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थैंक यू दोस्तSuperb update. You have amazing writing skills
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Wow wow wow....अपडेट -27
अनुश्री जैसे सांस लेना ही भूल गई, उसे कतई इस बात का अंदाजा नहीं था कि मंगेश कि जगह कोई और भी आ सकता है.
"तततत .....तुम यहाँ कैसे?" अनुश्री अपने सूखे गले से बस इतना ही बोल पाई.
"वो...वो....मैडम मंगेश सर नीचे आ कर बोल गए थे रूम मे ही खाना पहुंचाने के लिए " मिश्रा खाने कि प्लेट लिए अंदर आ गया.
उसकी नजर अनुश्री के कामुक मखमली बदन पे ही घूम रही थी
"रररऱख...दो " अनुश्री कि सांसे ऊपर नीचे चल रही थी पीछे ड्रसिंग टेबल से चिपकी अनुश्री को ये भी होश नहीं था कि वो अर्धनग्न अवस्था मे एक अनजान आदमी के सामने खड़ी है.
"मममम...मैडम आपकी चुत वाकई बहुत छोटी है " मिश्रा कि हालत भी कोई ठीक नहीं थी वो आज पहली बार हुस्न कि परी को अर्धनग्न देख रहा था.
अनुश्री के कान मे जैसे ही ये शब्द पड़े उसकी नजर तुरंत नीचे को गई, नीचे नजारा देख के तो उसकी सिट्टी पिट्टी ही घूम हो गई.
उसकी जांघो के बीच उसकी पैंटी पूरी तरह चुत कि दरार मे घुसी हुई थी,वो साफ साफ बयान कर रही थी अनुश्री कि खुशियों का रास्ता कितना बारीक़ और महीन है.
शर्म से सरोबर अनुश्री ने झट से अपने दोनों हाथो को अपनी जांघो के बीच दबा दिया, इसी उपक्रम मे उसके दोनों हाथो के बीच स्तन दब के ओर बहार का आ गए.
ये नजारा देखना ही था कि मिश्रा कि टांगे कांप गई
"ममममम....मैडम......आ...आप वाकई बहुत खूबसूरत है,आप जैसी स्त्री मैंने आज तक नहीं देखि "
मिश्रा कि हालत ऐसी थी कि एक बार को अनुश्री का डर फुर्र हो गया,सामने मिश्रा आंख फाडे,मुँह खोले टांगे कपकंपा रहा था.
"थ.थ थ....थैंक यू " अनुश्री के मुँह से ये क्या निकल गया
बोला भी तो क्या थैंक यू.
ना जाने क्यों मिश्रा जब भी उसकी तारीफ करता उसे अच्छा ही लगता.
ये अनुश्री के संस्कार ही थे कि असहज अवस्था मे भी अपनी तारीफ पे थैंक यू बोल पड़ी
जबकि ये कोई आम तारीफ नहीं थी,उसके अर्ध नग्न कामुक बदन कि तारीफ थी.
"काश आपकी चुत चाटने को मिल जाती " मिश्रा किसी बेलगाम घोड़े कि तरह जो मन मे आये बोले जा रहा था.
सीधा एक दम साफ...पता नहीं उसे डर ही नहीं लगता था या ऐसे हुस्न को देख खुद को रोक नहीं पा रहा था.
"इससससस....कककक....कक्क.....क्या कह रहे हो " अनुश्री कि आवाज़ मे घरघराहट आ गई
अभी अभी जिस वासना गर्मी को उसने धोया था,वही वासना और गर्मी उसे महसूस होने लगी.
होती भी क्यों नहीं मिश्रा ने सीधा चुत चाटने कि इच्छा ही जाहिर कर दि थी.
अनुश्री जो काम बस मे कर के आई थी वही काम मिश्रा अनुश्री के साथ करने कि बात कर रहा था, ये विचार आते ही उसका जिस्म फड़कने लगा,उसकी जांघो के बीच सुलगता जवालामुखी फिर से धधक उठा..ना जाने क्या जादू था इन शब्दों मे.
"जरुरत हो तो आ जाना मैडम आपकी चुत को चाट के ही ठंडा कर दूंगा " भड़ाक से दरवाजा बंद हो गया
अनुश्री जांघो के बीच हाथ दबाये एकटक बंद दरवाजे को ही देखती रह गई.
मात्र कुछ पलो मे ही अनुश्री कि दुनिया फिर से पलट गई थी उसका निश्चय,उसका वादा किसी आंधी से लड़ते प्रतीत हो रहे थे.
"हे भगवान ये क्या हो रहा है मेरे साथ मै हर बार अनजान मर्दो के सामने ही क्यों आ जाती हू " अनुश्री का सोचना बिल्कुल सही था वो जब से यहाँ आई है तभी से उसके साथ ऐसा ही कुछ हो रहा है.
अभी अभी जहाँ वो मंगेश पे प्यार लुटा देना चाहती थी वही उसे गुस्सा आ रहा था कि कैसे वो दरवाजा खुला छोड़ गया ऊपर से खाने का बोल के मुझे बताया भी नहीं.
अनुश्री कि सारी भावनाये मर गई,पास मे पड़ा सिंपल सा गाउन उसने अपने जिस्म पे डाल लिया.
"कैसा अजीब आदमी था मिश्रा चुपचाप ऑफर दे के चला गया, कितना गन्दा है मिश्रा,बात करने कि भी तमीज़ नहीं है..उसके पास जाये मेरी जूती"
अनुश्री गुस्से मे बिस्तर पे बैठी भुंभुना रही थी. गुस्से ने उसके जवालमुखी को एक बार फिर से दबा दिया था.
कि तभी "चरररररर......क्या बात है जान बड़ी सुन्दर लग रही हो "दरवाजा खुल गया सामने मंगेश था हाथ मे दवाई लिए.
आज अनुश्री को ये तारीफ किसी कांटे कि तरह चुभती महसूस हुई, गुस्से से मुँह फुलाई अनुश्री ने सिर्फ मंगेश कि तरफ देख वापस नजर घुमा ली.
"अरे क्या हुआ जान...गुस्सा क्यों हो, आ तो गए होटल मे अब " मंगेश अनुश्री के पास बैठ गया.
अनुश्री अभी भी गुस्सा ही थी "दरवाजा बंद करके नहीं जा सकते थे?"
"ओ जान इतनी से बात का गुस्सा,वैसे तुम्हे ही अंदर से बंद करना चाहिए था ना " मंगेश ने पल्ला झाड लिया
"मै नहाने गई थी... भूल गई " मंगेश कि बात से अनुश्री को अपनी गलती का अहसास हुआ वाकई दरवाजा तो उसे ही बंद करना चाहिए था लेकिन वो काम अग्नि मे इस कदर जल रही थी कि उसे कुछ ध्यान नहीं था उसका ध्यान तो सिर्फ अपनी जांघो के बीच निकलती गर्मी पे था.
"क्या हुआ....कोई आया था क्या?" मंगेश ने रूम मे इधर उधर नजरें उठा के देखा,बाजु मे टेबल पे खाने कि प्लेट रखी थी.
"अच्छा तो मिश्रा जी आये थे! मैंने ही बोला था उन्हें खाना देने को " मंगेश ने जैसे अपनी सफाई पेश कि
"तो आने के बाद आर्डर नहीं दे सकते थे " अनुश्री और भी ज्यादा गुस्से से तनतना गई.
"तो क्या हो गया जान? आता फिर आर्डर देता कितना वक़्त जाता, कोई बात हुई क्या? मिश्रा ने कुछ बोला क्या?" मंगेश चिंतित स्वर मे बोला
जैसे ही अनुश्री को इस बात का आभास हुआ उसके होश उड़ गए वो अनजाने ही क्या कहना चाह रही थी "ननननन....नहीं तो कुछ नहीं हुआ " अनुश्री साफ झूठ बोल गई,
अब क्या करती अनुश्री सच बोल देती "हाँ मंगेश मै तुम्हारे लिए तैयार हुई थी, ताकि तुम मेरे बदन को देखो, देख सको कि मेरा बदन कितना हसीन है, देख सको कि इस बदन को तुम्हारी जरुरत है "
"क्या हुआ अनु? कोई बात है क्या?" मंगेश ने अनुश्री को सोच मे डूबे देख पूछा.
"नननन....नहीं मंगेश कुछ नहीं " अनुश्री ने अपना चेहरा झुका लिया "जो तुम्हे देखना था वो बहार के लोग देख जाते है "अनुश्री कि आंखे नम हो चली.
