिन सुगंधा के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था अंकित के रिपोर्ट वाली बात सुनकर उसके होश उड़ गए थे,,, और वह भी ब्लड और पेशाब का इन सब के बारे में तो सुगंधा को कुछ पता ही नहीं था इसलिए वह हैरानी से अंकित की तरफ देख रही थी,,,।
Puri incest mahagatha hai yeh
अपनी बड़ी बहन के कॉलेज जाने के बाद अंकित नहा धोकर तैयार हो गया था और अपनी मां को चाय नाश्ता के साथ दवा भी दे दिया था तभी वह बार-बार अपनी मां को रिपोर्ट के बारे में याद दिला रहा था कि उसकी मां को सैंपल वाली बात याद आ जाए और ऐसा ही हुआ सुगंधा को सैंपल वाली बात याद आ गई थी,,,, और वह जिद करने लगी थी की दवा खाने में क्या-क्या हुआ था उसे बताएं क्योंकि उसे कुछ भी याद नहीं है,,, और ऐसा अंकित खुद चाहता था वह अपनी मां को क्लिनिक वाली बात नमक मिर्च लगाकर बताना चाहता था और वह भी तड़प रहा था अपनी मां को सब कुछ बताने के लिए उसके भी अरमान मचल रहे थे आज उसके पास बहुत ही बेहतरीन मौका था,,, एक औरत के साथ गुफ्तगु को करने का,,,,,, मां के साथ नहीं बल्कि एक औरत के साथ क्योंकि वह अपनी मां मैं मां नहीं बल्कि एक प्यासी औरत को देख रहा था,,,।



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मम्मी तुम नहा धोकर तैयार हो जाओ फिर मैं बाद में बताता हूं,,,।

नहीं नहीं बिल्कुल भी नहीं वैसे भी मुझे अभी नहाने का मन नहीं कर रहा है तो मुझे पता क्या-क्या हुआ था मैं जाने के लिए बेकरार हूं क्योंकि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तू मुझे कब दवा खाने लेकर गया कब सैंपल दिया कुछ भी मुझे याद नहीं है,,,, ऐसा मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ था,,,।

अरे मम्मी में भागा थोड़ी जा रहा हूं,,, मैं सब कुछ बता दूंगा लेकिन पहले ना धोकर फ्रेश तो हो जाओ,,,।

और मैं भी तुझे बता दी हूं की अभी मैं नहीं नहाउंगी तुझे मेरी कसम सब कुछ सच-सच बता,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर और उसकी दी हुई कम को सुनकर अंकित एकदम शांत हो गया कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छाई रही तो इस खामोशी को खुद सुगंध तोड़ते हुए बोली,,)



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क्या हुआ तु चुप क्यों हो गया बताता क्यों नहीं,,,!

अब क्या बताऊं मम्मी मैं तुमको नहीं बताना चाह रहा हूं और तुम मुझे कसम दे रही हो सब कुछ सुनाने के लिए मैं नहीं चाहता कि क्लीनिक में जो कुछ भी हुआ मैं तुम्हें बताऊं वह सब तुम्हारा बुखार करना चाहता तुम्हें कुछ भी याद नहीं है और सही है की याद नहीं है वरना तुम ना जाने क्या सोचोगी,,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा को बिल्कुल शक होने लगा कि जरूर क्लीनिक में कुछ ना कुछ हुआ है और इसीलिए अंकित बात नहीं रहा है इसलिए वह पूरी तरह से अंकित को विश्वास में लेते हुए बोली,,,)

देख अंकित अगर मेरे मन में कुछ होता तो मैं तुझे बताने के लिए बोलती ही नहीं लेकिन मैं जानना चाहती हूं कि वहां पर क्या हुआ है इसलिए तो मैं तुझसे पूछ रही हूं और बिल्कुल भी चिंता मत करना कुछ बोलने वाली नहीं हूं,,,।




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मम्मी तुम मुझे कसम देकर मजबूर कर रही हो,,,, मैं तुम्हें बताना नहीं चाहता हूं लेकिन अगर तुम मुझे मजबूर कर रही हो तो मैं भी तुम्हें बताने के लिए तैयार हूं लेकिन इससे पहले तुम्हें मेरी कसम खानी होगी,,,।
(ऐसा कहकर अंकित पूरी तरह से अपनी मां को अपनी कसम के दायरे में बांध लेना चाहता था ताकि वह जो कुछ भी बोले,,, उसे पर उसकी मां को विश्वास करने के सिवा और कोई रास्ता ना हो और उसकी बातों को सुनकर वह नाराज ना हो,,,,)

तेरी कसम,,,।

हां मम्मी मेरी कसम ताकि तुम मेरे बारे में कुछ उल्टा सीधा ना सोचो,,,,,।
Sugandha ki kalpna apne bete k sath

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अच्छा बाबा तेरी कसम खाती हूं मैं तुझे गलत नहीं समझुंगी,,,(कसम खाते हुए सुगंधा का अधिक जोरों से धड़क रहा था वह जल्द से जल्द अंकित के मुंह से सब कुछ सुनना चाहती थी और अंकित अपनी कसम दिल कर अपनी मां को पूरी तरह से अपनी विश्वास में लेकर अपनी बातों को नमक मिर्च लगाकर बताने के लिए अपने लिए अपने आपको तैयार कर चुका था,,, जैसे ही उसकी मां ने उसकी कसम खाई अंकित मन ही मन प्रसन्न होने लगा,,,, और अपनी बात की शुरुआत करते हुए बोला,,,,)

