lovlesh2002
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Rohnny भाई, जल्दी से मोबाइल ठीक कर कर पोस्ट करिए, इंतजार करना बहुत मुश्किल होता है। मेरे कमेंट का रिप्लाई जरूर करना, मैं आपसे कैसे बात कर सकता हूं।
Tumhe MSG Kiya hu private meRohnny भाई, जल्दी से मोबाइल ठीक कर कर पोस्ट करिए, इंतजार करना बहुत मुश्किल होता है। मेरे कमेंट का रिप्लाई जरूर करना, मैं आपसे कैसे बात कर सकता हूं।
Behtreen update rohnny bhai .ab to story ki thodi speed bada doदरवाजे पर हो रही दस्तक मां बेटे दोनों के चेहरे पर की उत्तेजना और मदहोशी को पल भर में ही खत्म कर चुके थे और दोनों हक्का-बक्का हो गए थे दोनों आश्चर्य से एक दूसरे को देख रहे थे क्योंकि खेल का असली मजा थोड़ा बहाना शुरू हुआ था लेकिन तभी दरवाजे पर दस्तक होने लगी थी दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखे तो वाकई में दोनों के बीच के इस मधुर मिलन की घड़ी में कुछ ज्यादा ही समय व्यतीत हो चुका था जिसका दोनों को पता नहीं चला था,,,,। सुगंध और अंकित दोनों समझ गए थे की तृप्ति आ चुकी थी क्योंकि यह उसके आने का समय था लेकिन इतनी जल्दी समय गुजर जाएगा यह एहसास दोनों को नहीं हुआ था इसलिए दोनों थोड़ा आश्चर्य में थे कि इतनी जल्दी इतना समय कैसे गुजर गया,,,।
5:30 का समय हो चुका था और इसी समय तृप्ति घर पर वापस आती थी पहले तो अंकित को आश्चर्य हुआ लेकिन उसकी मां ने ही बताई की 5:30 बज चुका है तृप्ति जल्दी नहीं आई है अपने समय पर ही है उन दोनों को ही कुछ ज्यादा समय निकल गया था इस क्रीडा में,,,, तृप्ति के आते ही मां बेटे दोनों के चेहरे पर से हवाइयां उड़ने लगी थी क्योंकि इस समय अंकित अपनी मां के ही कमरे में था और अपने हाथों से अपनी मां को ब्रा और पेंटी पहनाया था और इस कार्य को करके अंकित अपने आप को दुनिया का सबसे भाग्यशाली बैठा समझ रहा था और वाकई में वह इस समय सबसे ज्यादा भाग्यशाली भी था क्योंकि भला ऐसा कौन सा बेटा होगा जो अपनी मां को अपने ही हाथों से अपने द्वारा लाई गई ब्रा और पेंटी पहनाता हो,,, और इस क्रिया को करते-करते वह पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुका था और अपनी मां को भी पूरी तरह से मदहोश कर चुका था,,,,,।
दोनों इस खेल में और ज्यादा आगे बढ़ना चाहते थे अपने बेटे की हरकत और उसकी बहादुरी देखकर सुगंध मन ही मन बहुत खुश हो रही थी क्योंकि उसकी युक्ति पूरी तरह से काम कर गई थी,,, जानबूझकर गिरने का नाटक करते हुए जिस तरह से वह अपने बेटे की बाहों में गिरी थी और उसके बेटे ने भी एक कदम आगे बढ़कर अपनी मां की सोच से कई ज्यादा अपनी हरकत को अंजाम दिया था और उसे संभालने के चक्कर में उसकी बुर को पूरी तरह से मसल दिया था और यह एहसास सुगंधा को पानी पानी कर गया था,,, अपने बेटे की हरकत की वजह से सुगंधा को उम्मीद की किरण नजर आने लगी थी और ऐसा उसे महसूस हो रहा था कि आज ही उन दोनों के बीच संभोग क्रिया का शुभारंभ हो जाएगा लेकिन इन मौके पर तृप्ति आ गई थी,,,।
तृप्ति के आ जाने की वजह से मां बेटे दोनों घबरा गए थे लेकिन सुगंधा स्थिति को संभालते हुए इस दरवाजा खोलने के लिए बोली थी और खुद जल्दी से गाउन अपने बदन पर डाल देती थी और नई ब्रा और पैंटी को अपनी अलमारी में छुपा दी थी और दरवाजा खोलने के बाद तृप्ति अगर कुछ पूछे तो क्या बोलना है यह भी अंकित को सिखा दी थी पहले तो सुगंधा इस तरह की चालाकियो से बिल्कुल भी वाकिफ नहीं थी लेकिन वासना की मदहोशी में वह इस कदर डूबने लगी थी कि अपने आप ही उसे सारे रास्ते नजर आने लगे थे बहानो पर बहाना बनाना उसे आने लगा था,,, अपने बेटे को समझ कर जल्दी-जल्दी ब्रा पेंटी को अलमारी में रखने के बाद वह अपने बदन पर गाउन डाल दी थी और अंकित तुरंत दरवाजा खोलने के लिए पहुंच चुका था उसके पेट में बना तंबुआ जैसे तैसे करके छुपा लिया था लेकिन दरवाजा खोलने के बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था जैसा कि उन दोनों सोच रहे थे,,,।
घर में दाखिल होते ही तृप्ति के चेहरे पर थकाई साफ नजर आ रही थी वह थक चुकी थी इसलिए कुर्सी पर बैठ गई थी,,, कुर्सी पर बैठते ही वह अंकित से बोली,,,।
तु आज कहीं गया नहीं,,, और मम्मी कहां है दिख नहीं रही है,,,,।
वववववव,,, वह आज है ना मम्मी सफाई कर रही थी सारे कपड़े धो रही थी और मैं भी मम्मी की मदद कर रहा था मम्मी अंदर ही अपने कमरे में,,,,।
क्या बात है आज घर की सफाई हो गई,,,,।(तृप्ति आश्चर्य जताते हुए बोली)
घर की थोड़ी बहुत हुई है लेकिन कपड़े बहुत सारे धोने थे,,,,।
मतलब सारे कपड़े धो दिए,,,
लेकिन दीदी तुम क्यों हैरान हो रही हो,,,।
अरे हैरानी की तो बात है मम्मी मेरे बगैर सफाई नहीं करती और आज,,,।
हां मम्मी बता रही थी,,,, लेकिन क्या है ना की आज रजा का दिन भी था और मैं कहीं गया भी नहीं था तो मम्मी आज ही कपड़े धोने लगी और मुझसे मदद के लिए भी बोली थी तो मैं भी मदद कर दिया।
चल अच्छा किया मेरा तो टेंशन दूर हुआ,,,, मम्मी को जरा बोल चाय बना दे मैं थक गई हूं,,,,।
ठीक है दीदी,,,,(इतना कहकर अंकित अपनी मां के कमरे में अपनी मां को बुलाने के लिए चला गया और मन ही मन खुश हो रहा था कि उसकी बहन को कुछ भी पता नहीं चला था वह तुरंत अपनी मां के कमरे में गया जहां पर पहले से ही सुगंधा अंकित का इंतजार कर रही थी की कही,,, तृप्ति कुछ बोली तो नहीं। अंकित को देखते ही वह बोली,,,)
क्या हुआ क्या बोली तृप्ति,,,?
