सातवां टोना....
ट्रेन अभी ठीक से रुकी भी नहीं थी कि मुझे बाहर से किसी ने आवाज लगाई ।
" साहब ये किताब ले लो साहब ,सिर्फ 10 रुपए की ही तो है साहब ।"
मैंने एक बार किताब बेचने वाले की तरफ देखा कोई 36 या फिर 37 साल का अधेड़ युवा, जिसकी दाढ़ी भी अब धीरे धीरे सफेद सी होने लगी थी।
मैंने विनम्र हो कर कहा..
"दोस्त मुझे इस तरह की किताब पढ़ने में कोई रुचि नहीं है,तुम मुझ पर अपना समय व्यर्थ ना करो !"
" साब सातवां टोना है इसमें, एक बार पढ़के तो देखिए मैं शर्त लगा के कह सकता हूं कि आप मुझ से 8 वें टोने के बारे में पूछने जरूर आओगे ।"
मैंने एक ठंडी सांस ली और कहा ।
"देखो दोस्त वैसे मुझे जरूरत नहीं है , लेकिन तुम्हारी कोशिश के आगे दस रुपए का कोई मूल्य नहीं है ,में इस किताब का मुखपृष्ठ पढूंगा , और में थोड़ा सा भी प्रभावित हुआ तो तुमसे में ये किताब ले लूंगा ।"
मेरी बात सुन कर उसके चेहरे पर सूरज कि तरह चमक आ गई , उसने सहर्ष अपनी मुंडी हिला दी ।
मैंने अब पहला पन्ना पढ़ना शुरू कर दिया।
"आप सभी ने अक्सर टोने टोटके का जिक्र सुना होगा।
टोटका कभी भी दुख या बाधा का प्रतीक नहीं रहा है,टोटका हमेशा लाभ अर्जित करने या परिवार को सुरक्षित रखने की आस्था का प्रतिरूप है, या कुछ इस तरह से कहे की ये एक कवच का भी काम करता है,खेर हम टोटके रूपी बहस को ज्यादा महत्व ना ही दे तो ये ज्यादा अच्छा है।
अभी मेंने इतना ही पढ़ा था कि ट्रेन का कान फाड़ू हॉर्न बज उठा,मैने उस लड़के की तरफ देखा जो हॉर्न की आवाज सुनकर घबरा सा गया था,शायद उसे लगा होगा कि अब मैं ये किताब उस से नहीं लूंगा लेकिन किसी का दिल तोड़ना मेरे उसूलों के खिलाफ है, इसलिए फुर्ती दिखाते हुए मैंने जेब से 20 का नोट निकाला और उसे दे दिया उस लड़के ने मुझे बचे हुए पैसे वापस देने चाहे लेकिन मैंने लेने से मना कर दिया..,ट्रेन अब चल पड़ी थी और भीड़ की रेलमपेल में वो व्यक्ति मेरी आंखो से ओझल हो गया।
गंतव्य तक पहुंचने में मुझे अभी और तीन घंटे लगने वाले थे इसलिए एक लम्बी सांस लेकर मैने वो किताब पढ़नी शुरू करी ।
"" दुश्मन से अगर पीछा छुड़ाना हो तो उबले हुए चावल की पांच पिंडी , मुर्गे के ताज़ा खून मैं डूबा कर दुश्मन के घर में फेंक दो ,दुश्मन का सर्वनाश हो जाएगा।""
ये पढ़ते ही अचानक मेरे मुंह से निकल गया
"" कटवा लिया खुद का चुतिआ और करो भलाई ।""
खुद को कोसते हुए मैने वो किताब अपनी बगल में लुढ़का दी और बाहर के नज़ारे देखने लगा।
पिछले 8 घंटे से में सफर कर रहा था , और बोरियत मुझ पे इतनी हावी हो चुकी थी कि सामने बैठे हुए बुजुर्ग का मर्डर कैसे किया जाए में उसका प्लान बनाने से भी नहीं चुका ,में अपना माथा झटक के खड़ा हुआ और ट्रेन में बने शौचालय कि तरफ बढ़ गया ,और वहां से निवृत हो कर फिर से में अपनी सीट पे जा बैठा ,और फिर से वह किताब उठा के पढ़ने लगा ।
"" रूठी मेहबूबा या रूठे मेहबूब को मानने के लिए तिल्ली के तेल में मछली फ्राई करके खिलाओ वो हमेशा के लिए आपकी/आपका हो जाएगा..""
