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Incest मेरी माँ, बहने और उनका परिवार

Who do you suggest Raj should fuck first?

  • Shweta

    Votes: 89 75.4%
  • Soniya

    Votes: 29 24.6%

  • Total voters
    118
  • Poll closed .

Monti_shriva

No phalitixxx stars allowed
29
42
28
Writer ji aap bahut aacha likhte hai mai chahta hu aap aisa hi likhte rahe or suspence banate rahe beti ke baad naye kirdar or jude to bahut dhanyawad होगा
 

tharkiman

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उसके बाद हम सबने खाना खाया और खाने के साथ ड्रिंक्स भी चला और उसका नतीजा ये हुआ कि शाम तक मैं और जतिन पूरी तरह से नशे में चूर होकर अपने कमरे में सो गए और माँ अर्चना उनके कमरे में चले गए। रात करीब दो या तीन बजे होंगे मेरी नींद खुल गई। मुझे जोर कि शुशु आई थी और मेरा लंड एकदम कड़क हो चूका था। मैंने देखा जतिन मेरे बगल में बेसुध सोया हुआ था। मैं किसी तरह से उठकर बाथरूम में गया। ड्रिंक्स के वजह से मैं काफी देर तक मूतता रहा। मूतने के बाद मेरा लंड रिलैक्स होकर लाटकक गया। लौटकर आया तो प्यास लग आई। देखा कमरे में पानी नहीं था। मैं कमरे से निकल कर किचन की तरफ गया। कमरे से बाहर निकलते ही मुझे सिकियों की आवाज आने लगी। मैं जब किचन के तरफ देखा मेरी ही नहीं मरे लंड की भी नींद खुल गई। मेरे साथ साथ वो भी चौकन्ना हो गया।

माजरा ये था कि माँ किचन के स्लैब से लग कर खड़ी थीं। उनका चेहरा मेरे तरफ था। अर्चना निचे नंगी उनके पैरों के पास बैठी थी। अर्चना उनके चूत को इस तरह चाट रही थी जैसे एक बिल्ली मलाई की कटोरी से मलाई चाटे जा रही हो। माँ की आँखे बंद थी। वो आनंद के सागर में गोते लगा रही थी। उनकी सांस तेज चल रही थी जिस वजह से उनके स्तन ऊपर निचे हो रहे थे। उन्होंने अपने दोनों हाथो से अर्चना के सर को पकड़ रखा था। अर्चना घुटनो के बल आधे खड़ी आधी बैठी अवस्था में थी। उसका हाथ माँ के जांघों पर था और उसका गांड थोड़ा निकला हुआ था। मेरा मन कर रहा था पीछे से जाकर उसकी गांड मार लूँ। पर माँ की स्थिति देख मुझे उन दोनों को डिस्टर्ब करने का मन नहीं कर रहा था। मैं वहीँ चुपचाप खड़ा रहा। कुछ देर बाद माँ के शरीर में कंपन शुरू हो गया। उनका शरीर अकड़ने लगा। मैं समझ गया वो बस झड़ने वाली हैं। उन्होंने अर्चना के सर को अपने चूत पर दबा दिया और जोर से धक्का देते हुए झड़ने लगीं। अर्चना भी बिना घबराये उनके एक एक बूँद को चाटने लगीं। मैं माँ को चरम पर पहुँचता देख मंत्रमुग्ध सा हो गया था। तभी माँ ने आँखे खोल दी और मुझे सामने देखते ही चौंक पड़ी।
माँ - तू कब से खड़ा है ?
माँ की आवाज सुनका अर्चना भी पीछे मुड़ गई।
मैंने कहा - कुछ देर से आप दोनों का ये अनोखा प्रेम देख रहा हूँ।
माँ - ये इतना चटोर है पूछ मत। इतना तो तेरी किसी बहन ने नहीं चाटा आज तक ?
मैं - हम्म। मुझे लगा था इसका इंटेरेस्ट मुझमे है और इसे मुझसे बच्चा चाहिए। पर तो ये तो आपकी चूत की गहराइयों में ही खो गई है।
अर्चना हँसते हुए - नहीं हीरो। तेरा लौड़ा तो मस्त है पर उतनी ही मस्त माँ की चूत भी। मुझे मेरी माँ की तो नहीं मिली। पर इस माँ की मिल रही है तो मैं लालच छोड़ नहीं पाई।

मैं अब उन दोनों के पास पहुँच गया था। मैंने फ्रिज से बोतल बाहर निकला और पानी पीते हुए बोला - अब तुम दोनों को इस स्थिति में देख कर जो मेरा लौड़ा खड़ा हुआ है उसको कौन शांत करेगा।

अर्चना - ये बताओ किसको देख कर खड़ा हुआ है ये औजार ?
मैं माँ के पास पहुंचा और उनको चूम कर बोला - इतनी सेक्सी माँ ने जब तुम्हे मजबूर कर दिया तो सोचो मेरे जैसे का क्या होगा ?
अर्चना निचे ही बैठी थी उसने मेरे लौड़े को हाथ में लिया और बोली - तो ये मादरचोद अपने माँ का ही दीवाना है।
मैं - हाँ डार्लिंग। मुझे माफ़ करो पर मेरी माँ जब सामनेहोती है तो पहले उन्ही को चोदने का मन करता है।
अर्चना - तो चोद लो। उनकी चूत आज कुछ ज्यादा ही बेचैन हो रखी है। शांत कर दो उसे , वार्ना मैं फिर से भीड़ जाउंगी।

