Bhai, blog page par sign in notice aa raha hain...unble to enter the blog..दोस्तों आप लोगो के प्यार से मैंने अपना adult ब्लॉग भी क्रिएट कर दिया है.
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Awesome and Great Story Broअपडेट -38
होटल मयूर
तूफ़ान कि रात
"ठाक ठाक ठाक......रेखा जी, रेखा जी " रूम नंबर 103 का दरवाजा खटखटाया जा रहा था.
"चररररर.....करता दरवाजा खुल गया " अन्ना जी आप
"हाँ अअअअअ....हाँ...रेखा जी...." रेखा के सामने आते ही अन्ना कि घिघी बंध गई,वो तो रेखा के एक दीदार के लिए तड़पता था, जबकि सामने रेखा अपने गद्दाराये बदन को जैसे तैसे साड़ी मे समेटे खड़ी थी.
सिंपल सादगी लिए हुए.
"क्या हुआ अन्ना जी " रेखा कि मधुर आवाज़ फिर से अन्ना के कानो मे घुल गई.
"वो....मै...क्या....वो....अअअअअ...अभी लेक से बब्बन का फ़ोन आया था कि तूफान कि वजह से कुछ यात्री टापू ले रह गए है, राजेश मंगेश उन्ही के साथ है,तो आप फ़िक्र ना करे कल सुबह वो लोग आ जायेंगे "
अन्ना ने रेखा को सूचित करना अपना फर्ज़ समझा, और एक ही सांस मे पूरी बात कह गया.
"हे भगवान.....मेरे बच्चे कहाँ फस गए,ये मुआ तूफान इसे अभी आना था " रेखा चिंतित थी
कि शाययययय.....करती ठंडी हवा दरवाजे पे खड़ी रेखा से जा टकराई.
उसकी सारी का पल्लू सरसराता रूम के अंदर भागा.
पल्लू का हटना ही था कि एक कामुक नजारा अन्ना कि आँखों के सामने चमक उठा.
रेखा कि बेशकीमती सुंदरता तंग ब्लाउज से बहार झाँकने लगी.
अन्ना तो पहले से ही रेखा कि खूबसूरती का कायल था,ये नजारा देख उसकी दिल कि धड़कन जवाब देने लगी.
जैसे ही रेखा को अपनी अर्धनागनता का अहसास हुआ.
दोनों हाथ तेज़ी से अपने पल्लू को समेटने भागे, बस यही रेखा वो गलती कर गई जो नहीं करना था, पल्लू उठाने के चक्कर मे वो थोड़ी सी झुकी,सम्पूर्ण स्तन जैसे बहार को लुढ़क के आ गया हो.
एक भारी सा अहसास ब्लाउज से निकलने को हुआ,उधर स्तन जैसे जैसे बहार आते गए अन्ना कि आंखे अपने कटोरे से बहार को निकल पड़ी.
ऐसा अद्भुत सौन्दर्य,ऐसा नजारा उसके सहन के बहार था.
आखिर रेखा कि मेहनत रंग लाइ,बेकबू पल्लू वापस उसके अनमोल चमक को ढक चूक था.
"वो..वो...रेखा जी " अन्ना को जैसे होश आया हो, सामने पर्दा गिर जाने से उसकी जडवत अवस्था ख़त्म ही गई लेकिन उसकी जबान अभी भी लड़खड़ा रही थी.
रेखा के भी रोंगटे खड़े हो चले,मौसम कि मार ही कुछ ऐसी थी ऊपर से अन्ना जैसा मजबूत मर्द सामने खड़ा था.
अन्ना कि हालत देख रेखा कि हसीं छूट गई.
"वो...वो...मै......" अन्ना शर्मिंदा हो चला
"कक्क..कोई बात नहीं अंन्ना जी " रेखा ने सहज़ ही कहा.
कि तभी."ताड़क.....तड़...तड़ाक.....चिरररर.....करती जोरदार बिजली कड़की,एक धमकेदार उजाला हुआ और चारो तरफ अंधेरा छा गया.
बिजली कि गर्जना के साथ ही "आआआहहहहहब्ब......आउच....हे भगवान " रेखा भी चीख पड़ी.
आनन फानन ही सामने खड़े अन्ना से जा लिपटी,ऐसी लिपटी जैसे किसी पेड़ से बेल.
"हुम्म्मफ़्फ़्फ़...हमफ....हमफ्फ...रेखा कि सांसे उखाड़ रही थी, आंखे बंद किये वो अन्ना से चिपकी रही
अन्ना तो मानो जैसे कही खो गया था,उसको सांस ही नहीं आ रही थी,उसका जिस्म पहली बार किसी स्त्री के सम्पर्क मे था, वो भी कामुक गद्दाराई औरत का भरा हुआ जिस्म.
"मममम......मुझे बिजली से डर लगता है " रेखा आंख बंद किये ही बड़बड़ा रही थी, उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी आंख खोलने कि..
अन्ना के सीने मे दो गद्देदार तीर घुसे हुए थे वो तो घायल था कामवासना मे घायल,स्त्री के मदहोश महक से घायल.
नतीजा तुरंत ही सामने आया,अन्ना कि लुंगी मे एक उभार पनप गया,जो कुछ टटोल रहा था,
ये उभार कुछ ज्यादा ही बढ़ा होता चला गया,और रेखा कि जांघो के बीच दस्तक देने लगा.
"ओह..आउचम..ये...ये....." रेखा तुरंत पीछे हो हट गई,उसकी आंखे खुल गई.
चारो तरफ अंधेरा था उसकी निगाहेँ नीचे को गई लेकिन अँधेरे मे सिर्फ हलका सा उठाव ही दिखा,रेखा शादीशुदा थी समझते देर ना लगी कि वो क्या है.
"वो...वो.....वो...माफ़ करना रेखा जी....मैंन पहली बार किसी स्त्री को छुवा, ना जाने ये....ये कैसे हो गया " अन्ना ने घबराते हुए दिल कि बात कह दि वो शर्मिंदा था
"कककक.....कोई बात नहीं समझ सकती हूँ " रेखा सिर्फ मुस्कुरा दि, उसका पल्लू अन्ना के जिस्म मे कही फस गया था परन्तु इस बार उसने अपना पल्लू उठाने कि बिल्कुल भी कोशिश नहीं कि.
"अन्ना जी मुझे अँधेरे से डर लगता है,यदि आपको दिक्कत ना ही तो थोड़ी देर रुक जाते " रेखा ने बहुत ही मासूमियत से कहाँ
अब कोई गधा ही होगा जो ऐसे मासूम आग्रह वो भी एक कामुक औरत के मुँह से सुन के नामंजूर कर दे.
"जी....जी.....ठीक...ठीक है " मौसम अपना रंग दिखा रहा था,ठंडी हवा प्यासे लोगो कि प्यास और भड़का रही थी.
मौसम ठंडा था लेकिन अन्ना और रेखा का जिस्म गरम थे बहुत गरम
अन्ना ने धड़कते दिल के साथ कमरे मे कदम रख दिया, चररररर.....करता दरवाजा अपनी चौखट से जा लगा.
तूफान साय साय करता उसके दरवाजे को धक्का देता लेकिन उसकी कोशिश बेकार थी,रात भर दरवाजा नहीं खुला.
सुबह का सूरज निकल आया था,चारो तरफ शांति थी, कल रात का तूफान कई जिंदगीयों से हो के गुजरा था.
होटल मयूर
एक कार दरवाजे पे आ के रुकी
"साब जी....साब जी....कहाँ रह गए थे आप लोग? ठीक तो है ना आप सब?" बहादुर भागता हुआ कार के पास पंहुचा, उसके चेहरे पे चिंता कि साफ लकीरें थी
"अरे बहादुर फ़िक्र कि बात नहीं है सब ठीक है,बस कल तूफान मे उधर ही रुक गए थे " मंगेश कार से उतर गया
पीछे पीछे राजेश और अनुश्री भी उतर गए.
"माँ चिंता कर रही होंगी भैया " राजेश तेज़ कदमो से अपने कमरे कि और बढ़ चला.
"चिंता कि बात नहीं है सर रेखा जी को मैंने कल रात ही सूचित कर दिया था" पीछे से आई अन्ना कि आवाज़ ने सभी के ध्यान खिंचा.
"थैंक यू अन्ना जी अपने काफ़ी मदद कि " मंगेश और राजेश ने साथ ही धन्यवाद किया.
तीनो ही कमरे कि और बढ़ चले. आगे राजेश भागा जा राहा था पीछे अनुश्री धीरेकदमो से चल रही थी.
"अरे अनु क्या हुआ पैर मे चोट लगी है क्या? ऐसे लचक के क्यों चल रही हो " पीछे आते मंगेश कि नजर अनुश्री कि चल पे पड़ी जो कि सामान्य से अलग जान पड़ रही थी.
"वो...वो....उफ्फ्फ...कक्क...कुछ नहीं कल रेत मे पैर धसने से थोड़ी लचक आ गई है " अनुश्री साफ साफ झूठ बोल गई.
सर झुकाये चलती चली गई "उफ्फ्फ....ये जलन क्यों हो रही है " अनुश्री जैसे ही कदम आगे बढ़ाती उसके जांघो के बीच का हिस्सा आपस मे रगड़ खा जाता.
एक हल्की सी दर्द कि लहर से उसका बदन हिल जाता.
इस दर्द मे कही ना कही कुछ सुकून भी था..
इस दर्द से उसकी गांड कुछ ज्यादा लचक रही थी.
पहली बार अनुश्री कि चुत मे कुछ मोटा मुसल घुसा था,भले वो अदरक कूटने का दस्ता ही क्यों ना हो, बरसो से चिपकी चुत कि दीवारे हिल गई थी मांगीलाल के हमले से.
दर्द के बावजूद अनुश्री के चेहरे पे मुस्कान थी.
दोनों ही कमरे मे दाखिल हो गए थे.
रूम नंबर 103
राजेश भी लगभग भागता हुआ कमरे मे दाखिल हुआ,उसके गेट पे हाथ रखते ही चर्चारता दरवाजा खुल गया.
"माँ...माँ......राजेश रेखा को पुकारता अंदर दाखिल हो चला,जैसे ही अंदर आया एक कैसेली उत्तेजित अजीब गंध से उसकी नाक भर गई..
"ये...ये....गंध कैसी है उसके दिन भी ऐसी ही आ रही थी.
