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Romance मेरी प्यारी जिन्नी (Completed)

Manisha48

New Member
21
200
29
आखरी भाग



दूसरे दिन दरबार के समय बादशाह ने शहजादा अहमद को बुलाया और कहा, बेटे, तुमने सिद्ध कर दिया कि तुमसे बढ़ कर सपूत कोई हुआ है न होगा। अब तुम मेरी एक अंतिम इच्छा पूरी कर दो। शहजादे के पूछने पर उसने कहा, मैं अपने दरबार में एक ऐसा आदमी रखना चाहता हूँ जिसके अस्तित्व की लोग कल्पना भी न कर सकें। तुम मेरे लिए एक ऐसा आदमी लाओ जिसकी ऊँचाई एक गज हो लेकिन जिसकी दाढ़ी बीस गज की हो। साथ ही उसके कंधे पर एक छह मन का सोंटा हो जिसे वह मामूली लकड़ी की तरह घुमा सके। स्पष्ट है कि जादूगरनी ने ही उसे ऐसे आदमी की माँग करने की सलाह दी थी। अहमद ने कहा, यह आप क्या कर रहे है? गज भर के आदमी की बीस गज की दाढ़ी कैसे हो जाएगी और वह साढ़े छह मन का सोंटा कैसे घुमाएगा? बादशाह ने मुस्कुरा कर कहा, तुम अपनी पत्नी से जिक्र करो। शायद वह यह माँग भी पूरी कर दे। न कर सके तो यहाँ आने की जरूरत नहीं है।


अहमद उसी दिन परीबानू के पास लौट आया। उसने कहा, पिताजी बिल्कुल सठिया गए हैं। अबकी बार उन्होंने साढ़े छह टन का सोंटा घुमानेवाला बीस गज की दाढ़ीवाला गज भर के कद का आदमी माँगा है। ऐसा आदमी कहाँ होगा और किस काम का है? परीबानू ने कुटिलता से मुस्कुरा कर कहा, तुम बादशाह के पास चले जाना। अभी मैं तुम से इसके बारे में कोई बात न करूँगी। तुम्हें आराम की बहुत जरूरत है। तुम बेफिक्र हो कर सब कुछ मुझ पर छोड़ दो। तुम्हारे पिता की अंतिम इच्छा पूरी हो जाएगी और तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी।


दूसरे दिन नहा-धो कर नाश्ता आदि करने के बाद अहमद ने परी बानू को फिर पिता के विचित्र माँग की याद दिलाई। परिबानू ने कहा, अच्छी बात है। जैसा आदमी तुम्हारे पिता ने चाहा है वैसा आदमी अभी आया जाता है। लेकिन तुम उसे देख कर घबराना नहीं। मेरा बड़ा भाई शब्बर इसी तरह का है। वह जिन्नों के एक बड़े राज्य का बादशाह है किंतु वह न किसी सवारी पर चलता है न साढ़े छह मन के सोंटे के सिवा कोई हथियार अपने पास रखता है। यह कह कर उसने दासियों से अपना जादू का संदूकचा और एक जली हुई अँगीठी लाने को कहा। उन्होंने तुरंत ही सोने का संदूक या और जलती हुई सोने की अँगीठी हाजिर कर दी। परीबानू ने संदूकचे से धूप आदि सामग्री निकाली और मंत्र पढ़ कर अँगीठी में डाल दी।


अँगीठी से बहुत गहरा धुआँ उठा जिसमें सब कुछ छुप गया और अहमद की आँखें बंद हो गईं। एक क्षण बाद परीबानू की आवाज आई, आँखें खोलो। देखो, भैया शब्बर आ रहे हैं। अहमद ने देखा कि एक गज भर का आदमी बड़ी शान के साथ चला आ रहा है। उसकी बीस गज की दाढ़ी उसके शरीर में लपेटी हुई थी और उसके कंधे पर साढ़े छह मन का लोहे का सोंटा था। उसकी मूँछें उसकी कानों तक पहुँचती थीं और आँखें गहरे गढ़ों में धँसी हुई थीं। उसके सिर पर रत्न-जटित मुकुट रखा था। उसकी पीठ और सीने दोनों पर बड़े-बड़े कूबड़ थे। न डरने के अपने वादे के बावजूद अहमद के बदन से उसे देख कर पसीना चूने लगा। उसने आते ही कड़क कर कहा, बानू, तूने मुझे क्यों बुलाया है? और यह छोकरा कौन है जो तेरे पास बैठा है? परीबानू बोली, भैया, यह मेरे पति शहजादा अहमद हैं। इनके पिता हिंदुस्तान के बादशाह हैं। लगभग एक वर्ष पहले हम लोग विवाह सूत्र में बँधे थे। मैंने उस समय तुम्हें इसलिए नहीं बुलाया था कि तुम एक भारी युद्ध में व्यस्त थे। शब्बर ने अब प्रेमपूर्ण दृष्टि से अहमद को देखा और कहा, शहजादा अहमद, तुम्हें देख कर बड़ी खुशी हुई। अगर मैं तुम्हारे किसी काम आ सकूँ तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।