कुछ नहीं चाय बनाने के लिए बोली वह थक गई है,,,।
अच्छा हुआ,,,, चल मैं जल्दी से चाय बना देती हूं मैं भी थक गई हूं,,,,,।
तुम कैसे थक गई मम्मी ब्रा और पेटी पहन कर देखते देखते थक गई,,,।
नहीं तेरे हाथों से पहन कर थक गई,,,,।(मुस्कुराते हुए सुगंधा बोली)
लेकिन सच में मम्मी तुम ब्रा पेंटी में बहुत खूबसूरत लगती हो मैं तो पहली बार तुम्हें ब्रा पेंटी में देख रहा था लेकिन अभी भी एक जोड़ी रह गई है नाप लेने के लिए,,,,।
ना बाबा ना अब किसी और से देखा नहीं नापते नापते मुझे चक्कर आ गया था,,,।(चेहरे पर मादक मुस्कान लाते हुए सुगंधा खुली वह ऐसा कहकर अपने बेटे को याद दिलाना चाहती थी वह पल जिस पल में दोनों पूरी तरह से खो चुके थे,,,)
सच में घर में तुम्हारे पीछे खड़ा ना होता तो तुम्हें चोट लग जाती तुम गिर जाती कुछ भी हो सकता था अच्छा हुआ मैं तुम्हारे पीछे पड़ा था और तुम्हें पकड़ कर संभाल लिया,,,।
संभाल तो लिया लेकिन संभालने के चक्कर में तेरा हाथ कहां घूम रहा था मैं तो सोच कर ही शर्म से पानी पानी हुए जा रही हूं,,,।
कहां मेरा हाथ घूम रहा था बताओ तो मैं तो तुम्हें संभाल रहा था,,,।(अंकित सब कुछ जानता था बल्कि वह जानबूझकर ही अपनी मां की बुर पर हाथ रखकर उसे मसल दिया था लेकिन फिर भी अनजान बनने का नाटक कर रहा था और उसकी बात सुनकर उसकी मां मुस्कुराते हुए बोली)
चल रहने दे किसी और दिन बताऊंगी अब जल्दी से मुझे चाय बनाने दे,,,,(ऐसा कहकर सुगंधा अपने कमरे से बाहर जाने ही वाली थी कि तुरंत उसका हाथ पकड़ कर रोकते हुए अंकित मुस्कुराते हुए बोला)
वैसे गाउन में भी तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो लेकिन यह गाउन थोड़ा ढीला डाला है अगर कसा हुआ गाऊन होता तो और मजा आता,,,।
अच्छा तो तुझे टाइट गाऊन देखने में अच्छा लगता है,,,,।
टाइट गाउन देखने में नहीं बल्कि टाइट गाउन के अंदर तुमको देखने में ज्यादा अच्छा लगेगा,,,,।
ओहहहह,,,, मैं अच्छी तरह से समझ रही हूं तो क्या देखना चाहता हूं चलो जाने दे मुझे चाय बनाना है,,,।
(इतना कहते हुए हाथ छुड़ाकर सुगंधा चाय बनाने के लिए चली गई सुगंधा के जाते ही कुछ देर के लिए अंकित वही अपनी मां के बिस्तर पर बैठ गया और कुछ देर पहले जो कुछ भी है उसके बारे में सोचने लगा जो कुछ भी हुआ था वह बेहद अद्भुत और मदहोश कर देने वाला था जो की पूरी तरह से वासना से भरा हुआ था अंकित कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह अपनी मां को ब्रा पेंटी खरीद कर लाकर देगा और तोहार उसे खुद अपने हाथों से पहना आएगा ऐसा सौभाग्य भला किसे मिलता है और आज तो वह बेहद करीब से अपनी मां की कचोरी जैसी खुली हुई बुर को भी देखा था जो की कितनी खूबसूरत नजर आ रही थी बर का ख्याल आते ही उसके लंड का तनाव एकदम से फिर से बढ़ने लगा,,,,, और उसे वहां पर याद आने लगा जब वह अपनी मां को संभालने का बहाना करके अपनी हथेली को अपनी मां की बुर पर रखकर जोर से मसल दिया था वाकई में उसकी मां की बुर कितनी गर्म थी उसे तब जाकर एहसास हुआ था जब उसकी हथेली पूरी तरह से गर्म हो गई थी,,,,।
उस पल को याद करके अंकित के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी वह कभी सोचा नहीं था कि इतना कुछ उसे देखने को और महसूस करने को मिलेगा खास करके अपनी मां के प्रति,,, जाने अनजाने में वह अपनी मां की चूची को भी दबा चुका था वाकई में बाहर से कड़क दिखने वाली चुची अंदर से कितनी नरम और मुलायम होती है इसका एहसास उसे दूसरी बार हो रहा था लेकिन इस बार का एहसास उसे मदहोश कर गया था,,,, पहली बार सुमन के साथ उसने इस तरह का अनुभव लिया था और उसे अनुभव के चलते उसे बहुत कुछ सीखने को मिला था लेकिन अपनी मां के साथ अभी वह पूरी तरह से मदहोशी का दामन पकड़कर आगे बढ़ता चला जा रहा था और धीरे-धीरे बहुत कुछ सीखता चला जा रहा था लेकिन इन मौके पर बड़ी बहन की आ जाने की वजह से वह इस खेल में ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया था वरना आज तो उद्घाटन हो ही जाता,,,, इन सब के बारे में सोचकर अंकित की उत्तेजना परम शिखर पर पहुंच चुके थे उसका लंड पूरी तरह से पेंट में तंबू बनाया हुआ था,,, उसे शांत करना भी जरूरी था लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे शांत करें क्योंकि बार-बार वह अपना मन भटकाने की कोशिश करता था लेकिन बार-बार उसका मन उसकी मां की मदहोश कर देने वाली जवानी पर जाकर टीक जा रही थी।