"ओ...मेरी जान अनु तुम भी ना " मंगेश ने बड़े ही प्यार से अनुश्री को गले लगा लिया
"आआहहहह.....क्या सुकून था इस अहसास मे " अनुश्री को यही तो पाना था उसका गुस्सा पल भर मे ही काफूर हो गया.
अनुश्री ना जाने कब से बेचैन थी,उसने भी कस के मंगेश को पकड़ लिया.
एक स्त्री क्या होती है कोई नहीं जान सकता,जहाँ अभी गुस्से से भरी थी अनुश्री वही मात्र एक आलिंगन भर से सारा गुस्सा पिघल गया. सारी आत्मगीलानी ख़त्म हो गई.
"I love you मंगेश " आज खुद आगे से अनुश्री ने दिल कि बात कह दि,उसका पहला और आखिरी प्यार मंगेश ही था.
उसपे हक़ था अनुश्री का यही उसने खुद को बताया.
"क्या बात है अनु आज बड़ी रोमांटिक लग रही हो " मंगेश ने अनुश्री कि ठोड़ी पकड़ चेहरा ऊपर उठा दिया.
अनुश्री कुछ नहीं बोली,बोलती भी क्या कि वो दिनभर से मात्र एक सुकून भरे पल के लिए तड़प रही है.
मंगेश के सामने लाल लिपस्टिक से रंगे काँपते होंठ थे.
आखिर मंगेश भी मर्द ही था ऐसे मौके पे कैसे खुद को रोक सकता था,
"आआहहहहहह.....इसससससस.....मंगेश " अनुश्री के मुँह से काम वासना से भरी सिसकारी फुट पड़ी
इस सिसकारी मे इंतज़ार था,एक सुकून था,तड़प थी.
दोनों के होंठ आपस मे चिपक गये.
मंगेश को तो ऐसे लगा उसने गर्म तवे को चुम लिया हो
1मिनट भी नहीं हुआ था कि मंगेश को अपने होंठ अलग करने पड़ गए, मंगेश ने होंठ दूर खींचे ही थे कि साथ मे अनुश्री भी खिंचती चली गई जैसे कि वो ये अहसास खोना ही नहीं चाहती थी.
"अनु...अनु...हमफ़्फ़्फ़ हमफ़्फ़्फ़....क्या कर रही हो? क्या हुआ है आज तुम्हे?" मंगेश ने अपने होंठ अलग कर लिए उसकी सांसे इतने से भी फूल गई थी..
अनुश्री तो ऐसे देख रही थी जैसे कोई चॉकलेट छीन ली हो उस से " मंगेश चूमो ना मुझे "
"क्या हुआ है अनु तुम्हे, मुझे जुकाम हुआ है तो नाक बंद है,सांस नहीं आ रही थी " मंगेश ने तुरंत अपनी व्यथा कह सुनाई
लेकिन आज अनुश्री कुछ सुनने या समझने के मुड़ मे नहीं थी उसने मंगेश कि बात का कोई जवाब नहीं दिया उसे बस ये कामुक प्यार भरा अहसास पा लेना था
"चलो पहले खाना खा लो,फिर आराम से रात अपनी ही है " मंगेश ने अनुश्री कि तरफ देख आंख मार दि
अनुश्री बस शर्मा के रह गई,उसका बदन तो पहले ही जल रहा था,मात्र एक चुम्बन से भट्टी फिर से भड़क उठी.
अनुश्री ख़ुश थी कि आज वो अपनी मनमानी करेगी,जो ज्ञान उसे बस मे बंगाली बूढ़ो से मिला था उसका इस्तेमाल करेगी, आज अपनी चाहत को पूरा कर लेगी "मै क्यों जाऊ भला किसी के पास "अनुश्री मुस्कुरा उठी.
मात्र 10 मिनट मे ही दोनों ने खाना खा लिया वैसे भी आज अनुश्री को खाने कि जरुरत नहीं थी उसे तो किसी और चीज कि भूख ने परेशान कर रखा था.
रात गहराने लगी थी,बहार समुन्दरी हवाएं साय साय कर चल रही थी.
"तुम भी दवाई खा लो अनु " मंगेश ने दवाई को पानी के साथ गटकते हुए कहा उसके लफ्ज़ो मे थकान थी
परन्तु अनुश्री अभी भी तारोंताज़ा ही थी वो मंगेश कि थकान को भाम्प भी ना सकी.
रूम कि लाइट बंद हो गई,उसकी जगह एक जीरो वाट के बल्ब ने ले ली थी.
पिली रौशनी से कमरा भर गया था
अनुश्री ने बिस्तर पे लेटते ही मंगेश के होंठो पे अपने होंठ रख दिये,उसमे सब्र नाम कि कोई चीज नहीं बची थी.
आज ये पहली बार था कि अनुश्री आगे से मंगेश के होंठ चूस रही थी.
"आअह्ह्हब.....मेरी जान आज तो क़यामत ढा दोगी तुम " मंगेश ने हैरानी से अपने होंठ छुड़ा के बोला.
अनुश्री कुछ नहीं बोली उसके दिमाग़ मे सिर्फ एक ही बात गूंज रही थी " अब जवानी का मजा नहीं लोगी तो कब लोगी " अनुश्री ने वापस से मंगेश के होंठो को चूसना शुरू कर दिया.
"आआहहहह......अनु." मंगेश बुरी तरह से चौंक के सिसकार उठा.
अनुश्री के हाथ मंगेश के पाजामे के ऊपर से ही कुछ टटोल रहे थे ,जिसमे शायद उसे कामयाबी भी मिल गई थी उस बात का सबूत मंगेश कि सिसकारी थी.
"क्या बात है जान आज तो जान ही निकाल दोगी " मंगेश हैरान था कि अनुश्री को हुआ क्या है परन्तु अब तक उसमे भी वासना का संचार हो चूका था,इस से आगे वो कुछ बोल ना सका.
अनुश्री उठ बैठी और एक ही झटके मे मंगेश के पाजामे को नीचे सरका दिया.
अनुश्री का खिला हुआ चेहरा एकदम से मुरझा गया,कामवासना से भरी अनुश्री शायद भूल गई थी कि वो मंगेश के साथ है
मंगेश के जांघो के बीच एक छोटा सा लिंग झूल रहा था.
जिसे एकटक अनुश्री देखे जा रही थी जैसे वो कोई तुलना कर रही हो "उन लोगो का मंगेश से अलग कैसे है?"
"क्या हुआ जान?" मंगेश ने अनुश्री को अपने लंड को घूरते हुए देख पूछ लिया.
अनुश्री को मंगेश कि आवाज़ से एक जोरदार झटका लगा "ये क्या सोच रही हू मै? ये मेरे पति का है,इस पे मेरा हक़ है " अनुश्री ने तुरंत ही बाहरी विचारों को त्याग दिया.
अनुश्री के हाथ ने झट से मंगेश के अर्धमुरछित लंड को धर दबोचा.
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह.....अनु " मंगेश सिर्फ आंख बंद किये सिस्कार रहा था उसे अब कोई मतलब नहीं था कि अनु को क्या हुआ है उसे मजा आ रहा था.
अनुश्री को वैसा महसूस नहीं हो रहा था जैसा उसने बस मे उन दो बूढ़ो के लंड पे हाथ लगने से महसूस किया था.
लेकिन अनुश्री ये बात मानने को तैयार ही नहीं थी उसके हाथ मंगेश के लंड पे ऊपर नीचे होने लगे.
पता नहीं एक बार मे ही अनुश्री ने कितना अनुभव प्राप्त कर लिया था.
हाय रे स्त्री एक बार मे कितना सिख जाती है,और इस कला का प्रदर्शन सीधा अपने पति पे ही कर दिया.
"आआहहहह.....अनु आराम से " मंगेश को ये सब सहन करना भारी पड़ रहा था क्यूंकि आज तक अनुश्री ने कभी ऐसा किया ही नहीं था?,
मंगेश को इस काम क्रीड़ा का कोई अनुभव नहीं था जबकि उसकी पत्नी आये दिन नये नये अनुभव ले रही थी.
आलम ये था कि अनुश्री मंगेश के सामने उस्ताद थी.
अनुश्री का बदन जल रहा था उसे वापस से वही सुख चाहिए था जो उसे बस मे मिला था परन्तु इस बार अपने पति से.
अनुश्री का सर मंगेश के जांघो के बीच झुकता चला गया,अनुश्री ने मुँह खोल दिया वो मंगेश के लंड को अपने मुँह मे भर लेना चाहती थी.
