अपडेट -28
अनुश्री किसी यँत्र चलित गुड़िया मे तब्दील हो गई थी.
उसकी वासना उसकी प्यास उस से संभाले नहीं संभल रही थी,
सामने से आती रसोई कि पिली रौशनी मे उसे अपनी खुशियाँ दिखने लगी, वो बल्ब कि रौशनी मात्र नहीं थी वो उम्मीद कि किरण थी, गर्म जिस्म को ठंडक देने कि धूमिल चाह थी.
"जरूरत हो तो आइयेगा मैडम चुत चाट के ही ठंडा कर दूंगा " एक मादक कामुक आवाज़ अनुश्री के जहन मे गूंज रही थी,जैसे उसे कोई बुला रहा हो,उसे अपने पास खिंच रहा हो.
उसके कदम उसके हक़ मे नहीं थे, ना जाने कैसे अनुश्री पीछे को घूमी और अपने कमरे के दरवाजे कि कुण्डी बहार से लगा दि.
इस एक काम मे अनुश्री का कलेजा बहार आ गया "मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए "
धाड़ धाड़ करते दिल से अनुश्री ने वापस कुण्डी खोल दि.
"जवानी बार बार नहीं आती अनु बेटा,अभी नहीं तो कभी नहीं " उसके जहन मे इस बार बूढ़ो का ज्ञान गूंज उठा.
अनुश्री कि टांगे काँप उठी,जैसे कोई चोर पहली बार चोरी कर रहा हो.
"सतत्तत्तत्त....से कुण्डी वापस बंद हो गई, अनुश्री ने अपने जलते सुलगते जिस्म कि बात सुनी..
आखिर अनुश्री ने अपने पतन का पहला कदम बढ़ा ही दिया,इस एक कदम को उठाने मे उसका पूरा वजूद कांप गया,ना जाने कितने विचार आ के गुजर गए लेकिन इन सभी पे सिर्फ काम भावना हावी थी,सुलगते जिस्म ने उसके कदम पीछे नहीं खींचने दिये...अंततः अनुश्री एक सीढ़ी उतर ही गई.
क्या स्त्री थी अनुश्री,एक संस्कारी पारिवारिक स्त्री किस कद्र मजबूर थी,उसे किसी सम्मोहन ने बांध लिया था.
एक एक कदम मुश्किल था,वो ना जाने कब नीचे आ गई उसे खुद को पता ना चला.
"वापस चलती हू ये ठीक नहीं " सीढ़ी उतर के अनुश्री नीचे बरामदे मे आ गई,एक बार सर ऊपर उठा के देखा जहाँ उसके कमरे का दरवाजा बंद था,उस कमरे मे उसका पति सोया हुआ था.
"नहीं....नहीं...." अनुश्री ने सामने देखा वही पिली रौशनी
बस यही एक उम्मीद उसका हौसला बढ़ा रही थी.उसका बदन तो पहले से ही गर्म था इस एक चोरी ने उसके कान लाल कर दिये.
आज अनुश्री खुद को किसी चोर कि तरह महसूस कर रही थी,दिल कि धड़कन तो ऐसे चल रही थी कि सीना ही फाड़ देगी.
अनुश्री ने सर घुमा के आस पास देखा कोई नहीं था,सन्नाटा पासरा हुआ था.
अनुश्री ने गजब कि हिम्मत दिखाई,उसके कामुक काँपते हुए पैर उस रसोई से आती रौशनी कि ओर बढ़ चले..
इंसानी फितरत है कि किसी भी काम के लिए सिर्फ पहला ही कदम उठाना मुश्किल होता है उसके बाद तो हज़ार कदम भी आसन होते है और अनुश्री वो पहला कदम रख चुकी थी,उसका बदन कांप रहा था, गला सुख गया था
लगता था किसी भी वक़्त उसका बदन फट जायेगा..
