एक महीना बीत चूका था और अब मुझे चिंता होने लगी थी। उसकी इतनी बड़ी हरकत के बाद मेरा उससे इतनी कठोरता से पेश आना स्वाभाविक था मगर जिस तरह वो एकदम से एकाकी जीवन ब्यतीत करने लगा था वो सही नहीं था। मैंने तो सोचा था एक दो महीने उसे बात नहीं करुँगी, उसे थोड़ी बहुत सजा दूंगी मगर मुझसे ज्यादा तो वो खुद को सजा दे रहा था। मैंने उसे क्या डराना था उसने उल्टा मुझे डरा दिया था। हालांके मुझे पहले पहले उसकी यह चुप्पी ड्रामा लग रही थी, शायद वो दुखी होने का ढोंग करके मेरी सहानुभूति चाहता हो ऐसी सम्भावना बहुत थी। लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी जब उसके सवभाव में कोई बदलाव नहीं आया तो मैं उसके अंतर में झाँकने की कोशिश करने लगी। खाने के टेबल पर जब वो हमारे साथ बैठता तो मैंने उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश की। वो खाना भी खाता था तो चेहरा झुकाकर। नज़र तो वो मिलाता ही नहीं था। उसे देखकर कहना मुहाल था के वो एक्टिंग कर रहा है। इतनी सहनशीलता वो भी इतने लंबे समय तक धारण किये रहना बहुत ज्यादा मुश्किल है। मुझे अब लगभग यकीन हो चला था के वो ढोंग नहीं कर रहा था बल्कि वास्तव में वो बहुत डरा हुआ है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह था के क्या उसे अपने किये पर पछतावा है? अब उसने जो किया था उसके नतीजे से उसे डर लगना स्वाभिक ही था। ऊपर से मैंने उसे, उसके बाप का डर दिया था, घर से निकाले जाने का डर यकीनन बहुत बुरा होता है तो वो डरा हुआ था, खामोश था, इस मुश्किल घड़ी से किसी तरह बच निकलना चाहता था मगर लेकिन क्या वो अपने किये पर शर्मिंदा था? शर्मशार था मुझे नहीं लगता था वो पछता रहा है। अब मैं अजीब से संकट में फस गयी थी। अगर मैं उसका डर दूर नहीं करती तो मुझे चिंता थी कहीं वो किसी मनोरोग का शिकार न हो जाए और अगर मैं उसका डर दूर करने की पहल करती तो वो मुझे कमज़ोर मान सकता था और इतनी आसानी से बच निकलने पर बहुत संभव था वो दोबारा मुझे चोदने की कोशिश करता।
मैं कुछ फैसला करती उससे पहले मेरी मुसीबत का हल मेरे पति ने कर दिया। घर में हर वक़त छायी रहने वाली चुप्पी और हम दोनों माँ बेटे के बीच किसी बातचीत के न होने की और उनका धयान जाना स्वाभाविक ही था। वो गुरुवार का दिन था और हम जैसा लगभग पिछले एक महीने से चल रहा था, चुपचाप खाना खा रहे थे।
"कणिका, मैं बहुत दिनों से देख रहा हूँ तुम और राज आपस में बात नहीं करते। बिलकुल भी बात नहीं करते। क्यों? जबसे शादी से लौटे हैं घर में इतनी चुप्पी छायी हुयी है मानो यह घर नहीं कोई वीरान खंडहर है। आखिर बात क्या है?" अचानक से मेरे पति ने खाना कहते हुए मुझे पूछा तो मैं सकपका गयी। मैं अपनी सोच में गुम थी इसलिए अपने पती को क्या जवाब दूँ, मुझे कुछ सुझा नहीं।
"कुछ बात नहीं है, आपको यूँ ही लग रहा है।" मैंने बात टालते हुए कहा। मेरे दिल में एक बार भी यह ख्याल नहीं आया था के घर के माहोल की तरफ मेरे पति की नज़र भी जायेगी और वो इसकी वजह जानना चाहेगा।
"कुछ बात नहीं है। मुझे यूँ ही लग रहा है! तुम्हे क्या लगता है मुझे दिखाई नहीं देता जा मैं मुर्ख हूँ? तुम गुमसुम सी रहती हो और राज को तो मानो सांप सूंघ गया है। आखिर तुम दोनों में लड़ाई किस बात की है?" पतिदेव ने खीझकर पूछा। जरूर वह कई दिनों से देख रहे थे मगर चुप थे।
"उफ़्फ़्फ़्फ़ऊऊह्ह्ह्ह्ह्............. कोनसी लड़ाई....किस बात की लड़ाई........आपको ग़लतफहमी हुयी है। और आपने मुझे कब गुमसुम देख लिया।" मैं पतिदेव को झुठलाती बोली। लेकिन मेरी बात में दम नहीं था इसलिए इस बार वो अपने वेट से मुखातिब हुए।
"राज तुम्हारी माँ तो साफ़ झूठ बोल रही है, तुम ही बता दो आखिर बात क्या है? तुम दोनों आपस में बोल क्यों नहीं रहे हो?"
