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Romance मेरी प्यारी जिन्नी (Completed)

Manisha48

New Member
21
200
29
भाग ७

उसने देखा कि एक अत्यंत रूपवती स्त्री अनुचरियों सहित उसकी ओर आ रही है।जो एक दम किसी देश की शहजादी मालूम पड़ती थी । जिसे देखकर अहमद वहीं रुक गया उसके शरीर ने प्रतिक्रिया करना छोड़ दिया ये पहली बार था कि अहमद ने अपने जीवन में इतने सौंदर्य की प्रतिरूप देखी हो, जिसमें इतना ऐश्वर्या और चमक थी जिसे देखकर आंख भी विलीन हो जाए, जीवित इंसान भी मृत्यु प्राप्त हो जाए, यहां तक की सांस लेना गवारा न समझें । समय अहमद के लिए रुक गया ,सब कुछ टहर गया ,वो रूपवती को कोई इंसान देखले तो वहीं मर जाए ,दिखने में वो एक दम सुंदर पतली लज्जाती भूरी आंखो वाली परी लग रही थी ।अहमद को आधा पहर हो गया उस स्त्री को देखते हुए और वो स्त्री उसके बोलने के इंतजार में वहां खड़ी रही मगर वह आगे बढ़ कर उस सुंदरी को सलाम करता किंतु उसने इससे पहले ही अति मृदुल स्वर में कहा, शहजादे अहमद, इस दासी के घर में तुम्हारा स्वागत है। तुम्हें मार्ग में कोई कष्ट तो नहीं हुआ।
अहमद ने आगे बढ़ कर उसके आगे शीश झुकाया और कहा, हे भुवनमोहिनी, तुम्हारे स्वागत से मैं स्वयं को धन्य मानता हूँ किंतु मुझे आश्चर्य है कि तुम्हें मेरा नाम कैसे मालूम है। रूपसी हँस कर बोली, अभी तुम्हें कई सुखद आश्चर्य होंगे। अभी आ कर मेरे साथ बारहदरी में बैठो तो हम लोग आनंदपूर्वक बातें करेंगे। वहीं तुम्हें बताऊँगी कि तुम्हें कैसे जानती हूँ। यह कह कर वह अहमद को हाथ पकड़ कर बारहदरी में ले गई। शहजादे ने देखा कि बारहदरी गुंबददार है और गुंबद का अंदर का भाग सुनहरा है। जिस पर बैंगनी रंग से विचित्र चित्रकारी की गई है। अन्य सामग्री भी अति मूल्यवान थी। शहजादे ने उसकी प्रशंसा की तो रूपसी ने कहा, मेरे दूसरे महल इससे कहीं अधिक सुंदर हैं।



फिर वह शहजादे को अपने पास बिठा कर बोली, तुम मुझे नहीं जानते लेकिन मैं तुम्हें जानती हूँ। तुमने किताबों में यह तो पढ़ा ही होगा कि पृथ्वी पर मनुष्यों के अलावा जिन्न और परियाँ भी रहती हैं। मैं एक प्रमुख जिन्न की पुत्री हूँ। मेरा नाम परीबानू है। अब तुम अपना हाल भी मुझसे सुन लो। तुम तीन भाई हो। तुम्हारी चचेरी बहन नूरुन्निहार है। तुम तीनों उसे अपनी-अपनी पत्नी बनाना चाहते थे। उसके लिए तुम तीनों ने अपने पिता के आदेशानुसार दूर देशों की यात्रा की। तुम्हारे पिता ने अद्भुत वस्तुओं को लाने को कहा था। तुम समरकंद गए और वह रोग निवारक सेब लाए, जिसे मैंने ही वहाँ तुम्हारे लिए भेजा था। इसी प्रकार मेरा भेजा हुआ गलीचा विष्णुगढ़ से तुम्हारा बड़ा भाई हुसेन लाया और इस प्रकार की दूरबीन फारस से अली लाया। इसी से समझ लो कि मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानती हूँ। अब तुम्हीं बताओ मैं अच्छी हूँ या नूरुन्निहार?