चलते हुए उसके कदम लड़खड़ा जाते,बार बार पीछे पलट के बालकनी मे देखती जाती लेकिन रुकी नहीं वो इस फासले को जल्द से जल्द पार कर लेना चाहती थी.
100मीटर का ही तो गार्डन का फासला था,अनुश्री चले जा रही थी लेकिन ये रास्ता ख़त्म होता नहीं दिख रहा था, लगता था जैसे किसी रेगिस्तान मे पानी रुपी मारिचिका दिख रही है जीतना आगे बढ़ती उतना है पानी का तालाब आगे सरक जाता,
लेकिन ये वासना का गर्म रेगिस्तान था जीतना चलती जाती उतना ही गला सूखता जाता...
"आआआहहहहहब.......धममम...."से अनुश्री रसोई कि दहलीज पे जा गिरी
"ममममम.....ममममम....मैडम आप आइये आइये मुझे आपका ही इंतज़ार था " मिश्रा दरवाजे पे हुई आवाज़ से चौंक कर उठ खड़ा हुआ सामने देखा तो पाया अनुश्री रसोई कि दहलीज पे घुटने के बल बैठी हुई है.
"आराम...से मैडम ऐसी भी क्या जल्दी " मिश्रा ने अनुश्री को सहारा दे अंदर ले आया.
अनुश्री कांप रही थी,सांसे धोकनी कि तरह भाग रही थी
ना जाने कितने मीलो का सफर तय कर वो यहाँ पहुंची थी, उसे नहीं पता वो यहाँ तक कैसे आ गई उसका गला सुख रहा था "पप्पापम...प्प्प...पानी " फसते अटकते गले से वो सिर्फ इतना ही बोल पाई.
"ये लीजिये मैडम " मिश्रा ने पास पड़ी बोत्तल को अनुश्री के हाथ मे थमा दिया
"गट गट गटक....करती अनुश्री ने एक बार मे ही पूरी बोत्तल खाली कर दि,इस जल्दबाज़ी मे कुछ पानी आगे उसके स्तन को भी भीगा गया.
मिश्रा कि हाईट छोटी ही थी उसका चेहरा ठीक अनुश्री के भीगे स्तन के सामने था,वही स्तन जिसके बीच कभी मिश्रा ने मुँह घुसाया था,उसकी सुगंध ली थी.
"मैडम....आप....अप्प...के दूध कितने सुंदर है " मिश्रा से रहा नहीं गया तपाक से बोल ही दिया
उसे पता था जब अनुश्री यहाँ तक आ ही गई है तो अब किसी बात का बुरा नहीं मानेगी.
अनुश्री जो कि अभी अभी पानी पी के होश मे आई थी,किसी विक्षित कि तरह चारो तरफ देख रही थी जैसे कि पहली बार आई हो बहार के मुकाबले अंदर गर्मी थी ये गर्महट उसे सुखद अहसास दे रही थी परन्तु जैसे ही उसने मिश्रा के मुँह से ये शब्द सुने उसका दिमाग़ सन्न रह गया..उसने नीचे गर्दन झुका के देखा तो पाया कि पानी कि वजह से गाउन गिला हो चिपक गया है, जिसमे से उसकी ब्रा का अकार साफ झलक रहा है.
"ववव...वो....मै जाती हू " ना जाने क्या हुआ अनुश्री पीछे को पलट गई जाने को ही थी कि
"तो फिर आई क्यों मैडम? आपके इंतज़ार मे तो मै आपकी कच्छी सूंघ के लंड हिला रहा था " मिश्रा बहुत ईमानदार था सीधा और साफ बोलता था
"मममम....मेरी.....क....का .....पैंटी " अनुश्री चौंक कर पीछे पलटी
"आपने ही तो दि थी ट्रैन मे भूल गई? ससससन्ननीफ्फफ्फ्फ़......" मिश्रा ने एक जोरदार सांस खींची
अनुश्री आंखे फाडे मिश्रा को ही देख रही थी, अनुश्री ने पाया कि उसकी पैंटी पे सफ़ेद सफ़ेद सा कुछ लगा है.
