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Erotica मेरी बीवी अनुश्री

आपकी पसंदीदा कौन है?

  • अनुश्री

    Votes: 193 72.0%
  • रेखा

    Votes: 44 16.4%
  • अंब्दुल

    Votes: 57 21.3%
  • मिश्रा

    Votes: 18 6.7%
  • चाटर्जी -मुख़र्जी

    Votes: 28 10.4%
  • फारुख

    Votes: 12 4.5%

  • Total voters
    268

malikarman

Well-Known Member
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158
हवाएं तेज़ गति से चल रही थी, आसमान बिल्कुल कला पड़ गया था.
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"भैया भाभी कही दिख नहीं रही बोट पे,चढ़ी तो थी ना?" राजेश ने कोतुहालवंश पूछा
"Aàअह्ह्ह..हाँ..हाँ...चढ़ी होगी भागमभाग मे मैंने ध्यान नहीं दिया था "मंगेश को भी अब फ़िक्र होने लगी थी गर्दन उठा के आस पास देख रहा था लेकिन अनुश्री कही नहीं थी.
उसका माथा पसीने से तर हो गया.
"हे भगवान...कही..कही....अनुश्री पीछे तो नहीं रह गई?" मंगेश कि शंका 100% जायज थी.
कि तभी एक जबरजस्त झटका लगा.. "उतरो भाई सब लोग जल्दी किनारा आ गया है, तूफान रुकेगा नहीं आज " नाव के चालक ने सभी को सम्बोधित किया.
सभी यात्री एक एक कर उतरने लगे....एक दो...तीन....दस...पंद्रह...नाव चालक बब्बन गिनती किये जा रहा था.
"अरे भाई तुम लोग भी उतरो अंदर क्यों बैठे हो " बब्बन लगभग चिल्लाते हुए बोला उसे भी अपनी नाव ठिकाने लगानी थी.
अंदर मंगेश को कही अनुश्री नहीं दिखाई दे रही थी पूरी बोट खाली हो चुकी थी....
मंगेश और राजेश भी बोट से उतर गए...दोनों के चेहरे पे हवाईया उडी हुई थी....चब्बीस....स्तट्ट....सत...सताइस ...गिनती गिनते गिनते बब्बन कि आवाज़ लड़खड़ाने लगी....
"ये...ये....ये....क्या बाकि कहाँ गए " बब्बन हैरान परेशान बोट के अंदर भागा,इधर उधर कूदने लगा लेकिन नतीजा वही उसके होश उड़ते जा रहे थे.
इधर मंगेश का दिल बैठा जा रहा था.
"बाकि...बाकि के तीन कहाँ गए " बब्बन चिल्लाया
"भाईसाहब लगता है हमारी भाभी पीछे टापू पे ही छूट गई है " राजेश ने बब्बन को कहाँ.
"ऐसे कैसे हो सकता है आज तक नहीं हुआ,कैसे लोग हो तुम?" बब्बन का गुस्सा सातवे आसमान पे था वो बरसो से बोट चलाता आया था लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ

"भाई मेरी बीवी पीछे रह गई है " मंगेश गिड़गिड़ाया
दो लोग और नहीं है,क्या वो भी तुम्हारे साथ थे?"
"नहीं....सिर्फ हम तीन ही लोग थे जिसमे से मेरी बीवी पीछे रह गई है " मंगेश कि दिल कि धड़कन उसका साथ छोड़ती महसूस होने लगी थी.
"भैया वो दो बंगाली बूढ़े भी नहीं दिख रहे है जो बोट मे पीछे बैठे थे " राजेश ने चौंकते हुए कहा.
"चलो भाई बब्बन वापस चलो,जीतना पैसा बनता हो वो ले लेना " मंगेश व्याकुल हो उठा

"मरना है क्या साहब आपको भी,ऐसे तूफान मे क्या कश्ती चलती है भला,एक तो आप लोगो ने मेरी इज़्ज़त पानी मे मिला दि कोई सुनेगा तो भला क्या मेरी बोट पे बैठेगा?" बब्बन नाराज था.
"तो क्या अपनी बीवी को मरने के लिए छोड़ दू वहाँ?" मंगेश भी चिल्लाया
"देखिये साहब आपकी बीवी और वो बंगाली बोट पे चढ़े ही नहीं,वो वही टापू पे ही होंगे. ये टूरिस्ट इलाका है कोई खतरा नहीं है बस तूफान हल्का होने दो फिर चलते है " बब्बन ने मंगेश और राजेश को दिलासा दिया
"आओ मेरे साथ पास ही मेरा ठिकाना है वही इंतज़ार करते है " बब्बन अपनी नाव का लंगर डाल आगे बढ़ चला

राजेश मंगेश भारी मन से पीछे पीछे चल दिये.
"भाभी ठीक होंगी भैया फ़िक्र ना करे " राजेश ने दिलासा दिया

तूफ़ान ओर जोर पकड़ रहा था.
यहाँ टापू पे भी अभी अभी एक तूफान आ के गुजरा था, अनुश्री का बदन कि गर्माहट कम होने का नाम नहीं ले रही थी.
चाय कि चुस्की भी इस आग के सामने फीकी ही थी.
ठण्ड तो कबकी खत्म हो चुकी थी, सामने मांगीलाल अपने हाथ आगे किये खड़ा था जैसे कुछ छुपा रहा हो.
"चाय तो अच्छी बानाई है बाबू मोशाय " चाटर्जी कि आवाज़ ने उसके कमरे मे मौजूद अजीब सन्नाटे को चिर दिया.
"जी...जी धन्यवाद साब " मांगीलाल झिझक के बोला उसकी आवाज़ मे एक कम्पन था.
"तुम्हे अच्छी नहीं अनु बेट " मुखर्जी ने धीरे से अनुश्री कि बाह मे हाथ रखते हुए कहा.
"ईईस्स्स्स......उफ्फ्फ..." ठंडा हाथ लगते ही अनुश्री सिहर उठी जैसे किसी ने गर्म तवे पर पानी के छींटे मारे हो.
अनुश्री कि सिसकारी ने मांगीलाल के रोंगटे खड़े कर दिये ऐसा नजारा ऐसी खूबसूरती उसे कभी नसीब ही नहीं हुई थी.
"बबबब.....बिटिया रानी तुम बहुत सुन्दर हो " आखिर मांगीलाल से राहा नहीं क्या अपने जज्बात उसने उडेल ही दिये.
"खो...खो.....खास...."अनुश्री को एकदम से खांसी आ गई उसकी चाय साड़ी पे गिर पढ़ी मुँह खुला रह गया.
चाटर्जी मुखर्जी भी एकटक मांगीलाल को ही देखते रहै गए यहाँ किसी को उम्मीद नहीं थी कि ऐसा कुछ होगा.
अनुश्री को तो कतई नहीं.
"कंम्म्म.....क्या कह रह हो काका " अनुश्री अचंभित थी आँखों मे गुस्सा उतर आया था
गुस्से से उसने मांगीलाल को घुरा
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"ममम....मैंने मैंने अभी देखा आप लोग क्या कर रहे थे " मांगीलाल को कोई परवाह नहीं हुई अनुश्री के गुस्से कि वो बेपरवाह बोलता गया.
ये सुनना ही था कि अनुश्री का चेहरा लज्जा से झुकता चला गया, उसने गलती कर दि थी कैसे वो किसी तीसरे आदमी के सामने बहक गई थी वो भी ऐसा आदमी जो उसके दादा कि उम्र का था.
"मैंने ऐसी सुंदरता कभी नहीं देखी बिटिया रानी, आज तुम्हे देख के मुझे कुछ कुछ हुआ आज जीवन मर पहली बार मेरा लंड खड़ा हुआ है " मांगीलाल जैसे कोई चैप्टर याद कर के आया था बोले जा रहा था ना जाने किस नशे मे था.
अनुश्री के तो होश उड़ गए थे उसे अपने कानो पे विश्वास ही नहीं हो रहा था, मांगीलाल ने सीधा ही लंड शब्द बोल दिया था
"लो देखो अनु एक और आदमी तुम्हारे हुश्न का शिकार हो गया " चाटर्जी ने चाय कि लास्ट चुस्की को खिंचते हुए कहा.
"क्यों भाई तुम्हारा लंड पहली बार कैसे खड़ा हुआ? कभी किसी को चोदा नहीं क्या?" मुखर्जी ने आश्चर्य से पूछा
अनुश्री का बदन कंपने लगा, उसके सामने ही तीन मर्द उसके के सामने ही सम्भोग कि बात कर रहे थे परन्तु इस शर्माहत लज्जात मे कही ना कही हवास का अंश भी था जो अनुश्री के कामुक बदन को झकझोर रहा था.
"सच कह रहा हूँ साहब मेरी शादी तो हुई थी,लेकिन सुहागरात के दिन मेरा खड़ा ही नहीं हुआ, उसके रात के बाद भी मेरा यही हाल रहा मै कभी भी सम्भोग करने जाता तो लंड खड़ा ही नहीं होता था, मेरी बीवी मुझे नपुंसक बुलाने लगी. धीरे धीरे सारे गांव मे ये बात फ़ैल गई,मै भारी जवांज मे ही गांव छोड़ के यहाँ चला आया तभी से ये होटल चला रहा हूँ. इतने सालो मे मैंने सम्भोग का विचार ही त्याग दिया परन्तु आज जब बिटिया रानी को देखा,इनकी खूबसूरती देख मेरे लंड मे हलचल होने लगी.
ये देखिये....साहाररररर.......करते हुए मांगीलाल ने अपनी धोती खोल दि.
मैली कुचली धोती सरसराती जमीन पे आ टिकी.
तीनो कि नजर सामने पढ़ी तो सभी के मुँह खुले रह गए.
"हहहह.....हे.....हे...भगवान ये क्या है " अनुश्री ने अपने मुँह पे हाथ रख लिया उसकी आंखे फटी रह गई दिल धाड़ धाड़ कर चलने लगा.
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यही हालत बंगाली बंधुओ कि भी थी उन्होने भी ऐसा नजारा कभी नहीं देखा था
..सामने दुबले पतले मांगूलाल कि जांघो के बीच एक भयानक कला बालो से भरा लम्बा मोटा लंड पूरी तरह से अकडे खड़ा था एक दम ताना हुआ.
"देखिये बाबू लोग आप ही बताये क्या करू मै? बिटिया रानी का बदन देख के राहा नहीं गया हमसे " मांगीलाल भी बोले ही जा रहा था.
"गगगग....गड़ब...बाबू मोशाय हमें दुख है जो भी तुम्हारे साथ हुआ लेकिन ये ये....तुम्हारा लंड?" चाटर्जी ने आश्चर्य व्यक्त किया

"मेरा शुरू से ऐसा ही था बस कभी खड़ा नहीं हुआ,बिटिया रानी आपसे एक विनती है,?" मांगीलाल ने अनुश्री के सामने हाथ जोड़ लिए.