बहुत प्रयास करने के बाद भी जब उसकी उत्तेजना शांत नहीं हुई तो उसे ना चाहते हुए भी बाथरुम में जाकर अपने हाथ का सहारा लेना पड़ा तब जाकर उसका तंबू अपनी स्थिति में आया तब तक चाबी बन चुकी थी वह हाथ में ढोकर अपनी बहन के साथ चाय पीने बैठ गया था,,,, साथ में सुगंधा भी चाय का कप लेकर पेट गई थी चाय पीने के लिए और बार-बार अंकित की तरफ ही देख रही थी आज अंकित की हिम्मत और उसकी हरकत को देखकर सुगंधा के चेहरे पर एक अजीब सी आभा नजर आ रही थी,,, क्योंकि उसे यकीन हो गया था कि बहुत ही जल्दी उसकी भी ख्वाहिश पूरी होने वाली है उसके भी अरमान पूरे होने वाले हैं,,,, तिरछी नजर से अंकीत भी अपनी मां की तरफ देख लेना क्योंकि आज बहुत कुछ दोनों में हो चुका था,,,,।
चाय पी लेने के बाद तृप्ति अपनी मां से बोली,, ।
आज क्या बनेगा मम्मी,,,,।
आज तो रविवार है तू ही बता क्या बनेगा,,,,(सुगंधा उल्टा ही तृप्ति से ही पूछने लगी तो तृप्ति बोली,,,)
खीर पूरी सब्जी बना दो,,,,।
बना दो,,,, नहीं तुझे भी बनवाना पड़ेगा इतना सारा अकेले थोड़ी बना पाऊंगी,,,।
अरे हां मम्मी बना दूंगी चिंता मत करो,,,। लेकिन पहले यह बर्तन के धो लुं,,,(इतना कहकर कुर्सी पर से उठकर खड़ी हो गई और बर्तन धोने लगी और खाना बनाने की तैयारी करने लगी शाम ढल चुकी थी अंधेरा होने लगा था रसोई में जब खाना बना रही थी तभी पता चला कि दुध तो है ही नहीं,,,, तो वह अपनी मम्मी से बोली,,,।)
मम्मी दुध तो है ही नहीं खीर कैसे बनेगी,,,।
अंकित को बोल दूध लेकर आए,,,,।
(इतना सुनकर किचन में से ही अंकित को आवाज लगाते हुए तृप्ति बोली)
अंकित जल्दी आ,,,,।
(इतना सुनकर अंकित जोकि किताब उठाकर पढ़ने की कोशिश कर रहा था वह तुरंत किताब एक तरफ रखकर किचन में पहुंच गया जहां पर पहुंचते ही तृप्ति बोली,,,)
जल्दी से जा दूध लेकर दूध खत्म हो गया है,,,,।
दूध खत्म हो गया है तो क्या हुआ कौन सा चाय पीना है,,,।
अरे बेवकूफ चाय नहीं पीना है लेकिन खीर बन रही है बिना दूध के खीर कैसे बनेगी जा जल्दी लेकर आ,,,.
ओहहह मैं तो भूल ही गया था की खीर बन रही है अभी लेकर आता हूं,,,,(खीर का नाम सुनते ही खुश होता हुआ अंकित बोला,,, लेकिन फिर जैसे कुछ याद आया हो वह एकदम से बोला,,) लेकिन पैसे,,,,।
(इतना सुनकर तृप्ति कुछ बोलती इससे पहले ही सुगंधा बोली,,,)
जा जाकर अलमारी के ड्रोवर में रखी होगी ले ले,,,।
(इतना सुनते ही खुशी-खुशी अंकित अपनी मां के कमरे में पहुंच गया और अलमारी खोलकर,,,, ड्रोवर खोलने लगा,,, पैसे तो उसे मिल गए लेकिन उसे ड्रोवर के अंदर की तरफ कोई किताब रखी हुई दिखाई दी जो की रंगीन पन्ने वाली थी,,,, उत्सुकता बस अंकित उसे किताब को बाहर निकाला तो उसके मुखपृष्ठ को देखकर उसके होश उड़ गए,,,, मुख पृष्ठ पर ही नग्न अवस्था में चित्र छपा हुआ था उसे चित्र को देखते ही अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा और वह अपने मन में सोचने लगा किस तरह की किताब मम्मी की अलमारी में क्या कर रही है,,,,। मुख पृष्ठ को देखकर ही उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह मुख्य पृष्ठ को देखकर इतना तो समझ ही गया था कि यह किताब गांधी किताब है जैसा कि वह अपने दोस्त के साथ देख चुका था लेकिन यह किताब कुछ और ही थी क्योंकि वह पतली किताब थी लेकिन यह मोटी किताब थी,,, और इसीलिए वह उत्सुकता बस जल्दी से उसे किताब के बीच के पन्ने को पलट कर कुछ शब्दों की झलकियां लेने की चाह रखता हुआ वह पढ़ने लगा तभी उसे किताब में जो लिखा था उसे पढ़कर उसका दिमाग एकदम से सन्न रह गया,,,,।
राहुल अपनी मां को घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी फोटो में अपना लंड डालकर उसकी चुदाई करना शुरू कर दिया,,,, इतना पढ़ते ही तो अंकित की हालत खराब होने लगी उसके माथे से पसीना लगा उसे समझते थे नहीं लगी कि यह किताब गंदी कहानियों वाली किताब है जिसमें मां बेटे की कहानी है। इतना पढ़ते ही आगे पढ़ने की अंकित की हिम्मत नहीं हुई और वह तुरंत किताब को बंद कर दिया लेकिन उसे अपनी मां के अलमारी में नहीं रखा इतना तो वह समझ गया था कि उसकी मां भी इस किताब को पड़ी होगी इसके अंदर की कहानियों को पढ़ी होगी,,,, अब उसका मन भी उसे किताब की कहानियों को पढ़ने के लिए मचलने लगा इसलिए वह अपनी मां की अलमारी में उसे किताब को ना रख कर उसे छुपा कर आया और अपने कमरे में अपने स्कूल के बैग में डाल दिया और फिर दूध लेने के लिए चला गया,,,,।
