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Erotica मेरी बीवी अनुश्री

आपकी पसंदीदा कौन है?

  • अनुश्री

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  • रेखा

    Votes: 44 16.4%
  • अंब्दुल

    Votes: 57 21.3%
  • मिश्रा

    Votes: 18 6.7%
  • चाटर्जी -मुख़र्जी

    Votes: 28 10.4%
  • फारुख

    Votes: 12 4.5%

  • Total voters
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Rishiii

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Writerji u already gave us 2 updates but plz plz plz give next updat asap , jyada wait mat karana apne readers say ,
 
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andypndy

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Do ke sath ek free ho to or mza aayga kyuki garmi kuchh jyada h ab ek ke bas ki bat nhi h sabhalna
हाहाहाहा..... अनुश्री भूखी शेरनी मे बदल चुकी है 😝😉
 

andypndy

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Writerji u already gave us 2 updates but plz plz plz give next updat asap , jyada wait mat karana apne readers say ,
बिल्कुल दोस्त कोशिश करूंगा एक दो दिन मे ही दे दू टापू वाले सीन का पूरा अपडेट
 

SKT68

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Wah kya khud update diya hai writer mahoday ne....aaye aur wapis tadapta chod kar gaye....itni shundar story telling kahi aur nahi padhi...please jaldi update dena ab intzar nahi hota
 
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अपडेट :-32

अनुश्री खड़ी सिर्फ देखती रही हज़ार सवाल उसके जहन मे कोंध रहे थे, उसका कलेजा किसी अनहोनी से कांप रहा था.
दोनों बंगाली बूढ़ो का उसके नजदीक खड़ा रहना कही ना कही उसके बदन मे खलबली मचा रहा था जो कल बस मे हुआ उसके बाद तो वो इन दोनों को देखना भी नहीं चाहती थी.
लेकिन ना जाने नियति को क्या मंजूर था.
"तो कल जा रही हो तुम बेटा " चाटर्जी ने बात करने के इरादे से कहा
लेकिन अनुश्री अभी भी वैसे ही खड़ी थी हाथ बांधे एकटक मंगेश के जाने कि दिशा मे
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"जिस काम के लिए यहाँ आई थी वो हुआ?" मुखर्जी भी शामिल हो गया
"कककक....कौनसा काम " मुखर्जी के सवाल ने अनुश्री के दिल को एक धक्का दिया
"तुम्हारा बच्चा नहीं है ना " चाटर्जी ने तपाक से सीधा और सच बोल दिया
सच्ची बात हर किसी को चुभती है अनुश्री को भी चुभी "मेरा....कककक....काम?"
"नननन...नहीं " बस इतना ही बोल पाई ना जाने अनुश्री को क्या हो जाता था इन बूढ़ो के सामने उसकी घिघी बंध जाया करती थी
आज भी वही हो रहा था.
उसे बात चीत बंद कर देनी थी
"तो क्यों जा रही हो फिर?" चाटर्जी कि सवाल ने फिर से प्रश्नचिन्ह पैदा कर दिया अनुश्री के खूबसूरत चेहरे पे
"हाँ....क्यों जा रही हू मै?"
"आई हो तो जवानी के दिनों को जी के जाती " दोनों बूढ़े वापस से अनुश्री के मन से खेल रहे थे.
कितने मझे हुए खिलाडी थे दोनों.
अनुश्री के विचार उस पे हावी होते जा रहे थे
"ऐसा कामुक जिस्म और जवानी हर किसी को नहीं मिलती बेटा "
अनुश्री भोचक्की सी चाटर्जी को देखती रही कैसे इतनी आसानी से कोई बात कह देते है ये लोग.
"सोच क्या रही हो बेटा चाटर्जी सही बोल रहा है ऐसा कातिलाना जिस्म पाने के लिए लोग शहीद हो गए,बढ़े बढ़े युद्ध हो गए मात्र तुम जैसी स्त्री को भोगने के लिए,और तुम हो कि जाना चाहती हो " मुखर्जी ने जलती आग मे घी डाल दिया
अनुश्री अपने जिस्म और जवानी कि तारीफ सुन फुले नहीं समा रही थी उसकी छातिया अपनी प्रसंसा सुन कुछ ज्यादा ही उभर आई थी
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साड़ी के ऊपर से इन उभरो को साफ देखा जा सकता था,इन्ही उभार और जवानी पे तो फ़िदा थे बूढ़े.
"लल्ल....लेकिन "अनुश्री हड़बड़ाई
"क्या लेकिन बेटा?तुम्हे अपनी सारी हिचक त्याग देनी चाहिए "
चाटर्जी पास आ चूका था उसके हाथ ने अनुश्री के कंधो को थाम लिया.
जैसे सहानुभूति दे रहा हो.
"मममम...मै....मंगेश को धोखा नहीं दे सकती " ना जाने क्यों अनुश्री बोल पड़ी
इन बूढ़ो मे ना जाने क्या जादू था कि अनुश्री उनके सामने पिघल सी जाती थी
"हाहाहाहाहाहा......अनु बेटा बस इतनी सी बात " मुखर्जी भी अनुश्री के नजदीक आ चूका था.
"कैसा धोखा....तुम जैसी जवान और कामुक स्त्री को ये सोच शोभा नहीं देती"
"अब तुम.खुद सोचो अभी इस जवान जिस्म से नहीं खेलोगी तो कब खेलोगी? हमारी तरह बूढी हो जाओगी तब "
अनुश्री बीच मे खड़ी जीवन का सबसे बड़ा ज्ञान प्राप्त कर रही थी,कभी दाये तरफ के कान मे शब्द पड़ते तो कभी बाये कान मे.
अनुश्री सर झुकाये सिर्फ सुने जा रही थी, पिघल रही थी एक एक निश्चय,कसमे वादों पे बंगलियों के शब्द रूपी हाथोड़े पड़ रहे थे.
" अब तुम ही बताओ घर मे उगे केले छोटे और बेस्वाद हो तो क्या हम बाजार से केले नहीं लेते?" मुखर्जी ने सीधा सा सवाल दागा
"हहहह...हाँ...." अनुश्री सिर्फ हां कर पाई
"तो यही तो है तुम्हारी दुविधा का समाधान, जब तुम्हारा पति तुम्हारी जवानी को भोग ही नहीं सकता तो कभी कभी बाहर से मजा कर लेने मे कोई धोखा नहीं होता "
चाटर्जी ने एक और दलील पेश कर दि
"लललल....लेकिन मै मंगेश से प्यार करती हू " अनुश्री का जवाब साफ सुथरा और सच्चा था, लेकिन वो बूढ़ो कि दोर्थी शब्दों को भी समझ रही थी फिर भी उनका उत्तर दिये जा रही थी,
जैसे वाकई वो लोग उसके गुरु हो.