"आआहहहह.....अनु....नहीं.....इससससससस....उफ्फफ्फ्फ़..." मंगेश ने एक गर्म गिला अहसास अपने लंड पे पाया,उसकी आंखे खुल के पीछे को पलट गई, कमर ऊपर उठती चली गई.
कमर ऊपर उठने से मंगेश का लंड अनुश्री के मुँह मे पूरा का पूरा समा गया.
"आआहहहह.....पच..पच...पाचक...अनु...मेरी जान " मंगेश इस गर्म और गीले अहसास को सहन नहीं कर पाया उसके लंड ने वीर्य त्याग दिया.
पहले से ही थका मंगेश वीर्य निकलते ही ऐसा धाराशाई हुआ कि फिर आंख नहीं खोली. उसका सीना उठ उठ के गिर रहा था
"हमफ्फफ्फ्फ़.....अनु....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..और नहीं " मंगेश ने अपनी टांगे समेट ली और पलट गया.
अनुश्री को तो जैसे सांप ही सूंघ गया हो,उसने सर ऊपर उठा लिया एक हल्की सी पानी कि तरह वीर्य कि धार उसके होंठ के बाजु से नीचे को चु गई.
उसे कुछ समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या? अभी तो उसे मजा आना शुरू हुआ था
"तुम ऐसा नहीं कर सकते मंगेश उठो प्लीज उठो...." अनुश्री ने जैसे दुहाई दि हो
लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं.
"मंगेश....मंगेश उठो ना " सामने से कोई जवाब नहीं,पता नहीं वीर्य निकला कि आत्मा मंगेश बेसुध नाक बजाने लगा.
अनुश्री का पहले से जलता बदन गुस्से से काँपने लगा, उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे.
धममम से मंगेश के बगल मे लेट गई...."शायद मेरी किस्मत मे ही पति का प्यार नहीं है " अनुश्री जाँघ आपस मे भिचे आँखों मे आँसू लिए पलट के लेट गई.
लेकिन नींद कहाँ थी इन आँखों मै,बदन जल रहा था,एक अजीब सी हलचल मची थी उसकी जांघो के बीच जोड़ मे जहाँ उसे गिलापन तो महसूस हो रहा था लेकिन लगता था जैसे कुछ अटका हुआ है बस वही अटकी हुई चीज उसकी परेशानी का कारण थी.
अब अनुश्री से इस बिस्तर पे रह पाना मुश्किल था,ठोड़ी देर भी लेटी रहती तो पागल हो जाती,उसे अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी,सर भन्ना रहा था.
अनुश्री ने पास पड़ी बोत्तल से पानी गटा
गट पी लिया परन्तु नतीजा शून्य आग वैसी ही कायम थी,
अनुश्री बिस्तर से उठ बैठी,और तुरंत ही दरवाजा खोल बालकनी मे आ गई "आआहहहहह.....उफ्फफ्फ्फ़...कुछ राहत मिली "
समुन्दरी ठंडी हवा उसके जलते बदन से जा टकराई.
अनुश्री कि बेचैनी कुछ कम हुई,ठंडी हवा उसे एक सुखद अहसास दे रही थी.
बालकनी मे टहलती अनुश्री कि कि नजर जैसे ही सामने पड़ी " कभी हमें भी मौका दो चुत चाटने का " अनुश्री के जहन मे मिश्रा के कहे गए कामुक शब्द गूंज उठे
सामने रसोईघर कि लाइट जल रही थी.
उस रसोईघर को देखते ही उसकी पिछली याद ताज़ा हो गई कैसे वो उस रसोई मे मात्र मिश्रा के लंड को देख झड़ गई थी
उस झड़ने के अहसास को सोच के ही उसकी चुत ने हल्का सा पानी छोड़ दिया,अनुश्री ने तुरंत ही अपनी जाँघे आपस मे भींच ली जैसे वो उस बहाव को रोकना चाहती हो.
उसे अब मालूम हो गया था कि उसकी जांघो के बीच गया अटका हुआ है.
वासना क्या कुछ नहीं सीखा देती.
"चुत चाट के ही ठंडा कर दूंगा " मिश्रा के कहे एक एक शब्द उसके जहन मे गूंजने लगे,अनुश्री फिर से बहकने लगी थी.
"इससससस........आउच " अनुश्री ने मिश्रा के कहे शब्द याद आते ही एक आह भरी सिसकारी छोड़ दि.
उसकी नजरें रसोई से आती लाइट पे ही टिकी हुई थी.
उस समय मिश्रा के कहे शब्द उसे भले गाली सामान लग रहे थे परन्तु अभी वही शब्द उसे किसी प्यार से कम नहीं लग रहे थे.
"चुत चाटना " जैसे शब्द कभी वो गाली समझती थी,परन्तु आज उसके सुलगते जिस्म ने उस शब्द को कामुकता का दर्जा दे दिया था..
उसके खुद से किये गए वादे धाराशाई होते दिख रहे थे.
"उसके पास जाये मेरी जूती " यही कहाँ था अनुश्री ने लेकिन आज उसके कदम खुद उस रौशनी कि तरफ बढ़ जाना चाहते थे.
उसके कदम.... सीढ़ी उतरने को तैयार थे.
तो क्या अनुश्री आज खुद से ये सफर तय कर लेगी?
आखिर कितना लम्बा होगा ये बालकनी से रसोई तक का सफर?
आज अनुश्री के अस्तित्व का सवाल है.
बने रहिये.....कथा जारी है
हाहाहाहा......थैंक यू दोस्तWow wow wow....
Kya bolu mai ab
Aap ek ek jajbat ko shabdo me bayan kr de rhe ho. Kaise likhte ho aisa?
Dil ki dhadkan
Bad jati hai,mere pas paise hote to apko lakho rupay de deti is kahani ke liye
अपडेट -27
अनुश्री जैसे सांस लेना ही भूल गई, उसे कतई इस बात का अंदाजा नहीं था कि मंगेश कि जगह कोई और भी आ सकता है.
"तततत .....तुम यहाँ कैसे?" अनुश्री अपने सूखे गले से बस इतना ही बोल पाई.
"वो...वो....मैडम मंगेश सर नीचे आ कर बोल गए थे रूम मे ही खाना पहुंचाने के लिए " मिश्रा खाने कि प्लेट लिए अंदर आ गया.
उसकी नजर अनुश्री के कामुक मखमली बदन पे ही घूम रही थी
"रररऱख...दो " अनुश्री कि सांसे ऊपर नीचे चल रही थी पीछे ड्रसिंग टेबल से चिपकी अनुश्री को ये भी होश नहीं था कि वो अर्धनग्न अवस्था मे एक अनजान आदमी के सामने खड़ी है.
"मममम...मैडम आपकी चुत वाकई बहुत छोटी है " मिश्रा कि हालत भी कोई ठीक नहीं थी वो आज पहली बार हुस्न कि परी को अर्धनग्न देख रहा था.
अनुश्री के कान मे जैसे ही ये शब्द पड़े उसकी नजर तुरंत नीचे को गई, नीचे नजारा देख के तो उसकी सिट्टी पिट्टी ही घूम हो गई.
उसकी जांघो के बीच उसकी पैंटी पूरी तरह चुत कि दरार मे घुसी हुई थी,वो साफ साफ बयान कर रही थी अनुश्री कि खुशियों का रास्ता कितना बारीक़ और महीन है.
शर्म से सरोबर अनुश्री ने झट से अपने दोनों हाथो को अपनी जांघो के बीच दबा दिया, इसी उपक्रम मे उसके दोनों हाथो के बीच स्तन दब के ओर बहार का आ गए.
ये नजारा देखना ही था कि मिश्रा कि टांगे कांप गई
"ममममम....मैडम......आ...आप वाकई बहुत खूबसूरत है,आप जैसी स्त्री मैंने आज तक नहीं देखि "
मिश्रा कि हालत ऐसी थी कि एक बार को अनुश्री का डर फुर्र हो गया,सामने मिश्रा आंख फाडे,मुँह खोले टांगे कपकंपा रहा था.
"थ.थ थ....थैंक यू " अनुश्री के मुँह से ये क्या निकल गया
बोला भी तो क्या थैंक यू.
ना जाने क्यों मिश्रा जब भी उसकी तारीफ करता उसे अच्छा ही लगता.
