मैं दीदी से नजरें चुरा रहा था। मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था कि मेरे साथ हुआ क्या है ? उस नर्स को ये सब पता कैसे चला ? क्या उसने ऐसे ही गेस मारकर किया था या फिर उसने हम सबके ऊपर नजर राखी हुई थी और बातें सुन रही थी। कैसे इतनी आसानी से वो मुझसे चुद भी गई। खैर जो भी हो मुझे एक चूत और मिल गई थी भले ही वो कुंवारी नहीं थी। मैं बेटे समय को याद कर करने लगा था कि कहाँ कभी एक भी नसीब नहीं थी और कहाँ अब हर तीसरी चूत खुली पड़ी है।
मैं ये सब सोच ही रहा था कि मेरे फ़ोन की घंटी बाजी। फ़ोन मामा का था। मामी को पेन हो रहा था। वो उन्हें भी हॉस्पिटल ला रहे थे। मामी और दीदी की डॉक्टर एक ही थी तो इसी हॉस्पिटल में उनकी भी डिलीवरी प्लांड थी। मामा अकेले थे तो थोड़ा घबरा रहे थे। मैंने उनको तस्सल्ली दी की चिंता की कोई बात नहीं है।
मैंने दीदी को बताया तो दीदी खुश हो गईं। सोनिया मामा मामी को ज्यादा जानती नहीं थी। पर वो खुश थी। माँ का भी फ़ोन आया। वो आने की जिद्द कर रही थी पर मैंने मना कर दिया। मैंने कहा कि मैं संभाल लूंगा।
एक घंटे के अंदर मामी लेबर रूम में थी। मामा और मैं बाहर इंतजार कर रहे थे। सुबह तड़के मामी ने एक लड़की को जन्म दिया। दो दिन के अंतर पर घर में खुशियां आई थी। हम सब बहुत खुश थे। सुबह तक मामी भी उसी वार्ड के दुसरे कमरे में शिफ्ट हो गईं। मामा कि टेंशन दूर हो गई थी। सुबह सुबह माँ , चाची और श्वेता भी हॉस्पिटल आ गए। मामा माँ को देखते ही गले लग गए और बच्चों कि तरह रोने लगे।
बोले - दीदी , मैं बाप बन गया। तुम बुआ बन गई। घर में लक्मी आई है।
माँ के आँखों में भी ख़ुशी के आंसू थे। मामा सच में बहुत सीधे साढ़े इंसान थे। चाची और श्वेता भी उनके भोलेपन को देख कर मुश्कुरा रहे थे। चाची तो ख़ास कर।
माँ ने मुझसे कहा - तू घर जा। हम सब यहाँ संभाल लेंगे। रात भर जगा होगा। उन्होंने मामा से भी घर जाने को कहा पर वो कहाँ मानने वाले थे। मैंने भी मना किया पर सब जिद्द में थे।
मैं बाहर जाने लगा तो माँ ने कहा - सोनिया को तो लेता जा।
मैं तो उसे भूल ही गया था। वो मेरे साथ चल पड़ी। अभी मैं जा ही रहा था कि श्वेता ने आवाज लगाई। मैं रुका तो वो मेरे पास आकर कान में बोली - आज मत छोड़ना , अकेले रहोगे। फिर बस एक और।
मैंने उससे कहा - एक और की भी क्या जरूरत है। छोडो ये शर्ते वर्तें चलो मेरे साथ घर।
श्वेता - तू बुद्धू है। उसका चेहरा देख। तेरी आशिक़ बनी है।
मैं - तू कैसी पागल है।
श्वेता - हूँ तो हूँ। तू आज मौका मत छोड़ना।
मैं सोनिया के साथ चल पड़ा। कार में उसने धीरे से कहा - श्वेता क्या कह रही थी ?
