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Incest मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना )

Sur281

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दोस्तों ये कहानी कट कॉपी पेस्ट है मेने दूसरी साइट पे पड़ी थी अच्छी लगी तो जहा पेस्ट कर रहा हु क्यू की यहाँ पर बोहत सी कहानिया है जो शुरू तो हुई पर उनका एन्ड नै हुआ और कुछ तो आधे में ही अटकी है ज कहानी पूरी है तो सोचा इसे पेस्ट करू दू बाइए मुझे तो अच्छी लगी आप बताये कैसी है, शायद आप में से कई दोस्तों ने पहले भी पड़ी हो
 
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Sur281

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हेलो दोस्तों मेरा नाम कणिका है। मेरे दो बच्चे हैं । बड़ी बेटी का नाम डॉली है और उसकी शादी हो चुकी है। बेटे का नाम राज है वह भी b.a. के फाइनल ईयर का स्टूडेंट है मेरेपति का अपना बिजनेस है। हम एक उच्च मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। अच्छा घर बार है, ज़िन्दगी जीने की सभी सहूलतें हैं। किसी चीज की कोई कमी नहीं है। इस समय मेरी उम्र 43 साल की है। अभी पिछले साल ही मेरी बेटी की शादी हुई।

पिछले साल मेरी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया जिसने मेरी पूरी जिंदगी बदल कर रख दी। मुझे तो यह भी समझ नहीं आ रहा कि मैं इस अनोखे मोड़ को सुखदायक कहूं या दुख दायक। उस घटना को बयान करने से पहले मैं उस घटना के असली कारण को बताना चाहती हूं जिसके कारण यह घटना घटी। इस घटना का असली कारण था मेरे पति का हर दिन शराब पीना। मेरे पति हर रोज शराब पीते हैं। शादी के समय में वो ऐसे नहीं थे उस समय वह नौकरी करते थे। जिंदगी सुखी थी। बच्चों के जन्म के बाद उन्होंने अपना बिजनेस शुरू किया। शुरुआत में काम अत्यधिक होने के कारण दौड़ धुप करनी पड़ती थी। वो इतना थक जाते थे के कभी कभी थकान मिटाने के लिए दो एक दो पेग दारू के लगा लिया करते थे।

धीरे-धीरे यह उनकी आदत बन गई। पहले पहले मैं उनको उनकी इस आदत के लिए खूब कोसा करती थी मगर धीरे धीरे मैंने उनकी आदत को स्वीकार कर लिया। इसके दो तीन कारण थे पहला कारण तो बता मैं खुद देख सकती थी कि वह दारू को अय्याशी के लिए नहीं बल्कि एक जरूरत के हिसाब से पीते थे। दूसरा मुख्य कारण था कि वह दारू पीकर कभी भी हल्ला नहीं करते थे लड़ाई झगड़ा नहीं करते थे।
 

Sur281

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वह काम से आते थे दारु पीते थे और उसके बाद सो जाते थे मगर सबसे बड़ा कारण यह था कि दारु पीने के बाद वह हर रोज मेरी खूब दम लगाकर चुदाई करते थे। मेरी हर हर रोज भरपुर ठुकाई होती थीर। अक्सर लोग कहते हैं कि जैसे जैसे आदमी की जवानी ढलती है दिन बीतते हैं वैसे वैसे सेक्स की चुदाई की इच्छा कम होने लगती है। यह बात मेरे पति के हिसाब से बिल्कुल ठीक थी। धीरे-धीरे उनकी चोदने की इच्छा कम हो रही थी लेकिन मेरे बारे में जो बिल्कुल उल्टी बात थी जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ रही थी मेरी चुदवाने की इच्छा और भी तेज होती जा रही थी

ऐसे में जब मेरे पति रात को दारू से टुन्न होकर दनादन मेरी चूत मैं लंड पेलते थे और मेरी खूब दमदार चुदाई करते थे तो मैं भला उनकी दारू को बुरा भला कैसे कह सकती थी। बस उनके मुंह से आने वाली दुर्गन्ध अच्छी नहीं लगती थी। लेकिन एक बार जबाब उनका लण्ड मेरी चूत के अंदर उत्पात मचाना सुरु करता था तो दुर्गन्ध भी खुशबू लगने लगती थी। मेने कभी यह नहीं सोचा था के उनकी दारू की लत्त जिसका मुझे भरपूर लाभ मिलता था आगे चलकर कभी मेरे लिए इतनी बड़ी मुश्किल बन्न सकती थी के मेरी पूरी ज़िन्दगी ही बदल देगी।

हुआ यूँ के मेरी बेटी की शादी के समय मेरे जेठ जी भी अपने पूरे परिवार सहित आये हुए थे। वो अमेरिका में रहते हैं। उनका एक बेटा है जिसकी सगाई अमेरिका में हो चुकी थी मगर शादी दोनों परिवार भारत में ही करना चाहते थे। इसीलिए जब वो डॉली की शादी के लिए भारत आये तो उन्होने साथ में ही अपने बेटे की शादी करने का भी निर्णय कर लिया। मेरी बेटी की शादी के ठीक एक महीने बाद उनके बेटे की शादी की तारिख निकली। अब हम बंगलौर में रहते हैं जबके मेरे जेठ के लड़के के सुसराल वाले पुणे के हैं।

चूँकि हम लड़के वाले थे इस लिए हमें बारात लेकर पुणे जाना था। मेरे जेठ जी ने पुणे का एक पूरा होटल बुक् करवा लिया था। शादी के दो दिन पहले हम होटल पहुंचे थे। दोनों परिवार इतने रईस थे और शादी पर इतना खर्च हुआ के शादी की चकाचोंध देख कर पूरी दुनिया विस्मित हो उठी। डॉली को अपने पति के साथ अलग कमरा मिला था और मुझे अपने पति के साथ एक अलग कमरा जबके मेरे बेटे राज को दो और लड़को के साथ कमरा शेयर करना पड़ा था।
पहली रात तो सफ़र की थकान ने हमें इतना थक दिया था के उस रात में और मेरा पति घोड़े बेचकर सोते रहे। मगर दूसरे दिन मेरा मन मचल रहा था। पूरा दिन शादी की ररंगीनियों में गुज़रा था। घर की सजावट से लेकर खाने पीने तक सभ कुछ इतना शानदार था के बस मन वाह वाह कर उठे। वैसे भी विदेश में वसने के कारन शादी का माहोल भी काफी खुलापन लिए था। लडकिया ऐसे छोटे छोटे और टाइट कपडे पहन कर घूम रही थी जैसे उन्होने कपडे अपने अंगों को ढकने की बजाये उन्हें दिखाने के लिए पहने हुए थे। मगर लडकिया तो लडकिया औरतें भी कम् नहीं लग रही थी।

किसी की साड़ी का पल्लू पारदर्शी था और अंदर से पूरा ब्लाउज मोटे मोटे मम्मो के दर्शन करवा रहा था तो किसी का लहंगा इतना टाइट था के गांड का पूरा उभार खुल कर नज़र आता था। कोई डीप गले का सूट पहन कर आधे मम्मे दिखाती घूम रही थी तो कई बिना ब्रा के इतना टाइट सूट पहन कर घूम रही थी के देखने वाले को पूरे मम्मो के दर्शन हो जाये। निप्पल तक पूरे साफ़ साफ़ दिखाई दे रहे थे।

मर्दों की खूब चांदी थी। गानों पर नाचते हुए औरतों को खूब मसल रहे थे। और गाने भी कैसे....मुन्नी बदनाम हुयी, बीड़ी जला ले... उफ्फ्फ ऐसा माहोल मेने नहीं देखा था। जिस तरह खुलेआम मरद औरतें एक दूसरे के साथ ठरक भोर रहे थे उनको देख कर मेरी ठरक भी कुछ् जयादा ही बढ़ गयी थी। मेरे निप्पल कड़े हो गए थे और चूत भी खूब रस बहा रही थी। ऐसे में एक मनचले ने नाचते हुए बहाने से दो तीन बार मुझे रगड़ दिया। उफ़फ हरामी ने चिंगारी को हवा देकर भड़का दिया था अब मेरा पूरा जिस्म वासना की भीषण अग्नि में जल रहा था। वहां का माहोल गरम और गरम होता जा रहा था।

हर कोई इशारों इशारों में बातें कर रहा था। हर मरद औरत टंका फिट कर रहे थे। आज कई औरतें पराये मर्दों के नीचे लेटने वाली थी। कईयो की आज सील टूटने वाली थी। आज रात चुदाई का खूब दौर चलने वाला था। खुद मेरी बेटी मेरे सामने अपने पति से लिपटी हुयी थी। उसे तो लगता था मेरी मोजुदगी से कोई मतलब ही नहीं था।
 

Sur281

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खैर उसका दोष भी क्या था, नयी नयी शादी हुयी थी। चूत को लण्ड मिला था और जिस तरह से मेरा दामाद उसे खुद से चिपकाये हुए था, जैसे वो बार बार उसके अंगो को सहला रहा था, मसल रहा था लगता था मेरी बेटी की खूब दिल खोलकर ठुकाई करता था। इधर वो कम्बखत जिसने नाचने के दौरान कई बार मुझे मसला था मेरे आगे पीछे ही घूम रहा था। कमीने ने बड़े ज़ोर ज़ोर से मम्मो को मसला था।

