अपडेट -52
शाम ढल चुकी थी, अंधेरा पसर रहा था.
अनुश्री का दिल दिमाग़ साय साय कर चल रहा था.
होटल मयूर मे सन्नाटा पासरा हुआ था, अनुश्री अपने कमरे मे चहलकादमी करती बड़बड़ा रही थी.
उसे यकीन नहीं हो रहा था जो कुछ भी अभी हुआ था. दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, आगे क्या होगा कुछ पता नहीं.
एक सुहाना सा सफर इस कद्र करवट लेगा उसने कभी सोचा ना था.
"सारी गलती मेरी ही है, मुझे क्या लेना देना था इन सब से? मै क्यों गई मांगीलाल के बुलावे पर " अनुश्री खुद को कोष रही थी.
"मांगीलाल काका ने जो ख़ुशी दि मुझे.....लेकीन...लेकीन वो इंस्पेक्टर तो बोल रहा था.
अनुश्री के सामने स्टेशन का नजारा घूम गया, ट्रैन उसके सामने से जा रही थी.
"हमने किया क्या है बताते क्यों नहीं " मंगेश ने गुस्से मे आ कर पूछा.
"खून हुआ है महाशय, क़त्ल हुआ है, मर्डर हुआ है इसका, इस्पेक्टर andy ने मांगीलाल कि तस्वीर वापस से सभी के सामने घुमा दि.
वहाँ मौजूद सभी के चेहरे फक्क....से सफ़ेद पड़ गये.
"ककककक....क्या...क्या...ये नहीं हो सकता कल रात तो....." अनुश्री ने एकदम से खुद को रोक लिया, ना जाने क्या उगल देना चाहती थी, सबसे ज्यादा उसी के चेहरे ले हवाईया उडी हुई थी.
ट्रैन कि आवाज़ मे किसी ने उसकी आवाज़ नहीं सुनी परन्तु इंस्पेक्टर andy घाघ इंसान था काम का पक्का घुसट पुलीसिया.
"आपने कुछ कहाँ मैडम? और आपके चेहरे पे इतना पसीना क्यों? कहीं आपने.....?
"क्या बकते हो तुम, हमारा क्या लेना देना उस बूढ़े से " जवाब मे मंगेश बिफर गया, बिफारता भी क्यों नहीं सीधा इल्जाम अनुश्री पे लग रहा रहा.
"वो तो अब मालूम पड़ ही जायेगा mr मंगेश, जानते हो मांगीलाल को किसने मारा?"
नजरें अनुश्री को ही घूर रही थी.
"हहहह.....हमें क्या पता " अनुश्री के दबे गले से आवाज़ निकली.
"इसने " andy ने दूसरी तस्वीर सभु के सामने लहरा दि जो कि फारुख कि थी.
"कककक....क्या....इसने क्यों? कब? कैसे?" अनुश्री एक ही सांस मे सरे सवाल दाग़ गई.
"आप कुछ ज्यादा ही चौंक जाती है मैडम जी " इंस्पेक्टर andy के चेहरे पे एक कामिनी घाघ स्माइल आ गई.
"ननणणन.....नहीं तो ऐसा कुछ नहीं है " अनुश्री का पूरा बदन पसीने से भीग गया था, उसे अब मामले कि जटिलता समझ आने लगी थी.
"आप दोनों मियाँ बीबी को उस फारुख के साथ तूफानी रात मे देखा गया था " इंस्पेक्टर ने सीधा सा सवाल किया.
"आप गलत समझ रहे है जनाब वो तो उस रात हम घूमने निकले थे गाड़ी ख़राब हो गई, तो हमें मज़बूरी मे रुकना पड़ा, बाकि और कोई रिश्ता नहीं हमारा उस से " मंगेश ने राहत कि सांस ली.
"आपने इतनी सी बात मे लिए हमारी ट्रैन छुड़वा दि " मंगेश अब बिल्कुल शांत था, कोई मामला ही नहीं है
जब कुछ किया नहीं तो डरना कैसा क्यों अनु?
मंगेश ने अनुश्री से समर्थन चाहा " वो....वो....हाँ...हाँ....सही है हम मज़बूरी मे रुके थे " अनुश्री कि जबान अभी भी लड़खड़ा रही थी, नजरें झुकी हुई थी.
बस यहीं चीज काफ़ी होती है किसी चोर को पकड़ने के लिए, फिर ये इंस्पेक्टर andy तो फिर भी घाघ था, कमीना था, पक्का पॉलिसीया था.
