अगले दिन मेरी नींद खुली तो देखा माँ पहले से उठ चुकी थी। देखा तो वो किचन में काम कर रही थी। उन्होंने वूलेन शाल ओढ़ रखी थी और निचे वूलेन लेग्गिंग। जाड़े में अक्सर वो कुर्ते सलवार पहनती थी और ऊपर से शाल। मैं उनके पास गया और पीछे से जकड लिया। मेरे पैजामे से बाहर आता लंड उनके टाइट वूलेन लेग्गिंग से चिपक गया। मैंने जैसे ही हाथ साल के अंदर डाला। समझ में आया की माँ ने निचे कुछ नहीं पहना है। माँ पुरे मूड में थीं लगता है।
मैंने अपना हाथ उनके मुम्मे पर रखा तो उन्होंने कहा - उम्म्म। जरा गरम कर दे उन्हें। ठंढ लग रही है। देख ठण्ड से मेरे निप्पल एकदम अकड़ गए हैं।
मैंने उनके निप्पल को अपनी उंगलियों में फंसाया और कहा - सबसे पहले इन्हे ही गरम करता हूँ।
माँ - उम्मम। रगड़ दे जरा। एकदम बेचैन कर रखा है।
मैं - माँ , इतनी बेचैनी थी तो उठ क्यों गई। एक बार मेरे रोड से गरम होकर ही निकलती।
माँ - तेरी बिटिया आने वाली है। अब कुछ तो तैयारी करनी पड़ेगी न।
मैं - मेरी प्यारी अम्मा को लगता है बिटिया से मिलने की ज्यादा जल्दी है।
माँ ने अपने गांड को पीछे धकेलते हुए कहा - उफ्फ्फ्फ़ , सही कह रहा है। सुधा के जाने के बाद से गदराया बदन नहीं मिला है।
मैं - श्वेता को पता चलेगा तो क्या सोचेगी।
माँ - श्वेता की सुबह सुबह ही फ़ोन आया था। कह रही थी , अगर कॉलेज का काम नहीं होता तो वो भी आती।
मैं - हम्म्म
माँ - तू नाराज तो नहीं है न ? श्वेता भी प्यारी बच्ची है। उसके अलग मजे हैं। गोद में बिठा कर उसेदूध पिलाने का मन करता है। वैसे भी शादी के बाद वो भी गदरा जाएगी।
मैं - माँ सफाई मत दो। आपको एक कामुक औरत के साथ ज्यादा मजा आता है मुझे पता है।
माँ - तेरे पापा भी मुझे पूरा समझते थे और तू भी ।
मैं माँ के लेग्गिंग को उतारने लगा तो माँ ने कहा - रहने दे फटाफट से तैयार हो जा अर्चना और उसके भाई भी आते होंगे।
मैं - ये क्या माँ। एकदम गरम करके क्यों चोट करती हो ?
माँ ने मेरे। गाल को किस किया और कहा - मैं खुद को और तुझे एकदम गरम रखना चाहती हूँ।
मैं - ऐसा क्यों माँ ?
माँ - ताकि उन दोनों के सामने अगर कुछ लाज शर्म आये तो अंदर की गर्मी से वो सब पीकहल कर बह जाए।
मैं माँ के इस जवाब को सुन कर कुछ नहीं बोला। मैं वापस जाने लगा तो माँ ने मेरा हाथ पकड़ लिया और एक ग्लास ड्राई फ्रूट से भरा मिल्क शेक देते हुए कहा। - क्या सोचा कल रात जो मैंने कहा था ?
मैंने कहा - किस बारे में ?
माँ - वही थोड़ा जोर लगा दे ?
मैं - माँ क्या कह रही हो ?