सामने बिस्तर पे रेखा सीधी पीठ के बल चीत साड़ी मे लिपटी लेटी थी. स्तन सिर्फ पतली सी साड़ी से धके थे, जाँघे पूरी खुली हुई अपनी चमक बिखेर रही थी.
"माँ...माँ...माँ....मै आ गया" राजेश कि आवाज़ जैसे ही रेखा के कानो मे पड़ी वो सकपका के उठ बैठी.
उठने से रहा सहा पर्दा भी स्तन से सरक गया,कमरे मे अँधेरे कि वजह से राजेश का धयान उधर गया ही नहीं,रेखा तो जैसे सुध बुध ही नहीं थी.
"राजेश....बेटा राजेश कहाँ रह गया था " तुरंत बिस्तर से उठ राजेश को गले लगा लिया.
रेखा के दिल मे सिर्फ ममता थी,अपने बच्चे के लिए भर भर के प्यार था.
"ठीक हूँ मै माँ " राजेश ने भी अपनी माँ को आगोश मे भर लिया परन्तु आज कुछ नया था.
कुछ तो था...जो अलग था.
राजेश को अपनी छाती पे कुछ गद्देदार सा अहसास हो रहा था जैसे उसकी माँ और उसके बीच कोई कपड़ा ही ना हो.
रेखा भी जोश ममता मे गले तो जा लगी परन्तु उसे भी इसी बात का अहसास हुआ,जैसे हवा सीधा उसके नंगे बदन को छू रही है.
इस बात का अहसास होते ही उसके सामने कल रात का वाक्य घूम गया,कल पूरी रात वो अन्ना के साथ इसी बिस्तर पे थी.
रेखा के ऊपर जैसे बिजली गिरी गई हो,उसकी चोरी पकड़ी गई हो,क्या जवाब देगी अपने बेटे को.
वो अर्धनग्न क्यों है?
माँ बेटे दोनों के चेहरे शर्म से लाल हो चले,
"वो...वो...बेटा मै अकेली...." रेखा समझ चुकी थी कि सच बता देने मे ही समझदारी है.
"कोई बात नहीं माँ....आप कमरे मे अकेली थी तो कपड़ो का ध्यान नहीं रह पाता " राजेश ऐसा बोल के अलग होना चाहा.
रेखा का दिमाग़ तो अभी भी साय साय कर रहा था,किस कदर साफ साफ बच निकली थी,वो अपने हाथो अपनी ही क़ब्र खोदने चली थी.
रेखा को डर था कि वो पीछे हटी और उसके खूबसूरत नग्न बूब्स अपने सगे बेटे के ही सामने आ जायेंगे.
ये सोचते ही उसका दिल फिर से ढाड़ ढाड़ कर बज उठा
"कोई बात नहीं माँ होता है" बोलता हुआ राजेश अलग हो के तुरंत पलट गया और बाथरूम मे जा घुसा.
रेखा हक्की बक्की वही आवक सी मुँह बाये खड़ी रह गई "कितना संस्कारी है मेरा बेटा " रेखा मुस्कुरा दि और अपना ब्लाउज टटोलने लगी.
उसके चेहरे एक खुशी से जगमगा रहा था.
अंदर बाथरूम मे "माँ वाकई जवान है अभी अन्ना ठीक ही कहता है, माँ तो अभी भी शादी लायक है और कहाँ वो मेरी शादीशुदा के पीछे पड़ी रहती है हेहेहेहे...." राजेश मुस्कुरा दिया
कितना भोला था राजेश समझ के भी ना समझा कि औरत क्या चीज होती है,
वो कैसेली गंध प्यार कि गंध है.
रूम नंबर 102
"सॉरी जान मैंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया था " मंगेश अंदर आते ही अनुश्री को अपने आगोश मे भर लिया
"कोई बात नहीं मंगेश हो जाता है कभी कभी " अनुश्री ने सहज़ ही जवाब दिया आजन्हसके लहजे मे कोई डर फ़िक्र नहीं थी,ना ही कोई शिकायत.
एक ही रात मे काफ़ी बदल गई थी अनुश्री,या यूँ कहिए समय ने उसे आत्मनिर्भर बना दिया,आत्मविश्वस बढ़ा दिया.
"मै फ्रेश हो के आती हूँ " मंगेश से अलग ही अनुश्री बाथरूम कि ओर चल दि पीछे चररर करता दरवाजा बंद हो गया.
सामने ही शीशे मे अनुश्री का अक्स दमक रहा था,पहले से कही ज्यादा जवान और कामुक जिस्म.
अनुश्री झट से साड़ी ऊपर किये वही बाथरूम के फर्श पे बैठ गई, "पप्पीस्स्स्स.......पिस्स्स.....आअह्ह्हब...आउच....एक तीखी जलन के साथ अनुश्री का पेशाब फर्श भीगाने लगा, जैसे कोई जलता लावा उसकी चुत से बहार निकला हो.
"आअह्ह्हम......अब सुकून मिला,अनुश्री कि नजर नीचे को गई फर्श पे कुछ दाने दाने से भी पेशाब के साथ बहार गिर पड़े थे.
"ये....ये....क्या अनुश्री ने कोतुहाल मे वो कुछ टुकड़े अपनी ऊँगली से उठा के मसले,एक भीनी भीनी सी अदरक के महक उसकी नाक मे घुल गई.
अनुश्री वो अदरक कि महक सूंघ के अंदर तन सिहर गई,उसकी योनि कि दीवारे आपस मे सिकुड़ के रह गई,एक दम से शीशे मे वही दृश्य दौड़ पडा "तुम कितनी सुन्दर हो बिटिया रानी "
"अनु बेटा देखो तुम्हारे जिस्म ने एक नपुंसक आदमी को भी मर्द बना दिया "
"आअह्ह्हब.......नहीं...." अनुश्री धम से वही फर्श पे जा बैठी कल रात का दर्द उसकी जांघो के बीच जीवित हो चला..
अदरक कि वजह से उसकी चुत जल रही थी, पेशाब के साथ साथ जलन भी कम.होती चली गई..जैसे जैसे जलन कम हुई अनुश्री का चेहरा मुस्कान से भर उठा.
फववारा एक बार फिर अनुश्री के कामुक गर्म जिस्म को ठंडा करने कि नाकाम कोशिश करने लगा.
अभी अनुश्री नहा धो के बहार आई ही थी कि
ट्रिन ट्रिन ट्रिन......अनुश्री का मोबाइल बज उठा.
"हेलो.....हाँ आंटी " सामने से रेखा का फ़ोन था.
"बेटा आज कुछ काम ना हो तो थोड़ा मार्किट हो आये,तुम्हारा भी मन लग जायेगा राजेश ने बताया कल रात तुम ले क्या बीती " रेखा ने दिलाशा ही देना चाहा और सबसे अच्छा तरीका शॉपिंग ही होता है ये बात भाला एक औरत से अच्छा कौन समझ सकता है.
"ठीक है आंटी लंच के बाद मिलते है" अनुश्री ने फ़ोन रख दिया
"मंगेश चलो ना आज मार्किट चलते है रेखा आंटी को भी कुछ सामान लेना है " अनुश्री चाहकते हुए बोली.
मंगेश तो ओंधे मुँह बिस्तर पे पडा हुआ था "क्या अनु कल इतना कुछ होने के बावजूद तुम थकी नहीं क्या? किस मिट्टी कि बनी हो?"
"आप ना अलसी हो गए है, आओ तो यहाँ मस्त थे मै थकी ना वहाँ टापू पे " धत....अनुश्री ने ये बात बोलते ही तुरंत दांतो तले अपनी जीभ को दबा लिया.
"क्या ऐसा कौनसा पहाड़ खिड़की दिया वहाँ टापू पे तुमने?" मंगेश वैसे ही आलसए हुए बोला जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं था.
"वो...वो...कुछ नहीं बस चिंता मे थी" अनुश्री संभल गई.
"अब रेखा आंटी जा ही रही है तो चली जाओ ना वैसे भी औरतों कि खरीदारी मे हमारा क्या काम "
मंगेश ने पल्ला झाड दिया
"हुँह....तुम नहीं सुधरोगे " अनुश्री मुस्कुरा दि और कांच के सामने जा खड़ी हुई
अपने सौंदर्य को ओर भी ज्यादा निखारने के लिए.
"अच्छा सुनो जान " मंगेश बिस्तर मे धसा हुआ ही बोला
"हम्म्म्म...बोलो " अनुश्री कान कि बलिया पहन रही थी
"वो मै सच मे ठाक गया हूँ कल रात कि गहमा गहमी से तो आते वक़्त बाजार से एक आधा wishky कि बोत्तल भी लेते आना.
मंगेश कि बात सुन अनुश्री तुरंत पलट गई "क्या.....मै...कैसे?
"अरे मै कौनसा रोज़ पिता हूँ वो तो सच मे बदन मे दर्द है थोड़ा आराम मिल जायेगा,और ये टूरिस्ट प्लेस है कोई माइंड नहीं करेगा जा के ले भी आओगी तो " मंगेश ने दलील दि.
"ठीक है ठीक है....तुम क्या समझते हो इतना भी नहीं कर सकती मै?, ले आउंगी "
"ये हुई ना बात तुम सबसे अच्छी पत्नी हो दुनिया कि " मंगेश ने दाँत निपोर दिये.
"अब ज्यादा मस्का मत लगाओ " अनुश्री भी मुस्कुरा दि.
शाम 4 बजे
अनुश्री साड़ी पहन तैयार थी मार्किट जाने के लिए.
"अरे आज क्या किसी को मरना है क्या " मंगेश ने छेड़ते हुए कहाँ
"क्या मंगेश हमेशा तो यही पहनती हूँ "
अनुश्री स्लीव लेस्स ब्लाउज,साड़ी मे किसी हुस्न परी से कम नहीं लग रही थी.
नाभि से 2इंच नीचे बँधी साड़ी उसकी पतली कमर को और भी खूबसूरत बना रही थी,माथे पे बिंदी,माथे पे सिंदूर,गले मे लटकता मंगलसूत्र उसके शादीशुदा होने कि साफ चुगली कर रहा था वरना तो किसी को यकीन भी ना होता कि अनुश्री शादीशुदा लड़की है.
"अरे वाह अनुश्री बेटा तुम तो बिल्कुल अप्सरा लग रही हो " अनुश्री के बहार आते ही रेखा भी अपने रूम से बहार आई और सीधा ही अनुश्री पे नजर पड़ी.