"अच्छा जी इतनी सी बात है, कोई नी फिर तो आप जा सकते है " इंस्पेक्टर अनुश्रिनके जिस्म को टटोल रहा था, उसके हर हाव भाव को ताड़ रहा था
सभी ने राहत कि सांस ली "अब क्या फायदा ट्रैन तो चली गई "
मंगेश थोड़ा भुंभूनाया.
"अरे साहेब गुस्सा क्यों होते है, सबूत तो मेरे पस और भी है जो कि मै दो दिन मे जांच कर लूंगा " सबूत कि बात पर जोर दें कर इंस्पेक्टर andy ने अनुश्री के ब्लाउज से झाँकती कामुक दरार को घूर लिया जयश्री वही कोई सबूत छुपा हो.
"ऐसा कीजिये mr.मंगेश आप मेरे साथ थाने चलिए कुछ फोर्मल्टी है, आप सज्जन आदमी है लेकीन क्या करू क़ानून अंधा होता है,उसकी कुछ ड्यूटी होती है मुझे भुनानी पड़ेगी, एक दो जगह sign चाहिए, मुझे बस दो दिन लगेंगे फिर आप अपने देश मै अपने काम पर.
ना जानने क्यों वो इंस्पेक्टर एक दम से इतना सज्जन हो गया, अभी तक जहाँ उसके मुँह से शोले बरस रहे रहे, वही अब फूल बरसा रहा था इज़्ज़त से बात कर रहा था.
"ठीक है मै भी अपने अच्छे नागरिक होने का कर्तव्य पूरा करता हूँ " मंगेश इंस्पेक्टर andy के साथ थाने चला गया.
इधर अनुश्री, रेखा और राजेश टैक्सी पकड़ होटल कि ओर चल दिये.
रास्ते भर तीनो मे मांगीलाल के मर्डर के बारे मे हूँ बात होती रही जिसका जवाब अनुश्री सिर्फ हाँ हूँ मे देती रही, ना जाने क्या चल रहा था उसके दिमाःग मे, दिल बैठा जा रहा था, मन दुखी था, मांगीलाल से ना जाने क्या हमदर्दी का रिश्ता था उसका,
लेकीन इन सब से भी ज्यादा चौकाने वाली बात ये थी कि इसमें फारुख का नाम शामिल था, लेकीन मांगीलाल और फारुख का आपस मे क्या रिश्ता है?
वो कागज़ कहाँ गये जो उसने मांगीलाल को दिये थे कि फारुख को दें देना, कहीं वो अभी भी तो वही नहीं है?
वो इनसब से बचने के लिए जीतना तेज़ भागती थी,उतना ही खींची चली आती थी, जैसे कोई दलदल हो जीतना निकलती उतना फस जाती.
बार बार अनुश्री के जहन मे उन कागज़ का ख्याल आ जाता, कहीं वो उस कमीने इंस्पेक्टर के हाथ तो नहीं लग गया? नहीं....नहीं...लगता तो पक्का धौंस जमाता अपनी "
अनुश्री ने खुद कि बात को नकार दिया.
"क्या मुझे वहाँ जा कर देखना चाहिए " अनुश्री ने खुद से ही सवाल किया.
"नहीं.....नहीं....मै खुद को और मंगेश को इस मुसीबत मे नहीं डालना चाहती, मंगेश थोड़ी देर मे आ जायेगा, फिर देखते है "
"ललल....लेकीन वो इंस्पेक्टर बोल रहा था और भी सबूत है उसके पास, तो क्या वो कागज़ उसके हाथ लग गया है, मुझे देखना होगा "
ठाक...ठाक....ठाक......
अचानक दसरवाजे पर दस्तक ने अनुश्री का ध्यान भंग कर दिया.
"कक्क....कौन है?"
"भाभी मै....राजेश"
चरररर.....करता एक पल मे ही दरवाजा खुल गया
सामने राजेश ही था "भैया आये नहीं क्या 8बज गये है?"
"ननन....नहीं अभी तो नहीं आये "
"मै जा कर देखता हूँ, उनका फ़ोन भी नहीं लग रहा " राजेश वहाँ से निकल गया
दरवाजा वापस से बंद हो गया
"पक्का वो इंस्पेक्टर कुछ छुपा रहा है, मुझे देखना होगा वहाँ जा कर कि कागज़ कहाँ है?"
अनुश्री निश्चय कर चुकी थी.
इसी उधेड़बुन मे 1 घंटा और बीत गया था.
अनुश्री ने दरवाजा खोल बाहर झंका, और दिन के मुक़ाबले आज घोर सन्नाटा था, बिल्कुल मरघट जैसा, होता भी क्यों नहीं धीरे धीरे क़त्ल कि बात सभी को मालूम पड़ ही गई थी, गिनती के ही गेस्ट बचे थे होटल मे शायद.
