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Erotica मेरी बीवी अनुश्री

आपकी पसंदीदा कौन है?

  • अनुश्री

    Votes: 190 71.7%
  • रेखा

    Votes: 44 16.6%
  • अंब्दुल

    Votes: 57 21.5%
  • मिश्रा

    Votes: 18 6.8%
  • चाटर्जी -मुख़र्जी

    Votes: 28 10.6%
  • फारुख

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"ट्रिन.....ट्रिन....ट्रिन........" होटल मयूर के रसोई मे फ़ोन कि घंटी बज रही थी.
"हेलो......अरे काका मांगीलाल काका आ गए क्या?" फ़ोन मिश्रा के कान पे लगा हुआ था.
"हाँ बिटवा आ गईं हैँ,दरवाजे पे ही खड़े है " होटल मयूर के बहार एक मांगीलाल खड़ा था परन्तु आज जगमगा रहा था साफ धोती,चमकता कुर्ता,बाल सलीके से जमे हुए हाथ मे थैला.
"काका अंदर आ जाइये,सीधा रसोई मे ही वही मिलूंगा "
"आए...अअअअअ.....हाँ आत है बिटवा " मांगीलाल धड़ल्ले से होटल मयूर मे घुस गया गेट पे कोई पूछने वाला भी नहीं था.
परन्तु मांगीलाल जब अंदर आया उसे समझ नहीं आ रहा था कि रसोई कहाँ है " ऐ...बिटवा....सुना हो " मांगीलाल को एक व्यक्ति दिखा जो सीढ़ी से ऊपर कि ओर जा रहा था.
"हनन....हाँ.....बोलो....अरे...अरे...आप तो..." व्यक्ति मांगीलाल को देख बुरी तरह से चौंक गया.
"अरे बिटवा तुम तो वही हो ना जो बोट मे मिले थे " मांगीलाल चहक उठा.
"हनन..हाँ...मै वही हूँ मंगेश,मेरी बीवी अनुश्री आपके ही होटल मे थी " मंगेश भी खुशी से चहक उठा.
"क्या किस्मत है बिटवा तुम यही रुके हो " मांगीलाल के बदन को 440 वोल्ट का झटका सा लगा था मंगेश को यहाँ देख के.
उसके सामने अनुश्री का चेहरा घूम गया,क्या नियति थी ये.

"हाँ काका....यही रुका हूँ,आपका बहुत बहुत धन्यवाद अपने बहुत मदद कि हमारी," मंगेश पास आ गया उसकी आँखों मे अहसान साफ देखा जा सकता था.
"उस समय मै जल्दबाजी मे आप पे ध्यान ही नहीं दे पाया,आपका धन्यवाद तक नहीं किया" मंगेश आज वाकई उसके अहसान तले दबा हुआ था.
""अरे बस करो बिटवा,तुम तो लड़के जैसे हो हमारे "
"अच्छा आप यहाँ कैसे " मंगेश सामन्य हुआ
"अरे हमरे गांव का लइका काम करत है रसोई मे तो मिलने चले आये,कहाँ है रसोई "
"वो वहाँ उधर सामने ही तो है " मंगेश ने गार्डन के पार दिखा दिया

"अच्छा बिटवा मिलता हूँ बाद मे " मांगीलाल और मंगेश अपनी अपनी मंजिल कि ओर चल पड़े.