बाहर व सड़क पर चला जा रहा था दूध लेने के लिए तभी सामने से सुमन आ रही थी जिसे देखते ही अंकित के दिल की घंटी जोरों से बजने लगी और सुमन की भी नजर अंकित पर पड़ गई तो उसके भी चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी ,,, अभी कुछ दिन पहले ही वह अपनी जवानी का जलवा अंकित के ऊपर बिखरने में कुछ हद तक सफल हो चुकी थी इसलिए,अंकित को देखते ही वह मुस्कुरा कर बोली,,,।
अरे अंकित कहां चले जा रहे हो,,,,।
वो,,वो,,,, मम्मी ने दूध लाने के लिए भेजा है,,,,।
अरे मेरे होते हुए तुम्हें दूध लेने की जरूरत कैसे पड़ गई,,,,, मेरा मतलब है कि चलो मैं भी चलती हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही वह भी साथ हो चली अंकित तो शर्म के मारे कुछ बोल नहीं पा रहा था लेकिन सुमन ही बात की शुरुआत अपने मुताबिक करते हुए बोली,,,)
अंकित उस दिन तुम्हें कैसा लगा था,,,?(सीधे मतलब की बात पर आते हुए सुमन बोली)
किस दिन दीदी,,,,।
अरे बुद्धू दीदी मत कहा करो अकेले में बिल्कुल भी मत कहा करो मेरा नाम लिया करो भूल गए उसे दिन क्या हुआ था मैं उसे दिन की बात कर रही हूं जब तुम मेरी चूची दबा रहे थे,,,,,,।
(सुमन के मुंह से एकदम खुले शब्दों में च शब्द सुनकर अंकित की हालत पतली होने लगी उसके चेहरे की रंगत एकदम से बदलने लगी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि एक लड़की इतनी खुले शब्दों में कैसे बातें कर सकती है लेकिन वह सुमन को अच्छी तरह से जानने लग गया था लेकिन फिर भी उसकी बातें उसे उत्तेजित किया जा रहे थे और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सुमन बोली,,,,)
एक तरफ चुची भी दबाते हो और दीदी भी बोलते हो,,,,।
(सुमन की बात सुनकर शर्म के मारे अंकित कुछ बोल नहीं पाया सुमन ही बोले जा रही थी)
अच्छा सही बताना मजा आया था कि नहीं,,,,।
(सुमन की बात सुनकर अंकित शरमाते हुए बोला कुछ नहीं बस हां मैं सर हीला दिया तो सुमन नाराज होते हुए बोली।)
अरे कुछ बोलोगे या ऐसे ही सिर हिलाते रहोगे,,,, कहीं ऐसा ना हो कि घर पर जाकर सर की जगह कुछ और हिलाना पड़ जाए,,,,।
कककक,,, कुछ और मतलब,,,,(अंकित शर्माते हुए बोला,,,)
हिलाने जैसा क्या है तुम्हारे पास,,,(सुमन मुस्कुराते हुए बोली वह पूरी तरह से बेशर्म बन चुकी थी अंकित को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें लेकिन उसने जैसे ही जाने जैसा क्या है तुम्हारे पास बोली वैसे ही अंकित की नजर अपने आप ही अपने दोनों टांगों के बीच चली गई जिसमें धीरे-धीरे तंबू बन रहा था और मौका देखकर सुमन भी मुस्कुराते हुए बोली,,,)
हां वही है तुम्हारे पास हीलाने के लिए,,,, अब जरा बोलकर बताना क्या उससे मेरी चूची दबाने में मजा आया था,,,।
(उसकी बेशर्मी देख कर अंकित का भी हौसला बुलंद हो रहा था इसलिए वहभी शर्माते हुए बोला,,)
बहुत मजा आया था,,,,।
इससे पहले कभी किसी की चूची देखे थे,,,।(सुमन मुस्कुराते हुए बोली।)
नहीं बिल्कुल भी नहीं मैं जिंदगी में पहली बार उस चीज को देखा हूं,,,(अंकित पहले भी अपनी मां की बड़ी-बड़ी चूचियों को देख चुका था लेकिन सुमन से तो यह कह नहीं सकता था कि वह इससे पहले भी चुची देख चुका है और वह भी अपनी मां की इसलिए सुमन से वह झूठ बोल रहा था,,,)
ओहहहह ,, तभी उसे दिन पागलों की तरह देख रहे थे लेकिन मजा बहुत आया था ना,,,,।
मजा तो बहुत आया था दीदी,,,, सॉरी मेरा मतलब है सुमन दीदी,,,,।
फिरदीदी,,,, चलो कोई बात नहीं धीरे-धीरे आदत पड़ जाएगी,,,,, उसे दिन तुम्हें और कुछ दिखाने वाली थी लेकिन मम्मी आ गई देखना चाहोगे मेरा और कुछ,,,,।
(अंकित शर्म के मारे कुछ बोला नहीं तो सुमन अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)
शर्माने की जरूरत नहीं है जब कोई नहीं रहे तो तुम्हें बुलाऊंगी चले आना जन्नत दिखाऊंगी,,,,।
(सुमन और कुछ बोल पाती ईससे पहले ही दूध की दुकान पर पहुंच गए थे दोनों और अंकित दूध खरीद कर सुमन से बोला,,)
तुम भी दूध ले लो ,,,।
मुझे खरीदने की जरूरत नहीं है मैं तो ऐसे ही तुम्हारे साथ आई थी,,,।
ओहहहह,,,,, तो फिर चलें,,,,।
और क्या,,,?