मेरी बात सुनकर माँ के चेहरा गर्व से भर गया था। उन्हें नाज हो रहा था की एक जवान औरत के होते बुए भी मैं उन पर लट्टू हो रखा हूँ। और ये सच बात है। मैं सबसे ज्यादा अगर प्यार करता था तो माँ को ही। मैं माँ की चूत में दिन भर घुसा रह सकता था। अर्चना की ललकार सुनकर मैंने माँ को कमर से पकड़ कर स्लैब पर बिठा दिया और अपना लौड़ा उनके चूत के ठीक सामने करके बोला - तैयार हो , अपने बेटे से चुदाई के लिए। कहीं अर्चना से चुसवा कर संतुष्ट तो नहीं हो गई हो ?
माँ - तेरे लौड़े से चुदने को तो हमेशा तैयार रहती हूँ। आ चोद ले। देख मेरी चूत तेरे लौड़े को देख कर फिर से रोने लगी है।
मैं माँ के सामने खड़ा हो गया और उनके चूत लंड डालते हुए बोला - चिंता मत करो मेरा लंड हैं न उसके आंसू पोछने को।
माँ - बस पेल दे मुझे।
मैं माँ की चूत में धक्के लगाने लगा। मेरे हर धक्के से माँ स्लैब पर पीछे जाती पर वो भी पक्का चुदास हो रखी थी। मेरे गर्दन से बाहें डाले हुए और अपने पैरों से मेरे कमर को जकड कर वो भी उतने ही जोर अपने कमर को आगे कर लेती। हम दोनों एक लय में एक दुसरे में समाये जा रहे थे। पूरी रसोई एक अलग से गंध से भर चुकी थी और फच फच की आवाज गूँज रही थी। अर्चना शुरू में तो निचे बैठे बैठे मेरे बॉल्स सहला रही थी पर बाद में वो भी स्लैब पर जगह बनाकर बैठ गई। बीच बीच में वो कभी माँ को चूमती तो कभी मुझे। माँ की जबरजस्त चुदाई हो रही थी। कुछ ही देर में मुझे महसूस हुआ माँ अब झड़ने वाली है। उनका बदन अकड़ने लगा था और उन्होंने पैरों से मुझे जकड लिया था। कुछ ही देर में उनका शरीर कांपने लगा और उनकी चूत के पानी से मेरा लंड नहाने लगा। पर मेरा तो लंड जैसे अभी स्टार्ट ही हुआ था।
माँ ने कहा - बस मेरा हो गया। रुक जा मेरे लाल।
मैंने कहा - माँ , अभी मेरे लंड ने तो शुरुआत ही की है। अभी से ये हाल है ?
माँ- मुझे पता है इस समाया तेरे सामने अगर घर की साड़ी औरतें खड़ी कर दू तो तू सबको छोड़ सकता है।
मैंने माँ को स्लैब से उतार दिया और उन्हें उस पर झुका कर घोड़ी जैसा बना दिया और कहा - पर मेरा मन तो अभी तुम्हे ही चोदने का है। अगर चूत नहीं तो गांड ही सही।
माँ - गांड नहीं। अभी तो बिलकुल नहीं। एक बार और चूत मार ले।
मैं - ठीक है।
मैंने पीछे से माँ के चूत में लौड़ा डाल दिया और उन्हें फिर से चोदने लगा। अबकी अर्चना सल्ब पर बैठे बैठे माँ के एकदम सामने आ गई और उसने माँ को अपने ऊपर ले लिया। अब माँ का शरीर उसके ऊपर झूल रहा था। अर्चना उन्हें चूम रही थी। उसके हाथ माँ के मुम्मो को दबा रहे थे। माँ की मस्ती बढ़ गई थी।
माँ - उह्ह , उफ़। घोड़े जैसा लंड है तेरा। मेरी चूत का कबाड़ा कर दिया।
मैं - अभी तो तुम्हारी चूत को मेरे लंड से आंसू पूछवाने थे अब कबाड़ा हो गया।
माँ - तेरे सामने एक और गदराया माल है और तू मेरे पीछे पड़ा है।
मैं - वो तो साली रंडी है। लौड़ा छोड़ चूत के पीछे पड़ी थी। अब उसे क्यों चोदे ?
अर्चना - भोसड़ी के, मादरचोद तुझे माँ अच्छी लगती है ये कह ना। मुझे क्यों दोष दे रहा है।
मैं - रंडी साली छिनाल तेरा दोष नहीं है। पर तूने लंड नहीं लिया तो मैं जबरजस्ती क्यों दू ?
माँ - इस्सस उफ़। मुझे रहने दो बस। इसी को चोद। अपना माल मुझ बुढ़िया पर मत बर्बाद करो ।
मैं - माँ तुमको बुढ़िया बोलने वाला नल्ला होगा। बाहर निकलती हो तो लौंडे तक अपना लौड़ा एडजस्ट करने लगते हैं। झुकती हो तो बूढ़े तक तुम्हारे ब्लॉउज में झाँक कर मुम्मे देखने की कोशिश करते हैं। बुढ़िया तो तुम्हारी माँ भी नहीं होती।
माँ - मेरी माँ की याद मत दिलाओ। अगर वो होती तो सच में तुझसे चुद रही होती। उफ़ बस कर कितना चोदेगा।
मैंने माँ के मुम्मे पकड़ लिया और उन्हें लगभग खड़े पोजीशन में कर दिया और जबरजस्त तरीके से चोदने लगा। अर्चना भी खुल कर माँ को चूमे जा रही थी। कुछ देर चूमने के बाद वो निचे उतर कर बैठ गई और उनके चूत को चाटने लगी। अब माँ का बुरा हाल हो गया वो फिर से झड़ने लगीं। इस बार उनका शरीर पूरा काँप रहा था। उनसे खड़ा नहीं होया जा रहा था। वो झड़ने के बाद लड़खड़ा कर गिरने लगीं तो मैं अपना लंड निकाल लिया और उन्हें बैठने दिया। अर्चना ने मेरे भीगे लंड को मुँह में लपक कर ले लिया। उसकी इस हरकत पर मैंने चटाक से उसके गाल पर झापड़ मारा और कहाँ - बहन की लौड़ी। मेरे लड़को मुँह नहीं तेरी चूत चाहिए। चल आजा , मेरे माल को चूत में ले।
मैंने उसके बाल पकड़ कर उसे खड़ा कर दिया और उसे स्लैब पर झुका दिया। मैंने उसके गांड पर भी एक थप्पड़ मारा और कहा - क्यों, बेरहम बाप से चुदना चाह रही थी न। मन तो करता है तेरी गांड मार लू पर तुझे अपने बाप का बच्चा चाहिए।
अर्चना - हाँ पापा। मुझे अपनी बीवी बना लो। भर दो मेरी कोख। बना दो मुझे माँ। मेरी सुनी कोख भर दो।
मैं - पहले तेरी चूत का भोसड़ा बना दूँ।
अर्चना - तुम्हारा जो मन करे बना दो पर बच्चा दे दो।
मैं - साली बच्चा चाहिए या चुदाई के मजे ?
अर्चना - दोनों।
मैंने उसे और झुका दिया और उसके बालो को खींचे हुए कहा - पहले मुझे मजा दे।
मैं तेजी से उसे चोद रहा था। माँ को समझ आने लगा की मैं शायद अब अपने चरम पर आ सकता हूँ।
माँ बोली - इसे बिस्तर पर लेजा। ढंग से चोद।
मैं - चुप साली रंडी सलाह मत दे वर्ण तुझे फिर से छोड़ दूंगा।
अर्चना ने मुहसे कहा - पीछे से मजा नहीं आ रहा है पापा । मुझे आपका लंड अंदर तक महसूस करना हैं। चलो अंदर।
मैं उसे उसी अंदाज में छोड़ता हुआ बोला - चल मेरी घोड़ी ऐसे ही चोदते हुए ले चलूँगा ।
मैंने उसे वैसे ही चोदते हुए धीरे धीरे लेकर किचन से निकल आया। पर मुझे लगा की अब मैं जयदा देर तक नहीं टिक पाउँगा तो मैंने उसे वहीँ सोफे पर पटक दिया। मैं सोफे पर ही उसकी टांग उठा कर चोदने लगा।
अर्चना - हाँ ऐसे ही चोदो मुझे। और अंदर तक। बस । उफ़ आह। उसने मेरे कमर के दोनों तरफ से अपना पर लपेट लिया। मैं भी स्खलन पर पहुँच गया था। मन अब हर धक्के से उसके अंदर तक घुस रहा था। कुछ ही देर में मेरा लंड पिचकारी छोड़ने लगा। उसने अपने चूत ो सिकोड़ कर मेरे लंड को एकदम से जकड लिया। मैं उसके ऊपर लेट गया। अर्चना ने मुझे पैरों और बाँहों दोनों से बाँध सा लिया था । उसकी चूत मेरे लंड को चूस रही थी। मेरे और उसके कमर के बीच हवा पास करने की भी जगह नहीं थी। उसने मुझे वैसे तब तक रखा जब तक मेरे लंड ने एक एक बूँद उसके चूत में नहीं उतार दिया। बल्कि ये कहना चाहिए की उसके चूत ने मेरे लंड को तब तक नहीं छोड़ा जब तक मेरे पानी का एक एक बूँद उसके बच्चे दानी तक नहीं पहुंचा। लगभग पांच मिनट तक जकड़े रहने के बाद उसने मुझे आजाद किया। उसके चेहरे पर पूरा इत्मीनान था।
उसने कहा - थैंक यू। मुझे पक्का यकीन है , इस बार की चुदाई से मैं माँ बन जाउंगी।
मैं उठकर उसके पैरों की तरफ बैठ गया था। उसने अपने दोनों पेअर मेरे जांघो पर रख दिया था। माँ किचन से ठंढी बियर लेकर आई।
माँ ने मुझे बियर की बोतल थमाई और अर्चना से कहा - फिर तो अब तुझे चुदाई नहीं चाहिए।
अर्चना - ही ही ही। चुदाई से मन कहाँ भरता है। ख़ास कर ऐसा चोदू जब सामने हो तो।
वो लेटे लेटे ही बियर के सिप लगा रही थी। माँ मेरे गोद में आकर बैठ गई थी। माँ को किसी भी बाहरी से इतना खुलते मैंने कम ही देखा था। वो भी इतना जल्दी। जरूर अर्चना के साथ किसी जन्म का कोई तो सम्बन्ध रहा होगा। हम तीनो वहीँ बैठे रहे। मैं माँ के स्तनों से खेलता रहा और बियर भी पीता रहा। अर्चना उठ नहीं रही थी। वो मेरे वीर्य को अपने अंदर तक जाने देना चाहती थी।
मेरा और माँ का बियर ख़त्म हो गया था पर हलके शुरूर ने फिर से कमाल करना शुरू कर दिया था। माँ सोफे पर मेरी तरफ मुँह करके गोद में बैठ गईं और हम दोनों एक दुसरे के शरीर के साथ खेलने लगे। उन्होंने अपने स्तनों को पहले तो मेरे सीने पर धकेलना शुरू किया लग रह था जैसे मेरे छोटे छूटे चुचकों से अपने निप्पल को टच कराने की कोशिश कर रही हो। फिर मुझे धक्का देखा सोफे के बैक रेस्ट पर लिटा सा दिया और फिर मेरे चेहरे , फिर गर्दन और सीने को चाटने लगीं। उनकी इस हरकत से मेरा लंड फिर से पुरे शबाब पर आ गया था। पता नहीं उन्हें कैसा नशा हो गया था। उनका मन भर ही नहीं रहा था। उन्होंने मेरे लंड को चूत की पंखुड़ियों के बीच में फंसा लिया था और कमर को आगे पीछे कर रही थी। अर्चना ने हम दोनों को देखा तो बोली - गजब की आग आप दोनों में है। मैं जा रही हूँ। अब ठंढ लग रही है।
माँ - मेरे अंदर तो आग लगी हुई है।
मैं - अर्चना , तुमने कोई दवा तो नहीं दे दिया है इन्हे ?
माँ ने अपने कमर को हिलाते हुए कहा - मुझे चुदने के लिए कोई दवा नहीं चाहिए होती है। माँ बाप के खून का असर है। कभी कभी ऐसा होता है की चिंगारी अगर भड़क जाती है तो शांत नहीं होती।
मैं - पापा का तो बुरा हाल हो जाता होगा।
माँ - उफ़ मत पूछो। पर संभाल लेते थे।
मैं - मैं भी संभाल लूंगा।
माँ - मुझे पता है।
माँ ने अब मेरे लंड को चूत में निगल लिया और मुझे पर उछलने लगीं थी। मुझे पता था मेरा लंड इस बार देर से झड़ेगा। माँ सोफे पर मेरे ऊपर बैठे बैठे ही मुझे चोद रही थी। उन्होंने अपने स्तन उठा कर मुझे कहा - चूस ले। पी जा।
माँ पाना स्तन मर्दन भी करवाना चाह रही थी। पर ये सिर्फ माँ के दिमाग का फितूर था। हवस की आग मन के अंदर ही थी। कुछ ही देर में माँ झाड़ गईं। मुझे पता था इस बार मेरा लंड कुछ नहीं कर पायेगा। माँ मेरे ऊपर ही लेटी रही और बोली - माफ़ कर दे।
मैं - अरे माँ। माफ़ी क्यों मांग रही हो।
माँ - पता नहीं कैसी हवस चढ़ गई है। पर तू इस बार फारिग नहीं हो पायेगा। मेरी चूत में अब जलन हो रही है।
मैं - तुम ही तो उस पर अत्याचार कर रही हो। बेचारी को इतना चटवा दिया और फिर उसकी कुटाई भी करवा दी।
माँ - पर मन को ना जाने क्या हो गया है।
माँ मेरे गोद में बैठी थी। मैंने उनके पीठ को सहला रहा था। कुछ देर बाद मैंने देखा माँ मेरे गोद में सो गई थी। मुझे उन पर बहुत प्यार आ रहा था। मैंने उन्हें गोद में उठाया। वो गहरी नींद में थीं। मैं गोद में लिए लिए उनके बैडरूम में ले गया और धीरे से बिस्तर पर लिटा दिया। बिस्तर पर अर्चना पीठ के बल बेसुध सोइ थी। उसके हर सांस से उसके बड़े बड़े स्तन ऊपर निचे हो रहे थे। मैंने माँ को उसके बगल में सुला दिया। बिस्तर पर पड़ते ही माँ ने करवट लिया और अपने पैरों को अर्चना के ऊपर रख दिया। नींद में अर्चना ने भी अब करवट लिया। दोनों एक दुसरे के बाहों में सो गईं। मैंने अपने लंड को देख कर कहा - भाई अब तुझे खुद से शांत होना पड़ेगा।
मैं वापस किचन में आया। चार बज चुके थे। अबकी मैंने एक जग ठंढा पानी पिया फिर कमरे में जाकर लेट गया।
अर्चना के आने से घर में एकदम रंडीखाने जैसा माहौल हो रखा था। उसने माँ के अंदर की आग जगा दी थी। बिस्तर पर पड़ते ही मुझे भी नींद आ गई।