परन्तु इधर अनुश्री एक अनजानी मजिल पे पहुंचते पहुंचते रह गई थी.
उसका सीना फटने कि कगार पे था,गांड के दोनों पाटो के बीच एक मीठे दर्द कि टिस उठ रही थी.
अब्दुल के झटके से अनुश्री पीठ के बल जा गिरी,
"साले रुक... भागता किधर है मादर....चो....चो......."अब्दुल के हलक मे आगे कि गाली अटक के रह गई.
उसके सामने संसार का सबसे खूबसूरत नजारा जो आ गया था.
नीचे गिरी अनुश्री हक्की बक्की अब्दुल को देखे जा रही थी,पसीने से लथपथ उसे अपनी स्थति का कोई आभास ही नहीं था.
सामने अब्दुल का मुँह गाली देने को खुला तो था लेकिन फिर वापस बंद ना हो पाया.
सामने अनुश्री पीठ के बल कोहनी के सहारे सर उठाये थी,इन सब मे उसकी साड़ी जो कमर मे सिमट गई थी वो अभी भी वही थी..कमर से नीचे का हिस्सा पूर्णतया नंगा था बस एक बारीक़ सी जालीदार काली पैंटी थी जो फारूक के प्रयासों से साइड हो गई थी.
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अब्दुल बस इसी नज़ारे मे खो गया था,जैसे अभी अभी पैंटी रूपी ग्रहण हटा हो और एक जगमगता चाँद नजर आ गया हो.
लेकिन ये...ये...चाँद कुछ अलग था इसमें एक लकीर पड़ी थी बिल्कुल बारीक़ सी लकीर.
कोई मुर्ख ही होगा जो इस चाँद को चुत कह देगा.
"मममम....मैडम......" अब्दुल कुछ बोलना चाहता था.
अनुश्री के हलक से आवाज़ ना निकली लेकिन आंख कि भोहे थोड़ा सा ऊपर को उठ गई,ये सवाल था कि क्या बात है?
"मममम...मैडम आपकी चु.. चु...चुत..शानदार है " आखिर अब्दुल ही वो मुर्ख निकला जो उसके चाँद को चुत कह गया.
अनुश्री कि जांघो के बीच एक तिकोना सा उभार निकल आया था,एक दम फुला हुआ कुछ कुछ गिला जैसे शबनम कि बुँदे गिरी हो.
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ऐसा नजारा देखने के लिए कालांतर से मर्द जंग तक लड़ लेते थे यहाँ तो अल्लाह ने साफ साफ अब्दुल कि किस्मत मे मुक्कदर लिख दिया.
"कक्क....कक्क....क्या...क्या...?"चुत शब्द का सुनना था कि अनुश्री का पूरा बदन सनसना उठा..
उसे अपने कानो पे यकीन ही नहीं हो रहा था जो उसने सुना, इस एक शब्द से उसे अपनी यथा स्थति का भान हुआ उसकी नजरें जैसे ही अपनी कमर के नीचे पड़ी,एक पल को ऐसा लगा जैसे दिल अंतिम बार धड़का हो..
"मममम.....मैडम......"
"अअअअअ......अब्दुल."
बस यही निकला एक दूसरे के मुँह से..
अनुश्री झट से खड़ी हो गई "आआहहहहह.....आउच."लेकिन जैसे ही खड़ी हुई गांड कि लकीर लरज गई,उसके एक चिद्र से दर्द का तूफान जो उठा सीधा उसका असर अनुश्री के चेहरे पे दिखा.
"मममम...मैडम आप ठीक तो है ना "लड़खड़ाती अनुश्री को अब्दुल कि मजबूत बाहों ने थाम लिया.
" अअअअअ...हाँ...हाँ...ठीक हूँ मै " अनुश्री संभल गई थी
"उसके हरामजादे ने कुछ किया तो नहीं मैडम " अब्दुल कि चिंता जायज थी
"त....त...तुम यहाँ कैसे आ गए?" अनुश्री के शब्दों मे घोर आश्चर्य था
सवाल के बदले सवाल था
"वो....वो मै भी दारू लेने ही आया था,कि नजर आप पे पड़ गई आप इस विराने कि ओर चली जा रही थी,आप बैचैन थी, तो मुझे लगा कि मदद करनी चाहिए इसलिए पीछे पीछे चला गया " अब्दुल अभी भी अनुश्री के हाथ पकड़े खड़ा था

"वो.....वो....वो आदमी मेरे पैसे और वाइन के भागा था " ना जाने क्यों अनुश्री अब्दुल के आते ही सहज़ हो चली थी

"उसने कुछ किया तो नहीं " अब्दुल ने मुद्दे कि बात कह दि
इस एक सवाल से अनुश्री सकपका गई "ननणणन......नहीं.....वो....वो....हाँ..." वो खुद नहीं समझ पा रही थी क्या काहे क्या छुपाये
"मैंने देखा वो आपकी गांड चाट रहा था " अब्दुल ने जैसे बम फोड़ दिया हो
एक बात फिर से अनुश्री के पैरो तले जमीन खिसक गई " मै कैसे बहक सकती हूँ? अब्दुल क्या सोच रहा होगा मेरे बारे मे?"
"क्या सोचने लगी मैडम मेरे होते आपकी गांड कोई छू भी नहीं सकता " अब्दुल बेबाक बोले जा रहा था.
"इस्स्स......अब्दुल....उफ्फ्फ्फ़...." अनुश्री के हाथ अब्दुल के हाथ मे कसते चले गए
उसका जिस्म पहले से ही फारूक कि हरकत से सुलग रहा था,यहाँ अब्दुल उसके जिस्म रूपी भट्टी मे अँगारे झोंक रहा था.
आज अब्दुल ने साफ तौर पे अनुश्री के जिस्म पे अपना हक़ जमा दिया था.
अनुश्री के जहन मे जैसे ये बात किसी नाश्तार कि तरह चुभी थी "आपकी गांड पे मेरा हक़ है " एक तीखी लहर अनुश्री के कमर से निकलती हुई उसके गद्देदार गांड कि लकीर से होती हुई उसके महीन गुदा छिद्र से जा टकराई "आआआहहहहह......अब्दुल..उफ्फ्फ्फ़ "अनुश्री का जिस्म उसका साथ छोड़ भागे जा रहा था.
"चले मैडम शाम ढल गई है " अब्दुल ने अनुश्री को आगे बढ़ा दिया
अनुश्री जो कि कामअग्नि मे जल रही थी उसके लिए ये वाक्य किसी झटके से कम नहीं था.
कहाँ अब्दुल उसे पाने के लिए पीछे पड़ा रहता,लेकिन आज मौका दस्तूर सब साथ था तो चलने को बोल दिया

अनुश्री काम वासना मे जलती हुई आगे बढ़ चली उसकी चाल ने कुछ गड़बड़ी थी,वो ज्यादा ही लंगड़ा रही थी या यूँ कहिए उसकी कमर कुछ ज्यादा लचक रही थी,जैसे किसी राज को छुपाने कि कोशिश कर रही हो..
"क्या हुआ मैडम दर्द हो रहा है " अब्दुल ने भाँप लिया उसके चेहरे पे एक कुटिल मुस्कान थी.
"तत्तत्तत्त.....तुमसे मतलब जल्दी चलो रेखा आंटी इंतज़ार कर रही होंगी " ना जाने क्यों अनुश्री को गुस्सा आ गया,या फिर खीज थी किसी बात कि.शायद शरीर कि गर्मी दिमाग़ मे चढ़ने लगी थी.
ना जाने क्या था अब्दुल के मन मे.