परीबानू ने कहा, इसके पिता ने तुमसे भेंट करने की इच्छा प्रकट की है। शब्बर ने अहमद से कहा, अभी चलो, इसमें क्या बात है? इस बार भी उत्तर अहमद की बजाय परीबानू ही ने दिया। वह बोली, अभी जाने की जरूरत नहीं हैं। तुम बड़ी दूर से आए हो। काफी थक गए होगे। एक रात आराम करो। शहजादे को कुछ आराम की अभी और जरूरत है। शाम को मैं पूरा हाल तुम्हें बताऊँगी कि बादशाह ने तुम्हें किस कारण से बुलाया है। अहमद ने यह सुन कर सिर नीचा कर लिया।


शाम को अकेले में परीबानू ने शब्बर को अहमद के विरुद्ध होनेवाले षड्यंत्र का पूरा हाल बताया। दूसरी सुबह को अहमद की सवारी फिर राजधानी की ओर चली। शब्बर आगे-आगे पैदल ही घोड़ों से तेज चल रहा था। नगर में पहुँचने पर नगर निवासी शब्बर के भयानक रूप को देख कर इधर-उधर भागने लगे। शब्बर किसी पर ध्यान दिए बगैर सीधे दरबार में घुसा और तख्त के पास जा कर कड़क कर बोला, हिंदोस्तान के बादशाह, तुमने मुझे बुलाया है। क्या काम है तुम्हें मुझसे? बादशाह ने उत्तर देने के बजाय भय से आँखों पर हाथ रख लिए और तख्त से उतर कर भागने की कोशिश करने लगा। शब्बर ने और जोर से गरज कर कहा, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारे बुलाने पर मैं इतनी दूर से चल कर आया हूँ और तुम बात किए बगैर ही भागे जा रहे हो।


यह कह कर उसने सोंटे के वार से बादशाह का सिर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।


इतने में अहमद भी दरबार में पहुँच गया। शब्बर ने कहा, मंत्री कहाँ है? मैं उसका भी यही हाल करूँगा। किंतु अहमद ने उससे मंत्री की जान यह कह कर बचा दी कि मंत्री ने भरसक मेरे प्रति मित्रता ही रखी। शब्बर ने दो-चार दरबारियों और सामंतों को छोड़ कर, जो मौका पा कर दरबार से भाग निकले थे, सभी दरबारियों और सरदारों को मार डाला क्योंकि सभी ने इस अवधि में अहमद के विरुद्ध कुछ न कुछ कहा था।


अब शब्बर ने राजमंत्री से कहा, महल के प्रधान कर्मचारी और जादूगरनी को घसीट कर लाओ, उन्होंने मेरे बहनोई के विरुद्ध षड़यंत्र किया था। अहमद के दूसरे शत्रुओं को भी यहाँ लाओ वरना तुम्हारी खैर नहीं। वे घसीट कर लाए गए और शब्बर ने सब को खत्म कर दिया। शब्बर इतना क्रुद्ध था कि सारे नगर को समाप्त करना चाहता था किंतु अहमद ने उसकी खुशामद करके इस हत्याकांड से रोका। शब्बर ने वहीं अहमद को सिंहासन पर बिठा कर उसका राजतिलक कर दिया। यह सब करने के बाद उसने अहमद के बादशाह होने की मुनादी कराई और परीबानू को राजमहल में ले आने के बाद विदा हो गया। जाते समय अहमद से कह गया कि जब भी जरूरत हो मुझे बुला लेना।


