- 704
- 2,917
- 139
थैंक यूँ भाई.....Bhai likhna nhi hai toh me likh deta hu aage ka
लेकीन मै आ गया हूँ अनुश्री मेरी ही बांहों मे अच्छी लगती है
![Red heart :heart: ❤️](https://cdn.jsdelivr.net/joypixels/assets/7.0/png/unicode/64/2764.png)
![Rolling on the floor laughing :rofl: 🤣](https://cdn.jsdelivr.net/joypixels/assets/7.0/png/unicode/64/1f923.png)
![Smiling face with heart-eyes :heart_eyes: 😍](https://cdn.jsdelivr.net/joypixels/assets/7.0/png/unicode/64/1f60d.png)
थैंक यूँ भाई.....Bhai likhna nhi hai toh me likh deta hu aage ka
आ गया है अपडेट दोस्त.CONGRATULATIONS bro for 100 pages
But update to do
माफ़ी चाहूंगा दोस्त आपकी नाराजगी जायज है.Andypandy bhai aap es stoty ko band kar do kyoki apke bas ki baat nahi hai story likhna...etney vakt tak ek update nahi de paye to kya readers chutia hai ya aap apne aap ko mahan writer samajhte ho ki readers aapka intzaar karenge.....Sir aap band kar do.....taki readers ka vakt to barbad nahi ho...Readers bechare update plz kar rahe hai aur apka koi responce nahi.....kya chutiaapa hai....Bewkoof banane ki had hoti hati hai yaar.......
Plz complete your story and give updates if u forgot the password then u can add it with another idbahut khoob bhai...
Super updateअपडेट -41
आज दिन भर से अनुश्री अपने बदन मे जो ऐठन महसूस कर रही थी,वो ऐठन वो उबलता लावा उसकी चुत से बहता हुआ बालकनी के फर्श को भिगो रहा था,टांगे फैली हुई अब्दुल के आँखों के सामने थी.
जहाँ से अब्दुल कि मेहनत रिस रही थी.
दोनों आंखे खोल एक दूसरे को देखे जा रहे थे,अनुश्री मे सोचने समझने कि कोई इच्छा या यूँ कहे कि ताकत ही नहीं थी,बस धाड़ धाड़ कर दिल चल रहा था जो सबूत रहा कि वो अभी भी जिन्दा है.
सजीव है,कामसुःख के आनंद से परिपूर्ण अनुश्री राहत कि सांस भर रही थी.
सन्नाटा पहले कि तरह पसर गया था.
"मैडम....मैडम जी?" अब्दुल के हलक से एक धीमी आवाज़ निकली
सामने से कोई उत्तर नहीं
"मैडम आप ठीक तो है ना " अब्दुल ने एक हाथ से अनुश्री के तलवो को सहला दिया.
"अअअअअ.....इससससस.....अब्दुल.....हाँ....हाँ....ठीक हूँ " अनुश्री अब्दुल के स्पर्श से सिहर उठी.
उसने तत्काल ही उठने कि कोशिश कि जैसे कि उसका ईमान जाग गया हो,वो यहाँ नंगी क्या कर रही है.
जैसे ही अनुश्री ने उठने कि कोशिश कि "आआआहहहहह......अअअअअ....माँ....उफ्फ्फ्फ़...."एक दर्द कि तेज़ लहर गांड के रास्ते निकल पुरे शरीर मे दौड़ गई.
हवाएं धीरे धीरे थमने लगी थी जैसे कोई तूफान आ के गुजरा हो.
एक दर्द भरा आनंदमयी तूफान अभी अभी अनुश्री कि जिंदगी से भी गुजरा था,इसका सबूत नीचे फर्श पे गिरी अनुश्री थी,नीचे से पूर्णतया नग्न,टांगे फैली हुई,स्तन को जालीदार नाईटी ढकने मे असमर्थ थी.
दोनों उन्नत स्तन अनुश्री के जिन्दा होने का सबूत दे रहे थे,जो कि सांस के साथ ऊपर तन जाते और पल भर मे नीचे गिर जाते
पीछे अब्दुल हांफ रहा था जैसे कोई मिलो कि मेराथन दौड़ के आया हो,उसके चेहरे से लगता था जैसे वो ये मेराथन जीत गया है
अनुश्री के बदन ने एक हरकत ली "आअह्ह्ह....आउच " शायद उठने कि कोशिश मे थी
उसके होश वापस लौट रहे थे उसे अब अच्छे से पता था कि वो क्या कर बैठी है, इस बात कि पुष्टि के लिए उसने अपने गुदा छिद्र को सिकोड़ना चाहा."आअह्ह्हह्म......एक भयानक दर्द से कराह उठी,और पच.....पिच......करता हुआ अब्दुल का वीर्य बहार को गिर पड़ा ना जाने कितना वीर्य छोड़ा था अब्दुल ने.