अनुश्री तो ना जाने किस दुनिया मे खोई हुई थी, उसकी नजर तो मांगीलाल कि जांघो के बीच ही अटकी हुई थी ना सांस ले रही थी ना छोड़ रही थी बस मुँह ले हाथ रखे देखे जा रही थी.शायद उसकी कल्पना के बहार कि चीज थी ये

"बिटिया रानी...." मांगीलाल ने और भी दयनीय आवाज़ मे बोला
यहाँ चाटर्जी और मुखर्जी को इस नये खेल मे अलग ही आनन्द मिल रहा था

"अनु...अनु...बेटा ये बुढ़ऊ कुछ बोल रहा है अब क्या उसका लंड ही देखती रहोगी " चाटर्जी ने लगभग अनुश्री को झकझोड़ दिया
"आअह्ह्ह....हनन....आ...हाँ..हाँ...क्या हुआ?" अनुश्री जैसे होश मे आई उसकी नजर कभी मांगीलाल के लंड पे पडती तो कभी उसके चेहरे पे
मांगीलाल के चेहरे ले दुनिया जहाँ कि विनती थी,आत्मसमर्पण था.
"बोलो भाई मांगी सुन रही है आपकी बिटिया रानी खीखीखी...." मुखर्जी और चाटर्जी दोनों खिसयानी हसीं हॅस दिये
उन्हें पता था मांगीलाल कि क्या विनती होंगी.
"मममम...मा...मै आपका रस पीना चाहता हूँ " मांगीलाल ने ना जाने कितनी हिम्मत जुटा के ये शब्द कहे थे.
"कक्क....खो..खो....क्या?" अनुश्री का गला सुख गया ये सुनते ही.
"बोल रहा है तुम्हारी जवानी का रस पीना चाहता है, तुम्हे नंगा देखना चाहता है,क्यों मांगीलाल?" चाटर्जी ने अपनी तरफ से भी उन शब्दों मे अपने शब्द जोड़ दिये
उन्हें तो एक नया खेल मिल गया था.
"मममम....मै...मैम...कैसे " अनुश्री हक्की बक्की परेशान थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
"तो क्या हुआ याजा कौन है देखने वाला और भूलो मे इसका ये हाल तुम्हारे जावान जिस्म को देख के ही हुआ है, अब तुम्हारा फर्ज़ बनता है कि इसके लिए तुम ही कुछ करो " मुखर्जी के उपदेश चालू जो गए
"आज ये मांगीलाल ना होता तो इस तूफानी रात मे हम तीनो मे से कोई जिन्दा नहीं बचाता " चाटर्जी भी अब शामिल था
अनुश्री हक्की बक्की कभी चाटर्जी को देखती कभी मुखर्जी को तो कभी सामने अर्धनग्न लंड खड़ा किये मांगीलाल को,उसका दिमाग़ उसका साथ छोड़ रहा था,गर्म जिस्म दहकने लगा था

"और क्या तुमने कभी ऐसा लंड देखा है जीवन मे?"
"नननन.....नहीं...नहीं देखा " अनुश्री ने मांगीलाल के लंड पे एक नजर मारते हुए कहा
"ऐसे लंड तुम्हे कभी जीवन मे नसीब नहीं होंगे अनु बेटा यही सही वक़्त है अपनी जवानी को समर्पित करने का,कामदेव ऐसा मौका हर स्त्री को नहीं देते,ये अंतिम.समय है इसका लाभ नहीं उठाया तो जीवन भर पछताओगी" चाटर्जी के एक एक शब्द अनुश्री के कान से होते हुए उसकी नाभि टक पहुंच रहे थे एक अजीब सी गुदगुदी उसको जहन मे महसूस हो रही थी

"सोचो मत अनु,ये जवानी को जीने का वक़्त है,इसके अहसानो का बदला चूका देने का वक़्त आ गया है, ये ज्यादा से ज्यादा क्या चाहता है,बेचारा गरीब बूढ़ा आदमी अपने अंतिम समय मे तुम से कुछ मांग रहा है,वो भी तुम्हारा जिस्म.
और तुम.खुद सोचो तुम्हारे जिस्म को क्या चाहिए वही जीवन भर नामर्द पति का साथ या फिर ऐसे कड़क मोटे लंड का स्वाद?"
अनुश्री कि सांसे और भी ज्यादा तेज़ ही गई दोनों बंगाली बूढ़ो कि बातो ने उसका दिल पिघला दिया उसके जिस्म मे आग लगा दि.
"अअअअअ.....लेकिन....मै...कैसे?" अनुश्री अभी भी असमंजस मे थी
"लेकिन वेकीन छोडो इस मौके को लपक लो, अपने आशिको को ऐसे नहीं मना करते,ये बात इस कमरे से कही बहार नहीं जाएगी और वैसे भी सुबह से पहले कोई नहीं आने का यहाँ, इस तूफान मे डर डर के रहने से अच्छा है इसका लाभ उठाया जाये " मुखर्जी ने अनुश्री के पीठ पे थपकी दे दि जैसे उसे प्रोत्साहित कर रहा हो.
अनुश्री के चेहरे के भाव बदलने लगे थे "अंकल लोग सही कह रहे है,ऐसा लंड फिर नहीं मिलेगा " अनुश्री कि आँखों मे हवस साफ देखी जा सकती थी.वो बहक रही थी
बंगलियों कि काम भरी बात और मौसम ने उसके जिस्म मे एक काम ऊर्जा भर दि,सही गलत क्या होता है पता नहीं.
"मैंने कभी सम्भोग का आनंद नहीं लिया बिटिया रानी,तुम जैसी हसीन औरत से कुछ प्यार मिल जाये तो मै चैन से मर सकूँ " मांगीलाल आज भावुक हो उठा

क्या खेल था नियति का यहाँ हवस भावनाओं का मिला जुला तूफान अनुश्री के बदन को लताड़ रहा था.
दोनों बंगाली पीछे को सरक के बैठ गए जैसे कोई फ़िल्म शुरू होने वाली हो
अनुश्री अपनी जगह से उठ खड़ी हुई,जैसे किसी ने सम्मोहन किया हो,उसके उठते ही साड़ी का पल्लू सरक के जमीन पे जा गिरा
मांगीलाल के सामने एक सुन्दर काया प्रकट हो गई,अनुश्री ने अपने दोनों हाथो से गीले बालो को अपने सर के पीछे बंधने लगी.
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कोई सामान्य आदमी होता तो शायद इस नज़ारे को देख के दम ही तोड़ देता,कमरे मे एक कामुक रौशनी फ़ैल गई
बिल्कुल गोरा जिस्म, उन्नत स्तन उसके नीचे सपाट पेट, असली खूबसूरती वो गहरी नाभि थी जो कि दमक रही थी.
तीन मर्दो के बीच एक हुस्न कि परी स्लीवलेस ब्लाउज पहने लगभग अर्धनग्न खड़ी थी,बदन इतना गोरा कि मांगीलाल कि आंखे चोघिया गई.
"लो काका जी भर के देख लो " अनुश्री ने आज पहली बार ऐसी बेशर्मी दिखाई थी.
क्या वक़्त था कि इस बूढ़े के छूने से वो गन्दी हुई जा रही थी अभी किसी सम्मोहन मे फांसी उसी बूढ़े को अपना गोरा कामुक जिस्म दिखा रही थी.

"बबबब....बबबब.....बेटी तुम वाकई बहुत सुन्दर हो मैंने आज तक ऐसी औरत नहीं देखी " मांगीलाल का लंड सामने के नज़ारे को देख झटके मरने लगा

"इस्स्स.....काका..." अनुश्री का भी यही हाल था उसे अपनी नाभि के नीचे हज़ारो चीटिया रेंगति महसूस हो रही थी
"आज इन लोगो कि खेर नहीं " अनुश्री के चेहरे पे मुस्कान तैर गई.
कामवासना के घोड़े ले सवार अनुश्री कितना जल्दी सबकुछ सीख गई थी.
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कि तभी टक...टक....टक....कि आवाज़ से सभी का ध्यान अनुश्री कि तरफ गया
तीनो मर्दो का बुरा हाल हो चला,अनुश्री बुना कुछ बोले सुने अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी.

अभी तीन बटन ही खुले थे कि एक सुन्दर गहरी खाई सभी को नजर आने लगी,सब मन्त्रमुग्ध सांस रोके आने वाले पल का इंतज़ार कर रहे थे
"अअअअअ.....अनु..." बंगलियों के मुँह से निकले शब्द वही जमे रह गए.
फट....फटाक.....से सभी बटन खुल गए,ब्लाउज के दोनों पल्ले किसी टूटी खिड़की कि तरह झूल गए.
बहार से आती हवा उन पल्लो को दूर फेंक दे रही थी,जैसे ही दूर फेंकती दो अनमोल बड़े कसे हुए चांदी से बने रत्न उजागर हो जाते.
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तीनो मर्दो के हाथ अपने अपने लंड पे कसते चले गए.
अनुश्री के निप्पल बिल्कुल टाइट किसी कील कि तरह नीकले हुए थे,स्तन ऐसे जैसे किसी ने जमा के रख दिये हो लचक का एक कतरा भी नहीं था
"आआहहहहह......बिटिया रानी हम मर जायेंगे "
"उगगग.....आअह्ह्ह....उउउफ्फ्फ्फ़....अनु क्या दूध है तेरे जिस दिन चूसा था तब ही मालूम पड़ गया था"
"उउउउफ्फफ्फ्फ़....आअह्ह्हब.....कैसे घूर रहेभ ये तीनो बूढ़े मुझे, ऐसी हवस कभी भी मंगेश ने नहीं दिखाई "अनुश्री शर्म और लज्जा से घनघना गई लेकिन अपने स्तन को ढकने कि एक कोशिश भी नहीं कि

अभी ये कम ही था कि अनुश्री ने ब्लाउज को हाथो से निकाल फेंका, और अपने बालो को सर के पीछे बाँधने के लिए हाथ उठा लिए
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कि....तभी.....भद्देदाममममममम टाआआआड़ड़ड़ड़ड़ड़आककककक.....जोरदार बिजली चमक उठी
इस बिजली कि चमक मे अनुश्री का कामुक बदन जगमगा उठा.
जो नजारा वहाँ प्रस्तुत हुआ उसने सभी के होश उड़ा दिये रौशनी ने अनुश्री के स्तन भी चमक उठे.
सभी जड़ अवस्था मे आ गए लेकिन ये नजारा ज्यादा देर टक नहीं रह.
"आआहहहह......हे भगवान " अनुश्री भागती हुई सामने खड़े मांगीलाल से जा लिपटी.
इतनी बुरी तरह कि उसके पैन निप्पल मांगीलाल के सीने मे जा धसे.
"कककक....क्या हुआ बिटिया रानी " मंगीलाल का लंड अनुश्री के नंगे बदन के अहसास को पा के झटके खाने लगा.
"ममममम.......मुझे बिजली से डर लगता है " अनुश्री सकपाकती सी बोली
लेकिन तभी उसे अपनी जांघो के बीच कुछ चुभता सा महसूस हुआ.
अनुश्री थोड़ी असहज हुई थोड़ा पीछे हट के नजर नीचे कि तो पाया कि मांगीलाल का लंड बदस्तूर उसकी जांघो के बीच धसा हुआ था.
"इसससससस.......आअह्ह्ह..."इस बात का अहसास होते ही अनुश्री कि आह निकल गई

मांगीलाल भी ये अवसर कहा छोड़ने वाला था उसके खुरदरे मैले हाथ अनुश्री कि कोमल नाजुक पीठ पे चलने लगे.
"उफ्फफ्फ्फ़......आअह्ह्ह...." अनुश्री सिर्फ गर्म सांसे छोड़ रही थी,वो भी एक गंदे मैले बूढ़े देहाती कि बाहों मे

हवस इंसान नहीं देखती बस उसे अपनी गर्मी उतारनी होती है यही हाल अनुश्री का था उसे ये गंदे हाथ भी सुकून दे रहे थे

"देखा चाटर्जी कितनी कामुक है ये लड़की "मुखर्जी ने कहा जो कि पीछे बैठे इस दृश्य का आनंद ले रहे थे दोनों के हाथ अपनी धोती मे हलचल मचा रहे थे
मांगीलाल से अब राहा नहीं जा रहा था,रहता भी कैसे जीवन मे पहली बार किसी अप्सरा को गले लगाया था
उसकी कमर हलके हलके आगे पीछे होने लगी, मांगीलाल का लंड साड़ी के ऊपर से ही अनुश्री के जांघो के बीच सेर करने लगा.
"आआहहहह.....काका....उफ्फ्फग..." अनुश्री हवस के उन्माद पे थी,उसका सर मांगीलाल के कंधे पे रगड़ खाने लगा.
उसे अपनी जांघो के बीच फिर से वही दबाव महसूस होने लगा, जैसे ही मांगीलाल कि कमर आगे को धक्का देती अनुश्री अपनी जाँघे आपस मे भींच लेती जैसे वहाँ किसी को कैद करना चाहती हो.
"अनु हाथ से पकड़ के देख हमसे भी बड़ा है " पीछे से चाटर्जी ने कहा
अनुश्री तो पहले से ही किसी सम्मोहन मे थी,वासना के सम्मोहन मे