अहमद ने बादशाह बन कर भाइयों के साथ अच्छा सलूक किया। अली और नूरुन्निहार को बुला कर उन्हें भेंटें दीं और अली को एक सूबे का हाकिम बना कर भेज दिया। उसने हुसैन के पास भी एक सरदार भेज कर संदेशा दिया कि जिस प्रदेश का हाकिम बनना चाहो बना दूँ। किंतु हुसैन ने उसे आशीर्वाद दे कर कहलवाया कि अब संसार के मोह में न फँसूँगा।

__________________________________________
कहानी खत्म


शुक्रिया दोस्तो मेरी कहानी के साथ बने रहने के लिए हालाकि ये कहानी ज्यादा नहीं चल पाई क्योंकि इसके इतने रीडर्स नहीं थे और लोगो को incest कहानियां ही पसंद आती है। इसलिए मेरा मन इस कहानी से उतर गया। और इसको यही खत्म कर दिया ।

उम्मीद है आप लोगो को ये कहानी थोड़ी बहुत भी पसंद आई हो इसी के साथ आप सभी से विदा।
 
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ashish_1982_in

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आखरी भाग



दूसरे दिन दरबार के समय बादशाह ने शहजादा अहमद को बुलाया और कहा, बेटे, तुमने सिद्ध कर दिया कि तुमसे बढ़ कर सपूत कोई हुआ है न होगा। अब तुम मेरी एक अंतिम इच्छा पूरी कर दो। शहजादे के पूछने पर उसने कहा, मैं अपने दरबार में एक ऐसा आदमी रखना चाहता हूँ जिसके अस्तित्व की लोग कल्पना भी न कर सकें। तुम मेरे लिए एक ऐसा आदमी लाओ जिसकी ऊँचाई एक गज हो लेकिन जिसकी दाढ़ी बीस गज की हो। साथ ही उसके कंधे पर एक छह मन का सोंटा हो जिसे वह मामूली लकड़ी की तरह घुमा सके। स्पष्ट है कि जादूगरनी ने ही उसे ऐसे आदमी की माँग करने की सलाह दी थी। अहमद ने कहा, यह आप क्या कर रहे है? गज भर के आदमी की बीस गज की दाढ़ी कैसे हो जाएगी और वह साढ़े छह मन का सोंटा कैसे घुमाएगा? बादशाह ने मुस्कुरा कर कहा, तुम अपनी पत्नी से जिक्र करो। शायद वह यह माँग भी पूरी कर दे। न कर सके तो यहाँ आने की जरूरत नहीं है।


अहमद उसी दिन परीबानू के पास लौट आया। उसने कहा, पिताजी बिल्कुल सठिया गए हैं। अबकी बार उन्होंने साढ़े छह टन का सोंटा घुमानेवाला बीस गज की दाढ़ीवाला गज भर के कद का आदमी माँगा है। ऐसा आदमी कहाँ होगा और किस काम का है? परीबानू ने कुटिलता से मुस्कुरा कर कहा, तुम बादशाह के पास चले जाना। अभी मैं तुम से इसके बारे में कोई बात न करूँगी। तुम्हें आराम की बहुत जरूरत है। तुम बेफिक्र हो कर सब कुछ मुझ पर छोड़ दो। तुम्हारे पिता की अंतिम इच्छा पूरी हो जाएगी और तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी।


दूसरे दिन नहा-धो कर नाश्ता आदि करने के बाद अहमद ने परी बानू को फिर पिता के विचित्र माँग की याद दिलाई। परिबानू ने कहा, अच्छी बात है। जैसा आदमी तुम्हारे पिता ने चाहा है वैसा आदमी अभी आया जाता है। लेकिन तुम उसे देख कर घबराना नहीं। मेरा बड़ा भाई शब्बर इसी तरह का है। वह जिन्नों के एक बड़े राज्य का बादशाह है किंतु वह न किसी सवारी पर चलता है न साढ़े छह मन के सोंटे के सिवा कोई हथियार अपने पास रखता है। यह कह कर उसने दासियों से अपना जादू का संदूकचा और एक जली हुई अँगीठी लाने को कहा। उन्होंने तुरंत ही सोने का संदूक या और जलती हुई सोने की अँगीठी हाजिर कर दी। परीबानू ने संदूकचे से धूप आदि सामग्री निकाली और मंत्र पढ़ कर अँगीठी में डाल दी।