अगले दिन , मैं और जतिन सोये हुए थे की अर्चना कमरे में आई और जगाते हुए बोली - उठो , कितनी देर तक सोना है ? दोपहर होने को आ गया।
जतिन - सोने दो न दी।
अर्चना - उठ हरामखोर कितना सोयेगा। अपना घर नहीं है। उठ घर भी चलना है। तेरे जीजा का दो बार फ़ोन आ गया।
जतिन आँख मलते मलते उठ गया। आवाज सुनका मैंने भी आँख खोला। देखा अर्चना सलवार सूट में थी। लगभग तैयार। मेरा सर घूम रहा था। अर्चना ने कहा - उठो भाई।
मैं - भाई ये है। मैं बाप हूँ।
अर्चना हँसते हुए बोली - ठीक है पापा जी उठ जाइये । आपकी घरवाली नाश्ता तैयार कर चुकी है।
मैं - ओह्हो। वो भी थकती नहीं हैं। चार बजे तक चुदी हैं तब भी।
ये सुनकर जतिन चौंक गया - भाई मेरे सोने के बाद भी तुम लोगों का खेल चला है क्या ?
अर्चना हंसती हुई बोली - तू जगा भी रहता तो क्या उखाड़ लेता। चल अब उठ , घर चलना है। घर बिखरा पड़ा होगा।
मैं - अरे जाने की तैयारी ?
अर्चना - हाँ , नाश्ता करके निकल जायेंगे। पर चिंता मत करो। अभी दो तीन दिन और हैं। इसके जीजा को आने में टाइम है। आज नहीं पर कल अब तुम माँ को लेकर वहीँ आना। बचा खेल वहीँ खेलेंगे।
मैं भी मन मसोस कर उठ गया। कुछ देर बाद जतिन और अर्चना ने नाश्ता किया और अपने घर चले गए। नाश्ता करके मैं फिर सो गया।
माँ भी कुछ देर बाद मेरे बगल में सो गईं। हमारी नींद विक्की के फ़ोन से खुली। कुछ देर इधर उधर की बात हुई फिर उसने बताया की उन्होंने सोनी के लिए फैक्ट्री देखि हैं जहाँ वो अपने सिलाई के कारखाने का सेटअप कर सकती है। विक्की चाहता था मैं आकर देख लूँ। मेरे हाँ के बाद ही वो फाइनल करना चाहते थे। मैंने उसे एक हफ्ते का टाइम दिया और कहा एक हफ्ते बाद आऊंगा।
 

Mass

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welcome bhai is thread par bhi..hope time nikal kar mere thread ke bhi darshan karoge :)
look forward to your comments. Thanks.

tharkiman
 

tharkiman

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welcome bhai is thread par bhi..hope time nikal kar mere thread ke bhi darshan karoge :)
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tharkiman
Yaar aajkal thodi watt lagi hui hai .. aapka thread padhna hai . aaj padhta hoon . I know you write well.
 
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Reactions: Mass and Iron Man

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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उसके बाद हम सबने खाना खाया और खाने के साथ ड्रिंक्स भी चला और उसका नतीजा ये हुआ कि शाम तक मैं और जतिन पूरी तरह से नशे में चूर होकर अपने कमरे में सो गए और माँ अर्चना उनके कमरे में चले गए। रात करीब दो या तीन बजे होंगे मेरी नींद खुल गई। मुझे जोर कि शुशु आई थी और मेरा लंड एकदम कड़क हो चूका था। मैंने देखा जतिन मेरे बगल में बेसुध सोया हुआ था। मैं किसी तरह से उठकर बाथरूम में गया। ड्रिंक्स के वजह से मैं काफी देर तक मूतता रहा। मूतने के बाद मेरा लंड रिलैक्स होकर लाटकक गया। लौटकर आया तो प्यास लग आई। देखा कमरे में पानी नहीं था। मैं कमरे से निकल कर किचन की तरफ गया। कमरे से बाहर निकलते ही मुझे सिकियों की आवाज आने लगी। मैं जब किचन के तरफ देखा मेरी ही नहीं मरे लंड की भी नींद खुल गई। मेरे साथ साथ वो भी चौकन्ना हो गया।