उसका हाथ स्वत ही नीचे चला गया, और मांगीलाल के लंड से जैसे ही टकराया "आउच....". अनुश्री को एक झटका सा लगा
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"कितना गरम है जैसे कोई लोहे का खोलता सरिया हो "
"अच्छे से पकड़ ना देख कैसे तड़प रहा है तेरे लिए " मुखर्जी ने आग मे घी डाली दि
अनुश्री से भी अब राहा नहीं जा रहा था उसके मन मे भी कोतुहाल बढ़ने लगा "इसका तो अब्दुल और मिश्रा से भी अलग है "
उसका हाथ एक बार फिर उसी मार्ग पे चल पडा इस बार मंजिल पे पंहुचा,अनुश्री कि हथेली मांगीलाल के गंदे मोटे काले लंड ले कसती चली गई.
"आआहहहह......बिटिया रानी " मांगीलाल ने अनुश्री को अपनी छाती से कस के चिपका लिया इस सुकून को पाने मे उसकी पूरी जिंदगी गुजर गई.
अनुश्री अभी अपनी हथेली मे एक गर्म सख्त चीज पा के कामविभोर हो गई अभी तक उसने चाटर्जी और मुखर्जी के लंड को ही हाथ से पकड़ा था ये तीसरा मर्द था लेकिन खास था.
"बाप रे ये.....ये....ऐसा भी हो सकता है " अनुश्री हैरान थी उसकी उंगलियां मांगीलाल के लंड पे चल रही थी जैसे उसकी लम्बाई चौड़ाई को परख रही हो लेकिन कोशिश व्यर्थ थी, मांगीलाल का मोटा जडा लंड अनुश्री कि कोमल छोटी सी हथेली मे समा ही नहीं रहा था.
"शाबास ऐसे ही जवानी को जिया जाता है " इधर बंगाली बंधु हौसला अफजाई मे लगे हुए थे

अनुश्री का हाथ इस बार कस के थोड़ा सा पीछे को हुआ,कमरे मे एक कैसेली अतिमादक गंध फ़ैल गई.
अनुश्री मांगीलाल के कंधे पे सर झुकाये खुद कि हरकतो को देखे जा रही थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो ये कर रही है.
मांगीलाल का गुलाबी सूपड़ा बहार को आ गया, एक दम ताज़ा गुलाबी...
"आआहहहह....काका.....उफ्फ्फ...."अनुश्री को लंड कि गंध ने कामविभोर कर दिया
रहे सहे क़स्बाल भी ढीले पड़ने लगे.
उसकी चुत से एक लार टपक के पैंटी को भिगो गई. बरसो से क़वारा था मांगीलाल,कुंवारे लंड कि गंध थी ये
अनुश्री के दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया अगले ही पल उसने वो हारकत कर दि जो किसी संस्कारी घरेलु औरत के लिए मुमकिन नहीं था.
अनुश्री पंजो के बल बैठती चली गई उसकी मंजिल मांगीलाल का लंड थी.
उसका हाथ अभी भी वही जमा हुआ था को कि हलके हलके आगे पीछे हो रहा था.
अनुश्री तब ही रुकी जब मांगीलाल का लंड ठीक उसकी आँखों के समने फूंकारने लगा.
"ससससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़......आआहहहह......काका " अनुश्री ने एक जोरदार सांस खिंच ली लंड से निकलती कैसेली गंध ने अनुश्री के रोम रोम को भर दिया.
उसके हर अंग से मदकता टपक रही थी.
पीछे बैठे बंगलियों से ये नजारा देखा ना गया,उनका हार्ट फ़ैल हो जाता.
अनुश्री के पंजे के बल बैठने से उसकी गांड पूरी उभर के बहार को आ गई,दोनों बंगलियों ने अपनी धोती उतार फ़ेंकी,थोड़ी सी भी देर हो जाती तो अतिवासना से दम तोड़ देते दोनों.
"आआहहहह........अनु"
सिसकारी कि आवाज़ सुनते ही अनुश्री ने गर्दन घुमा के देखा दोनों बूढ़े नीचे से नंगे खड़े अपने अपने लंड को हिला रहे थे.
अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा दि और सर आगे को घुमा अपनी लापलापति गरम जीभ को मांगीलाल के लंड पे नीचे से ऊपर कि ओर चला दिया
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"आआआहहहहह.......बिटिया रानी " मांगीलाल तो जन्नत मे था ये सब उसकी कल्पना के बहार कि चीज थी
दोनों बंगाली हैरान थे कि अनुश्री इतनी जल्दी सीख जाएगी विश्वास नहीं हो रहा था.
एक लीजलीजा कसैला सा स्वाद अनुश्री कि जुबान पे फ़ैल गया "उफ्फ्फ्फ़..ऊऊऊककक......ये कैसा स्वाद है " अनुश्री को उबकाई सी आ गई.
लेकिन थोड़ी देर मे वो स्वाद और गंध पुरे मुँह मे घुल गई उसके रोम रोम मे उतर गई

अनुश्री मदहोश थी.... साय साय करती ठंडी हवा उसके गरम जिस्म को सहला रही थी.
"ऐसा मौका फिर नहीं आएगा " मुखर्जी कि बात उसकी जहन मे कोंध गई
एक बार फिर हिम्मत कर अनुश्री ने अपने होंठो को आगे बढ़ा दिया,परन्तु इस बार मांगीलाल उत्तेजना से थोड़ा पीछे हो के आगे हो गया नतीजा गुलप...से मांगीलाल के लंड का सूपड़ा अनुश्री के कामुक गीले होंठो के बीच आ फसा

"आआआहहहहब्ब....बिटिया रानी " अनुश्री सर पीछे को खिंचती ही कि मांगीलाल ने अपने हाथ उसके सर के पीछे जमा दिया.
एक गन्दा सा स्वाद अनुश्री के मुँह मे चला गया.
"ऊऊऊककककम.......अनुश्री का जी भर आया उबकाई सी आ गई सर पीछे को खींचने को हुई कि मांगीलाल ने एक झटका दे दिया.
पुककक.....करता हुआ आधा लंड अनुश्री के मुँह ने जा धसा
उबकाई कि वजह से अनुश्री के मुँह से ढेर सारा थूक निकाल के होंठो के साइड से बहार निकाल लंड को भिगोने लगा.
अनुश्री कि आंखे बहार को आ गई, लेकिन मांगीलाल को कोई परवाह नहीं थी ऐसा हसीन पल उसकी जिंदगी मे फिर कभी नहीं आना था...
मांगीलाल ने अनुश्री का सर पकडे पकडे ही कमर को पीछे खिंच वापस से अंदर झटका दे दिया.
"ओकककम्म....ओकककम.....उफ्फ्फ्फ़...." अनुश्री के हाथ मांगीलाल कि जांघो पे कसते चले गए,नाखून लगभग अंदर धस गए.
अनुश्री ने आंखे ऊपर कर मांगीलाल को देखा,उसकी नजर मे एक विनती थी "प्लीज आराम से "
लेकिन नहीं मांगीलाल कहा मानने वाला था, वापस से पीछे खिंचा और अंदर ठेल दिया.
अब तो ये कार्यक्रम जारी हो गया.
मांगीलाल अनुश्री के बाल पकडे अपने लंड को उसमे मुँह मे ठेले जा रहा था,अनुश्री के मुँह से थूक और पानी का झाग निकल निकल के मांगीलाल के लंड को गिला कर रहा था.
"पच...पच...ओच.....पच..ओक...ओककक....ओककक.....कि आवाज़ से कमरा गूंजने लगा.
अब अनुश्री भी इस ट्रैन पे चढ़ चुकी थी,उसे लंड कि बदबू किसी खुसबू मे तब्दील होती महसूस होने लगी.
मांगीलाल के लंड माँ स्वागत मुँह खोल के करती,मांगीलाल खुशी खुशी अंदर समा जाता.
पीछे दोनों बंगलियों का हैरानी के मारे बुरा हा था इस तरह तो अनुश्री ने उनका भी नहीं चूसा था, यहाँ मांगीलाल लूरि कोशिश कर रहा था जड़ टक लंड घुसेड़ देने कि.
अनुश्री उबकाई लेती....थूक छोड़ती लंड को चूसर जा रही थी.
उसे आज असली ज्ञान हुआ था कि लंड चूसने का मजा क्या होता है.
ओक...ओक....ओक....ओक...पच....पच...पच......" अनुश्री आनंद कि चरम सीमा पे थी उसके बदन कि सारी गर्मी नाभि के रास्ते दोनों जांघो के बीच दौड़ रही थी,वहाँ से कुछ निकलना चाहता था लेकिन कैसे कैसे....वो अपने हाथ को वहाँ रख दे उसे मदद कि आवशयकता थी.
लेकिन कैसे पीछे देखे मांगीलाल तो सुध बुध खो के अनुश्री के बाल पकड़े लंड पेले जा रहा था
"आआआबबबबबह्ह्ह्ह.....बिटिया रानी कुछ हो रहा है हमको आआहहहह.....ऐसे ही चूस " तभी पूरा कमरा मांगीलाल के ऐलान से गूंज उठा
उसके धक्को कि रफ़्तार तेज़ होने लगी, उसके बड़े टट्टे सिकुड़ने लगे

मांगीलाल आज से पहले कभी नहीं झाड़ा था,अनाड़ी था वो अभी भी.....आआहहहहह......बिटिया रानी हम मर जायेंगे.
"पच....ओच.....पच...पच....पछह्ह्ह्हह्ह......" मांगीलाल अपने लंड को कस कस के अनुश्री के मुँह मे पेले जा रहा था.
अभी अनुश्री कुछ समझती हूँ कि....फाचक.....फच...फच......अअअअअअह्ह्ह्हभ.....बिटिया रानी " मांगीलाल के लंड ने वीर्य कि बरसात कर दि
"पच..पच...पच....करता वीर्य अनुश्री के हलक मे उतरने लगा, अनुश्री के तो प्राण ही निकल गए प्रतीत होते थे, आंखे बहार को आ गई...
"आअह्ह्हब.....मर गया....उफ्फ्फग....करता मांगीलाल ने अपने लंड को बहार को खिंच लिया और वही जमीन पे गिर पडा.
गिरते गिरते भी मांगीलाल के लंड से एक दो पिचकारी निकल सीधा अनुश्री के चेहरे से जा टकराई.
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उसकी सांसे धाड़ धाड़ कर चल रही थी आंखे ऊपर को चढ़ गई लगता था जैसे मर ही गया हो.