मैं - कुछ ख़ास नहीं। कह रही थी तुम्हारा ख्याल रखने को। आज माँ नहीं हैं न। हम तुम अकेले रहेंगे।
सोनिया - अच्छा। मुझे पता है तुम कैसा ख्याल रखोगे।
मैं - जब पता है तो खुश हो जाओ।
सोनिया - नहीं जी , मुझे नहीं चाहिए ऐसा ख्याल व्याल।
मैं - मुझे तो चाहिए।
सोनिया - चाहिए तो श्वेता को ही बुला लेते।
मैं - ये सब उसी का किया धरा है।
ये सुन सोनिया के चेहरे पर उदासी आ गई। उसे पता था मेरा और उसका भविष्य नहीं है। वो दुखी भी थी और असमंजस में भी। मैंने उसके उदास चेहरे को देख कर कहा - देखो , उदास मत हो। मैं कोई जबरदस्ती नहीं चाहता हूँ। जरूरी नहीं तुम मेरे साथ सम्बन्ध बनाओ। मेरे लिए और भी रास्ते हैं। हो सकता श्वेता ही अपनी जिद्द छोड़ दे। मैं वैसे भी रह लूंगा।
सोनिया कुछ नहीं बोली। बाहर सड़क कि तरफ देख कर सोचती रही।
घर पहुँच कर मैंने उससे कहा - माँ के कमरे में फ्रेश हो लो तुम। मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ।
उसने कोई जवाब नहीं दिया। वो माँ के कमरे में चली गई। मैं भी थोड़े निराश और दुखी मन से अपने कमरे में चला गया। मैं कपडे लेकर बाथरूम में घुस गया। बाथरूम से निकल कर मैंने कपडे चेंज किये और बिस्तर पर लेट गया। रात भर जगे रहने के बाद से थका हुआ था तो एक झपकी सी आ गई। मेरी नींद सोनिया के आवाज सी खुली। उसने मुझे जगाया और कहा - नाश्ता कर लो फिर सो जाना।
मैं उठ कर ड्राइंग रूम में आ गया। सोनिया ने एक शार्ट और व्हाइट टी शर्ट डाला हुआ था। वो सीधे किचन में घुस गई। बोली - माँ जी, नाश्ता और खाना बना कर गईं हैं। मैं बस चाय बना लेती हूँ और फिर नाश्ता लेकर आती हूँ।
मुझे लगा जैसे वो एक नइ नवेली दुल्हन की तरह व्यवहार कर रही हो। मुझे उसके प्यार पर बहुत प्यार आया और अपने ऊपर गुस्सा। मुझे इस मासूम लड़की के दिल के साथ खेलने का बिलकुल भी मन नहीं था। मैं आँखें बंद करके सोफे पर अधलेटा ही दोबारा सो गया।
कुछ देर बाद सोनिया चाय और नाश्ता लेकर आई। माँ हमारे लिए हलवा और पोहा बना कर गईं थी।
उसने मुझे आवाज दी - उठो चाय पी लो।
मैं आँख खोल कर बैठ गया। उसे देख मैंने थैंक्स बोला और नाश्ता उठा लिया। हम दोनों के बीच एक अजीब सी ख़ामोशी थी। मैं उससे नजरें नहीं मिला पा रहा था। पर फिर भी मेरी नजर एक बार उस पर पड़ी , जैसे ही मैंने उसकी ओर देखा, उसने शर्मा कर अपने नजरे झुका लीं। तभी मेरी नजर उसके सीने पर पड़ी। वहां देखते ही मैं आश्चर्य में थे। उसने अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी। उसके माध्यम स्तनों के ऊपर सी उसके निप्पल एकदम नुकीले होकर तने हुए अवस्था में थे। जैसे टी शर्ट में छेड़ करके बाहर आ जायेंगे। शायद वो खुद भी उत्तेजित थी।
कुछ देर में उसने अपने नजरें उठाई तो उसने मुझे उसके स्तनों को घूरते हुए पाया तो तुरंत उठ गई और सोफे के पास रखा दुपट्टा उठा लिया।