"आप भी कोई कम नहीं हो आंटी " वाकई रेखा भी सिंपल साड़ी मे कहर ढा रही थी.
उसका बदन था ही ऐसा कि चाह कर भी छुपा पाना मुश्किल था.
स्तन इतने भरी थे कि कोई भी ब्लाउज उसके भार को संभल नहीं सकता था नतीजा ब्लाउज नीचे को सरक जाता और एक महीन सी गहरी कामुक दरार हमेशा दिखती ही रहती.
"राजेश भैया नहीं चल रहे " अनुश्री ने पर्स सँभालते हुए पूछा.
"नहीं बेटा वो ठाक गया है,और वैसे भी मैंने बहादुर को बोल दिया है वो यहाँ के मार्किट जनता है तो शॉपिंग जल्दी हो जाएगी "
रेखा और अनुश्री सीढ़ी से नीचे उतर के होटल गेट पे पहुचे इतने से ही सफर मे ना जाने कितने लोगो ने मन ही मन उनके हुस्न कि तारीफ कि होंगी.
बहादुर दरवाजे पे ही खड़ा था " चले मैम सोब ?"
ऑटो....ऑटो....
एक ऑटो पास ही आ रुका
अनुश्री रेखा पीछे जा बैठी और बहादुर आगे ड्राइवर के साथ.
ऑटो चल पडा मार्किट कि ओर....
उधर पीछे रसोई घर मे "पिक....पिक....पिक......हेलो
अरे भाई कौन बोल रहा है?"
मिश्रा ने खीझते हुए कहाँ
"मिश्रा बोल रहे हो ना कामगंज वाले " उधर से आवाज़ आई.
"हाँ वही आप...आप.....?" मिश्रा जैसे आवाज़ पहचान गया था.
"हाँ बिटवा हम ही बोल रहे है " एक भरराती सी आवाज़ आई.
"मांगीलाल काका आप इतने दिनों बाद? कहाँ से बोल रहे है" मिश्रा खुशी से चहक रहा था.
"हाँ बिटवा तोहार मांगीलाल काका ही बोल रहे है, सुना था तुम पूरी मे हो तो याद कर लिया " मांगीलाल कि आवाज़ मे खुशी थी अपनेपन कि खुशी.
"क्या काका पूरी मे हो के भी मिलते नहीं हो,आज ही आ जाओ होटल मयूर आज रात मिलते है " टक से फ़ोन कट गया.
"क्या बात है मिश्रा बहुत ख़ुश दिख रहा है?" अब्दुल ने रसोई मे घुसते हुए कहाँ
"हाँ यार बात ही ऐसी है हमारे गांव के मांगीलाल काका है ना जो गांव से भाग गए थे"
"वो वही ना नपुंसक " अब्दुल ने भी याद करते हुए कहा.
"हाँ रे वही....वो पूरी मे ही है आज मिलने आ रहे है"
"ये तो अच्छी बात है काका से मिले जमाना हो गया "अब्दुल भी ख़ुश हुआ आखिर अपने गांव के आदमी से लगाव होना लाजमी है वो भी परदेश मे.
"सुन ऐसा कर जा दो बोत्तल शराब ले आ रात को बैठते है आज " मिश्रा ने अपनी अंटी से पैसे निकाल के दिये.
अब्दुल होटल के बहार निकल मार्किट कि ओर बढ़ चला.
क्या होगा मर्केट मे?
अनुश्री जा रही है शराब कि बोत्तल लेने और अब्दुल कि मंजिल भी वही है और मेरा मानना है शराब हमेशा गड़बड़ करती है..
तो क्या यहाँ भी गड़बड़ होंगी?
बने रहिये कथा जारी है....
अपडेट -38
होटल मयूर
तूफ़ान कि रात
"ठाक ठाक ठाक......रेखा जी, रेखा जी " रूम नंबर 103 का दरवाजा खटखटाया जा रहा था.
"चररररर.....करता दरवाजा खुल गया " अन्ना जी आप
"हाँ अअअअअ....हाँ...रेखा जी...." रेखा के सामने आते ही अन्ना कि घिघी बंध गई,वो तो रेखा के एक दीदार के लिए तड़पता था, जबकि सामने रेखा अपने गद्दाराये बदन को जैसे तैसे साड़ी मे समेटे खड़ी थी.
सिंपल सादगी लिए हुए.
"क्या हुआ अन्ना जी " रेखा कि मधुर आवाज़ फिर से अन्ना के कानो मे घुल गई.
"वो....मै...क्या....वो....अअअअअ...अभी लेक से बब्बन का फ़ोन आया था कि तूफान कि वजह से कुछ यात्री टापू ले रह गए है, राजेश मंगेश उन्ही के साथ है,तो आप फ़िक्र ना करे कल सुबह वो लोग आ जायेंगे "
अन्ना ने रेखा को सूचित करना अपना फर्ज़ समझा, और एक ही सांस मे पूरी बात कह गया.
"हे भगवान.....मेरे बच्चे कहाँ फस गए,ये मुआ तूफान इसे अभी आना था " रेखा चिंतित थी
कि शाययययय.....करती ठंडी हवा दरवाजे पे खड़ी रेखा से जा टकराई.
उसकी सारी का पल्लू सरसराता रूम के अंदर भागा.
पल्लू का हटना ही था कि एक कामुक नजारा अन्ना कि आँखों के सामने चमक उठा.
रेखा कि बेशकीमती सुंदरता तंग ब्लाउज से बहार झाँकने लगी.
अन्ना तो पहले से ही रेखा कि खूबसूरती का कायल था,ये नजारा देख उसकी दिल कि धड़कन जवाब देने लगी.
जैसे ही रेखा को अपनी अर्धनागनता का अहसास हुआ.
दोनों हाथ तेज़ी से अपने पल्लू को समेटने भागे, बस यही रेखा वो गलती कर गई जो नहीं करना था, पल्लू उठाने के चक्कर मे वो थोड़ी सी झुकी,सम्पूर्ण स्तन जैसे बहार को लुढ़क के आ गया हो.
एक भारी सा अहसास ब्लाउज से निकलने को हुआ,उधर स्तन जैसे जैसे बहार आते गए अन्ना कि आंखे अपने कटोरे से बहार को निकल पड़ी.
ऐसा अद्भुत सौन्दर्य,ऐसा नजारा उसके सहन के बहार था.
आखिर रेखा कि मेहनत रंग लाइ,बेकबू पल्लू वापस उसके अनमोल चमक को ढक चूक था.
"वो..वो...रेखा जी " अन्ना को जैसे होश आया हो, सामने पर्दा गिर जाने से उसकी जडवत अवस्था ख़त्म ही गई लेकिन उसकी जबान अभी भी लड़खड़ा रही थी.
रेखा के भी रोंगटे खड़े हो चले,मौसम कि मार ही कुछ ऐसी थी ऊपर से अन्ना जैसा मजबूत मर्द सामने खड़ा था.
अन्ना कि हालत देख रेखा कि हसीं छूट गई.
"वो...वो...मै......" अन्ना शर्मिंदा हो चला
"कक्क..कोई बात नहीं अंन्ना जी " रेखा ने सहज़ ही कहा.
कि तभी."ताड़क.....तड़...तड़ाक.....चिरररर.....करती जोरदार बिजली कड़की,एक धमकेदार उजाला हुआ और चारो तरफ अंधेरा छा गया.
बिजली कि गर्जना के साथ ही "आआआहहहहहब्ब......आउच....हे भगवान " रेखा भी चीख पड़ी.
आनन फानन ही सामने खड़े अन्ना से जा लिपटी,ऐसी लिपटी जैसे किसी पेड़ से बेल.
"हुम्म्मफ़्फ़्फ़...हमफ....हमफ्फ...रेखा कि सांसे उखाड़ रही थी, आंखे बंद किये वो अन्ना से चिपकी रही
अन्ना तो मानो जैसे कही खो गया था,उसको सांस ही नहीं आ रही थी,उसका जिस्म पहली बार किसी स्त्री के सम्पर्क मे था, वो भी कामुक गद्दाराई औरत का भरा हुआ जिस्म.
"मममम......मुझे बिजली से डर लगता है " रेखा आंख बंद किये ही बड़बड़ा रही थी, उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी आंख खोलने कि..
अन्ना के सीने मे दो गद्देदार तीर घुसे हुए थे वो तो घायल था कामवासना मे घायल,स्त्री के मदहोश महक से घायल.
नतीजा तुरंत ही सामने आया,अन्ना कि लुंगी मे एक उभार पनप गया,जो कुछ टटोल रहा था,
ये उभार कुछ ज्यादा ही बढ़ा होता चला गया,और रेखा कि जांघो के बीच दस्तक देने लगा.
"ओह..आउचम..ये...ये....." रेखा तुरंत पीछे हो हट गई,उसकी आंखे खुल गई.
चारो तरफ अंधेरा था उसकी निगाहेँ नीचे को गई लेकिन अँधेरे मे सिर्फ हलका सा उठाव ही दिखा,रेखा शादीशुदा थी समझते देर ना लगी कि वो क्या है.
"वो...वो.....वो...माफ़ करना रेखा जी....मैंन पहली बार किसी स्त्री को छुवा, ना जाने ये....ये कैसे हो गया " अन्ना ने घबराते हुए दिल कि बात कह दि वो शर्मिंदा था
"कककक.....कोई बात नहीं समझ सकती हूँ " रेखा सिर्फ मुस्कुरा दि, उसका पल्लू अन्ना के जिस्म मे कही फस गया था परन्तु इस बार उसने अपना पल्लू उठाने कि बिल्कुल भी कोशिश नहीं कि.
"अन्ना जी मुझे अँधेरे से डर लगता है,यदि आपको दिक्कत ना ही तो थोड़ी देर रुक जाते " रेखा ने बहुत ही मासूमियत से कहाँ
अब कोई गधा ही होगा जो ऐसे मासूम आग्रह वो भी एक कामुक औरत के मुँह से सुन के नामंजूर कर दे.
"जी....जी.....ठीक...ठीक है " मौसम अपना रंग दिखा रहा था,ठंडी हवा प्यासे लोगो कि प्यास और भड़का रही थी.
मौसम ठंडा था लेकिन अन्ना और रेखा का जिस्म गरम थे बहुत गरम
अन्ना ने धड़कते दिल के साथ कमरे मे कदम रख दिया, चररररर.....करता दरवाजा अपनी चौखट से जा लगा.