लंड बहार आते ही अनुश्री को सांस आई "खो....खोम..खो...ओक....उफ्फफ्फ्फ़....." अनुश्री भी दूर जा गिरी
खो खो...करती वीर्य उगलने लगी....ढेर सारा सफ़ेद गाड़ा वीर्य उसकी हथेली पे जमा होने लगा.
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"आआहहब्ब....उफ्फ्फफ़फ़फ़फ़.....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..हमफ...हमफ...हमफ.." अनुश्री का मुँह खाली हो चला लेकिन फिर भी कुछ वीर्य उसके हलक के अंदर पहुंच गया,एक अजीब से रूहानी स्वाद ने उसके बदन को अँगारो पे लौटा दिया

ना जाने क्यों उसे ये स्वाद पसंद आया,जबकि वो इसे सबसे घृणित काम.मानती थी.
अनुश्री का जिस्म और ज्यादा तपने लगा,उसे अपनी चुत मे भरिपान का अहसास होने लगा.
पीछे बैठे बंगाली बूढ़े तो बस वही जम गए थे, उनके हाथ अपने अपने लंड पे कसे हुए थे,ऐसे दृश्य कि कल्पना भी नहीं कि जा सकती थी
अनुश्री के जमीन पे गिरते ही उसकी साड़ी भी ऊपर को चढ़ गई, इतनी कि अनुश्री कि खूबसूरत गोरी बेदाग गांड उजागर हो गई. एक महीन दरार जिसमे एक लकीर नुमा चुत थी और उसके ऊपर अंदर को धसा हुआ बारीक़ सा छेद.
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चाटर्जी तो कब से उसकी गांड का दीवाना था उसके से ये दृश्य बर्दाश्त नहीं हुआ, उसने झट से दो ऊँगली मुँह मे डाल गीली कि और दौड़ के अनुश्री के नजदीक जा बैठा.
और....पपप्पाजकककककक.....से दोनों ऊँगली अनुश्री के बारीक़ गांड के छेद ने दे मारी.
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"आआआहहहहहह......अंकल....मर गई....हाय...उफ्फफ्फ्फ़....." अनुश्री अभी सम्भली भी नहीं थी कि एक भयानक हमला उसके जिस्म पे हो गया.
अनुश्री का जिस्म एक तीखे दर्द से नहा उठा, चाटर्जी ने अनुश्री कि पसीने से गीली गांड मे दो उंगलियां एक बार मे ही झोंक दि.
मुखर्जी भी कहा पीछे रहने वाला था, मौका और दस्तूर सब साथ थे वो भी तुरंत ही अनुश्री के पैरो के पास जा पहुंच और अपना सर अनुश्री कि बारीक़ लकीर नुमा चुत पे दे मारा.
"आआहहहह....आउच....अंकल नहीं....आअह्ह्ह...." अनुश्री चित्कार उठी मजे और दर्द से उसकी जान निकली जा रही थी.
मुखर्जी कि जीभ लापलापति अनुश्री कि चुत पे रेंगने लगी.
वही चाटर्जी कि दो उंगलियां अनुश्री कि गांड मे अंदर बहार होने लगी.
एक अजीब सा अहसास था अनुश्री के लिए दर्द के साथ यौन सुख,,,"आआहहहह......अंकल....आअह्ह्ह...."
अनुश्री सिर्फ सिसकर रही थी,पसीने और वीर्य से लथपथ अनुश्री अपनी हवस वासना के आगे बेबस थी

"ऐसे लेते है मजे जवानी के अनु " दोनों बूढ़े अपने अनुभव का पूर्ण स्तेमाल कर रहे थे.
"पच..पच..पच...करती चाटर्जी कि ऊँगली गांड मे अंदर जाती तो पूरी गांड अंदर को धस जाती और जब ऊँगली बहार को आती तो गांड के अंदर का हिस्सा भी बहार को आ जाता,इस कदर टाइट थी अनुश्री कि गांड.
और वही मुखर्जी नीचे लेता अनुश्री कि चुत को चुभला रहा था,खोद रहा था जैसे कोई रस निकालना चाहता हो

मांगीलाल पे किसी का ध्यान नहीं था.
"आआहहहह......अंकल.....आअह्ह्ह....आराम से " अनुश्री माना नहीं कर रही थी सिर्फ आराम से करने को बोल रही थी इसका मतलब उसे मजा आ रहा था.
उसकी गांड और चुत दोनों कि सेवा कि जा रही थी ऐसा असीम सुख ऐसा आनन्द वाकई नसीब वालो को ही मिलता है.
अनुश्री का पेट भरी होने लगा जैसे कुछ नाभि के रास्ते निकलना चाहता हो"आअह्ह्हब...म.उफ्फ्फग्ग.....ममम....अंकल जोर से...आउच...आह्हः....अंदर और अंदर " अनुश्री कि कमर भी चलने लगी थी, वो खुद ही चाटर्जी कि उंगलियां अंदर लेना चाहती हो और मुखर्जी के मुँह ले चुत पटक रही थी.
मुखर्जी को समझते देर ना लगी
"यही वक़्त है मुखर्जी पेल दे लंड " चाटर्जी ने कहा
मुखर्जी ने भी बात मानते हुए अपना मुँह अनुश्री कि चुत से हटा लिया और अपने लंड पे ढेर सारा थूक निकाल के घिस दिया.
अनुश्री ये दृश्य देख के दहल गई उसने कभी मंगेश के अलावा किसी और से सम्भोग कि कल्पना भी नहीं कि थी, वो थोड़ा कसमसई लेकिन चाटर्जी कि उंगलियों ने अपनी हरकत जारी रखी.
अनुश्री तड़प रही थी,आज उसे सब कुछ मजूर था पराये लंड से चुदना भी मंजूर कर चुकी थी
बस अब ये तूफान थमने को था...अनुश्री का जिस्म किसी भी पल जवाब दे सकता था.
"आअह्ह्ह....मममम....उउउउम्म्म....अंकल"
मुखर्जी अपने काले थूक से सने लंड को अनुश्री कि चुत पे घिसने लगा.
"आअह्ह्हह्ह्ह्हम....अंकल क्या कर रहे है नहीं " अनुश्री के शब्दों मे सिर्फ ना थी लेकिन उसका जिस्म एक मजबूत लंड ही चाहता था सबूत उसकी अवस्था वैसी ही थी उसने जरा भी बचने कि कोशिश ना कि

मुखर्जी भी बस अपने निशाने पे ही था, मुखर्जी अपने लंड को अनुश्री कि चुत पे घिसे जा रहा रहा था
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"आआहहहहह.....अंकल नहीं......." अनुश्री ने आने वाले सुख कि कल्पना मे आंखे बंद कर ली.
आज उसका जिस्म पूरी तरह बगावत पे आ चूका था
मुखर्जी के लंड कि गर्मी उसे साफ महसूस हो रही थी, "आआहहहहहहह......अंकल...आउच...उफ्फ्फ.." अब नहीं....
लंड का दबाव अनुश्री कि चिकनी छोटी चुत पे बढ़ने लगा ही था.....
कि तभी धाड़....हटो सालो इसे मै ठंडा करूंगा "एक जोरदार धक्का दोनों बंगलियों को लगा
दोनों ही उसके धक्के से दूर जा गिरे
तीनो कि नजर ऊपर को गई सामने मांगीलाल खड़ा था,गुस्से से लाल तामतमाता चेहरा लिए
"तुम दोनों हटो मेरा अभी काम नहीं हुआ है" मांगीलाल कि आँखों मे अँगारे थे जैसे किसी बात कि खीज निकाल रहा हो.
"तो इस से काम ख़त्म करेगा तू " चाटर्जी ने ऊँगली से मांगीलाल के लंड कि ओर इशारा किया जो कि अभी भी बढ़ा था लेकिन उसमे कोई जान नहीं थी एक दम लटका हुआ

"साले तू नपुंसक ही है जो ऐसी लड़की को चोदे बिना ही झड गया " मुखर्जी ने भी तंज कस दिया
अनुश्री हैरान थी कि क्या हो रहा है यहाँ,उसका भी पारा चढ़ा हुआ था आंखे सुर्ख लाल थी वो मंजिल के करीब ही थी कि मांगीलाल फिर से आ धमका
अनुश्री सर उठाये मांगीलाल को ही देख रही थी,
अभी किसका को कुछ समझ ही आता कि मांगीलाल ने अनुश्री के पैर को पकड़ के पलट दिया
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करवट ली हुई अनुश्री पीठ के बल चीत हो गई दोनों टांगे विपरीत दिशा मे फ़ैल गई.
मुखर्जी के चाटे जाने और चुत रस से भीगी अनुश्री कि चुत चमक उठी एक दम गोरी चिकनी.
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मांगीलाल का कलेजा मुँह को आ गया ऐसी खूबसूरती देख के.... अनुश्री और बंगाली बूढ़े अभी हैरान परेशान ही थे कि. धाआक्कह्ह्हह्ह्ह्ह.......आआआ.....आह्हःब.....माँ मर गई " अनुश्री चीख उठी
मांगीलाल ने अपने हाथ मे पकड़ी चमकदार चीज को अनुश्री कि लकीरनुमा बारीक़ चुत मे अंदर दे मारा.
प्रहार इतना तेज़ था कि वो लम्बी सी चमकती चीज एक बार मे अंदर को घुस गई
"आआआआहभब्बब......काका.....उउउउफ्फ्फ्फ़....
निकालो इसे" अनुश्री के कमर से आगे का हुसैन ऊपर को उठ गया.
उसने लाया कि मांगीलाल के हाथ मे अदरक कूटने का दस्ता है जो कि उसकी चुत मे पेवास्त हो चूका है वो भी जड़ तक

बंगाली भी हैरान थे कि मांगीलाल को क्या हुआ है

मांगीलाल कोई अनुश्री कि चीख से कोई फर्क नहीं पड़ना था,उसके हाथ दस्ते को पकडे आगे पीछे होने लगे...धच....धच...धच....फच....फच...."
"माफ़ करना बेटी मेरा लंड वापस खड़ा नहीं हुआ लेकिन तुमने मेरा पानी निकाला है तो मेरा भी कर्तव्य है कि मै भी तुम्हारा पानी निकालू" मांगीलाल भी अजीब इंसान था,बहुत भोला था


दोनों बंगाली मुस्कुरा उसके भोलेपन पे.उनके हाथ वापस से अपने अपने लंड को सहलाने लगे

अनुश्री का बदन तो वासना और दर्द से फटा जा रहा था उसे कोई मतलब नहीं था कि कौन है और कैसे कर रहा है उसे सिर्फ अब इस गर्मी से निजात पाना था

कोहनी के बल टिक के वो कभी मांगीलाल को देखती तो कभी अपनी चुत मे अंदर बहार होते दस्ते को "आआआहहहहहह.....काका.....उफ्फ्फ्फ़ग.....आउच....आराम से
"
लेकिन यहाँ अनुश्री कि सुनने वाला.कौन था.
मांगीलाल के हाथ पूरी रफ़्तार से चलते जा रहे थे "पच...पच...फच...फच...फाचक....कि आवाज़ ने कमरे को मादक बना दिया था.
"आआहहहह......काका.....जोर से...उगफग.." अनुश्री को अब राहत मिली थी वो अपने उन्माद पे आ चुकी थी उसके स्तन आसमान चुने को थे.
"आआआहहहह......काका....उफ्फ्फ्फ़....फाचक.....फच..फच...फच.....करती अनुश्री का सर पीछे को झुक गया उसकी चुत से दिन भर का जमा है सैलाब बहार निकल पडा,कमर वापस से जमीन से जा चिपकी

"आआआहहहह...काका.....उफ्फ्फ्फ़.....हमफ़्फ़्फ़फ़फ़....हमफ्फग्ग..." अनुश्री झड़ रही थी भर भर के उसकी चुत से मटमैला सा पानी निकल के दस्ते को भिगोने लगा कुछ जमीन पे जा गिरा

अनुश्री वही ढेर हो गई...आंखे बंद होने लगी....कि पच...पच...पाचक...से गर्म गरम गीली चीज उसके बदन से आ टकराई

हिम्मत तो नहीं थी फिर भी उसने आंख खोल के देखा सामने चाटर्जी मुखर्जी के लंड वीर्य त्याग रहे थे जो सीधा उसके बदन को भिगो रहे थे...अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा के रह गई
बहार हवा धीमी हो चली थी.....समुद्र शांत हो रहा था.
यहाँ अनुश्री कि आंखे बंद होती चली गई,
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उसके चेहरे पे असीम सुख था और बदन तीन मर्दो के वीर्य से लथपथ.
अदरक कूटने का दस्ता अभी भी अनुश्री कि गीली चुत मे धसा हुआ था.
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बने रहिये कथा जारी है....
Waah kya update diya...maza aa gaya
 

jassastory

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बहुत ही शानदार अपडेट। कृपया यही गति बनाए रखें
 
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andypndy

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सुबह का आगाज़ हो चला था.
बहार सब कुछ शांत था,एकदम शांत,तूफान के बाद का सन्नाटा,पंछी तक खामोश थे लगता था कल रात के तूफान का खौफ अभी भी कायम था.
मांगीलाल के होटल मे इस से भी ज्यादा शांति छाई हुई थी.
मांगीलाल हर सुबह कि तरह आज भी जल्दी उठा,पास ही अर्ध नग्न अनुश्री चेहरे पे तेज़ लिए हुए लेटी थी वही जमीन पे बेसुध,
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कमर के निचले हिस्से को साड़ी ने धक लिया था, "धन्यवाद बिटिया रानी " मांगीलाल कि आँखों मे बेमिशाल प्यार था वही प्यार जिसे उसने कल रात अनुश्री पे उडेल दिया था
मांगीलाल ने बड़ी ही हसरत भरी नजर से अपना हाथ उठा दिया,वो देखना चाहता था कि कही कल रात सपना तो नहीं देखा था,.
उसकी मंजिल अनुश्री के वो दो उभार थे जो मददम रौशनी मे किसी अमृत कलश कि तरह चमक रहे थे.
जैसे ही मांगीलाल ने स्तन को छूना चाहा ना जाने कैसे अनुश्री पलट गई,चेहरे पे मुस्कान अभी भी बरकरार थी.
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जी भर के अनुश्री के कामुक गोरे बदन को निहारता हुआ मांगीलाल उठ खड़ा हुआ, दो कदम चल के अपनी भागोनी संभाल ली,यही तो काम है उसका,इसी मे तो महारत हासिल है उसे.