"पापा वो बात........" बेटे की घिग्गी बंध गयी। वो मेरी तरफ देखने लगा।
"आप भी ना.......खामखाह बात का बतंगड़ बना देते हैं। अगले महीने उसके एग्जाम सुरु होने वाले हैं, उसका पूरा ध्यान पढ़ाई पर है और वैसे भी आपको मालूम तो है उस रात होटल में आग लगने के बाद......." बोलते हुए मुझे झुरझुरी सी आ गयी। पतिदेव को ठंडा करने के लिए अब कुछ ढोंग तो करना ही था। मेरे पति पर तृन्त असर हुआ और उसने टेबल के ऊपर से मेरा हाथ पकड़ कर दबा दिया और मेरी और देखते हुए बड़े ही प्यार से मुस्करा दिए। मैंने मन ही मन चैन की साँस ली। 'बला टली'। कुछ देर के लिए कमरे में फिर से चुप्पी छा गयी। मैंने बेटे की और देखा तो उसका चेहरा लाल हो गया था।
"यकीन नहीं होता तुम्हे एग्जाम की इतनी फिकर है" कुछ देर बाद पतिदेव ने बेटे जो मज़ाक करते हुए कहा तो मैंने उन्हें घूर कर देखा
"खैर........भगवन की कृपा से हम सभ उस रात बच गए और अब उसे याद कर कर परेशां क्यों होना। भूल जाओ उस रात को........और वैसे भी मुझे इस तरह ख़ामोशी पसंद नहीं है, बेचैनी महसूस होती है। और बरखुरदार तुम.......तुम अपनी माँ का ध्यान रखा करो......अब मेरा तो पूरा दिन ऑफिस में निकल जाता है और अगर तुम भी अपने कमरे में बंद रहोगे तो तुम्हारी माँ का ख्याल कौन करेगा? इसलिए यह तुम्हारी जिम्मेदारी है के तुम अपनी माँ का ख्याल रखो। उसके काम में हाथ बंटाया करो.......उसे कहीं घुमा लाया करो.......कहीं शौपिंग वगेरह के लिए ले जाया करो........उसका भी मन बहल जायेगा" मेरे पति बेटे को लंबा चौढ़ा भाषण देते बोले।
"जी पापा" बेटा धीरे से बोला।
"हुंह....और यह भीगी बिल्ली की तरह रहना, बोलना बंद करो.....मरद बनो मरद........हम तुहारी उम्र में गर्दन अकड़ कर चलते थे और तुम.....जैसे जैसे तुम पर जवानी चढ़ रही है तुम ठन्डे पढ़ते जा रहे हो......." मेरे पति बेटे का कन्धा थपथपा कर बोले। उसके गाल कुछ और लाल हो गए थे।
"हाँ हाँ..बहुत अच्छी बात है......आपका समझाने का तरीका तो ........माशाअल्लाह........आप क्या चाहते हैं वो पढ़ाई छोड़ कर आवारागर्दी करने लग जाये........जी नहीं, वो जैसा है, बहुत अच्छा है।" मैं मुस्कराती पति को टोकती हुयी बोली।
"अरे बेगम साहिबा। यह उम्र पढ़ाई के साथ साथ मस्ती करने की भी होती है। तुम क्या चाहती हो वो बंद कमरे में सारा दिन किताबों के पन्ने ही पलटता रहे। ऐसा नहीं चलेगा......अरे जवानी में मरद बड़े बड़े किले फ़तेह कर लेता है......हमें देखो....हम क्या थे और आज क्या हैं......" मेरे पति खुद पर गर्व करते बोले। अब उन्हें क्या पता जिस बेटे को वो मर्दानगी का पाठ पढ़ा रहे है, उसी बेटे ने उसकी बीवी पर मर्दानगी की ऐसी छाप छोड़ी थी जितनी वो आज तक नहीं छोड़ पाये थे। अपने मोटे लंड के ऐसे ताबड़तोड़ धक्के लगाये थे के पूरी चूत सूज गयी थी।
"बस कीजिये.......बस कीजिये.....वर्ना मेरी हंसी निकल जायेगी...." मैं हँसते हुए पतिदेव को चिढ़ाते हुए बोली। तभी मेरा बेटा उठ खड़ा हुआ। सायद वो हमारी बातचीत के कारन असहज महसूस करने लगा था।
