अब मेरे बार-बार भाभी का दरवाजा बजाने की आवाज सुनकर मेरे पापा भी अपने कमरे से बाहर आ गये जिससे भाभी तो दरवाजे के पीछे छुप गयी मगर पापा मुझ पर बरस पङे..
" क्या है.. क्यों बार बार दरवाजा बजा रहा है..? पापा ने डाटते हुवे कहा।
"व्.व्. वो मैं तो बस पढ़ने आया था..!" मैने हकलाते हुवे बताया।
"सारा दिन तो टीवी देखते रहते हो और अब रात को तुम्हे पढना है, बार-बार दरवाजा बजाकर परेशान क्यों कर रहा है इसे, एक बार ही आराम से बैठकर पढ ले...."पापा ने उसी टोन मे डाटते हुवे कहा।
"वो सवाल पूछने के लिए आना पड़ता है..!" मैने कहा तो..
"तुम इधर ही क्यो नही सो जाते..?" पापा की ये बात सुनकर तो जैसे मुझे कोई मुँह माँगी ही मुराद ही मिल गयी थी इसलिये पापा अब मुझे डाटते रहे और मै चुपचाप सुनता रहा...
"वहाँ सारा दिन टीवी देखते रहते हो, यहाँ पायल (मेरी भाभी का नाम) तुम्हारी खबर भी लेती रहेगी और तुम्हें पढ़ा भी देगी.. " इतना कह कर पापा अब वापस अपने कमरे में चले गये.. मगर मेरी तो जैसे बाँछे ही खिल गयी, क्योंकि भाभी के कमरे में बिस्तर लगाने का मतलब दिन रात अब भाभी के साथ ही रहना था।
पापा के जाते ही मैं अब अपनी किताबे व सारा सामान तुरन्त भाभी के कमरे में लाने लगा मगर मेरी ये जल्दबाजी देख भाभी अब जोरो से हँशने लगी और..
"अरे..अरे..अभी रात को रहने दो.. मैं कल तुम्हारा सामान यहाँ रख लुँगी.. अभी तो ये बताओ तुम्हें पूछना क्या है..?" भाभी ने हँसते हुए कहा।
अब भाभी ने ही मना कर दिया तो मै भी कुछ नही कर सकता था। मै अपना मन मसोस कर रह गया और एक नया सवाल भाभी के सामने रख दिया..
"तुम्हें पहले वाला समझ आ गया..? भाभी ने अब हँशते हुवे पुछा।
"हाँ हाँ.आ्.आ्..." मैने भी अब जल्दबाजी मे ‘हाँ’ कह दिया जिससे..
"ठीक है तो जरा मुझे पहले ये वाला करके दिखाओ..?" भाभी को पता था कि मुझे वो प्रशन नही आयेगा, और मैं बार-बार उनके पास किसलिए आ रहा हूँ..इसलिए उन्होंने अब जान-बूझकर मेरी खिंचाई करने के लिये पुछा।
मैं अब कर भी क्या सकता था, मै उस सवाल को हल तो करने तो बैठ गया.. मगर मुझे वो आ नहीं रहा था, और आता भी तो कहाँ से..? भाभी जब उसे हल करके दिखा रही थी तो मैंने उसे ठीक से देखा ही कहाँ था। मै तो बस भाभी को ही देख रहा था।
मेरी हालत तो अब पतली हो गयी थी जिसे देख भाभी अब फिर से हँसने लगीं और..."अभी सो जाओ.. बाकी कल पढ़ लेना..! भाभी ने हँशते हुवे कहा।
शरम के मारे मेरी हालत पतली हो गयी थी इसलिये मै अब चुपचाप भाभी के कमरे से निकलकर बाहर आ गया और ड्राईँगरुम मे अपने बिस्तर पर आकर लेट गया। मै सोने की कोशिश तो कर रहा था मगर मुझे अब नीँद नही आ रही थी।
मेरे दिल दिमाग मे तो बस भाभी ही भाभी घुम रही थी, पर शायद भाभी मुझे अब अपने कमरे मे कभी नही सुलायेगी, इस बात की उधेङबुन के साथ साथ डर भी लग रहा था की कही भाभी मेरे मम्मी पापा से मेरी शिकायत ना कर दे...