फार...फराता चूल्हा दहक उठा,भागोनी चढ़ गई,चाय का पानी भी उबलने लगा...."कहा गया वो,कहा रख दिया." मांगीलाल हाथ मे अदरक लिए बड़बड़ये जा रहा था.
"ओह..मै तो भूल ही गया था " मांगीलाल को जैसे ही याद आया उसके कदम अनुश्री कि तरफ बढ़ चले
अनुश्री बेसुध करवट लिए हुई सोइ थी,साड़ी ने जाँघ का हिस्सा धक लिया था.
"बिटिया रानी तनिक उठो.....बिटिया रानी " मंगीलाल ने अनुश्री को कंधे से पकड़ के हिला दिया
अनुश्री तो जैसे बेसुध सोइ हुई थी,उसकी आवाज़ से बंगाली बंधु जरूर उठ गए लेकिन अनुश्री टस से मस ना हुई
बंगाली बंधु आंख मसलते हुए उठ बैठे, अनुश्री को जमीम पे अर्ध नग्न अवस्था मे लेटा देख उनके लंड ने सुबह कि सलामी दे दि.
"बिटिया रानी उठो....हमको चाय बनानी है " इस बार मांगीलाल ने जरा ज्यादा ही दम लगा दिया

"आए.....हहहहह....हाँ...हनन....क्या हुआ?" अनुश्री एक दम से चौंक उठ बैठी,बैठने से रही सही साड़ी पे पेट और जाँघ के हिस्से पे इक्कठी हो गई.
सुबह सुबह ही एक चांदनी रौशनी कमरे मे बिखर गई, अनुश्री के पहाड़ जैसे स्तन पे सफ़ेद सफ़ेद कुछ जमा हुआ था
" बिटिया रानी....उठो हमको चाय बनानी है "
अनुश्री हड़बड़ा गई जैसे कोई बुरा सपना देखा हो उसकी नजर खुद के जिस्म पे दौड़ गई, उसकी सांस वही अटक के रह गई उसके स्तन खुली हवा मे सांस ले रहे थे.
झट से अनुश्री ने अपनी साड़ी का पल्लू सीने पे डाल लिया.
हक्की बक्की अनुश्री सामने खुद पे झुके हुए मांगीलाल को देखती तो कभी दोनों बंगाली बूढ़ो को.
"बिटिया रानी वो....वो...वो....अदरक कूटने का दस्ता " मांगीलाल का इतना बोलना ही था कि अनुश्री को कल रात का वाक्य याद आ गया उसकी नींद पूरी तरह उड़ गई
दहाशत,शर्म लाज मे जैसे ही उसने उठने कि कोशिश कि.."आआआहहहह.....उफ्फ्फ...आउचम" असानिया दर्द से उसकी गांड वापस जमीन पे जा लगी
उसे अपनी जांघो के बीच कुछ चुभता सा महसूस हो रहा था.
"हे...भगवान....इस...इस....इसका मतलब वो अभी भी मेरे अंदर ही है" अनुश्री सकपका गई

उसका हाथ झट से बिना किसी परवाह के अपनी साड़ी के नीचे से होता हुआ जांघो के बीच जा लगा "आअह्ह्ह....उउउईईमा..." अनुश्री कि सिसकारी निकल गई लेमे दर्द ज्यादा था

अनुश्री के हाथ वो छोटा सा हिस्सा लग ही गया जिसकी उसे होने कि आशंका थी...अनुश्री ने उसे बहार खींचना चाह लेकिन "उफ्फ्फ्फ़.....काका....आउच " दर्द से दोहरी हो गई
वहाँ मौजूद सभी मर्द इस कामुक दर्द भरी कसमकास को बेचैनी से देख रहे थे.
कि तभी...."आआहहहह.....पुकककक....कि आवाज़ के साथ अनुश्री का हाथ साड़ी से बहार आ गया
दर्द से अनुश्री का जिस्म दोहरा हो चला, उसे ऐसा लगा जैसे चुत के अंदर का हिस्सा भी बहार को निकल आया हो

"आआहहहह.....काका...ये लो " अनुश्री ने किसी बेशर्म औरत कि तरह मांगीलाल कि आँखों मे देखते हुए अदरक कूटने का वो दस्ता उसके हाथो मे थमा दिया.
मांगीलाल ने उसके दस्ते का ऊपरी हिस्सा पकड़ अनुश्री कि आँखों के सामने लहरा दिया, जैसे सभी को दिखाना चाह रहा हो वो दस्ता किसी चिपचिपे पदार्थ से सना हुआ था, एक लिसलसे शहद कि तरह एक लम्बी सी लाइन बन गई थी जो सीधा अनुश्री कि चुत और उस दस्ते को आपस मे जोड़ रही थी.
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शहद जैसा मटमेला पदार्थ अनुश्री कि जांघो के आस पास चुपड़ गया था.
अनुश्री ने लज्जा के मारे आंखे बंद कर ली.
"वो क्या है ना चाय मे अदरक डालनी थी " मांगीलाल ने अपने दाँत निपोर दिये.
अनुश्री कि हालत तो कल रात का सोच सोच के ही ख़राब हुए जा रही थी,कैसे वो इस कदर मदहोश हो गई थी.
"ऐसे अफ़सोस नहीं करते अनु बेटा,यही तो जीवन है सुख लेने का नहीं देने का नाम है देखो वो बूढा मांगीलाल कितना ख़ुश है सिर्फ तुम्हारी वजह से,सिर्फ तुम्हारी एक झलक से उसका जीवन सफल हो गया " चाटर्जी अनुश्री कि व्यथा समझ रहा था

"ये वक़्त ग्लानि करने का नहीं है अनु बेटा अपनी जवानी जीने का वक़्त है,तुम.खुद देखो तुम.किसी के जीवन मे कितने रंग भर सकती हो " मुखर्जी ने भी उसका हौसला बढ़ा दिया
अनुश्री कुछ कुछ हल्का महसूस करने लगी,उसकी आत्मगीलानी चकनाचूर होने लगी.
सर उठा के मांगीलाल को देखा "वाकई काका कितने ख़ुश है,कल रात इन्होने वो जीवन जिया जिसकी इन्हे उम्मीद नहीं थी " अनुश्री खुद से बात कर रही थी
"हम जरा फ्रेश हो के आते है तुम कपडे ठीक कर लो कोई ना कोई आता ही होगा हमें ढूंढता हुआ " दोनों बंगाली बूढ़े बहार को निकल गए
अनुश्री एक टक उन्हें देखती ही रह गई "क्या जादू था इनकी बातो मे,सही तो बोल रहे है मैंने आज तक डर के,शरमा के क्या पाया,मंगेश को मेरी कद्र ही नहीं,लेकिन एक बूढा किस तरह से प्यार जता रहा था मुझसे अपना हक़ जमा रहा था मेरे जिस्म.पे "
अनुश्री के चेहरे पे एक मुस्कान तैर आई.
अनुश्री ने आस पास नजर दौडाई उसका ब्लाउज वही जमीन पे पडा था,उसके यकीन के परे था कि ये ब्लाउज खुद उसने अपने हाथो से निकल के फेंका था.
कुछ ही पलो मे अनुश्री किसी कामवती कि तरह फिर से पुरे कपड़ो मे दमक रही थी,चेहरा पहले से ज्यादा खिला हुआ था
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"ठाक...ठाक...धाड़ धाड़.....करता मांगीलाल अदरक कूटने मे व्यस्त था, अनुश्री का ध्यान जैसे ही उसके दिशा मे गया उसकी नजरें मांगीलाल से मिल गई,.
जो अदरक तो कूट रहा था लेकिन उसकी नजरें सामने अनुश्री पे ही टिकी हुई थी.
अनुश्री हाथ पीछे किये अपने खूबसूरत घने बालो को बांध रही थी..उसकी चिकनी कामुक कांख उजाले मे चमक बिखेर रही थी.
जैसे मांगीलाल को बुला रही हो,आज अनुश्री के व्यवहार मे कोई शर्म लज्जा नहीं दिख रही थी.

"उउउउमममममम.....काका.." अनुश्री के मुँह से हल्की सी आह निकल गई अदरक कूटता दस्ता ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी चुत को कूट रहा हो
.
कल रात का दर्द मजा अनुश्री के जिस्म को फिर से भीगा गया.
"धन्यवाद बिटिया रानी...कल तुम्हारी वजह से अपना नीरस जीवन खुशी से जी पाया " मांगीलाल कि आवाज़ मे कर्तग्यता थी एक अहसान था

"काका....." अनुश्री सिर्फ इतना ही बोल पाई उसकी जबान लड़खड़ा गई,गला भर्रा गया
" मेरे ऊपर नपुंसकता का दाग़ था जो तुमने धूल दिया,अब मै शांति से मर सकता हूँ " मांगीलाल का गला भर्रा उठा,आंखे डबदबा आई.
"कैसी बात करते हो काका " अनुश्री का दिल भी भर आया आज उसे अपने यौवन का असली महत्व मालूम चला था.
"कामसुख किसी के लिए क्या मायने रखता है,और एक मै हूँ जो हमेशा दूर भागती रही " ऐसा मत बोलिये काका अभी तो बहुत जीना है आपको

"और कल रात के लिए सॉरी बिटिया रानी,मेरा वीर्य निकलने के बाद मै गुस्से मे आ गया था लेकिन तुम्हारी तड़प देख के रहा नहीं गया इसकिये ये दस्ता ही घुसेड़ दिया था,माफ़ करना मुझे " मांगीलाल ने हाथ जोड़ लिए
क्या निश्छल प्यार था, हवस के विपरीत दिल पिघल के मांगीलाल कि हथेली पे था.
"ऐसा मत बोलो काका,कल आपने मुझे अपने जीवन का असली मतलब बताया " अनुश्री ने दौड़ के मांगीलाल के हाथ पकड़ लिए
अनुश्री कि आँखों मे भी आँसू थे


"कल मुझे भी आपसे वो सुख मिला,जिसके लिए मै तरसती तो थी लेकिन भागती थी,आपसे मिल के जाना जिसके जीवन मे ये सुख नहीं है वो कितना लाचार है बेबस है, और मुझे मिल रहा है तो मै भाग खड़ी होती थी "
आज अनुश्री ना जाने क्यों अपनी दिल कि बात खुल के कह पाई, शायद मांगीलाल कि आँखों मे सच्चा प्यार था,सम्भोग सुख को प्राप्त करने कि लालसा थी. असीम सुख था.
अनुश्री ना जाने क्यों मांगीलाल के गले जा लगी, दोनों के दिल मे शांति थी

बहार सूरज कि किरण निकल गई थी,जिसका सीधा प्रकाश अनुश्री के मनमोहक बदन को भिगो रहा था.
आज एक नयी अनुश्री का उदय हुआ था,वो शर्मीली संस्कारी अनुश्री कल रात कही तूफान मे खो गई थी