तूफान साय साय करता उसके दरवाजे को धक्का देता लेकिन उसकी कोशिश बेकार थी,रात भर दरवाजा नहीं खुला.
सुबह का सूरज निकल आया था,चारो तरफ शांति थी, कल रात का तूफान कई जिंदगीयों से हो के गुजरा था.
होटल मयूर
एक कार दरवाजे पे आ के रुकी
"साब जी....साब जी....कहाँ रह गए थे आप लोग? ठीक तो है ना आप सब?" बहादुर भागता हुआ कार के पास पंहुचा, उसके चेहरे पे चिंता कि साफ लकीरें थी
"अरे बहादुर फ़िक्र कि बात नहीं है सब ठीक है,बस कल तूफान मे उधर ही रुक गए थे " मंगेश कार से उतर गया
पीछे पीछे राजेश और अनुश्री भी उतर गए.
"माँ चिंता कर रही होंगी भैया " राजेश तेज़ कदमो से अपने कमरे कि और बढ़ चला.
"चिंता कि बात नहीं है सर रेखा जी को मैंने कल रात ही सूचित कर दिया था" पीछे से आई अन्ना कि आवाज़ ने सभी के ध्यान खिंचा.
"थैंक यू अन्ना जी अपने काफ़ी मदद कि " मंगेश और राजेश ने साथ ही धन्यवाद किया.
तीनो ही कमरे कि और बढ़ चले. आगे राजेश भागा जा राहा था पीछे अनुश्री धीरेकदमो से चल रही थी.
"अरे अनु क्या हुआ पैर मे चोट लगी है क्या? ऐसे लचक के क्यों चल रही हो " पीछे आते मंगेश कि नजर अनुश्री कि चल पे पड़ी जो कि सामान्य से अलग जान पड़ रही थी.
"वो...वो....उफ्फ्फ...कक्क...कुछ नहीं कल रेत मे पैर धसने से थोड़ी लचक आ गई है " अनुश्री साफ साफ झूठ बोल गई.
सर झुकाये चलती चली गई "उफ्फ्फ....ये जलन क्यों हो रही है " अनुश्री जैसे ही कदम आगे बढ़ाती उसके जांघो के बीच का हिस्सा आपस मे रगड़ खा जाता.
एक हल्की सी दर्द कि लहर से उसका बदन हिल जाता.
इस दर्द मे कही ना कही कुछ सुकून भी था..
इस दर्द से उसकी गांड कुछ ज्यादा लचक रही थी.
पहली बार अनुश्री कि चुत मे कुछ मोटा मुसल घुसा था,भले वो अदरक कूटने का दस्ता ही क्यों ना हो, बरसो से चिपकी चुत कि दीवारे हिल गई थी मांगीलाल के हमले से.
दर्द के बावजूद अनुश्री के चेहरे पे मुस्कान थी.
दोनों ही कमरे मे दाखिल हो गए थे.
रूम नंबर 103
राजेश भी लगभग भागता हुआ कमरे मे दाखिल हुआ,उसके गेट पे हाथ रखते ही चर्चारता दरवाजा खुल गया.
"माँ...माँ......राजेश रेखा को पुकारता अंदर दाखिल हो चला,जैसे ही अंदर आया एक कैसेली उत्तेजित अजीब गंध से उसकी नाक भर गई..
"ये...ये....गंध कैसी है उसके दिन भी ऐसी ही आ रही थी.
सामने बिस्तर पे रेखा सीधी पीठ के बल चीत साड़ी मे लिपटी लेटी थी. स्तन सिर्फ पतली सी साड़ी से धके थे, जाँघे पूरी खुली हुई अपनी चमक बिखेर रही थी.
"माँ...माँ...माँ....मै आ गया" राजेश कि आवाज़ जैसे ही रेखा के कानो मे पड़ी वो सकपका के उठ बैठी.
उठने से रहा सहा पर्दा भी स्तन से सरक गया,कमरे मे अँधेरे कि वजह से राजेश का धयान उधर गया ही नहीं,रेखा तो जैसे सुध बुध ही नहीं थी.
"राजेश....बेटा राजेश कहाँ रह गया था " तुरंत बिस्तर से उठ राजेश को गले लगा लिया.
रेखा के दिल मे सिर्फ ममता थी,अपने बच्चे के लिए भर भर के प्यार था.
"ठीक हूँ मै माँ " राजेश ने भी अपनी माँ को आगोश मे भर लिया परन्तु आज कुछ नया था.
कुछ तो था...जो अलग था.
राजेश को अपनी छाती पे कुछ गद्देदार सा अहसास हो रहा था जैसे उसकी माँ और उसके बीच कोई कपड़ा ही ना हो.
रेखा भी जोश ममता मे गले तो जा लगी परन्तु उसे भी इसी बात का अहसास हुआ,जैसे हवा सीधा उसके नंगे बदन को छू रही है.
इस बात का अहसास होते ही उसके सामने कल रात का वाक्य घूम गया,कल पूरी रात वो अन्ना के साथ इसी बिस्तर पे थी.
रेखा के ऊपर जैसे बिजली गिरी गई हो,उसकी चोरी पकड़ी गई हो,क्या जवाब देगी अपने बेटे को.
वो अर्धनग्न क्यों है?
माँ बेटे दोनों के चेहरे शर्म से लाल हो चले,
"वो...वो...बेटा मै अकेली...." रेखा समझ चुकी थी कि सच बता देने मे ही समझदारी है.
"कोई बात नहीं माँ....आप कमरे मे अकेली थी तो कपड़ो का ध्यान नहीं रह पाता " राजेश ऐसा बोल के अलग होना चाहा.
रेखा का दिमाग़ तो अभी भी साय साय कर रहा था,किस कदर साफ साफ बच निकली थी,वो अपने हाथो अपनी ही क़ब्र खोदने चली थी.
रेखा को डर था कि वो पीछे हटी और उसके खूबसूरत नग्न बूब्स अपने सगे बेटे के ही सामने आ जायेंगे.
ये सोचते ही उसका दिल फिर से ढाड़ ढाड़ कर बज उठा
"कोई बात नहीं माँ होता है" बोलता हुआ राजेश अलग हो के तुरंत पलट गया और बाथरूम मे जा घुसा.
रेखा हक्की बक्की वही आवक सी मुँह बाये खड़ी रह गई "कितना संस्कारी है मेरा बेटा " रेखा मुस्कुरा दि और अपना ब्लाउज टटोलने लगी.
उसके चेहरे एक खुशी से जगमगा रहा था.
अंदर बाथरूम मे "माँ वाकई जवान है अभी अन्ना ठीक ही कहता है, माँ तो अभी भी शादी लायक है और कहाँ वो मेरी शादीशुदा के पीछे पड़ी रहती है हेहेहेहे...." राजेश मुस्कुरा दिया
कितना भोला था राजेश समझ के भी ना समझा कि औरत क्या चीज होती है,
वो कैसेली गंध प्यार कि गंध है.
रूम नंबर 102
"सॉरी जान मैंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया था " मंगेश अंदर आते ही अनुश्री को अपने आगोश मे भर लिया
"कोई बात नहीं मंगेश हो जाता है कभी कभी " अनुश्री ने सहज़ ही जवाब दिया आजन्हसके लहजे मे कोई डर फ़िक्र नहीं थी,ना ही कोई शिकायत.
एक ही रात मे काफ़ी बदल गई थी अनुश्री,या यूँ कहिए समय ने उसे आत्मनिर्भर बना दिया,आत्मविश्वस बढ़ा दिया.
"मै फ्रेश हो के आती हूँ " मंगेश से अलग ही अनुश्री बाथरूम कि ओर चल दि पीछे चररर करता दरवाजा बंद हो गया.
सामने ही शीशे मे अनुश्री का अक्स दमक रहा था,पहले से कही ज्यादा जवान और कामुक जिस्म.
अनुश्री झट से साड़ी ऊपर किये वही बाथरूम के फर्श पे बैठ गई, "पप्पीस्स्स्स.......पिस्स्स.....आअह्ह्हब...आउच....एक तीखी जलन के साथ अनुश्री का पेशाब फर्श भीगाने लगा, जैसे कोई जलता लावा उसकी चुत से बहार निकला हो.
"आअह्ह्हम......अब सुकून मिला,अनुश्री कि नजर नीचे को गई फर्श पे कुछ दाने दाने से भी पेशाब के साथ बहार गिर पड़े थे.
"ये....ये....क्या अनुश्री ने कोतुहाल मे वो कुछ टुकड़े अपनी ऊँगली से उठा के मसले,एक भीनी भीनी सी अदरक के महक उसकी नाक मे घुल गई.
अनुश्री वो अदरक कि महक सूंघ के अंदर तन सिहर गई,उसकी योनि कि दीवारे आपस मे सिकुड़ के रह गई,एक दम से शीशे मे वही दृश्य दौड़ पडा "तुम कितनी सुन्दर हो बिटिया रानी "
"अनु बेटा देखो तुम्हारे जिस्म ने एक नपुंसक आदमी को भी मर्द बना दिया "
"आअह्ह्हब.......नहीं...." अनुश्री धम से वही फर्श पे जा बैठी कल रात का दर्द उसकी जांघो के बीच जीवित हो चला..
अदरक कि वजह से उसकी चुत जल रही थी, पेशाब के साथ साथ जलन भी कम.होती चली गई..जैसे जैसे जलन कम हुई अनुश्री का चेहरा मुस्कान से भर उठा.
फववारा एक बार फिर अनुश्री के कामुक गर्म जिस्म को ठंडा करने कि नाकाम कोशिश करने लगा.
अभी अनुश्री नहा धो के बहार आई ही थी कि
ट्रिन ट्रिन ट्रिन......अनुश्री का मोबाइल बज उठा.
"हेलो.....हाँ आंटी " सामने से रेखा का फ़ोन था.
"बेटा आज कुछ काम ना हो तो थोड़ा मार्किट हो आये,तुम्हारा भी मन लग जायेगा राजेश ने बताया कल रात तुम ले क्या बीती " रेखा ने दिलाशा ही देना चाहा और सबसे अच्छा तरीका शॉपिंग ही होता है ये बात भाला एक औरत से अच्छा कौन समझ सकता है.