पिछली बार कि घटना उसके जहन मे ताज़ा हो गई.
"इस्स्स.....ये....ये....तो मेरी नहीं है " अनुश्री ने हिम्मत जूटा ली ना जाने क्यों उसे ये दृश्य देख एक अलग सा उन्माद जगा.
मिश्रा उधर सांस खिंच रहा था इधर अनुश्री को अपनी जांघो के बीच से कुछ खींचता महसूस हुआ.
"आपकी ही तो है मैडम आपकी काली चड्डी,ये देखो " मिश्रा ने अनुश्री कि पैंटी को उसके चेहरे के सामने लटका दिया.
"इससेससस.....हे भगवान ये...ये...तो मेरी ही है लेकिन....लेकिन इसका कलर " अनुश्री ने पाया कि उसकी काली पैंटी लगभग सफ़ेद पड़ चुकी थी जगह जगह से कड़क हो गई थी
"अब क्या करे मैडम उस दिन के बाद से तो अपने हमें कोई तोहफा दिया ही नहीं तो आपकी कच्छी को ही चाट चाट के लंड झाड दिया" मिश्रा दनादन बोले जा रहा था जैसे अनुश्री उसके बचपन कि यार हो
"क्या....क्या बोल रहे हो " अनुश्री कि आवाज़ घरघरा गई उसने ऐसी दीवानगी आज तक नहीं देखि. आखिर कोई इंसान मात्र उसकी पैंटी को चाट चाट के ये हाल कर सकता है.
"आप बोलो तो आपकी चुत चाट के भी यही हाल कर दू " मिश्रा ने जैसे अनुश्री के मन को पढ़ लिया हो
"कककक.....क्या " अनुश्री बोखला गई एक अनजान आदमी उससे उसकी चुत चाटने कि इज़ाज़त मांग रहा था
अनुश्री के पैर कांप गए,उसने जाँघे आपस मे भींच ली मात्र मिश्रा के बोलने भर से अनुश्री का वजूद हिलने लगा.
"तो आप क्यों आई है यहाँ " मिश्रा ने सीधा सवाल दाग़ दिया
"मममम.....ममम....क्यों आई हू मै यहाँ " अनुश्री को जवाब देते नहीं बन पा रहा था.
"बताइये ना "
"वो...वो.....प्यास लगी थी " अनुश्री ने पिछली बार कि बात को दोहरा दिया
"जिस्म कि प्यास है ही ऐसी चीज " बोलता हुआ मिश्रा आगे बढ़ गया उसके हाथ से अनुश्री कि गन्दी पैंटी सरक के नीचे गिर गई.
अनुश्री हक्की बक्की खड़ी थी "कैसे जनता है ये आदमी मेरे बारे मे इतना कुछ, मंगेश को क्यों नहीं पता? उसे तो मेरे बदन कि गर्माहट बुखार लगती है?
अनुश्री फिर से मंगेश कि तुलना अन्य आदमियों से करने लगी.
मिश्रा को अपनी तरफ बढ़ता देख वो एक कदम पीछे हुई ही थी कि रसोई कि स्लैब से जा टकराई उसके कदम वही थम गए.
सामने दरवाजा खुला था,उसे भाग जाना था अभी के अभी....लेकिन नहीं वो नहीं भागी बस देखती रही...
मिश्रा के बढ़ते कदम उसके दिल कि धड़कन को कई गुना बढ़ा देते, जो सोच के आई थी वो हो रहा था लेकिन इसमें इतना रोमांच और डर है उसे पता नहीं था.
अनुश्री का बदन वापस से कंपने लगा. वो वासना और संस्कार के बीच मझदार मे फसी थी.
संस्कार तो कबका किनारे ही छोड़ आई थी अब सिर्फ वासना ही बाकि रह गई.