माँ - आज मेरा भी मन है। कुछ मेरे ऊपर और कुछ उसके ऊपर। आज तक सबने प्यार ही दिया है। बिना मांगे दिया है। आज कुछ जोर लगा कर ले ले।
मैं - माँ ये सब क्या बोल रही हो।
माँ - देख अगर होश में नहीं कर सकता तो उसके पापा जैसा थोड़ा नशा ही कर लेना। बियर रखी है। श्वेता के टाइम की कुछ ड्रिंक्स बची हुई हैं।
मैं माँ के तरफ हैरानी से देखने लगा। माँ ने नजरे झुका ली फिर धीरे से कहा - रहने दे।
उनको ऐसे देख कर मुझे शरारत सूझी मैंने उनके हाथ पकड़ कर पीछे घुमाया और लेग्गिंग में चिपके उभरे और चौड़े गांड पर थप्पड़ मारते हुए कहा - ऐसे कपडे पहनना जो फट भी जाए तो बुरा न लगे और अपनी नई बेटी को भी बोल देना।
माँ - उफ्फ्फ। आप भी ना।
मैंने एक थप्पड़ और लगाया और कमरे में जाकर तैयार होने लगा। मैं यही सोच रहा था की पापा के जाने के बाद माँ ने ही सब संभाला है। उन्होंने ही बहनो की और मेरी देखभाल की। एक माँ की तरह भी और एक पिता की तरह भी। सिर्फ नाना ने ही घर की औरतों को डोमिनेट किया पर उनसे भी ज्यादा नानी ने। हो सकता है माँ के अंदर भी ये दबी हुई इच्छा हो कि उनको भी कोई डोमिनेट करे। कब तकघर संभालेंगी। कोई मर्द जैसा उनको अपने काबू में रखे। वैसे तो आजकल इसका उलट हो रहा है। पर कुछ फंतासी सबकी होती है। कुछ दबी इच्छाएं सबकी होती हैं। मैं शरीर से लम्बा चौड़ा था, उम्र में भी बड़ा था। बड़े लंड का मालिक था पर व्यवहार से अब भी अपने को छोटा ही मानता था। कुछ ही महीनो में मैं ग्रेजुएट हो जाऊंगा, वो भी अपने साथ वालो से देर से। अपनी कंपनी खड़ा करने वाला हूँ। अब तो मुझे बड़ा होना ही पड़ेगा। और तो औरएक बच्चे का बाप भी हूँ। शायद माँ ये संकेत भी देना चाह रही हों की अब मुझे चीजें अपने कण्ट्रोल में लेना चाहिए। यही सब सोचता हुआ मैं तैयार होने लगा। पर मैं औरतों के साथ कभी भी जोर जबरजस्ती नहीं कर सकता था। आजतक जितनो को भी चोदा सब खुद ही मेरे नीचे आई हैं। मैंने सोचा माँ की बात ही मान लेता हूँ। मैंने सोचा कुछ तो करना पड़ेगा। मेरे दिमाग में एक आइडिआ आया।
मैंने तैयार होकर माँ से कहा - मैं जरा एक दो घंटे में आता हूँ।
माँ - कहाँ जा रहा है। अर्चना और उसके भाई आने वाले होंगे। मैं उन्हें पहचानती भी नहीं हूँ।
मैंने माँ को उसकी फोटो दिखाई और कहा - पहचान लो। अगर मेरे आने से पहले आ गए तो मुझे फ़ोन कर देना।
माँ - पर~~~
मैं कड़क आवाज में बोला - अभी तो इतना लेक्चर दे रही थी। अब क्या हुआ ?
माँ कुछ नहीं बोली। मैं फिर घर से निकल गया। घर से दूर एक ठेका था वहां जाकर बैठ गया। सुबह सुबह ठेके पर एक्का दुक्का लोग ही थे। मैंने एक बियर मंगवा ली और फ़ोन पर सुधा दी से बात करने लगा। सुधा दी ने साड़ी बात सुनी तो कहा - आज दिखा दे की तू भी एक मर्द है।
मैं - तुम्हारे गोद में इसी मर्द का बच्चा है। जोर जबरजस्ती करना मर्दानगी थोड़े ही है।
दीदी - तेरे मन में अब भी एक डर है। तू इतना अच्छा इंसान है तभी सब तुझसे इतना प्यार करते हैं। इतना मत सोच। थोड़ी फंतासी है। कुछ दबी हुई इच्छाएं है। पूरी कर दे। माँ भी खुश और अर्चना भी।
मैं - देखता हूँ दीदी।
दीदी से फिर और भी बातें होने लगीं। तभी माँ का फ़ोन आने लगा। मैं समझ गया की अर्चना घर आ गई है। मैंने दीदी को कहा - लगता है अर्चना आ गई। चलता हूँ
दीदी - सुन टेंशन ना ले कोई बुरा नहीं मानेगा। बिंदास मर्दानगी दिखा।
मैं - हम्म
फिर मैंने फटाफट बियर ख़त्म की और घर की तरफ निकल पड़ा।
घर पहुंचा तो माँ ने दरवाजा खोला। उन्होंने एक साडी पहनी हुई थी और ऊपर से शाल डाला हुआ था।
माँ ने मुझे देखते ही कहा - इतनी देर कहाँ लगा दी। आपकी लाड़ली अर्चना आई हुई है।
मैं - मैं कहीं भी रहूँ, कुछ भी करूँ तुमसे क्या ? चलो हटो रास्ते से। मैंने माँ को धक्का सा दिया। अंदर सोफे पर पहुंचा तो देखा एक तरफ अर्चना और एक तरफ जतिन बैठे थे। अर्चना ने एक लम्बा सा घाघरा और ब्लॉउज डाला हुआ था। ऊपर से शाल ओढ़ी हुई थी।
मैंने सोफे पर बैठते हुआ कहा - कैसी है ? उतनी दूर क्यों बैठी है पास आ।
अर्चना उठ कर मेरे बगल में बैठने लगी तो मैंने उसे खींच कर अपने गोद में बिठा लिया। माँ ने ये देखा तो कहा - क्या कर रहे हैं ? आपकी बेटी अब बड़ी हो गई है।
मैं - वही तो देख रहा हूँ कितनी बड़ी हुई है। तुम जरा जाकर कुछ पीने को पीकर आओ।
अर्चना - पापा , आपने तो पहले से ही पी रखी है और फिर पीयेंगे ?