मैंने कहा - रहने दो न। इतना बढ़िया नजारा है।
वो शर्माते हुए बोली - तुम बहुत बुरे हो।
मैं - मेरे पास तो बुर है ही नहीं। मैं कैसे बुरा हो सकता हूँ।
सोनिया - छी।
मैं - अच्छा , वो हॉस्पिटल में चिपक कर सोने में छी नहीं था। अपनी पेंट के ऊपर मेरा माल लिया तो छी नहीं था।
सोनिया - चुप रहो। अच्छा रहता सोने देती।
मैं - हाँ , और पास आकर सो जाती।
तभी श्वेता का फ़ोन आ गया। वो बेचैन थी। मैंने फ़ोन स्पीकर पर ले लिया।
श्वेता - हाँ हीरो , क्या चल रहा है।
मैं - कुछ नहीं, चाय , नाश्ता।
श्वेता - अबे साले। पूरा खाना सजा पड़ा है तेरे सामने और तू चाय नाश्ता कर रहा है।
मैंने संजय कि तरफ देखा और कहा - तू गलत समझ रही है। मैं शरीफ आदमी हूँ। एक अबला के साथ कैसे जबरदस्ती कर सकता हूँ।
सोनिया मुश्कुरा उठी। धीरे सी बोली - शरीफ आदमी।
उधर सी श्वेता भी बोल पड़ी - शरीफ आदमी। बहनचोद , मेरी टीचर की ले ली , उसकी बेटी चोद दी। तेरा बेटा यहाँ अपनी नानी /दादी के गॉड में खेल रहा है और तू शरीफ बना हुआ है।
ये सब सुन सोनिया हंस पड़ी।
श्वेता को उसकी हंसी सुनाई पड़ी। श्वेता - सोनिया भी तेरे साथ ही है क्या ? तूने फ़ोन स्पीकर पर रखा हुआ है ?
अब सोनिया बोल पड़ी - श्वेता ये शरीफ तो बिलकुल नहीं है। अभी मेरे छाती को घूर रहा था और कह रहा है अबला को परेशान नहीं करेगा।
श्वेता चौंक कर बोली - छाती को ? तू टॉपलेस है क्या ? बिस्तर पर हो तुम दोनों।
सोनिया - तुम सब भाई बहन एक जैसे ही हो। हर दम दिमाग में यही चलता है। तुम्हे इतनी ही चिंता है तो फालतू की शर्त क्यों लगाई ? खुडी ही चुद जाओ। मुझे क्यों बीच में ला रही हो ?
श्वेता - नाटक ना कर अबला रानी। मुझे सुधा दी से सब पता चल चूका है। बिना ब्रा के टॉपलेस घूम रही है और शराफत दिखा रही है। तुझे ही चांस दे रही हूँ। लेना है तो ले ले वार्ना और भी मिलेंगी।
सोनिया - बड़ी कमीनी हो तुम।
श्वेता - हूँ तो हूँ। सुन राज , रहने दे। इस अबला के साथ कुछ मत कर। बड़ी आई। फ़ोन रखती हूँ।
मुझे नहीं पता था ये दोनों लड़ पड़ेंगी। मैं चुप चाप थ। सोनिया भी चुप चाप नाश्ता करने लगी।
मैं - सॉरी यार। मुझे नहीं पता था वो इतना कुछ बोल पड़ेगी।
श्वेता का नाश्ता हो चूका था। वो बिना बोले किचन की तरफ चल पड़ी। मन सोचने लगा कहाँ आज शायद आज काम हो जाता पर श्वेता ने अपनी बेचैनी में काम बिगाड़ दिया। सोनिया वापस माँ के कमरे में चली गई। मैं भी फटाफट से चाय नाश्ता ख़त्म कर किचन में प्लेट रखने के बाद अपने कमरे में जाने लगा ।
तभी सोनिया की आवाज आई - राज।
मैं माँ के कमरे में चल पड़ा। देखा तो वो चादर ओढ़े लेटी हुई थी। उसने कहा - मुझे अकेले नींद नहीं आती। बचपन सी माँ के पास सोइ हूँ। भाभी के आने के बाद भाभी के साथ सोती थी।
