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Incest मुझे प्यार करो,,,

Blackserpant

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स्कूल जाने से पहले अंकित अपनी मां से मजा लेना चाहता था अपनी हरकतों से नहीं बल्कि अपनी बातों से बातें ही बात में दोनों के बीच चड्डी को लेकर बहस हो गई थी,,,, क्योंकि अंकित ने अपनी मां से वादा किया था कि वह उसके लिए चड्डी लेकर आएगा लेकिन अभी तक जल्दी लाया नहीं था और वैसे भी उसे समय नहीं मिला था चड्डी लाने का और ना ही ईस बारे में कुछ दिनों से कोई बात हुई थी क्योंकि तृप्ति के कॉलेज की छुट्टी थी और वही घर पर रहती थी अपनी मां के साथ इसलिए दोनों को बात करने का मौका भी नहीं मिला था,,, और इसीलिए सुगंधा को भी अपने बेटे से कहने का मौका मिल गया,,,।

Ankit or uski ma

लेकिन इस मौके का अंकित थोड़ा फायदा उठा लेना चाहता और इसीलिए दोनों के बीच चड्डी को लेकर बातचीत हो रही थी और बात ही बात में अंकित ने अपनी मां से पूछ लिया कि अगर तुम्हारे पास चड्डी नहीं है तो दिखाओ कि तुम पहनी हो कि नहीं यह तो अंकित के मन की शरारत थी क्योंकि वह अपनी मन में एक औरत देखा था खूबसूरत औरत प्यासी औरत और इसीलिए वह अपनी मां से बेटे की तरह नहीं बल्कि एक मर्द की तरह बातें करता था जिसमें उसे तो मजा आता ही था उसकी मां को भी बहुत मजा आता था अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा भी बिना पल गंवाए तुरंत अपनी साड़ी उठाकर अपनी नंगी गांड को अपने बेटे की आंखों के सामने कर दी ताकि वह जी भर कर उसकी नंगी जवानी को उसकी मदमस्त कर देने वाली गांड को देख सके,,, और अंकित भी अपनी मां की नंगी गांड को देखकर पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था,,,।



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इस बेहतरीन खूबसूरत नजारे को देखकर अंकित के पेंट में तंबू बन चुका था,,, और जिस तरह से सुगंध अपनी साड़ी उठाकर अपने बेटे को अपनी नंगी गांड दिखाई थी अंकित को यकीन हो गया था कि उसकी मां के पास पहनने के लिए चड्डी नहीं है,,, इसलिए सुगंधा भी अपने बेटे से बोली,,,।

अब तो तुझे यकीन हो गया ना मेरे पास चड्डी नहीं है,,,।

हां मम्मी सच में तुम्हारे पास तो चड्डी नहीं है,,, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि इतनी खूबसूरत औरत जो इतनी खूबसूरत साड़ी पहनती है इतनी खूबसूरत सज धज कर रहती है और उसके पास पहनने के लिए चड्डी नहीं है मैं क्या कोई भी यकीन नहीं कर पाएगा,,,।
(अंकित एक तरह से अपनी मां की तारीफ कर रहा था और अपने बेटे के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनकर सुगंधा गदगद हुए जा रही थी उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आ रहे थे,,, अपने बेटे से उसकी बातों से वह प्रभावित हुए जा रही थी वह फिर से खाना बनाने में लग गई थी क्योंकि अपने बेटे से नजर मिलाने में उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा उसके सामने आ जाता और वह नहीं चाहती थी कि उसके बेटे को ऐसा लगी कि उसकी बातें सुनकर उसे बहुत मजा आ रहा है इसलिए वह अपने बेटे की बात को नजर अंदाज करते हुए बोली,,,)


Ankit or uski ma ki masti

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चल रहने दे कोई कुछ नहीं कहता और नहीं कुछ सोचेगा मेरे बारे में क्योंकि मैं इतनी कोई खास नहीं हूं,,,,,।

क्या बात कर रही हो मम्मी कौन कहता है कि तुम खास नहीं हो एकदम फिल्म की हीरोइन लगती हो,,,।

चल रहने दे चिकनी चुपड़ी बातें करने को तुझे भी बहुत बातें आने लगी है,,,।

मैं तो सच कह रहा हूं और तुम हो कि इसे सिर्फ बातें ही समझ रही हो,,,,। वैसे मम्मी तुम अंदर कुछ नहीं पहनी हो तो तुम्हें अजीब सा नहीं लगता होगा,,, मेरा मतलब है कि अगर मैं एक दिन अंडरवियर ना पहनू तो मुझे अजीब सा लगता है क्या तुम्हें भी ऐसा लगता है,,,।

वैसे तो कुछ खास नहीं लेकिन कुछ न पहनने की वजह से हवा लगती रहती है,,,,।



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ओहहह यह तो जरूरी है मम्मी क्योंकि वहां तो कुछ ज्यादा ही गर्मीहोगी,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर एकदम से सुगंधा सन्न रह गई और आश्चर्य से अपने बेटे की तरफ देखने लगी क्योंकि बातों ही बातों में उसके बेटे ने हकीकत बयां कर दिया था और इस बात का एहसास अंकित को भी था लेकिन वहां इस बात पर बिल्कुल भी जोर देना नहीं चाहता था कि वह अनजाने में यह बात कह दिया है बल्कि वह ऐसा ही जताना चाहता था कि जो कुछ भी उसने बोला है वह एकदम सही बोला है,,, लेकिन अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी अपने बेटे की बात के मतलब को समझ कर उसके बदन में मदहोशी छाने लगी और वह फिर से अपने आप को खाना बनाने में व्यस्त करने का नाटक करते हुए अपने बेटे की तरफ मुंह किए बिना ही बोली,,,।)

तुझे कैसे मालूम कि दोनों टांगों के बीच गर्मी ज्यादा होती है,,,।

Ankit or uski ma

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(अपनी मां का यह सवाल सुनकर खुद अंकित की हालत खराब होने लगी वह अपने मन में सोचने लगा कि उसकी मैया कौन सा सवाल पूछ बैठी है और फिर तभी उसे ख्याल आया कि उसकी मां भी यही चाहती है कि वह जवाब दे वरना इस सवाल पर वह खुद आंख दिखाने लगती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था उसकी मां खुद इसका जवाब पूछ रही थी,,, और अंकित सवाल का जवाब भी देना चाहता था लेकिन सीधे-सीधे नहीं बल्कि घुमा फिरा कर क्योंकि उसे इस बात का डर भी था कि अगर एकदम से खुलकर बोल दिया तो शायद उसकी मां गुस्सा करने लगेगी इसलिए वह बोला,,,।)



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अरे मम्मी हम लड़कों को भी टांगों के बीच कुछ ज्यादा ही गर्मी लगती है तभी तो वहां पसीना निकलते रहता है इसलिए मैं बोला कि तुम्हारी टांगों के बीच भी ज्यादा ही गर्मी होगी क्यों ऐसा नहीं है क्या,,,?(अंकित अपने ही सवालों में चतुराई से अपनी मां को उलझा रहा था,,,, और इस समय जिस तरह के हालात है जिस तरह की बातचीत हो रही थी उसे देखते हुए सुगंधा भी अपने बेटे को जवाब देते हुए बोली,,,)



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क्यों नहीं बिल्कुल ऐसा ही है लेकिन तुम लड़कों से ज्यादा गर्मी हम औरतों को दोनों टांगों के बीच लगती है,,,, क्योंकि वहां की रचना ही कुछ ऐसी है,,,,,.

रचना,,,, कैसी रचना,,,,?(अंकित जानबूझकर इस तरह का सवाल पूछ रहा था वह देखना चाहता था कि उसकी मां इस सवाल का जवाब किस तरह से देती है,,,, अपनै बेटे का सवाल सुनकर एक पल के लिए सुगंध को लगा कि इस सवाल का जवाब एकदम सीधे-सीधे दे दे लेकिन फिर बहुत सोच समझ कर वह बोली,,,)


रचना बहुत ही ज्यादा रचनात्मक लेकिन अभी समय नहीं है तुझे समझने का जब तू समझदार हो जाएगा तो अपने आप औरतों के टांगों के बीच की रचना को समझ जाएगा,,,,,(इस तरह की बातें करके सुगंधा के तन बदन में आग लग रही थी और जानती थी कि योग्य शब्दों से वह सीधे-सीधे अपनी बुर के बारे में बात कर रही है अब वह अपने बेटे के सामने,,, रचना की जगह बुर तो नहीं कह सकती थी क्योंकि इस तरह के सभी का प्रयोग करने में उसे अभी अपने बेटे के सामने बहुत शर्म महसूस होती थी,,, लेकिन वह जानती थी कि उसके कहने के मतलब को उसका बेटा अच्छी तरह से समझ गया होगा इसलिए उसका बेटा अपनी मां का यह जवाब सुनकर कोई और सवाल पूछता है इससे पहले ही वह बात करो को एकदम से बदलते हुए बोली क्योंकि इस समय उसके पास समय का बहुत अभाव था उसे जल्दी से तैयार होकर स्कूल भी जाना था,,,)

Ankit apni ma k sath

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अच्छा यह सब छोड़ तू सही-सही बता मेरे लिए पेंटी खरीद कर लाएगा कि नहीं,,,।

क्यों नहीं लाऊंगा जरूर लाऊंगा लेकिन,,,,,,(इतना कहकर चुप हो गया,,)

लेकिन क्या,,,?(अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली)

मेरे पास तुम्हारा नाप नहीं है,,, और पहले में ऐसा कुछ खरीदा भी नहीं हुं,,,, बिना नापके में खरीदुंगा कैसे,,,?(अपनी मां की तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोला और उसकी मां अपने बेटे की बात सुनकर मंद मंद मुस्कुराने लगी और बोली,,,)




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तू सच में अभी बच्चा ही है भले ताड़ के पेड़ की तरह लंबा हो गया है,,, रुक में अभी नाप पट्टी लाती हूं,,,।
(इतना कह कर हुआ तुरंत किचेन में से निकली और अपने कमरे में चली गई सुगंधा के मन में भी कुछ और चल रहा था क्योंकि वह जानती थी कि औरतों की पेटी का नाम उनके घेराव के हिसाब से एक नंबर होता है जिससे बड़े आराम से खरीदा जा सकता है लेकिन फिर भी वह अपने बेटे की बातें सुनकर खुद शरारती होना चाहती थी इसलिए जल्दी से अपने कमरे में गई और अलमारी में से नाप पट्टी लेकर वापस किचन में आ गई,,,,.। अंकित वहीं खड़ा था और सुगंध उसके सामने हाथ बढ़ाकर नाप पट्टी उसे थमाते हुए बोली,,,)


अब तो नाप ले लेगा ना तु,,,।


Ankit or sugandha

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हां हां जरूर,,,,, इतना तो मुझे आता ही है भले ही औरतों का नाप नहीं लिया हूं लेकिन,,, इधर-उधर तो सीख ही लिया हूं,,,।

चल इतना तो तुझे आता ही है इस बात की खुशी है मुझे चल अब जल्दी से नाप ले ले बहुत देर हो रही है ,,,,(इतना कह कर वह वापस अपने बेटे की तरह पीठ करके खड़ी हो गई,,,, अपनी मां की तैयारी को देखकर अंकित बोला,,,)

ठीक है मम्मी,,,(और इतना कहने के साथ ही हुआ है अपने हाथ में लिए हुए नाप पट्टी को लेकर अपनी मां की तरफ आगे बढ़ा उसका दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था और उसके लंड की अंगड़ाई बढ़ती जा रही थी उसके पेंट में तंबू बना हुआ था,,, वह धीरे से अपनी मां के करीब पहुंच गया और फिर उसे पट्टी को अपनी मां की कमर पर ना रख कर उसे कमर के बीचों बीच उसके नितंबों की ऊपरी हिस्से पर रख दिया उसकी मां समझ गई थी नाप लेने का यह तरीका गलत है इसलिए वह बोली,,,,)

Ankit apni ma k sath

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अरे वाह रे मेरे शेर,,,, ऐसे नाप लिया जाता है,,,।

तब कैसे लिया जाता है तुम ही बताओ ना मम्मी,,,,

अच्छा रुक,,, मैं बताती हूं,,,(इतना कहकर वहां अपने बेटे का हाथ पकड़ कर और साथ में उसे पट्टी को पड़कर उसे अपनी कमर की एक तरफ रख दी और अंकित भी उसकी नरम नरम चिकनी कमर पर अपना हाथ रखकर उसे पट्टी को पकड़ लिया ऐसा करने में उसे अत्यधिक उत्तेजना का एहसास हो रहा था वह थोड़ा सा झुका हुआ था अपनी मां के नितंबों के बीचो बीच गहरी लकीर क्यों नितंबों से ऊपरी हिस्से पर थी वहीं पर अंकित का पूरा ध्यान लगा हुआ था क्योंकि वह लकीर कुछ ज्यादा ही गहराई लिए हुए था अगर उसे पर पानी गिर जाए तो पानी की बूंद उस पर बड़े आराम से टिक जाती और मोती का दाना बन जाती,,, सुगंधा दिशा निर्देश करते हुए आगे बोली,,,)


Apne bete ko khus karti huyi sugandha

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अब इस पट्टी को पूरी तरह से मेरी कमर पर गोल घुमा कर वापस जहां पर पट्टी की शुरुआत है वहीं पर लेजा और देख कितना इंच है,,,, समझ गया ना,,,।

हां मम्मी समझ गया,,,,(अंकित का दिल जोरो से धड़क रहा था उसकी मां की भी हालत खराब थी एक तरफ अंकित का लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था दूसरी तरफ उसकी मां की बुर लगातार पानी छोड़ रही थी,,, दोनों मां बेटे पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में गोते लगा रहे थे,,, दोनों की हालत पल-पल खराब होती जा रही थी,,, मां बेटे दोनों में से सिर्फ एक को हिम्मत दिखा कर आगे बढ़ाने की देरी थी उसके बाद दोनों संभोग रथ हो जाते लेकिन किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि आगे बढ़कर जवानी का मजा लिया जाए लेकिन जो कुछ भी हो रहा था इतना भी दोनों के लिए बेहद उन्माद और एक अलग ही नशा से भरा हुआ था,,,, अंकित अपनी मां के बताएं अनुसार एक हाथ उसकी कमर पर रखकर साथ में उसे पर पट्टी दबाए हुए पट्टी को अपनी मां की कमर से घूमता हुआ उसे वापस इस छोर पर ले आया और बोला,,,,।)




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लो मम्मी आ गया,,,,।

देर आए दुरुस्त आए अब जितना इंच आ रहा है उतना अपनी कॉपी पर या अपने दिमाग में बैठा ले,,,,।

एकदम बराबर मम्मी,,,।

याद तो रहेगा ना भूल तो नहीं जाएगा,,,।

बिल्कुल भी नहीं एकदम छप गया है,,,, अबहो गया,,,!

अरे बुद्धू यह तो कमर का नाप था अभी घेराव बाकी है,,,।


तो अब,,,!

अब क्या,,,, जिस तरह से पट्टी मेरी कमर पर लगाया था इस तरह मेरी कमर में मेरी जांघों के बीच रखकर फिर से उसी तरह से नाप ले,,,,।

ठीक है,,, मम्मी,,,,


Apni ma ki saree kholta hua ankit

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(इतना कहकर वह अपने घुटनों के बल बैठ गया,,, और इस अवस्था में उसकी मां की बड़ी-बड़ी गाडरी गांव ठीक उसकी आंखों के सामने थी उसके चेहरे उसकी मां की गांड के बीच केवल चार अंगुल की दूरी थी और इतनी कम दूरी में अंकित को अपनी मां की गांड की गर्मी एकदम साफ महसूस हो रही थी सुगंधा भी गहरी सांस लेते हुए अपनी नजर को पीछे की तरफ करके अपने बेटे की तरफ देखने लगी कि अब वह क्या करता है,,,,।

अंकित का दिल जोरो से धड़क रहा था स्कूल जाने की चिंता आप उसके मन में बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि इस समय उसकी मां ने उसे बहुत बड़ी जिम्मेदारी दे दी थी जिसे निभाना उसका पहला फर्ज बनता था,,,, कसी हुई साड़ी में सुगंधा की गांड को ज्यादा ही उभरी हुई और बड़ी-बड़ी नजर आ रही थी जिसे देखकर अंकित के मन में अजीब हलचल हो रही थी अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड देखकर उसके मन में हो रहा था कि दोनों हाथों से अपनी मां की बड़ी गांड को थाम कर उसे जोर-जोर से दबा दे मसल दे,,, लेकिन ऐसा करने की उसमें हिम्मत नहीं थी,,,।




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देखते ही देखते अंकित अपनी मां की कमर के नीचे नाप पट्टी को लगा दिया तो उसकी मां जो उसे ही देख रही थी वह बोली,,,,।

थोड़ा और नीचे,,,,
(अपनी मां की बात सुनते ही अंकित अपनी मां की तरफ देखने लगा दोनों की नजरे आपस में टकराई दोनों के तन बदन में एक अजीब सी हलचल हुई लेकिन इस समय सुगंधा अपनी नजरों को बिल्कुल भी अपने बेटे से नहीं चुराई और अंकित भी अपनी मां की बात मानते हुए थोड़ा सा नीचे नाप पट्टी को लगा दिया तो उसकी मां फिर से बोली,,,)

Apne bete k liye chaddhi nikalti huyi

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दो अंगुल नीचे तब सही नाप मिलेगा,,,।

(अपनी मां की बात मानते हुए दो अंगुल और नीचे नाक पट्टी को लगा दिया और बोला,,,)
अब ठीक है ना मम्मी,,,।

हां बिल्कुल ठीक है अब जिस तरह से कमर का नाप लिया इस तरह से नीचे का भी नाप ले ले,,,,(अपने बेटे के सामने गांड शब्द बोलने में उसे शर्म आ रही थी और अपनी मां की बात सुनते ही उसके वचनों पर खरा उतरते हुए वह तुरंत पट्टी को दूसरे हाथ से घूमाकर दूसरी ओर ले जाने लगा लेकिन थोड़ी उसे दिक्कत आने लगी क्योंकि कमर का भाग थोड़ा काम था तो बड़े आराम से पट्टी घूम गई थी लेकिन गांड का घेराव कुछ ज्यादा ही था,,, इसलिए आराम से अंकित पट्टी को दूसरी तरफ नहीं ले जा पा रहा था,,, और यह देखकर सुगंध मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह जानती थी कि यह किस वजह से हो रहा है वह अपनी बेटी की तरफ मंद मंद देखकर मुस्कुरा रही थी लेकिन उसका बेटा अपनी मां की तरफ नहीं देख रहा था बल्कि अपनी मां की गांड की तरफ देख रहा था इस बात का एहसास अंकित को भी हो गया था कि उसकी मां की गांड कुछ ज्यादा ही बड़ी थी इसलिए पट्टी घूमाने में दिक्कत आ रही है,,,।