ये अनुश्री के संस्कार ही थे कि असहज अवस्था मे भी अपनी तारीफ पे थैंक यू बोल पड़ी
जबकि ये कोई आम तारीफ नहीं थी,उसके अर्ध नग्न कामुक बदन कि तारीफ थी.
"काश आपकी चुत चाटने को मिल जाती " मिश्रा किसी बेलगाम घोड़े कि तरह जो मन मे आये बोले जा रहा था.
सीधा एक दम साफ...पता नहीं उसे डर ही नहीं लगता था या ऐसे हुस्न को देख खुद को रोक नहीं पा रहा था.
"इससससस....कककक....कक्क.....क्या कह रहे हो " अनुश्री कि आवाज़ मे घरघराहट आ गई
अभी अभी जिस वासना गर्मी को उसने धोया था,वही वासना और गर्मी उसे महसूस होने लगी.
होती भी क्यों नहीं मिश्रा ने सीधा चुत चाटने कि इच्छा ही जाहिर कर दि थी.
अनुश्री जो काम बस मे कर के आई थी वही काम मिश्रा अनुश्री के साथ करने कि बात कर रहा था, ये विचार आते ही उसका जिस्म फड़कने लगा,उसकी जांघो के बीच सुलगता जवालामुखी फिर से धधक उठा..ना जाने क्या जादू था इन शब्दों मे.
"जरुरत हो तो आ जाना मैडम आपकी चुत को चाट के ही ठंडा कर दूंगा " भड़ाक से दरवाजा बंद हो गया
अनुश्री जांघो के बीच हाथ दबाये एकटक बंद दरवाजे को ही देखती रह गई.
मात्र कुछ पलो मे ही अनुश्री कि दुनिया फिर से पलट गई थी उसका निश्चय,उसका वादा किसी आंधी से लड़ते प्रतीत हो रहे थे.
"हे भगवान ये क्या हो रहा है मेरे साथ मै हर बार अनजान मर्दो के सामने ही क्यों आ जाती हू " अनुश्री का सोचना बिल्कुल सही था वो जब से यहाँ आई है तभी से उसके साथ ऐसा ही कुछ हो रहा है.
अभी अभी जहाँ वो मंगेश पे प्यार लुटा देना चाहती थी वही उसे गुस्सा आ रहा था कि कैसे वो दरवाजा खुला छोड़ गया ऊपर से खाने का बोल के मुझे बताया भी नहीं.
अनुश्री कि सारी भावनाये मर गई,पास मे पड़ा सिंपल सा गाउन उसने अपने जिस्म पे डाल लिया.
"कैसा अजीब आदमी था मिश्रा चुपचाप ऑफर दे के चला गया, कितना गन्दा है मिश्रा,बात करने कि भी तमीज़ नहीं है..उसके पास जाये मेरी जूती"
अनुश्री गुस्से मे बिस्तर पे बैठी भुंभुना रही थी. गुस्से ने उसके जवालमुखी को एक बार फिर से दबा दिया था.
कि तभी "चरररररर......क्या बात है जान बड़ी सुन्दर लग रही हो "दरवाजा खुल गया सामने मंगेश था हाथ मे दवाई लिए.
आज अनुश्री को ये तारीफ किसी कांटे कि तरह चुभती महसूस हुई, गुस्से से मुँह फुलाई अनुश्री ने सिर्फ मंगेश कि तरफ देख वापस नजर घुमा ली.
"अरे क्या हुआ जान...गुस्सा क्यों हो, आ तो गए होटल मे अब " मंगेश अनुश्री के पास बैठ गया.
अनुश्री अभी भी गुस्सा ही थी "दरवाजा बंद करके नहीं जा सकते थे?"
"ओ जान इतनी से बात का गुस्सा,वैसे तुम्हे ही अंदर से बंद करना चाहिए था ना " मंगेश ने पल्ला झाड लिया
"मै नहाने गई थी... भूल गई " मंगेश कि बात से अनुश्री को अपनी गलती का अहसास हुआ वाकई दरवाजा तो उसे ही बंद करना चाहिए था लेकिन वो काम अग्नि मे इस कदर जल रही थी कि उसे कुछ ध्यान नहीं था उसका ध्यान तो सिर्फ अपनी जांघो के बीच निकलती गर्मी पे था.
"क्या हुआ....कोई आया था क्या?" मंगेश ने रूम मे इधर उधर नजरें उठा के देखा,बाजु मे टेबल पे खाने कि प्लेट रखी थी.
"अच्छा तो मिश्रा जी आये थे! मैंने ही बोला था उन्हें खाना देने को " मंगेश ने जैसे अपनी सफाई पेश कि
"तो आने के बाद आर्डर नहीं दे सकते थे " अनुश्री और भी ज्यादा गुस्से से तनतना गई.
"तो क्या हो गया जान? आता फिर आर्डर देता कितना वक़्त जाता, कोई बात हुई क्या? मिश्रा ने कुछ बोला क्या?" मंगेश चिंतित स्वर मे बोला
जैसे ही अनुश्री को इस बात का आभास हुआ उसके होश उड़ गए वो अनजाने ही क्या कहना चाह रही थी "ननननन....नहीं तो कुछ नहीं हुआ " अनुश्री साफ झूठ बोल गई,
अब क्या करती अनुश्री सच बोल देती "हाँ मंगेश मै तुम्हारे लिए तैयार हुई थी, ताकि तुम मेरे बदन को देखो, देख सको कि मेरा बदन कितना हसीन है, देख सको कि इस बदन को तुम्हारी जरुरत है "
"क्या हुआ अनु? कोई बात है क्या?" मंगेश ने अनुश्री को सोच मे डूबे देख पूछा.
"नननन....नहीं मंगेश कुछ नहीं " अनुश्री ने अपना चेहरा झुका लिया "जो तुम्हे देखना था वो बहार के लोग देख जाते है "अनुश्री कि आंखे नम हो चली.
"ओ...मेरी जान अनु तुम भी ना " मंगेश ने बड़े ही प्यार से अनुश्री को गले लगा लिया
"आआहहहह.....क्या सुकून था इस अहसास मे " अनुश्री को यही तो पाना था उसका गुस्सा पल भर मे ही काफूर हो गया.
अनुश्री ना जाने कब से बेचैन थी,उसने भी कस के मंगेश को पकड़ लिया.
एक स्त्री क्या होती है कोई नहीं जान सकता,जहाँ अभी गुस्से से भरी थी अनुश्री वही मात्र एक आलिंगन भर से सारा गुस्सा पिघल गया. सारी आत्मगीलानी ख़त्म हो गई.
"I love you मंगेश " आज खुद आगे से अनुश्री ने दिल कि बात कह दि,उसका पहला और आखिरी प्यार मंगेश ही था.
उसपे हक़ था अनुश्री का यही उसने खुद को बताया.
"क्या बात है अनु आज बड़ी रोमांटिक लग रही हो " मंगेश ने अनुश्री कि ठोड़ी पकड़ चेहरा ऊपर उठा दिया.
अनुश्री कुछ नहीं बोली,बोलती भी क्या कि वो दिनभर से मात्र एक सुकून भरे पल के लिए तड़प रही है.
मंगेश के सामने लाल लिपस्टिक से रंगे काँपते होंठ थे.
आखिर मंगेश भी मर्द ही था ऐसे मौके पे कैसे खुद को रोक सकता था,
"आआहहहहहह.....इसससससस.....मंगेश " अनुश्री के मुँह से काम वासना से भरी सिसकारी फुट पड़ी
इस सिसकारी मे इंतज़ार था,एक सुकून था,तड़प थी.
दोनों के होंठ आपस मे चिपक गये.
मंगेश को तो ऐसे लगा उसने गर्म तवे को चुम लिया हो
1मिनट भी नहीं हुआ था कि मंगेश को अपने होंठ अलग करने पड़ गए, मंगेश ने होंठ दूर खींचे ही थे कि साथ मे अनुश्री भी खिंचती चली गई जैसे कि वो ये अहसास खोना ही नहीं चाहती थी.
"अनु...अनु...हमफ़्फ़्फ़ हमफ़्फ़्फ़....क्या कर रही हो? क्या हुआ है आज तुम्हे?" मंगेश ने अपने होंठ अलग कर लिए उसकी सांसे इतने से भी फूल गई थी..