.थोड़ी ही देर मे अनुश्री और अब्दुल उसी सर्किल पे पहुंच गए जहाँ मिलने कि बात हुई थी.
"अरे बेटा तुम कहाँ रह गई थी कबसे इंतज़ार कर रही थी मै " रेखा बेचैन थी
"माता जी वो....वो...मार्किट मे कुछ भीड़ थी,वहाँ मै मिल गया ती जल्दी से के आया,वरना तो रात भी ही सकती रही " अब्दुल ने दाँत निपोर के जवाब दिया और अनुश्री कि तरफ मुस्कुरा दिया
अनुश्री बस खीज के रह गई,उसका चेहरा गुस्से से लाल था अब ये गुस्सा अब्दुल पे था या बदन कि गर्मी का पता नहीं.
चारो लोग एक ऑटो मे बैठ निकाल चले होटल मयूर कि ओर


रात हो चुकी थी
रूम नंबर 102
"अरे जान इतना टाइम कहाँअगर दिया " मंगेश ने दरवाजा खोलते हुए बोला
"क्या लड़को कि तरह सब कुछ आसान है तुम्हरी बोत्तल लेने मे समय बीत गया " अनुश्री ने मंगेश के हाथ ने बोत्तल थम दि
और सीधा बाथरूम ने जा घुसी.
"अंदर जाते ही सबसे पहले उसकी नजर शीशे मे खुद ले ही पड़ी चेहरा गुस्से से लाल था.
"मंगेश भी ना हमेशा मुसीबत मे फसा देता है " अनुश्री बड़बड़ये जा रही थी.
"ऊपर से ये अब्दुल खुद को क्या समझता है " जैसे ही अब्दुल का ख्याल आया एक तीखी सी लहर उसके पीछे चुभने लगी
"आउच....ये कैसा अहसास है" अंदुल का ख्याल आते ही ना जाने क्यों उसकी गुदा छिद्र सिकुड़ने लगता था.
"मैडम कि गांड पे सिर्फ मेरा हक़ है " अनुश्री के जहन मे बात कोंध गई,पहली बार किसी ने इस तरह से उस ले अपना हक़ जमाया था..
"बढ़ा आया मुझपे हक़ ज़माने " अनुश्री साड़ी खोलती चली गई
उसका जिस्म पेटीकोट ब्लाउज ने दमक रहा था.
उसका हाथ खुद बा खुद फववारे के नल ोे जा लगा ठन्डे पानी ने उसके जिस्म को भीगाना शुरू कर दिया.
जब जब पानी कि धर उसकी गांड कि दरार मे समाती वो कसमसा के रह जाती.
ना जाने वो आदमी फारुख क्या कर गया था..... उसके दाँत और जीभ अनुश्री साफ महसूस कर रही थी.
आंखे बंद होती चली गई...ठंडा पानी जिस्म को कर भी जला रहा था,,...लेकिन....ये.. ये...क्या आंख बंद करते ही सामने अब्दुक का अक्ष उभर आया "मैडम कि गांड ने सिर्फ मेरा अधिकार है "
"ननणणन.....नहीं...."अनुश्री कि आंखे खुल गई पूरा जिस्म पानी से भीगा हुआ था.
जिस्म और भी ज्यादा जल उठा.
ठन्डे पानी ने उसके दिमाग़ कि गर्मी को शांत कर दिया "मै गुस्सा क्यों हुई अब्दुल पे? उसकी क्या गलती थी, जबकि उसने तो मुझे बचाया था "
अनुश्री को अपने व्यवहार पे पछतावा हो रहा था.
"जबकि मुझे उसका धन्यवाद करना चाहिए था, उसने ही मुझे वाइन कि दूसरी बोत्तल ला के दि,वरना मंगेश को क्या जवाब देती मै "
अनुश्री के पुरे कपडे बाथरूम के फर्श पे आ गिरे थे,पानी उसके जिस्म को और भी ज्यादा चमकदार,मादक बना रहा था.
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सामने अपने कामुक जिस्म को एक हल्की सी मुस्कान उसके होंठो पे तैर गई.
उसका मन हल्का था,लेकिन जिस्म भरी "आज मंगेश को नहीं छोडूंगी " अनुश्री ने खुद को देख के ही आंख मार दि.
अनुश्री के अंदर कि कामुक नारी लगभग पूरी तरह से बहार आ चुकी थी,
अनुश्री बाथरूम से बहार निकल आई.
"अरे....वाह जान क्या लग रही हो "सामने मंगेश पलंग पे बिछा हुआ था हाथ मे शराब का गिलास थामे.
अनुश्री शर्मा के रह गई,सामने बैठा मंगेश एकटक उसे ही देखता रह गया.
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बाथरूम से निकली भीगी हुई अनुश्री एक झिनी सी नाईटी पहने हुई,जिसमे से उसके उन्नत उभार साफ झलक रहे थे,अंधा भी देखता तो साफ कह सकता था अंदर क्या कमाल का खजाना छुपा हुआ है
मंगेश लगभग दो पेग पी चूका था.
अनुश्री कि नजर बोत्तल पे पड़ी वो आधी खाली थी.
"क्या बात है मंगेश आज इतनी जल्दी पी गए " अनुश्री ने कामुक अंगाड़ाई लेते हुए कहा
वो मंगेश को लुभा रही थी,उसके बदन ने एक आग लगी हू थी जो फारुख नाम के उसके गंदे एड्मिज ने लगाई थी.
"वो...वो कल से थकान ज्यादा थी ना " मंगेश मुस्कुरा दिया लेकिन बिस्तर से उठने कि कतई कोशिश नहीं कि.
अनुश्री को ये मौका भूनाना था वो चलती हुई बड़ी अदा से बिस्तर तक आ गई जहाँ मंगेश कि जाँघे थी.
"आअह्ह्ह.....अनु जान क्या कर रही हो " अनुश्री के हाथ मंगेश कि जाँघ पर घूमने लगे,उसके नाख़ून एक अजीब सी हलचल घोल रहे थे.
"क्यों तुम्हारी पत्नी हूँ इतना तो हक़ बनता है " ना जाने अनुश्री मे ये अदा कब और कहाँ से पनप आई थी वो रिझाना सीख गई थी.
और आज इस कला का प्रदर्शन वो अपने पति पे कर रही थी.
"गुलुप...गुलुप......मंगेश ने जल्दी से पेग खत्म कर अनुश्री को अपने ऊपर खिंच लिया.
अनुश्री के पेट पे नाभि के आस पास एक सख्त उभार महसूस होने लगा "आह्हः...आउच मंगेश " अनुश्री अब इस तरह के उभरो से भली भांति परिचित थी.
उसके चेहरे पे एक कातिल मुस्कान तेर गई, दोनों कि नजरें मिल गई.
अनुश्री कि निगाह मे साफ साफ हवस थी,वही मंगेश कि आँखों मे दारू का नशा और वासना.
शायद दारू ज्यादा हावी थी,आँखों कि पलके बार बार झुक जाती.