मेंने अब अपना सिर पीट लिया....क्या बकवास किताब थी ये एक बार तो मन किया की इसको खिड़की से बाहर फेंक दूं लेकिन अभी काफी लंबा सफर था इसलिए मैंने अपने सीने पे पत्थर रखते हुए उसे फिर से पढ़ना शुरू किया...अगला पन्ना पलटते ही मुझे कुछ अलग लिखा हुआ नजर आया जो कि एक कहानी की तरह लिखा गया था..मैने उसे पढ़ना शुरू किया।
""अगर ऐसे ही इस घर में चलता रहा तो में जरूर पागल हो जाऊंगा,तुम में से कोई भी घर में शांति से नहीं रह सकता क्या,हर समय बस चीख चिलाहट,अम्मा कुछ तो लिहाज करो अपनी उम्र का इस उम्र में इतना झगड़ा करोगी तो स्वर्ग के दरवाजे भी नहीं खुलेंगे तुम्हारे लिए और एक ये तेरा पोता सारा दिन रोता रहता है ...कभी कभी तो ऐसा लगता है कि खुद को खत्म कर दू या तुम सब को।""
बरामदे के कोने में सहमी सी खड़ी कविता अपने पति गुस्सा देख थर थर कांपे जा रही थी, और इसी कंपकपाहट मैं पानी से भरा स्टील का ग्लास उसके हाथ से फिसल जाता है।
"टनन्न टनन टन न न न"
ग्लास के गिरने की आवाज़ सुन के राहुल और बुरी तरह भन्ना जाता है ,और अपने परिवार को कोसते हुए घर से बाहर बढ़ जाता है ।
पनवाड़ी की दुकान से सिगरेट अभी राहुल जला ही पाया था कि उसके कानों में एक आवाज पड़ी।
" रमेश तुझे पता है अपने नदी वाले श्मशान में एक पहुंचे हुए तांत्रिक आए हुए है , लेकिन उन से मिलने में बस एक समस्या है ...उन से मिलने के लिए आप के साथ एक स्त्री का होना आवश्यक है।
मेरे कान ये बात सुनकर खड़े हो गए , में तुरंत वहां से निकला और घर पहुंच कर कविता को बताया और अपने साथ ले कर सीधा श्मशान का रुख कर लिया ।
हमारा नंबर आते आते रात के 8 बज चुके थे और अब हम आखिरी दुखियारे ही थे, जो उस तांत्रिक के सम्मुख विराजमान थे ।
"" बाबा में परेशान हो चुका हूं अपने परिवार से , हर समय बस चीख चिल्लाहटे ही घर में रहती है , कृपा करके कोई समाधान करें ।""
बाबा ने एक भरपूर नजर हम दोनों मिया बीवी पे डाली और अपने सामने रखे पात्र से कुछ उठा के हम दोनों को खाने के लिए दिया ।
बिना सोचे समझे कविता और मैने वो बाबा का प्रशाद समझ के खा लिया,और थोड़ी ही देर बाद मुझे एक तेज़ झटका लगा ।
कविता अपनी जगह से खड़ी हो कर अपने कपड़े उतारना शुरू कर चुकी थी, और ना जाने में भी कब खड़ा हुआ और पूरी तरह निर्वस्त्र हो गया ।
"" मुझे तुम दोनों का काम रस इस पात्र में एक साथ चाहिए, इसलिए समय व्यर्थ ना करो और काम क्रीड़ा शुरू करो ।""
हम दोनों एक दूसरे से आलिंगन बद्घ हो कर जुड़ गए और फिर उसे अपने घुटनों के बल बिठा के पीछे से धक्के लगाने लगा तकरीबन पंद्रह मिनट तक धक्के लगाने के बाद मैंने अपना सिर उठाया और तभी मैने देखा बाबा अपनी जगह से उठे और अपनी धोती निकाल कर कविता के मुख के सामने खड़े हो गए , उनके भीषण विशाल लिंग को देखते ही मैं थरथराने लगा और जोर जोर से सांस लेते हुए झडने लगा , कविता अभी भी झड़ी नहीं थी इसलिए उसने अपनी योनि बाबा को समर्पित कर दी , लगभग 35 मिनट बाबा और कविता की काम क्रीड़ा देखते रहने के बाद मैंने बाबा के मुंह से एक हुंकार सुनी और कविता भी अपने चरम पे पहुंच के थरथराने लगी...
किताब में कहानी पढ़ते पढ़ते मैंने अपने बुरी तरह से कसमसाते हुए लिंग को एडजस्ट किया और आगे पढ़ने लगा...
बाबा ने एक पात्र कविता की योनि के नीचे रख दिया जिस से टपकता हुआ काम रस उस पात्र में एकत्रित होने लगा , जल्दी ही पात्र में काफी ज्यादा मात्रा में काम रस इकट्ठा हो चुका था , बाबा ने दो चार चीज़ें उस पात्र में और मिलाई और अपने समीप शांति से बैठे मुर्गे की गरदन एक झटके में उड़ा दी , अब बाबा उस मुर्गे का खून भी उस पात्र में भरने लगे और पूरी तरह पात्र भरने के बाद उसे अपने सामने जल रहे हवन कुंड की लकड़ियों के उपर रख सब्जी की तरह चलाने लगे.....