निप्पल मैं अभी भी हलकी हलकी चीस उठ रही थी। अभी भी मौका देखकर वो कई बार मेरे नितम्बो में ऊँगली घुसा चूका था। मेने उसे घूर कर देखा मगर हद दर्जे का ढीठ इंसान था। वैसे भी जवान था। कोई पैंतीस के करीब का होगा। जिसम भी बालिश्ठ था। ऐसे आदमी बहुत ज़ोरदार चुदाई करते हैं। वो जिस तरह से मुझे देख रहा था लगता था बस मौके की तलाश कर रहा था के कब् मुझे ठोकने का उसे मौका मिला।

वो मेरी और देखते हुए ऐसे होंठो पर जीभ फिरा रहा था और इस तरह पेंट के ऊपर से अपने लण्ड को मसल रहा था जेसे वहीँ मुझे खड़े खड़े ही चोद देना चाहता हो। पेंट का उभार देखकर लगता था खूब मोटा तगड़ा लण्ड था। मेरी चूत पानी पानी हो चुकी थी। पूरी देह कामाग्नि मैं जल रही थी। अब तो मेरा दिल भी खुल कर चुदवाने के लिए मचल रहा था। और मेरे सामने वो अजनबी पूरी तरह तयार था मेरी भरपूर चुदाई के लिए। एक तो पिछली रात को मेरी चुदायी नहीं हुयी थी और ऊपर से आज के माहोल ने मुझे इतना गरम कर दिया था के एकबारगी तो मेरा दिल भी मचल उठा के आज पराये लण्ड से चुद जायुं। उफ्फ्फ कामोन्माद मेरे सर चढ़कर बोल रहा था और मैं जिसने आज ताक अपने पति के सिवा किसी दूसरे लण्ड को छूआ तक नहीं था

आज पराये मरद के नीचे लेटने के लिए मचल रही थी। दिल कर रहा था आज अपने जिसम को लूटा दूँ, उस अनजान आदमी से अपना कांड करवा दूँ, अपनी चूत के साथ साथ अपनी गांड भी उससे मरवायुं। और यकीनन ऐसा हो भी जाता अगर में वहां से चली न आती। अगर कुछ देर और वहां रूकती तोह जरूर उससे ठुकवा बैठती। मैं कमरे में आते ही नहाने चली गयी। ठन्डे पानी ने आग को और भड़का दिया। चूत लण्ड के लिए रो रही थी। मेरे मम्मे मैं कसाव भर गया था। निप्पल इतने अकड़े हुए थे के ज़ोर ज़ोर से मसल कर ही उनको ढीला किया जा सकता था।

मेरा दिल तो जरूर था ऊँगली से खुद को शांत करने का। मगर मेने अपने पति का इंतज़ार करना ही बेहतर समझा। आग तो आज उसके दिल में भी बराबर लगी होगी। कल रात उसके लण्ड को भी चूत नसीब नहीं हुयी थी। और वेसे भी वो आज खूब पिए हुए था। आज तो जरूर पतिदेव मेरी चूत की ऐसी तैसी कर देने वाले थे। उन्हें भी मेरी चूत मारे बिना नींद कहाँ आती थी। जरूर आने ही वाले थे। मगर इंतज़ार एक पल का भी नहीं हो रहा था। मेने बदन पोंछा और कमरे की बत्ती बंद करके पूरी नंगी ही बेड पर लेट गयी।
मुझे नहाये हुए दस् मिनट ही गुज़रे होंगे के अचानक से कमरे का दरवाजा खुला और पतिदेव अंदर आये। मेने झट से अपने ऊपर चादर खींच ली के कहीं उनके साथ कोई हो ना। मगर वो अकेले थे उन्होने दरवाजा खोला और अंदर कदम रखते ही वो गिर पड़े। लगता था दारू कुछ जयादा ही चढ़ा ली थी। मेने कुछ पल इंतज़ार किया के वो उठकर बेड की तरफ आ जाये। मगर जिस तरह उन्होने पी रखी थी उससे तो उनका बेड ढूंढ पाना भी मुश्किल ही था। मुझे ही हिम्मत करनी थी। मैं चादर हटाकर बेड से नीचे उतरी। दरवाजा हल्का सा खुला था इसलिए मेने बत्ती नहीं जलायी। पूरी नंगी दरवाजे के पास गयी।

दरवाजा बंद करके मेने पति को सहारा दिया और वो खांसता हुआ उठ खड़ा हुआ। उससे शराब की तेज़ गंध आ रही थी। मुझे शक हो रहा था के वो इतने नशे में मुझे चोद भी पायेगा के नहीं। में किसी तरह पति को बेड तक लेकर गयी और वो उस पर गिर पड़ा। मेने जल्दी से।उसके बदन पर हाथ घुमाया तोह मेरा दिल ख़ुशी से झूम उठा। उसका लण्ड पत्थर की तरह कठोर था। मेने उसे हाथ में पकड़ कर मसला तोह उसने तेज़ ज़ोरदार झटका खाया। उफ्फ्फ आज तो उसका लण्ड कुछ जयादा ही तगड़ा जान पढता था। एकदम कड़क था। बल्कि मेरे मसलने से और भी कडा होता जा रहा था। अब मुझे परवाह नहीं थी। अगर पतिदेव कुछ नहीं भी करते तो में खुद लण्ड पर बैठकर दिल खोलकर चुदवाने वाली थी।

मेने पेंट को खोला और खींच कर टांगो से निकल दी। फिर मेने जांघिये को इलास्टिक से पकड़ खींचते हुए पैरों से निकाल कर नीचे फेंक दिया। मैं बेड के किनारे बैठ लण्ड को हाथ में लेकर मसलने लगी।

"उफ्फ्फ्फ्फ़.........कहाँ थे जी आप अब तक। यहां मेरी चूत जल रही है और आपको शराब के बिना कुछ नजर ही नहीं आता। कल रात भी आपने मुझे नहीं चोदा। वैसे आपको तो शायद याद न हो मगर इस पूरे साल में कल पहली रात थी जब अपने मेरी चूत नहीं मारी थी।" पतिदेव की तेज़ तेज़ भरी साँसे गूंज रही थी। वो जाग रहे थे मगर कुछ बोल नहीं रहे थे जा शायद जयादा शराब पिने के कारन बोलने लायक नहीं रहे थे।

"थोड़ी कम पी लेते।" मैं पतिदेव के टट्टो को हाथों मैं भर सहलाती बोली। मेने थोडा सा दवाब बढ़ाया तो उनके मुंह से तेज़ सिसकी निकली। वो जाग रहे थे अब कोई शक नहीं था। मेने अपना मुंह झुक्या और सुपाड़े को अपने होंठो में भर लिया। जैसे ही मेरी जिव्हा लण्ड की मुलायम त्वचा से टकराई पतिदेव के मुंह से 'आह्ह्ह्ह्ह्' की ज़ोरदार सिसकारी निकली। में मन ही मन मुस्करा उठी। लण्ड को होंठो में दबा में सुपाड़े को चाटती उसे चूसने लगी।

एक हाथ से टट्टे सहलाती मैं मुख को धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगी। लण्ड और अधिक फूलता जा रहा था। मुझे हैरानी होने लगी थी मगर हैरानी से ज्यादा ख़ुशी हो रही थी। मेरा मुख और भी तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगा। तभी पतिदेव ने मेरे सर को पकड़ लिया और अपना पूरा लण्ड मेरे मुंह में घुसाने लगे। मेने उनके पेट पर हाथ रखकर उन्हें ऐसा करने से रोका। पहले मैं उनका पूरा लण्ड मुंह में ले लेती थी मगर आज जिस प्रकार उनका लौड़ा फूला हुआ था मैं चाह कर भी उनका पूरा लण्ड मुंह में नहीं ले सकती थी। वैसे भी उस समय मैं लण्ड मुंह में नहीं अपनी चूत में चाहती थी।
ने लण्ड से अपना मुख हटाया और पतिदेव की टांगे उठाकर बेड के ऊपर कर दी। फिर मैं फ़ौरन बेड के ऊपर चढ़ गयी। एक हाथ से लण्ड पकडे मैं पतिदेव के ऊपर सवार हो गयी। उनकी छाती पर एक हाथ रखकर मैं ऊपर को उठी जबके दूसरे हाथ से उनका लण्ड थामे रखा। जहां अंधेरे में मेने अपनी कमर हिलाकर अंदाज़े से लण्ड के निशाने पर रखी और फिर धीरे धीरे कमर नीचे लाने लगी। लण्ड मेरे दोनों नितम्बो के बिच घुसता हुआ आगे मेरी चूत की और सरकने लगा। जैसे ही लण्ड का सुपाड़ा मेरी भीगी चूत के होंठो से टकराया हम दोनों के मुख से आह निकल गयी। आज हम दोनों कुछ जयादा ही उत्तेजित थे। पतिदेव का लौड़ा तो कुछ जयादा ही मचल रहा था।