अनुश्री के हाथ मंगेश के बदन पे रेंगने लगे,सीने से होते हुए वो हाथ पेट से होते हुए नाभि के नीचे जा लगे जहाँ पाजामे कि इलास्टिक थी,
"आअह्ह्हम....अनु " मंगेश बस सिसक के रह गया, शराब के नशे ने उसे इस बात से अपरिचित रखा कि अनुश्री कितनी बदल बदल गई है.
अनुश्री का बदन जल रहा था उसे अपनी मंजिल पा लेनी थी उसके हाथ वहाँ रुके नहीं,और पाजामे कि इलास्टिक को छोड़ा करते हुए अंदर जांघो के जोड़ के बीच जा रुके.
"Wwww.....aaahhh....मंगेश" अनुश्री के हाथ एक गर्म सख्त चीज लग गई,यही तो चाहिए था,इसी का तो इंतज़ार था जिसके लिए वो ना जाने कब से तड़प रही थी.
अनुश्री के हाथ मंगेश के छोटे परन्तु सख्त लंड ले कसते चले गए.
"आअह्ह्हम.....अनु.." मंगेश का सर पीछे तकिये मे घुसता चला गया,आंखे बंद हो गई.
अनुश्री कामवासना मे अपनी जाँघे रगड़ रही थी,
उसकी एक हल्की से कोशिश ने मंगेश के पाजामे को जांघो तक सरका दिया, अनुश्री के सामने एक मामूली गोरा साफ सुथरा छोटा सा लंड उजागर हो गया.
अनुश्री के हाथ खूब बा खुद उसके छोटे से लंड को परखने लगे, हाथ नीचे को जाते तो एक छोटा सा गुलाबी सूपड़ा बहार आ जाता,फिर हाथ ऊपर को जाते तो छुप जाता.
मंगेश का लंड पूरा का पूरा अनुश्री कि हथेली मे छुप गया, आज उसे कोई शिकायत नहीं थी,ना हूँ उसने मंगेश कि किसी से तुलना कि..
अनुश्री के हाथ लगातार मंगेश के लंड को ऊपर नीचे कर रहे थे.
अनुश्री का सर नीचे को झुकता चला गया....वो मंगेश के लंड को मुँह मे भर लेना चाहती थी.
अभी तक गैर मर्दो के लंड को ही चखा था उसने.
अनुश्री का सर बिल्कुल नजदीक था,कि तभी मंगेश कि कमर ऊपर को उठने लगी.
"आअह्ह्ह.....अनु...उफ्फ्फफ्फ्फ़....पिच....पिच....करती दो बून्द अनुश्री के हाथ को भिगोती चली गई
अनुश्री कामवासना मे जल रही थी,"मममम....मममम....मंगेश ये..ये....क्या?" अनुश्री हैरान थी उसे कुछ समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ.
अनुश्री सीधी बैठ गई,जैसे ही उसकी नजर मंगेश के चेहरे पे पड़ी "खरररर....खररररर.....zzzzz....ummm" मंगेश दारू के नशे मे नाक बजा रहा रहा,तकिये मे मुँह धसाये..
अनुश्री अभी भी भोचक्की मंगेश के लंड को पकडे बैठी थी,वो भी एकदम से मुरझा के उसके हाथ से फिसलता चला गया