मैं - और जब दीदी यहाँ थी तो।
वो नजरे झुका कर बोली - माँ के साथ।
मैं - तुम तो मियां बीवी को अलग करने वाली हो। पति पत्नी कैसे सेक्स कर पाएंगे जब तुम उनके बीच में होगी।
सोनिया - चुप रहो , आना है तो आओ वार्ना जाओ अपने कमरे में।
मैं - अब इतने प्यार से बुला रही हो तो आना ही पड़ेगा। पर ये चादर क्यों ओढ़ रखा है।
सोनिया - तुम सवाल बहुत करते हो।
मैं - मुझे तो गरमी लग रही है, वैसे भी मैं लगभग नंगा ही सोता हूँ। तुम्हे दिक्कत न हो।
वो कुछ नहीं बोली। मैंने भी सोचा थोड़ा टेस्ट किया जाए। मैंने अपना बनियान उतार दिया। वो कुछ नहीं बोली बस मुझे देखती रही।
मैं फिर बिस्तर पर उसके पास जाकर लेट गया। मैं जैसे ही लेटा वो चादर लपेटे हुए ही मेरे पास आकर मुझसे लिपट गई।
उसके लिपटते ही मुझे एक झटका सा लगा। उसने शायद नीचे कुछ नहीं पहना था। मैंने उसे थोड़ा आपने पास खिंचा तो उसने मुझे किस कर लिया और बोली - आई लव यू। मुझे दर्द तो नहीं दोगे न।
मैंने भी उसे किस कर लिया और कहा - नहीं। सब प्यार से करूँगा।
उसने मुझे चादर के अंदर कर लिया। अब हम दोनों एक दुसरे सी लिपटने और चिपटने लगे। मैं लगातार उसे किस कर रहा था और वो भी। कुछ देर बाद उसने मेरा चेहरा नीचे किया और कहा - ये पीयो न। जैसे भाभी के पी रहे थे।
मैंने उसके एक स्तन को पकड़ लिया और झुक कर दुसरे को मुँह में ले लिया। उसने जोर सी सिसकारी ली - आह। आराम सी। इसमें से दूध नहीं आएगा।
मैं उसके नरम मुलायम माध्यम अकार के स्तनों के साथ खेलने लगा। ऐसा करते करते मैं उसके ऊपर हो गया। उसने नीचे सिर्फ एक पैंटी पहनी हुई थी। मैंने भी जल्दी से अपना लोअर निकाल दिया। मैं नॉर्मली घर में अंडरवियर नहीं पहनता था। मेरा लंड बाहर आते ही उसके चूत से टकराया, उसे लगा मैं अब उसे चोदूँगा तो उसने कहा - भाभी कहती हैं, चटवाने में बहुत मजा आता है। पहले मेरे नीचे मुझे प्यार करो न।
मैं - तुम्हारी भाभी सिर्फ कहती हैं या करती भी है ?
सोनिया - काफी दिन हुए। वो तो मेरे साथ सिक्सटी नाइन में ही रहत्ती थी।
मैं - सौ चूहे खा चुकी बिल्ली हो तुम।
मैं फिर निचे खिसक उसके पैरों के पास आ गया। मेरे खिसकने तक वो पैंटी उतार चुकी थी। मैंने उसके चूत को चाटना चूरू कर दिया। मेरे जीभ लगाते ही वो बोली - आह , तुम सब भाई बहन एकदम एक्सपर्ट हो। येस, ऐसे ही चाटो। मैंने बहुत मिस किया चूत चटाई को।
मैं उसके कुंवारे चूत को चाटने लगा। कुछ ही देर में वो धराशाही हो गई। मुझे उसके इतने जल्दी आने की उम्मीद नहीं थी। उसके चूत का नमकीन पानी मैं पूरा का पूरा चाट गया।
वो बोली - बस , मेरा तो हो गया।
मैं - अब मेरे साथ केएलपीडी ना करो।
वो हंसने लगी। बोली - ये क्या होता है ?
मैंने अपना लंड उसके चूत पर सेट कर दिया और कहा - पेल कर बताऊँ ?