फिर भी हिम्मत कर अनुश्री ने एक हाथ ऊपर उठा के बालकनी कि रेलिंग पकड़ ली और उठ खड़ी हुई,इस प्रकिर्या मे गुदा छिद्र खुद ही सिकुड़ता चला गया,अनुश्री के बस मे नहीं था ये सब उसका गुदा छिद्र खुद से बंद हो के फिर खुला,फिर वापस से सिकुड़ गया..
फलस्वरूप गांड से एक सफ़ेद चिपचिपे पानी कि लकीर जाँघ पे रेंगति चली गई,अनुश्री अब पूरी तरह अपने पैरो पे खड़ी थी,.
उसने अपने कदम रूम कि तरफ बढ़ा दिये,बस पल भर को ठहरी पीछे मूडी और मुस्करा दि अब्दुल वही नीचे पड़ा उस विलक्षण कामरुपी देवी को देख रहा था.
धममममम......से दरवाजा बंद होने कि आवाज़ से अब्दुल का ध्यान टूटा.
सब सन्नाटा था,कही कोई नहीं था बस कुछ वीर्य कि बुँदे फर्श पे फैली पड़ी थी,जिसे अब्दुल ने उठते वक़्त अपनी लुंगी से पोछ दिया.
अंदर रूम मे
अनुश्री किसी तूफान कि तरह अंदर दाखिल हुई लड़खड़ाती गिरती संभालती आहे भरती.
उसकी आंखे लाल थी चेहरा किसी भट्टी कि तरह दहक रहा था,जैसे ही दरवाजा खोला खर....खाररररर.....खररररर.....कि आवाज़ से कमरा गूंज रहा था.
अनुश्री ने यही उम्मीद कि थी मंगेश घोड़े बैच सो रहा था,उसे जरा भी इल्म नहीं था कि उसकी पत्नी आज क्या कांड कर आई थी.
अनुश्री के चेहरे पर सिकन तक नहीं थी,था तो एक सुकून असीमित आनंद लेकिन थोड़ा सा दर्द भी जो चलते वक़्त उभर आता उसकी चाल ही बदल गई थी.
बदन ढका हो या नहीं कोई फर्क नहीं दिख रहा था,स्तन साफ साफ उजागर हो रहे थे,बाल बिखरे हुए, बदन पसीने से नहाया हुआ.
कोई देख लेता तो शायद कुछ सोचता भी लेकिन इस अँधेरी तूफानी सुनसान रात मे कौन जगे.
कमरे मे घुसते ही अनुश्री धम्म से बिस्तर पे जा गिरी और ना जाने कब नींद के आगोश मे समाती चली गई.
अगली सुबह जल्द ही हो चली....
अनुश्री के लिए तो जल्दी ही था आज काफ़ी दिन बाद सूरज कि किरणे कमरे को भिगो रही थी.
मंगेश जाग चूका था, वो अब काफ़ी तारोंताज़ा और अच्छा महसूस कर रहा था
"उठो भी जान कितना सोती हो देखो आज कितना सुहाना मौसम हुआ है " मंगेश मे अनुश्री को हिलाते हुए कहा,गनीमत थी कि अनुश्री चादर से पूर्णतया ढकी हुई थी,चादर के अंदर क्या हालत थे उसे क्या पता.
"उम्मम्मम......छोडो ना मंगेश अभी तो सोइ हूँ " अनुश्री ने मंगेश का हाथ दूर छिटक दिया.
" अभी सोइ हो? कल रात से ही तो घोड़े बैच के सो रही हो,चलो मै फ्रेश होता हूँ उठो तुम भी " मंगेश बिस्तर से उठ बाथरूम कि ओर बढ़ गया
अनुश्री कि नींद भंग हो चुकी थी लेकीन आँखों मे अभी नींद बेशुमार थी " अभी तो सोइ थी ये मंगेश भी ना.....ना.....नहीं....जैसे अनुश्री को कुछ याद आया हो
जल्द से उसने अपनी चादर हटाई....उसके होश फकता थे नाईट गाउन कमर के ऊपर चढ़ा हुआ था,स्तन साफ उजागर थे, जांघो के बीच कुछ चिपचिपा सा अभी भी महसूस हो रहा था, ध्यान से देखने पे अनुश्री ने पाया कि उसकी कंघो के पिछले हिस्से पे कुछ कड़क सा जम गया है.
हाथ लगा के हल्का सा खुर्चा तो सफ़ेद सफ़ेद सी पपड़ी उसके नाखुनो मे आ जमा हुई.
अनुश्री का दिमाग़ इस दृश्य को देखते ही कल रात कि घटना पे लौट चला,कैसे वो बालकनी पे झुकी हुई थी पीछे से अब्दुल कि जीभ कि छुवन उसे तड़पा रही थी और अंत मे वो दर्दनाक आनंद.