अनुश्री ने आज फिर से एक कदम दहलीज के पार रख दिया, दिल कांप रहा था कहीं लेने के देने ना पड़ जाये.
आज से पहले अनुश्री जब भी चोरो कि तरह ये दहलीज लांघी थी तब उसके जिस्म मे हवस सवार थी, दिमाग़ मे काम का खुमार था, लेकीन आज परिस्थिति बिल्कुल अलग थी एकदम अलग.
आज वो खुद को और अपने पति को बचाने के लिए वो दहलीज लाँघ रही थी.
"नहीं....नहीं....मुझे यहीं रुकना चाहिए मंगेश का इंतज़ार करना चाहिए " अनुश्री ने कदम वापस खिंच लिए.
"लेकीन पता नहीं राजेश भी तो नहीं आया अभी तक, मुझे जाना ही चाहिए " ना जाने अनुश्री मे ये हिम्मत कहाँ से आ गई थी
उसके कदम उस दहलीज रुपी लक्ष्मण रेखा को आखिर लाँघ ही गये.
शायद अब ये उसका स्वभाव ही बन गया था जिस चीज को दिमाग़ मना करता वो उसे जरुर करती.
इधर उधर देखा कोई नहीं था, सामने किचन कि लाइट भी बंद थी, रेखा के रूम का दरवाजा भी बंद था.
आसमान मे बादल छाये हुए थे, तारों कि रौशनी भी नहीं थी आज.
अनुश्री ने एक गहरी सांस ली, उसका मोबाइल हथेली मे कसता चला गया.
कदम बढ़ गये मंजिल कि ओर, कब नीचे उतर आई और कब उस झोपडीनुमा कैफ़े के सामने खड़ी रही उसे खुद नहीं पता बस वो जल्दी से जल्दी पुष्टि कर लेना चाहती थी.
दिल धाड़ धाड़ कर रहा था "अभी भी वक़्त है पलट जा "
कल भी वो इसी जगह खड़ी थी,कल भी वक़्त था, लेकीन वो कल भी नहीं पलटी थी और आज भी नहीं पलटी.
उसके हाथ मे थमे मोबाइल कि टॉर्च जल उठी, कैफ़े का अंधेरा एक धीमी रौशनी से नहा उठा.
चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, रह रह के कल रात का दृश्य उसकी निगाहों के सामने नाच जाता कहाँ कल रात ये कैफ़े उसकी जवानी से नहा रहा था,
मांगीलाल उसकी जवानी कि बारिश मे भीग रहा था.
लेकीन वक़्त ने ऐसी करवट बदली कि आज वो मांगीलाल इस दुनिया से ही रुख़सत हो गया,
ये ख्याल आते ही अनुश्री का दिल भर आया "हे भगवान ये कैसी माया है "
अनुश्री के मुँह से एक दर्द,दुख कि आह निकल गौ फिर भी ये वक़्त शौक मनाने का नहीं था, उसे वो कागज़ ढूंढना था.
उसके कदम ऊपर बने केबिन कि ओर बढ़ गये.
हाथ मे थमे टॉर्च कि रौशनी उस छोटे से केबिन के कोनो मे पड़ने लगी.
"कहाँ गये...यहीं होने चाहिए " ना जाने अनुश्री मे ऐसी हिम्मत कहाँ से आ गई थी.
कहते है ना मरता क्या ना करता, मुसीबत मे फसा इंसान हिम्मत दिखा ही देता है.
अनुश्री लगातार इधर उधर कागज़ ढूंढ़ रही थी.
"इसे ढूंढ़ रही हो ना?" एक कड़कदार रोबदार आवाज़ से वो छोटा सा केबिन गूंज उठा.
अनुश्री को तो काटो तो एक बून्द खून ना निकले, उसके हाथ से मोबाइल छूट के जमीन चाटने लगा, वो खुद किसी पत्थर कि मूर्ति मे तब्दील हो चली,
धाड़ धाड़ धाड़.....कि आवाज़ साफ सुनी जा सकती थी, सन्नाटा पसर गया.
"चोर चोरी के बाद उसी जगह पर आता जरूर है, मै आपका ही इंतज़ार कर रहा था "
एक टॉर्च जल उठा, उसकी रौशनी पुरे केबिन मे फ़ैल गई.
बूत बनी अनुश्री के कसबल ढीले पड़ गये, आंखे कटोरे से बाहर निकलने को आतुर थी.
"तततत......तुम......अअअ...आप?" अनुश्री दलदल से निकलने कि कोशिश मे थी लेकीन हाय री किस्मत वो और गहराई तक जा धसी.