मैंने उसे गोद से खड़ा किया और गहरे के ऊपर से ही उसके गांड पर थप्पड़ मारते हुए बोला - ज्यादा बोलेगी तो पिटेगी। चुप होकर बैठ।
मैंने फिर उसे अपने गोद में बिठा लिया। माँ मेरे तरफ आई और सामने आकर बोली - शर्म नहीं आती जवान लड़का बैठा है उसके सामने लड़की को मारते और ऐसी हरकत करते हुए ?
मैंने माँ का हाथ पकड़ कर अपने बगल में बिठा लिया और उसके गाल पर एक हलके से चांटा मारा और कहा - रंडी साली चुप नहीं होगी। पातर पातर करती रहती है।
माँ ने नजरे नीची कर लीं। अब रोल प्ले करने में मजा आ रहा था। माँ उठ कर जाने लगी तो मैंने उनका शाल कहीं लिया और कहा - ये सब क्या पहन रखा है। उतार।
माँ बोली - शर्म नहीं आती , जवान लड़का है।
मैं - अभी उसके सामने नंगा करके चोद दूंगा। चुप चाप जो कहता हूँ करो।
फिर मैंने जतिन से कहा - क्यों बे गांडू देख क्या रहा है। जा फ्रिज में देख बियर रखी हो तो एक दे मुझे।
जतिन बेचारा किचन में उठ कर जाने लगा। माँ भी उसके पीछे पीछे चली गईं। मैंने अर्चना के शाल के अंदर हाथ करके उसके मुम्मे दबाने शुरू कर दिए।
अर्चना - उफ़ पापा क्या कर रहे हैं ?
मैं - देख रहा हूँ बिटिया कितनी बड़ी हो गई है।
अर्चना - हाय रे। अब तो पता चल गया होगा। छोड़िये मुझे आपके मुँह से बदबू आ रही है।
मैं - चुप बैठ वार्ना यहीं पटक कर चोद दूंगा।
अर्चना चुप हो गई। मैं उसके मुम्मे दबा रहा था। उसने एक कॉटन का टी शर्ट टाइप ब्लॉउस पहन रखा था। और निचे ब्रा भी थी।
माँ और जतिन आ गए थे। माँ ने टेबल पर बियर रख दिया और कुछ खाने का भी।
मैं - और जतिन, माँ से मिल लिया ? कैसा लगा माँ से मिलकर ? माँ मस्त है या बहन ?
जतिन कुछ बोल नहीं पाया। उसे उम्मीद नहीं थी की मैं इतनी जल्दी रोल प्ले में आ जाऊंगा। मैंने उसके साथ उसके घर में जो दुर्दशा की थी उस बात से वो थोड़ा डरा हुआ लग रहा था।
मैंने कहा - अच्छा ये बता माँ ने कुछ खिलाया पिलाया है या नहीं ?
माँ - कैसी बात कर रहे हो। तुम्हारे आने से पहले चाय नाश्ता करा दिया था।
मैं - अरे भाई दूध का शौक़ीन है , चाय नाश्ता से क्या होगा ? बता किसका दूध पियेगा ? बहन की तो पीता ही है , माँ के पिए बहुत दिन हो गए होंगे , पियेगा ?