"आआहहहहह......उफ्फ्फग....कल्पना मात्र से ही अनुश्री का दर्द उजागर हो गया उसकी कमर खुद ही बिस्तर से ऊपर उठ गौ जैसे कि अब्दुल का लंड अभी भी दस्तक दें रहा हो.
अनुश्री के माथे पे पसीना तैर गया "हे... भगवान ये क्या किया मैंने? "
अनुश्री झट से खड़ी हो गई अपने गाउन कि डोरी को जल्दी से बांधा,और इधर उधर देखने लगी "अरे कहाँ गई......यहीं होनी चाहिए " अनुश्री ने सर इधर उधर कर हर जगह देखा
"कहाँ गई मेरी पैंटी " तभी इस सवाल के जवाब ने उसका माथा चकरा गया उसे याद आया लास्ट टाइम जब वो पीछे मुड़ी थी पैंटी अब्दुल के हाथ मे ही थी
"हे...भगवान ये कैसे हो गया....? अब क्या होगा? कहीं मंगेश को मालूम पड़ा तो नहीं....नहीं...नहीं...ऐसा नहीं हो सकता " अनुश्री को ये दुख नहीं था कि वो अब्दुल को भोग के आई थी परन्तु ये दुख था कि कहीं मंगेश को मालूम ना पड़ जाये
यहीं तो होता है किसी घरेलु स्त्री के चरित्र के पतंन कि शुरुआत कि उसका डर किस चीज को ले के है.
लेकीन ये पैंटी वाला खेल उसके साथ पहले भी हो चूका था उस वक़्त मिश्रा था, मिश्रा ने पूरी वफादारी निभाई थी
अनुश्री ने सर को एक हल्का सा झटका दिया....नहीं ऐसा नहीं होगा
हालांकि उसे रत्ती भर भी दुख महसूस नहीं हो रहा था कि वो काल रात क्या कर गुजरी है.कितनी बदल गई थी अनुश्री
कहा वो ऐसी बातो पे असहज हो जाया करती थी परन्तु आज....आज उसे उलझन तो थी लेकीन दुख नहीं था.
उसका कारण मंगेश का रुखापन और अब्दुल मिश्रा के साथ लिया गया असीम सुख था.
"अरे उठी नहीं अभी.....ओह..उठ गई चलो फ्रेश हो लो नहा लो आज हम लॉन्ग ड्राइव पे जायेंगे " अनुश्री अचानक मांगेशबकी आवाज़ से चौंक गई
"अरे ऐसे क्या चौंक रही हो चलो जल्दी करो कहीं मौसम वापस से ख़राब ना हो जाये " मंगेश ने अनुश्री पे कोई खास गौर भी नहीं किया और शीशे के सामने जम गया बाल सवारने लगा
कैसा आदमी था मंगेश उसकी खूबसूरत बीवी लगभग अर्धनग्न उसके सामने खड़ी थी लेकीन उसने एक नजर भी उसे नहीं देखा,शायद वो अनुश्री को घूमना फिराना सिर्फ अपना फर्ज़ समझ रहा था.
और यहीं बात अनुश्री को भी झकझोड़ रही थी "क्या मंगेश तुमने एक आर देक्ग तक नहीं कि तुम्हारी बीवी किस हालत मे है" खेर अनुश्री मुँह झुकाये बाथरूम कि और बढ़ चाकी उसे एक खुशी तो थी कि मंगेश ने उसे पहली बार खूफ आगे से लॉन्ग ड्राइव पे चलने को कहा..
"लगता है मंगेश आज कुछ अलग मूड मे है " ये बात ध्यान आते ही उसका कलेजा पसीज गया कि कल रात उसने क्या किया.
बाथरूम मे उसके कपड़े उतर चुके थे, पानी का तेज़ फववारा उसके तन बदन को भिगो रहा था, शरीर कि मेल के साथ साथ मन कि मेल को भी धोते जा रहा था वो ठंडा पानी.
"नहीं.....नहीं....मुझे ये नहीं करना चाहिए था....कल रात का वाक्य याद आते ही उसका गुदा द्वारा खुल के वापस बंद हो गया,पच.....कि आवाज़ के साथ वहाँ से कुछ निकला, आश्चर्य से भारी अनुश्री ने जैसे ही नीचे हाथ डाल के देखना चाहा एक सफ़ेद सा गाड़ा पदार्थ उसके उंगलियों को भिगो गया.
"हे भगवान अब्दुल का वीर्य अभी तक निकल रहा है " अनुश्री का कलेजा कांप गया और एक हल्की सी मुस्कान चेहरे पे आ गई.
"क्या मर्द है,कितना वीर्य छोड़ा उसने, अनुश्री का हाथ ना चाहते हुए भी अपनी नाक तक जा पंहुचा....शनिफ्फफ्फ्फ़......उफ्फ्फ....आआहहहहह.......अनुश्री के मुँह से खुद ही आह निकाल गई.
क्या कैसेली गंध थी नमकीन खट्टी..