अभी अनुश्री कुछ समझ ही पाती कि मिश्रा ने उसके सामने घुटने टेक दिये. जैसे कोई योद्धा रणभूमि मे जाने से पहले ही धाराशाई हो गया हो, अनुश्री का गाउन मात्र घुटनो तक ही आ रहा था.
मिश्रा क्या करने जा रहा है वो अनुश्री के समझ के परे था,कि....
"आआआहहहहहहम......अनुश्री के हलक ने सिसकारी कि बौछार कर दि "
घुटनो पे बैठे मिश्रा ने गाउन के ऊपर से अनुश्री कि जांघो के बीच अपना सर गुसा दिया.
युद्ध मे धरासाई दिखते योद्धा ने जैसे ब्रह्मास्त्र चला दिया हो.
अनुश्री का मुँह खुला ही रह गया,उसे उम्मीद ही नहीं थी कि मिश्रा ऐसा कुछ करेगा.
"ससससननणणनणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....आअह्ह्ह..." मैडम क्या खुसबू है आपकी चुत कि.
मिश्रा ने जोर से सांस खिंच ली,अंदर अनुश्री कि गर्म चुत अपनी खुसबू बिखेर रही थी जिसे मिश्रा किसी कुत्ते कि तरह सूंघ रहा था.
गाउन का कपड़ा बारीक़ था मिश्रा कि गर्म सांस अनुश्री कि जांघो के बीच टक्कर मारने लगी.
अनुश्री आज सुबह से इस आग मे तड़प रही थी, वो इसी गर्मी को तो शांत करने आई थी यहाँ.
परन्तु यह तो अनुश्री का जिस्म और ज्यादा जलने लगा "आउच.....आअह्ह्ह....." जीतना हो सकता था अनुश्री ने अपनी जाँघे आपस मे भींच दि.
अभी ये कम ही था कि एक गर्म गीली से चीज अनुश्री को अपनी जांघो के बीच महसूस हुई "आआआहहहहह.....नहीई...." अनुश्री ने सर नीचे किया तो पाया कि मिश्रा कि जबान नीचे से ऊपर कि तरफ रेंग रही है.
इस छुवन ने अनुश्री के रहे सहे कस बल भी ढीले कर दिये,उसके हाथ पीछे स्लेब पर जा टिके.
जांघो का दबाव बढ़ता चला गया
"वाह..मैडम क्या महकती है आपकी चुत जैसे कोई गुलाब का फूल रखा हो अंदर " मिश्रा कि जबान ने उस तिकोने हिस्से को गिला कर दिया.
कहना मुश्किल था कि ये गिलापन मिश्रा कि थूक का है या अनुश्री कि चुत से निकले पानी का.
"इससससस.....नहीं " अनुश्री सिर्फ आहे भर रही थी मिश्रा कि अश्लील कामुक तारीफ लगातार उसे वासना मे धकेल रही थी
तारीफ गन्दी थी लेकिन थी तो तारीफ ही अनुश्री कि सुंदरता कि तारीफ.
अनुश्री बिल्कुल भी नहीं हिल रही थी,बस उसका सर पीछे को लटक गया वो इस असीम आनंद कि गहराई मे गोते खा रही थी उसे इस प्रकार के कामुक सुख कि कभी प्राप्ती नहीं हुई,उसे तो याद ही नहीं था कि मंगेश ने कभी ऐसा किया हो,याद भी कैसे हो कभी किया ही नहीं.
अभी तक अनुश्री को खुद को ये काम गन्दा लगता था,परन्तु गंदेपान का क्या मजा है आज उसे समझ आया.