चाटर्जी -"लो ये तो और भी अच्छी बात है ना, अब घर के केले बेस्वाद हो तो उसे उखाड़ थोड़ी ना फेंकते है उसे अपनी ही जगह रहने दो "
मुखर्जी -"वैसे भी प्यार और सम्भोग दो अलग अलग चीज है जरुरी नहीं कि जहाँ प्यार हो वहाँ सम्भोग भी हो, और जहाँ सम्भोग हो वहाँ प्यार भी हो"
चाटर्जी :- तुम जैसी गद्दाराई यौवन से भरपूर स्त्री यदि अपने जिस्म का इस्तेमाल ही ना करे तो जिसने तुम्हे बनाया है वो उसकी तोहिन है, भगवान कि तोहिन कर रही हो तुम अनु बेटा "
अनुश्री एकदम से सकपका गई "नहीं...नहीं...मै भगवान कि तोहिन कैसे कर सकती हू "
मुखर्जी :- ऐसा हुस्न हर स्त्री को नहीं मिलता अनु बेटा इसे व्यर्थ मत करो खुल के जियो,प्यार तो वही है अपनी जगह देखो आ रहा है तुम्हारा प्यार,उसे से प्यार है ना तुम्हे?
सामने से मंगेश चला आ रहा था हाथ मे टिकट लिए हाथ हिलाता,"आए...हहहह...हाँ मंगेश से ही प्यार है "
अनुश्री कि बांन्छे खिल गई मंगेश को आता देख
"लेकिन वो तुम्हारी काम इच्छा पूरी नहीं कर सकता अनु बेटा, तुम खुद जानती हो वो कितना ही प्यार कर ले लेकिन तुम्हारे गर्म जिस्म को नहीं भोग सकता " चाटर्जी ने बम फोड़ दिया
अनुश्री के चेहरे कि मुस्कुराहट एक पल मे ही गायब हो गई. उसकी आँखों मे सुनापन तैर गया " खाली आँखों से सिर्फ चाटर्जी को देखती रही
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"कैसे जानते है ये लोग इतना कुछ "
उसके समझ से सब कुछ परे था,उसके जहन मे सिर्फ प्यार और सम्भोग दो शब्द जोर जोर से टक्कर मार रहे थे
"धन्यवाद अंकल टिकट मिल गए " मंगेश पास आ चूका था
"चले अनु " मंगेश ने अनुश्री का हाथ पकड़ आगे बढ़ाया
अनुश्री किसी यँत्र चलित गुड़िया कि तरह भाव शून्य आगे बढ़ गई, उसे मंगेश कि छुवन मे ऐसी कोई गर्माहट महसूस नहीं हो रही थी जो थोड़ी देर पहले चाटर्जी के छूने पे हुई थी.
वो सिर्फ आस पास के सुंदर नज़ारे को निहार रही थी.
"देखा मंगेश बेटा कितना सुन्दर नजारा है " पीछे पीछे चलते चाटर्जी ने बोला लेकिन निगाह अनुश्री के कुल्हो पे ही टिकी हुई थी जो हवा मे लहरा रहे थे या यु कहिए कि थरथरा रहे थे.
"हाँ अंकल वाकई खूबसूरत नजारा है " मंगेश ने बिना पीछे मुडे ही बोला
"फिर भी कुछ लोग इस खूबसूरती को नजरअंदाज़ कर देते है " चाटर्जी का काटक्ष अनुश्री पे ही था जिसे वो भली भांति समझ भी रही थी, लेकिन सिर्फ चले जा रही थी
"चाटर्जी मे तो कहता हू जवान लोगो को तो जम के जीना चाहिए ऐसे मौसम को " मुखर्जी ने भी एक कटाक्ष दे मार
बंगलियों के एक एक शब्द किसी तीर कि तरह अनुश्री के कलेजे पे घाव कर रहे थे,उसके निश्चय को किसी रेत रूपी महल कि तरह गिरा रहे थे
चलते चलते सामने झील किनारे एक बोट खड़ी थी, बड़ा ही अद्भुत नजारा था.
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"Wow" सभी के मुँह से एक साथ इस दृश्य को देख निकल पड़ा,अनुश्री भी रोमांचित हो उठी थी,वो कैसे जा रही थी इस खूबसूरत नज़ारे को छोड़ के "वाकई अंकलस कि बात ठीक थी ऐसी खूबसूरती,ऐसा नजारा बार बार देखने को नहीं मिलता "
बोट खचाखच भरी हुई थी, लास्ट बोट थी तो उम्मीद भी यही थी, "किस्मत अच्छी थी जान जो टिकट मिल गया " मंगेश खुद कि किस्मत पे नाज कर रहा था इधर अनुश्री का मन इस भीड़ को देख के फिर किसी अनहोनी से अशांकित होने लगा था.
"मंगेश भीड़ कितनी है,चलते है ना वापस देख तो लिया " अनुश्री ने एक अंतिम गुहार लगाई
"कैसी बात करती हो जान इतनी मुश्किल से मिला है टिकट, घूम आते है अब " मंगेश का मन तो इस लुभावने दृश्य ने मोह लिया था इस सम्मोहन के पीछे मंगेश वो नहीं देख पा रहा था जो अनुश्री देख रही थी
अनुश्री वापस से ऐसे किसी अवसर मे नहीं फसना चाह रही थी.
"चलो भाई जल्दी चलो शाम होने से पहले लौटना भी है मौसम का भरोसा नहीं " नाव का चालक चिल्ला के सभी यात्रियों को सम्बोधित कर रहा था
चालक का बोलना ही था कि दोनों बंगाली धड़ल्ले से बोट पे सवार हो गए बिना किसी कि परवाह किये, इधर उधर देखने पे सबसे पीछे एक खाली सीट दिखाई दि, देखते ही दोनों बूढ़ो ने दौड़ लगा के कब्ज़ा कर लिया.
"उफ्फ्फ्फ़....चाटर्जी साला यही एक सीट दिखी " मुखर्जी और चाटर्जी दोनों ही जम चुके थे
पीछे राजेश मंगेश भी चढ़ गए थे,अनुश्री साड़ी पहने होने कि वजह से चढ़ नहीं पा रही थी,
"लाओ हाथ पकड़ो अनु चढ़ जाओ " मंगेश ने हाथ ही बढ़ाया था कि
"मैडम जल्दी चढ़िए ना हमका अपनी दुकान पा पहुंचना जरुरी बा " एक अधेड़ उम्र का मैली धोती कुर्ता पहने आदमी लगभग अनुश्री को धकेलता हुआ अंदर चढ़ा दिया