अनुश्री पल प्रति पल मंजिल से दूर चली जा रही थी."मांगेश....मांगेशम्म.उफ्फ्फ्फ़......क्या यार....कहाँ था ना मत पियो"
अनुश्री चीख उठी,खिझ के बिस्तर से दूर कुर्सी पे जा बैठी,
अनुश्री का बदन गुस्से और वासना से सुलग रहा था."हे भगवान मेरे साथ हूँ क्यों?" अनुश्री सर पे हाथ रखे बड़बड़ाए जा रही थी

इधर रासई मे

"लो मांगी काका पियो " मिश्रा ने एक पेग बढ़ा दिया
"वाह बिटवा लगता है तुमने खूब माल बना लिया है यहाँ " मांगीलाल ने पहला घुट लेते हुए कहा
"कहा काका...पैसे कमाने के लिए आना पड़ा वरना तो गांव मे ही मजे थे "
गांव का नाम सुनते ही मंगीलाला का मुँह लटक गया.
"क्या हुआ काका...गलत बोला क्या? काकी कि याद आ गई क्या "
"नाम मत लो उस धोखेबाज का जिसने नपुंसक बना दिया मुझे " मांगीलाल का चेहरा तम
तमतमा उठा.
"तो क्या गलत क्या है काका पूरा गांव तुमने नपुंसक कहता है " रसोई मे अब्दुल ने घुसते हुए कहा
"नपुंसक नहीं हूँ मै." मांगीलाल चिल्ला उठा.
"जवानी मे तो खड़ा होता नहीं था अब बुढ़ापे मे क्या खाक होगा" अब्दुल ने तंज कस दिया.
"इसलिए बुलाया था तुमने मुझे यहाँ,मेरी बेइज़्ज़ती को,इसी वजह से तो मै जीवन भर गांव से बहार रहा " मंगीलाल का सर झुक गया.
"साले अब्दुल तुझे और कोई काम नहीं,जब पीनी नहीं तो आया क्यों यहाँ " मिश्रा ने हड़कते हुए बोला
"अरे खाना लेने आया हूँ, तू बैठ इस नपुंसक के साथ हाहाहाहा..." अब्दुल मज़ाक बनाता हुआ वहाँ से निकल गया
"काका आप बुरा ना मानना साला दिमाग़ से पैदल है " मिश्रा ने एक और पेग बना दिया
"बिटवा मै नपुंसक नहीं हूँ गटक गटक...." मांगीलाल ने एक ही बार मे पूरा पेग ख़त्म कर दिया
"देखना एक दिन तुम लोगो के सामने एक जवान लड़की को चोदुँगा " मांगीलाल का सीना गर्व और आत्मविश्वास से भर उठा.
"लगता है बूढ़े को चढ़ गई है " मिश्रा ने मन मे बोलते हुए एक पेग और बना दिया.

रसोई मे गहमा गहमी बनी हुई थी
वही रूम नंबर 102 मे अनुश्री बैचैन थी, उसका बदन जैसे किसी भट्टी मे जल रहा था सामने बिस्तर पे मंगेश चीत तकिये मे मुँह धसाये पड़ा हुआ था.
कुर्सी पे अनुश्री को बैठा नहीं जा रहा था रह रह के एक हलके दर्द कि लहर उत्पन्न हो जाती जिसका कारण वो फारूक के द्वारा वाइन बोत्तल थी जो उसने एक बार मे ही अनुश्री कि गांड मे ठूस दि थी.
वो पल जहन मे याद आते ही अनुश्री का कलेजा कांप गया, उफ्फफ्फ्फ़।.......आउच....उसके जहन मे वो पल सजीव हो उठा.
वो और ज्यादा देर उसके कुर्सी पे नहीं बैठ पाई,तुरंत उठ के दरवाजे के पास पहुंची,ना जाने क्या रहा उसके मन मे,
एक बार पीछे पलट के देखा मंगेश बेसुध पड़ा हुआ था.
अनुश्री के हाथो ने दरवाजा पकड़ के खिंच दिया एक ठण्डी ताज़ा हवा उसके बदन को नहला गई.
"आअह्ह्ह.....wow....." अनुश्री के बदन मे एक रोमांच जग उठा
"कितना अच्छा ठंडा मौसम है बहार " अनुश्री ने बहार झाँक के देखा चारो तरफ सन्नाटा था,बालकनी मे बस एक जीरो बल्ब जल रहा रहा जिसकी रौशनी ना के बराबर थी
आज बिना डरे उसने वो दहलीज पार कर दि, झिनी नाईटी पहने अनुश्री जीरो रौशनी मे बालकनी मे खड़ी थी, हल्की रौशनी मे उसके मादक तराशे हुए जिस्म कि झलक दिख रही रही.
बालकनी के किनारे आते ही उसकी नजर सामने रसोईघर ले पड़ी जहाँ अभी भी एक मददम पिली रौशनी जल रही थी.
एक वक़्त वो इसी रौशनी का पीछा करती हुई वहाँ अपनी हसरत पूरी करने पहुंच गई थी.
"क्या आज भी मुझे जाना चाहिए " अनुश्री का सवाल खुद से था.
"नहीं...नहीं....मिश्रा क्या सोचेगा मेरे बारे मे, उसके दिन तो उसने खुद बुलाया था " अनुश्री पीछे हट गई उसने आज खुद को बहुत बड़ी मुसीबत से बचाया था..
अच्छा तो जो वो आज वहाँ नहीं गई..
अनुश्री का जिस्म उसे तड़पा रहा था, लेकिन उसका मन मजबूत था कि खुद से पहल नहीं करनी है.
उसे अभी भी अपनी इज़्ज़त का ख्याल था.
उसके कदम पीछे को हटते चले गए और सीढ़ी के पास दूसरी तरफ आ के थामे जहाँ,बिल्कुल अंधेरा था,सन्नाटा,सिर्फ सामने समुद्र कि लहरे उठती दिख रही थी, वहाँ से आती ठंडी हवा उसके जिस्म से खेल रही थी.
कभी नाईटी का एक पल्ला हटाती तो कभी दूसरा जैसे आज प्रकृति भी उसके यौवन मे बंध के सम्भोग करना चाह रही हो.
अनुश्री बालकनी पे आगे को झुक गई,उसकी कोहनी आगे दिवार पे जा टिकी,कमर के साथ भारी गद्देदार गांड पूरी तरह से निकल के बहार को आ गई.
प्रकृति का सच्चा आनंद उठा रही थी अनुश्री रह रह के ठंडी हवा स्तन कि दरार के बीच से होती हुई सीधा नाभि को छू लेती तो कभी वही हवा पीछे से गांड कि लकीर से होती हुई दोनों कामुक छेड़ो को छेड़ के गुजर जाती.
जैसे कोई सांगितज्ञ मधुर संगीत बजा राहा हो और ये संगीत अनुश्री के अंग अंग को अपने वश मे ले रहा था.
उसके हाथ आज खुद बा खुद अपने जिस्म पे रेंगने लगे.
"उफ्फ्फग......कितना सुकून था खुद कि छुवन मे ही "