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इसलिए वह घुटनों के बाल ही थोड़ा सा आगे बढ़ा और पट्टी को घुमाने लगा वह पूरा हाथ दूसरी तरफ घुमा दिया था लेकिन ऐसा करने में,,, वह एकदम से अपनी मां की गांड से लिपट सा गया था और जब उसके चेहरे का एहसास सुगंधा को अपनी गांड पर हुआ तो वह एकदम से गड़बड़ हो गई और उसकी बुर से पानी की बौछार होने लगी,,,, अपनी मां की गांड का स्पर्श अपने चेहरे पर पाकर अंकित भी उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुका था उसकी सांसे बड़ी गहरी चल रही थी और उसकी सांसों की गर्मी सुगंधा को अपनी नितंबों पर एकदम साफ महसूस हो रही थी,,,।
इसलिए तो उसके बदन में और भी ज्यादा हलचल हो रही थी,,,।

फिर भी जैसे तैसे करके अंकित पट्टी को दूसरी तरफ पहुंच ही दिया और गहरी सांस लेते हुए बोला,,,।

बाप रे,,,, कितनी बड़ी गांड है तुम्हारी,,,(यह शब्द अंकित जानबूझकर बोला था और अपनी मां से नजरे मिलाई भी ना बोला था ताकि उसकी मां को लगे कि उसके मुंह से अनायास ही यह शब्द निकल गया,,,, वैसे भी अपने बेटे के मुंह से बड़ी-बड़ी गांड सबसे सुनकर उसका दिल गड़बड़ हो गया क्योंकि उसका बेटा सीधे उसकी गांड की तारीफ कर दिया था,,,, और सुगंधा भी अपने बेटे के इस शब्द पर इस तरह से जताने लगी कि मानो जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो,,,, नाप लेकर धीरे से अंकित खड़ा हुआ और बोला,,,)


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चलो नाप का काम तो हो गया अब जल्दी से मैं तुम्हारे लिए चड्डी लेकर आ जाऊंगा,,,।

तूने ठीक से नाप लिया तो है ना,,।

हां हां क्यों नहीं देखा,,,(नाप पट्टी में जहां तक माप हुआ था वहां पर अपनी उंगली रखकर अपनी मां को दिखाते हुए बोला)

अरे जरा सा भी 19। 20 हो गया था पहनने में अच्छा नहीं लगेगा,,,,।

(अपनी मां की बात सुनकर अंकित भी सच में पड़ गया लेकिन अपनी मां की बात सुनकर तुरंत इसके दिमाग में घंटी बजने लगी और वह तुरंत बोला,,)

मम्मी हो सकता है नाप में इधर-उधर हो जाए,,,।



अरे ऐसे कैसे नाप में इधर-उधर हो जाएगा तूने ठीक से तो लिया है ना,,,।

हां मम्मी मैं तो ठीक से ही लिया हूं लेकिन तुम्हारी साड़ी और पेटिकोट का कपड़ा भी तो है एक डेढ़ इंच का फर्क पड़ जाएगा तो गड़बड़ हो जाएगा,,,,।
(मन ही मन सुगंध अपने बेटे की बात सुनकर रोमांचित होने लगी क्योंकि उसे भी अपने बेटे के कहने का मतलब को अच्छी तरह से समझ आ गया था इसलिए वह अपने बेटे की बात सुनकर बोली,,,)



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तो अब,,,,(आश्चर्य से अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली,,, अंकित ठीक अपनी मां के पीछे और जिस तरह से बात करते हुए इधर-उधर हो रहा था उसके पेट में बना तंबू बड़े आराम से सुगंधा को अपने निकम्भों पर रगड़ हुआ महसूस हो रहा था और उसकी रगड़ सेवा पूरी तरह से मदहोश हुए जा रही थी और इस बात का एहसास अंकीत को भी था लेकिन वह जरा भी अपने कम को पीछे लेने की शुध नहीं ले रहा था,,, अंकित अपनी हरकत से अपनी मां की बुर को पानी पानी कर दिया था,,, सुगंधा भी मदहोश होते हैं पीछे की तरफ देखकर अपने बेटे की आंखों में आंखें डाल कर बोली थी और उसकी बातें सुनकर अंकित भी अपनी मां की आंख में आंख डालकर बोला,,,)

तो अबक्या,,,, धीरे से अपनी साड़ी कमर तक उठाओ ताकि आराम से सही नाप लिया जा सके,,,,।

(अपने बेटे की हिम्मत और उसकी बात को सुनकर सुगंधा का दिल जोरो से धड़कने लगा वह अपने बेटे की हिम्मत पर गदगद हुए जा रही थी,,,, और अपने बेटे की बात सुनकर वह किसी बहस पर उतरे बिना ही अपनी साड़ी को धीरे से ऊपर की तरफ उठने लगी और लगातार अपने बेटे की आंखों में आंखें डाल कर उसके जोश को बढ़ाते हुए धीरे-धीरे अपनी कमर तक साड़ी उठा ली और बोली,,,।)

चल अब ठीक से नाप ले ले,,,,।



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(अपनी मां की हरकत देखकर अंकित की हालत एकदम से खराब हो गई थी उसकी सांसे गहरी चल रही थी और उसकी हालत ऐसी हो गई थी मानो जैसे काटो तो खून नहीं वह एकदम जम सा गया था,,, इस समय उसकी मां अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी नंगी गांड को अपने बेटे की आंखों के सामने करती थी लेकिन फिर भी अंकित अपनी मां की नंगी गांड नहीं बल्कि अपनी मां के खूबसूरत चेहरे को ही देख रहा था उसकी आंखों में डूबता चला जा रहा था,,,० तभी उसकी मां दुबारा बोली,,,)

ले ले नाप साड़ी उठा दि हुं,,,,।

(इस बार अपनी मां की आवाज सुनकर जैसे वह होश में आया हो और एकदम से हडबडाते हुए बोला,,)

हां,,, मम्मी,,,,।
(और इतना कहने के साथ फिर से हुआ घुटनों के बल बैठ गया उसकी आंखों के सामने उसकी मां की नंगी गांड थी एकदम मदहोश कर देने वाली गोरी गोरी उसे पर बिल्कुल भी दाग धब्बे नहीं थे एकदम मक्खन मुलायम की तरह चिकनी,,अंकीत का मन तो कर रहा था कि,,, इसी समय अपनी मां की नंगी गांड की फांकों के बीच अपनी नाक डालकर रगड़ दे फिर भी अपने आप को संभालते हुए गहरी सांस लेते हुए वह नाप पट्टी को उसके जांघों के बीचो-बीच रखते हुए वापस पट्टी को दूसरी तरफ घूमाने लगा,,, सुगंधा अपने बेटे की तरफ नजर घुमा कर उसे देख रही थी और अंदर ही अंदर खुश हो रही थी,,,,, लेकिन अंकित अपनी मां की तरफ नहीं देख रहा था उसका पूरा ध्यान अपनी मां की नंगी गोरी गांड पर ही था,,,, अंकित पट्टी को दूसरी तरफ घूमाने लगा और पहले की तरह इस बार भी पट्टी को दूसरी तरफ ले जाते हुए अंकित अपनी मां की गांड से एकदम से फट गया इस बार उसकी गांड नंगी थी बेपर्दा थी बिना साड़ी के थी,,, और जैसे ही सुगंध को एहसास हुआ किसका बेटा उसकी गांड से एकदम लिपट सा गया है उसकी बुर उत्तेजना के मारे फूलने पिचकने लगी,,।

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अंकित की बाहों में तो मानो सारे जहां की खुशी आ गई हो तो पूरी तरह से मदहोश हो क्या और अपनी मां की गांड के बीचों बीच अपनी नाक रखकर गहरी सांस लिया मानो के जैसे अपनी मां की जवानी को उसके बदन से जवानी की खुशबू को निचोड़ कर वह इत्र की तरह अपने अंदर बसा लेना चाहता हो,,, अंकित कि इस हरकत को सुगंधा अपनी आंखों से देख रही थी और गदगद हुए जा रही थी,,,। अंकित की हरकत से उसके बदन में कसमाशाहट हो रही थी क्योंकि वह अपने चेहरे को पूरी तरह से उसकी नंगी गांड पर सटाया हुआ था सुगंधा भी उसी तरह से अपनी साड़ी को कमर तक उठाए खड़ी थी,,, और देखते ही देखते अपनी मां के नितंबों का आनंद लेते हुए अंकित अपनी मां का नाप ले ही लिया,,,,, और इस बार बिना कुछ बोले उठकर खड़ा हो गया लेकिन सुगंधा एक अजीब से एहसास में पूरी तरह से डूबी हुई थी अपने बेटे का खड़े होने का एहसास उसे हुआ ही नहीं,,,, ।


अंकित अपनी मां के चेहरे की तरफ देख रहा था उसकी आंखें बंद थी एक अजीब से ख्याल में डूबी हुई थी अभी भी वह कमर तक साड़ी उठाए हुए खड़ी थी उसकी नंगी गांड देखकर करो अपने पेट में बने हुए तंबू को देखकर अंकित से रहने दिया और भाई कदम आगे होगा और उसका तंबू सीधे जाकर उसकी मां की नंगी गांड से टकरा गया रगड़ खाने लगा एकदम से सुगंधा की आंखें खुली और गहरी सांस लेते हुए एकदम से मदहोश हो गई अपने बेटे के तंबू को अपनी गांड पर रगड़ हुआ महसूस करके वह एक बार फिर से झड़ गई उसकी बुर से मदन रस की बौछार होने लगी और गहरी सांस लेते हुए वह अपनी साड़ी को ऐसे छोड़ दी मानो जैसे खूबसूरत नाटक पर पर्दा गिर गया हो,,,, पर एकदम से मदहोशी भरे स्वर में बोली,,,।

ले लिया नाप,,,,।

हांमम्मी,,,,(और पट्टी में योग्य अंक पर अपना हाथ रखे हुए अपनी मां की तरफ दिखाते हुए बोला)

अब तो तुझे दिक्कत नहीं आएगी ना खरीदने में,,,।

बिल्कुलभी नहीं,,,,।
Apni ma ki chudai karta hua ankit

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चलो जल्दी से ज्यादा देर हो रही है तु 5 मिनट लेट हो चुका है,,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर दीवार में टंगी हुई घड़ी की तरफ देखकर वह भी बोला,,,)

सच में मैं तो लेट हो गया,,,,,।
(इतना कहकर वह भी अपना बैग उठाकर घर से बाहर निकल गया वैसे तो अपनी मां की मदहोश कर देने वाली जवान देखकर उसका जाने का मन नहीं कर रहा था लेकिन फिर भी जाना जरूरी था,,,, और जैसे ही अंकित घर से निकला सुगंधा अपनी साड़ी उठाकर अपनी बुर की हालत को देखने लगी जो की पूरी तरह से पानी मे डूब चुकी थी जल्दी से एक रुमाल से सुगंधा अपनी बुर साफ की और उसे धोकर सूखने के लिए टांग फिर जल्दी से अलमारी में से अपनी एक पेंटिं निकाली और उसे पहन कर स्कूल की तरफ चल दी,,,।
Sugandha aur nupur, dono ki Gand ke maje le liye bhai ne... Maje hi maje hai ankit bhai ke.
 

Blackserpant

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रात को घर के पीछे जो कुछ भी हुआ था उसे लेकर मां बेटे दोनों एक अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे दोनों की मदहोशी की सीमा पार हो चुकी थी,, जिसका एहसास दोनों को सुबह उठने के बाद भी हो रहा था और दोनों उसे एहसास से निकल नहीं पा रहे थे आखिरकार वह पल ही ऐसा मधुर और मादकता से भरा हुआ था कि उनकी जगह कोई भी होता तो शायद उस मदहोशी से कभी भी बाहर निकल नहीं पाता,,,, क्योंकि घर के पीछे जो कुछ भी हुआ था सोची समझी साजिश तो नहीं लेकिन कुछ हद तक इस पर मां बेटे दोनों की मर्जी शामिल थी हालांकि अभी तक दोनों ने मर्यादा की आखिरी रेखा को नहीं लांघे थे लेकिन फिर भी दोनों के बीच बहुत कुछ हो चुका था जो की सामान्य तौर पर एक मां और बेटे के बीच कभी नहीं होना चाहिए,,,,।

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रात की यादें अभी तक सुगंधा की गुलाबी छेद से रीस रही थी,,, सुबह उसकी नींद खुलते ही उसकी नजर सबसे पहले अपने दोनों टांगों के बीच की स्थिति पर गई थी जो कि अभी तक गीली थी शायद रात की उत्तेजना पर मदहोशी इतनी अत्यधिक की अभी तक उसकी दोनों टांगों के बीच की लकीर से बाहर नहीं निकल पाई थी,,, सुगंधा बिस्तर पर संपूर्ण रूप से नग्न गन अवस्था में थी पूरी तरह से नंगी,,, क्योंकि पेशाब करते समय जिस तरह से उसने अपने बेटे के लंड के दर्शन किए थे और वह भी एकदम नजदीक से वह पल सुगंधा को पूरी तरह से बेकाबू बना दिया था,,, एक तो सुगंधा अपने जीवन में अपने पति के लंड के सिवा किसी और के लैंड के दर्शन नहीं की थी और दूसरे किसी के भी लंड के दर्शन की थी तो वह था उसका बेटा जिसके लंड के दर्शन उसने पहली बार जब उसे कमरे में जगाने के लिए गई थी तब की थी और अपनी मदहोशी पर काबू न कर सकने की स्थिति में वह अपने बेटे के लंड को उंगली से स्पर्श भी की थी,,, लेकिन फिर भी उसे दिन भी वह अपने बेटे के लंड को इतनी नजदीक से नहीं देख पाई थी जितना की कल बीती रात को देखी थी,,,।



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वह पल वह नजारा बार-बार उसकी आंखों के सामने घूम रहा था घर के पीछे बैठकर उसका पेशाब करना अपनी बड़ी-बड़ी गांड अपने बेटे को दिखाकर उसे अपनी तरफ आकर्षित करना और उसे खुद भी पेशाब करने के लिए मजबूर करना यह सब सुगंधा के व्यक्तित्व और चरित्र में बिल्कुल भी नहीं आता था लेकिन पिछले कुछ महीनो से उसका बर्ताव और चरित्र दोनों बदल चुका था,,, वह अब अंकित को एक मां के नजरिया से नहीं बल्कि एक प्यासी औरत के नजरिए से देखी थी और अपने बेटे में बेटा नहीं बल्कि एक मर्द को ढूंढती थी जो उसकी प्यास बुझा सके जिसके चलते वह एक मां से एक औरत बन चुकी थी और वैसे भी मां बनने से पहले वह एक औरत ही थी जिसकी कुछ ख्वाहिशें थी जरूरते थी वह भी दूसरी औरतों की तरह जीना चाहती थी अपने बदन की प्यास को बुझाया चाहते थे जिंदगी के हर एक सुख को प्राप्त करना चाहती थी,,,।





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लेकिन अपने पति के देहांत के बाद वह अपने अंदर की औरत को पूरी तरह से मार चुकी थी और एक मां के तौर पर अपना किरदार निभा रही थी लेकिन धीरे-धीरे उसमें बदलाव आना शुरू हो गया उसकी ज़रूरतें भी कर उठने लगी उसके भावनाओं को भी पर लगने लगे और जब उसकी मुलाकात नुपुर से हुई और नूपुर के साथ उसके बेटे के बर्ताव को देखी तब वह भी एक मां को भावना और जरूरत तो के दबाव में दबाकर अपने अंदर की छिपी औरत को बाहर निकाल ली और अपने ही बेटे में एक मर्द को तलाश में लगी अपनी जरूरत को पूरी करने के लिए और धीरे-धीरे इस खेल में आगे बढ़ती चली जा रही थी जिसमें अब उसका बेटा भी साथ दे रहा था,,,।

रात के समय वह कभी सोच नहीं थी कि जब वह पेशाब कर रही होगी तब उसका बेटा भी उसके साथ खड़े होकर पेशाब करेगा और इस तरह की कल्पना तो वह कभी अपने मन में भी नहीं की थी और नहीं कभी इस बारे में सोची थी लेकिन सोच से भी अद्भुत नजारा अपनी आंखों से देख कर वह पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी,,,, बिस्तर पर बैठे-बैठे वह इस बारे में ही सोच रही थी कि क्या हुआ सच में अपने बेटे के साथ पेशाब कर रही थी कि वह सब एक सपना था,,, नहीं नहीं सपना तो बिल्कुल भी नहीं था इसका एहसास तो अभी तक उसके बदन में उसके रोम रोम में बसा हुआ था उसने ही तो अपने बेटे को मजबूर की थी अपने साथ पेशाब करने के लिए और उसका बेटा भी तैयार हो चुका था सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी कि जो कुछ भी वह अपने मन में चाहती थी वैसा ही उसका बेटा भी चाहता है,,, फिर एक जैसी चाहत होने के बावजूद भी उसका बेटा आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है उसकी जगह दूसरा कोई होता तो शायद अब तक आगे बढ़कर अपनी प्यास को बढ़ा ली होती सुगंधा बिस्तर पर बैठे-बैठे यही सोच रही थी कि तभी वह इस बारे में भी सोच कर अपने मन को तसल्ली देने लगी थी अच्छा हो रहा है कि धीरे-धीरे खिलाकर पड़ रहा है इस धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए खेल में भी तो बहुत मजा आ रहा है,,,,।



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बाप रे कितना मोटा और लंबा है मेरे बेटे का लंड,,(: सुगंधा आश्चर्य चकित होते हुए अपने आप से ही बात करते हुए बोली) इतना मोटा और लंबा है कि उसे अपने हाथ से उठाकर खड़ा करना पड़ता है पेशाब करते समय वह किस तरह से ऊपर नीचे करके हिला रहा था वहां पर उसे नजारे को देख कर तुम्हें बेकाबू भेज रही थी मन कर रहा था उसे अपने हाथ में पकड़ लिया और अपने मुंह में डालकर जी भरकर प्यार करूं लेकिन मुझे तो नहीं लगता है कितना मोटा और लंबा लंड मेरे मुंह में ठीक तरह से आ पाएगा,,,(अपने आप से इस तरह की बात करते हुए वह अपनी दोनों टांगों के बीच की अपनी पत्नी दरार को देखते हुए और उसे पर हल्के से अपनी हथेली को रखकर सहलाते हुए मन में बोली) बाप रे इसकी तो खैर नहीं होगी जब मेरा बेटा अपने लंड को इसमें डालेगा देखो तो कितनी मासूम है एकदम मुलायम छोटा सा छेद और मेरे बेटे का लंड एकदम मोटा और लंबा एक बार घुस गया तो बुर का भोसड़ा बना देगा,,, कसम से लेकिन बहुत मजा आएगा जिस दिन मेरा बेटा मेरी बुर में अपना लंड डालेगा मुझे चोदेगा और मुझे चोद कर मादरचोद बन जाएगा,,,।