"ठीक है आंटी लंच के बाद मिलते है" अनुश्री ने फ़ोन रख दिया
"मंगेश चलो ना आज मार्किट चलते है रेखा आंटी को भी कुछ सामान लेना है " अनुश्री चाहकते हुए बोली.
मंगेश तो ओंधे मुँह बिस्तर पे पडा हुआ था "क्या अनु कल इतना कुछ होने के बावजूद तुम थकी नहीं क्या? किस मिट्टी कि बनी हो?"
"आप ना अलसी हो गए है, आओ तो यहाँ मस्त थे मै थकी ना वहाँ टापू पे " धत....अनुश्री ने ये बात बोलते ही तुरंत दांतो तले अपनी जीभ को दबा लिया.
"क्या ऐसा कौनसा पहाड़ खिड़की दिया वहाँ टापू पे तुमने?" मंगेश वैसे ही आलसए हुए बोला जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं था.
"वो...वो...कुछ नहीं बस चिंता मे थी" अनुश्री संभल गई.
"अब रेखा आंटी जा ही रही है तो चली जाओ ना वैसे भी औरतों कि खरीदारी मे हमारा क्या काम "
मंगेश ने पल्ला झाड दिया
"हुँह....तुम नहीं सुधरोगे " अनुश्री मुस्कुरा दि और कांच के सामने जा खड़ी हुई
अपने सौंदर्य को ओर भी ज्यादा निखारने के लिए.
"अच्छा सुनो जान " मंगेश बिस्तर मे धसा हुआ ही बोला
"हम्म्म्म...बोलो " अनुश्री कान कि बलिया पहन रही थी
"वो मै सच मे ठाक गया हूँ कल रात कि गहमा गहमी से तो आते वक़्त बाजार से एक आधा wishky कि बोत्तल भी लेते आना.
मंगेश कि बात सुन अनुश्री तुरंत पलट गई "क्या.....मै...कैसे?
"अरे मै कौनसा रोज़ पिता हूँ वो तो सच मे बदन मे दर्द है थोड़ा आराम मिल जायेगा,और ये टूरिस्ट प्लेस है कोई माइंड नहीं करेगा जा के ले भी आओगी तो " मंगेश ने दलील दि.
"ठीक है ठीक है....तुम क्या समझते हो इतना भी नहीं कर सकती मै?, ले आउंगी "
"ये हुई ना बात तुम सबसे अच्छी पत्नी हो दुनिया कि " मंगेश ने दाँत निपोर दिये.
"अब ज्यादा मस्का मत लगाओ " अनुश्री भी मुस्कुरा दि.
शाम 4 बजे
अनुश्री साड़ी पहन तैयार थी मार्किट जाने के लिए.
"अरे आज क्या किसी को मरना है क्या " मंगेश ने छेड़ते हुए कहाँ
"क्या मंगेश हमेशा तो यही पहनती हूँ "
अनुश्री स्लीव लेस्स ब्लाउज,साड़ी मे किसी हुस्न परी से कम नहीं लग रही थी.
नाभि से 2इंच नीचे बँधी साड़ी उसकी पतली कमर को और भी खूबसूरत बना रही थी,माथे पे बिंदी,माथे पे सिंदूर,गले मे लटकता मंगलसूत्र उसके शादीशुदा होने कि साफ चुगली कर रहा था वरना तो किसी को यकीन भी ना होता कि अनुश्री शादीशुदा लड़की है.
"अरे वाह अनुश्री बेटा तुम तो बिल्कुल अप्सरा लग रही हो " अनुश्री के बहार आते ही रेखा भी अपने रूम से बहार आई और सीधा ही अनुश्री पे नजर पड़ी.
"आप भी कोई कम नहीं हो आंटी " वाकई रेखा भी सिंपल साड़ी मे कहर ढा रही थी.
उसका बदन था ही ऐसा कि चाह कर भी छुपा पाना मुश्किल था.
स्तन इतने भरी थे कि कोई भी ब्लाउज उसके भार को संभल नहीं सकता था नतीजा ब्लाउज नीचे को सरक जाता और एक महीन सी गहरी कामुक दरार हमेशा दिखती ही रहती.
"राजेश भैया नहीं चल रहे " अनुश्री ने पर्स सँभालते हुए पूछा.
"नहीं बेटा वो ठाक गया है,और वैसे भी मैंने बहादुर को बोल दिया है वो यहाँ के मार्किट जनता है तो शॉपिंग जल्दी हो जाएगी "
रेखा और अनुश्री सीढ़ी से नीचे उतर के होटल गेट पे पहुचे इतने से ही सफर मे ना जाने कितने लोगो ने मन ही मन उनके हुस्न कि तारीफ कि होंगी.
बहादुर दरवाजे पे ही खड़ा था " चले मैम सोब ?"
ऑटो....ऑटो....
एक ऑटो पास ही आ रुका
अनुश्री रेखा पीछे जा बैठी और बहादुर आगे ड्राइवर के साथ.
ऑटो चल पडा मार्किट कि ओर....
उधर पीछे रसोई घर मे "पिक....पिक....पिक......हेलो
अरे भाई कौन बोल रहा है?"
मिश्रा ने खीझते हुए कहाँ
"मिश्रा बोल रहे हो ना कामगंज वाले " उधर से आवाज़ आई.
"हाँ वही आप...आप.....?" मिश्रा जैसे आवाज़ पहचान गया था.
"हाँ बिटवा हम ही बोल रहे है " एक भरराती सी आवाज़ आई.
"मांगीलाल काका आप इतने दिनों बाद? कहाँ से बोल रहे है" मिश्रा खुशी से चहक रहा था.
"हाँ बिटवा तोहार मांगीलाल काका ही बोल रहे है, सुना था तुम पूरी मे हो तो याद कर लिया " मांगीलाल कि आवाज़ मे खुशी थी अपनेपन कि खुशी.
"क्या काका पूरी मे हो के भी मिलते नहीं हो,आज ही आ जाओ होटल मयूर आज रात मिलते है " टक से फ़ोन कट गया.
"क्या बात है मिश्रा बहुत ख़ुश दिख रहा है?" अब्दुल ने रसोई मे घुसते हुए कहाँ
"हाँ यार बात ही ऐसी है हमारे गांव के मांगीलाल काका है ना जो गांव से भाग गए थे"
"वो वही ना नपुंसक " अब्दुल ने भी याद करते हुए कहा.
"हाँ रे वही....वो पूरी मे ही है आज मिलने आ रहे है"
"ये तो अच्छी बात है काका से मिले जमाना हो गया "अब्दुल भी ख़ुश हुआ आखिर अपने गांव के आदमी से लगाव होना लाजमी है वो भी परदेश मे.
"सुन ऐसा कर जा दो बोत्तल शराब ले आ रात को बैठते है आज " मिश्रा ने अपनी अंटी से पैसे निकाल के दिये.
अब्दुल होटल के बहार निकल मार्किट कि ओर बढ़ चला.
क्या होगा मर्केट मे?
अनुश्री जा रही है शराब कि बोत्तल लेने और अब्दुल कि मंजिल भी वही है और मेरा मानना है शराब हमेशा गड़बड़ करती है..
तो क्या यहाँ भी गड़बड़ होंगी?
बने रहिये कथा जारी है....
देखते जाइये ये शराब क्या गुल खिलाती हैअपडेट -39
"वो देखो मेमसाब सामने ही मार्किट है " बहादुर रास्ते भर कमेंट्री करता हुआ आया था जैसे आज एक ही दिन पूरा शहर दिखा देगा.
रेखा और अनुश्री उसकी मासूमियत के देखते रह जाते.
"मैडम रिक्शा आगे नहीं जायेगा, भीड़ है बहुत चालान बन जायेगा " ऑटो ड्राइवर ने मार्किट से पहले ही रिक्शा रोक दिया.
"कोई बात नहीं " रेखा अनुश्री और बहादुर रिक्शा से उतर बाजार कि ओर चल पड़े.
आज बाजार कि रौनक बढ़ गई लगती थी, जवान क्या बूढ़े दुकानदार,ठेले वाले भी घूम घूम के अनुश्री कि मटकती मादक गांड को देख ले रहे थे.
लेकिन सिर्फ आह भर के ही रह जाते.
बहादुर आगे आगे चल रहा था जैसे रास्ता दिखा रहा हो उन्हें.
आज अनुश्री कि चाल मे लचक कुछ ज्यादा ही थी, एक भीना भीना सा दर्द रह रह के जांघो के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता.
"आइये...आइये....मैडम क्या लेगी., साड़ी...,सलवार....दुपट्टा...."
"आइये मेमसाहब इधर देख लीजिये अच्छी कलाकारी,शंख, पुष्पा, डिजाइनर ज्वेलरी ले जाइये "
तरह तरह के दुकानदारों कि आवाज़ उन्हें पुकार रही थी, आंखे अनुश्री कि लचकती कमर को निहार लेती.
हालांकि अनुश्री को भी पता था कि कई प्यासी निगाहेँ उसी के पीछे चिपकी हुई है,परन्तु ना जाने क्यों आज उसे कोई समस्या नहीं थी "जवान जिस्म है लोग तो देखेंगे ही ना " अनुश्री के मन मे खुद ही ख्याल पनप आया.
ये ख्याल आना था कि उसकी कमर खुद से और ज्यादा लहराने लगी.
शर्तिया कई मर्दो ने वीर्य त्याग दिया होगा.
"कितनी गर्मी है ना आंटी यहाँ " अनुश्री ने माथे ले आये पसीने को पोछते हुए कहाँ.
" वो...मेमसाब बोज़ार है ना " रेखा के बदले जवाब बहादुर ने दिया वैसे भी बहादुर के रहते कहाँ किसी को बोलने का मौका मिलना था.
"अच्छा आंटी आप शॉपिंग करो मै अभी आई " अनुश्री कि नजर कही और टिकी हुई थी.
सड़क के पार वाइन शॉप दिख गई थी " आंटी को कैसे बोलू कि व्हिस्की लेनी है,क्या सोचेंगी मेरे बारे मे" अनुश्री सोच मे डूबी थी उसके लिए ये नया अनुभव था.
"कोई बात नहीं बेटा तुम काम कर आओ अपना " रेखा बिल्कुल आसानी से मान गई ना जाने क्यों,शायद उसे बहादुर के साथ अकेले वक़्त बिताना हो.