"उफ्फ्फ...ये क्या चीज है कैसी गंध है ये." अनुश्री का जिस्म मात्र उस गंध से जलने लगा था.
"नहीं....नहीं...मुझे ये सब नहीं करना मंगेश मेरी रह देख रहा होगा "
अनुरिंका चेतन जजसे जाग गया था.
तुरंत ही नहा धो के अनुश्री पल भर ने बाथरूम के बाहर थी,मात्र एक सफ़ेद गाउन मे उसका अंग अंग साफ झलक रहा था.
"अरे बड़ी जल्दी आ गई, अच्छा मै कार का इंतेज़ाम करता हूँ तुम रेडी रहो " मंगेश बिना अनुश्री के तरफ देखे बाहर को निकल गया.
अनुश्री मुँह बाये पीछे खड़ी ही रह गई "हे भगवान क्या आदमी मिला है मुझे ये देखता भी नहीं और पूरी दुनिया पीछे पड़ी है "
किस्मत को कोसती अनुश्री शीशे के सामने जम गई,आज़ कुछ अलग ही निखार था उसके चेहरे पे एक तेज़ था एक आत्मविश्वास सा आ गया था, वो अपनी जवानी का कुछ इस्तेमाल कर पाई थी.
"आज मंगेश का मूड अच्छा है,मुझे उसे थोड़ा रिझाना चाहिए,आखिर मर्द कब तक औरत से बचेगा " ये ख्याल आते हूँ अनुश्री मुस्कुरा दि
मुखर्जी बनर्जी के ज्ञान ने उसे कितना बदल दिया था.
उसका अहसास खुद अनुश्री को नहीं था.कल रात कि घटना के बावजूद उसके दिल मे मंगेश के लिए वही प्रेम था वही तड़प थी बस मंगेश ही ध्यान नहीं देता था.
कुछ ही समय मे अनुश्री शीशे के सामने से हटी तो एक परी लग रही थी,कामुक लाल ब्लाउज और साड़ी मे एक दम सुन्दर काया लेकीन आज अलग क्या था,
अलग उसका ब्लाउज था जो कि मात्र एक महीन सी डोरी के सहारे उसके जिस्म या उसके मदमस्त उभारो को बमुश्किल संभाल पा रहा था.
ब्लाउज से अनुश्री का गोरा कोमल बदन साफ उजागर हो रहा था.
"अनु डार्लिंग.....तुम......तू....तुम....तैयार हो गई " मंगेश जैसे ही दरवाजा खोल के अंदर घुसा कि उसकी बोलती वही बंद हो गई, उसके कंठ मे आवाज़ फस सी गई.
"क्या देख रहे हो मंगेश कभी अपनी बीवी को देखा नहीं क्या? " अनुश्री का दिल झूम उठा उसे जिस बात कि उम्मीद थी हुआ भी वही
मंगेश इसलिए हैरान था कि उसने आज तक अपनी बीवी को ऐसे देखा ही नहीं था,इतनी सुन्दर भी हो सकती है इसका अंदाजा भी नहीं था उसे.
"वो...वो...वो.....मै...तुम बहुत सुन्दर लग रही हो किसकी जान लेने का इरादा है " मंगेश ने चुटकी लेते हुए कहा
"जाओ मै तुमसे बात नहीं करती, मै किसकी जान लुंगी तुम तो मुझे देखते ही नहीं " अनुश्री ने भी आज मौका देख शिकायत कर ही दि.
"ऐसी सुंदर बीवी हो तो कौन नहीं देखेगा मेरी जान " मंगेश ने भी मस्का लगाना चाहा और आगे को बढ़ा इस चाहत मे कि अनुश्री को अपने आगोश मे भर ले.
अनुश्री भी आज कुछ अलग ही मूड मे थी तुरंत पीछे को हट गई "क्या करते हो मेरी साड़ी ख़राब हो जाएगी ये सब रात मे
अनुश्री मुस्कुरा के आगे दरवाजे कि तरफ चल दि.
मंगेश यूँ ही खड़ा रहा.
"क्यों अब चलना नहीं है सुबह से बड़े उतावले हो रहे थे.
अनुश्री का ये रूप रंग देख मंगेश भी सकते मे था,ऐसे मज़ाक ऐसी शरारत अनुश्री ने पहले नहीं कि थी.
खेर मंगेश क्या करता चल पड़ा.
दोनों ही जैसे नीचे पहुचे.....सामने ही मांगीलाल खड़ा था हाथ मे नाश्ते कि प्लेट लिए.
एकाएक अनुश्री और मांगीलाल आमने सामने आ गए.
दोनों के ही चेहरे पे हवाइया उड़ गई, "अअअअअ....आआआप......" अनुश्री का तो गला ही सुख गया
"ममममम....मैडम.....अअअअअ.....अआप यहाँ "मांगीलाल अपनी किस्मत पे हैरान था
कैसे किस्मत ने उसे वही पंहुचा दिया था जिसकी कामना उसने कि थी.