अब जब तुम मेरी कसम खा ही गई हो तो मैं तुम्हें सब कुछ बता देता हूं,,, , देखो दोपहर को जब मैं घर पर लौटा दो बाहर ताला नहीं लगा था तो मैं समझ गया घर पर कोई ना कोई तो आ ही गया है लेकिन यह नहीं मालूम था कि घर पर कौन है,,,,, मैं दरवाजे पर 10 तक दे नहीं बना था कि दरवाजे पर हाथ रखते ही दरवाजा अपने आप खुल गया और मैं धीरे से अंदर प्रवेश किया,,,,,।
(सुगंधा अपने बेटे की बात को बड़ी गौर से सुन रही थी)




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ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था कि दरवाजा खुला छोड़ा हो इसलिए मुझे थोड़ा अजीब लगा मैं घर में प्रवेश करके इधर-उधर देखने लगा लेकिन कोई नजर नहीं आया तो मैं दीदी के कमरे के पास गया कि दीदी का कमरा भी बंद था,,,,, और जब तुम्हारे कमरे के पास पहुंचा तो तुम्हारे कमरे का दरवाजा खुला हुआ था,,,, मुझे थोड़ा अजीब लगा मैं धीरे से तुम्हारे कमरे में प्रवेश किया तो तुम अपनी बिस्तर पर सो रही थी,,,, सो क्या रही थी मम्मी तुम दर्द से कंहर रही थी,,, मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया कि क्या हुआ जब मैं तुम्हारे करीब पहुंचा तो देखा तुम बिस्तर पर बसु धोकर सो रही थी तुम्हारी साड़ी का पल्लू बिस्तर के नीचे लटक रहा था,,,,(अंकित ने जैसे ही साड़ी का पल्लू बिस्तर के नीचे लटक रहा था यह बात किया सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी और वह अपने मन में सोचने लगी की साड़ी का पल्लू जब नीचे लटक रहा था तो इसका मतलब है कि उसकी छाती एकदम साफ दिखाई दे रही होगी उसकी चूचियां उसकी सांसों की गति के साथ ऊपर नीचे हो रही होगी और यह सब अंकित अपनी आंखों से देख लिया होगा,,,, यह ख्याल उसके मन में आता है उसकी दोनों टांगों के बीच हलचल होने लगी,,,,, अंकित की बात सुनकर सुगंधा बोली,,,)

तब तूनेक्या किया,,,,?



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करना क्या था मेरे तो होश उड़ गए तुम्हारी हालत खराब थी तुम्हें बहुत दर्द हो रहा था और तुम दर्द से कहर रही थी,,, मुझे कुछ समझ में नहीं आया तो अपना हाथ तुम्हारे माथे पर रखकर देखने लगा तुम्हारा माथा तुम्हारा बदन बुरी तरह से गर्म था तुम्हें बड़े जोरों का बुखार था,,, तुम्हारी आदत देखकर मैं समझ गया की हालत गंभीर है मैं तुम्हें उठाने लगा लेकिन तुम अपने होश में नहीं थी,,,, मैं तुमसे बोला भी कितने बड़ी जोरों की बुखार है तुम्हें दवा खाने ले जाना पड़ेगा लेकिन तुम क्या बोली तुम्हें मालूम है,,,।

नहीं मुझे तो कुछ भी नहीं मालूम,,,,।

तुम मुझे बोली कि जाकर मेडिकल से गोली ला दे आराम हो जाएगा,,,,।

फिर तूने क्या किया,,,,?



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करना क्या था मैं समझ गया था कि मेडिकल से दवा लाने से काम बनने वाला नहीं है इसलिए मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर उठाने लगा और बोला की दवा खाने चलना होगा,,,, लेकिन तुम तो उठने को तैयार ही नहीं थी तुम जाने को भी तैयार नहीं थी लेकिन मैं जानता था कि अगर इस तरह तुम्हें छोड़ दिया गया तो मामला ज्यादा बिगड़ जाता तुम्हारी तबीयत और ज्यादा खराब हो जाती और तुम्हें दवा खाने में एडमिट करना पड़ता,,,,।

बाप रे मेरी तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गई थी,,,(सुगंधा आश्चर्य जताते हुए बोली,,)

तो क्या मम्मी तुम्हारी तबीयत बहुत खराब थी तुम दवा खाने को जाने को तैयार नहीं घर में कोई था भी नहीं दीदी अगर होती तो शायद मुझे इतनी दिक्कत नहीं होती लेकिन वह भी नहीं थी और तुम्हें दवा खाने ले जाना बहुत जरूरी था मैं जबर्दस्ती तुम्हें उठाकर बिस्तर पर बिठाया,,,,एक तो तुम्हारे में बिल्कुल भी ताकत नहीं थी,,, बिस्तर पर बैठने के बावजूद तुम इधर-उधर लुढ़क जा रही थी तुम्हें संभालना मुश्किल हुआ जा रहा था,,,,, जैसे तैसे करके मैं तुम्हें सहारा देकर खड़ी किया,,,,,,।
(सुगंधा बड़ी गौर से अपने बेटे की बात सुन रही थी उसकी उत्सुकता और ज्यादा बढ़ती जा रही थी कि आगे क्या-क्या हुआ होगा,,, तभी अंकित ने ऐसी बात कह दी सुगंधा की तो बुर से पानीबहने लगा,,,,)