अनुश्री भी आश्चर्य चकित थी "रेखा आंटी कितनी समझदार है "
"आंटी थोड़ी देर मे इसी सर्किल पे मिलती हूँ आपको "
"कोई नी बेटा आराम से आओ " रेखा और बहादुर अंदर मार्किट मे चल दिये,तंग गलियों मे था मार्किट.
"उफ्फ्फ.....मंगेश भी ना कहाँ कहाँ फसा देता है " अनुश्री चल पड़ी अपनी मंजिल कि ओर सामने ही एक सड़क के पार बड़ा सा बोर्ड था.
देशी व अंग्रेजी शराब कि दुकान.
तेज़ कदमो से चलती अनुश्री का दिल अचानक से कांप उठा, ये वही अनुभव था जब अक्सर कुछ गड़बड़ होने वाली होती थी.
अनुश्री के कदम स्वम धीमे हो चले "ये...ये..मुझे कुछ अनहोनी कि आशंका क्यों हो रही है " अनुश्री ने आसपास गर्दन घुमा के देखा कोई नहीं था सड़क लगभग खाली ही थी.
"फिर....फिर....ऐसा क्यों लगा?" अनुश्री का सवाल खुद से ही था.
"यहाँ क्या होना है शायद पहली बार किसी शराब कि दुकान पे जा रही हूँ इसलिए ऐसा लग रहा है " अनुश्री ने बहुत चतुराई से आने वाली मुसीबत को नकार दिया था.
तेज़ कदमो से चलती अनुश्री वाइन शॉप कि दहलीज पे पहुंच गई,आस पास एक्का दुक्का लोग थे जिन्होंने एक नजर अनुश्री कि खूबसूरती को निहारा लेकिन किसी ने ताज्जुब नहीं किया.
टूरिस्ट प्लेस कि यही खासियत होती है,यहाँ सब सामान्य होता है कोई माइंड नहीं करता.
"मंगेश सही ही कहता था यहाँ किसी को कोई मतलब नहीं है " अनुश्री दहलीज चढ़ चुकी थी.
दारू का ठेका जालिनुमा फेन्स से कैद था, जिसमे एक छोटी सी खिड़की थी.
"भैया एक रेड नाईट का हाफ देना " अनुश्री ने 2000rs का note उसके खिड़की मे अंदर बढ़ा दिया.
पैसा देने के लिए अनुश्री थोड़ी झुक गई जिस वजह से उसकी कामुक मदमस्त गांड निकल के बहार को आ गई थी.
कि तभी...."आउच.....उफ्फ्फग...."अनुश्री के हलक से एक सुगबुगाहत निकल गई.
एक हाथ उसकी गद्दाराई गांड को छूटा हुआ आगे बढ़ गया.
अनुश्री अभी कुछ समझती ही कि एक गन्दा सा काला हाथ उसी खिड़की मे अनुश्री के कोमल,गोरे हाथ को छूता हुआ अंदर जा धसा.
"हिचहहह.....हिचहहम....भैया एक नीबू पव्वा देना " अनुश्री ने बगल मे देखा तो पाया कि एक हट्टा कट्टा जवान लड़का,धुप मे कला कलूटा पसीने से भीगा गन्दा मैला सा खड़ा था,
जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं था उसने अनुश्री के ऊपर ध्यान तक नहीं दिया,शायद अनजाने ही उसका हाथ अनुश्री के कामुक अंग को सहला गया था.
"अबे जल्दी दे ना टाइम नहीं है मेरे पास " गंदे आदमी ने घुड़की दि.
"ले ना साले फटीचर " अंदर से आवाज़ आई
और अंदर से एक हाथ ने एक बोत्तल उसे थमा दि और साथ ही कुछ और भी बोत्तल के साथ ही था.
अनुश्री का हाथ भी अंदर ही था उसके हाथ मे भी एक बोत्तल थमा दि गई..
दोनों ने एक साथ ही हाथ बहार खिंच लिया....
हाथ का बहार आना था कि दोनों के चेहरे पे हवाइया उड़ गई..
"अरे...ये....ये...." वो गन्दा आदमी खुशी से चहक उठा उसके हाथ मे एक महंगी बोत्तल थी साथ थी 500rs के दो नोट,
अनुश्री के हाथ मे एक नीबू का देसी पव्वा था "ये....ये....क्या...?" अनुश्री हैरान परेशान थी.
"अरे भैया....मैंने रेड नाईट मांगी थी " अनुश्री ने जल्दी से वापस अंदर हाथ दाल दिया.
"दे तो दि और पैसे भी दे दिये " अंदर से आवाज़ आई.
अनुश्री को कुछ समझ नहीं आ रहा था,उसके तो जोश उड़ गए थे इस ग़फ़लत मे..तुरंत अनुश्री ने हाथ बहार निकाला...
"देखो भैया वो मेरी है और ये...अअअअअ अआप......" अनुश्री के शब्द मुँह मे ही रह गए
वो गन्दा सा आदमी वहाँ नहीं था..
अनुश्री बोखला चुकी थी," ये क्या गड़बड़ हो गई " उसने आस पास नजर दौडाई
वो आदमी दूर तेज़ कदमो से चला जा रहा रहा.
"आइ.....ऐ......ऐ....रुको...मेरे पैसे....वो तुम्हारा नहीं है " अनुश्री चिल्ला उठी लेकिन उसके आदमी पे कोई फर्क नहीं पडा
वो ओर भी तेज़ कदमो से चलने लगा.
"ऐ...रुको...." अनुश्री भी बिना सोचे तेज़ कदमो से उसके के पीछे चल दि
"अरे वाह आज तो भगवान मेहरबान है इंग्लिश दारू के साथ साथ पैसे भी हाथ लग गए,आज तो मुर्गा भी खाऊंगा " गन्दा आदमी बड़बड़ाए जा रहा था.
उसे कोई आवाज़ नहीं सुनाई पड़ रही थी ना सुनना चाहता था.
अनुश्री तो जैसे सकपका गई थी उसे इस बात कि कतई उम्मीद नहीं थी.
हाई हील पहने अनुश्री जैसे तैसे उस रास्ते पे चली जा रही थी, हील कि वजह से उसका बैलेंस कई बार खो जाता लेकिंन उसे मंजूर नहीं था कि उसकी नाक के नीचे से कोई उसके पैसे ले जाये..
बाजार से होता रास्ता आगे जा के सुनसान हो चला,बाजार पीछे छूट गया था
"अरे कहाँ गया वो आदमी " अनुश्री एक रास्ते पे खड़ी थी जहाँ एक्का दुक्का गाड़ी निकल जाती फिर सन्नाटा छा जाता
अब अनुश्री के मन मे थोड़ी घबराहट होने लगी थी "ये...ये....कौनसी जगह है " पीछा करने मे अनुश्री ने रास्ते का भी ध्यान नहीं रखा..
वो बार बार गर्दन घुमाये आगे पीछे,इधर उधर देखती लेकिन नतीजा वही.
एक मन तो किया वापस चल दू,लेकिन....लेकिन....ये कौनसी जगह है? कहाँ से आई थी मै.
अनुश्री का दिल धाड़ धाड़ कर बज उठा,उसकी शंका गलत नहीं थी.
"रेखा आंटी को फ़ोन करती हूँ बहादुर यहाँ के बारे मे जानता होगा " अनुश्री ने मोबाइल निकाल लिए
पिक....पिक....पिक....कोई रेस्पोंस नहीं,अनुश्री ने मोबाइल मे देखा एक भी नेटवर्क नहीं था.
"हे भगवान ये कहाँ फस गई मै?...उफ्फ्फग..." गर्मी से पसीना पोछती अनुश्री अभी भगवान को दोष दे ही रही थी कि सामने उसे कुछ नजर आया.
"ये ये....झड़ी के पीछे कौन है?" ऐसा कपड़ा तो उसने ही पहना था " सामने एक छोटा सा जंगलनुमा पार्क था,वही एक झड़ी के पीछे अनुश्री को लुंगी का कपड़ा दिखाई दिया..ये वही लुंगी थी जो उसके आदमी ने पहनी थी.
अनुश्री का दिल धाड़ धाड़ कर बज उठा.."मुझे उस से अपने पैसे लेने चाहिए "
"लेकिन....लेकिन.....अनुश्री के मन मे शंका थी " उसने आस पास देखा कोई नहीं था..
"उसे उसकी बोत्तल दे के अपनी ले लुंगी" अनुश्री कल रात से आत्मविश्वास मे थी लेकिन ये अतिआत्मविश्वास साबित होगा उसे पता नहीं था.
अनुश्री के कदम उस झाड़ी कि ओर बढ़ चले
अनुश्री अतिआत्मविश्वास से भरी पड़ी थी.
झाड़ियों मे बैठा वो गन्दा आदमी आज अपनी किस्मत पे गर्व कर रहा था" आज तो क्या किस्मत पाई है मैंने " बोत्तल का ढक्क्न खोल वो अभी मुँह को लगाने को ही था कि.
"ऐ....ऐ......रुको ये मेरी है " सामने अनुश्री आ धमकी
उसके आदमी कि तो एक दम घिघी ही बंध गई, सामने जैसे कोई अप्सरा खड़ी थी और दारू के बोत्तल पे अपना हक़ जमा रही थी
वो आदमी जैसे दारू पीना ही भूल गया हो,अभी बोत्तल उसके काले होंठ से लगी ही थी कि वैसी कि वैसी ही रह गई,उसकी आंखे पत्थरा गई.
"ऐ....ये मेरी बोत्तल है और पैसे भी मेरे है ये रही तुम्हारी " अनुश्री ने निम्बू पव्वा आगे बढ़ा दिया.
उस आदमी को तो जैसे होश ही नहीं था,उसे तो अपनी किस्मत पे ही विश्वास नहीं हो रहा था, महंगी दारू के साथ साथ सामने एक हुस्न कि परी खड़ी थी एकदम सुडोल जिस्म,कसी हुई काया.
"मै...मै.....मेरी है ये " वो आदमी आपे से बहार आया
"औकात है तुम्हारी ये पीने कि " अनुश्री तो जैसे किसी गुरुर मे थी
हाथ मे थमा पव्वा उसने उस आदमी कि ओर बढ़ा दिया और खुद कि बोत्तल लेने को झुकी ही थी उसका पल्लू सरसराता नीचे गिर पड़ा.
सब कुछ अचानक हुआ अनुश्री के बस के बहार था,उसका ध्यान सिर्फ अपनी बोत्तल और पैसे छीनने मे था,
सरसराता पल्लू नीचे पसरे गंदे व्यक्ति कि जांघो पे जा गिरा.