"हाँ जी मैडम मै इंस्पेक्टर andy, आप लोगो को क्या लगा ऐसे ही बच के निकल जाओगे.
"मममम.....मै....वो...मै....वो..."
"मैंने पहले ही कहाँ था मेरे पास और भी सबूत है, इसे ही ढूंढ़ रही थी ना आप?"
इंस्पेक्टर ने एक सफ़ेद सी चीज निकाल के ठीक अनुश्री के सामने लहरा दि.
उस चीज पे नजर पड़ते ही अनुश्री का समुचा अस्तित्व ही काँप गया. पूरा जिस्म पसीने से सरोबर हो गया,
जैसे जिस्म से आत्मा ही निकल गई हो,
उसे इस बात का तो बिल्कुल भी ध्यान नहीं था, कल रात वो अपनी जिंदगी के हसीन पल जी कर निकल गई थी.
"मैंने पूछा इसे ही ढूंढ़ रही थी ना आप? आपकी ही है ना ये सफ़ेद कच्छी?"
अनुश्री सन्नाटे मे खड़ी दि, साय साय करती हवा उसके जिस्म से हो कर गुजर जाती.
"ये सफ़ेद कच्छी मांगीलाल के हाथो मे दबी मिली थी मुझे, आप इसे ही ढूंढने आई थी, मै स्टेशन पर ही आपकी हालत देख के समझ गया था, कातिल कत्ल कर के डरता है,इसी डर मे गलती भी करता है आप भी कर गई, आपको पता था आपकी ये कच्छी यहीं छूट गई थी,इसलिए इसे ही लेने आई थी "
इंस्पेक्टर andy बोले जा रहा था, उसके चेहरे पे विजेता कि मुस्कान थी जैसे कोई केस सॉल्व कर दिया हो.
"अअअअअ.....हहह....नहीं....नहीं...."
"सुना नहीं मैंने हाँ या ना?" इंस्पेक्टर ने कदक़दार आवाज़ मे पूछा.
"अअअ...नहीं...नहीं....मेरी नहीं है " अनुश्री का गला सुख गया था, होंठ कांप रहे थे मरी सी आवाज़ मे उसकी हाँ ना मै तब्दील हो गई थी, वो और ज्यादा नहीं धसना चाहती थी इस दलदल मे.
" बहुत sexy है....सससससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़........इंस्पेक्टर ने अनुश्री कि पैंटी को अपनी नाक के पास ला कर जोर से सांस खिंच ली.
उउउउफ्फ्फ......क्या खुसबू है वाह...
"इस्स्स.....अनुश्री के मुँह से एक दबी सी सिसक निकली, जैसे इंस्पेक्टर ने उसकी कच्छी नहीं उसकी चुत को सुंघा हो.
इंस्पेक्टर के कदम आगे को बढ़ गये
अनुश्री एक इंच भी नहीं हिल पा रही थी, चेहरा पसीने से भीगा सफ़ेद पड़ा हुआ था.
"ममम....ममममम....मैंने कुछ नहीं किया?" अनुश्री आखिर बोल पड़ी,
उसे ये तो मालूम पड़ चूका था वो कागज़ इंस्पेक्टर के हाथ नहीं लगा है,
"तो फिर ये मादक sexy गीली कच्छी मांगीलाल के हाथो मे कैसे पहुंची?"
इंस्पेक्टर andy बिल्कुल नजदीक पहुंच गया था इतना कि एक इंच भी आगे सरकता तो अनुश्री के स्तन से जा लगता.
"मममम.....मुझे नहीं पता " अनुश्री कि आंखे नीचे को झुक गई, सांसे फूल गई, स्तन फूल कर ब्लाउज स बाहर आने कि कोशिश करते फिर वापस अंदर समा जाते.
"कोई बात नहीं ये sexy कच्छी किसकी है ये तो मै पता ही लगा लूंगा, खुसबू से तो लगता है किसी जवान कामुक, प्यासी औरत कि है..ससससन्ननणीयफ्फगफ.....andy ने एक जोरदार सांस फिर खिंच ली.
इस बार अनुश्री कि निगाहेँ ना जाने क्यों ऊपर को उठ गई, किसी हैवान कि तरह उसकी कच्छी एक अनजान शख्स कि नाक मे लगी हुई थी.
इस दृश्य ने अनुश्री के जिस्म को हिला दिया, ऐसा लगा जैसे कोई उसकी जांघो के बीच बैठा चुत सूंघ रहा हो.
"ये बटन को तो जानती होंगी ना आप "
इंस्पेक्टर andy ने जेब से एक नीला बटन निकाल हथेली पर रख आगे परोस दिया.