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तुम्हें मैं कमरे से जैसे तैसे करके बाहर लेकर आया मैं अपना हाथ तुम्हारी बाहों में डालकर तुम्हें पकड़े हुए था ताकि तुम गिर ना जाओ लेकिन सबसे ज्यादा परेशान कर रहा था तुम्हारे साड़ी का पल्लू जो बार-बार तुम्हारे कंधे से नीचे गिर जा रहा था और सब कुछ दीख जा रहा था,,,,।
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(सब कुछ दिख जाने वाली बात सुनकर सुगंधा के तन बदन में एकदम से आग लग गई सब कुछ दिख जाने का मतलब अच्छी तरह से समझ रही थी लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोली।।)

सबकुछ दिख जा रहा था मतलब,,,,।

मतलब की मम्मी साड़ी का पल्लू नीचे गिर जाने से तुम्हारी छाती एकदम से दिखने लगती थी,,,,,, मुझे तो समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करु,,,,।

इसमें समझने वाली कौन सी बात थी साड़ी का पल्लू ठीक कर देता,,,।

ऐसा तो मैं बार-बार किया था लेकिन जब तक घर में थी तब तक तो ठीक था मैं सोच रहा था कि अगर बाहर तुम्हारे साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया तो गजब हो जाएगा,,,,।
Ankit apni ma ki boor chat ta hua

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कैसा गजब हो जाएगा मैं कुछ समझी नहीं,,,।

तेरी मम्मी तुम तो एकदम पूरी हो तुम नहीं जानती बाहर मर्दों की नजर कैसी रहती है एक खूबसूरत औरत की साड़ी का पल्लू अगर कंधे पर से नीचे गिर जाए तो आने जाने वाले सब की नजर औरतों की छाती पर ही गड़ी रह जाए देखकर पागल हो जाए,,,,।

(अंकित बड़ी हिम्मत करके इतना कुछ भूल गया था और अपनी मम्मी का चेहरा देख रहा था उसे साफ दिखाई दे रहा था कि उसकी कई बातों को सुनकर उसकी मम्मी का चेहरा शर्म के मारे सुर्ख लाल होने लगा है,,,, और सुगंधा भी अपने बेटे की बात सुनकर अंदर ही अंदर उत्तेजना से भर जा रही थी,,,, वह अपने बेटे के कहने का मतलब को अच्छी तरह से समझ रही थी वह यह भी जानती थी कि उसके खुद की बेटी की नजर उसकी छाती पर घूमती रहती है,,,,, अभी कुछ देर पहले ही उसने यह एहसास भी किया था जब वह सो रही थी और उसके साड़ी का पल्लू एकदम से अस्त्र-शस्त्र था और उसकी छाती एकदम से उजागर हुई नजर आ रही थी,,,,)



बाप रे क्या सच में मर्दों की नजर ऐसी होती है,,,।
(सुगंधा एकदम से अनजान बनते हुए बोली लेकिन अपनी मम्मी की बात से अंकित बिल्कुल भी सहमत नहीं था क्योंकि वह जानता था कि उसकी मम्मी भी बाहर मर्दों की नजर से अच्छी तरह से वाकिफ है लेकिन ऐसा जानबूझकर बोल रही है फिर भी वह अपनी मां की बात सुनकर बोला)

तो क्या मम्मी सबकी नजर ऐसी ही होती है,,,।

लेकिन तुझे कैसे मालूम,,,,?

अरे यह सब मालूम हो जाता है मेरे कुछ दोस्त हैं जब भी उनके साथ इधर-उधर घूमने जाओ तो वह लोग औरतो को ही देखते रहते हैं,,,।

क्या कहते हैं तेरे दोस्त,,,,?



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पूछो मत मम्मी बहुत खराब खराब बोलते हैं मुझे तो बताने में भी शर्म आ रही है,,,,,।

अरे बता भी दे मुझसे कैसा शर्माना,,,, वैसे भी मैं तेरी कसम खाई हूं तुझे कुछ बोलेगी नहीं,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर और उसकी उत्सुकता देखकर अंकित का लैंड खड़ा होने लगा था उसी तरह की बातें करने में बहुत मजा आ रहा था और वह भी अपनी मां से पहली बार अपनी मां से इस तरह की बातें कर रहा था इसलिए वह भी थोड़ा खुल जाना चाहता था इसी बहाने वह भी एक औरत से किस तरह से अश्लील बातें की जाती है वह एहसास महसूस करना चाहता था,, इसलिए बोला,,,)