परीबानू ने आगे कहा, जब तुम ने तीर फेंका तो मैंने समझ लिया कि यह तीर अली के तीर से भी आगे चला जाएगा। मैंने उसे हवा ही में पकड़ा और ला कर बाहर के टीले की चट्टान से चिपका दिया। मेरा उद्देश्य यह था कि तुम नूरुन्निहार से विवाह ना करो और तुम तीर को ढूँढ़ते हुए यहाँ आओ जिससे मैं तुमसे भेंट कर सकूँ। यह कह कर परीबानू ने प्यार की निगाहों से अहमद को देखा और शरमा कर आँखें झुका लीं। अहमद भी उसके रूप रस को पी कर उन्मत्त हो गया था। नूरुन्निहार दूसरे की हो चुकी थी और उसके प्रेम में फँसे रहना पागलपन होता। इधर परीबानू नूरुन्निहार से तो क्या किसी भी मानव संसार की स्त्री से कहीं अधिक सुंदर थी। उसने कहा, सुंदरी, मैंने तुम्हें आज ही देखा है किंतु तुम्हें देख कर मेरी यह दशा हो गई कि मैं यह चाहने लगा हूँ कि सब कुछ छोड़ कर जीवन भर तुम्हारे चरणों में पड़ा रहूँ। किंतु मेरे चाहने से क्या होता है। तुम जिन्न की पुत्री हो, परी हो। तुम्हारे आत्मीय यह कब चाहेंगे कि तुम किसी मनुष्य के साथ विवाह संबंध स्थापित करो।




परीबानू ने कहा, तुम गलत हो। मेरे माता-पिता ने ही तुम्हे मेरे लिए बचपन में चुना था जब शायद तुम एक माह के भी ना थे। तुम्हारी मां ने मेरे पिता को आजाद करा था जब उन्हें एक चिराग मिला था तब उन्होंने अपनी जिंदगी तुम्हारी मा के नाम कर दी, परन्तु मेरी मां यह चाहती थी के वह अपनी जिंदगी जिए इसलिए मेरे पिता ने निकाह किया और में पैदा हुई परन्तु तब तुम्हारी मां तुम्हे जन्म देते हुए मृत्यु को प्राप्त हो गई लेकिन उनकी आखिरी इच्छा यही थी के उनके सबसे छोटे पुत्र का सबसे ज्यादा ख्याल रखे क्यूंकि बाकी सब अब बड़े हो गए थे ओर उन्हें मा का प्यार मिल चुका था और वो तुम्हे अकेला नहीं देखना चाहती थी।





अहमद की आंखो में आंसू थे और अब उसे सारी बात समझ में आ चुकी थी।अहमद अपनी मा को याद करने लग गया, थोड़ी देर बाद अहमद ने कहा ए शहजादी , में तुम्हारे लायक नहीं हूं , तुम्हे कोई भी मुझसे अच्छा और ज्यादा सुंदर इंसान मिल जाएगा तुम्हे अपने पिता के कर्ज को चुकाने की कोई जरूरत नहीं में तुम्हे आजाद किया अब तुम अपनी जिंदगी जी सकती हो , अभी अहमद कुछ और कह पाता उससे पहले ही परीबानू ने अपना हाथ उसके मुंह पर रख दिया और अपनी नम आंखो से कहा , ए शहजादे में तो तभी तुम्हारी हो चुकी थी जब तुम्हारे बारे में अच्छाई जानी और तुम अब तक के सबसे अच्छे इंसान हो इसलिए मुझे तुमसे बहुत पहले से ही प्रेम है ,और आज के बाद ये मत कहना की में तुम्हे भूल जाऊ क्यूंकि तुम सिर्फ परीबानू के हो और किसी के नहीं हो सकते ,तुम पर सिर्फ परीबानू का हक है , ये परीबानू तुम्हारे बिना आने वाली जिंदगी का एक लम्हा भी नहीं सोच सकती । इतना प्रेम करती है तुम्हारी परीबानू तुमसे ।