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यही सब सोच कर सुगंधा मदहोश हुए जा रही थी और उत्तेजित हुए जा रही थी,,,, बदन में जब मदहोशी छाने लगी और उत्तेजना का एहसास होने लगा तो वह दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखने लगी नित्य कम शुरू करने में अभी भी 10 मिनट का समय था इसलिए वह अपनी तानों को धीरे से खोल दी और अपनी हथेली को अपनी बर पर रखकर जोर-जोर से रगड़ना शुरू कर दिया और अपनी बुर को अपनी हथेली में दबोचना शुरू कर दी,,,, उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी वह मदहोश हुई जा रही थी वह एकदम चुदवासी थी इसलिए अपनी दो उंगली को अपनी बुर में एक साथ डालकर उसे अंदर बाहर करके हिलना शुरू कर दे और अपनी आंखों को बंद करके अपने बेटे के बारे में सोचने लगी और कल्पना करने लगी कि जैसे उसकी बुर में खुशी हुई उसकी उंगलियां नहीं बल्कि उसके बेटे का मोटा तगड़ा लंड है और उसका बेटा उसकी दोनों टांगों को खोलकर जोर-जोर से अपनी कमर हिला रहा है,,,।

इस तरह की कल्पना उसे अत्यधिक गर्मी प्रदान कर रही थी वह मदहोशी के परम शिखर पर पहुंच चुकी थी वह एक हाथ से अपनी बड़ी-बड़ी चूची को बारी बारी से दबाते हुए उत्तेजना से अपने लाल-लाल होठों को दांतों से भींचते हुए अपनी दोनों ऊंगलियों को बड़ी तेजी से अपनी बर के अंदर बाहर कर रही थी,,, वह चित्र से जानते थे कि जिस अंग को अपनी बर के अंदर लेना चाहती थी उसकी कमी को उसकी दो उंगलियां क्या तीन चार उंगलियां भी पूरी नहीं कर सकती थी वह जानती थी कि उसकी प्यास उसके बेटे के मोटे तगड़े लंड से ही बुझने वाली है,,, बिस्तर पर वह एकदम से पीठ के बल पसर गई थी अपनी दोनों टांगों को हवा में उठाए हुए बात अपनी उंगलियों को बड़ी तेजी से अंदर बाहर कर रही थी यह नजारा भी बहुत खूब था,,, आखिरकार उसकी उंगलियों ने भी अपनी मेहनत का असर दर्शना शुरू कर दी उंगली की गर्मी और उसकी रगड़ से उसकी बुर की अंदरूनी दीवारें पिघलने लगी उत्तेजना के मारे संकुचाने लगी,,,, और फिर उसका बदन एकदम से अकडने लगा,,, और फिर गरमा गरम लावा का फवारा उसके गुलाबी छेद से बाहर निकलने लगा वह झड़ने लगी मदहोश होने लगी उसकी सांसे ऊपर नीचे होने लगी उसकी सांसों की गति के साथ उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां भी पानी भरे गुब्बारे की तरह छाती पर लहराने लगी,,,,।



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और फिर धीरे-धीरे वह एकदम से शांत होने लगी वासना का तूफान उतरते ही वह अपने कपडो को ढूंढने लगी,,, जिसे वह कमरे में ऐसे ही अपने बदन से एक-एक करके सारे कपड़ों को उतार कर फेंक चुकी थी और बिस्तर पर उसके एक भी कपड़े नहीं थे सब नीचे जमीन पर बिखरे पड़े थे वह धीरे से बिस्तर पर से नीचे उतरी और एक-एक करके अपने कपड़ों को पहनने लगी,,,, पर अपने मन में सोचने लगी कि काश ऐसा दिन होता कि घर में वाहन पूरी तरह से नंगी होकर ही घूमती काम करती तो कितना मजा आ जाता,,, ऐसा सोचते हुए वह अपने कमरे से बाहर आ गई और दिनचर्या में लग गई,,।





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और यही हालत अंकित की भी थी,,,, अपनी मां के साथ पेशाब करने का सुख प्राप्त करके वह कमरे में आते ही अपने सारे कपड़े उतार कर अपनी मां के बारे में गंदे ख्याल मन में सोते हुए अपने लंड को हिलाते हुए मुठ मारने लगा था,,, और सुबह जब उसकी नींद खुली तो देखा कि सुबह मैं भी उसका लंड एकदम टाइट था,,,, रात का नजारा उसकी आंखों के सामने घूमने लगा,,, उसकी मां की बड़ी-बड़ी गांड उसका बैठकर पेशाब करना,, और उसका खुद का यह नजारा देखकर खड़ा हो जाना और फिर अपनी मां के बगल में खड़ा होकर अपने लंड को हिलाते हुए पेशाब करना उसकी मां की दोनों टांगों के बीच से निकलती हुई पेशाब की धार को देखना यह सब बेहद अद्भुत था और इन सब के बारे में सोचकर वह फिर से उत्तेजित होने लगा था और फिर धीरे से अपने कपड़े पहन कर बाथरूम में चला गया और वहां फिर से मुथ मारने लगा,,,,।




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चाय नाश्ता करके तृप्ति जा चुकी थी अंकित भी जाने की तैयारी में था वह रसोई घर में नाश्ते के लिए पहुंच चुका था लेकिन अपनी मां से नजरे मिला नहीं से कतरा रहा था और यही हाल सुगंधा का भी था वह भी अपने बेटे से नजर नहीं मिला पा रही थी,, दोनों एक दूसरे से बात तो करना चाहते थे लेकिन रात को जो कुछ भी हुआ था उससे बेहद शर्मिंदा भी थे हालांकि जिस तरह के हालात थे ऐसे में दोनों को शर्मिंदा नहीं होना चाहिए था लेकिन फिर भी दोनों के बीच मां बेटे का रिश्ता था इसलिए इस रिश्ते का लिहाज करते हुए दोनों को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी,,,।


अंकित रसोई घर में आकर वापस चला क्या हुआ अपनी मां से कुछ बोल नहीं पाया और सुगंधा भी उसे जाते हुए देखते रह गई वह भी उसे रोक नहीं पाई और फिर अपने मन में सोचने लगी कि वह यह क्या कर रही है,,, अगर ऐसा ही चला रहा तो वह अपनी ख्वाहिश को कभी नहीं पूरी कर पाएंगी,,, ऐसा कैसे हो सकता है आखिरकार वह अपने बेटे से इतना अत्यधिक तो खुल चुकी थी,,, और ऐसा तो था नहीं की वह पहली बार अपने बेटे की आंखों के सामने पेशाब कर रही हो ऐसा तो बहुत बार हो चुका था,,, हां नया हुआ था तो यही कि उसके साथ उसका बेटा भी पेशाब कर रहा था,,,, और शायद इसीलिए शर्मा कर उसका बेटा चला गया लेकिन वह भी तो कुछ कर नहीं पाई वह भी तो उसे रोक नहीं पाई,,,,।



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जाने दो जाता है तो,,, किसी काम का नहीं है इसकी जगह कोई और होता है तो अब तक उसकी ख्वाहिश पूरी कर चुका होता इतना कुछ होने के बावजूद भी कुछ समझ नहीं पा रहा है,,,(सुगंधा इस तरह से अपने आप से ही बात कर रही थी कि तभी उसके मन में ख्याल आया और वह फिर से अपने आप से ही बोली)

नहीं नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ भी नहीं हो पाएगा,,, अंकित को भी दूसरे लड़कों की तरह थोड़ा तेज होना चाहिए जैसा कि राहुल है अपनी मां के साथ खुले बाजार में भी कहीं भी हाथ रख देता है लेकिन अंकित ऐसा नहीं कर पता अंदर से डरता हूं उसे भी थोड़ा हिम्मत वाला होना चाहिए,,,, लेकिन अंकित तो पहले बहुत शर्माता था धीरे-धीरे उसने बदलाव तो आया है लेकिन अभी इतना खुल नहीं पाया है कि उसके साथ कुछ भी कर सके लेकिन वह भी तो पहले ऐसी नहीं थी संस्कारी थी मान मर्यादा वाली थी लेकिन अब जरूर बदल गई है लेकिन ऐसा भी तो नहीं की एकदम रंडी की तरह अपने बेटे के सामने अपने टांगे खोल दो और बोलो अपने लंड को डाल दे बल्कि है तो अंकित को समझना चाहिए एक औरत क्या चाहती है उसके इशारे को समझना चाहिए उसके सामने कपड़े उतारती है पेशाब करती है गंदी गंदी बातें करती है तो इतना तो समझना चाहिए कि औरत को क्या चाहिए लेकिन एकदम बेवकूफ की तरह रहता है,,,।



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लेकिन अगर अंकित ऐसा है तो मुझे अपने आप को बदलना होगा अगर मुझे अपनी ख्वाहिश को पूरी करनी है तो मुझे ही आगे कदम उठाना होगा वरना मेरी ख्वाहिश फिर से दबी की तभी रह जाएगी और अगर ऐसा ना हो पाया तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि बाहर किसी के साथ संबंध बन जाए और बदनामी हो जाए नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगी मैं अपने लिए अपने बेटे को ही तैयार करूंगी और इसके लिए मुझे मजबूर बना होगा बेशर्म बनना होगा,,,।

(नाश्ता तैयार करते हुए सुगंधा यही सब सो रही थी और वह जानती थी कि अब उसे भी पहल करना पड़ेगा वरना ऐसे ही चलता रहेगा,,,, इसलिए अंकित को आवाज देते हुए बोली,,,,)

अरे अंकित,,, कहां चला गया,,,, जल्दी से आ नाश्ता कर ले नाश्ता तैयार है,,,।
(अंकित शर्मा रहा था अपनी मां से नजर नहीं मिला पा रहा था लेकिन अपनी मां की आवाज सुनकर उसमें थोड़ी हिम्मत आई और वहां भी एकदम से जाकर रसोई घर के दरवाजे पर खड़ा हो गया और बोला,,,)

क्या हुआ मम्मी,,,?



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अरे तू चल क्यों गया नाश्ता तैयार है चल जल्दी से नाश्ता कर ले देर हो रही है,,,।

ठीक है मम्मी मैं तो बाथरूम करने के लिए चला गया था,,,,(अंकित जानबूझकर बाथरूम काबहाना करते हुए बोला क्योंकि वह अपनी मां से ऐसा नहीं जाताना चाहता था कि वह कल वाले वाक्या की वजह से शर्मिंदगी महसूस कर रहा है,,,,)

चल कोई बात नहीं जल्दी से नाश्ता कर ले,,,।

(और फिर सहज होते हुए अंकित वही रसोई घर में पड़ी हुई कुर्सी पर बैठकर नाश्ता करने लगा,,,,,,, अंकित भी अपनी मां से बात करना चाहता था लेकिन शर्मा रहा था सुगंध भी बात की शुरुआत करना चाहती थी और ऐसी शुरुआत जो एकदम गरमा गरम हो क्योंकि वह जानती थी कि अब उसे ही पहल करना पड़ेगा उसे ही आगे बढ़ना होगा तभी वह अपनी मंजिल तक पहुंच पाएगी वरना रास्ते में भटकती रहेगी इसलिए वह कुछ देर बाद बोली,,,।)



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अंकित एक बात पूछूं सच सच बताना,,,।(रोटी बनाते हुए अंकित की तरफ देखे बिना बोली,,)

हां हां पूछो क्या हुआ,,,?

तेरी तबीयत तो ठीक रहती है ना,,,,।


ऐसा क्यों पूछ रही हो मेरी तबीयत तो हमेशा ठीक रहती है,,,।

देखा सच-सच बताना तुझे मेरी कसम बिल्कुल भी मुझे बहकाने की कोशिश मत करना,,,,।


मम्मी तुम ऐसा क्यों बोल रही हो मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है और मेरी तबियत एकदम ठीक है मुझे कुछ नहीं हुआ है,,,,।

मुझे ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता तो सामान्य दिखता है लेकिन है नहीं,,,,।


लेकिन तुम मम्मी ऐसा क्यों कह रही हो,,,,?


कल रात की वजह से,,,,।

कल रात की वजह से मैं कुछ समझा नहीं,,,,(नाश्ता करते-करते रात का जिक्र होते ही अंकित एकदम से रुको क्या उसका दिल जोरो से धड़कने लगा)


अंकित एक मां होने के नाते मुझे इस तरह की बातें तो करना नहीं चाहिए लेकिन फिर भी तेरे स्वास्थ्य का सवाल है इसलिए मुझे बोलना पड़ रहा है,,,।

लेकिन हुआ क्या है मम्मी कुछ तो बताओ,,,।

तेरा वो,,,(अंकित की तरफ घूमकर उंगली से उसकी दोनों टांगों के बीच ईसारा करते हुए) काफी मोटा और लंबा है,,,.

(अपनी मां के कहने का मतलब को अंकित समझ चुका था उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी और बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी थी,,,,)

तुम किस बारे में बात कर रही हो मम्मी,,,(अंकित समझ गया था कि उसकी मां क्या कहना चाह रही है और किसके बारे में बात कर रही है लेकिन फिर भी वह अनजान बनता हुआ बोला,,,)

तेरे उसके बारे में,,,(फिर से उंगली से उसकी दोनों टांगों के बीच ईसारा करते हुए बोली,,,)


ऐसा नहीं है मम्मी सबका ऐसा ही होता होगा,,,।(अंकित सहज बनने का नाटक करते हुए नाश्ता करने लगा और बोला)


नहीं नहीं सबका ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता,,,,।


तुमको कैसे मालूम मम्मी तुम क्या सबको देखती रहती हो क्या,,,?

(अंकित शरारत करते हुए बोला और उसकी बात सुनकर अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोली,,,)

तुझे क्या मैं दूसरी औरतों की तरह लगती हूं क्या जो सबका देखती फिरू,,,, मैं जानती हूं इसलिए कह रही हूं क्योंकि मैं तेरे पापा का देखा है,,,(सुगंधा एकदम से बेशर्म बनते हुए बोली और उसकी बात सुनकर अंकित के लंड का तनाव बढ़ने लगा वह आश्चर्य से अपनी मां की तरफ देखने लगा और बोला,,,)

उनका भी तो बड़ा होगा ना मेरी तरह आखिरकार मैं उनका बेटा जो हूं,,,,(अपनी मां की बात सुनकर अंकित के तन बदन में मदहोशी छाने लगी थी वह जानता था कि इस तरह की बात करने पर उसकी मां बिल्कुल भी नाराज नहीं होगी इसलिए वह भी मौके का फायदा उठाते हुए बोल रहा था,,,)

वह तुम्हें जानती हूं लेकिन मैं यह भी जानती हूं कि तेरे पापा का तेरे जैसा बिल्कुल भी नहीं था,,,।

तो कैसा था पापा का,,,?(अंकित अपनी मां की तरफ देखते हुए बोला ,,)

तेरे से आधा भी नहीं था और एकदम पतला,,,,।(सुगंधा अपने बेटे से हकीकत बयां करते हुए बोली वह सच बोल रही थी क्योंकि भले ही जब तक उसके पति जीवित थे वह अपने पति से ही शरीर सुख प्राप्त करती रही और इस बारे में उसे बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था कि उसके पति से भी मोटा और लंबा लंड दूसरों का होता है और दूसरों के बारे में न जाने की वजह से ही वह अपने पति से खुश थी लेकिन जब से वह अपने बेटे का लंड देखी थी तब से वह एकदम हैरान थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि लंड इतना मोटा और लंबा भी होता है अपनी मां की बात सुनकर अंकित वास्तव में आश्चर्य से भर गया क्योंकि वैसे यकीन नहीं हो रहा था कि तुम खूबसूरत जवानी से भरी हुई औरत की बुर में उंगली जितना लंड अंदर बाहर जाता होगा,,,,)

क्या बात कर रही हो मम्मी ऐसा कैसे हो सकता है,,, में तो समझता था की सब का मेरे जैसा ही होता होगा,,,,।

नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है जब तक मैं तेरा नहीं देखी थी मुझे भी ऐसा लगता था कि तेरे पापा जैसा ही सब था होता होगा लेकिन तेरा देख कर तो मेरे होश उड़ गए हैं तेरा तो कुछ ज्यादा ही लंबा और मोटा है क्या तुझे दिक्कत नहीं होती अगर होती है तो मुझे बता दे डॉक्टर से मिल लेते हैं दवा ले लेते हैं,,,,।

लेकिन कैसी दिक्कत मुझे तो कोई दिक्कत नहीं आती,,,,,।


नहीं नहीं मैं कल रात तेरी परेशानी देखी थी तेरा मोटा और लंबा लंड कुछ ज्यादा ही वजनदार है तभी तो नीचे झुक जाता है तुझे हाथ से उठाना पड़ता है,,,(एकदम मासूमियत भरा चेहरा बनाकर वह अपने बेटे से बात कर रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे सच में वह अपने बेटे से उसकी परेशानी के बारे में बात कर रही है बल्कि वह उसकी परेशानी नहीं बल्कि इस तरह की बात का जिक्र छेड़कर वह अपने लिए रास्ता बना रही थी,,,,)

नहीं मम्मी ऐसा कुछ भी नहीं है वह तो नेचुरल है,,,(अंकित भी एकदम मदहोश होता हुआ बोला,,, इस तरह की बातें करके सुगंधा की भी बुर पानी छोड़ रही थी,,,)


नेचुरल कैसे हैं तो उसे हाथ का सहारा देकर पकड़े हुए था,,,, पेशाब करते समय क्या तुझे बिल्कुल भी दिक्कत पेश नहीं आती उसकी वजन की वजह से,,,,।(इस बार वह साड़ी के ऊपर से अपनी बुर को खुजलाते हुए बोली,,, पेशावर जानबूझकर की थी अपने बेटे का ध्यान अपनी बुर के ऊपर केंद्रित करने के लिए और ऐसा ही हुआ था अंकित अपनी मां की हरकत को देखकर मत हो गया था और जवाब में वह भी पेट में बने तंबू को अपने हाथ से पकड़ कर दबाने की कोशिश करते हुए बोला,,,)


नहीं नहीं मुझे तो बिल्कुल भी दिक्कत नहीं आती बल्कि मुझे तो अच्छा लगता है उसकी मोटाई और लंबाई की वजह से भारी-भारी सा लगता है और सच कहूं तो हमेशा उसे पकड़ना नहीं पड़ता जब एकदम खड़ा हो जाता है तो बिना किसी सहारे के ही एकदम खड़ा ही रहता है,,,,,।(अंकित भी एकदम बेशर्म बनता हुआ बोल और उसकी यह बात सुनकर सुगंधा इतनी मदहोश हो गई कि उसकी बुर से मदन दन रस की बूंद टपक पड़ी,,,, सुगंधा उसे देखते ही रह गई मन ही मनुष्य अपने बेटे के लंड पर उसकी मर्दानगी पर गर्व हो रहा था,,, नाश्ता करके अंकित कुर्सी पर से उठकर खड़ा हो गया था और झूठे बर्तन को वह किचन के ऊपर रखने के लिए आया तब उसकी मां एकदम मत हो चुकी थी यार एकदम से उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच ली और अपनी बाहों में भर ली ऐसा करने से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां से उसका सीना एकदम से सट गया और एकदम मदहोश होते हुए बिना वक्त गंवाए,,, अपने लाल-लाल होठों को अपने बेटे के होठों पर रखकर चुंबन करने लगी उसका बेटा को समझ पाता है इससे पहले ही वह पागलों की तरह अपने बेटे के होठों को चूसना शुरू कर दी थी,,,, पहले तो अंकित एकदम से कुछ समझ ही नहीं पाया लेकिन जैसे उसे एहसास हुआ कि उसकी मां क्या कर रही है वह अपने दोनों हाथों को तुरंत अपनी मां के निकम दो पर रख दिया और उसे हल्के से दबाने का शुभ प्राप्त करने लगा और अपने पेट मैं बने तंबू को भी आगे की तरफ बढ़कर अपनी मां की बुर पर साड़ी के ऊपर से ही उसे पर दबाव बनाने लगा जिसका एहसास सुगंधा को भी हो रहा था सुगंधा एकदम मद होश चुकी थी,,,,

यह चुंबन आगे बढ़ता है इससे पहले ही अंकित ने जो झूठा बर्तन किचन पर रखा था वह ठीक से न रखने की वजह से एकदम से नीचे गिर गया और उसकी आवाज होते हैं सुगंधा की तंद्रा भंग हो गई,,, और एकदम से वह होश में आ गई और अपनी बाहों से अपने बेटे को धीरे से अलग करते हुए बोली,,,।


मुझे तेरी बहुत चिंता हो रही थी जब से कल में तुझे पेशाब करते हुए देखी हूं तब से उसकी लंबाई और मोटाई को लेकर मुझे चिंता हो रही थी कि कहीं मेरा बेटा परेशानी में तो नहीं है मैं रात भर सो नहीं पाई हूं,,,,,, तेरी बात सुनकर मुझे राहत हुई कि तू कोई परेशानी में नहीं है सच में तुझे कोई परेशानी नहीं है ना,,,,।


बिल्कुल भी नहीं मम्मी मैं एकदम ठीक हूं,,,।

मेरा राजा बेटा,,,(गाल को सहलाते हुए) अब जा बहुत देर हो रही है मुझे भी जाना है,,,.

ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहकर अपने मन में यह सोचते हुए अंकित रसोई घर से बाहर निकल गया कि वह जानता है कि रात भर उसकी मां क्या सोचती रही उसके लंड़के के बारे में वह चिंतित नहीं थी बल्कि मत हो चुकी थी उसका लंड देखकर और अंकित मन ही मन बर्तन को गाली देने लगा की सलाह सही समय पर गलत जगह गिर गया अगर कुछ देर और नहीं गिरा होता तो शायद कुछ और हो जाता क्योंकि वह जानता था कि उसकी मां भी पूरी मदहोश हो चुकी थी पागल हो चुकी थी,,,,,,,और वह अपने मन में ऐसा सोचते हुए अपना बेग उठाकर स्कूल के लिए निकल गया,,,।

उसके जाते ही सुगंधा अपनी साड़ी उठाकर अपनी एक बर की स्थिति को देखने लगी पूरी तरह से पानी पानी हो चुकी थी एकदम गिरी और उसे साफ एहसास हो रहा था कि उसके बेटे के पेट में बना तंभूत सीधे उसकी बुर पर ठोकर मार रहा था अगर साड़ी और उसके बेटे का पेंट दोनों के बीच ना होता तो उसका लंड उसकी बुर में घुस गया होता,,,, सुगंधा को भी देर हो रहा था लेकिन यह अपने पहले चुंबन से वह काफी प्रभावित और उत्तेजित हो चुकी थी जिंदगी में पहली बार वह इस तरह की हिमाकत की थी उसे बहुत अच्छा लग रहा था उसके बदन में अभी भी उत्तेजना की लहर उठ रही थी,,,, इस तरह का चुंबन कितना आनंद देता है आज उसे एहसास हो रहा था,,,।

वह जल्दी से तैयार होकर स्कूल के निकल गई,,,।
Kya bat hai
 

Blackserpant

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रात को घर के पीछे जो कुछ भी हुआ था उसे लेकर मां बेटे दोनों एक अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे दोनों की मदहोशी की सीमा पार हो चुकी थी,, जिसका एहसास दोनों को सुबह उठने के बाद भी हो रहा था और दोनों उसे एहसास से निकल नहीं पा रहे थे आखिरकार वह पल ही ऐसा मधुर और मादकता से भरा हुआ था कि उनकी जगह कोई भी होता तो शायद उस मदहोशी से कभी भी बाहर निकल नहीं पाता,,,, क्योंकि घर के पीछे जो कुछ भी हुआ था सोची समझी साजिश तो नहीं लेकिन कुछ हद तक इस पर मां बेटे दोनों की मर्जी शामिल थी हालांकि अभी तक दोनों ने मर्यादा की आखिरी रेखा को नहीं लांघे थे लेकिन फिर भी दोनों के बीच बहुत कुछ हो चुका था जो की सामान्य तौर पर एक मां और बेटे के बीच कभी नहीं होना चाहिए,,,,।

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रात की यादें अभी तक सुगंधा की गुलाबी छेद से रीस रही थी,,, सुबह उसकी नींद खुलते ही उसकी नजर सबसे पहले अपने दोनों टांगों के बीच की स्थिति पर गई थी जो कि अभी तक गीली थी शायद रात की उत्तेजना पर मदहोशी इतनी अत्यधिक की अभी तक उसकी दोनों टांगों के बीच की लकीर से बाहर नहीं निकल पाई थी,,, सुगंधा बिस्तर पर संपूर्ण रूप से नग्न गन अवस्था में थी पूरी तरह से नंगी,,, क्योंकि पेशाब करते समय जिस तरह से उसने अपने बेटे के लंड के दर्शन किए थे और वह भी एकदम नजदीक से वह पल सुगंधा को पूरी तरह से बेकाबू बना दिया था,,, एक तो सुगंधा अपने जीवन में अपने पति के लंड के सिवा किसी और के लैंड के दर्शन नहीं की थी और दूसरे किसी के भी लंड के दर्शन की थी तो वह था उसका बेटा जिसके लंड के दर्शन उसने पहली बार जब उसे कमरे में जगाने के लिए गई थी तब की थी और अपनी मदहोशी पर काबू न कर सकने की स्थिति में वह अपने बेटे के लंड को उंगली से स्पर्श भी की थी,,, लेकिन फिर भी उसे दिन भी वह अपने बेटे के लंड को इतनी नजदीक से नहीं देख पाई थी जितना की कल बीती रात को देखी थी,,,।



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वह पल वह नजारा बार-बार उसकी आंखों के सामने घूम रहा था घर के पीछे बैठकर उसका पेशाब करना अपनी बड़ी-बड़ी गांड अपने बेटे को दिखाकर उसे अपनी तरफ आकर्षित करना और उसे खुद भी पेशाब करने के लिए मजबूर करना यह सब सुगंधा के व्यक्तित्व और चरित्र में बिल्कुल भी नहीं आता था लेकिन पिछले कुछ महीनो से उसका बर्ताव और चरित्र दोनों बदल चुका था,,, वह अब अंकित को एक मां के नजरिया से नहीं बल्कि एक प्यासी औरत के नजरिए से देखी थी और अपने बेटे में बेटा नहीं बल्कि एक मर्द को ढूंढती थी जो उसकी प्यास बुझा सके जिसके चलते वह एक मां से एक औरत बन चुकी थी और वैसे भी मां बनने से पहले वह एक औरत ही थी जिसकी कुछ ख्वाहिशें थी जरूरते थी वह भी दूसरी औरतों की तरह जीना चाहती थी अपने बदन की प्यास को बुझाया चाहते थे जिंदगी के हर एक सुख को प्राप्त करना चाहती थी,,,।





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लेकिन अपने पति के देहांत के बाद वह अपने अंदर की औरत को पूरी तरह से मार चुकी थी और एक मां के तौर पर अपना किरदार निभा रही थी लेकिन धीरे-धीरे उसमें बदलाव आना शुरू हो गया उसकी ज़रूरतें भी कर उठने लगी उसके भावनाओं को भी पर लगने लगे और जब उसकी मुलाकात नुपुर से हुई और नूपुर के साथ उसके बेटे के बर्ताव को देखी तब वह भी एक मां को भावना और जरूरत तो के दबाव में दबाकर अपने अंदर की छिपी औरत को बाहर निकाल ली और अपने ही बेटे में एक मर्द को तलाश में लगी अपनी जरूरत को पूरी करने के लिए और धीरे-धीरे इस खेल में आगे बढ़ती चली जा रही थी जिसमें अब उसका बेटा भी साथ दे रहा था,,,।

रात के समय वह कभी सोच नहीं थी कि जब वह पेशाब कर रही होगी तब उसका बेटा भी उसके साथ खड़े होकर पेशाब करेगा और इस तरह की कल्पना तो वह कभी अपने मन में भी नहीं की थी और नहीं कभी इस बारे में सोची थी लेकिन सोच से भी अद्भुत नजारा अपनी आंखों से देख कर वह पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी,,,, बिस्तर पर बैठे-बैठे वह इस बारे में ही सोच रही थी कि क्या हुआ सच में अपने बेटे के साथ पेशाब कर रही थी कि वह सब एक सपना था,,, नहीं नहीं सपना तो बिल्कुल भी नहीं था इसका एहसास तो अभी तक उसके बदन में उसके रोम रोम में बसा हुआ था उसने ही तो अपने बेटे को मजबूर की थी अपने साथ पेशाब करने के लिए और उसका बेटा भी तैयार हो चुका था सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी कि जो कुछ भी वह अपने मन में चाहती थी वैसा ही उसका बेटा भी चाहता है,,, फिर एक जैसी चाहत होने के बावजूद भी उसका बेटा आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है उसकी जगह दूसरा कोई होता तो शायद अब तक आगे बढ़कर अपनी प्यास को बढ़ा ली होती सुगंधा बिस्तर पर बैठे-बैठे यही सोच रही थी कि तभी वह इस बारे में भी सोच कर अपने मन को तसल्ली देने लगी थी अच्छा हो रहा है कि धीरे-धीरे खिलाकर पड़ रहा है इस धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए खेल में भी तो बहुत मजा आ रहा है,,,,।



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बाप रे कितना मोटा और लंबा है मेरे बेटे का लंड,,(: सुगंधा आश्चर्य चकित होते हुए अपने आप से ही बात करते हुए बोली) इतना मोटा और लंबा है कि उसे अपने हाथ से उठाकर खड़ा करना पड़ता है पेशाब करते समय वह किस तरह से ऊपर नीचे करके हिला रहा था वहां पर उसे नजारे को देख कर तुम्हें बेकाबू भेज रही थी मन कर रहा था उसे अपने हाथ में पकड़ लिया और अपने मुंह में डालकर जी भरकर प्यार करूं लेकिन मुझे तो नहीं लगता है कितना मोटा और लंबा लंड मेरे मुंह में ठीक तरह से आ पाएगा,,,(अपने आप से इस तरह की बात करते हुए वह अपनी दोनों टांगों के बीच की अपनी पत्नी दरार को देखते हुए और उसे पर हल्के से अपनी हथेली को रखकर सहलाते हुए मन में बोली) बाप रे इसकी तो खैर नहीं होगी जब मेरा बेटा अपने लंड को इसमें डालेगा देखो तो कितनी मासूम है एकदम मुलायम छोटा सा छेद और मेरे बेटे का लंड एकदम मोटा और लंबा एक बार घुस गया तो बुर का भोसड़ा बना देगा,,, कसम से लेकिन बहुत मजा आएगा जिस दिन मेरा बेटा मेरी बुर में अपना लंड डालेगा मुझे चोदेगा और मुझे चोद कर मादरचोद बन जाएगा,,,।




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यही सब सोच कर सुगंधा मदहोश हुए जा रही थी और उत्तेजित हुए जा रही थी,,,, बदन में जब मदहोशी छाने लगी और उत्तेजना का एहसास होने लगा तो वह दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखने लगी नित्य कम शुरू करने में अभी भी 10 मिनट का समय था इसलिए वह अपनी तानों को धीरे से खोल दी और अपनी हथेली को अपनी बर पर रखकर जोर-जोर से रगड़ना शुरू कर दिया और अपनी बुर को अपनी हथेली में दबोचना शुरू कर दी,,,, उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी वह मदहोश हुई जा रही थी वह एकदम चुदवासी थी इसलिए अपनी दो उंगली को अपनी बुर में एक साथ डालकर उसे अंदर बाहर करके हिलना शुरू कर दे और अपनी आंखों को बंद करके अपने बेटे के बारे में सोचने लगी और कल्पना करने लगी कि जैसे उसकी बुर में खुशी हुई उसकी उंगलियां नहीं बल्कि उसके बेटे का मोटा तगड़ा लंड है और उसका बेटा उसकी दोनों टांगों को खोलकर जोर-जोर से अपनी कमर हिला रहा है,,,।

इस तरह की कल्पना उसे अत्यधिक गर्मी प्रदान कर रही थी वह मदहोशी के परम शिखर पर पहुंच चुकी थी वह एक हाथ से अपनी बड़ी-बड़ी चूची को बारी बारी से दबाते हुए उत्तेजना से अपने लाल-लाल होठों को दांतों से भींचते हुए अपनी दोनों ऊंगलियों को बड़ी तेजी से अपनी बर के अंदर बाहर कर रही थी,,, वह चित्र से जानते थे कि जिस अंग को अपनी बर के अंदर लेना चाहती थी उसकी कमी को उसकी दो उंगलियां क्या तीन चार उंगलियां भी पूरी नहीं कर सकती थी वह जानती थी कि उसकी प्यास उसके बेटे के मोटे तगड़े लंड से ही बुझने वाली है,,, बिस्तर पर वह एकदम से पीठ के बल पसर गई थी अपनी दोनों टांगों को हवा में उठाए हुए बात अपनी उंगलियों को बड़ी तेजी से अंदर बाहर कर रही थी यह नजारा भी बहुत खूब था,,, आखिरकार उसकी उंगलियों ने भी अपनी मेहनत का असर दर्शना शुरू कर दी उंगली की गर्मी और उसकी रगड़ से उसकी बुर की अंदरूनी दीवारें पिघलने लगी उत्तेजना के मारे संकुचाने लगी,,,, और फिर उसका बदन एकदम से अकडने लगा,,, और फिर गरमा गरम लावा का फवारा उसके गुलाबी छेद से बाहर निकलने लगा वह झड़ने लगी मदहोश होने लगी उसकी सांसे ऊपर नीचे होने लगी उसकी सांसों की गति के साथ उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां भी पानी भरे गुब्बारे की तरह छाती पर लहराने लगी,,,,।



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और फिर धीरे-धीरे वह एकदम से शांत होने लगी वासना का तूफान उतरते ही वह अपने कपडो को ढूंढने लगी,,, जिसे वह कमरे में ऐसे ही अपने बदन से एक-एक करके सारे कपड़ों को उतार कर फेंक चुकी थी और बिस्तर पर उसके एक भी कपड़े नहीं थे सब नीचे जमीन पर बिखरे पड़े थे वह धीरे से बिस्तर पर से नीचे उतरी और एक-एक करके अपने कपड़ों को पहनने लगी,,,, पर अपने मन में सोचने लगी कि काश ऐसा दिन होता कि घर में वाहन पूरी तरह से नंगी होकर ही घूमती काम करती तो कितना मजा आ जाता,,, ऐसा सोचते हुए वह अपने कमरे से बाहर आ गई और दिनचर्या में लग गई,,।





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और यही हालत अंकित की भी थी,,,, अपनी मां के साथ पेशाब करने का सुख प्राप्त करके वह कमरे में आते ही अपने सारे कपड़े उतार कर अपनी मां के बारे में गंदे ख्याल मन में सोते हुए अपने लंड को हिलाते हुए मुठ मारने लगा था,,, और सुबह जब उसकी नींद खुली तो देखा कि सुबह मैं भी उसका लंड एकदम टाइट था,,,, रात का नजारा उसकी आंखों के सामने घूमने लगा,,, उसकी मां की बड़ी-बड़ी गांड उसका बैठकर पेशाब करना,, और उसका खुद का यह नजारा देखकर खड़ा हो जाना और फिर अपनी मां के बगल में खड़ा होकर अपने लंड को हिलाते हुए पेशाब करना उसकी मां की दोनों टांगों के बीच से निकलती हुई पेशाब की धार को देखना यह सब बेहद अद्भुत था और इन सब के बारे में सोचकर वह फिर से उत्तेजित होने लगा था और फिर धीरे से अपने कपड़े पहन कर बाथरूम में चला गया और वहां फिर से मुथ मारने लगा,,,,।




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चाय नाश्ता करके तृप्ति जा चुकी थी अंकित भी जाने की तैयारी में था वह रसोई घर में नाश्ते के लिए पहुंच चुका था लेकिन अपनी मां से नजरे मिला नहीं से कतरा रहा था और यही हाल सुगंधा का भी था वह भी अपने बेटे से नजर नहीं मिला पा रही थी,, दोनों एक दूसरे से बात तो करना चाहते थे लेकिन रात को जो कुछ भी हुआ था उससे बेहद शर्मिंदा भी थे हालांकि जिस तरह के हालात थे ऐसे में दोनों को शर्मिंदा नहीं होना चाहिए था लेकिन फिर भी दोनों के बीच मां बेटे का रिश्ता था इसलिए इस रिश्ते का लिहाज करते हुए दोनों को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी,,,।


अंकित रसोई घर में आकर वापस चला क्या हुआ अपनी मां से कुछ बोल नहीं पाया और सुगंधा भी उसे जाते हुए देखते रह गई वह भी उसे रोक नहीं पाई और फिर अपने मन में सोचने लगी कि वह यह क्या कर रही है,,, अगर ऐसा ही चला रहा तो वह अपनी ख्वाहिश को कभी नहीं पूरी कर पाएंगी,,, ऐसा कैसे हो सकता है आखिरकार वह अपने बेटे से इतना अत्यधिक तो खुल चुकी थी,,, और ऐसा तो था नहीं की वह पहली बार अपने बेटे की आंखों के सामने पेशाब कर रही हो ऐसा तो बहुत बार हो चुका था,,, हां नया हुआ था तो यही कि उसके साथ उसका बेटा भी पेशाब कर रहा था,,,, और शायद इसीलिए शर्मा कर उसका बेटा चला गया लेकिन वह भी तो कुछ कर नहीं पाई वह भी तो उसे रोक नहीं पाई,,,,।



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जाने दो जाता है तो,,, किसी काम का नहीं है इसकी जगह कोई और होता है तो अब तक उसकी ख्वाहिश पूरी कर चुका होता इतना कुछ होने के बावजूद भी कुछ समझ नहीं पा रहा है,,,(सुगंधा इस तरह से अपने आप से ही बात कर रही थी कि तभी उसके मन में ख्याल आया और वह फिर से अपने आप से ही बोली)

नहीं नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ भी नहीं हो पाएगा,,, अंकित को भी दूसरे लड़कों की तरह थोड़ा तेज होना चाहिए जैसा कि राहुल है अपनी मां के साथ खुले बाजार में भी कहीं भी हाथ रख देता है लेकिन अंकित ऐसा नहीं कर पता अंदर से डरता हूं उसे भी थोड़ा हिम्मत वाला होना चाहिए,,,, लेकिन अंकित तो पहले बहुत शर्माता था धीरे-धीरे उसने बदलाव तो आया है लेकिन अभी इतना खुल नहीं पाया है कि उसके साथ कुछ भी कर सके लेकिन वह भी तो पहले ऐसी नहीं थी संस्कारी थी मान मर्यादा वाली थी लेकिन अब जरूर बदल गई है लेकिन ऐसा भी तो नहीं की एकदम रंडी की तरह अपने बेटे के सामने अपने टांगे खोल दो और बोलो अपने लंड को डाल दे बल्कि है तो अंकित को समझना चाहिए एक औरत क्या चाहती है उसके इशारे को समझना चाहिए उसके सामने कपड़े उतारती है पेशाब करती है गंदी गंदी बातें करती है तो इतना तो समझना चाहिए कि औरत को क्या चाहिए लेकिन एकदम बेवकूफ की तरह रहता है,,,।



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लेकिन अगर अंकित ऐसा है तो मुझे अपने आप को बदलना होगा अगर मुझे अपनी ख्वाहिश को पूरी करनी है तो मुझे ही आगे कदम उठाना होगा वरना मेरी ख्वाहिश फिर से दबी की तभी रह जाएगी और अगर ऐसा ना हो पाया तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि बाहर किसी के साथ संबंध बन जाए और बदनामी हो जाए नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगी मैं अपने लिए अपने बेटे को ही तैयार करूंगी और इसके लिए मुझे मजबूर बना होगा बेशर्म बनना होगा,,,।

(नाश्ता तैयार करते हुए सुगंधा यही सब सो रही थी और वह जानती थी कि अब उसे भी पहल करना पड़ेगा वरना ऐसे ही चलता रहेगा,,,, इसलिए अंकित को आवाज देते हुए बोली,,,,)

अरे अंकित,,, कहां चला गया,,,, जल्दी से आ नाश्ता कर ले नाश्ता तैयार है,,,।
(अंकित शर्मा रहा था अपनी मां से नजर नहीं मिला पा रहा था लेकिन अपनी मां की आवाज सुनकर उसमें थोड़ी हिम्मत आई और वहां भी एकदम से जाकर रसोई घर के दरवाजे पर खड़ा हो गया और बोला,,,)

क्या हुआ मम्मी,,,?