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ठीक है तुम रहती हो तो बता देता हूं वैसे बताने लायक बात नहीं थी मेरे दोस्त हमेशा औरतों को देखकर वैसे तो कोई औरत आगे से आती रहती है तो उन लोगों की नजर औरतों की छाती पर ही जाती है और अगर पीछे से देखते हैं तो औरतों की गांड पर ही उनकी नजर जाती है,,,,,(अपने मुंह से औरतों की गांड शब्द का प्रयोग करके और अभी अपनी मां के सामने वह पूरी तरह से मदहोश होने लगा था,,, सुगंधा भी अपने बेटे के मुंह से औरत की गांड शब्द सुनकर मस्त हुए जा रही थी,,, कोई और समय होता तो शायद उसका बेटा इस तरह की बात नहीं करता लेकिन हालात और मौका दोनों बदल चुके थे सुगंध भी अपने बेटे को इस तरह से बात करने नहीं देती अगर कोई और समय होता तो लेकिन इस समय वह भी मजबूर थी अपनी बेटी के मुंह से इस तरह की बातें सुनकर वह भी मस्त हो जा रही थी इसलिए वह उसे रोकी नहीं,,, और अंकित अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)



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मैं तो यह सब सुनकर उन लोगों से दूर हो जाता हूं,,,।

औरतों की गांड और छाती देखकर ऐसा क्या कहते हैं तेरे दोस्त जो तू एकदम से उन लोगों से दूर हो जाता है,,,,।
(सुगंधा भी गांड और छाती का प्रयोग बड़े खुलकर अपने बेटे के सामने कर रही थी,,, जिसे सुनकर अंकित का लंड हलचल महसूस कर रहा था,,,)

अरे मम्मी वह लोग बहुत गंदा गंदा बोलते हैं,,, वह लोग इतने हारामी है कि कुछ भी बोल देते हैं बोलते हैं है इसकी चूचियां कितनी बड़ी-बड़ी है मेरे हाथ में आ जाए तो दबा दबा कर इसका दूध पी जाऊं,,,,।

हाय दैया ऐसा बोलते हैं,,,,(सुगंधा भी जानबूझकर हैरान होने का नाटक करते हुए बोली,,,)

तो क्या मम्मी और फिर किसी औरत की गांड देख लेते हैं बड़ी-बड़ी है तो बोलेंगे इसका आदमी कितना खुश नसीब होगा जो ऐसी औरत पाया है इतनी बड़ी-बड़ी गांड पाकर ना सोता होगा ना सोने देता होगा,,,,,,,।
(हाय दइया तेरे दोस्त इतने बेशर्म है,,,,)




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तो क्या मम्मी मेरी तो हाथ खराब हो जाती है उन लोगों की इस तरह की बातें सुनकर ऐसे मम्मी मुझे समझ में नहीं आया कि वह लोग कहते हैं कि ना खुद सोते हैं ना सोने देते इसका मतलब क्या हुआ,,,,!(अंकित जानबूझकर अनजान बनते हुए अपनी मां से पूछ रहा था वह जानना चाहता था इसके मतलब को अपनी मां के मुंह से और यह बात सुनकर सुगंधा के चेहरे पर एकदम से हवाइयां उड़ने लगी और उसका चेहरा शर्म के मरे टमाटर की तरह लाल हो गया वह अपने बेटे की बात सुनकर गोल-गोल जवाब देते हुए बोली,,,)

अरे,,, कोई खूबसूरत औरत को देखकर किसी की नींद उड़ जाती होगी इसी बारे में बोल रहे होंगे,,,,।

हां यह भी हो सकता है,,,,,



अच्छा यह बता फिर तु कैसे ले गया मुझे,,,,(एक पल के लिए सुगंधा का मन कह रहा था कि अपने बेटे से सब कुछ बता डाले औरत और मर्दों के बीच के संबंध को लेकर वह बता दे की मर्द कब सोता नहीं और नहीं औरत को सोने देता है वह चुदाई के बारे में खुलकर अपने बेटे से बात करें लेकिन ऐसा करने से उसे अजीब सा लग रहा था वैसे तो वह अपने बेटे से एकदम से खुल जाना चाहती थी लेकिन न जाने क्यों वह इस तरह की बातें करने से और वह भी खुलकर थोड़ा घबरा रही थी,,,, इसलिए बात को एकदम से घूमाते हुए बोली,,,)

फिर क्या मम्मी जैसे तैसे करके मैं तुम्हारी साड़ी के पल्लू को फिर से ठीक किया और तुम्हें सहारा देकर धीरे-धीरे घर से बाहर लेकर आया तभी ओटो को आवाज देकर बुलाया और उसमें,,, तुम्हें बिठाकर जैसे तैसे करके दवा खाने पहुंचा,,,,।


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(जिस तरह की बातें मां बेटे के बीच हो रही थी अंकित की हालात पूरी तरह से खराब हो गई थी उसका लंड अपनी औकात में आकर खड़ा था और पेट में तंबू बनाया हुआ था और वह उसे छुपाने की कोशिश करते हुए बार-बार अपने हाथ से अपने लंड को दबा दे रहा था और उसकी यह हरकत उसकी मां से बिल्कुल भी छुपी नहीं होती सुगंधा भी अपने बेटे की हरकत को देखकर अंदर ही अंदर गर्म हो रही थी,,,,। वैसे उसकी खुद की बुर पानी छोड़ रही थी,,, फिर भी गहरी सांस लेते हुए वह बोली,,,)

फिर क्या हुआ,,,? दवा खाने में तो भीड़ होगी,,,!