(ऐसा कहते हुए दोनों घर की ओर चल पड़े सुमन अपने घर चली गई और अंकित अपने घर आ गया दूध लेकर,,,, थोड़ी ही देर बाद खाना बनकर तैयार हो चुका था,,,, तीनों मिलकर खाना खाए और फिर अपना-अपना काम करके अपने कमरे में सोने के लिए चले गए लेकिन अंकित की आंखों में नींद बिल्कुल भी नहीं थी वह उस कीताब को पढ़ना चाहता था इसलिए धीरे से अपने बिस्तर पर अपना स्कूल का बेग लाया और उसमें से वह किताब निकाल कर पढ़ना शुरू कर दिया,,,)
दरवाजे पर हो रही दस्तक मां बेटे दोनों के चेहरे पर की उत्तेजना और मदहोशी को पल भर में ही खत्म कर चुके थे और दोनों हक्का-बक्का हो गए थे दोनों आश्चर्य से एक दूसरे को देख रहे थे क्योंकि खेल का असली मजा थोड़ा बहाना शुरू हुआ था लेकिन तभी दरवाजे पर दस्तक होने लगी थी दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखे तो वाकई में दोनों के बीच के इस मधुर मिलन की घड़ी में कुछ ज्यादा ही समय व्यतीत हो चुका था जिसका दोनों को पता नहीं चला था,,,,। सुगंध और अंकित दोनों समझ गए थे की तृप्ति आ चुकी थी क्योंकि यह उसके आने का समय था लेकिन इतनी जल्दी समय गुजर जाएगा यह एहसास दोनों को नहीं हुआ था इसलिए दोनों थोड़ा आश्चर्य में थे कि इतनी जल्दी इतना समय कैसे गुजर गया,,,।
5:30 का समय हो चुका था और इसी समय तृप्ति घर पर वापस आती थी पहले तो अंकित को आश्चर्य हुआ लेकिन उसकी मां ने ही बताई की 5:30 बज चुका है तृप्ति जल्दी नहीं आई है अपने समय पर ही है उन दोनों को ही कुछ ज्यादा समय निकल गया था इस क्रीडा में,,,, तृप्ति के आते ही मां बेटे दोनों के चेहरे पर से हवाइयां उड़ने लगी थी क्योंकि इस समय अंकित अपनी मां के ही कमरे में था और अपने हाथों से अपनी मां को ब्रा और पेंटी पहनाया था और इस कार्य को करके अंकित अपने आप को दुनिया का सबसे भाग्यशाली बैठा समझ रहा था और वाकई में वह इस समय सबसे ज्यादा भाग्यशाली भी था क्योंकि भला ऐसा कौन सा बेटा होगा जो अपनी मां को अपने ही हाथों से अपने द्वारा लाई गई ब्रा और पेंटी पहनाता हो,,, और इस क्रिया को करते-करते वह पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुका था और अपनी मां को भी पूरी तरह से मदहोश कर चुका था,,,,,।
दोनों इस खेल में और ज्यादा आगे बढ़ना चाहते थे अपने बेटे की हरकत और उसकी बहादुरी देखकर सुगंध मन ही मन बहुत खुश हो रही थी क्योंकि उसकी युक्ति पूरी तरह से काम कर गई थी,,, जानबूझकर गिरने का नाटक करते हुए जिस तरह से वह अपने बेटे की बाहों में गिरी थी और उसके बेटे ने भी एक कदम आगे बढ़कर अपनी मां की सोच से कई ज्यादा अपनी हरकत को अंजाम दिया था और उसे संभालने के चक्कर में उसकी बुर को पूरी तरह से मसल दिया था और यह एहसास सुगंधा को पानी पानी कर गया था,,, अपने बेटे की हरकत की वजह से सुगंधा को उम्मीद की किरण नजर आने लगी थी और ऐसा उसे महसूस हो रहा था कि आज ही उन दोनों के बीच संभोग क्रिया का शुभारंभ हो जाएगा लेकिन इन मौके पर तृप्ति आ गई थी,,,।
तृप्ति के आ जाने की वजह से मां बेटे दोनों घबरा गए थे लेकिन सुगंधा स्थिति को संभालते हुए इस दरवाजा खोलने के लिए बोली थी और खुद जल्दी से गाउन अपने बदन पर डाल देती थी और नई ब्रा और पैंटी को अपनी अलमारी में छुपा दी थी और दरवाजा खोलने के बाद तृप्ति अगर कुछ पूछे तो क्या बोलना है यह भी अंकित को सिखा दी थी पहले तो सुगंधा इस तरह की चालाकियो से बिल्कुल भी वाकिफ नहीं थी लेकिन वासना की मदहोशी में वह इस कदर डूबने लगी थी कि अपने आप ही उसे सारे रास्ते नजर आने लगे थे बहानो पर बहाना बनाना उसे आने लगा था,,, अपने बेटे को समझ कर जल्दी-जल्दी ब्रा पेंटी को अलमारी में रखने के बाद वह अपने बदन पर गाउन डाल दी थी और अंकित तुरंत दरवाजा खोलने के लिए पहुंच चुका था उसके पेट में बना तंबुआ जैसे तैसे करके छुपा लिया था लेकिन दरवाजा खोलने के बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था जैसा कि उन दोनों सोच रहे थे,,,।
घर में दाखिल होते ही तृप्ति के चेहरे पर थकाई साफ नजर आ रही थी वह थक चुकी थी इसलिए कुर्सी पर बैठ गई थी,,, कुर्सी पर बैठते ही वह अंकित से बोली,,,।
तु आज कहीं गया नहीं,,, और मम्मी कहां है दिख नहीं रही है,,,,।
वववववव,,, वह आज है ना मम्मी सफाई कर रही थी सारे कपड़े धो रही थी और मैं भी मम्मी की मदद कर रहा था मम्मी अंदर ही अपने कमरे में,,,,।
क्या बात है आज घर की सफाई हो गई,,,,।(तृप्ति आश्चर्य जताते हुए बोली)
घर की थोड़ी बहुत हुई है लेकिन कपड़े बहुत सारे धोने थे,,,,।
मतलब सारे कपड़े धो दिए,,,
लेकिन दीदी तुम क्यों हैरान हो रही हो,,,।
अरे हैरानी की तो बात है मम्मी मेरे बगैर सफाई नहीं करती और आज,,,।
हां मम्मी बता रही थी,,,, लेकिन क्या है ना की आज रजा का दिन भी था और मैं कहीं गया भी नहीं था तो मम्मी आज ही कपड़े धोने लगी और मुझसे मदद के लिए भी बोली थी तो मैं भी मदद कर दिया।
चल अच्छा किया मेरा तो टेंशन दूर हुआ,,,, मम्मी को जरा बोल चाय बना दे मैं थक गई हूं,,,,।
ठीक है दीदी,,,,(इतना कहकर अंकित अपनी मां के कमरे में अपनी मां को बुलाने के लिए चला गया और मन ही मन खुश हो रहा था कि उसकी बहन को कुछ भी पता नहीं चला था वह तुरंत अपनी मां के कमरे में गया जहां पर पहले से ही सुगंधा अंकित का इंतजार कर रही थी की कही,,, तृप्ति कुछ बोली तो नहीं। अंकित को देखते ही वह बोली,,,)
क्या हुआ क्या बोली तृप्ति,,,?