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अरे तू चल क्यों गया नाश्ता तैयार है चल जल्दी से नाश्ता कर ले देर हो रही है,,,।

ठीक है मम्मी मैं तो बाथरूम करने के लिए चला गया था,,,,(अंकित जानबूझकर बाथरूम काबहाना करते हुए बोला क्योंकि वह अपनी मां से ऐसा नहीं जाताना चाहता था कि वह कल वाले वाक्या की वजह से शर्मिंदगी महसूस कर रहा है,,,,)

चल कोई बात नहीं जल्दी से नाश्ता कर ले,,,।

(और फिर सहज होते हुए अंकित वही रसोई घर में पड़ी हुई कुर्सी पर बैठकर नाश्ता करने लगा,,,,,,, अंकित भी अपनी मां से बात करना चाहता था लेकिन शर्मा रहा था सुगंध भी बात की शुरुआत करना चाहती थी और ऐसी शुरुआत जो एकदम गरमा गरम हो क्योंकि वह जानती थी कि अब उसे ही पहल करना पड़ेगा उसे ही आगे बढ़ना होगा तभी वह अपनी मंजिल तक पहुंच पाएगी वरना रास्ते में भटकती रहेगी इसलिए वह कुछ देर बाद बोली,,,।)



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अंकित एक बात पूछूं सच सच बताना,,,।(रोटी बनाते हुए अंकित की तरफ देखे बिना बोली,,)

हां हां पूछो क्या हुआ,,,?

तेरी तबीयत तो ठीक रहती है ना,,,,।


ऐसा क्यों पूछ रही हो मेरी तबीयत तो हमेशा ठीक रहती है,,,।

देखा सच-सच बताना तुझे मेरी कसम बिल्कुल भी मुझे बहकाने की कोशिश मत करना,,,,।


मम्मी तुम ऐसा क्यों बोल रही हो मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है और मेरी तबियत एकदम ठीक है मुझे कुछ नहीं हुआ है,,,,।

मुझे ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता तो सामान्य दिखता है लेकिन है नहीं,,,,।


लेकिन तुम मम्मी ऐसा क्यों कह रही हो,,,,?


कल रात की वजह से,,,,।

कल रात की वजह से मैं कुछ समझा नहीं,,,,(नाश्ता करते-करते रात का जिक्र होते ही अंकित एकदम से रुको क्या उसका दिल जोरो से धड़कने लगा)


अंकित एक मां होने के नाते मुझे इस तरह की बातें तो करना नहीं चाहिए लेकिन फिर भी तेरे स्वास्थ्य का सवाल है इसलिए मुझे बोलना पड़ रहा है,,,।

लेकिन हुआ क्या है मम्मी कुछ तो बताओ,,,।

तेरा वो,,,(अंकित की तरफ घूमकर उंगली से उसकी दोनों टांगों के बीच ईसारा करते हुए) काफी मोटा और लंबा है,,,.

(अपनी मां के कहने का मतलब को अंकित समझ चुका था उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी और बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी थी,,,,)

तुम किस बारे में बात कर रही हो मम्मी,,,(अंकित समझ गया था कि उसकी मां क्या कहना चाह रही है और किसके बारे में बात कर रही है लेकिन फिर भी वह अनजान बनता हुआ बोला,,,)

तेरे उसके बारे में,,,(फिर से उंगली से उसकी दोनों टांगों के बीच ईसारा करते हुए बोली,,,)


ऐसा नहीं है मम्मी सबका ऐसा ही होता होगा,,,।(अंकित सहज बनने का नाटक करते हुए नाश्ता करने लगा और बोला)


नहीं नहीं सबका ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता,,,,।


तुमको कैसे मालूम मम्मी तुम क्या सबको देखती रहती हो क्या,,,?

(अंकित शरारत करते हुए बोला और उसकी बात सुनकर अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोली,,,)

तुझे क्या मैं दूसरी औरतों की तरह लगती हूं क्या जो सबका देखती फिरू,,,, मैं जानती हूं इसलिए कह रही हूं क्योंकि मैं तेरे पापा का देखा है,,,(सुगंधा एकदम से बेशर्म बनते हुए बोली और उसकी बात सुनकर अंकित के लंड का तनाव बढ़ने लगा वह आश्चर्य से अपनी मां की तरफ देखने लगा और बोला,,,)

उनका भी तो बड़ा होगा ना मेरी तरह आखिरकार मैं उनका बेटा जो हूं,,,,(अपनी मां की बात सुनकर अंकित के तन बदन में मदहोशी छाने लगी थी वह जानता था कि इस तरह की बात करने पर उसकी मां बिल्कुल भी नाराज नहीं होगी इसलिए वह भी मौके का फायदा उठाते हुए बोल रहा था,,,)

वह तुम्हें जानती हूं लेकिन मैं यह भी जानती हूं कि तेरे पापा का तेरे जैसा बिल्कुल भी नहीं था,,,।

तो कैसा था पापा का,,,?(अंकित अपनी मां की तरफ देखते हुए बोला ,,)

तेरे से आधा भी नहीं था और एकदम पतला,,,,।(सुगंधा अपने बेटे से हकीकत बयां करते हुए बोली वह सच बोल रही थी क्योंकि भले ही जब तक उसके पति जीवित थे वह अपने पति से ही शरीर सुख प्राप्त करती रही और इस बारे में उसे बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था कि उसके पति से भी मोटा और लंबा लंड दूसरों का होता है और दूसरों के बारे में न जाने की वजह से ही वह अपने पति से खुश थी लेकिन जब से वह अपने बेटे का लंड देखी थी तब से वह एकदम हैरान थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि लंड इतना मोटा और लंबा भी होता है अपनी मां की बात सुनकर अंकित वास्तव में आश्चर्य से भर गया क्योंकि वैसे यकीन नहीं हो रहा था कि तुम खूबसूरत जवानी से भरी हुई औरत की बुर में उंगली जितना लंड अंदर बाहर जाता होगा,,,,)

क्या बात कर रही हो मम्मी ऐसा कैसे हो सकता है,,, में तो समझता था की सब का मेरे जैसा ही होता होगा,,,,।

नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है जब तक मैं तेरा नहीं देखी थी मुझे भी ऐसा लगता था कि तेरे पापा जैसा ही सब था होता होगा लेकिन तेरा देख कर तो मेरे होश उड़ गए हैं तेरा तो कुछ ज्यादा ही लंबा और मोटा है क्या तुझे दिक्कत नहीं होती अगर होती है तो मुझे बता दे डॉक्टर से मिल लेते हैं दवा ले लेते हैं,,,,।

लेकिन कैसी दिक्कत मुझे तो कोई दिक्कत नहीं आती,,,,,।


नहीं नहीं मैं कल रात तेरी परेशानी देखी थी तेरा मोटा और लंबा लंड कुछ ज्यादा ही वजनदार है तभी तो नीचे झुक जाता है तुझे हाथ से उठाना पड़ता है,,,(एकदम मासूमियत भरा चेहरा बनाकर वह अपने बेटे से बात कर रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे सच में वह अपने बेटे से उसकी परेशानी के बारे में बात कर रही है बल्कि वह उसकी परेशानी नहीं बल्कि इस तरह की बात का जिक्र छेड़कर वह अपने लिए रास्ता बना रही थी,,,,)

नहीं मम्मी ऐसा कुछ भी नहीं है वह तो नेचुरल है,,,(अंकित भी एकदम मदहोश होता हुआ बोला,,, इस तरह की बातें करके सुगंधा की भी बुर पानी छोड़ रही थी,,,)


नेचुरल कैसे हैं तो उसे हाथ का सहारा देकर पकड़े हुए था,,,, पेशाब करते समय क्या तुझे बिल्कुल भी दिक्कत पेश नहीं आती उसकी वजन की वजह से,,,,।(इस बार वह साड़ी के ऊपर से अपनी बुर को खुजलाते हुए बोली,,, पेशावर जानबूझकर की थी अपने बेटे का ध्यान अपनी बुर के ऊपर केंद्रित करने के लिए और ऐसा ही हुआ था अंकित अपनी मां की हरकत को देखकर मत हो गया था और जवाब में वह भी पेट में बने तंबू को अपने हाथ से पकड़ कर दबाने की कोशिश करते हुए बोला,,,)


नहीं नहीं मुझे तो बिल्कुल भी दिक्कत नहीं आती बल्कि मुझे तो अच्छा लगता है उसकी मोटाई और लंबाई की वजह से भारी-भारी सा लगता है और सच कहूं तो हमेशा उसे पकड़ना नहीं पड़ता जब एकदम खड़ा हो जाता है तो बिना किसी सहारे के ही एकदम खड़ा ही रहता है,,,,,।(अंकित भी एकदम बेशर्म बनता हुआ बोल और उसकी यह बात सुनकर सुगंधा इतनी मदहोश हो गई कि उसकी बुर से मदन दन रस की बूंद टपक पड़ी,,,, सुगंधा उसे देखते ही रह गई मन ही मनुष्य अपने बेटे के लंड पर उसकी मर्दानगी पर गर्व हो रहा था,,, नाश्ता करके अंकित कुर्सी पर से उठकर खड़ा हो गया था और झूठे बर्तन को वह किचन के ऊपर रखने के लिए आया तब उसकी मां एकदम मत हो चुकी थी यार एकदम से उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच ली और अपनी बाहों में भर ली ऐसा करने से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां से उसका सीना एकदम से सट गया और एकदम मदहोश होते हुए बिना वक्त गंवाए,,, अपने लाल-लाल होठों को अपने बेटे के होठों पर रखकर चुंबन करने लगी उसका बेटा को समझ पाता है इससे पहले ही वह पागलों की तरह अपने बेटे के होठों को चूसना शुरू कर दी थी,,,, पहले तो अंकित एकदम से कुछ समझ ही नहीं पाया लेकिन जैसे उसे एहसास हुआ कि उसकी मां क्या कर रही है वह अपने दोनों हाथों को तुरंत अपनी मां के निकम दो पर रख दिया और उसे हल्के से दबाने का शुभ प्राप्त करने लगा और अपने पेट मैं बने तंबू को भी आगे की तरफ बढ़कर अपनी मां की बुर पर साड़ी के ऊपर से ही उसे पर दबाव बनाने लगा जिसका एहसास सुगंधा को भी हो रहा था सुगंधा एकदम मद होश चुकी थी,,,,

यह चुंबन आगे बढ़ता है इससे पहले ही अंकित ने जो झूठा बर्तन किचन पर रखा था वह ठीक से न रखने की वजह से एकदम से नीचे गिर गया और उसकी आवाज होते हैं सुगंधा की तंद्रा भंग हो गई,,, और एकदम से वह होश में आ गई और अपनी बाहों से अपने बेटे को धीरे से अलग करते हुए बोली,,,।


मुझे तेरी बहुत चिंता हो रही थी जब से कल में तुझे पेशाब करते हुए देखी हूं तब से उसकी लंबाई और मोटाई को लेकर मुझे चिंता हो रही थी कि कहीं मेरा बेटा परेशानी में तो नहीं है मैं रात भर सो नहीं पाई हूं,,,,,, तेरी बात सुनकर मुझे राहत हुई कि तू कोई परेशानी में नहीं है सच में तुझे कोई परेशानी नहीं है ना,,,,।


बिल्कुल भी नहीं मम्मी मैं एकदम ठीक हूं,,,।

मेरा राजा बेटा,,,(गाल को सहलाते हुए) अब जा बहुत देर हो रही है मुझे भी जाना है,,,.

ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहकर अपने मन में यह सोचते हुए अंकित रसोई घर से बाहर निकल गया कि वह जानता है कि रात भर उसकी मां क्या सोचती रही उसके लंड़के के बारे में वह चिंतित नहीं थी बल्कि मत हो चुकी थी उसका लंड देखकर और अंकित मन ही मन बर्तन को गाली देने लगा की सलाह सही समय पर गलत जगह गिर गया अगर कुछ देर और नहीं गिरा होता तो शायद कुछ और हो जाता क्योंकि वह जानता था कि उसकी मां भी पूरी मदहोश हो चुकी थी पागल हो चुकी थी,,,,,,,और वह अपने मन में ऐसा सोचते हुए अपना बेग उठाकर स्कूल के लिए निकल गया,,,।

उसके जाते ही सुगंधा अपनी साड़ी उठाकर अपनी एक बर की स्थिति को देखने लगी पूरी तरह से पानी पानी हो चुकी थी एकदम गिरी और उसे साफ एहसास हो रहा था कि उसके बेटे के पेट में बना तंभूत सीधे उसकी बुर पर ठोकर मार रहा था अगर साड़ी और उसके बेटे का पेंट दोनों के बीच ना होता तो उसका लंड उसकी बुर में घुस गया होता,,,, सुगंधा को भी देर हो रहा था लेकिन यह अपने पहले चुंबन से वह काफी प्रभावित और उत्तेजित हो चुकी थी जिंदगी में पहली बार वह इस तरह की हिमाकत की थी उसे बहुत अच्छा लग रहा था उसके बदन में अभी भी उत्तेजना की लहर उठ रही थी,,,, इस तरह का चुंबन कितना आनंद देता है आज उसे एहसास हो रहा था,,,।

वह जल्दी से तैयार होकर स्कूल के निकल गई,,,।
Thoda jaldi kar diya bhai.
Abhi chaddi puran karo. Chadiya pehnavo, utaro, Gand ko sehlavo.
 

Sanju@

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रात को घर के पीछे जो कुछ भी हुआ था उसे लेकर मां बेटे दोनों एक अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे दोनों की मदहोशी की सीमा पार हो चुकी थी,, जिसका एहसास दोनों को सुबह उठने के बाद भी हो रहा था और दोनों उसे एहसास से निकल नहीं पा रहे थे आखिरकार वह पल ही ऐसा मधुर और मादकता से भरा हुआ था कि उनकी जगह कोई भी होता तो शायद उस मदहोशी से कभी भी बाहर निकल नहीं पाता,,,, क्योंकि घर के पीछे जो कुछ भी हुआ था सोची समझी साजिश तो नहीं लेकिन कुछ हद तक इस पर मां बेटे दोनों की मर्जी शामिल थी हालांकि अभी तक दोनों ने मर्यादा की आखिरी रेखा को नहीं लांघे थे लेकिन फिर भी दोनों के बीच बहुत कुछ हो चुका था जो की सामान्य तौर पर एक मां और बेटे के बीच कभी नहीं होना चाहिए,,,,।

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रात की यादें अभी तक सुगंधा की गुलाबी छेद से रीस रही थी,,, सुबह उसकी नींद खुलते ही उसकी नजर सबसे पहले अपने दोनों टांगों के बीच की स्थिति पर गई थी जो कि अभी तक गीली थी शायद रात की उत्तेजना पर मदहोशी इतनी अत्यधिक की अभी तक उसकी दोनों टांगों के बीच की लकीर से बाहर नहीं निकल पाई थी,,, सुगंधा बिस्तर पर संपूर्ण रूप से नग्न गन अवस्था में थी पूरी तरह से नंगी,,, क्योंकि पेशाब करते समय जिस तरह से उसने अपने बेटे के लंड के दर्शन किए थे और वह भी एकदम नजदीक से वह पल सुगंधा को पूरी तरह से बेकाबू बना दिया था,,, एक तो सुगंधा अपने जीवन में अपने पति के लंड के सिवा किसी और के लैंड के दर्शन नहीं की थी और दूसरे किसी के भी लंड के दर्शन की थी तो वह था उसका बेटा जिसके लंड के दर्शन उसने पहली बार जब उसे कमरे में जगाने के लिए गई थी तब की थी और अपनी मदहोशी पर काबू न कर सकने की स्थिति में वह अपने बेटे के लंड को उंगली से स्पर्श भी की थी,,, लेकिन फिर भी उसे दिन भी वह अपने बेटे के लंड को इतनी नजदीक से नहीं देख पाई थी जितना की कल बीती रात को देखी थी,,,।



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वह पल वह नजारा बार-बार उसकी आंखों के सामने घूम रहा था घर के पीछे बैठकर उसका पेशाब करना अपनी बड़ी-बड़ी गांड अपने बेटे को दिखाकर उसे अपनी तरफ आकर्षित करना और उसे खुद भी पेशाब करने के लिए मजबूर करना यह सब सुगंधा के व्यक्तित्व और चरित्र में बिल्कुल भी नहीं आता था लेकिन पिछले कुछ महीनो से उसका बर्ताव और चरित्र दोनों बदल चुका था,,, वह अब अंकित को एक मां के नजरिया से नहीं बल्कि एक प्यासी औरत के नजरिए से देखी थी और अपने बेटे में बेटा नहीं बल्कि एक मर्द को ढूंढती थी जो उसकी प्यास बुझा सके जिसके चलते वह एक मां से एक औरत बन चुकी थी और वैसे भी मां बनने से पहले वह एक औरत ही थी जिसकी कुछ ख्वाहिशें थी जरूरते थी वह भी दूसरी औरतों की तरह जीना चाहती थी अपने बदन की प्यास को बुझाया चाहते थे जिंदगी के हर एक सुख को प्राप्त करना चाहती थी,,,।