अँगीठी से बहुत गहरा धुआँ उठा जिसमें सब कुछ छुप गया और अहमद की आँखें बंद हो गईं। एक क्षण बाद परीबानू की आवाज आई, आँखें खोलो। देखो, भैया शब्बर आ रहे हैं। अहमद ने देखा कि एक गज भर का आदमी बड़ी शान के साथ चला आ रहा है। उसकी बीस गज की दाढ़ी उसके शरीर में लपेटी हुई थी और उसके कंधे पर साढ़े छह मन का लोहे का सोंटा था। उसकी मूँछें उसकी कानों तक पहुँचती थीं और आँखें गहरे गढ़ों में धँसी हुई थीं। उसके सिर पर रत्न-जटित मुकुट रखा था। उसकी पीठ और सीने दोनों पर बड़े-बड़े कूबड़ थे। न डरने के अपने वादे के बावजूद अहमद के बदन से उसे देख कर पसीना चूने लगा। उसने आते ही कड़क कर कहा, बानू, तूने मुझे क्यों बुलाया है? और यह छोकरा कौन है जो तेरे पास बैठा है? परीबानू बोली, भैया, यह मेरे पति शहजादा अहमद हैं। इनके पिता हिंदुस्तान के बादशाह हैं। लगभग एक वर्ष पहले हम लोग विवाह सूत्र में बँधे थे। मैंने उस समय तुम्हें इसलिए नहीं बुलाया था कि तुम एक भारी युद्ध में व्यस्त थे। शब्बर ने अब प्रेमपूर्ण दृष्टि से अहमद को देखा और कहा, शहजादा अहमद, तुम्हें देख कर बड़ी खुशी हुई। अगर मैं तुम्हारे किसी काम आ सकूँ तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।


परीबानू ने कहा, इसके पिता ने तुमसे भेंट करने की इच्छा प्रकट की है। शब्बर ने अहमद से कहा, अभी चलो, इसमें क्या बात है? इस बार भी उत्तर अहमद की बजाय परीबानू ही ने दिया। वह बोली, अभी जाने की जरूरत नहीं हैं। तुम बड़ी दूर से आए हो। काफी थक गए होगे। एक रात आराम करो। शहजादे को कुछ आराम की अभी और जरूरत है। शाम को मैं पूरा हाल तुम्हें बताऊँगी कि बादशाह ने तुम्हें किस कारण से बुलाया है। अहमद ने यह सुन कर सिर नीचा कर लिया।


शाम को अकेले में परीबानू ने शब्बर को अहमद के विरुद्ध होनेवाले षड्यंत्र का पूरा हाल बताया। दूसरी सुबह को अहमद की सवारी फिर राजधानी की ओर चली। शब्बर आगे-आगे पैदल ही घोड़ों से तेज चल रहा था। नगर में पहुँचने पर नगर निवासी शब्बर के भयानक रूप को देख कर इधर-उधर भागने लगे। शब्बर किसी पर ध्यान दिए बगैर सीधे दरबार में घुसा और तख्त के पास जा कर कड़क कर बोला, हिंदोस्तान के बादशाह, तुमने मुझे बुलाया है। क्या काम है तुम्हें मुझसे? बादशाह ने उत्तर देने के बजाय भय से आँखों पर हाथ रख लिए और तख्त से उतर कर भागने की कोशिश करने लगा। शब्बर ने और जोर से गरज कर कहा, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारे बुलाने पर मैं इतनी दूर से चल कर आया हूँ और तुम बात किए बगैर ही भागे जा रहे हो।


यह कह कर उसने सोंटे के वार से बादशाह का सिर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।


इतने में अहमद भी दरबार में पहुँच गया। शब्बर ने कहा, मंत्री कहाँ है? मैं उसका भी यही हाल करूँगा। किंतु अहमद ने उससे मंत्री की जान यह कह कर बचा दी कि मंत्री ने भरसक मेरे प्रति मित्रता ही रखी। शब्बर ने दो-चार दरबारियों और सामंतों को छोड़ कर, जो मौका पा कर दरबार से भाग निकले थे, सभी दरबारियों और सरदारों को मार डाला क्योंकि सभी ने इस अवधि में अहमद के विरुद्ध कुछ न कुछ कहा था।