उसके आदमी को तो जैसे आज स्वर्ग ही दिख गया था,उसकी आंखे कटोरे से बहार निकलने को आतुर हो चली,
एक टक वो अनुश्री के ब्लाउज मे उतपन्न खाई को घूरे जा रहा था जैसे तो उसी मे गिर के मर जायेगा
"ऐ....दो इधर मेरी बोत्तल " अनुश्री का चेहरा गुस्से मे लाल था.
उसकी बात का कोई असर नहीं हो रहा था ऊपर से उसके व्यक्ति ने बोत्तल खींच के अपनी कमर के पीछे दबोच ली थी.
अनुश्री तो गुस्से और घमंड मे इस कदर बौराई कि उसे अपनी स्थति का अंदाजा ही नहीं था.
"अभी बताती हूँ रुको अनुश्री अपनी बोत्तल और पैसे छुड़ाने के लिये और भी आगे को झुक गई,
उसके अर्ध नग्न स्तन उसके गंदे आदमी के मुँह के करीब जा पहुचे, एक भीनी भीनी सी खुसबू उसकी नाक मे घुल गई.
"हहहममममममममम.....आअह्ह्ह....." आदमी कि आंखे और मुँह खुल गया,ना जाने किस का मुँह देख के उठा था आज वो जो उसे अपने नरक जैसे जीवन मे साक्षात् स्वर्ग कि अप्सरा के दर्शन हो गए थे.
इधर अनुश्री इन सब से अनजान कोशिश मे थी,उसकी कोशिश सफल भी हुई,उसका गोरा मुलायम हाथ उसके आदमी के गंदे हाथ से रगड़ खाता हुआ अपनी बोत्तल तक जा पंहुचा "छोड़ इसे...." अनुश्री ने फिर से धमकी दि और जोर लगा के बोत्तल खींचने लगी.
इस मेहनत मे अनुश्री के स्तन बुरी तरह से हिलोरे भर रहे थे,खुली हवा मे विचरण करने लगे.
और ये नजारा जिसे नसीब था वो अपनी किस्मत ोे गर्व किये नहीं ठाक रहा था.
दो गोरे कामुक भारी स्तन लगभग अर्धनग्न नाच रहे थे.
सब कुछ स्लो मोशन हो गया लगता था.
अनुश्री कि ताकत नाकाफी थी,कि तभी....."आअह्ह्हह्.....साली " वो आदमी जोर से चिल्लाया
अनुश्री के बड़े बड़े नाख़ून उसके आदमी के हाथ को खरोच चुके थे.
आदमी का ध्यान भंग हुआ,उसे तत्काल होश आया,
"ये ये...ये.....साली रुक बताता हूँ." उस खूबसूरत स्वप्न से बहार आते ही आदमी का गुस्सा तमतमा उठा.
एक बार को अनुश्री भी उसकी खौफनाक आवाज़ से कांप गई,लेकिन तब टक देर हो चुकी थी.
उसके आदमी ने बोत्तल वाले हाथ को झटके से पीछे खिंच लिया.
"हट साली.....कहाँ ना मेरी दारू है " आदमी का झटका लगना ही था कि नाजुक अनुश्री भरभराती सी ओंधे मुँह उसके आदमी कि जांघो पे जा गिरी.
अनुश्री का मुँह घास भरी जमीन पे जा धसा,सपात पेट उसके आदमी कि जाँघ और घुटनो पे ओर भी सपाट होता चला गया.
लेकिन जो दृश्य आदमी के सामने था उसने उसके होश उड़ा दिये, शारबी ना होता तो पक्का प्राण त्याग देता.
झटके से गिरने से अनुश्री कि साड़ी कमर तक जा चढ़ी.
एक छोटी सी पैंटी उसकी गांड कि दरार मे धसी हुई थी काली पैंटी.
डिजाइनर काली पैंटी,उस पैंटी से बहार छलकती मोटी गद्दाराई कामुक गांड थारथरा गई.
"हायययययय....हे भगवान आज मार ही देगा " आदमी के मुँह से तारीफ मे कुछ शब्द निकल ही गए.
उसने तो सपने मे भी ऐसा कुछ नहीं सोचा था एक घरेलु,कामुक स्त्री उसकी जांघो ओंधे मुँह लेती हुई थी वो भी अपनी सबसे हसीन चीज को बेपर्दा किये हुए.
"आअह्ह्ह.....नहीं....आउच.." अनुश्री को भी अब तक समझ आ चूका था कि उसकी हरकत का क्या अंजाम हुआ है, उसका पूरा बदन कांप गया,नंगी गांड पे ताजी ताजी ठंडी हवा उसे महसूस हो रही थी.
अनुश्री ने गर्दन पीछे घुमा के देखना चाहा ही था कि "रुक साली....देता हूँ तुझे तेरी बोत्तल जब से पीछे पड़ी है " आदमी ने अपनी एक टांग बहार निकाल के अनुश्री कि गर्दन पे जमा दि.
अनुश्री किसी बकरी कि तरह शेर के चूंगल मे फस गई थी.
"आआहहहहह.....छोडो जाने दो " अनुश्री कि सारी बहादुरी एक ही पल मे निकल गई.
उसे अहसास हो चला था कि वो कितनी बड़ी गलती कर चुकी है.
लेकिन इस चीख पुकार को सुनने वाला कोई नहीं ना और ना ही उसके आदमी पे कोई फर्क पड़ रहा था शायद वो तो सुनने समझने कि शक्ति ही खो चूका मालूम पड़ता था.
" साली मेरा नाम भी फारुख है एक बार जिस चीज पे हक़ जमा दिया फिर उसे मुझसे कोई नहीं ले सकता,और तू मेरे पीछे पीछे आ गई "
चट....चटाक.....चट.....कि जोरदार आवाज़ के साथ फारूख का हाथ उठ के अनुश्री कि खूबसूरत गांड पे जा पड़ा.
"आआहहहहह.......आउच.....नहीं....मार क्यों रहे हो आअह्ह्ह...." अनुश्री कसमसा के रह गई एक तीखे एज़ दर्द कि लहर उसके पुरे जिस्म को भिगो गई.
लेकिन थोड़ी सी भी गर्दन नहीं हिला पाई.
"छ...छ....छोड़ दो रख लो बोत्तल और पैसे भी " अनुश्री मिन्नत कर उठी
उसकी आँखों मे आँसू थे पहली बार इस तरह बड़ी मुसीबत मे फ़सी थी अनुश्री
अभी तक उसके साथ जो भी हुआ उसमे कही ना कही उसकी भी मर्ज़ी थी लेकिन...ये...ये....तो साफ साफ जबरजस्ती थी.
अनुश्री का कलेजा मुँह को आ गया था, उसे अपना भविष्य अंधकार मे दिख रहा था.
बेहद डर कि वजह से उसे अपनी नाभि के नीचे भयंकर प्रेशर महसूस होने लगा,लगता था जैसे पेशाब निकल जायेगा अभी.
"ताड़....ताड़......चट....चटाक....से दो थप्पड़ और जा पड़े, साली आज तो तेरी गांड से दारू पियूँगा,ऐसी गांड आजतक जीवन मे नहीं देखी मैंने.
फारुख बड़बड़ाए जा रहा था,उसके हर एक वाक्य के साथ अनुश्री का प्रेशर बढ़ता जा रहा था कलेजा मुँह से बहार निकलने को ही था..
"तुझे बोत्तल चाहिए ना.....यही बोत्तल....." फारुख ने उसकी आँखों के सामने दारू कि बोत्तल लहरा दि.
और उसके दूसरे हाथ ने अनुश्री कि गांड कि लकीर मे घुसी पैंटी को पकड़ के बहार खिंच दिया.
अनुश्री को कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या होने वाला है,उसके ोास समय ही नहीं था.
"ये ले साली अपनी बोत्तल......आआहहहहह........आउच....उफ्फ्फ्फ़ग्ग......नहीं......इससससससस.....".अनुश्री के हलक से दर्दभरी चीख निकल पड़ी..
अनुश्री के आंखे फटी कि फटी रह गई,मुँह खुला रह गया, गर्दन ऊपर को हो गई जैसे किसी सियार ने हुंकार भरी हो.
"ले ना साली तेरी दारू " फारूक ने बोत्तल के आगे का सिरा अनुश्री कि गांड कि लकीर मे जा धसाया था.
इतने मे ही अनुश्री कि आंखे बहार को उबल आई थी.
बेसुमार दर्द और पीड़ा से हालत ख़राब थी, अभी तक इतनी बेरहमी से उसकी गांड मे कुछ नहीं गया था, हालांकि एक बार अब्दुल को लंड हिलाते देख जोश मे नल कि टोटी अपनी गांड मे ली थी,और एक बार चाटर्जी ने दो ऊँगली घुसाई थी लेकिन वो सब उसकी मर्ज़ी से था जब वो हवस के चरम पे थी.
लेकिन ये तो सरासर बेरहमी थी,पसीने से गीली गांड ने एक ही बार मे बोत्तल का ऊपरी हिस्सा बेबस अनुश्री कि गांड मे धसा हुआ था.
"और ले साली...." फारुख ने बोलते हुए एक झटका ओर दिया बोत्तल का ऊपरी पतला हिस्सा पूरा का पूरा अनुश्री कि गांड मे जा धसा.
"आआआहहहहहह......आउच....नहीं.....बस करो " अनुश्री कि आंख से आँसू छलछाला गए.
लगता था जैसे खून कि हर एक बून्द गांड के उसके नाजुक बारीक़ सुराख़ कि तरफ दौड़े जा रही है.
"किसी ने तेरी गांड नही मारी क्या आज तक जो इतना चिल्ला रही है " फारूक चिल्लाया
"ननणणन......नननन....नहींआअह्ह्ह....उफ्फ्फ्फ़.. " भीषण दर्द मे भी अनुश्री ने जवाब दिया
कि तभी अनुश्री को अपनी गांड मे कुछ गर्म गर्म सा गिरता महसूस हुआ
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह.........ये....ये.....क्या?" अनुश्री ने दोनों मुट्ठी से फारूक कि गन्दी लुंगी को जकड़ लिया था.
उसके गर्म चीज से जैसे उसकई दर्द मे राहत मिली थी,कोई मरहम हो जो उसकी गांड को सेक रहा था.