"ओह्ह्ह...बिटिया रानी..चाय बन गई है पहले चाय पी लो तुम्हारा पति तुम्हे ढूंढ़ते हुए आता ही होगा "
मांगीलाल और अनुश्री दोनों अलग हुए.
कुछ ही पल मे अनुश्री के हाथ मे चाय का प्याला था.
"वाह काका आपकी चाय तो बहुत स्वादिष्ट है " अनुश्री ने पहली चुस्की लेते हुए कहा
"होंगी भी क्यों नहीं,तुम्हारी चुत से निकला शहद जो है " मांगीलाल बिल्कुल सहज़ बोला
"क्या काका आप भी....अनुश्री शरमा गई,चेहरे पे एक शरारती मुस्कान थी
कितनी बदल गई थी अनुश्री एक ही रात मे.
"मांगीलाल ओ....मांगीलाल..." तभी बहार से एक आवाज़ आई
"ये तो बब्बन कि आवाज़ है, लगता है तुम्हारा पति आ गया बेटा " मांगीलाल और अनुश्री बहार कि और दौड़ पड़े
बहार बब्बन नाव वाला खड़ा था उसके पीछे मंगेश और राजेश
"अनु....अनु....मेरी जान ठीक तो हो ना तुम " जैसे ही मंगेश कि नजर अनुश्री पे पड़ी, दोनों ही भागते हुए एक दूसरे से जा भिड़े
"मंगेश....सुबुक....सुबुक......." अनुश्री रोये जा रही थी
"तुम ठीक तो हो ना अनु " मंगेश ने अनुश्री को अपने से अलग करते हुए कहा.
"सुबुक....सुबुक.....ठीक हूँ मंगेश तुम मेरा ध्यान नहीं रखते " अनुश्री बहुत खफा थी

"सॉरी जान सब कुछ इस तूफान के चक्कर मे हुआ " मंगेश जैसे अपनी जिम्मेदारी से बच रहा हो
"सब तूफान कि वजह से ही तो हुआ है मंगेश ना ये तूफान आता ना मुझे वो असली सुख मिलता "
"कुछ कहा जान " मंगेश ने पूछा
"ननणणन....नहीं तो...अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा दि.

"चले अनु?"
"बाबू मोशाय....ओ....बाबू मोशाय....होम भी चोलेगा " दूर से आती आवाज़ से सभी उसके दिशा मे पलटे.
दूर से बंगाली बंधु धोती सँभालते भागे चले आ रहे थे.
"अरे भाई जिस जिस को चलना है जल्दी चलो वैसे ही बहुत टाइम ख़राब हो गया है मेरा " बब्बन नाक मुँह सिकोड़ते हुए आगे नाव कि तरफ बढ़ चल

बंगाली बंधु भागते हुए बोट पे जा बैठे,जैसे तो ये मौका हाथ से गया तो फिर वापस ना जा पाएंगे.
"चलो अनु आज रात कि ट्रैन से हम.लोग भी घर चले जाते है " मंगेश ने वादे के अनुसार कहा.
"नहीं मंगेश अभी रुकते है ना कुछ दिन,अच्छी जगह है " चलते चलते अनुश्री ने पीछे मुड़ के देखा मांगीलाल हाथ हिलाये जा रहा था,उसकी आँखों मै आँसू थे,शुद्ध प्यार के आँसू.
अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा दि, उसकी आँखों मे एक चमक थी नये जीवन मे कदम रखने कि चमक.
अनुश्री बोट पे सवार हो गई,उसने जीवन का बहुमूल्य सबक सीखा था,अपने जिस्म कि ताकत को पहचाना था.

अनुश्री अब रुक गई है,अपनी जवानी मे फस गई है.
तो क्या वो लुत्फ़ उठा पायेगी.
बने रहिये..... कथा जारी है 😍
 

malikarman

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अपडेट -37

सुबह का आगाज़ हो चला था.
बहार सब कुछ शांत था,एकदम शांत,तूफान के बाद का सन्नाटा,पंछी तक खामोश थे लगता था कल रात के तूफान का खौफ अभी भी कायम था.
मांगीलाल के होटल मे इस से भी ज्यादा शांति छाई हुई थी.
मांगीलाल हर सुबह कि तरह आज भी जल्दी उठा,पास ही अर्ध नग्न अनुश्री चेहरे पे तेज़ लिए हुए लेटी थी वही जमीन पे बेसुध,
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कमर के निचले हिस्से को साड़ी ने धक लिया था, "धन्यवाद बिटिया रानी " मांगीलाल कि आँखों मे बेमिशाल प्यार था वही प्यार जिसे उसने कल रात अनुश्री पे उडेल दिया था
मांगीलाल ने बड़ी ही हसरत भरी नजर से अपना हाथ उठा दिया,वो देखना चाहता था कि कही कल रात सपना तो नहीं देखा था,.
उसकी मंजिल अनुश्री के वो दो उभार थे जो मददम रौशनी मे किसी अमृत कलश कि तरह चमक रहे थे.
जैसे ही मांगीलाल ने स्तन को छूना चाहा ना जाने कैसे अनुश्री पलट गई,चेहरे पे मुस्कान अभी भी बरकरार थी.
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जी भर के अनुश्री के कामुक गोरे बदन को निहारता हुआ मांगीलाल उठ खड़ा हुआ, दो कदम चल के अपनी भागोनी संभाल ली,यही तो काम है उसका,इसी मे तो महारत हासिल है उसे.

फार...फराता चूल्हा दहक उठा,भागोनी चढ़ गई,चाय का पानी भी उबलने लगा...."कहा गया वो,कहा रख दिया." मांगीलाल हाथ मे अदरक लिए बड़बड़ये जा रहा था.
"ओह..मै तो भूल ही गया था " मांगीलाल को जैसे ही याद आया उसके कदम अनुश्री कि तरफ बढ़ चले
अनुश्री बेसुध करवट लिए हुई सोइ थी,साड़ी ने जाँघ का हिस्सा धक लिया था.
"बिटिया रानी तनिक उठो.....बिटिया रानी " मंगीलाल ने अनुश्री को कंधे से पकड़ के हिला दिया
अनुश्री तो जैसे बेसुध सोइ हुई थी,उसकी आवाज़ से बंगाली बंधु जरूर उठ गए लेकिन अनुश्री टस से मस ना हुई
बंगाली बंधु आंख मसलते हुए उठ बैठे, अनुश्री को जमीम पे अर्ध नग्न अवस्था मे लेटा देख उनके लंड ने सुबह कि सलामी दे दि.
"बिटिया रानी उठो....हमको चाय बनानी है " इस बार मांगीलाल ने जरा ज्यादा ही दम लगा दिया

"आए.....हहहहह....हाँ...हनन....क्या हुआ?" अनुश्री एक दम से चौंक उठ बैठी,बैठने से रही सही साड़ी पे पेट और जाँघ के हिस्से पे इक्कठी हो गई.
सुबह सुबह ही एक चांदनी रौशनी कमरे मे बिखर गई, अनुश्री के पहाड़ जैसे स्तन पे सफ़ेद सफ़ेद कुछ जमा हुआ था
" बिटिया रानी....उठो हमको चाय बनानी है "
अनुश्री हड़बड़ा गई जैसे कोई बुरा सपना देखा हो उसकी नजर खुद के जिस्म पे दौड़ गई, उसकी सांस वही अटक के रह गई उसके स्तन खुली हवा मे सांस ले रहे थे.
झट से अनुश्री ने अपनी साड़ी का पल्लू सीने पे डाल लिया.
हक्की बक्की अनुश्री सामने खुद पे झुके हुए मांगीलाल को देखती तो कभी दोनों बंगाली बूढ़ो को.
"बिटिया रानी वो....वो...वो....अदरक कूटने का दस्ता " मांगीलाल का इतना बोलना ही था कि अनुश्री को कल रात का वाक्य याद आ गया उसकी नींद पूरी तरह उड़ गई
दहाशत,शर्म लाज मे जैसे ही उसने उठने कि कोशिश कि.."आआआहहहह.....उफ्फ्फ...आउचम" असानिया दर्द से उसकी गांड वापस जमीन पे जा लगी
उसे अपनी जांघो के बीच कुछ चुभता सा महसूस हो रहा था.
"हे...भगवान....इस...इस....इसका मतलब वो अभी भी मेरे अंदर ही है" अनुश्री सकपका गई

उसका हाथ झट से बिना किसी परवाह के अपनी साड़ी के नीचे से होता हुआ जांघो के बीच जा लगा "आअह्ह्ह....उउउईईमा..." अनुश्री कि सिसकारी निकल गई लेमे दर्द ज्यादा था

अनुश्री के हाथ वो छोटा सा हिस्सा लग ही गया जिसकी उसे होने कि आशंका थी...अनुश्री ने उसे बहार खींचना चाह लेकिन "उफ्फ्फ्फ़.....काका....आउच " दर्द से दोहरी हो गई
वहाँ मौजूद सभी मर्द इस कामुक दर्द भरी कसमकास को बेचैनी से देख रहे थे.
कि तभी...."आआहहहह.....पुकककक....कि आवाज़ के साथ अनुश्री का हाथ साड़ी से बहार आ गया
दर्द से अनुश्री का जिस्म दोहरा हो चला, उसे ऐसा लगा जैसे चुत के अंदर का हिस्सा भी बहार को निकल आया हो

"आआहहहह.....काका...ये लो " अनुश्री ने किसी बेशर्म औरत कि तरह मांगीलाल कि आँखों मे देखते हुए अदरक कूटने का वो दस्ता उसके हाथो मे थमा दिया.
मांगीलाल ने उसके दस्ते का ऊपरी हिस्सा पकड़ अनुश्री कि आँखों के सामने लहरा दिया, जैसे सभी को दिखाना चाह रहा हो वो दस्ता किसी चिपचिपे पदार्थ से सना हुआ था, एक लिसलसे शहद कि तरह एक लम्बी सी लाइन बन गई थी जो सीधा अनुश्री कि चुत और उस दस्ते को आपस मे जोड़ रही थी.
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शहद जैसा मटमेला पदार्थ अनुश्री कि जांघो के आस पास चुपड़ गया था.
अनुश्री ने लज्जा के मारे आंखे बंद कर ली.
"वो क्या है ना चाय मे अदरक डालनी थी " मांगीलाल ने अपने दाँत निपोर दिये.
अनुश्री कि हालत तो कल रात का सोच सोच के ही ख़राब हुए जा रही थी,कैसे वो इस कदर मदहोश हो गई थी.
"ऐसे अफ़सोस नहीं करते अनु बेटा,यही तो जीवन है सुख लेने का नहीं देने का नाम है देखो वो बूढा मांगीलाल कितना ख़ुश है सिर्फ तुम्हारी वजह से,सिर्फ तुम्हारी एक झलक से उसका जीवन सफल हो गया " चाटर्जी अनुश्री कि व्यथा समझ रहा था

"ये वक़्त ग्लानि करने का नहीं है अनु बेटा अपनी जवानी जीने का वक़्त है,तुम.खुद देखो तुम.किसी के जीवन मे कितने रंग भर सकती हो " मुखर्जी ने भी उसका हौसला बढ़ा दिया
अनुश्री कुछ कुछ हल्का महसूस करने लगी,उसकी आत्मगीलानी चकनाचूर होने लगी.
सर उठा के मांगीलाल को देखा "वाकई काका कितने ख़ुश है,कल रात इन्होने वो जीवन जिया जिसकी इन्हे उम्मीद नहीं थी " अनुश्री खुद से बात कर रही थी
"हम जरा फ्रेश हो के आते है तुम कपडे ठीक कर लो कोई ना कोई आता ही होगा हमें ढूंढता हुआ " दोनों बंगाली बूढ़े बहार को निकल गए
अनुश्री एक टक उन्हें देखती ही रह गई "क्या जादू था इनकी बातो मे,सही तो बोल रहे है मैंने आज तक डर के,शरमा के क्या पाया,मंगेश को मेरी कद्र ही नहीं,लेकिन एक बूढा किस तरह से प्यार जता रहा था मुझसे अपना हक़ जमा रहा था मेरे जिस्म.पे "
अनुश्री के चेहरे पे एक मुस्कान तैर आई.
अनुश्री ने आस पास नजर दौडाई उसका ब्लाउज वही जमीन पे पडा था,उसके यकीन के परे था कि ये ब्लाउज खुद उसने अपने हाथो से निकल के फेंका था.
कुछ ही पलो मे अनुश्री किसी कामवती कि तरह फिर से पुरे कपड़ो मे दमक रही थी,चेहरा पहले से ज्यादा खिला हुआ था
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"ठाक...ठाक...धाड़ धाड़.....करता मांगीलाल अदरक कूटने मे व्यस्त था, अनुश्री का ध्यान जैसे ही उसके दिशा मे गया उसकी नजरें मांगीलाल से मिल गई,.
जो अदरक तो कूट रहा था लेकिन उसकी नजरें सामने अनुश्री पे ही टिकी हुई थी.
अनुश्री हाथ पीछे किये अपने खूबसूरत घने बालो को बांध रही थी..उसकी चिकनी कामुक कांख उजाले मे चमक बिखेर रही थी.
जैसे मांगीलाल को बुला रही हो,आज अनुश्री के व्यवहार मे कोई शर्म लज्जा नहीं दिख रही थी.