माँ - क्या कह रहे हो ? इतना बड़ा लड़का है। ये सब सही नहीं है। दारू पीकर होश खो देते हो। कुछ भी बकना चालू हो जाता है।
मैं चिल्ला कर बोला - चुप साली , अपना मुँह बंद कर। नहीं तो मुँह में लौड़ा डाल कर बंद कर दूंगा। जो कह रहा हूँ वो सुन। और जो कहूं वो भी करना पड़ेगा।
माँ कुछ नहीं बोली। उन्होंने चुप चाप अपनी नजरें झुका लीं। इधर अब तक मैं अर्चना के ब्लॉउज खोल चूका था और ब्रा के ऊपर से ही उसके स्तनों को मसल रहा था। मैं साथ ही बीच बीच में बियर की बोतल उठा कर सिप भी ले रहा था। नशा भी मुझ पर हावी हो रहा था।
माँ ने मुझे पीते देखा तो फिर बोली - कितना पिएंगे। बच्चे भी हैं कुछ तो शर्म कीजिये।
मैं - तू अपना मुँह बंद नहीं करेगी। तेरे मुँह में कुछ डालना ही पड़ेगा। चल इधर आ मेरी रंडी।
माँ चौंक गई फिर उठ कर मेरे पास आई। मैंने अर्चना से कहा - उठ।
अर्चना उठने लगी तो मैंने उसका शाल खींच लिया। अब वो सिर्फ ब्रा और घाघरे में थी। ठंढ का मौसम था पर माँ ने पहले से कमरे में ब्लोअर लगा रखा था। तो उतनी गरमी नहीं थी। माँ मेरे नजदीक आई तो मैं खड़ा हो गया और उनके सीने पर हाथ रखते हुए कहा - देख तेरी बेटी सिर्फ ब्रा में है और तूने पुरे कपडे पहन रखे हैं। ये ठीक नहीं है।
माँ कुछ बोल पाती उससे पहले ही मैंने उनके ब्लॉउज को दोनों हाथो से पकड़ा और जोर से खींच दिया। उनका ब्लॉउज चररर की आवाज के साथ फट गया। मैंने उनके ब्लॉउज को उतार फेंका। माँ अभी समझ पाती मैंने उनका कन्धा पकड़ा और उनको बिठाते हुए कहा - बहुत बोलती है न। चल ले मेरा लंड अपने मुँह में , न मुँह खली रहेगा ना ही बोलेगी।
मेरा लंड पहले से ही पेंट से बाहर था। मैंने अपना पेंट पूरा उतारा और अपना लंड माँ के मुँह में डाल दिया। जतिन की हालत ख़राब थी। मैंने उससे कहा - भोसड़ी के सब यहाँ नंगे हो रखे हैं तू कपडे में क्यों है। उतार और नंगा हो जा।
अर्चना बोली - ठंढ है पापा। बीमार हो जायेगा।
मैंने अर्चना के गाल पर एक थप्पड़ मारा और कहा - साली माँ का मुँह बंद हुआ तो बहनचोद तू बोलने लगी। जा जाकर भाई का लौड़ा चूस। साले का पेंट ख़राब हो रखा होगा। और बैठ के एकदम कुतिया की तरह लौड़ा चूसेगी।
अर्चना अपने गाल को सहलाते हुए जतिन के पास पहुंची। जतिन ने पहले से ही अपने पेंट को उतार दिया था। अर्चना झुक कर कुतिया बन गई और उसके लौड़े को मुँह में लेकर चूसने लगी। क्या नजारा था। दो दो गदराई औरतें लंड चूस रही थी। दोनों ने सिर्फ ब्रा पहना हुआ था पर निचे से कवर थी। अर्चना बड़े बेमन से जतिन का लंड चूस रही थी। उसका मन मेरे लंड को चूसने का था। पर खेल जैसे चल रहा था वैसे ही चलने देने में भलाई थी। मैंने कुछ देर बाद माँ को उठाया और और उसे चूमते हुए बोला - देखो अपने भाई का लौड़ा कैसे चूस रही है। मस्त माल है न माँ। देखो उसकी गांड कितनी चौड़ी है।
ये बात मेरे और माँ के बीच हो रही थी। माँ ने भी ललचाई नजरों से अर्चना की तरफ देखा और कहा - क्या चाहती हो , चूत चटवाओगी या चाटोगी ?
माँ ने धीरे से कहा - पहले उसके बदन को देख तो लू। अभी उसे टच तक नहीं किया है।
मैंने कहा - जरा डांट लगाओ और बुलाओ अपने पास।
माँ मुश्कुरै फिर चेहरा सीरियस करते हुए बोली - अर्चना , तुम्हे शर्म नहीं आती। तेरा बाप तो नशे में धुत्त है। तू तो होश में है। अपने ही भाई का लौड़ा माँ बाप के सामने चूस रही है। कुछ तो शर्म कर।
अर्चना पलट कर देखने लगी। उसके मुँह से लार टपक रही थी। थूक और जतिन के प्री कम की वजह से उसका होठ और ठुड्ढी पूरी तरह से गिला था।