अब शब्बर ने राजमंत्री से कहा, महल के प्रधान कर्मचारी और जादूगरनी को घसीट कर लाओ, उन्होंने मेरे बहनोई के विरुद्ध षड़यंत्र किया था। अहमद के दूसरे शत्रुओं को भी यहाँ लाओ वरना तुम्हारी खैर नहीं। वे घसीट कर लाए गए और शब्बर ने सब को खत्म कर दिया। शब्बर इतना क्रुद्ध था कि सारे नगर को समाप्त करना चाहता था किंतु अहमद ने उसकी खुशामद करके इस हत्याकांड से रोका। शब्बर ने वहीं अहमद को सिंहासन पर बिठा कर उसका राजतिलक कर दिया। यह सब करने के बाद उसने अहमद के बादशाह होने की मुनादी कराई और परीबानू को राजमहल में ले आने के बाद विदा हो गया। जाते समय अहमद से कह गया कि जब भी जरूरत हो मुझे बुला लेना।


अहमद ने बादशाह बन कर भाइयों के साथ अच्छा सलूक किया। अली और नूरुन्निहार को बुला कर उन्हें भेंटें दीं और अली को एक सूबे का हाकिम बना कर भेज दिया। उसने हुसैन के पास भी एक सरदार भेज कर संदेशा दिया कि जिस प्रदेश का हाकिम बनना चाहो बना दूँ। किंतु हुसैन ने उसे आशीर्वाद दे कर कहलवाया कि अब संसार के मोह में न फँसूँगा।

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कहानी खत्म


शुक्रिया दोस्तो मेरी कहानी के साथ बने रहने के लिए हालाकि ये कहानी ज्यादा नहीं चल पाई क्योंकि इसके इतने रीडर्स नहीं थे और लोगो को incest कहानियां ही पसंद आती है। इसलिए मेरा मन इस कहानी से उतर गया। और इसको यही खत्म कर दिया ।

उम्मीद है आप लोगो को ये कहानी थोड़ी बहुत भी पसंद आई हो इसी के साथ आप सभी से विदा।
very nice story ends... Bhai sabhi logo ko incest stories pasand nahi aati... Agar viswas naa ho to Aap... Attitude part 1 aur attitude part 2.... God's and demons.... Dviya shashtra.... Rakshak..... Jaise stories sabse jayada hit rahi hai
 
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Reactions: Azagar Dada

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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शुक्रिया दोस्तो मेरी कहानी के साथ बने रहने के लिए हालाकि ये कहानी ज्यादा नहीं चल पाई क्योंकि इसके इतने रीडर्स नहीं थे और लोगो को incest कहानियां ही पसंद आती है। इसलिए मेरा मन इस कहानी से उतर गया। और इसको यही खत्म कर दिया ।

बढ़िया कहानी! अंत थोड़ा जल्दी हो गया। लेकिन बहुत बेहतरीन लिखा आपने।
और आपकी बात सही है - यहाँ के पाठकों को शायद कोई मानसिक रोग लगा हुआ है।
कहानी का कोड incest हो, और टाइटल में माँ हो, तो सब दुम हिलाते चले आते हैं वो कचरा पढ़ने।
लेकिन उम्मीद है कि आप फिर से ऐसी ही कोई बढ़िया कहानी के साथ फिर आएँगी।
 

sexy ritu

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दूसरे दिन दरबार के समय बादशाह ने शहजादा अहमद को बुलाया और कहा, बेटे, तुमने सिद्ध कर दिया कि तुमसे बढ़ कर सपूत कोई हुआ है न होगा। अब तुम मेरी एक अंतिम इच्छा पूरी कर दो। शहजादे के पूछने पर उसने कहा, मैं अपने दरबार में एक ऐसा आदमी रखना चाहता हूँ जिसके अस्तित्व की लोग कल्पना भी न कर सकें। तुम मेरे लिए एक ऐसा आदमी लाओ जिसकी ऊँचाई एक गज हो लेकिन जिसकी दाढ़ी बीस गज की हो। साथ ही उसके कंधे पर एक छह मन का सोंटा हो जिसे वह मामूली लकड़ी की तरह घुमा सके। स्पष्ट है कि जादूगरनी ने ही उसे ऐसे आदमी की माँग करने की सलाह दी थी। अहमद ने कहा, यह आप क्या कर रहे है? गज भर के आदमी की बीस गज की दाढ़ी कैसे हो जाएगी और वह साढ़े छह मन का सोंटा कैसे घुमाएगा? बादशाह ने मुस्कुरा कर कहा, तुम अपनी पत्नी से जिक्र करो। शायद वह यह माँग भी पूरी कर दे। न कर सके तो यहाँ आने की जरूरत नहीं है।