नहीं मम्मी किस्मत अच्छी थी दवा खाने में उसमें कोई भी नहीं था और डॉक्टर का कंपाउंडर खाना खाने घर गया था,,।


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फिर,,,,(सुगंधा की भी पेंटि गीली रही थी इसलिए वह भी,,, ना चाहते हुए भी अपने हाथ से अपनी पैंटी को सही करते हुए बोली और उसकी यह हरकत को अंकित भी बड़ी गौर से देख रहा था और उत्तेजित हुआ जा रहा था,,,,)

फिर क्या फिर से तुम्हें सहारा देकर में जैसे तैसे करके डॉक्टर के केबिन में पहुंच डॉक्टर अकेले ही आराम कर रहा था,,,,, और फिर मैं तुम्हें डॉक्टर के सामने वाली कुर्सी पर बैठा दिया,,,,।

फिर क्याहुआ,,,?

फिर डॉक्टर तुम्हारा चेकअप करने लगा,,,, वैसे मम्मी जब कभी भी मैं तुम्हारे साथ गया हूं तो डॉक्टर अपना आला तुम्हारी पीठ पर लगाकर चेक करता था ना,,,,।

हां और ऐसे ही डॉक्टर को चेक भी करना चाहिए औरतों के मामले में,,,,,।



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हां मम्मी मैं भी तो यही सोच रहा था लेकिन डॉक्टर की आंखों के सामने तुम्हारी शाडी का पल्लू एकदम से नीचे गिर गया और साला डॉक्टर तो तुम्हारी छाती को देखता ही रह गया,,,,।

(जिस तरह से अंकित बता रहा था उसकी बात सुनकर सुगंध एकदम से हैरान हो गई और वह एकदम से हैरान होते हुए बोली)

क्या कह रहा है अंकित तु,,,

मैं सच कह रहा हूं मम्मी साड़ी का पल्लू गिरते ही डॉक्टर तुम्हारी छाती की तरफ देखने लगा उसकी तो आंखें फटी जा रही थी मुझे लगा शायद तुम्हारी तबीयत का कुछ जांच पड़ताल कर रहा है लेकिन जल्दी मुझे पता चल गया कि वह क्या देख रहा था,,,

क्या देख रहा था वह,,,,।

मम्मी मुझे तो बताते शर्म आ रही है,,, कोई और समय होता तो मैं उसका मुंह तोड़ देता लेकिन तुम्हारी तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब थी इसलिए मैं कुछ बोल नहीं पाया,,,।
Sugandha apne bete k sath kalpna karti huyi

लेकिन क्या देख रहा था वो,,,(एकदम से उत्सुकता दिखाते हुए सुगंधा बोली)

मम्मी अब मैं क्या कहूं तुम्हारी साड़ी का पल्लू कंधे से नीचे गिरते ही एक बार फिर से तुम्हारी छाती एकदम से उजागर हो गई और वह जो ब्लाउज के बीच में से लकीर दिखती ना गहरी गहरी,,,,,(हाथ की उंगली से अपनी मां के छाती की तरफ इशारा करते हुए और उसके इशारे को देखकर सुगंधा एकदम शर्म से पानी पानी हो गई उसके कहने के मतलब को सुगंधा अच्छी तरह से समझ गई,,, वह समझ गई कि उसका बेटा चूचियों के बीच की उभरी हुई लकीर के बारे में बात कर रहा है,,,,,)

हां,,,,, मैं समझ गई आगे बात,,,,।

हां मम्मी वहीं आंख फाड़े देख रहा था,,,, एक तो तुम इतनी बीमार थी कि अस्त-व्यस्त हालत में हो जा रही थी तुम्हारी साड़ी का पल्लू नीचे गिर जा रहा था कभी तुम्हारा सर इधर-उधर हो जा रहा था वह तो गनी मत था मम्मी के तुम्हारे ब्लाउज का बटन खुला हुआ नहीं था,,,।


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तो क्या हो जाता,,,,?(एकदम से तिरछी नजर से अंकित की तरफ देखते हुए बोली)

अरे फिर तो डॉक्टर किसी न किसी बहाने छु देता,, और दबा भी देता,,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर तो सुगंधा के बदन में उत्तेजना की चिंगारी फूटने लगी वह अच्छी तरह से समझ रही थी कि उसका बेटा क्या कहना चाह रहा है लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोली,,,)

अरे किसको दबा देता छु देता,,,।

अरे मम्मी तुम्हारी चू,,,(हाथ का इशारा अपनी मां की छाती की तरफ और अधूरा शब्द बोलकर एकदम से खामोश हो गया और अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा की बुर पानी छोड़ने लगी,,,, उसकी सांसे एकदम से ऊपर नीचे होने लगी क्योंकि उसका बेटा चुची शब्द कहते-रहते रह गया था,,,, फिर भी अपने आप को सहज करते हुए वह बोली)

अरे अगर बटन खुला होता तो क्या तू बंद नहीं करता मुझे तो बिल्कुल भी होश नहीं था तुझे तो बंद कर देना चाहिए था ना,,,।

मुझे तो करना ही पड़ता मम्मी क्योंकि मैं नहीं चाहता कि किसी और की नजर तुम्हारे पर पड़े लेकिन उसे समय में खामोश रहे गया था तुम्हारी तबीयत का जो मामला था,,,,।



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इसके बाद तूनेक्या किया,,,?