अहमद अब गहरी सोच में पड़ गया जिसे देखकर परीबानू ने शांति को भंग करते हुए कहा ,
ए शहजादे मैने तुम में वो देखा है जो नूरुन्निहार या कोई और स्त्री ना देख सकी , तुम्हारी दरियादिली और विशालता का परिमाण रही चुकी हूं ,एक मौका दो इस परीबानू को ये तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती है । और यह तुमने क्या कहा कि तुम मेरे चरणों में पड़े रहो। अरे में तुम्हारे क़दमों में आने वाले हार कांटे के ऊपर चढ के तुम्हारे लिए फूल बनूंगी । मैंने तुम्हें अपना पति माना है। पति का मतलब होता है स्वामी। मैं और यह सारे महल तथा संपत्ति अब तुम्हारे ही अधिकार में रहेंगे क्योंकि मैं अभी-अभी तुम्हारे साथ विवाह करूँगी। तुम समझदार आदमी हो। मुझे तुम्हारी बुद्धिमत्ता से पूर्ण आशा है कि तुम मुझे अपनी पत्नी बनाने से इनकार नहीं करोगे। अपने बारे में तो मैं यह कह ही चुकी कि मुझे मेरे माँ-बाप ने विवाह के लिए पूरी स्वतंत्रता दे रखी है। इसके अलावा भी हमारी जाति विशेष के जिन्नों-परियों में यह रीति है कि विवाह के मामले में हर परी को स्वतंत्रता दी जाती है कि वह जिन्न, मनुष्य या किसी और जाति में भी जिससे चाहे विवाह संबंध बनाए क्योंकि हम लोगों की मान्यता है कि अपनी पसंद की शादी से स्त्री-पुरुष में सदा के लिए प्रीति बनी रहती है। इसलिए मेरी-तुम्हारी शादी सभी को मान्य होगी।
 
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ashish_1982_in

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उसने देखा कि एक अत्यंत रूपवती स्त्री अनुचरियों सहित उसकी ओर आ रही है।जो एक दम किसी देश की शहजादी मालूम पड़ती थी । जिसे देखकर अहमद वहीं रुक गया उसके शरीर ने प्रतिक्रिया करना छोड़ दिया ये पहली बार था कि अहमद ने अपने जीवन में इतने सौंदर्य की प्रतिरूप देखी हो, जिसमें इतना ऐश्वर्या और चमक थी जिसे देखकर आंख भी विलीन हो जाए, जीवित इंसान भी मृत्यु प्राप्त हो जाए, यहां तक की सांस लेना गवारा न समझें । समय अहमद के लिए रुक गया ,सब कुछ टहर गया ,वो रूपवती को कोई इंसान देखले तो वहीं मर जाए ,दिखने में वो एक दम सुंदर पतली लज्जाती भूरी आंखो वाली परी लग रही थी ।अहमद को आधा पहर हो गया उस स्त्री को देखते हुए और वो स्त्री उसके बोलने के इंतजार में वहां खड़ी रही मगर वह आगे बढ़ कर उस सुंदरी को सलाम करता किंतु उसने इससे पहले ही अति मृदुल स्वर में कहा, शहजादे अहमद, इस दासी के घर में तुम्हारा स्वागत है। तुम्हें मार्ग में कोई कष्ट तो नहीं हुआ।
अहमद ने आगे बढ़ कर उसके आगे शीश झुकाया और कहा, हे भुवनमोहिनी, तुम्हारे स्वागत से मैं स्वयं को धन्य मानता हूँ किंतु मुझे आश्चर्य है कि तुम्हें मेरा नाम कैसे मालूम है। रूपसी हँस कर बोली, अभी तुम्हें कई सुखद आश्चर्य होंगे। अभी आ कर मेरे साथ बारहदरी में बैठो तो हम लोग आनंदपूर्वक बातें करेंगे। वहीं तुम्हें बताऊँगी कि तुम्हें कैसे जानती हूँ। यह कह कर वह अहमद को हाथ पकड़ कर बारहदरी में ले गई। शहजादे ने देखा कि बारहदरी गुंबददार है और गुंबद का अंदर का भाग सुनहरा है। जिस पर बैंगनी रंग से विचित्र चित्रकारी की गई है। अन्य सामग्री भी अति मूल्यवान थी। शहजादे ने उसकी प्रशंसा की तो रूपसी ने कहा, मेरे दूसरे महल इससे कहीं अधिक सुंदर हैं।