वो कुछ बोलती तभी मैंने माँ को पीछे किया और उसके गांड पर थप्पड़ मारते हुए कहा - जैसी माँ वैसी बेटी। लंड चूसने में एकदम एक्सपर्ट।
जतिन के साथ तो खेल हो चूका था। मैंने अर्चना से कहा - सुना नहीं तेरी माँ ने क्या कहा । इधर आ।
अर्चना उठने वाली थी। मैंने कहा - खड़ी होकर नहीं मेरी कुतिया वैसे ही चार पाँव पर चल कर आ।
अर्चना गांड मटकाते हुए मेरे पैरों के पास आ गई। अब वो ललचाई नजरो से मेरे तने हुए लौड़े को देख रही थी।
मैंने माँ को कहा - देखो तेरी बेटी कैसे मेरे लौड़े की तरफ नजरे गड़ाए हुए है।
माँ - शर्म कर अर्चना। उठ जा।
मैं कुछ नहीं बोला। अर्चना उठ कर खडी हो गई। अब हम तीनो एकदम अगल बगल में खड़े थे।
मैंने अर्चना से कहा - लौड़ा तो नहीं मिला पर लौड़े का जूस लेना है तो माँ के होठों से पी ले।
अर्चना कुछ समझ पाती उससे पहले मैंने माँ और उसका चेहरा एक दुसरे के सामने कर दिया और उनके होठ भिड़ा दिए। मुझे तो चिंगारी लगाने की देर थी।
दोनों एक दूसरे से लिपट गई। दोनों एक दुसरे के होठों को ऐसे चूस रही थी जैसे लग लग रहा था काट कर खा जाएँगी। मैं अर्चना के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उनके गांड से अपना लंड भिड़ा कर खड़ा हो गया।
मैंने जतिन से कहा - क्यों बे गांडू। पारिवारिक मिलान में आएगा नहीं। आजा , माँ से मिल ले।
वो भाग कर माँ के पीचेर खड़ा हो गया। दोनों औरतें हम दोनों के बीच में थी। हम चारों एक दुसरे के शरीर से अपना शरीर रगड़ रहे थे। एकदम गरमागरम महल था। इस शर्दी के दिन में भी हम सब पसीने पसीने हो गए थे। मैंने हाथ आगे करके अर्चना के घाघरे का नाडा खोल दिया। अर्चना ने माँ के ेटिकट की तरफ हाथ बढ़ाया तो माँ ने रोक दिया। मैंने अर्चना को अपने तरफ कर लिया। अब अर्चना की गांड माँ की तरफ थी। माँ ने हाथ बढ़ा कर अर्चना के चुके पकड़ लिए।
अर्चना - पापा आपने पहले ऐसे प्यार क्यों नहीं किया। उफ़ आप दोनों का प्यार पाकर एकदम मजा आ गया।
उधर माँ अर्चनाके मुम्मे से खेलते हुए बोली - उफ़ , सच में बहुत बड़े हैं रे। मेरे साइज़ के ही होंगे लगभग।
मैं और माँ दोनों अर्चना के शरीर को रगड़े जा रहे थे। मेरा लंड उसके चूत के पास था।
कुछ देर की रगड़ाई के बाद अर्चना माँ के तरफ घूमी और उनको किस ककरने के बाद उन्हें जतिन की तरफ कर कर दिया। जतिन में मा को सामने देखा तो होश खो बैठा उसने मी को किस कर लिया। वो उनके भरे भरे होठों को काट रहा था। अर्चना ने माँ के ब्रा को खोल दिया और उनके मुम्मे से खेलने लगी। जतिन बड़ी बेसब्री से माँ के होठ चूस रहा था।
तभी माँ ने बोला - सुना है मेरे लाडले को पेटीकोट में छुपने में बड़ा माजा आता है।
अर्चना माँ के मुम्मे दबाते हुए बोली - हाँ माँ आपका ये लाडला बिगड़ा हुआ है। साला जब देखो तब पेटीकोट में घुस जाता है।
माँ - और तू ? तुझे घुसने का मन नहीं करता।
अर्चना - माँ मिली नहीं थी न मुझे।
माँ - अब तो मिली हूँ। आजा माँ का आशीर्वाद ले ले।
जतिन के साथ फिर खेल हो गया था। माँ ने अर्चना का हाथ पकड़ा और सोफे पर जाकर बैठ गईं। अर्चना एकदम अच्छी बच्ची की तरह उनके सामने बैठ कर उनके पेटीकोट में घुस कर उनके चूत चाटने लगी। माँ ने शायद पैंटी नहीं पहनी थी। मैं खड़ा खड़ा उन दोनों को देख रहा था।
अर्चा एकदम मस्त कुतिया की तरह माँ के चूत को चाटने में लगी थी। माँ ने मस्ती में आँखे बंद कर रही थी। अर्चना के मस्त नंगे गांड को देख कर मन कर रहा था की उसकी गांड मार लूँ पर मैं माँ की मस्ती ख़त्म नहीं करना चाह रहा था।
मैंने जतिन से धीरे से कहा - चुटिया है क्या बे ? जा उन मस्त चुचों से अपना हक़ ले ले।