"ऊऊफ़्फ़फ़्फ़ देखिये ना आपका लण्ड कितनी बदमाशी कर रहा है। एक दिन चूत नहीं मिली तो कैसे अकड़ कर उछल कूद मचा रहा है। अभी इसको मज़ा चखाती हूँ।" मैं लण्ड को हाथ में दबाये मैंउस पर चूत का दबाव देने लगी। मेरी चूत के होंठ खुले और सुपाड़ा धीरे धीरे अंदर सरकने लगा। उफ्फफ़फ़फ़ सुपाड़ा अंदर घुसते घुसते मुझे पसीना आने लगा। लण्ड इतना फूला हुआ था के मेरी चूत को बुरी तरह से फैला रहा था। मेने अपने सूखे होंठो पर जीभ फिराई और फिर से दबाव बढ़ाना शुरु किया। मेरी रस से सरोबर चूत में पल पल लण्ड अंदर धंसता जा रहा था। मुझे हलकी हलकी पीड़ा के साथ अत्यधिक चुभन महसूस हो रही थी जिसने मुझे असमंजस में डाल दिया था।

मगर मैं कामोन्माद के चरम पर थी और उस समय सिर्फ और सिर्फ चुदवाने के बारे में ही सोच रही थी। आज तक सिर्फ और सिर्फ मेरे पति ने ही मुझे चोदा है। एक इकलौता लण्ड मेरी हूत में हज़ारों हज़ारों दफा गया है इसलिए मुझे अच्छा खासा एहसास है के वो चूत के अंदर किस सीमा तक घुसता है। और आज जब वो लण्ड उस सीमा से काफी आगे पहुँच चूका था तो मुझे हैरत होने लगी। शायद आज अतिउत्तेजना की वजह से उनका लण्ड कुछ अत्यधिक फूल गया था। जब मेने उसे मुठी में भरा था तो मुझे वो बहुत मोटा लगा था। अचानक नजाने कयों मुझे अजीब सा लगा और मैं अपना एक हाथ नीचे हम दोनों के बीच ले गयी। उफ्फ्फ मेरे आस्चर्य की सीमा न रही। लण्ड तो अभी भी एक इंच से जयादा बाहर था। मैं कुछ समझ पाती उसी समय मेरे पति के दोनों हाथ मेरी कमर पर कस गए और आईईईईईईए.......... मेरे मुंह से तेज़ सिसकारी निकल गयी।
कमीने ने दोनों हाथों में मेरी कमर जकड़ कर नीचे को दबाया और नीचे से अपनी कमर ऊपर को उछाली और पूरा लण्ड मेरी चूत में पेल दिया। वो कमीना ही था। मेरे पति का लण्ड इतना लम्बा मोटा नहीं हो सकता था। वो कौन था मुझे कोई अंदाज़ा नहीं था और में सोचने की हालात में भी नहीं थी। कमीने ने लण्ड अंदर घुसाते ही धक्के लगाने सुरु कर दिए। मेरी कमर पकड़ वो नीचे से दनादन मेरी चूत में लण्ड पेलने लगा। मेरी कमर को उसने बहुत कस कर पकड़ा हुआ था के कहीं मैं भाग न जायुं। मगर मैं भागने की स्थिति में तो थी नहीं। कामोत्तेजना तो पहले ही मेरे सर चढ़ी हुयी थी और चूत में उस भयंकर लण्ड के ताकतवर धक्को ने मुझे पसत कर दिया। मेरे मुख से सिसकियाँ निकलने लगी। मैं आह उनन्ह उफ्फ्फ करती सिसकती कराहती चुदने लगी। सिसकियों के साथ साथ में खुद अपनी कमर हिलती चुदाई में उसका साथ देने लगी। मुझे राजी देखकर उसकी पकड़ धीरे धीरे मेरी कमर पर हलकी पढने लगी। जैसे ही मेरी कमर पर उसकी पकड़ ढीली पड़ी मेने अपने दोनों हाथ उसकी छाती पर रखे और उछाल उछाल कर अपनी चूत उसके लण्ड पर पटकने लगी। वो भी ताल से ताल मिलाता मेरी चूत में लण्ड पेलने लगा। फच फच की आवाज़ कमरे में गूंजने लगी।

मेने एक बार भी उस पराये आदमी को रोकने की कोशिश नहीं की थी। मेरे दिल में ख़याल तक नहीं आया था के मैं अपने पति के साथ धोखा कर रही हूँ। सुना था भगवान मन की मुराद पूरी कर देता है आज देख भी लिया था। आज शाम से बार बार मन में पराये आदमी से चुदवाने का ख़याल आ रहा था और अब हक़ीक़त में एक ताकतवर लण्ड मेरी चूत को बुरी तरह से रगड़ ररहा था। उफ्फ्फ्फ्फ़ ढ कहीं यह वही तो नहीं जिसने डांस के समय कई बार मेरे मम्मो को मसल दिया था। वही होगा। पूरी शाम मेरे आगे पीछे घूम रहा था।

मैं अभी सोच ही रही थी के उसने मेरी बाहें पकड़ी और मुझे अपने ऊपर गिरा लिया। फिर वो मुझे एक तरफ को करके मेरे ऊपर आ गया। मेरी टांगे के बीच आकर उसने मेरे पैर पकडे और उठाकर अपने कंधो पर रख लिए। मेने अपनी टांगे आगे कर उसकी गर्दन पर लपेट दी। उसने अपना लौड़ा मेरी चूत रखा और एक करारा झटका मारा। कमीने ने पूरा लौड़ा एक ही झटके में जड़ तक पेल दिया था। मैं चीख ही पड़ी थी। मगर उसने कोई दया न दिखाई और मेरे कंधे थाम मेरी चूत में फिर से लण्ड पेलने लगा। 'आअह्ह्ह्ह्ह....ऊऊन्ग्गह्ह्ह्ह्ह्ह्........ऊऊऊम्मम्मम्म....' मेरी सिसकियां तेज़ और तेज़ होने लगी। वो और भी जोश में आ गया।
 

Sur281

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"ऊऊफ़्फ़फ़्फ़.........हायययययययययय.........मेरे मेरे मम्मे पकड़ो....मेरे मम्मे पकड़ो.." मेने उसके हाथ कंधो से हटाकर अपने मम्मो पर रख दिए। उसने तृन्त मेरे मम्मो को अपने हाथो में कस लिया। "ऐसे ही मेरे मम्मो को मसल मसल कर मुझे चोदो। कस कस कर चोदो मुझे" मैं उस अनजान सख़्श से बोली। और जैसा मेने उसे कहा उसने वैसा ही किया।

मेरी टांगे कंधो पर जमाये उसने ऐसे ताबड़तोड़ धक्के मेरी चूत में लगाये के में बदहवासी में चीखने लगी। उसका मोटा लण्ड मेरी चूत को इतनी बुरी तरह रगड़ रहा था और मुझे ऐसा असीम आनंद आ रहा था के में उसे उकसाती कमर उछाल उछाल कर चुदवाने लगी। वो भी धमाधम लण्ड पेले हा रहा था। कैसा जबरदस्त आनंद था और वो आनंद पल पल बढ़ता ही जा रहा था। आखिरकार मेरा बदन अकड़ने लगा। मैं हाथ पांव पटकने लगी।

"उफ्फ्फ्फ़......मारो......और ज़ोर ज़ोर से मारो.......हाय चोदो मुझे जितना चाहे चोदो..........पूरा लौड़ा पेलो.........आआईईईईई......." मैं बहुत देर तक टिक न सकी और मेरी चूत से रस फूटने लगा। वो अजनबी अभी भी मुझे पेले जा रहा था। एक एक धक्का खींच खींच कर लगा रहा था। और फिर वो भी छूट गया। मेरी जलती चूत में उसका गरम गरम रस गिरने लगा। हुंगार भरता वो मेरी चूत को भरने लगा। वो अभी भी धक्के लगा रहा था। आखिरकार उसके धक्के बंद हो गए। मगर वो अब भी उसी हालात में था। अब भी उसके हाथ मेरे मम्मो को कस कर पकडे हुए थे।

अब भी मेरी टांगे उसके कंधो पर थी। मेरी साँसे लौट चुकी थी। मेने उस अजनबी के चेहरे को पकड़ अपने चेहरे पर झुक्या और अगले ही पल हमारे होंठ मिल गए। मैं उसकी जिव्हा को अपने होंठो में भरकर चूसने लगी। वो भी मेरे मुखरस को पीता मेरे होंठो को काटता मुझे चूमने चाटने लगा। धेरे धीरे उसके हाथ मेरे मम्मो पर फिर से चलने लगे। कभी मैं उसके होंठो को चूमती चुस्ती तो कभी वो। हमारी साँसे फूलने लगी। जब हम दोनों के चेहरे अलग हुए तो हम हांफ रहे थे। सांसे सँभालते ही हमारे होंठ फिर से जुड़ गए।

"मेरी टांगो में दर्द हो रहा है" इस बार जब हमारे होंठ जुदा हुए तो मेने उसे धीमे से कहा। उसने तृन्त मेरे मम्मो से हाथ हटाये और आराम से मेरी टांगे अपने कंधो से उतार दी और फिर वो मेरे ऊपर से हट गया। कुछ देर बाद वो उठा और अँधेरे में अपने कपडे ढूंढने लगा।