माजरा ये था कि माँ किचन के स्लैब से लग कर खड़ी थीं। उनका चेहरा मेरे तरफ था। अर्चना निचे नंगी उनके पैरों के पास बैठी थी। अर्चना उनके चूत को इस तरह चाट रही थी जैसे एक बिल्ली मलाई की कटोरी से मलाई चाटे जा रही हो। माँ की आँखे बंद थी। वो आनंद के सागर में गोते लगा रही थी। उनकी सांस तेज चल रही थी जिस वजह से उनके स्तन ऊपर निचे हो रहे थे। उन्होंने अपने दोनों हाथो से अर्चना के सर को पकड़ रखा था। अर्चना घुटनो के बल आधे खड़ी आधी बैठी अवस्था में थी। उसका हाथ माँ के जांघों पर था और उसका गांड थोड़ा निकला हुआ था। मेरा मन कर रहा था पीछे से जाकर उसकी गांड मार लूँ। पर माँ की स्थिति देख मुझे उन दोनों को डिस्टर्ब करने का मन नहीं कर रहा था। मैं वहीँ चुपचाप खड़ा रहा। कुछ देर बाद माँ के शरीर में कंपन शुरू हो गया। उनका शरीर अकड़ने लगा। मैं समझ गया वो बस झड़ने वाली हैं। उन्होंने अर्चना के सर को अपने चूत पर दबा दिया और जोर से धक्का देते हुए झड़ने लगीं। अर्चना भी बिना घबराये उनके एक एक बूँद को चाटने लगीं। मैं माँ को चरम पर पहुँचता देख मंत्रमुग्ध सा हो गया था। तभी माँ ने आँखे खोल दी और मुझे सामने देखते ही चौंक पड़ी।
माँ - तू कब से खड़ा है ?
माँ की आवाज सुनका अर्चना भी पीछे मुड़ गई।
मैंने कहा - कुछ देर से आप दोनों का ये अनोखा प्रेम देख रहा हूँ।
माँ - ये इतना चटोर है पूछ मत। इतना तो तेरी किसी बहन ने नहीं चाटा आज तक ?
मैं - हम्म। मुझे लगा था इसका इंटेरेस्ट मुझमे है और इसे मुझसे बच्चा चाहिए। पर तो ये तो आपकी चूत की गहराइयों में ही खो गई है।
अर्चना हँसते हुए - नहीं हीरो। तेरा लौड़ा तो मस्त है पर उतनी ही मस्त माँ की चूत भी। मुझे मेरी माँ की तो नहीं मिली। पर इस माँ की मिल रही है तो मैं लालच छोड़ नहीं पाई।

मैं अब उन दोनों के पास पहुँच गया था। मैंने फ्रिज से बोतल बाहर निकला और पानी पीते हुए बोला - अब तुम दोनों को इस स्थिति में देख कर जो मेरा लौड़ा खड़ा हुआ है उसको कौन शांत करेगा।

अर्चना - ये बताओ किसको देख कर खड़ा हुआ है ये औजार ?
मैं माँ के पास पहुंचा और उनको चूम कर बोला - इतनी सेक्सी माँ ने जब तुम्हे मजबूर कर दिया तो सोचो मेरे जैसे का क्या होगा ?
अर्चना निचे ही बैठी थी उसने मेरे लौड़े को हाथ में लिया और बोली - तो ये मादरचोद अपने माँ का ही दीवाना है।
मैं - हाँ डार्लिंग। मुझे माफ़ करो पर मेरी माँ जब सामनेहोती है तो पहले उन्ही को चोदने का मन करता है।
अर्चना - तो चोद लो। उनकी चूत आज कुछ ज्यादा ही बेचैन हो रखी है। शांत कर दो उसे , वार्ना मैं फिर से भीड़ जाउंगी।