"उउउउमममममम.....काका.." अनुश्री के मुँह से हल्की सी आह निकल गई अदरक कूटता दस्ता ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी चुत को कूट रहा हो
.
कल रात का दर्द मजा अनुश्री के जिस्म को फिर से भीगा गया.
"धन्यवाद बिटिया रानी...कल तुम्हारी वजह से अपना नीरस जीवन खुशी से जी पाया " मांगीलाल कि आवाज़ मे कर्तग्यता थी एक अहसान था

"काका....." अनुश्री सिर्फ इतना ही बोल पाई उसकी जबान लड़खड़ा गई,गला भर्रा गया
" मेरे ऊपर नपुंसकता का दाग़ था जो तुमने धूल दिया,अब मै शांति से मर सकता हूँ " मांगीलाल का गला भर्रा उठा,आंखे डबदबा आई.
"कैसी बात करते हो काका " अनुश्री का दिल भी भर आया आज उसे अपने यौवन का असली महत्व मालूम चला था.
"कामसुख किसी के लिए क्या मायने रखता है,और एक मै हूँ जो हमेशा दूर भागती रही " ऐसा मत बोलिये काका अभी तो बहुत जीना है आपको

"और कल रात के लिए सॉरी बिटिया रानी,मेरा वीर्य निकलने के बाद मै गुस्से मे आ गया था लेकिन तुम्हारी तड़प देख के रहा नहीं गया इसकिये ये दस्ता ही घुसेड़ दिया था,माफ़ करना मुझे " मांगीलाल ने हाथ जोड़ लिए
क्या निश्छल प्यार था, हवस के विपरीत दिल पिघल के मांगीलाल कि हथेली पे था.
"ऐसा मत बोलो काका,कल आपने मुझे अपने जीवन का असली मतलब बताया " अनुश्री ने दौड़ के मांगीलाल के हाथ पकड़ लिए
अनुश्री कि आँखों मे भी आँसू थे


"कल मुझे भी आपसे वो सुख मिला,जिसके लिए मै तरसती तो थी लेकिन भागती थी,आपसे मिल के जाना जिसके जीवन मे ये सुख नहीं है वो कितना लाचार है बेबस है, और मुझे मिल रहा है तो मै भाग खड़ी होती थी "
आज अनुश्री ना जाने क्यों अपनी दिल कि बात खुल के कह पाई, शायद मांगीलाल कि आँखों मे सच्चा प्यार था,सम्भोग सुख को प्राप्त करने कि लालसा थी. असीम सुख था.
अनुश्री ना जाने क्यों मांगीलाल के गले जा लगी, दोनों के दिल मे शांति थी

बहार सूरज कि किरण निकल गई थी,जिसका सीधा प्रकाश अनुश्री के मनमोहक बदन को भिगो रहा था.
आज एक नयी अनुश्री का उदय हुआ था,वो शर्मीली संस्कारी अनुश्री कल रात कही तूफान मे खो गई थी

"ओह्ह्ह...बिटिया रानी..चाय बन गई है पहले चाय पी लो तुम्हारा पति तुम्हे ढूंढ़ते हुए आता ही होगा "
मांगीलाल और अनुश्री दोनों अलग हुए.
कुछ ही पल मे अनुश्री के हाथ मे चाय का प्याला था.
"वाह काका आपकी चाय तो बहुत स्वादिष्ट है " अनुश्री ने पहली चुस्की लेते हुए कहा
"होंगी भी क्यों नहीं,तुम्हारी चुत से निकला शहद जो है " मांगीलाल बिल्कुल सहज़ बोला
"क्या काका आप भी....अनुश्री शरमा गई,चेहरे पे एक शरारती मुस्कान थी
कितनी बदल गई थी अनुश्री एक ही रात मे.
"मांगीलाल ओ....मांगीलाल..." तभी बहार से एक आवाज़ आई
"ये तो बब्बन कि आवाज़ है, लगता है तुम्हारा पति आ गया बेटा " मांगीलाल और अनुश्री बहार कि और दौड़ पड़े
बहार बब्बन नाव वाला खड़ा था उसके पीछे मंगेश और राजेश
"अनु....अनु....मेरी जान ठीक तो हो ना तुम " जैसे ही मंगेश कि नजर अनुश्री पे पड़ी, दोनों ही भागते हुए एक दूसरे से जा भिड़े
"मंगेश....सुबुक....सुबुक......." अनुश्री रोये जा रही थी
"तुम ठीक तो हो ना अनु " मंगेश ने अनुश्री को अपने से अलग करते हुए कहा.
"सुबुक....सुबुक.....ठीक हूँ मंगेश तुम मेरा ध्यान नहीं रखते " अनुश्री बहुत खफा थी

"सॉरी जान सब कुछ इस तूफान के चक्कर मे हुआ " मंगेश जैसे अपनी जिम्मेदारी से बच रहा हो
"सब तूफान कि वजह से ही तो हुआ है मंगेश ना ये तूफान आता ना मुझे वो असली सुख मिलता "
"कुछ कहा जान " मंगेश ने पूछा
"ननणणन....नहीं तो...अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा दि.

"चले अनु?"
"बाबू मोशाय....ओ....बाबू मोशाय....होम भी चोलेगा " दूर से आती आवाज़ से सभी उसके दिशा मे पलटे.
दूर से बंगाली बंधु धोती सँभालते भागे चले आ रहे थे.
"अरे भाई जिस जिस को चलना है जल्दी चलो वैसे ही बहुत टाइम ख़राब हो गया है मेरा " बब्बन नाक मुँह सिकोड़ते हुए आगे नाव कि तरफ बढ़ चल

बंगाली बंधु भागते हुए बोट पे जा बैठे,जैसे तो ये मौका हाथ से गया तो फिर वापस ना जा पाएंगे.
"चलो अनु आज रात कि ट्रैन से हम.लोग भी घर चले जाते है " मंगेश ने वादे के अनुसार कहा.
"नहीं मंगेश अभी रुकते है ना कुछ दिन,अच्छी जगह है " चलते चलते अनुश्री ने पीछे मुड़ के देखा मांगीलाल हाथ हिलाये जा रहा था,उसकी आँखों मै आँसू थे,शुद्ध प्यार के आँसू.
अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा दि, उसकी आँखों मे एक चमक थी नये जीवन मे कदम रखने कि चमक.
अनुश्री बोट पे सवार हो गई,उसने जीवन का बहुमूल्य सबक सीखा था,अपने जिस्म कि ताकत को पहचाना था.

अनुश्री अब रुक गई है,अपनी जवानी मे फस गई है.
तो क्या वो लुत्फ़ उठा पायेगी.
बने रहिये..... कथा जारी है 😍
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सुबह का आगाज़ हो चला था.
बहार सब कुछ शांत था,एकदम शांत,तूफान के बाद का सन्नाटा,पंछी तक खामोश थे लगता था कल रात के तूफान का खौफ अभी भी कायम था.
मांगीलाल के होटल मे इस से भी ज्यादा शांति छाई हुई थी.
मांगीलाल हर सुबह कि तरह आज भी जल्दी उठा,पास ही अर्ध नग्न अनुश्री चेहरे पे तेज़ लिए हुए लेटी थी वही जमीन पे बेसुध,
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कमर के निचले हिस्से को साड़ी ने धक लिया था, "धन्यवाद बिटिया रानी " मांगीलाल कि आँखों मे बेमिशाल प्यार था वही प्यार जिसे उसने कल रात अनुश्री पे उडेल दिया था
मांगीलाल ने बड़ी ही हसरत भरी नजर से अपना हाथ उठा दिया,वो देखना चाहता था कि कही कल रात सपना तो नहीं देखा था,.
उसकी मंजिल अनुश्री के वो दो उभार थे जो मददम रौशनी मे किसी अमृत कलश कि तरह चमक रहे थे.
जैसे ही मांगीलाल ने स्तन को छूना चाहा ना जाने कैसे अनुश्री पलट गई,चेहरे पे मुस्कान अभी भी बरकरार थी.
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जी भर के अनुश्री के कामुक गोरे बदन को निहारता हुआ मांगीलाल उठ खड़ा हुआ, दो कदम चल के अपनी भागोनी संभाल ली,यही तो काम है उसका,इसी मे तो महारत हासिल है उसे.

फार...फराता चूल्हा दहक उठा,भागोनी चढ़ गई,चाय का पानी भी उबलने लगा...."कहा गया वो,कहा रख दिया." मांगीलाल हाथ मे अदरक लिए बड़बड़ये जा रहा था.
"ओह..मै तो भूल ही गया था " मांगीलाल को जैसे ही याद आया उसके कदम अनुश्री कि तरफ बढ़ चले
अनुश्री बेसुध करवट लिए हुई सोइ थी,साड़ी ने जाँघ का हिस्सा धक लिया था.
"बिटिया रानी तनिक उठो.....बिटिया रानी " मंगीलाल ने अनुश्री को कंधे से पकड़ के हिला दिया
अनुश्री तो जैसे बेसुध सोइ हुई थी,उसकी आवाज़ से बंगाली बंधु जरूर उठ गए लेकिन अनुश्री टस से मस ना हुई
बंगाली बंधु आंख मसलते हुए उठ बैठे, अनुश्री को जमीम पे अर्ध नग्न अवस्था मे लेटा देख उनके लंड ने सुबह कि सलामी दे दि.
"बिटिया रानी उठो....हमको चाय बनानी है " इस बार मांगीलाल ने जरा ज्यादा ही दम लगा दिया

"आए.....हहहहह....हाँ...हनन....क्या हुआ?" अनुश्री एक दम से चौंक उठ बैठी,बैठने से रही सही साड़ी पे पेट और जाँघ के हिस्से पे इक्कठी हो गई.
सुबह सुबह ही एक चांदनी रौशनी कमरे मे बिखर गई, अनुश्री के पहाड़ जैसे स्तन पे सफ़ेद सफ़ेद कुछ जमा हुआ था
" बिटिया रानी....उठो हमको चाय बनानी है "
अनुश्री हड़बड़ा गई जैसे कोई बुरा सपना देखा हो उसकी नजर खुद के जिस्म पे दौड़ गई, उसकी सांस वही अटक के रह गई उसके स्तन खुली हवा मे सांस ले रहे थे.
झट से अनुश्री ने अपनी साड़ी का पल्लू सीने पे डाल लिया.
हक्की बक्की अनुश्री सामने खुद पे झुके हुए मांगीलाल को देखती तो कभी दोनों बंगाली बूढ़ो को.
"बिटिया रानी वो....वो...वो....अदरक कूटने का दस्ता " मांगीलाल का इतना बोलना ही था कि अनुश्री को कल रात का वाक्य याद आ गया उसकी नींद पूरी तरह उड़ गई
दहाशत,शर्म लाज मे जैसे ही उसने उठने कि कोशिश कि.."आआआहहहह.....उफ्फ्फ...आउचम" असानिया दर्द से उसकी गांड वापस जमीन पे जा लगी
उसे अपनी जांघो के बीच कुछ चुभता सा महसूस हो रहा था.
"हे...भगवान....इस...इस....इसका मतलब वो अभी भी मेरे अंदर ही है" अनुश्री सकपका गई