"दरवाजे के दायीं और स्विच है।" मेने उसे बताया। मगर उसने स्विच ओन नहीं किया और वहीँ अँधेरे में हाथ चलता रहा। मुझे उस पर हैरत हो रही थी। वो अभी अभी मुझे चोद कर हटा था और मुझे चेहरा दिखने में उसे डर लग्ग रहा था। जबके एक औरत होने के नाते डरना मुझे चाहिए था। खैर उसे अपनी पेंट मिल गयी और वो पहनने लगा। मुझे उसका इस तरह से अचानक चला जाना अच्छा नहीं लगा।
"सुनो...." दरवाजे के हैंडल को पकडे वो वहीँ पर रुक गया। "तुमने अभी अभी मुझे चोदा है कम से कम मुझे अपना नाम तो बताकर जाओ..." मगर वो कुछ नहीं बोला और उसने दरवाजे का हैंडल घुमाया। मुझसे रहा नहीं गया। "तुम डर क्यों रहे हो? तुमने चोरी से मेरे रूम में घुसकर जबरदस्ती मेरी चुदाई की है मगर मेने तुम्हे कुछ नहीं कहा बल्कि तुम्हारा पूरा साथ दिया है। फिर इस तरह घबरा कर भाग क्यों रहे हो।" वो फिर भी कुछ नहीं बोला। शायद वो मन में हालात का जायजा वे रहा था। मैं उसे अभी जाने नहीं देना चाहती थी। और उसे रोकने के लिए उसे विस्वास दिलाना जरूरी था के मैं उसका पकड़वाने वाली नहीं थी।

"देखो अगर मेने तुम्हे पकड़वाना होता तो में तुम्हे कब की पकड़वा चुकी होती.......तुम्हे खुद इस बात बात का एहसास होना चाहिये। तुम बेकार में डर रहे हो।" वो कुछ पल खड़ा अँधेरे में सोचता रहा और फिर जैसे उसने फैसला कर लिया। उसने हैंडल घुमाया। मैं बेड से नीचे उतरी। कैसा गधा है यह, मैं इसे निमत्रण दे रही हूँ और यह भाग रहा है|

"देखो रुको.....जाने से पहले मेरी बात सुनलो" उसके हाथ वहीँ ठिठक गए। अब आखिरी मौका था उसे रोकने का। "देखो मुझे लगता है तुम जानते हो के मैं कौन हूँ और तुम मुझे पहचानते हो.....लेकिन मुझे नहीं मालूम तुम कौन हो नाही मैं तुम्हे पहचानती हूँ और अगर तुम बताना नहीं चाहते तो मुझे कोई एतराज़ नहीं है। मैं तुमसे नहीं पूछूंगी।" इस बार मेरे शब्दों ने असर दिखाया और उसने हैंडल छोड़ दियाऔर वो मेरी तरफ घूम गया। "जो सुख जो आनंद आज तुमने मुझे दिया है मेरे पति ने आज तक मुझे नहीं दिया। इतना मज़ा.....इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया।"मैं चलते चलत्ते उसके पास पहुच गयी थी। हम दोनों आमने सामने थे। "मैं तुम्हारा सुक्रिया अदा करना चाहती थी। तुम्हारा नाम इसलिए पूछ रही थी के अगर बाद में कभी......कभी भी.......मेरा मतलब है अगर कभी फिर से तुम्हारा दिल करे तो मुझे कोई एतराज़ नहीं है" मैं सिसकती आवाज़ में बोली। अब वो मेरी बात सुन रहा था और वहां से जाने के बारे में भूल चूका था। मेने अपना हाथ आगे बढाकर उसके सीने पर रखा और फिर उसे नीचे की और ले जाने लगी। उसकी सांसो की रफ़्तार तेज़ हो रही थी। शायद वो भी अभी वहां से जाने का इच्छुक नहीं था। मगर अपना भेद खुलने से डर रहा था। मेरा हाथ जब पेंट की जिपर पर गया तो वहां पर हलकी सी हलचल देख कर मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी। मेने धेरे से पेंट की जिपर नीचे खींच दी। और उसके जांघिये में हाथ डालकर उसका कड़क होता लण्ड पकड़ लिया। मेरा हाथ लगते ही वो सिसक उठा।
"तुम्हारा यह बहुत बड़ा है.....बहुत मोटा है.......लंबा भी खूब है......मुझे नहीं मालूम था यह इतना बड़ा भी हो सकता है" मैं लण्ड को मसलते बोली जो अभी भी मेरी चूत के रस से भीग हुआ था। । लण्ड तेज़ी से अकड़ता जा रहा था। "उफ्फ्फ्फ़ यकीन नहीं होता इतना मोटा लण्ड मेरी चूत के अंदर था.......बहुत ज़ोर से ठोका है तुमने मुझे......मेरी चूत में चीस उठ रही है" में आग में घी डालते बोली। उसकी सांसो की रफ़्तार मुझे बता रही थी के वो कितना उत्तेजित है। वो धीरे धीरे मेरे हाथों मैं अपना लण्ड ठेल रहा था। "सुनो.....मेरे पति आज रात आने वाले नहीं है......अगर तुम कुछ देर और रुकना चाहो तो......" वो कुछ नहीं बोला। मेने उसके लण्ड से हाथ हटाये और उसके हाथ पकड़ अपने मम्मो पर रख दिए। वो मेरे निप्पलों को मसलने लगा और में उसकी पेंट की बेल्ट खोलने लगी। उसकी पेंट और जांघिया खुलते ही उसने अपना चेहरा झुक्या और मेरे निप्पल को होंठो में भरकर चुसकने लगा। में फिर से उसका लण्ड मसलने लगी। वो मेरे मम्मो को चूस्ता चाटता उन्हें दांतो से काट रहा था और में उसे रोक नहीं रही थी।

कुछ देर उससे मम्मे चुसवा कर मेने उसका चेहरा अपने सीने से हटाया और उसके पैरों के पास घुटनो के बल बैठ गयी। मैं जीभ निकाल उसके लण्ड को चाटने लगी। उसकी सिसकारियाँ गूंजने लगी। अब वो मेरे बस में था। सुपाड़े को अपनी जिव्हा से रगर रगड़ कर लाल करने के बाद मेने उसे अपने मुंह में भर लिया और उसे चूसने लगी। में अपना मुख हिलाती लण्ड को खूब मज़े से चुसक रही थी। अब उसका लण्ड फिर से अपने भयन्कर रूप को धारण कर चूका था। मुझसे इंतज़ार नहीं हो रहा था और उस अजनबी से भी नहीं। उसने मेरे कंधे पकड़ मुझे उठाया। मैं खड़ी हो गयी और हमारे होंठ मिल गए। मुझे चूमते हुए उसने मेरी एक टांग उठा ली और मेरी चूत पर लण्ड दबाने लगा। मेने लण्ड को हाथ से पकड़ रास्ता दिखाया। अगले ही लण्ड का सुपाड़ा चूत में था। में उत्तेजना में उसके होंठ काटने लगी। मेने अपनी टांग उसकी कमर पर लपेट दी और अपनी बाहें उसके गले में डाल दी। उसने एक हाथ से मेरी टांग को उठाया और दूसरे को मेरी पीठ पर लपेट मेरी चूत में लण्ड पेलने लगा। वो मुझे ठोकने लगा और मैं फिर से ठुकने लगी। हम दोनों एक दूसरे के मुंह में सिसक रहे थे। दोनों चुदाई में एक दूसरे की सहायता कर रहे थे। उसका मोटा लण्ड मेरी चूत में खचाखच खचाखच अंदर बाहर हो रहा था।

"कहीं तुम वहीँ तो नहीं जो डांस के समय बार बार मेरे मम्मो को मसल रहा था और मेरी गांड में ऊँगली डाल रहा था।" मगर उसने कोई जवाब नहीं दीया। वो बस लगातार मुझे चोदे जा रहा था जेसे उसे यह मौका दुबारा नहीं मिलने वाला था। मेने उसे दुबारा नहीं पूछा। कहीं वो डर कर चुदाई बंद न कर दे। मुझे भी ऐसा कड़क लण्ड शायद दुबारा नहीं मिलने वाला था इसीलिए मेने भी मौके का पूरा फायदा उठाने की सोची और मस्ती में खुल कर चुदवाने लगी। हर धक्के का जवाब में भी बराबर ज़ोर लगा कर दे रही थी। पूरी मस्ती में ठुकवा रही थी।
 

Sur281

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"ओह्ह्ह गॉडडडडड........ऊऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्............पेलो......कस कस कर अपना लण्ड पेलो। ऊऊफ़्फ़फ़्फ़ ऐसे ही चुदवाने के लिए में तड़फती थी। और ज़ोर से......और ज़ोर से......हाययययययय......ऊउन्ननगहह्ह्ह् मेरी चूत.....मेरी चूत......चोदो मुझे...." मेरी बातें उसके जोश को दुगना चुगना कर रही थी। फिर यकायक वो रुक गया और मुझसे अलग हो गया। शायद वो आसान बदलना चाहता था। उसने मुझे घुमाया और मेरे सर को नीचे की और दबाने लगा। मुझे समघने में देर न लगी और में तरुन्त बेड के किनारे को पकड़ झुक कर घोड़ी बन गयी। उसने पीछे से मेरी कमर को पकड़ा और अपना लण्ड पूरे ज़ोर से मेरी चूत में घुसेड़ दीया