वो इतनी भोली तो नहीं थी पर शायद उसे मेरे लंड के साइज का अंदाजा नहीं था। वो होने वाले दर्द सी बेखबर थी।
उसने कहा - ठीक है। पर आराम से।
मैंने फिर धीरे सी अपना लंड उसके चूत में डालना शुरू कर दिया। जैसे ही मेरा लंड थोड़ा अंदर गया तब उसे लगा की उससे गलती हो गई है। उसने कहा - ओहहहहह , ये क्या। आह। निकालो मुझे दर्द हो रहा है।
मैंने कहा - बस थोड़ा दर्द सह लो फिर मजा आएगा।
सोनिया - सच में। कितना अंदर और जाएगा।
मुझे झूठ बोलना पड़ा - बस , थोड़ा और।
उसने कहा - आह ठीक है। फिर निकाल लेना प्लीज
मैंने अबकी थोड़ा और अंदर डाला फिर थोड़ा बाहर निकाल लिया। वो दर्द सी अपने होठ दबा रही थी। मैंने सोचा अब रुका तो मैं उसे पेल नहीं पाउँगा। मैंने फिर दुबारा थोड़ा अंदर किया और फिर बाहर निकाल लिया। कुछ देर ऐसे पंप करने के बाद उसे अच्छा लगने लगा। पर मेरा लंड पूरा नहीं गया था। अब मजे में उसने अपने पैरमेरे कमर पर लपेट लिया था और मेरा साथ देने लगी थी।
सोनिया - हुह , आह आह , हाँ मजा आ रहा है। थोड़ा तेज करो न। और तेज , थोड़ा अंदर।
अब मुझे लगा वो तैयार है। वो पुरे मस्ती में आ चुकी थी। मैंने ऐसे ही झटके देते देते अपने लंड को और अंदर डालना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद जैसे ही पूरा लंड एकदम अंदर तक गया। उसकी चीख निकल गई - माआआआ फट गई मेरी चूत। भाभी बचाओ। राज बस करो।
मैंने कहा - रानी, बस और। कुछ देर और।
वो थोड़ी देर चिल्लाई पर फिर चुदाई के मस्ती में आ गई। अब मैं पुरे रफ़्तार सी उसे चोद रहा था। उसकी चूत ने कई बार पानी छोड़ दिया था। और वो निढाल हो चुकी थी। कुछ देर बाद मैं भी स्खलित हो गया। मैं भी थक कर उसके बगल में लेट गया। कुछ देर बाद मुझे होश आया तो देखा वो निस्चल पड़ी थी। मैं घबरा गया। सच में उसे कुछ हो तो नहीं गया। मेरे लंड का वार अच्छे अच्छे नहीं झील पाए थे। मैंने चादर हटा दिया और देखा तो वो तेज तेज साँसे ले रही थी और उसकी आँखे बंद थी। कमर के पास हल्का लाल खून भी था। एक कुँवारी चूड़ी थी पर मेरा मन घबरा रहा था। मैंने उसे कंधे सी पकड़ा और झकझोरते हुए कहा - सोनिया , क्या हुआ ? तुम ठीक तो हो ?
सोनिया ने आँखे खोली और धीरे से कहा - बड़े फट्टू हो यार। मैं ठीक हूँ। ठंढा पानी दो।
मैं भाग कर किचन में गया और एक ग्लास ठंढा पानी लेकर आया। जैसे ही उसने उठने की कोशिश की उसे जोर का दर्द हुआ। मैंने उसे सहारा दिया और फिर पानी पिलाया।
पानी पीकर वो बोली - बधाई हो।
मेरे आँखों में आंसू आ गए। मैंने उसे गले लगा लिया। अब मेरे मुँह सी निकल पड़ा - आई लव यू।
उसने कहा - सच में ? श्वेता का क्या होगा ?
मैंने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा - तुम दोनों ने मुझे कंफ्यूज कर दिया है।
सोनिया बोली - नहीं। तुम सिर्फ उसके हो। वैसे मुझे जब चाहो चोद सकते हो। मुझे लगता है इससे उसे कोई परेशानी नहीं होगी।
मैंने हँसते हुए कहा - पहले अपनी हालत देखो।
सोनिया - मुझे इसका अंदाजा था। टेंशन मत लो मैं ठीक हूँ। चलो अब सोते हैं।
मैंने फिर चादर बदली और सोनिया के कमर की थोड़ी मालिश की फिर हम दोनों बाँहों में बहन डाले लेट गए। कहने को तो मैंने एक कुँवारी की चूत ली थी। शुरुवात वासना सी थी पर उसका प्यार और त्याग देख कर वासना सी ज्यादा प्यार हो आया था। मैं उसके पुरे शरीर को सहलाता रहा और वो मेरी बाँहों में थक कर सो गई। कुछ देर बाद मैं भी सो गया।