उस रात जैसे ही मैं काम खत्म कर अपने कमरे में गयी तो पतिदेव ने मुझ पर भूखे शेर की तरह झपट पड़े। मेरा नाईट सूट झटके से निकल कर कोने में फेंक दिया और फिर मुझे उठाकर बेड पर पटक दिया और फिर अपना पायजामा उतारकर छलांग लगा बेड पर मेरी टांगो के मध्य आ गए।
"क्या बात है आज तो बहुत उछल कूद लगा रहे हो?" मैं हंसती हुयी बोली।
"तुम्हे मेरी मर्दानगी की बातें सुनकर हंसी आती है.....हुंह.....अब तुम्हे दिखता हूँ जानेमन.....असली मरद क्या होता है"
"ओह तो जो आज तक दिखाया था वो क्या था........" मेरी बात पूरी न हो सकी। पतिदेव की लपलपाती जीभ मेरी चूत के अंदर घुस गयी। उनके हाथ मेरे मम्मो को बुरी तरह निचोड़ने लगे। उफ्फ्फ्फ्फ़ क्या आनंद था। कुछ भी कहूँ, मेरे पति चूत चाटने में उस्ताद थे। उनकी खुरदरी जिव्हा जैसे ही मेरे भग से टकराई मेरे मुख से तेज़ सिसकारी निकली। फिर क्या था घूम घूम कर उनकी जिव्हा की तीखी नोंक मेरी चूत के दाने को रगड़ने लगी। मेरे हाथ खुद बा खुद पतिदेव के सर पर पहुँच गए और मैं उनका सर अपनी चूत पर दबाने लगी। कुछ ही क्षणों में मैं बुरी तरह कामोत्तेजित हो चुकी थी। चूत से रस बहने लगा था जिसे मेरे पतिदेव बड़े प्यार से चाट, चूस रहे थे। उनके हाथ मेरे तीखे अकड़े निप्पलों का खूब ज़ोरदार मर्दन कर रहे थे। उन्होने जोश में मेरी फूली हुयी चूत को पूरा मुंह में भर लिया और उसे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगे।
मैं सिसयाती हुयी सर पटकने लगी। मेरा बदन ऐंठ रहा था। जल्द ही मैं सखलत होने वाली थी के तभी मेरे पतिदेव उठकर मेरी छाती पर स्वर हो गए। उन्होने मेरा सर पकड़ अपना लन्ड मेरे होंटो पर दबाया। मेरे होंठ खुलते ही उन्होने आधा लंड मेरे मुंह में घुसा दिया। अब मेरे पति जरूर चूत चाटने में उस्ताद थे मगर मेरे लन्ड चूसने के आगे उनकी कोई विसात नहीं थी। सुपाड़े को मुंह में दबा जब मैंने अपनी जिव्हा नरम कोमल तवचा पर रगड़ी तो पतिदेव आह आह करने लगे। मेरी जिव्हा की नोंक उनके मूत्र के छेद को कुरेदने लगी। मैंने एक हाथ से उनके टट्टे सहलाने सुरु कर दिए और दूसरा हाथ पीछे ले जाकर उनकी गांड में ऊँगली डालने लगी। अब मेरा मुंह तेज़ी से उनके लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसका सुपाड़ा फूलता जा रहा था। पतिदेव ने झटके से मेरा सर नीचे पटका और उठ कर वापस मेरी टांगो के मधय चले गए। उन्होने मेरी टांगे अपने कंधो पर रख ली और मेरे मम्मो को दबोच एक तेज़ ज़ोरदार झटका दिया।
"ऊँह्ह्ह्ह्ह्......." लण्ड का सुपाड़ा अंदर घुसते ही मैं सिसक उठी। पतिदेव ने मम्मे भींच तीन चार करारे घस्से मरे और लन्ड पूरा अंदर घुसा दिया।
"ऊऊफ़्फ़फ़्फ़....क्या बात है आज तो बड़े पहलवान बन रहे हो"
"तुझे बहुत बातें आने लगी हैं......बहुत हंसी आती है मेरी मर्दानगी पर हुंह" पतिदेव हुंकारते हुए धक्के पर धक्का दिए जा रहे थे।
"ओह तो बदला ले रहे हैं......हाय्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्यह........" मेरे मुंह से तेज़ सिसकारी निकली। "हाय मर गयी कोई भला ऐसे भी बीवी को चोदता है.......अगर कहीं.....उंगग्ग्ग्ग्ग्ग्ग......मेरी चूत फट गयी तो......."