जतिन मेरा इशारा पाते ही माँ के बगल में जाकर बॉथ गया और उनके लटकते मुम्मे को मुँह में भर लिया। पहले माँ को लगा मैं हूँ पर उन्होंने जाटों को देखा तो पहले संकोच किया फिर मेरा इशारा पाकर बोली - पी जा मेरे लाल । पी जा पाने माँ का दूध पी जा।
जतिन - माआआआ तुम कितनी शानदार हो।
मैं खड़े खड़े देख रहा था। मैं माँ को आनंद महसूस कर रहा था। मैंने फिर की बोतल उठा ली और पीने लगा। मई दुसरे सोफे पर बैठ गया और बियर पीने लगा। मेरा लंड मुझे गरिया रहा था। उसके सामने दो दो चूत थी पर उसे एक भी नहीं मिल रही थी। माहौल होते हुए भी मैंने खुद पर काबू किया हुआ था। मैं माँ को देख रहा था। मस्ती में तड़पते हिलते उनके बदन को देख रहा था। अर्चना को उन्होंने पेटीकोट उतरने नहीं दिया था पर दोनों भाई बहन ने मिलकर उनका पेटीकोट उनके कमर तक समेट दिया था। उसका होना ना होना बराबर था।
माँ अपने कमर को आगे पीछे करने लगी थी।
माँ - उफ्फ्फ , लग नहीं रहा है पहली बार चूस रही हो। इस्सस , जरा मेरे क्लीट को चुसो। आह हां खा जाओ उसे। तेजी से उफ्फ्फ इस्सस आह आह आह मेरी बेटी क्या चूस रही हो। देख रहे हो जी एक्सपर्ट बेटी है आपकी।
मैं - रंडी वो तेरी बेटी है तो एक्सपर्ट होगी ही। खा जा अर्चना अपने माँ के लौड़े को। चूस के पानी बहा दे।
अब माँ झड़ने वाली थी। उनका शरीर बुरी तरह से हिल रहा था। उन्होंने अर्चना के सर को पकड़ लिया और अपने पैरो के बीच जकड़ते हुए अपने कमर को आगे पीछे करने लगी। उनका ये रूप मुझे बहुत अच्छा लगता था। बल्कि कोई भी औरत जब झड़ती है और उस समय जो उसके बदन में कंपन होती है उसे देखने में सच में मजा आता है। माँ ऐसे समय में मेरे कंधो पर अपने पैर रख कर अपने कमर से मुझे बाँध लेती थी।
माँ के चूत ने अपना पानी छोड़ना शुरू कर दिया था। जतिन उनके बगल में बैठा उन्हें निहार रहा था। माँ एकदम पसीने पसीने हो राखी थो। उनका पूरा शरीर छटपटा रहा था। पूरा पानी छोड़ने के बाद माँ स्थिर हुई पर अर्चना ने उन्हें यही छोड़ा था। वो उनके चूत से निकलते एक एक बूँद को चाटने में लगी थी।
सब चट करने के बाद अर्चना ने चेहरा ऊपर किया और कहा - माँ बहुत स्वाद है तुममे।
मैंने हँसते हुए कहा - स्वाद या नशा। और असली नशा तो तुमने लिया ही नहीं।
वो मेरी तरफ देखने लगी।
माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे उठाते हुए बोली - तू बड़ी मस्त लड़की है। पहले मिली होती तो मजा आता।
माँ ने उसे अपने तरफ किया और किस करते हुए बोली - जा अपने पापा के साथ अपने अरमान पूरा कर ले।
अर्चना वैसे ही चौपाया बनते हुए आई और मेरे लंड को मुँह में लेने लगी। मेरे लंड को तो मुँह नहीं चूत चाहिए थी।
मैंने अर्चना से कहा - चूसना फिर बाद में अब ऊपर आ जाओ।
अर्चना उठी और मेरे तरफ पीठ करके खडी हो गई। वो थोड़ा आएगी की और झुकी और एकदम रंडियों की तरह अपने गांड को हिलाने लगी। मैं समझ गया उसे क्या चाहिए था । मैंने उसके दोनों गांड पर एक एक थप्पड़ मारा और कहा - ये तेरा गांड नहीं तबला है।
अर्चना - फिर बजाओ न पापा। अच्छे से बजाओ। जोर जोर से थाप मार मार कर बजाओ।
मैंने कहा - चोट लगेगी।
अर्चना - उसका अलग ही मजा है।
मैं उसके गांड पर दोनों हाथों से ऐसे थाप देना लगा जैसे सच में तबला बजा रहा हूँ। मेरे हर थाप से उसके भारी गांड हिलने लगते।
मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा था। मैंने कहा - अब आकर चूत में लौड़ा ले ले वार्ना गांड मार लूंगा।
अर्चना ने कहा - उफ़। इतना बड़ा लौड़ा है गांड फाड़ देगा। रहने दो पापा।