मेरी बात सुनकर माँ के चेहरा गर्व से भर गया था। उन्हें नाज हो रहा था की एक जवान औरत के होते बुए भी मैं उन पर लट्टू हो रखा हूँ। और ये सच बात है। मैं सबसे ज्यादा अगर प्यार करता था तो माँ को ही। मैं माँ की चूत में दिन भर घुसा रह सकता था। अर्चना की ललकार सुनकर मैंने माँ को कमर से पकड़ कर स्लैब पर बिठा दिया और अपना लौड़ा उनके चूत के ठीक सामने करके बोला - तैयार हो , अपने बेटे से चुदाई के लिए। कहीं अर्चना से चुसवा कर संतुष्ट तो नहीं हो गई हो ?
माँ - तेरे लौड़े से चुदने को तो हमेशा तैयार रहती हूँ। आ चोद ले। देख मेरी चूत तेरे लौड़े को देख कर फिर से रोने लगी है।
मैं माँ के सामने खड़ा हो गया और उनके चूत लंड डालते हुए बोला - चिंता मत करो मेरा लंड हैं न उसके आंसू पोछने को।
माँ - बस पेल दे मुझे।
मैं माँ की चूत में धक्के लगाने लगा। मेरे हर धक्के से माँ स्लैब पर पीछे जाती पर वो भी पक्का चुदास हो रखी थी। मेरे गर्दन से बाहें डाले हुए और अपने पैरों से मेरे कमर को जकड कर वो भी उतने ही जोर अपने कमर को आगे कर लेती। हम दोनों एक लय में एक दुसरे में समाये जा रहे थे। पूरी रसोई एक अलग से गंध से भर चुकी थी और फच फच की आवाज गूँज रही थी। अर्चना शुरू में तो निचे बैठे बैठे मेरे बॉल्स सहला रही थी पर बाद में वो भी स्लैब पर जगह बनाकर बैठ गई। बीच बीच में वो कभी माँ को चूमती तो कभी मुझे। माँ की जबरजस्त चुदाई हो रही थी। कुछ ही देर में मुझे महसूस हुआ माँ अब झड़ने वाली है। उनका बदन अकड़ने लगा था और उन्होंने पैरों से मुझे जकड लिया था। कुछ ही देर में उनका शरीर कांपने लगा और उनकी चूत के पानी से मेरा लंड नहाने लगा। पर मेरा तो लंड जैसे अभी स्टार्ट ही हुआ था।
माँ ने कहा - बस मेरा हो गया। रुक जा मेरे लाल।
मैंने कहा - माँ , अभी मेरे लंड ने तो शुरुआत ही की है। अभी से ये हाल है ?
माँ- मुझे पता है इस समाया तेरे सामने अगर घर की साड़ी औरतें खड़ी कर दू तो तू सबको छोड़ सकता है।
मैंने माँ को स्लैब से उतार दिया और उन्हें उस पर झुका कर घोड़ी जैसा बना दिया और कहा - पर मेरा मन तो अभी तुम्हे ही चोदने का है। अगर चूत नहीं तो गांड ही सही।
माँ - गांड नहीं। अभी तो बिलकुल नहीं। एक बार और चूत मार ले।
मैं - ठीक है।
मैंने पीछे से माँ के चूत में लौड़ा डाल दिया और उन्हें फिर से चोदने लगा। अबकी अर्चना सल्ब पर बैठे बैठे माँ के एकदम सामने आ गई और उसने माँ को अपने ऊपर ले लिया। अब माँ का शरीर उसके ऊपर झूल रहा था। अर्चना उन्हें चूम रही थी। उसके हाथ माँ के मुम्मो को दबा रहे थे। माँ की मस्ती बढ़ गई थी।
माँ - उह्ह , उफ़। घोड़े जैसा लंड है तेरा। मेरी चूत का कबाड़ा कर दिया।
मैं - अभी तो तुम्हारी चूत को मेरे लंड से आंसू पूछवाने थे अब कबाड़ा हो गया।
माँ - तेरे सामने एक और गदराया माल है और तू मेरे पीछे पड़ा है।
मैं - वो तो साली रंडी है। लौड़ा छोड़ चूत के पीछे पड़ी थी। अब उसे क्यों चोदे ?
अर्चना - भोसड़ी के, मादरचोद तुझे माँ अच्छी लगती है ये कह ना। मुझे क्यों दोष दे रहा है।
मैं - रंडी साली छिनाल तेरा दोष नहीं है। पर तूने लंड नहीं लिया तो मैं जबरजस्ती क्यों दू ?
माँ - इस्सस उफ़। मुझे रहने दो बस। इसी को चोद। अपना माल मुझ बुढ़िया पर मत बर्बाद करो ।
मैं - माँ तुमको बुढ़िया बोलने वाला नल्ला होगा। बाहर निकलती हो तो लौंडे तक अपना लौड़ा एडजस्ट करने लगते हैं। झुकती हो तो बूढ़े तक तुम्हारे ब्लॉउज में झाँक कर मुम्मे देखने की कोशिश करते हैं। बुढ़िया तो तुम्हारी माँ भी नहीं होती।
माँ - मेरी माँ की याद मत दिलाओ। अगर वो होती तो सच में तुझसे चुद रही होती। उफ़ बस कर कितना चोदेगा।
मैंने माँ के मुम्मे पकड़ लिया और उन्हें लगभग खड़े पोजीशन में कर दिया और जबरजस्त तरीके से चोदने लगा। अर्चना भी खुल कर माँ को चूमे जा रही थी। कुछ देर चूमने के बाद वो निचे उतर कर बैठ गई और उनके चूत को चाटने लगी। अब माँ का बुरा हाल हो गया वो फिर से झड़ने लगीं। इस बार उनका शरीर पूरा काँप रहा था। उनसे खड़ा नहीं होया जा रहा था। वो झड़ने के बाद लड़खड़ा कर गिरने लगीं तो मैं अपना लंड निकाल लिया और उन्हें बैठने दिया। अर्चना ने मेरे भीगे लंड को मुँह में लपक कर ले लिया। उसकी इस हरकत पर मैंने चटाक से उसके गाल पर झापड़ मारा और कहाँ - बहन की लौड़ी। मेरे लड़को मुँह नहीं तेरी चूत चाहिए। चल आजा , मेरे माल को चूत में ले।
मैंने उसके बाल पकड़ कर उसे खड़ा कर दिया और उसे स्लैब पर झुका दिया। मैंने उसके गांड पर भी एक थप्पड़ मारा और कहा - क्यों, बेरहम बाप से चुदना चाह रही थी न। मन तो करता है तेरी गांड मार लू पर तुझे अपने बाप का बच्चा चाहिए।
अर्चना - हाँ पापा। मुझे अपनी बीवी बना लो। भर दो मेरी कोख। बना दो मुझे माँ। मेरी सुनी कोख भर दो।
मैं - पहले तेरी चूत का भोसड़ा बना दूँ।
अर्चना - तुम्हारा जो मन करे बना दो पर बच्चा दे दो।
मैं - साली बच्चा चाहिए या चुदाई के मजे ?
अर्चना - दोनों।
मैंने उसे और झुका दिया और उसके बालो को खींचे हुए कहा - पहले मुझे मजा दे।
मैं तेजी से उसे चोद रहा था। माँ को समझ आने लगा की मैं शायद अब अपने चरम पर आ सकता हूँ।
माँ बोली - इसे बिस्तर पर लेजा। ढंग से चोद।
मैं - चुप साली रंडी सलाह मत दे वर्ण तुझे फिर से छोड़ दूंगा।
अर्चना ने मुहसे कहा - पीछे से मजा नहीं आ रहा है पापा । मुझे आपका लंड अंदर तक महसूस करना हैं। चलो अंदर।
मैं उसे उसी अंदाज में छोड़ता हुआ बोला - चल मेरी घोड़ी ऐसे ही चोदते हुए ले चलूँगा ।
मैंने उसे वैसे ही चोदते हुए धीरे धीरे लेकर किचन से निकल आया। पर मुझे लगा की अब मैं जयदा देर तक नहीं टिक पाउँगा तो मैंने उसे वहीँ सोफे पर पटक दिया। मैं सोफे पर ही उसकी टांग उठा कर चोदने लगा।
अर्चना - हाँ ऐसे ही चोदो मुझे। और अंदर तक। बस । उफ़ आह। उसने मेरे कमर के दोनों तरफ से अपना पर लपेट लिया। मैं भी स्खलन पर पहुँच गया था। मन अब हर धक्के से उसके अंदर तक घुस रहा था। कुछ ही देर में मेरा लंड पिचकारी छोड़ने लगा। उसने अपने चूत ो सिकोड़ कर मेरे लंड को एकदम से जकड लिया। मैं उसके ऊपर लेट गया। अर्चना ने मुझे पैरों और बाँहों दोनों से बाँध सा लिया था । उसकी चूत मेरे लंड को चूस रही थी। मेरे और उसके कमर के बीच हवा पास करने की भी जगह नहीं थी। उसने मुझे वैसे तब तक रखा जब तक मेरे लंड ने एक एक बूँद उसके चूत में नहीं उतार दिया। बल्कि ये कहना चाहिए की उसके चूत ने मेरे लंड को तब तक नहीं छोड़ा जब तक मेरे पानी का एक एक बूँद उसके बच्चे दानी तक नहीं पहुंचा। लगभग पांच मिनट तक जकड़े रहने के बाद उसने मुझे आजाद किया। उसके चेहरे पर पूरा इत्मीनान था।
उसने कहा - थैंक यू। मुझे पक्का यकीन है , इस बार की चुदाई से मैं माँ बन जाउंगी।
मैं उठकर उसके पैरों की तरफ बैठ गया था। उसने अपने दोनों पेअर मेरे जांघो पर रख दिया था। माँ किचन से ठंढी बियर लेकर आई।
माँ ने मुझे बियर की बोतल थमाई और अर्चना से कहा - फिर तो अब तुझे चुदाई नहीं चाहिए।
अर्चना - ही ही ही। चुदाई से मन कहाँ भरता है। ख़ास कर ऐसा चोदू जब सामने हो तो।
वो लेटे लेटे ही बियर के सिप लगा रही थी। माँ मेरे गोद में आकर बैठ गई थी। माँ को किसी भी बाहरी से इतना खुलते मैंने कम ही देखा था। वो भी इतना जल्दी। जरूर अर्चना के साथ किसी जन्म का कोई तो सम्बन्ध रहा होगा। हम तीनो वहीँ बैठे रहे। मैं माँ के स्तनों से खेलता रहा और बियर भी पीता रहा। अर्चना उठ नहीं रही थी। वो मेरे वीर्य को अपने अंदर तक जाने देना चाहती थी।
मेरा और माँ का बियर ख़त्म हो गया था पर हलके शुरूर ने फिर से कमाल करना शुरू कर दिया था। माँ सोफे पर मेरी तरफ मुँह करके गोद में बैठ गईं और हम दोनों एक दुसरे के शरीर के साथ खेलने लगे। उन्होंने अपने स्तनों को पहले तो मेरे सीने पर धकेलना शुरू किया लग रह था जैसे मेरे छोटे छूटे चुचकों से अपने निप्पल को टच कराने की कोशिश कर रही हो। फिर मुझे धक्का देखा सोफे के बैक रेस्ट पर लिटा सा दिया और फिर मेरे चेहरे , फिर गर्दन और सीने को चाटने लगीं। उनकी इस हरकत से मेरा लंड फिर से पुरे शबाब पर आ गया था। पता नहीं उन्हें कैसा नशा हो गया था। उनका मन भर ही नहीं रहा था। उन्होंने मेरे लंड को चूत की पंखुड़ियों के बीच में फंसा लिया था और कमर को आगे पीछे कर रही थी। अर्चना ने हम दोनों को देखा तो बोली - गजब की आग आप दोनों में है। मैं जा रही हूँ। अब ठंढ लग रही है।
माँ - मेरे अंदर तो आग लगी हुई है।
मैं - अर्चना , तुमने कोई दवा तो नहीं दे दिया है इन्हे ?
माँ ने अपने कमर को हिलाते हुए कहा - मुझे चुदने के लिए कोई दवा नहीं चाहिए होती है। माँ बाप के खून का असर है। कभी कभी ऐसा होता है की चिंगारी अगर भड़क जाती है तो शांत नहीं होती।
मैं - पापा का तो बुरा हाल हो जाता होगा।
माँ - उफ़ मत पूछो। पर संभाल लेते थे।
मैं - मैं भी संभाल लूंगा।
माँ - मुझे पता है।
माँ ने अब मेरे लंड को चूत में निगल लिया और मुझे पर उछलने लगीं थी। मुझे पता था मेरा लंड इस बार देर से झड़ेगा। माँ सोफे पर मेरे ऊपर बैठे बैठे ही मुझे चोद रही थी। उन्होंने अपने स्तन उठा कर मुझे कहा - चूस ले। पी जा।
माँ पाना स्तन मर्दन भी करवाना चाह रही थी। पर ये सिर्फ माँ के दिमाग का फितूर था। हवस की आग मन के अंदर ही थी। कुछ ही देर में माँ झाड़ गईं। मुझे पता था इस बार मेरा लंड कुछ नहीं कर पायेगा। माँ मेरे ऊपर ही लेटी रही और बोली - माफ़ कर दे।
मैं - अरे माँ। माफ़ी क्यों मांग रही हो।
माँ - पता नहीं कैसी हवस चढ़ गई है। पर तू इस बार फारिग नहीं हो पायेगा। मेरी चूत में अब जलन हो रही है।
मैं - तुम ही तो उस पर अत्याचार कर रही हो। बेचारी को इतना चटवा दिया और फिर उसकी कुटाई भी करवा दी।
माँ - पर मन को ना जाने क्या हो गया है।
माँ मेरे गोद में बैठी थी। मैंने उनके पीठ को सहला रहा था। कुछ देर बाद मैंने देखा माँ मेरे गोद में सो गई थी। मुझे उन पर बहुत प्यार आ रहा था। मैंने उन्हें गोद में उठाया। वो गहरी नींद में थीं। मैं गोद में लिए लिए उनके बैडरूम में ले गया और धीरे से बिस्तर पर लिटा दिया। बिस्तर पर अर्चना पीठ के बल बेसुध सोइ थी। उसके हर सांस से उसके बड़े बड़े स्तन ऊपर निचे हो रहे थे। मैंने माँ को उसके बगल में सुला दिया। बिस्तर पर पड़ते ही माँ ने करवट लिया और अपने पैरों को अर्चना के ऊपर रख दिया। नींद में अर्चना ने भी अब करवट लिया। दोनों एक दुसरे के बाहों में सो गईं। मैंने अपने लंड को देख कर कहा - भाई अब तुझे खुद से शांत होना पड़ेगा।
मैं वापस किचन में आया। चार बज चुके थे। अबकी मैंने एक जग ठंढा पानी पिया फिर कमरे में जाकर लेट गया।
अर्चना के आने से घर में एकदम रंडीखाने जैसा माहौल हो रखा था। उसने माँ के अंदर की आग जगा दी थी। बिस्तर पर पड़ते ही मुझे भी नींद आ गई।