कुछ नहीं चाय बनाने के लिए बोली वह थक गई है,,,।
अच्छा हुआ,,,, चल मैं जल्दी से चाय बना देती हूं मैं भी थक गई हूं,,,,,।
तुम कैसे थक गई मम्मी ब्रा और पेटी पहन कर देखते देखते थक गई,,,।
नहीं तेरे हाथों से पहन कर थक गई,,,,।(मुस्कुराते हुए सुगंधा बोली)
लेकिन सच में मम्मी तुम ब्रा पेंटी में बहुत खूबसूरत लगती हो मैं तो पहली बार तुम्हें ब्रा पेंटी में देख रहा था लेकिन अभी भी एक जोड़ी रह गई है नाप लेने के लिए,,,,।
ना बाबा ना अब किसी और से देखा नहीं नापते नापते मुझे चक्कर आ गया था,,,।(चेहरे पर मादक मुस्कान लाते हुए सुगंधा खुली वह ऐसा कहकर अपने बेटे को याद दिलाना चाहती थी वह पल जिस पल में दोनों पूरी तरह से खो चुके थे,,,)
सच में घर में तुम्हारे पीछे खड़ा ना होता तो तुम्हें चोट लग जाती तुम गिर जाती कुछ भी हो सकता था अच्छा हुआ मैं तुम्हारे पीछे पड़ा था और तुम्हें पकड़ कर संभाल लिया,,,।
संभाल तो लिया लेकिन संभालने के चक्कर में तेरा हाथ कहां घूम रहा था मैं तो सोच कर ही शर्म से पानी पानी हुए जा रही हूं,,,।
कहां मेरा हाथ घूम रहा था बताओ तो मैं तो तुम्हें संभाल रहा था,,,।(अंकित सब कुछ जानता था बल्कि वह जानबूझकर ही अपनी मां की बुर पर हाथ रखकर उसे मसल दिया था लेकिन फिर भी अनजान बनने का नाटक कर रहा था और उसकी बात सुनकर उसकी मां मुस्कुराते हुए बोली)
चल रहने दे किसी और दिन बताऊंगी अब जल्दी से मुझे चाय बनाने दे,,,,(ऐसा कहकर सुगंधा अपने कमरे से बाहर जाने ही वाली थी कि तुरंत उसका हाथ पकड़ कर रोकते हुए अंकित मुस्कुराते हुए बोला)
वैसे गाउन में भी तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो लेकिन यह गाउन थोड़ा ढीला डाला है अगर कसा हुआ गाऊन होता तो और मजा आता,,,।
अच्छा तो तुझे टाइट गाऊन देखने में अच्छा लगता है,,,,।
टाइट गाउन देखने में नहीं बल्कि टाइट गाउन के अंदर तुमको देखने में ज्यादा अच्छा लगेगा,,,,।
ओहहहह,,,, मैं अच्छी तरह से समझ रही हूं तो क्या देखना चाहता हूं चलो जाने दे मुझे चाय बनाना है,,,।
(इतना कहते हुए हाथ छुड़ाकर सुगंधा चाय बनाने के लिए चली गई सुगंधा के जाते ही कुछ देर के लिए अंकित वही अपनी मां के बिस्तर पर बैठ गया और कुछ देर पहले जो कुछ भी है उसके बारे में सोचने लगा जो कुछ भी हुआ था वह बेहद अद्भुत और मदहोश कर देने वाला था जो की पूरी तरह से वासना से भरा हुआ था अंकित कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह अपनी मां को ब्रा पेंटी खरीद कर लाकर देगा और तोहार उसे खुद अपने हाथों से पहना आएगा ऐसा सौभाग्य भला किसे मिलता है और आज तो वह बेहद करीब से अपनी मां की कचोरी जैसी खुली हुई बुर को भी देखा था जो की कितनी खूबसूरत नजर आ रही थी बर का ख्याल आते ही उसके लंड का तनाव एकदम से फिर से बढ़ने लगा,,,,, और उसे वहां पर याद आने लगा जब वह अपनी मां को संभालने का बहाना करके अपनी हथेली को अपनी मां की बुर पर रखकर जोर से मसल दिया था वाकई में उसकी मां की बुर कितनी गर्म थी उसे तब जाकर एहसास हुआ था जब उसकी हथेली पूरी तरह से गर्म हो गई थी,,,,।
उस पल को याद करके अंकित के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी वह कभी सोचा नहीं था कि इतना कुछ उसे देखने को और महसूस करने को मिलेगा खास करके अपनी मां के प्रति,,, जाने अनजाने में वह अपनी मां की चूची को भी दबा चुका था वाकई में बाहर से कड़क दिखने वाली चुची अंदर से कितनी नरम और मुलायम होती है इसका एहसास उसे दूसरी बार हो रहा था लेकिन इस बार का एहसास उसे मदहोश कर गया था,,,, पहली बार सुमन के साथ उसने इस तरह का अनुभव लिया था और उसे अनुभव के चलते उसे बहुत कुछ सीखने को मिला था लेकिन अपनी मां के साथ अभी वह पूरी तरह से मदहोशी का दामन पकड़कर आगे बढ़ता चला जा रहा था और धीरे-धीरे बहुत कुछ सीखता चला जा रहा था लेकिन इन मौके पर बड़ी बहन की आ जाने की वजह से वह इस खेल में ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया था वरना आज तो उद्घाटन हो ही जाता,,,, इन सब के बारे में सोचकर अंकित की उत्तेजना परम शिखर पर पहुंच चुके थे उसका लंड पूरी तरह से पेंट में तंबू बनाया हुआ था,,, उसे शांत करना भी जरूरी था लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे शांत करें क्योंकि बार-बार वह अपना मन भटकाने की कोशिश करता था लेकिन बार-बार उसका मन उसकी मां की मदहोश कर देने वाली जवानी पर जाकर टीक जा रही थी।