मिश्रा किसी पालतू कुत्ते कि तरह अनुश्री के गाउन के ऊपर से ही चुत के हिस्से को चाटे जा रहा था लगता था कि वही से खोद के चुत को बहार निकाल देगा
"आअह्ह्ह.....आउच....धीरे " अनुश्री सिर्फ सिसक रही रही वो इस अनुभव को और करीब से महसूस करना चाहती थी लेकिन कैसे कहे कि मेरी पैंटी उतार दो
अनुश्री मे जितनी भी हिम्मत थी वो उसने कमरे से रसोई तक आने मे ही खर्च कर दि, अब हिम्मत ही नहीं थी कि खुद से पैंटी उतार सके या बोल सके.
कि तभी नीचे से सरसराहट कि आवाज़ हुई एक गर्म हवा अनुश्री कि नंगी जांघो से जा टकराई.
अनुश्री ने चौंक के नीचे देखा मिश्रा उसके गाउन के अंदर सर घुसा चूका था.
"आआहहहहह.......अनुश्री अभी कोई हरकत करती कि मिश्रा ने अपनी गर्म जीभ उसकी पैंटी पे रख दि
अनुश्री का पूरा वजूद कांप उठा,कामदेव उस पे मेहरबान थे जो सोचती वो हो जा रहा था.
नीचे मिश्रा को तो जैसे जन्नत का दरवाजा मिल गया, वो भूखा भेड़िया बन गया था बनता भी क्यों ना ऐसा शानदार शिकार खुद तैयार बैठा था.
" मैडम आपकी चुत कि खुसबू वाकई लाजवाब है " मिश्रा लगातार जीभ से अनुश्री कि चुत को नीचे से ऊपर चाटे जा रहा था.
अनुश्री सांस नहीं ले रही थी बस दिल धड़क रहा था
मिश्रा कि जीभ का खुर्दरापन उसे अपनी पैंटी के ऊपर से भी महसूस हो रहा था.
"आपकी कच्छी उतार दे मैडम थोड़ा अच्छे से पी लेने दीजिये " मिश्रा ने जैसे बम फोड़ दिया
हालांकि अनुश्री भी खुद यही चाहती थी "नननन...नहीं..." कस के अपनी जांघो को आपस मे भींच लिया जैसे अपनी पैंटी को पकड़ लेना चाहती थी.
जाँघ के दबने से चुत से निकली एक मोटी रस कि धार ने पैंटी को पूरा भीगा दिया.
"आहहब्ब......मैडम आपकी चुत का शहद " मिश्रा ने अपने होंठ गोल कर पैंटी के आगे के सिरे को मुँह मे जकड़ लिया "सूररररर......करता हुआ उस शहद रुपी रस को चूसने लगा.
अनुश्री लगातार मिश्रा कि गन्दी तारीफ से मदहोश हुई जा रही थी, ऊपर से ये चूसने कि आवाज़ ने उसकी जाँघ को ढीला कर दिया.
मिश्रा ने तुरंत मौके का फायदा उठाते हुए सररररर.....से पैंटी को नीचे सरका दिया
पल भर मे भी अनुश्री कि गीली कामुक पैंटी उसके पैर चुम रही थी
पल भर के लिए रसोई मे एक सन्नाटा छा गया नीचे गाउन के अंदर बैठा मिश्रा जैसे जड़ हो गया, वो बिल्कुल भी हिल डुल नहीं रहा था.
बस उसके जिन्दा होने का सबूत उसकी गर्म सांसे थी जो अनुश्री कि नंगी चुत पे पड़ रही थी.
गाउन के अंदर मिश्रा ने शायद जिंदगी का सबसे बढ़ा अजूबा देखा,उसकी आंखे पथरा गई, सामने चुत के नाम मे मात्र एक लकीर थी बारीक़ सी महीन जिसके किनारे शहद से भीगे थे.
"मममम.....ममम....मैडम..."