अहमद उसी दिन परीबानू के पास लौट आया। उसने कहा, पिताजी बिल्कुल सठिया गए हैं। अबकी बार उन्होंने साढ़े छह टन का सोंटा घुमानेवाला बीस गज की दाढ़ीवाला गज भर के कद का आदमी माँगा है। ऐसा आदमी कहाँ होगा और किस काम का है? परीबानू ने कुटिलता से मुस्कुरा कर कहा, तुम बादशाह के पास चले जाना। अभी मैं तुम से इसके बारे में कोई बात न करूँगी। तुम्हें आराम की बहुत जरूरत है। तुम बेफिक्र हो कर सब कुछ मुझ पर छोड़ दो। तुम्हारे पिता की अंतिम इच्छा पूरी हो जाएगी और तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी।


दूसरे दिन नहा-धो कर नाश्ता आदि करने के बाद अहमद ने परी बानू को फिर पिता के विचित्र माँग की याद दिलाई। परिबानू ने कहा, अच्छी बात है। जैसा आदमी तुम्हारे पिता ने चाहा है वैसा आदमी अभी आया जाता है। लेकिन तुम उसे देख कर घबराना नहीं। मेरा बड़ा भाई शब्बर इसी तरह का है। वह जिन्नों के एक बड़े राज्य का बादशाह है किंतु वह न किसी सवारी पर चलता है न साढ़े छह मन के सोंटे के सिवा कोई हथियार अपने पास रखता है। यह कह कर उसने दासियों से अपना जादू का संदूकचा और एक जली हुई अँगीठी लाने को कहा। उन्होंने तुरंत ही सोने का संदूक या और जलती हुई सोने की अँगीठी हाजिर कर दी। परीबानू ने संदूकचे से धूप आदि सामग्री निकाली और मंत्र पढ़ कर अँगीठी में डाल दी।


अँगीठी से बहुत गहरा धुआँ उठा जिसमें सब कुछ छुप गया और अहमद की आँखें बंद हो गईं। एक क्षण बाद परीबानू की आवाज आई, आँखें खोलो। देखो, भैया शब्बर आ रहे हैं। अहमद ने देखा कि एक गज भर का आदमी बड़ी शान के साथ चला आ रहा है। उसकी बीस गज की दाढ़ी उसके शरीर में लपेटी हुई थी और उसके कंधे पर साढ़े छह मन का लोहे का सोंटा था। उसकी मूँछें उसकी कानों तक पहुँचती थीं और आँखें गहरे गढ़ों में धँसी हुई थीं। उसके सिर पर रत्न-जटित मुकुट रखा था। उसकी पीठ और सीने दोनों पर बड़े-बड़े कूबड़ थे। न डरने के अपने वादे के बावजूद अहमद के बदन से उसे देख कर पसीना चूने लगा। उसने आते ही कड़क कर कहा, बानू, तूने मुझे क्यों बुलाया है? और यह छोकरा कौन है जो तेरे पास बैठा है? परीबानू बोली, भैया, यह मेरे पति शहजादा अहमद हैं। इनके पिता हिंदुस्तान के बादशाह हैं। लगभग एक वर्ष पहले हम लोग विवाह सूत्र में बँधे थे। मैंने उस समय तुम्हें इसलिए नहीं बुलाया था कि तुम एक भारी युद्ध में व्यस्त थे। शब्बर ने अब प्रेमपूर्ण दृष्टि से अहमद को देखा और कहा, शहजादा अहमद, तुम्हें देख कर बड़ी खुशी हुई। अगर मैं तुम्हारे किसी काम आ सकूँ तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।


परीबानू ने कहा, इसके पिता ने तुमसे भेंट करने की इच्छा प्रकट की है। शब्बर ने अहमद से कहा, अभी चलो, इसमें क्या बात है? इस बार भी उत्तर अहमद की बजाय परीबानू ही ने दिया। वह बोली, अभी जाने की जरूरत नहीं हैं। तुम बड़ी दूर से आए हो। काफी थक गए होगे। एक रात आराम करो। शहजादे को कुछ आराम की अभी और जरूरत है। शाम को मैं पूरा हाल तुम्हें बताऊँगी कि बादशाह ने तुम्हें किस कारण से बुलाया है। अहमद ने यह सुन कर सिर नीचा कर लिया।