बहुत प्रयास करने के बाद भी जब उसकी उत्तेजना शांत नहीं हुई तो उसे ना चाहते हुए भी बाथरुम में जाकर अपने हाथ का सहारा लेना पड़ा तब जाकर उसका तंबू अपनी स्थिति में आया तब तक चाबी बन चुकी थी वह हाथ में ढोकर अपनी बहन के साथ चाय पीने बैठ गया था,,,, साथ में सुगंधा भी चाय का कप लेकर पेट गई थी चाय पीने के लिए और बार-बार अंकित की तरफ ही देख रही थी आज अंकित की हिम्मत और उसकी हरकत को देखकर सुगंधा के चेहरे पर एक अजीब सी आभा नजर आ रही थी,,, क्योंकि उसे यकीन हो गया था कि बहुत ही जल्दी उसकी भी ख्वाहिश पूरी होने वाली है उसके भी अरमान पूरे होने वाले हैं,,,, तिरछी नजर से अंकीत भी अपनी मां की तरफ देख लेना क्योंकि आज बहुत कुछ दोनों में हो चुका था,,,,।
चाय पी लेने के बाद तृप्ति अपनी मां से बोली,, ।
आज क्या बनेगा मम्मी,,,,।
आज तो रविवार है तू ही बता क्या बनेगा,,,,(सुगंधा उल्टा ही तृप्ति से ही पूछने लगी तो तृप्ति बोली,,,)
खीर पूरी सब्जी बना दो,,,,।
बना दो,,,, नहीं तुझे भी बनवाना पड़ेगा इतना सारा अकेले थोड़ी बना पाऊंगी,,,।
अरे हां मम्मी बना दूंगी चिंता मत करो,,,। लेकिन पहले यह बर्तन के धो लुं,,,(इतना कहकर कुर्सी पर से उठकर खड़ी हो गई और बर्तन धोने लगी और खाना बनाने की तैयारी करने लगी शाम ढल चुकी थी अंधेरा होने लगा था रसोई में जब खाना बना रही थी तभी पता चला कि दुध तो है ही नहीं,,,, तो वह अपनी मम्मी से बोली,,,।)
मम्मी दुध तो है ही नहीं खीर कैसे बनेगी,,,।
अंकित को बोल दूध लेकर आए,,,,।
(इतना सुनकर किचन में से ही अंकित को आवाज लगाते हुए तृप्ति बोली)
अंकित जल्दी आ,,,,।
(इतना सुनकर अंकित जोकि किताब उठाकर पढ़ने की कोशिश कर रहा था वह तुरंत किताब एक तरफ रखकर किचन में पहुंच गया जहां पर पहुंचते ही तृप्ति बोली,,,)
जल्दी से जा दूध लेकर दूध खत्म हो गया है,,,,।
दूध खत्म हो गया है तो क्या हुआ कौन सा चाय पीना है,,,।
अरे बेवकूफ चाय नहीं पीना है लेकिन खीर बन रही है बिना दूध के खीर कैसे बनेगी जा जल्दी लेकर आ,,,.
ओहहह मैं तो भूल ही गया था की खीर बन रही है अभी लेकर आता हूं,,,,(खीर का नाम सुनते ही खुश होता हुआ अंकित बोला,,, लेकिन फिर जैसे कुछ याद आया हो वह एकदम से बोला,,) लेकिन पैसे,,,,।
(इतना सुनकर तृप्ति कुछ बोलती इससे पहले ही सुगंधा बोली,,,)
जा जाकर अलमारी के ड्रोवर में रखी होगी ले ले,,,।
(इतना सुनते ही खुशी-खुशी अंकित अपनी मां के कमरे में पहुंच गया और अलमारी खोलकर,,,, ड्रोवर खोलने लगा,,, पैसे तो उसे मिल गए लेकिन उसे ड्रोवर के अंदर की तरफ कोई किताब रखी हुई दिखाई दी जो की रंगीन पन्ने वाली थी,,,, उत्सुकता बस अंकित उसे किताब को बाहर निकाला तो उसके मुखपृष्ठ को देखकर उसके होश उड़ गए,,,, मुख पृष्ठ पर ही नग्न अवस्था में चित्र छपा हुआ था उसे चित्र को देखते ही अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा और वह अपने मन में सोचने लगा किस तरह की किताब मम्मी की अलमारी में क्या कर रही है,,,,। मुख पृष्ठ को देखकर ही उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह मुख्य पृष्ठ को देखकर इतना तो समझ ही गया था कि यह किताब गांधी किताब है जैसा कि वह अपने दोस्त के साथ देख चुका था लेकिन यह किताब कुछ और ही थी क्योंकि वह पतली किताब थी लेकिन यह मोटी किताब थी,,, और इसीलिए वह उत्सुकता बस जल्दी से उसे किताब के बीच के पन्ने को पलट कर कुछ शब्दों की झलकियां लेने की चाह रखता हुआ वह पढ़ने लगा तभी उसे किताब में जो लिखा था उसे पढ़कर उसका दिमाग एकदम से सन्न रह गया,,,,।
राहुल अपनी मां को घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी फोटो में अपना लंड डालकर उसकी चुदाई करना शुरू कर दिया,,,, इतना पढ़ते ही तो अंकित की हालत खराब होने लगी उसके माथे से पसीना लगा उसे समझते थे नहीं लगी कि यह किताब गंदी कहानियों वाली किताब है जिसमें मां बेटे की कहानी है। इतना पढ़ते ही आगे पढ़ने की अंकित की हिम्मत नहीं हुई और वह तुरंत किताब को बंद कर दिया लेकिन उसे अपनी मां के अलमारी में नहीं रखा इतना तो वह समझ गया था कि उसकी मां भी इस किताब को पड़ी होगी इसके अंदर की कहानियों को पढ़ी होगी,,,, अब उसका मन भी उसे किताब की कहानियों को पढ़ने के लिए मचलने लगा इसलिए वह अपनी मां की अलमारी में उसे किताब को ना रख कर उसे छुपा कर आया और अपने कमरे में अपने स्कूल के बैग में डाल दिया और फिर दूध लेने के लिए चला गया,,,,।