"हम्म......" अनुश्री बस इतना ही बोल पाई शायद वो आने वाले वक़्त कि कामना कर रही थी वो उसके लिए तैयार ही हुई थी कि नीचे से कोई प्रतिक्रिया ना पा के नीचे देखा जहाँ सन्नाटा था घोर सन्नाटा
शायद अब अनुश्री से भी नहीं रहा जा रहा था
"ममम...मैडम आपकी चुत वाकई मे कमाल है मैंने सही अंदाजा लगाया था आपकी चुत बहुत छोटी है " मिश्रा से रहा नहीं गया उसने अपनी थार्थरती जबान को आखिरकार अनुश्री कि सुलगती चुत पे रख ही दिया
चुत से निकलती लार को मिश्रा समेटता चला गया.
"आआहहब्ब.....उफ्फफ्फ्फ़....आउच " अनुश्री तो ना जाने कब से इसी पल के इंतज़ार मे थी आज दिन भर से वो इसी आग मे चल रही थी,मिश्रा कि गर्म जबान से उसे इस तपते रेगिस्तान मे कुछ सहारा मिला.
अनुश्री ये झटके नहीं सह पा रही थी जाँघे अभी भी आपस मे भींचे खड़ी थी, पीछे स्लेब का सहारा ना होता तो कब का गिर पड़ती
मिश्रा तो जैसे कसम खा के घुसा था उसकी जबान लगातार चुत रुपी लकीर को कुरेदे जा रही थी,
मिश्रा कि पूरी कोशिश होती कि वो उस लकीर मे जीभ घुसा दे परन्तु अनुश्री कि चुत इस तरह टाइट थी कि मिश्रा के इरादों पे पानी फेर दे रही थी.
मिश्रा पागलो कि तरह चाटे जा रहा था, कभी ऊपर तो कभी नीचे उसका सब्र अब जवाब दे रहा था, उसे अब और ज्यादा चाहिए था.
अनुश्री किसी पागलों कि तरह सर इधर उधर पटकने लगी, पुरे रसोई मे उसी कि सिसकारियों कि आवाज़ गूंज रही थी उसे रत्ती भर भी डर नहीं था कि सामने ही रसोई का दरवाजा खुला हुआ है.
"आअह्ह्हब...हमफ्फगम...बस अब और नहीं " मिश्रा अनुश्री के गाउन से बहार निकल आया
अनुश्री और मिश्रा कि आंखे आपस मे भीड़ गई
मिश्रा का चेहरा अनुश्री कि चुत से निकले पानी से सना हुआ था, वो इस वक़्त उस शेर जैसा प्रतीत हो रहा था जो बकरी का नरम गोश्त को चख के हटा हो,मुँह ताज़ा खून से सना हो..
वैसे ही मिश्रा के मुँह को चुत रस लग गया था
अनुश्री कि आँखों मे सवाल था "क्या हुआ रुक क्यों गए?"
वही मिश्रा कि आँखों मे चाहत थी और ज्यादा कि चाहत.
अनुश्री अभी कुछ समझती ही कि मिश्रा ने एक जोरदार धक्का दे अनुश्री को पीछे स्लैब पे लगभग लेटा दिया
अनुश्री के पैरो तले जमीन खिसक गई, उसके पैर हवा मे ऊपर हो गए जिन्हे मिश्रा ने बखूभी थाम लिया और अलग अलग दिशा मे फैला दिया.
पूरी रसोई मे जैसे कोई रूहानी रौशनी फ़ैल गई,
अनुश्री के लिए ये सबसे शर्मिंदगी का मौका था आज तक उसके पति ने भी उसकी चुत को ऐसे बेआबरू नहीं किया था जैसे मिश्रा ने कर दिया.
पूरी टांग फैला देने के बाद भी अनुश्री कि चुत बंद थी उसकी लकीर मे कोई इजाफा नहीं हुआ.
उसकी चिकनी गोरी साफ सुथरी कामुक चुत मिश्रा के थूक से भीगी अपनी छटा बिखेर रही थी.
मिश्रा एकटक उस अद्भुत करिश्मे को देखे जा रहा था,कोई अनाड़ी आदमी होता तो पक्का उसके दिल कि धड़कने रुक जाती.