"आअह्ह्हब.....आउच..." अनुश्री के मुँह से एक आह सी निकली वजह वो अधेड़ ही था जो अनजाने मे ही सही लेकिन अनुश्री कि मदमस्त बड़ी गांड को भींचता हुआ अंदर धकेल लाया था

"ये..ये...क्या बदता...जी." अनुश्री अभी कुछ बोलती ही कि
"धन्यवाद काका आपने चढ़ाने मे हेल्प कि " मंगेश ने उस देहाती मैले कुचके बूढ़े को धन्यवाद कह दिया
बदले मे देहाती सिर्फ अपने पिले दाँत निकाल वही बोट कि जमीन पे पसर गया
अनुश्री तो अभी हक्की बक्की ही खड़ी थी उसकी गांड पे अभी अभी दो मजबूत खुर्दरे हाथो का कब्ज़ा था.
अनुश्री कभी जमीन पे बैठे बूढ़े को देखती तो कभी मंगेश को,
मंगेश को तो पता ही नहीं था कि वो जिस बात पे धन्यवाद बोल रहा है वो अनुश्री को किस कद्र चुभी थी
"ठररररररररर.......थर..ररररर.....सससऊऊऊऊ...." बोट स्टार्ट हो गई और झटके से सफर पे निकल पड़ी
"भैया यहाँ तो जगह ही नहीं है" राजेश ने चारो तरफ गर्दन घुमाते हुए कहा
"हाँ यार ये तो वाकई पूरी भरी हुई है " मंगेश ने भी सहमतई जता दि.
"इहा बैठ जाओ भैया लोग साफ ही तो है " नीचे बैठे देहाती ने आवाज़ लगाई
तीनो कि नजर एक साथ उस तरफ गई
अनुश्री का तो घृणा से ही मन भर आया वो इतनी सुन्दर महँगी साड़ी पहन के यहाँ नीचे बैठेगी "मुझे नहीं बैठना यहाँ मंगेश "
अभी मंगेश कुछ जवाब देता ही कि "उडी बाबा मोंगेश यहाँ एक आदमी कि जोगाह है आ जाओ " बोट के सबसे पीछे कि सीट पे बैठे चाटर्जी ने आवाज़ लगाई
मंगेश को परेशानी का हल मिल गया " धन्यवाद अंकल आप हमेशा मदद करते है,जाओ अनुश्री तुम चली जाओ "
अनुश्री को ये सुनना ही था कि उसकी तो सांस ही उखड़ गई, बस इसी अनहोनी कि तो आशंका थी उसे "ममममम....मै?"
"तो और कौन तुम नीचे भी नहीं बैठ सकती तो वही चली जाओ " मंगेश ने जैसे टोंट मारी हो
"नंनम....नहीं मै नहीं जाउंगी " अनुश्री कि घिघी बंध गई,उसे वही बस का सफर याद आ गया कैसे वो उन बूढ़ो कि बातो मे पिघल गई थी
बस का सफर याद आते अनुश्री का जिस्म कांप गया,हज़ारो चीटिया एक साथ रेंग गई, नंगे हाथो पे रोंगटे खड़े हो गए.
"क्यों क्या हुआ? बस मे भी वही उनके साथ बैठी थी कितने अच्छे तो लोग है वो " मंगेश ने अनुश्री का हौसला बड़ा दिया
वो खुद अनजाने मे ही अपनी बीवी को हवस के समुन्द्र मे धक्का दे रहा था.
"मममम...मै...." अनुश्री कि तो आवाज़ भी नहीं निकल रही थी.
"मीमयाना बंद करो.... यहाँ क्या खड़ी रहोगी सब लोग हमें ही देख रहे है "
मंगेश ने इस बार अपनी बात ले जोर दिया
अनुश्री ने भी इधर उधर गर्दन उठा के देखा सबकी नजर उस पे ही थी "थ.....ठीक है..."
अनुश्री ने अपने धड़कते दिल को काबू किया और चल पड़ी पिछली सीट पे,