सेक्स सीन जल्दी खत्म होने का मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था...अभी मेंने सोचा ही था कि शौचालय में जाकर लिंग की अकड़ निकली जाए लेकिन यहां तो सेक्स सीन ही ख़तम हो गया...इसलिए मैंने नाराजगी में अपनी मुंडी हिलाते हुए आगे पढ़ना शुरू किया...
तकरीबन दस मिनट बाद चिमटे की मदद से बाबा ने वो पात्र आग से बाहर निकाला और उसमे बने गाढ़े द्रव्य को एक बोतल में भर दिया....
बाबा ने मुझ बोतल देते हुए कहा
""ये सातवां टोना है , इसे अपने घर के कोने मै रखना और अब तुम लोग अपने वस्त्र पहन के घर जा सकतें हो ..कोई परेशानी हो तो सुबह यही चले आना ""
हम लोग खुशी खुशी बाबा से आज्ञा लेकर घर की तरफ बढ़ गए और वह बोतल घर के एक कोने में रख शांति से नींद के आगोश में खो गए...
सुबह मुझे अहसास हुआ कि कोई मुझे जोर जोर से हिला रहा है मैंने आंखे खोल के देखा तो सामने कविता अपने मुंह से ना जाने क्या कहने का प्रयास कर रही थी , मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था..पूरे घर में शांति फेली हुई थी ना मुझे अम्मा की चिक चिक सुनाई दे रही थी और ना ही मुन्ने का रोना....मुझे कुछ भी समझ नहीं आया कि आखिर ये हो क्या रहा है....मै कुछ बोलने की कोशिश भी करता तो मुझे मेरी खुद की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी...
मेरा सिर भन्नाने लगा था अब...कविता के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे मैंने अम्मा की तरफ देखा तो वो भी कुछ कह रही थी लेकिन मुझे सुनाई कुछ नहीं दे रहा था....मैंने अपनी आंखे बंद कर ली और कल की सभी बातें मुझे एक एक करके याद आने लगी...
""नहीं नहीं ये मैंने क्या कर डाला""
मन मै सोचते हुए मैंने शमशान की तरफ दौड़ लगा दी जहां वह बाबा अभी भी विराजित थे
मुझे देखते ही बाबा मुस्कुरा उठे...और यहां आनें का कारण पूछने लगे...
आश्चर्य की बात थी ये क्योंकि इस वक़्त बाबा ने जो कहा मुझे सुनाई दे गया...
मेंने रोते रोते बाबा को अपना हाल सुनाया और मेरी बात सुन कर बाबा बोले...
"" ये सातवा टोना है इसे वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन एक रास्ता और भी है , तुम्हे एक कहानी लिखनी होगी जिसमें कल से आज तक का सारा वृत्तांत हो...और उस किताब को तुम्हे किसी ऐसे व्यक्ति को बेचना होगा जो तुम्हारी किताब देखकर तुमसे वह खरीद ले... बेचने से मिली रकम तुम्हे अपनी प्रिय चीज या खाने पीने की कोई भी चीज में खर्चनी होगी....तुम्हारे ऊपर से टोना उतर जाएगा.. लेकिन किताब के आखिर में तुम्हे कुछ और भी लिखना होगा जिसे पढ़ने पर खरीदने वाले के उपर ये टोना हावी हो जाए""
मैंने झट से बाबा से पूछा
" क्या बाबा ?"
और उन्होंने कहा
"" किया कराया अब सब मुझ पर ""
तभी एक झटके से ट्रेन रुकी...मेरा ध्यान अब किताब से बाहर था लेकिन मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था...मेरे सामने बैठे हुए बुजुर्ग मुझे बड़ी अजीब नज़रों से देख रहे थे...में चिल्लाने की कोशिश करने लगा लेकिन तब भी मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था....मुझे जोर जोर से चिल्लाता देख उस बुजुर्ग व्यक्ति ने इसका कारण जानने के लिए मेरा हाथ पकड़ा और अपने होंठ हिलाने लगे ....मुझे अब कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था...मुझे घबराया देख उस बुजुर्ग ने मुझे पीने के लिए पानी दिया...मैंने वो सारा पानी अपनी एक सांस मै ही खाली कर दिया जैसे मैं जन्मों से प्यासा हूं...शायद मेरे चीखने की आवाजे सुनकर हर कोई वाहा पहुंच गया था....
मैंने अपनी हाथ में पकड़ी उस किताब को देखा और फुट फुट के रोने लगा....लेकिन जल्दी ही खुद को संभालते हुए मैंने वो किताब फिर से खोली और उसका आखिरी पन्ना फिर से पढ़ने लगा...