फिर वह शहजादे को अपने पास बिठा कर बोली, तुम मुझे नहीं जानते लेकिन मैं तुम्हें जानती हूँ। तुमने किताबों में यह तो पढ़ा ही होगा कि पृथ्वी पर मनुष्यों के अलावा जिन्न और परियाँ भी रहती हैं। मैं एक प्रमुख जिन्न की पुत्री हूँ। मेरा नाम परीबानू है। अब तुम अपना हाल भी मुझसे सुन लो। तुम तीन भाई हो। तुम्हारी चचेरी बहन नूरुन्निहार है। तुम तीनों उसे अपनी-अपनी पत्नी बनाना चाहते थे। उसके लिए तुम तीनों ने अपने पिता के आदेशानुसार दूर देशों की यात्रा की। तुम्हारे पिता ने अद्भुत वस्तुओं को लाने को कहा था। तुम समरकंद गए और वह रोग निवारक सेब लाए, जिसे मैंने ही वहाँ तुम्हारे लिए भेजा था। इसी प्रकार मेरा भेजा हुआ गलीचा विष्णुगढ़ से तुम्हारा बड़ा भाई हुसेन लाया और इस प्रकार की दूरबीन फारस से अली लाया। इसी से समझ लो कि मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानती हूँ। अब तुम्हीं बताओ मैं अच्छी हूँ या नूरुन्निहार?


परीबानू ने आगे कहा, जब तुम ने तीर फेंका तो मैंने समझ लिया कि यह तीर अली के तीर से भी आगे चला जाएगा। मैंने उसे हवा ही में पकड़ा और ला कर बाहर के टीले की चट्टान से चिपका दिया। मेरा उद्देश्य यह था कि तुम नूरुन्निहार से विवाह ना करो और तुम तीर को ढूँढ़ते हुए यहाँ आओ जिससे मैं तुमसे भेंट कर सकूँ। यह कह कर परीबानू ने प्यार की निगाहों से अहमद को देखा और शरमा कर आँखें झुका लीं। अहमद भी उसके रूप रस को पी कर उन्मत्त हो गया था। नूरुन्निहार दूसरे की हो चुकी थी और उसके प्रेम में फँसे रहना पागलपन होता। इधर परीबानू नूरुन्निहार से तो क्या किसी भी मानव संसार की स्त्री से कहीं अधिक सुंदर थी। उसने कहा, सुंदरी, मैंने तुम्हें आज ही देखा है किंतु तुम्हें देख कर मेरी यह दशा हो गई कि मैं यह चाहने लगा हूँ कि सब कुछ छोड़ कर जीवन भर तुम्हारे चरणों में पड़ा रहूँ। किंतु मेरे चाहने से क्या होता है। तुम जिन्न की पुत्री हो, परी हो। तुम्हारे आत्मीय यह कब चाहेंगे कि तुम किसी मनुष्य के साथ विवाह संबंध स्थापित करो।