"फिर से नहीं....नहीं इस बार नहीं " अनुश्री खुद को संभाल रही थी परन्तु उसके जहन मे बस वाला दृश्य ही दौड़ रहा था,ना जाने कैसी कश्मकश थी.
"आओ अनु बेटा बैठो " चाटर्जी और मुखर्जी दोनों अलग अलग खिसक गए,बीच मे थोड़ी सी जगह बन गई
अमूमन वो सिर्फ दो लोगो कि ही जगह थी,एक लकड़ी का तख्ता ही था जिस पे दोनों दो तरफ खसक गए.
अनुश्री को जैसे झटका लगा,वो अपने ख्याल से बाहर आई,सामने थोड़ी सी जगह थी " यहाँ तो जगह ही नहीं है?"
"इतनी तो जगह है बेटा आओ "चाटर्जी थोड़ा और साइड दब गया
"बैठो तो सही जगह तो बन जाएगी " मुखर्जी भी थोड़ा सा हिला जैसे जगह बना रहा हो लेकिन जगह उतनी कि उतनी ही रही.
"उफ्फ्फ्फ़......" अनुश्री पीछे को घूम गई उसकी बड़ी मोटी गांड दोनों बूढ़ो के सामने थी
दोनों के मुँह खुले के कहके रह गए साड़ी मे और भी ज्यादा कयामत लग रही थी वो पहाड़िया.
अनुश्री अपनी मादक गांड को नीचे झुकाती चली गई, हाथ से पकडे का कोई सपोर्ट भी नहीं था,
कि तभी तेज़ हवा और बोट के धक्के से अनुश्री का संतुलन बिगड गया,अनुश्री गिरने को ही थी कि उसने अपने दोनों हाथ नीचे टिका दिये और धमममम.....से दोनों बूढ़ो के बीच जा बैठी...बैठी क्या फस गई.
"आआहहब्ब.....अनु " दोनों बूढ़ो के मुँह से एक साथ चीख सी निकल गई
अनुश्री को कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ...कि तभी उसे अपने हाथ किसी गुदगुदी चीज पे महसूस हुए.
अनुश्री ने जैसे ही होने हाथो पे गौर किया उसकी सांसे थम गई,हवा टाइट हो गई...उसने पाया कि उसके हाथ दोनों बूढ़ो कि जांघो के बीच धसे हुए है और जो गुदगुदी चीज उसके हाथ को छू रही है वो वही लंड है जिसे उसने बस मे जम के चूसा था.
"अनु बेटा हाथ तो हटा,काचूमर निकाल दिया " चाटर्जी दर्द से बिलबिला गया
"ससस....सोरी...अंकल.वो...वो....मै गिरने लगी थी " अनुश्री ने झट से अपने हाथ समेट लिए
उसका दिल किसी ट्रैन कि तरह ढाड़ ढाड़ चल रहा था अनजाने मे ही सही उसने फिर से उस चीज को छू लिया था जो उसकी कमजोरी थी,पसीने कि लकीर उसके माथे मे दौड़ पड़ी.
"अनु ये प्यार से सहलाने कि चीज है जैसे बस मे सहलाया था,तुमने तो आज मार ही डाला " मुखर्जी आपदा मे भी अवसर तलाश रहा था
"वो...वो...मै सॉरी अंकल जान के नहीं किया " अनुश्री ने सफाई पेश कि लेकि मुखर्जी के शब्द उसे किसी तीर कि तरह जा लगे ये जैसे बस मे प्यार किया था.
एक पल मे ही वो नजारा उसकी आँखों के सामने आ गया जब वो इन बूढ़ो के लोड़ो को चूस रही थी वो भी पुरे मन से.
अनुश्री कि सांसे गरमानें लगी, वही गर्म अहसास,वही तड़प का अहसास, वही छुवन सबनकुछ तो वही था जिसे छोड़ के जाना चाहती थी.