" क्या है.. क्यों बार बार दरवाजा बजा रहा है..? पापा ने डाटते हुवे कहा।
"व्.व्. वो मैं तो बस पढ़ने आया था..!" मैने हकलाते हुवे बताया।
"सारा दिन तो टीवी देखते रहते हो और अब रात को तुम्हे पढना है, बार-बार दरवाजा बजाकर परेशान क्यों कर रहा है इसे, एक बार ही आराम से बैठकर पढ ले...."पापा ने उसी टोन मे डाटते हुवे कहा।
"वो सवाल पूछने के लिए आना पड़ता है..!" मैने कहा तो..
"तुम इधर ही क्यो नही सो जाते..?" पापा की ये बात सुनकर तो जैसे मुझे कोई मुँह माँगी ही मुराद ही मिल गयी थी इसलिये पापा अब मुझे डाटते रहे और मै चुपचाप सुनता रहा...
"वहाँ सारा दिन टीवी देखते रहते हो, यहाँ पायल (मेरी भाभी का नाम) तुम्हारी खबर भी लेती रहेगी और तुम्हें पढ़ा भी देगी.. " इतना कह कर पापा अब वापस अपने कमरे में चले गये.. मगर मेरी तो जैसे बाँछे ही खिल गयी, क्योंकि भाभी के कमरे में बिस्तर लगाने का मतलब दिन रात अब भाभी के साथ ही रहना था।
पापा के जाते ही मैं अब अपनी किताबे व सारा सामान तुरन्त भाभी के कमरे में लाने लगा मगर मेरी ये जल्दबाजी देख भाभी अब जोरो से हँशने लगी और..
"अरे..अरे..अभी रात को रहने दो.. मैं कल तुम्हारा सामान यहाँ रख लुँगी.. अभी तो ये बताओ तुम्हें पूछना क्या है..?" भाभी ने हँसते हुए कहा।
अब भाभी ने ही मना कर दिया तो मै भी कुछ नही कर सकता था। मै अपना मन मसोस कर रह गया और एक नया सवाल भाभी के सामने रख दिया..
"तुम्हें पहले वाला समझ आ गया..? भाभी ने अब हँशते हुवे पुछा।
"हाँ हाँ.आ्.आ्..." मैने भी अब जल्दबाजी मे ‘हाँ’ कह दिया जिससे..
"ठीक है तो जरा मुझे पहले ये वाला करके दिखाओ..?" भाभी को पता था कि मुझे वो प्रशन नही आयेगा, और मैं बार-बार उनके पास किसलिए आ रहा हूँ..इसलिए उन्होंने अब जान-बूझकर मेरी खिंचाई करने के लिये पुछा।
मैं अब कर भी क्या सकता था, मै उस सवाल को हल तो करने तो बैठ गया.. मगर मुझे वो आ नहीं रहा था, और आता भी तो कहाँ से..? भाभी जब उसे हल करके दिखा रही थी तो मैंने उसे ठीक से देखा ही कहाँ था। मै तो बस भाभी को ही देख रहा था।
मेरी हालत तो अब पतली हो गयी थी जिसे देख भाभी अब फिर से हँसने लगीं और..."अभी सो जाओ.. बाकी कल पढ़ लेना..! भाभी ने हँशते हुवे कहा।
शरम के मारे मेरी हालत पतली हो गयी थी इसलिये मै अब चुपचाप भाभी के कमरे से निकलकर बाहर आ गया और ड्राईँगरुम मे अपने बिस्तर पर आकर लेट गया। मै सोने की कोशिश तो कर रहा था मगर मुझे अब नीँद नही आ रही थी।
मेरे दिल दिमाग मे तो बस भाभी ही भाभी घुम रही थी, पर शायद भाभी मुझे अब अपने कमरे मे कभी नही सुलायेगी, इस बात की उधेङबुन के साथ साथ डर भी लग रहा था की कही भाभी मेरे मम्मी पापा से मेरी शिकायत ना कर दे...
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