एक के बाद एक झटके अनुश्री को सम्भले का वक़्त नहीं दें रहे थे, वो अपनी भावनाओं को संभाल तक नहीं पा रही थी.
उसके माथे पर फिर से पसीने कि लकीर तैर गई.
कुछ ना बोली बस कभी उस बटन को देखती तो कभी इंस्पेक्टर andy के चेहरे पे विजयी मुस्कान को.
"नननन......नहीं...मै नहीं जानती " अनुश्री ने फिर से हिम्मत बटोर कर ना मे सर हिलाते हुए बोला.
"अच्छा जी मुझे लगा आपका होगा " andy कि निगाहेँ अनुश्री के ब्लाउज कि तरफ झुक गई, जहाँ उठते गिरते पसीने से भीगे स्तन अठखेलिया कर रहे थे.
"यहाँ तो पुरे लगे हुए है "
जैसे ही अनुश्री को इंस्पेक्टर कि बात और निगाह समझ आई उसका ध्यान अपने ब्लाउज पर गया जहाँ ना जाने कब से कोई पर्दा नहीं था,
उसका अभी तक घबराहट मे ध्यान ही नहीं गया था, ना जाने कब से वो इंस्पेक्टर इस कामुक दृश्य का लुत्फ़ उठा रहा था.
अनुश्री ने जल्दी से अपने पल्लू को आगे कर अपने खूबसूरत जवान अंग को छुपा लिया.
"कोई बात नहीं ये बटन किसका है ये भी पता लगा ही लूंगा " इंस्पेक्टर जैसे पर्दा गिरने से मायुस हो गया हो.
"ललललल......लेकीन मेरा इन सब से क्या लेना देना?" आखिर अनुश्री ने हिम्मत दिखा सीधी बात पूछ ही ली.
"हाहाहाहा.....क्या लेना देना, सबसे बड़ा लेना देना तो ये है आप इतनी रात को यहाँ क्या करने आई हो? टॉर्च जला के क्या ढूंढ रही थी? और जिस बोत्तल से मांगीलाल के सर पर वार किया गया था उस पर फारुख के उंगलियों के निशान है, ऐसी ही शराब कि बोत्तल हमें रेस्टोरेंट के बाहर मिली थी जहाँ आप लोग लंच करने गये थे, ये बटन और वो फारुख कि शराब कि बोत्तल साथ ही गिरी पड़ी थी.
अनुश्री सन्न..सी रह गई, सब कुछ उसी के खिलाफ था, अभी अभी जो हिम्मत उसने दिखाई थी वो किसी फ़ुस्सी गुब्बारे कि तरह पीचाकती चली गई.
"तत.तत....फारुख को पड़को ना, हमारे पीछे क्यों पड़े हो " अनुश्री फसते गले से जैसे तैसे बोल गई,
"वही तो नहीं मिल रहा ना....अब वो कहाँ है ये तो उसके साथी ही बता सकते है ना?"
"कौन साथी?"
"तुम लोग, तुम मियाँ बीवी, या सिर्फ तुम?"
"ये आप कैसे कह सकते है हम उसके साथी है?"
"आप दोनों उसके साथ उसके घर रुके थे, फिर रेस्टोरेंट मे भी दरबान ने उसे दरवाजे से भगाया था, हो सकता है आपसे मिलने आया हो, फिर आपका यहाँ मौजूद होना, आपकी ये कच्छी का यहाँ मिलना "
इंस्पेक्टर andy ने वापस से वो सफ़ेद पैंटी उसके चेहरे के सामने लहरा दि.
"ककककक.....क्या बकवास है ये, कहाँ ना ये मेरी नहीं है " अनुश्री तमतमा उठी.
जबकि जो भी बोला सब सच ही था.
"अच्छा आपकी नहीं है ये,सससन्नन्नफ्फ.....ऐसी मादक खुसबू तो किसी जवान चुत कि हो सकती है " इस बार इंस्पेक्टर andy सीधा बेहयायी पे उतार आया था, उसके मुँह से जवान चुत शब्द सुन कर अनुश्री का रोम रोम खड़ा हो गया.
उसकी कड़क आवाज़ मे चुत शब्द बोला जाना अपने आप मे एक मर्दानगी लिए हुए था.
"कककक....क्या?"
"जो आपने सुना ऐसी कामुक मादक गंध एक जवान प्यासी चुत कि होती है, इसका गिलापन बताता है कि जिसकी कच्छी है उसकी चुत हमेशा रिसती रहती है. इंस्पेक्टर andy के कदम आगे को बढ़ रहे थे.
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