"वाह..रे....देख साली तेरी गांड भी दारू पीती है " फारूक का हाथ बोत्तल कि पिछली साइड मे जमा हुआ था.
"गुलप....गुलुप.....गुलुप.....करती बोत्तल बुलबुले छोड़ने लगी,बोत्तल से निकल के दारू अनुश्री कि गांड मे समाती जा रही थी.
अनुश्री का बदन दारू कि गर्माहट से सकपका उठा, उसका बदन जल रहा था,उसके जलन का केंद्र उसकी कि गांड का सुराख़ था, वही से सारी गर्मी पुरे बदन मे फ़ैल रही थी.
आँखों मे आँसू सुख आगये थे,आंखे लाल हो चली. नाभि के नीचे जांघो के बीच पेशाब का प्रेशर बढ़ता ही जा रहा था.
जब भी अनुश्री डरती या उत्तेजित होती उसके साथ यही होता.
इधर फारुख तो जैसे किसी सपने को जी रहा था.
फारुख को सिर्फ दारू कि तालाब लगी थी,लेकिन फारूक कि हरकतों ने अनुश्री के बदन मे एक लावा घोल दिया था,वो नीचे सर धसाये सिर्फ इस खोलते लावे को महसूस कर रही थी.
कि तभी......अनुश्री को अपने बदन का हर एक हिस्सा गांड के रास्ते बहार खींचता महसूस होने लगा.
"आआहहहह.....आउच....नहीं...." अनुश्री को ऐसा लगा जैसे उसकी गांड से कोई जबरजस्ती कोई चीज बहार खिंच रहा हो.
अनुश्री ने गर्दन पीछे कर देखना चाहा,फारुख दारू कि बोत्तल को बहार खिंच रहा रहा,लेकिन बोत्तल को जैसे किसी ने जकड़ लिया था.
अनुश्री डर और वासना मे झूलसी अपनी गांड को भींच लिया.
उसे डर था दर्द होगा, ऊपर से अंदर कोई तरल पदार्थ गरम पदार्थ हिलोरे मार रहा था.
"आअह्ह्ह.....आउच...नहीं.....फारुख " अनुश्री के मुँह से पहली बार उसके व्यक्ति का नाम निकला.
कि तभी......पुककककककक.......फच....फच.....कि आवाज़ के साथ बोत्तल बहार आ गई.
बोत्तल का बहार आना ही था कि अनुश्री ने अपनी गांड को जबरजस्त तरीके से भींच लिया,कुछ बून्द शराब बोत्तल के साथ बहार आई लेकिन सारी कि सारी अंदर ही रह गई.
फारुख ने बोत्तल निकल के सामने हवा मे लहरा दि " साली...देख तेरी गांड तो आधी दारू पी गई "
अनुश्री ने गर्दन ऊँची कर के देखा वाकई आधी बोत्तल खाली थी,इस....इस...इसका मतलब अंदर जो गरम गरम लग रहा है वो दारू है.
अनुश्री का मन मस्तिष्क चकरा गया, ऐसा कामुक अनुभव उसने पहली बार ही लिया था.उसका चेहरा शर्म और उत्तेजना मे लाल हो चला.
काम कला के भी क्या क्या रूप होते है अनुश्री सीख और समझ रही थी.
फारुख ने बोत्तल निकल साइड मे रख दि, अनुश्री अभी भी वैसे ही अपनी गांड भींचे फारुख कि जांघो पे पड़ी थी,उसे कतई होश नहीं था कि उठ के भाग जाये.
शायद भागना ही ना चाहती हो
"आज तो तेरी गांड से ही दारू पियूँगा,कितनी खूबसूरत है तेरी गांड " इस बार फारुख ने बड़े ही प्यार से अनुश्री कि गांड पे हाथ फेर दिया.
और दोनों टांगो को बहार निकाल दिया अनुश्री आज़ाद थी बिल्कुल आज़ाद....लेकिन...ये क्या अनुश्री हिली भी नहीं वो यूँ ही घाँस ने मुँह धसाये लम्बी लम्बी सांसे भर रही थी.
फारुख को अब सब्र नहीं था,तलब बढ़ती जा रही थी.
फारुख तुरंत ही अनुश्री के पीछे आ गया और उसकी कमर को पकड़ के ऊपर उठा दिया,शायद अनुश्री ने भी इसमें मदद कि थी वरना ऐसे कैसे उठा देता.
अनुश्री कि गांड ऊपर उठने से और भी ज्यादा उभर के सामने आ गई, एकदम गोरी,गद्दाराई कामुक हिलती हुई गांड..
फारूक जैसो से ये सब देखा नहीं जा सकता था आव देखा ना ताव उसने अपना मुँह उसके कामुक पतली लकीर मे जा घुसाया.
"आआआहहहहहह......आउच....नहीं....उफ्फ्फ्फ़...." अनुश्री एक बार फिर चित्कार उठी लेकिन ये चित्कार दर्द कि नहीं थी सुकून कि थी,हवस और वासना से भरी थी.
फारूक कि लापलापति गीली जीभ सीधा पसीने और दारू से भीगे अनुश्री के कामुक गांड के छेद पे जा टिकीअनुश्री तो इस अहसास से ही मरी जा रही थी,उसे ऐसा अनुभव कभी भी अनुभव नहीं हुआ था.
गांड के बहार गीली ठंडी जीभ और अंदर गरम उफान मारती दारू हिल रही थी.
ठन्डे गरम का ये अहसास अनुश्री को कामसुःख के सातवे आसमान पे ले गया.
अनुश्री कि आंखे ऊपर को चढ़ती जा रही थी..
क्या वक़्त है,क्या स्थति है,कोई देख लेगा किसी बात कि फ़िक्र नहीं थी.
उसे फ़िक्र थी तो बस इस बात कि,कि जो उसकी जांघो के बीच लावा जमा हुआ है वो निकल जाये कैसे भी.
हाय रे ये वासना क्या रंग दिखाती है.
फारुख कि जीभ लगातार अनुश्री के गांड के छेद को कुरेदे जा रही थी, उसे वही दारू पीनी थी जो अनुश्री के गांड के अंदर थी
"आअह्ह्ह......उफ्फफ्फ्फ़....." अनुश्री मुँह नीचे किये सिर्फ आहे भरे जा रही थी.
कई बार मन करता कि गांड के छेद को ढीला छोड़ दे लेकिन जैसे ही फारुख कि जीभ वापस से गांड के छेद पे लपलापति अनुश्री उत्तेजना मे उसके छेद को सिकोड लेती.
नतीजा फारुख के हिस्से नाकामयाबी ही लगती..
"उफ्फ्फ्फ़.....आअह्ह्ह....आउच..." अनुश्री सिसकारे जा रही थी
"क्या गांड है तेरी,क्या पसीना है तेराा दारू पीला दे खोल अपना छेद " फारूक लगातार चाटे जा रहा था, हौसला भी बढ़ा रहा था.
अनुश्री कि गांड कि लकीर पूरी तरह से फारूख के थूक से सन गई थी.
"निकाल ना साली....." फारुख बेकाबू हुए जा रह था.
उसके दोनों हाथ अनुश्री कि गांड के दोनों पल्लो पे आ जमे और एक दूसरे को विपरीत दिशा मे खींचने लगे.
अनुश्री का छेद खुलने लगा,फारुख कि गन्दी जीभ उसके छेद मे घुसने कि नाकाम कोशिश कर रही थी.
"आअह्ह्ह.....फारुख....उफ्फ्फ्फ़...." अनुश्री इस हमले से सिसकर उठी.
फारुख को रास्ता नजर नहीं आ रहा था कि तभी धच.....से एक ऊँगली उठा के अनुश्री कि गीली कामुक चुत मे पेवास्त कर दि
"आआहहहह......पुररररर.....फट...फट.....फच...फच......पुरररर.......करता हुआ गांड का छेद खुल गया और फच से प्रेसर के साथ गरम गरम दारू कि फव्वारे दार बाढ़ सीधा फारुख के मुँह से टकरा गई.
फारुख को इसी बात का तो इंतज़ार था,फारुख मुँह खोले जीभ बहार निकाले उस दारू कि एक एक बून्द को पीने लगा
अभी ये कम ही था कि फारुख कि ऊँगली जो चुत मे घुसी हुई थी एक ही झटके से बहार को फिक गई....अनुश्री कि चुत से भरभरा के पेशाब भी छूट गया...
"आआहहहह.....उफ्फ्फ्फ़क....फारुख...." अनुश्री लम्बी लम्बी सांसे भर रही थू सर जमीन मे धसाये,गांड हवा मे पूरी तरह से ऊपर उठी हुई थी.
फारुख को तो जैसे जन्नत नसीब हो गई थी,उसे दारू के साथ साथ अनुश्री का कामुक कसैला पेशाब भी पीने को मिल रहा था.
फारुख जीभ निकाल निकाल....के शरबत का आनंद उठा ही रहा था कि
"धाजड़ड़ड़ड़ड़.......हट साले....गन्दी जात..." एक जबरजस्त ठोंकर फारुख कि कमर पे पड़ी.
अचानक हमले ऐसे अनुश्री और फारुख दोनों घबरा गये,फारुख तो ठोंकर से दूर जा गिरा..
"साले हमारी मैडम कि गांड चाटता है मदरचोद " एक लात और फारुख के मुँह पे जा पड़ी.
"साले मैडम कि गांड पे सिर्फ मेरा हक़ है " वो आदमी चिल्लाया.
अनुश्री जो इस ठोंकर से पीठ के बल चित्त लेट गई थी उसके तो आश्चर्य कि कोई सीमा ही नहीं थी.
"अअअअअ.....अअअअअ....अब्दुल तूम?" अनुश्री बुरी तरह बोखलाई हुई थी.
उसके दिल ने धड़कना ही छोड़ दिया था.
काश अभी जमीन फट जाये और वो उसमे समा जाये
अनुश्री कि यही आखिरी चाहत थी,उसकी सारी इज़्ज़त सारा सम्मान तार तार हो गया था.
चोर तभी तक चोर है जब तक पकड़ाई ना आये.
अनुश्री कि अभी यही हालत थी.
वो आंखे फाडे अब्दुल को देखे जा रही थी......रुक साले कहाँ जाता है रुक......फारुख बोत्तल उठाये भागा चला जा रह था
.
दूर बहुत दूर....
तो क्या होगा अब?
क्या सोचेगा अब्दुल?
बने रहिये कथा ज