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लेकिन अपने पति के देहांत के बाद वह अपने अंदर की औरत को पूरी तरह से मार चुकी थी और एक मां के तौर पर अपना किरदार निभा रही थी लेकिन धीरे-धीरे उसमें बदलाव आना शुरू हो गया उसकी ज़रूरतें भी कर उठने लगी उसके भावनाओं को भी पर लगने लगे और जब उसकी मुलाकात नुपुर से हुई और नूपुर के साथ उसके बेटे के बर्ताव को देखी तब वह भी एक मां को भावना और जरूरत तो के दबाव में दबाकर अपने अंदर की छिपी औरत को बाहर निकाल ली और अपने ही बेटे में एक मर्द को तलाश में लगी अपनी जरूरत को पूरी करने के लिए और धीरे-धीरे इस खेल में आगे बढ़ती चली जा रही थी जिसमें अब उसका बेटा भी साथ दे रहा था,,,।

रात के समय वह कभी सोच नहीं थी कि जब वह पेशाब कर रही होगी तब उसका बेटा भी उसके साथ खड़े होकर पेशाब करेगा और इस तरह की कल्पना तो वह कभी अपने मन में भी नहीं की थी और नहीं कभी इस बारे में सोची थी लेकिन सोच से भी अद्भुत नजारा अपनी आंखों से देख कर वह पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी,,,, बिस्तर पर बैठे-बैठे वह इस बारे में ही सोच रही थी कि क्या हुआ सच में अपने बेटे के साथ पेशाब कर रही थी कि वह सब एक सपना था,,, नहीं नहीं सपना तो बिल्कुल भी नहीं था इसका एहसास तो अभी तक उसके बदन में उसके रोम रोम में बसा हुआ था उसने ही तो अपने बेटे को मजबूर की थी अपने साथ पेशाब करने के लिए और उसका बेटा भी तैयार हो चुका था सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी कि जो कुछ भी वह अपने मन में चाहती थी वैसा ही उसका बेटा भी चाहता है,,, फिर एक जैसी चाहत होने के बावजूद भी उसका बेटा आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है उसकी जगह दूसरा कोई होता तो शायद अब तक आगे बढ़कर अपनी प्यास को बढ़ा ली होती सुगंधा बिस्तर पर बैठे-बैठे यही सोच रही थी कि तभी वह इस बारे में भी सोच कर अपने मन को तसल्ली देने लगी थी अच्छा हो रहा है कि धीरे-धीरे खिलाकर पड़ रहा है इस धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए खेल में भी तो बहुत मजा आ रहा है,,,,।



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बाप रे कितना मोटा और लंबा है मेरे बेटे का लंड,,(: सुगंधा आश्चर्य चकित होते हुए अपने आप से ही बात करते हुए बोली) इतना मोटा और लंबा है कि उसे अपने हाथ से उठाकर खड़ा करना पड़ता है पेशाब करते समय वह किस तरह से ऊपर नीचे करके हिला रहा था वहां पर उसे नजारे को देख कर तुम्हें बेकाबू भेज रही थी मन कर रहा था उसे अपने हाथ में पकड़ लिया और अपने मुंह में डालकर जी भरकर प्यार करूं लेकिन मुझे तो नहीं लगता है कितना मोटा और लंबा लंड मेरे मुंह में ठीक तरह से आ पाएगा,,,(अपने आप से इस तरह की बात करते हुए वह अपनी दोनों टांगों के बीच की अपनी पत्नी दरार को देखते हुए और उसे पर हल्के से अपनी हथेली को रखकर सहलाते हुए मन में बोली) बाप रे इसकी तो खैर नहीं होगी जब मेरा बेटा अपने लंड को इसमें डालेगा देखो तो कितनी मासूम है एकदम मुलायम छोटा सा छेद और मेरे बेटे का लंड एकदम मोटा और लंबा एक बार घुस गया तो बुर का भोसड़ा बना देगा,,, कसम से लेकिन बहुत मजा आएगा जिस दिन मेरा बेटा मेरी बुर में अपना लंड डालेगा मुझे चोदेगा और मुझे चोद कर मादरचोद बन जाएगा,,,।




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यही सब सोच कर सुगंधा मदहोश हुए जा रही थी और उत्तेजित हुए जा रही थी,,,, बदन में जब मदहोशी छाने लगी और उत्तेजना का एहसास होने लगा तो वह दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखने लगी नित्य कम शुरू करने में अभी भी 10 मिनट का समय था इसलिए वह अपनी तानों को धीरे से खोल दी और अपनी हथेली को अपनी बर पर रखकर जोर-जोर से रगड़ना शुरू कर दिया और अपनी बुर को अपनी हथेली में दबोचना शुरू कर दी,,,, उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी वह मदहोश हुई जा रही थी वह एकदम चुदवासी थी इसलिए अपनी दो उंगली को अपनी बुर में एक साथ डालकर उसे अंदर बाहर करके हिलना शुरू कर दे और अपनी आंखों को बंद करके अपने बेटे के बारे में सोचने लगी और कल्पना करने लगी कि जैसे उसकी बुर में खुशी हुई उसकी उंगलियां नहीं बल्कि उसके बेटे का मोटा तगड़ा लंड है और उसका बेटा उसकी दोनों टांगों को खोलकर जोर-जोर से अपनी कमर हिला रहा है,,,।

इस तरह की कल्पना उसे अत्यधिक गर्मी प्रदान कर रही थी वह मदहोशी के परम शिखर पर पहुंच चुकी थी वह एक हाथ से अपनी बड़ी-बड़ी चूची को बारी बारी से दबाते हुए उत्तेजना से अपने लाल-लाल होठों को दांतों से भींचते हुए अपनी दोनों ऊंगलियों को बड़ी तेजी से अपनी बर के अंदर बाहर कर रही थी,,, वह चित्र से जानते थे कि जिस अंग को अपनी बर के अंदर लेना चाहती थी उसकी कमी को उसकी दो उंगलियां क्या तीन चार उंगलियां भी पूरी नहीं कर सकती थी वह जानती थी कि उसकी प्यास उसके बेटे के मोटे तगड़े लंड से ही बुझने वाली है,,, बिस्तर पर वह एकदम से पीठ के बल पसर गई थी अपनी दोनों टांगों को हवा में उठाए हुए बात अपनी उंगलियों को बड़ी तेजी से अंदर बाहर कर रही थी यह नजारा भी बहुत खूब था,,, आखिरकार उसकी उंगलियों ने भी अपनी मेहनत का असर दर्शना शुरू कर दी उंगली की गर्मी और उसकी रगड़ से उसकी बुर की अंदरूनी दीवारें पिघलने लगी उत्तेजना के मारे संकुचाने लगी,,,, और फिर उसका बदन एकदम से अकडने लगा,,, और फिर गरमा गरम लावा का फवारा उसके गुलाबी छेद से बाहर निकलने लगा वह झड़ने लगी मदहोश होने लगी उसकी सांसे ऊपर नीचे होने लगी उसकी सांसों की गति के साथ उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां भी पानी भरे गुब्बारे की तरह छाती पर लहराने लगी,,,,।



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और फिर धीरे-धीरे वह एकदम से शांत होने लगी वासना का तूफान उतरते ही वह अपने कपडो को ढूंढने लगी,,, जिसे वह कमरे में ऐसे ही अपने बदन से एक-एक करके सारे कपड़ों को उतार कर फेंक चुकी थी और बिस्तर पर उसके एक भी कपड़े नहीं थे सब नीचे जमीन पर बिखरे पड़े थे वह धीरे से बिस्तर पर से नीचे उतरी और एक-एक करके अपने कपड़ों को पहनने लगी,,,, पर अपने मन में सोचने लगी कि काश ऐसा दिन होता कि घर में वाहन पूरी तरह से नंगी होकर ही घूमती काम करती तो कितना मजा आ जाता,,, ऐसा सोचते हुए वह अपने कमरे से बाहर आ गई और दिनचर्या में लग गई,,।





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और यही हालत अंकित की भी थी,,,, अपनी मां के साथ पेशाब करने का सुख प्राप्त करके वह कमरे में आते ही अपने सारे कपड़े उतार कर अपनी मां के बारे में गंदे ख्याल मन में सोते हुए अपने लंड को हिलाते हुए मुठ मारने लगा था,,, और सुबह जब उसकी नींद खुली तो देखा कि सुबह मैं भी उसका लंड एकदम टाइट था,,,, रात का नजारा उसकी आंखों के सामने घूमने लगा,,, उसकी मां की बड़ी-बड़ी गांड उसका बैठकर पेशाब करना,, और उसका खुद का यह नजारा देखकर खड़ा हो जाना और फिर अपनी मां के बगल में खड़ा होकर अपने लंड को हिलाते हुए पेशाब करना उसकी मां की दोनों टांगों के बीच से निकलती हुई पेशाब की धार को देखना यह सब बेहद अद्भुत था और इन सब के बारे में सोचकर वह फिर से उत्तेजित होने लगा था और फिर धीरे से अपने कपड़े पहन कर बाथरूम में चला गया और वहां फिर से मुथ मारने लगा,,,,।




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चाय नाश्ता करके तृप्ति जा चुकी थी अंकित भी जाने की तैयारी में था वह रसोई घर में नाश्ते के लिए पहुंच चुका था लेकिन अपनी मां से नजरे मिला नहीं से कतरा रहा था और यही हाल सुगंधा का भी था वह भी अपने बेटे से नजर नहीं मिला पा रही थी,, दोनों एक दूसरे से बात तो करना चाहते थे लेकिन रात को जो कुछ भी हुआ था उससे बेहद शर्मिंदा भी थे हालांकि जिस तरह के हालात थे ऐसे में दोनों को शर्मिंदा नहीं होना चाहिए था लेकिन फिर भी दोनों के बीच मां बेटे का रिश्ता था इसलिए इस रिश्ते का लिहाज करते हुए दोनों को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी,,,।


अंकित रसोई घर में आकर वापस चला क्या हुआ अपनी मां से कुछ बोल नहीं पाया और सुगंधा भी उसे जाते हुए देखते रह गई वह भी उसे रोक नहीं पाई और फिर अपने मन में सोचने लगी कि वह यह क्या कर रही है,,, अगर ऐसा ही चला रहा तो वह अपनी ख्वाहिश को कभी नहीं पूरी कर पाएंगी,,, ऐसा कैसे हो सकता है आखिरकार वह अपने बेटे से इतना अत्यधिक तो खुल चुकी थी,,, और ऐसा तो था नहीं की वह पहली बार अपने बेटे की आंखों के सामने पेशाब कर रही हो ऐसा तो बहुत बार हो चुका था,,, हां नया हुआ था तो यही कि उसके साथ उसका बेटा भी पेशाब कर रहा था,,,, और शायद इसीलिए शर्मा कर उसका बेटा चला गया लेकिन वह भी तो कुछ कर नहीं पाई वह भी तो उसे रोक नहीं पाई,,,,।



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जाने दो जाता है तो,,, किसी काम का नहीं है इसकी जगह कोई और होता है तो अब तक उसकी ख्वाहिश पूरी कर चुका होता इतना कुछ होने के बावजूद भी कुछ समझ नहीं पा रहा है,,,(सुगंधा इस तरह से अपने आप से ही बात कर रही थी कि तभी उसके मन में ख्याल आया और वह फिर से अपने आप से ही बोली)

नहीं नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ भी नहीं हो पाएगा,,, अंकित को भी दूसरे लड़कों की तरह थोड़ा तेज होना चाहिए जैसा कि राहुल है अपनी मां के साथ खुले बाजार में भी कहीं भी हाथ रख देता है लेकिन अंकित ऐसा नहीं कर पता अंदर से डरता हूं उसे भी थोड़ा हिम्मत वाला होना चाहिए,,,, लेकिन अंकित तो पहले बहुत शर्माता था धीरे-धीरे उसने बदलाव तो आया है लेकिन अभी इतना खुल नहीं पाया है कि उसके साथ कुछ भी कर सके लेकिन वह भी तो पहले ऐसी नहीं थी संस्कारी थी मान मर्यादा वाली थी लेकिन अब जरूर बदल गई है लेकिन ऐसा भी तो नहीं की एकदम रंडी की तरह अपने बेटे के सामने अपने टांगे खोल दो और बोलो अपने लंड को डाल दे बल्कि है तो अंकित को समझना चाहिए एक औरत क्या चाहती है उसके इशारे को समझना चाहिए उसके सामने कपड़े उतारती है पेशाब करती है गंदी गंदी बातें करती है तो इतना तो समझना चाहिए कि औरत को क्या चाहिए लेकिन एकदम बेवकूफ की तरह रहता है,,,।



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लेकिन अगर अंकित ऐसा है तो मुझे अपने आप को बदलना होगा अगर मुझे अपनी ख्वाहिश को पूरी करनी है तो मुझे ही आगे कदम उठाना होगा वरना मेरी ख्वाहिश फिर से दबी की तभी रह जाएगी और अगर ऐसा ना हो पाया तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि बाहर किसी के साथ संबंध बन जाए और बदनामी हो जाए नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगी मैं अपने लिए अपने बेटे को ही तैयार करूंगी और इसके लिए मुझे मजबूर बना होगा बेशर्म बनना होगा,,,।

(नाश्ता तैयार करते हुए सुगंधा यही सब सो रही थी और वह जानती थी कि अब उसे भी पहल करना पड़ेगा वरना ऐसे ही चलता रहेगा,,,, इसलिए अंकित को आवाज देते हुए बोली,,,,)

अरे अंकित,,, कहां चला गया,,,, जल्दी से आ नाश्ता कर ले नाश्ता तैयार है,,,।
(अंकित शर्मा रहा था अपनी मां से नजर नहीं मिला पा रहा था लेकिन अपनी मां की आवाज सुनकर उसमें थोड़ी हिम्मत आई और वहां भी एकदम से जाकर रसोई घर के दरवाजे पर खड़ा हो गया और बोला,,,)

क्या हुआ मम्मी,,,?



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अरे तू चल क्यों गया नाश्ता तैयार है चल जल्दी से नाश्ता कर ले देर हो रही है,,,।

ठीक है मम्मी मैं तो बाथरूम करने के लिए चला गया था,,,,(अंकित जानबूझकर बाथरूम काबहाना करते हुए बोला क्योंकि वह अपनी मां से ऐसा नहीं जाताना चाहता था कि वह कल वाले वाक्या की वजह से शर्मिंदगी महसूस कर रहा है,,,,)

चल कोई बात नहीं जल्दी से नाश्ता कर ले,,,।

(और फिर सहज होते हुए अंकित वही रसोई घर में पड़ी हुई कुर्सी पर बैठकर नाश्ता करने लगा,,,,,,, अंकित भी अपनी मां से बात करना चाहता था लेकिन शर्मा रहा था सुगंध भी बात की शुरुआत करना चाहती थी और ऐसी शुरुआत जो एकदम गरमा गरम हो क्योंकि वह जानती थी कि अब उसे ही पहल करना पड़ेगा उसे ही आगे बढ़ना होगा तभी वह अपनी मंजिल तक पहुंच पाएगी वरना रास्ते में भटकती रहेगी इसलिए वह कुछ देर बाद बोली,,,।)



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अंकित एक बात पूछूं सच सच बताना,,,।(रोटी बनाते हुए अंकित की तरफ देखे बिना बोली,,)

हां हां पूछो क्या हुआ,,,?

तेरी तबीयत तो ठीक रहती है ना,,,,।


ऐसा क्यों पूछ रही हो मेरी तबीयत तो हमेशा ठीक रहती है,,,।

देखा सच-सच बताना तुझे मेरी कसम बिल्कुल भी मुझे बहकाने की कोशिश मत करना,,,,।


मम्मी तुम ऐसा क्यों बोल रही हो मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है और मेरी तबियत एकदम ठीक है मुझे कुछ नहीं हुआ है,,,,।

मुझे ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता तो सामान्य दिखता है लेकिन है नहीं,,,,।


लेकिन तुम मम्मी ऐसा क्यों कह रही हो,,,,?


कल रात की वजह से,,,,।

कल रात की वजह से मैं कुछ समझा नहीं,,,,(नाश्ता करते-करते रात का जिक्र होते ही अंकित एकदम से रुको क्या उसका दिल जोरो से धड़कने लगा)


अंकित एक मां होने के नाते मुझे इस तरह की बातें तो करना नहीं चाहिए लेकिन फिर भी तेरे स्वास्थ्य का सवाल है इसलिए मुझे बोलना पड़ रहा है,,,।

लेकिन हुआ क्या है मम्मी कुछ तो बताओ,,,।

तेरा वो,,,(अंकित की तरफ घूमकर उंगली से उसकी दोनों टांगों के बीच ईसारा करते हुए) काफी मोटा और लंबा है,,,.

(अपनी मां के कहने का मतलब को अंकित समझ चुका था उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी और बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी थी,,,,)

तुम किस बारे में बात कर रही हो मम्मी,,,(अंकित समझ गया था कि उसकी मां क्या कहना चाह रही है और किसके बारे में बात कर रही है लेकिन फिर भी वह अनजान बनता हुआ बोला,,,)

तेरे उसके बारे में,,,(फिर से उंगली से उसकी दोनों टांगों के बीच ईसारा करते हुए बोली,,,)


ऐसा नहीं है मम्मी सबका ऐसा ही होता होगा,,,।(अंकित सहज बनने का नाटक करते हुए नाश्ता करने लगा और बोला)


नहीं नहीं सबका ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता,,,,।


तुमको कैसे मालूम मम्मी तुम क्या सबको देखती रहती हो क्या,,,?