वो पीछे हो गई और मेरे तरफ पीठ किये हुए ही मेरे लंड को पकड़ लिया और अपने चूत पर सेट करते हुए बैठने लगी।
अर्चना - पापा कितना बड़ा लंड है तुम्हारा , मेरी चूत ना फाड़ दे।
मैं - कल लिया था तो बड़ा नहीं लगा था।
अर्चना - कल तो जोश में थी , होश ही नहीं नहीं था। आज एक एक अंग में चुदाई का मजा महसूस हो रहा है।
वो मेरे लंड पर उछलने लगी। मैंने हाथ आगे करके उसमे स्तन पकड़ लिए और उन्हें दबाने लगा। उधर मी ने जतिन का लंड अपने हाथ में ले लिया था और उसकी मुठ मारने लगी थी। जतिन उन्हें चोदना चाह रहा था पर माँ सबको अपना शरीर नहीं देती थी। जतिन माँ के हाथों से ही खुश हो गया था। उसकी आँखें बंद हो गई थी।
अर्चना - माँ कैसे चुदती हो तुम पापा से । इतना बड़ा लंड तो लग रहा है मेरे बच्चेदानी तक जा रहा है।
माँ - जाने दे न , तुझे बच्चा ही तो चाहिए। ले ले जितना अंदर तक ले सकती हो।
अर्चना - उफ़ आह।
वो कभी मेरे ऊपर उछलती तो कभी कमर आगे पीछे करके एक ले में हिलाती। चुदाई में एक्सपर्ट थी वो। उसका मर्द तभी उसके पीछे पड़ा था। जतिन के लंड ने कुछ ही देर में अपना पानी माँ के हाथों में छोड़ दिया।
माँ ने उसकी तरफ देखा और उसके बालों को सहलाते हुए कहा - तुझे अपने बाप से अपने पर काबू करना सीखना पड़ेगा। देख अभी तक एक बार भी नहीं झड़े।
माँ ने अपनी नजर वापस अर्चना की तरफ की। माँ उसके शरीर को देख कर फिर ललचाने लगी थी। उसके पेट और चूत के हिस्से को देख कर माँ के मुँह में पानी आने लगा था। माँ उठ खडी हुई। वो हमारे पास आकर निचे बैठ गई। उन्होंने अर्चना के पेट पर जीभ फेरा और उसके चूत के ऊपर हाथ फेरने लगी। माँ के हाथ लगते ही अर्चना रुक गई।
माँ ने फिर अर्चना के चूत पर जीभ लगा दिया। उन्होंने एक हाथ से मेरे दोनों बॉल्स सहलाने शुरू कर दिए और दुसरे से अर्चना के क्लीट को चाटने लगी। अर्चना ने अब अपने कमर को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। मुझे वापस मजा आने लगा था।
अर्चना - आह माँ , मजा आ रहा है। जरा मेरे क्लीट को प्यार करो ना। उफ्फ्फ हाँ। उँगलियों से आह आह।
माँ ने चेहरा हटा लिया था और अपनी उँगलियों से उसके क्लीट पर हरकत शुरू करनी शुरू कर दी थी। अब अर्चना अपने चरम की तरफ पहुँचने वाली थी। वो जब बैठती तो मेरे लंड पर पूरा जोर देते हुए एकदम अंदर तक लेती। माँ के हाथ का जादू और मेरे तगड़े लंड का कमाल था कुछ ही देर में वो झड़ने लगी। उसके चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया। वो एक आखिरी बार उठी और धप्प से मेरे लँड़पर बैठ गई। उसने अपने पैर सिकोड़ लिए और माँ के क्लीट पर जमे हाथों को अपने हाथो से पकड़ कर कांपने लगी। उसने अपना शारीर आगे की तरफ झुका लिया और माँ के कंधे पर सर रख दिया। वो तो झाड़ गई थी पर मुझे कुछ और धक्को की जरूरत थी। मैं उसके आनंद को बिगाड़ना नहीं चाहता था। उसके सँभालते ही कुछ देर बाद मैंने पीछे से धक्का लगाने की कोशिश की। इस चक्कर में वो माँ के ऊपर ही गिर पड़ी।
अब माँ निचे और वो उनके ऊपर लेती पड़ी थी। अब मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा था । मैं सोफे से उतरा और घुटने के बल होते हुए उसी स्थिति में पीछे से उसके चूत में लंड घुसा दिया। वो भी घुटनो के बल हो गई। अब मैं उसे उसी पोज में चोदे जा रहा था। उसका पिछले हिस्सा उठा हुआ था तो आगे का हिस्सा माँ के शरीर से सत्ता हुआ था । मेरे हर धक्के से उन दोनों का ऊपरी हिस्सा रगड़ खा रहा था। माँ को मजा आने लगा था। उन्होंने उसके होठो को अपने होठो से लगा लिया।