"कोई बात नहीं अनु बेटा होता है " दोनों बंगाली नार्मल हो चले थे
बाहर आसमान मे हलके हलके बादल छा रहे थे,सुरज डूबने को आतुर लग रहा था.
"Wow.....वो देखो डॉल्फिन " चाटर्जी ने बाहर को तरह इशारा किया
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बाहर तीन डॉल्फिन गोते लगा रही थी
"Wow कितना अच्छा नजारा है " अनुश्री भी कायल हो गई इस खूबसूरती कि
एक डॉल्फिन आगे आगे थी बाकि दो पीछे पीछे
"जानती हो अनु बेटा ये डॉल्फिन इंसानों के बाद सबसे ज्यादा समझदार होती है " चाटर्जी ने बात आगे बड़ाई
"हहहमममम....अंकल "अनुश्री तो सिर्फ इस मन मोहक नज़ारे मे डूबी हुई थी
"जानती हो आगे वाली लड़की है और पीछे वाले दो लड़के उसकी जवानी का लुत्फ़ उठाने को पीछे लगे है " मुखर्जी साफ साफ अपने मन कि बात कब गया
"कककक....क्या?" अनुश्री हकला गई उनकी बात सुन
"हाँ सच मे मैंने पढ़ा है ऐसे मौसम मे ये लोग सम्भोग का आनंद उठाते है"
"लल्ल....लेकिन दो दो " अनुश्री ना जाने किस वेग मे ऐसा बोल गई तुरंत दांतो तले अपनी जबान दबा ली.
"दो क्या....? वो हम इंसान जैसे नहीं है जो किसी बंधन,रिवाज़ मे बंधे हो,वो अपना जीवन जीते है, सम्भोग तो जीवन कि सच्चाई है, इस से भागना नहीं चाहिए,जो भागता है जिंदगी भर पछताता है, काम मे कोई ऊंच नीच,जात पात, छोटा बड़ा नहीं होता,बस आत्मसंतुष्टि होती है उसी कि प्राप्ति के लिए मादा अपना जीवन जीती है ना मिले तो कभी ख़ुश नहीं रह पाती,
जैसे तुम भाग रही हो बिना अपनी जवानी को जिए,ऐसी जवानी ऐसा बदन किस काम का, जो किसी को भोगने को ही मिले,
तुम्हे क्या मिलेगा जिंदगी भर का पछतावा,दुख, नाउम्मीद,
देखो उन डॉल्फिनस को कैसे मस्त खुले समुद्र मे अपने यौवन का आनंद उठा रही है, ना किसी के देखने कि फ़िक्र ना आत्मगीलानी का पता सिर्फ अपने मदमस्त यौवन को जीने का आनंद पा रही है"
मुखर्जी ने बड़ी चालाकी से डॉल्फिन कि बात अनुश्री कि तरफ मोड़ दि.
अनुश्री किसी मूर्ति कि तरह जड़ हो गई, उसके सामने अंधेरा छा गया, सामने कुछ नहीं था सिर्फ वो नग्न अवस्था मे हाथ जोड़े बैठी थी सामने दोनों बंगाली बूढ़े पूर्ण नंगे खड़े उसे उपदेश दे रहे थे, कि अचानक वो मस्ती मे खिलखिलाती उठी और दौड़ चली पीछे पीछे दोनों बूढ़े उसकी जवानी को एक बार पीने के लिए उसके पीछे दौड़ रहे है