"तेरी गांड है ना.....वो साली किस दिन काम आएगी......" पतिदेव के धक्के तेज़ होते जा रहे थे। चूत रस से इतनी भरी हुयी थी के लंड के अंदर बाहर होने का ऊँचा शोर पैदा हो रहा था।
"ख़बरदार जो मेरी गाँड के बारे में सोचा तक भी......वो तो हरगिज़ नहीं मिलेगी आप को" मैं भी नीचे से गांड उछालने की कोशिश कर रही थे मगर पति ने इस कदर दबोचा हुआ था के मेरे लिए गांड उछलना बहुत मुश्किल था।
"ऐसे नखरे तो तू शुरू से करती आ रही है मगर गांड तो तेरी मैं फिर भी ले ही लेता हूँ"
"अब नहीं दूंगी.....अगर ऐसे मारोगे जैसे अब मेरी चूत मार रहे हो तो गांड के बारे में भूल जाओ" मेरे पतिदेव हमेशा मेरी गांड के पीछे पड़े रहते थे मगर मुझे चूत मरवाने में ज्यादा आनंद आता था। आनंद तो गांड मरवाने में भी जरूर था मगर चूत जितना नही और उसमे पीड़ा भी बहुत होती थी।
"राज का जरा ख्याल करा कर......मुझे उसकी बहुत टेंशन रहती है" मेरे पति अचानक मुझे चोदते हुए बोल उठे।
"ख्याल तो रखती हूँ अब और क्या करूँ" पतिदेव ने भी क्या मौका चुना था बेटे की बाबत बात करने का।
"अरे मेरा मतलब......यार वो इतना जवान है.....और सारा दिन कमरे में घुसा है........इस उम्र में तो लड़के लड़कियो के पीछे घूमते हैं" पतिदेव ने अचानक से चुदाई रोक दी।
"अच्छी बात है ना इसमें बुरा क्या है" मैं नीचे से अपनी कमर हिलाती बोली।
"यार तुम बात को समझ करो.......उसक इस तरह एकांत को पसंद करना ठीक नहीं ......" पतिदेव अचानक मेरी आँखों में देखते बोले। वो खासा सीरियस थे।
"क्या मतलब?"
"इस तरह दुनिया से कट जाना......इसके दो ही कारन हो सकते हैं.....या तो किसी लड़की ने उसका दिल तोड़ दिया है जा फिर जा फिर...."
"या फिर क्या?" मैं उत्सुकतावश पूछ बैठी।
"या फिर कहीं वो गे तो नही है" पतिदेव के मुंह से वो बात निकलते ही मैं हंसने लगी।
"आप भी ना......गे और वो......माय गॉड......." हंसी से मेरा बुरा हाल हो गया था।
"इसमें हंसने की कोनसी बात है?" मेरे पती ने मेरे कूल्हों पर ज़ोरदार चपत लगते हुए कहा।
"और क्या.....गे...... हमारा बेटा गे है......." मैं और भी ज़ोर से हंसने लगी। पतिदेव भी मुस्करा उठे।
"तो तुम्हे क्या लगता है?"
"मुझे क्या लगता है.....मैं बताती हूँ....मगर आप जरा अपने लन्ड को तो हरकत दीजिये......आप तो अपनी मर्दानगी दिखाने वाले थे" मेरे ताने पर पतिदेव ने फिर से घस्से लगाने शुरू कर दिए।
"हुंह यह हुयी ना बात......आपका लंड जब मेरी चूत को यूँ रगड़ता है तो मेरा दिमाग बहुत तेज़ चलता है........"