कमरे में उनके चूमने चाटने की और मेरे थप थप की आवाज गूँज रही थी। माँ भी मस्त चुदाई के मूड में थी। माँ भी अब अपने कमर को ऊपर उठा कर अर्चना के कमर पर मारने लगी थी जैसे उसे चोद रही हो। माँ की इस हरकत को देख कर मुझे आश्चर्य हुआ। वो ऐसे कम ही करती थी। ऐसा शायद इस लिए था की अब तक उनके सम्बन्ध परिवार में ही बने थे और वहां कुछ हद तक संकोच था और हवस के साथ प्रेम भी था। पर यहाँ उनके ऊपर हवस पूरी तरह से हावी था। लग रहा था जैसे अर्चना को भोगने की इच्छा मुझसे ज्यादा उन्हें थी।
हम तीनो की हालत देख जतिन का लौड़ा फिर से खड़ा हो गया था और वो बेचारा खुद ही मुठ मार रहा था। मुझे पता था की कुछ ही देर में उसका लंड पानी छोड़ देगा। पानी छोड़ने को तो मेरा लंड भी तैयार था। अर्चना को समझ आ गया था। उसने कहा - एकदम अंदर तक पेल दो। एक एक बूँद आदर तक जाना चाहिए। आह और अंदर। जोर से तेज और तेज।
कुछ ही देर में हम दोनों एक साथ स्खलित होने लगे। अर्चना माँ के ऊपर लेट गई थी और मैं बैठे बैठे अपने माल को उसके चूत में आराम से निकलने दे रहा था। हम दोनों के कमर एक दुसरे से चिपके हुए था। माँ भी झड़ चुकी थी। ताहि मैंने कुछ गरम गरम महसूस किया। अर्चना भी चौंक गई और उठने लगी तो माँ ने उसे पकड़ लिया। वो समझ गई। कुछ पल में मैंने महसूस किया अर्चना ने भी अपनी गरम धार छोड़ दी थी। मेरा लंड बाहर आ गया था तो मैं पीछे होकर सोफे पर पीठ टीका लिया। माँ और अर्चना एक दुसरे को भिगो रही थी।
अर्चना - माँ तुम सच में बड़ी चुदअक्कड़ हो। इतनी गरम माल मैंने नहीं देखा अब तक।
माँ - मैंने भी तुझसे नहीं देखा। एकदम रंडी है तू। तुझे देख कर हवस ख़त्म ही नहीं होती।
अर्चना - तभी तो इतना चोदू लौंडा पैदा किया है।
वो माँ के ऊपर से उठती हुई बोलीं - पर एक अच्छा इंसान भी है। मुझे लगा था पापा बन कर मेरा रेप करेगा आज पर जोर जबरजस्ती तो की पर लिमिट में।
माँ - मैं भी चाहती थी आज ये साड़ी हदें पार कर दे पर बेचारा शरीफ है। थप्पड़ों पर रह गया बस।
मैं - इतने से भी मजा नहीं आया तुम दोनों को।
अर्चना ने मुझे किस किया और कहा - बहुत मजा आया पापा । तुम्हे क्या कहूं अब मैं। बयान नहीं कर सकती।
मैं - अब पापा कहना बंद करो। अजीब लग रहा है।
अर्चना हसंते हुए मेरे गले लग गई और बोली - भाई बोलूं बहनचोद। तू बहाने पहले से चोद चूका है इस लिए बेटी बानी बेटीचोद।
मैं - तुम्हे हमारे बारे में सब पता है।
जतिन जो इतने देर से चुप था बोला - भाई , तुम्हारे आने से पहले ये दोनों कमरे में यही सब खुसुर पुसुर कर रही थी।
माँ - तू सब सुन रहा था।
जतिन ने चेहरा झुका लिया और कहा - क्या फायदा। आज का दिन तो राज का ही है।
माँ ने कहा - बेटा मुझे माफ़ कर दे। मेरी चूत सबको नसीब नहीं होती। पर तुझे दूध तो दिया न।
जतिन ने कहा - कोई बात नहीं। माँ की तरह बस दूध पिलाती रहो।
अब हम सबको ठंढ लगने लगी थी। मैंने कहा - सब बीमार पड़ जायेंगे।
माँ ने अर्चना से कहा - जा नहा ले और कपडे पहन ले। मैं जरा सब साफ़ कर देती हूँ ।
अर्चना - आप रहने दो मैं करती हूँ
माँ- मेरा किया धरा है मैं ही साफ़ करुँगी।
अर्चना - किया आपका और धरा मेरा।
हम सब हंसने लगे। मैं और जतिन कमरे में चले गए। वो दोनों सफाई में लग गईं। हम दोनों लौट कर आये तो देखा ड्राइंग रूम साफ़ हो चूका था। कमरे में थोड़ी बहुत महक थी तो मैंने रूम फ्रेशनर ऑन कर दिया। मैंने जतिन से कहा - रम पियेगा या फिर ब्रांडी।
माँ कमरे से निकलते हुए बोली - ब्रांडी निकलना। रम नहीं। तुम पहले भी बहुत पी चुके हो। अब मुझे भी चाहिए। मैं खाने का बंदोबस्त करती हूँ।