अनुश्री आज खुद कि छुवन से ही हैरान थी कि एक मजबूत जिस्म उसके जिस्म से आ लगा.
"आआहहहह........मैडम जी "
अनुश्री अभी कुछ समझती ही कि एक हाथ पीछे से उसकी छाती पे आ जमा जो कि लगभग नग्न ही थे.
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और दूसरा हाथ कमर तक उसकी नाईटी उठा चूका था.
"आआहहहहह....उफ्फ्फ्फ़....." एक खुरदरे छुवन से अनुश्री का जिस्म कांप उठा उसकी सुध बुध खोती चली गई..अभी ये कम ही था कि पीछे खड़े शख्स ने उसकी कमर मे हाथ डाल दिया.
और एक ही झटके मे सरसराता हुआ वो जिस्म नीचे बैठता चला गया साथ हूँ अनुश्री कि जालीदार काली पैंटी भी जमीन चाटने लगी.
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सामने एक खूबसूरत नजारा था मदमस्त नंगी कामुक गांड,अनुश्री कि कामुक गांड.

अनुश्री काम वासना मे घिरी थी लेकिन हैरान भी थी उसका दिल धाड़ धाड़ कर धड़क उठा.
मुँह चिल्लाने को खुला तो खुला का खुला रह गया.....एक गीली नरम लिबलिब करती चीज उसकी गांड कि दरारा मे रेंगने लगी.

"आआआहहहहहह.........अब्दुल नहीं....आउच.." लगता था अनुश्री इस छुवन से अच्छे से परिचित थी.

इस बात कि गवाह उसके मुँह से निकला अब्दुल का नाम था जो किसी हवा के रूप मे निकला था बाकि आवाज़ तो हलक मे ही दब के रह गई.
"हाँ मैडम मै....आपकी गांड मे मेरा हक़ है " अब्दुल ने अनुश्री के अंदेशे को सच साबित कर दिया
अब्दुल कि गीली थूक से सनी जबान अनुश्री कि कामुक है गद्देदार गांड कि लकीरें मे अंदर तक जा धसी.
"आआहहहहह....उफ्फ्फगफ......अब्दुल....आउच...." आज अनुश्री के जिस्म ने कोई विरोध नहीं दिखाया अपितु अपनी टांगो को हल्का सा खोल दिया नतीजा गांड के दोनों पात एम दूसरे से दूर हो गए, अब्दुल कि गीली जबान सीधा अनुश्री के गुदाछिद्र पे जा लगी.
"अब्दुल्ल...इसससस......नहीं....." अनुश्री सिर्फ सिहर के रह गई,उसकी कोहनी अभी भी वही बालकनी कि दिवार पे टिकी थी,गांड पीछे को और ज्यादा उभर आई.