अगले दिन , मैं और जतिन सोये हुए थे की अर्चना कमरे में आई और जगाते हुए बोली - उठो , कितनी देर तक सोना है ? दोपहर होने को आ गया।
जतिन - सोने दो न दी।
अर्चना - उठ हरामखोर कितना सोयेगा। अपना घर नहीं है। उठ घर भी चलना है। तेरे जीजा का दो बार फ़ोन आ गया।
जतिन आँख मलते मलते उठ गया। आवाज सुनका मैंने भी आँख खोला। देखा अर्चना सलवार सूट में थी। लगभग तैयार। मेरा सर घूम रहा था। अर्चना ने कहा - उठो भाई।
मैं - भाई ये है। मैं बाप हूँ।
अर्चना हँसते हुए बोली - ठीक है पापा जी उठ जाइये । आपकी घरवाली नाश्ता तैयार कर चुकी है।
मैं - ओह्हो। वो भी थकती नहीं हैं। चार बजे तक चुदी हैं तब भी।
ये सुनकर जतिन चौंक गया - भाई मेरे सोने के बाद भी तुम लोगों का खेल चला है क्या ?
अर्चना हंसती हुई बोली - तू जगा भी रहता तो क्या उखाड़ लेता। चल अब उठ , घर चलना है। घर बिखरा पड़ा होगा।
मैं - अरे जाने की तैयारी ?
अर्चना - हाँ , नाश्ता करके निकल जायेंगे। पर चिंता मत करो। अभी दो तीन दिन और हैं। इसके जीजा को आने में टाइम है। आज नहीं पर कल अब तुम माँ को लेकर वहीँ आना। बचा खेल वहीँ खेलेंगे।
मैं भी मन मसोस कर उठ गया। कुछ देर बाद जतिन और अर्चना ने नाश्ता किया और अपने घर चले गए। नाश्ता करके मैं फिर सो गया।
माँ भी कुछ देर बाद मेरे बगल में सो गईं। हमारी नींद विक्की के फ़ोन से खुली। कुछ देर इधर उधर की बात हुई फिर उसने बताया की उन्होंने सोनी के लिए फैक्ट्री देखि हैं जहाँ वो अपने सिलाई के कारखाने का सेटअप कर सकती है। विक्की चाहता था मैं आकर देख लूँ। मेरे हाँ के बाद ही वो फाइनल करना चाहते थे। मैंने उसे एक हफ्ते का टाइम दिया और कहा एक हफ्ते बाद आऊंगा।
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उसके बाद हम सबने खाना खाया और खाने के साथ ड्रिंक्स भी चला और उसका नतीजा ये हुआ कि शाम तक मैं और जतिन पूरी तरह से नशे में चूर होकर अपने कमरे में सो गए और माँ अर्चना उनके कमरे में चले गए। रात करीब दो या तीन बजे होंगे मेरी नींद खुल गई। मुझे जोर कि शुशु आई थी और मेरा लंड एकदम कड़क हो चूका था। मैंने देखा जतिन मेरे बगल में बेसुध सोया हुआ था। मैं किसी तरह से उठकर बाथरूम में गया। ड्रिंक्स के वजह से मैं काफी देर तक मूतता रहा। मूतने के बाद मेरा लंड रिलैक्स होकर लाटकक गया। लौटकर आया तो प्यास लग आई। देखा कमरे में पानी नहीं था। मैं कमरे से निकल कर किचन की तरफ गया। कमरे से बाहर निकलते ही मुझे सिकियों की आवाज आने लगी। मैं जब किचन के तरफ देखा मेरी ही नहीं मरे लंड की भी नींद खुल गई। मेरे साथ साथ वो भी चौकन्ना हो गया।

माजरा ये था कि माँ किचन के स्लैब से लग कर खड़ी थीं। उनका चेहरा मेरे तरफ था। अर्चना निचे नंगी उनके पैरों के पास बैठी थी। अर्चना उनके चूत को इस तरह चाट रही थी जैसे एक बिल्ली मलाई की कटोरी से मलाई चाटे जा रही हो। माँ की आँखे बंद थी। वो आनंद के सागर में गोते लगा रही थी। उनकी सांस तेज चल रही थी जिस वजह से उनके स्तन ऊपर निचे हो रहे थे। उन्होंने अपने दोनों हाथो से अर्चना के सर को पकड़ रखा था। अर्चना घुटनो के बल आधे खड़ी आधी बैठी अवस्था में थी। उसका हाथ माँ के जांघों पर था और उसका गांड थोड़ा निकला हुआ था। मेरा मन कर रहा था पीछे से जाकर उसकी गांड मार लूँ। पर माँ की स्थिति देख मुझे उन दोनों को डिस्टर्ब करने का मन नहीं कर रहा था। मैं वहीँ चुपचाप खड़ा रहा। कुछ देर बाद माँ के शरीर में कंपन शुरू हो गया। उनका शरीर अकड़ने लगा। मैं समझ गया वो बस झड़ने वाली हैं। उन्होंने अर्चना के सर को अपने चूत पर दबा दिया और जोर से धक्का देते हुए झड़ने लगीं। अर्चना भी बिना घबराये उनके एक एक बूँद को चाटने लगीं। मैं माँ को चरम पर पहुँचता देख मंत्रमुग्ध सा हो गया था। तभी माँ ने आँखे खोल दी और मुझे सामने देखते ही चौंक पड़ी।
माँ - तू कब से खड़ा है ?
माँ की आवाज सुनका अर्चना भी पीछे मुड़ गई।
मैंने कहा - कुछ देर से आप दोनों का ये अनोखा प्रेम देख रहा हूँ।
माँ - ये इतना चटोर है पूछ मत। इतना तो तेरी किसी बहन ने नहीं चाटा आज तक ?
मैं - हम्म। मुझे लगा था इसका इंटेरेस्ट मुझमे है और इसे मुझसे बच्चा चाहिए। पर तो ये तो आपकी चूत की गहराइयों में ही खो गई है।
अर्चना हँसते हुए - नहीं हीरो। तेरा लौड़ा तो मस्त है पर उतनी ही मस्त माँ की चूत भी। मुझे मेरी माँ की तो नहीं मिली। पर इस माँ की मिल रही है तो मैं लालच छोड़ नहीं पाई।

मैं अब उन दोनों के पास पहुँच गया था। मैंने फ्रिज से बोतल बाहर निकला और पानी पीते हुए बोला - अब तुम दोनों को इस स्थिति में देख कर जो मेरा लौड़ा खड़ा हुआ है उसको कौन शांत करेगा।

अर्चना - ये बताओ किसको देख कर खड़ा हुआ है ये औजार ?
मैं माँ के पास पहुंचा और उनको चूम कर बोला - इतनी सेक्सी माँ ने जब तुम्हे मजबूर कर दिया तो सोचो मेरे जैसे का क्या होगा ?
अर्चना निचे ही बैठी थी उसने मेरे लौड़े को हाथ में लिया और बोली - तो ये मादरचोद अपने माँ का ही दीवाना है।
मैं - हाँ डार्लिंग। मुझे माफ़ करो पर मेरी माँ जब सामनेहोती है तो पहले उन्ही को चोदने का मन करता है।
अर्चना - तो चोद लो। उनकी चूत आज कुछ ज्यादा ही बेचैन हो रखी है। शांत कर दो उसे , वार्ना मैं फिर से भीड़ जाउंगी।