"" ये सातवा टोना है इसे वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन एक रास्ता और भी है , तुम्हे एक कहानी लिखनी होगी जिसमें कल से आज तक का सारा वृत्तांत हो...और उस किताब को तुम्हे किसी ऐसे व्यक्ति को बेचना होगा जो तुम्हारी किताब देखकर तुमसे वह खरीद ले... बेचने से मिली रकम तुम्हे अपनी प्रिय चीज या खाने पीने की कोई भी चीज में खर्चनी होगी....तुम्हारे ऊपर से टोना उतर जाएगा.. लेकिन किताब के आखिर में तुम्हे कुछ और भी लिखना होगा जिसे पढ़ने पर खरीदने वाले के उपर ये टोना हावी हो जाए"
" क्या बाबा ?"
और उन्होंने कहा
"" किया कराया अब सब मुझ पर """
ये सब पढ़ने के बाद मुझे समझ आ चुका था कि सातवां टोना मुझ पे चढ़ाया जा चुका है...तभी तो वो आदमी जिसने मुझे ये किताब बेची उसने कहा था कि आठवां टोना जानने आप मुझे ढूंढ़ते हुए आओगे...शायद आठवां टोना ही सातवें टोने की काट है...मैंने ट्रेन के डिब्बे में एक दो लोगो को वो किताब हवा में लहराकर दिखाई लेकिन शायद उन लोगो को मेरे हाथ में वो किताब दिख ही नहीं रहीं थीं...में बुरी तरह से अब इस मुसीबत में फस चुका था...मैंने अपने दिमाग के घोड़े हर तरफ दौड़ाने शुरू किए और जल्दी ही मुझे समझ आ गया कि आठवां टोना क्या है....कैसे अब मुझे इस मुसीबत से बाहर निकलना है अब में ये भी समझ चुका था...
मैंने अपना लैपटॉप उठाया और आज पूरे दिन से जो भी मेरे साथ हुआ उसको एक कहानी का रूप दे दिया...और कहानी के आखिर में ये लिखना बिल्कुल भी नहीं भुला...
"" किया कराया अब सब मुझ पर ""
मैंने पूरी कहानी पीडीएफ मै उतारी और कहानी के टाइटल पे 50 रुपए का टैग लगा कर एक ऑनलाइन बुक साइट पे बिकने के लिए छोड़ दी...
तकरीबन एक घंटे तक वेबसाइट में सिर खपाते रहने के बाद भी मेरी बुक अभी तक नहीं बिकी थी इसलिए मैंने उस साइट पे 500 रुपए की एक बुक के लिए 450 रुपए एडवांस ट्रांसफर किए और जैसे ही मेरे वॉलेट में 50 रुपए और आएंगे 500 रूप्ए वाली बुक मेरी हो जाएगी...
यही सब करते करते मेरी आंख लग गई और जब जागा तो अपने सामने मौजूद वृद व्यक्ति को मुस्कुराते देखा...मै उनसे कुछ कहने ही वाला था कि उनकी आवाज मेरे कानो में पड़ी...
"" अब तबीयत कैसी है तुम्हारी....मेरे हिसाब से अब तुम ठीक लग रहे हो...""
मेंने मुस्कुरा कर उनको धन्यवाद कहा और लैपटॉप ओपन कर के उस वेबसाइट को खोल के देखने लगा....
700 लोग सातवां टोना खरीद चुके थे लेकिन मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मेरी पसंद की बुक का पीडीएफ मेरी मेल आईडी पे पहुंच चुका था...
घर पहुंच चुका था में अब और न्यूज चैनल जैसे ही मैंने चलाया मेरे पैरों के नीचे से धरती खिसक चुकी थी...
"" दुनिया पे आज एक बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ है ... दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी ना जाने कैसे बहरी हो गई....किस तरह के हथियार का उपयोग हुआ है , और ये हमला किसने करवाया इसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिल पाया है , जिन लोगो के साथ ये दुखद घटना हुई है उन लोगों में से कुछ ने हमें बताया कि ये सब कुछ किसी सातवां टोना नामक किताब की वजह से उनके साथ हुआ है....जब हमारी तकनीकी टीम ने इस बारे में जानकारी निकालनी चाही तो सातवां टोना नामक पुस्तक हर भाषा में उपलब्ध है....एक पेनी से लेकर एक रुपए तक इसकी कीमत बताई जा रही है हर बुक वेबसाइट पर...ये बुक सब से पहले किसने पोस्ट करी इसके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है....""
"" किया कराया अब सब मुझ पर ""
**दुनिया में फ़ैल रहा ध्वनि प्रदूषण भी किसी सातवें टोने से कम नहीं है**