अनुश्री तो ऐसे देख रही थी जैसे कोई चॉकलेट छीन ली हो उस से " मंगेश चूमो ना मुझे "
"क्या हुआ है अनु तुम्हे, मुझे जुकाम हुआ है तो नाक बंद है,सांस नहीं आ रही थी " मंगेश ने तुरंत अपनी व्यथा कह सुनाई
लेकिन आज अनुश्री कुछ सुनने या समझने के मुड़ मे नहीं थी उसने मंगेश कि बात का कोई जवाब नहीं दिया उसे बस ये कामुक प्यार भरा अहसास पा लेना था
"चलो पहले खाना खा लो,फिर आराम से रात अपनी ही है " मंगेश ने अनुश्री कि तरफ देख आंख मार दि
अनुश्री बस शर्मा के रह गई,उसका बदन तो पहले ही जल रहा था,मात्र एक चुम्बन से भट्टी फिर से भड़क उठी.
अनुश्री ख़ुश थी कि आज वो अपनी मनमानी करेगी,जो ज्ञान उसे बस मे बंगाली बूढ़ो से मिला था उसका इस्तेमाल करेगी, आज अपनी चाहत को पूरा कर लेगी "मै क्यों जाऊ भला किसी के पास "अनुश्री मुस्कुरा उठी.
मात्र 10 मिनट मे ही दोनों ने खाना खा लिया वैसे भी आज अनुश्री को खाने कि जरुरत नहीं थी उसे तो किसी और चीज कि भूख ने परेशान कर रखा था.
रात गहराने लगी थी,बहार समुन्दरी हवाएं साय साय कर चल रही थी.
"तुम भी दवाई खा लो अनु " मंगेश ने दवाई को पानी के साथ गटकते हुए कहा उसके लफ्ज़ो मे थकान थी
परन्तु अनुश्री अभी भी तारोंताज़ा ही थी वो मंगेश कि थकान को भाम्प भी ना सकी.
रूम कि लाइट बंद हो गई,उसकी जगह एक जीरो वाट के बल्ब ने ले ली थी.
पिली रौशनी से कमरा भर गया था
अनुश्री ने बिस्तर पे लेटते ही मंगेश के होंठो पे अपने होंठ रख दिये,उसमे सब्र नाम कि कोई चीज नहीं बची थी.
आज ये पहली बार था कि अनुश्री आगे से मंगेश के होंठ चूस रही थी.
"आअह्ह्हब.....मेरी जान आज तो क़यामत ढा दोगी तुम " मंगेश ने हैरानी से अपने होंठ छुड़ा के बोला.
अनुश्री कुछ नहीं बोली उसके दिमाग़ मे सिर्फ एक ही बात गूंज रही थी " अब जवानी का मजा नहीं लोगी तो कब लोगी " अनुश्री ने वापस से मंगेश के होंठो को चूसना शुरू कर दिया.
"आआहहहह......अनु." मंगेश बुरी तरह से चौंक के सिसकार उठा.
अनुश्री के हाथ मंगेश के पाजामे के ऊपर से ही कुछ टटोल रहे थे ,जिसमे शायद उसे कामयाबी भी मिल गई थी उस बात का सबूत मंगेश कि सिसकारी थी.
"क्या बात है जान आज तो जान ही निकाल दोगी " मंगेश हैरान था कि अनुश्री को हुआ क्या है परन्तु अब तक उसमे भी वासना का संचार हो चूका था,इस से आगे वो कुछ बोल ना सका.
अनुश्री उठ बैठी और एक ही झटके मे मंगेश के पाजामे को नीचे सरका दिया.
अनुश्री का खिला हुआ चेहरा एकदम से मुरझा गया,कामवासना से भरी अनुश्री शायद भूल गई थी कि वो मंगेश के साथ है
मंगेश के जांघो के बीच एक छोटा सा लिंग झूल रहा था.
जिसे एकटक अनुश्री देखे जा रही थी जैसे वो कोई तुलना कर रही हो "उन लोगो का मंगेश से अलग कैसे है?"
"क्या हुआ जान?" मंगेश ने अनुश्री को अपने लंड को घूरते हुए देख पूछ लिया.
अनुश्री को मंगेश कि आवाज़ से एक जोरदार झटका लगा "ये क्या सोच रही हू मै? ये मेरे पति का है,इस पे मेरा हक़ है " अनुश्री ने तुरंत ही बाहरी विचारों को त्याग दिया.
अनुश्री के हाथ ने झट से मंगेश के अर्धमुरछित लंड को धर दबोचा.
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह.....अनु " मंगेश सिर्फ आंख बंद किये सिस्कार रहा था उसे अब कोई मतलब नहीं था कि अनु को क्या हुआ है उसे मजा आ रहा था.
अनुश्री को वैसा महसूस नहीं हो रहा था जैसा उसने बस मे उन दो बूढ़ो के लंड पे हाथ लगने से महसूस किया था.
लेकिन अनुश्री ये बात मानने को तैयार ही नहीं थी उसके हाथ मंगेश के लंड पे ऊपर नीचे होने लगे.
पता नहीं एक बार मे ही अनुश्री ने कितना अनुभव प्राप्त कर लिया था.
हाय रे स्त्री एक बार मे कितना सिख जाती है,और इस कला का प्रदर्शन सीधा अपने पति पे ही कर दिया.
"आआहहहह.....अनु आराम से " मंगेश को ये सब सहन करना भारी पड़ रहा था क्यूंकि आज तक अनुश्री ने कभी ऐसा किया ही नहीं था?,
मंगेश को इस काम क्रीड़ा का कोई अनुभव नहीं था जबकि उसकी पत्नी आये दिन नये नये अनुभव ले रही थी.
आलम ये था कि अनुश्री मंगेश के सामने उस्ताद थी.
अनुश्री का बदन जल रहा था उसे वापस से वही सुख चाहिए था जो उसे बस मे मिला था परन्तु इस बार अपने पति से.
अनुश्री का सर मंगेश के जांघो के बीच झुकता चला गया,अनुश्री ने मुँह खोल दिया वो मंगेश के लंड को अपने मुँह मे भर लेना चाहती थी.
"आआहहहह.....अनु....नहीं.....इससससससस....उफ्फफ्फ्फ़..." मंगेश ने एक गर्म गिला अहसास अपने लंड पे पाया,उसकी आंखे खुल के पीछे को पलट गई, कमर ऊपर उठती चली गई.
कमर ऊपर उठने से मंगेश का लंड अनुश्री के मुँह मे पूरा का पूरा समा गया.
"आआहहहह.....पच..पच...पाचक...अनु...मेरी जान " मंगेश इस गर्म और गीले अहसास को सहन नहीं कर पाया उसके लंड ने वीर्य त्याग दिया.
पहले से ही थका मंगेश वीर्य निकलते ही ऐसा धाराशाई हुआ कि फिर आंख नहीं खोली. उसका सीना उठ उठ के गिर रहा था
"हमफ्फफ्फ्फ़.....अनु....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..और नहीं " मंगेश ने अपनी टांगे समेट ली और पलट गया.
अनुश्री को तो जैसे सांप ही सूंघ गया हो,उसने सर ऊपर उठा लिया एक हल्की सी पानी कि तरह वीर्य कि धार उसके होंठ के बाजु से नीचे को चु गई.
उसे कुछ समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या? अभी तो उसे मजा आना शुरू हुआ था
"तुम ऐसा नहीं कर सकते मंगेश उठो प्लीज उठो...." अनुश्री ने जैसे दुहाई दि हो
लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं.
"मंगेश....मंगेश उठो ना " सामने से कोई जवाब नहीं,पता नहीं वीर्य निकला कि आत्मा मंगेश बेसुध नाक बजाने लगा.
अनुश्री का पहले से जलता बदन गुस्से से काँपने लगा, उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे.
धममम से मंगेश के बगल मे लेट गई...."शायद मेरी किस्मत मे ही पति का प्यार नहीं है " अनुश्री जाँघ आपस मे भिचे आँखों मे आँसू लिए पलट के लेट गई.
लेकिन नींद कहाँ थी इन आँखों मै,बदन जल रहा था,एक अजीब सी हलचल मची थी उसकी जांघो के बीच जोड़ मे जहाँ उसे गिलापन तो महसूस हो रहा था लेकिन लगता था जैसे कुछ अटका हुआ है बस वही अटकी हुई चीज उसकी परेशानी का कारण थी.
अब अनुश्री से इस बिस्तर पे रह पाना मुश्किल था,ठोड़ी देर भी लेटी रहती तो पागल हो जाती,उसे अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी,सर भन्ना रहा था.