मेरी बात सुनकर माँ के चेहरा गर्व से भर गया था। उन्हें नाज हो रहा था की एक जवान औरत के होते बुए भी मैं उन पर लट्टू हो रखा हूँ। और ये सच बात है। मैं सबसे ज्यादा अगर प्यार करता था तो माँ को ही। मैं माँ की चूत में दिन भर घुसा रह सकता था। अर्चना की ललकार सुनकर मैंने माँ को कमर से पकड़ कर स्लैब पर बिठा दिया और अपना लौड़ा उनके चूत के ठीक सामने करके बोला - तैयार हो , अपने बेटे से चुदाई के लिए। कहीं अर्चना से चुसवा कर संतुष्ट तो नहीं हो गई हो ?
माँ - तेरे लौड़े से चुदने को तो हमेशा तैयार रहती हूँ। आ चोद ले। देख मेरी चूत तेरे लौड़े को देख कर फिर से रोने लगी है।
मैं माँ के सामने खड़ा हो गया और उनके चूत लंड डालते हुए बोला - चिंता मत करो मेरा लंड हैं न उसके आंसू पोछने को।
माँ - बस पेल दे मुझे।
मैं माँ की चूत में धक्के लगाने लगा। मेरे हर धक्के से माँ स्लैब पर पीछे जाती पर वो भी पक्का चुदास हो रखी थी। मेरे गर्दन से बाहें डाले हुए और अपने पैरों से मेरे कमर को जकड कर वो भी उतने ही जोर अपने कमर को आगे कर लेती। हम दोनों एक लय में एक दुसरे में समाये जा रहे थे। पूरी रसोई एक अलग से गंध से भर चुकी थी और फच फच की आवाज गूँज रही थी। अर्चना शुरू में तो निचे बैठे बैठे मेरे बॉल्स सहला रही थी पर बाद में वो भी स्लैब पर जगह बनाकर बैठ गई। बीच बीच में वो कभी माँ को चूमती तो कभी मुझे। माँ की जबरजस्त चुदाई हो रही थी। कुछ ही देर में मुझे महसूस हुआ माँ अब झड़ने वाली है। उनका बदन अकड़ने लगा था और उन्होंने पैरों से मुझे जकड लिया था। कुछ ही देर में उनका शरीर कांपने लगा और उनकी चूत के पानी से मेरा लंड नहाने लगा। पर मेरा तो लंड जैसे अभी स्टार्ट ही हुआ था।
माँ ने कहा - बस मेरा हो गया। रुक जा मेरे लाल।
मैंने कहा - माँ , अभी मेरे लंड ने तो शुरुआत ही की है। अभी से ये हाल है ?
माँ- मुझे पता है इस समाया तेरे सामने अगर घर की साड़ी औरतें खड़ी कर दू तो तू सबको छोड़ सकता है।
मैंने माँ को स्लैब से उतार दिया और उन्हें उस पर झुका कर घोड़ी जैसा बना दिया और कहा - पर मेरा मन तो अभी तुम्हे ही चोदने का है। अगर चूत नहीं तो गांड ही सही।
माँ - गांड नहीं। अभी तो बिलकुल नहीं। एक बार और चूत मार ले।
मैं - ठीक है।
मैंने पीछे से माँ के चूत में लौड़ा डाल दिया और उन्हें फिर से चोदने लगा। अबकी अर्चना सल्ब पर बैठे बैठे माँ के एकदम सामने आ गई और उसने माँ को अपने ऊपर ले लिया। अब माँ का शरीर उसके ऊपर झूल रहा था। अर्चना उन्हें चूम रही थी। उसके हाथ माँ के मुम्मो को दबा रहे थे। माँ की मस्ती बढ़ गई थी।
माँ - उह्ह , उफ़। घोड़े जैसा लंड है तेरा। मेरी चूत का कबाड़ा कर दिया।
मैं - अभी तो तुम्हारी चूत को मेरे लंड से आंसू पूछवाने थे अब कबाड़ा हो गया।
माँ - तेरे सामने एक और गदराया माल है और तू मेरे पीछे पड़ा है।
मैं - वो तो साली रंडी है। लौड़ा छोड़ चूत के पीछे पड़ी थी। अब उसे क्यों चोदे ?
अर्चना - भोसड़ी के, मादरचोद तुझे माँ अच्छी लगती है ये कह ना। मुझे क्यों दोष दे रहा है।
मैं - रंडी साली छिनाल तेरा दोष नहीं है। पर तूने लंड नहीं लिया तो मैं जबरजस्ती क्यों दू ?
माँ - इस्सस उफ़। मुझे रहने दो बस। इसी को चोद। अपना माल मुझ बुढ़िया पर मत बर्बाद करो ।
मैं - माँ तुमको बुढ़िया बोलने वाला नल्ला होगा। बाहर निकलती हो तो लौंडे तक अपना लौड़ा एडजस्ट करने लगते हैं। झुकती हो तो बूढ़े तक तुम्हारे ब्लॉउज में झाँक कर मुम्मे देखने की कोशिश करते हैं। बुढ़िया तो तुम्हारी माँ भी नहीं होती।
माँ - मेरी माँ की याद मत दिलाओ। अगर वो होती तो सच में तुझसे चुद रही होती। उफ़ बस कर कितना चोदेगा।
मैंने माँ के मुम्मे पकड़ लिया और उन्हें लगभग खड़े पोजीशन में कर दिया और जबरजस्त तरीके से चोदने लगा। अर्चना भी खुल कर माँ को चूमे जा रही थी। कुछ देर चूमने के बाद वो निचे उतर कर बैठ गई और उनके चूत को चाटने लगी। अब माँ का बुरा हाल हो गया वो फिर से झड़ने लगीं। इस बार उनका शरीर पूरा काँप रहा था। उनसे खड़ा नहीं होया जा रहा था। वो झड़ने के बाद लड़खड़ा कर गिरने लगीं तो मैं अपना लंड निकाल लिया और उन्हें बैठने दिया। अर्चना ने मेरे भीगे लंड को मुँह में लपक कर ले लिया। उसकी इस हरकत पर मैंने चटाक से उसके गाल पर झापड़ मारा और कहाँ - बहन की लौड़ी। मेरे लड़को मुँह नहीं तेरी चूत चाहिए। चल आजा , मेरे माल को चूत में ले।
मैंने उसके बाल पकड़ कर उसे खड़ा कर दिया और उसे स्लैब पर झुका दिया। मैंने उसके गांड पर भी एक थप्पड़ मारा और कहा - क्यों, बेरहम बाप से चुदना चाह रही थी न। मन तो करता है तेरी गांड मार लू पर तुझे अपने बाप का बच्चा चाहिए।
अर्चना - हाँ पापा। मुझे अपनी बीवी बना लो। भर दो मेरी कोख। बना दो मुझे माँ। मेरी सुनी कोख भर दो।
मैं - पहले तेरी चूत का भोसड़ा बना दूँ।
अर्चना - तुम्हारा जो मन करे बना दो पर बच्चा दे दो।
मैं - साली बच्चा चाहिए या चुदाई के मजे ?
अर्चना - दोनों।
मैंने उसे और झुका दिया और उसके बालो को खींचे हुए कहा - पहले मुझे मजा दे।
मैं तेजी से उसे चोद रहा था। माँ को समझ आने लगा की मैं शायद अब अपने चरम पर आ सकता हूँ।
माँ बोली - इसे बिस्तर पर लेजा। ढंग से चोद।
मैं - चुप साली रंडी सलाह मत दे वर्ण तुझे फिर से छोड़ दूंगा।
अर्चना ने मुहसे कहा - पीछे से मजा नहीं आ रहा है पापा । मुझे आपका लंड अंदर तक महसूस करना हैं। चलो अंदर।
मैं उसे उसी अंदाज में छोड़ता हुआ बोला - चल मेरी घोड़ी ऐसे ही चोदते हुए ले चलूँगा ।
मैंने उसे वैसे ही चोदते हुए धीरे धीरे लेकर किचन से निकल आया। पर मुझे लगा की अब मैं जयदा देर तक नहीं टिक पाउँगा तो मैंने उसे वहीँ सोफे पर पटक दिया। मैं सोफे पर ही उसकी टांग उठा कर चोदने लगा।
अर्चना - हाँ ऐसे ही चोदो मुझे। और अंदर तक। बस । उफ़ आह। उसने मेरे कमर के दोनों तरफ से अपना पर लपेट लिया। मैं भी स्खलन पर पहुँच गया था। मन अब हर धक्के से उसके अंदर तक घुस रहा था। कुछ ही देर में मेरा लंड पिचकारी छोड़ने लगा। उसने अपने चूत ो सिकोड़ कर मेरे लंड को एकदम से जकड लिया। मैं उसके ऊपर लेट गया। अर्चना ने मुझे पैरों और बाँहों दोनों से बाँध सा लिया था । उसकी चूत मेरे लंड को चूस रही थी। मेरे और उसके कमर के बीच हवा पास करने की भी जगह नहीं थी। उसने मुझे वैसे तब तक रखा जब तक मेरे लंड ने एक एक बूँद उसके चूत में नहीं उतार दिया। बल्कि ये कहना चाहिए की उसके चूत ने मेरे लंड को तब तक नहीं छोड़ा जब तक मेरे पानी का एक एक बूँद उसके बच्चे दानी तक नहीं पहुंचा। लगभग पांच मिनट तक जकड़े रहने के बाद उसने मुझे आजाद किया। उसके चेहरे पर पूरा इत्मीनान था।
उसने कहा - थैंक यू। मुझे पक्का यकीन है , इस बार की चुदाई से मैं माँ बन जाउंगी।
मैं उठकर उसके पैरों की तरफ बैठ गया था। उसने अपने दोनों पेअर मेरे जांघो पर रख दिया था। माँ किचन से ठंढी बियर लेकर आई।
माँ ने मुझे बियर की बोतल थमाई और अर्चना से कहा - फिर तो अब तुझे चुदाई नहीं चाहिए।
अर्चना - ही ही ही। चुदाई से मन कहाँ भरता है। ख़ास कर ऐसा चोदू जब सामने हो तो।
वो लेटे लेटे ही बियर के सिप लगा रही थी। माँ मेरे गोद में आकर बैठ गई थी। माँ को किसी भी बाहरी से इतना खुलते मैंने कम ही देखा था। वो भी इतना जल्दी। जरूर अर्चना के साथ किसी जन्म का कोई तो सम्बन्ध रहा होगा। हम तीनो वहीँ बैठे रहे। मैं माँ के स्तनों से खेलता रहा और बियर भी पीता रहा। अर्चना उठ नहीं रही थी। वो मेरे वीर्य को अपने अंदर तक जाने देना चाहती थी।
मेरा और माँ का बियर ख़त्म हो गया था पर हलके शुरूर ने फिर से कमाल करना शुरू कर दिया था। माँ सोफे पर मेरी तरफ मुँह करके गोद में बैठ गईं और हम दोनों एक दुसरे के शरीर के साथ खेलने लगे। उन्होंने अपने स्तनों को पहले तो मेरे सीने पर धकेलना शुरू किया लग रह था जैसे मेरे छोटे छूटे चुचकों से अपने निप्पल को टच कराने की कोशिश कर रही हो। फिर मुझे धक्का देखा सोफे के बैक रेस्ट पर लिटा सा दिया और फिर मेरे चेहरे , फिर गर्दन और सीने को चाटने लगीं। उनकी इस हरकत से मेरा लंड फिर से पुरे शबाब पर आ गया था। पता नहीं उन्हें कैसा नशा हो गया था। उनका मन भर ही नहीं रहा था। उन्होंने मेरे लंड को चूत की पंखुड़ियों के बीच में फंसा लिया था और कमर को आगे पीछे कर रही थी। अर्चना ने हम दोनों को देखा तो बोली - गजब की आग आप दोनों में है। मैं जा रही हूँ। अब ठंढ लग रही है।
माँ - मेरे अंदर तो आग लगी हुई है।
मैं - अर्चना , तुमने कोई दवा तो नहीं दे दिया है इन्हे ?
माँ ने अपने कमर को हिलाते हुए कहा - मुझे चुदने के लिए कोई दवा नहीं चाहिए होती है। माँ बाप के खून का असर है। कभी कभी ऐसा होता है की चिंगारी अगर भड़क जाती है तो शांत नहीं होती।
मैं - पापा का तो बुरा हाल हो जाता होगा।
माँ - उफ़ मत पूछो। पर संभाल लेते थे।
मैं - मैं भी संभाल लूंगा।
माँ - मुझे पता है।
माँ ने अब मेरे लंड को चूत में निगल लिया और मुझे पर उछलने लगीं थी। मुझे पता था मेरा लंड इस बार देर से झड़ेगा। माँ सोफे पर मेरे ऊपर बैठे बैठे ही मुझे चोद रही थी। उन्होंने अपने स्तन उठा कर मुझे कहा - चूस ले। पी जा।
माँ पाना स्तन मर्दन भी करवाना चाह रही थी। पर ये सिर्फ माँ के दिमाग का फितूर था। हवस की आग मन के अंदर ही थी। कुछ ही देर में माँ झाड़ गईं। मुझे पता था इस बार मेरा लंड कुछ नहीं कर पायेगा। माँ मेरे ऊपर ही लेटी रही और बोली - माफ़ कर दे।
मैं - अरे माँ। माफ़ी क्यों मांग रही हो।
माँ - पता नहीं कैसी हवस चढ़ गई है। पर तू इस बार फारिग नहीं हो पायेगा। मेरी चूत में अब जलन हो रही है।
मैं - तुम ही तो उस पर अत्याचार कर रही हो। बेचारी को इतना चटवा दिया और फिर उसकी कुटाई भी करवा दी।
माँ - पर मन को ना जाने क्या हो गया है।
माँ मेरे गोद में बैठी थी। मैंने उनके पीठ को सहला रहा था। कुछ देर बाद मैंने देखा माँ मेरे गोद में सो गई थी। मुझे उन पर बहुत प्यार आ रहा था। मैंने उन्हें गोद में उठाया। वो गहरी नींद में थीं। मैं गोद में लिए लिए उनके बैडरूम में ले गया और धीरे से बिस्तर पर लिटा दिया। बिस्तर पर अर्चना पीठ के बल बेसुध सोइ थी। उसके हर सांस से उसके बड़े बड़े स्तन ऊपर निचे हो रहे थे। मैंने माँ को उसके बगल में सुला दिया। बिस्तर पर पड़ते ही माँ ने करवट लिया और अपने पैरों को अर्चना के ऊपर रख दिया। नींद में अर्चना ने भी अब करवट लिया। दोनों एक दुसरे के बाहों में सो गईं। मैंने अपने लंड को देख कर कहा - भाई अब तुझे खुद से शांत होना पड़ेगा।
मैं वापस किचन में आया। चार बज चुके थे। अबकी मैंने एक जग ठंढा पानी पिया फिर कमरे में जाकर लेट गया।
अर्चना के आने से घर में एकदम रंडीखाने जैसा माहौल हो रखा था। उसने माँ के अंदर की आग जगा दी थी। बिस्तर पर पड़ते ही मुझे भी नींद आ गई।