"आआईईईईईई........ऊऊन्नन्नह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्............हाय बेदर्द.......ऊऊन्नन्नह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हूऊफ़्फ़्फ़्.......चोद मुझे.......ऐसे ही कस कस कर पेल अपना लौड़ा मेरी चूत में......." मैं घोड़ी बनी चीखती अपनी चूत उसके लण्ड पर धकेल रही थी। वो भी पूरा ज़ोर लगा रहा था। एक एक धक्का खींच खींच कर लगा रहा था। पूरा लण्ड चूत को चीरता जड़ तक अंदर बाहर अंदर बाहर हो रहा था। इस तेरह पीछे खड़े होकर मेरी कमर को पकड़ कर उसे धक्के लगाने में आसानी हो रही थी और वो मज़े में अपना पूरा ज़ोर लगाता मुझे पेले।जा रहा था। और मैं सिसकती कराहती बेशर्मी से उसे उकसा रही थी। मेरे अति अश्लील शब्द् सुन कर जोश में वो मेरी चूत की ऐसी तैसी कर रहा था। उस कमीने की उस ज़ालिम चुदाई में इतना आनंद था के मैं बहुत देर तक रुक न सकी और फिर से मेरी चूत झड़ने लगी।

बेड की चादर को मुट्ठियों में भींच मैं चीख रही थी और वो दे दनादन मेरी चूत में लण्ड पेले जा रहा था। कुछ देर बाद वो भी ऊँचे ऊँचे सिसकने लगा। धक्को की रफ़्तार बहुत बढ़ गयी थी। अब किसी भी पल उसका छूटने वाला था। मैं अपनी चूत में उसके रस की बौछार का इंतज़ार कर रही थी के अचानक कानो को भेद देने वाला शोर सुनाई दिया। हम दोनों रुक गए। वो फायर अलार्म था। मैं घबरा कर उठी और दौड़ कर दरवाजे के पास गयी और लाइट का स्विच ढूंढने लगी।

"नहीं रुको, लाइट मत जलाओ।" वो घबराई मगर बेहद जानी पहचानी आवाज़ मेरे कानो में गूंज उठी। मगर देर हो चुकी थी। उसके बोलने से पहले ही में स्विच ऑन कर चुकी थी। कमरा रौशनी से जगमग उठा। और फिर मेने उस अजनबी को देखा।

उस अजनबी को देखते ही मेरे पांव तले ज़मीन खिसक गयी। वो कोई और नहीं था,राज था जो कुछ क्षण पहले मुझे घोड़ी वनाकर चोद रहा था। मेरा अपना बेटा मेरे सामने पूरा नंगा खड़ा था। मेरी सारी सोच समझ जवाब दे गयी। मैं क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था।
था। मेरा बेटा मेरे सामने नंगा खड़ा था और उसका मोटा लम्बा लण्ड मेरी आँखों के सामबे ऊपर नीचे हो रहा था और वो मेरे पूरे जिस्म को फटी फटी आँखों से देख रहा था।

"राज....यह तुमने क्या......" मेरी बात पूरी न हो सकी। उसके लण्ड से तेज़ ज़ोरदार वीर्य की पिचकारी सीधी मेरी नाभि पर आकर गिरी और उसका रस बहकर नीचे मेरी चूत की और जाने लगा। मैं स्तब्ध सी देख रही थी के दूसरी फुहार निकल कर एकदम सीधी मेरी चूत से टकराई।

"ओह्ह्ह्ह्ह्......" राज के मुंह से सिसकी निकल गयी। राज की नज़र मेरी चूत पर जमी हुयी थी और उसके लण्ड से वीर्य की तेज़ फुहारे मेरी चूत को नहला रही थी। अचानक मुझे होश आया। मैं घूमी और फटाफट बाथरूम की और भागी। मेने भढाक से दरवाजा बंद कर दिया।

"अपने कपडे पहनो और जाओ देखो क्या हुआ है। मैं आती हूँ अभी। जल्दी करो।" मेने एक सेकंड बाद हल्का सा दरवाजा खोल उसे कहा और फिर से दरवाजा बंद कर दिया।

मेने शावर खोला और अपने चेहरे को हाथों से ढक कर अपने अंतर में चल रहे मनमंथन को शांत करने का प्रयास करने लगी। कुछ ही क्षणों में इतना कुछ घट चूका था के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। वो 'अजनबी' मेरा पति नहीं था इस बात का आभास तो मुझे उसी क्षण हो गया जब उसका लण्ड मेरी चूत के अंदर घुसा था मगर वो मेरा अपना बेटा निकलेगा इसकी तो मेने कल्पना तक नही की थी। 'मगर यह हुआ कैसे ? वो आखिर मेरे कमरे में कैसे आया? उसे मालूम नहीं था के वो उसकी माँ का कमरा है? उसे मालूम नहीं चला के वो अपनी ही माँ को चोद रहा है? आखिर यह हुआ कैसे? उसने मेरी आवाज़ को क्यों नहीं पहचाना?" हर पल दिमाग़ में नया सवाल कोंध रहा था और मेरे पास एक भी सवाल का जवाब नहीं था। में पानी से बदन को रगड़ रगड़ कर साफ़ करने लगी जैसे उस गुनाह का हर सबूत मिटा देना चाहती थी जो मैंने अपने बेटे के साथ मिलकर किया था और जिसके गवाह हम दोनों थे। मेरा हाथ चूत पर गया तो पूरा बदन सनसना उठा। उसके रस से पूरी जांघे भरी पड़ी थी।

मेने अपनी जांघे खोल पानी की धार को अपनी चूत पर केंद्रित किया। मेरा पूरा हाथ चिपचिपा हो गया था। बहुत ही गाढ़ा रस था एकदम मख्खन की तेरह। मेने अपनी दो उँगलियाँ चूत के अंदर घुसाई तो मेरा हाथ फिर से भर गया। 'उफ्फ्फ नजाने कम्बखत ने कब से जमा करके रखा था। पूरी चूत लबालब भरी पड़ी है।' कोई पांच मिनट की मेहनत के बाद में बेटे की चिकनाई को धो सकी। मेने घूम कर पीठ को भी साफ़ करना चाहा के तभी मेरी नज़र बाथरूम के शीशे पर पड़ी। शीशे पर ऊँची ऊँची लाल लपटे नाच रही थी। अचानक से मुझे होश आया। फायर अलार्म फालस नहीं था जैसे मुझे सुरु में लगा था। सच में आग लगी हुयी थी।
मैंने तुम्हारे डैड को नही बताया इसका मतलब यह नही के मैंने तुम्हे माफ़ कर दिया है। चाहे तुमने मेरा बेटा होते हुए मेरे साथ बहुत गंदी हरकत की है मगर मैं माँ होने का फ़र्ज़ नहीं भूल सकती।। लेकिन अब मुझसे ज्यादा उम्मीद मत करना। अब मैं तुम्हारी माँ सिर्फ तुम्हारे बाप के सामने हूँ। मुझे नहीं लगता मैं तुम्हे कभी मुआफ़ कर पायुंगी"

उस दिन के बाद मैंने अपने बेटे से दूरी बना ली थी। मैं एक माँ का फ़र्ज़ जरूर पूरा कर रही थी। उसका खाना बनाना, कपडे धोना इत्यादि काम मैं उसके जरूर कर रही थी मगर माँ के प्यार और स्नेह से उसे मेने पूरी तरह वंचित रखा था। मैंने हम दोनों के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी कर ली थी जिससे हम दोनों एक ही घर में रहते हुए भी अलग कर दिया था। अब हम दोनों में लगभग ना के बराबर ही बातचीत होती थी। जब कोई बेहद जरूरी बात होती तो मैं उसे बुलाती थी। जैसे दो दिन पहले मैंने उसे पॉकेट मनी के बारे में पूछा था और उसने इंकार में धीरे से सर हिला दिया था के उसके पास पैसे नहीं थे और इसके बाद मैंने उसे कुछ रूपये जेब खर्च के लिए दिए थे। क्योंके घर का खर्च और हिसाब किताब सब मेरे पास होता था और उसकी जरूरते भी में ही पूरी करती थी। लेकिन रात को एक अजनबी मेरे सपनो में आता और वो मुझे उत्तेजित कर देता लेकिन में उस सपने को नजरअंदाज कर देती, में जानती थी वो अजनबी कौन हे।

अब दूरी तो उसने भी मुझ से बना ली थी। मैंने तो जरूरत पड़ने पर दो तीन बार उसे बुला ही लिया था मगर उसने एक बार भी बात करने की कोशिश नहीं की थी। पैसे न होने पर भी उसने मुझसे मांगे नही थे। मगर एक दूसरे से बात न करने की हमारी वजह अलग अलग थी। मैं उसे उसकी करतूत के लिए सजा दे रही थी जबके वो अपना बचाव कर रहा था। वो इस बात की पूरी कोशिश करता था के हमारा आमना सामना कम से कम हो जा बिलकुल ना हो। सुबह कॉलेज को जाना और कॉलेज से सीधा घर आना। खाना खाने भी वो हमारे बुलाने के बाद ही आता था। अपने बाप से भी बेहद कम बोलता था। यहाँ तक के उसने कॉलेज के सिवा और कहीं जाना बिलकुल बंद कर दिया था। पहले वो रोजाना अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने जाता था, हफ्ते में एक दो बार सिनेमा देखने जा फिर यूँ ही कहीं घूमने चले जाना जैसे आजकल जवान छोकरे करते हैं। लेकिन नहीं, उसने कॉलेज के सिवा सब बंद कर दिया था। मुझे लगता था सायद उसे इस बात का डर था के कहीं मैं किसी बात पर उससे गुस्सा न हो जायुं और उसके बाप के सामने उसकी पोल ना खोल दू। मेरी नाराज़गी तो वो यकीनन किसी भी हालात में नहीं चाहता था। या फिर शायद वो बात के ठंड पड़ने के इंतज़ार कर रहा था और उसकी यह शराफत वकती तौर पर उसका ढोंग मात्र थी।