अनुश्री ने पास पड़ी बोत्तल से पानी गटा
गट पी लिया परन्तु नतीजा शून्य आग वैसी ही कायम थी,
अनुश्री बिस्तर से उठ बैठी,और तुरंत ही दरवाजा खोल बालकनी मे आ गई "आआहहहहह.....उफ्फफ्फ्फ़...कुछ राहत मिली "
समुन्दरी ठंडी हवा उसके जलते बदन से जा टकराई.
अनुश्री कि बेचैनी कुछ कम हुई,ठंडी हवा उसे एक सुखद अहसास दे रही थी.
बालकनी मे टहलती अनुश्री कि कि नजर जैसे ही सामने पड़ी " कभी हमें भी मौका दो चुत चाटने का " अनुश्री के जहन मे मिश्रा के कहे गए कामुक शब्द गूंज उठे
सामने रसोईघर कि लाइट जल रही थी.
उस रसोईघर को देखते ही उसकी पिछली याद ताज़ा हो गई कैसे वो उस रसोई मे मात्र मिश्रा के लंड को देख झड़ गई थी
उस झड़ने के अहसास को सोच के ही उसकी चुत ने हल्का सा पानी छोड़ दिया,अनुश्री ने तुरंत ही अपनी जाँघे आपस मे भींच ली जैसे वो उस बहाव को रोकना चाहती हो.
उसे अब मालूम हो गया था कि उसकी जांघो के बीच गया अटका हुआ है.
वासना क्या कुछ नहीं सीखा देती.
"चुत चाट के ही ठंडा कर दूंगा " मिश्रा के कहे एक एक शब्द उसके जहन मे गूंजने लगे,अनुश्री फिर से बहकने लगी थी.
"इससससस........आउच " अनुश्री ने मिश्रा के कहे शब्द याद आते ही एक आह भरी सिसकारी छोड़ दि.
उसकी नजरें रसोई से आती लाइट पे ही टिकी हुई थी.
उस समय मिश्रा के कहे शब्द उसे भले गाली सामान लग रहे थे परन्तु अभी वही शब्द उसे किसी प्यार से कम नहीं लग रहे थे.
"चुत चाटना " जैसे शब्द कभी वो गाली समझती थी,परन्तु आज उसके सुलगते जिस्म ने उस शब्द को कामुकता का दर्जा दे दिया था..
उसके खुद से किये गए वादे धाराशाई होते दिख रहे थे.
"उसके पास जाये मेरी जूती " यही कहाँ था अनुश्री ने लेकिन आज उसके कदम खुद उस रौशनी कि तरफ बढ़ जाना चाहते थे.
उसके कदम.... सीढ़ी उतरने को तैयार थे.
तो क्या अनुश्री आज खुद से ये सफर तय कर लेगी?
आखिर कितना लम्बा होगा ये बालकनी से रसोई तक का सफर?
आज अनुश्री के अस्तित्व का सवाल है.
बने रहिये.....कथा जारी
MZA a gya kya update diya dhere dhere rasta bnta ja rha or garmi bdti ja rhi h jb srir ki grmi bdti h to achchha bura kuchh bhi samjh nhi aata h...अपडेट -27
अनुश्री जैसे सांस लेना ही भूल गई, उसे कतई इस बात का अंदाजा नहीं था कि मंगेश कि जगह कोई और भी आ सकता है.
"तततत .....तुम यहाँ कैसे?" अनुश्री अपने सूखे गले से बस इतना ही बोल पाई.
"वो...वो....मैडम मंगेश सर नीचे आ कर बोल गए थे रूम मे ही खाना पहुंचाने के लिए " मिश्रा खाने कि प्लेट लिए अंदर आ गया.
उसकी नजर अनुश्री के कामुक मखमली बदन पे ही घूम रही थी
"रररऱख...दो " अनुश्री कि सांसे ऊपर नीचे चल रही थी पीछे ड्रसिंग टेबल से चिपकी अनुश्री को ये भी होश नहीं था कि वो अर्धनग्न अवस्था मे एक अनजान आदमी के सामने खड़ी है.
"मममम...मैडम आपकी चुत वाकई बहुत छोटी है " मिश्रा कि हालत भी कोई ठीक नहीं थी वो आज पहली बार हुस्न कि परी को अर्धनग्न देख रहा था.
अनुश्री के कान मे जैसे ही ये शब्द पड़े उसकी नजर तुरंत नीचे को गई, नीचे नजारा देख के तो उसकी सिट्टी पिट्टी ही घूम हो गई.
उसकी जांघो के बीच उसकी पैंटी पूरी तरह चुत कि दरार मे घुसी हुई थी,वो साफ साफ बयान कर रही थी अनुश्री कि खुशियों का रास्ता कितना बारीक़ और महीन है.
शर्म से सरोबर अनुश्री ने झट से अपने दोनों हाथो को अपनी जांघो के बीच दबा दिया, इसी उपक्रम मे उसके दोनों हाथो के बीच स्तन दब के ओर बहार का आ गए.
ये नजारा देखना ही था कि मिश्रा कि टांगे कांप गई
"ममममम....मैडम......आ...आप वाकई बहुत खूबसूरत है,आप जैसी स्त्री मैंने आज तक नहीं देखि "
मिश्रा कि हालत ऐसी थी कि एक बार को अनुश्री का डर फुर्र हो गया,सामने मिश्रा आंख फाडे,मुँह खोले टांगे कपकंपा रहा था.
"थ.थ थ....थैंक यू " अनुश्री के मुँह से ये क्या निकल गया
बोला भी तो क्या थैंक यू.
ना जाने क्यों मिश्रा जब भी उसकी तारीफ करता उसे अच्छा ही लगता.
ये अनुश्री के संस्कार ही थे कि असहज अवस्था मे भी अपनी तारीफ पे थैंक यू बोल पड़ी
जबकि ये कोई आम तारीफ नहीं थी,उसके अर्ध नग्न कामुक बदन कि तारीफ थी.
"काश आपकी चुत चाटने को मिल जाती " मिश्रा किसी बेलगाम घोड़े कि तरह जो मन मे आये बोले जा रहा था.
सीधा एक दम साफ...पता नहीं उसे डर ही नहीं लगता था या ऐसे हुस्न को देख खुद को रोक नहीं पा रहा था.
"इससससस....कककक....कक्क.....क्या कह रहे हो " अनुश्री कि आवाज़ मे घरघराहट आ गई
अभी अभी जिस वासना गर्मी को उसने धोया था,वही वासना और गर्मी उसे महसूस होने लगी.
होती भी क्यों नहीं मिश्रा ने सीधा चुत चाटने कि इच्छा ही जाहिर कर दि थी.
अनुश्री जो काम बस मे कर के आई थी वही काम मिश्रा अनुश्री के साथ करने कि बात कर रहा था, ये विचार आते ही उसका जिस्म फड़कने लगा,उसकी जांघो के बीच सुलगता जवालामुखी फिर से धधक उठा..ना जाने क्या जादू था इन शब्दों मे.
"जरुरत हो तो आ जाना मैडम आपकी चुत को चाट के ही ठंडा कर दूंगा " भड़ाक से दरवाजा बंद हो गया
अनुश्री जांघो के बीच हाथ दबाये एकटक बंद दरवाजे को ही देखती रह गई.
मात्र कुछ पलो मे ही अनुश्री कि दुनिया फिर से पलट गई थी उसका निश्चय,उसका वादा किसी आंधी से लड़ते प्रतीत हो रहे थे.
"हे भगवान ये क्या हो रहा है मेरे साथ मै हर बार अनजान मर्दो के सामने ही क्यों आ जाती हू " अनुश्री का सोचना बिल्कुल सही था वो जब से यहाँ आई है तभी से उसके साथ ऐसा ही कुछ हो रहा है.
अभी अभी जहाँ वो मंगेश पे प्यार लुटा देना चाहती थी वही उसे गुस्सा आ रहा था कि कैसे वो दरवाजा खुला छोड़ गया ऊपर से खाने का बोल के मुझे बताया भी नहीं.
अनुश्री कि सारी भावनाये मर गई,पास मे पड़ा सिंपल सा गाउन उसने अपने जिस्म पे डाल लिया.
"कैसा अजीब आदमी था मिश्रा चुपचाप ऑफर दे के चला गया, कितना गन्दा है मिश्रा,बात करने कि भी तमीज़ नहीं है..उसके पास जाये मेरी जूती"
अनुश्री गुस्से मे बिस्तर पे बैठी भुंभुना रही थी. गुस्से ने उसके जवालमुखी को एक बार फिर से दबा दिया था.