(अंकित शरारत करते हुए बोला और उसकी बात सुनकर अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोली,,,)

तुझे क्या मैं दूसरी औरतों की तरह लगती हूं क्या जो सबका देखती फिरू,,,, मैं जानती हूं इसलिए कह रही हूं क्योंकि मैं तेरे पापा का देखा है,,,(सुगंधा एकदम से बेशर्म बनते हुए बोली और उसकी बात सुनकर अंकित के लंड का तनाव बढ़ने लगा वह आश्चर्य से अपनी मां की तरफ देखने लगा और बोला,,,)

उनका भी तो बड़ा होगा ना मेरी तरह आखिरकार मैं उनका बेटा जो हूं,,,,(अपनी मां की बात सुनकर अंकित के तन बदन में मदहोशी छाने लगी थी वह जानता था कि इस तरह की बात करने पर उसकी मां बिल्कुल भी नाराज नहीं होगी इसलिए वह भी मौके का फायदा उठाते हुए बोल रहा था,,,)

वह तुम्हें जानती हूं लेकिन मैं यह भी जानती हूं कि तेरे पापा का तेरे जैसा बिल्कुल भी नहीं था,,,।

तो कैसा था पापा का,,,?(अंकित अपनी मां की तरफ देखते हुए बोला ,,)

तेरे से आधा भी नहीं था और एकदम पतला,,,,।(सुगंधा अपने बेटे से हकीकत बयां करते हुए बोली वह सच बोल रही थी क्योंकि भले ही जब तक उसके पति जीवित थे वह अपने पति से ही शरीर सुख प्राप्त करती रही और इस बारे में उसे बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था कि उसके पति से भी मोटा और लंबा लंड दूसरों का होता है और दूसरों के बारे में न जाने की वजह से ही वह अपने पति से खुश थी लेकिन जब से वह अपने बेटे का लंड देखी थी तब से वह एकदम हैरान थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि लंड इतना मोटा और लंबा भी होता है अपनी मां की बात सुनकर अंकित वास्तव में आश्चर्य से भर गया क्योंकि वैसे यकीन नहीं हो रहा था कि तुम खूबसूरत जवानी से भरी हुई औरत की बुर में उंगली जितना लंड अंदर बाहर जाता होगा,,,,)

क्या बात कर रही हो मम्मी ऐसा कैसे हो सकता है,,, में तो समझता था की सब का मेरे जैसा ही होता होगा,,,,।

नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है जब तक मैं तेरा नहीं देखी थी मुझे भी ऐसा लगता था कि तेरे पापा जैसा ही सब था होता होगा लेकिन तेरा देख कर तो मेरे होश उड़ गए हैं तेरा तो कुछ ज्यादा ही लंबा और मोटा है क्या तुझे दिक्कत नहीं होती अगर होती है तो मुझे बता दे डॉक्टर से मिल लेते हैं दवा ले लेते हैं,,,,।

लेकिन कैसी दिक्कत मुझे तो कोई दिक्कत नहीं आती,,,,,।


नहीं नहीं मैं कल रात तेरी परेशानी देखी थी तेरा मोटा और लंबा लंड कुछ ज्यादा ही वजनदार है तभी तो नीचे झुक जाता है तुझे हाथ से उठाना पड़ता है,,,(एकदम मासूमियत भरा चेहरा बनाकर वह अपने बेटे से बात कर रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे सच में वह अपने बेटे से उसकी परेशानी के बारे में बात कर रही है बल्कि वह उसकी परेशानी नहीं बल्कि इस तरह की बात का जिक्र छेड़कर वह अपने लिए रास्ता बना रही थी,,,,)

नहीं मम्मी ऐसा कुछ भी नहीं है वह तो नेचुरल है,,,(अंकित भी एकदम मदहोश होता हुआ बोला,,, इस तरह की बातें करके सुगंधा की भी बुर पानी छोड़ रही थी,,,)


नेचुरल कैसे हैं तो उसे हाथ का सहारा देकर पकड़े हुए था,,,, पेशाब करते समय क्या तुझे बिल्कुल भी दिक्कत पेश नहीं आती उसकी वजन की वजह से,,,,।(इस बार वह साड़ी के ऊपर से अपनी बुर को खुजलाते हुए बोली,,, पेशावर जानबूझकर की थी अपने बेटे का ध्यान अपनी बुर के ऊपर केंद्रित करने के लिए और ऐसा ही हुआ था अंकित अपनी मां की हरकत को देखकर मत हो गया था और जवाब में वह भी पेट में बने तंबू को अपने हाथ से पकड़ कर दबाने की कोशिश करते हुए बोला,,,)


नहीं नहीं मुझे तो बिल्कुल भी दिक्कत नहीं आती बल्कि मुझे तो अच्छा लगता है उसकी मोटाई और लंबाई की वजह से भारी-भारी सा लगता है और सच कहूं तो हमेशा उसे पकड़ना नहीं पड़ता जब एकदम खड़ा हो जाता है तो बिना किसी सहारे के ही एकदम खड़ा ही रहता है,,,,,।(अंकित भी एकदम बेशर्म बनता हुआ बोल और उसकी यह बात सुनकर सुगंधा इतनी मदहोश हो गई कि उसकी बुर से मदन दन रस की बूंद टपक पड़ी,,,, सुगंधा उसे देखते ही रह गई मन ही मनुष्य अपने बेटे के लंड पर उसकी मर्दानगी पर गर्व हो रहा था,,, नाश्ता करके अंकित कुर्सी पर से उठकर खड़ा हो गया था और झूठे बर्तन को वह किचन के ऊपर रखने के लिए आया तब उसकी मां एकदम मत हो चुकी थी यार एकदम से उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच ली और अपनी बाहों में भर ली ऐसा करने से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां से उसका सीना एकदम से सट गया और एकदम मदहोश होते हुए बिना वक्त गंवाए,,, अपने लाल-लाल होठों को अपने बेटे के होठों पर रखकर चुंबन करने लगी उसका बेटा को समझ पाता है इससे पहले ही वह पागलों की तरह अपने बेटे के होठों को चूसना शुरू कर दी थी,,,, पहले तो अंकित एकदम से कुछ समझ ही नहीं पाया लेकिन जैसे उसे एहसास हुआ कि उसकी मां क्या कर रही है वह अपने दोनों हाथों को तुरंत अपनी मां के निकम दो पर रख दिया और उसे हल्के से दबाने का शुभ प्राप्त करने लगा और अपने पेट मैं बने तंबू को भी आगे की तरफ बढ़कर अपनी मां की बुर पर साड़ी के ऊपर से ही उसे पर दबाव बनाने लगा जिसका एहसास सुगंधा को भी हो रहा था सुगंधा एकदम मद होश चुकी थी,,,,

यह चुंबन आगे बढ़ता है इससे पहले ही अंकित ने जो झूठा बर्तन किचन पर रखा था वह ठीक से न रखने की वजह से एकदम से नीचे गिर गया और उसकी आवाज होते हैं सुगंधा की तंद्रा भंग हो गई,,, और एकदम से वह होश में आ गई और अपनी बाहों से अपने बेटे को धीरे से अलग करते हुए बोली,,,।


मुझे तेरी बहुत चिंता हो रही थी जब से कल में तुझे पेशाब करते हुए देखी हूं तब से उसकी लंबाई और मोटाई को लेकर मुझे चिंता हो रही थी कि कहीं मेरा बेटा परेशानी में तो नहीं है मैं रात भर सो नहीं पाई हूं,,,,,, तेरी बात सुनकर मुझे राहत हुई कि तू कोई परेशानी में नहीं है सच में तुझे कोई परेशानी नहीं है ना,,,,।


बिल्कुल भी नहीं मम्मी मैं एकदम ठीक हूं,,,।

मेरा राजा बेटा,,,(गाल को सहलाते हुए) अब जा बहुत देर हो रही है मुझे भी जाना है,,,.

ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहकर अपने मन में यह सोचते हुए अंकित रसोई घर से बाहर निकल गया कि वह जानता है कि रात भर उसकी मां क्या सोचती रही उसके लंड़के के बारे में वह चिंतित नहीं थी बल्कि मत हो चुकी थी उसका लंड देखकर और अंकित मन ही मन बर्तन को गाली देने लगा की सलाह सही समय पर गलत जगह गिर गया अगर कुछ देर और नहीं गिरा होता तो शायद कुछ और हो जाता क्योंकि वह जानता था कि उसकी मां भी पूरी मदहोश हो चुकी थी पागल हो चुकी थी,,,,,,,और वह अपने मन में ऐसा सोचते हुए अपना बेग उठाकर स्कूल के लिए निकल गया,,,।

उसके जाते ही सुगंधा अपनी साड़ी उठाकर अपनी एक बर की स्थिति को देखने लगी पूरी तरह से पानी पानी हो चुकी थी एकदम गिरी और उसे साफ एहसास हो रहा था कि उसके बेटे के पेट में बना तंभूत सीधे उसकी बुर पर ठोकर मार रहा था अगर साड़ी और उसके बेटे का पेंट दोनों के बीच ना होता तो उसका लंड उसकी बुर में घुस गया होता,,,, सुगंधा को भी देर हो रहा था लेकिन यह अपने पहले चुंबन से वह काफी प्रभावित और उत्तेजित हो चुकी थी जिंदगी में पहली बार वह इस तरह की हिमाकत की थी उसे बहुत अच्छा लग रहा था उसके बदन में अभी भी उत्तेजना की लहर उठ रही थी,,,, इस तरह का चुंबन कितना आनंद देता है आज उसे एहसास हो रहा था,,,।

वह जल्दी से तैयार होकर स्कूल के निकल गई,,,।
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है
 

sunoanuj

Well-Known Member
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रात को घर के पीछे जो कुछ भी हुआ था उसे लेकर मां बेटे दोनों एक अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे दोनों की मदहोशी की सीमा पार हो चुकी थी,, जिसका एहसास दोनों को सुबह उठने के बाद भी हो रहा था और दोनों उसे एहसास से निकल नहीं पा रहे थे आखिरकार वह पल ही ऐसा मधुर और मादकता से भरा हुआ था कि उनकी जगह कोई भी होता तो शायद उस मदहोशी से कभी भी बाहर निकल नहीं पाता,,,, क्योंकि घर के पीछे जो कुछ भी हुआ था सोची समझी साजिश तो नहीं लेकिन कुछ हद तक इस पर मां बेटे दोनों की मर्जी शामिल थी हालांकि अभी तक दोनों ने मर्यादा की आखिरी रेखा को नहीं लांघे थे लेकिन फिर भी दोनों के बीच बहुत कुछ हो चुका था जो की सामान्य तौर पर एक मां और बेटे के बीच कभी नहीं होना चाहिए,,,,।

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रात की यादें अभी तक सुगंधा की गुलाबी छेद से रीस रही थी,,, सुबह उसकी नींद खुलते ही उसकी नजर सबसे पहले अपने दोनों टांगों के बीच की स्थिति पर गई थी जो कि अभी तक गीली थी शायद रात की उत्तेजना पर मदहोशी इतनी अत्यधिक की अभी तक उसकी दोनों टांगों के बीच की लकीर से बाहर नहीं निकल पाई थी,,, सुगंधा बिस्तर पर संपूर्ण रूप से नग्न गन अवस्था में थी पूरी तरह से नंगी,,, क्योंकि पेशाब करते समय जिस तरह से उसने अपने बेटे के लंड के दर्शन किए थे और वह भी एकदम नजदीक से वह पल सुगंधा को पूरी तरह से बेकाबू बना दिया था,,, एक तो सुगंधा अपने जीवन में अपने पति के लंड के सिवा किसी और के लैंड के दर्शन नहीं की थी और दूसरे किसी के भी लंड के दर्शन की थी तो वह था उसका बेटा जिसके लंड के दर्शन उसने पहली बार जब उसे कमरे में जगाने के लिए गई थी तब की थी और अपनी मदहोशी पर काबू न कर सकने की स्थिति में वह अपने बेटे के लंड को उंगली से स्पर्श भी की थी,,, लेकिन फिर भी उसे दिन भी वह अपने बेटे के लंड को इतनी नजदीक से नहीं देख पाई थी जितना की कल बीती रात को देखी थी,,,।



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वह पल वह नजारा बार-बार उसकी आंखों के सामने घूम रहा था घर के पीछे बैठकर उसका पेशाब करना अपनी बड़ी-बड़ी गांड अपने बेटे को दिखाकर उसे अपनी तरफ आकर्षित करना और उसे खुद भी पेशाब करने के लिए मजबूर करना यह सब सुगंधा के व्यक्तित्व और चरित्र में बिल्कुल भी नहीं आता था लेकिन पिछले कुछ महीनो से उसका बर्ताव और चरित्र दोनों बदल चुका था,,, वह अब अंकित को एक मां के नजरिया से नहीं बल्कि एक प्यासी औरत के नजरिए से देखी थी और अपने बेटे में बेटा नहीं बल्कि एक मर्द को ढूंढती थी जो उसकी प्यास बुझा सके जिसके चलते वह एक मां से एक औरत बन चुकी थी और वैसे भी मां बनने से पहले वह एक औरत ही थी जिसकी कुछ ख्वाहिशें थी जरूरते थी वह भी दूसरी औरतों की तरह जीना चाहती थी अपने बदन की प्यास को बुझाया चाहते थे जिंदगी के हर एक सुख को प्राप्त करना चाहती थी,,,।





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लेकिन अपने पति के देहांत के बाद वह अपने अंदर की औरत को पूरी तरह से मार चुकी थी और एक मां के तौर पर अपना किरदार निभा रही थी लेकिन धीरे-धीरे उसमें बदलाव आना शुरू हो गया उसकी ज़रूरतें भी कर उठने लगी उसके भावनाओं को भी पर लगने लगे और जब उसकी मुलाकात नुपुर से हुई और नूपुर के साथ उसके बेटे के बर्ताव को देखी तब वह भी एक मां को भावना और जरूरत तो के दबाव में दबाकर अपने अंदर की छिपी औरत को बाहर निकाल ली और अपने ही बेटे में एक मर्द को तलाश में लगी अपनी जरूरत को पूरी करने के लिए और धीरे-धीरे इस खेल में आगे बढ़ती चली जा रही थी जिसमें अब उसका बेटा भी साथ दे रहा था,,,।

रात के समय वह कभी सोच नहीं थी कि जब वह पेशाब कर रही होगी तब उसका बेटा भी उसके साथ खड़े होकर पेशाब करेगा और इस तरह की कल्पना तो वह कभी अपने मन में भी नहीं की थी और नहीं कभी इस बारे में सोची थी लेकिन सोच से भी अद्भुत नजारा अपनी आंखों से देख कर वह पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी,,,, बिस्तर पर बैठे-बैठे वह इस बारे में ही सोच रही थी कि क्या हुआ सच में अपने बेटे के साथ पेशाब कर रही थी कि वह सब एक सपना था,,, नहीं नहीं सपना तो बिल्कुल भी नहीं था इसका एहसास तो अभी तक उसके बदन में उसके रोम रोम में बसा हुआ था उसने ही तो अपने बेटे को मजबूर की थी अपने साथ पेशाब करने के लिए और उसका बेटा भी तैयार हो चुका था सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी कि जो कुछ भी वह अपने मन में चाहती थी वैसा ही उसका बेटा भी चाहता है,,, फिर एक जैसी चाहत होने के बावजूद भी उसका बेटा आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है उसकी जगह दूसरा कोई होता तो शायद अब तक आगे बढ़कर अपनी प्यास को बढ़ा ली होती सुगंधा बिस्तर पर बैठे-बैठे यही सोच रही थी कि तभी वह इस बारे में भी सोच कर अपने मन को तसल्ली देने लगी थी अच्छा हो रहा है कि धीरे-धीरे खिलाकर पड़ रहा है इस धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए खेल में भी तो बहुत मजा आ रहा है,,,,।



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बाप रे कितना मोटा और लंबा है मेरे बेटे का लंड,,(: सुगंधा आश्चर्य चकित होते हुए अपने आप से ही बात करते हुए बोली) इतना मोटा और लंबा है कि उसे अपने हाथ से उठाकर खड़ा करना पड़ता है पेशाब करते समय वह किस तरह से ऊपर नीचे करके हिला रहा था वहां पर उसे नजारे को देख कर तुम्हें बेकाबू भेज रही थी मन कर रहा था उसे अपने हाथ में पकड़ लिया और अपने मुंह में डालकर जी भरकर प्यार करूं लेकिन मुझे तो नहीं लगता है कितना मोटा और लंबा लंड मेरे मुंह में ठीक तरह से आ पाएगा,,,(अपने आप से इस तरह की बात करते हुए वह अपनी दोनों टांगों के बीच की अपनी पत्नी दरार को देखते हुए और उसे पर हल्के से अपनी हथेली को रखकर सहलाते हुए मन में बोली) बाप रे इसकी तो खैर नहीं होगी जब मेरा बेटा अपने लंड को इसमें डालेगा देखो तो कितनी मासूम है एकदम मुलायम छोटा सा छेद और मेरे बेटे का लंड एकदम मोटा और लंबा एक बार घुस गया तो बुर का भोसड़ा बना देगा,,, कसम से लेकिन बहुत मजा आएगा जिस दिन मेरा बेटा मेरी बुर में अपना लंड डालेगा मुझे चोदेगा और मुझे चोद कर मादरचोद बन जाएगा,,,।




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यही सब सोच कर सुगंधा मदहोश हुए जा रही थी और उत्तेजित हुए जा रही थी,,,, बदन में जब मदहोशी छाने लगी और उत्तेजना का एहसास होने लगा तो वह दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखने लगी नित्य कम शुरू करने में अभी भी 10 मिनट का समय था इसलिए वह अपनी तानों को धीरे से खोल दी और अपनी हथेली को अपनी बर पर रखकर जोर-जोर से रगड़ना शुरू कर दिया और अपनी बुर को अपनी हथेली में दबोचना शुरू कर दी,,,, उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी वह मदहोश हुई जा रही थी वह एकदम चुदवासी थी इसलिए अपनी दो उंगली को अपनी बुर में एक साथ डालकर उसे अंदर बाहर करके हिलना शुरू कर दे और अपनी आंखों को बंद करके अपने बेटे के बारे में सोचने लगी और कल्पना करने लगी कि जैसे उसकी बुर में खुशी हुई उसकी उंगलियां नहीं बल्कि उसके बेटे का मोटा तगड़ा लंड है और उसका बेटा उसकी दोनों टांगों को खोलकर जोर-जोर से अपनी कमर हिला रहा है,,,।

इस तरह की कल्पना उसे अत्यधिक गर्मी प्रदान कर रही थी वह मदहोशी के परम शिखर पर पहुंच चुकी थी वह एक हाथ से अपनी बड़ी-बड़ी चूची को बारी बारी से दबाते हुए उत्तेजना से अपने लाल-लाल होठों को दांतों से भींचते हुए अपनी दोनों ऊंगलियों को बड़ी तेजी से अपनी बर के अंदर बाहर कर रही थी,,, वह चित्र से जानते थे कि जिस अंग को अपनी बर के अंदर लेना चाहती थी उसकी कमी को उसकी दो उंगलियां क्या तीन चार उंगलियां भी पूरी नहीं कर सकती थी वह जानती थी कि उसकी प्यास उसके बेटे के मोटे तगड़े लंड से ही बुझने वाली है,,, बिस्तर पर वह एकदम से पीठ के बल पसर गई थी अपनी दोनों टांगों को हवा में उठाए हुए बात अपनी उंगलियों को बड़ी तेजी से अंदर बाहर कर रही थी यह नजारा भी बहुत खूब था,,, आखिरकार उसकी उंगलियों ने भी अपनी मेहनत का असर दर्शना शुरू कर दी उंगली की गर्मी और उसकी रगड़ से उसकी बुर की अंदरूनी दीवारें पिघलने लगी उत्तेजना के मारे संकुचाने लगी,,,, और फिर उसका बदन एकदम से अकडने लगा,,, और फिर गरमा गरम लावा का फवारा उसके गुलाबी छेद से बाहर निकलने लगा वह झड़ने लगी मदहोश होने लगी उसकी सांसे ऊपर नीचे होने लगी उसकी सांसों की गति के साथ उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां भी पानी भरे गुब्बारे की तरह छाती पर लहराने लगी,,,,।



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और फिर धीरे-धीरे वह एकदम से शांत होने लगी वासना का तूफान उतरते ही वह अपने कपडो को ढूंढने लगी,,, जिसे वह कमरे में ऐसे ही अपने बदन से एक-एक करके सारे कपड़ों को उतार कर फेंक चुकी थी और बिस्तर पर उसके एक भी कपड़े नहीं थे सब नीचे जमीन पर बिखरे पड़े थे वह धीरे से बिस्तर पर से नीचे उतरी और एक-एक करके अपने कपड़ों को पहनने लगी,,,, पर अपने मन में सोचने लगी कि काश ऐसा दिन होता कि घर में वाहन पूरी तरह से नंगी होकर ही घूमती काम करती तो कितना मजा आ जाता,,, ऐसा सोचते हुए वह अपने कमरे से बाहर आ गई और दिनचर्या में लग गई,,।