अनुश्री को लाल साड़ी अर्धनग्न कंधे,ब्लाउज से झाकते स्तन को देख मांगीलाल कि नजर वही जा टिकी.
मांगीलाल के सामने आते ही ना जाने क्यों उसे अपनी जांघो के बीच कुछ रेंगता सा महसूस हुआ,उसे वही अदरक कूटने का दस्ता याद आ गया जब आवेश मे मांगीलाल ने उसकी भीगी चुत मे एक ही झटके मे पेवास्त कर दिया था.
"आअह्ह्ह.....काका " ना जाने कैसे अनुश्री के मुँह से हल्की से आह निकल गई.
उसका जिस्म भारी हो गया,सांस अचानक से फूल गई.
"क्या हुआ अनु?ठीक तो हो ना " अचानक से मंगेश का हाथ उसके कंधे पे पड़ा
"आए.....हाँ....हनन....हाँ ठीक हूँ " मंगेश के स्पर्श ने उसे उस तूफान से बाहर खिंच लिया था जिसमे वो डूबने जा ही रही थी.
"बाउजी मै तो आपके कमरे कि ओर ही आ रहा था नाश्ता ले कर,परन्तु आप तो कहीं जा रहे है " मंगीलाल भी मंगेश को देख संभल चूका था.
"हाँ....काका आज लॉन्ग ड्राइव का इरादा है नाश्ता वापस ले जाइये रात को देखते है " बोल के मंगेश आगे को बढ़ गया पीछे अनुश्री भी चल पड़ी.
मांगीलाल सिर्फ पास से गुजरी अनुश्री के बदन कि महक को महसूस करता रहा, थिराकती मदमस्त लहराती गांड को निहारता रहा.
ना जाने ऐसा क्या हुआ,कि अनुश्री हल्की सी पलटी उसे सही आभास हुआ था मांगीलाल कि नजर उसकी गांड पे ही थी जो कि आज कुछ अजीब तरीके से लहरा रही थी, अनुश्री आज अपने पैर कुछ चौड़े कर के चल रही थी.
अनुश्री एक सुनेपन से देखा फिर पलटी और चल दि.
कोई भी स्त्री अपने बदन पे चुभती नजर को भाँप ही लेती है, ये ताकत प्रकृति ने हर स्त्री को दि है.
ना जाने क्या था उस नजर मे, मांगीलाल वही शून्य मे ताकता खड़ा रहा.
मंगेश ने अन्ना के सम्पर्क से एक रेंटल कार का बंदोबस्त कर लिया था..
दोनों ही कार मे सवार हो आगे को बढ़ चले,कार मे बैठते ही अनुश्री विचलित सी हो चली,कुछ अनहोनी कि आशंका से उसका मन का मन घबराने सा लगा.
अभी तक मौसम एक दम साफ था, धीरे धीरे कुछ काले बादल से उमड़ने लगे.
"ममम....मंगेश कुछ ठीक नहीं लग रहा है,वापस होटल चलते है देखो मौसम घिरने सा लगा है " अनुश्री ने दिल कि घबराहट को बयान किया.
" क्या अनु डार्लिंग तुम भी किसी बच्चे कि तरह डरती हो, कुछ भी नहीं है ऐसा और मौसम भी ख़राब हुआ तो हम तो कार मे ही है ना तुम सिर्फ आनंद लो " मंगेश ने ना पहले कभी सुनी था ना आज सुनी
अनुश्री को भी मंगेश कि बात से कुछ दिलाशा मिला "शायद मांगीलाल के अचानक सामने आ जाने से वो घबरा गई थी, उसे तो ऐसे ही लगा.
खेर सफर शुरू हो गया था.
सबसे पहले दोनों ने पूरी शहर मे ही नाश्ते का आनंद लिया, उसके बाद art गैलरी,कुछ मंदिर, कुछ शॉपिंग हुई,
इतने सब ने ही शाम के 4 बज गए.
अनुश्री काफ़ी ख़ुश थी आज उसके सालो बाद अपने मंगेश के साथ इतना अच्छा समय व्यतित किया था.
वैसे भी भला कौन लड़की होंगी जो शॉपिंग कर के ख़ुश ना हो....
"चलो जान....अब थोड़ा लॉन्ग ड्राइव हो जाये " मंगेश ने कार के शीशे खोल दिये
बाहर बादल छा गए थे,हल्की हवाएं चल रही थी परन्तु अब अनुश्री को कोई फ़िक्र नहीं थी उसकी आशंका उसके मन का सिर्फ वहम निकली.
कार कि सीट को पीछे कर अनुश्री ने आराम से अपनी पीठ उसपे टिका दि,और बाहर से आती हवा और बारीक़ छींटे उसके बदन को भिगोने लगे,
हवा से उड़ती साड़ी उसकी नाभि कि झलक दें रही थी, स्तन का साथ तो कबका छूट गया था एक छोटे से ब्लाउज मे कैद उसके स्तन उछल उछल के इस मौसम के नज़ारे का दीदार कर रहे थे.