कि तभी "चरररररर......क्या बात है जान बड़ी सुन्दर लग रही हो "दरवाजा खुल गया सामने मंगेश था हाथ मे दवाई लिए.
आज अनुश्री को ये तारीफ किसी कांटे कि तरह चुभती महसूस हुई, गुस्से से मुँह फुलाई अनुश्री ने सिर्फ मंगेश कि तरफ देख वापस नजर घुमा ली.
"अरे क्या हुआ जान...गुस्सा क्यों हो, आ तो गए होटल मे अब " मंगेश अनुश्री के पास बैठ गया.
अनुश्री अभी भी गुस्सा ही थी "दरवाजा बंद करके नहीं जा सकते थे?"
"ओ जान इतनी से बात का गुस्सा,वैसे तुम्हे ही अंदर से बंद करना चाहिए था ना " मंगेश ने पल्ला झाड लिया
"मै नहाने गई थी... भूल गई " मंगेश कि बात से अनुश्री को अपनी गलती का अहसास हुआ वाकई दरवाजा तो उसे ही बंद करना चाहिए था लेकिन वो काम अग्नि मे इस कदर जल रही थी कि उसे कुछ ध्यान नहीं था उसका ध्यान तो सिर्फ अपनी जांघो के बीच निकलती गर्मी पे था.
"क्या हुआ....कोई आया था क्या?" मंगेश ने रूम मे इधर उधर नजरें उठा के देखा,बाजु मे टेबल पे खाने कि प्लेट रखी थी.
"अच्छा तो मिश्रा जी आये थे! मैंने ही बोला था उन्हें खाना देने को " मंगेश ने जैसे अपनी सफाई पेश कि
"तो आने के बाद आर्डर नहीं दे सकते थे " अनुश्री और भी ज्यादा गुस्से से तनतना गई.
"तो क्या हो गया जान? आता फिर आर्डर देता कितना वक़्त जाता, कोई बात हुई क्या? मिश्रा ने कुछ बोला क्या?" मंगेश चिंतित स्वर मे बोला
जैसे ही अनुश्री को इस बात का आभास हुआ उसके होश उड़ गए वो अनजाने ही क्या कहना चाह रही थी "ननननन....नहीं तो कुछ नहीं हुआ " अनुश्री साफ झूठ बोल गई,
अब क्या करती अनुश्री सच बोल देती "हाँ मंगेश मै तुम्हारे लिए तैयार हुई थी, ताकि तुम मेरे बदन को देखो, देख सको कि मेरा बदन कितना हसीन है, देख सको कि इस बदन को तुम्हारी जरुरत है "
"क्या हुआ अनु? कोई बात है क्या?" मंगेश ने अनुश्री को सोच मे डूबे देख पूछा.
"नननन....नहीं मंगेश कुछ नहीं " अनुश्री ने अपना चेहरा झुका लिया "जो तुम्हे देखना था वो बहार के लोग देख जाते है "अनुश्री कि आंखे नम हो चली.
"ओ...मेरी जान अनु तुम भी ना " मंगेश ने बड़े ही प्यार से अनुश्री को गले लगा लिया
"आआहहहह.....क्या सुकून था इस अहसास मे " अनुश्री को यही तो पाना था उसका गुस्सा पल भर मे ही काफूर हो गया.
अनुश्री ना जाने कब से बेचैन थी,उसने भी कस के मंगेश को पकड़ लिया.
एक स्त्री क्या होती है कोई नहीं जान सकता,जहाँ अभी गुस्से से भरी थी अनुश्री वही मात्र एक आलिंगन भर से सारा गुस्सा पिघल गया. सारी आत्मगीलानी ख़त्म हो गई.
"I love you मंगेश " आज खुद आगे से अनुश्री ने दिल कि बात कह दि,उसका पहला और आखिरी प्यार मंगेश ही था.
उसपे हक़ था अनुश्री का यही उसने खुद को बताया.
"क्या बात है अनु आज बड़ी रोमांटिक लग रही हो " मंगेश ने अनुश्री कि ठोड़ी पकड़ चेहरा ऊपर उठा दिया.
अनुश्री कुछ नहीं बोली,बोलती भी क्या कि वो दिनभर से मात्र एक सुकून भरे पल के लिए तड़प रही है.
मंगेश के सामने लाल लिपस्टिक से रंगे काँपते होंठ थे.
आखिर मंगेश भी मर्द ही था ऐसे मौके पे कैसे खुद को रोक सकता था,
"आआहहहहहह.....इसससससस.....मंगेश " अनुश्री के मुँह से काम वासना से भरी सिसकारी फुट पड़ी
इस सिसकारी मे इंतज़ार था,एक सुकून था,तड़प थी.
दोनों के होंठ आपस मे चिपक गये.
मंगेश को तो ऐसे लगा उसने गर्म तवे को चुम लिया हो
1मिनट भी नहीं हुआ था कि मंगेश को अपने होंठ अलग करने पड़ गए, मंगेश ने होंठ दूर खींचे ही थे कि साथ मे अनुश्री भी खिंचती चली गई जैसे कि वो ये अहसास खोना ही नहीं चाहती थी.
"अनु...अनु...हमफ़्फ़्फ़ हमफ़्फ़्फ़....क्या कर रही हो? क्या हुआ है आज तुम्हे?" मंगेश ने अपने होंठ अलग कर लिए उसकी सांसे इतने से भी फूल गई थी..
अनुश्री तो ऐसे देख रही थी जैसे कोई चॉकलेट छीन ली हो उस से " मंगेश चूमो ना मुझे "
"क्या हुआ है अनु तुम्हे, मुझे जुकाम हुआ है तो नाक बंद है,सांस नहीं आ रही थी " मंगेश ने तुरंत अपनी व्यथा कह सुनाई
लेकिन आज अनुश्री कुछ सुनने या समझने के मुड़ मे नहीं थी उसने मंगेश कि बात का कोई जवाब नहीं दिया उसे बस ये कामुक प्यार भरा अहसास पा लेना था
"चलो पहले खाना खा लो,फिर आराम से रात अपनी ही है " मंगेश ने अनुश्री कि तरफ देख आंख मार दि
अनुश्री बस शर्मा के रह गई,उसका बदन तो पहले ही जल रहा था,मात्र एक चुम्बन से भट्टी फिर से भड़क उठी.
अनुश्री ख़ुश थी कि आज वो अपनी मनमानी करेगी,जो ज्ञान उसे बस मे बंगाली बूढ़ो से मिला था उसका इस्तेमाल करेगी, आज अपनी चाहत को पूरा कर लेगी "मै क्यों जाऊ भला किसी के पास "अनुश्री मुस्कुरा उठी.
मात्र 10 मिनट मे ही दोनों ने खाना खा लिया वैसे भी आज अनुश्री को खाने कि जरुरत नहीं थी उसे तो किसी और चीज कि भूख ने परेशान कर रखा था.
रात गहराने लगी थी,बहार समुन्दरी हवाएं साय साय कर चल रही थी.
"तुम भी दवाई खा लो अनु " मंगेश ने दवाई को पानी के साथ गटकते हुए कहा उसके लफ्ज़ो मे थकान थी
परन्तु अनुश्री अभी भी तारोंताज़ा ही थी वो मंगेश कि थकान को भाम्प भी ना सकी.
रूम कि लाइट बंद हो गई,उसकी जगह एक जीरो वाट के बल्ब ने ले ली थी.
पिली रौशनी से कमरा भर गया था
अनुश्री ने बिस्तर पे लेटते ही मंगेश के होंठो पे अपने होंठ रख दिये,उसमे सब्र नाम कि कोई चीज नहीं बची थी.
आज ये पहली बार था कि अनुश्री आगे से मंगेश के होंठ चूस रही थी.
"आअह्ह्हब.....मेरी जान आज तो क़यामत ढा दोगी तुम " मंगेश ने हैरानी से अपने होंठ छुड़ा के बोला.
अनुश्री कुछ नहीं बोली उसके दिमाग़ मे सिर्फ एक ही बात गूंज रही थी " अब जवानी का मजा नहीं लोगी तो कब लोगी " अनुश्री ने वापस से मंगेश के होंठो को चूसना शुरू कर दिया.
"आआहहहह......अनु." मंगेश बुरी तरह से चौंक के सिसकार उठा.
अनुश्री के हाथ मंगेश के पाजामे के ऊपर से ही कुछ टटोल रहे थे ,जिसमे शायद उसे कामयाबी भी मिल गई थी उस बात का सबूत मंगेश कि सिसकारी थी.