डॉक्टर की नजर को पहचान कर मैं जल्दी से तुम्हारी साड़ी के पल्लू को ठीक कर दिया लेकिन बुखार नापने के बहाने उस हरामी डॉक्टर ने क्या किया पता है,,,।

क्या किया,,,?

हारामी ने मुझसे बोला कि अपनी मां की साड़ी के पल्लू को थोड़ा हटाओ,,,

फिर,,,,(सुगंधा धड़कते दिल के साथ बोली,,, उसके बदन में भी हलचल होने लगी थी वह जानती थी कि इस तरह की हरकत डॉक्टर करते नहीं है लेकिन उसका बेटा बता रहा था तो हो सकता है डॉक्टर ने इस तरह की हरकत किया हो,,,)

फिर क्या मैं भी हाथ आगे बढ़कर तुम्हारी शादी के पल्लू को तुम्हारी छाती से थोड़ा सा हटा दिया,,,, और डॉक्टर अपने आला को तुम्हारी उस पर,,(एक बार फिर से उंगली से इशारा करते हुए,,,, अंकित अपनी मां की चूची दिखाने लगा सुगंधा के सांस ऊपर नीचे हो रही थी उसकी हालत खराब हो रही थी वह भी अपने बेटे का साथ देते हुए अपनी उंगली से अपनी चूची की तरफ इशारा करते हुए इशारे में ही बात की तो अंकित अपनी मां का इशारा देखकर बोला,,,)

इससे थोड़ा ऊपर,,,,।(अंकित का भी दिल जोरो से धड़क रहा था वह अपनी मां से एक तरह से अश्लील बातें ही कर रहा था ऐसी बातें जो मर्द और औरत के बीच ही मुमकिन होती है एक मां और बेटे के बीच नहीं लेकिन एक मां और बेटे दोनों अपनी मर्यादा को पार कर रहे थे,,, सुगंधा भी अंकित की बात सुनकर थोड़ी बेशर्मी दिखाते हुए अपने हाथ से साड़ी के पल्लू को अपनी छाती से थोड़ा सा हटाते हुए अपनी उंगली को अपनी चूची की गोलाई के ऊपरी भाग पर जहां से गोलाई का शुरूआत होती है वहां पर रख दी,,, अपनी मां की इस अदा पर तो अंकित की हालात पूरी तरह से खराब हो गई वह एकदम से उत्तेजित हो गया उसकी लंड की नशे एकदम से उभर आई,,, और वह एकदम से उत्तेजित स्वर में बोला ,,,)
Apni ma ki chudai karta hua ankit

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बस बस मम्मी यहीं पर,,, यहीं पर वह डॉक्टर अपना आला,,, लगाकर तुम्हारा बुखार चेक करने लगा और एक बार नहीं बल्कि काफी बार उसने ऐसा किया,,,।

लगता है उसकी नियत खराब हो रही थी,,,,।

तो क्या मम्मी,,, क्योंकि मैं आज तक इस तरह से डॉक्टर को औरत का चेकअप करते नहीं देखा,,,,।

(अंकित की बातों को सुनकर दीवाल का सहारा लेकर वह ऊपर छत की तरफ देखने लगी और गहरी सांस लेने लगी उसका साड़ी का पल्लू अभी भी उसकी छाती से थोड़ा सा जाता हुआ था और वह जानबूझकर गहरी सांस ले रही थी ताकि सांसों के गति के साथ उसकी ऊपर नीचे हो रही छाती पर उसके बेटे की नजर जाए और ऐसा ही हुआ,,,, अंकित की नजर तुरंत अपनी मां की बड़ी-बड़ी छातियों पर चली गई,, और अपने बेटे की हरकत को,,, सुगंधा चोर नजरों से देख रही थी उसकी हरकत को देखकर मन ही मन उत्तेजित और प्रसन्न दोनों हो रही थी,,, कुछ देर की खामोशी के बाद वह फिर से अंकित की तरफ देखतेहुए बोली,,,।

इसके बाद क्या हुआ,,,,?



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(सुगंधा की बातें सुनकर अंकित समझ गया था कि उसकी मां सबसे ज्यादा उत्सुक सैंपल वाली बात जानने के लिए है,,, इसलिए वह भी बोला,,,)

फिर क्या मम्मी डॉक्टर ने दवाई दिया और बोला ब्लड और पेशाब का सैंपल देना पड़ेगा,,,,।

फिर मुझे तो कुछ मालूम ही नहीं था यह सब कैसे लिया गया,,,,,।

वही तो बता रहा हूं मम्मी,,,, मैं तुम्हें सहारा देकर वापस डॉक्टर के केबिन से बाहर लाया वही दवा खाने में ही बाथरूम है बाथरूम में ही सब कुछ मौजूद था,,,, मैं धीरे-धीरे तुम्हें बाथरूम के पास लाया और तुम्हें सब कुछ बता दिया अंदर ही परखनली भी थी,,,, लेकिन तुम्हारी हालत देखकर मुझे लग नहीं रहा था कि तुम बाथरुम में अकेले जा पाओगी,,,।

(अपने बेटे की बात सुनते ही सुगंध के दिल की धड़कन एकदम से बढ़ गई उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में अजीब सी हलचल होने लगी उसे साफ महसूस हो रहा था कि अपने बेटे की बात सुनकर वह उत्तेजित हुए जा रही थी और उत्तेजना के मारे उसकी बुर कचोरी की तरह फुल रही थी पंचक रही थी,,,, वह और भी ज्यादा उत्सुक हो गई थी आगे की बात जानने के लिए इसलिए बोली ,,,)

फिर तूने क्या किया,,,,?