मंगेश ख़ुश था, अचानक ही उसका हाथ अनुश्री के खुले सपात पेट पर जा लगा.
"ईईस्स्स्स........"प्रकृति कि सुंदरता मे खोल हुई अनुश्री के मुँह से हल्की सी आह निकल गई, जैसे किसी ने तपते तवे पे बर्फ कि सिल्ली रख दि हो.
"आआहहहह......उफ्फ्फ......मंगेश क्या करते हो " अनुश्री मंगेश कि इस हरकत पे मुस्कुरा उठी.
"वही जो एक पति को करना चाहिए " मंगेश भी मूड मे आ चूका था.
बाहर काले बादल अपना डेरा जमाये जा रहे थे,
शाम कि 6बज चुकी थी
मंगेश कि एक उंगली अनुश्री कि नाभि को टटोलने लगी
"आअह्ह्ह...आउच.....मंगेश " अनुश्री ने बड़ी आंखे कर मंगेश को देखा जैसे गुस्सा कर रही हो.
लेकीन यहीं तो वो अदा है जिसपे हर पुरुष मरता है. परन्तु मंगेश पे कोई फर्क नहीं पड़ा उसकी उंगली अनुश्री कि नाभि से खिलवाड़ करती ही रही
"गुदगुदी हो रही है plz....."
अनुश्री कि गर्दन पीछे को झुक गई,बस मुँह पे ही ना थी बदन तो हाँ कह रहा था
सड़क बिल्कुल सुनसान हो चली थी, कार कि हेडलाइट जल गई थी,कोई सामने से गुजरता भी तो उसे कुछ ना दिखता..अनुश्री ने अपने बदन को बिल्कुल ढीला छिड़ दिया,उसके बदन ने मंगेश को मनमानी करने कि इज़ाज़त दें दि.
ना जाने वो कब से इस सुख के लिए तरस रही थी,मंगेश का स्पर्श बिल्कुल कोमल सा था एक गुदगुदी सी पुरे जिस्म.मे दौड़ रही थी,नाभि से होती दोनों जांघो के बीच कुछ कुलबुलाने लगा था.....
कि तभी......टप...टप...टप....टप...
करती पानी कि तेज़ बुँदे गिरने लगी.
अभी बारिश का गिरना ही था कि......खरररर.....खररररर.......फसससस......फस्स्स्स......खो.....खोम.....बुरम्म्म्म.....खररर....कार झटके खाने लगी.
"क्या हो रहा है मंगेश.....? अनुश्री सीट पे सीधी बैठ गई
"पता नहीं जान.....मंगेश ने गियर चेंज कर रेस पे जोर बढ़ाया लेकीन नतीजा एक ही रहा...
कार खार्खरती झटकी खाती रुक ही गई.
मंगेश ने चाभी पे जोर से फिर इंजन स्टार्ट करना चाह....खर....खर.....बुरररर......ठप....
कार स्टार तो होती लेकीन जैसे ही गियर लगता बंद हो जाती.
अनुश्री का चेहरा उतर चूका था.
उसकी आशंका ने एक बार उसे फिर से घेर लिया.
बाहर बारिश ने प्रचाड रोऊ धारण कर लिया था, हवाएं तेज़ हो चली थी.
ऑफ़ ओह....ये गाड़ी भी अभी ही ख़राब होनी थी,मैंने पहले ही कहाँ था मौसम ठीक नहीं है,होटल मे ही रुकते है " अनुश्री और मंगेश सुनसान रोड पर अंधी तूफान से लड़ते हुए कार के साइड मे खड़े थे.
कार ठीक गोल्डन बीच के सामने खड़ी थी, बारिश के वजह से कुत्ता भी आस पास नहीं था.
"लो अब तुम्हे ही तो बोर लग रहा था होटल मे," मंगेश झुमझूला गया.
मंगेश और अनुश्री बरसाती रात मे एक दूसरे के ऊपर दोष मंड रहे थे,होटल अभी भी लगभग 20 km दूर था..
गोल्डन बीच के पास कार जाम थी,रह रह के बारिश के थपड़े दोनों को चोट पंहुचा दे रहे थे
"कोई दिख भी तो नहीं रहा " मंगेश ने गर्दन इधर उधर उचकाई
"मेरी तरफ ऐसे मत देखो मेरे से धक्का नहीं लगाया जायेगा " अनुश्री ने दूसरी तरफ पीठ फेर ली
"मुझे उम्मीद भी नहीं है हुँह " मंगेश आगे रोड पे बढ़ चला.
कि तभी कड़काती बिजली कि रौशनी मे एक आकृति उसी रोड पे चली आ रही थी "हिचम....हीच.....हिचम.....मेरा जूता है जापानी...हीच.....पतलून...इंग्लिस्तानी..हीच...." वो आकृति लड़खड़ा रही थी.