"क्या बात है जान आज तो जान ही निकाल दोगी " मंगेश हैरान था कि अनुश्री को हुआ क्या है परन्तु अब तक उसमे भी वासना का संचार हो चूका था,इस से आगे वो कुछ बोल ना सका.
अनुश्री उठ बैठी और एक ही झटके मे मंगेश के पाजामे को नीचे सरका दिया.
अनुश्री का खिला हुआ चेहरा एकदम से मुरझा गया,कामवासना से भरी अनुश्री शायद भूल गई थी कि वो मंगेश के साथ है
मंगेश के जांघो के बीच एक छोटा सा लिंग झूल रहा था.
जिसे एकटक अनुश्री देखे जा रही थी जैसे वो कोई तुलना कर रही हो "उन लोगो का मंगेश से अलग कैसे है?"
"क्या हुआ जान?" मंगेश ने अनुश्री को अपने लंड को घूरते हुए देख पूछ लिया.
अनुश्री को मंगेश कि आवाज़ से एक जोरदार झटका लगा "ये क्या सोच रही हू मै? ये मेरे पति का है,इस पे मेरा हक़ है " अनुश्री ने तुरंत ही बाहरी विचारों को त्याग दिया.
अनुश्री के हाथ ने झट से मंगेश के अर्धमुरछित लंड को धर दबोचा.
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह.....अनु " मंगेश सिर्फ आंख बंद किये सिस्कार रहा था उसे अब कोई मतलब नहीं था कि अनु को क्या हुआ है उसे मजा आ रहा था.
अनुश्री को वैसा महसूस नहीं हो रहा था जैसा उसने बस मे उन दो बूढ़ो के लंड पे हाथ लगने से महसूस किया था.
लेकिन अनुश्री ये बात मानने को तैयार ही नहीं थी उसके हाथ मंगेश के लंड पे ऊपर नीचे होने लगे.
पता नहीं एक बार मे ही अनुश्री ने कितना अनुभव प्राप्त कर लिया था.
हाय रे स्त्री एक बार मे कितना सिख जाती है,और इस कला का प्रदर्शन सीधा अपने पति पे ही कर दिया.
"आआहहहह.....अनु आराम से " मंगेश को ये सब सहन करना भारी पड़ रहा था क्यूंकि आज तक अनुश्री ने कभी ऐसा किया ही नहीं था?,
मंगेश को इस काम क्रीड़ा का कोई अनुभव नहीं था जबकि उसकी पत्नी आये दिन नये नये अनुभव ले रही थी.
आलम ये था कि अनुश्री मंगेश के सामने उस्ताद थी.
अनुश्री का बदन जल रहा था उसे वापस से वही सुख चाहिए था जो उसे बस मे मिला था परन्तु इस बार अपने पति से.
अनुश्री का सर मंगेश के जांघो के बीच झुकता चला गया,अनुश्री ने मुँह खोल दिया वो मंगेश के लंड को अपने मुँह मे भर लेना चाहती थी.
"आआहहहह.....अनु....नहीं.....इससससससस....उफ्फफ्फ्फ़..." मंगेश ने एक गर्म गिला अहसास अपने लंड पे पाया,उसकी आंखे खुल के पीछे को पलट गई, कमर ऊपर उठती चली गई.
कमर ऊपर उठने से मंगेश का लंड अनुश्री के मुँह मे पूरा का पूरा समा गया.
"आआहहहह.....पच..पच...पाचक...अनु...मेरी जान " मंगेश इस गर्म और गीले अहसास को सहन नहीं कर पाया उसके लंड ने वीर्य त्याग दिया.
पहले से ही थका मंगेश वीर्य निकलते ही ऐसा धाराशाई हुआ कि फिर आंख नहीं खोली. उसका सीना उठ उठ के गिर रहा था
"हमफ्फफ्फ्फ़.....अनु....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..और नहीं " मंगेश ने अपनी टांगे समेट ली और पलट गया.
अनुश्री को तो जैसे सांप ही सूंघ गया हो,उसने सर ऊपर उठा लिया एक हल्की सी पानी कि तरह वीर्य कि धार उसके होंठ के बाजु से नीचे को चु गई.
उसे कुछ समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या? अभी तो उसे मजा आना शुरू हुआ था
"तुम ऐसा नहीं कर सकते मंगेश उठो प्लीज उठो...." अनुश्री ने जैसे दुहाई दि हो
लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं.
"मंगेश....मंगेश उठो ना " सामने से कोई जवाब नहीं,पता नहीं वीर्य निकला कि आत्मा मंगेश बेसुध नाक बजाने लगा.
अनुश्री का पहले से जलता बदन गुस्से से काँपने लगा, उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे.
धममम से मंगेश के बगल मे लेट गई...."शायद मेरी किस्मत मे ही पति का प्यार नहीं है " अनुश्री जाँघ आपस मे भिचे आँखों मे आँसू लिए पलट के लेट गई.
लेकिन नींद कहाँ थी इन आँखों मै,बदन जल रहा था,एक अजीब सी हलचल मची थी उसकी जांघो के बीच जोड़ मे जहाँ उसे गिलापन तो महसूस हो रहा था लेकिन लगता था जैसे कुछ अटका हुआ है बस वही अटकी हुई चीज उसकी परेशानी का कारण थी.
अब अनुश्री से इस बिस्तर पे रह पाना मुश्किल था,ठोड़ी देर भी लेटी रहती तो पागल हो जाती,उसे अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी,सर भन्ना रहा था.
अनुश्री ने पास पड़ी बोत्तल से पानी गटा
गट पी लिया परन्तु नतीजा शून्य आग वैसी ही कायम थी,
अनुश्री बिस्तर से उठ बैठी,और तुरंत ही दरवाजा खोल बालकनी मे आ गई "आआहहहहह.....उफ्फफ्फ्फ़...कुछ राहत मिली "
समुन्दरी ठंडी हवा उसके जलते बदन से जा टकराई.
अनुश्री कि बेचैनी कुछ कम हुई,ठंडी हवा उसे एक सुखद अहसास दे रही थी.
बालकनी मे टहलती अनुश्री कि कि नजर जैसे ही सामने पड़ी " कभी हमें भी मौका दो चुत चाटने का " अनुश्री के जहन मे मिश्रा के कहे गए कामुक शब्द गूंज उठे
सामने रसोईघर कि लाइट जल रही थी.
उस रसोईघर को देखते ही उसकी पिछली याद ताज़ा हो गई कैसे वो उस रसोई मे मात्र मिश्रा के लंड को देख झड़ गई थी
उस झड़ने के अहसास को सोच के ही उसकी चुत ने हल्का सा पानी छोड़ दिया,अनुश्री ने तुरंत ही अपनी जाँघे आपस मे भींच ली जैसे वो उस बहाव को रोकना चाहती हो.
उसे अब मालूम हो गया था कि उसकी जांघो के बीच गया अटका हुआ है.
वासना क्या कुछ नहीं सीखा देती.
"चुत चाट के ही ठंडा कर दूंगा " मिश्रा के कहे एक एक शब्द उसके जहन मे गूंजने लगे,अनुश्री फिर से बहकने लगी थी.
"इससससस........आउच " अनुश्री ने मिश्रा के कहे शब्द याद आते ही एक आह भरी सिसकारी छोड़ दि.
उसकी नजरें रसोई से आती लाइट पे ही टिकी हुई थी.
उस समय मिश्रा के कहे शब्द उसे भले गाली सामान लग रहे थे परन्तु अभी वही शब्द उसे किसी प्यार से कम नहीं लग रहे थे.
"चुत चाटना " जैसे शब्द कभी वो गाली समझती थी,परन्तु आज उसके सुलगते जिस्म ने उस शब्द को कामुकता का दर्जा दे दिया था..
उसके खुद से किये गए वादे धाराशाई होते दिख रहे थे.
"उसके पास जाये मेरी जूती " यही कहाँ था अनुश्री ने लेकिन आज उसके कदम खुद उस रौशनी कि तरफ बढ़ जाना चाहते थे.
उसके कदम.... सीढ़ी उतरने को तैयार थे.
तो क्या अनुश्री आज खुद से ये सफर तय कर लेगी?
आखिर कितना लम्बा होगा ये बालकनी से रसोई तक का सफर?
आज अनुश्री के अस्तित्व का सवाल है.
बने रहिये.....कथा जारी है
धन्यवाद दोस्त.... ये सफर जारी रहेगाSuper update...jadugar ho aap lekhni ke