"आआहहहह... कितना सुखद अहसास है ये किसी को अपने जिस्म.के.लिए पागल देखना,जैसे कोई भवरा किसी फूल के पीछे पड़ा हो, अनुश्री भाग रही थी कि एकाएक रुक गई,उसकी सांसे उतर चढ़ रही थी,दोनों बूढ़े भागते हुए उसके सामने घुटने टेक दिये....और एक एक हाथ उसकी चिकनी नंगी टांगो पे रख दिया,कड़क खुर्दरे हाथ
"आआआहहहह....अंकल " अनुश्री के मुँह से आह निकल गई उसकी पैंटी ने बारिश कि पहली बून्द को महसूस किया
"अनु....अनु...बेटा क्या हुआ "
"क्या हुआ....?"
अनुश्री के कानो मे आवाज़ पड़ते ही जैसे वो होश मे आई, डॉल्फिन तो कबकी जा चुकी थी,
उसकी जांघो पे साड़ी के ऊपर से ही चाटर्जी मुखर्जी के ह
हाथ टिके हुए थे.
"कककया हुआ....अनु बेटा?"
"कककम.....कुछ नननन..नहीं " अनुश्री अपने ख्यालो से बाहर आ गई थी मुखर्जी के काम ज्ञान मे वो इस कद्र डूब गई थी कि उसे आभास ही नहीं था कि वो कहाँ है क्या कर रही है.
लेकिन दोनों बंगाली बूढ़े समझ गए थे कि उन्हें क्या करना है उनका अनुभव उनके साथ था
एक बार फिर अनुश्री उनकी वासना भरी बातो मे पिघलती जा रही थी
अनुश्री अपनी जाँघे आपस मे बुरी तरह से भींचे हुई थी जैसे किसी चीज को बाहर निकलने से रोकना चाहती हो
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"आआहहहह....आउच अंकल " अनुश्री बस इतना ही कर सकती थी
दोनों के कड़क हाथ लगातर अनुश्री कि चिकनी जाँघ को साड़ी के ऊपर से सहला रहे थे,इस छुवन से अनुश्री के रोंगटे खड़े हो जा रहे थे रहा सहा काम बाहर से आती ठंडी हवा पूरा कर दे रही थी
अनुश्री फिर से बेकाबू होने लगी थी वो किसी सम्मोहन जाल मे फांसी मछली कि तरह थी जाल से निकल नहीं सकती थी बस तड़प रही थी
"अपनी जवानी को जियो,खुल के जियो अनु,ऐसे मौके फिर नहीं आते " चाटर्जी ने ऐसा बोलते हुए अपना हाथ थोड़ा और ऊपर को खिंच लिया
"आआहहब्ब......अंकल "अनुश्री के पैर अभी भी आपस मे कसे हुए थे,वो उन दोनों के बीच बुरी तरह से फांसी हुई थी इतना कि उसके स्तन दोनों कि बाहों से टकरा रहे थे.
"सससससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़.....आअह्ह्ह....क्या खुसबू है अनु तेरे जिस्म कि " मुखर्जी ने एक लम्बी सांस भरते हुए कहाँ
अनुश्री के लिए ये तारीफ कोई नयी नहीं थी मिश्रा अब्दुल से पहले भी सुन चुकी थी, बस ये ख्याल आते ही ना जाने क्यों और कैसे उसने अपनी एक बाह को ऊपर उठा अपने कंधे पे रख लिया
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ना जाने इतनी समझ कैसे आ गई थी अनुश्री मे
अनुश्री के बाह उठाते ही उसकी गोरी सुन्दर बालरहित कांख मुखर्जी के सामने उजागर हो गई.
बस इसी का तो इंतज़ार था,मुखर्जी ने आव देखा ना ताव अपनी गर्म जबान को सीधा अनुश्री कि पसीना छोड़ती कांख मे जा घुसाया
"इस्स्स......आहहहब.....नहीं...अंकल " अनुश्री का सर पीछे को झूम गया, मुँह खुला का खुला रह गया,आंखे बंद हो चली,टांगे खुलती चली गई
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मुखर्जी तो जैसे पागल ही हो गया वो लगातार अनुश्री कि कांख को सूंघता,चाटता चला जा रहा था लप लप लप.....करता
"आआहहहह.....अनु ऐसे ही जवानी को लूटना चाहिए " चाटर्जी ने भी मौके को भाँपते हुए अपना हाथ अनुश्री कि जांघो के बीच घुसेड़ दिया
दो तरफ़ा हमला अनुश्री झेल ना सकी....

"आआह्हबबबब......अंकल " ना जाने क्या हुआ कि अनुश्री ने एका एक अपनी जांघो को आपस मे भींच लिया और अपने हाथ को नीचे कर दिया
कांख मे मुखर्जी का सर दबा हुआ था तो जांघो के बीच चाटर्जी का हाथ.
"ककककईईरररर.....यात्रिगण ध्यान दे सामने टापू है वहाँ चाय नाश्ते के लिए 10 मिनट रुकेंगे फिर वापस चलेंगे मौसम कभी भी बिगड़ने वाला है

अचानक अनाउसमेंट से सभी का ध्यान भंग हुआ.
अनुश्री तो जैसे किसी सपने से जागी हो, उसका दिल धाड़ धाड़ करता ब्लाउज फाड़ने को आतुर था.
उसके हाथ और जांघो कि पकड़ ढीली होती चली गई.
"आआहहहह....हुम्म्मफ्फफ्फ्फ़....हुम्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़...." दोनों बूढ़े जैसे किसी शेरनी के चुनगल से आज़ाद हुए हो इस कदर हांफ रहे थे.
उनकी सांसे थमने का नाम ही नहीं ले रही थी

अनुश्री को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या कर रही थी अभी उसने अपने जिस्म.मे दो बूढ़ो को भींच रखा था,इस कद्र कि ये अनाउंसमेंट ना होता तो शायद उन बूढ़ो कि जान ही ले लेती
बूढ़ो का कामज्ञान उनपे ही भरी पड़ गया था.
बोट किनारे जा लगी.
सभी यात्री चाय नाश्ते और फ्रेश होने के लिए उतरने लगे थे.
"तुमने जान ही ले ली थी आज अनु " दोनों बूढ़े भी आगे बढ़ गए थे पीछे रह गई थी शून्य मे डूबी अनुश्री.