बाहर व सड़क पर चला जा रहा था दूध लेने के लिए तभी सामने से सुमन आ रही थी जिसे देखते ही अंकित के दिल की घंटी जोरों से बजने लगी और सुमन की भी नजर अंकित पर पड़ गई तो उसके भी चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी ,,, अभी कुछ दिन पहले ही वह अपनी जवानी का जलवा अंकित के ऊपर बिखरने में कुछ हद तक सफल हो चुकी थी इसलिए,अंकित को देखते ही वह मुस्कुरा कर बोली,,,।
अरे अंकित कहां चले जा रहे हो,,,,।
वो,,वो,,,, मम्मी ने दूध लाने के लिए भेजा है,,,,।
अरे मेरे होते हुए तुम्हें दूध लेने की जरूरत कैसे पड़ गई,,,,, मेरा मतलब है कि चलो मैं भी चलती हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही वह भी साथ हो चली अंकित तो शर्म के मारे कुछ बोल नहीं पा रहा था लेकिन सुमन ही बात की शुरुआत अपने मुताबिक करते हुए बोली,,,)
अंकित उस दिन तुम्हें कैसा लगा था,,,?(सीधे मतलब की बात पर आते हुए सुमन बोली)
किस दिन दीदी,,,,।
अरे बुद्धू दीदी मत कहा करो अकेले में बिल्कुल भी मत कहा करो मेरा नाम लिया करो भूल गए उसे दिन क्या हुआ था मैं उसे दिन की बात कर रही हूं जब तुम मेरी चूची दबा रहे थे,,,,,,।
(सुमन के मुंह से एकदम खुले शब्दों में च शब्द सुनकर अंकित की हालत पतली होने लगी उसके चेहरे की रंगत एकदम से बदलने लगी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि एक लड़की इतनी खुले शब्दों में कैसे बातें कर सकती है लेकिन वह सुमन को अच्छी तरह से जानने लग गया था लेकिन फिर भी उसकी बातें उसे उत्तेजित किया जा रहे थे और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सुमन बोली,,,,)
एक तरफ चुची भी दबाते हो और दीदी भी बोलते हो,,,,।
(सुमन की बात सुनकर शर्म के मारे अंकित कुछ बोल नहीं पाया सुमन ही बोले जा रही थी)
अच्छा सही बताना मजा आया था कि नहीं,,,,।
(सुमन की बात सुनकर अंकित शरमाते हुए बोला कुछ नहीं बस हां मैं सर हीला दिया तो सुमन नाराज होते हुए बोली।)
अरे कुछ बोलोगे या ऐसे ही सिर हिलाते रहोगे,,,, कहीं ऐसा ना हो कि घर पर जाकर सर की जगह कुछ और हिलाना पड़ जाए,,,,।
कककक,,, कुछ और मतलब,,,,(अंकित शर्माते हुए बोला,,,)
हिलाने जैसा क्या है तुम्हारे पास,,,(सुमन मुस्कुराते हुए बोली वह पूरी तरह से बेशर्म बन चुकी थी अंकित को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें लेकिन उसने जैसे ही जाने जैसा क्या है तुम्हारे पास बोली वैसे ही अंकित की नजर अपने आप ही अपने दोनों टांगों के बीच चली गई जिसमें धीरे-धीरे तंबू बन रहा था और मौका देखकर सुमन भी मुस्कुराते हुए बोली,,,)
हां वही है तुम्हारे पास हीलाने के लिए,,,, अब जरा बोलकर बताना क्या उससे मेरी चूची दबाने में मजा आया था,,,।
(उसकी बेशर्मी देख कर अंकित का भी हौसला बुलंद हो रहा था इसलिए वहभी शर्माते हुए बोला,,)
बहुत मजा आया था,,,,।
इससे पहले कभी किसी की चूची देखे थे,,,।(सुमन मुस्कुराते हुए बोली।)
नहीं बिल्कुल भी नहीं मैं जिंदगी में पहली बार उस चीज को देखा हूं,,,(अंकित पहले भी अपनी मां की बड़ी-बड़ी चूचियों को देख चुका था लेकिन सुमन से तो यह कह नहीं सकता था कि वह इससे पहले भी चुची देख चुका है और वह भी अपनी मां की इसलिए सुमन से वह झूठ बोल रहा था,,,)
ओहहहह ,, तभी उसे दिन पागलों की तरह देख रहे थे लेकिन मजा बहुत आया था ना,,,,।
मजा तो बहुत आया था दीदी,,,, सॉरी मेरा मतलब है सुमन दीदी,,,,।
फिरदीदी,,,, चलो कोई बात नहीं धीरे-धीरे आदत पड़ जाएगी,,,,, उसे दिन तुम्हें और कुछ दिखाने वाली थी लेकिन मम्मी आ गई देखना चाहोगे मेरा और कुछ,,,,।
(अंकित शर्म के मारे कुछ बोला नहीं तो सुमन अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)
शर्माने की जरूरत नहीं है जब कोई नहीं रहे तो तुम्हें बुलाऊंगी चले आना जन्नत दिखाऊंगी,,,,।
(सुमन और कुछ बोल पाती ईससे पहले ही दूध की दुकान पर पहुंच गए थे दोनों और अंकित दूध खरीद कर सुमन से बोला,,)
तुम भी दूध ले लो ,,,।
मुझे खरीदने की जरूरत नहीं है मैं तो ऐसे ही तुम्हारे साथ आई थी,,,।
ओहहहह,,,,, तो फिर चलें,,,,।
और क्या,,,?
(ऐसा कहते हुए दोनों घर की ओर चल पड़े सुमन अपने घर चली गई और अंकित अपने घर आ गया दूध लेकर,,,, थोड़ी ही देर बाद खाना बनकर तैयार हो चुका था,,,, तीनों मिलकर खाना खाए और फिर अपना-अपना काम करके अपने कमरे में सोने के लिए चले गए लेकिन अंकित की आंखों में नींद बिल्कुल भी नहीं थी वह उस कीताब को पढ़ना चाहता था इसलिए धीरे से अपने बिस्तर पर अपना स्कूल का बेग लाया और उसमें से वह किताब निकाल कर पढ़ना शुरू कर दिया,,,)