"ऐ....हेलो....ओह भाई....सुनो....हाँ....यहाँ...इधर " मंगेश ने हाथ हिला के इशारा किया
वो लड़खड़ता आदमी पास आने लगा, जैसे जैसे पास आया साफ दिखने लगा कि नशे मे है,हाथ मे बोत्तल है,शरीर से हट्टा कट्टा बलशाली....
"भाईसाहब.....धक्का लगा देंगे क्या " मंगेश ने उस व्यक्ति से बोला
लड़खड़ाटे व्यक्ति ने सर उठा के ऊपर देखा एक सुन्दर नौजवान था,उसके पीछे एक औरत खड़ी थी.
मंगेश कि आवाज़ सुन अनुश्री पालट गई लेकिन जैसे ही पलटी....उसके चेहरे पे हवाइया उड़ने लगी,गला एकदम सुख गया, पिंडलिया कांप....गई.
"फ़फ़फ़फ़.फ़फ़......फ़क.....फारुख." लास्ट का शब्द उसके मुँह से हवा के तौर पे निकला
फारुख कि नजर भी अनुश्री पे पड़ गई...उसका सारा नशा काफूर हो गया,कैसे उसकी किस्मत ने एक बार फिर करवट ली थी.
अनुश्री फारुख को सामने पा असहज हो गई, बारिश मे भीगता उसका बदन याकायाक कांप उठा.
अपने बदन को छुपाने कि एक नाकाम कोशिश उसने जरूर कि.
"धक्का लगा दोगे ना " मंगेश ने फिर पूछा
"बिल्कुल लगा देंगे,कस के लगाएंगे ऐसा लगाएंगे कि आप भी याद रखोगे बाबूजी,कि किसी ने धक्का लगाया था हीच....हिचम...."
फारूक अनुश्री कि तरफ देख मुस्कुरा दिया, और कार के पीछे चल दिया
अनुश्री बूत बनी वही खड़ी थी,चेहरा सफ़ेद पड़ गया,खून सुख गया था.
अनुश्री कि आशंका गलत नहीं थी "हे भगवान कार जल्दी स्टार्ट कर देना " प्रार्थना करती हुई अनुश्री कार मे जा बैठी
फारुख ने धक्का लगाया....कार चल पड़ी लेकीन कुछ दूर जाते ही....खर.....कहररर....ठप " कार वापस जाम
मंगेश ने इस बार गुस्से मे आ कि चाभी को जोर से मोड़ दिया.....खर....कहररररर....खर.....फुस....ससससस.....करती बैट्ररी भी बैठ गई.
"अरे साहेब ऐसे थोड़ी ना होता है " फारुख दौड़ता हुआ नजदीक आया
"अब क्या करे? भाईसाहब यहाँ से कुछ साधन मिलेगा शहर जाने का "
"नहीं बाबूजी....अब कुछ संभव नहीं है यहाँ ऐसी ही बरसात होती है,जब होती है तो रात रात भर होती है हिचहहह......." फारुख कि नजर अंदर बैठी अनुश्री पे ही टिकी हुई थी.
अनुश्री थी कि उसके कान खुले थे चाह कर भी वो फारुख कि तरफ नहीं देख पा रही थी.
"अच्छा बाउजी मै चलता हूँ...हच....हिचहहह...."फारुख लड़खड़ता आगे को बढ़ गया
अनुश्री को तो जैसे प्राण मिल गए हो,उसने चैन कि सांस ली.
"अरे भाईसाहब रुको तो......" मंगेश एक बार फिर चिल्ला उठा.
अनुश्री का तो तन बदन ही सुलघ गया,ये क्यों बुला रहा हबस मुसीबत को वापस.
अब क्या बोलती अनुश्री कि मत बुलाओ उसे,कैसे बोलती और क्यों बोलती.
मंगेश लगभग कार से उतर गया, फारुख भी आवाज़ सुन के पलट गया.
"क्या है साहेब.....हिचम...." फारुख नजदीक आ गया
"यहाँ रुकने का कोई साधन मिलेगा " मंगेश का सवाल जायज था आखिर अपनी जवान बीवी के साथ किसी अनजान सहारा मे तूफानी रात तो नहीं काट सकता था ना वो.
"देखो साहेब यहाँ आस पास कोई होटल तो है नहीं,है भी तो दूर है वहाँ भी कमरा मिलेगा इसके गारंटी नहीं है "
फारुख ने तो टुक बात बोल दि और चलने को हुआ ही कि
"तो तुम कहाँ जा रहे हो " मंगेश ने कोतुहाल से पूछा..
"अरे अपना तो बंगला है ना यहाँ हिचहहह......" फारुख मुस्कुरा दिया.
मंगेश हैरान हुआ लेकीन जल्दी ही समझ गया कि दारू का नशा है.