परीबानू ने कहा, तुम गलत हो। मेरे माता-पिता ने ही तुम्हे मेरे लिए बचपन में चुना था जब शायद तुम एक माह के भी ना थे। तुम्हारी मां ने मेरे पिता को आजाद करा था जब उन्हें एक चिराग मिला था तब उन्होंने अपनी जिंदगी तुम्हारी मा के नाम कर दी, परन्तु मेरी मां यह चाहती थी के वह अपनी जिंदगी जिए इसलिए मेरे पिता ने निकाह किया और में पैदा हुई परन्तु तब तुम्हारी मां तुम्हे जन्म देते हुए मृत्यु को प्राप्त हो गई लेकिन उनकी आखिरी इच्छा यही थी के उनके सबसे छोटे पुत्र का सबसे ज्यादा ख्याल रखे क्यूंकि बाकी सब अब बड़े हो गए थे ओर उन्हें मा का प्यार मिल चुका था और वो तुम्हे अकेला नहीं देखना चाहती थी।





अहमद की आंखो में आंसू थे और अब उसे सारी बात समझ में आ चुकी थी।अहमद अपनी मा को याद करने लग गया, थोड़ी देर बाद अहमद ने कहा ए शहजादी , में तुम्हारे लायक नहीं हूं , तुम्हे कोई भी मुझसे अच्छा और ज्यादा सुंदर इंसान मिल जाएगा तुम्हे अपने पिता के कर्ज को चुकाने की कोई जरूरत नहीं में तुम्हे आजाद किया अब तुम अपनी जिंदगी जी सकती हो , अभी अहमद कुछ और कह पाता उससे पहले ही परीबानू ने अपना हाथ उसके मुंह पर रख दिया और अपनी नम आंखो से कहा , ए शहजादे में तो तभी तुम्हारी हो चुकी थी जब तुम्हारे बारे में अच्छाई जानी और तुम अब तक के सबसे अच्छे इंसान हो इसलिए मुझे तुमसे बहुत पहले से ही प्रेम है ,और आज के बाद ये मत कहना की में तुम्हे भूल जाऊ क्यूंकि तुम सिर्फ परीबानू के हो और किसी के नहीं हो सकते ,तुम पर सिर्फ परीबानू का हक है , ये परीबानू तुम्हारे बिना आने वाली जिंदगी का एक लम्हा भी नहीं सोच सकती । इतना प्रेम करती है तुम्हारी परीबानू तुमसे ।





अहमद अब गहरी सोच में पड़ गया जिसे देखकर परीबानू ने शांति को भंग करते हुए कहा ,
ए शहजादे मैने तुम में वो देखा है जो नूरुन्निहार या कोई और स्त्री ना देख सकी , तुम्हारी दरियादिली और विशालता का परिमाण रही चुकी हूं ,एक मौका दो इस परीबानू को ये तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती है । और यह तुमने क्या कहा कि तुम मेरे चरणों में पड़े रहो। अरे में तुम्हारे क़दमों में आने वाले हार कांटे के ऊपर चढ के तुम्हारे लिए फूल बनूंगी । मैंने तुम्हें अपना पति माना है। पति का मतलब होता है स्वामी। मैं और यह सारे महल तथा संपत्ति अब तुम्हारे ही अधिकार में रहेंगे क्योंकि मैं अभी-अभी तुम्हारे साथ विवाह करूँगी। तुम समझदार आदमी हो। मुझे तुम्हारी बुद्धिमत्ता से पूर्ण आशा है कि तुम मुझे अपनी पत्नी बनाने से इनकार नहीं करोगे। अपने बारे में तो मैं यह कह ही चुकी कि मुझे मेरे माँ-बाप ने विवाह के लिए पूरी स्वतंत्रता दे रखी है। इसके अलावा भी हमारी जाति विशेष के जिन्नों-परियों में यह रीति है कि विवाह के मामले में हर परी को स्वतंत्रता दी जाती है कि वह जिन्न, मनुष्य या किसी और जाति में भी जिससे चाहे विवाह संबंध बनाए क्योंकि हम लोगों की मान्यता है कि अपनी पसंद की शादी से स्त्री-पुरुष में सदा के लिए प्रीति बनी रहती है। इसलिए मेरी-तुम्हारी शादी सभी को मान्य होगी।
fantastic update bhai maza aa gya ab dekhte hai ki aage kya hota hai
 
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