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मैंने क्या किया मैं बाहर ही खड़ा रहा और तुम्हें अंदर जाने के लिए बोला जैसे तैसे तुम दरवाजा खोलकर अंदर जाने को भी लेकिन दरवाजे पर ही खड़ी रह गई तुम्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है मुझे भी घबराहट हो रही थी कि तुम भला कैसे पेशाब का सेंपल दे पाओगी तुम्हे तो खड़े रहने की भी ताकत नहीं थी,,,, कुछ देर तक मैं खड़ा रहा इधर-उधर देखता रहा लेकिन तुमसे कम भी आगे बढ़ने जा रहा था और तुमने खुद मेरी तरफ देखकर इशारा करते हुए मुझे भी अंदर आने के लिए बोली इतना सुनकर तो मेरी हालत खराब हो गई भला मैं कैसे एक औरत के साथ बाथरूम के अंदर जा सकता हूं अगर यह कोई देख लेता तो कितने शर्म की बात होती,,,,।

(अपने बेटे की बातों को सुनकर सुगंध का बदन उत्तेजना से कसमसा रहा था उसकी बुर लगातार पानी फेंक रही थी वह अपने बदन में अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और फिर कांपते हुए स्वर मेंबोली,,,)

फिर क्या हुआ,,,,?



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फिर क्या मम्मी मुझे ना चाहते हुए भी तुम्हारे साथ बाथरूम के अंदर जाना पड़ा तुम्हें सहारा देखकर मैं बाथरूम के अंदर लेकर और दरवाजा बंद कर दिया ताकि कोई देख ना ले और जल्दी से फर्क नाली को तुम्हारे हाथों में दे दिया और बोला कि तुम इसके अंदर पेशाब का सैंपल ले लेना,,,।

तू मेरे साथ बाथरुम मेंही था,,,,(एकदम से आश्चर्य जताते हुए सुगंधा बोली)

और क्या करता मम्मी मजबूरन मुझे भी अंदर रहना पड़ा तुम अपने हाथ से परखनली तो ले ली और धीरे-धीरे अपनी साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगी,,,।
(इतना सुनकर सुगंधा के बदन में उत्तेजना की चिंगारी फुट में रखें उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसे अजीब सा एहसास हो रहा था उसके बदन में मदहोशी जा रही थी उसे ऐसा लग रहा था कि इसी समय वह अपने बेटे के साथ कुछ कर बैठेगी,,, अपने बेटे की बात सुनकर सुगंध बोली,,,)

और तु मुझे ही देख रहा था,,,.

क्या करता मम्मी मजबूर था मुझे इस बात का डर था कि कहीं तुम बाथरुम में गिर ना जाओ तुम्हें चोट लगने का डर था इसलिए मुझे ना चाहते हुए भी तुम्हारी तरफ देखना पड़ा,,,

फिर मैंने क्या की,,?



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तुम तो बुखार के नशे में थी तुम्हें तो बिल्कुल भी होश नहीं था जैसे तैसे करके तुम अपनी साड़ी को कमर तक उठा ली थी,,,।
(अपने बेटे की बातों में सुगंध को नशा महसूस हो रहा था वह उसकी बातों में पूरी तरह से खो चुकी थी और अपनी आंखों के सामने कल्पना करने लगी थी कि कैसा-कैसा बाथरूम में हुआ होगा वह मदहोश हो जा रही थी उत्तेजना उसके धीरे दिमाग पर पूरी तरह से हावी होती जा रही थी,,,,, और अंकित अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)

तुम अपनी साड़ी कमर करके उठा लेती लेकिन तुम्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है तुम उसी तरह से ऐसा लग रहा था कि जैसे नशे में झूम रही हो मैं तुम्हें आवाज देते हुए बोला,,,,।

मम्मी पेशाब का सैंपल लेना है,,,,।

मेरी बात सुनकर ऐसा लगा कि जैसे फिर से तुम्हें होश आया हो और तुम मेरी तरफ देखने लगी और अपने एक हाथ से अपनी चड्डी को नीचे करने लगी लेकिन तुमसे हो नहीं रहा था तुमसे अपनी चड्डी ठीक से पकड़ी नहीं जा रही थी तुम अपनी चड्डी नहीं उतर पा रही थी,,,,(अंकित जानबूझकर अपनी मम्मी के सामने चड्डी वाली बात कर रहा था बार-बार अपनी मां के सामने इस तरह चड्डी का प्रयोग करके वह अपनी मां को उत्तेजित कर रहा था और उसकी मां बार-बार अपने बेटे के मुंह से अपनी चड्डी का जिक्र सुनकर मदहोश हुए जा रही थी पागल हुए जा रही थी,,, और वह धीरे से बोली,,,)

फिर मैंने क्या की,,,?