शाम को अकेले में परीबानू ने शब्बर को अहमद के विरुद्ध होनेवाले षड्यंत्र का पूरा हाल बताया। दूसरी सुबह को अहमद की सवारी फिर राजधानी की ओर चली। शब्बर आगे-आगे पैदल ही घोड़ों से तेज चल रहा था। नगर में पहुँचने पर नगर निवासी शब्बर के भयानक रूप को देख कर इधर-उधर भागने लगे। शब्बर किसी पर ध्यान दिए बगैर सीधे दरबार में घुसा और तख्त के पास जा कर कड़क कर बोला, हिंदोस्तान के बादशाह, तुमने मुझे बुलाया है। क्या काम है तुम्हें मुझसे? बादशाह ने उत्तर देने के बजाय भय से आँखों पर हाथ रख लिए और तख्त से उतर कर भागने की कोशिश करने लगा। शब्बर ने और जोर से गरज कर कहा, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारे बुलाने पर मैं इतनी दूर से चल कर आया हूँ और तुम बात किए बगैर ही भागे जा रहे हो।


यह कह कर उसने सोंटे के वार से बादशाह का सिर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।


इतने में अहमद भी दरबार में पहुँच गया। शब्बर ने कहा, मंत्री कहाँ है? मैं उसका भी यही हाल करूँगा। किंतु अहमद ने उससे मंत्री की जान यह कह कर बचा दी कि मंत्री ने भरसक मेरे प्रति मित्रता ही रखी। शब्बर ने दो-चार दरबारियों और सामंतों को छोड़ कर, जो मौका पा कर दरबार से भाग निकले थे, सभी दरबारियों और सरदारों को मार डाला क्योंकि सभी ने इस अवधि में अहमद के विरुद्ध कुछ न कुछ कहा था।


अब शब्बर ने राजमंत्री से कहा, महल के प्रधान कर्मचारी और जादूगरनी को घसीट कर लाओ, उन्होंने मेरे बहनोई के विरुद्ध षड़यंत्र किया था। अहमद के दूसरे शत्रुओं को भी यहाँ लाओ वरना तुम्हारी खैर नहीं। वे घसीट कर लाए गए और शब्बर ने सब को खत्म कर दिया। शब्बर इतना क्रुद्ध था कि सारे नगर को समाप्त करना चाहता था किंतु अहमद ने उसकी खुशामद करके इस हत्याकांड से रोका। शब्बर ने वहीं अहमद को सिंहासन पर बिठा कर उसका राजतिलक कर दिया। यह सब करने के बाद उसने अहमद के बादशाह होने की मुनादी कराई और परीबानू को राजमहल में ले आने के बाद विदा हो गया। जाते समय अहमद से कह गया कि जब भी जरूरत हो मुझे बुला लेना।


अहमद ने बादशाह बन कर भाइयों के साथ अच्छा सलूक किया। अली और नूरुन्निहार को बुला कर उन्हें भेंटें दीं और अली को एक सूबे का हाकिम बना कर भेज दिया। उसने हुसैन के पास भी एक सरदार भेज कर संदेशा दिया कि जिस प्रदेश का हाकिम बनना चाहो बना दूँ। किंतु हुसैन ने उसे आशीर्वाद दे कर कहलवाया कि अब संसार के मोह में न फँसूँगा।

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कहानी खत्म


शुक्रिया दोस्तो मेरी कहानी के साथ बने रहने के लिए हालाकि ये कहानी ज्यादा नहीं चल पाई क्योंकि इसके इतने रीडर्स नहीं थे और लोगो को incest कहानियां ही पसंद आती है। इसलिए मेरा मन इस कहानी से उतर गया। और इसको यही खत्म कर दिया ।

उम्मीद है आप लोगो को ये कहानी थोड़ी बहुत भी पसंद आई हो इसी के साथ आप सभी से विदा।
कहानी बहुत अच्छी थी और बहुत से लोग पढ़ते भी थे लेकिन अपडेट बहुत धीमे थे यही वजह थी कि ज्यादा लोग नही जुड़े वैसे आपकी ये बात भी सही है कि यहां अधिकतर लोग इन्सेस्ट ही पसंद करते हैं
 
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