वजह कुछ भी हो मगर हम दोनों के एक दूसरे से इस तरह कट जाने से घर में एक दम नीरसता छा गयी थी। असहनीय शांति और भयानक चुप्पी से हमारा घर घर ना होकर समशान लगने लगा था। कभी कभी तो मुझे डर लगने लगता था। बेटा घर में होता भी तो अपने कमरे से बहार नही निकलता था और मैं उसके कमरे में जाती नहीं थी। मैं जाती थी उसका बिस्तर बनाने जा फिर गंदे कपडे उठाने, मगर तभी जब वो कॉलेज गया होता। वो बंद कमरे में क्या करता था मैं नहीं जान सकती थी। अपनी पढ़ाई कितनी करता था, सोता कितना था जा फिर इंटरनेट पर ब्लू फिल्म्स देखता था जा अश्लीक सहित पढ़ता था, मेरे पास जानने का कोई मार्ग नहीं था। उसके कमरे से हालांके मुझे ढूंढने पर भी कोई आपत्तिजनक चीज़ नहीं मिली थी और पासवर्ड प्रोटेक्टर होने के कारन उसका कंप्यूटर तो मैं चला नहीं सकती थी।
 

Sur281

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एक महीना बीत चूका था और अब मुझे चिंता होने लगी थी। उसकी इतनी बड़ी हरकत के बाद मेरा उससे इतनी कठोरता से पेश आना स्वाभाविक था मगर जिस तरह वो एकदम से एकाकी जीवन ब्यतीत करने लगा था वो सही नहीं था। मैंने तो सोचा था एक दो महीने उसे बात नहीं करुँगी, उसे थोड़ी बहुत सजा दूंगी मगर मुझसे ज्यादा तो वो खुद को सजा दे रहा था। मैंने उसे क्या डराना था उसने उल्टा मुझे डरा दिया था। हालांके मुझे पहले पहले उसकी यह चुप्पी ड्रामा लग रही थी, शायद वो दुखी होने का ढोंग करके मेरी सहानुभूति चाहता हो ऐसी सम्भावना बहुत थी। लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी जब उसके सवभाव में कोई बदलाव नहीं आया तो मैं उसके अंतर में झाँकने की कोशिश करने लगी। खाने के टेबल पर जब वो हमारे साथ बैठता तो मैंने उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश की। वो खाना भी खाता था तो चेहरा झुकाकर। नज़र तो वो मिलाता ही नहीं था। उसे देखकर कहना मुहाल था के वो एक्टिंग कर रहा है। इतनी सहनशीलता वो भी इतने लंबे समय तक धारण किये रहना बहुत ज्यादा मुश्किल है। मुझे अब लगभग यकीन हो चला था के वो ढोंग नहीं कर रहा था बल्कि वास्तव में वो बहुत डरा हुआ है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह था के क्या उसे अपने किये पर पछतावा है? अब उसने जो किया था उसके नतीजे से उसे डर लगना स्वाभिक ही था। ऊपर से मैंने उसे, उसके बाप का डर दिया था, घर से निकाले जाने का डर यकीनन बहुत बुरा होता है तो वो डरा हुआ था, खामोश था, इस मुश्किल घड़ी से किसी तरह बच निकलना चाहता था मगर लेकिन क्या वो अपने किये पर शर्मिंदा था? शर्मशार था मुझे नहीं लगता था वो पछता रहा है। अब मैं अजीब से संकट में फस गयी थी। अगर मैं उसका डर दूर नहीं करती तो मुझे चिंता थी कहीं वो किसी मनोरोग का शिकार न हो जाए और अगर मैं उसका डर दूर करने की पहल करती तो वो मुझे कमज़ोर मान सकता था और इतनी आसानी से बच निकलने पर बहुत संभव था वो दोबारा मुझे चोदने की कोशिश करता।


मैं कुछ फैसला करती उससे पहले मेरी मुसीबत का हल मेरे पति ने कर दिया। घर में हर वक़त छायी रहने वाली चुप्पी और हम दोनों माँ बेटे के बीच किसी बातचीत के न होने की और उनका धयान जाना स्वाभाविक ही था। वो गुरुवार का दिन था और हम जैसा लगभग पिछले एक महीने से चल रहा था, चुपचाप खाना खा रहे थे।

"कणिका, मैं बहुत दिनों से देख रहा हूँ तुम और राज आपस में बात नहीं करते। बिलकुल भी बात नहीं करते। क्यों? जबसे शादी से लौटे हैं घर में इतनी चुप्पी छायी हुयी है मानो यह घर नहीं कोई वीरान खंडहर है। आखिर बात क्या है?" अचानक से मेरे पति ने खाना कहते हुए मुझे पूछा तो मैं सकपका गयी। मैं अपनी सोच में गुम थी इसलिए अपने पती को क्या जवाब दूँ, मुझे कुछ सुझा नहीं।

"कुछ बात नहीं है, आपको यूँ ही लग रहा है।" मैंने बात टालते हुए कहा। मेरे दिल में एक बार भी यह ख्याल नहीं आया था के घर के माहोल की तरफ मेरे पति की नज़र भी जायेगी और वो इसकी वजह जानना चाहेगा।

"कुछ बात नहीं है। मुझे यूँ ही लग रहा है! तुम्हे क्या लगता है मुझे दिखाई नहीं देता जा मैं मुर्ख हूँ? तुम गुमसुम सी रहती हो और राज को तो मानो सांप सूंघ गया है। आखिर तुम दोनों में लड़ाई किस बात की है?" पतिदेव ने खीझकर पूछा। जरूर वह कई दिनों से देख रहे थे मगर चुप थे।

"उफ़्फ़्फ़्फ़ऊऊह्ह्ह्ह्ह्............. कोनसी लड़ाई....किस बात की लड़ाई........आपको ग़लतफहमी हुयी है। और आपने मुझे कब गुमसुम देख लिया।" मैं पतिदेव को झुठलाती बोली। लेकिन मेरी बात में दम नहीं था इसलिए इस बार वो अपने वेट से मुखातिब हुए।

"राज तुम्हारी माँ तो साफ़ झूठ बोल रही है, तुम ही बता दो आखिर बात क्या है? तुम दोनों आपस में बोल क्यों नहीं रहे हो?"

"पापा वो बात........" बेटे की घिग्गी बंध गयी। वो मेरी तरफ देखने लगा।

"आप भी ना.......खामखाह बात का बतंगड़ बना देते हैं। अगले महीने उसके एग्जाम सुरु होने वाले हैं, उसका पूरा ध्यान पढ़ाई पर है और वैसे भी आपको मालूम तो है उस रात होटल में आग लगने के बाद......." बोलते हुए मुझे झुरझुरी सी आ गयी। पतिदेव को ठंडा करने के लिए अब कुछ ढोंग तो करना ही था। मेरे पति पर तृन्त असर हुआ और उसने टेबल के ऊपर से मेरा हाथ पकड़ कर दबा दिया और मेरी और देखते हुए बड़े ही प्यार से मुस्करा दिए। मैंने मन ही मन चैन की साँस ली। 'बला टली'। कुछ देर के लिए कमरे में फिर से चुप्पी छा गयी। मैंने बेटे की और देखा तो उसका चेहरा लाल हो गया था।

"यकीन नहीं होता तुम्हे एग्जाम की इतनी फिकर है" कुछ देर बाद पतिदेव ने बेटे जो मज़ाक करते हुए कहा तो मैंने उन्हें घूर कर देखा
"खैर........भगवन की कृपा से हम सभ उस रात बच गए और अब उसे याद कर कर परेशां क्यों होना। भूल जाओ उस रात को........और वैसे भी मुझे इस तरह ख़ामोशी पसंद नहीं है, बेचैनी महसूस होती है। और बरखुरदार तुम.......तुम अपनी माँ का ध्यान रखा करो......अब मेरा तो पूरा दिन ऑफिस में निकल जाता है और अगर तुम भी अपने कमरे में बंद रहोगे तो तुम्हारी माँ का ख्याल कौन करेगा? इसलिए यह तुम्हारी जिम्मेदारी है के तुम अपनी माँ का ख्याल रखो। उसके काम में हाथ बंटाया करो.......उसे कहीं घुमा लाया करो.......कहीं शौपिंग वगेरह के लिए ले जाया करो........उसका भी मन बहल जायेगा" मेरे पति बेटे को लंबा चौढ़ा भाषण देते बोले।

"जी पापा" बेटा धीरे से बोला।

"हुंह....और यह भीगी बिल्ली की तरह रहना, बोलना बंद करो.....मरद बनो मरद........हम तुहारी उम्र में गर्दन अकड़ कर चलते थे और तुम.....जैसे जैसे तुम पर जवानी चढ़ रही है तुम ठन्डे पढ़ते जा रहे हो......." मेरे पति बेटे का कन्धा थपथपा कर बोले। उसके गाल कुछ और लाल हो गए थे।