गांड के दोनों पाट अलग होने से अब्दुल के सामने वो गुफा उजागर हो गई जिसका वो दीवाना था.
अनुश्री के गांड का छिद्र खुल के सामने आ गया,अब देर किस बात कि थी अब्दुल की गीली जबान उस छेद पे जा लगी..
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एक कैसेले स्वाद से अब्दुल का जिस्म सिहर गया, उसकी जबान और ज्यादा तीखी हो के उसके प्यारे कामुक छेद पे टूट पड़ी.
लप लप.....लप....करती अब्दुल कि जीभ उसके छेद को छेड़ने लगी,या यूँ कहिए कुरेदने लगी.
अब्दुल कि जबान उसके छेद मे घुसना चाहती थी.
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह.....उफ्फफ्फ्फ़.....अब्दुल......नहीं...आउच.." सन्नाटे भरी रात मे अनुश्री कि सिसकारी वही बालकनी मे दम तोड़ दे रही थी.
आज ये खास अनुभव था,ना जाने क्यों अनुश्री अपनी गांड को उठा के अब्दुल के मुँह पे पटक देती,ना जाने कब से वो इस पल का इंतज़ार कर रही थी या फिर अब्दुल का धन्यवाद कर रही थी
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अब्दुल अनुभवी आदमी था "अब देर करना सही नहीं है " अब्दुल अपने स्थान पे खड़ा हो गया.
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उसका लंड सीधा अनुश्री कि काम दरार मे जा धसा,जो कि सीधा गुददुआर को छेड़ रहा था.
अनुश्री कसमसा के रह गई,कभी वो अपनी गांड को ऊपर करती तो कभी नीचे,इस हरकत से बार बार अब्दुल का लंड उसके गुदा छिद्र से छूता हुआ छिटक जाता..
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एक काम रुपी बिजली गांड से होती हुई ओर शरीर मे फ़ैल जाती.
"आअह्ह्ह.....अब्दुल उफ्फ्फ्फ़.......करो ना " अनुश्री बेकाबू थी वो खुद बुलावा दे रही थी उसके हैवान को.
यही तो चाहता था ईमान का पक्का अब्दुल कि आगे से कोई कहे.
उसका भीषण खड़ा लंड जा टिका अनुश्री कि कोमल दरार मे,ठीक गांड के छेड़ के ऊपर.
अब्दुल का सूपड़ा इतना बड़ा था कि अनुश्री कि गांड को पूरा घेर लिया.
अब्दुल अपनी कमर को ऐसे ही आगे पीछे कर रहा था.
उसका लंड अनुश्री कि कामुक दरार मे रगड़ खा रहा था.
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जब जब अब्दुल का लंड उसके कमुक छिद्र को छूता अनुश्री सिहर उठती,एक वासना कि लहर पुरे जिस्म मे दौड़ जाती.

"आआहहहहह......अब्दुल बस....और नहीं " अनुश्री लंड कि छुवन से सिहर गई वो लंड उसके शरीर को भोगने वाला था और आज अनुश्री इस बात के लिए तैयार थी.
लेकिन मासूम अनुश्री को क्या पता था.....कि "आआआहबबबबब.......अनुश्री का सर ऊपर को उठ गया,आवाज़ जैसे हलक मे अटक गई हो.
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आंखे पूरी तरह फ़ैल गई थी.

अनुश्री के जिस्म मे एक भीषण दर्द कि लहर उठ गई
अब्दुल के लंड का सूपाड़ा सारे बंधन तोड़ता हुआ अनुश्री कि गांड मे जा घुसा.
"आआहहहह....मैडम जी " अब्दुल के चेहरे पे असीम संतोष का भाव था.
जिस चीज कि कामना उसने कि तो वो आज पा ही लिया.
अनुश्री तो जैसे जैसे होश मे ही नहीं थी,उसकी आंखे बंद होती चली गई,सर आगे को बालकनी कि रेलिंग पे झुकता चला गया,
असीम दर्द से पीड़ित अनुश्री के बदन मे कोई हलचल नहीं थी..
सारी वासना,सारा उन्माद धरा का धरा रह गया.
लेकिन अब्दुल को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था,उसका अनुभव ये कहता था कि औरत कि गांड लंड लेने के लिए ही बनी है.
अब्दुल ने कस के एक झटका और दे मारा "आआआआहहहहह.....उममममममम......" अनुश्री के मुँह से एक तीखी चीख निकली ही थी कि उसका मुँह बंद हो गया,वो सिसकारी चीझ हलक मे ही घुट के रह गई.
अब्दुल ने उसके मुँह पे हाथ जमा दिया.
"मैडम जी.....क्या पुरे होटल को बताओगी कि आप गांड मरा रही हो " अब्दुल ने पीछे से तंज कसा.
अनुश्री कि आँखों से आँसू कि एक लकीर बाह निकली, लेकिन अब्दुल कि बात उसे समझ जरूर आई, उसने अपने दांतो को आपस मे मजबूती से भींच लिया.
अनुश्री का चेहरा दर्द और उन्माद से लाल पड़ गया था.
ये दर्द,ये अनुभव तो उसके कल्पना से भी परे था

पीछे अब्दुल से राहा नहीं गया, उसने लंड को बहार खींचना चाहा लेकिन दोनों को ऐसा लगा जैसे अंदर गांड कि चमड़ी लंड के साथ चिपक गई हो साथ ही बहार खींची चली आएगी..
ऐसा महसूस होते ही अब्दुल ने लंड वापस अंदर पेल दिया. अनुश्री कि गांड सिकुड़ती चली गई,गांड का चला अब्दुल के लंड पे कसता चला गया