क्या होगा टापू पे? अनुश्री को इस काम ज्ञान का लाभ मिलेगा?
बने रहिये कथा जारी है....
Wah wah wah lekhak sahab kya likha hai tarif k liye sabhd hi nahi h mere pas.
Kisi ladki ko kya khub bayan kiya hai
Is kahani ko pd Aisa feel hota h, jaise ek
Ek drsy ankho k Samne ghat rha ho
 
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अपडेट -33

"भैया लोग पहले हमका उतरने दो भाई,हमरा दुकान मे कोई नहीं है साला सामान लाने के चक्कर ले लेट हो गइनी " वो अधेड़ उम्र का आदमी बोट से भीड़ को चिरता हुआ निकल भागा जा रहा था.
"आइयेगा भैया हमरे होटल पे चाय पीने, मांगीलाल का होटल " वो आदमी मंगेश को बोलता हुआ जा रहा था.
"जरूर आऊंगा "मंगेश ने अपने हमसफर को विदा किया.
"अनु...अनु....आओ उतरे " मंगेश ने पीछे बैठी अनुश्री को आवाज़ दि
अनुश्री अभी भी शून्य मे डूबी सांसे भर रही थी उसका तन और मन दोनों भारी हो चले थे.
"अनु क्या हुआ.....देखा तुमने डॉल्फिनस को?" मंगेश चलता हुआ अनुश्री के नजदीक आ गया
"अअअअअ...हनन...हाँ....देखा मैंने " अनुश्री होश मे आई सामने मंगेश था पूरी बोट खाली पड़ी थी
" आओ चलते है चाय नाश्ता कर के वॉयस निकलते है मौसम ख़राब होने वाला है " मंगेश और अनुश्री भी उतर गए.
अनुश्री के जगह ने हज़ारो विचार चल रहे थे "क्या हो जता है मुझे? क्यों खुद पे यकीन नहीं रहता?
लेकिन मै जवान हू अब नहीं तो कब?" अनुश्री अपने ही विचारों मे बहक रही थी उसे यौन सुख कि दरकार महसूस होने लगी.
"क्या हुआ अनु तुम्हे पसंद नहीं आ ये जगह?" मंगेश ने हाथ पकडे पूछा
"कितनी ठंडक है मंगेश कि छुवन मे " आ....हाँ आई ना पसंद
अनुश्री ने अपने विचारों को त्यागना ही बेहतर समझा "मंगेश मुझे टॉयलट आई है " अनुश्री को अपने जिस्म को हल्का करने का सबसे अच्छा तरीका यही सुझा.
उसकी जांघो के बीच जैसे कुछ अटका हुआ था,कुछ गरम सा लावा, वो उसे चैन से नहीं रहने दे रहा था.
"अभी?....बोट ज्यादा देर नहीं रुकेगी अनु देखो मौसम घिर आया है"
"नहीं मंगेश अभी जाना है " अनुश्री को कैसे भी हल्का होना था
"ठीक है जल्दी आना मै बोट मे ही मिलूंगा, चढ़ जाना जल्दी से " मंगेश ने उसे हिदायत दि
अनुश्री झट से एक कोने कि ओर बढ़ चली, आस पास काफ़ी लोग थे
अनुश्री को कुछ समझ आया कि तभी उसे एक पगडंडी दिखी जो दूर झाड़ियों के पीछे जा रही थी "ये ठीक रहेगा "
अनुश्री झट से उस पगडंडी पे चल पड़ी.
आसमान मे काले बादल छाने लगे थे,तेज़ हवा चल रही थी परन्तु इस भी ज्यादा तेज़ अनुश्री कि धड़कन चल रही थी जसे जल्द से जल्द आपने जिस्म को हल्का करना था.
पल भर मे ही अनुश्री टापू के दूसरी तरफ पहुंच गई जहाँ कोई आदमी नहीं था, अनुश्री झट से अपनी साड़ी उठा बैठ गई......
अनुश्री ने जोर लगाया लेकिन एक बून्द पेशाब भी नहीं निकला "उफ्फ्फफ्फ्फ़.....ये क्या हो रहा है?"
अनुश्री ने झुक के देखा दोनों टांगो के बीच उसकी चुत किसी पाँव रोटी कि तरह फूली हुई थी,
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उसे मिश्रा के साथ बिताई रात याद आ गई उस दिन भी कुछ ऐसा ही नजारा उसकी आँखों के सामने था वो खुद अपने बदन से आकर्षित होने लगी थी.
ना चाहते हुए भी उसका हाथ अपनी लकीर नुमा चुत ले जा टिका.....आआआहहहहह.....उफ्फ्फफ्फ्फ़......कितनी गर्म है "
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अनुश्री अपने ही जिस्म के सम्मोहन से घिरती जा रही थी
उधर हवा का दबाव तेज़ होता चला जा रहा था.
"यात्रीगण जल्दी चलिए,तूफान आने को है " बोट का चालक सबको एकत्रित करने मे लगा था
सभी लोग बोट कि तरफ बढ़ चले..
"भैया भाभी कहाँ है?" राजेश ने पूछा
"वो बोट पे आ गई होंगी अनाउंसमेंट सुन के,तुम जल्दी चलो "तेज़ हवाओं से के साथ मंगेश भी बोट मे जा चढ़ा.
इधर अनुश्री इन सब से दूर अपनी ही दुनिया मे मस्त अपनी काम लकीर को कुरेद रही थी,
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उसे जो सुख मिल रहा था वो किसी जन्नत से कम नहीं था,उसके जिस्म मे जो तूफान मचा रहा वो बाहर के तूफान से कही ज्यादा भयानक प्रतीत हो रहा था "आआआहहहह......आउच...." अनुश्री के हाथ लगातार अपनी चुत को सहला रहे थे,निकोट रहे थे....रह रह के वो अपनी चुत के फुले हुए हिस्से को दबा भी देती
तूफान जोर पकड़ रहा था "आआहहहहह.....उउउउफ्फफ्फ्फ़.....आअह्ह्हब... साआर्रर्रर्रर्फ...