"हाँ हाँ..बहुत अच्छी बात है......आपका समझाने का तरीका तो ........माशाअल्लाह........आप क्या चाहते हैं वो पढ़ाई छोड़ कर आवारागर्दी करने लग जाये........जी नहीं, वो जैसा है, बहुत अच्छा है।" मैं मुस्कराती पति को टोकती हुयी बोली।

"अरे बेगम साहिबा। यह उम्र पढ़ाई के साथ साथ मस्ती करने की भी होती है। तुम क्या चाहती हो वो बंद कमरे में सारा दिन किताबों के पन्ने ही पलटता रहे। ऐसा नहीं चलेगा......अरे जवानी में मरद बड़े बड़े किले फ़तेह कर लेता है......हमें देखो....हम क्या थे और आज क्या हैं......" मेरे पति खुद पर गर्व करते बोले। अब उन्हें क्या पता जिस बेटे को वो मर्दानगी का पाठ पढ़ा रहे है, उसी बेटे ने उसकी बीवी पर मर्दानगी की ऐसी छाप छोड़ी थी जितनी वो आज तक नहीं छोड़ पाये थे। अपने मोटे लंड के ऐसे ताबड़तोड़ धक्के लगाये थे के पूरी चूत सूज गयी थी।

"बस कीजिये.......बस कीजिये.....वर्ना मेरी हंसी निकल जायेगी...." मैं हँसते हुए पतिदेव को चिढ़ाते हुए बोली। तभी मेरा बेटा उठ खड़ा हुआ। सायद वो हमारी बातचीत के कारन असहज महसूस करने लगा था।

उस रात जैसे ही मैं काम खत्म कर अपने कमरे में गयी तो पतिदेव ने मुझ पर भूखे शेर की तरह झपट पड़े। मेरा नाईट सूट झटके से निकल कर कोने में फेंक दिया और फिर मुझे उठाकर बेड पर पटक दिया और फिर अपना पायजामा उतारकर छलांग लगा बेड पर मेरी टांगो के मध्य आ गए।

"क्या बात है आज तो बहुत उछल कूद लगा रहे हो?" मैं हंसती हुयी बोली।

"तुम्हे मेरी मर्दानगी की बातें सुनकर हंसी आती है.....हुंह.....अब तुम्हे दिखता हूँ जानेमन.....असली मरद क्या होता है"

"ओह तो जो आज तक दिखाया था वो क्या था........" मेरी बात पूरी न हो सकी। पतिदेव की लपलपाती जीभ मेरी चूत के अंदर घुस गयी। उनके हाथ मेरे मम्मो को बुरी तरह निचोड़ने लगे। उफ्फ्फ्फ्फ़ क्या आनंद था। कुछ भी कहूँ, मेरे पति चूत चाटने में उस्ताद थे। उनकी खुरदरी जिव्हा जैसे ही मेरे भग से टकराई मेरे मुख से तेज़ सिसकारी निकली। फिर क्या था घूम घूम कर उनकी जिव्हा की तीखी नोंक मेरी चूत के दाने को रगड़ने लगी। मेरे हाथ खुद बा खुद पतिदेव के सर पर पहुँच गए और मैं उनका सर अपनी चूत पर दबाने लगी। कुछ ही क्षणों में मैं बुरी तरह कामोत्तेजित हो चुकी थी। चूत से रस बहने लगा था जिसे मेरे पतिदेव बड़े प्यार से चाट, चूस रहे थे। उनके हाथ मेरे तीखे अकड़े निप्पलों का खूब ज़ोरदार मर्दन कर रहे थे। उन्होने जोश में मेरी फूली हुयी चूत को पूरा मुंह में भर लिया और उसे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगे।
मैं सिसयाती हुयी सर पटकने लगी। मेरा बदन ऐंठ रहा था। जल्द ही मैं सखलत होने वाली थी के तभी मेरे पतिदेव उठकर मेरी छाती पर स्वर हो गए। उन्होने मेरा सर पकड़ अपना लन्ड मेरे होंटो पर दबाया। मेरे होंठ खुलते ही उन्होने आधा लंड मेरे मुंह में घुसा दिया। अब मेरे पति जरूर चूत चाटने में उस्ताद थे मगर मेरे लन्ड चूसने के आगे उनकी कोई विसात नहीं थी। सुपाड़े को मुंह में दबा जब मैंने अपनी जिव्हा नरम कोमल तवचा पर रगड़ी तो पतिदेव आह आह करने लगे। मेरी जिव्हा की नोंक उनके मूत्र के छेद को कुरेदने लगी। मैंने एक हाथ से उनके टट्टे सहलाने सुरु कर दिए और दूसरा हाथ पीछे ले जाकर उनकी गांड में ऊँगली डालने लगी। अब मेरा मुंह तेज़ी से उनके लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसका सुपाड़ा फूलता जा रहा था। पतिदेव ने झटके से मेरा सर नीचे पटका और उठ कर वापस मेरी टांगो के मधय चले गए। उन्होने मेरी टांगे अपने कंधो पर रख ली और मेरे मम्मो को दबोच एक तेज़ ज़ोरदार झटका दिया।

"ऊँह्ह्ह्ह्ह्......." लण्ड का सुपाड़ा अंदर घुसते ही मैं सिसक उठी। पतिदेव ने मम्मे भींच तीन चार करारे घस्से मरे और लन्ड पूरा अंदर घुसा दिया।

"ऊऊफ़्फ़फ़्फ़....क्या बात है आज तो बड़े पहलवान बन रहे हो"

"तुझे बहुत बातें आने लगी हैं......बहुत हंसी आती है मेरी मर्दानगी पर हुंह" पतिदेव हुंकारते हुए धक्के पर धक्का दिए जा रहे थे।

"ओह तो बदला ले रहे हैं......हाय्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्यह........" मेरे मुंह से तेज़ सिसकारी निकली। "हाय मर गयी कोई भला ऐसे भी बीवी को चोदता है.......अगर कहीं.....उंगग्ग्ग्ग्ग्ग्ग......मेरी चूत फट गयी तो......."

"तेरी गांड है ना.....वो साली किस दिन काम आएगी......" पतिदेव के धक्के तेज़ होते जा रहे थे। चूत रस से इतनी भरी हुयी थी के लंड के अंदर बाहर होने का ऊँचा शोर पैदा हो रहा था।

"ख़बरदार जो मेरी गाँड के बारे में सोचा तक भी......वो तो हरगिज़ नहीं मिलेगी आप को" मैं भी नीचे से गांड उछालने की कोशिश कर रही थे मगर पति ने इस कदर दबोचा हुआ था के मेरे लिए गांड उछलना बहुत मुश्किल था।

"ऐसे नखरे तो तू शुरू से करती आ रही है मगर गांड तो तेरी मैं फिर भी ले ही लेता हूँ"

"अब नहीं दूंगी.....अगर ऐसे मारोगे जैसे अब मेरी चूत मार रहे हो तो गांड के बारे में भूल जाओ" मेरे पतिदेव हमेशा मेरी गांड के पीछे पड़े रहते थे मगर मुझे चूत मरवाने में ज्यादा आनंद आता था। आनंद तो गांड मरवाने में भी जरूर था मगर चूत जितना नही और उसमे पीड़ा भी बहुत होती थी।

"राज का जरा ख्याल करा कर......मुझे उसकी बहुत टेंशन रहती है" मेरे पति अचानक मुझे चोदते हुए बोल उठे।

"ख्याल तो रखती हूँ अब और क्या करूँ" पतिदेव ने भी क्या मौका चुना था बेटे की बाबत बात करने का।
"अरे मेरा मतलब......यार वो इतना जवान है.....और सारा दिन कमरे में घुसा है........इस उम्र में तो लड़के लड़कियो के पीछे घूमते हैं" पतिदेव ने अचानक से चुदाई रोक दी।

"अच्छी बात है ना इसमें बुरा क्या है" मैं नीचे से अपनी कमर हिलाती बोली।

"यार तुम बात को समझ करो.......उसक इस तरह एकांत को पसंद करना ठीक नहीं ......" पतिदेव अचानक मेरी आँखों में देखते बोले। वो खासा सीरियस थे।

"क्या मतलब?"

"इस तरह दुनिया से कट जाना......इसके दो ही कारन हो सकते हैं.....या तो किसी लड़की ने उसका दिल तोड़ दिया है जा फिर जा फिर...."

"या फिर क्या?" मैं उत्सुकतावश पूछ बैठी।

"या फिर कहीं वो गे तो नही है" पतिदेव के मुंह से वो बात निकलते ही मैं हंसने लगी।

"आप भी ना......गे और वो......माय गॉड......." हंसी से मेरा बुरा हाल हो गया था।

"इसमें हंसने की कोनसी बात है?" मेरे पती ने मेरे कूल्हों पर ज़ोरदार चपत लगते हुए कहा।

"और क्या.....गे...... हमारा बेटा गे है......." मैं और भी ज़ोर से हंसने लगी। पतिदेव भी मुस्करा उठे।

"तो तुम्हे क्या लगता है?"