"उम्मम्मम्म....उफ्फफ्फ्फ़...." अनुश्री के हलक sसे बस यही आवाज़ निकले जा रही थी,आँसू बहे जा रहे थे..
लेकिन अब्दुल जानता था अभी छोड़ दिया तो फिर कभी हाथ नहीं आ पायेगा ऐसा मौका.
अब्दुल ने एक बार फिर लंड को पीछे खिंच वापस से जड़ तक दे मारा.
इस बार उसके काले भयानक टट्टे अनुश्री कि चुत के दाने से जा टकराये.
"आआहहहहहह......अब....अब....अब्दुल " इस बार अनुश्री चिल्ला उठी, लेकिन इस चीख मे दर्द के साथ एक कामुक सिसकारी भी घुली हुई थी
जांघो के बीच से उठते जवालामुखी पुरे बदन मे फ़ैल रहा था.
अब्दुल के लिए रास्ता साफ था.
अब्दुल ने एक बार फिर हिम्मत कि फिर से लंड बहार निकाला और फिर से जड़ तक अंदर डाल दिया
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"आआहहहह......उफ्फफ्फ्फ़ मैडम जी आज तक ऐसी कसी हुई गांड नहीं मारी " अब्दुल तारीफ करने से नहीं चूका..और करता भी क्यों ना ऐसा यौवन ऐसा कसा हुआ मादक बदन जीवन ने फिर कहाँ मिलता.
अब ये प्रक्रिया बार बार शुरू हो चली.
अब्दुल लंड को थोड़ा सा निकालता फिर अंदर ठेल देता, अनुश्री बालकनी कि रेलिंग पे सर झुकाये आहे भर रही थी.
"आआहहहहह......अब्दुल.....आअह्ह्ह....उगगग...आउच....आराम से.."
अब्दुल को कहाँ आराम था, उसका लंड बहार आता फिर अंदर समा जाता,ना जाने कितनी जगह थी अनुश्री कि गांड मे.
धच....धच....धच.....करता अब्दुल का लंड बदस्तूर अंदर बहार हो रहा था.
"ाआहे...आअह्ह्ह....आह्हः..अब्दुल ..आह्हः..अब्दुल ." कि आवाज़ के साथ अनुश्री उसका हौसला बढ़ा रही थी
"हाँ मैडम......लो....और....अंदर..." अब्दुल भी जवाब दे रहा था अपने लंड से.
एक वक़्त ऐसा आया कि अनुश्री का पूरा जिस्म कंपने लगा.
उसके पैर जवाब देने लगे.
"आअह्ह्हब.......अब्दुल जोर से.....और अंदर....आअह्ह्ह...." अनुश्री पीछे गार्डन किये हुए अब्दुल के जिस्म को देखे जा रही थी.
जैसे उसका हौसला बढ़ा रही हो.
दोनों कि नजरें अपास मे मिल जाती, जैसे एक समझौता हो गया हो.
इन निगाहो को अब्दुल समझ रहा था
.
धच....धच.....धच.....करता अब्दुल एक बार मे अनुश्री कि गांड ने समा जाता, उसके टट्टे अनुश्री कि चुत से खेल रहे थे,उसके मटर सामान दाने पे ऐसी चोट करते कि अनुश्री का जिस्म घनघना जाता.
अब आलम ये था कि अनुश्री खुद से अपनी गांड को पीछे कि तरफ धकेल देती, फिर आगे कर लेती,कितनी जल्दी सिख गई थी अनुश्री.
"आअह्ह्ह.....मैडम.....आअह्ह्ह.....मै गया " धच धच....धच......के साथ ही अब्दुल ने दम तोड़ दिया एक भयानक धक्के के साथ पूरा का पूरा लंड अनुश्री कि गांड मे समा गया.
पिच.....पिच....फाचक....फाचक....फच....कि आवाज़ के साथ अब्दुल के लंड ने वीर्य त्याग कर दिया
.
गर्म वीर्य का अहसास पाते ही अनुश्री भी खुद को रोक ना सकी और.आआहहहह......पिस्स्स्स.......आए...आउच...पिस्स्स.....फाचक कि आवाज़ के साथ उसकी चुत से पेशाब और वीर्य कि एक तेज़ धरा अब्दुल कि जांघो से जा टकराई.


आअह्ह्हब्ब......अब्दुल......आआआ....उफ्फ्फफ्फ्फ़.....अनुश्री का जिस्म झटके खा रहा था.
ये होना ही था कि अब्दुल पीछे को सीढ़ियों पे जा गिरा,अनुश्री धम्म से वहु फर्श पे गिर पड़ी.
दोनों कि सांसे किसी ट्रैन कि तरह चल रही थी.
अनुश्री टांग फैलाये पीठ के बल वही सीढ़ी के पास चीत पड़ी थी, उसकी गांड से निकलता गर्म वीर्य फर्श भिगो रहा था.
एक बार को दोनों कि आंखे मिली,असीम आनंद,सुख,शांति सब कुछ था.
ठंडी हवा अनुश्री के जिस्म से फिर से खेल रही थी,उसकी आंखे बंद होती चली गई.
आखिर आज अनुश्री ने कामसुःख का आनंद पा ही लिया.
तो क्या अब अनुश्री सच मे बहक गई है?
अगला नंबर किसका होगा?
बने रहिये कथा जारी है....
Andypandy bhai aap es stoty ko band kar do kyoki apke bas ki baat nahi hai story likhna...etney vakt tak ek update nahi de paye to kya readers chutia hai ya aap apne aap ko mahan writer samajhte ho ki readers aapka intzaar karenge.....Sir aap band kar do.....taki readers ka vakt to barbad nahi ho...Readers bechare update plz kar rahe hai aur apka koi responce nahi.....kya chutiaapa hai....Bewkoof banane ki had hoti hati hai yaar.......
 
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