अगले दिन , मैं और जतिन सोये हुए थे की अर्चना कमरे में आई और जगाते हुए बोली - उठो , कितनी देर तक सोना है ? दोपहर होने को आ गया।
जतिन - सोने दो न दी।
अर्चना - उठ हरामखोर कितना सोयेगा। अपना घर नहीं है। उठ घर भी चलना है। तेरे जीजा का दो बार फ़ोन आ गया।
जतिन आँख मलते मलते उठ गया। आवाज सुनका मैंने भी आँख खोला। देखा अर्चना सलवार सूट में थी। लगभग तैयार। मेरा सर घूम रहा था। अर्चना ने कहा - उठो भाई।
मैं - भाई ये है। मैं बाप हूँ।
अर्चना हँसते हुए बोली - ठीक है पापा जी उठ जाइये । आपकी घरवाली नाश्ता तैयार कर चुकी है।
मैं - ओह्हो। वो भी थकती नहीं हैं। चार बजे तक चुदी हैं तब भी।
ये सुनकर जतिन चौंक गया - भाई मेरे सोने के बाद भी तुम लोगों का खेल चला है क्या ?
अर्चना हंसती हुई बोली - तू जगा भी रहता तो क्या उखाड़ लेता। चल अब उठ , घर चलना है। घर बिखरा पड़ा होगा।
मैं - अरे जाने की तैयारी ?
अर्चना - हाँ , नाश्ता करके निकल जायेंगे। पर चिंता मत करो। अभी दो तीन दिन और हैं। इसके जीजा को आने में टाइम है। आज नहीं पर कल अब तुम माँ को लेकर वहीँ आना। बचा खेल वहीँ खेलेंगे।
मैं भी मन मसोस कर उठ गया। कुछ देर बाद जतिन और अर्चना ने नाश्ता किया और अपने घर चले गए। नाश्ता करके मैं फिर सो गया।
माँ भी कुछ देर बाद मेरे बगल में सो गईं। हमारी नींद विक्की के फ़ोन से खुली। कुछ देर इधर उधर की बात हुई फिर उसने बताया की उन्होंने सोनी के लिए फैक्ट्री देखि हैं जहाँ वो अपने सिलाई के कारखाने का सेटअप कर सकती है। विक्की चाहता था मैं आकर देख लूँ। मेरे हाँ के बाद ही वो फाइनल करना चाहते थे। मैंने उसे एक हफ्ते का टाइम दिया और कहा एक हफ्ते बाद आऊंगा।
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Yaar aajkal thodi watt lagi hui hai .. aapka thread padhna hai . aaj padhta hoon . I know you write well.
no issues bhai...i understand...har ek kaa waisa hi haal hai :)
isiliye mere updates bhi thoda delay ho raha hai..but I am hoping that mera last update aapko pasand aayega..kaafi time laga likhne mein...aur ekdum aapke updates ke style mein hi likha hai..full "action" only ;)

Thanks once again...take care and look forward to your comments.

tharkiman
 
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