..पिस्स्स्सस्स्स्स........करती पेशाब कि तेज़ धार उस काम रूपी लकीर से फुट पड़ी आखिर अनुश्री कि मेहनत रंग लाइ
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"आआहहब......उफ्फ्फ...." अनुश्री कि चुत से गर्म पेशाब कि धार निकले जा रही थी,उसकी जिस्म का तूफान पेशाब कि हर बून्द के साथ शांत होता जा रहा था तो वही बाहर का तूफान पल प्रति पल बढ़ता जा रहा था.
चुत से एक एक बून्द बाहर निकल चुकी थी "उफ्फफ्फ्फ़.....अब जा के कुछ ठीक लगा "
जैसे ही अनुश्री के जिस्म कि गर्मी शांत हुई उसे तेज़ हवाओं के थापेड़ो ने घेर लिए "हे...भगवान...ये...
.ये.....क्या?" अनुश्री झट से खड़ी हुई और लगभग दौड़ पड़ी किनारे कि ओर.
अभी ये कम ही था कि तेज़ पानी कि बौछार ने उसे घेर लिया.
साय साय....करती हवा चल रही थी साथ ही पानी कि बुँदे,तेज़ बूंदो के वार अनुश्री के ठन्डे जिस्म पे होने लगे.
अनुश्री कि साड़ी पूरी तरह भीग के उसके जिस्म से जा चिपकी.
अनुश्री कि हालत बिगड़ने लगी थी उसके मन कि आशंका सच होती दिख रही थी "कही कही......नहीं मंगेश मेरा इंतज़ार कर रहा होगा "
अनुश्री ने ताकत बटोर के किनारे कि तरफ दौड़ लगा दि
वो हांफ रही थी उसकी ताकत हवा पानी से लड़ते हुए खर्च ही गई,जैसे जैसे वो किनारे पहुंच रही थी वैसे वैसे उसकी उम्मीद और हिम्मत दोनों जवाब देते जा रहे थे.
"हम्म्म्मफ्फफ्फ्फ़......हम्म्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....ये नहीं ही सकता नहीं....नहीं..
." अनुश्री किनारे पे पहुंच चुकी थी, वहाँ कोई बोट नहीं थी ना ही मंगेश पूरा टापू वीरान था.
अनुश्री कि आंखे भर आई " मंगेश तुम कैसे जा सकते हो?"
नहीं.....नहीं.....नहीं.....मंगेश

अनुश्री कि हालत पागलो जैसी थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे आंखे आँसुओ से धुंधली हो चली...
तूफान जोरो पे था, ठन्डे पानी से भीगी अनुश्री निर्जन टापू पे अकेले खड़ी थी.
"हे भगवान....." अनुश्री नीचे गिरने को ही थी कि सामने उम्मीद कि किरण नजर आई.
एक झोपडी नुमा होटल, वही एक होटल आस पास खुला था.
अनुश्री अपनी सारी ताकत बटोर के उस होटल कि ओर दौड़ चली...जैसे जैसे पास जाती गई उसके सामने होटल का नाम आता गया.
"मांगीलाल का होटल "

अब क्या होगा अनुश्री का....?
बने रहिये कथा जारी है....
Gajab ek din me do uodate wah
Plot set ho chuka hai ab
Ghamasan ki teyari
 
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