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फिर कुछ देर तक तुम कोशिश करती रही लेकिन तुमसे हुआ नहीं तो तुम मेरी तरफ देखते हो मैं तुम्हारी तरफ देखने लगा मुझे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर सैंपल मिलेगा तो कैसे मिलेगा,,,, और तुम मुझसे बोली,,,,।

तू ही उतार दे मुझसे नहीं हो रहा है,,,।(ऐसा कहते हुए अंकीत का लंड अपनी औकात में आ गया था,,,,,, क्योंकि वह अपनी मां के सामने उसकी ही चड्डी उतारने वाली बात कर रहा था और जिस तरह का सुरूर अंकित के ऊपर छाया हुआ था वही खुमारी उसकी मां के ऊपर भी छाने लगी थी,,, वह अपने मन में कल्पना करने लगी की बाथरूम में कैसा-कैसा हुआ होगा वह कहते हुए कैसा महसुस कर रही होगी वह पूरी तरह से पागल हुए जा रही थी,,, उसकी चड्डी पूरी तरह से गीली हो रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी चड्डी पर कोई पानी डाल दिया हो,,,, अपने बेटे की बात सुनकर वह अपने बेटे से नजर मिलाए बिना ही बोली,,,।)





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करना क्या था मम्मी तुम जैसा कहीं मुझे करना ही था क्योंकि मुझे डर कहीं डॉक्टर अगर बाहर आ गया और हम दोनों को बाथरूम में देखेगा तो वह क्या सोचेगा उसे तो खुला मौका मिल जाएगा,,,,, इसलिए तुम्हारी बात मानते हुए मैं अपना हाथ आगे बढ़ाकर,,,,, तुम्हारी चड्डी को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे नीचे की तरफ खींचने लगा,,,, सच कहूं मम्मी तो मुझे बहुत खराब लग रहा था लेकिन मैं क्या करूं मैं मजबूर हो गया था तुम्हारे पेशाब का सैंपल जो लेना था और देखते ही देखते मैं तुम्हारी चड्डी को तुम्हारी घुटनों का खींच दिया था तुम अपनी साड़ी को कमर तक उठाए खड़ी थी,,,।

फिर,,,,(गहरी सांस लेते हुए सुगंधा बोली, देखते ही देखते कमरे का वातावरण पूरी तरह से उत्तेजना से गर्म हो चुका था मां बेटे दोनों जवानी के नशे में चूर हो चुके थे बस एक कदम आगे बढ़ाने की देरी थी और दोनों एक दूसरे में समाने की पूरी कोशिश में जुट जाते,,, लेकिन फिर भी दोनों अपने आप पर बहुत ही काबू रखे हुए थे,,,,, अपनी मां की बात सुनकर अंकित बनी बनाई खिचड़ी पकाते हुए बोला,,,)

फिर क्या मैं कुछ देर तक फिर से इस तरह से खड़ा रहा,,,, तुम पेशाब करने के लिए बैठ नहीं पा रही थी,,,, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं तुम बार-बार बाथरूम की दीवार का सहारा लेकर खड़ी हो जा रही थी,,,, तुम्हारी हालत देखकर मैं समझ गया कि तुम बैठकर पेशाब नहीं कर पाओगी,,,।

(अंकित के एक-एक शब्द सुगंधा के कानों में नशा घोल रहा था,,, वह पूरी तरह से कामुकता के सागर में डूबती चली जा रही थी,,,,, अंकित जो कुछ भी कह रहा था सुगंधा अपने मन में उसकी कल्पना कर रही थी आज उसका पिता उसे बहुत खुलकर बातें कर रहा है,,, यही बदलाव तो वह अपने बेटे के अंदर चाहती थी,,,,,, यह बदलाव देखकर सुगंधा अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रही थी क्योंकि जैसा अंकित वह चाहती थी धीरे-धीरे उसका बेटा वही अंकित बनता जा रहा था अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा बोली,,,)


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फिर तूने क्या किया,,,,?(गहरी सांस लेते हुए अंकित से बिना नजर मिलाए हुए सुगंधा बोली,,,)

फिर क्या मुझे मजबूरन वही करना पड़ा जो मैंने जिंदगी में नहीं सोचा था,,,।

क्या,,,?

मैंने परखनली तुम्हारे हाथ से ले लिया,,, और फिर मैं अपने मन को एकदम कठोर करके उस परखनली को तुम्हारी,,,(उंगली से अपनी मां की दोनों टांगों के बीच इशारा करते हुए) उस पर लगा दिया और तुम्हें मुतने के लिए बोला,,, और तुरंत तुम पेशाब करने लगी,,,।

खड़े-खड़े,,,,(एक दम हैरान होते हुए सुगंधा बोली,,)

तो क्या तुम बैठ नहीं पा रही थी इसलिए खड़े-खड़े करना पडा,, तब जाकर पेशाब का सैंपल मिला,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा एकदम स्तब्ध हो गई थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपने बेटे से क्या बोले वह अपने बेटे से शर्म के मारे नजर तक नहीं मिल पा रही थी।।,)


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Ekdam. Kadkak
 
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