"तुम चाहो तो वहाँ रुक सकते हो लेकीन एक रात का 2000rs लूंगा किराया " फारुख अपने दारू के जुगाड़ मे था
मंगेश को तो मानो मुहमांगी चीज मिल गई,यहीं तो वो चाह रहा था लेकीन कैसे कहता ये समझ नहीं आ रहा था.
मंगेश दौड़ता हुआ कार के पास आया " जान रुकने कि एक जगह तो मिली है,इस शारबी का घर है जिसे ये बगला कहता है "
अनुश्री के तो होश ही फकता हो गए क्यूंकि जो वो देख समझ पा रही थी शायद वो मांगेश नहीं देख पा रहा था.
"नहीं....नहीं....ऐसे कैसे किसी अनजान के घर रुक जाये " अनुश्री बिदक गई
"तो क्या करे यहीं पड़े रहे रात भर ताकि कोई चोर उचक्का आ के लूट ले " मंगेश ने भी तेश खाया.
"वैसे भी इसमें बुराई क्या है सर छुपाने को जगह तो चाहिए ना, देखो तूफान बढ़ता जा रहा है यहाँ खतरा है, वैसे भी ये शराबी है कर क्या लेगा हमारा,नशे मे धुत्त है जा के सो जायेगा, और अहसासन कि बात नहीं है 2000rs दें रहा हूँ उसे एक रात के"
मंगेश ने अपनी दलील रख दि.
अनुश्री को भी बात वाजिब ही लगी "शारबी है क्या कर लेगा,वैसे भी मंगेश साथ ही है "
अनुश्री और मंगेश कार को lock कर फारुख के पीछे पीछे चल दिया.
बारिश इतनी तेज़ थी कि तीनो को भिगोये जा रही थी, जहाँ मंगेश और अनुश्री बचने का असफल प्रयास कर रहे थे,वही फारुख हिचह्ह्हह्म....हीच....हिचम.....बड़बड़ये जा रहा था "मालूम साहब मै किसी वक़्त इस इलाके का सबसे अमीर आदमी था हिचहहह.....गुडक.....गुलुप.....फारुख ने बोत्तल से दो घूंट खिंच ली.
पीछे चलते अनुश्री और मंगेश उसकी बातो पे मुस्कुरा देते, उनके मुताबिक फारुख नशे मे फेंक रहा था.
कुछ ही पलो मे सड़क से उतर एक कच्चे रास्ते से होते हुए,एक टुटा फूटा एक मजिला लेकीन पक्का मकान आ गया.
"देखो साहब ये है मेरा आलीशान बंगला "
अनुश्री मंगेश दोनों हॅस पड़े..
अनुश्री को अब मजा आ रहा था क्यूंकि उसे पक्का यकीन हो चला था कि ये नशे मे है.कुछ भी बोल रहा है जाते ही लुढ़क पड़ेगा.
"हिचहहह.....आओ मैडम अंदर आओ.." फारुख ने दरवाजा खोल दिया
अंदर घुप अंधेरा छाया था.
अंदर पहुंचते ही फारुख ने लाइट जला दि,दूधिया रौशनी से कमरा नहा गया.
अनुश्री और मंगेश कि आंखे अचारज से फटती चली गई, और फारुख कि निगाह अनुश्री के बारिश से भीगे बदन से जा चिपकी.
अनुश्री का एक एक अंग नुमाइश हो रहा था,बड़ी छातिया भीग के बाहर को उभर आई थी.
स्तन साफ तौर पे अपने वजूद का अहसास करा रहे थे..
फारुख का कलेजा मुँह को आ गया ऐसा नजारा देख के ऐसे शानदार स्तन तो कभी नसीब मे ही नहीं थे उसके.
फारुख अनुश्री के कामुक बदन मे खोया था और मंगेश अनुश्री कमरे कि भव्यता को देख हैरान थे.
ये घर मात्र एक बड़ा सा कमरा था,जिसमे एक टीवी,फ्रिज,कीमती सौदा,शानदार बिस्तर सब मौजूद था, साथ मे एक किचन अटैच थे..
चररर.....ठप.....कि आवाज़ से दोनों का ध्यान भंग हुआ
"
फारुख ने दरवाजा बंद कर दिया,बाहर से आती तूफान कि आवाज़ ना के बराबर हो चली" मैंने कहा ना मै कभी इस शहर का अमीर आदमी था "
आप लोग बैठिये मै आता हूँ,बोल के फारुख किचन कि तरफ चल दिया.
अनुश्री और मंगेश हैरान थे,क्या वाकई फारुख कोई अमीर आदमी था तो उसकी हालत ऐसे कैसे हो गई?
दारू मे लड़खड़ाते फारुख को ही देखते रह गए.
तो क्या कहानी है फारुख कि?
अनुश्री के जीवन मे क्या कुछ अलग होने जा रहा है?
बने रहिये कथा जारी है