अनुश्री से ये दृश्य नहीं देखा गया,उसके माथे पे पसीने कि बुँदे उभर आई,वो शर्म से गड़े जा रही थी..गाउन के अंदर मिश्रा जो कर रहा था वो ठीक था लेकिन इस तरह खुल्ले मे "नहीं.....ननणणन...नहीं.." अनुश्री ने अपने पैरों को वापस समेट लेना चाहा लेकिन नाकामयाब रही.
स्त्री को पर्दे मे सब जायज लगता है, बस पर्दा उठने का ही भय होता है.
मिश्रा ने मजबूती से उसके पैरों को अलग अलग दिशा मे थाम रखा था,ऐसा मौका फिर नहीं आने का था....
"अभी नहीं...तो कभी नहीं " मिश्रा चुत के वशीकरण से बहार आया और दे मारा अपना मुँह अनुश्री कि जांघो के बीच.
"आअह्ह्हब्ब....उउउग.....आउच....नहीं " मिश्रा के होंठ अनुश्री कि चुत के पतले होंठो से जा मिले.
अनुश्री कि कमर बीच से ऊपर को उठ गई,स्तन किसी मशीन कि तरह ऊपर नीचे होने लगे
"आअह्ह्ह.....ऐसा सुकून ऐसा मजा " अनुश्री को आज पहली बार चुत चाटवाने का सुख प्राप्त हो रहा था
बस मे जो बंगाली बूढ़ो का ज्ञान मिला था वो गलत नहीं था, काम कला दूसरे को सुख देने का ही नाम है जिसे आज अनुश्री समझ रही थी.
मिश्रा के होंठ लगातार अनुश्री कि चुत को पकड़ पकड़ के खिंचने लगे.
हर एक खिचाव के साथ अनुश्री अपनी कमर को ऊपर उछाल देती.
ना जाने कब अनुश्री का हाथ मिश्रा के सर पे आ लगा, मिश्रा अपने सर पे अनुश्री कि हथेली के दबाव को महसूस कर रहा था,
मिश्रा ने भी अनुश्री के पैरो को छोड़ दिया था,जादू देखिये अनुश्री के पैर बंद नहीं हुए वैसे ही हवा मे खुले के खुले ही रह गए.
अनुश्री शर्म का पर्दा गिरा चुकी थी,उसकी नाभि के नीचे कुछ हलचल मचने लगी,वो गर्म ज्वालामुखी फिर से बहार आने को मचलने लगा.
अब अनुश्री ये मौका नहीं गवाना चाहती थी उसके हाथ मिश्रा के सर को अपनी चुत पे दबाने लगे,भींचने लगे
जैसे वो मिश्रा को अंदर ही डाल लेना चाहती हो.
मिश्रा को भी समझते देर ना लगी कि मिश्रा कि जीभ बहार आ गई
पैर खुले होने कि वजह से मिश्रा कि कोशिश रंग लाई उसकी जबान का आगे का हिस्सा अनुश्री कि योनि मे जा धसा.
"आआहहहहहह........मिश्रा " अनुश्री के मुँह से चित्कार निकल गई.
परन्तु मिश्रा रुका नहीं लगातार उसी महीन छेद मे जीभ का प्रहार करने लगा.
लपालप करता कभी अनुश्री कि चुत को चाटता तो कभी कुरेदता.
"आआआह्हः.....उग्ग......अंदर.....जोर...से...आअह्ह्ह...."अनुश्री बस सिसक रही थी क्या बोल रही थी पता नहीं
कमर उठी हुई थी,सर पीछे गिरा हुआ था
आखिर कब तक सहन करती दिन भर से वो इसी आग मे जल रही थी.
नीचे चुत चाटते मिश्रा को अचानक से मटर के दाने जैसा कुछ नजर आ गया, कामविभोर मिश्रा ने उसे मुँह मे भरा ही था कि...