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और यही हालत अंकित की भी थी,,,, अपनी मां के साथ पेशाब करने का सुख प्राप्त करके वह कमरे में आते ही अपने सारे कपड़े उतार कर अपनी मां के बारे में गंदे ख्याल मन में सोते हुए अपने लंड को हिलाते हुए मुठ मारने लगा था,,, और सुबह जब उसकी नींद खुली तो देखा कि सुबह मैं भी उसका लंड एकदम टाइट था,,,, रात का नजारा उसकी आंखों के सामने घूमने लगा,,, उसकी मां की बड़ी-बड़ी गांड उसका बैठकर पेशाब करना,, और उसका खुद का यह नजारा देखकर खड़ा हो जाना और फिर अपनी मां के बगल में खड़ा होकर अपने लंड को हिलाते हुए पेशाब करना उसकी मां की दोनों टांगों के बीच से निकलती हुई पेशाब की धार को देखना यह सब बेहद अद्भुत था और इन सब के बारे में सोचकर वह फिर से उत्तेजित होने लगा था और फिर धीरे से अपने कपड़े पहन कर बाथरूम में चला गया और वहां फिर से मुथ मारने लगा,,,,।




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चाय नाश्ता करके तृप्ति जा चुकी थी अंकित भी जाने की तैयारी में था वह रसोई घर में नाश्ते के लिए पहुंच चुका था लेकिन अपनी मां से नजरे मिला नहीं से कतरा रहा था और यही हाल सुगंधा का भी था वह भी अपने बेटे से नजर नहीं मिला पा रही थी,, दोनों एक दूसरे से बात तो करना चाहते थे लेकिन रात को जो कुछ भी हुआ था उससे बेहद शर्मिंदा भी थे हालांकि जिस तरह के हालात थे ऐसे में दोनों को शर्मिंदा नहीं होना चाहिए था लेकिन फिर भी दोनों के बीच मां बेटे का रिश्ता था इसलिए इस रिश्ते का लिहाज करते हुए दोनों को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी,,,।


अंकित रसोई घर में आकर वापस चला क्या हुआ अपनी मां से कुछ बोल नहीं पाया और सुगंधा भी उसे जाते हुए देखते रह गई वह भी उसे रोक नहीं पाई और फिर अपने मन में सोचने लगी कि वह यह क्या कर रही है,,, अगर ऐसा ही चला रहा तो वह अपनी ख्वाहिश को कभी नहीं पूरी कर पाएंगी,,, ऐसा कैसे हो सकता है आखिरकार वह अपने बेटे से इतना अत्यधिक तो खुल चुकी थी,,, और ऐसा तो था नहीं की वह पहली बार अपने बेटे की आंखों के सामने पेशाब कर रही हो ऐसा तो बहुत बार हो चुका था,,, हां नया हुआ था तो यही कि उसके साथ उसका बेटा भी पेशाब कर रहा था,,,, और शायद इसीलिए शर्मा कर उसका बेटा चला गया लेकिन वह भी तो कुछ कर नहीं पाई वह भी तो उसे रोक नहीं पाई,,,,।



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जाने दो जाता है तो,,, किसी काम का नहीं है इसकी जगह कोई और होता है तो अब तक उसकी ख्वाहिश पूरी कर चुका होता इतना कुछ होने के बावजूद भी कुछ समझ नहीं पा रहा है,,,(सुगंधा इस तरह से अपने आप से ही बात कर रही थी कि तभी उसके मन में ख्याल आया और वह फिर से अपने आप से ही बोली)

नहीं नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ भी नहीं हो पाएगा,,, अंकित को भी दूसरे लड़कों की तरह थोड़ा तेज होना चाहिए जैसा कि राहुल है अपनी मां के साथ खुले बाजार में भी कहीं भी हाथ रख देता है लेकिन अंकित ऐसा नहीं कर पता अंदर से डरता हूं उसे भी थोड़ा हिम्मत वाला होना चाहिए,,,, लेकिन अंकित तो पहले बहुत शर्माता था धीरे-धीरे उसने बदलाव तो आया है लेकिन अभी इतना खुल नहीं पाया है कि उसके साथ कुछ भी कर सके लेकिन वह भी तो पहले ऐसी नहीं थी संस्कारी थी मान मर्यादा वाली थी लेकिन अब जरूर बदल गई है लेकिन ऐसा भी तो नहीं की एकदम रंडी की तरह अपने बेटे के सामने अपने टांगे खोल दो और बोलो अपने लंड को डाल दे बल्कि है तो अंकित को समझना चाहिए एक औरत क्या चाहती है उसके इशारे को समझना चाहिए उसके सामने कपड़े उतारती है पेशाब करती है गंदी गंदी बातें करती है तो इतना तो समझना चाहिए कि औरत को क्या चाहिए लेकिन एकदम बेवकूफ की तरह रहता है,,,।



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लेकिन अगर अंकित ऐसा है तो मुझे अपने आप को बदलना होगा अगर मुझे अपनी ख्वाहिश को पूरी करनी है तो मुझे ही आगे कदम उठाना होगा वरना मेरी ख्वाहिश फिर से दबी की तभी रह जाएगी और अगर ऐसा ना हो पाया तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि बाहर किसी के साथ संबंध बन जाए और बदनामी हो जाए नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगी मैं अपने लिए अपने बेटे को ही तैयार करूंगी और इसके लिए मुझे मजबूर बना होगा बेशर्म बनना होगा,,,।

(नाश्ता तैयार करते हुए सुगंधा यही सब सो रही थी और वह जानती थी कि अब उसे भी पहल करना पड़ेगा वरना ऐसे ही चलता रहेगा,,,, इसलिए अंकित को आवाज देते हुए बोली,,,,)

अरे अंकित,,, कहां चला गया,,,, जल्दी से आ नाश्ता कर ले नाश्ता तैयार है,,,।
(अंकित शर्मा रहा था अपनी मां से नजर नहीं मिला पा रहा था लेकिन अपनी मां की आवाज सुनकर उसमें थोड़ी हिम्मत आई और वहां भी एकदम से जाकर रसोई घर के दरवाजे पर खड़ा हो गया और बोला,,,)

क्या हुआ मम्मी,,,?



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अरे तू चल क्यों गया नाश्ता तैयार है चल जल्दी से नाश्ता कर ले देर हो रही है,,,।

ठीक है मम्मी मैं तो बाथरूम करने के लिए चला गया था,,,,(अंकित जानबूझकर बाथरूम काबहाना करते हुए बोला क्योंकि वह अपनी मां से ऐसा नहीं जाताना चाहता था कि वह कल वाले वाक्या की वजह से शर्मिंदगी महसूस कर रहा है,,,,)

चल कोई बात नहीं जल्दी से नाश्ता कर ले,,,।

(और फिर सहज होते हुए अंकित वही रसोई घर में पड़ी हुई कुर्सी पर बैठकर नाश्ता करने लगा,,,,,,, अंकित भी अपनी मां से बात करना चाहता था लेकिन शर्मा रहा था सुगंध भी बात की शुरुआत करना चाहती थी और ऐसी शुरुआत जो एकदम गरमा गरम हो क्योंकि वह जानती थी कि अब उसे ही पहल करना पड़ेगा उसे ही आगे बढ़ना होगा तभी वह अपनी मंजिल तक पहुंच पाएगी वरना रास्ते में भटकती रहेगी इसलिए वह कुछ देर बाद बोली,,,।)



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अंकित एक बात पूछूं सच सच बताना,,,।(रोटी बनाते हुए अंकित की तरफ देखे बिना बोली,,)

हां हां पूछो क्या हुआ,,,?

तेरी तबीयत तो ठीक रहती है ना,,,,।


ऐसा क्यों पूछ रही हो मेरी तबीयत तो हमेशा ठीक रहती है,,,।

देखा सच-सच बताना तुझे मेरी कसम बिल्कुल भी मुझे बहकाने की कोशिश मत करना,,,,।


मम्मी तुम ऐसा क्यों बोल रही हो मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है और मेरी तबियत एकदम ठीक है मुझे कुछ नहीं हुआ है,,,,।

मुझे ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता तो सामान्य दिखता है लेकिन है नहीं,,,,।


लेकिन तुम मम्मी ऐसा क्यों कह रही हो,,,,?


कल रात की वजह से,,,,।

कल रात की वजह से मैं कुछ समझा नहीं,,,,(नाश्ता करते-करते रात का जिक्र होते ही अंकित एकदम से रुको क्या उसका दिल जोरो से धड़कने लगा)


अंकित एक मां होने के नाते मुझे इस तरह की बातें तो करना नहीं चाहिए लेकिन फिर भी तेरे स्वास्थ्य का सवाल है इसलिए मुझे बोलना पड़ रहा है,,,।

लेकिन हुआ क्या है मम्मी कुछ तो बताओ,,,।

तेरा वो,,,(अंकित की तरफ घूमकर उंगली से उसकी दोनों टांगों के बीच ईसारा करते हुए) काफी मोटा और लंबा है,,,.

(अपनी मां के कहने का मतलब को अंकित समझ चुका था उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी और बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी थी,,,,)

तुम किस बारे में बात कर रही हो मम्मी,,,(अंकित समझ गया था कि उसकी मां क्या कहना चाह रही है और किसके बारे में बात कर रही है लेकिन फिर भी वह अनजान बनता हुआ बोला,,,)

तेरे उसके बारे में,,,(फिर से उंगली से उसकी दोनों टांगों के बीच ईसारा करते हुए बोली,,,)


ऐसा नहीं है मम्मी सबका ऐसा ही होता होगा,,,।(अंकित सहज बनने का नाटक करते हुए नाश्ता करने लगा और बोला)


नहीं नहीं सबका ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता,,,,।


तुमको कैसे मालूम मम्मी तुम क्या सबको देखती रहती हो क्या,,,?

(अंकित शरारत करते हुए बोला और उसकी बात सुनकर अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोली,,,)

तुझे क्या मैं दूसरी औरतों की तरह लगती हूं क्या जो सबका देखती फिरू,,,, मैं जानती हूं इसलिए कह रही हूं क्योंकि मैं तेरे पापा का देखा है,,,(सुगंधा एकदम से बेशर्म बनते हुए बोली और उसकी बात सुनकर अंकित के लंड का तनाव बढ़ने लगा वह आश्चर्य से अपनी मां की तरफ देखने लगा और बोला,,,)

उनका भी तो बड़ा होगा ना मेरी तरह आखिरकार मैं उनका बेटा जो हूं,,,,(अपनी मां की बात सुनकर अंकित के तन बदन में मदहोशी छाने लगी थी वह जानता था कि इस तरह की बात करने पर उसकी मां बिल्कुल भी नाराज नहीं होगी इसलिए वह भी मौके का फायदा उठाते हुए बोल रहा था,,,)

वह तुम्हें जानती हूं लेकिन मैं यह भी जानती हूं कि तेरे पापा का तेरे जैसा बिल्कुल भी नहीं था,,,।

तो कैसा था पापा का,,,?(अंकित अपनी मां की तरफ देखते हुए बोला ,,)

तेरे से आधा भी नहीं था और एकदम पतला,,,,।(सुगंधा अपने बेटे से हकीकत बयां करते हुए बोली वह सच बोल रही थी क्योंकि भले ही जब तक उसके पति जीवित थे वह अपने पति से ही शरीर सुख प्राप्त करती रही और इस बारे में उसे बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था कि उसके पति से भी मोटा और लंबा लंड दूसरों का होता है और दूसरों के बारे में न जाने की वजह से ही वह अपने पति से खुश थी लेकिन जब से वह अपने बेटे का लंड देखी थी तब से वह एकदम हैरान थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि लंड इतना मोटा और लंबा भी होता है अपनी मां की बात सुनकर अंकित वास्तव में आश्चर्य से भर गया क्योंकि वैसे यकीन नहीं हो रहा था कि तुम खूबसूरत जवानी से भरी हुई औरत की बुर में उंगली जितना लंड अंदर बाहर जाता होगा,,,,)

क्या बात कर रही हो मम्मी ऐसा कैसे हो सकता है,,, में तो समझता था की सब का मेरे जैसा ही होता होगा,,,,।

नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है जब तक मैं तेरा नहीं देखी थी मुझे भी ऐसा लगता था कि तेरे पापा जैसा ही सब था होता होगा लेकिन तेरा देख कर तो मेरे होश उड़ गए हैं तेरा तो कुछ ज्यादा ही लंबा और मोटा है क्या तुझे दिक्कत नहीं होती अगर होती है तो मुझे बता दे डॉक्टर से मिल लेते हैं दवा ले लेते हैं,,,,।

लेकिन कैसी दिक्कत मुझे तो कोई दिक्कत नहीं आती,,,,,।


नहीं नहीं मैं कल रात तेरी परेशानी देखी थी तेरा मोटा और लंबा लंड कुछ ज्यादा ही वजनदार है तभी तो नीचे झुक जाता है तुझे हाथ से उठाना पड़ता है,,,(एकदम मासूमियत भरा चेहरा बनाकर वह अपने बेटे से बात कर रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे सच में वह अपने बेटे से उसकी परेशानी के बारे में बात कर रही है बल्कि वह उसकी परेशानी नहीं बल्कि इस तरह की बात का जिक्र छेड़कर वह अपने लिए रास्ता बना रही थी,,,,)

नहीं मम्मी ऐसा कुछ भी नहीं है वह तो नेचुरल है,,,(अंकित भी एकदम मदहोश होता हुआ बोला,,, इस तरह की बातें करके सुगंधा की भी बुर पानी छोड़ रही थी,,,)


नेचुरल कैसे हैं तो उसे हाथ का सहारा देकर पकड़े हुए था,,,, पेशाब करते समय क्या तुझे बिल्कुल भी दिक्कत पेश नहीं आती उसकी वजन की वजह से,,,,।(इस बार वह साड़ी के ऊपर से अपनी बुर को खुजलाते हुए बोली,,, पेशावर जानबूझकर की थी अपने बेटे का ध्यान अपनी बुर के ऊपर केंद्रित करने के लिए और ऐसा ही हुआ था अंकित अपनी मां की हरकत को देखकर मत हो गया था और जवाब में वह भी पेट में बने तंबू को अपने हाथ से पकड़ कर दबाने की कोशिश करते हुए बोला,,,)


नहीं नहीं मुझे तो बिल्कुल भी दिक्कत नहीं आती बल्कि मुझे तो अच्छा लगता है उसकी मोटाई और लंबाई की वजह से भारी-भारी सा लगता है और सच कहूं तो हमेशा उसे पकड़ना नहीं पड़ता जब एकदम खड़ा हो जाता है तो बिना किसी सहारे के ही एकदम खड़ा ही रहता है,,,,,।(अंकित भी एकदम बेशर्म बनता हुआ बोल और उसकी यह बात सुनकर सुगंधा इतनी मदहोश हो गई कि उसकी बुर से मदन दन रस की बूंद टपक पड़ी,,,, सुगंधा उसे देखते ही रह गई मन ही मनुष्य अपने बेटे के लंड पर उसकी मर्दानगी पर गर्व हो रहा था,,, नाश्ता करके अंकित कुर्सी पर से उठकर खड़ा हो गया था और झूठे बर्तन को वह किचन के ऊपर रखने के लिए आया तब उसकी मां एकदम मत हो चुकी थी यार एकदम से उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच ली और अपनी बाहों में भर ली ऐसा करने से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां से उसका सीना एकदम से सट गया और एकदम मदहोश होते हुए बिना वक्त गंवाए,,, अपने लाल-लाल होठों को अपने बेटे के होठों पर रखकर चुंबन करने लगी उसका बेटा को समझ पाता है इससे पहले ही वह पागलों की तरह अपने बेटे के होठों को चूसना शुरू कर दी थी,,,, पहले तो अंकित एकदम से कुछ समझ ही नहीं पाया लेकिन जैसे उसे एहसास हुआ कि उसकी मां क्या कर रही है वह अपने दोनों हाथों को तुरंत अपनी मां के निकम दो पर रख दिया और उसे हल्के से दबाने का शुभ प्राप्त करने लगा और अपने पेट मैं बने तंबू को भी आगे की तरफ बढ़कर अपनी मां की बुर पर साड़ी के ऊपर से ही उसे पर दबाव बनाने लगा जिसका एहसास सुगंधा को भी हो रहा था सुगंधा एकदम मद होश चुकी थी,,,,

यह चुंबन आगे बढ़ता है इससे पहले ही अंकित ने जो झूठा बर्तन किचन पर रखा था वह ठीक से न रखने की वजह से एकदम से नीचे गिर गया और उसकी आवाज होते हैं सुगंधा की तंद्रा भंग हो गई,,, और एकदम से वह होश में आ गई और अपनी बाहों से अपने बेटे को धीरे से अलग करते हुए बोली,,,।


मुझे तेरी बहुत चिंता हो रही थी जब से कल में तुझे पेशाब करते हुए देखी हूं तब से उसकी लंबाई और मोटाई को लेकर मुझे चिंता हो रही थी कि कहीं मेरा बेटा परेशानी में तो नहीं है मैं रात भर सो नहीं पाई हूं,,,,,, तेरी बात सुनकर मुझे राहत हुई कि तू कोई परेशानी में नहीं है सच में तुझे कोई परेशानी नहीं है ना,,,,।


बिल्कुल भी नहीं मम्मी मैं एकदम ठीक हूं,,,।

मेरा राजा बेटा,,,(गाल को सहलाते हुए) अब जा बहुत देर हो रही है मुझे भी जाना है,,,.

ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहकर अपने मन में यह सोचते हुए अंकित रसोई घर से बाहर निकल गया कि वह जानता है कि रात भर उसकी मां क्या सोचती रही उसके लंड़के के बारे में वह चिंतित नहीं थी बल्कि मत हो चुकी थी उसका लंड देखकर और अंकित मन ही मन बर्तन को गाली देने लगा की सलाह सही समय पर गलत जगह गिर गया अगर कुछ देर और नहीं गिरा होता तो शायद कुछ और हो जाता क्योंकि वह जानता था कि उसकी मां भी पूरी मदहोश हो चुकी थी पागल हो चुकी थी,,,,,,,और वह अपने मन में ऐसा सोचते हुए अपना बेग उठाकर स्कूल के लिए निकल गया,,,।

उसके जाते ही सुगंधा अपनी साड़ी उठाकर अपनी एक बर की स्थिति को देखने लगी पूरी तरह से पानी पानी हो चुकी थी एकदम गिरी और उसे साफ एहसास हो रहा था कि उसके बेटे के पेट में बना तंभूत सीधे उसकी बुर पर ठोकर मार रहा था अगर साड़ी और उसके बेटे का पेंट दोनों के बीच ना होता तो उसका लंड उसकी बुर में घुस गया होता,,,, सुगंधा को भी देर हो रहा था लेकिन यह अपने पहले चुंबन से वह काफी प्रभावित और उत्तेजित हो चुकी थी जिंदगी में पहली बार वह इस तरह की हिमाकत की थी उसे बहुत अच्छा लग रहा था उसके बदन में अभी भी उत्तेजना की लहर उठ रही थी,,,, इस तरह का चुंबन कितना आनंद देता है आज उसे एहसास हो रहा था,,,।

वह जल्दी से तैयार होकर स्कूल के निकल गई,,,।
बहुत ही कामुक और रोमांचक अपडेट था ! बहुत ग़ज़ब लिख रहे हो भैया जी !! 👏🏻👏🏻
 
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