"दिमाग तो मालूम नहीं मगर जब भी तेरी भीगी चूत को चोदता हूँ तो ऐसा आनंद आता है के लगता है जन्नत बस तेरी टांगो के बीच ही है" मेरे पतिदेव अपनी पसंदीदा लाइन बोलते हुए अपना चेहरा झुकाकर मेरे होंठो को चूमते है।
"हुम्म....बहुत चालू हैं आप भी"
"हुंह यह हुयी ना बात......आपका लंड जब मेरी चूत को यूँ रगड़ता है तो मेरा दिमाग बहुत तेज़ चलता है........"
"दिमाग तो मालूम नहीं मगर जब भी तेरी भीगी चूत को चोदता हूँ तो ऐसा आनंद आता है के लगता है जन्नत बस तेरी टांगो के बीच ही है" मेरे पतिदेव अपनी पसंदीदा लाइन बोलते हुए अपना चेहरा झुकाकर मेरे होंठो को चूमते है।
"हुम्म....बहुत चालू हैं आप भी"
"बस डार्लिंग तुम्हारी सोहबत का असर है........अब ज़रा मेरे सवाल का भी जवाब दे दो"
"हुंह क्या पूछा था आपने........ हन्ह वो बेटे के बारे में......मुझे लगता है आपकी पहली बात सही है, जरूर किसी लड़की ने बेचारे का दिल तोड़ दिया है"
"मुझे भी यही लगता है.......मादरचोद मालूम नहीं साली कौन होगी" पतिदेव गुस्से में अपने घस्सों को तेज़ किये जा रहे थे। हम फिर से उत्तेजना के शिखर की और बढ़ने लगे थे।
"आप उस बेचारी को क्यों गालियाँ दे रहे हैं........आप तो जानते तक नहीं हो उसे?"
"गालियाँ नहीं दूँ तो और क्या करू......और तू क्यों उसकी इतनी तरफदारी कर रही है जैसे तू उसे जानती है?"
"मैं कहाँ तरफदारी कर रही हूँ...मैं तो कह रही हूँ के गलती हमारे बेटे की भी हो सकती है" अचानक वो रात का मंज़र मेरी आँखों के सामने घूम गया। चूत और भी रस बहाने लगी।
"गलती? क्या गलती करेगा वो......ज्यादा से ज्यादा उसकी चूत ही मार ली होगी ना............हरामिन किसी और से भी तो मरवाएगी ही.....अगर मेरे बेटे ने मार ली तो कोनसा पहाड़ टूट पड़ा" पतिदेव के मुंह से बेटे के लण्ड का ज़िक्र सुन मेरी चूत में सनसनी की लहर दौड़ गयी। मैंने पूरा ज़ोर लगाकर कमर उछालनी सुरु कर दी। मुझे कामुकता का दौरा सा पड़ गया।
"उफ्फ्फ्फ्फ़......ज़रा तेज़ तेज़ करिये न.......मेरा रस निकलने वाला है"
"मेरा भी" पतिदेव ने अपनी घस्सों की ररफ्तार फुल कर दी।
"वैसे आप सही कह रहे थे.......हमारे बेटे ने किसी को चोद भी दिया तो क्या हो गया.........अब भगवान ने उसे लण्ड तो चोदने के लिए ही दिया है" मैं फिर से उसी समय में पहुँच गयी थी। मैं फिर से घोड़ी बनी हुयी थी और मेरा बेटा मुझे पीछे से ताबड़तोड़ धक्के लगाता चोदे जा रहा था।
"यही तो कह रहा हूँ डार्लिंग चूत तो बनी ही चोदने के लिए है" मेरे सामने मेरे बेटे का चेहरा था जो मुझ पर झुका हुआ मुझे ठोक रहा था।
"हुम्....... चूत तो बनी ही है चोदने के लिए.......लण्ड लेने के लिए........" मैं उन आँखों में देखतो बोली। "चोदो मुझे......मेरी चूत मारो......ऊऊम्मम्मह्ह्ह्ह्........चोदो......मेरी चूत मारो.......मेरी चूत तो बनी ही चोदने के लिए है" मैंने बेटे का चेहरा अपने हाथों में पकड़ उसे खींच कर अपने होंठ उसके होंठो पर दबा दिए। मेरी चूत से रस बहने लगा। जिस्म अकड़ने लगा। पूरी देह की नस नस फड़कने लगी। मेरी आँखे बंद हो गयी मैं झड़ती हुयी बेटे के लण्ड का स्वाद लेने लगी। कुछ ज़ोरदार धक्को के बाद उसका रस मेरी जलती चूत को शीतल करने लगा। मैंने उसकी गर्दन पर अपनी बाहें जकड दी और उसे कस कर सीने से लगा लिया।