"आअह्ह्हभ...मिश्रा....फच...फच...फाचक....अनुश्री कि चुत से तरल चिपचीपा गाड़ा पदार्थ मिश्रा के चेहरे से जा टकराया.
"आआआहहहह.......हमफ्फग...उमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ उफ्फ्फ....आऊंच एक के बाद एक तेज़ धार मिश्रा के चेहरे जा जा टकराई.
मिश्रा मुँह खोले उस अमृत को पीए जा रहा था,गटके जा रहा था.
अनुश्री कि चुत जैसे आज बेकाबू थी इतना पानी कभी निकला ही नहीं था जैसे कि पेशाब ही कर दिया हो.
आआहब्बब....हमफ़्फ़्फ़..हमफ्फग्ग सब कुछ शांत हो गया था.
बस दिल कि धड़कनो और सांस खींचने कि आवाज़ आ रही थी.
ऐसा असीम आनंद,ऐसा कामुक अहसास अनुश्री ने जिंदगी मे पहली बार पाया,आज़ वो अपनी कामुकता के पहले पायदान को पार कर चुकी थी.
अनुश्री का बदन अब ठंडा पड़ गया, सारी गर्मी चुत के रास्ते निकल गई थी,
ऐसा लगता था जैसे बरसो से बीमार थी आज सुकून मिला है, बदन कि आग ठंडी होते ही मानो अनुश्री को होश आया हो वो आंखे खोले चारो तरफ देख रही थी जैसे पूछ रही हो मै यहाँ कैसे आई?
सामने उसकी नजर जैसे ही मिश्रा पे पड़ी वो दंग रह गई,मिश्रा का पूरा मुँह सीना कपडे सब कुछ किसी गाड़े से चिपचिपे पानी से सना हुआ था
"कैसा लगा मैडम कहाँ था ना चुत चाट के ही ठंडा कर दूंगा " मिश्रा ने जैसे अहसान जताया हो.
"वो....वो.....मै...मै.....जाती हू." अनुश्री इसके अलावा कुछ बोल ही ना सकी तुरंत खड़ी हो गई
मिश्रा कि हालत देख उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसने एक मर्द कि ये हालत बनाई है.
सर झुकाये अनुश्री आगे दरवाजे कि ओर बढ़ गई.
"मैडम आपकी कच्छी?" मिश्रा ने पीछे से आवाज़ दि
अनुश्री पलटी तो मिश्रा हाथ मे अनुश्री कि चुत रस से सनी पैंटी लिए खड़ा था
"इसे तुम ही रख लो,तुम्हारा गिफ्ट " अनुश्री पलट गई पल भर मे ही अपने रूम के दरवाजे तक पहुंच गई
जहाँ उसे रसोई जाते वक़्त ऐसा लगा कि मीलो का रेगिस्तान से भरा सफरतय किया है वही वापस आते वक़्त उसका बदन इतना हल्का हो गया मानो उड़ के आई हो.
उसके चेहरे पे एक अजीब मुस्कान थी.
आज वो खुद से अपनी पैंटी गिफ्ट कर के आई थी,करती भी क्यों ना मिश्रा ने उसे वो सुख दिया था जिस से वो आज तक वंचित थी.
अनुश्री के कमरे का दरवाजा बंद होता चला गया.
समुन्दरी हवा के थपेड़े दरवाजे पे बदस्तूर जारी थे.
नीचे रसोई मे मिश्रा उस पैंटी को पकडे खड़ा था उसे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि आज वो इतना बडा काम कर गया.
"वाह....मिश्रा जी मान गए तुम्हे " अचनाक आवाज़ से चौंक के मिश्रा पलटा
"आओ अब्दुल मियाँ आओ " पहके जरा खैनी बनाओ
दोनों के चेहरे मे मुस्कान थी.
क्या अनुश्री पूरी तरह से बगावत पे आ चुकी है?
बने रहिये....कथा जारी है