उसका हाथ झट से बिना किसी परवाह के अपनी साड़ी के नीचे से होता हुआ जांघो के बीच जा लगा "आअह्ह्ह....उउउईईमा..." अनुश्री कि सिसकारी निकल गई लेमे दर्द ज्यादा था

अनुश्री के हाथ वो छोटा सा हिस्सा लग ही गया जिसकी उसे होने कि आशंका थी...अनुश्री ने उसे बहार खींचना चाह लेकिन "उफ्फ्फ्फ़.....काका....आउच " दर्द से दोहरी हो गई
वहाँ मौजूद सभी मर्द इस कामुक दर्द भरी कसमकास को बेचैनी से देख रहे थे.
कि तभी...."आआहहहह.....पुकककक....कि आवाज़ के साथ अनुश्री का हाथ साड़ी से बहार आ गया
दर्द से अनुश्री का जिस्म दोहरा हो चला, उसे ऐसा लगा जैसे चुत के अंदर का हिस्सा भी बहार को निकल आया हो

"आआहहहह.....काका...ये लो " अनुश्री ने किसी बेशर्म औरत कि तरह मांगीलाल कि आँखों मे देखते हुए अदरक कूटने का वो दस्ता उसके हाथो मे थमा दिया.
मांगीलाल ने उसके दस्ते का ऊपरी हिस्सा पकड़ अनुश्री कि आँखों के सामने लहरा दिया, जैसे सभी को दिखाना चाह रहा हो वो दस्ता किसी चिपचिपे पदार्थ से सना हुआ था, एक लिसलसे शहद कि तरह एक लम्बी सी लाइन बन गई थी जो सीधा अनुश्री कि चुत और उस दस्ते को आपस मे जोड़ रही थी.
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शहद जैसा मटमेला पदार्थ अनुश्री कि जांघो के आस पास चुपड़ गया था.
अनुश्री ने लज्जा के मारे आंखे बंद कर ली.
"वो क्या है ना चाय मे अदरक डालनी थी " मांगीलाल ने अपने दाँत निपोर दिये.
अनुश्री कि हालत तो कल रात का सोच सोच के ही ख़राब हुए जा रही थी,कैसे वो इस कदर मदहोश हो गई थी.
"ऐसे अफ़सोस नहीं करते अनु बेटा,यही तो जीवन है सुख लेने का नहीं देने का नाम है देखो वो बूढा मांगीलाल कितना ख़ुश है सिर्फ तुम्हारी वजह से,सिर्फ तुम्हारी एक झलक से उसका जीवन सफल हो गया " चाटर्जी अनुश्री कि व्यथा समझ रहा था

"ये वक़्त ग्लानि करने का नहीं है अनु बेटा अपनी जवानी जीने का वक़्त है,तुम.खुद देखो तुम.किसी के जीवन मे कितने रंग भर सकती हो " मुखर्जी ने भी उसका हौसला बढ़ा दिया
अनुश्री कुछ कुछ हल्का महसूस करने लगी,उसकी आत्मगीलानी चकनाचूर होने लगी.
सर उठा के मांगीलाल को देखा "वाकई काका कितने ख़ुश है,कल रात इन्होने वो जीवन जिया जिसकी इन्हे उम्मीद नहीं थी " अनुश्री खुद से बात कर रही थी
"हम जरा फ्रेश हो के आते है तुम कपडे ठीक कर लो कोई ना कोई आता ही होगा हमें ढूंढता हुआ " दोनों बंगाली बूढ़े बहार को निकल गए
अनुश्री एक टक उन्हें देखती ही रह गई "क्या जादू था इनकी बातो मे,सही तो बोल रहे है मैंने आज तक डर के,शरमा के क्या पाया,मंगेश को मेरी कद्र ही नहीं,लेकिन एक बूढा किस तरह से प्यार जता रहा था मुझसे अपना हक़ जमा रहा था मेरे जिस्म.पे "
अनुश्री के चेहरे पे एक मुस्कान तैर आई.
अनुश्री ने आस पास नजर दौडाई उसका ब्लाउज वही जमीन पे पडा था,उसके यकीन के परे था कि ये ब्लाउज खुद उसने अपने हाथो से निकल के फेंका था.
कुछ ही पलो मे अनुश्री किसी कामवती कि तरह फिर से पुरे कपड़ो मे दमक रही थी,चेहरा पहले से ज्यादा खिला हुआ था
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"ठाक...ठाक...धाड़ धाड़.....करता मांगीलाल अदरक कूटने मे व्यस्त था, अनुश्री का ध्यान जैसे ही उसके दिशा मे गया उसकी नजरें मांगीलाल से मिल गई,.
जो अदरक तो कूट रहा था लेकिन उसकी नजरें सामने अनुश्री पे ही टिकी हुई थी.
अनुश्री हाथ पीछे किये अपने खूबसूरत घने बालो को बांध रही थी..उसकी चिकनी कामुक कांख उजाले मे चमक बिखेर रही थी.
जैसे मांगीलाल को बुला रही हो,आज अनुश्री के व्यवहार मे कोई शर्म लज्जा नहीं दिख रही थी.

"उउउउमममममम.....काका.." अनुश्री के मुँह से हल्की सी आह निकल गई अदरक कूटता दस्ता ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी चुत को कूट रहा हो
.
कल रात का दर्द मजा अनुश्री के जिस्म को फिर से भीगा गया.
"धन्यवाद बिटिया रानी...कल तुम्हारी वजह से अपना नीरस जीवन खुशी से जी पाया " मांगीलाल कि आवाज़ मे कर्तग्यता थी एक अहसान था

"काका....." अनुश्री सिर्फ इतना ही बोल पाई उसकी जबान लड़खड़ा गई,गला भर्रा गया
" मेरे ऊपर नपुंसकता का दाग़ था जो तुमने धूल दिया,अब मै शांति से मर सकता हूँ " मांगीलाल का गला भर्रा उठा,आंखे डबदबा आई.
"कैसी बात करते हो काका " अनुश्री का दिल भी भर आया आज उसे अपने यौवन का असली महत्व मालूम चला था.
"कामसुख किसी के लिए क्या मायने रखता है,और एक मै हूँ जो हमेशा दूर भागती रही " ऐसा मत बोलिये काका अभी तो बहुत जीना है आपको

"और कल रात के लिए सॉरी बिटिया रानी,मेरा वीर्य निकलने के बाद मै गुस्से मे आ गया था लेकिन तुम्हारी तड़प देख के रहा नहीं गया इसकिये ये दस्ता ही घुसेड़ दिया था,माफ़ करना मुझे " मांगीलाल ने हाथ जोड़ लिए
क्या निश्छल प्यार था, हवस के विपरीत दिल पिघल के मांगीलाल कि हथेली पे था.
"ऐसा मत बोलो काका,कल आपने मुझे अपने जीवन का असली मतलब बताया " अनुश्री ने दौड़ के मांगीलाल के हाथ पकड़ लिए
अनुश्री कि आँखों मे भी आँसू थे


"कल मुझे भी आपसे वो सुख मिला,जिसके लिए मै तरसती तो थी लेकिन भागती थी,आपसे मिल के जाना जिसके जीवन मे ये सुख नहीं है वो कितना लाचार है बेबस है, और मुझे मिल रहा है तो मै भाग खड़ी होती थी "
आज अनुश्री ना जाने क्यों अपनी दिल कि बात खुल के कह पाई, शायद मांगीलाल कि आँखों मे सच्चा प्यार था,सम्भोग सुख को प्राप्त करने कि लालसा थी. असीम सुख था.
अनुश्री ना जाने क्यों मांगीलाल के गले जा लगी, दोनों के दिल मे शांति थी

बहार सूरज कि किरण निकल गई थी,जिसका सीधा प्रकाश अनुश्री के मनमोहक बदन को भिगो रहा था.
आज एक नयी अनुश्री का उदय हुआ था,वो शर्मीली संस्कारी अनुश्री कल रात कही तूफान मे खो गई थी

"ओह्ह्ह...बिटिया रानी..चाय बन गई है पहले चाय पी लो तुम्हारा पति तुम्हे ढूंढ़ते हुए आता ही होगा "
मांगीलाल और अनुश्री दोनों अलग हुए.
कुछ ही पल मे अनुश्री के हाथ मे चाय का प्याला था.
"वाह काका आपकी चाय तो बहुत स्वादिष्ट है " अनुश्री ने पहली चुस्की लेते हुए कहा
"होंगी भी क्यों नहीं,तुम्हारी चुत से निकला शहद जो है " मांगीलाल बिल्कुल सहज़ बोला
"क्या काका आप भी....अनुश्री शरमा गई,चेहरे पे एक शरारती मुस्कान थी
कितनी बदल गई थी अनुश्री एक ही रात मे.
"मांगीलाल ओ....मांगीलाल..." तभी बहार से एक आवाज़ आई
"ये तो बब्बन कि आवाज़ है, लगता है तुम्हारा पति आ गया बेटा " मांगीलाल और अनुश्री बहार कि और दौड़ पड़े
बहार बब्बन नाव वाला खड़ा था उसके पीछे मंगेश और राजेश
"अनु....अनु....मेरी जान ठीक तो हो ना तुम " जैसे ही मंगेश कि नजर अनुश्री पे पड़ी, दोनों ही भागते हुए एक दूसरे से जा भिड़े
"मंगेश....सुबुक....सुबुक......." अनुश्री रोये जा रही थी
"तुम ठीक तो हो ना अनु " मंगेश ने अनुश्री को अपने से अलग करते हुए कहा.
"सुबुक....सुबुक.....ठीक हूँ मंगेश तुम मेरा ध्यान नहीं रखते " अनुश्री बहुत खफा थी

"सॉरी जान सब कुछ इस तूफान के चक्कर मे हुआ " मंगेश जैसे अपनी जिम्मेदारी से बच रहा हो
"सब तूफान कि वजह से ही तो हुआ है मंगेश ना ये तूफान आता ना मुझे वो असली सुख मिलता "
"कुछ कहा जान " मंगेश ने पूछा
"ननणणन....नहीं तो...अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा दि.

"चले अनु?"
"बाबू मोशाय....ओ....बाबू मोशाय....होम भी चोलेगा " दूर से आती आवाज़ से सभी उसके दिशा मे पलटे.
दूर से बंगाली बंधु धोती सँभालते भागे चले आ रहे थे.
"अरे भाई जिस जिस को चलना है जल्दी चलो वैसे ही बहुत टाइम ख़राब हो गया है मेरा " बब्बन नाक मुँह सिकोड़ते हुए आगे नाव कि तरफ बढ़ चल

बंगाली बंधु भागते हुए बोट पे जा बैठे,जैसे तो ये मौका हाथ से गया तो फिर वापस ना जा पाएंगे.
"चलो अनु आज रात कि ट्रैन से हम.लोग भी घर चले जाते है " मंगेश ने वादे के अनुसार कहा.
"नहीं मंगेश अभी रुकते है ना कुछ दिन,अच्छी जगह है " चलते चलते अनुश्री ने पीछे मुड़ के देखा मांगीलाल हाथ हिलाये जा रहा था,उसकी आँखों मै आँसू थे,शुद्ध प्यार के आँसू.
अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा दि, उसकी आँखों मे एक चमक थी नये जीवन मे कदम रखने कि चमक.
अनुश्री बोट पे सवार हो गई,उसने जीवन का बहुमूल्य सबक सीखा था,अपने जिस्म कि ताकत को पहचाना था.

अनुश्री अब रुक गई है,अपनी जवानी मे फस गई है.
तो क्या वो लुत्फ़ उठा पायेगी.
बने रहिये..... कथा जारी है 😍
एक दम मस्त लेखनी

20220405-162536
 
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Yash420

👉 कुछ तुम कहो कुछ हम कहें 👈
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Awesome update
 

imaamitrai

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Ab aaye is story me asli mazaaaa
 
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