"उफ्फ्फ्फ्फ्फ .......कणिका..... तुम्हारी चूत......उफ्फ्फ्फ़........आज भी तुम्हे चोदने में वही मज़ा आता है जैसा तुम्हे सुहागरात को चोद कर आया था।
मेरा पती भी कितना भोला था। वो समझ रहा था उसने मुझे चोदा था। उसे क्या मालूम था मुझे उसने नही बल्कि उसके ही बेटे ने चोदा था.....फिरसे। उफ्फ्फ्फ्फ्फ अभी भी चूत रस बहा रही थी। उसके लण्ड का स्पर्श चूत की दरो दिवार में समां गया था।
अगली सुबह मैं कुछ जल्दी उठी थी। पतिदेव को 7 दिन के लिए कामकाज के सिलसिले में बाहर जाना था। नहाधोकर मैंने नाश्ता बनाया और फिर पति को नाश्ते के लिए बुलाया। इसके बाद मैँ ऊपर गयी और एक महीने बाद बेटे के दरवाजे पर दस्तक दी। वो सायद कमरे में नही था। मैं अंदर गयी और बाथरूम के बंद दरवाजे पर दस्तक दी। अंदर से पानी की गिरती आवाज़ फ़ौरन वंद हो गयी।
"बेटा नाश्ता तयार है, जल्दी से नीचे आ जाओ" मैं जितना हो सकता था प्यार भरे स्वर में बोली और फिर वापस नीचे आ गयी। सीढियाँ उतरते मेरे होंठो पर जबरदसत मुस्कान थी,रात की चुदाई ने मेरी शंकाए दूर कर दी थी ,अब मुझे फिर से अपने बेटे का लंड चाहिए था अपनी चूत में।
शाम को राज जानबूझकर काफी देर बाद घर आया । उसने देखा मेँ डाइनिंग रूम या किचन में नहीं थी जैसा की मै अक्सर इस समय होती थी । शायद वो दिन भर सोच रहा था कि घर जाकर मेरा सामना कैसे करेगा लेकिन जब उसने पाया कि मै आज , अन्य दिनों की तरह , डिनर के लिए उसका इंतज़ार नहीं कर रही है तो उसने राहत की सांस ली ।उस ने किचन में झांककर देखा तो पाया कि में ने उसके लिए खाना पकाकर रख दिया था । उसने चुपचाप खाना गरम किया और खाने लगा ।
डिनर के बाद उसने थोड़ी देर वहीँ सोफे पर बैठकर TV देखा फिर वो बाथरूम की तरफ चल दिया । चुपचाप उसकी ये हरकते अँधेरे में से देख रही थी ,सुबह मेरे बुलाने पर भी वो नहीं आया तो मेरे दिल में उसके लिए हमदर्दी का ज्वार उमड़ पड़ा था मुझे बार बार मेरे पति की वो बात याद आ रही थी की उसने किसी लड़की की चूत भी मार ली होगी तो क्या हुआ वो क्या किसी से नहीं चुदवाती होगी। में सुबकने लगी , राज मेरे बेडरूम के दरवाज़े से गुजरते वक़्त उसे हलकी हलकी मेरे सुबकने की आवाज़ें सुनाई दीं ।
अपने कानों में मेरे सुबकने की आवाज़ पड़ने से उसका दिल बैठ गया । जो कुछ भी हुआ उसके लिए उसका मन अपने को ही दोषी ठहराने लगा । वो सोचने लगा अगर वो उस रात मॉम के बाद में चुदाई वाले प्रस्ताव को ठुकरा देता तो वो घटना होती ही नहीं । उसका दिल अपनी सुबकती हुई मॉम के पास दिलासा देने के लिए जाने को मचलने लगा ।दूसरी तरफ ये बात भी थी कि राज को भी उस रात जब तक उसे ये पता नहीं चला था की वो अपनी मॉम को चोद रहा हे वो अजनबी औरत अच्छी लगी थी । उस औरत ने बिना नखरे दिखाये राज के साथ खुलकर सेक्स किया था और ये बात राज को बहुत पसंद आयी थी । लेकिन जब रोशनी में असलियत से उसका सामना हुआ और उस औरत से मुलाकात हुई तो वो उसकी अपनी ही मॉम निकली जिससे सेक्स सम्बन्ध बनाने की वो कल्पना भी नहीं कर सकता था ।