"मुझे क्या लगता है.....मैं बताती हूँ....मगर आप जरा अपने लन्ड को तो हरकत दीजिये......आप तो अपनी मर्दानगी दिखाने वाले थे" मेरे ताने पर पतिदेव ने फिर से घस्से लगाने शुरू कर दिए।

"हुंह यह हुयी ना बात......आपका लंड जब मेरी चूत को यूँ रगड़ता है तो मेरा दिमाग बहुत तेज़ चलता है........"

"दिमाग तो मालूम नहीं मगर जब भी तेरी भीगी चूत को चोदता हूँ तो ऐसा आनंद आता है के लगता है जन्नत बस तेरी टांगो के बीच ही है" मेरे पतिदेव अपनी पसंदीदा लाइन बोलते हुए अपना चेहरा झुकाकर मेरे होंठो को चूमते है।

"हुम्म....बहुत चालू हैं आप भी"
"हुंह यह हुयी ना बात......आपका लंड जब मेरी चूत को यूँ रगड़ता है तो मेरा दिमाग बहुत तेज़ चलता है........"

"दिमाग तो मालूम नहीं मगर जब भी तेरी भीगी चूत को चोदता हूँ तो ऐसा आनंद आता है के लगता है जन्नत बस तेरी टांगो के बीच ही है" मेरे पतिदेव अपनी पसंदीदा लाइन बोलते हुए अपना चेहरा झुकाकर मेरे होंठो को चूमते है।

"हुम्म....बहुत चालू हैं आप भी"

"बस डार्लिंग तुम्हारी सोहबत का असर है........अब ज़रा मेरे सवाल का भी जवाब दे दो"

"हुंह क्या पूछा था आपने........ हन्ह वो बेटे के बारे में......मुझे लगता है आपकी पहली बात सही है, जरूर किसी लड़की ने बेचारे का दिल तोड़ दिया है"

"मुझे भी यही लगता है.......मादरचोद मालूम नहीं साली कौन होगी" पतिदेव गुस्से में अपने घस्सों को तेज़ किये जा रहे थे। हम फिर से उत्तेजना के शिखर की और बढ़ने लगे थे।

"आप उस बेचारी को क्यों गालियाँ दे रहे हैं........आप तो जानते तक नहीं हो उसे?"

"गालियाँ नहीं दूँ तो और क्या करू......और तू क्यों उसकी इतनी तरफदारी कर रही है जैसे तू उसे जानती है?"

"मैं कहाँ तरफदारी कर रही हूँ...मैं तो कह रही हूँ के गलती हमारे बेटे की भी हो सकती है" अचानक वो रात का मंज़र मेरी आँखों के सामने घूम गया। चूत और भी रस बहाने लगी।

"गलती? क्या गलती करेगा वो......ज्यादा से ज्यादा उसकी चूत ही मार ली होगी ना............हरामिन किसी और से भी तो मरवाएगी ही.....अगर मेरे बेटे ने मार ली तो कोनसा पहाड़ टूट पड़ा" पतिदेव के मुंह से बेटे के लण्ड का ज़िक्र सुन मेरी चूत में सनसनी की लहर दौड़ गयी। मैंने पूरा ज़ोर लगाकर कमर उछालनी सुरु कर दी। मुझे कामुकता का दौरा सा पड़ गया।

"उफ्फ्फ्फ्फ़......ज़रा तेज़ तेज़ करिये न.......मेरा रस निकलने वाला है"

"मेरा भी" पतिदेव ने अपनी घस्सों की ररफ्तार फुल कर दी।

"वैसे आप सही कह रहे थे.......हमारे बेटे ने किसी को चोद भी दिया तो क्या हो गया.........अब भगवान ने उसे लण्ड तो चोदने के लिए ही दिया है" मैं फिर से उसी समय में पहुँच गयी थी। मैं फिर से घोड़ी बनी हुयी थी और मेरा बेटा मुझे पीछे से ताबड़तोड़ धक्के लगाता चोदे जा रहा था।
"यही तो कह रहा हूँ डार्लिंग चूत तो बनी ही चोदने के लिए है" मेरे सामने मेरे बेटे का चेहरा था जो मुझ पर झुका हुआ मुझे ठोक रहा था।

"हुम्....... चूत तो बनी ही है चोदने के लिए.......लण्ड लेने के लिए........" मैं उन आँखों में देखतो बोली। "चोदो मुझे......मेरी चूत मारो......ऊऊम्मम्मह्ह्ह्ह्........चोदो......मेरी चूत मारो.......मेरी चूत तो बनी ही चोदने के लिए है" मैंने बेटे का चेहरा अपने हाथों में पकड़ उसे खींच कर अपने होंठ उसके होंठो पर दबा दिए। मेरी चूत से रस बहने लगा। जिस्म अकड़ने लगा। पूरी देह की नस नस फड़कने लगी। मेरी आँखे बंद हो गयी मैं झड़ती हुयी बेटे के लण्ड का स्वाद लेने लगी। कुछ ज़ोरदार धक्को के बाद उसका रस मेरी जलती चूत को शीतल करने लगा। मैंने उसकी गर्दन पर अपनी बाहें जकड दी और उसे कस कर सीने से लगा लिया।

"उफ्फ्फ्फ्फ्फ .......कणिका..... तुम्हारी चूत......उफ्फ्फ्फ़........आज भी तुम्हे चोदने में वही मज़ा आता है जैसा तुम्हे सुहागरात को चोद कर आया था।

मेरा पती भी कितना भोला था। वो समझ रहा था उसने मुझे चोदा था। उसे क्या मालूम था मुझे उसने नही बल्कि उसके ही बेटे ने चोदा था.....फिरसे। उफ्फ्फ्फ्फ्फ अभी भी चूत रस बहा रही थी। उसके लण्ड का स्पर्श चूत की दरो दिवार में समां गया था।

अगली सुबह मैं कुछ जल्दी उठी थी। पतिदेव को 7 दिन के लिए कामकाज के सिलसिले में बाहर जाना था। नहाधोकर मैंने नाश्ता बनाया और फिर पति को नाश्ते के लिए बुलाया। इसके बाद मैँ ऊपर गयी और एक महीने बाद बेटे के दरवाजे पर दस्तक दी। वो सायद कमरे में नही था। मैं अंदर गयी और बाथरूम के बंद दरवाजे पर दस्तक दी। अंदर से पानी की गिरती आवाज़ फ़ौरन वंद हो गयी।

"बेटा नाश्ता तयार है, जल्दी से नीचे आ जाओ" मैं जितना हो सकता था प्यार भरे स्वर में बोली और फिर वापस नीचे आ गयी। सीढियाँ उतरते मेरे होंठो पर जबरदसत मुस्कान थी,रात की चुदाई ने मेरी शंकाए दूर कर दी थी ,अब मुझे फिर से अपने बेटे का लंड चाहिए था अपनी चूत में।
शाम को राज जानबूझकर काफी देर बाद घर आया । उसने देखा मेँ डाइनिंग रूम या किचन में नहीं थी जैसा की मै अक्सर इस समय होती थी । शायद वो दिन भर सोच रहा था कि घर जाकर मेरा सामना कैसे करेगा लेकिन जब उसने पाया कि मै आज , अन्य दिनों की तरह , डिनर के लिए उसका इंतज़ार नहीं कर रही है तो उसने राहत की सांस ली ।उस ने किचन में झांककर देखा तो पाया कि में ने उसके लिए खाना पकाकर रख दिया था । उसने चुपचाप खाना गरम किया और खाने लगा ।

डिनर के बाद उसने थोड़ी देर वहीँ सोफे पर बैठकर TV देखा फिर वो बाथरूम की तरफ चल दिया । चुपचाप उसकी ये हरकते अँधेरे में से देख रही थी ,सुबह मेरे बुलाने पर भी वो नहीं आया तो मेरे दिल में उसके लिए हमदर्दी का ज्वार उमड़ पड़ा था मुझे बार बार मेरे पति की वो बात याद आ रही थी की उसने किसी लड़की की चूत भी मार ली होगी तो क्या हुआ वो क्या किसी से नहीं चुदवाती होगी। में सुबकने लगी , राज मेरे बेडरूम के दरवाज़े से गुजरते वक़्त उसे हलकी हलकी मेरे सुबकने की आवाज़ें सुनाई दीं ।

अपने कानों में मेरे सुबकने की आवाज़ पड़ने से उसका दिल बैठ गया । जो कुछ भी हुआ उसके लिए उसका मन अपने को ही दोषी ठहराने लगा । वो सोचने लगा अगर वो उस रात मॉम के बाद में चुदाई वाले प्रस्ताव को ठुकरा देता तो वो घटना होती ही नहीं । उसका दिल अपनी सुबकती हुई मॉम के पास दिलासा देने के लिए जाने को मचलने लगा ।दूसरी तरफ ये बात भी थी कि राज को भी उस रात जब तक उसे ये पता नहीं चला था की वो अपनी मॉम को चोद रहा हे वो अजनबी औरत अच्छी लगी थी । उस औरत ने बिना नखरे दिखाये राज के साथ खुलकर सेक्स किया था और ये बात राज को बहुत पसंद आयी थी । लेकिन जब रोशनी में असलियत से उसका सामना हुआ और उस औरत से मुलाकात हुई तो वो उसकी अपनी ही मॉम निकली जिससे सेक्स सम्बन्ध बनाने की वो कल्पना भी नहीं कर सकता था ।
 
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